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डेली न्यूज़

  • 24 Apr, 2020
  • 41 min read
शासन व्यवस्था

केंद्र सरकार के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में कटौती

प्रीलिम्स के लिये

महंगाई भत्ता, महंगाई राहत

मेन्स के लिये

COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

महामारी से प्रेरित लॉकडाउन का देश की विभिन्न आर्थिक तथा गैर-आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे सरकार की राजस्व स्थिति भी काफी प्रभावित हुई है, इसके मद्देनज़र केंद्र सरकार ने जुलाई 2021 तक केंद्र सरकार के 48 लाख कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते (Dearness Allowance-DA) में वृद्धि पर रोक लगा दी है।

प्रमुख बिंदु

  • वित्त मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार ने यह निश्चित किया है कि 1 जनवरी, 2020 से केंद्र सरकार के कर्मचारियों को देय DA और पेंशनभोगियों को देय महंगाई राहत (Dearness Relief-DR) के लिये देय की अतिरिक्त किस्त का भुगतान भी नहीं किया जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि इसी वर्ष मार्च माह में सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी का ऐलान किया था। इस घोषणा के पश्चात् अप्रैल में सभी केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को अपने वेतन के साथ जनवरी से मार्च तक के बकाया के साथ बढ़ा हुआ DA मिलने की उम्मीद थी।
    • इसके अतिरिक्त आगामी वर्ष में भी महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी नहीं की जाएगी। हालाँकि सभी केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को मौजूद दर पर महंगाई भत्ते प्रदान किये जाएंगे।

आवश्यकता

  • COVID-19 महामारी से उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति के कारण सरकार के समक्ष वित्त संबंधी गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है। COVID-19 महामारी से प्रभावित गरीब और कमज़ोर वर्गों के लिये स्वास्थ्य पर खर्च के साथ-साथ कल्याणकारी उपायों में भी बड़ी वृद्धि की आवश्यकता है जिसके लिये सरकार को अधिक-से-अधिक वित्त की आवश्यकता होगी।
  • COVID-19 प्रेरित लॉकडाउन के कारण सरकार को मिलने वाला कर एवं गैर-कर राजस्व लगभग रुक गया है, वहीं दूसरी और अर्थव्यवस्था को मंदी में प्रवेश करने से बचाने के लिये और अधिक आर्थिक प्रोत्साहन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

लाभ

  • केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के DA और DR में कटौती से मौजूदा वित्तीय वर्ष और वित्तीय वर्ष 2021-22 में तकरीबन 37,530 करोड़ रुपए की बचत की जा सकेगी। 
  • इसके माध्यम से सरकार को स्वास्थ्य एवं कल्याण के उपायों पर खर्च बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • विश्लेषकों के अनुसार, यदि राज्य सरकारें भी केंद्र सरकार के उपायों का पालन करती हैं तो इस माध्यम से कुल 82,566 करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है।

केंद्र के निर्णय का विरोध

  • केंद्र सरकार के इस निर्णय के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के विभिन्न संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
  • अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी महासंघ (All India Railwaymen's Federation) के अनुसार ‘सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय पूरी तरह गलत है और इसके कारण औसतन एक रेल कर्मचारी की लगभग डेढ़ महीने का वेतन  घट जाएगा। इसके अतिरिक्त पेंशनधारियों को भी इस निर्णय से नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

आगे की राह

  • केंद्र सरकार मौजूदा समय में महामारी से निपटने के लिये अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काफी प्रयास कर रही है।
  • इससे पूर्व केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक वर्ष की अवधि के लिये प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रियों सहित सभी सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती की मंज़ूरी दी थी।
    • इसके अतिरिक्त मंत्रिमंडल ने आगामी दो वर्षों तक ‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) को स्थगित करने का भी निर्णय लिया था। MPLADS पूर्ण रूप से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित योजना है, इस योजना के तहत एक संसदीय क्षेत्र के लिये वार्षिक रूप से दी जाने वाली राशि की अधिकतम सीमा 5 करोड़ रुपए हैं।  
  • आवश्यक है कि सरकार केंद्र सरकार के कर्मचारी संघों के पक्ष पर भी विचार करे, साथ ही इसके कारण कर्मचारियों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये भी कुछ व्यवस्था की जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के लिये हिंद महासागर आयोग का महत्त्व

प्रीलिम्स के लिये:

हिंद महासागर आयोग, मेस (MASE) कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हिंद महासागर आयोग का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हिंद महासागर आयोग’ (Indian Ocean Commision- IOC) में भारत को ‘पर्यवेक्षक’ के रूप में शामिल किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • IOC द्वारा आयोग के 34वीं मंत्रिपरिषद बैठक (6 मार्च 2020) में भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया।
  • IOC देश मुख्यत: ‘पश्चिमी हिंद महासागर’ (Western Indian Ocean- WIO) क्षेत्र में स्थित हैं। 
  • ‘पश्चिमी हिंद महासागर’ एक रणनीतिक क्षेत्र है जो अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी तट को न केवल हिंद महासागर से अपितु अन्य महत्त्वपूर्ण महासागारों से भी जोड़ता है।

हिंद महासागर आयोग (IOC):

  • ‘हिंद महासागर आयोग, एक अंतर-सरकारी संगठन है जो ‘दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर’ क्षेत्र में बेहतर सागरीय-अभिशासन (Maritime Governance) की दिशा में कार्य करता है तथा यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्रों को सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु मंच प्रदान करता है।
  • IOC की स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी तथा इसका मुख्यालय एबेने (Ebene) मॉरिशस में अवस्थित है। 
  • वर्तमान में हिंद महासागर आयोग में पाँच देश; कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रियूनियन (फ्राँस के नियंत्रण में) और सेशल्स शामिल हैं।
  • वर्तमान में भारत के अलावा इस आयोग के चार पर्यवेक्षक- चीन, यूरोपीय यूनियन, माल्टा तथा इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ला फ्रांसोफोनी (International Organisation of La Francophonie- OIF) हैं।
  • हाल ही में IOC ने समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में नेतृत्त्व का प्रदर्शन किया है। चूँकि भारत तथा हिंद महासागर के तटीय देशों के मध्य संबंधों का निर्धारण समुद्री सुरक्षा के आधार पर किया जाता है।  अत: भारत के लिये IOC के महत्त्व को समुद्री सुरक्षा के आधार पर समझा जाना चाहिये।

IOC

IOC की प्रमुख पहल:

यूरोपीय संघ का मेस (MASE) कार्यक्रम:

  • MASE कार्यक्रम वर्ष 2013 में यूरोपीय संघ द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम के रूप में प्रारंभ किया गया था। जिसका उद्देश्य दक्षिणी-पूर्वी अफ्रीका और हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देना था। MASE कार्यक्रम के तहत IOC ने दो क्षेत्रीय केंद्रों के साथ पश्चिमी हिंद महासागर की निगरानी और नियंत्रण के लिये एक तंत्र स्थापित किया है।
  • क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र: 
    • मेडागास्कर में स्थित 'क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र' (Regional Maritime Information Fusion Center-  RMIFC) का निर्माण समुद्री गतिविधियों की निगरानी और सूचना साझाकरण एवं विनिमय को बढ़ावा देकर समुद्री डोमेन के प्रति जागरूकता में वृद्धि करना था। 
    • सेशेल्स में स्थित क्षेत्रीय समन्वय संचालन केंद्र (Regional Coordination Operations Centre- RCOC) RMIFC के माध्यम से एकत्रित जानकारी के आधार पर समुद्र में संयुक्त रूप से समन्वित हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करेगा।
  • सोमालिया तट पर पाइरेसी पर संपर्क समूह:
    • IOC ने वर्ष 2018 और 2019 में 'सोमालिया तट पर पाइरेसी पर संपर्क समूह' (Contact Group on Piracy off the Coast of Somalia- CGPCS) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 

भारत की भूमिका:

  • IOC समुद्री सुरक्षा की दिशा में मज़बूती से कार्य कर रहा है लेकिन इसे मजबूत क्षेत्रीय नेतृत्त्वकर्त्ता की आवश्यकता है। भारत ने एक मज़बूत पर्यवेक्षक के रूप में IOC में शामिल होकर इस संगठन के प्रति अपनी रुचि जाहिर की है।
  • भारत पश्चिमी हिंद महासागर के समुद्री देशों की समुद्री क्षमता निर्माण में मदद कर सकता है। 
  • भारत, पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र के देशों की ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone- EEZ) क्षेत्र में गश्त करने की क्षमता विकसित करने में सहायता कर सकता है।

आगे की राह:

  • सोमालिया के तट पर समुद्री डकैती को रोकने सहित क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा संगठन को समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से एक प्रभावी ढाँचे के रूप में देखा जा रहा है। 
  • IOC में भारत के पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होने से भारत को न केवल राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी अपितु हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में अन्य देशों की भी सहायता प्रदान कर सकेगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक

प्रीलिम्स के लिये

कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक

मेन्स के लिये

विभिन्न वस्तुओं की कीमतों में वस्तुओं का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी ‘अप्रैल कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ (April Commodity Markets Outlook) के अनुसार, COVID-19 के कारण वर्ष 2020 में लगभग सभी कमोडिटीज़ के मूल्य में कमी आने का अनुमान है।

प्रमुख बिंदु

  • विश्व बैंक के ‘कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण ऊर्जा और धातु की कीमतें सर्वाधिक प्रभावित हुई हैं।
  • हालाँकि कृषि उत्पादों की कीमतों पर इसका कुछ अधिक प्रभाव नहीं हुआ है, किंतु आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, निर्यात प्रतिबंध और सरकार द्वारा किये गए भंडारण ने आम नागरिकों के समक्ष खाद्य असुरक्षा की चुनौती उत्पन्न कर दी है।
  • विश्व बैंक के अनुसार, मौजूदा समय में कमोडिटीज़ के मूल्य काफी अनिश्चित हो गए हैं और ये मुख्य रूप से महामारी की गंभीरता और उसकी अवधि पर निर्भर हो गए हैं।

कच्चे तेल की कीमतें हुईं सर्वाधिक प्रभावित

  • ध्यातव्य है कि COVID-19 के प्रकोप का सर्वाधिक प्रभाव कच्चे तेल के बाज़ार पर देखने को मिला है, क्योंकि इस महामारी के प्रसार को रोकने के लिये दुनिया भर में आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लागू किया गया है, जिसके कारण दुनिया भर में परिवहन पूरी तरह से रुक गया है।
    • ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर परिवहन के लिये दो-तिहाई तेल का उपयोग किया जाता है।
  • वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतें औसतन 35 डॉलर प्रति बैरल  होने का अनुमान है, जो तेल की मांग में अभूतपूर्व गिरावट को दर्शाता है। ध्यातव्य है कि इसी वर्ष जनवरी माह में कच्चे तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गई थीं, जिसके पश्चात् तेल की कीमतों में 70 प्रतिशत तक  गिरावट आ गई है और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और अन्य तेल उत्पादक देश भी तेल की कीमतों में वृद्धि करने में विफल रहे हैं।
  • कच्चे तेल की मांग वर्ष 2020 में लगभग 10 प्रतिशत घटने की उम्मीद है, जो बीते किसी भी गिरावट के मुकाबले दोगुना है।

औद्योगिक मांग में गिरावट का धातु की कीमत पर प्रभाव

  • COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक औद्योगिक मांग में काफी गिरावट हुई है, जिसका प्रभाव वर्ष 2020 की पहली तिमाही में अधिकांश धातु की कीमतों पर देखने को मिला है और धातु की कीमतों में काफी गिरावट आई है।
  • वर्ष 2020 में धातु की कीमतों में 13 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, क्योंकि वैश्विक मांग में कमी आई है और प्रमुख उद्योग बंद हो गए हैं।
  • धातु की कीमतें मुख्य रूप से वैश्विक गतिविधियों में मंदी से प्रभावित हुई हैं, विशेष रूप से चीन में जिसकी वैश्विक स्तर पर धातु की मांग में आधे से अधिक हिस्सेदारी है।

कृषि उत्पादों की कीमतें 

  • अधिकांश खाद्य बाज़ारों में आपूर्ति पूर्ण रूप से जारी है। हालाँकि, विभिन्न देशों में खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बढ़ रही है, क्योंकि आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और निर्यात प्रतिबंध जैसे कारकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • विश्व बैंक के ‘कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ के अनुसार, मुख्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों में जनवरी माह से लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट आई है।

कमोडिटी बाज़ार पर COVID-19 का दीर्घकालिक प्रभाव

  • विश्व बैंक के अनुसार, वस्तुओं के आयातकों और निर्यातकों को महामारी के कारण बाज़ारों में कुछ दीर्घकालिक बदलाव दिखने की संभावना है।
  • इसमें परिवहन की लागतों में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव और आयात की जाने वाली वस्तुओं का घरेलू वस्तुओं के साथ प्रतिस्थापन आदि शामिल हैं।
  • उदाहरण के लिये अब लोग घर से कार्य करने को अधिक वरीयता दे सकते हैं, कम यात्रा कर सकते हैं जिससे तेल की मांग में स्थायी गिरावट आ सकती है, साथ ही तेल आयात देशों के खातों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • सभी प्रकार की गतिविधियों पर लगे प्रतिबंध के कारण प्रदूषण काफी कम हो रहा है, यह बाज़ार उत्पादकों पर कम जीवाश्म ईंधन के उपयोग हेतु सार्वजनिक दबाव को बढ़ा सकता है।

‘कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ 

(Commodity Markets Outlook)

  • विश्व बैंक का ‘कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ प्रत्येक वर्ष में दो बार अप्रैल और अक्तूबर माह में प्रकाशित किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट में विश्व बैंक द्वारा ऊर्जा, कृषि, उर्वरक, धातु और कीमती धातुओं समेत प्रमुख कमोडिटीज़ के लिये विस्तृत बाज़ार विश्लेषण प्रदान किया जाता है।
  • विश्व बैंक द्वारा इस रिपोर्ट में प्रमुख वस्तुओं के उत्पादन, खपत और व्यापार से संबंधित आँकड़े भी शामिल किये जाते हैं।

आगे की राह

  • मौजूदा समय में लगभग संपूर्ण विश्व COVID-19 वैश्विक महामारी का सामना कर रहा है। इस महामारी के कारण विश्व की तमाम आर्थिक तथा गैर-आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हुई हैं और वैश्विक कमोडिटी बाज़ार भी इससे बच नहीं सका है।
  • विश्व बैंक द्वारा ‘कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक’ में खाद्य सुरक्षा को लेकर जो चिंता ज़ाहिर की गई है, वह काफी गंभीर है और निम्न आय वाले देश इसके प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील हैं।
    • ध्यातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) ने भी इस संबंध में चिंता ज़ाहिर की है, संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार COVID-19 महामारी के कारण इस वर्ष के अंत तक लगभग दोगुने लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में जा सकते हैं।
  • आवश्यक है कि इस विषय से संबंधित सभी हितधारकों को एक मंच पर आकर इस मुद्दे को हल करने हेतु विचार विमर्श करना चाहिये और नए उपायों की खोज करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

तेल के मूल्य स्तर में गिरावट तथा चीनी उद्योग

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में चीनी मिलों की संख्या, गन्ने का मूल्य निर्धारण, भारत की गन्ना उत्पादन में वैश्विक स्थिति

मेन्स के लिये:

भारत में गन्ना उद्योग

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट के साथ ही चीनी की कीमतों में भी तेज़ी से गिरावट देखी गई।

मुख्य बिंदु:

चीनी की कम मांग के कारण:

  • भोजनालय, शादियों सहित अन्य सामाजिक कार्य बंद होना। 
  • लोगों द्वारा आइसक्रीम तथा पेय पदार्थों का, गले के संक्रमण के डर से परहेज करना।  

क्रूड ऑयल तथा चीनी उद्योग: 

  • चीनी की कीमतों में गिरावट का एक बड़ा कारण क्रूड ऑयल की कीमतें में गिरावट होना है। गन्ने के रस का उपयोग सामान्यत: चीनी बनाने तथा शराब के लिये किण्वित करने में किया जाता है। 
  • जब तेल की कीमतें अधिक होती है तो मिलें इथेनॉल; जिसका इस्तेमाल शराब बनाने में किया जाता है, को ‘इथेनॉल मिश्रित ईंधन’ बनाने वाली इकाइयों को बेच देती है। परंतु WTI की कीमतों में गिरावट के कारण इथेनॉल की मांग में कमी होने से चीनी की कीमतों में गिरावट देखी गई। 

भारत पर प्रभाव (Impact on India):

  • ब्राज़ील में वर्ष 2020 में बहुत अधिक गन्ना उत्पादन हुआ है साथ ही महामारी के कारण चीनी की खपत में गिरावट आई है। यह भारतीय चीनी मिलों तथा गन्ना किसानों दोनों को प्रभावित करेगा।
  • हालाँकि इंडोनेशिया को चीनी के अधिक निर्यात की उम्मीद है क्योंकि इंडोनेशिया ने कच्चे चीनी पर आयात शुल्क को 15% से घटाकर 5% कर दिया है तथा इंडोनेशिया ज्यादातर कच्ची चीनी थाईलैंड से खरीदते हैं, जो वर्तमान में सूखे का सामना कर रहा है। 

चीनी के अलावा अन्य उद्योगों पर प्रभाव:

  • चीनी उद्योग के कारण केवल चीनी की मांग/आपूर्ति प्रभावित नहीं होती है अपितु इससे शराब, पेट्रोल उद्योग तथा बायो ईंधन संबंधी सरकार की नीतियों पर दूरगामी प्रभाव होगा क्योंकि-
    • परंपरागत रूप से उद्योगों में एल्कोहल का उत्पादन चीनी के उप-उत्पाद शीरे से किया जाता है।
    • चीनी अधिशेष का उपयोग इथेनॉल-मिश्रित ईंधन कार्यक्रम में किया जाता है।

भारत में चीनी उद्योग:

  • चीनी उद्योग कृषि आधारित एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों की आजीविका प्रभावित करता है। चीनी मिलों में लगभग 5 लाख कामगार परोक्ष रूप से नियोजित हैं।
  • ब्राज़ील के बाद विश्व में भारत दूसरा बड़ा चीनी उत्पादक देश है और सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
  • 31/01/2018 की स्थिति के अनुसार, देश में 735 स्थापित चीनी मिलें हैं। जिनमें 327 सहकारी, 365 निजी, 43 सरकारी नियंत्रण में है। 
  • गन्ना (नियंत्रण) आदेश, (Sugarcane (Control) Order) 1966 प्रारंभ में गन्ने के मूल्य को नियंत्रित करता था। इसमें वर्ष 2009 में संशोधन करके गन्ने के मूल्य निर्धारण के लिये ‘सांविधिक न्यूनतम मूल्य’ (Statutory Minimum Price- SMP) प्रणाली अपनाई गई। बाद में इसे भी ‘उचित एवं  लाभकारी मूल्य’ (Fair and Remunerative Price- FRP) से प्रतिस्थापित किया गया। 
  • केंद्र सरकार, राज्य सरकारों तथा चीनी उद्योग संगठनों के साथ परामर्श करके ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) की सिफारिशों के आधार पर FRP का निर्धारण करती है। 

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

क्लासिकल स्वाइन बुखार

प्रीलिम्स के लिये:

क्लासिकल स्वाइन बुखार, अफ्रीकी स्वाइन बुखार, लैपिनाइज़्ड वैक्सीन

मेन्स के लिये:

क्लासिकल स्वाइन बुखार से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, पूर्वी असम के कुछ ज़िलों में क्लासिकल स्वाइन बुखार (Classical Swine Fever) के कारण एक सप्ताह के भीतर 1300 से अधिक सूअरों की मृत्यु हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि क्लासिकल स्वाइन बुखार को हॉग हैजा (Hog Cholera) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक संक्रामक बुखार है जो सूअरों के लिये जानलेवा साबित होता है।
    • अफ्रीकी स्वाइन बुखार एक अन्य प्रकार का स्वाइन बुखार है।
  • स्वाइन फ्लू से मनुष्य संक्रमित होते हैं, जबकि इसके विपरीत क्लासिकल स्वाइन बुखार से केवल सूअर ही संक्रमित होते हैं। समय रहते सूअरों के उचित टीकाकरण से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

अफ्रीकी स्वाइन बुखार:

  • अफ्रीकी स्वाइन बुखार एक गंभीर संक्रामक रोग है जो घरेलू और जंगली सूअरों को प्रभावित करता है।
  • यह रोग जीवित या मृत सूअरों, घरेलू या जंगली और इनसे बने मांस उत्पादों द्वारा फैलता है।
  • इस रोग का कोई एंटीडोट या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।

रोकथाम और नियंत्रण:

  • संक्रमित सूअरों के शवों को 3-4 फीट गहरे गढ़े में दफनाया या जलाया जाना चाहिये।
  • CSF के प्रकोप को रोकने हेतु सख्त और कठोर स्वच्छता उपचार लागू करना चाहिये।

आर्थिक पहलू:

  • 20 वीं पशुधन जनगणना, 2012-2019 के अनुसार, असम में सबसे अधिक सूअर पाले जाते हैं।
    • असम में पॉर्क (सूअर का कच्चा मांस) का वार्षिक बाज़ार मूल्य 1 बिलियन डॉलर है। 
    • देश में उत्पादित 4.26 लाख मीट्रिक टन पोर्क में से  65% से अधिक पोर्क की खपत असम तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होती है।
  • क्लासिकल स्वाइन बुखार की वजह से देश को लगभग 4.299 बिलियन रुपए का वार्षिक नुकसान होता है।

लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन:

  • भारत में इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1964 से यूके आधारित एक लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है।
  • इस वैक्सीन का निर्माण बड़ी संख्या में खरगोशों को मार कर किया जाता है।
  • देश में लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन की प्रति वर्ष 22 मिलियन खुराक की जरूरत हैं वहीं लैपिनाइज़्ड वैक्सीन का उत्पादन प्रति वर्ष सिर्फ 1.2 मिलियन खुराक ही हो पाता है।
  • हाल ही में भारत में भी क्लासिकल स्वाइन बुखार से बचाने हेतु ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) के तहत एक नई वैक्सीन विकसित की गई है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

श्रम संबंधी संसदीय समिति की रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

श्रम संबंधी संसदीय समिति की रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम संबंधी संसदीय समिति ने नियम-280 के तहत औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2019 (The Industrial Relations Code-2019) पर लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।  

प्रमुख बिंदु:

  • "छंटनी और तालाबंदी" से संबंधित प्रावधानों की जाँच कर रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति मंत्रालय के इस तर्क से सहमत है कि बिजली, कोयले इत्यादि की कमी मज़दूरों की वजह से नहीं होती है, इसलिये उनकी अनुपलब्धता के कारण कामकाज ठप होने की स्थिति में श्रमिकों को मुआवजा दिया जाना चाहिये। 
  • समिति का मानना है कि बिजली की कमी, मशीनरी के टूटने की स्थिति में मज़दूरों को 45 दिनों के लिये 50% मज़दूरी का भुगतान उचित हो सकता है। नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच एक समझौते के बाद इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
  • हालाँकि श्रम संबंधी संसदीय समिति का मानना है कि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान  श्रमिकों की मज़दूरी का भुगतान तब तक अनुचित होगा जब तक उद्योग पुनः पूर्ण रूप से संचालित न होने लगे। इन प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप, बाढ़, सुपर साइक्लोन इत्यादि शामिल हैं। 
  • कानून सभी के लिये उचित और न्यायसंगत होना चाहिये और किसी भी ऐसी परिस्थिति में जो नियोक्ता के नियंत्रण से परे हो, उसे वेतन का इतना हिस्सा प्रदान करने हेतु मजबूर नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह न केवल कर्मचारियों को बल्कि नियोक्ताओं को भी प्रभावित करता है। 
  • ध्यातव्य है की COVID-19 की वजह से देशभर में लॉकडाउन चल रहा है। अतः समिति ने COVID-19 को प्राकृतिक आपदा में शामिल करने का सुझाव दिया है।
  • समिति ने सरकार से उद्योगों को हर संभव मदद करने का सुझाव प्रस्तुत किया है।

औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2019

(The Industrial Relations Code- 2019):

  • इस अधिनियम में ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Union Act of 1926), औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 (Industrial Employment (Standing Order) Act of 1946) तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act of 1947) के प्रासंगिक प्रावधानों को मिश्रित, सरलीकृत तथा तर्कसंगत बना कर समाहित किया गया है।
  • इस अधिनियम के तहत कंपनियाँ श्रमिकों को प्रत्यक्ष तौर पर एक निश्चित अवधि (Fixed Term Employment) के लिये अनुबंधित कर सकती हैं।
  • इस अधिनियम के तहत किसी कंपनी में 100 या उससे अधिक कर्मचारी कार्य कर रहे हों तो कर्मचारियों की संख्या में कमी करने हेतु सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक होगी।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक के प्रस्तावित मसौदे में यह सीमा 300 कर्मचारियों की थी।
  • हालाँकि, इसमें जोड़े गए एक प्रावधान के तहत कर्मचारियों की इस संख्या को सरकार अधिसूचना के माध्यम से बदल सकती है।
  • इस अधिनियम की महत्त्वपूर्ण विशेषता निश्चित अवधि के रोज़गार की अवधारणा को वैधानिकता प्रदान करना है।
  • अनुबंध अवधि के दौरान श्रमिकों को स्थायी कर्मचारियों की तरह ही सामाजिक सुरक्षा का लाभ देने का प्रावधान है।

आगे की राह:

  • प्राकृतिक आपदा से देश की अर्थव्यवस्था को बचाने की ज़रूरत है परंतु वर्तमान समय में COVID-19 जैसी महामरी को ध्यान में रहते हुए श्रमिकों/कर्मचारियों के हित में भी निर्णय लेना चाहिये। साथ ही प्राकृतिक आपदा से बचाव की तैयारी न केवल सरकार का उत्तरदायित्त्व है बल्कि सभी व्यक्तियों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिये। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 अप्रैल, 2020

खोंगजोम दिवस

प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को मणिपुर में ‘खोंगजोम दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस का आयोजन वर्ष 1891 के एंग्लो-मणिपुर युद्ध (Anglo-Manipur War) में लड़ने वाले योद्धाओं को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से किया जाता है। ध्यातव्य है कि एंग्लो-मणिपुर युद्ध, ब्रिटिश साम्राज्य तथा मणिपुर साम्राज्य के मध्य एक सशस्त्र संघर्ष था, जो कि 31 मार्च से 27 अप्रैल 1891 तक लड़ा गया था। एंग्लो-मणिपुर युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की जीत हुई थी। इस ऐतिहासिक युद्ध की शुरुआत मणिपुर के राजकुमारों के मध्य ईर्ष्या, असंतोष, अविश्वास और कलह के कारण हुई थी। मणिपुर के तत्कालीन महाराजा चंद्रकीर्ति सिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके सबसे बड़े पुत्र सुरचंद्र ने वर्ष 1886 में सिंहासन ग्रहण किया। सुरचंद्र के सत्ता में आने के पश्चात् राजकुमारों के मध्य कलह शुरू हो गई। शाही परिवार के आंतरिक असंतोष का लाभ उठाते हुए, ब्रिटिश सरकार ने मणिपुर के प्रशासन में खुले तौर पर हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। असल में, ब्रिटिश सरकार शुरू से ही मणिपुर को अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी, किंतु अब तक यह संभव न हो पाया था। यह युद्ध मणिपुर के खोंगजोम की खेबा पहाड़ियों पर लड़ा गया था और इसलिये इस दिवस का नाम खोंगजोम दिवस है। 27 अप्रैल 1891 को युद्ध समाप्त होने के पश्चात् मणिपुर पर अंग्रेज़ों का प्रत्यक्ष नियंत्रण हो गया। इस युद्ध के बार ब्रिटिश सरकार ने कई लोगों के विरुद्ध मुकदमा चलाया और उन्हें मृत्यु दंड दिया।

पी.वी. सिंधु 

विश्व चैंपियन पी.वी. सिंधु (P.V. Sindhu) को विश्व बैडमिंटन महासंघ (Badminton World Federation- BWF) के ‘आई एम बैडमिंटन’ (I am Badminton) अभियान का एंबेसडर नामित किया गया। इस अभियान में खिलाड़ियों को बैडमिंटन खेल के प्रति अपना लगाव और सम्मान व्यक्त करने का मंच दिया जाता है जहाँ वे ईमानदारी से और साफ सुथरा खेल खेलने की बात करते हैं। पी.वी. सिंधु प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिनका जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद (भारत) में हुआ था। उल्लेखनीय है कि पी.वी. सिंधु ओलंपिक में रजत पदक और BWF विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। वर्ष 2014 में अपने पहले राष्ट्रमंडल खेलों (Commonwealth Games- CWG) में महिला एकल में कांस्य जीता था। विश्व बैडमिंटन महासंघ (Badminton World Federation- BWF) बैडमिंटन खेल का एक अंतर्राष्ट्रीय शासकीय निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी।

‘आप्तमित्र’ हेल्पलाइन

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने COVID-19 महामारी का मुकाबला करने के लिये ‘आप्तमित्र’  (Apthamitra) हेल्पलाइन और मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च की है। इस हेल्पलाइन और एप्लीकेशन का उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को आवश्यक परामर्श और मार्गदर्शन प्रदान करना है। ‘आप्तमित्र’ हेल्पलाइन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक चालू रहेगी। इसके लिये बंगलुरु में चार केंद्र और मैसूर तथा मैंगलोर (बंटवाल) में 6 हेल्पलाइन केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं। जब किसी व्यक्ति में COVID-19 के लक्षण होते हैं, तो वह ‘आप्तमित्र’ के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर सकता है, जिसके पश्चात् उन्हें लक्षणों के आधार पर चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा सलाह दी जाएगी। कर्नाटक सरकार द्वारा शुरू की गई इस सेवा में दो स्तरीय प्रणाली है और जहाँ प्रथम स्तर पर आयुष, नर्सिंग या फार्मा अंतिम वर्ष के छात्र सेवा देंगे वहीं दूसरे स्तर पर MBBS अथवा इंटिग्रेटेड मेडिसीन अथवा आयुष स्वयंसेवक डॉक्टर परामर्श एवं सलाह के लिये उपलब्ध रहेंगे। यह हॉटस्पॉट क्षेत्रों में ऐसे लोगों की पहचान करने में भी लाभदायक साबित होगा जिनमें इन्फ्लूएंज़ा जैसे लक्षण, COVID-19 के लक्षण या गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण है। 

झारखंड में तंबाकू उत्पादों की बिक्री और प्रयोग पर रोक

देश भर में कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप के बीच झारखंड राज्य ने पहल करते हुए सिगरेट, बीड़ी, पान-मसाला, हुक्का, खैनी, जर्दा, गुटका और ई-सिगरेट जैसे सभी तंबाकू उत्पादों के उपयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। झारखंड सरकार के अनुसार, लोग इन चीजों का प्रयोग करते हैं और जगह-जगह थूकते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है, जिसके कारण इन उत्पादों पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्णय लिया है। इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, राज्य के सभी ज़िलों के उपायुक्तों एवं पुलिस अधीक्षकों को इस आदेश का पालन करवाने और उल्लंघन होने पर कार्रवाई करने का दिशा-निर्देश दिया गया है। साथ ही सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी परिसरों में इस संदर्भ में सूचना बोर्ड लगवाने के भी निर्देश दिये गए हैं।


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