इन्फोग्राफिक्स


शासन व्यवस्था
NGO का FCRA पंजीकरण रद्द करना
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, NGO, कंपनी अधिनियम, 2013, भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, NGO-दर्पण प्लेटफॉर्म। मेन्स के लिये:भारत में गैर सरकारी संगठनों का विनियमन, FCRA के प्रमुख प्रावधान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
दो प्रमुख गैर-सरकारी संगठनों (NGO)- सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) और वर्ल्ड विज़न इंडिया (WVI) के लिये विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 (FCRA) पंजीकरण रद्द किये जाने से भारत में विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने वाले नियामक परिदृश्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
CPR और WVI के पंजीकरण रद्द करने का क्या कारण है?
- गृह मंत्रालय के अनुसार CPR ने विकास परियोजनाओं के विरुद्ध कानूनी चुनौतियाँ प्रस्तुत करने तथा भारत में विरोध प्रदर्शनों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान कर भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये विदेशों से प्राप्त अंशदान का दुरुपयोग किया है।
- उदाहरण के तौर पर वायु प्रदूषण पर CPR की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आरोप में करेंट अफेयर्स कार्यक्रमों के उत्पादन के माध्यम से FCRA मानदंडों का उल्लंघन शामिल है।
- गृह मंत्रालय का दावा है कि विदेशी फंड से ऐसे कार्यक्रम प्रकाशित करना FCRA की धारा 3 का उल्लंघन है।
- उदाहरण के तौर पर वायु प्रदूषण पर CPR की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आरोप में करेंट अफेयर्स कार्यक्रमों के उत्पादन के माध्यम से FCRA मानदंडों का उल्लंघन शामिल है।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2012-13 से 2020-21 तक कथित FCRA उल्लंघन के लिये वर्ल्ड विज़न इंडिया का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था।
- वर्ष 1986 में अधिनियम के तहत पंजीकृत सभी गैर सरकारी संगठनों के बीच WVI सबसे अधिक विदेशी दान प्राप्तकर्त्ता है।
FCRA क्या है?
- परिचय:
- विदेशी सरकारों द्वारा भारत के आंतरिक मामलों को प्रभावित करने के लिये स्वतंत्र संगठनों की सहायता से किये जाने वाले वित्तपोषण की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए FCRA को वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
- इसे एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के सिद्धांतों के साथ संरेखित करते हुए आंतरिक सुरक्षा पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिये विदेशी अंशदान को विनियमित करने हेतु डिज़ाइन किया गया था।
- FCRA का विकास:
- 2010 संशोधन: विशिष्ट व्यक्तियों अथवा संघों द्वारा विदेशी अंशदान की स्वीकृति तथा उपयोग को नियंत्रित करने वाले नियमों को सुव्यवस्थित करने एवं राष्ट्रीय हितों के लिये हानिकारक गतिविधियों की रोकथाम हेतु संबद्ध योगदान को प्रतिबंधित करने के लिये इसे अधिनियमित किया गया था।
- 2020 संशोधन:
- संबद्ध गैर सरकारी संगठनों (NGO) के सभी प्रमुख पदाधिकारियों को पहचान के प्रमाण के रूप में आधार नंबर उपलब्ध कराना होगा तथा केवल भारतीय स्टेट बैंक के साथ नामित FCRA बैंक खातों के माध्यम से विदेशी अंशदान की प्राप्ति की जा सकेगी।
- विदेशी अंशदान के घरेलू अंतरण पर पूर्ण प्रतिबंध।
- प्रशासनिक व्यय सीमा को 50% से घटाकर 20% किया गया।
- प्रयोज्यता: FCRA विदेशी अंशदान प्राप्त करने के इच्छुक सभी संघों, समूहों तथा गैर सरकारी संगठनों के लिये पंजीकरण अनिवार्य करता है।
- निर्धारित मानदंडों के अनुपालन करने पर इसके नवीनीकरण की संभावना के साथ प्रारंभ में इसे 5 वर्षों के लिये वैध किया गया था।
- विदेशी अंशदान के उद्देश्य: पंजीकृत संघ सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिये विदेशी अंशदान प्राप्त कर सकते हैं।
- निगरानी/अनुश्रवण प्राधिकरण: गृह मंत्रालय
- वर्ष 2015 में गृह मंत्रालय ने गैर सरकारी संगठनों को वास्तविक समय में सुरक्षा पहुँच के लिये कोर बैंकिंग सुविधाओं वाले बैंकों में खाते संचालित करने का आदेश दिया।
- वर्ष 2023 में MHA ने FCRA-पंजीकृत NGO के लिये नियमों में संशोधन किया जिसके तहत अब उन्हें अपनी वार्षिक विवरणी/रिटर्न में विदेशी अंशदान के उपयोग से सृजित परिसंपत्ति का खुलासा करना आवश्यक हो गया है।
भारत में NGO को कैसे विनियमित किया जाता है?
- परिचय:
- जैसा कि विश्व बैंक द्वारा परिभाषित किया गया है, गैर-सरकारी संगठन उन गैर-लाभकारी संगठनों को संदर्भित करते हैं जो पीड़ा को दूर करने, गरीबों के हितों को बढ़ावा देने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने या सामुदायिक विकास करने के लिये गतिविधियाँ करते हैं।
- हालाँकि, भारत में NGO शब्द संगठनों के एक व्यापक स्पेक्ट्रम को दर्शाता है जो गैर-सरकारी, अर्ध या अर्ध सरकारी, स्वैच्छिक या गैर-स्वैच्छिक आदि हो सकते हैं।
- जैसा कि विश्व बैंक द्वारा परिभाषित किया गया है, गैर-सरकारी संगठन उन गैर-लाभकारी संगठनों को संदर्भित करते हैं जो पीड़ा को दूर करने, गरीबों के हितों को बढ़ावा देने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने या सामुदायिक विकास करने के लिये गतिविधियाँ करते हैं।
- पंजीकरण एवं विनियमन: मुख्यतः NGO कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत ट्रस्ट, सोसायटी या कंपनी के रूप में पंजीकरण कर सकते हैं। पंजीकरण और शासन के लिये प्रत्येक फॉर्म के अपने नियम और विनियम हैं।
- ट्रस्ट: भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 या समकक्ष राज्य कानूनों द्वारा शासित, जिसके लिये चैरिटी आयुक्त के कार्यालय में पंजीकरण की आवश्यकता होती है।
- सोसायटी: सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 या इसके राज्य-विशिष्ट विविधताओं के तहत सोसायटी रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत।
- धारा 8 कंपनियाँ: वाणिज्यिक कंपनियों के समान पंजीकृत लेकिन गैर-लाभकारी उद्देश्यों के साथ।
- NGO-दर्पण प्लेटफॉर्म: यह गैर सरकारी संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/सरकारी निकायों के बीच इंटरफेस के लिये स्थान प्रदान करता है।
- यह सरकार और स्वैच्छिक क्षेत्र के बीच बेहतर साझेदारी लाने और बेहतर पारदर्शिता, दक्षता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के सहयोग से नीति आयोग द्वारा दी जाने वाली एक निःशुल्क सुविधा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. क्या सिविल सोसायटी और गैर-सरकारी संगठन आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिये लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिये। (2021) |
भारतीय इतिहास
पराक्रम दिवस 2024
प्रिलिम्स के लिये:पराक्रम दिवस, भारत पर्व, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार-2024, विवेकानंद की शिक्षाएँ मेन्स के लिये:पराक्रम दिवस 2024, अठारहवीं सदी के मध्य से लेकर वर्तमान का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्ति और मुद्दे |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (Prime Minister- PM) ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाने के लिये लाल किले में आयोजित पराक्रम दिवस (23 जनवरी 2024) समारोह में भाग लिया।
- प्रधानमंत्री ने भारत पर्व (पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित) का भी शुभारंभ किया जो भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने तथा विभिन्न संस्कृतियों को प्रदर्शित करने के लिये आयोजित नौ दिवसीय कार्यक्रम है।
- पराक्रम दिवस के अवसर पर केंद्र ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यक्तियों तथा संगठनों द्वारा दिये गए अमूल्य योगदान का सम्मान करने के लिये सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार-2024 की घोषणा की।
पराक्रम दिवस क्या है?
- भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में वर्ष 2021 से प्रत्येक वर्ष पराक्रम दिवस मनाया जाता है।
- "पराक्रम" शब्द का हिंदी अनुवाद साहस अथवा वीरता होता है जो नेताजी तथा भारत की स्वतंत्रता के लिये लड़ने वालों की प्रबल व साहसी भावना को दर्शाता है।
- समारोह में अमूमन स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका के ऐतिहासिक महत्त्व को उजागर करने वाले विभिन्न कार्यक्रम एवं गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- इस बड़े उत्सव का आयोजन संस्कृति मंत्रालय की ओर से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, साहित्य अकादमी और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार जैसे अपने सहयोगी संस्थानों की सहभागिता में किया गया।
- इस उत्सव के एक हिस्से के तहत इस कार्यक्रम ने गतिविधियों की एक समृद्ध शृंखला की मेज़बानी की जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस तथा आज़ाद हिंद फौज की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करती हैं।
- वर्ष 2022 में नेताजी की 125वीं जयंती को चिह्नित करते हुए इंडिया गेट के समीप नेताजी की प्रतिमा स्थापित की गई जहाँ वर्ष 1968 तक किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा थी।
- 8 सितंबर, 2022 को नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक बड़ी मूर्ति अंततः नेताजी की होलोग्राफिक छवि की जगह ले लेगी।
- वर्ष 2022 में नेताजी की 125वीं जयंती को चिह्नित करते हुए इंडिया गेट के समीप नेताजी की प्रतिमा स्थापित की गई जहाँ वर्ष 1968 तक किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा थी।
सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार क्या है?
- क्षेत्र मान्यता:
- भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्यों को मान्यता देने के लिये सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार की स्थापना की।
- प्रशासित:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गृह मंत्रालय के तहत की गई थी)।
- पुरस्कार:
- इस पुरस्कार की घोषणा प्रतिवर्ष 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर की जाती है।
- प्रमाण-पत्र के अलावा, इन पुरस्कारों में एक संस्थान के लिये 51 लाख रुपए और एक व्यक्ति के लिये 5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
- संस्थान नकद पुरस्कार का उपयोग केवल आपदा प्रबंधन से संबंधित परियोजनाओं के लिये कर सकता है।
- योग्यता:
- इस पुरस्कार के लिये केवल भारतीय नागरिक और भारतीय संस्थान ही आवेदन कर सकते हैं।
- भारत में रोकथाम, शमन, त्वरित बचाव, प्रतिक्रिया, राहत, पुनर्वास, अनुसंधान, नवाचार या पूर्व चेतावनी सहित आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कोई भी अनुभव प्राप्त नामांकित व्यक्ति या संगठन इसके लिये पात्र है।
- SCBAPP- 2024: 60 पैराशूट फील्ड हॉस्पिटल, उत्तर प्रदेश को आपदा प्रबंधन में उत्कृष्ट कार्य के लिये, विशेष रूप से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं एवं संकटों के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिये सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार- 2024 के लिये चुना गया है।
- उत्तराखंड बाढ़ (2013), नेपाल भूकंप (2015) और तुर्की तथा सीरिया भूकंप (2023) जैसी घटनाओं के दौरान अस्पताल के काम को इसकी असाधारण सेवा के उदाहरण के रूप में उजागर किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में शाह नवाज़ खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों किस रूप में याद किये जाते हैं? (2021) (a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में उत्तर: (d) प्रेम कुमार सहगल, शाह नवाज़ खान और गुरबख्श सिंह ढिल्लों इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के दूसरी श्रेणी के कमांडर थे। इन्हें वर्ष 1945 में लाल किले पर अंग्रेज़ों की कोर्ट-मार्शल की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा तथा मृत्यु की सज़ा सुनाई गई। हालाँकि भारत में व्यापक विरोध और अशांति के बाद उन्हें रिहा करना पड़ा। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न 2. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान निम्नलिखित में से किसने 'फ्री इंडियन लीजन' नामक सेना स्थापित की थी? (2008) (a) लाला हरदयाल उत्तर: (c)
अतः विकल्प (c) सही है। मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के लिये संघर्ष में सुभाष चंद्र बोस एवं महात्मा गाँधी के मध्य दृष्टिकोण की भिन्नताओं पर प्रकाश डालिये। (2016) |
भारतीय विरासत और संस्कृति
शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन की 12वीं महासभा, ABCP का मुख्यालय, भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति केंद्र, चार आर्य सत्य, बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग, गौतम बुद्ध मेन्स के लिये:सुशासन के सिद्धांतों और बौद्ध शिक्षाओं का अभिसरण, वर्तमान चुनौतियों से निपटने में बुद्ध की शिक्षाओं का महत्त्व |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एशिया में बौद्ध अनुयायियों के एक स्वैच्छिक जनआंदोलन, शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (Asian Buddhist Conference for Peace- ABCP) ने नई दिल्ली में अपनी 12वीं महासभा का आयोजन किया।
12वीं ABCP महासभा की प्रमुख झलकियाँ विशेषताएँ क्या हैं?
- थीम/विषयवस्तु: ABCP- द बुद्धिस्ट वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ, यह थीम यह भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जैसा कि इसकी G20 अध्यक्षता और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के माध्यम से पता चलता है।
- बुद्ध की विरासत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता: महासभा में भारत को बुद्ध के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित राष्ट्र के रूप में चित्रित किया गया।
- बौद्ध सर्किट के विकास और भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति केंद्र (India International Centre for Buddhist Culture) की स्थापना में भारत की सक्रिय भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
- बुद्ध के प्रभाव की संवैधानिक मान्यता: भारतीय संविधान की कलाकृति में भगवान बुद्ध के चित्रण को महत्त्व दिया गया है, विशेष रूप से भाग V में, जहाँ उन्हें संघ शासन से संबंधित अनुभाग में चित्रित किया गया है।
शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (ABCP) क्या है?
- परिचय: ABCP की स्थापना वर्ष 1970 में मंगोलिया के उलानबटार में बौद्ध धर्म के अनुयायियों [मठवासी (भिक्षुओं) और आम जन दोनों) के एक स्वैच्छिक आंदोलन के रूप में की गई थी।
- तब ABCP भारत, मंगोलिया, जापान, मलेशिया, नेपाल, तत्कालीन USSR, वियतनाम, श्रीलंका, दक्षिण और उत्तर कोरिया के बौद्ध गणमान्य व्यक्तियों के एक सहयोगात्मक प्रयास के रूप में उभरा।
- मुख्यालय: उलानबटार, मंगोलिया में गंडानथेगचेनलिंग (Gandanthegchenling) मठ।
- मंगोलियाई बौद्धों के सर्वोच्च प्रमुख ABCP के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
- ABCP के उद्देश्य:
- एशिया के लोगों के बीच सार्वभौमिक शांति, सद्भाव और सहयोग को मज़बूती प्रदान करने हेतु बौद्ध अनुयायियों के प्रयासों को एक साथ लाना।
- उनकी आर्थिक और सामाजिक उन्नति को प्रोत्साहित करना तथा न्याय एवं मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
- बौद्ध संस्कृति, परंपरा और विरासत का प्रसार करना।
किस प्रकार बौद्ध शिक्षाएँ सुशासन के सिद्धांतों के अनुरूप हैं?
- नीति निर्माण में सम्यक् दृष्टि: विकृति और भ्रम से दूर रहते हुए, सम्यक् दृष्टि पर बुद्ध का ज़ोर, पारदर्शिता, निष्पक्षता तथा साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के सुशासन सिद्धांतों के अनुरूप है।
- उदाहरण के लिये, बौद्ध धर्म के मूल्यों से प्रेरित भूटान का सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक (Gross National Happiness index), केवल आर्थिक संकेतकों से परे सार्वजनिक कल्याण को मापने का उद्देश्य रखता है।
- नेतृत्व में सम्यक् आचरण: बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों– अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और नशा न करना, की व्याख्या सार्वजनिक अधिकारियों के लिये नैतिक दिशा-निर्देशों के रूप में की जा सकती है।.
- करुणाशील शासन: बुद्ध की करुणा की मूल शिक्षा नेतृत्वकर्त्ताओं को केवल कुछ समूहों की नहीं, बल्कि सभी नागरिकों की आवश्यकताओं व पीड़ा पर विचार करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- उदाहरण के लिये, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल या निष्पक्ष कराधान नीतियों जैसी पहल मन में करुणा के साथ शासन करने के प्रयास को दर्शाती हैं।
- संवाद और अहिंसक संघर्ष समाधान: सम्यक् भाषण और सम्यक् कार्रवाई पर बुद्ध का ज़ोर सम्मानजनक संचार एवं संघर्ष के अहिंसक समाधान को बढ़ावा देता है।
- इसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, अंतर-धार्मिक संवाद और यहाँ तक कि आंतरिक राजनीतिक चर्चाओं में भी लागू किया जा सकता है।
बुद्ध की शिक्षाएँ वर्तमान चुनौतियों से निपटने में कैसे मदद कर सकती हैं?
- नैतिक अनिश्चितता के लिये दिशा-निर्देश: नैतिक अनिश्चितता से भरे युग में, बुद्ध की शिक्षाएँ सभी जीवों के लिये स्थिरता/धारणीयता, सरलता, संयम और श्रद्धा का मार्ग प्रदान करती हैं।
- चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग एक परिवर्तनकारी रोडमैप के रूप में कार्य करते हैं, जो व्यक्तियों एवं राष्ट्रों का मार्गदर्शन कर उन्हें आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा की ओर प्रेरित करते हैं।
- विचलित होते विश्व में सचेतना: डिजिटल रूप से निरंतर परिवर्तनशील युग में, बुद्ध का सचेतन मन पर ज़ोर पूर्व की तुलना में कहीं अधिक मार्मिक है।
- ध्यान-योग जैसे अभ्यास हमें सूचना के अधिभार से बाहर निकलने, तनाव को कम करने और बिखरी हुई दुनिया में ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं।
- एक ध्रुवीकृत समाज में करुणा: बढ़ते सामाजिक और राजनीतिक तनाव के साथ, करुणा एवं प्रज्ञा (Understanding) पर बुद्ध की शिक्षाएँ एक महत्त्वपूर्ण प्रतिकार प्रदान करती हैं।
- सभी प्राणियों के बीच अंतर्संबंध को मान्यता देने पर उनका ज़ोर सहानुभूतिपूर्ण संचार और रचनात्मक संघर्ष समाधान को प्रोत्साहित करता है।
- सब कुछ या कुछ भी नहीं संस्कृति में मध्यम मार्ग: भोग और इनकार की चरम सीमा से बचने के लिये बुद्ध की मध्यम मार्ग की अवधारणा, हमारे उपभोक्तावादी समाज में प्रतिध्वनित होती है।
- यह व्यक्तिगत इच्छाओं और उत्तरदायी जीवन के बीच संतुलन स्थापित कर, समुचित उपभोग को प्रोत्साहित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल अति महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिये। (2020) |