अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सार्क एवं CICA बैठक
प्रिलिम्स के लियेदक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, काॅन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मीज़र्स इन एशिया मेन्स के लियेदक्षिण एशियाई क्षेत्र में सार्क की घटती प्रासंगिकता एवं उभरते नए संगठन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आभासी तरीके से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के विदेश मंत्रियों की बैठक और ‘काॅन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मीज़र्स इन एशिया’ (Conference on Interaction and Confidence-Building Measures in Asia- CICA) पर एक सम्मेलन का आयोजन हुआ।
प्रमुख बिंदु:
- भारत-पाकिस्तान गतिरोध:
- भारत ने आतंकवाद संकट से निपटने के लिये सार्क देशों से सामूहिक रूप से हल करने का आह्वान किया। आतंकवाद संकट में आतंक एवं संघर्ष के वातावरण का पोषण, समर्थन एवं प्रोत्साहित करना शामिल है।
- भारत का यह कथन स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान की आलोचना को संदर्भित करता है जो सीमापार आतंकवाद में संलिप्त है।
- पाकिस्तान ने ‘लंबे समय से चले आ रहे विवादों’ के समाधान पर एक विस्तृत बयान दिया जो जम्मू-कश्मीर के बारे में और भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने से संबंधित था।
- भारत ने आतंकवाद संकट से निपटने के लिये सार्क देशों से सामूहिक रूप से हल करने का आह्वान किया। आतंकवाद संकट में आतंक एवं संघर्ष के वातावरण का पोषण, समर्थन एवं प्रोत्साहित करना शामिल है।
- पृष्ठभूमि:
- हाल ही में भारत ने कहा कि सामूहिक रूप से COVID-19 महामारी से लड़ने में सार्क के प्रत्येक सदस्य-राष्ट्र की गंभीरता का अंदाजा उनके व्यवहार से लगाया जा सकता है। भारत का यह बयान दक्षिण एशियाई क्षेत्र में COVID-19 संकट से निपटने में भारत के नेतृत्त्व के लिये पाकिस्तान के विरोध से संबंधित था।
- पाकिस्तानी समकक्ष द्वारा अपने मानचित्र में भारतीय क्षेत्र को शामिल करने के कारण सितंबर, 2020 में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की एक आभासी बैठक को बीच में ही छोड़कर चले गए थे।
- वर्ष 2019 में सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने एक-दूसरे के भाषणों का बहिष्कार किया था।
- उरी हमलों के मद्देनज़र आतंकी समूहों को पाकिस्तान के निरंतर समर्थन के मुद्दे पर वर्ष 2016 में इस्लामाबाद में आयोजित होने वाले सार्क सम्मेलन के 19वें संस्करण में भारत के प्रधानमंत्री ने भाग लेने से भी मना कर दिया था।
- COVID-19 संकट: सभी सार्क देशों ने COVID-19 महामारी से निपटने में सहयोग करने की आवश्यकता पर एक साझा रुख अपनाया।
- COVID-19 से निपटने के लिये सार्क पहल: सार्क COVID-19 सूचना विनिमय मंच (Covid-19 Information Exchange Platform- COINEX), सार्क फूड बैंक तंत्र (SAARC Food Bank Mechanism), सार्क COVID-19 आपातकालीन कोष (SAARC Covid-19 Emergency Fund)।
- भारत का योगदान: सार्क देशों के लिये भारत ने ‘सार्क COVID-19 आपातकालीन कोष’ में 10 मिलियन अमरीकी डालर और आवश्यक दवाओं, COVID संरक्षण एवं परीक्षण किट का योगदान दिया है।
- सार्क की प्रासंगिकता: वर्ष 2016 के बाद से सार्क बहुत प्रभावी नहीं रहा है क्योंकि वर्ष 2014 में काठमांडू (नेपाल) में इसके द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद से कोई शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है।
- वर्ष 2016 में भारत, बांग्लादेश, भूटान एवं अफगानिस्तान ने योजनाबद्ध तरीके से इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था।
- सार्क के अप्रासंगिक होने के कारण:
- यद्यपि सार्क में द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा नहीं की जा सकती है किंतु चूँकि सार्क संगठन सभी प्रमुख निर्णयों के लिये सर्वसम्मति के सिद्धांत पर निर्भर करता है इसलिये पाकिस्तान ने अक्सर सार्क में प्रस्तावित प्रमुख पहलों पर वीटो कर दिया। उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में काठमांडू शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित सार्क मोटर वाहन समझौता।
- भारत-पाकिस्तान संघर्ष के कारण सार्क की प्रासंगिकता घटी है। भारत के लिये विदेश नीति के एक साधन के रूप में पाकिस्तान द्वारा आतंक के उपयोग ने दोनों देशों के मध्य सामान्य व्यापार को असंभव बना दिया है।
- डूरंड रेखा पर पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के बीच विवाद भी इसका एक कारण है।
- भारत की आर्थिक स्थिति सार्क देशों की तुलना में एक रणनीतिक साझेदार के बजाय ‘बिग इकॉनोमिक पावर’ (Big Economic Power) रूप में दर्शाती है।
- सार्क, इस क्षेत्र की सामूहिक चेतना एवं अन्य संगठनों जैसे-बिम्सटेक (BIMSTEC) के लिये लगभग सीमांत हो गया है।
‘काॅन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मीजर्स इन एशिया’ (CICA):
- भारत ने CICA के माध्यम से एशिया में एक बहुलवादी सहकारी सुरक्षा व्यवस्था के लिये अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। इसने अफगान शांति प्रक्रिया के लिये अपने समर्थन की भी पुष्टि की है।
CICA के बारे में:
- CICA एशिया में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता को बढ़ावा देने की दिशा में सहयोग बढ़ाने के लिये एक बहु-राष्ट्रीय मंच है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के 47वें सत्र में, 5 अक्तूबर, 1992 को कज़ाकिस्तान गणराज्य के पहले राष्ट्रपति द्वारा CICA के आयोजन का विचार पहली बार प्रस्तावित किया गया था।
- CICA की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक सितंबर, 1999 में हुई थी।
- इसमें एशिया महाद्वीप से 27 सदस्य राष्ट्र जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, मिस्र, भारत आदि शामिल हैं जबकि जापान, इंडोनेशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि इसके कुछ पर्यवेक्षक राष्ट्र हैं।
- तज़ाकिस्तान गणराज्य वर्ष 2018-2020 की अवधि के लिये CICA का अध्यक्ष है।
आगे की राह:
- गौरतलब है कि सार्क को पाकिस्तान की वजह से अप्रासंगिक बनाना किसी के हित में नहीं है। सार्क की हालिया अप्रासंगिकता के बावजूद इसका पुनरुद्धार भारत को अपनी ‘पड़ोसी पहले की नीति’ के तहत चीन द्वारा शुरू की गई ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के माध्यम से क्षेत्रीय रणनीतिक अतिक्रमण की चुनौती से निपटने की सुविधा प्रदान करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आर्मीनिया-अज़रबैजान विवाद
प्रिलिम्स के लियेआर्मीनिया और अज़रबैजान की भौगोलिक स्थिति, नागोर्नो-करबख की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेआर्मीनिया और अज़रबैजान के मध्य विवाद की पृष्ठभूमि और भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
विवादित नागोर्नो-करबख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच एक बार फिर हिंसक संघर्ष की शुरुआत हो गई है, जिसके कारण इस क्षेत्र विशिष्ट में स्थिरता लाने और शांति स्थापित करने के प्रयासों को लेकर चिंताएँ और अधिक बढ़ गई हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, दोनों देशों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के कारण अब तक कुल 16 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
- ध्यातव्य है कि बीते लगभग चार दशक से भी अधिक समय से मध्य एशिया में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच चल रहे क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष ने नागोर्नो-करबाख क्षेत्र के आर्थिक-, सामाजिक और राजनीतिक विकास को भी खासा प्रभावित किया है।
विवाद: पृष्ठभूमि
- वर्तमान नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 1918 में तब हुई थी, जब ये दोनों देश रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र हुए थे।
- 1920 के दशक के प्रारंभ में, दक्षिण काकेशस में सोवियत शासन लागू किया गया और तत्कालीन सोवियत सरकार ने तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को अज़रबैजान के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र बन दिया।
- यद्यपि स्वायत्त क्षेत्र बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों (आर्मीनिया और अज़रबैजान) के बीच संघर्ष जारी रहा, हालाँकि सोवियत शासन के दौरान दोनों देशों के बीच संघर्ष को रोक दिया है।
- लेकिन जैसे-जैसे सोवियत संघ का पतन होना शुरू हुआ, वैसे-वैसे ही आर्मीनिया और अज़रबैजान पर इसकी पकड़ भी कमज़ोर होती गई। इसी दौरान वर्ष 1988 में अज़रबैजान की सीमाओं के भीतर होने के बावजूद नागोर्नो-काराबाख की विधायिका ने आर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया।
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र ने एक जनमत संग्रह के माध्यम से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया, वहीं अज़रबैजान ने इस जनमत संग्रह को मानने से इनकार कर दिया।
- सोवियत संघ के विघटन के साथ ही रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच भी युद्ध की शुरुआत हो गई।
- उल्लेखनीय है कि आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ही समय-समय पर एक दूसरे के ऊपर नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र में जातीय नरसंहार का आरोप लगाते रहे हैं।
- वर्ष 1992 तक इस क्षेत्र में हिंसा काफी तेज़ हो गई और इसके कारण हज़ारों नागरिक को विस्थापित होना पड़ा, जिसने अंतर्राष्ट्रीय निकायों और संस्थानों को इस क्षेत्र पर ध्यान देने और कार्यवाही करने के लिये मज़बूर किया।
- मई 1994 में दोनों देशों के बीच संघर्ष को बढ़ते देख रूस ने आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध विराम की मध्यस्थता की, किंतु तकरीबन तीन दशकों से यह संघर्ष आज भी जारी है और समय-समय पर संघर्ष विराम उल्लंघन और हिंसा के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
- अप्रैल 2016 में इस क्षेत्र में हिंसक संघर्ष काफी तेज़ हो गया, जिसके कारण इस क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया था, इस संघर्ष को फोर-डे वॉर (Four-Day War) के रूप में भी जाना जाता है।
हालिया संघर्ष के निहितार्थ
- विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच वर्ष 1994 के बाद से ही छोटे-छोटे संघर्ष जारी हैं और मध्यस्थता के तमाम प्रयास दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने में विफल रहे हैं।
- हालाँकि इसके बावजूद अधिकांश जानकारों का मानना है कि आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच एक संपूर्ण युद्ध की संभावना काफी कम है।
- इस विवादित क्षेत्र में सैकड़ों नागरिक बस्तियाँ है, और यदि दोनों देशों के बीच व्यापक पैमाने पर युद्ध की शुरुआत होती है तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोग प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे और काफी व्यापक पैमाने पर विस्थान दर्ज किया जाएगा।
- किसी भी प्रकार का व्यापक सैन्य संघर्ष तुर्की और रूस जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिये मज़बूर कर देगा और तुर्की तथा रूस दोनों ही देश इस युद्ध में शामिल होना नहीं चाहेंगे, इसलिये इस क्षेत्र में शांति स्थापित करना उनकी प्राथमिकता होगी।
- व्यापक पैमाने पर युद्ध होने के कारण इस क्षेत्र से तेल और गैस का निर्यात भी बाधित होगा, ज्ञात हो कि अज़रबैजान, जो प्रति दिन लगभग 800,000 बैरल तेल का उत्पादन करता है, यूरोप और मध्य एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण तेल और गैस निर्यातक है। यही सब कारण हैं जिसके दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना काफी कम है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- अमेरिका, ईरान, रूस, फ्रांँस और जर्मनी समेत कई अन्य देशों ने नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच को तत्काल समाप्त करने, युद्ध विराम के नियमों का पालन करने और जल्द-से-जल्द इस मामले को वार्ता के माध्यम से सुलझाने का आह्वान किया है।
- वहीं अज़रबैजान के सहयोगी तुर्की तथा पाकिस्तान ने अर्मेनिया को इस हमले के लिये ज़िम्मेदार ठहराया है और अज़रबैजान के लिये ‘पूर्ण समर्थन’ का वादा किया है।
भारत और आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद
- यद्यपि भारत ने अभी तक इस संबंध में कोई विशिष्ट प्रतिक्रिया नहीं है, किंतु क्षेत्रीय शांति और स्थिरता से संबंधित इस मामले पर भारत बारीकी से निगरानी रख रहा है। ज्ञात हो कि भारत के अर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।
- हाल के कुछ वर्षों में भारत और आर्मेनिया के बीच द्विपक्षीय सहयोग में काफी तेज़ी देखी गई है। आर्मेनिया के लिये भारत के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करना इस दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं कि भारत, अज़रबैजान-पाकिस्तान-तुर्की के रणनीतिक गठजोड़ को एक संतुलन प्रदान करता है।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो कि भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल की आवाजाही के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग का एक नेटवर्क है।
- उल्लेखनीय है कि अज़रबैजान, तुर्की की तरह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति का समर्थन करता है।
नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र
- नागोर्नो-काराबाख (Nagorno-Karabakh) दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो कि तकरीबन 4,400 वर्ग किलोमीटर (1,700 वर्ग मील) तक फैला हुआ है।
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र आर्मेनिया की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से केवल 50 किलोमीटर (30 मील) दूर स्थित है।
- इसके अलावा आर्मेनिया समर्थित कुछ स्थानीय अलगाववादी सैन्य समूहों कुछ क्षेत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यूरोपीय संघ से आव्रजन रोकने हेतु स्विट्ज़रलैंड में जनमत संग्रह
प्रिलिम्स के लियेस्विस पीपुल्स पार्टी (SVP) मेन्स के लियेस्विट्ज़रलैंड-यूरोपियन संघ के संबंधों पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
स्विट्ज़रलैंड में मतदाताओं ने यूरोपीय संघ (European Union-EU) के साथ ‘मुक्त आवागमन’ (Free Movement) समझौते को समाप्त करने के एक प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। जनमत संग्रह (Referendum) में डाले गए कुल मतों में से लगभग 62% मुक्त आवागमन के पक्ष में थे, जबकि शेष 38% इसके खिलाफ थे।
प्रमुख बिंदु
- 27 सितंबर को किये गए इस जनमत संग्रह की पहल लोकलुभावन दक्षिणपंथी पार्टी ‘स्विस पीपुल्स पार्टी’ (Swiss People’s Party-SVP) ने की थी, जिसमें कहा गया था कि वर्तमान नियम प्रतिवर्ष औसतन 75,000 यूरोपीय संघ के नागरिकों को स्विट्ज़रलैंड में आव्रजन की अनुमति देते हैं।
- SVP ने दावा किया था कि यूरोपियन संघ से अधिक मात्रा में आव्रजन के कारण अति जनसंख्या, आवास लागत में वृद्धि और एक तनावपूर्ण कल्याण प्रणाली का जन्म होता है। स्विट्ज़रलैंड की सरकार द्वारा SVP पार्टी की इस पहल का विरोध किया गया था।
- यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने जनमत संग्रह के परिणामों को ‘संबंधों को मज़बूत और गहरा करने के लिये एक सकारात्मक संकेत’ कहा है।’
- इस पहल के आलोचकों का तर्क था कि युरोपियन संघ से मुक्त आव्रजन पर रोक से देश में कुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है। लगभग 8.2 मिलियन की कुल आबादी वाले स्विट्ज़रलैंड में लगभग 1.4 मिलियन यूरोपीय संघ के नागरिक रहते हैं, जबकि यूरोपीय संघ के देशों में लगभग 500,000 स्विस रहते हैं।
स्विस पीपुल्स पार्टी (SVP) के बारे में
- SVP ने स्विट्ज़रलैंड के अंदर यूरोपीय संघ के प्रभाव की निंदा करने के मुद्दे को लेकर अपना मंच बनाया है। SVP ने चेतावनी दी कि देश ‘अनियंत्रित और अत्यधिक आव्रजन’ का सामना कर रहा है। पार्टी ने स्विट्ज़रलैंड और यूरोपीय संघ के देशों के बीच लोगों के मुक्त आव्रजन को समाप्त करने का आह्वान किया।
- स्वायत्तता से आव्रजन नीति पर निर्णय करने हेतु स्विट्ज़रलैंड द्वारा अपने संविधान में संशोधन करने के लिये प्रत्यक्ष लोकतंत्र के हिस्से के रूप में जनमत संग्रह की पहल की गई थी।
स्विट्ज़रलैंड-यूरोपियन संघ के संबंधों पर प्रभाव
- जनमत संग्रह के परिणाम का एक अर्थ यह लगाया जा सकता है कि स्विस सरकार यूरोपीय संघ के साथ आव्रजन मुद्दे और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों को विनियमित करने के लिये एक समझौते पर बातचीत को आगे बढ़ा सकती है।
- स्विट्ज़रलैंड के न्याय मंत्री के अनुसार, स्विस सरकार यूरोपीय संघ के साथ एक द्विपक्षीय मार्ग जारी रखना चाहेगी। स्विट्ज़रलैंड यूरोपियन संघ में शामिल हुए बिना आर्थिक संबंध बनाए रखेगी।
- वर्तमान COVID-19 महामारी संकट के दौरान कठिन आर्थिक स्थिति के समय स्विट्ज़रलैंड के अपने पड़ोसियों और यूरोपीय संघ के साथ अच्छे संबंध महत्त्वपूर्ण हैं।
- स्विट्ज़रलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है। स्विट्ज़रलैंड कई द्विपक्षीय संधियों के माध्यम से ब्लॉक के एकल मार्केट (Single Market) का हिस्सा है, जो स्विट्ज़रलैंड और 27 यूरोपियन संघ के सदस्य देशों के मध्य लोगों की मुक्त आवाजाही की अनुमति देता है।
जनमत संग्रह में उठाए गए अन्य मुद्दे
- जनमत संग्रह में उठाए गए अन्य मुद्दों में पितृत्त्व अवकाश, भेड़ियों (Wolves) को मारने के प्रतिबंधों में ढील, फाइटर जेट्स का अधिग्रहण और बाल देखभाल के लिये कर रियायत आदि सम्मिलित थे।
- 60% से अधिक मतदाताओं ने बच्चे के जन्म के पश्चात् पिता को दो सप्ताह के पितृत्त्व अवकाश देने की योजना का समर्थन किया है।
- मतदाताओं ने बाल देखभाल के लिये कर रियायत देने के विपक्ष में मतदान किया है।
- लगभग 51.9% मतदाताओं ने भेड़ियों के शिकार की अनुमति देने के उपायों को अस्वीकार कर दिया।
- जनमत संग्रह में लगभग 50.1% मतदाताओं ने नए फाइटर जेट खरीदने के पक्ष में मतदान किया।
आगे की राह
- वर्ष 2014 में भी इसी तरह के एक जनमत संग्रह में स्विट्ज़रलैंड में रहने और काम करने के लिये यूरोपीय संघ के नागरिकों के आव्रजन को सीमित करने के पक्ष में मतदान हुआ था। हालाँकि स्विस अर्थव्यवस्था पर बड़े पैमाने पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका के चलते स्विस सांसदों द्वारा जनमत संग्रह के परिणामों को लागू करने से इनकार कर दिया गया था।
- लोकलुभावन SVP ने इस वर्ष इस मुद्दे को फिर से जनमत संग्रह में पेश करने का निर्णय किया था। यूरोपियन संघ से मुक्त आव्रजन को सीमित करने को कुछ लोगों द्वारा ‘Swexit’ की संज्ञा दी जा रही थी, जो स्विस मतदाताओं के बीच लोकप्रिय नहीं है।
- वर्तमान COVID-19 महामारी के संकट को देखते हुए जनमत संग्रह के परिणाम स्विस सरकार और यूरोपियन संघ के मध्य सकारात्मक आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने के क्रम में महत्त्वपूर्ण हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन और वनाग्नि के मध्य संबंध
प्रिलिम्स के लियेवनाग्नि के मौसम को प्रभावित करने वाले कारक मेन्स के लियेभारत में वनाग्नि का जोखिम, चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
जलवायु परिवर्तन और वनाग्नि जोखिम के मध्य संबंध स्थापित करने की कोशिश करने वाली जनवरी, 2020 से प्रकाशित वैज्ञानिक लेखों की एक अद्यतन समीक्षा के अनुसार, मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन वनाग्नि को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियों में वृद्धि करता है। यह अद्यतन समीक्षा वर्ष 2019-2020 में पश्चिमी अमेरिका और दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि की घटनाओं पर केंद्रित है।
प्रमुख बिंदु
- समीक्षा लेखकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन संपूर्ण विश्व में वनाग्नि के मौसम की आवृत्ति और गंभीरता में वृद्धि करता है। वनाग्नि की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि की व्याख्या केवल खराब भूमि प्रबंधन से नहीं की जा सकती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण शुष्क मौसम में वृद्धि से वनाग्नि के जोखिम में भी वृद्धि होती है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कैलिफोर्निया में वनाग्नि की घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन के ज़िम्मेदार होने की संभावनाओं को खारिज़ किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसके लिये खराब वन प्रबंधन को दोषी ठहराया है।
- इससे पहले भी वर्ष 2018 में कैलिफोर्निया में विनाशकारी वनाग्नि के मौसम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया था कि “कैलिफोर्निया में इतने बड़े पैमाने पर खतरनाक वनाग्नि का प्रमुख कारण खराब वन प्रबंधन के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। वनों के कुप्रबंधन के कारण प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में जान-माल की हानि होती है, जिसके लिये अरबों डॉलर की सहायता प्रदान की जाती है।”
वनाग्नि के मौसम को प्रभावित करने वाले कारक
- वर्ष 2013 में प्रकाशित ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) की पाँचवीं आकलन रिपोर्ट (Fifth Assessment Report) में वनाग्नि की घटनाओं को प्रभावित करने वाले कुछ कारकों की पहचान की गई है।
- इन कारकों में औसत तापमान में वैश्विक वृद्धि, हीट वेव्स की तीव्रता एवं आवृत्ति में वैश्विक वृद्धि और प्रादेशिक रूप से सूखे की आवृत्ति, अवधि और तीव्रता में वृद्धि आदि सम्मिलित है।
- गर्मी के महीनों में कैलिफोर्निया और ऑस्ट्रेलिया के गर्म और शुष्क मौसम की स्थिति वाले क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में वनाग्नि की घटनाएँ सामान्य है, लेकिन हाल के वर्षों में वनाग्नि की घटनाओं तथा तीव्रता में बड़े पैमाने पर वृद्धि के कारण मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और वनाग्नि के जोखिम के बीच संबंध के बारे में अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, वनाग्नि की घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन के अलावा अन्य कारण, जैसे- प्राकृतिक परिवर्तनशीलता आदि भी हो सकते है। हालाँकि नए विश्लेषण के परिणामों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप बढ़ती गर्म और शुष्क परिस्थितियों का प्राकृतिक परिवर्तनशीलता पर प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वनाग्नि के मौसम में अधिक वृद्धि हुई है।
पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि की घटना
- पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि की घटना संपूर्ण विश्व में सुर्खियों में थी। हालाँकि ऑस्ट्रेलिया में ग्रीष्म ऋतु में वनाग्नि की घटनाएँ होती रहती है, लेकिन पिछले वर्ष वनाग्नि की घटना का पैमाना बहुत व्यापक था और तीव्रता भी अभूतपूर्व थी।
- वनाग्नि के कारण हज़ारों जानवरों की मृत्यु के साथ-साथ 10 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक वन भूमि बुरी तरह से प्रभावित हुई। वैज्ञानिकों के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि की घटना को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है।
वनाग्नि के प्रकार
- सतह वनाग्नि: सतह वनाग्नि भूमि पर अवशिष्ट पदार्थों, जैसे- सूखी पत्तियों, टहनियों और सूखी घास के सहारे वन की सतह पर फैलती है।
- शीर्ष वनाग्नि: इसमें वृक्षों और झाड़ियों के शीर्ष भाग जल जाते हैं। किसी शंकुधारी वन में शीर्ष वनाग्नि खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
भारत में वनाग्नि का जोखिम
- देश के पश्चिमी घाट एवं पूर्वोत्तर में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों से लेकर उत्तर में हिमालय क्षेत्र में विस्तृत अल्पाइन वनों तक भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। इन दो चरम स्थितियों के मध्य अर्द्ध-सदाबहार वन, पतझड़ वन, उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्तियों वाले वन, उपोष्ण कटिबंधीय शंकुधारी वन और पर्वतीय समशीतोष्ण वन पाए जाते हैं।
- जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण अन्य कारकों के साथ वनाग्नि भारत में वनों के ह्रास का प्रमुख कारण है। भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट के अनुसार, देश के लगभग 50% वन क्षेत्र अग्नि प्रवण है।
- भारतीय वनों की सुभेद्यता, वनस्पति के प्रकार, जलवायु तथा अन्य प्राकृतिक और मानवजनित कारणों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में एकसमान नहीं है। उदाहरणस्वरूप हिमालय क्षेत्र में शंकुधारी वन, जैसे- देवदार और स्प्रूस वनाग्नि के प्रति अधिक प्रवण हैं। वहीं पूर्वी हिमालय में अधिक वर्षा घनत्व के कारण वनाग्नि का खतरा कम रहता है।
- गंगा-यमुना का मैदानी क्षेत्र वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्र है। वर्ष 1999 में इस क्षेत्र में एक बड़ी वनाग्नि का सामना करना पड़ा, जिसने 80,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को राख में परिवर्तित कर दिया।
भारत में वनाग्नि का प्रबंधन
- इस संबंध में उठाया गया पहला प्रगतिशील कदम वर्ष 1952 में राष्ट्रीय वन नीति का निर्माण था। वर्ष 1988 में राष्ट्रीय वन नीति में संशोधन किया गया जो अतिक्रमण, आग और चराई के खिलाफ वनों के संरक्षण पर ज़ोर देती है।
- वर्ष 1927 के भारतीय वन अधिनियम की धारा- 26 और 33 के अंतर्गत संरक्षित वनों में आग जलाना या आग जलाने की अनुमति देना एक अपराध है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा- 30 में वन्यजीव अभयारण्यों में आग लगाना प्रतिबंधित है।
- भारत में वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन के लिये कई एजेंसियाँ कार्यरत हैं, जैसे- केंद्रीय स्तर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारतीय वन सर्वेक्षण, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (Indian Council of Forestry Research and Education-ICFRE) तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA)आदि।
- राज्य स्तर पर राज्यों के वन विभाग, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा सामुदायिक स्तर पर संयुक्त वन प्रबंधन समितियाँ भी वनाग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं ।
- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Forest Fires-NAPFF) आग की रोकथाम, नियंत्रण, आग के बाद की गतिविधियों, सामुदायिक भागीदारी सहित वनाग्नि के समग्र प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है।
- वनाग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन (Forest Fire Prevention and Management-FFPM) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है, जो विशेष रूप से वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।
चुनौतियाँ
- भारत में वनाग्नि की समस्या व्यापक और संकेंद्रित है जिसका अलगावपूर्ण दृष्टिकोण द्वारा प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है।
- वनाग्नि की रोकथाम और प्रबंधन के लिये स्पष्ट रणनीतिक दिशा के साथ एक एकीकृत नीति ढाँचे की अनुपस्थिति है।
- FFPM पर वर्ष 2000 में जारी राष्ट्रीय दिशा निर्देश अभी भी काफी हद तक लागू नहीं किये गए हैं।
- केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर एक समर्पित FFPM कोष की कमी FFPM प्रक्रिया को असफल बना रही है।
- वनाग्नि संबंधित जानकारी एकत्र करने के लिये मानक प्रोटोकॉल का अभाव है। राज्यों को अनुसंधान और मानक प्रतिक्रिया, रोकथाम और शमन प्रोटोकॉल के विकास में केंद्र सरकार से मदद की आवश्यकता है।
- आग के उपयोग के साथ पारंपरिक सामुदायिक प्रथाओं को परिवर्तित करने में जन जागरूकता की कमी है।
आगे की राह
- IPCC की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भूमंडलीय तापन (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्शियस तक सीमित कर विश्व स्तर पर औसत वनाग्नि की घटनाओं को कम किया जा सकता है। इसलिये सभी देशों को मिलकर पेरिस समझौते के सफल क्रियान्वयन का प्रयास करना चाहिये।
- साथ ही उपग्रह-आधारित चेतावनी सिस्टम और भूमि-आधारित अनुसंधान प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय पर्यटन उद्योग: चुनौती और संभावनाएँ
प्रिलिम्स के लियेविश्व पर्यटन दिवस, ‘साथी’ एप्लीकेशन, विश्व पर्यटन संगठन मेन्स के लियेपर्यटन उद्योग पर महामारी का प्रभाव, भारतीय पर्यटन उद्योग की स्थिति और उसकी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को दुनिया भर में विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य विश्व भर के लोगों को पर्यटन के प्रति जागरूक करना है। वर्ष 2020 में विश्व पर्यटन दिवस की 40वीं वर्षगांठ मनाई गई है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि विश्व पर्यटन दिवस आगामी भविष्य के निर्माण में पर्यटन की क्षमताओं को पहचानने का एक अवसर प्रदान करता है।
- इस दिवस की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) द्वारा की गई थी, और तब से प्रत्येक वर्ष अलग-अलग देश विश्व पर्यटन दिवस की मेज़बानी करते हैं।
- विदित हो कि भारत ने वर्ष 2019 में इस दिवस की मेजबानी की थी।
विश्व पर्यटन दिवस 2020
- वर्ष 2020 के लिये विश्व पर्यटन दिवस की थीम ‘पर्यटन और ग्रामीण विकास’ रखी गई है। यह थीम बड़े शहरों के बाहर रोज़गार और विकास के अवसर प्रदान करने तथा विश्व भर में सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने में पर्यटन की भूमिका को रेखांकित करती है।
- भारत में पर्यटन मंत्रालय ने 27 सितंबर, 2020 को वर्चुअल माध्यम से विश्व पर्यटन दिवस का आयोजन किया। इस कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ‘साथी’ (SAATHI) नाम से एक एप्लीकेशन भी लॉन्च किया।
‘साथी’ एप्लीकेशन
- ‘साथी’ एप्लीकेशन, भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India) के साथ पर्यटन मंत्रालय की एक पहल है, जो कि आतिथ्य उद्योग को सुरक्षित रूप से संचालित करने के लिये और होटलों की सुरक्षा के बारे में कर्मचारियों और मेहमानों के बीच विश्वास पैदा करने में आतिथ्य उद्योग की सहायता करने हेतु शुरू की गई है।
कोरोना वायरस महामारी और पर्यटन उद्योग
- पर्यटन विश्व भर में लाखों लोगों के लिये आजीविका का अवसर प्रदान करता है और इससे भी कहीं अधिक लोगों को अलग-अलग संस्कृतियों और प्राकृतिक खूबसूरती को करीब से देखने का अवसर प्रदान करता है।
- गौरतलब है कि वैश्विक पर्यटन उद्योग महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाले उद्योगों में से एक है और महामारी ने इस उद्योग को विभिन्न स्तरों पर प्रभावित किया है।
- आर्थिक प्रभाव
- वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष वैश्विक व्यापार में पर्यटन उद्योग ने कुल 7 प्रतिशत का योगदान दिया था और प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति को रोज़गार दिया था।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के बंद होने, होटल बंद होने और हवाई यात्रा में गिरावट आने आदि के कारण वर्ष 2020 के पहले पाँच महीनों में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों की आवाजाही में कुल 56 प्रतिशत की कमी देखी गई है, जो कि वर्ष 2009 के वैश्विक आर्थिक संकट से भी तीन गुना अधिक है।
- संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के अनुसार, इस क्षेत्र के वर्तमान परिदृश्य से पता चलता है कि वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों की कुल संख्या में 58-78 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जिसके कारण आगंतुकों द्वारा किये जाने वाले खर्च में कमी होगी और यह अनुमानानुसार, 310-570 बिलियन डॉलर के बीच में रह सकता है, जबकि वर्ष 2019 में यह तकरीबन 1.5 ट्रिलियन था।
- विश्व पर्यटन संगठन का अनुमान है कि महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग से संबंधित लगभग 100 मिलियन लोगों के रोज़गार पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- आजीविका पर प्रभाव
- पर्यटन उद्योग पर महामारी के प्रभाव के कारण गरीबी (SDG 1) और असमानता (SDG 10) में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है, इसके अलावा वैश्विक स्तर पर प्रकृति और सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित प्रयासों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- ध्यातव्य है कि महामारी ने सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति की गति को भी काफी धीमा कर दिया है।
- पर्यटन उद्योग महिलाओं, ग्रामीण समुदायों और अन्य वंचित समूहों के लिये सदैव से ही आय का एक प्रमुख स्रोत रहा है, ऐसे में इस उद्योग पर महामारी के प्रभाव के कारण इन लोगों के समक्ष भी आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।
- सांस्कृतिक प्रभाव
- पर्यटन उद्योग पर महामारी के प्रभाव के कारण सांस्कृतिक क्षेत्र में विरासत संरक्षण के प्रयासों और समुदायों, विशेष रूप से स्वदेशी लोगों और जातीय समूहों के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने पर काफी दबाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिये, हस्तशिल्प उत्पादों और कढ़ाई-बुनाई से संबंधित उत्पादों के बाज़ार बंद होने के कारण ग्रामीण लोगों खासतौर पर स्वदेशी महिलाओं के राजस्व पर काफी प्रभाव पड़ा है।
- पर्यटन संस्कृति को बढ़ावा देने और परस्पर संवाद तथा समझ को विकसित करने हेतु प्रमुख वाहनों में से एक है, किंतु महामारी के प्रभाव के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संवाद में स्थिरता आ गई है।
भारत और पर्यटन उद्योग
- पर्यटन और आतिथ्य उद्योग का भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी व्यापक प्रभाव पड़ता है और ये उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत के पर्यटन उद्योग ने कुल 42 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान किया है, जो कि भारत में कुल रोज़गार के अवसरों का लगभग 8.1 प्रतिशत है।
- वर्ष 2019 में भारत के पर्यटन उद्योग ने देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में तकरीबन 9.3 प्रतिशत का योगदान दिया था और कुल निवेश में इसका 5.9 प्रतिशत हिस्सा था।
- विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्र लाखों लोगों को गुणवत्तापूर्ण रोज़गार प्रदान करने में सक्षम है, जो कि भारत जैसे देश के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है, जहाँ 72 प्रतिशत जनसंख्या 32 वर्ष से कम उम्र की है और औसत आयु 29 वर्ष है।
- भारत में पर्यटन क्षेत्र के संबंध में अद्भुत विविधता दिखाई पड़ती है। भारत में कुल 38 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं, जो कि भारत को पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण बनाते हैं।
भारतीय पर्यटन उद्योग से संबंधित समस्याएँ
- जटिल वीज़ा प्रक्रिया: ई-वीज़ा सुविधा शुरू करने के बावजूद अभी भी भारत में आने वाले अधिकांश पर्यटक और आगंतुक वीज़ा के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया को काफी बोझिल और जटिल मानते हैं। महामारी के दौरान वीज़ा की यह प्रक्रिया और भी अधिक जटिल हो गई है।
- अवसंरचना और कनेक्टिविटी का मुद्दा: प्रायः बुनियादी ढाँचे की कमी और अपर्याप्त कनेक्टिविटी के कारण कई बार पर्यटकों को कुछ विरासत पर जाने के लिये कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिये कंचनजंगा जैसे कई पर्यटन स्थल अभी भी आसानी से आम लोगों के लिये उपलब्ध नहीं हैं।
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प्रचार और जागरूकता की कमी: यद्यपि बीते कुछ वर्षों में भारत के पर्यटन क्षेत्र के प्रचार में काफी वृद्धि देखी गई है, किंतु अभी भी ऑनलाइन मचों पर भारत के पर्यटक स्थलों को लेकर प्रचार और जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है।
- पर्यटक सूचना केंद्रों को सही ढंग से प्रबंधित नहीं किया जाता है, जिससे घरेलू और विदेशी पर्यटकों के लिये आवश्यक जानकारी प्राप्त करना काफी मुश्किल हो जाता है।
- आवश्यक कौशल की कमी: पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों की कम संख्या भारत के पर्यटन उद्योग के लिये एक बड़ी चुनौती है, जिसके कारण भारत आने वाले पर्यटकों को विश्व स्तरीय अनुभव प्रदान करना मुश्किल हो जाता है।
- पर्यटक सुरक्षा: भारत में आने वाले विदेशी पर्यटकों को प्रायः लूट और चोरी आदि का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनके मन में भारत और देश की कानून-व्यवस्था को लेकर एक नकारात्मक छवि उत्पन्न होती है।
आगे की राह
- महामारी की समाप्ति के बाद सरकार को विरासत स्थलों की स्वच्छता के विषय पर विशेष ध्यान देना होगा ताकि भारतीय विरासत स्थलों की ओर पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया जा सके। साथ ही सरकार घरेलू पर्यटन उद्योग को भी प्रोत्साहित करना चाहिये।
- पर्यटन स्थलों के अवसंरचना विकास और उनकी कनेक्टिविटी पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, ताकि यात्रियों को किसी भी पर्यटन स्थल पर जाने में कठिनाई का सामना न करना पड़े।
- साथ-ही-साथ पर्यटन क्षेत्र में कार्य करने के लिये व्यापक स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यक है, ताकि पर्यटकों को विश्व स्तरीय सुविधाएँ प्रदान की जा सकें।
- पर्यटन स्थलों पर किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने हेतु बेहतर स्वास्थ्य अवसंरचना को विकसित करना चाहिये।