डेली न्यूज़ (27 Aug, 2019)



बिजली क्षेत्र में सुधार हेतु उच्च-स्तरीय समूह का गठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र ने देश में विद्युत की बिक्री और खरीद की संरचना और व्यवस्था को बदलने के लिये सिफारिश करने हेतु एक उच्च-स्तरीय समूह का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस उच्च स्तरीय समूह का नेतृत्व विद्युत मंत्रालय के अपर सचिव संजीव नंदन सहाय द्वारा किया जाएगा।
  • यह समूह पावर पर्चेज़ एग्रीमेंट (Power Purchase Agreements-PPAs) में आवश्यक सुधारों और विद्युत बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये सिफारिश करेगा।
    • पावर पर्चेज़ एग्रीमेंट - यह दो पक्षों के मध्य एक अनुबंध होता है, जिसमें एक पक्ष विद्युत का उत्पादन करता है और दूसरा पक्ष विद्युत खरीदता है।
  • समूह को अपनी सिफारिशें देने के लिये 6 महीनों का समय दिया गया है।
  • यह समूह विद्युत की बिक्री और खरीद की वर्तमान प्रणाली का अध्ययन करेगा, जो मुख्य रूप से PPA, पावर ट्रेडिंग (Power Trading) और विद्युत की बिक्री तथा खरीद में लेन-देन के अन्य तरीकों के आधार पर नियमित किया जाता है।

विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ

  • पावर सेक्टर ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्षमता विकास के मामले में भारी वृद्धि देखी है, लेकिन मांग और पूर्ति में असंतुलन के कारण यह सेक्टर सदैव ही तनाव में रहा है।
  • ऊर्जा पर 37वीं स्थायी पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 34 बिजली संयंत्रों में लगभग 1.40 लाख करोड़ रुपए की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets-NPA) हैं।
  • NPA में वृद्धि के कारण -
    • कोयला आपूर्ति का मुद्दा
    • उत्पादकों को भुगतान करने हेतु वितरण कंपनियों की अक्षमता
    • विनियामकों से जुड़े मुद्दे
    • इक्विटी को बढ़ावा देने के लिये प्रमोटरों की अक्षमता
    • नियमों का असफल कार्यान्वयन
  • बिजली व्यापार में कीमतों की अस्थिरता: पावर एक्सचेंजों (Power Exchanges) के माध्यम से प्राप्त की गई बिजली तुलनात्मक रूप से काफी कम है जिसके कारण बिजली एक्सचेंजों में उसकी कीमत अस्थिर हो जाती है।
    • पावर एक्सचेंज - पावर एक्सचेंज एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसके माध्यम से बिजली का लेन-देन किया जाता है अर्थात् बिजली को खरीदा या बेचा जाता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


एंटीमाइक्रोबियल बैक्टीरिया

चर्चा में क्यों?

जवाहरलाल नेहरू ट्रॉपिकल बोटेनिक गार्डन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (Jawaharlal Nehru Tropical Botanic Garden and Research Institute- JNTBGRI) के वैज्ञानिकों ने नेय्यार वन्यजीव अभयारण्य में प्राप्त एक एंटीमाइक्रोबियल बैक्टीरिया की जीनोम अनुक्रमणिका (Genome Sequencing) तैयार की है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह बैक्टीरिया कवकरोधी और कीटनाशक यौगिकों (Insecticidal Compounds) के उत्पादन में सक्षम है, जो कृषि में जैव-रासायनिक अनुप्रयोगों के लिये उत्पादों की क्षमता विकसित करता है।
  • नेय्यार वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र की मिट्टी से एक्टिनोमाइसेट्स- Actinomycetes (एक प्रकार के बालों वाले बैक्टीरिया) बैक्टीरिया की कुछ विशेषताओं को अलग कर दिया गया, अलग किये गये बैक्टीरिया में से एक की पहचान स्ट्रेप्टोस्पोरंगियम नोंडायस्टेटिकम (Streptosporangium Nondiastaticum) के रूप में की गई जिसमे रोगाणुरोधी गुण पाए गये हैं।
  • एंटीमाइक्रोबियल बैक्टीरिया के विश्लेषण के बाद इसके जीन में चिटिनास (Chitinase) नामक एक एंज़ाइम मिला जो फफूंदरोधी और कीटरोधी है।
  • वैश्विक स्तर पर फाइटोपैथोजन (Phytopathogens) कवक फसल को खेतों और फसल उत्पादन के पश्चात् भंडारण दोनों, ही स्थितियों में हानि पहुँचा रहे हैं।
  • फाइटोपैथोजन कवकों और कीटों को नियंत्रित करने के लिये रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है, साथ ही कवक व कीट कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं।
  • स्ट्रेप्टोस्पोरंगियम नोंडायस्टेटिकम (Streptosporangium Nondiastaticum) से कवकरोधी क्रीम और लोशन विकसित करने हेतु अनुसंधान चल रहा है। इसके साथ ही संस्थान ने सुगंधित पाइपर और जंगली इलायची के जीनोम अनुक्रमण के लिये एक परियोजना शुरू की है।
  • इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने बाढ़ प्रभावित मणिमाला नदी तट से मिट्टी के नमूनों का अनुक्रमण कर बताया है कि केरल में बाढ़ के बाद पादप रोगजनक कवकों की संख्या बढ़ गई है।

नेय्यार वन्यजीव अभयारण्य

(Neyyar wildlife sanctuary):

  • नेय्यार वन्यजीव अभयारण्य केरल राज्य के तिरुवंतपुरम जिले में दक्षिण-पूर्वी पश्चिमी घाट में स्थित है।
  • यह अभयारण्य नेय्यार और उसकी सहायक नदियों मुलयार और कल्लर के बेसिन क्षेत्र में स्थित है।
  • यह अभयारण्य अगस्त्यमलाई पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है।
  • इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुआ, स्लाथ भालू, हाथी, सांभर, भौंकने वाले हिरण, बोनट मकाक (Bonnet Macaque), नीलगिरि लंगूर और नीलगिरि तहर सहित स्तनधारियों की 39 प्रजातियांँ मिलती हैं। इस अभयारण्य में स्तनधारियों के अतिरिक्त पक्षियों की 176, सरीसृप की 30, उभयचर की 17 और मछलियों की 40 प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
  • इस अभयारण्य में मगरमच्छ फार्म भी स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क

चर्चा में क्यों?

RBI ने संशोधित आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework- ECF) के तहत 1.76 लाख करोड़ रूपए केंद्र सरकार को दिया गया है।

जालान पैनल (Jalan panel):

  • RBI ने आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया था। इस पैनल ने फ्रेमवर्क के तहत RBI के पास उपलब्ध अतिरिक्त धनराशि को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने का सुझाव दिया है।
  • केंद्र सरकार द्वारा अधिक धन की मांग के बाद इस पैनल का गठन किया गया था। RBI बोर्ड ने जालान पैनल की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।
  • पैनल ने आर्थिक पूंजी के दो घटकों- वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) और पुनर्मूल्यन शेष (Revaluation Balances) के बीच एक स्पष्ट अंतर करने की सिफारिश की।
  • पैनल ने यह भी अनुशंसा की थी कि वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) का उपयोग प्राथमिक जोखिमों को पूरा किया करने के लिये किया जाएगा क्योंकि यह आय का मुख्य साधन है। इसके अतिरिक्त पुनर्मूल्यन शेष (Revaluation Balances) को केवल बाज़ार जोखिमों के लिये जोखिम बफर के रूप में रखा जाए क्योंकि वे सत्यापित मूल्यांकन लाभ नहीं होते हैं।
  • RBI द्वारा मौद्रिक, वित्तीय और बाह्य स्थिरता जोखिमों से सुरक्षा के लिये बनाई गई रिस्क प्रोविज़निंग (Risk Provisioning) राशि देश को मौद्रिक तथा वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है।
  • रिस्क प्रोविज़निंग (Risk Provisioning) राशि को काॅटिंजेंट रिस्क बफ़र ( Contingent Risk Buffer- CRB) भी कहा जाता है और इसे RBI की बैलेंस शीट के 6.5% से 5.5% के बीच बनाए रखना होता है।
  • CRB 6.5% से 5.5% के मानक में से मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता जोखिम 5.5% से 4.5% और क्रेडिट तथा परिचालन जोखिम 1.0% शामिल होता है।
  • सरप्लस डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी (Surplus Distribution Policy) के अनुसार वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) के आवश्यकता से अधिक होने पर पूरी शुद्ध आय सरकार को हस्तांतरित कर दी जाएगी।

स्रोत: द हिंदू


फार्म इन एक्स्पेंसेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes-CBDT) ने स्पष्ट किया है कि तेल अन्वेषण और उत्पादन (E&P) कंपनियों द्वारा किये गए ‘फार्म इन’ (Farm in) एक्स्पेंसेस को अमूर्त संपत्ति (Intangible Asset) माना जाएगा और इस तरह यह मूल्यह्रास (Depreciation) के तहत दावे के योग्य होगा।

प्रमुख बिंदु

  • इसके बाद ‘फार्म इन’ एक्स्पेंसेस परिशोधन व्यय (Unamortised Expenditure) में परिवर्तित हो जाएगा।
  • परिशोधन व्यय वह व्यय हैं जो किसी कंपनी के लाभ व हानि के विवरण में से समय-समय पर बट्टे खाते में डाल दिया जाता हैं।
  • परिशोधन व्यय को मूल्यह्रास के रूप में अनुमति दी जाती है और अधिशेष पर कर लगाया जाता है।
  • यह घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने तथा तेल एवं गैस के घरेलू उत्पादन को बढाने में सहायक होगा।
  • ‘फार्म इन’ एक्स्पेंसेस तब आरोपित किया जाता है जब तेल और गैस व्यवसाय की कोई कंपनी तेल/गैस ब्लॉक में किसी अन्य कंपनी से पार्टिसिपेटिंग इंटरेस्ट (PI) प्राप्त कर लेती है और उत्पादन साझा समझौता (Production Sharing Agreement -PSC) का हिस्सा बन जाती है।
  • पार्टिसिपेटिंग इंटरेस्ट (PI) कंपनी के शेयर को खरीदने के समान ही होता है।
  • किसी उपक्रम के 20% या अधिक शेयरों की होल्डिंग को एक PI माना जाता है।
  • CBDT ने यह भी स्वीकार किया है कि E&P कंपनियों की खरीद (Farm-in) और बिक्री (Farm-out) की प्रक्रिया PSC के अंतर्गत PI को जोखिम साझा करने, नई और विशेषज्ञता वाली प्रौद्योगिकी लाने के लिये प्रयोग किये जाने वाली आम अंतर्राष्ट्रीय गतिविधि है।

उत्पादन साझाकरण अनुबंध

  • यह हाइड्रोकार्बन उद्योग में कांट्रेक्टर और सरकार के मध्य होने वाले अनुबंध के लिये प्रयोग किये जाना वाला पद है। इस अनुबंध के तहत कांट्रेक्टर अन्वेषण जोखिम, उत्पादन और विकास व्यय को वहन करता है और बदले में उत्पादन से प्राप्त लाभ में हिस्सेदारी प्राप्त करता है।
  • उत्पादन साझाकारण अनुबंध को देश में तेल और गैस संसाधनों की वृद्धि के लिये वर्ष 1997 में सरकार द्वारा शुरू की गई नई अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (New Exploration and Licensing Policy-NELP) के अंतर्गत अपनाया गया।
  • यह अनुबंध कांट्रेक्टर को सरकार के राजस्व में अपनी हिस्सेदारी देने से पूर्व लागत व्यय वसूलने की अनुमति देता है।

‘फार्म इन’ एक्स्पेंसेस

  • यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत एक ऑपरेटर के स्वामित्व वाले पट्टे (तेल या गैस की खोज या उत्पादन के लिये) में अन्य ऑपरेटर हिस्सेदारी खरीदता है।
  • फार्म-इन के तहत मूल मालिक को विकास लागतों में मदद करने और खरीदार के लिये कच्चे तेल या प्राकृतिक गैस के स्रोत को सुरक्षित करने हेतु बातचीत की जाती है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation)

  • वर्ष 1963 में ‘केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963’ (Central Board of Revenue Act, 1963) के माध्यम से CBDT का गठन किया गया।
  • CBDT केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन कार्य करता है।
  • यह देश में प्रत्यक्ष करों की नीति और नियोजन के लिये इनपुट प्रदान करता है और साथ ही आयकर विभाग के माध्यम से प्रत्यक्ष कर कानूनों के प्रशासन हेतु भी ज़िम्मेदार है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और विश्व व्यापार संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) की आलोचना करते हुए कहा था कि वह भारत और चीन जैसे देशों, जो अमेरिका के आर्थिक हितों को प्रभावित करते हैं, को अनुचित व्यापार प्रथाओं में शामिल होने की अनुमति दे रहा है।

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, भारत और चीन जैसे देश ‘विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ’ नहीं हैं, बल्कि ये तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाएँ हैं। अतः इन्हें WTO की ओर से किसी भी प्रकार का विशेष उपचार नहीं मिलना चाहिये।

विकासशील देश होने के मायने

  • विकासशील देशों का आशय उन देशों से है जो अपने आर्थिक विकास के पहले चरण से गुज़र रहे हैं तथा जहाँ लोगों की प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है। इन देशों में जनसंख्या काफी अधिक होती है जिसके कारण इन देशों को गरीबी और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • WTO के विकासशील सदस्य देशों को WTO द्वारा मंज़ूर विभिन्न बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की प्रतिबद्धताओं (Commitments) से अस्थायी अपवाद या छूट प्राप्त करने की अनुमति होती है।
  • WTO ने इसकी शुरुआत अपने प्रारंभिक दौर में इस उद्देश्य से की थी कि इसके माध्यम से गरीब सदस्य देशों को कुछ राहत दी जा सके ताकि वे नए वैश्विक व्यापार परिदृश्य में स्वयं को आसानी से समायोजित कर सकें।
  • हालाँकि WTO औपचारिक रूप से अपने किसी भी सदस्य देश को विकासशील देश या किसी अन्य प्रकार की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करता है, बल्कि इसके स्थान पर सभी सदस्य देशों को इस बात की स्वयं घोषणा करने की अनुमति दी गई है।
  • WTO से मिली इस स्वतंत्रता के कारण ही उसके 164 सदस्य देशों में से दो तिहाई ने स्वयं को विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत किया हुआ है।

विकासशील अर्थव्यवस्था: भारत और चीन

  • विकासशील देश जैसे भारत और चीन को कुछ समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन को लेकर छूट प्राप्त है किंतु यह छूट इन्हें आर्थिक रूप से पिछड़े होने के कारण दी गई है।
  • विकसित देश लंबे समय से आर्थिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं जिससे इनके निर्यात कुशल होते हैं तथा विकासशील देशों की तुलना में सस्ते होते हैं। यदि विकासशील देशों में आर्थिक विकास को बल प्रदान करना है एवं विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करना है तो इसके लिये आवश्यक है कि उनको संरक्षण दिया जाए। इसी विचार के आधार पर भारत जैसे विकासशील देशों को छूट प्रदान की गई है हालाँकि चीन जैसे देश जो अपेक्षित रूप से कुशल आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित हो चुके ,हैं इस प्रकार की छूट का दुरुपयोग करते नज़र आते हैं।
  • विकासशील देशों को दी गई छूट के संदर्भ में ही भारत की कृषि सब्सिडी पर भी अमेरिका द्वारा प्रश्न खड़े किये जाते रहे हैं किंतु भारत में खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे निर्णय आवश्यक हैं। साथ ही अमेरिका जैसे देश जो अति विकसित हैं, कृषि क्षेत्र में सब्सिडी की भेदभावपूर्ण गणना का भी लाभ उठाते हैं, जिसे रोके जाने की आवश्यकता है।

कितनी तर्कसंगत है WTO की आलोचना

  • कई लोगों का मानना है कि ‘विकासशील देशों’ को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों से छूट देने का उद्देश्य गरीब देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना था, परंतु इस कदम का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • चूँकि WTO ने सदस्य देशों को स्वैच्छिक आधार पर स्वयं को ‘विकासशील देश’ घोषित करने की अनुमति दे रखी है इसीलिये कई देशों ने इस कदम का अनुचित उपयोग किया है।
  • उदाहरण के लिये सिंगापुर और हाँगकॉंग जैसे देशों ने स्वयं को ‘विकासशील देश’ के रूप में वर्गीकृत किया हुआ है और ये देश गरीब देशों को मिलने वाले फायदे का लाभ भी उठाते हैं, परंतु यदि इनकी अर्थव्यवस्था की बात करें तो ये किसी विकसित देश से कम नहीं है और इन देशों की प्रति व्यक्ति आय का स्तर अमेरिका जैसे देशों से भी अधिक है।
  • हालाँकि सिंगापुर और हाँगकॉंग की तुलना में भारत जैसे देशों की स्थिति काफी अलग है जिनका आर्थिक ढाँचा उपरोक्त देशों के समान सक्षम नहीं है। अतः इस संदर्भ में विकासशील देशों को मिलने वाली विभिन्न प्रकार की छूट उनके आर्थिक विकास में सहायता देने के लिये आवश्यक है।
  • यहाँ पर इस बात पर भी गौर किये जाने की आवश्यकता है कि WTO के नियम सदैव विकसित देशों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
  • अमेरिका जैसे विकसित देशों ने कई बार WTO के माध्यम से पश्चिम में व्यापक रूप से प्रचलित कड़े श्रम सुरक्षा और अन्य नियमों को लागू करने के लिये गरीब देशों को मजबूर करने की कोशिश की है।
  • ये नियम विकासशील देशों में उत्पादन की लागत को बढ़ा सकते हैं और उन्हें वैश्विक स्तर पर व्यापार प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर सकते हैं।

निष्कर्ष

  • अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा की गई आलोचना को अमेरिका-चीन के व्यापार युद्ध की एक कार्यवाही के रूप में भी देखा जा सकता है।
  • कुछ समय पूर्व भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह कहते हुए चीन को ‘करेंसी मैनीपुलेटर’ (Currency Manipulator) की संज्ञा दी थी कि वह अपनी मुद्रा युआन के साथ छेड़छाड़ कर रहा है।
  • चीन और अमेरिका ने पिछले साल से ही एक दूसरे पर काफी ज़्यादा आयात शुल्क लगाने की शुरुआत कर दी थी।
  • WTO में चीन का विकासशील देश होना अमेरिका को एक अन्य अवसर देता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की आलोचना कर सके।

स्रोत: द हिंदू


ई-वेस्ट

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट - ए न्यू सर्कुलर विज़न फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स (A New Circular Vision for Electronics) इस बात पर प्रकाश डालती है कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा वर्ष 2021 तक वैश्विक स्तर पर 52.2 मिलियन टन अथवा प्रति व्यक्ति 6.8 किलोग्राम तक पहुँचने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर साल 50 मिलियन टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल वेस्ट (ई-वेस्ट) का उत्पादन होता है, जिसका वज़न अब तक के सभी वाणिज्यिक एयरलाइनरों से अधिक है और इसका केवल 20% औपचारिक रूप से पुर्नचक्रित किया जाता है।
  • चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी की तुलना में भारत में सबसे अधिक ई-वेस्ट उत्पन्न होता है तथा इनमें अनुपयोगी हेडफ़ोन, डेस्कटॉप, कीबोर्ड, चार्जर, मदरबोर्ड, टेलीविज़न सेट, एयरकंडीशनर, रेफ्रिज़रेटर शामिल हैं। भारत द्वारा बड़ी मात्रा में ई-वेस्ट आयात किया जाता है जो इस समस्या को और भी भयावह बनाता है।
  • पुनर्चक्रण के लिये भेजे गए ई-कचरे में से केवल 20% औपचारिक रूप से पुनर्चक्रित किया जाता है, शेष 80% या तो लैंडफिल में डाला जाता है या अनौपचारिक तरीके से निस्तारित किया जाता है।
  • भारत में ई-कचरे का 95% से अधिक भाग असंगठित क्षेत्र और स्क्रैप डीलरों द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो कि उत्पादों को पुनर्चक्रित करने के बजाय नष्ट कर देते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स खुले यार्डों में संग्रहित किये जाते हैं, जिससे इलेक्ट्रिसिटी लीकेज़ (Electric Leakage) खतरा बढ़ जाता है।

क्या है ई-वेस्ट?

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-वेस्ट भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण और टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब अनुपयोगी हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-वेस्ट का प्रभाव

  • ई-वेस्ट में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।
  • लैंडफिल में ई-वेस्ट, मिट्टी और भूजल को दूषित करता है, जिससे खाद्य आपूर्ति प्रणालियों और जल स्रोतों में प्रदूषकों का जोखिम बढ़ जाता है।
  • आज न केवल ई-वेस्ट प्रबंधन के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, बल्कि इससे होने वाले सोने, प्लेटिनम और कोबाल्ट जैसे मूल्यवान कच्चे माल के नुकसान पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया का 7% सोना ई-कचरे में शामिल हो सकता है।

निष्कर्ष

उपभोक्ताओं के लिये ‘बाई-बेक स्कीम’, ई-अपशिष्ट को एकत्र करने वाले लोगों को आर्थिक लाभ और अधिक समय तक चलने वाली वस्तुओं की कम कीमत रखकर, साथ ही, नगरपालिका व जनसमुदाय की भागीदारी के माध्यम से ई-कचरे का बेहतर निष्पादन किया जा सकता है। ई-अपशिष्ट के निपटान हेतु सबसे उपर्युक्त विधि में अनुपयोगी समानों का संग्रह व नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त सामानों का रीफर्बिशिंग (Refurbishing) कर उसके उपयोग बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

स्रोत : द हिंदू


वामपंथी अतिवाद - एक चुनौती

चर्चा में क्यों?

वामपंथी अतिवाद (Left Wing Extremism-LWE) पर समीक्षा बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री ने LWE को राष्ट्र के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती बताया है।

  • हालाँकि आँकड़ों के अनुसार, विगत 9 वर्षों में वामपंथी अतिवाद से संबंधी हिंसक घटनाओं में काफी कमी आई है। जहाँ एक ओर वर्ष 2009 में इस प्रकार की 2258 घटनाएँ दर्ज की गई थी वहीं दूसरी ओर वर्ष 2018 में 833 घटनाएँ दर्ज हुई थी।

वामपंथी अतिवाद

  • LWE संगठन ऐसे समूह हैं जो मानते हैं कि वे हिंसा के माध्यम से बदलाव ला सकते हैं।
  • वे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का सहारा लेते हैं।
  • ये समूह देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं।

वामपंथी हिंसक घटनाओं के आँकड़े

  • LWE ग्रसित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत का ही परिणाम से वामपंथी अतिवाद संबंधित घटनाओं, मौतों और उनके भौगोलिक प्रसार की संख्या में पिछले एक दशक में काफी कमी आई है।
मापदंड 2009 2018
1. घटनाओं की संख्या 2258 833
2. मृत लोगों की संख्या 1005 240
3. प्रभावित जिलों की संख्या 96 (2010 में) 60

LWE को रोकने हेतु सरकारी प्रयास

  • समाधान (SAMADHAN) सिद्धांत वामपंथी अतिवाद को रोकने के लिये एक उपाय है। इसके अंतर्गत LWE से निपटने हेतु सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई सभी अल्पकालिक व दीर्घकालिक रणनीतियाँ शामिल हैं। SAMADHAN का पूर्ण रूप निम्न प्रकार से है:
    • S - कुशल नेतृत्व (Smart Leadership)
    • A - आक्रामक रणनीति (Aggressive Strategy)
    • M - प्रेरणा और प्रशिक्षण (Motivation and Training)
    • A - क्रियाशील खुफियातंत्र (Actionable Intelligence)
    • D - डैश बोर्ड आधारित ‘प्रमुख प्रदर्शन संकेतक’ (Dashboard Based Key Performance Indicators : KPI)
    • H - प्रोद्योगिकी का दोहन (Harnessing Technology)
    • A - एक्शन प्लान फॉर इच थिएटर (Action plan for each Theatre)
    • N - वित्त तक पहुँच रोकना (No access to Financing)
  • LWE का मुकाबला करने हेतु राष्ट्रीय रणनीति (The national strategy to counter LWE) को वर्ष 2015 में LWE से लड़ने के लिये एक बहुस्तरीय दृष्टिकोण के रूप में अपनाया गया था। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य स्थानीय प्रशासन और स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

LWE प्रभावित क्षेत्रों का विकास

  • LWE प्रभावित क्षेत्रों के लिये सरकार द्वारा चलाई जा रही कुछ प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं:
    • विशेष केंद्रीय सहायता (Special Central Assistance-SCA) - सार्वजानिक संरचना और सेवाओं के बीच मौजूद बड़ी खाई को खत्म करना।
    • सड़क संपर्क परियोजना (Road Connectivity Project) - प्रभावित क्षेत्रों में 5,412 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये।
    • कौशल विकास परियोजना (Skill Development Project) - 2018-19 तक 47 आईटीआई (ITI) और 68 कौशल विकास केंद्र के निर्माण के लिये।
    • शिक्षा संबंधी पहल (Education Initiatives) - नए केन्द्रीय विद्यालयों (KVs) और जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNV) के निर्माण हेतु मंजूरी। एकलव्य मॉडल (Eklavya model) के तहत अधिक स्कूल खोलने की भी योजना बनाई जा रही है।
    • वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) - LWE प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले सभी नागरिकों को 5 कि.मी. के भीतर बैंकिंग सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है।

आगे की राह

  • हालाँकि बीते कुछ वर्षों में LWE संबंधी हिंसात्मक घटनाओं में कमी आई है, परंतु इस प्रकार के समूहों को पूर्णतः समाप्त करने के लिये निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखने में राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः स्थानीय पुलिस बलों के क्षमता निर्माण और आधुनिकीकरण पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। स्थानीय बल कुशलतापूर्वक और प्रभावी रूप से LWE संगठनों को समाप्त करने में सहायता सकते हैं।
  • राज्यों को अपनी आत्मसमर्पण नीति (Surrender Policy) को और अधिक तर्कसंगत बनाना चाहिये ताकि LWE में फँसे निर्दोष व्यक्तियों को मुख्य धारा में लाया जा सके।

आत्मसमर्पण नीति - बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं है और इसी को ध्यान में रखते हुए आतंकवादियों, नक्सलियों और माओवादियों को आत्मसमर्पण नीति के माध्यम से मुख्य धारा में वापस लाने का प्रयास किया जाता है। इसके अंतर्गत राज्य आतंकवादियों, नक्सलियों और माओवादियों को आत्मसमर्पण करने के बदले प्रोत्साहन राशि या रोज़गार या दोनों प्रदान करता है। अलग-अलग राज्यों की आत्मसमर्पण नीति अलग-अलग है।

  • राज्यों को LWE समूहों को पूरी तरह से समाप्त करने और प्रभावित क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रित समयबद्ध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: पीआईबी


ग्रामनेट के ज़रिये वाई-फाई से जुड़ेंगे सभी गाँव

चर्चा में क्यों?

सरकार ने सी-डॉट (C-Dot) के 36वें स्थापना दिवस के अवसर पर ग्रामनेट के ज़रिये सभी गाँवों में वाई-फाई उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता को दोहराया, जिसकी कनेक्टिविटी स्पीड 10 Mbps से 100 Mbps के बीच होगी।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में भारतनेट 01 Gbps कनेक्टिविटी उपलब्ध करा रहा है, जिसे 10 Gbps तक बढ़ाया जा सकता है। सी-डॉट के. जारी होने वाले एक्सजीएसपीओएन (XGSPON) से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत सहायता मिलेगी तथा भारत के गांव आत्मनिर्भर बनेंगे।
  • C-Dot की सी-सैट-फाई (C-Sat-Fi) प्रौद्योगिकी से भारत के लोग, खासतौर से गाँव और दूरदराज़ के इलाकों में रहने वाले लोगों को फायदा होगा। इसके ज़रिये उन्हें टेलीफोन और वाई-फाई सुविधाएँ मिलेंगी। इस प्रौद्योगिकी से देश के सभी भागों में यह सुविधा सभी मोबाइल फोनों पर उपलब्ध होगी।

C-DOT ने स्थापना दिवस के अवसर पर तीन नवीनतम नवाचारों की शुरुआत की, जो इस प्रकार हैं:

XGSPON (10 G सिमेट्रिकल पैसिव ऑप्टिकल नेटवर्क)

  • यह उपयोगकर्त्ताओं को IPTV, HD वीडियो स्ट्रीमिंग, ऑनलाइन गेमिंग जैसे नए आयामों हेतु उच्च नेटवर्क गति की बढ़ती मांगों को पूरा कर सकता है।
  • यह अन्य क्लाउड-आधारित सेवाओं के लिये भी सहायक हो सकता है जिसमें उच्च बैंडविड्थ की सहज उपलब्धता की आवश्यकता होती है।

C-Sat-Fi (C-DOT सैटेलाइट वाईफाई)

  • यह कनेक्टिविटी का विस्तार करने के लिये वायरलेस और उपग्रह संचार के इष्टतम उपयोग पर आधारित है।
  • यह तैनाती में आसानी प्रदान करता है, जो कि आपदा और आपात स्थिति से निपटने हेतु आदर्श रूप से अनुकूल है, जब संचार का कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं है।
  • इसके लिये महंगे सैटेलाइट फोन की आवश्यकता नहीं है और यह किसी भी वाईफाई-सक्षम फोन पर काम कर सकता है।

CiSTB (C-DOT का इंटरऑपरेबल सेट-टॉप बॉक्स)

  • यह एक मोबाइल सिम की तरह पोर्टेबल स्मार्ट कार्ड है जो कि केबल टीवी ऑपरेटरों को उच्च विकल्प और सुविधा प्रदान करके क्रांति लाएगा।
  • उपरोक्त नवाचार दूरसंचार क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करने और विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में भारतीय लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश करते हैं क्योंकि कनेक्टिविटी देश के सभी लोगों को एक-दूसरे से संपर्क करने में मदद करेगी।

टेलीमैटिक्स के विकास के लिये केंद्र (C-DOT)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1984 में हुई थी।
  • यह भारत सरकार के DoT का एक स्वायत्त दूरसंचार R & D केंद्र है।
  • यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है।
  • यह भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR) के साथ एक पंजीकृत सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान संस्थान है।
  • वर्तमान में, सी-डॉट सरकार के विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के उद्देश्य को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है। भारत के जिसमें डिजिटल इंडिया, भारतनेट, स्मार्ट सिटी आदि शामिल हैं।

सार्वजानिक ब्रॉडबैंड पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये ‘ग्रामनेट’ राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन का एक हिस्सा है। इसके अलावा कुछ अन्य पहलें भी इसी दिशा में कार्यरत है:

भारतनेट (BharatNet)- ग्राम पंचायतों को 1 Gbps इंटरनेट मुफ्त उपलब्ध कराना जो 10 Gbps तक सीमित हो।

नगरनेट (NagarNet)- शहरी क्षेत्रों में 1 मिलियन सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट स्थापित करना

स्रोत: PIB


क्लाउडेड लेपर्ड

चर्चा में क्यों?

भारत के मिज़ोरम में स्थित डंपा बाघ अभयारण्य (Dampa Tiger Reserve) को क्लाउडेड लेपर्ड के अध्ययन स्थल के रूप में चुना गया है।

प्रमुख बिंदु

  • एक अध्ययन में पाया गया कि नौ देशों (भूटान, नेपाल, भारत, प्रायद्वीपीय मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार) में से केवल 9.44% क्षेत्र ही क्लाउडेड लेपर्ड (नियोफेलिस नेबुलोसा) के अध्ययन के लिये उपयुक्त है।
  • जिन स्थलों का सर्वेक्षण किया गया उनमें डंपा टाइगर रिज़र्व में क्लाउडेड लेपर्ड की सबसे घनी आबादी पाई गई है।

Clouded Leopards

क्लाउडेड लेपर्ड

  • इसकी त्वचा पर बादल की तरह पैटर्न बने होने के कारण इसका नाम क्लाउडेड लेपर्ड रखा गया है।
  • इसे IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह मेघालय का राजकीय पशु है।
  • इसके संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों को मज़बूत करने के लिये इसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये भारत के पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Recovery Program for Critically Endangered Habitats and Species) में जोड़ा गया है।

पर्यावास:

  • क्लाउडेड तेंदुआ घास के मैदान, झाड़ियों, उपोष्ण कटिबंधीय और घने उष्ण कटिबंधीय जंगलों में रहना पसंद करते हैं जो कि 7,000 फीट की ऊँचाई तक हिमालय की तलहटी से चीन की मुख्य भूमि के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला हुआ है।
  • भारत में, यह सिक्किम, उत्तरी पश्चिम बंगाल, मेघालय उपोष्ण कटिबंधीय जंगलों, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, असम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है।

क्लाउडेड लेपर्ड की उपस्थिति सकारात्मक रूप से संबंधित है:

  • घने जंगल
  • उच्च वर्षा
  • दुर्गम क्षेत्र
  • कम मानवीय उपस्थिति

क्लाउडेड लेपर्ड की जनसंख्या को प्रभावित करने वाले कारक:

  • वनों की कटाई
  • वर्षा के पैटर्न में बदलाव
  • मानव-पशु संघर्ष
  • विकास परियोजनाएँ

डंपा टाइगर रिज़र्व

  • यह मिज़ोरम में स्थित है।
  • इसे प्रोज़ेक्ट टाइगर के तहत एक बाघ आरक्षित क्षेत्र का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • हाल ही में संपन्न अखिल भारतीय बाघ अनुमान अभ्यास में बताया गया कि यहाँ बाघों की संख्या शून्य है, इस कारण से यह अभयारण्य चर्चा में रहा।

वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH)

यह वन्यजीवों के आवास की सुरक्षा के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये केंद्र प्रायोजित योजना है।

योजना के तहत शामिल गतिविधियाँ हैं-

  • कर्मचारी विकास और क्षमता निर्माण।
  • वन्यजीव अनुसंधान और मूल्यांकन।
  • अवैध शिकार विरोधी गतिविधियाँ।
  • वन्यजीव पशु चिकित्सा।
  • मानव-पशु संघर्ष को हल करना।
  • पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देना।
  • राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

संरक्षित क्षेत्रों से दूसरे क्षेत्रों में समुदायों के स्थानांतरण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है।

योजना में तीन घटक शामिल हैं:

(i) संरक्षित क्षेत्रों का समर्थन

अलग-अलग राज्यों में सभी संरक्षित क्षेत्र (Protected Area) (उन क्षेत्रों को छोड़कर जो प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत आते हैं) सहायता के लिये पात्र हैं। संरक्षित क्षेत्रों में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक भंडार शामिल हैं

(ii) संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीवों का संरक्षण

इस घटक के तहत, संबंधित राज्यों के मुख्य वन्यजीव वार्डनों द्वारा तैयार जैव विविधता योजनाओं हेतु धनराशि प्रदान की जाती है। संरक्षित क्षेत्रों के लिये सन्निहित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है।

(iii) गंभीर रूप से लुप्तप्राय आवासों और प्रजातियों के लिये रिकवरी कार्यक्रम

इस घटक के तहत रिकवरी के लिये 16 प्रजातियों की पहचान की गई है। ये प्रजातियाँ हैं- स्नो लेपर्ड (Snow Leopard), बस्टर्ड (Bastard), डॉल्फिन (Dolphin), हंगुल (Hangul), नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr,), समुद्री कछुए(Marine urtles), समुद्री गाय/डुगोंग (Dugongs), खाद्य घोंसला स्विफ्टलेट (Edible Nest Swiftlet), एशियाई जंगली भैंस (Asian wild Buffalo), निकोबार मेगापोड (Nicobar Megapode), गिद्ध (Vulture), मालाबार सिवेट (Malabar Civet), भारतीय गैंडे (Indian Rhino), एशियाई शेर (Asiatic Lion), बारहसिंगा (Swamp Deer), जैरडन कर्सर (Jerdon’s Courser) और ब्राउन एंटीलर्ड हिरण (Brown Antlered Deer) हैं। प्रत्येक राज्य में मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा एक वैज्ञानिक पुनर्प्राप्ति योजना तैयार की जानी है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (27 August)

  • हाल ही में तीन देशों की यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्राँस के बियारेत्ज़ में G-7 देशों के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। G-7 सात विकसित देशों का समूह है जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका शामिल हैं। भारत G-7 का सदस्य नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्हें इस सम्मे‍लन के लिये फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया था। इस सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण, जलवायु, महासागर और डिजिटल क्रांति से संबंधित सत्रों को संबोधित किया। सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलग से कई देशों नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं कीं तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतरेस से भी मुलाकात की। इससे पहले नरेंद्र मोदी बहरीन और UAE भी गए। UAE में अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन ज़ायद ने भारतीय प्रधानमंत्री को वहाँ के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ ज़ायेद से नवाज़ा। UAE का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान संयुक्त अरब अमीरात के पहले राष्ट्रपति शेख ज़ायेद बिन सुल्तान अल नाह्यान के नाम पर दिया जाता है। विदित हो कि UAE की राजधानी अबू धाबी में हिंदी भाषा को अदालतों में इस्तेमाल होने वाली तीसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। प्रधानमंत्री की बहरीन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कुछ समझौतों पर सहमति जताई गई। इन समझौतों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, सौर ऊर्जा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रमुख हैं। बहरीन की राजधानी मनामा में क्राउन प्रिंस सलमान बिन हमाद बिन इसा अल खलीफा ने नरेंद्र मोदी को द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां से सम्मानित किया। इसके अलावा बहरीन में भारतीय प्रवासियों को कम खर्च पर बिना परेशानी के पैसे का लेनदेन करने के लिये इस खाड़ी देश के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत बहरीन में जल्द ही रुपे कार्ड चल सकेगा। गौरतलब है कि बहरीन की यात्रा पर जाने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं।
  • अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट के बीच उद्योग जगत की चिंता को दूर करने के लिये केंद्र सरकार ने अब यह तय किया है कि कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) के उल्लंघन पर आपराधिक मुकदमा न होकर दीवानी मामला दर्ज होगा। कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनी कानून के तहत CSR की इससे संबंधित धारा की समीक्षा कर रहा है। विदित हो कि उद्योग जगत संशोधित कंपनी कानून, 2013 में CSR के उल्लंघन पर दंडात्मक प्रावधानों को लेकर चिंता जता चुका है। सरकार की ओर से अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए कंपनियों को अपनी CSR प्रतिबद्धताओं के तहत मौजूदा परियोजनाओं को पूरा करने के लिये और समय दिया गया है। गौरतलब है कि इस कानून के तहत जो कंपनियाँ मुनाफा कमाती हैं उन्हें अपने तीन साल के औसत शुद्ध लाभ का कम-से -कम 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करना होता है। इसके अलावा सरकार ने स्टार्टअप से एंजेल टैक्स (Angle Tax) हटाने का एलान किया है तथा स्टार्टअप की टैक्स संबधित शिकायतों को दूर करने के लिये स्पेशल सेल बनाने के लिये कहा है, CBDT चेयरमैन जिसके प्रमुख होंगे।
  • सेनाध्‍यक्षों की समिति के अध्‍यक्ष और वायुसेना अध्‍यक्ष एयर चीफ मार्शल बीरेन्‍दर सिंह धनोवा 26 से 28 अगस्त तक तक थाईलैंड की यात्रा पर रहे। वह बैंकाक में भारत प्रशांत रक्षा प्रमुखों के सम्‍मेलन में शामिल हुए। इस सम्‍मेलन की थीम स्‍वतंत्र और खुला भारत-प्रशांत सहयोग है। सम्‍मेलन में भाग लेने वाले देशों के सामने मौजूद साझा चुनौतियों के बारे में योजना तैयार की गई और इस पर खुली चर्चा हुई। इस सम्‍मेलन में 33 से अधिक देशों के रक्षा प्रमुखों ने हिस्सा लिया। विदित हो कि भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोगों को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक स्‍तरों पर संबंधों में संपूर्ण सुधार के साथ भारत की लुक/एक्‍ट ईस्‍ट पॉलिसी से गति मिली है। दोनों देशों के बीच मई 2003 में शुरू हुए सुरक्षा सहयोग पर संयुक्‍त कार्य दल ने सहयोग मजबूत बनाने के लिये सात प्रमुख क्षेत्रों में से एक के रूप में सैन्य सहयोग पर मुख्‍य रूप से ध्‍यान केंद्रित किया। जनवरी, 2012 में थाईलैंड के प्रधानमंत्री की भारत की सरकारी यात्रा के दौरान इसे फिर से बढ़ाया गया था। भारत और थाईलैंड ने कूटनीतिक संबंध स्‍थापित करने की 70वीं वर्षगांठ 2017 में मनाई।
  • भारतीय तीरंदाज कोमालिका बारी ने स्पेन के मेड्रिड में आयोजित हुई विश्व युवा तीरंदाज़ी चैंपियनशिप के रिकर्व कैडेट वर्ग के फाइनल में उच्च रैंकिंग वाली जापान की सोनोदा वाका को हराकर स्वर्ण पदक हासिल किया। जमशेदपुर की टाटा तीरंदाजी अकादमी की 17 वर्षीय कोमालिका अंडर-18 वर्ग में विश्व चैंपियन बनने वाली भारत की दूसरी तीरंदाज़ बन गई हैं। उनसे पहले दीपिका कुमारी ने वर्ष 2009 में यह खिताब जीता था। दीपिका ने अमेरिका के ऑग्डेन शहर में आयोजित कैडेट वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में यह उपलब्धि हासिल की थी। ज्ञातव्य है कि विश्व तीरंदाज़ी (World Archery) ने उसके दिशा-निर्देशों की अवहेलना करने के आरोप में इस प्रतियोगिता के बाद भारत को निलंबित करने का फैसला किया है। यह निलंबन हटने तक अब कोई भी भारतीय तीरंदाज़ देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा।