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डेली न्यूज़

  • 28 Feb, 2020
  • 70 min read
भारतीय इतिहास

भारत में प्रारंभिक मानव

प्रीलिम्स के लिये:

सोन नदी घाटी, ज्वालामुखी शीतकाल संकल्पना, पाषण-काल, पाषाण काल

मेन्स के लिये:

आधुनिक मानव का विकास क्रम, पाषाण काल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने भारत की सोन नदी घाटी में 80,000-65,000 वर्ष पूर्व के मनुष्यों की निरंतर उपस्थिति के प्रमाण खोजे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • ये शोध कार्य मध्य भारत के ऊपरी सोन नदी-घाटी में ढाबा (Dhaba) नामक स्थल की की ‘ट्रेंचेज़’ (Trenches) में किये गए।
  • इस पुरातात्त्विक उत्खनन से लगभग 80,000 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में मानव व्यवसाय (लिथिक या पत्थर उद्योग) के प्रमाण मिले हैं।
  • मेगालिथिक उपकरण लगभग 80,000-65,000 वर्ष पूर्व के हैं, जबकि सूक्ष्म-पाषाण उपकरण लगभग 50,000 वर्ष पूर्व के हैं।

Ganga-River-Basin

पाषाण काल:

  • पुरातत्वविदों ने आरंभिक काल को पुरा पाषण काल कहा है, यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजारों के महत्त्व को बताता है।

पुरापाषाण काल:

  • 20 लाख-12 हज़ार वर्ष पूर्व का समय।
  • इसको भी तीन काल आरंभिक, मध्य तथा उत्तर पुरापाषाण काल में विभाजित किया जाता है।

मध्यपाषण काल (मेसोलिथ):

  • इसे माइक्रोलिथिक या सूक्ष्मपाषण काल भी कहा जाता है क्योंकि औजारों में लकड़ी या हड्डियों के मुट्ठे लगे होते हैं।

नवपाषाण काल:

  • 10 हज़ार वर्ष पूर्व के बाद का समय।

शोध का महत्त्व:

  • यह शोध दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में मानव आबादी की पहली उपस्थिति तथा अफ्रीका से मानव विसरण (Dispersal) को समझने में मदद करेगा।
  • ढ़ाबा का लिथिक उद्योग अफ्रीकी एवं अरब के मध्य पाषाण युग के विभिन्न उपकरणों तथा ऑस्ट्रेलिया की शुरुआती कलाकृतियों से मिलते हैं, जिससे यह पता चलता है की ये संभवतः होमो सेपियन्स के उत्पाद है क्योंकि उनका अफ्रीका से बाहर पूर्व दिशा में विसरण हुआ था।
  • यह अध्ययन इस सामान्य दृष्टिकोण का खंडन करता है कि आधुनिक मानव का 50,000 वर्ष पूर्व ही अफ्रीका से बाहर विसरण हुआ है जबकि बताता है की टोबा ज्वालामुखी महाविस्फोट के दौरान भी यहाँ मानव की उपस्थिति रही है।
  • अफ्रीका और अरब में पहले पाए गए उपकरणों की समानता के आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि वे होमो सेपियन्स द्वारा बनाए गए थे।

टोबा ज्वालामुखी विस्फोट तथा मानव प्रजाति:

  • लगभग 74,000 वर्ष पूर्व, सुमात्रा के टोबा ज्वालामुखी में सुपर-विस्फोट हुआ जिससे पृथ्वी के कई हिस्सों में लगभग एक दशक से अधिक लंबी अवधि के लिये शीत मौसम की दशाएँ व्याप्त हो गई। यह विस्फोट पिछले 2 मिलियन वर्षों में सबसे बड़ा था।
  • ऐसा माना जाता है इस ज्वालामुखी जनित शीतकाल से पृथ्वी की सतह लगभग एक हज़ार साल तक ठंडी रही तथा इससे मानव (Hominins) की विशाल आबादी नष्ट हो गई।
  • यह माना गया कि इससे नाटकीय रूप से जलवायु परिवर्तन हुआ और इसने पूरे एशिया में आबादी को कम कर दिया। हालाँकि, भारत के पुरातात्विक साक्ष्य इन सिद्धांतों का समर्थन नहीं करते हैं।
  • 'ज्वालामुखी शीतकाल’ (Volcanic Winter) परिकल्पना के अनुसार, इस ज्वालामुखी के कारण मनुष्यों के जीन पूल (जीनों से संबंधित संपूर्ण सूचना) में बाधा उत्पन्न हुई तथा अफ्रीका के अलावा संपूर्ण मनुष्य जाति नष्ट हो गई तथा यह आबादी अफ्रीका से विसरित हो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बस गई।

ज्वालामुखी शीतकाल संकल्पना:

  • इसे वायुमंडलीय धूलि परिकल्पना (Atmospheric Dust Hypothesis) के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें ज्वालामुखी विस्फोट की क्रिया में एयरोसोल्स (Aerosols), ज्वालामुखी धूल-कण, सल्फ्यूरिक अम्ल आदि के उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापमान में कमी आती है क्योंकि ये सौर्यिक विकिरण को परावर्तित करके (जिसे ऐल्बिडो (Albedo) भी कहा जाता है) अल्पकालिक शीतलन प्रभाव पैदा करते है।
  • दीर्घकालिक शीतलन प्रभाव मुख्य रूप से समतापमंडल में सल्फर गैसों के उत्सर्जन पर निर्भर होते हैं, जहाँ वे सल्फ्यूरिक अम्ल बनने की प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला से गुजरकर एरोसोल का निर्माण कर सकते हैं।
  • यह समतापमंडलीय एरोसोल सौर्यिक विकिरण का ऐल्बिडो कर पार्थिव सतह को ठंडा तथा पार्थिव विकिरण को अवशोषित करके समतापमंडल को गर्म करते हैं।
  • इस प्रकार वायुमंडलीय ऊष्मन एवं शीतलन प्रभाव, क्षोभमंडल और समतापमंडल पर अलग अलग होता है।
  • इस शोध के अनुसार विस्फोट से पूर्व से ही उत्तरी भारत में बसे प्रारंभिक मनुष्यों की आबादी (74,000 वर्ष पूर्व ) थी और यह तबाही की अवधि के दौरान तथा बहुत बाद तक रही।
  • जीवाश्म साक्ष्य बताते हैं कि आधुनिक मानव का अफ्रीका से 200,000 वर्ष पूर्व ग्रीक, अरब और चीन में 80-100,000 वर्ष पूर्व, सुमात्रा में टोबा ज्वालामुखी विस्फोट से ठीक पूर्व तथा ऑस्ट्रेलिया में 65,000 वर्ष पूर्व विवरण हो चुका था।

सोन नदी

  • सोन नदी भारत के मध्य प्रदेश राज्य से निकल कर उत्तर प्रदेश, झारखंड की पहाड़ियों से गुजरते हुए पटना के समीप गंगा नदी में मिलती है।
  • इस नदी में बालू का रंग पीला होने से इसके सोने की तरह चमकने के कारण इसका नाम सोन पड़ा।
  • सोन घाटी भू-गर्भिक तौर पर दक्षिण-पश्चिम में नर्मदा नदी घाटी का लगभग अनवरत विस्तार है।

यह शोध मानव प्रजाति की उत्पति को समझने में वैज्ञानिक सोच को अधिक व्यापक करेगा तथा वैश्विक समुदाय का ध्यान पुन: अपनी और आकर्षित करेगा।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

नवीन सागरीय सेवाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

INCOIS, इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सेंटर, महातरंग महोर्मि

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, सागरीय संसाधन तथा उनसे जुड़ी समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज (The Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS), हैदराबाद ने अपने विविध उपयोगकर्त्ताओं को बेहतर ढंग से सागरीय सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु तीन नवीन सेवाएँ प्रारम्भ की है।

INCOIS:

  • वर्ष 1999 में स्थापित यह संस्थान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( Ministry of Earth Sciences)के तहत एक स्वायत्त संगठन है।

कार्य:

  • INCOIS सागरीय क्षेत्र में उपयोगकर्त्ताओं को कई प्रकार की निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करता है। यह मछुआरों से लेकर अपतटीय तेल अन्वेषण उद्योगों जैसे विशिष्ठ उपयोगकर्ताओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।
  • यह भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) के माध्यम से सुनामी, तूफान की लहरों आदि पर तटीय आबादी के लिये निगरानी और चेतावनी सेवाएं प्रदान करता है।

ITEWC:

  • इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सेंटर (ITEWC), INCOIS, हैदराबाद की एक इकाई है जो वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी की घटनाओं में सलाह तथा पूर्वानुमान जारी करता है।
  • ITEWC प्रणाली में17 ब्रॉडबैंड भूकंपीय स्टेशनों का नेटवर्क ( जो वास्तविक समय में भूकंपीय निगरानी करता है), 4 बॉटम प्रेशर रिकार्डर (Bottom Pressure Recorders- BPR) और 25 ज्वार गेज (Tide Gauge)( जो विभिन्न तटीय स्थानों पर स्थापित हैं) शामिल हैं।
  • यह केंद्र पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी हेतु उत्तरदायी भूकंपों का पता लगाने में सक्षम है।

ITEWC

प्रारंभ की नवीन सेवाएँ:

  • लघु पोत सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली (Small Vessel Advisory and Forecast Services System- SVAS):
    • इसे विशेष रूप से मछली पकड़ने वाले जहाजों के परिचालन में सुधार करने के लिए प्राम्भ किया गया
  • महातरंग महोर्मि पूर्वानुमान प्रणाली (Swell Surge Forecast System- SSFS):
    • यह भारत की विशाल तटीय आबादी के लिये तरंगों के संदर्भ में पूर्वानुमान सूचना जारी करेगा।
  • एल्गी ब्लूम सूचना सेवा (Algal Bloom Information Service- ABIS):
    • इस सेवा के द्वारा हानिकारक एल्गी प्रस्फुटन के संदर्भ में सूचना जारी की जाएगी।

सेवाओं की आवश्यकता:

SVAS:

  • छोटे मछली पालक जहाज दिशा की तथा सागरीय क्षेत्र के संबंध में उचित समय पर सही जानकारी के अभाव में अन्य देशों यथा- पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि के सागरीय क्षेत्रों में चले जाते हैं जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।
  • SWAS प्रणाली भारतीय तटीय जल क्षेत्र में में काम करने वाले छोटे जहाजों के लिये सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा उपलब्ध करायेगी। SWAS प्रणाली उपयोगकर्ताओं को संभावित क्षेत्रों के बारे में चेतावनी देती है ताकि जहाज पुन: लौट सके।

SSFS:

  • महातरंग महोर्मि (विशाल तरंगे) के कारण तटीय इलाकों में फ्लैश-बाढ़ (अचानक तेज बारिश या तटीय तरंगों के कारण बाढ़) की घटनाएँ होती हैं, जिससे तटीय इलाकों में विशाल जन-धन की हानि होती है।
  • SSFS प्रणाली के माध्यम से महातरंग महोर्मि की पूर्व सूचना दी जा सकेगी।
  • इस प्रकार की तरंगे मुख्यतया भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर उत्पन्न होती है।

महातरंग महोर्मि (Swell Surge):

  • ये विशेष प्रकार की सागरीय तरंगे होती है जिनकी उत्पति सागर तट से काफी दूर होती है तथा ये लंबी दूरी तय करने के बाद तटीय क्षेत्रों में पहुँचती है।
  • इन तरंगों की उत्पत्ति के समय स्थानीय हवाओं या तटीय वातावरण में कोई बदलाव नहीं होता है अत: इनका पूर्वानुमान करना आसान नहीं होता।

भारतीय मौसम विभाग ने निम्नलिखित तरंग सुभेद्य क्षेत्रों की पहचान की है-

  • पूर्वी तटीय भाग
    • उत्तरी उड़ीसा एवं बंगाल तट
    • मछलीपट्नम (आंध्र प्रदेश)
    • नागपट्टनम (तमिलनाडु)
  • पश्चिमी तट
    • उत्तरी महाराष्ट्र तट
    • दक्षिणी गुजरात
    • मुंबई तट
    • कच्छ की खाड़ी (गुजरात)

ABIS:

  • ‘एल्गी प्रस्फुटन’ के कारण तटीय मत्स्य पालन, समुद्री जीवन और जल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती हैं अतः मछुआरों, पर्यावरण विशेषज्ञ आदि को इसके पूर्वानुमान की आवश्यकता पड़ती थी।
  • INCOIS-ABIS उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर फाइटोप्लैंकटन प्रस्फुटन के अनुपात तथा सागरीय भौतिक दशाओं के आधार पर इन घटनाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करेगा।
  • एल्गी प्रस्फुटन के ऐसे चार संभावित क्षेत्रों की पहचान ब्लूम हॉटस्पॉट्स (Bloom Hotspots) के रूप में की गई है।
    • उत्तर पूर्वी अरब सागर
    • केरल का तटीय जल
    • मन्नार की खाड़ी और
    • गोपालपुर (उड़ीसा) का तटीय जल

सेवाओं का महत्त्व:

  • पड़ोसी देशों से मत्स्यन की सागरीय सीमा से जुड़े विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।
  • मत्स्य पालन उद्योग को बढ़ावा मिलने से ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (Blue economy)के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
  • “सागर हमारे गृह के सीमांत संसाधन है।” ( Oceans are the Frontier Resource of our Earth) अत: इन सेवाओं से गहन सागरीय अर्थव्यवस्था (Deep sea economy) पर भारत की समझ को बढ़ावा मिलेगा।

के.एम.पणिक्कर ने ‘भारतीय इतिहास पर समुद्री शक्ति के प्रभाव’ निबंध में हिन्द महासागर के महत्त्व को उजागर करते हुए लिखा है कि भारत को सागरीय संसाधनों का अधिकतम दोहन करना चाहिये। अत: हाल ही में प्रारंभ की गयी सेवाएँ उनके इस अभिकथन की पुष्टि करते हैं।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता

मेन्स के लिये:

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते के भारत पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अफगानिस्तान में करीब दो दशकों से जारी हिंसा को रोकने के लिये 29 फरवरी, 2020 को खाड़ी देश कतर की राजधानी दोहा में होने वाले अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते के लिये कतर द्वारा भारत को भी आमंत्रित किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • भारत ने दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये अपना प्रतिनिधि भेजने का फैसला किया है। भारत सरकार ने इस कार्यक्रम के लिये कतर में भारत के राजदूत ‘पी. कुमारन’ को भेजने का फैसला किया है।
  • यह पहला अवसर होगा कि भारत का कोई आधिकारिक प्रतिनिधि एक ऐसे समारोह में भाग लेगा जहाँ तालिबान के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे।
  • वर्ष 1996 और 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में था, तब भारत ने इसे कूटनीतिक और आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी थी।

पृष्ठभूमि:

  • तालिबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में अफगानिस्तान से सोवियत संघ सेना की वापसी के पश्चात् हुआ। उत्तरी पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान ने पश्तूनों के नेतृत्व में अफगानिस्तान में भी अपनी मज़बूत पृष्ठभूमि बनाई।
  • विदित है कि तालिबान की स्थापना और प्रसार में सबसे अधिक योगदान धार्मिक संस्थानों एवं मदरसों का था जिन्हें सऊदी अरब द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता था।
  • अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के पश्चात् वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था और इससे जन-सामान्य बुरी तरह से परेशान था ऐसी परिस्थिति में राजनीतिक स्थिरता को ध्यान में रखकर अफगानिस्तान में भी तालिबान का स्वागत किया गया।
  • प्रारंभ में तालिबान को भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर अंकुश लगाने तथा विवादित क्षेत्रों में अपना नियंत्रण स्थापित कर शांति स्थापित करने जैसी गतिविधियों के कारण सफलता मिली।
  • प्रारंभ में दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना प्रभाव बढ़ाया तथा इसके पश्चात् ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर अधिकार कर लिया।
  • धीरे-धीरे तालिबान पर मानवाधिकार का उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगने लगे। तालिबान द्वारा विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने की विशेष रूप से आलोचना की गई।
  • तालिबान द्वारा न्यूयॉर्क पर किये गए हमले के पश्चात् इसका वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ा इसके शीर्ष नेता ओसामा बिन लादेन को इन हमलों का दोषी बताया गया।
  • पिछले कुछ समय से अफगानिस्तान में तालिबान का दबदबा फिर से बढ़ा है और पाकिस्तान में भी उसकी स्थिति मज़बूत हुई है।
  • अमेरिका द्वारा किसी भी शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने से पहले संघर्ष विराम की मांग की गई थी। शांति समझौते के बाद अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में 19 वर्ष से सक्रिय सैन्य अभियान को समाप्त कर अपने सैनिकों को वापस लाया जा सकेगा।

समझौते के बारे में:

  • 21 फरवरी, 2020 को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा था कि अफगानिस्तान में लंबी अवधि से हिंसा में कमी को देखते हुए 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।
  • वर्ष 1999 में IC-814 विमान के अपहरण के बाद यह पहला मौका होगा जब भारत सरकार के प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से तालिबान से जुड़े मामलों में शामिल होंगे।
  • माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया भारत दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई वार्ता के बाद यह नीतिगत बदलाव आया है। वैसे मॉस्को में वर्ष 2018 में तालिबान की मौजूदगी वाली वार्ता में भारत ने अनौपचारिक शिरकत की थी।

नए परिप्रेक्ष्य में पहला कदम:

  • अफगानिस्तान में नई वास्तविकताओं को देखते हुए, भारत अब तालिबान के साथ राजनयिक रूप से जुड़ने के लिये आगे बढ़ रहा है।
  • समझौता-हस्ताक्षर समारोह में भारत की उपस्थिति संभवतः कूटनीतिक संबंधों के उदघाटन का पहला संकेत है।
  • भारत के अफगानिस्तान में कई महत्त्वपूर्ण रणनीतिक हित हैं, यहाँ भारत ने कई विकास परियोजनाओं पर काम किया है।

क्या हैं भारतीय चिंताएँ?

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान जारी किये गए संयुक्त बयान में अफगानिस्तान पर भारत की चिंताओं को बहुत अच्छी तरह से दर्शाया गया था।
  • यह संयुक्त बयान अफगान के नेतृत्व वाली और अफगान के स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया के बारे में बात करता है लेकिन यह अफगान को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है, क्योंकि वास्तविकता यह है कि यह प्रक्रिया अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा नियंत्रित की जाती है।
  • तालिबान का अफगानिस्तान में फिर से स्थापित होने से क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये भी एक बड़ा खतरा है। ऐसे में भारत को ये सुनिश्चित करना होगा कि यदि ये समझौता होता है तो क्षेत्रीय सुरक्षा खतरे में न पड़ने पाए।
  • भारत की चिंता यह भी है कि अगर अमेरिका अपनी सेना को अफगानिस्तान से हटा लेता है पाकिस्तान अपने यहाँ उत्पन्न हो रहे आतंकवाद को तालिबान और अफगानिस्तान को ज़िम्मेदार ठहरा सकता है।
  • कई पश्चिमी पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह समझौता अफगानिस्तान में शांति के लिये एक मौका का प्रतिनिधित्व कर सकता है, परंतु भारत और अधिक सतर्क है क्योंकि इससे पाकिस्तान को बल मिलने की संभावना है।

भारत-अमेरिका और अफगानिस्तान:

  • भारत और अमेरिका एकजुट, संप्रभु, लोकतांत्रिक, समावेशी, स्थिर और समृद्ध अफगानिस्तान में अपने-अपने हित रखते हैं।
  • ये दोनों देश अफगान के नेतृत्व वाली और अफगान के स्वामित्व वाली शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप अफगानिस्तान में स्थायी शांति स्थापित हो जिसके फलस्वरूप हिंसा की समाप्ति हो तथा आतंकवादी ठिकानों का विनाश किया जा सके।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान को स्थिर बनाने में सहायता करने के लिये विकास और सुरक्षा सहायता प्रदान करने में भारत की भूमिका का स्वागत किया।
  • वर्ष 2017 में नरेंद्र मोदी की व्हाइट हाउस की यात्रा के दौरान जारी अंतिम संयुक्त बयान में भी डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र, स्थिरता, समृद्धि और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये भारतीय योगदान का स्वागत किया था।
  • अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधित सामरिक भागीदारी के महत्त्व को समझते हुए दोनों देशों ने अफगानिस्तान के भविष्य के समर्थन में परामर्श और सहयोग जारी रखने के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
  • इस मुद्दे पर भारत अमेरिका के अलावा, अफगानिस्तान, रूस, ईरान, सऊदी अरब और चीन जैसे सभी राजनीतिक सक्रिय पक्षों के साथ नियमित रूप से बातचीत कर रहा है।

आगे की राह:

  • अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत के स्थायी लक्ष्य स्पष्ट हैं- अफगानिस्तान में विकास में लगे करोड़ों डॉलर व्यर्थ न जाने पाएँ, काबुल में मित्र सरकार बनी रहे, ईरान-अफगान सीमा तक निर्बाध पहुँच बनी रहे और वहाँ के पाँचों वाणिज्य दूतावास बराबर काम करते रहें। इस एजेंडे की सुरक्षा के लिये भारत को अपनी कूटनीति में कुछ बदलाव करने भी पड़ें तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिये, क्योंकि यही समय की मांग है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्रीलंका गृहयुद्ध और मानवाधिकार संरक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव से अलग होने का श्रीलंका का निर्णय

मेन्स के लिये:

निर्णय का प्रभाव और श्रीलंका का गृहयुद्ध

चर्चा में क्यों?

श्रीलंका ने युद्धोत्तर जवाबदेही एवं सुलह पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से स्वयं को अलग करने की आधिकारिक घोषणा की है। श्रीलंका के विदेश मंत्री के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को इस संदर्भ में आधिकारिक सूचना दे दी गई है।

क्या है संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव?

  • दरअसल श्रीलंका के गृहयुद्ध (वर्ष 2009) के अंतिम दौर में श्रीलंकाई सेना पर लगभग 45000 से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगा था।
    • ज्ञात हो कि श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति, गोतबाया राजपक्षे गृह युद्ध के दौरान श्रीलंका के रक्षा सचिव थे और उनके भाई महिंदा राजपक्षे उस समय श्रीलंका के राष्ट्रपति थे।
  • इसी विषय को लेकर वर्ष 2015 में गृहयुद्ध के 6 वर्षों बाद तत्कालीन श्रीलंकाई सरकार ने 11 अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था, जिसमें श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों की जाँच की बात कही गई।
    • इस प्रस्ताव में व्यापक सुधारों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से श्रीलंका में घरेलू जवाबदेही तंत्र विकसित करने का प्रावधान है।
    • प्रस्ताव के अनुसार, श्रीलंका राष्ट्रमंडल और अन्य विदेशी न्यायाधीशों, बचाव पक्ष के वकीलों और जाँचकर्त्ताओं की भागीदारी के साथ एक विश्वसनीय न्यायिक प्रक्रिया स्थापित करेगा।

निर्णय का प्रभाव

  • श्रीलंका के इस कदम के परिणामस्वरूप गृहयुद्ध के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों की निष्पक्षता से जाँच संभव नहीं हो पाएगी जिसके कारण पीड़ितों के लिये न्याय प्राप्त करना अपेक्षाकृत काफी कठिन हो जाएगा।
  • यदि स्थिति ऐसी ही रहती है तो संभव है कि गृहयुद्ध के दौरान हुई घटनाएँ श्रीलंका में एक बार पुनः देखने को मिलें।
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट के अनुसार, कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह देश में सभी समुदायों को एक साथ लेकर चले, न कि किसी समुदाय विशिष्ट को।

श्रीलंका का गृहयुद्ध

  • वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद से ही श्रीलंका या तत्कालीन ‘सीलोन’ जातीय संघर्ष का सामना कर रहा था।
  • वर्ष 2001 की सरकारी जनगणना के अनुसार, श्रीलंका की मुख्य जातीय आबादी में सिंहली (82%), तमिल (9.4%) और श्रीलंकाई मूर (7.9%) शामिल हैं।
  • सिंहलियों ने औपनिवेशिक काल के दौरान तमिलों के प्रति ब्रिटिश पक्षपात का विरोध किया और आज़ादी के बाद के वर्षों में उन्होंने तमिल प्रवासी बागान श्रमिकों को देश से विस्थापित कर दिया तथा सिंहल को आधिकारिक भाषा बना दिया।
  • वर्ष 1972 में सिंहलियों ने देश का नाम ‘सीलोन’ से बदलकर श्रीलंका कर दिया और बौद्ध धर्म को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया गया।
  • तमिलों और सिंहलियों के बीच जातीय तनाव और संघर्ष बढ़ने के बाद वर्ष 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में लिट्टे (LTTE) का गठन किया गया और इसने उत्तरी एवं पूर्वी श्रीलंका, जहाँ अधिकांश तमिल निवास करते थे, में ‘एक तमिल मातृभूमि’ के लिये प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।
  • वर्ष 1983 में लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना की एक टुकड़ी पर हमला कर दिया, इसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई। विदित है कि इस घटनाक्रम से श्रीलंका में दंगे भड़क गए जिसमें लगभग 2,500 तमिल लोग मारे गए।
  • इसके पश्चात् श्रीलंकाई तमिलों और बहुसंख्यक सिंहलियों के मध्य प्रत्यक्ष युद्ध शुरू हो गया। ध्यातव्य है कि भारत ने श्रीलंका के इस गृहयुद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई और श्रीलंका के संघर्ष को एक राजनीतिक समाधान प्रदान करने के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • भारत ने ऑपरेशन पवन के तहत लिट्टे को समाप्त करने के लिये श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) तैनात कर दी। हालाँकि हिंसा बढ़ने के 3 वर्षों बाद ही IPKF को वहाँ से हटा दिया गया।

निष्कर्ष

श्रीलंका सरकार का युद्धोत्तर जवाबदेही एवं सुलह पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से स्वयं को अलग करने का निर्णय स्पष्ट तौर पर मानवाधिकार संरक्षण को लेकर वैश्विक समुदाय के प्रयासों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। आवश्यक है कि श्रीलंकाई सरकार अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे ताकि मानवाधिकार संरक्षण के प्रयासों को कमज़ोर होने से बचाया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020

प्रीलिम्स के लिये:

सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020

मेन्स के लिये:

सेरोगेसी से संबंधित मुद्दे, महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेरोगेसी की प्रक्रिया को विनियमित करने से संबंधित सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 [Surrogacy (Regulation) Bill, 2020] को मंज़ूरी प्रदान कर दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ध्यातव्य है कि नवीनतम विधेयक अगस्त 2019 में लोकसभा से पारित सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 का संशोधित संस्करण है क्योंकि 2019 के विधेयक को राज्यसभा में प्रवर समिति (Select Committee) को भेज दिया गया था।
  • मंत्रिमंडल ने विधेयक को मंज़ूरी देने से पहले राज्यसभा की प्रवर समिति की सभी सिफारिशों को शामिल किया है।
  • सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 का उद्देश्य व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना और परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देना है।
    • मानव भ्रूण की बिक्री और खरीद सहित वाणिज्यिक सरोगेसी निषिद्ध होगी और निःसंतान दंपतियों को नैतिक सरोगेसी की शर्तों को पूरा करने पर ही सेरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
  • इस विधेयक के ‘करीबी रिश्तेदारों’ (Close Relatives) वाले खंड को हटा दिया गया है तथा अब यह विधेयक किसी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट मदर बनने की अनुमति देता है जिससे विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के अलावा निःसंतान भारतीय जोड़ों को लाभ प्राप्त होगा।

विधेयक के मुख्य बिंदु

  • यह विधेयक सेरोगेसी से संबंधित प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड (National Surrogacy Board ) एवं राज्य स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड (State Surrogacy Board) के गठन का प्रावधान करता है।
  • विधेयक के अनुसार, केवल भारतीय दंपति ही सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं।
  • यह विधेयक इच्छुक भारतीय निःसंतान विवाहित जोड़े जिसमें महिला की उम्र 23-50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष हो, को नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है।
  • इसके अतिरिक्त यह विधेयक यह भी सुनिश्चित करता है कि इच्छुक दंपति किसी भी स्थिति में सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़े नहीं। नवजात बच्चा उन सभी अधिकारों का हकदार होगा जो एक प्राकृतिक बच्चे को उपलब्ध होते हैं।
  • यह विधेयक सरोगेसी क्लीनिकों को विनियमित करने का प्रयास भी करता है। सरोगेसी या इससे संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये देश में सभी सरोगेसी क्लीनिकों का उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना आवश्यक है।
  • यह विधेयक सरोगेट मदर के लिये बीमा कवरेज सहित विभिन्न सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है। ध्यातव्य है कि सरोगेट मदर के लिये प्रस्तावित बीमा कवर को पहले के संस्करण में प्रदान किये गए 16 महीनों से बढ़ाकर अब 36 महीने कर दिया गया है।
  • यह विधेयक यह भी निर्दिष्ट करता है कि सरोगेसी की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का लिंग चयन नहीं किया जा सकता है।
  • यह विधेयक निःसंतान दंपति के लिये सरोगेसी की प्रक्रिया से पहले आवश्यकता और पात्रता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है।

विधेयक के निहितार्थ

  • इस विधेयक से व्यावसायिक सेरोगेसी को प्रतिबंधित किये जाने से सेरोगेसी के व्यापार को रोका जा सकता है क्योंकि इसमें महिलाओं (सेरोगेट मदर) के अधिकारों का उल्लंघन होता था।
  • विधेयक में सेरोगेट मदर के लिये बीमा कवर को 16 माह से बढ़ाकर 36 माह कर दिया गया है जिससे सेरोगेट मदर के हितों की रक्षा की जा सकेगी।
  • सेरोगेसी बोर्ड के गठन के फलस्वरूप सेरोगेसी की प्रक्रिया का विनियमन बेहतर तरीके से संभव होगा।
  • सभी सरोगेसी क्लीनिकों को उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना आवश्यक है जिससे सेरोगेसी के गैर-कानूनी प्रयासों को रोका जा सकेगा।
  • साथ ही विधेयक में नवजात शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का प्रयास किया गया है जो कि बाल अधिकारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

  • विधेयक में निहित प्रावधानों का बेहतर क्रियान्वयन सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी कानून में उल्लिखित बातों के धरातल पर क्रियान्वयन से ही कानून के उद्देश्य पूरे किये जा सकते हैं।
  • सेरोगेसी से संबंधित जटिलताओं और चुनौतियों को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिये तथा इस प्रक्रिया से संबंधित सभी शब्दावलियों को परिभाषित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका का लिंचिंग विरोधी विधेयक

प्रीलिम्स के लिये:

अमेरिका का लिंचिंग विरोधी विधेयक

मेन्स के लिये:

लिंचिंग का वैश्विक और भारतीय परिदृश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी संसद (United States Congress) के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव (House of Representatives) ने लिंचिंग के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिका के निचले सदन द्वारा पारित इस प्रस्ताव में लिंचिंग को अपराध घोषित करते हुए आजीवन कारावास या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान किया गया है।
  • अमेरिका में हत्या उन अपराधों में शामिल है जिनके लिये मुकदमा राज्य या स्थानीय स्तर पर चलाया जाता है। किंतु अमेरिका का यह नया विधेयक लिंचिंग को एक संघीय अपराध घोषित करता है।
  • ध्यातव्य है कि इस विधेयक का नाम एम्मेट टिल (Emmett Till) नाम पर रखा गया है, जिसकी मात्र 14 वर्ष की उम्र में वर्ष 1955 में लिंचिंग कर दी गई थी।

लिंचिंग का अर्थ

  • जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या लिंचिंग कहते हैं।
    • इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।

अमेरिका में लिंचिंग

  • विधेयक के अनुसार, अमेरिका में वर्ष 1882 से वर्ष 1968 के मध्य लगभग 4,700 लोग, मुख्य रूप से अफ्रीकी-अमेरिकी लिंचिंग का शिकार हुए और इन लिंचिंग के 99 प्रतिशत अपराधियों को दंडित नहीं किया जा सका।
  • अमेरिकी गृहयुद्ध के पश्चात् 1800 के दशक के अंत में जब दासों को मुक्त कर दिया गया तो अमेरिका में लिंचिंग की संख्या अचानक बढ़ने लगी। 1930 के दशक में इसमें कमी आने के पश्चात् 1960 के दशक में लिंचिंग में एक बार फिर बढ़ोतरी देखने को मिली।
  • दरअसल गृहयुद्ध के पश्चात् अमेरिका में जब गोरे अमेरिकी अपना सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने में असमर्थ रहे तब कई विद्रोही समूहों का जन्म हुआ।
  • इन समूहों ने आम लोगों को गोरों की सत्ता बनाए रखने के लिये हिंसा करने को उकसाया और खुद भी कई हत्याओं को अंजाम दिया।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1918 के बाद से अमेरिकी काॅन्ग्रेस में 200 से अधिक एंटी-लिंचिंग विधेयक प्रस्तुत किये गए हैं, किंतु इनमें से कोई भी पारित नहीं हो सका।

भारतीय परिदृश्य

  • भारत में भी मॉब लिंचिंग एक चुनौतीपूर्ण समस्या बनी हुई है। देश में वर्ष 2017 का पहलू खान हत्याकांड मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमें कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ ने गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
    • यह तो सिर्फ राजस्थान का ही उदाहरण है, इसके अतिरिक्त देश के कई अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आई हैं।
  • भारत में धर्म और जाति के नाम पर होने वाली हिंसा की जड़ें काफी मज़बूत हैं। देश में लगातार बढ़ रहीं लिंचिंग की घटनाएँ अधिकांशतः असहिष्णुता और अन्य धर्म तथा जाति के प्रति घृणा का परिणाम है।
    • वर्ष 2002 में हरियाणा के पाँच दलितों की गौ हत्या के आरोप में लिंचिंग कर दी गई थी। वहीं सितंबर 2015 में एक अज्ञात समूह ने मोहम्मद अखलाक और उसके बेटे दानिश पर गाय की हत्या करने और मांस का भंडारण करने का आरोप लगाते हुए पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी थी।
    • इन घटनाओं से मॉब लिंचिंग में धर्म और जाति का दृष्टिकोण स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर होता है।

आगे की राह

  • लिंचिंग जैसी घटनाएँ ज़ाहिर तौर पर किसी भी समाज की प्रगति में बाधक होती हैं। अतः नीति निर्माताओं के लिये इन्हें जल्द-से-जल्द रोकना आवश्यक हो जाता है।
  • देश में मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाए गए हैं।
  • हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव द्वारा किया गया यह प्रयास अवश्य ही सामाजिक एवं आर्थिक रूप से शोषित वर्गों और हाशिये पर मौजूद समुदायों के मध्य विश्वास पैदा करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

2020 सीडी-3

प्रीलिम्स के लिये:

2020 CD3

मेन्स के लिये:

अस्थायी मिनी-मून संबंधी अवधारणा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों ने पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए एक छोटी सी वस्तु देखी, जिसे उन्होंने ‘मिनी-मून’ या पृथ्वी के ‘दूसरे उपग्रह’ की संज्ञा दी है।

मुख्य बिंदु:

  • खगोलविदों ने इस अस्थायी मिनी-मून को ‘2020 CD3’ नाम दिया है।
  • 2020 सीडी-3 नामक मिनी-मून की खोज 15 फरवरी को नासा द्वारा वित्तपोषित एरिज़ोना स्थित ‘कैटालिना स्काई सर्वे’ (Catalina Sky Survey-CSS) के कैस्पर विर्ज़चोस (Kacper Wierzchos) और टेडी प्रुइने (Teddy Pruyne) नामक खगोलविदों द्वारा की गई।
  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union-IAU) के ‘माइनर प्लैनेट सेंटर’ (Minor Planet Center) ने इस खोज के संदर्भ में कहा कि इसके ऑर्बिट इंटीग्रेशन से यह ज्ञात होता है कि यह अस्थायी रूप से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बँधा हुआ है।
  • यह वास्तव में एक क्षुद्रग्रह है, जो कि एक कार के आकार का है; इसका व्यास लगभग 1.9-3.5 मीटर है और यह हमारे स्थायी उपग्रह चंद्रमा के समान नहीं है।
  • यह एक अस्थायी मिनी-मून है, कुछ समय बाद यह पृथ्वी की कक्षा से मुक्त हो जाएगा और अपने रास्ते से हट जाएगा।

क्या होता है अस्थायी मिनी-मून?

  • ये एक प्रकार के क्षुद्रग्रह होते हैं जो कभी-कभी अपनी कक्षा को छोड़कर पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर उसके प्राकृतिक ग्रह की तरह उसकी परिक्रमा करने लगते हैं परंतु यह परिक्रमण अस्थायी होता है अतः इसे अस्थायी मिनी-मून कहते हैं।
  • 2020 सीडी-3 पृथ्वी से कुछ दूरी पर परिक्रमा कर रहा है। इस तरह के क्षुद्रग्रह को ‘टेंपररली कैप्चर्ड ऑब्जेक्ट’ (Temporarily Captured Object- TCO) कहा जाता है।
  • ऐसे क्षुद्रग्रहों की कक्षा अस्थिर होती है।
  • ऐसे ग्रहों को हमारे स्थायी चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के साथ-साथ सूर्य के प्रभाव का भी सामना करना पड़ता है।
  • एक बार पृथ्वी की कक्षा में आने के बाद ऐसी वस्तुएँ आमतौर पर मुक्त होने के पश्चात् सूर्य के आस-पास की स्वतंत्र कक्षा में चली जाती हैं।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, 2020 सीडी 3 को तीन वर्ष पहले पृथ्वी की कक्षा में देखा गया था।

पूर्व उदहारण:

  • यह पहली बार नहीं है जब पृथ्वी के एक से ज़्यादा चंद्रमा का पता चला हो। इसके पहले वर्ष 2006 में RH120 नामक पृथ्वी के अस्थायी चंद्रमा का पता चला था।
  • RH120 सितंबर 2006 से जून 2007 तक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के भीतर बना रहा। इसके बाद यह पृथ्वी के गुरुत्त्वीय क्षेत्र से बाहर निकल गया।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ:

  • यह पेशेवर खगोलविदों का एक संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में की गई थी।
  • इसका केंद्रीय सचिवालय पेरिस में है।
  • इस संघ का उद्देश्य खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसंधान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है।
  • जब भी ब्रह्मांड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिये गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की महासभा की बैठक तीन वर्ष में एक बार की जाती है।
  • अगली IAU की बैठक का आयोजन वर्ष 2021 में दक्षिण कोरिया के बुसान में किया जाएगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

असम-मिज़ोरम सीमा संशोधन

प्रीलिम्स के लिये:

इनर लाइन परमिट

मेन्स के लिये:

सीमा विवाद से संबंधित मुद्दे, पूर्वोत्तर भारत से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

मिज़ोरम सरकार ने वर्ष 1873 के ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन’ (Bengal Eastern Frontier Regulation- BEFR) और वर्ष 1993 के ‘लुशाई हिल्स अधिसूचना’ (Lushai Hills Notification) की इनर लाइन के आधार पर असम के साथ सीमा संशोधन की माँग की है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1972 में केंद्र शासित प्रदेश और वर्ष 1987 में राज्य बनने से पहले मिज़ोरम असम का लुशाई हिल्स ज़िला था।
  • स्वतंत्रता के बाद से असम को विभाजित कर मिज़ोरम और नगालैंड जैसे नए राज्यों का गठन किया गया।
  • चूँकि राज्यों की सीमाएँ जनजातीय क्षेत्र एवं पहचान का अनुसरण नहीं करती हैं जिसके कारण विभिन्न जनजातियों के मध्य आपसी संघर्ष उत्पन्न होता है और राजनीतिक एवं सीमा विवाद का कारण बनता है।

विवाद का कारण

  • मिज़ोरम दक्षिणी असम के साथ 123 किलोमीटर की सीमा साझा करता है और असम के 509 वर्ग मील के हिस्से पर यह कहकर दावा करता है कि पड़ोसी राज्य ने इस पर कब्ज़ा कर लिया है। दोनों राज्यों के बीच इस सीमा के विस्तार को लेकर विवाद है।
  • इस सीमा पर कई हिंसक घटनाएँ भी हो चुकी हैं जो विवाद को बढ़ावा देने का कार्य करती रही हैं।

Arunachal Pradesh

इनर लाइन परमिट

(Inner Line Permit- ILP):

  • ILP एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है जिसे भारत सरकार द्वारा किसी भारतीय नागरिक को संरक्षित क्षेत्र में सीमित समय के लिये आंतरिक यात्रा की मंज़ूरी देने हेतु जारी किया जाता है।
  • इसे बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के आधार पर लागू किया गया था।
    • यह अधिनियम पूर्वोत्तर के पहाड़ी आदिवासियों से ब्रिटिश हितों की रक्षा करने के लिये बनाया गया था क्योंकि वे ब्रिटिश नागरिकों (British Subjects) के संरक्षित क्षेत्रों में प्रायः घुसपैठ किया करते थे।
    • इसके तहत दो समुदायों के बीच क्षेत्रों के विभाजन के लिये इनर लाइन (Inner Line) नामक एक काल्पनिक रेखा का निर्माण किया गया ताकि दोनों पक्षों के लोग बिना परमिट के एक-दूसरे के क्षेत्रों में प्रवेश न कर सकें।
  • आगंतुकों को इस संरक्षित क्षेत्र में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं होता है।
  • अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड तथा मिज़ोरम राज्यों के मूल निवासियों की पहचान को बनाए रखने के लिये यहाँ बाहरी व्यक्तियों का ILP के बिना प्रवेश निषिद्ध है।
  • इस दस्तावेज़ की सेवा-शर्तें और प्रतिबंध राज्यों की अलग-अलग आवश्यकताओं के अनुसार लागू किये गए हैं।
  • BEFR अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड में अनिवासी भारतीयों को अस्थायी प्रवास के लिये आंतरिक लाइन परमिट के बिना अनुमति नहीं देता है।

विवाद का प्रभाव:

  • यह सीमा विवाद राज्यों के आपसी सहयोग को प्रभावित करेगा तथा नृजातीय संघर्ष को बढ़ावा देगा।
  • इससे विवादित क्षेत्र की विकास प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिससे वहाँ के लोग दूसरे क्षेत्रों की ओर पलायन करेंगे।

समाधान के उपाय:

  • दोनों राज्यों को आपसी वार्ता के माध्यम से सीमा विवाद को सुलझाने का प्रयास करना चाहिये।
  • दोनों राज्यों में आपसी सहमति न बनने की स्थिति में केंद्र सरकार की मदद से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।

आगे की राह

  • बदलते परिदृश्य में सरकारों को क्षेत्रवाद के स्वरूप को समझना होगा। यदि यह विकास की मांग तक सीमित है तो उचित है, परंतु यदि क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाला है तो इसे रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • वर्तमान में क्षेत्रवाद संसाधनों पर अधिकार करने और विकास की लालसा के कारण अधिक पनपता दिखाई दे रहा है। इसका एक ही उपाय है कि विकास योजनाओं का विस्तार सुदूर तक हो।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हवाई टेलीस्कोप विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

थर्टी मीटर टेलीस्कोप, हवाई द्वीप, हनले

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक परियोजनाएँ तथा स्थानीय विरोध, विज्ञान बनाम संस्कृति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक दशक से अधिक समय तक चले विरोध प्रदर्शनों के फलस्वरूप प्रस्तावित थर्टी मीटर टेलीस्कोप (Thirty Metre Telescope- TMT) को परियोजना के सह-निर्माता देश (भारत सहित ) किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करना चाहते हैं।

थर्टी मीटर टेलीस्कोप:

  • दुनिया के सबसे बड़े ऑप्टिकल टेलीस्कोप, TMT का निर्माण हवाई द्वीप समूह के मौना की (Mauna Kea) द्वीप पर किया जा रहा है अत: इसे हवाई टेलीस्कोप के नाम से भी जाना जाता है।
  • TMT, एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture) परियोजना है जिसमें पाँच देश- कनाडा, अमेरिका, चीन, भारत तथा जापान शामिल हैं।
  • परियोजना की कुल अनुमानित लागत लगभग 2 बिलियन डाॅलर है।
  • TMT टेलीस्कोप की सहायता से अंतरिक्ष तथा ब्रह्मांडीय वस्तुओं का व्यापक निरीक्षण किया जा सकेगा।
  • यह टेलीस्कोप हबल स्पेस टेलीस्कोप की तुलना में 12 गुना अधिक बेहतर रिज़ॉल्यूशन प्रदान करेगा।

विवाद का कारण:

  • प्रस्तावित स्थल मौना की द्वीप को स्थानीय हवाईयन लोगों द्वारा पवित्र स्थल माना जाता है जिससे वे प्रस्तावित परियोजना का प्रारंभ से विरोध कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि वहाँ पहले से ही बहुत अधिक वेधशालाएँ हैं तथा अब वहाँ इस प्रकार का एक और टेलीस्कोप स्थापित किया गया तो इससे स्थानीय संस्कृति प्रभावित होगी।

मौना की (Mauna Kea):

  • मौना की द्वीप हवाई द्वीप समूह का एक निष्क्रिय ज्वालामुखी द्वीप है जिसकी सागर तल (Sea Level) तथा सागर आधार तल (Sea Base) से ऊँचाई क्रमश: 4,207.3 मीटर और 10,200 मीटर है।
  • सागर तल के आधार यह हवाई राज्य का सबसे ऊँचा स्थान है जबकि सागर आधार तल के आधार पर दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है।

Mona-Kea

  • इसके अलावा मौना की द्वीप को हवाई राज्य द्वारा संरक्षण क्षेत्र के रूप में भी नामित किया गया है तथा विभिन्न पर्यावरणीय प्रभाव अभिकथन (Environmental Impact Statement- EIS) रिपोर्टों से पता चला है कि इन परियोजनाओं ने क्षेत्र में पर्यावरण कुप्रबंधन को बढ़ाया है।

पर्यावरणीय प्रभाव अभिकथन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के पर्यावरण कानून के तहत एक पर्यावरणीय प्रभाव अभिकथन, मानव के पर्यावरण को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने से पूर्व अपनाई जाने वाली विशिष्ट कार्यप्रणाली है।
  • यह कार्य वर्ष 1969 के अमेरिका के राष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम (National Environmental Policy Act- NEPA) में बताई गयी प्रक्रिया के तहत होता है।
  • NEPA के तहत पर्यावरण समीक्षा में विश्लेषण के तीन अलग-अलग स्तर शामिल हो सकते हैं।
    1. श्रेणीबद्ध निष्कासन निर्धारण (Categorical Exclusion- CATEX)
    2. पर्यावरणीय आकलन (Environmental Assessment- EA)
    3. पर्यावरणीय प्रभाव कथन अभिकथन (EIS)
  • पर्यावरणीय प्रभाव अभिकथन पर्यावरण समीक्षा के विश्लेषण का तीसरा चरण होता है जिसका कार्य किसी भी परियोजना का विस्तृत आकलन करना है।
  • इस परियोजना को विज्ञान बनाम संस्कृति के मध्य विवाद का रंग देने की कोशिश की जा रही है।

विज्ञान बनाम संस्कृति (Science vs culture):

  • मौना की द्वीप के संरक्षण की वकालत करने वाले हवाईवासी लोगों को विज्ञान विरोधी और पिछड़ा कहा जा रहा है।
  • विज्ञान बनाम संस्कृति के मध्य विवाद का जन्म 1600 के दशक से माना जाता है जब कैथोलिक चर्च पादरियों द्वारा काॅपरनिकस और गैलीलियो जैसे खगोलविदों को परेशान किया गया था।
  • लेकिन वर्तमान में पश्चिमी परंपराओं को गैर-पश्चिमी परंपराओं से श्रेष्ठ बताने के लिये इसका प्रयोग किया जा रहा है।
  • इस परियोजना के स्थापना स्थल मौना की द्वीप को लेकर वर्ष 2014 से ही विवाद चल रहा था, जिसे वर्ष 2018 में हवाई सर्वोच्च न्यायालय ने समाप्त किया तथा परियोजना को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।
  • लेकिन परियोजना के समर्थकों देशों ने तब से कोई प्रगति नहीं की है, क्योंकि निर्माण कार्य वर्ष 2015 और वर्ष 2019 में पहले ही दो बार बाधित हो चुके थे तथा इसके आगे भी विरोध की संभावना नज़र आ रही है।
  • इस परियोजना में लगभग पाँच साल की देरी हुई है इसलिये वर्ष 2025 तक इसका परिचालन प्रारंभ होने की संभावना है ।

टेलीस्कोप का निर्माण यहाँ क्यों?

  • वैज्ञानिकों ने चिली, मैक्सिको, भारत और हवाई में विभिन्न स्थलों पर परीक्षण किये तथा वर्ष 2009 में मौना की द्वीप को आदर्श स्थल के रूप में चुना।
  • टेलीस्कोप के लिये आवश्यक आदर्श परिस्थितियाँ यथा- आदर्श ऊँचाई, वायुमंडलीय दशाएँ जैसे कि बादल निर्माण, वायु की गति, वायु का तापमान, सौर विकिरण, जमीन की शीतलन दर आदि सभी यहाँ अनुकूल है।

भारत की भागीदारी:

  • भारत भी परियोजना से जुड़े पाँच देशों में से एक हैं तथा भारत की तरफ से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) तथा परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) संयुक्त रूप से इस परियोजना में शामिल होंगे।
  • भारत एक दिए गए वर्ष में उपलब्ध समय स्लॉट के 10% का उपयोग कर सकेगा, जिसका निर्धारण मौद्रिक और अवसंरचनात्मक योगदान के आधार पर किया जाएगा। भारत का योगदान 200 मिलियन डाॅलर होगा, जो प्रस्तावित योजना की लागत का दसवाँ हिस्सा है।
  • टेलीस्कोप निर्माण में कुल 492 पॉलिश किए गए दर्पणों की आवश्यकता होगी जिनमें से भारत को 83 दर्पणों का निर्माण करना है। परियोजना में देरी होने से इन दर्पणों के विनिर्माण अनुबंधों में भी देरी हो रही है।

आगे की संभावना:

  • टेलीस्कोप लगाने के लिये दूसरी सबसे अच्छी अवस्थिति स्पेन के कैनरी द्वीप समूह के ला पाल्मा (La Palma) द्वीप है, जिसे नवीन परियोजना स्थल के रूप में चुना जा सकता है।
  • हानले, लद्दाख (Hanle, Ladakh) भी TMT की मेजबानी करने के लिये एक स्थल चुना जा सकता है।

कैनरी द्वीपसमूह (Canary Islands):

  • यह स्पेन द्वारा नियंत्रित द्वीपों का एक समूह है जो अफ़्रीका के उत्तर पश्चिमी छोर पर अटलांटिक महासागर में स्थित है। इस द्वीपसमूह में कई द्वीप है यथा तेनरीफ (Tenerife), ला पाल्मा (La Palma), ला गोमेरा (La Gomera) आदि।

भारत की मेजबानी में विवाद:

  • महत्वाकांक्षी विज्ञान परियोजनाओं की मेजबानी के साथ भारत की भी अपनी समस्याएँ रही हैं यथा- तमिलनाडु में थेनी (Theni) में प्रस्तावित भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (Indian Neutrino Observatory- INO), राज्य में विरोध के कारण पहले ही ठप हो गई है, ऐसे में नवीन परियोजनाओं की मेजबानी करना भारत के लिये आसान नहीं होगी।

हनले (Hanle):

  • यह भारतीय संघशासित प्रदेश लद्दाख का एक ऐतिहासिक गाँव है, जो प्राचीन लद्दाख-तिब्बत व्यापार मार्ग पर हनले नदी घाटी में स्थित है।
  • यह खगोलीय अवलोकन के लिये दुनिया के सबसे ऊँचे स्थलों में से एक है।

थेनी (Theni):

  • यह तमिलनाडु का एक ज़िला है जो पश्चिमी घाट के समीप स्थित है। इसके तहत लगभग 1200 मीटर ऊँचे चट्टानी पहाड़ों के नीचे सुरंग में विस्तरीय प्रयोगशाला बनायी जायेगी, जिससे पश्चिमी घाट की जैव विविधता प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह:

  • ऐसी वैज्ञानिक परियोजनाओं में विज्ञान और संस्कृति के बीच की लड़ाई जैसे रंग देने के स्थान पर स्थानीय लोगों के अधिकारों तथा संस्कृति को संरक्षित करते हुए आगे बढ़ाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 28 फरवरी, 2020

भारत और म्याँमार के बीच समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर

म्याँमार के राष्ट्रपति यू विन मियंट चार दिवसीय भारत यात्रा पर हैं। इस दौरान दोनों देशों के मध्य 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं। अधिकतर समझौतों में मुख्य रूप से म्याँमार के संघर्ष प्रभावित रखाइन प्रांत में भारत की सहायता के तहत चल रही विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इन समझौतों में 'मानव तस्करी' की रोकथाम के लिये सहयोग, तस्करी पीड़ितों को बचाने, खोजने, वापसी और पुन: मुख्यधारा में लाना भी शामिल है। साथ ही समझौतों में आपूर्ति प्रणालियों के निर्माण, सौर ऊर्जा द्वारा प्राप्त बिजली के वितरण के साथ-साथ रखाइन प्रांत में सड़कों और स्कूलों के निर्माण पर ध्यान दिया गया है। म्याँमार के रखाइन प्रांत में बौद्ध समुदाय और रोहिंग्या समुदाय के बीच संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शुरू हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों ने एक अलग मुस्लिम प्रांत के बदले में रखाइन के बौद्धों के खिलाफ अंग्रेज़ों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी।

बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 फरवरी, 2020 को चित्रकूट में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे की आधारशिला रखेंगे। यह एक्सप्रेस-वे फरवरी 2018 में सरकार द्वारा घोषित उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे सहमति के बिंदुओं को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाया जा रहा यह एक्सप्रेस-वे चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर और जालौन ज़िलों से होकर गुज़रेगा। यह एक्सप्रेस-वे बुंदेलखंड क्षेत्र को आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे और यमुना एक्सप्रेस-वे से जोड़ेगा। साथ ही बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 296 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे से चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, ओरैया और इटावा ज़िलों को लाभ मिलने की उम्मीद है।

मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा

महाराष्ट्र विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से मराठी को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा देने का आग्रह किया है। विधानसभा में यह प्रस्ताव राज्य सरकार के मराठी भाषा मंत्री सुभाष देसाई द्वारा प्रस्तुत किया गया था। राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि मराठी एक प्राचीन भाषा है और दावा किया कि यह संस्कृत से भी पुरानी है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में छ: भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया है, जो इस प्रकार हैं- तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगू (2008), मलयालम (2013), ओडिया (2014)। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित करने से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार हैं- (1) भारतीय शास्त्रीय भाषाओं में प्रख्यात विद्वानों के लिये दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण (2) शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना (3) मानव संसाधन विकास मंत्रालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध करता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिये पेशेवर अध्यापकों के कुछ पदों की घोषणा करें।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी को देश भर में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। ज्ञात हो कि भारतीय वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (Sir CV Raman) ने 28 फरवरी, 1928 को रमन प्रभाव की खोज की थी। उन्हीं के सम्मान में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के लिये राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम ‘विज्ञान के क्षेत्र में महिलाएँ’ (Women in Science) है। इसका मूल उद्देश्य छात्रों को विज्ञान के प्रति आकर्षित एवं प्रेरित करना तथा लोगों को विज्ञान व वैज्ञानिक उपलब्धियों से अवगत कराना है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की कम संख्या भागीदारी पर अफसोस प्रकट किया। आँकड़ों के अनुसार, देश में महिला वैज्ञानिक मात्र 15 प्रतिशत हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसत 30 प्रतिशत है।

जॉन टेनिएल का 200वाँ जन्मदिवस

सर जॉन टेनिएल (Sir John Tenniel) का जन्म 28 फरवरी, 1820 को लंदन में हुआ था। जॉन टेनिएल 19वीं शताब्दी के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी चित्रकार, ग्राफिक हास्यकार और राजनीतिक कार्टूनिस्ट थे। 28 फरवरी, 2020 को उनका 200वाँ जन्मदिवस मनाया जा रहा है। सर जॉन टेनिएल की जीवन परिस्थितयाँ अत्यंत कठिन रहीं, 20 वर्ष की उम्र में एक हादसे की वजह से उनकी दाएँ आँख की रोशनी चली गई। लेकिन फिर भी सर जॉन टेनिएल ने हार नहीं मानी और एलिस इन वंडरलैंड (Alice in Wonderland) जैसे प्रसिद्ध कैरेक्टर्स को चित्रित किया। वर्ष 1893 में उनकी कलात्मक उपलब्धियों के लिये उन्हें नाइट की उपाधि दी गई।


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