डेली न्यूज़ (26 Aug, 2019)



नगालैंड में अलग ध्वज और अलग संविधान की मांग

चर्चा में क्यों?

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (National Socialist Council of Nagaland) के महासचिव ने प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में कहा है कि जब तक ‘अलग ध्वज और अलग संविधान’ जैसे मुख्य मुद्दों को नहीं सुलझाया जाएगा तब तक नगा राजनीतिक मुद्दे का कोई हल निकाल पाना संभव नहीं होगा।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाते हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था, 370 की समाप्ति के साथ ही जम्मू-कश्मीर को अलग ध्वज और संविधान रखने का प्रावधान भी समाप्त हो गया है।
  • 370 की समाप्ति के पश्चात् पहली बार नगा चरमपंथी समूह ने यह कहा है कि 22 वर्षों से नगा क्षेत्र में शांति स्थापित करने हेतु जो प्रक्रिया चली आ रही है उसके ‘सम्मानजनक समाधान’ के लिये ‘अलग झंडा और संविधान’ आवश्यक है।
  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड द्वारा लिखे गए पत्र में वर्ष 2015 में हुए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (Framework Agreement) के तहत अलग झंडे और संविधान की मांग की गई है।
  • पत्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को लगभग चार साल हो गए हैं, परंतु अभी तक भारत सरकार द्वारा इस संदर्भ में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।
  • ज्ञातव्य है कि नगा ध्वज और संविधान पर नगा समूहों और केंद्र के बीच सहमति होनी अभी बाकी है। नगा लोग अपने प्रतीकों के प्रति काफी संवेदनशील हैं और इन प्रतीकों को अपनी पहचान तथा गौरव से जुड़ा हुआ मानते हैं।

क्या है नगालैंड की समस्या?

  • पूर्वोत्तर में स्थित नगा समुदाय और नगा संगठन ऐतिहासिक तौर पर नगा बहुल इलाकों को मिलाकर एक ग्रेटर नगालिम राज्य बनाने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं।
  • ‘नगालिम' या ग्रेटर नगा राज्य का उद्देश्य मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के नगा बहुल इलाकों का नगालिम में विलय करना है।
  • यह देश की पुरानी समस्याओं में से एक है।
  • प्रस्तावित ग्रेटर नगालिम राज्य के गठन की मांग के अनुसार मणिपुर की 60% ज़मीन नगालैंड में जा सकती है।
  • मैतेई और कुकी दोनों समुदाय मणिपुर के इलाकों का नगालिम में विलय का विरोध करते हैं।
  • अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भारत सरकार और नगाओं के प्रतिनिधियों के बीच एक नए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए थे।

फ्रेमवर्क एग्रीमेंट लागू होने में बाधाएँ

  • नगा संगठनों को सरकार बता चुकी है कि उनकी मांगों का समाधान नगालैंड की सीमा के भीतर ही होगा और इसके लिये पड़ोसी राज्यों की सीमाओं को बदलने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
  • असम सरकार का भी कहना है कि किसी भी कीमत पर राज्य का नक्शा नहीं बदलने दिया जाएगा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा हर हाल में की जाएगी।
  • मणिपुर की सरकार का यह मत रहा है कि नगा समस्या के समाधान से राज्य की शांति भंग नहीं होनी चाहिये।
  • साथ ही अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भी साफ कर दिया है कि उसे ऐसा कोई समझौता मंज़ूर नहीं होगा जिससे राज्य की सीमा प्रभावित हो।
  • दूसरी ओर क्षेत्रीय एकीकरण अर्थात् नगा इलाकों का एकीकरण नहीं होने की स्थिति में नगा विद्रोही गुट किसी प्रकार का समझौता करने के इच्छुक नहीं हैं।
  • विभिन्न नगा समूहों में गहरे मतभेद भी रहे हैं, इसलिये किसी समझौते को आगे बढ़ाने में कठिनाई आती है, अतीत में बार-बार ऐसा देखने को मिला है।
  • इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में नगा-बहुल क्षेत्रों के एकीकरण की मांग को दूसरे समुदायों से भी चुनौती मिल सकती है।

स्रोत: द हिंदू


बैंकिंग धोखाधड़ी के लिये सलाहकार बोर्ड का गठन

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) ने पूर्व सतर्कता आयुक्त टी.एम. भसीन की अध्यक्षता में बैंकिंग धोखाधड़ी के लिये सलाहकार बोर्ड (Advisory Board for Banking Frauds-ABBF) का गठन किया है।

ABBF से जुड़ी मुख्य बातें

  • ABBF का गठन भारतीय रिज़र्व की सलाह पर किया गया है और यह धोखाधड़ी के सभी बड़े मामलों की प्राथमिक स्तर पर जाँच करेगा।
  • यह एक चार सदस्यीय बोर्ड है।
  • टी.एम. भसीन के अतिरिक्त बोर्ड के अन्य सदस्य -
    • मधुसूदन प्रसाद - पूर्व शहरी विकास सचिव
    • डी.के. पाठक - सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक
    • सुरेश एन. पटेल - आंध्र बैंक के पूर्व एमडी और सीईओ
  • अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 21 अगस्त, 2019 से दो वर्ष की अवधि के लिये होगा।
  • बोर्ड की वित्त संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु RBI आवश्यक धन मुहैया कराएगा।

बोर्ड के मुख्य कार्य

  • 50 करोड़ रुपए से अधिक की बैंकिंग धोखाधड़ी की जाँच करना और इस संदर्भ में कार्यवाही के लिये सिफारिश करना है।
  • यह उन मामलों की जाँच करेगा जिनमें सरकारी क्षेत्र के बैंकों के महाप्रबंधक या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारी संलिप्त पाए जाएंगे।
  • इसके अलावा सीबीआई (CBI) भी किसी वित्त संबंधी धोखाधड़ी के मामले को बोर्ड के पास भेज सकता है।
  • बोर्ड समय-समय पर वित्तीय प्रणाली में धोखाधड़ी का विश्लेषण करेगा और RBI को धोखाधड़ी से संबंधित नीति निर्माण के लिये सुझाव भी देगा।

वित्त संबंधी धोखाधड़ी से निपटने हेतु अन्य कदम

  • ज्ञातव्य है कि सरकार ने पहले ही धोखाधड़ी से संबंधित मामलों की रिपोर्टिंग और जाँच करने हेतु सार्वजनिक बैंकों के लिये रूपरेखा जारी कर दी है, जो यह स्पष्ट करता है कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPA) के रूप में वर्गीकृत 50 करोड़ रुपए से अधिक के सभी खातों की जाँच धोखाधड़ी के दृष्टिकोण से बैंकों द्वारा की जानी चाहिये।
  • इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 50 करोड़ रुपए से अधिक की ऋण सुविधा लेने वाली कंपनियों के प्रवर्तकों/निदेशकों या अन्य अधिकृत हस्ताक्षरकर्त्ताओं के पासपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने की सलाह दी गई है।

केंद्रीय सतर्कता आयोग

Central Vigilance Commission-CVC

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार निरोध हेतु एक प्रमुख संस्था है।
  • सतर्कता के मामले में केंद्र सरकार को सलाह तथा मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये के. संथानम की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निवारण समिति की सिफारिशों के आधार पर फरवरी 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया था।
  • इस आयोग की स्थापना/अवधारणा एक ऐसे शीर्षस्थ सतर्कता संस्थान के रूप में की गई है, जो किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से मुक्त है।
  • यह आयोग केंद्र सरकार के सभी कार्यों की निगरानी करता है तथा सरकारी संगठनों में विभिन्न प्राधिकारियों को उनके कार्यों की योजना बनाने, निष्पादन, समीक्षा तथा सुधार करने की सलाह देता है।
  • 25 अगस्त, 1998 को राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से आयोग को सांविधिक दर्जा देकर इसे बहुसदस्यीय आयोग बना दिया गया।
  • अब इस आयोग में 1 केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के साथ 2 अन्य आयुक्त भी होते हैं।
  • संसद ने वर्ष 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग विधेयक पारित किया तथा 11 सितंबर, 2003 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसने अधिनियम का रूप लिया।
  • इस प्रकार वर्ष 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग को सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।

स्रोत: द हिंदू


वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) तथा राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (National Physical Laboratory- NPL) को वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरणों को प्रमाणित करने हेतु सत्यापन एजेंसी के रूप में नामित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान की पृष्ठभूमि के तहत कम लागत वाले वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण, नाइट्रस ऑक्साइड, ओज़ोन और पार्टिकुलेट मैटर के स्तर की निगरानी करेंगे।
  • CSIR और NPL वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरणों हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, परीक्षण और प्रमाणन सुविधाओं के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा तथा प्रबंधन प्रणाली विकसित करेंगे।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद

(Council of Scientific and Industrial Research-CSIR)

  • CSIR विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अग्रणी समसामयिक अनुसंधान एवं विकास संगठन है।
  • CSIR विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • CSIR अंतरिक्ष भौतिकी, महासागर विज्ञान, भू-भौतिकी, रसायन, औषध, जीनोमिकी, जैव प्रौद्योगिकी और नैनो प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय इंजीनियरिंग तथा सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में कार्य कर रहा है।
  • CSIR का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
  • CSIR का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला

(National Physical Laboratory- NPL)

  • राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला की स्थापना वर्ष 1943 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के शासी निकाय के रूप की गई थी।
  • NPL का उद्देश्य औद्योगिक वृद्धि तथा विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का समावेश करना है।
  • इन उद्देश्यों को साकार करने के लिये प्रयोगशाला के अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम को वर्तमान में तीन मुख्य अनुसंधान केंद्रों में बांँटा गया है।

(i) पदार्थ केंद्र (Material Center)

(ii) रेडियो और वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र (Center for Radio and Atmospheric Sciences)

(iii) मापिकी केंद्र (Metrology Center)

  • केंद्र सरकार ने कम से कम 102 शहरों में 2024 तक 20% -30% प्रदूषण को कम करने के लिये जनवरी में एक कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें पहले सेंसर का एक विशाल निगरानी नेटवर्क तैयार किया जाएगा जिसके माध्यम से प्रदूषकों द्वारा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच की जा सके।
  • राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्तमान में प्रयुक्त उपकरणों का आयात किया जाता है जिनकी लागत ज़्यादा होती है।
  • प्रयुक्त उपकरणों की कार्य दक्षता भी सीमित होती थी इसलिये केंद्र सरकार ने नए उपकरणों और उनके मानकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने का उत्तरदायित्व CSIR और NPL को सौंपा है।

स्रोत: द हिंदू


रेपो रेट और ब्याज़ दर को जोड़ने का प्रस्ताव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लगभग एक दर्जन बैंकों ने घोषणा की थी कि वे अपनी ऋण दरों को रेपो रेट (Repo Rate) से जोड़ेंगे और अब भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने कहा है कि देश की संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को इस विषय पर विचार करना चाहिये तथा रेपो रेट को ऋण दरों से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।

प्रमुख बिंदु:

  • ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व ब्याज़ दरों को मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लैंडिंग रेट (Marginal Cost of Funds based Lending Rate-MCLR) के साथ जोड़ने की नीति अपनाई जाती थी।
    • मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लैंडिंग रेट (MCLR) न्यूनतम ब्याज़ दर है और इससे नीचे एक बैंक को उधार देने की अनुमति नहीं होती है, हालाँकि RBI कुछ विशेष मामलों में इस प्रकार की अनुमति दे सकता है।

क्यों किया जा रहा है ऐसा?

  • RBI रेपो रेट में कटौती का लाभ अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिये बैंकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि फरवरी 2019 से जून 2019 के बीच RBI ने रेपो रेट में लगभग 75 आधार अंकों की कटौती की थी परंतु ऋण लेने वाले लोगों को उसमें से सिर्फ 29 आधार अंकों का ही फायदा मिला था।
  • यह भी उम्मीद की जा रही है कि इस प्रकार की प्रणाली अपनाकर ब्याज़ दरों को तय करने में अधिक पारदर्शिता आएगी।

रेपो रेट का आशय उस ब्याज़ दर से है जिस पर RBI बैंकों को धनराशि उधार देता है।

रिज़र्व बैंक का प्रस्ताव

  • अपनी दिसंबर 2018 की मौद्रिक नीति की बैठक में रिज़र्व बैंक ने 1 अप्रैल, 2019 से रेपो दर तथा ट्रेज़री बिल (Treasury Bill) जैसे बाहरी बेंचमार्क और सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों के लिये मिलने वाले खुदरा ऋण को जोड़ने का प्रस्ताव किया था।
    • ट्रेज़री बिल एक मुद्रा बाज़ार प्रपत्र है जिसका प्रयोग केंद्र सरकार द्वारा अल्पकालिक अवधि के ऋण एकत्रित करने हेतु किया जाता है। इसकी अधिकतम परिपक्वता अवधि 1 वर्ष की होती है।
    • ट्रेज़री बिल को भारत में पहली बार 1917 में जारी किया गया था।
  • हालाँकि अप्रैल 2019 को RBI ने घोषणा की थी कि उसने उपरोक्त प्रस्ताव को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है।

स्रोत: द हिंदू


तापीय ऊर्जा संयंत्र और जल संसाधन

चर्चा में क्यों?

तापीय ऊर्जा संयंत्र, विद्युत उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पानी की महत्त्वपूर्ण मात्रा का उपभोग करते हैं। भारत के अधिकांश तापीय ऊर्जा संयंत्र पानी की कमी वाले क्षेत्रों में स्थित हैं इसलिये यह लगातार चिंता का विषय बना हुआ हैं।

जल संसाधनों की वर्तमान स्थिति:

  • मानसून की धीमी प्रगति के साथ ही उद्योगों और कृषि में जल के अत्यधिक उपभोग के कारण भारत में जल संकट की स्थिति बन गई है।
  • सर्वविदित है कि भारत के पास विश्व के जल संसाधनों का केवल 4% हिस्सा उपलब्ध है जिसको कुल जनसंख्या का लगभग 18% उपभोग करता है।
  • भारत को 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये देश की स्थापित विद्युत क्षमता को दोगुना करना होगा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि के बावजूद भी कोयला वर्ष 2030 तक विद्युत उत्पादन हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
  • पानी की कमी से जूझ रहे देश में विद्युत ज़रूरतों को प्रबंधित करना एक चुनौती है।

तापीय ऊर्जा संयंत्रों में जल संरक्षण के प्रयास:

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2015 में तापीय ऊर्जा संयंत्रों द्वारा पानी उपयोग की एक सीमा निर्धारित की गई थी। हालांँकि जून 2018 में संशोधित पर्यावरण संरक्षण नियमों में इस सीमा को समाप्त कर दिया गया था।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority-CEA) ने हाल ही में तापीय ऊर्जा संयंत्रों हेतु वार्षिक जल खपत के मानक के लिये प्रारूप जारी किया है।
  • प्रारूप में ऊर्जा संयंत्रों के मीटर्ड और अन-मीटर्ड दोनों प्रकार के उपयोग को निर्दिष्ट करने के लिये कहा गया है साथ ही जल मानदंडों के विचलन, इसके कारणों और सुधारात्मक उपायों का भी उल्लेख करने को कहा गया है।

जल संरक्षण के प्रयासों में कमी:

  • अब तक तापीय ऊर्जा संयंत्रों द्वारा पिछले वर्षों में प्रयुक्त पानी की मात्रा की समीक्षा नहीं की गई है। सर्वप्रथम जल उपयोग की मात्रा का अध्ययन करके इसके उपयोग की एक सीमा तय की जानी चाहिए।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority-CEA) की वेबसाइट पर पारदर्शिता को बढ़ावा नही दिया गया, पारदर्शिता को बढ़ाकर जनसहभागिता के माध्यम से बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority-CEA) के डेटा को लोगों के लिये सुलभ नहीं बनाया गया है।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण

(Central Electricity Authority- CEA):

  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम, 1948 की धारा 3(1) तथा बाद में विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 70 के तहत प्रतिस्थापित किया गया था।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1951 में एक अंशकालिक निकाय के रूप में की गई थी जिसको बाद में वर्ष 1975 में एक पूर्णकालिक निकाय के रूप में स्थापित कर दिया गया था।
  • यह विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत कार्य करता है।

आगे की राह:

  • तापीय ऊर्जा संयंत्रों में होने वाले जल संसाधनों की खपत को नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से कम किया जाना चाहिये।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग बढ़ने से भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

भारत को जल संसाधनों के सीमित उपयोग के साथ अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों को संतुलित करना चाहिये।

इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के साथ ही तापीय ऊर्जा संयंत्रों में पानी के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु मानकों को बेहतर तरीके से क्रियान्वित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुग्राम स्थित सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र (Information Management and Analysis Centre- IMAC) और सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (Information Fusion Centre Indian Ocean Region- IFCIOR) का दौरा कर इनके कामकाज की समीक्षा की।

राष्ट्रीय समुद्री डोमेन जागरूकता

(National Maritime Domain Awareness- NMDA)

  • नौसेना ने रक्षा मंत्री को राष्ट्रीय समुद्री डोमेन जागरूकता (National Maritime Domain Awareness- NMDA) परियोजना के तहत कार्यरत दोनों केंद्रों की क्षमताओं के बारे में जानकारी दी।
  • NMDA परियोजना को सागर (Security And Growth for All in the Region- SAGAR) कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था।
  • NMDA के तहत कार्यरत सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र हिंद महासागर से होकर गुज़रने वाले जहाज़ों की आवाजाही पर नज़र रखता है। इन जहाज़ों द्वारा विश्व के कुल कच्चे तेल का 66%, कंटेनर यातायात का 50% और थोक कार्गो का 33% व्यापार होता है।
  • सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र जहाज़ों से संबंधी जानकारी इकट्ठा करने, ट्रैफ़िक पैटर्न का विश्लेषण करने और उपयोगकर्त्ता एजेंसियों के साथ इनपुट साझा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सागर- सुरक्षा और क्षेत्र में सभी का विकास

SAGAR- Security And Growth for All in the Region

  • सागर (SAGAR) कार्यक्रम को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मॉरीशस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शुरू किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
  • इस कार्यक्रम का मुख्य सिद्धांत; सभी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री नियमों और मानदंडों का सम्मान, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता, समुद्री मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान और समुद्री सहयोग में वृद्धि इत्यादि है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


खनन क्षेत्र में कार्यरत बाल श्रमिक

चर्चा में क्यों?

हाल ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights-NCPCR) द्वारा किये गए सर्वे के अनुसार अभ्रक खनन क्षेत्र में 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के 5000 से अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वे के अनुसार, झारखंड और बिहार के अभ्रक खनन क्षेत्र (Mica Mining Areas) में कार्यरत 6-14 वर्ष की आयु के 5000 से अधिक बच्चे शिक्षा का त्याग कर चुके हैं। ये बच्चे पारिवारिक आय में सहयोग करने के लिये खनन क्षेत्र में मज़दूरी का कार्य कर रहे हैं।
  • यह सर्वे बिहार और झारखंड में स्थित अभ्रक खनन क्षेत्र में कार्यरत बच्चों की शिक्षा और कल्याण को आधार बना कर किया गया।
  • सर्वे के अनुसार, बच्चों द्वारा स्कूल छोड़ने के कारणों में बच्चों को शिक्षित करने के प्रति अभिभावकों की कम रूचि और अभ्रक के स्क्रैप को इकट्ठा करने के कार्य में बच्चों की संलग्नता शामिल है।
  • इस क्षेत्र में अभ्रक के कबाड़ का एकत्रीकरण और बिक्री अनेक परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है। इसलिये कई परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने के स्थान पर उनसे कबाड़ एकत्र करने के कार्य को प्राथमिकता देते हैं।
  • NCPCR ने इन बच्चों में कुपोषण (Malnourishment) की समस्या की भी पहचान की है।

सर्वे का उद्देश्य

  • सर्वे का उद्देश्य इस क्षेत्र के बच्चों में शिक्षा की स्थिति, स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या, अभ्रक के स्क्रैप को एकत्र करने के कार्य में संलग्नता, व्यावसायिक प्रशिक्षण तक किशोरों की पहुँच और गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भूमिका की संभावनाओं का पता लगाना था।

NCPCR द्वारा दिये गए सुझाव

  • अभ्रक खनन और उद्योग की आपूर्ति श्रृंखला को बाल श्रम (Child Labour) से मुक्त बनाया जाना चाहिये।
  • अभ्रक खनन प्रक्रिया की किसी भी गतिविधि और स्क्रैप इकट्ठा करने के कार्य में बच्चों को नियोजित नहीं किया जाना चाहिये।
  • गैर-सरकारी संगठनों और विकास एजेंसियों को स्थानीय एवं ज़िला प्रशासन तथा उद्योगों के साथ मिलकर बाल श्रम से मुक्त अभ्रक खनन की आपूर्ति श्रृंखला बनाने की रणनीति तैयार करनी चाहिये।
  • बच्चों द्वारा एकत्रित अभ्रक स्क्रैप के खरीदारों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है।
  • झारखंड और बिहार के अभ्रक खनन क्षेत्रों में बाल श्रम को समाप्त करने के लिये प्रशासन द्वारा एक विशेष अभियान चलाया जाना चाहिये।

स्रोत : द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (26 August)

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 1 सितंबर से सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पादों पर छपने वाली चेतावनी और फोटो बदलने का फैसला किया है। इसके लिये सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद (पैकेजिंग और लेबलिंग) नियम, 2008 में संशोधन करके सभी तंबाकू उत्पाद पैक के लिये स्वास्थ्य चेतावनियों के नए सेटों को जारी कर दिया गया है। इस संशोधन के माध्यम से दो चित्रों को अधिसूचित किया गया और यह धारा जोड़ी गई कि स्वास्थ्य चेतावनी का दूसरा चित्र ,चित्र-1 के लागू होने की तारीख से एक वर्ष पूरा होने के बाद लागू होगा अर्थात् 1 सितंबर, 2019 को या उसके बाद निर्मित, पैकेज और आयातित सभी तम्बाकू उत्पादों चित्र-2 प्रदर्शित किया जाएगा। तंबाकू उत्पादों के धूम्रपान और धूम्रपान रहित दोनों रूपों के लिये एक सामान्य निर्दिष्ट स्वास्थ्य चेतावनी होगी। विदित हो कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे-2 (2016-17) के अनुसार, 15 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग में सिगरेट धूम्रपान करने वालों में 61.9 प्रतिशत, वर्तमान बीड़ी धूम्रपान करने वालों में 53.8 प्रतिशत और वर्तमान धूम्रपान रहित तंबाकू का 46.2 प्रतिशत ने सिगरेट, बीड़ी और धूम्रपान रहित तंबाकू के पैकेट पर चेतावनी लेबल के कारण छोड़ने के बारे में सोचा।
  • भारतीय व्यापार संवर्धन परिषद (TPCI) आगामी जनवरी महीने में दिल्ली-एनसीआर में आयोजित किये जाने वाले वर्ष 2020 संस्करण में ‘इंडसफूड-टेक’ और ‘इंडसफूड-केम’ नामक दो प्रदर्शनियों की शुरुआत करेगी। इसके परिणामस्वरूप इंडसफूड एक पूर्ण रूप से एकीकृत खाद्य प्रसंस्करण लाइफसाइकिल आयोजन के रूप में स्थापित हो जाएगी। इंडसफूड-2020 में 1500 से भी अधिक शीर्ष वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों और आयातकों के भाग लेने की आशा है। इनमें किफायती खाद्य एवं पेय प्रसंस्करण तकनीकों में भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया जाएगा। इसके साथ ही इस दौरान खाद्य अवयवों के आपूर्तिकर्ताओं को सार्क, अफ्रीका और यूरेशियाई देशों के खरीदारों के समक्ष अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा। देश में आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों को बिग डेटा कंप्यूटिंग, ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और व्यापक वर्चुअल प्रक्रिया प्रबंधन युक्त मशीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित अनुप्रयोगों के साथ एकीकृत कर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के परिदृश्य में व्यापक बदलाव लाए जा सकते हैं। वर्ष 2019 में आयोजित पिछले संस्करण यानी प्रदर्शनी में 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार हुआ था।
  • मंगल ग्रह के बाद अब वैज्ञानिक बृहस्पति (जुपिटर) ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की तलाश करने में लगे हैं। बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा पर जीवन का पता लगाने के लिये अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने अपने यूरोपा क्लिपर मिशन के अगले चरण की जानकारी दी है। इसके तहत नासा वर्ष 2023 में Europa Clipper Spacecraft अंतरिक्ष में भेजेगा। विदित हो कि नासा वर्ष 2015 से ही इसकी तैयारी कर रहा है। यह बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर जीवन का पता लगाएगा। यूरोपा क्लिपर मिशन का प्रबंधन नासा के मार्स स्पेस फ्लाइट सेंटर में प्लैनेटरी मिशन प्रोग्राम कार्यालय द्वारा किया जा रहा है। हंट्सविले, अलबामा और जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी के सहयोग से पसाडेना, कैलिफोर्निया में जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला द्वारा इसका विकास किया जा रहा है। बृहस्पति के चंद्रमा पर जीवन के लिये उपयुक्त परिस्थितियों को खोजने में गैलीलियो और कैसिनी अंतरिक्ष यान से प्राप्त डेटा की मदद ली जा रही है।
  • रूस ने 22 अगस्त को ‘सोयूज़ एमएस-14’ अंतरिक्ष यान के ज़रिये एक मानवरहित रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा था जो अपने साथ मनुष्य जैसा दिखने वाला एक आदमकद रोबोट FEDOR लेकर गया था। रूसी भाषा में FEDOR का पूरा नाम Final Experimental Demonstration Object Research है। इसकी लंबाई पाँच फीट 11 इंच है और इसका वज़न 160 किलोग्राम है। इस रोबोट के अंतरिक्ष में भेजने का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (ISS) में अंतरिक्ष यात्रियों की मदद करने के लिए 10 दिन का प्रशिक्षण देना था। लेकिन यह रोबोट पहले प्रयास में ISS के साथ डॉकिंग नहीं कर पाया। अब इसे ISS पर उतारने का दोबारा प्रयास किया जाएगा। कज़ाकिस्तान स्थित बैकानूर प्रक्षेपण केंद्र से रवाना हुए सोयूज़ को अंतरिक्ष केंद्र में 7 सितंबर तक रहना है।
  • केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल ने हाल ही में नेहरू स्‍मारक संग्रहालय एवं पुस्‍तकालय के सभागार में आयोजित एक समारोह में 'द डायरी ऑफ मनु गांधी' (1943-44) पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्‍तक महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के सहयोग से प्रकाशित की गई है। 'द डायरी ऑफ मनु गांधी' मूल रूप से गुजराती में संपादित की गई है और इसका अनुवाद त्रिदीप सुह्रद ने किया है। पहला खंड वर्ष 1943-1944 की अवधि को कवर करता है। मनु गांधी (मृदुला) महात्‍मा गांधी के भतीजे जयसुखलाल अमृतलाल गांधी की बेटी थीं जो गांधी जी की हत्या होने तक उनके साथ रहीं। वह वर्ष 1943 में आगा खान पैलेस में कारावास के दौरान कस्तूरबा गांधी की सहयोगी थीं। यह पुस्‍तक गांधीवादी अध्ययन और आधुनिक भारत के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये बहुत लाभदायक होगी।
  • भारत की बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप (BWF) में स्‍वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं। स्विट्जरलैंड कें बासेल में खेले गए फाइनल में उन्होंने जापान की नोजोमी ओकुहारा को सीधे गेमों में 21-7, 21-7 से पराजित किया। वर्ल्ड चैंपियनशिप में यह उनका पाँचवां मेडल है। सिंधु इस चैंपियनशिप में वर्ष 2017 और 2018 में रजत तथा 2013 व 2014 में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। सिंधु से पहले साइना नेहवाल ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप 2015 में रजत पदक जीता था। वहीं वर्ष 1983 में पुरुष एकल में प्रकाश पादुकोण कांस्य पदक जीतने में सफल रहे थे।