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डेली न्यूज़

  • 28 Aug, 2019
  • 37 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पेरियार एवं परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (Management Effectiveness Evaluation- MEE) और बाघ स्थिति रिपोर्ट (Tiger Status Report), 2018 द्वारा पेरियार (Periyar) और परम्बिकुलम (Parambikulam) बाघ रिज़र्व के संबंध में कुछ सुझाव दिये गए हैं।

Tiger Populations

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, इन टाइगर रिज़र्व की छिद्रित सीमा, अवैध अंतर-राज्यीय प्रवेश बिंदुओं और असुरक्षित वन क्षेत्रों के प्रबंधन में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार रिज़र्व के कोर में स्थित सबरीमाला मंदिर के लिये आयोजित तीर्थ यात्रा को सबसे बड़े जैविक कारक के रूप में पहचाना गया है जो इन रिज़र्व के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। हालाँकि पर्यटन और अन्य गतिविधियों से उत्पन्न जैविक दबाव काफी कम हो गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड द्वारा सबरीमाला मास्टर प्लान का पालन न करने के कारण रिज़र्व की पारिस्थितिकी को खतरा उत्पन्न हुआ है।
  • रिज़र्व में स्थित घास के मैदानों और खेतों में आक्रामक प्रजाति लैंटाना कैमारा (Lantana camar) का प्रसार जैव-विविधता पर संकट उत्पन्न कर रहा है।
  • मन्नान (Mannan), पलियान (Paliyan), उराली (Urali), मालमपंदरम (Malampandaram) और मलायन (Malayan) समुदायों के आदिवासी अपनी आजीविका के लिये पेरियार एवं परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व पर निर्भर करते हैं। रिपोर्ट में उनके प्राकृतिक-सांस्कृतिक जुड़ाव को जंगल के साथ बरकरार रखते हुये उन्हें वैकल्पिक आजीविका के प्रावधान हेतु सुझाव दिया गया है।
  • MEE ने रिज़र्व के कोर क्षेत्र में स्थित निजी संपत्ति पर चिंता व्यक्त की है। हालाँकि इस क्षेत्र की 67.52 हेक्टेयर भूमि को हाल ही में पारिस्थितिकीय संवेदनशील भूमि (Ecological Fragile Land) के रूप में अधिसूचित किया गया है।

राज्य सरकार द्वारा किये गये उपाय

  • राज्य सरकार द्वारा निजी संपत्ति को अधिग्रहण करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
  • आक्रामक प्रजातियों के प्रसार की इस समस्या के समाधान के लिये एक आक्रामक और विदेशी प्रजाति निगरानी सेल का गठन किया गया है। इन प्रजातियों की पहचान और प्रबंधन संबंधी योजना तैयार करने के लिये अध्ययन किये जा रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पुलिस व्यवस्था पर सर्वेक्षण

चर्चा में क्यों?

कॉमन कॉज़ (Common Cause) और लोकनीति (Lokniti) नामक गैर-सरकारी संगठनों द्वारा देश के 21 राज्यों में किये गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि देश के अधिकतर पुलिस अफसर अत्यधिक कार्यभार, कार्य एवं निजी जीवन के बीच असंतुलन और संसाधनों की कमी के कारण भारी तनाव में हैं।

सर्वेक्षण की मुख्य बातें:

  • एक तिहाई पुलिस अफसरों ने यह माना है कि यदि उन्हें समान वेतन और सुविधाओं वाली कोई अन्य नौकरी दी जाए तो वे अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे।
  • चार में से तीन पुलिसकर्मियों ने कहा कि कार्यभार के कारण उनके लिये अपने काम को अच्छी तरह से करना मुश्किल हो जाता है और इससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
    • आँकड़ों के अनुसार, एक औसत पुलिस अधिकारी एक दिन में लगभग 14 घंटे कार्य करता है, जबकि मॉडल पुलिस अधिनियम (Model Police Act) सिर्फ 8 घंटों की ड्यूटी की सिफारिश करता है।
    • हर दूसरे पुलिसकर्मी ने सप्ताह में एक भी अवकाश न मिलने की बात कही है।
  • कार्य तथा निजी जीवन के बीच असंतुलन के अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को संसाधनों की कमी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
    • कुछ पुलिस स्टेशनों में पीने के पानी, स्वच्छ शौचालय, परिवहन, कर्मचारियों और नियमित खरीद के लिये धन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • पुलिसकर्मियों ने बुनियादी तकनीकी सुविधाओं जैसे- कंप्यूटर और भंडारण सुविधा की अनुपस्थिति की भी बात कही है।
  • सर्वेक्षण में न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति पुलिस बल में कई लोगों के आकस्मिक (Casual) रवैये पर प्रकाश डाला गया है।
    • लगभग पाँच में से तीन पुलिसकर्मियों का मानना ​​है कि प्राथमिक जाँच रिपोर्ट (First Investigation Report-FIR) दर्ज होने से पहले प्राथमिक जाँच होनी चाहिये, चाहे वह कितना भी गंभीर अपराध क्यों न हो।
      • यह 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के विपरीत है जिसमें कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित द्वारा संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाता है तो पुलिस द्वारा FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • सर्वेक्षण में शामिल हर तीसरे पुलिस कर्मियों ने सहमति व्यक्त की है कि मामूली अपराधों के लिये पुलिस द्वारा अभियुक्तों को सौंपी गई मामूली सज़ा कानूनी परीक्षण से बेहतर है।
    • सर्वेक्षण में भाग लेने वाले तीन-चौथाई लोगों का मानना है कि पुलिस का अपराधियों के प्रति हिंसक रवैया अपनाना ठीक है।
  • सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक मापदंडों, हथियारों और भीड़ नियंत्रण के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है, तथापि अभी तक उन्हें साइबर अपराध या फोरेंसिक तकनीक के मॉड्यूल का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
  • उपरोक्त तथ्यों के कारण ही वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (World Justice Project) द्वारा जारी रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (Rule of Law Index) में भारत की रैंकिंग 126 देशों में से 68वीं हैं।

आगे की राह

भारत में पुलिस और न्याय व्यवस्था दिनों-दिन खराब होती जा रही है जिसके कारण इसे जल्द-से-जल्द नए सुधारों की आवश्यकता है। चूँकि पुलिस, कानून एवं व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं, इसलिये केंद्र सरकार प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई सिफारिशों को लागू करने के लिये सभी राज्यों से आग्रह कर सकती है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

माइक्रोक्रेडिट मॉडल

चर्चा में क्यों?

माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) ने समाज में गरीबों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये एक उपकरण के रूप में बहुत अधिक ख्याति प्राप्त की है, परंतु विशेषज्ञों के अनुसार इस मॉडल की कुछ खामियाँ भी हैं, जिन्हें दूर कर इसे और बेहतर बनाया जा सकता है।

माइक्रोक्रेडिट का अर्थ

  • माइक्रोक्रेडिट का तात्पर्य छोटे उधारकर्त्ताओं को कम मात्रा में ऋण उपलब्ध कराना है ताकि वे उस पूँजी का उपयोग स्व-रोज़गार करने तथा अपने व्यवसाय को और अधिक मज़बूत करने के लिये कर सकें।
  • माइक्रोक्रेडिट के रूप में दिया जाने वाला ऋण अक्सर ऐसे लोगों को दिया जाता है जिनके पास या तो गिरवी रखने के लिये कुछ नहीं होता है या आय का कोई स्थिर स्रोत नहीं होता है।
  • माइक्रोक्रेडिट का मुख्य विचार यह है कि एक छोटा ऋण उन लोगों को बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुँच प्रदान करेगा जो आम तौर पर उन संस्थानों के दायरे से बाहर रहते हैं जिन पर मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है।
  • छोटे उत्पादकों को उत्पादन गतिविधियों को शुरू करने हेतु सक्षम बनाने के उद्देश्य से ऐसा ऋण दिया जाता है, जिसके बाद उत्पादक स्वयं को स्थापित करने में सक्षम होगा और धीरे-धीरे ऋण को चुका देगा।
  • कभी-कभी माइक्रोक्रेडिट लेते समय लिखित समझौता भी नहीं किया जाता है, क्योंकि इस प्रकार का ऋण लेने वाले अधिकतर लोग निरक्षर होते हैं।

माइक्रोफाइनेंस का ही है हिस्सा

  • माइक्रोक्रेडिट, माइक्रोफाइनेंस का ही हिस्सा है। माइक्रोफाइनेंस का अर्थ है ऐसे व्यक्तियों तक वित्तीय सेवाएँ पहुँचाना, जिनके पास पारंपरिक रूप से वित्त तक पहुँच नहीं है।
  • माइक्रोफाइनेंस गतिविधियाँ आमतौर पर कम आय वाले व्यक्तियों को लक्षित करती हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करती हैं। इस तरह माइक्रोफाइनेंस गतिविधियों का एक उद्देश्य गरीबी उन्मूलन भी है।
  • माइक्रोक्रेडिट संस्था का एक उदाहरण बांग्लादेश स्थित ग्रामीण बैंक (Grameen Bank) है, जिसकी स्थापना वर्ष 1976 में मोहम्मद यूनुस ने की थी। इस बांग्लादेशी बैंक ने अब तक 8.4 मिलियन लोगों को माइक्रोक्रेडिट उपलब्ध कराया है और इनमें से 97 प्रतिशत महिलाएँ हैं।

भारत में क्यों असफल हो रही हैं माइक्रोक्रेडिट संस्थाएँ?

  • एक अध्ययन में 6 संकेतकों (घरेलू व्यापार लाभ, व्यापार व्यय, व्यापार राजस्व, उपभोग, उपभोक्ता द्वारा किये जाने वाला खर्चा और प्रलोभन के सामान पर खर्च) के आधार पर यह कहा गया था कि माइक्रोक्रेडिट तक पहुँच के बाद भी उधारकर्त्ताओं के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि माइक्रोक्रेडिट का भारत में असफल होने का मुख्य कारण भारतीय माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं द्वारा बनाए गए कड़े पुनर्भुगतान नियम हैं।
  • चूँकि माइक्रोक्रेडिट संस्थाएँ जिन लोगों को ऋण देती हैं उनमें से अधिकतर के पास न तो कोई ऋण भुगतान संबंधी इतिहास होता है और न ही आय का कोई स्थिर स्रोत होता है, इसीलिये माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं के समक्ष जोखिम को पहचानने की बड़ी चुनौती होती है।
  • डिफॉल्ट के जोखिम से बचने के लिये माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं ने ऐसी नीति का निर्माण किया है, जिसके तहत भुगतान की कुछ राशि की तत्काल मांग की जाती है। इसका प्रभाव यह होता है कि उधारकर्त्ता पूर्ण रूप से अपनी राशि का निवेश नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण उनकी आय में भी अल्प वृद्धि होती है।

निष्कर्ष

  • माइक्रोक्रेडिट गरीबी उन्मूलन का एक प्रमुख साधन है और इसकी सहायता से आर्थिक विकास की रफ्तार को काफी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है, परंतु मौजूदा प्रणाली में कई खामियाँ हैं जिनकी वजह से अब तक इस मॉडल का पूर्ण लाभ नहीं प्राप्त हुआ है। अतः हमें इस प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता है ताकि इस मॉडल का पूरा लाभ प्राप्त किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मार्स सोलर कंजंक्शन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने यह घोषणा की है कि आने वाले कुछ हफ्तों के लिये नासा के वैज्ञानिकों और मंगल (Mars) ग्रह पर मौजूद अंतरिक्ष यानों के बीच संपर्क रुक जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • नासा के अनुसार, संचार में होने वाली यह रूकावट मार्स सोलर कंजंक्शन (Mars Solar Conjunction) नामक घटना के कारण हो रही है।
  • इस अंतरिक्ष घटना में पृथ्वी और मंगल सूर्य के विपरीत दिशा में होते हैं और सूर्य दोनों ग्रहों के बीच में आ जाता है।

Solar Consuction

  • ज्ञातव्य है कि सूर्य अपने कोरोना (Corona) से गर्म आयनित गैस (Ionized Gas) अंतरिक्ष के वातावरण में निष्काषित करता है।

कोरोना (Corona):

  • सूर्य के वर्णमंडल के बाह्य भाग को किरीट/कोरोना (Corona) कहते हैं।
  • सूर्य का कोरोना बाहरी अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला है और इसे सूर्य ग्रहण के दौरान आसानी से देखा जाता है।
  • कोरोना मुख्यतः 2 प्रकार का होता है- F कोरोना तथा E कोरोना। F कोरोना धूल के कणों से बनता है वहीं E कोरोना प्लाज्मा में मौजूद आयनों द्वारा बनता है। अभी तक इस प्रकार की घटनाओं का विस्तृत अध्ययन नहीं किया जा सका है।
  • मार्स सोलर कंजंक्शन के दौरान सूर्य द्वारा निष्काषित यह गैस अंतरिक्ष यानों के बीच संचार में बाधा उत्पन्न कर सकती है तथा वैज्ञानिकों द्वारा भेजे जाने वाले रेडियो संकेतों (Radio Signals) में हस्तक्षेप कर सकती है और यदि ऐसा होता है तो मंगल पर मौजूद यानों द्वारा भेजी जाने वाली सूचनाओं के स्वरूप में परिवर्तन आ सकता है जिसका अंतरिक्ष संबंधी शोधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः इसी से बचने के प्रयास में इस घटना के दौरान मंगल और पृथ्वी के मध्य संचार को रोक दिया जाता है।
  • मार्स सोलर कंजंक्शन प्रत्येक 2 वर्षों में एक बार होता है।
  • अनुमानतः इस वर्ष यह घटना 28 अगस्त, 2019 से 7 सितंबर, 2019 के बीच घटित होगी।

क्या होगा घटना के दौरान?

  • अंतरिक्ष यान में लगे कुछ उपकरण मुख्यतः कैमरा जो बड़ी मात्रा में डेटा उत्पन्न करता है, को निश्चित अवधि के लिये निष्क्रिय कर दिया जाएगा।
  • साथ ही मंगल की सतह पर मौजूद शोध करने वाला रोबोट भी कार्य करना बंद कर देगा।
  • यह कहा जा सकता है कि मार्स सोलर कंजंक्शन वर्तमान में मंगल ग्रह पर कार्यान्वित सभी परियोजनाओं को रोक देगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

भूमि क्षरण को रोकने के लिये भारत की प्रतिबद्धता

चर्चा में क्यों?

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के पक्षकारों के 14वें सम्‍मेलन (COP14) से पूर्व भारत ने एक बार फिर से मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु अपने संकल्प को दोहराया।

भारत की प्रतिबद्धता

  • मरुस्‍थलीकरण एक विश्‍वव्‍यापी समस्‍या है जिससे 250 मिलियन लोग और भूमि का एक तिहाई हिस्‍सा प्रभावित है।
  • इसका मुकाबला करने के लिये भारत अगले दस वर्षों में ऊर्वर क्षमता खो चुकी लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि को ऊर्वर भूमि में बदल देगा।
  • भारत के पर्यावरण मंत्री द्वारा भूमि के उपयोग और उसके प्रबंधन की दिशा में निरंतर कार्य करने की प्रतिबद्धता भी व्‍यक्‍त की गई है।
  • द हिंदू के अनुसार, 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि को ऊर्वर भूमि में बदलने की प्रतिबद्धता बॉन चुनौती का हिस्सा थी। उल्लेखनीय है कि पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बॉन चुनौती पर स्वीकृति दी थी।
  • भारत ने वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।

भारत में भूमि क्षरण

  • भारत ने वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme), मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना (Soil Health Management Scheme) और प्रधान मंत्री कृषि सिचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana) जैसी योजनाओं को इस भूमि क्षरण से निपटने के प्रयासों के रूप में देखा जाता है।

आगे की राह

कुछ ही समय पूर्व शुरुआत में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया था कि भूमि को गंभीर जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यदि ऐसे में उचित कदम नहीं उठाए गए तो इससे खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

कुष्ठ रोग एवं टीबी के लिये सरकारी योजना

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुष्ठ रोग (Leprosy) और तपेदिक या टीबी (Tuberculosis- TB) के लिये 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सार्वभौमिक जाँच हेतु एक कार्यक्रम शुरू किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस कार्यक्रम के अनुसार, प्रतिवर्ष अनुमानित 25 करोड़ बच्चों और किशोरों में इन बीमारियों की जाँच की जाएगी और आवश्यकता के अनुसार उन्हें उपचार उपलब्ध करवाया जाएगा।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यकम (Rashtriya Bal Swasthya Karyakram- RBSK) के तहत आँगनवाड़ियों में पंजीकृत 0-6 साल के बच्चों और सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकित 6-18 वर्ष के बच्चों में टीबी और कुष्ठ रोग का जल्द पता लगाने के लिये जाँच शुरू की जाएगी।
  • वर्ष 2005 में भारत को कुष्ठ रोग मुक्त देश घोषित कर दिया गया था। वर्तमान में छत्तीसगढ़ और दादरा और नगर हवेली को छोड़कर सभी राज्य कुष्ठ रोग मुक्त हो चुके है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार प्रति 10,000 लोगों पर एक से कम मामलों की दर को कुष्ठ उन्मूलन के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • हालाँकि अभी भी प्रतिवर्ष 1.15-1.2 लाख नए कुष्ठ रोग के मामले सामने आते हैं।
  • विश्व में भारत पर सबसे अधिक टीबी बोझ (TB Burden) है। देश में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक ‘मिसिंग मामले’ सामने आते हैं जिन्हें अधिसूचित नहीं किया जाता है। इस तरह के अधिकाँश मामलो में या तो टीबी की पहचान नहीं हो पाती अथवा अपर्याप्त रूप से पहचान हो पाती है। इस प्रकार के मामलों का उपचार निजी क्षेत्र में किया जाता है।

कार्यक्रम का उद्देश्य

  • देश में अभी भी कुष्ठ रोग को सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है इसलिये सरकार रोगी के परिवार को सावधानीपूर्वक निवारक दवाएँ उपलब्ध करवाएगी।
  • कुष्ठ रोगियों की समय पर पहचान कर उचित उपचार के माध्यम से रोग को ठीक करना और विकलांगता को रोकना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

पर्यटन क्षेत्र के विकास हेतु पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 15वें वित्‍त आयोग ने पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये राज्यों को प्रोत्साहित करने के उपाय सुझाए।

प्रमुख बिंदु

  • पर्यटन और संस्कृति क्षेत्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे रोज़गार सृजन, आय में वृद्धि तथा राष्ट्र के एकीकरण का अभिन्न अंग हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाने के वाहक हैं।
  • वित्त आयोग ने सुझाव दिया कि ASI कानून, 1958 में बड़े बदलावों की आवश्यकता है, जो वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है तथा संरक्षित स्मारकों को बनाए रखने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू पर्यटकों के बीच स्मारकों का आक्रामक प्रचार किया जाना चाहिये।
  • घरेलू पर्यटन पर बल देने हेतु स्कूली छात्रों को देश के विभिन्न भागों में भेजना अनिवार्य किया जाना चाहिये। इसे स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिये। बैठक में होटल उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं और देश भर में पर्यटन के विकास में बाधा बन रही कनेक्टिविटी के बुनियादी ढाँचे की कमी पर चर्चा की गई।

विकास और संवर्द्धन हेतु पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के प्रयास

  • पर्यटन मंत्रालय द्वारा विकास और संवर्द्धन के लिये निम्न क्षेत्रों की पहचान की गई है: समुद्री पर्यटन, साहसिक पर्यटन, चिकित्सा (जिसे चिकित्सा यात्रा, स्वास्थ्य पर्यटन या वैश्विक स्वास्थ्य सेवा भी कहा जाता है), तंदुरुस्‍ती (भारतीय चिकित्‍सा पद्धति आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष), गोल्फ, पोलो, प्रोत्साहन सम्मेलन और प्रदर्शनियाँ (एमआईसीई), इको-पर्यटन, फिल्म पर्यटन, सतत् पर्यटन।
  • सेवा प्रदाताओं के लिये क्षमता निर्माण द्वारा मानव संसाधन प्रबंधन और आतिथ्य शिक्षा का आधार व्‍यापक बनाकर पर्यटन स्थलों तक आसानी से पहुँच प्रदान करना तथा इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और सुविधाएँ बहाल करना मंत्रालय के लिये चिंता का प्रमुख विषय हैं।
  • पर्यटन मंत्रालय पर्यटन के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने, वीज़ा व्यवस्था को आसान बनाने, पर्यटन सेवा प्रदाताओं की सेवाओं में गुणवत्तापूर्ण मानकों का आश्वासन देने, देश को 365 दिनों के पर्यटन स्थल के रूप में उभारने तथा पर्यटन को बिना किसी बाधा के बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करेगा।
  • पर्यटन मंत्रालय, पर्यटन स्‍थलों को विश्‍व स्‍तर के अनुरूप तैयार करने के लिये समग्र विकास को प्राथमिकता देगा। इसके लिये अन्‍य केंद्रीय मंत्रालयों, राज्‍य सरकारों और उद्योग के साझेदारों के साथ तालमेल स्‍थापित कर बुनियादी ढाँचे, सुविधाओं, दुभाषिया केंद्रों एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने सहित सामूहिक दृष्टिकोण का इस्‍तेमाल करेगा।

पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु पर्यटन मंत्रालय की प्रमुख योजनाएँ:

  • विशिष्ट विषय वस्‍तुओं- स्वदेश दर्शन के आसपास पर्यटक सर्किट का एकीकृत विकास।
  • तीर्थस्‍थल कायाकल्प और आध्यात्म पर राष्‍ट्रीय मिशन संवर्द्धन अभियान (प्रसाद)।
  • पर्यटन के बुनियादी ढाँचा विकास के लिये केंद्रीय एजेंसियों को सहायता।
  • आतिथ्य सत्‍कार सहित घरेलू पर्यटन का प्रसार और प्रचार (DPPH)।
  • विपणन विकास सहायता (MDA) सहित विदेशी पर्यटकों का प्रसार और प्रचार।
  • IHM/FCI आदि को सहायता।
  • सेवा प्रदाताओं के लिये क्षमता निर्माण (CBSP)।

पर्यटन मंत्रालय द्वारा दिये गए सुझाव

  • पर्यटन हेतु भूमि प्रदान करके, कम ज्ञात पर्यटन स्थलों का विकास, सड़क के किनारे सुविधाओं में वृद्धि और आतिथ्य उद्योग के क्षमता निर्माण के प्रावधान द्वारा राज्य सरकारों को पर्यटन स्थलों के बुनियादी ढाँचे के विकास में योगदान करने के लिये ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • मंत्रालय ने सुझाव दिया कि पर्यटन क्षेत्र में राज्यों के प्रदर्शन को विदेशी मुद्रा आय और विदेशी पर्यटकों के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। हालाँकि अर्जित की गई विदेशी मुद्रा राष्ट्रीय स्तर पर RBI द्वारा संकलित की जाती है और इसलिये राज्यों के लिये अलग-अलग आँकड़े प्राप्त करना संभव नहीं है।
  • पर्यटन मंत्रालय के पास विभिन्न राज्यों में विदेशी पर्यटकों की यात्रा की जानकारी रखने के लिये एक तंत्र है जिसका उपयोग पर्यटन क्षेत्र में राज्यों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिये किया जा सकता है। राज्यों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये प्रतिदर्श सर्वेक्षण द्वारा विदेशी पर्यटकों की भावनाओं के बारे में राज्यों के दावों की जाँच की जा सकती है।

स्रोत: pib


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (28 August)

  • महिला और बाल विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी ने हाल ही में नई दिल्‍ली में आयोजित एक समारोह में 2018-19 के लिये विभिन्‍न श्रेणियों में पोषण अभियान पुरस्‍कार प्रदान किये। यह पुरस्‍कार राज्‍यों, जिला, ब्‍लॉक स्‍तर पर तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रदान किये गए। इनका चयन पोषण अभियान को बढ़ावा देकर देश के सभी परिवारों को लाभान्वित करने को सुनिश्चित बनाने में योगदान देने के लिये किया गया। पोषण अभियान कई मंत्रालयों के समन्वित प्रयास से चलाया जाता है और इसका उद्देश्‍य वर्ष 2022 तक देश से कुपोषण दूर करना है। इन पुरस्‍कारों के अंतर्गत 363 पुरस्‍कार और 22 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई। इन पुरस्कारों का उद्देश्य सभी पक्षों की सहायता से कुपोषण की चुनौतियों से निपटना है। इसके अलावा 1 सितंबर से एक पोषण अभियान शुरू किया जा रहा है जो एक महीने चलेगा और इसमें सरकार ने 44 करोड़ लोगों को शामिल करने का लक्ष्‍य रखा है। पिछले वर्ष इस कार्यक्रम में 22 करोड़ लोग शामिल हुए थे। समारोह में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये सभी जिला कलेक्‍टरों की भागीदारी ज़रूरी है क्योंकि पोषण और पोषण आधारित नीतियों को प्रोत्‍साहन देने और उन्‍हें समझने के लिये जिला प्रशासन में क्षमता होनी बहुत ज़रूरी है।
  • हाल ही में केंद्रीय पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन,परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विभाग राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नई दिल्ली आयोजित होमलैंड सिक्योरिटी 2019 सम्मेलन में स्मार्ट पुलिसिंग पुरस्कार प्रदान किये। इसके तहत उग्रवाद रोधी, बाल सुरक्षा, सामुदायिक पुलिसिंग, अपराध जाँच और अभियोजन, साइबर अपराध प्रबंधन, आपातकालीन प्रतिक्रिया, मानव तस्करी, सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन, स्मार्ट पुलिस स्टेशन, निगरानी और निगरानी, ​​प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण, महिला सुरक्षा और अन्य पुलिस पहल के क्षेत्रों में काम करने के लिये अधिकारियों को 35 स्मार्ट पॉलिसिंग पुरस्कार दिये गए। इस अवसर पर पुलिसिंग में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं पर एक सार- संग्रह भी जारी किया गया। विदित हो कि हालिया दो दशकों स्‍मार्ट पुलिसिंग निर्माण की प्रकृति और चुनौतियाँ बदल गई हैं। कुछ साल पहले तक कुछ बदलावों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। केंद्र सरकार विशेष रूप से, महिलाओं और मादक पदार्थों की तस्करी से संबंधित कानूनों के संबंध में स्‍मार्ट पुलिसिंग के निर्माण को अधिक प्रभावी बनाने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • 24 अगस्त से 1 सितम्बर तक ‘हुनर हाट’ का आयोजन जयपुर में किया जा रहा है। इसमें दक्ष दस्तकारों और शिल्पकारों द्वारा हाथ से तैयार उत्‍पादों को देखने का अवसर मिलेगा। दूसरी बार सत्‍ता संभालने के बाद केंद्र सरकार का यह पहला हुनर हाट है। इससे पहले पिछले तीन वर्षों में एक दर्जन से अधिक ‘हुनर हाट’ के ज़रिये लाखों दस्तकारों और शिल्पकारों को रोज़गार के अवसर प्रदान किये जा चुके हैं। इस ‘हुनर हाट’ में देशभर के हुनर के उस्तादों, महिला कारीगरों सहित 200 से अधिक दस्तकार, शिल्पकार, खानसामे भाग ले रहे हैं। ‘हुनर हाट’ दस्तकारों, शिल्पकारों, खानसामों को रोzगार और रोजगार के अवसर मुहैया कराने में एक मजबूत अभियान साबित हुआ है। पिछले लगभग 3 वर्षों में ‘हुनर हाट’ के माध्यम से 2 लाख 40 हज़ार से अधिक लोगों को रोज़गार और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। जयपुर में आयोजित हो रहे ‘हुनर हाट’ में कारीगर अपने साथ स्वदेशी हस्तनिर्मित उत्पाद लाए हैं। इनमें जैसे असम के बेंत एवं बाँस; झारखंड से सिल्क की अलग-अलग वैराइटी; भागलपुर का सिल्क एवं लिनेन; लाख एवं परंपरागत आभूषण; पश्चिम बंगाल का कांथा; वाराणसी सिल्क; लखनवी चिकनकारी; उत्तर प्रदेश के सेरेमिक टेराकोट्टा, काँच के सामान, लेदर, संगमरमर के उत्पाद; पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के परंपरागत हस्‍तशिल्‍प; गुजरात का अजरख, बंधेज, मड वर्क, तांबे की घंटियाँ; आंध्र प्रदेश की कलमकारी और मंगलगिरी; पटियाला की मशहूर फुलकारी और जुत्ती, कालीन एवं दरियाँ; मध्य प्रदेश का बाटिक, बाघ प्रिंट, चंदेरी; ओडिशा का चाँदी का काम तथा राजस्थान का हस्‍तशिल्‍प और हथकरघा इत्यादि शामिल हैं। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा इससे पहले ‘हुनर हाट’ इलाहाबाद, दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले, बाबा खड़क सिंह मार्ग; पुद्दुचेरी के थीडल बीच और मुंबई में आयोजित किये गए हैं। आने वाले दिनों में ‘हुनर हाट’ का आयोजन देश के अन्य विभिन्न राज्यों में किया जाएगा।
  • उत्तराखंड और देश की पहली महिला DGP कंचन चौधरी भट्टाचार्य का मुंबई में 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 1973 बैच की महिला IPS अधिकारी कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने वर्ष 2004 में उस वक्त यह उपलब्धि हासिल की थी जब वह उत्तराखंड की पुलिस महानिदेशक बनीं। 31 अक्टूबर 2007 को वे पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुईं। किरण बेदी के बाद कंचन चौधरी भट्टाचार्य देश की दूसरी महिला IPS अधिकारी थीं। उन्हें मेक्सिको में वर्ष 2004 में आयोजित इंटरपोल की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिये चुना गया था। वर्ष 1997 में प्रतिष्ठित सेवाओं के लिये उन्हें ‘राष्ट्रपति पदक’ तथा वर्ष 2004 में राजीव गांधी विशेष सेवा मेडल मिला था। इनके जीवन से प्रेरणा लेकर दूरदर्शन पर एक सीरियल ‘उड़ान’ भी प्रसारित हो चुका है।

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