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डेली न्यूज़

  • 24 Jun, 2019
  • 45 min read
विश्व इतिहास

इम्फाल युद्ध की 75वीं वर्षगांठ

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में इम्फाल युद्ध की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर इम्फाल के रेड हिल पर ‘इम्फाल शांति संग्रहालय’ (Imphal Peace Museum- IPM) की स्थापना की गई है।

मुख्य बिंदु

  • इम्फाल शांति संग्रहालय की स्थापना रेड हिल की तलहटी में की गई है। इसकी स्थापना ‘द निप्पो फाउंडेशन’ (The Nippon FoundationTNF-Japan) के सहयोग से मणिपुर पर्यटन फॉर्म और मणिपुर सरकार द्वारा की गई है।

रेड हिल उन स्थानों में से माना जाता है, जहाँ से भारत में जापानी आक्रमण के अंत की शुरुआत हुई थी।

  • इस संग्रहालय को तीन खंडो में विभाजित किया गया है; पहले खंड में युद्ध का काल-क्रम और मृतकों के नाम दर्ज किये गये हैं, द्वितीय खंड में युद्ध के बाद के प्रभावों को दर्शाने का प्रयास किया गया है, अंतिम खंड मणिपुर की सांस्कृतिक विरासत से संबंधित है इस प्रकार यह संग्रहालय अपनी विशेषताओं की दृष्टि से भारत में इस प्रकार का एकमात्र संग्रहालय है।

इम्फाल युद्ध (Battle of Imphal)

  • इम्फाल युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। यह युद्ध जापानी आक्रांताओं और ब्रिटिश भारत के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध को इम्फाल के समीप मेबम लोकपा चिंग (Maibam Lokpa Ching) जिसे लाल घाटी (Red Hill) भी कहा जाता है, में लड़ा गया था।
  • सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी (Indian National Army) के साथ लगभग 70,000 जापानी सैनिक मार्च से जून 1944 तक इम्फाल और कोहिमा के आस-पास के क्षेत्रों में ब्रिटिश नेतृत्व वाली मित्र सेना के साथ लड़ाई में शहीद हुए। इस दौरान आखिरी लड़ाई रेड हिल पर लड़ी गई थी।
  • वर्ष 1994 में इस युद्ध की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर जापानी युद्ध स्मारक (Japanese War Memorial) बनाया गया था।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

वुली राइनो या महाकाय की विलुप्ति का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लखनऊ में स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेस (Birbal Sahni institute of Palaeosciences) के शोधकर्त्ताओं ने वुली/बालदार राइनो (Woolly Rhino) के विलुप्त (Extinct) होने के कारणों की जानकारी प्राप्त करने के लिये जंगली याक (एक लुप्तप्राय प्रजाति) पर अध्ययन किया।

  • शोधकर्त्ताओं ने अतीत की वनस्पतियों और जलवायु को समझने के लिये याक (Yak) के गोबर का विश्लेषण किया।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, विलुप्त जानवरों का वर्तमान जानवरों के अध्ययन के परिणामों से तुलनात्मक अध्ययन करने पर प्राचीन काल की जलवायु संबंधी कारकों और महाकाय शाकभक्षियों (Mega Herbivores) की अन्य अनुकूलन रणनीतियों के बारे में समझने में अधिक मदद मिल सकती है।

जंगली याक (Wild Yak)

  • जंगली याक एक लुप्तप्राय (Endangered) प्रजाति है। ये सामान्यतः एशिया के उच्च हिमालय, तिब्बती पठार और उत्तरी रूस के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
  • यह -40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।
  • यह हिमालयन तहर (Himalayan Tahr) और सफेद पेट वाले कस्तूरी मृग (White-Bellied Musk Deer) के समान ही है।
  • इनके आहार एवं स्थानीय वनस्पतियों का अध्ययन करने के लिये सबसे सुरक्षित तरीका इनके गोबर की जाँच करना है।

Wild Yak

शोध के परिणाम

  • विश्लेषण के दौरान इनके अंदर पराग, बीजाणुओं और फाइटोलिथ्स (पौधों में पाए जाने वाले सिलिका) में विविधता पाई गई।
  • इन विविधताओं से यह स्पष्ट होता है कि याक ने विभिन्न प्रकार के भोजन को प्राथमिकता दी थी जिनमें पत्तेदार और जंगली पेड़ों के फल प्रमुख थे। भोजन में यह विविधता गर्मियों के दौरान अधिक थी।
  • याक भोजन की तलाश में 50 किमी. तक चल सकता था।
  • याक अतीत के जलवायु परिवर्तन के अनुसार अपने आहार को संशोधित करने में सक्षम है।
  • प्लेस्टोसीन युग (Pleistocene epoch ) के अंत (11,700 साल पहले) और होलोसीन (Holocene) की शुरुआत से वनस्पति में बदलाव आया और मानव की उत्पत्ति भी संभवत: इसी काल में हुआ।
  • विशाल वुली राइनो इन परिवर्तनों के अनुकूल नहीं थे और इसलिये वे विलुप्त हो गए।
  • यह 'योग्यतम के उत्तरजीविता' का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसमें वर्तमान में पाए जाने वाले याक सबसे योग्य साबित हुए।

वुली राइनो (Woolly Rhino)

  • वुली राइनो पहली बार संभवतः 350,000 साल पहले दिखाई दिये और लगभग 10,000 साल पहले तक जीवित रहे।Woolly Rhino
  • इनके जीवाश्म काफी सामान्य हैं जो पूरे यूरोप और एशिया में पाए गए हैं।
  • बर्फ में जमे हुए और संतृप्त-तेल मिट्टी में दबे हुए अवशेष अच्छी तरह से संरक्षित हैं।
  • यूक्रेन में, एक मादा वूली राइनो का पूरा शव मिट्टी में दबा हुआ पाया गया। तेल और नमक के संयोजन से ये अवशेष सड़ने से बच गये तथा इनके उतक भी मुलायम पाए गए।
  • इस राइनो का पूरा शरीर एक मोटे, बिखरे हुए आवरण (बाल) से ढका होता था, जिसमें दो तरह के बाल पाए जाते थे: पतले घने अंडरकोट और बड़े कठोर बाल।

वैज्ञानिक नाम और उत्पत्ति

इनका वैज्ञानिक नाम कोएलोडोंटा एंटीकिटेटिस (Coelodonta antiquitatis) है जो ग्रीक भाषा से लिया गया है। कोएलोडोंटा शब्द का अर्थ है 'हॉलो टूथ' तथा एंटीकस का अर्थ है ‘पुराना’।

शारीरिक विशेषताएँ

भार/वज़न: 2 से 3 टन

ऊँचाई: लगभग 6 फीट (2 मीटर)

लंबाई: सिर और शरीर की लंबाई 10-12.5 फीट

सींग: दो सींग, एक सामने की ओर बड़े आकार की जिसकी लंबाई लगभग 3 फीट (1 मी) तक होती थी और दूसरी चपटे आकार की।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय राजनीति

धारा 376E और शक्ति मिल मामला

संदर्भ

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 E को सही ठहराया है। धारा 376E के आधार पर शक्ति मिल गैंगरेप के तीन दोषियों को मृत्यु दंड दिया गया है।

क्या है 376 E?

  • वर्ष 2012 के दिल्ली गैंगरेप के बाद जस्टिस वर्मा समिति का गठन किया गया था, जिससे ऐसे मामलों में कम समय में पीड़ितों को उचित न्याय दिलाया जा सके। समिति की सिफारिशों के आधार पर आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 लाया गया। इस कानून में बलात्कार की परिभाषा को व्यापक रूप दिया गया तथा अन्य धाराओं के साथ-साथ धारा 376 E को भी जोड़ा गया। ऐसे अपराधी जो धारा 376, 376A तथा 376D के अंतर्गत बार-बार अपराध (Repeat Offender) करते हुए पाए जाते हैं, उनके लिये धारा 376E के तहत मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है। धारा 376A में पीड़ित के हत्या के कारण तथा 376D में गैंगरेप के दोषी की सज़ा (20 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा) का प्रावधान है।

शक्ति मिल गैंग रेप केस

  • शक्ति मिल गैंग रेप में ऐसे तीन अभियुक्त शामिल थे जो इससे पहले भी बलात्कार के अन्य मामले में शामिल रहे थे। इस प्रकार इन अभियुक्तों को रिपीट ओफेंडर माना गया तथा धारा 376 E के अंतर्गत न्यायालय नें इन अभियुक्तों को फाँसी की सज़ा का निर्णय दिया।

निर्णय के खिलाफ दोषियों की अपील का आधार

  • इस निर्णय के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील की गई। अपील में कहा गया कि अभियुक्तों (Accused) को दिया गया मृत्यु दंड एक असंगत दंड है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 21, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से सिर्फ विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत ही वंचित किया जा सकता है तथा अनुच्छेद 14 जिसमें विधि के समक्ष समानता का प्रावधान किया गया है, का यह निर्णय उल्लंघन करता है। इसके साथ ही अपील में अमेरिका तथा कनाडा के कानून के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के पुराने निर्णयों का भी हवाला दिया गया।
  • अपील में यह भी कहा गया कि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अंतर्गत धारा 302 (मृत्यु के लिये दंड) में हत्या के अपराध के लिये न्यूनतम दंड आजीवन कारावास है तथा अधिकतम दंड के लिये मृत्यु दंड का प्रावधान है। लेकिन धारा 376E न्यूनतम दंड के रूप में आजीवन कारावास का प्रावधान करता है, जिसमें किसी भी प्रकार के परिहार (Remission) अथवा क्षमा की संभावना भी नहीं है तथा अधिकतम दंड के रूप में मृत्यु दंड का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में भारत में ऐसा कानून है जिसमें एक से अधिक बार बलात्कार के लिये जो कि मृत्यु का कारण भी नहीं है, के लिये मृत्यु के अपराध के दंड से भी अधिक तीव्र दंड का प्रावधान करता है।

न्यायालय का निर्णय

एमिकस क्युरी ने धारा 376E को ऐसे अपराधों (बलात्कार, गैंगरेप) को कम करने के लिये एक सही प्रयास माना किंतु शक्ति मिल केस में इस धारा के उपयोग की तर्कसंगतता पर प्रश्न चिह्न खड़ा किया। बॉम्बे उच्च न्यायालय के जस्टिस बी धर्माधिकारी और रेवती मोहिते-डेरे ने IPC की धारा 376E को संविधान के तर्कसंगत माना तथा इस केस में भी इसकी उपयोगिता को सही ठहराया।

स्रोत- द हिन्दू


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप इंडिया के अंतर्गत पूंजी आवंटन के लक्ष्य में कमी

संदर्भ:

भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India-SIDBI) के अनुसार, वर्ष 2016 में आरंभ हुए स्टार्टअप इंडिया फंड के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2018-19 में 3,300-3,500 करोड़ रुपए तक का आवंटन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, परंतु इस अवधि के दौरान केवल 2265 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है।

मुख्य बिंदु :

  • हाल ही में संसद को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि भारत सरकार वर्ष 2024 तक लगभग 50000 स्टार्टअप आरंभ करना चाहती है।
  • पूर्व NDA सरकार में स्टार्टअप को अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया था।
  • स्टार्टअप को आरंभिक चरण में वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये सरकार ने एक कोष लॉन्च किया था। कोष द्वारा प्रत्यक्ष रूप से स्टार्टअप में निवेश न करके वह राशि उद्यम पूंजी कोष (Venture Capital Funds) को आवंटित की जाती है और फिर वे उद्यम पूंजी कोष, स्टार्टअप में उस राशि का दोगुना निवेश करते हैं।
  • लेकिन जब बड़ी संख्या में नए उद्यमियों द्वारा कर अधिकारियों के उत्पीडन और ‘एंजेल कर (Angel Tax)’ नोटिस भेजने के ख़िलाफ़ शिकायत की गई, तब लोगों ने इस योजना की आलोचना की।

एंजेल कर (Angel Tax)

स्टार्ट-अप्स कंपनियों द्वारा बिजनेस में वृद्धि हेतु फंड जुटाया जाता है जिसके लिये पैसे देने वाली कंपनी या किसी संस्था को शेयर जारी किये जाते हैं। इस प्रकार शेयर बेचने से प्राप्त हुई अतिरिक्त राशि को इनकम मानते हुए उस पर जो टैक्स लगाया जाता है, उसे एंजेल टैक्स कहा जाता है। 2012 में शुरू किये गए इस एंजेल टैक्स का उद्देश्य धन शोधन को रोकना था। कोई छोटी स्टार्ट अप कंपनी जिसके पास पूंजी की बेहद कमी होती है, में धन निवेश करने वाला एंजेल निवेशक कहलाता है। ये कंपनी के संस्थापकों के साथ-साथ उनके व्यापार की अवधारणा में विकास करते हुए कंपनी को स्थापित करने के लिये आवश्यक पूंजी बतौर कर्ज देते हैं।

    • कुछ अनुमानों के अनुसार सरकार अगले बजट में कर्मचारी स्टॉक विकल्प कार्यक्रम (Employee Stock Option Programme - ESOP) के संदर्भ में स्टार्टअप को कर से रियायत देने पर भी विचार कर रही है।
    • आमतौर पर एक उद्यम पूंजीपति को स्टार्टअप कोष से राशि प्राप्त करने में 4 से 5 महीनों का समय लगता है, लेकिन अब SIDBI इस अवधि को कम करने का प्रयास कर रही है ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसके प्रति आकर्षित किया जा सके।
    • उद्यम पूंजी फर्मों से बिना किसी हस्तक्षेप के ऑनलाइन आवेदन प्राप्त करने के लिये भी एक प्लेटफॉर्म तैयार किया जा रहा है जो कुछ ही समय में अपना कार्य आरंभ कर देगा।
    • केई कैपिटल (Kae Capital), साहा फंड (Saha Fund), इंडिया कोशेंट (India Quotient) , अर्था वेंचर फंड (Artha Venture Fund), स्टेलारिस वेंचर पार्टनर्स (Stellaris Venture Partners) आदि कुछ ऐसे ही उद्यम पूंजी कोष हैं जिन्हें स्टार्टअप इंडिया के तहत निवेश करने के लिये पूंजी प्राप्त हुई है।

    क्या है स्टार्टअप इंडिया?

    स्टार्टअप इंडिया वर्ष 2016 में देशव्यापी स्तर पर लागू किया गया सरकार का एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है।

    इसका मुख्य उद्देश्य स्टार्टअप को बढ़ावा देते हुए अर्थव्यवस्था में अधिक रोज़गार का सृजन करना है।

    वर्तमान आँकड़ों के अनुसार, देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील है और उन्हें काम देना सरकार की ज़िम्मेदारी है।

    सरकार ने इस कार्य के लिये 2500 करोड़ रुपए का आरंभिक कोष बनाया है, जिसे भविष्य में चार चरणों के माध्यम से 10,000 करोड़ करने की योजना है।

    कर के बोझ को कम करने के लिये स्टार्टअप को शुरू के तीन साल में कर से छूट प्रदान की गई है।

    स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    साइड पोकेटिंग

    संदर्भ :

    साधारण शब्दों में साइड पोकेटिंग का अर्थ उस तंत्र से है जो म्यूचुअल फंड्स को अपनी- अपनी ऋण योजनाओं (Debt Schemes) के अंतर्गत ख़राब परिसंपत्तियों को अलग निवेश सूची में रखने की अनुमति देता है।

    • व्यापक तौर पर इस तंत्र की शुरुआत भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (The Securities and Exchange Board of India - SEBI) द्वारा दिसंबर 2018 में की गई थी। ख़राब परिसम्पतियों से संबंधित यह तंत्र मुख्यतः SEBI द्वारा IL&FS की नाकामयाबी के बाद प्रस्तुत किया गया था।

    यह कैसे काम करता है?

    • पूंजी बाजार नियामकों ने यह निर्धारित किया है कि निवेशकों की यह अलग सूची केवल तभी बनाई जा सकती है जब अपने आरंभिक चरण में ऋण या मुद्रा बाज़ार प्रपत्र (money market instrument) निर्धारित ‘निवेश श्रेणी (Investment Grade)’ से नीचे होता है।

    निवेशकों को लाभ :

    • साइड पोकेटिंग ख़राब परिसंपत्तियों को अलग सूची में विभाजित कर देता है। जिसके बाद योजना से जुड़े हुए सभी निवेशकों को मुख्य सूची की तरह इस सूची से भी एक समान मात्रा में इकाइयाँ आवंटित कर दी जाती हैं, इस प्रकार कुल पोर्टफोलियो में ख़राब संपत्तियों का असर नहीं पड़ता और पोर्टफोलियो का निवल परिसंपत्ति मूल्य (net asset value) भी बरकरार रहता है।
    • इसके अतिरिक्त यदि कभी ख़राब संपत्तियों से मूल्य प्राप्त होता है तो निवेशकों को अपना वो पैसा भी मिल जाता है।

    क्या साइड पोकेटिंग का दुरुपयोग संभव है?

    • जब साइड पोकेटिंग अस्तित्व में आया था तो विशेषज्ञों का मानना था कि फंड हाउस (Fund Houses) इसका प्रयोग अपने गलत निवेश निर्णयों को छुपाने के लिये कर सकते हैं।
    • लेकिन इस संदर्भ में SEBI ने जाँच और संतुलन तंत्र का निर्माण किया है जो समय-समय पर इसके दुरुपयोग की जाँच करता है।
    • इसके अतिरिक्त नियामकों मानना है कि सभी फंड हाउस के संरक्षकों को एक ऐसा ढाँचा बनाना होगा जो उन सभी लोगों की आय व प्रोत्साहन राशि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करे जो उस निवेश योजना के निर्णय से संबंधित हैं।

    भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

    • यह एक बाज़ार नियामक तथा भारत में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड है।
    • इसकी स्थापना 1992 के अधिनियम के तहत 12 अप्रैल, 1992 में की गई थी।
    • इसका मुख्यालय मुंबई में है तथा नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं।

    इसके प्रमुख कार्य –

    • प्रतिभूति बाज़ार का नियमन करना तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
    • प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
    • प्रतिभूति बाज़ार के विकास का उन्नयन करना।

    स्रोत: द हिंदू


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में नासा के क्यूरियोसिटी रोवर (NASA’s Curiosity Rover) द्वारा मंगल ग्रह की वायु में मेथेन की उच्च मात्रा होने का डेटा भेजा गया है। पृथ्वी पर यह गैस सामान्यतः जीवित जीवों द्वारा उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिक इसे मंगल ग्रह पर सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति का संकेत मान रहे हैं।

    NASA’s Curiosity Rover

    प्रमुख बिंदु

    • परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार, इस डेटा के विश्लेषण से आने वाले दिनों में कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आ सकती हैं। इसके बाद धरती पर स्थित केंद्र से रोवर को इस संबंध में नए शोध के लिये संदेश भेजा गया है। अब यान पहले से निर्धारित कार्य योजना से अलग नए संदेश के आधार पर खोज करेगा।
    • वर्ष 1970 में नासा के यान वाइकिंग (Viking) लेंडर्स द्वारा खींची गई तस्वीरों में सिर्फ बंजर ज़मीन ही दिखी थी। दो दशकों के बाद किये अध्ययनों के आधार पर वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब चार अरब वर्ष पूर्व मंगल ग्रह आज की तुलना में ज्यादा गर्म, नमी वाला और जीवन के अनुकूल रहा होगा।
    • अब वैज्ञानिक इस दिशा में अध्ययन कर रहे हैं कि अगर कभी मंगल पर जीवन रहा होगा, तो कुछ सूक्ष्मजीव आज भी वहाँ ज़मीनी सतह के भीतर मौजूद हो सकते हैं।
    • मंगल के हल्के वातावरण में मेथेन/मीथेन की उपस्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। सामान्य तौर पर सूर्य के प्रकाश और अन्य रासायनिक क्रियाओं के परिणामस्वरुप मेथेन गैस कुछ सौ साल में विघटित हो जाएगी।
    • वैज्ञानिकों ने पहली बार मार्स एक्सप्रेस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा निर्मित एक अंतरिक्ष यान जो अभी भी ऑपरेशन में है, साथ ही पृथ्वी पर दूरबीनों के माध्यम से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर करीब डेढ़ दशक पहले मंगल ग्रह पर मेथेन की खोज की थी।
    • एक संभावना यह भी है कि मंगल पर जो मेथेन मिल रही है, वह करोड़ों साल पहले की है, जो चट्टानों में दबी है और अब बाहर निकल रही है ।
    • हालाँकि नासा अभी इसे शुरुआती नतीज़ा मान रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बिना पर्याप्त अध्ययन के किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सकता है।
    • हालाँकि एक नया यूरोपीय अंतरिक्ष यान, ट्रेस गैस ऑर्बिटर (Trace Gas Orbiter), जो अधिक संवेदनशील उपकरणों से लैस था और वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, के द्वारा प्रेषित जानकारियों में मेथेन का पता नहीं लग पाया था।
    • नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स (National Institute for Astrophysics) के वैज्ञानिकों के अनुसार, जिस दिन मार्स एक्सप्रेस जानकारियाँ जुटाने हेतु गेल क्रेटर (जो कि 96-मील-चौड़ा गड्डा है) के ऊपर से गुज़रा, उसी दिन क्यूरियोसिटी ने भी उससे संबंधित जानकारियाँ एकत्रित की। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि आगे आने वाले समय में मार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (Trace Gas Orbiter) के साथ भी संयुक्त रूप से अवलोकन एवं अध्ययन किये जाएंगे।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    आपदा प्रबंधन

    ओडिशा का बाढ़ अनुमान एटलस

    चर्चा में क्यों?

    ओडिशा के मुख्यमंत्री ने राज्य में बाढ़ की स्थितियों के बेहतर प्रबंधन के लिये एक एटलस लॉन्च किया है। इस एटलस के ज़रिये राज्य में बाढ़ प्रबंधन हेतु एक नई रूपरेखा तैयार करने में मदद मिलेगी।

    प्रमुख बिंदु

    • यह एटलस नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre-NRSC ) हैदराबाद और ओडिशा राज्य विकास आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Odisha State Development Disaster Management Authority- OSDMA ) द्वारा तैयार किया गया है।

    नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC ) हैदराबाद ; यह रिमोट सेंसिंग ,उपग्रह डेटा अधिग्रहण और प्रसंस्करण, डेटा प्रसार, हवाई रिमोट सेंसिंग और आपदा प्रबंधन में सहायता के लिये ज़िम्मेदार है। यह संस्थान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तत्त्वावधान में कार्य करता है।

    • यह एटलस राज्य में वर्ष 2000 से 2018 के बीच बाढ़ के आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तैयार किया गया हैं। क्षेत्रवार बाढ़ की प्रवणता को विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। राज्य में लगभग 14 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है।
    • इस वर्ष मानसून के दौरान भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी के अनुसार बाढ़ की पुनरावृत्ति की संभावना है।
    • उल्लेखनीय है कि 2018-19 के दौरान ओडिशा ने दो चक्रवातों तितली और फणि सहित कई प्राकृतिक आपदाओं को झेला है ।

    ओडिशा के अत्यधिक बाढ़ प्रवण होने के कारण

    • राज्य में उष्णकटिबंधीय जलवायु पायी जाती है जिसकी विशेषता उच्च तापमान, उच्च आर्द्रता , मध्यम से अधिक वर्षा और कम हल्की सर्दियाँ होती है ।
    • ओडिशा के समुद्री तट की लंबाई 482 किमी. है जो राज्य को बाढ़, चक्रवात तथा तूफान के प्रति संवेदनशील बनाती है और साथ ही मानसून के दौरान भारी वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है।
    • झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे पड़ोसी राज्यों की नदियों का प्रवाह भी बाढ़ में योगदान देता है।
    • खराब जल निकासी, नदियों में गाद का उच्च स्तर, मिट्टी के कटाव, तटबंधों के टूटने और उन पर बाढ़ के पानी के फैलाव के साथ समतल तटीय प्रदेश इत्यादि के कारण नदी के बेसिन और डेल्टा क्षेत्रों में गंभीर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। महानदी, सुवर्णरेखा, ब्राह्मणी, बैतरणी, रुशिकुल्या, वंशधारा और इनकी सहायक नदियाँ विशेष रूप से प्रभावित होती है।
    • महानदी, ब्राह्मणी और बैतरनी नदियों का एक साझा डेल्टा होने कारण यहाँ जल की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, फलस्वरूप बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। उच्च ज़्वार के समय यह समस्या और भी विकट हो जाती है।

    flood zone of odisha

    • तटीय क्षेत्रों में तूफान आने की संभावना अक्सर बनी रहती है और ज्वार-भाटा उत्पन्न करने वाले तूफान आमतौर पर भारी वर्षा के साथ आते हैं ,जिससे तटीय प्रदेश बाढ़ और तूफान दोनों की चपेट में आ जाते हैं। अंततः स्थिति अत्याधिक भयावह हो जाती है ।

    बाढ़ से निपटने के लिये किये गये प्रयास:

    • भारत ने आपदा प्रबंधन के लिये सेंदाई कार्ययोजना (Sendai framework ) का अनुसमर्थन किया है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ( NDMA) का गठन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा (3) की उपधारा (1) के तहत किया गया है। NDMA , प्रधान मंत्री के नेतृत्व में देश में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है, जो भारत में आपदा प्रबंधन के साथ नीतियों और कार्यक्रमों का भी समन्वय करता है। इसके प्रतिनिधि संस्थान के रूप में राष्ट्रीय कार्यकारी समिति ( national Executive Committee -NEC) कार्य करती है।
    • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority- SDMA) का गठन प्रत्येक राज्य द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 14 की उपधारा (1) और (2) के तहत किया गया है। राज्य स्तर पर इसके क्रियान्वयन के लिये राज्य कार्यकारी समिति( State Executive Committee- SEC) का गठन किया है।
    • राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग बाढ़ से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
    • ओडिशा राज्य आपदा विकास प्रबंधन प्राधिकरण (OSDMA) ओडिशा सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त संगठन है, जो आपदा प्रबंधन की त्वरित कार्यवाही के ज़िम्मेदार है। इसकें साथ ही ज़िला, ब्लाक और ग्राम स्तर पर समन्वित कार्य योजना का भी प्रबंध किया गया है।

    SDMA

    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिये विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से किया गया है।
    • आपदा के दौरान और पश्चात् तीव्र पुनर्निर्माण के लिये ओडिशा आपदा त्वरित कार्यवाही बल (Odisha Disaster Rapid Action Force -ODRAF) की स्थापना की गई है।
    • तीव्र सूचना के लिये आपातकालीन संचालन केंद्र (Emergency Operation Centre) की स्थापना की गई है।

    आगे की राह

    • बड़े स्तर पर वनीकरण को प्रोत्साहित करना और अन्तःस्पंदन ( infiltration) को बढ़ाना।
    • नदियों के पानी को प्रबंधित करने के लिये चैनलों का निर्माण किया जाए साथ ही नहरों के माध्यम से भी पानी की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है।
    • नदियों के गाद को साफ़ किया जाए। इसके लिये यमुना की असिता परियोजना से प्रेरणा ली जा सकती है।
    • जल संभरण कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान की जाए साथ ही इसकी उपयोगिता के बारे में लोगो को जागरूक किया जाए।
    • NDRF और SDRF की कौशल क्षमता का संवर्द्धन किया जाए और स्थानीय लोगो से संवाद और संपर्क को बढ़ावा दिया जाए।
    • बांध सुरक्षा और प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाए साथ ही इसकी नियमित जाँच की जानी चाहिये।
    • स्थानीय स्कूलों और पंचायत के माध्यम से लोगों को आवश्यक जानकारियाँ और स्व-प्रबंधन के कौशल प्रदान किये जाएँ।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    सामाजिक न्याय

    महिलाओं में एनीमिया

    चर्चा में क्यों?

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (National Family Health Survey- NFHS4) के अनुसार, 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया (Anemia) का प्रसार 53 % और 15 से 19 वर्ष की किशोरियों में 54 % है ।

    एनीमिया (रक्त की कमी)

    • यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे शारीरिक रक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उसकी ऑक्सीजन वहन क्षमता अपर्याप्त होती है। यह क्षमता आयु, लिंग, ऊँचाइयों, धुम्रपान और गर्भावस्था की स्थितियों से परिवर्तित होती रहती है।
    • लौह (Iron) की कमी इसका सबसे सामान्य लक्षण है। इसके साथ ही फोलेट (Folet), विटामिन बी 12 और विटामिन ए की कमी, दीर्धकालिक सूजन और जलन ,परजीवी संक्रमण और आनुवंशिक विकार भी एनीमिया के कारण हो सकते है। एनीमिया की गंभीर स्थिति में थकान, कमज़ोरी ,चक्कर आना और सुस्ती इत्यादि समस्याएँ होती है। गर्भवती महिलाएँ और बच्चे इससे विशेष रूप से प्रभावित होते है।

    राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एनीमिया से निपटने के लिये उठाये गए कदम

    एनीमिया मुक्त भारत (AMB):

    • इसे वर्ष 2006 में, एनीमिया की वार्षिक दर में 1 से 3% तक की गिरावट लाने के लिये, गहन राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (Intensified National Iron Plus Initiative -NIPI) कार्यक्रम के एक भाग के रूप में शुरू किया गया था। एनीमिया मुक्त भारत (AMB) कार्यक्रम में 6-59 महीने के बच्चों, 5 - 9 वर्ष की किशोरियों, 10 - 19 के किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को विशेष रूप से लक्षित किया गया है।

    साप्ताहिक लौह और फोलिक अम्ल अनुपूरण

    (Weekly Iron and Folic Acid Supplementation- WIFS):

    • किशोर और किशोरियो के बीच एनीमिया के उच्च प्रसार की चुनौती को रोकने के लियें इस कार्यक्रम को लागू किया गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत साप्ताहिक रूप से लौह फोलिक अम्ल (Iron Folic Acid- IFA) की गोली और इंजेक्शन का प्रावधान है। कृमि संक्रमण को रोकने के लिये एल्बेंडजोल (Albendazole) प्रदान किया जाता है।
    • एनीमिया से पीड़ित विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के मामलों की नियमित जाँच के लिये स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली और बच्चों के लिये भी विशेष प्रणाली को लागू किया जा रहा है। प्रसव पूर्व एनीमिया की जाँच भी गर्भवती महिलाओं की जाँच का एक हिस्सा है। सभी गर्भवती महिलाओं को प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों के माध्यम से प्रसवपूर्व अन्य सुविधाओं के साथ आयरन और फोलिक एसिड की गोलियाँ भी प्रदान की जाएँगी। इसके लिये ग्राम स्वास्थ और पोषण दिवसों का भी आयोजन किया जायेगा।

    प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान (PMSMA)

    • यह एनीमिया की जाँच और उपचार के लिये विशेष चिकित्सा अधिकारीयों की मदद से प्रत्येक माह की 9 तारीख को आयोजित किया जाता है।

    रक्तकोष (Bloodbank) का संचालन

    • ज़िला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एनीमिया के गंभीर मामलों से निपटने के लिये रक्तकोष भंडारण इकाइयों की स्थापना की जा रही है।

    पोषण अभियान के तहत भी एनीमिया नियंत्रण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 [ National Family Health Survey -(NFHS-4)] : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण विस्तृत पैमाने पर कई चरणों वाला सर्वेक्षण है। जो पूरे भारत के प्रतिनिधि नमूने का प्रयोग करता है। यह सर्वेक्षण भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के नेतृत्व में उसकी नोडल एजेंसी अंतर्राष्ट्रीय जनसँख्या विज्ञान संस्थान, मुंबई (International Institute for Population Sciences, Mumbai) के साथ संचालित किया जाता है। मैरीलैंड अमेरिका स्थित ICF इंटरनेशनल इन सर्वेक्षणों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

    स्रोत -PIB


    विविध

    Rapid Fire करेंट अफेयर्स (24 June)

    • नीति आयोग ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें वर्ष 2030 के बाद देश में केवल इलेक्ट्रिक चालित दोपहिया और तिपहिया वाहन चलाने की बात कही गई है। इसी के साथ वर्ष 2025 से 150 CC इंजन की इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बाज़ार में उतारने की योजना पर भी काम चल रहा है। यह कदम देश में बढ़ रहे प्रदूषण की समस्या को कम करने और तेल की बढ़ती कीमतों से छुटकारा पाने के सरकार के प्रयासों के तहत उठाया जा रहा है। सरकार चाहती है कि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन दिया जाए, इसीलिये मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक डीज़ल और पेट्रोल वाहनों की बिक्री को रोकने के लिये एक योजना तैयार करने का प्रस्ताव रखा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिये इन्हें पंजीकरण शुल्क से मुक्त रखने पर भी सरकार विचार कर रही है। इसके अलावा मंत्रालय वर्ष 2030 तक 50 गीगावाट बैटरी बनाने की योजना पर भी काम करना चाहता है।
    • ब्रिटिश हेराल्ड के रीडर्स पोल-2019 में डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग को पीछे छोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया का सबसे ताकतवर नेता चुना गया है। इसके नामांकन में दुनिया की 25 हस्तियों को शामिल किया गया था और अंतिम चार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तथा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का चयन हुआ। चयन प्रक्रिया का मूल्यांकन सभी संबद्ध आँकड़ों के व्यापक अध्ययन और शोध पर आधारित था। इसके लिये ब्रिटिश हेराल्ड के रीडर्स को OTP दिया गया था ताकि कोई भी एक से ज़्यादा बार वोट न कर सके। भारतीय प्रधानमंत्री ब्रिटिश हेराल्ड पत्रिका के जुलाई संस्करण के कवर पेज पर दिखाई देंगे, जो 15 जुलाई को जारी होगा।
    • पड़ोसी पहले की अपनी नीति के तहत भारत सरकार ने बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया के साथ समझौते किए हैं। समझौतों के तहत दूरदर्शन (DD) इंडिया का प्रसारण इन देशों में किया जाएगा, जबकि उनके टीवी चैनल DD फ्री डिश पर उपलब्ध होंगे। बांग्लादेश के स्वामित्व वाले टीवी चैनल BTV व‌र्ल्ड का प्रसारण DD फ्री डिश पर किया जाएगा। यह चैनल भारत में डीडी के दर्शकों के लिये उपलब्ध होगा तथा इसी प्रकार DD इंडिया का प्रसारण बांग्लादेश में किया जाएगा। इसके अलावा भारतीय दर्शकों के लिये दक्षिण कोरिया सरकार के अंग्रेज़ी चैनल KBS व‌र्ल्ड का प्रसारण DD फ्री डिश पर किया जाएगा तथा DD इंडिया का प्रसारण दक्षिण कोरिया में होगा।
    • अशोका यूनिवर्सिटी, हरियाणा तथा जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया और एलेस्मो प्रोजेक्ट, संयुक्त अरब अमीरात के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि भारत में शार्क मछलियों की संख्या में तेज़ी से कमी आ रही है, जबकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शार्क मछली पालने वाला देश माना जाता है। भारत में अधिकांश मछुआरे और व्यापारी शार्क संरक्षण के नियमों से अनजान हैं और प्राय: बड़ी शार्क मछलियाँ नहीं पकड़ते। भारत में शार्क के मांस के लिये एक बड़ा घरेलू बाज़ार है, जबकि निर्यात अपेक्षाकृत कम होता है। यहाँ छोटे आकार और किशोर शार्क की मांग सबसे ज्यादा है तथा एक मीटर से छोटी शार्क मछलियाँ ही पकड़ी जाती हैं, जो स्थानीय बाज़ारों में महँगी बिकती हैं। इस अध्ययन के तहत देश में शार्क व्यापार के दो प्रमुख केंद्रों- गुजरात के पोरबंदर और महाराष्ट्र के मालवन में सर्वेक्षण किया गया। ज्ञातव्य है कि दुनिया में शार्क की लगभग 4000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • 21 जून को दुनियाभर में विश्व संगीत दिवस का आयोजन किया जाता है। इसे Fete de la Musiquue नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है म्यूज़िकक फेस्टिवल यानी संगीत का उत्सव। विश्व में सदैव शांति बरकरार रखने के लिये फ्राँस में पहली बार 21 जून, 1982 को प्रथम विश्व संगीत दिवस मनाया गया था, जिसका श्रेय वहाँ के तात्कालिक सांस्कृतिक मंत्री जैक लो को जाता है। विश्व संगीत दिवस का आयोजन कुल 110 देशों में ही किया जाता है, जिनमें भारत भी शामिल है। विश्व संगीत दिवस को मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से लोगों को संगीत के प्रति जागरूक करना है ताकि लोगों का विश्वास संगीत पर बना रहे। इसको मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से संगीत का प्रचार करना तथा दक्ष व नए कलाकारों को एक मंच पर लाना है। विश्व भर में इस दिन संगीत और ललित कला को प्रोत्साहित करने वाले कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस वर्ष विश्व संगीत दिवस की थीम Music at the Intersections रखी गई है।
    • 19 जून को श्रीलंका का पहला उपग्रह रावना-1 अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया। इसका प्रक्षेपण अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) ने जापान और नेपाल के उपग्रह के साथ किया। ‘रावना-1′ का वज़न मात्र 1.05 किलोग्राम है और इसका विकास जापान के क्योशो संस्थान में अंतरिक्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे श्रीलंका के दो छात्रों- थरिंडु दयारत्ने और दुलानी चामिका ने किया है। 11.3 x 10 x 10 सेंटीमीटर के इस घनाकार उपग्रह का न्यूनतम जीवनकाल डेढ़ साल का है, लेकिन संभावना है कि यह पाँच साल तक काम करता रहेगा। यह उपग्रह श्रीलंका और उसके आसपास के इलाकों का चित्र लेने में सक्षम है।

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