डेली न्यूज़ (24 Oct, 2020)



अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

IUCN रेड लिस्ट, प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड

मेन्स के लिये:

हिम तेंदुओं के संरक्षण हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने ‘प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड’ (Project Snow Leopard- PSL) के साथ केंद्र सरकार के अन्य प्रयासों के तहत हिम तेंदुओं के प्रवास क्षेत्र के संरक्षण हेतु सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है। 

हिम तेंदुआ (Snow Leopard): 

  • वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा अनकिया (Panthera uncia)
    • हिम तेंदुआ या ‘स्नो लेपर्ड’ को ‘पहाड़ों का भूत’ (Ghost of the Mountains) भी कहा जाता है, क्योंकि इनके संकोची स्वभाव और खाल के रंग के कारण इन्हें बर्फीले वातावरण में देखना बहुत ही मुश्किल होता है। 
    • हिम तेंदुए उत्तरी और मध्य एशिया के ऊँचे पहाड़ों (हिमालय क्षेत्र सहित) के विशाल क्षेत्र में रहते हैं।
    • हिम तेंदुए भारत सहित विश्व के कुल 12 देशों ( चीन, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, रूस और मंगोलिया आदि) में पाए जाते हैं।

panther

संरक्षण:

चुनौतियाँ: 

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष, शिकार और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप शिकार और प्रवास की हानि आदि हिम तेंदुए के अस्तित्व के लिये प्रमुख खतरे हैं।

 ‘अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस’

(International Snow Leopard Day):   

  • वर्ष 2013 की बिश्केक घोषणा (Bishkek Declaration) के तहत 23 अक्तूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस’ (International Snow Leopard Day) के रूप में अधिसूचित किया गया। 
    • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में 12 स्नो लेपर्ड रेंज देशों (अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कज़ाखस्तान, किर्गिज गणराज्य, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान) द्वारा बिश्केक घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • साथ ही इस अवसर पर ‘वैश्विक हिम तेंदुआ और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण’ (Global Snow Leopard and Ecosystem Protection-GSLEP) कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी।

प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड’ (Project Snow Leopard- PSL):

  • प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड की शुरुआत वर्ष 2009 में देश के पाँच राज्यों (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश) में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य सभी हितधारकों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर देश में तेंदुओं की आबादी और उनके प्रवास क्षेत्र के संरक्षण को बढ़ावा देना है।
  • इस कार्यक्रम के तहत अधिसूचित क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के साथ सार्वजनिक और निजी एजेंसियों के सहयोग से हिम तेंदुओं, उनके आहार तथा प्रवास के संरक्षण, जागरूकता एवं संरक्षण संबंधी कानूनों के व्यापक क्रियान्वयन का प्रयास किया जाता है। 

हिम तेंदुओं के संरक्षण हेतु सरकार के अन्य प्रयास:

  • भारत में हिम तेंदुओं की भौगोलिक सीमा में पश्चिमी हिमालय का एक बड़ा हिस्सा आता है, जिसके अंतर्गत जम्मू -कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड , सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के भू-भाग शामिल हैं। 
  • भारत वर्ष 2013 से ‘वैश्विक हिम तेंदुआ और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण’ (Global Snow Leopard and Ecosystem Protection-GSLEP) कार्यक्रम का सदस्य है।
  • इस कार्यक्रम के तहत विश्व के 12 हिम तेंदुआ रेंज देश शामिल हैं, इन 12 सदस्य देशों द्वारा हिम तेंदुओं की आबादी के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को सुनिश्चित किया  गया है । 
  • केंद्र सरकार द्वारा अक्तूबर 2019 में नई दिल्ली में GSLEP कार्यक्रम की चौथी संचालन समिति की मेज़बानी की गई थी, इस दौरान देश में हिम तेंदुओं की आबादी के आकलन पर पहला राष्ट्रीय प्रोटोकॉल (First National Protocol on Snow Leopard Population Assessment) लॉन्च किया गया।

स्रोत: पीआईबी


FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में पाकिस्तान

प्रिलिम्स के लिये

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स

मेन्स के लिये

मनी लॉड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने में FATF की भूमिका

चर्चा में क्यों?

आतंकवाद के प्रसार हेतु मुहैया कराए जाने वाले धन की निगरानी करने वाली अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force-FATF) ने पाकिस्तान को अगले वर्ष फरवरी माह तक ‘ग्रे’ लिस्ट (Grey List) में बरकरार रखने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘ग्रे’ लिस्ट में पाकिस्तान
    • गौरतलब है कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने जून 2018 में पाकिस्तान को ’ग्रे’ लिस्ट में शामिल करने के बाद 27-सूत्रीय कार्ययोजना प्रस्तुत की थी, जो कि मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने से संबंधित थी।
    • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के हालिया पूर्ण अधिवेशन के अंत में जारी अधिसूचना के अनुसार, पाकिस्तान ने FATF द्वारा प्रस्तावित 27-सूत्रीय कार्ययोजना में कुछ प्रगति की है और कुल 21 विषयों को संबोधित किया है। 
    • हालाँकि पाकिस्तान को ‘ग्रे’ लिस्ट में बरकरार रखते हुए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने कहा कि अभी भी 6 विषयों को संबोधित करना शेष है, इसलिये पाकिस्तान को 27-सूत्रीय कार्ययोजना को पूरा करने के लिये फरवरी 2021 तक का समय दिया गया है।
    • जिन बिंदुओं को संबोधित करने में पाकिस्तान विफल रहा उनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों से जुड़े गैर-लाभकारी संगठनों के विरुद्ध कार्यवाही करना और प्रतिबंधित व्यक्तियों तथा संस्थाओं जैसे- लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के प्रमुख हाफिज सईद और जकीउर रहमान लखवी तथा जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर के विरुद्ध मुकदमा चलाने में देरी आदि शामिल हैं।
      • उल्लेखनीय है कि हाफिज सईद को आतंकी वित्तपोषण के लिये फरवरी 2020 में 11 वर्ष की सज़ा सुनाई गई थी, वहीं पाकिस्तान सरकार का दावा है कि अन्य लोगों को अब तक ढूंढा नहीं जा सका है।
    • साथ ही पाकिस्तान नशीले पदार्थों के माध्यम से आतंकी वित्तपोषण पर नकेल कसने और कीमती पत्थरों समेत खनन उत्पादों की तस्करी को रोकने में भी विफल रहा है।
    • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने उन 4,000 नामों पर भी चिंता ज़ाहिर की है, जो जनवरी माह के अंत तक तो पाकिस्तान के आतंकवाद-रोधी अधिनियम, 1997 की अनुसूची-4 में शामिल थे, किंतु सितंबर 2020 आते-आते उनका नाम हटा दिया गया।

  • परिणाम
    • चूँकि पाकिस्तान FATF की 'ग्रे लिस्ट' में बना हुआ है, इसलिये पाकिस्तान के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल होगा।
    • इसके अलावा ‘ग्रे’ सूची में रहने के कारण वैश्विक स्तर पर भी पाकिस्तान की छवि काफी धूमिल हुई है और यह पाकिस्तान में आने वाले विदेशी निवेश के लिये एक अच्छा संकेत नहीं है।
    • इस प्रकार यदि पाकिस्तान लंबे समय तक इस सूची में बरकरार रहता है तो उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ और ‘ब्लैक लिस्ट’

  • ग्रे लिस्ट: फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ‘ग्रे लिस्ट’ में मुख्य तौर पर उन देशों को शामिल किया जाता है जिन पर संदेह होता है कि वे देश ऐसी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं जिससे आतंकवादी संगठनों और समूहों को मिलने वाले वित्तपोषण को रोका जा सके।
    • ग्रे लिस्ट में उन देशों को शामिल किया जाता है, जिन्हें आतंकी वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के लिये एक सुरक्षित स्थान माना जाता है।
  • ब्लैक लिस्ट: इसके विपरीत यदि यह साबित हो जाए कि किसी देश द्वारा आतंकी संगठन अथवा समूह का वित्तपोषण किया जा रहा है और जो कार्यवाही उसे करनी चाहिये वह नहीं कर रहा है तो उसका नाम ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया जाता है।

ज्ञात हो कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा ‘ग्रे’ लिस्ट और ‘ब्लैक’ लिस्ट जैसे शब्दों का प्रयोग आधिकारिक तौर पर नहीं किया जाता है।

अन्य देशों की प्रतिक्रिया

  • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के पूर्ण अधिवेशन में पाकिस्तान को लेकर तुर्की ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया था कि 27 मापदंडों में से शेष 6 के लिये इंतजार करने के बजाय अन्य सदस्य देशों को पाकिस्तान के अच्छे कार्य पर विचार करना चाहिये और FATF की ‘ऑन-साइट’ टीम के माध्यम से पाकिस्तान का प्रत्यक्ष मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
    • ज्ञात हो कि ‘ऑन-साइट’ टीम के माध्यम से किसी भी देश के प्रत्यक्ष मूल्यांकन की व्यवस्था केवल तभी उपलब्ध है, जब वह देश प्रस्तावित कार्ययोजना को पूरा कर ले।
  • हालाँकि जब तुर्की द्वारा इस प्रस्ताव को प्रस्तुत किया गया तो किसी भी अन्य देश ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।

भारत का पक्ष

  • भारत ने अधिवेशन के दौरान पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ‘ग्रे’ लिस्ट में बनाए रखने पर ज़ोर दिया है, क्योंकि पाकिस्तान अभी भी आतंकी समूहों और संगठनों को पनाह देने वाला मुख्य देश है तथा उसने अब तक विभिन्न आतंकवादी संस्थाओं और व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की है। 
  • भारत ने सदैव ही पाकिस्तान के ‘ग्रे’ लिस्ट में रहने का समर्थन किया है, क्योंकि इसके माध्यम से पाकिस्तान पर आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये दबाव डाला जा सकता है।

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)

  • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की स्थापना वर्ष 1989 में एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में G7 शिखर सम्मेलन के दौरान की हुई थी।
  • इसका उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।
  • FATF का सचिवालय पेरिस स्थित आर्थिक सहयोग विकास संगठन (OECD) के मुख्यालय में स्थित है।
  • वर्तमान में FATF में भारत समेत 37 सदस्य देश और 2 क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं। भारत वर्ष 2010 से FATF का सदस्य है।

स्रोत: द हिंदू


केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो और सामान्य सहमति का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (TRP), राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA)

मेन्स के लिये 

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की कार्यप्रणाली और इससे संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में मामलों की जाँच के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) को दी गई ‘सामान्य सहमति’ (General Consent) वापस ले ली है। महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय का अर्थ है कि अब राज्य में पंजीकृत होने वाले किसी भी मामले की जाँच करने के लिये केंद्रीय एजेंसी को अलग से सहमति लेनी होगी। 

प्रमुख बिंदु

  • महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय उन मामलों को प्रभावित नहीं करेगा, जिनकी जाँच पहले से ही केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा की जा रही हैं।

कारण

  • महाराष्ट्र सरकार द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को दी गई सामान्य सहमति को वापस लेने का निर्णय इस संदेह से प्रेरित लगता है कि कथित टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (TRP) घोटाले की जाँच का मामला केंद्रीय एजेंसी को हस्तांतरित किया जा सकता है, जबकि अभी इसकी जाँच मुंबई पुलिस द्वारा की जा रही है।
    • महाराष्ट्र सरकार को डर है कि यदि यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पास जाता है तो इसकी जाँच सही ढंग से नहीं की जाएगी।
    • इससे पूर्व केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उत्तर प्रदेश में एक मामले की जाँच को अपने अधीन कर लिया था, जबकि उसकी जाँच उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही थी।
    • वहीं कुछ माह पहले महाराष्ट्र में भी CBI ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले की जाँच को बिहार सरकार की अपील पर अपने अधीन कर लिया था, जिसकी जाँच पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की जा रही थी।

निहितार्थ

  • महाराष्ट्र, CBI से अपनी सामान्य सहमति लेने वाला पहला राज्य नहीं है, इससे पूर्व आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली पर अविश्वास जताते हुए अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
  • बीते कुछ वर्षों में ऐसे कई अवसर देखने को मिले हैं, जब राज्य सरकार ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) पर केंद्र सरकार के इशारों पर कार्य करने का संदेह व्यक्त किया था।

प्रभाव

  • महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और राज्य सरकार दोनों पर ही काम के बोझ को बढ़ाएगा। 
  • ‘सामान्य सहमति’ न होने की स्थिति में जब भी CBI केंद्र सरकार के कर्मचारी पर कार्यवाही शुरू करेगी, तो उसे इस संबंध में मामला दर्ज करने से पूर्व महाराष्ट्र सरकार से मंज़ूरी लेनी होगी।
  • इसी तरह महाराष्ट्र सरकार के विभागों को भी मामलों के आधार पर बार-बार जाँच का अनुमोदन करना होगा, जिससे विभागों पर काम का अनावश्यक बोझ बढ़ेगा।
  • हालाँकि केंद्रीय एजेंसी द्वारा इस संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय का सहारा लिया जा सकता है। रमेश चंद्र सिंह बनाम CBI वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा अपने स्वयं के अधिकारियों की जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने की शक्ति किसी भी तरह से राज्य सरकार द्वारा बाधित नहीं की जा सकती है, भले ही अपराध राज्य के अधिकार क्षेत्र में किया गया हो।

क्या है ‘सामान्य सहमति’?

  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के विपरीत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)  दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) द्वारा शासित है, जो केंद्रीय एजेंसी के लिये किसी भी मामले की जाँच करने हेतु राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य बनाता है।
    • विदित हो कि NIA को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 द्वारा शासित किया जाता है और पूरा देश इसका अधिकार क्षेत्र है।
  • दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) की धारा 6 के मुताबिक, दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कोई भी सदस्य किसी भी राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करेगा।
  • सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। यद्यपि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, किंतु राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह एजेंसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
  • ‘सामान्य सहमति’ सामान्यतः CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है, ताकि CBI की जाँच सुचारु रूप से चले सके और उसे बार-बार राज्य सरकार के समक्ष आवेदन न करना पड़े। लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई है तो CBI को प्रत्येक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होगा। 
    • उदाहरण के लिये यदि CBI मुंबई में पश्चिमी रेलवे के किसी क्लर्क के विरुद्ध रिश्वत के मामले की जाँच करना चाहती है, तो उस क्लर्क पर मामला दर्ज करने से पूर्व CBI को महाराष्ट्र सरकार के पास सहमति के लिये आवेदन करना होगा।

सामान्य सहमति वापस लेने का अर्थ

  • किसी भी राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने का अर्थ है कि अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा उस राज्य में नियुक्त किसी भी केंद्रीय कर्मचारी अथवा किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध तब तक नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा, जब तक कि केंद्रीय एजेंसी को राज्य सरकार से उस मामले के संबंध में केस-विशिष्ट सहमति नहीं मिल जाती।
  • इस प्रकार सहमति वापस लेने का सीधा मतलब है कि जब तक राज्य सरकार उन्हें केस-विशिष्ट सहमति नहीं दे देती, तब तक उस राज्य में CBI अधिकारियों के पास कोई शक्ति नहीं है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) 

  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक विभाग [जो कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अंतर्गत आता है] के अधीन भारत की एक प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है।
  • हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अपराधों के अन्वेषण के मामले में इसका अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के पास है।
  • यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल की ओर से इसके सदस्य देशों में अन्वेषण संबंधी समन्वय करती है।
  • पृष्ठभूमि
    • द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के लिये किये गए खर्च में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही प्रकार के लोगों को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों का दोषी पाया। 
    • इसी के मद्देनज़र वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) का गठन किया गया, ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके।
    • इसके पश्चात् वर्ष 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPEA) के माध्यम से विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) को औपचारिक तौर पर एक एजेंसी का रूप दिया गया ताकि भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच हो सके।
    • वर्ष 1963 में भारत सरकार द्वारा देश की रक्षा से संबंधित गंभीर अपराधों, उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, गंभीर धोखाधड़ी, ठगी व गबन और सामाजिक अपराधों की जाँच हेतु केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का गठन किया गया, जिसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPEA) के माध्यम से शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • CBI की कार्यप्रणाली
    • किसी भी मामले की जाँच को लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। ये तीन श्रेणियाँ हैं-
      1. भ्रष्टाचार-रोधी विभाग
      2. आर्थिक अपराध विभाग
      3. विशेष अपराध विभाग
    • भ्रष्टाचार-रोधी विभाग: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का भ्रष्टाचार-रोधी विभाग केंद्र सरकार के कर्मचारियों और सार्वजानिक क्षेत्र के उपकरणों में कार्यरत लोगों के विरुद्ध भ्रष्टाचार और जमाखोरी आदि संबंधी मामलों की जाँच करती है। इसके अलावा इस विभाग द्वारा राज्य सरकार के उन कर्मचारियों से संबंधित मामलों की भी जाँच की जाती है, जो विभाग को सौंपे जाते हैं।
    • आर्थिक अपराध विभाग: CBI का यह विभाग देश में वित्तीय अपराधों, बैंक धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
    • विशेष अपराध विभाग: CBI का विशेष अपराध विभाग आंतरिक सुरक्षा, जासूसी, तोड़-फोड़, नशीले पदार्शों की तस्करी, हत्या और डकैती जैसे पारंपरिक प्रकृति के मामलों की जाँच करता है।

आगे की राह

  • ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी राज्य सरकार ने CBI को दी गई अपनी ‘सामान्य सहमति’ वापस ली है, विगत कुछ वर्षों में कई राज्यों ने ऐसा कदम उठाया है। इस प्रकार के निर्णय से केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली पर तो प्रश्न उठता ही है, साथ ही भारत के संघीय ढाँचे पर भी सवाल खड़ा होता है।
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पास अभी भी कई विकल्प मौजूद हैं जिनका उपयोग समय आने पर किया जा सकता है।
  • इसके बावजूद यह आवश्यक है कि बार-बार केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली और इसकी साख पर उठने वाले सवालों को संबोधित किया जाए और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली एक संस्था के रूप में विकसित किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नगर निगमों के ठोस अपशिष्ट का सतत् प्रसंस्करण

प्रिलिम्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016, वर्मी कम्पोस्ट 

मेन्स के लिये:

नगर निगमों के ठोस अपशिष्ट का सतत प्रसंस्करण

चर्चा में क्यों?

लगातार बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण की तीव्र गति के साथ देश को अपशिष्ट प्रबंधन की एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। कचरे की मात्रा वर्ष 2030 तक वर्तमान 62 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 150 मिलियन टन होने का अनुमान है।

भारत में नगरपालिका से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट:

  • अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में नगरपालिका से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट में ज़्यादातर कार्बनिक कचरे का अंश (> 50%) होता है।

अपशिष्ट कचरे का अवैज्ञानिक निपटान:

  • जैविक कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से ग्रीनहाउस गैस के साथ-साथ हवा में अन्य प्रदूषक पैदा होते हैं।
  • म्युनिसिपल अपशिष्ट (MSW) का अप्रभावी प्रसंस्करण भी कई बीमारियों का मूल कारण है क्योंकि डंप लैंडफिल, पैथोजेन, बैक्टीरिया एवं वायरस के लिये संदूषण हब (Contamination Hubs) में बदल जाते हैं।
    • इसके अलावा ऐसे क्षेत्र मीथेन गैस उत्‍सर्जन का भी बड़ा स्रोत बनते हैं। विशेषकर कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया में यह गैस काफी उत्‍सर्जित होती है और कंपोस्टिंग से उद्यमियों को कोई खास आर्थिक लाभ भी नहीं मिलता है। 
    • बारिश के मौसम में अत्यधिक नमी की उपस्थिति के कारण कम्पोस्ट का प्रबंधन मुश्किल हो जाता है।
  • वर्तमान परिदृश्य में कचरे की मिश्रित प्रकृति, कृषि उत्‍पादों में भारी धातुओं के मिश्रण को आसान बनाती है।

वैज्ञानिक तरीके से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन:

  • ठोस अपशिष्ट उपचार और निपटान उपयोगी प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया (Plasma Arc Gasification Process): 
    • यह प्रक्रिया इको-फ्रेंडली सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिये एक विकल्प है जिसमें बड़ी मात्रा में 95% तक की कटौती संभव है।
    • प्लाज़्मा गैसीकरण प्रक्रिया में प्लाज्मा रिएक्टर के अंदर उच्च तापमान प्लाज़्मा आर्क (3000°C से ऊपर) उत्पन्न करने के लिये विद्युत का उपयोग किया जाता है जो कचरे को सिनगैस (Syngas) में परिवर्तित करता है। उत्पादित सिनगैस विद्युत के उत्पादन के लिये गैस इंजन में उपयोग की जाती है।

सिनगैस (Syngas):

  • संश्लेषण गैस (Synthesis Gas) को संक्षिप्त रूप में सिनगैस कहा जाता है।
  • सिनगैस हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है।
  • इसका उपयोग ईंधन, फार्मास्यूटिकल्स, प्लास्टिक और उर्वरक उत्पादन जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया से प्राप्त अवशिष्ट राख को सीमेंट के साथ मिश्रित किया जा सकता है जिसका उपयोग ईंटों के रूप में विनिर्माण कार्यों में किया जा सकता है। इस प्रकार 'अपशिष्ट से धन' के सृजन में मदद मिलती है।

नई तकनीक:

  • सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (CSIR- Central Mechanical Engineering Research Institute or CSIR-CMERI) द्वारा विकसित ‘म्युनिसिपल अपशिष्ट’ (MSW) प्रसंस्करण सुविधा’ ने न केवल ठोस कचरे के विकेंद्रीकरण को कम करने में मदद की है बल्कि सूखे पत्तों, सूखी घास जैसे बहुतायत से उपलब्ध निरर्थक वस्तुओं से मूल्य वर्द्धित उत्पाद बनाने में भी मदद की है। 
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (SWM), 2016 के बाद वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे के निपटान के लिये ‘म्युनिसिपल अपशिष्ट (MSW) प्रसंस्करण सुविधा’ विकसित की गई है।
  • CSIR-CMERI का प्राथमिक फोकस ‘उन्नत पृथक्करण तकनीक’ (Advanced Segregation Techniques) के माध्यम से सामान्य परिवारों को कचरा पृथक्करण की ज़िम्मेदारियों से मुक्त करना है।
    • मशीनीकृत ‘उन्नत पृथक्करण प्रणाली’ ठोस अपशिष्ट से मेटैलिक वेस्ट (मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि), बायोडिग्रेडेबल वेस्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियाँ, फल, घास आदि), नॉन-बायोडिग्रेडेबल (प्लास्टिक, पैकेजिंग मटीरियल, पाउच, बोतलें आदि) और अक्रिय अपशिष्ट (काँच, पत्थर आदि) को अलग करती है।
  • कचरे के जैव-अपघटनीय घटक को अवायवीय वातावरण (Anaerobic Environment) में जैव-गैसीकरण के रूप में विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में जैविक पदार्थों के रुपांतरण के माध्यम से बायोगैस को मुक्त किया जाता है।
    • खाना पकाने के उद्देश्य से बायोगैस का उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। 
    • विद्युत उत्पादन के लिये बायोगैस का उपयोग गैस इंजन में भी किया जा सकता है।
  • केंचुओं के माध्यम से बायोगैस संयंत्र के अवशिष्ट घोल को एक प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से कम्पोस्ट में परिवर्तित किया जाता है जिसे वर्मी-कम्पोस्टिंग (Vermi-Composting) के रूप में जाना जाता है। 
    • जैविक खेती में वर्मी-कम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है।
  • बायोमास अपशिष्ट निपटान (Biomass Waste Disposal):
    • बायोमास अपशिष्ट जैसे- सूखी पत्तियाँ, मृत शाखाएँ, सूखी घास आदि के निपटान हेतु इन्हें उपयुक्त आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित करके बायोगैस डाइजेस्टर (Biogas Digester) के घोल में मिलाकर किया जाता है।
      • परिणामस्वरूप इस मिश्रण से प्राप्त ब्रीकेट (Briquette) का उपयोग खाना पकाने के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है।
      • इन ब्रिकेट्स का उपयोग गैसीफायर में सिनगैस के उत्पादन के लिये भी किया जा रहा है।
  • पॉलिमर अपशिष्ट निपटान (Polymer Waste Disposal):
    • प्लास्टिक, सैनिटरी अपशिष्ट आदि से बने पॉलिमर कचरे को दो मुख्य प्रक्रियाओं यानी पायरोलिसिस (Pyrolysis) और प्लाज़्मा गैसीकरण (Plasma Gasification) के माध्यम से निपटाया जा रहा है।
      • पाइरोलिसिस प्रक्रिया में उपयुक्त उत्प्रेरक की उपस्थिति में अवायवीय वातावरण में पॉलिमर अपशिष्ट को 400-600°C के तापमान पर गर्म किया जाता है।
      • पॉलिमर अपशिष्ट से वाष्पशील पदार्थ हीटिंग के परिणामस्वरूप निकलता है जो संघनित होने पर पायरोलिसिस तेल (Pyrolysis Oil) के रूप में प्राप्त होता  है।
      • शुद्धिकरण के बाद गैर-संघटित सिनगैस और क्रूड पायरोलिसिस तेल का पुनः उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिये किया जाता है। इस प्रक्रिया में भारी तेल और गैस का इस्‍तेमाल किये जाने से आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त करने में मदद मिली है।
        • ईंट के उत्पादन के लिये ठोस अपशिष्टों को चार (Char) के रूप में बायोगैस घोल के साथ मिश्रित किया जाता है।
    • प्लाज़्मा गैसीफिकेशन प्रक्रिया भी पर्यावरण अनुकूल है और इसमें ठोस अपशिष्‍टों का निस्‍तारण होता है तथा ज़हरीले डॉयोक्‍सीन और फ्यूरान जैसे तत्त्व भी नहीं बनते हैं।
  • सैनिटरी अपशिष्ट निपटान (Sanitary Waste Disposal):
    • सैनिटरी वस्तुएँ जिनमें मास्क, सैनिटरी नैपकिन, डायपर आदि शामिल हैं, उच्च तापमान प्लाज़्मा (High Temperature Plasma) का उपयोग करते हैं।
    • यूवी-सी लाइट्स (UV-C Lights) और हॉट-एयर कन्वेंशन विधियों (Hot-Air Convection Methods) के माध्यम से COVID-19 चेन को तोड़ने में मदद करने के लिये MSW सुविधा विशेष कीटाणुशोधन क्षमताओं से लैस है।

नई तकनीकी के लाभ:

  • परिवहन लॉजिस्टिक्स से संबंधित खर्च में कमी आएगी।
  • जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करके कार्बन डाइऑक्‍साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। 
  • अपशिष्ट प्रसंस्करण उत्पादों  से विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। 
  • रोज़गार के अवसरों को विकसित करने के अलावा एक ज़ीरो-लैंडफिल और एक ज़ीरो वेस्ट सिटी का सपना साकार हो सकता है। 
  • यह तकनीक हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को फिर से आत्‍मनिर्भर बनाने में मदद करेगी। 

निपटान उपयोगी प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया की सीमाएँ:

  • हालाँकि यह तकनीक आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है क्योंकि इस तकनीक के प्रयोग में अपशिष्ट उपचार के लिये ऊर्जा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। 
    • छोटे संयंत्रों (<100 मीट्रिक टन क्षमता) के लिये संसाधित अपशिष्ट क्षमता लगभग 1.5 kWh/kg
    • 100 मीट्रिक टन क्षमता से अधिक कचरा अपशिष्ट संयंत्रों के लिये संसाधित अपशिष्ट क्षमता लगभग 1.2 kWh/kg

  • इसके अलावा इलेक्ट्रोड की खपत (~500 मिलीग्राम/किग्रा अपशिष्ट संसाधित) की उच्च दर खर्च में वृद्धि करती है जो प्रक्रिया को महँगा बनाती है।  

स्रोत: पीआईबी 


सर सैयद दिवस

प्रिलिम्स के लिये: 

अलीगढ़ आंदोलन

मेन्स के लिये:

एक समाज सुधारक के तौर पर सर सैयद अहमद खान का योगदान 

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2020 को सर सैयद अहमद खान (Sir Syed Ahmad Khan) की जयंती को सर सैयद दिवस (Sir Syed’s Day) के रूप में मनाया गया।

प्रमुख बिंदु

  • प्रारंभिक जीवन: सर सैयद अहमद खान का जन्म वर्ष 1817 में एक ऐसे परिवार में हुआ जो मुगल दरबार के करीब था। वह कई प्रतिभाओं के धनी ( सिविल सेवक, पत्रकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक इतिहासकार) थे ।
    • वर्ष 1857 के विद्रोह से पहले वह ब्रिटिश प्रशासन की सेवा में कार्यरत थे।
    • उन्होंने भारतीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए 1857 के विद्रोह के कारणों को स्पष्ट करने के लिये ‘द कॉज़ेज ऑफ द इंडियन रिवॉल्ट’(The Causes of the Indian Revolt) नामक पुस्तक लिखी ।
  • शिक्षाविद: सर सैयद को उन महत्त्वपूर्ण मुस्लिम सुधारकों के रूप में जाना जाता है जिन्होंने मुस्लिम समाज के सुधार के लिये शैक्षिक अवसरों को बदलने में अग्रणी भूमिका निभाई।
    • सर सैयद ने महसूस किया कि अगर मुसलमान समुदाय आधुनिक शिक्षा को ग्रहण करता है तो उनकी प्रगति संभव हैं। इसके लिये उन्होंने अलीगढ़ आंदोलन की शुरुआत की।
  • सामाजिक सुधार: सर सैयद अहमद खान द्वारा सामाजिक सुधार कार्यों पर ज़ोर दिया गया, साथ ही वे लोकतांत्रिक आदर्शों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर थे।
    • वे धार्मिक असहिष्णुता, अज्ञानता और तर्कहीनता के खिलाफ थे । उन्होंने पर्दाप्रथा, बहु-विवाह और तीन तलाक जैसी प्रथाओं की निंदा की ।
    • अपनी पत्रिका तहज़ीब अखलाक (अंग्रेज़ी में सोशल रिफॉर्मर) के माध्यम से उन्होंने बहुत ही भावपूर्ण/मार्मिक तरीके से सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर लोगों को जाग्रत करने की कोशिश की।

स्वतंत्रता आंदोलन के आलोचक :

  • बाद के वर्षों में सर सैयद द्वारा भारतीय मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल नहीं होने के लिये प्रोत्साहित किया गया। 
  • इस प्रकार उनके द्वारा एक स्तर पर सांप्रदायिकता और अलगाववाद की विचारधारा को प्रोत्साहित किया गया।

अलीगढ़ आंदोलन

  • यह एक व्यवस्थित आंदोलन था जिसका मूल उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक पहलुओं में सुधार करना था।
  • यह आंदोलन सिर्फ पारंपरिक शिक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अंग्रेज़ी सीखने और पश्चिमी शिक्षा के माध्यम से मुस्लिम शिक्षा को आधुनिक शिक्षा में तब्दील करने के लिये शुरू किया गया था।
  • सर सैयद द्वारा वर्ष 1864 में अलीगढ़ में पश्चिमी कार्यों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने, मुस्लिमों को पश्चिमी शिक्षा को अपनाने तथा मुस्लिमों के बीच वैज्ञानिक मनोभाव को विकसित करने के लिये साइंटिफिक सोसाइटी (Scientific Society) की स्थापना की गई।
    • अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट, सर सैयद द्वारा प्रकाशित पत्रिका साइंटिफिक सोसाइटी का ही एक अंग था।
  • वर्ष 1877 में इनके द्वारा ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों की तर्ज पर मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (Muhammadan Anglo Oriental College) की स्थापना की गई जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
  • अलीगढ़ आंदोलन ने मुस्लिमों के पुनरुत्थान के लिये कार्य किया, साथ ही इस आंदोलन द्वारा मुस्लिम समाज को एक आम भाषा (उर्दू) दी गई।

स्रोत: द हिंदू