भारतीय इतिहास
वरियामकुननाथ कुंजाहम्मद हाजी
प्रीलिम्स के लिये:वरियामकुननाथ कुंजाहम्मद हाजी, मोपला विद्रोह मेन्स के लिये:मोपला विद्रोह |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 को मोपला विद्रोह की 100 वीं वर्षगांठ के रूप में चिन्हित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- केरल के मालाबार क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानी वरियामकुननाथ कुंजाहम्मद हाजी (Variyamkunnath Kunjahammed Haji) ने अंग्रेजों के खिलाफ मोपला विद्रोह का नेतृत्व किया था।
- मोपला केरल के मालाबार तट पर खिलाफत आंदोलन के साथ जुड़ने वाला प्रमुख किसान आंदोलन था।
वरियामकुननाथ कुंजामहम्मद हाजी:
- प्रारंभिक जीवन:
- वरियामकुननाथ कुंजामहम्मद हाजी का जन्म एक संपन्न मुस्लिम परिवार में 1870 के दशक में हुआ था।
- उनके पिता मोइदेंकुट्टी हाजी को अंग्रेजों के खिलाफ एक विद्रोह में भाग लेने के लिये अंडमान द्वीप में निर्वासित कर जेल भेज दिया गया।
- कुंजामहम्मद के प्रारंभिक जीवन में इस तरह की व्यक्तिगत घटनाओं ने उसके अंदर अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिशोध की ज्वाला जलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
- हाजी ने पारंपरिक संगीत-आधारित कला रूपों जैसे कि दफुमुट तथा मलप्पुरम पदप्पट्टु ’और बद्र पदप्पट्टु’ जैसी कविताओं का उपयोग अंग्रेजों के खिलाफ स्थानीय लोगों को रैली करने के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग किया।
- खिलाफत आंदोलन में भूमिका:
- खिलाफत आंदोलन के नेताओं तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस ने उनको भारत में खिलाफत आंदोलन के प्रणेता के रूप में पेश किया।
- हालाँकि उनका मानना था कि यह एक तुर्की का आंतरिक मामला है परंतु उन्होंने अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ उनके साथ जुड़ने का वादा किया।
- उन्होंने कालीकट तथा दक्षिण मालाबार में खिलाफत आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
- हाजी ने खिलाफत आंदोलन की धर्मनिरपेक्षता को सुनिश्चित किया तथा आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया एवं अन्य धर्मों के लोगों को सुरक्षा सुनिश्चित करने पर बल दिया।
- अंग्रेजों ने उन्हें धार्मिक कट्टरपंथी नेता के रूप में पेश किया ताकि आंदोलन को धार्मिक रंग देकर समाप्त किया जा सके।
स्वतंत्र राज्य की स्थापना:
- मालाबार में मोपला विद्रोह फैल गया तथा शीघ्र ही स्थानीय विद्रोहियों के नियंत्रण में विशाल क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
- अगस्त, 1921 में हाजी मोपला क्षेत्र को 'स्वतंत्र राज्य' घोषित कर वहाँ का निर्विवाद शासक बना। जनवरी, 1922 में अंग्रेजों ने हाजी को गिरफ्तार कर मौत की सजा सुनाई।
- मुस्लिम होने के बावजूद उनके शव का दाह संस्कार किया गया क्योंकि उनकी कब्र विद्रोहियों के लिये प्रेरणा स्थल बन सकती थी। उनके खिलाफत राज से जुड़े सभी रिकॉर्ड जला दिये गए ताकि लोग उनके शासन को भूल सकें।
मोपला या मालाबार विद्रोह:
- केरल के मालाबार तट पर अगस्त, 1921 में अवैध कारणों से प्रेरित होकर स्थानीय मोपला किसानों ने विद्रोह कर दिया।
- मोपला केरल के मालाबार तट के मुस्लिम किसान थे जहाँ जमीदारी के अधिकार मुख्यतः हिंदुओं के हाथों में थे।
- 19वीं शताब्दी में भी जमीदारों के अत्याचारों से पीड़ित होकर मोपलाओं ने कई बार विद्रोह किया था।
- मोपला विद्रोह के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
- लगान की उच्च दर;
- नज़राना एवं अन्य दमनकारी तौर तरीके;
- राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ संबंध।
- खिलाफत आंदोलन में किसानों की मांग का समर्थन किया गया, बदले में किसानों ने भी आंदोलन में अपनी पूरी शक्ति के साथ भाग लिया।
- फरवरी, 1921 में सरकार ने निषेधाज्ञा लागू कर दी और कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- मोपला विद्रोह के हिंसक रूप लेने के साथ ही कई राष्ट्रवादी नेता आंदोलन से अलग हो गए तथा शीघ्र ही आंदोलन समाप्त हो गया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ग्रामीण स्थानीय निकायों का वित्तपोषण
प्रीलिम्स के लिये:ग्रामीण स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थान, 15वाँ वित्त आयोग मेन्स के लिये:ग्रामीण स्थानीय निकाय तथा इनके वित्तपोषण की आवश्यकता, ग्रामीण स्थानीय निकायों के विकास में वित्त आयोग की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
25 जून 2020 को पंचायती राज मंत्रालय (Ministry of Panchayati Raj) ने वर्ष 2020-21 से लेकर वर्ष 2025-26 तक के लिये अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने के लिये 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) के साथ एक विस्तृत बैठक की। इस बैठक में मंत्रालय द्वारा ग्रामीण स्थानीय निकायों (Rural Local Bodies- RLB) के वित्तपोषण में वृद्धि की सिफारिश की गई।
प्रमुख बिंदु:
- मंत्रालय ने 15वें वित्त आयोग से वर्ष 2020-21 से वर्ष 2025-26 तक की अवधि के लिये पंचायती राज संस्थानों को 10 लाख करोड़ रुपए आवंटित करने की सिफारिश की है।
- 14वें वित्त आयोग के तहत पंचायती राज संस्थानों (Panchayati Raj Institution- PRI) को 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए थे। उल्लेखनीय है कि 13वें से 14वें वित्त आयोग के बीच आवंटन की राशि तीन गुना थी, जबकि इस बार यह राशि पिछले वित्त आयोग की तुलना में 5 गुना करने की सिफारिश की गई है।
- समाचार पत्र द हिंदू के अनुसार, मंत्रालय द्वारा आयोग को प्रस्तुत एक मूल्यांकन अध्ययन में वर्ष 2015 और 2019 के बीच वित्त आयोग द्वारा दिये गए अनुदानों के उपयोग की दर 78% प्रदर्शित की गई है।
- वित्त आयोग से प्राप्त अनुदानों से पूरी की जाने वाली प्रमुख परियोजनाओं में सड़क निर्माण और रखरखाव के साथ-साथ पीने के पानी की आपूर्ति शामिल है।
- संविधान की 11वीं अनुसूची के अनुसार, देश भर की 2.63 लाख पंचायतों के लिये 29 विषयों का प्रावधान किया गया है।
11वीं अनूसूची में शामिल विषय
- कृषि (कृषि विस्तार शामिल)।
- भूमि विकास, भूमि सुधार कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण।
- लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और जल-विभाजक क्षेत्र का विकास।
- पशुपालन, डेयरी उद्योग और कुक्कुट पालन।
- मत्स्य उद्योग।
- सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी।
- लघु वन उपज।
- लघु उद्योग जिसके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी शामिल हैं।
- खादी, ग्राम उद्योग एवं कुटीर उद्योग।
- ग्रामीण आवासन।
- पेयजल।
- ईंधन और चारा।
- सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन।
- ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण शामिल है।
- अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत।
- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
- शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी हैं।
- तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।
- प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा।
- पुस्तकालय।
- सांस्कृतिक क्रियाकलाप।
- बाज़ार और मेले।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय)।
- परिवार कल्याण।
- महिला और बाल विकास।
- समाज कल्याण (दिव्यांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण)।
- दुर्बल वर्गों का तथा विशिष्टतया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कल्याण।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
- सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण।
- मंत्रालय ने यह स्वीकार किया कि महामारी और लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी चुनौती यह थी कि अधिकांश पंचायतें अल्प सूचना पर पका हुआ भोजन उपलब्ध नहीं करा सकती थीं। इसलिये यह प्रस्तावित किया गया है कि प्रत्येक पंचायत में स्थानीय स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित होने वाली सामुदायिक रसोई स्थापित की जाए।
RLBs के संदर्भ में 15वें वित्त आयोग का उत्तरदायित्त्व
- 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों में इसे ‘राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगरपालिकाओं के संसाधनों के पूरक के तौर पर काम आने के लिये संबंधित राज्य के समेकित कोष को बढ़ाने के लिये आवश्यक उपायों’ की सिफारिश करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- आयोग ने इस पर विचार करते हुए वर्ष 2020-21 के लिये अपनी रिपोर्ट में स्थानीय निकायों के लिये अपनी सिफारिश प्रस्तुत की थी तथा इसके साथ ही अपनी शेष अनुदान अवधि के लिये एक व्यापक रोडमैप का संकेत भी दिया था।
- उल्लेखनीय है कि इस अवधि के लिये ग्रामीण स्थानीय निकायों को 60,750 करोड़ रुपए दो किस्तों में आवंटित किये गए थे:
1. 50% मूल अनुदान (Basic Grants) के रूप में
2. 50% अंतिम अनुदान (Final Grants) के रूप में
पंचायती राज मंत्रालय की सिफारिशें:
- पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के अनुसार, 15वां वित्त आयोग 2021-2026 की संशोधित अवधि के लिये पंचायती राज संस्थानों (PRI) के लिये अपने अनुदान को 10 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर रखने पर विचार कर सकता है। मंत्रालय द्वारा सिफारिश की गई हैं कि-
- वर्ष 2020-21 के लिये 15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट के प्रावधानों के अनुरूप अनुदान अवधि के प्रारंभिक 4 वर्षों अर्थात वर्ष 2021-25 के लिये PRI को अनुदान अंतरण की बुनियादी सेवाएँ सुनिश्चित करने के लिये 50% मुक्त राशि (Untied Fund) के रूप में और पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता के लिये 50% सहबद्ध राशि (Tied Fund) के रूप में रखा जा सकता है।
- इसके बाद ग्रामीण निकायों में पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता में अनुमानित प्रगतिशील परिपूर्णता स्तरों को ध्यान में रखते हुए इसे वर्ष 2025-26 के लिये पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता के लिये 25% सहबद्ध राशि के रूप में और 75% को मुक्त राशि के रूप में रखा जा सकता है।
- मुक्त अनुदानों में से PRI को आउटसोर्सिंग के विभिन्न तरीकों, अनुबंध या स्व-सहभागिता के माध्यम से बुनियादी सेवाएँ मुहैया कराने की अनुमति दी जा सकती है।
- वे विभिन्न राजस्व/आवर्ती व्यय (Revenue/Recurring expenditure) जैसे कि परिचालन, रखरखाव, पारिश्रमिक भुगतान, इंटरनेट एवं टेलीफोन व्यय, ईंधन खर्च, किराया, आपदाओं के दौरान आकस्मिक व्यय इत्यादि के लिये भी अनुदान का उपयोग कर सकते हैं।
- इसने पाँच वर्ष की अवधि 2021-26 के लिये 12,000 करोड़ रुपए के अनुदान की अतिरिक्त आवश्यकता को भी रेखांकित किया है, ताकि राज्यों को उन सभी ग्राम पंचायतों में समयबद्ध तरीके से ग्राम पंचायत भवन बनाने के लिये सक्षम बनाया जा सके जहाँ इस तरह के भवन नहीं हैं।
- इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास के लिये एक आवश्यक ग्रामीण अवसंरचना के रूप में सभी ग्राम पंचायतों में बहुउद्देश्यीय सामुदायिक हॉल/केंद्र बनाने की ज़रूरत को महसूस किया गया है।
आगे की राह:
- पर्याप्त धन की कमी पंचायतों के लिये समस्या का एक विषय रही है ऐसे में वित्त आयोग द्वारा दिये जाने वाले अनुदान में वृद्धि इनके सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- सामुदायिक, सरकारी और अन्य विकासात्मक एजेंसियों के माध्यम से प्रभावी संयोजन/सहलग्नता द्वारा सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
- इसके अलावा स्थानीय सरकारों के पास वित्त के स्पष्ट एवं स्वतंत्र स्रोत होने चाहिये।
स्रोत: द हिंदू एवं पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिकी वीज़ा नियमों पर प्रतिबंध
प्रीलिम्स के लियेH-1B वीज़ा, COVID-19 मेन्स के लियेवैश्विक राजनीति पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा समेत अन्य सभी विदेशी वर्क-वीज़ा (Work Visas) पर इस वर्ष के अंत तक लिये प्रतिबंध लगा दिया है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार, यह कदम उन लाखों अमेरिकी नागरिकों की मदद करने के लिये काफी आवश्यक है जो कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट के चलते बेरोज़गार हो गए हैं।
वीज़ा निलंबन का कारण
- वर्ष 1952 में H-1 वीज़ा योजना की शुरुआत के बाद से ही अमेरिका की आर्थिक स्थिति के आधार पर अन्य देश के कुशल श्रमिकों की कुछ श्रेणियों को अनुमति देने अथवा अस्वीकार करने के उद्देश्य से कई संशोधन और बदलाव हुए हैं।
- भारत और चीन जैसे विकासशील राष्ट्रों में इंटरनेट और कम लागत वाले कंप्यूटरों के आगमन के साथ ही बड़ी संख्या में स्नातक अमेरिका जैसे बड़े देशों में अपेक्षाकृत कम लागत पर कार्य करने के लिये तैयार होने लगे।
- हालाँकि दूसरे देशों से कम लागत पर कर्मचारी आने के कारण अमेरिका के अपने घरेलू कर्मचारियों को काम मिलना बंद हो गया, जिससे अमेरिका के स्थानीय निवासियों के बीच बेरोज़गारी बढ़ने लगी।
- जनवरी 2017 में अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के पश्चात् राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट किया कि अन्य देशों से कम लागत पर आने वाले श्रमिक अमेरिका की अर्थव्यवस्था के विकास में बाधा बन रहे हैं और इससे अमेरिका के नागरिकों के समक्ष रोज़गार का संकट पैदा हो गया है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सदैव ही अमेरिका की वीज़ा प्रणाली में सुधार के पक्षधर रहे हैं।
- ध्यातव्य है कि अमेरिकी प्रशासन के अनुसार, अमेरिका की बेरोज़गारी दर में फरवरी 2020 से मई 2020 के बीच लगभग चौगुनी वृद्धि हुई है। इसी को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने मौजूदा वर्ष के अंत तक वीज़ा जारी करने पर रोक लगा दी है।
- वर्तमान में COVID-19 महामारी के कारण विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
इस निर्णय का प्रभाव
- ध्यातव्य है कि अमेरिकी प्रशासन का यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा और सभी नए H-1B, H-2B, J और L श्रेणियों के वीज़ा जारी करने की प्रक्रिया इस वर्ष के अंत तक निलंबित होगी।
- इसका अर्थ है कि जिनके पास 23 जून तक वैध गैर-आप्रवासी वीज़ा नहीं है और वे अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें 31 दिसंबर तक अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- हालाँकि अमेरिकी प्रशासन ने खाद्य क्षेत्र में कार्यरत लोगों को कुछ राहत प्रदान की है और उनके प्रवेश संबंधी नियम आव्रजन सेवाओं (Immigration Services) के अधिकारियों द्वारा तय किये जाएंगे।
- उल्लेखनीय है कि H-1B, H-2B, J और L वीज़ा धारक और उनके पति या पत्नी या अमेरिका में पहले से मौजूद उनके बच्चे नए वीज़ा प्रतिबंध से प्रभावित नहीं होंगे।
भारत की IT कंपनियों पर वीज़ा निलंबन का प्रभाव
- भारतीय आईटी कंपनियाँ अमेरिका की इस वीज़ा व्यवस्था के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक हैं, आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 1990 के बाद से प्रत्येक वर्ष जारी किये जाने वाले H-1B और अन्य वीज़ा श्रेणियों में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है।
- अमेरिकी प्रशासन द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2020 तक ‘यूएस सिटिज़नशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज़’ (US Citizenship and Immigration Services-USCIS) को लगभग 2.5 लाख H-1B वर्क वीज़ा एप्लिकेशन प्राप्त हुए थे, जिसमें से लगभग 1.84 लाख या 67 प्रतिशत भारतीय आवेदक थे।
- गौरतलब है कि वीज़ा निलंबन के अतिरिक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर H-1B कार्य वीज़ा मानदंडों में व्यापक बदलाव किये हैं।
- नए नियमों के अनुसार, अब H-1B कार्य वीज़ा के लिये लॉटरी प्रणाली का उपयोग नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके स्थान पर अब उच्च कौशल वाले श्रमिकों को ही वीज़ा प्रदान किया जाएगा, जिन्हें संबंधित कंपनी अधिक मज़दूरी का भुगतान करेगी।
H-1B, H-2B और अन्य वर्क वीज़ा
- IT और अन्य संबंधित क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल और कम लागत वाले कर्मचारियों का नियुक्ति प्रदान करने के लिये अमेरिकी प्रशासन प्रत्येक वर्ष एक निश्चित संख्या में वर्क वीज़ा (Work Visas) जारी करता है।
- इन सभी वर्क वीज़ा में से H-1B वीज़ा भारतीय IT कंपनियों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय है।
- अमेरिकी सरकार ने प्रत्येक वर्ष कुल 85,000 H-1B वीज़ा की सीमा निर्धारित की है, जिसमें से 65,000 H-1B वीज़ा उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों को जारी किये जाते हैं, जबकि शेष 20,000 H-1B वीज़ा उन उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों को आवंटित किया जा सकता है, जिन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोरियाई युद्ध के 70 वर्ष
प्रीलिम्स के लिये:परमाणु अप्रसार संधि, टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस मेन्स के लिये:कोरियाई युद्ध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर और दक्षिण कोरिया ने कोरियाई युद्ध की शुरुआत की 70 वीं वर्षगांठ को चिह्नित किया।
प्रमुख बिंदु:
- दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दो अलग देश बने। इस विभाजन के बाद से दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग राह चुनी।
- एकीकृत कोरिया पर वर्ष 1910 से जापान का तब तक शासन रहा जब तक कि वर्ष 1945 के दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिये।
- इसके बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्ज़े में ले लिया और दक्षिणी हिस्से पर अमेरिका का कब्ज़ा हो गया।
- इसके बाद उत्तर और दक्षिण कोरिया में साम्यवाद और 'लोकतंत्र' को लेकर संघर्ष शुरू हुआ।
- जापानी शासन से मुक्ति के बाद वर्ष 1947 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के जरिये कोरिया को एक राष्ट्र बनाने की पहल की।
- संयुक्त राष्ट्र के आयोग की निगरानी में चुनाव कराने का फैसला लिया गया और मई 1948 में कोरिया प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्से में चुनाव हुआ।
- इस चुनाव के बाद 15 अगस्त को रिपब्लिक ऑफ कोरिया (दक्षिण कोरिया) बनाने की घोषणा की गई।
- इस बीच, सोवियत संघ के नियंत्रण वाले उत्तरी हिस्से में सुप्रीम पीपुल्स असेंबली का चुनाव हुआ, जिसके बाद सितंबर 1948 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक पीपुल्स ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) बनाने की घोषणा की गई।
- अलग देश बन जाने के बाद दोनों के बीच सैन्य और राजनीतिक विरोधाभास बना रहा, जो पूंजीवाद बनाम साम्यवाद के रूप में सामने आया।
कोरियाई युद्ध:
- दोनों देशों के बीच जून 1950 में संघर्ष शुरू हो गया। 25 जून को उत्तर कोरिया के प्रमुख किम इल सुंग ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया।
- इस युद्ध में उत्तर कोरिया को जीत मिली, लेकिन अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पारित करवा लिया, जिसके बाद अमेरिका के झंडे तले 15 सहयोगी देशों की सेना दक्षिण कोरिया की मदद के लिये पहुँच गई, जिसने युद्ध की स्थिति ही बदल दी।
- अमेरिका के प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप के कारण उत्तर कोरिया को पीछे हटना पड़ा और वह जीती हुई बाजी हार गया। उत्तर कोरिया का साथ रूसी तथा चीनी सेना ने दिया। वर्ष 1953 में यह युद्ध खत्म हुआ और दो स्वतंत्र राष्ट्र बन गए।
- अमेरिका ने इस युद्ध को लिमिटेड वॉर कहा था, क्योंकि उसने इसे कोरियाई प्रायद्वीप के आगे नहीं फैलने दिया था, लेकिन दक्षिण कोरिया में अमेरिका के 28,500 सैनिक कोरियाई युद्ध के बाद तैनात रहे।
- दूसरी ओर, उत्तर कोरिया का सबसे खास सहयोगी चीन है और दोनों देशों के बीच वर्ष 1961 में एक संधि हुई थी, जिसमें कहा गया है कि यदि चीन और उत्तर कोरिया में से किसी भी देश पर अगर कोई अन्य देश हमला करता है तो दोनों देश तुरंत एक-दूसरे का सहयोग करेंगे।
वर्तमान की गतिविधियाँ:
- हाल के वर्षों में उत्तर कोरिया ने परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT) से हटकर अपने परमाणु भंडार में वृद्धि करके अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ किया है और कई बार परमाणु परीक्षण किया है।
- उत्तर कोरिया की बढ़ती मिसाइल साहसिकता का मुकाबला करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस- थाड (Terminal High Altitude Area Defence- THAAD) तैनात किया है।
- हाल ही में उत्तर कोरिया ने कासोंग स्थित अंतर-कोरियाई संपर्क कार्यालय को ध्वस्त कर दिया था, जिसे वर्ष 2018 में स्थापित किया गया था। इस इमारत ने औपचारिक राजनयिक संबंधों की अनुपस्थिति में, एक वास्तविक दूतावास के रूप में कार्य किया और दोनों देशों के लिये एक सीधा संचार चैनल प्रदान किया।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
COVID-19 महामारी के कारण बढ़ता शिक्षा अंतराल
प्रीलिम्स के लिये:वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट मेन्स के लिये:COVID-19 महामारी और बढ़ता वैश्विक शिक्षा अंतराल |
चर्चा में क्यों?
‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन’ (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) द्वारा जारी की जाने वाली ‘वैश्विक शिक्षा निगरानी’ (Global Education Monitoring- GEM) रिपोर्ट- 2020 के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक शिक्षा अंतराल में वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट’ एक स्वतंत्र वार्षिक प्रकाशन है।
- GEM रिपोर्ट को सरकारों, बहुपक्षीय एजेंसियों और निजी संस्थाओं द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और यूनेस्को द्वारा इसे सुविधा और समर्थन दिया जाता है।
वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट संबंधी प्रमुख निष्कर्ष:
- विकासशील देशों में बढ़ता शिक्षा अंतराल:
- COVID-19 महामारी के दौरान निम्न तथा निम्न-मध्यम-आय वाले लगभग 40% देशों में गरीब, भाषाई अल्पसंख्यक और विकलांग लोगों को सीखने संबंधी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- अप्रैल, 2020 में विश्व में अधिकांश विद्यालय बंद रहे इस कारण विश्व के लगभग 91% छात्र स्कूल नहीं जा पाए।
- दूरस्थ शिक्षा संबंधी बाधा:
- रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के दौरान विश्व में दूरस्थ शिक्षा (Distance Learning) उपायों को अपनाया गया जो कक्षा आधारित प्रणालियों की तुलना में कम प्रभावी तथा अपूर्ण विकल्प है।
- रिपोर्ट के अनुसार, निम्न-आय वाले 55%, निम्न-मध्यम-आय वाले 73% और ऊपरी-मध्यम-आय वाले 93% देशों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिये ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों को अपनाया गया है।
- बढ़ता डिजिटल शिक्षा अंतराल:
- सरकार तेज़ी से प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा प्रणालियों को अपना रही है, लेकिन डिजिटल डिवाइड के कारण सरकार का यह दृष्टिकोण भी अधिक सफल नहीं रहा है।
- सरकार सभी छात्रों और शिक्षकों को उपलब्ध डिजिटल प्लेटफार्मों का लाभ उठाने के लिये पर्याप्त इंटरनेट कनेक्शन, उपकरण, कौशल प्रदान करने में सक्षम नहीं रही।
- दिव्यांगजनों के लिये बाधाएँ:
- शिक्षा संबंधी कुछ सुविधाएँ केवल विद्यालय परिसर में उपलब्ध हो सकती हैं यथा दृष्टिबाधित तथा श्रवणबाधित छात्रों के लिये संसाधन स्कूलों के बाहर उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।
- ऐसे छात्रों को कंप्यूटर पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- छात्रों का पोषण तथा सुरक्षा:
- गरीब छात्र; जो मुफ्त भोजन या मुफ्त सैनिटरी नैपकिन के लिये स्कूल पर निर्भर हैं, को विद्यालय बंद होने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भारत सहित कई देशों में परीक्षाओं को रद्द करने से शिक्षकों पर निर्भरता बढ़ सकती है।
- स्कूल ड्रॉप-आउट दर का बढ़ना:
- स्कूल ड्रॉप-आउट दर का बढ़ना भी एक चिंता का विषय हैं। अफ्रीका में इबोला महामारी के दौरान जो छात्राएँ विद्यालय नहीं जा सकी वे संकट खत्म होने के बाद कभी स्कूल नहीं गई।
विकासशील देशों द्वारा उठाए गए कदम:
- रिपोर्ट के अनुसार, निम्न और मध्यम आय वाले 17% देश अधिक शिक्षकों की भर्ती करने की योजना बना रहे हैं, 22% कक्षा के समय को बढ़ाने को योजना बना रहे हैं और 68% सुधारात्मक कक्षाओं (Remedial Classes) को शुरू करने की योजना बना रहे हैं।
निष्कर्ष:
- ऑनलाइन कक्षाओं के आयोजन में कक्षा प्रबंधन एक प्रमुख मुद्दा है, अत: विद्यालयों को ऑनलाइन कक्षाओं के आयोजन की दिशा में व्यापक रणनीति तथा मूल्यांकन प्रणाली को अपनाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
आर्कटिक सागर में तेज़ी से पिघलती बर्फ
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र, आर्कटिक विस्तरण, पोलर वोर्टेक्स, पर्माफ्रॉस्ट मेन्स के लिये:ध्रुवीय क्षेत्रों में पिघलती बर्फ के कारण, प्रभाव तथा उससे निपटने के लिये किये जा रहे प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre of Polar and Ocean Research- NCPOR) के द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक सागर की बर्फ में कमी आई है।
प्रमुख बिंदु:
- NCPOR के अनुसार पिछले 41 वर्षों में आर्कटिक सागर की बर्फ में सबसे बड़ी गिरावट जुलाई 2019 में आई।
- पिछले 40 वर्षों (1979-2018) में, इसकी बर्फ में प्रति दशक -4.7 प्रतिशत की दर से कमी आई है, जबकि जुलाई 2019 में इसकी गिरावट की दर -13 प्रतिशत पाई गई।
- अगर यही रुझान जारी रहा तो वर्ष 2050 तक आर्कटिक सागर में बर्फ नहीं बच पाएगी, जोकि मानवता एवं समस्त पर्यावरण के लिये खतरनाक साबित होगा।
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR)-
- NCPOR भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान हैl जो ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्र में देश की अनुसंधान गतिविधियों को कार्यान्वित करता हैl
- NCPOR, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक स्वायत्त, अनुसंधान और विकासात्मक संस्थान है l
- इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा 25 मई, 1998 में की गई थीl
बर्फ पिघलने के कारण:
इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)- ग्लोबल वार्मिंग के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी का हिमावरण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है। परिणामतः इसके पिघलने से हिमावरण में कमी आ रही है।
- आर्कटिक विस्तरण (Arctic Amplification)- संपूर्ण विश्व के मुकाबले आर्कटिक का तापमान दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहा है। इस प्रक्रिया को आर्कटिक विस्तरण कहा जाता है।
- आर्कटिक विस्तरण, एल्बीडो में कमी के कारण होता है।
- महासागरीय जलधाराएँ (Oceanic Currents)- जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप महासागरीय जल धाराओं की दिशा में परिवर्तन के कारण आर्कटिक सागर में ताज़े जल की आपूर्ति ज्यादा होती है। इससे लवणीय जल और ताज़े जल के तापमान में भिन्नता आने के कारण बर्फ के पिघलने की दर बढ़ जाती है।
- पोलर वोर्टेक्स (Polar Vortex)- जेट स्ट्रीम के कमजोर पड़ने के परिणामस्वरूप पोलर वोर्टेक्स का स्थानांतरण होने के कारण मौसम में परिवर्तन।
प्रभाव:
- आर्कटिक सागर की बर्फ जलवायु परिवर्तन का एक संवेदनशील संकेतक है और इसके जलवायु प्रणाली के अन्य घटकों पर मज़बूत प्रतिकारी प्रभाव पड़ते हैं।
- आर्कटिक में बर्फ की कमी होने के कारण स्थानीय रूप से वाष्पीकरण, वायु आर्द्रता, बादलों के आच्छादन तथा वर्षा में बढ़ोतरी हुई है।
- NCPOR द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक सागर की बर्फ में गिरावट और ग्रीष्म तथा शरद ऋतुओं की अवधि में बढोतरी ने आर्कटिक सागर के ऊपर स्थानीय मौसम एवं जलवायु को प्रभावित किया है।
- इसके अलावा बर्फ की वजह से कोहरे का निर्माण होता है जिसकी वजह से वनस्पति का विकास नहीं हो पाता है।
- पर्माफ़्रोस्ट (Permafrost) के पिघलने के कारण कई प्रकार की गैसें विशेषकर मीथेन एवं कार्बन डाई आक्साईड बाहर आती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि करती हैं।
- चिंताजनक तथ्य यह है कि जाड़े के दौरान बर्फ के निर्माण की मात्रा गर्मियों के दौरान बर्फ के नुकसान की मात्रा के साथ कदम मिला कर चलने में अक्षम रही है।
आर्कटिक पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किये जाने के लिये किये जा रहे प्रयास:
- पेरिस जलवायु समझौते के तहत 21वीं सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस करना।
- इसके अलावा अंटार्कटिक संधि (1959), आर्कटिक परिषद (1996) का गठन, वर्ष 1982 में अंटार्कटिक समुद्री सजीव संसाधन कन्वेंशन को लागू किया गया तथा वर्ष 1991 में मेड्रिड प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गए।
- भारत के पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय द्वारा ‘हिममंडल प्रक्रिया और जलवायु परिवर्तन (Cryosphere Process and Climate Change- CryoPACC)’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
- इसके अलावा भारत द्वारा विभिन्न ध्रुवीय अनुसंधान अभियान चलाए जा रहे हैं यथा आर्कटिक में हिमाद्री, अंटार्कटिक में दक्षिण गंगोत्री, मैत्री एवं भारती तथा हिमालय क्षेत्र में हिमांश आदि।
स्रोत: PIB
जैव विविधता और पर्यावरण
ओज़ोन प्रदूषण और लॉकडाउन
प्रीलिम्स के लियेओज़ोन प्रदूषण, पार्टिकुलेट मैटर मेन्स के लियेओज़ोन परत की भूमिका और मानव स्वास्थ्य पर ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
'सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट' (Center for Science and Environment-CSE) नामक पर्यावरण विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, लॉकडाउन की अवधि के दौरान जहाँ पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM) और नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous Oxide) के स्तर में कमी आई है, वहीं कई शहरों में ओज़ोन (Ozone) के स्तर में बढ़ोतरी हुई है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि CSE द्वारा किया गया यह विश्लेषण 25 मार्च से 31 मई, 2020 तक की लॉकडाउन अवधि के दौरान कुल 15 राज्यों के 22 शहरों के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) द्वारा प्रस्तुत किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
- विश्लेषण में यह सामने आया कि दिल्ली-NCR और अहमदाबाद में तकरीबन 65 प्रतिशत लॉकडाउन अवधि में कम-से-कम एक अवलोकन स्टेशन (Observation Station) ऐसा था, जहाँ ओज़ोन का स्तर मानक स्तर से अधिक था।
- विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली में इस अवधि (25 मार्च से 31 मई) के दौरान ओज़ोन प्रदूषण की गंभीरता तुलनात्मक रूप से वर्ष 2019 की गर्मियों की अपेक्षा काफी कम थी, किंतु महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि 25 मार्च से 31 मई के दौरान भी ओज़ोन का प्रदूषण स्तर मानक स्तर से अधिक था।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (PM) के स्तर में काफी कमी आई। विश्लेषण के मुताबिक, लगभग सभी शहरों में लॉकडाउन के दौरान औसत PM 2.5 का स्तर 2019 में इसी अवधि की अपेक्षा काफी कम पाया गया।
- हालाँकि जैसे-जैसे लॉकडाउन में छूट प्रदान की गई, उसी के साथ प्रदूषण के स्तर में भी बढ़ोतरी होने लगी। विश्लेषण के अनुसार, लॉकडाउन 4.0 के दौरान जैसे ही सड़कों पर अधिक गाड़ियाँ चलना शुरू हुई वैसे ही औसत NO2 का स्तर तेज़ी से बढ़ने लगा।
क्या है ओज़ोन?
- ओज़ोन (O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में काफी कम मात्रा में पाई जाती हैं। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस होती है।
- ओज़ोन गैस की खोज जर्मन वैज्ञानिक क्रिश्चियन फ्रेडरिक श्योनबाइन ने वर्ष 1839 में की थी।
- इस तीखी विशेष गंध के कारण इसका नाम ग्रीक शब्द 'ओज़िन' से बना है, जिसका अर्थ है सूंघना।
- यह अत्यधिक अस्थायी और प्रतिक्रियाशील गैस है। वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है।
ओज़ोन का निर्माण
- ध्यातव्य है कि ओज़ोन गैस किसी भी स्रोत द्वारा प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित नहीं होती है, बल्कि इसका निर्माण नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जैसी गैसों के तेज़ धूप और ऊष्मा के साथ प्रतिक्रिया करने से होता है। इस प्रकार ओज़ोन गैस को केवल तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब सभी स्रोतों से गैसों को नियंत्रित किया जाए।
- ध्यातव्य है कि जब तापमान में वृद्धि होती है, तो ओज़ोन के उत्पादन की दर भी बढ़ जाती है।
- वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।
ओज़ोन प्रदूषण
- ओज़ोन गैस समतापमंडल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है। यह वायुमंडल में मौज़ूद समस्त ओज़ोन का कुल 90 प्रतिशत है, इसे अच्छा ओज़ोन (Good Ozone) माना जाता है।
- समतापमंडल में यह पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiation) से बचाती है।
- समतापमंडल के अतिरिक्त ओज़ोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल- Troposphere) में भी पाई जाती है। ध्यातव्य है कि समतापमंडल में ओज़ोन हानिकारक संदूषक (Pollutants) के रूप में कार्य करती है।
ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव
- ओज़ोन के अंत:श्वसन पर सीने में दर्द, खाँसी और गले में दर्द सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह ब्रोन्काइटिस (Bronchitis), वातस्फीति (Emphysema) और अस्थमा की स्थिति को और बद्दतर सकता है।
- वैज्ञानिक बताते हैं कि यदि श्वसन संबंधी बीमारियों और अस्थमा आदि से पीड़ित लोग इसके संपर्क में आते हैं तो यह उनके लिये काफी जोखिम भरा हो सकता है।
- इसके अलावा जब किसी संवेदनशील पौधे की पत्तियों में ओज़ोन अत्यधिक मात्रा में प्रवेश करती है तो यह उस पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित कर सकती है तथा पौधे की वृद्धि को धीमा कर सकती है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
कोकोलिथोफोरस
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, कोकोलिथोफोरस मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) ने प्राचीन सूक्ष्म समुद्री शैवाल ‘कोकोलिथोफोरस’ (Coccolithophores) का अध्ययन करने पर पाया कि दक्षिणी हिंद महासागर में कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) की सांद्रता में कमी आई है।
प्रमुख बिंदु:
- कोकोलिथोफोरस (Coccolithophores), विश्व के महासागरों की ऊपरी परतों में निवास करने वाला एकल-कोशिकीय शैवाल है।
- ये समुद्री फाइटोप्लैंकटन (Marine Phytoplankton) को चूने में परिवर्तित करते हैं जो खुले महासागरों में 40% तक कैल्शियम कार्बोनेट का उत्पादन करते हैं और वैश्विक निवल समुद्री प्राथमिक उत्पादकता (Global Net Marine Primary Productivity) के 20% के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- ये अलग-अलग चाक (Chalk) एवं सी-शेल (Seashell) वाली कैल्शियम कार्बोनेट की प्लेटों से एक्सोस्कल्टन (Exoskeleton) बनाते हैं।
- हालाँकि इन प्लेटों के निर्माण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन होता है किंतु कोकोलिथोफोरस प्रकाश संश्लेषण के दौरान इसका अवशोषण करके वातावरण एवं महासागर से इसे हटाने में मदद करते हैं।
- संतुलन की अवस्था में ये उत्पादन करने की तुलना में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं जो महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये लाभदायक है।
- दक्षिणी हिंद महासागर में कोकोलिथोफोरस की प्रचुरता एवं विविधता समय पर निर्भर है और यह विभिन्न पर्यावरणीय कारकों जैसे- सिलिकेट की सांद्रता, कैल्शियम कार्बोनेट की सांद्रता, डायटम (Diatom) की प्रचुरता, प्रकाश की तीव्रता और सूक्ष्म एवं संभवतः सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उपलब्धता एवं सांद्रता (समुद्री प्रदूषण) से प्रभावित है।
समुद्री प्रदूषण:
- समुद्री प्रदूषण वह प्रदूषण है जिसमें रासायनिक कण, औद्योगिक, कृषि एवं घरेलू कचरा तथा मृत जीव महासागर में प्रवेश करके समुद्र में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- समुद्री प्रदूषण के स्रोत अधिकांशतः धरातलीय हैं। सामान्यतः यह प्रदूषण कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए अपशिष्ट स्रोतों के कारण होता है।
- डायटम एकल-कोशिकीय शैवाल हैं जो जलवायु परिवर्तन एवं समुद्री अम्लीकरण के साथ समुद्री बर्फ के टूटने के बाद उत्पन्न होते हैं।
- डायटम जल में सिलिकेट की सांद्रता को बढ़ाता है और बदले में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा को कम कर देता है तथा कोकोलिथोफोरस की विविधता को घटा देता है।
- विश्व महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के संभावित महत्त्व के साथ यह कोकोलिथोफोरस की वृद्धि एवं उसकी कंकाल संरचना (Skeleton Structure) को प्रभावित करेगा।
- इस प्रकार यह अध्ययन इंगित करता है कि परिवर्तित कोकोलिथोफोरे कैल्सीफिकेशन दर (The Altered Coccolithophore Calcification Rate) का एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem) और वैश्विक कार्बन प्रवाह में सकारात्मक बदलाव लाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’
(National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR):
- ‘राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (NCPOR) का गठन एक स्वायत्तशासी अनुसंधान एवं विकास संस्थान के रूप में किया गया था।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) के अंतर्गत कार्य करता है।
- यह ध्रुवीय एवं दक्षिणी महासागरीय क्षेत्र में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार संस्थान है। यह केंद्र गोवा में स्थित है।
- इसको अंटार्कटिका में भारत के स्थायी स्टेशन (मैत्री एवं भारती) के रखरखाव सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिये नोडल संगठन के रूप में नामित किया गया है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
गौधन न्याय योजना
प्रीलिम्स के लिये:गौधन न्याय योजना के मुख्य प्रावधान, हरेली त्यौहार मेन्स के लिये:‘गौधन न्याय योजना’ का लोगों की आजीविका पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
शीघ्र ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा राज्य में पशु मालिकों से गाय के गोबर को खरीदने के लिये ‘गौधन न्याय योजना’ (Gaudhan Nyay Yojana) की शुरुआत की जाएगी।
प्रमुख बिंदु:
- छत्तीसगढ़ राज्य में ‘गौधन न्याय योजना’ की शुरुआत 11 जुलाई, 2020 से राज्य के लोकप्रिय ‘हरेली त्यौहार’ (Hareli Festival) के दिन की जाएगी।
- इस योजना के सुचारु क्रियान्वयन के लिये एक पाँच सदस्यीय कैबिनेट उप समिति का गठन किया गया है।
- यह समिति राज्य में किसानों, पशुपालकों, गौ-शाला संचालकों एवं बुद्धिजीवियों के सुझावों के अनुसार गोबर की क्रय दर निर्धारित करेगी।
- गोबर खरीद से लेकर उसके वित्तीय प्रबंधन और वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय तक की प्रक्रिया के निर्धारण के लिये मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रमुख सचिव एवं सचिवों की एक कमेटी गठित की गई है।
- राज्य सरकार द्वारा किसानों, पशुपालकों एवं बुद्धिजीवियों से राज्य में गोबर खरीद की दर निर्धारण के संबंध में अपने सुझाव देने का भी आग्रह किया गया है।
- इस योजना के माध्यम से हज़ारों गाँवों में स्थापित गौशालाओं का उपयोग वर्मी कंपोस्ट के निर्माण स्रोत के रूप में किया जा सकेगा तथा यहाँ निर्मित उर्वरक को किसानों के साथ-साथ अन्य सरकारी विभागों में भी बेचा जा सकेगा अर्थात योजना के माध्यम से तैयार होने वाली वर्मी कम्पोस्ट खाद की बिक्री सहकारी समितियों के माध्यम से की जाएगी।
- गोबर की खरीद एवं बिक्री के संबंध में इस प्रकार की योजना की शुरुआत करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा।
हरेली त्यौहार:
- हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं हिंदी वर्ष के अनुसार सबसे पहला त्यौहार है।
- पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी लोगों के प्रकृति के प्रति प्रेम एवं समर्पण भाव को दर्शाता है।
- यह त्यौहार सावन मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है जो पूर्णतः हरियाली का पर्व है।
- यह त्यौहार किसानों द्वारा अपने औज़ारों की पूजा के साथ शुरू होता है, जिसमें किसान खेत के औजार व उपकरण जैसे- नांगर, गैंती, कुदाली, रापा इत्यादि की साफ-सफाई कर पूजा करते हैं, साथ ही साथ बैलों व गायों की भी पूजा की जाती है।
- इस त्यौहार में सुबह-सुबह घरों के प्रवेश द्वार पर नीम की पत्तियाँ व चौखट में कील लगाई जाती है।
- लोगों की ऐसी मान्यता है कि द्वार पर नीम की पत्तियाँ व कील लगाने से घर में रहने वाले लोगों की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
योजना का महत्त्व:
- इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा होंगे, साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
- इस पहल के माध्यम से सड़कों पर आवारा पशुओं की आवाजाही को रोका जा सकेगा तथा इनका उपयोग कृषि योग्य भूमि में किया जा सकेगा।
- गाय के गोबर को खाद में बदलकर अतिरिक्त लाभ के लिये बेचा जा सकता है।
- वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा ।
- राज्य में किसानों के साथ-साथ वन विभाग, कृषि, उद्यानिकी, नगरीय प्रशासन विभाग को पौधरोपण एवं उद्यानिकी की खेती के समय बड़ी मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है। इसकी आपूर्ति इस योजना के माध्यम से उत्पादित खाद से हो सकेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 जून, 2020
आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोज़गार अभियान
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोज़गार अभियान’ का शुभारंभ किया है। यह अभियान रोज़गार प्रदान करने, स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोज़गार के अवसर मुहैया कराने के लिये औद्योगिक संघों और अन्य संगठनों के साथ साझेदारी करने पर विशेष रूप से केंद्रित है। ध्यातव्य है कि इस योजना के तहत स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देने और औद्योगिक संस्थानों के साथ साझेदारी कर रोज़गार के अवसर बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ध्यातव्य है कि COVID-19 महामारी का सामान्य कामगारों, विशेषकर प्रवासी श्रमिकों पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने-अपने राज्य वापस लौट चुके हैं। अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अन्य क्षेत्रों से अब तक कुल 30 लाख प्रवासी श्रमिक वापस लौटे हैं, ऐसे में इन श्रमिकों को रोज़गार उपलब्ध कराना राज्य सरकारों के लिये एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है। ध्यातव्य है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोज़गार अभियान’ की परिकल्पना राज्य के उद्योगों और अन्य संगठनों के साथ साझेदारी करते हुए एक अनूठी पहल के रूप में की गई थी, जिसमें भारत सरकार और राज्य सरकार के कार्यक्रमों में सामंजस्य स्थापित करना भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि 12 मई, 2020 को प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का आह्वान करते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की थी। इस अभियान के तहत ‘आत्मनिर्भर भारत’ के पाँच स्तंभों यथा अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, गतिशील जनसांख्यिकी और मांग को रेखांकित किया गया है।
विवेकानंद योग विश्वविद्यालय
हाल ही में छठे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर अमेरिका के लॉस एंजेल्स (Los Angeles) में भारत के बाहर ‘विवेकानंद योग विश्वविद्यालय’ नाम से विश्व के पहले योग विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। उल्लेखनीय है कि स्वामी विवेकानंद योग फाउंडेशन के कुलाधिपति एवं प्रसिद्ध योग गुरु डॉ. एच. आर. नागेंद्र (H. R. Nagendra) इस विश्विद्यालय के पहले अध्यक्ष होंगे। ध्यातव्य है कि ‘भारत की संस्कृति और विरासत के प्रतीक के रूप में योग विश्व में एकता और भाईचारे का माध्यम बन गया है। योग के माध्यम से वैश्विक शांति का संदेश आसानी से दिया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप मनाया जाता है, विश्व स्तर पर सर्वप्रथम वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया था। इस वर्ष (वर्ष 2020) यह छठा अवसर है जब पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया है। 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस/विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने को मान्यता दी थी।
‘हरीथा हरम’ कार्यक्रम
हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने 'हरीथा हरम' (Haritha Haaram) कार्यक्रम के छठे चरण का शुभारंभ किया है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, हरीथा हरम कार्यक्रम के छठे चरण के दौरान लगभग 30 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। ध्यातव्य है कि राज्य में यह वृक्षारोपण कार्यक्रम बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा करने में भी मदद करेगा, क्योंकि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत पौधे रोपने हेतु गड्ढे खोदने का कार्य दिया जाएगा। तेलंगाना का ‘हरीथा हरम’ कार्यक्रम राज्य सरकार द्वारा कार्यान्वित व्यापक वृक्षारोपण कार्यक्रम है, जिसके तहत राज्य में वृक्षों के क्षेत्र को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस कार्यक्रम का शुभारंभ 3 जुलाई, 2015 को तेलंगाना के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था। आँकड़ों के अनुसार, राज्य भर में कुल 182 करोड़ पौधे लगाए गए हैं। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद है और इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 112,077 वर्ग किलोमीटर है। तेलंगाना में कुल 33 ज़िले हैं और इसकी जनसंख्या लगभग 350 लाख है। तेलंगाना का गठन एक भौगोलिक और राजनीतिक इकाई के रूप में 2 जून, 2014 को भारत के 29वें राज्य के रूप में किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र का ‘गरीबी उन्मूलन गठबंधन’
भारत, संयुक्त राष्ट्र के गरीबी उन्मूलन गठबंधन (Alliance for Poverty Eradication) के संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हो गया है। इस गठबंधन का लक्ष्य कोरोना वायरस (COVID-19) वैश्विक महामारी के पश्चात् वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) के 74वें सत्र के अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद बंदे 30 जून को औपचारिक रूप से ‘गरीबी उन्मूलन गठबंधन’ की शुरुआत करेंगे। गठबंधन में संस्थापक सदस्य के तौर पर शामिल होते हुए भारत ने स्पष्ट किया कि केवल मौद्रिक मुआवज़े से गरीबी उन्मूलन संभव नहीं है, गरीबों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ जल, स्वच्छता, उचित आवास एवं सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी काफी आवश्यक है। ध्यातव्य है कि गरीबी उन्मूलन के लिये आर्थिक असमानता एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है, एक अनुमान के मुताबिक विश्व की 60 प्रतिशत से अधिक धन-संपत्ति मात्र 2,000 अरबपतियों के पास मौजूद है।