डेली न्यूज़ (25 May, 2019)



भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली का पुनर्गठन

चर्चा में क्यों?

सरकार ने सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) के तहत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office- CSO) के साथ विलय करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • दिनांक 23 मई, 2019 के आदेशानुसार, NSSO और CSO के विलय के माध्यम से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) के गठन को मंज़ूरी दे दी गई है।
  • आदेश में कहा गया है कि प्रस्तावित राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की अध्यक्षता सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन के सचिव द्वारा की जाएगी किंतु इस आदेश में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission- NSC) का कोई उल्लेख नहीं है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग देश में किये जाने वाले सभी सांख्यिकीय कार्यों की देखरेख करने वाला निकाय रहा है।
  • यह आदेश भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् के साथ सचिव (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन) की बराबरी स्थापित नहीं करता है, जैसा कि 1 जून, 2005 को MoSPI द्वारा अधिसूचित पहले के प्रस्ताव में किया गया था।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) सांख्यिकीय कार्य के सभी तकनीकी पहलुओं, मसलन किस सर्वेक्षण को कब, कहाँ और कैसे किया जाना चाहिये, की देखरेख करता है।
  • मंत्रालय के वर्तमान नोडल कार्यों को सुव्यवस्थित और सुदृढ़ करने तथा मंत्रालय के आतंरिक प्रशासनिक कार्यों को एकीकृत कर अधिक तालमेल बिठाने हेतु भारतीय आधिकारिक सांख्यिकी प्रणाली के पुनर्गठन का आदेश जारी किया गया है

2019 का आदेश बनाम 2005 का प्रस्ताव

  • 2005 के प्रस्ताव में एनएससी की स्थापना की मंज़ूरी देने के साथ-साथ राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (National Statistical Organisation)/(सांख्यिकी हेतु सरकार की एक कार्यकारी शाखा) का भी प्रस्ताव रखा था जिसे एनएससी द्वारा निर्धारित नीतियों और प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
  • 2005 के प्रस्ताव में राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (National Statistical Organisation) के दो विंग, सीएसओ और एनएसएसओ को प्रस्तावित किया गया था, जबकि 2019 के आदेश में कहा गया है कि सांख्यिकी विंग, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) मंत्रालय का एक अभिन्न अंग होगा जिसका गठन सीएसओ और एनएसएसओ के विलय के द्वारा किया जाना है।

वर्तमान संरचना

  • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के निम्नलिखित दो विंग हैं-
  • सांख्यिकी से संबंधित
  • कार्यक्रम कार्यान्वयन से संबंधित
  • वर्तमान में सांख्यिकी विंग, राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (National Statistical Organisation) में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), कंप्यूटर केंद्र और राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) शामिल हैं।
  • कार्यक्रम कार्यान्वयन विंग में तीन प्रभाग हैं-
  • 20 पॉइंट प्रोग्राम
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉनीटरिंग एंड प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग
  • सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
  • उक्त दो विंग के अलावा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के एक प्रस्ताव के माध्यम से बनाए गए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) के साथ-साथ एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय सांख्यिकी संस्थान भी है जिसे संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया है।
  • NSC के पास सांख्यिकीय मामलों में नीतियों, प्राथमिकताओं और मानकों को विकसित करने का शासनादेश भी है।

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वर्तमान संरचना में समस्याएँ

  • राष्ट्रीय लेखा में परीक्षण के बगैर डेटा का उपयोग, पारदर्शिता और जीडीपी डेटाबेस में प्रभावी ऑडिट की कमी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अप्रभावी निरीक्षण की ओर इशारा करती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


NBFCs के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक के नए नियम

चर्चा में ?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने गंभीर नकदी संकट का सामना कर रही बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Companies-NBFCs) को संकट से बाहर निकालने के लिये नए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किये हैं ताकि IL&FS जैसे संकट की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

  • RBI ने अपने मसौदा परिपत्र "NBFCs और कोर निवेश कंपनियों के लिये तरलता जोखिम प्रबंधन फ्रेमवर्क” [Liquidity Risk Management Framework for NBFCs and Core Investment Companies (CICs)] में इन दिशा-निर्देशों का प्रस्ताव किया है।
  • नए प्रावधानों के अनुसार, NBFCs के परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन (Asset-Liability Management-ALM) ढाँचे को मज़बूत करने और इनके वर्तमान स्तर को ऊपर उठाने के लिये, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में भी बैंकों की तरह तरलता कवरेज़ अनुपात (Liquidity Coverage Ratio-LCR) की व्यवस्था शुरू की जानी चाहिये।

भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देश

  • RBI के प्रस्तावित नियमों के अनुसार, जमा स्वीकार करने वाली सभी NBFCs तथा जमा स्वीकार नहीं करने वाली NBFC (जिनका आकार 5,000 करोड़ रुपए हो) के लिये तरलता कवरेज़ अनुपात (LCR) व्यवस्था शुरू की जाएगी।
  • बेसल-III मानकों के तहत LCR एक मांग है जिसके अंतर्गत बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (High-Quality Liquid Assets-HQLA) के रूप में एक निश्चित राशि बनाए रखने की आवश्यकता होती है जो 30 दिनों तक नकदी बहिर्वाह के लिये निधि प्रदान करने हेतु पर्याप्त है।
  • HQLA ऐसी तरल संपत्तियाँ हैं जिन्हें आसानी से बेचा जा सकता है या अल्प नुकसान अथवा बिना किसी हानि के तत्काल नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है या उधार के प्रयोजनों के लिये संपार्श्विक (Collateral) के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली तरल परिसंपत्तियों के रूप में NBFCs द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में अंशधारिता को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • जोखिम को कम करने के लिये व्यापक नीतियाँ: आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों को लागू करने के लिये 5,000 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति वाली सभी NBFCs के बोर्ड को तरलता जोखिम कम करने के लिये परिसंपत्ति देयता प्रबंध समिति (Asset Liability Management Committee), परिसंपत्ति जोखिम प्रबंध समिति (Asset Risk Management Committee) और परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन में सहायता के लिये समूह (Asset-Liability Management Support Group) का गठन करना आवश्यक है।
  • आस्तियों और देयताओं का असंतुलन NBFC के कुल आउटफ्लो के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • NBFCs के लिये तरलता संकट के प्रबंधन उपकरण के रूप में अपनी आकस्मिक निधि योजना तैयार करने की आवश्यकता है जो उन्हें तरलता संकट की स्थिति में धन के वैकल्पिक स्रोतों के ज़रिये मदद करेगा और धन के एकल स्रोत पर निर्भरता पर रोक लगाएगा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वाणिज्यिक पत्र (Commercial Papers) पर NBFCs की अधिक निर्भरता के कारण अतीत में इनके द्वारा जारी किये गए एक लाख करोड़ वाणिज्यिक पत्र डिफ़ॉल्ट की स्थिति में पहुँच सकते हैं।

वाणिज्यिक या तिजारती पत्र (Commercial Paper) एक अल्पकालिक, आरक्षित वचन पत्र होता है जो बेचान (Endorsement) के द्वारा अंतरणीय एवं परक्राम्य/बेचनीय (Negotiable) है तथा परिपक्वता अवधि के बाद एक इनकी सुनिश्चित (स्थिर) अंतरण या सुपुर्दगी होती है।

वाणिज्यिक पत्र कंपनियों द्वारा एक वर्ष तक की अवधि के लिये धन जुटाने हेतु जारी किये जाते हैं।

  • एक ग्रैनुलर मेच्योरिटी बकेट प्रणाली (Granular Maturity Bucket System) का प्रस्ताव किया गया है ताकि वह पूरे कार्यकाल के दौरान आस्तियों और देयताओं के असंतुलन पर नज़र रख सके। नए मानदंडों के तहत, 1-30 दिनों के बकेट को 1-7 दिनों, 8-14 दिनों और 15-30 दिनों की बकेट में विभाजित किया जाएगा। इसके अलावा NBFC को अपने बोर्डों की मंज़ूरी के साथ आंतरिक विवेकपूर्ण सीमा स्थापित कर 1 वर्ष तक के अन्य सभी समय की बकेट में उनके आस्तियों तथा देयताओं के संचयी असंतुलन की निगरानी करना आवश्यक होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


FPI पर एच.आर. कार्यसमूह

चर्चा में क्यों?

पिछले साल भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board-SEBI) ने  RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर एच.आर. खान की अध्यक्षता में गठित कार्यसमूह की रिपोर्ट जारी की थी।

  • रिपोर्ट में कहा गया था कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये पूंजी के प्रमुख स्रोत हैं, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण और परेशानी मुक्त निवेश अनुभव सुनिश्चित किया जाना चाहिये। साथ ही आर्थिक नियमों के प्रस्तुतिकरण के साथ-साथ पारदर्शिता में सुधार पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • इस पृष्ठभूमि के आलोक में समूह के प्राथमिक उद्देश्य विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ढाँचे का उदारीकरण, समेकन, सरलीकरण एवं युक्तिकरण था।

प्रमुख सिफारिशें

  • भारतीय बाज़ार में विदेशी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिये नियमों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये। इसके लिये समूह ने सरलीकृत पंजीकरण प्रक्रिया के साथ-साथ निवेशकों हेतु तीव्र बोर्डिंग प्रक्रिया (Boarding Procedure) का प्रस्ताव दिया है।
  • समूह ने श्रेणी I के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के पंजीकरण, अपारदर्शी संरचना को हटाने और उचित रूप से विनियमित संस्थाओं के लिये विस्तृत परिस्थितियों पर आधारित समीक्षा हेतु पेंशन फंडों पर विचार करने की सिफारिश की है।
  • समूह ने कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों में निवेश के लिये सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds-SWFs) पर प्रतिबंध, ऑफ-मार्केट लेनदेन (Off-Market Transactions) के लिये FPI की अनुमति और FPI में विदेशी निवेश हेतु निषिद्ध क्षेत्रों की समीक्षा के लिये एक उदार निवेश स्तर (Liberalised Investment Cap) का प्रस्ताव किया है।
  • समिति ने FPI और वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Funds-AIFs) के लिये विनियमों के संयोजन एवं एफपीआई नियमों तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (Foreign Exchange Management Act-FEMA) में निवेश प्रतिबंधों को लेकर सामंजस्य बनाने का भी प्रस्ताव किया है।
  • म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में FPI निवेश पर प्रतिबंध के संदर्भ में समूह ने विचार-विमर्श किये जाने की सिफारिश की है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश किसी देश में धनराशि की प्रविष्टि का वह तरीका है जिसमें किसी भी देश का नागरिक किसी अन्य देश के बैंक में धन जमा करता है या दूसरे देशों  के स्टॉक और बॉण्ड बाज़ारों में खरीदारी करता है।

FPIs क्यों महत्वपूर्ण है?

  • FPI इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे भारतीय शेयर बाज़ारों के लिये प्रमुख निवेशक रहे हैं।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की श्रेणियाँ

  • श्रेणी I (कम जोखिम): इसमें सरकार और विदेशी केंद्रीय बैंक, सॉवरिन वेल्थ फंड, बहुपक्षीय संगठन आदि शामिल होंगे।
  • श्रेणी II: इसमें बड़े पैमाने पर विनियमित संस्थान, व्यक्ति, व्यापक आधार वाली निधि (Broad-Based Funds) और विश्वविद्यालय, पेंशन एवं बंदोबस्ती निधि शामिल हैं।
  • श्रेणी III (उच्च जोखिम): इसमें वे FPIs शामिल होंगे जो उक्त दोनों श्रेणियों में शामिल होने के योग्य नहीं हैं।

वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund-AIF)

  • AIFs किसी ट्रस्ट या कंपनी या कॉर्पोरेट निकाय या LLP (Limited Liability Partnership) के रूप में निजी तौर पर जमा किये गए निवेश फंड हैं, जिन्हें वर्तमान में सेबी के किसी भी विनियमन द्वारा कवर नहीं किया जाता है और न ही ये किसी अन्य के प्रत्यक्ष विनियमन (IRDA, PFRDA, RBI में सेक्टोरल रेगुलेटर) के तहत आते हैं।
  • अतः भारत में AIFs निजी फंड हैं जो भारत में किसी भी नियामक एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।
  • AIF की श्रेणियाँ:
  • श्रेणी I AIF: वे AIF जो आमतौर पर स्टार्ट-अप या प्रारंभिक चरण के उपक्रमों में निवेश करते हैं जिन्हें सरकार या नियामक सामाजिक या आर्थिक रूप से वांछनीय मानते हैं। जैसे- वेंचर कैपिटल फंड (एंजेल फंड्स सहित), एसएमई फंड्स।
  • श्रेणी II AIF: ये AIF श्रेणी I और III में शामिल नहीं होते हैं और ये AIF  सेबी (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 द्वारा अनुमति प्राप्त दिन-प्रतिदिन की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा लाभ अर्जित करने या उधार लेने का कार्य नहीं करते हैं। जैसे- रियल एस्टेट फंड, निजी इक्विटी फंड।
  • श्रेणी III AIFs: ये विविध या जटिल व्यापारिक रणनीतियों को रोज़गार प्रदान करते हैं और सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध डेरिवेटिव में निवेश के माध्यम से लाभ उठा सकते हैं। जैसे- हेज फंड, पब्लिक इक्विटी फंड में निजी निवेश।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • इसके मुख्य कार्य हैं-
  • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
  • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।

भारत द्वारा मित्र देशों को हथियारों की बिक्री में तेज़ी लाने के लिये प्रक्रिया में ढील

चर्चा में क्यों?

भारत ने बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, अफगानिस्तान, म्याँमार और अन्य मित्र देशों को सैन्य उपकरणों की बिक्री में तेज़ी लाने के लिये एक नई प्रणाली को अंतिम रूप दिया है जो कि अमेरिका की फॉरेन मिलिट्री सेल्स (Foreign Military Sales-FMS) कार्यक्रम के समान है।

प्रमुख बिंदु

विदेश मंत्रालय के अनुसार, नई मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure-SOP) जिसे विदेश मंत्रालय के साथ परामर्श के बाद अंतिम रूप दिया गया है, मित्र देशों के लिये विस्तारित रक्षा LoCs (Lines of Credits) के उपयोग की गति को बढ़ाएगी।

  • यह न केवल भारत को हथियारों के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करेगी, जो अब तक लगभग नगण्य है, बल्कि हथियार आपूर्ति के मामले में चीन जैसे तीसरे पक्ष द्वारा बांग्लादेश, श्रीलंका और म्याँमार में आपूर्ति को रोकने की कोशिश को भी नाकाम करेगी।
  • नई SOP के तहत भारतीय रक्षा कंपनियाँ अब उन उत्पादों की कीमतों के संदर्भ में "सीधे बोली" लगा सकेंगी। इससे पहले यह प्रक्रिया काफी बाधित होती थी।
  • नए SOP का उद्देश्य वार्ता और मूल्य खोज प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम करना है। भारत, निश्चित रूप से हथियारों के निर्यात के मामले में चीन से बराबरी की उम्मीद नहीं कर सकता।

वैश्विक परिदृश्य

  • अमेरिका, रूस, फ्रांस और जर्मनी के बाद चीन दुनिया का पाँचवा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक के रूप में उभरा है। चीन ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन और उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी पर अपना ध्यान केंद्रित कर इस स्थान को प्राप्त किया है।
  • चीन के सबसे बड़े हथियार ग्राहक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अल्जीरिया हैं ढाका को भी चीन हथियारों की आपूर्ति करता है।
  • भारत ने अपने अधिकांश हथियार अमेरिका से उसके FMS कार्यक्रम के माध्यम से खरीदे हैं, उदाहरण के लिये सी -17 ग्लोबमास्टर- III स्ट्रेटेजिक एयरलिफ्टर्स, सी -130 जे "सुपर हरक्यूलिस" विमान और एम -777 अल्ट्रालाइट हॉवित्जर।
  • भारत जटिल वैश्विक निविदा प्रक्रिया की तुलना में FMS मार्ग को बहुत अधिक बेहतर मानता है क्योंकि पूर्व प्रणाली के तहत निविदा प्रक्रिया पूरी होने में कई साल लगते थे और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बनी रहती थी।

FMS प्रोग्राम

  • फॉरेन मिलिट्री सेल्स (Foreign Military Sales-FMS) कार्यक्रम शस्त्र निर्यात नियंत्रण अधिनियम (Arms Export Control Act-AECA) द्वारा अधिकृत सुरक्षा सहायता का एक रूप है और अमेरिकी विदेश नीति का एक बुनियादी हिस्सा है।
  • AECA की धारा 3 के तहत जब अमेरिकी राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि अमेरिका की सुरक्षा और विश्व शांति आवश्यक है तब अमेरिका अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को रक्षा उपकरणों और सेवाओं को बेच सकता है।
  • FMS के तहत अमेरिकी सरकार और किसी अन्य देश की सरकार के बीच एक समझौता किया जाता है जिसे लेटर ऑफ ऑफर एंड एक्सेप्टेंस (Letter of Offer and Acceptance-LOA) कहा जाता है।

निष्कर्ष

भारत के पास अभी भी एक मजबूत रक्षा उत्पादन क्षेत्र नहीं है। भारत के पास कुछ हथियार प्रणालियाँ हैं जैसे- रूस के सहयोग से निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें तथा सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली आकाश, हल्के लड़ाकू विमान तेज़स और उन्नत हेलीकॉप्टर ध्रुव आदि हैं, जिन्हें अन्य देशों में सफलतापूर्वक निर्यात किया जा सकता है।


‘क्राइस्टचर्च कॉल’ से जुड़ा भारत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ (Christchurch Call) पहल से जुड़ गया है। गौरतलब है कि ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ का उद्देश्य इंटरनेट से आतंकवाद और चरमपंथ से संबंधित हिंसात्मक सामग्रियों को हटाना है।

प्रमुख बिंदु

  • न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री, जैकिंडा अर्डर्न (New Zealand Prime Minister Jacinda Ardern) और फ्राँसीसी राष्ट्रपति, इमैनुएल मैक्रोन (French President Emmanuel Macron) ने तकनीकी क्षेत्र के प्रमुखों और दुनिया भर की सरकारों का ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ अपनाने हेतु आह्वान किया था।
  • ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ को अपनाते हुए दुनिया भर की कई सरकारों और साथ ही बड़ी तकनीकी कंपनियों ने मिलकर आतंकवाद और चरमपंथ से संबंधित हिंसात्मक सामग्रियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई।

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  • इस सम्मलेन में ब्रिटेन, फ्राँस, कनाडा,आयरलैंड, सेनेगल, इंडोनेशिया,जोर्डन एवं यूरोपियन यूनियन के नेताओं के साथ ही बड़ी तकनीकी कंपनियाँ जैसे- ट्विटर, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि शामिल हुए।

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  • भारत की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) के सचिव अजय प्रकाश साहनी ने इस सम्मलेन में भाग लिया।

पृष्ठभूमि

  • 15 मार्च, 2019 को दुनिया ने आतंकवाद का एक भयावह रूप देखा जिसमें न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में दो मस्जिदों पर हुए एक आतंकवादी हमले को 17 मिनट तक फेसबुक समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाइव दिखाया गया था। गौरतलब है कि इस हमले में 51 लोग मारे गए और 50 घायल हुए हो गए थे।
  • ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ पहल 15 मार्च को मस्जिदों पर हुए इन भयावह हमलों की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर ही तैयार की गई जिसका उद्देश्य चरमपंथियों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग को रोकना है।
  • ऐसी हिंसक सामग्रियों से प्रेरित होकर श्रीलंका के चर्च में ईस्टर रविवार (Easter Sunday) की प्रार्थना के दौरान आतंकी हमले किये गए।

‘क्राइस्टचर्च कॉल’ दस्तावेज़ में शामिल प्रतिबद्धताएँ

  • सरकारों से अपेक्षित प्रतिबद्धताएँ
  • शिक्षा एवं अन्य महत्त्वपूर्ण माध्यमों की सहायता से आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के कारकों से निपटना।
  • उपयुक्त कानूनों का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करना।
  • नैतिक मानकों को लागू करने हेतु मीडिया आउटलेट को प्रोत्साहित करना।
  • उचित कार्रवाई पर विचार करना इत्यादि।
  • ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं से अपेक्षित प्रतिबद्धताएँ
  • सामुदायिक मानकों या सेवा की शर्तों (Community Standards or Terms of Service) को लागू करने हेतु अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • ‘रियल टाइम समीक्षा हेतु हिंसक सामग्री की पहचान’ करना।
  • लाइवस्ट्रीमिंग के माध्यम से आतंकवाद और चरमपंथ से संबंधित हिंसात्मक सामग्री को प्रसारित करने से उत्पन्न विशिष्ट जोखिम को कम करने के लिये तत्काल प्रभावी उपायों को लागू करना।
  • नियमित और पारदर्शी सार्वजनिक रिपोर्टिंग व्यवस्था लागू करना।
  • एल्गोरिदम और अन्य प्रक्रियाओं के संचालन की समीक्षा करना जो उपयोगकर्त्ताओं का ध्यान आतंकवाद और चरमपंथ से संबंधित हिंसात्मक सामग्री की ओर ले जाते हैं।
  • क्रॉस-इंडस्ट्री प्रयासों को समन्वित और मज़बूत बनाने हेतु एक साथ काम करना।

निष्कर्ष

  • ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ इस धारणा पर आधारित है कि एक मुक्त, पारदर्शी और सुरक्षित इंटरनेट समाज को असाधारण लाभ प्रदान करता है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है किंतु किसी को भी आतंकवाद और चरमपंथ से संबंधित हिंसात्मक सामग्री बनाने और उसे ऑनलाइन साझा करने का अधिकार नहीं है।
  • वास्तव में, क्राइस्टचर्च कॉल फॉर एक्शन एक दुर्लभ उदाहरण है जिस पर सरकारों और निजी क्षेत्र ने एकसमान प्रतिज्ञा ली है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


फेस ऑफ़ डिजास्टर्स 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (Sustainable Environment and Ecological Development Society-SEEDS) ने फेस ऑफ डिजास्टर्स 2019 (Face of Disasters 2019) नामक रिपोर्ट प्रकाशित की। SEEDS द्वारा अपनी 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर जारी की गई इस रिपोर्ट में आपदाओं के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्रदान करने के लिये व्यापक दृष्टिकोण के साथ अतीत के रुझानों का विश्लेषण किया गया है।
इस रिपोर्ट में आठ प्रमुख क्षेत्रों का जिक्र किया गया है जिन पर विचार करना आवश्यक है। ये क्षेत्र हैं-

  1. जल तथा आपदा जोखिम की बदलती प्रकृति: वर्षा में एक नई तथा सामान्य परिवर्तनशीलता के कारण किसी स्थान पर बहुत कम तो किसी स्थान पर बहुत अधिक वर्षा जैसी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।
  2. कोई भी आपदा ‘प्राकृतिक’ नहीं है: कुछ आपदाएँ ऐसी होती हैं जो स्पष्ट रूप से सामने नहीं होती लेकिन किसी भी समय आ सकती हैं क्योंकि ये 'प्राकृतिक आपदा की अवधारणा’ को पूरा नहीं करती हैं।
  3. मूक घटनाएँ: जो आपदाएँ अनदेखी होती हैं, वे लोगों के समक्ष और भी अधिक जोखिम लेकर आती हैं।
  4. स्थल का जल (और जल का स्थल) में परिवर्तन: समुद्र तट में परिवर्तन पहले से ही आजीविका के स्रोतों को प्रभावित कर रहा है तथा भविष्य में इसके कारण और अधिक सुभेद्यता/संवेदनशीलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  5. आपदा प्रभाव की जटिलता: आधिकारिक 'नुकसान' से परे, इन दीर्घकालिक और अनपेक्षित आपदाओं के परिणाम प्रभावित समुदायों के जीवन को बदलने वाले होते हैं।
  6. शहरी अनिवार्यता: ये जोखिम तेज़ी से शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं और सभी को प्रभावित करेंगे।
  7. तीसरे ध्रुव में रूपांतरण: हिमालयी ग्लेशियर के पिघलने से पूरे क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
  8. जिसे देख नहीं सकते उसके लिये योजना बनाना: भूकंप की संभावनाएँ अक्सर बनी रहती हैं जिनके बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन क्या भूकंप जैसी आपदा का सामना करने के लिये हम तैयार हैं?

चिंताएँ

  • ग्रीष्म लहर (Heat Waves) और सूखे की स्थिति जो पहले से ही विद्यमान है के साथ-साथ वर्ष 2019 में असामान्य रूप से बाढ़ आएगी।
  • केवल एक ही वृहद् आपदा अभी तक हुए विकास को समाप्त कर सकती हैं और बार-बार आने वाली छोटे पैमाने की आपदाएँ कमज़ोर परिवारों को गरीबी के चक्र में बनाए रख सकती हैं।
  • हालाँकि विभिन्न घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं का यह स्वरुप/पैटर्न हर साल दोहराया जाता है लेकिन इनमें से केवल कुछ ही घटनाएँ ऐसी होती हैं जो वास्तव में जनता का ध्यान आकर्षित करती हैं। कुछ अन्य प्रकार के जोखिम भी हैं जो लोगों का ध्यान तो आकर्षित नहीं करते लेकिन लोगों की नज़रों से परे ये सशक्त होते रहते हैं तथा अचानक सामने आते हैं।

भारत में प्राकृतिक आपदाएँ

  • वर्ष 2018 में, भारत में एक बड़े भूकंप और इससे संबंधित घटनाओं को छोड़कर लगभग हर प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुईं।
  • बाढ़, सूखा, ग्रीष्म और शीत लहरें, बिजली गिरने की घटनाएँ, चक्रवात और यहाँ तक कि ओलावृष्टि जैसी आपदाओं की एक विस्तृत श्रृंखला ने देश को सबसे अधिक प्रभावित किया।
  • ये घटनाएँ कुछ महत्त्वपूर्ण सवालों और मुद्दों को प्रस्तुत करती है साथ ही भविष्य में आने वाली आपदाओं की ओर भी इशारा करती हैं।
  • निष्कर्ष
  • वर्तमान प्रवृत्ति आपदाओं के विभिन्न पहलुओं और इनकी जटिलताओं की पुष्टि करते हैं।
  • भविष्य में इन आपदाओं या जोखिमों का सामना करने के लिये स्पष्ट रूप से जोखिमों की व्यापक समझ और अति-स्थानीयकृत योजनाएँ तथा उन्हें कम करने के लिये संसाधनों के आवंटन की आवश्यकता है।

सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (SEEDS)

  • यह एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक संगठन है, जो विकास से संबंधित क्षेत्रों आए युवा पेशेवरों का एक सामूहिक प्रयास है।
  • इसके उत्पत्ति समान विचारों वाले व्यक्तियों के एक अनौपचारिक समूह के रूप में हुई जो शैक्षणिक हित के लिये रचनात्मक अनुसंधान परियोजनाओं के उद्देश्य से एक साथ आए।
  • यह सामुदायिक विकास, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण योजना, परिवहन योजना और शहरी तथा क्षेत्रीय योजनाओं से संबंधित अनुसंधान गतिविधियों में शामिल है। ये गतिविधियाँ सरकारी, अर्द्ध-सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों की ओर से की जाती हैं।

पेगासस

चर्चा में क्यों?

तकनीकी दस्तावेज़ ‘पेगासस’ यानी Phycomorph European Guidelines for a Sustainable Aquaculture of Seaweeds (PEGASUS), यूरोपीय समुद्री शैवाल उत्पादन की वर्तमान स्थिति की विशेषताओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। साथ ही यह इस श्रृंखला के विभिन्न स्तरों के संदर्भ में अल्पकालिक और दीर्घकालिक सुधारों की सिफारिशों को भी प्रस्तुत करता है।

  • फियोमॉर्फ़ (Phycomorph) अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है, जो वृहद् विकास से संबंधित एक या कई मुद्दों को संबोधित करता है। नेटवर्क की गतिशीलता यूरोप में स्थायी समुद्री शैवालों की जलीय कृषि के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु तकनीकी कौशल में हुई हालिया प्रगति और अनुभव को साझा करने के लिये नियमित बैठकों और छात्र एक्सचेंज कार्यक्रमों पर आधारित है।
  • PHYCOMORPH का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म शैवालों के प्रजनन और विकास के बुनियादी ज्ञान में यूरोपीय अनुसंधान परिदृश्य को एकजुट कर सक्षम बनाना है।
  • समुद्री शैवाल, बहुकोशिकीय जीव होते हैं जो मुख्य रूप से समुद्री या मीठे पानी में पाए जाते हैं (कुछ स्थायी रूप से पानी से बाहर रहते हैं)।
  • समुद्री शैवाल पौधों की तरह वे जीव होते हैं जो तटीय पारिस्थितिक तंत्र में महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकीय भूमिका निभाते हैं। ये भविष्य के लिये संभावनापूर्ण जैव संसाधन हैं क्योंकि दुनिया भर में उच्च मूल्य वाले समुद्री शैवाल-व्युत्पन्न यौगिकों (सौंदर्य प्रसाधन, भोजन) की मांग में निरंतर इज़ाफा हो रहा है।
  • पौधों की तरह ये पानी में घुली वायुमंडलीय कार्बन के विघटन हेतु प्रकाश का उपयोग करते हैं। सूक्ष्म शैवाल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे शक्तिशाली कार्बन-स्थिरीकरण वाले जीवों में से हैं। इनका आकार कुछ मिलीमीटर से लेकर 50 मीटर तक होता है।

समुद्री शैवालों की जलीय कृषि का महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा: वर्ष 2050 तक खाद्य जैव संसाधनों पर 9 अरब लोगों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने का भार होगा।
  • समुद्री शैवालों की जलीय कृषि पोषण, स्वास्थ्य और स्थायी जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में सहायक साबित हो सकती है।
  • पर्यावरण संरक्षण: यह खाद्य श्रृंखला, तटों की अपरदन से संरक्षण, नाइट्रोजन या फॉस्फेट और CO2 प्रच्छादन जैसे संभावित प्रदूषकों को नष्ट करने में सहायता करेगी।

दवा और चिकित्सकीय अनुप्रयोग:

  • विभिन्न सूक्ष्म शैवालों के जीवाणुरोधी (Antibacterial) और कवकरोधी (Antifungal) प्रभावों को चिह्नित किया गया है।
  • इसमें कैंसर के संभावित इलाज हेतु संभावनाजनक यौगिक पाए जाते हैं। यह मानव की कैंसर श्रृंखला के विरुद्ध एक शक्तिशाली साइटोटोक्सिक (Cytotoxic) गतिविधि (सेल के विकास और गुणन में अवरोध) को दर्शाता है।
  • यह वयस्क टी-सेल ल्यूकेमिया (Adult T-cell leukaemia-ATL) के विरुद्ध चिकित्सा संबंधी उपकरणों के रूप में भी उपयोगी हो सकता है।
  • इसका उपयोग एंटी-ऑक्सीडेंट (Anti-Oxidant) और एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatory) एजेंट के रूप में भी किया जा सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: स्थलीय मूल के ईंधनों की तुलना में शैवाल जैव ईंधन के तौर पर एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं, इनमें उच्च ऊर्जा, तेज़ी से विकसित होने की क्षमता और स्थलीय जैव ईंधन के प्रतिस्पर्द्धी होने के बजाय उनके पूरक के रूप में व्यवहार करने की क्षमता अंतर्निहित होती है।
  • प्रसाधन उत्पाद: शैवालों में पाई जाने वाली वसा (lipid) के कारण इनका उपयोग तेलों के उत्पादन हेतु किया जा सकता है, ये कॉस्मेटिक उत्पादों के निर्माण हेतु उत्कृष्ट विकल्प हैं।
  • रोज़गार सृजन: शैवाल उद्योग अनुसंधान से लेकर इंजीनियरिंग तक, विनिर्माण से लेकर कृषि और विपणन से लेकर वित्तीय सेवाओं तक कई प्रकार के रोज़गार के अवसरों का सृजन करने में सक्षम हैं।

भारत में समुद्री शैवाल का निर्माण

  • सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Marine Fisheries Research Institute-CMFRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल केवल 30 मिलियन टन समुद्री शैवाल (जिनका बाज़ार मूल्य €8 बिलियन है) का उपयोग किया जाता है।
  • भारत में  तमिलनाडु, गुजरात के तटों और लक्षद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीपों के आसपास बहुतायत में समुद्री शैवाल पाए जाते हैं।
  • भारतीय तट के अंतर-ज्वारीय और गहरे जल क्षेत्रों में समुद्री शैवाल की लगभग 700  प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 60 प्रजातियाँ व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।

एवरेस्ट पर लंबी कतार: पर्वतारोहियों के लिये नई चुनौती

चर्चा में क्यों?

हाल ही में माउंट एवरेस्ट पर तीन और भारतीय पर्वतारोहियों की मौत की खबर सामने आई। पर्वतारोहण के दौरान शीत-लहर एवं ऑक्सीजन की कमी की समस्या के साथ-साथ पर्वतारोहियों को लंबी कतार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसने यात्रा की कठिनाइयों और बढ़ा दिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • अत्यधिक ऊँचाई (High Altitude) पर ऑक्सीजन की कमी के कारण बेहोश हो जाना और लंबी कतार के कारण अपने शिविर में लौटने के लिये घंटों प्रतीक्षा करना मृत्यु की मुख्य वज़ह है। लंबी प्रतीक्षा अवधि के दौरान पर्वतारोहियों के समक्ष अपने ऊर्जा स्तर (Energy Level) को बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
  • वर्ष 2017 में भी इसी प्रकार के जाम की घटना के कारण यात्रियों को अपने कैंप में वापस लौटने में करीब 3 घंटे की देरी हुई। इस विलंब की वज़ह से कुछ यात्रियों की मृत्यु की घटना भी सामने आई।
  • माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) नेपाल और चीन के स्वायत्त क्षेत्र (Autonomous Region of China) तिब्बत की सीमा पर स्थित है। 8,850 मीटर की ऊँचाई के साथ यह दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है।
  • दक्षिणी नेपाल की ओर अंतिम पर्वत श्रृंखला पर केवल एक स्थायी रस्सी है, प्रत्येक पर्वतारोही इसी रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ता है। जब यहाँ भीड़ ज़्यादा हो जाती है, तो लोगों की दो लाइनें तैयार की जाती हैं- एक ऊपर की ओर और दूसरी शिखर से नीचे की ओर।
  • 'ट्रैफिक जाम' (Traffic jam) की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब कई पर्वतारोही एक ही समय में शिखर की चढ़ाई कर रहे होते है, विशेष रूप से 8,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर यह और भी खतरनाक हो सकता हैं, इसे 'मृत्यु क्षेत्र' (Death Zone) के रूप में जाना जाता है।
  • थके हुए पर्वतारोहियों को अक्सर एक ही रस्सी पर चढ़ने या उतरने के लिये कई घंटों तक अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है, जिससे थकावट, शीतदंश या ऊँचाई पर कमज़ोरी (Altitude Sickness) आदि की समस्या बढ़ जाती है। कई बार यात्रा के अंतिम चरण में पर्वतारोहियों को ऑक्सीजन सिलिंडर खत्म होने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता हैं।

एवरेस्ट पर अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या

  • एवरेस्ट के शिखर तक पहुँचने का मार्ग दुरूह एवं जोखिम भरा है परंतु लंबी कतार की इस समस्या ने मार्ग की कठिनाइयों में अतिरिक्त वृद्धि कर दी है। हालाँकि कठिनाइयों में वृद्धि के बावजूद पर्वतारोहियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और एवरेस्ट पर बढ़ती इस भीड़ के कारण अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या उत्पन्न हो गई है।
  • वर्ष के जिस समय में पर्वतारोहियों की आवाज़ाही अपने चरम पर होती है उस समय वहाँ अपशिष्ट पदार्थों जैसे-ऑक्सीजन के खाली सिलिंडर, खाने के खाली पैकेट, टूटे हुए तंबू/शिविर (Tent), बैट्री इत्यादि बड़ी मात्रा में एकत्र हो जाते हैं जो निरंतर चलने वाले इन अभियानों के लिये खतरों में वृद्धि कर देते हैं।
  • नेपाल की सरकार ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर एवेरस्ट पर बढ़ती अपशिष्ट समस्या के निपटान हेतु कदम भी उठाए हैं। इन संगठनों की सहायता से अभी तक लगभग 1.5 टन अपशिष्ट का निपटान किया गया है।

स्रोत: हिन्दुस्तान टाइम्स


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (25 May)

  • सार्वजनिक क्षेत्र के तेल और गैस उपक्रमों के बीच सामंजस्य बनाने के लिये कार्ययोजना तैयार करने से जुड़े मुद्दों की जाँच, कर मामलों और सार्वजनिक क्षेत्र के तेल एवं गैस उपक्रमों द्वारा GST से लाभ लेने के तरीकों के संबंध में सरकार द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। इस उच्चस्तरीय समिति में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोदकर तथा वित्तीय और कर मामलों के विशेषज्ञ सिद्धार्थ प्रधान शामिल थे। इन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के तेल और गैस उपक्रमों तथा संयुक्त उद्यमों के विलय, अधिग्रहण और एकीकरण; तेल सेवाएँ देने वाली नई कंपनी के गठन तथा दुनिया भर में तेल एवं गैस क्षेत्र के लिये योग्य मानवशक्ति देने की आवश्यकता और संभावना का पता लगाया। 2018 के दौरान भारत की कच्चे तेल और LNG के आयात पर निर्भरता क्रमशः 82.59% और 45.89% प्रतिशत थी। इसी अवधि में भारत का पेट्रोलियम आयात 7028.37 अरब रुपए का था, जो देश के कुल सकल आयात 30010.2 अरब रुपए का 23.42% था।
  • भारत और म्याँमार के बीच 8वें समन्वित गश्त (IMCOR) अभियान की शुरुआत हुई। इसमें हिस्सा लेने के लिये म्यांमार नौसेना के जहाज़ज UMS किंग टेबिन-श्वेलएचटी (773) और UMS इनले (OPV-54) पोर्ट ब्लेयर में अंडमान और निकोबार कमान पहुँचे। ये जहाज़ 20 से 28 मई तक  भारतीय नौसेना के जहाज़ ‘सरयू’ के साथ समन्वित गश्त करेंगे। दोनों नौसेनाओं से समुद्री पैट्रियन एयरक्राफ्ट द्वारा गश्त के प्रयास को बढ़ावा देंगी। इस पहल का उद्देश्य दोनों नौसेनाओं द्वारा आतंकवाद, अवैध तरीके से मछली पकड़ने, मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी, अवैध शिकार और अन्य अवैध गतिविधियों से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना है।
  • 20 मई को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने अपना 10वाँ वार्षिक दिवस मनाया, जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के व्यापक प्रवर्तन प्रावधानों की अधिसूचना जारी होने को दर्शाता है। प्रतिस्पर्द्धा-रोधी करारों (जिनसे भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है अथवा प्रभाव पड़ने की संभावना हो सकती है), उद्यमों द्वारा प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग को रोकने तथा ऐसे संयोजनों को विनियमित करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 बनाया गया। इस अधिनियम के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का गठन केंद्र सरकार ने 14 अक्तूबर, 2003 को किया। भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष तथा 6 सदस्य होते हैं। आयोग का कर्त्तव्य प्रतिस्पर्द्धा पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव वाले व्यवहारों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना तथा उसे सतत्रूप से बनाए रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना और भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक भारतीय सहित 119 शांति रक्षकों को उनकी वीरता और बलिदान के लिये UN मेडल से सम्मानित किया जाएगा। भारत के पुलिस अफसर जितेंद्र कुमार को यह मेडल मरणोपरांत दिया जाएगा। जितेंद्र कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के दौरान शहीद हो गए थे। संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस के मौके पर जितेंद्र कुमार समेत 119 शांति रक्षकों को डग हैमरशोल्ड मेडल से नवाज़ा जाएगा। इस समारोह में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस भी हिस्सा लेंगे। शहीद जितेंद्र की ओर से यह मेडल संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी दूत सैयद अकबरुद्दीन प्राप्त करेंगे। ज्ञातव्य है कि शांति रक्षकों की वीरता और अदम्य साहस के लिये यह सम्मान संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन में भागीदारी के लिहाज़ से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। पिछले 70 वर्षो में विभिन्न UN मिशनों के दौरान 163 भारतीय शांति रक्षक शहीद हो चुके हैं।
  • 24 मई को नई दिल्ली में ’वीर नारियों’ के लिये सहारा नौसेना होस्टल का उद्घाटन किया गया। भारतीय नौसेना द्वारा नौसेना की 'वीर नारियों’ के लिये यह विशेष परियोजना शुरू की गई है। इस परियोजना का निर्माण नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (National Buildings Construction Corporation-NBCC) के साथ कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility-CSR) की साझेदारी में किया गया है। यह होस्टल नौसेना की वीर नारियों के पुनर्वास की दिशा में लंबे समय से अनुभव की जा रही ज़रूरत का समाधान करेगा और वीर नारियों को एक संरक्षित और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराएगा, जिससे उनके जीवन को नए सिरे से शुरू करने में मदद मिलेगी।