भारतीय इतिहास
आज़ाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगाँठ
- 29 Oct 2018
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चर्चा में क्यों?
21 अक्तूबर, 2018 को नई दिल्ली स्थित लाल किले में आजाद हिंद सरकार के गठन की 75वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
प्रमुख बिंदु
- 75 साल पहले वर्ष 1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर में आज़ाद हिंद (जिसे अरजी हुकुमत-ए-आज़ाद हिंद के रूप में भी जाना जाता है) के रूप में अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा की थी।
- इसे इंपीरियल जापान, नाजी जर्मनी, इतालवी सोशल रिपब्लिक और उनके सहयोगियों की ध्रुवीय शक्तियों का समर्थन प्राप्त था।
- इस सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के उत्तरार्द्ध के दौरान निर्वासन में अस्थायी सरकार के ध्वज के तहत ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त करने के लिये संघर्ष शुरू किया था।
पृष्ठभूमि
- सुभाष चंद्र बोस को इस बात का दृढ़ विश्वास था कि सशस्त्र संघर्ष ही भारत को स्वतंत्र करने का एकमात्र तरीका है। 1920 और 1930 के दशक में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के कट्टरपंथी दल के नेता रहे, 1938-1939 में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने की राह पर आगे बढ़ रहे थे लेकिन महात्मा गांधी और कॉन्ग्रेस नेतृत्व के साथ मतभेदों के बाद उन्हें हटा दिया गया।
- उनकी अस्थायी सरकार के अंतर्गत विदेशों में रहने वाले भारतीय एकजुट हो गए थे। इंडियन नेशनल आर्मी ने मलाया (वर्तमान में मलेशिया) और बर्मा (अब म्याँमार) में रहने वाले प्रवासी भारतीयों, पूर्व कैदियों और हज़ारों स्वयंसेवक नागरिकों को आकर्षित किया।
- अस्थायी सरकार के तहत, बोस राज्य के मुखिया, प्रधानमंत्री और युद्ध तथा विदेश मामलों के मंत्री थे। कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने महिला संगठन की अध्यक्षता की, जबकि एस.ए. अय्यर ने प्रचार और प्रसार विंग का नेतृत्व किया। क्रांतिकारी नेता रास बिहारी बोस को सर्वोच्च सलाहकार नियुक्त किया गया था।
- जापानी कब्ज़े वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी अस्थायी सरकार बनाई गई थी। 1945 में अंग्रेजों द्वारा इन द्वीपों पर पुनः कब्ज़ा कर लिया गया था।
- बोस की मौत आज़ाद हिंद आंदोलन के अंत के रूप में देखी गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध भी 1945 में ध्रुवीय शक्तियों की हार के साथ समाप्त हुआ।
- निश्चित रूप से आज़ाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की भूमिका स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष को प्रोत्साहन देने में महत्त्वपूर्ण रही थी।