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डेली न्यूज़

  • 24 Mar, 2021
  • 32 min read
भूगोल

केन-बेतवा लिंक परियोजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों द्वारा केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken Betwa Link Project- KBLP) को लागू करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जो नदियों को आपस में जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan) की पहली परियोजना है।

  • इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना को लागू करने के लिये दोनों राज्यों द्वारा  विश्व जल दिवस (22 मार्च) के अवसर पर केंद्र के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP):

  • केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project- KBLP) नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है, इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्य प्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है।
    • यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के झाँसी, बांदा, ललितपुर और महोबा ज़िलों तथा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर ज़िलों में फैला हुआ है।
  • इस परियोजना में 77 मीटर लंबा और 2 किमी. चौड़ा दौधन बांँध (Dhaudhan Dam) एवं  230 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण कार्य शामिल है।
  • केन-बेतवा देश की 30 नदियों को जोड़ने हेतु शुरू की गई नदी जोड़ो परियोजनाओं (River Interlinking Projects ) में से एक है।
  • राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण परियोजना में देरी हुई है।

नदियों को जोड़ने का लाभ:

  • सूखे की घटनाओं में कमी लाना: नदियों को आपस में जोड़ने से बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखे की पुनरावृत्ति का समाधान होगा।
  • किसानों को लाभ: इससे किसानों की आत्महत्या की दर पर अंकुश लगेगा और सिंचाई के स्थायी साधन प्रदान करके तथा भूजल पर अत्यधिक निर्भरता को कम करके उनके लिये स्थायी आजीविका सुनिश्चित करेगा।
  • विद्युत उत्पादन: बहुउद्देशीय बांँध के निर्माण से न केवल जल संरक्षण में तेज़ी आएगी, बल्कि 103 मेगावाट जल-विद्युत का उत्पादन भी होगा और 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति की जा सकेगी।
  • जैव विविधता का जीर्णोद्धार: कुछ विचारकों का मानना है कि पन्ना टाइगर रिज़र्व (Panna Tiger Reserve) के जल संकट वाले क्षेत्रों में बांँधों का निर्माण होने से इस रिज़र्व के जंगलों का जीर्णोद्धार होगा जो इस क्षेत्र में जैव विविधता को समृद्ध करेगा।

मुद्दे: 

  • पर्यावरण: कुछ पर्यावरणीय और वन्यजीव संरक्षण संबंधी चिंताओं जैसे- पन्ना बाघ अभयारण्य के महत्त्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्र का हिस्सा इस परियोजना में आता है, के कारण राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) और अन्य उच्च अधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त करने में हो रही देरी के कारण यह परियोजना अटकी हुई है।
  • आर्थिक: परियोजना के कार्यान्वयन और रखरखाव के साथ एक बड़ी आर्थिक लागत जुड़ी हुई है, जो परियोजना के कार्यान्वयन में देरी के कारण बढ़ रही है।
  • सामाजिक: परियोजना के कार्यान्वयन से उत्पन्न विस्थापन के कारण पुनर्निर्माण और पुनर्वास के साथ-साथ इसमें सामाजिक लागत भी शामिल होगी।

केन और बेतवा नदी: 

  • केन और बेतवा नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है, ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
  • केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी में मिलती है तथा बेतवा नदी से यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में मिलती है।
  •  राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध  बेतवा नदी पर निर्मित हैं।
  • केन नदी पन्ना बाघ अभयारण्य से होकर गुज़रती है।

नदियों को आपस में जोड़ने हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना:

  • नेशनल रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट (NRLP) जिसे औपचारिक रूप से ’नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान’ के रूप में जाना जाता है, का उद्देश्य अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण परियोजनाओं के माध्यम से जल 'अधिशेष' बेसिन, जहाँ जल की मात्रा अधिक है, से जल की कमी वाले 'बेसिन' में जल का हस्तांतरण करना है, ताकि सूखे आदि की समस्या से निपटा जा सके।
  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) द्वारा सुसंगत या औचित्यपूर्ण रिपोर्ट ( feasibility reports- FRs) तैयार करने हेतु 30 लिंक्स (प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 16 और हिमालयी क्षेत्र में 14) की पहचान की है।
  • NPP को अगस्त 1980 में जल-अधिशेष बेसिन से जल की कमी वाले बेसिन में जल को स्थानांतरित करने हेतु तैयार किया गया था।

Bay-of-Bengal

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गांधी शांति पुरस्कार

चर्चा में क्यों?

बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान और ओमान के दिवंगत सुल्तान, काबूस बिन सईद अल सैद को क्रमशः वर्ष 2020 और वर्ष 2019 के लिये गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

गांधी शांति पुरस्कार:

  • इस वार्षिक पुरस्कार को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में अहिंसा के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने वाले लोगों की पहचान करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • पुरस्कार: इसमें एक करोड़ रुपए नकद राशि, एक पट्टिका और एक प्रशस्ति पत्र तथा एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा उत्पाद शामिल होता है।
  • यह पुरस्कार किसी व्यक्ति, संघ, संस्थान अथवा संगठन को दिया जा सकता है
    • इस पुरस्कार को दो व्यक्तियों/संस्थानों के बीच विभाजित भी किया जा सकता है, यदि चयनकर्त्ता यह मानते हैं कि वे दोनों समान रूप से पुरस्कार के योग्य है।
    • यह राष्ट्रीयता, पंथ, नस्ल या लिंग आदि के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्रदान किया जा सकता है।
  • चयन समिति: विजेताओं का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, देश का मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता, लोकसभा अध्यक्ष तथा सुलभ इंटरनेशनल का संस्थापक शामिल हैं और इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

शेख मुजीबुर रहमान

  • उन्हें ‘बंगबंधु’ के नाम से जाना जाता था। वे बांग्लादेश के ‘जतिर पिता अर्थात् ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में भी जाने जाते हैं।
  •  शेख मुजीबुर रहमान का जन्‍म अविभाजित भारत के गोपालगंज ज़िले के तुंगीपारा गाँव (अब बांग्लादेश) में 17 मार्च, 1920 को हुआ था और उनका निधन 15 अगस्त, 1975 को ढाका, बांग्लादेश में हुआ।
    • वर्ष 2020 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी मनाई गई थी।
  • वह एक बंगाली नेता थे, जो बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री (1972-75) बने और वर्ष 1975 में वहाँ के राष्ट्रपति बने।
  • उन्होंने अपने औपचारिक राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1949 में अवामी लीग के सह-संस्थापक के रूप में की थी। 
  • उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लिये राजनीतिक स्वायत्तता की वकालत की और यही हिस्सा आगे चलकर बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया।
  • उन्हें गांधी शांति पुरस्कार 2020 के लिये चुना गया है, क्योंकि उन्होंने अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तन लाने में उत्कृष्ट योगदान दिया था।
  • वे मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के पक्षधर थे और न केवल बांग्लादेश के लोगों बल्कि भारतीयों के लिये भी वे एक नायक हैं।
    • शेख मुजीबुर रहमान की विरासत और प्रेरणा ने दोनों देशों के संबंधों को अधिक व्यापक और गहन किया है तथा उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग की वजह से पिछले एक दशक में दोनों देशों ने साझेदारी, प्रगति और समृद्धि की मज़बूत नींव रखी है। 

काबूस बिन सईद अल सैद

  • वे अरब जगत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले शासक रहे हैं। उन्होंने लगभग आधी शताब्दी तक ओमान पर शासन किया।
  • वर्ष 1970 में उन्होंने अंग्रेज़ों की मदद से ओमान में तख्तापलट किया और 29 वर्ष की उम्र में वे ओमान के सुल्तान बने।
  • वे एक दूरदर्शी नेता थे, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के समाधान में संयम और मध्यस्थता की नीति ने उन्हें दुनिया भर में प्रशंसा और सम्मान दिलाया। 
  • उन्हें भारत और ओमान के बीच विशेष संबंधों का वास्तुकार भी माना जाता है। 
    • उन्होंने भारत में अध्ययन किया था और सदैव भारत के साथ विशेष संबंध बनाए रखने पर ज़ोर दिया।
  • गांधी शांति पुरस्कार 2019 भारत और ओमान के बीच संबंधों को मज़बूत करने और खाड़ी क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को मान्यता देता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु वित्त

चर्चा में क्यों?

भारत के वित्त मंत्री ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिये अपनी प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने का आग्रह किया, जो जलवायु से संबंधित प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

  • वित्त मंत्री ने यह वक्तव्य ‘आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ (ICDRI) को संबोधित करने के दौरान दिया।

प्रमुख बिंदु:

जलवायु वित्त:

  • जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है - जो कि सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो।
  • यह ऐसे शमन और अनुकूलन संबंधी कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे।

    UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता के तहत अधिक वित्तीय संसाधनों वाले देशों से ऐसे देशों के लिये वित्तीय सहायता की मांग की जाती है, जिनके पास कम वित्तीय संसाधन हैं और जो अधिक असुरक्षित हैं।

  • यह ‘समान लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी और संबंधित क्षमताओं’ (CBDR-RC) के सिद्धांत के अनुसार है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न मुद्दों से निपटने और पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये जलवायु वित्त महत्त्वपूर्ण है।

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिबद्धता:

  • वर्ष 2010 में कानकुन समझौते के माध्यम से विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विकसित देशों ने वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष संयुक्त रूप से 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) की स्थापना कानकुन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में की गई और वर्ष 2011 में इसे वित्तीय तंत्र की संचालन इकाई के रूप में नामित किया गया।
  • वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों ने इस लक्ष्य की पुष्टि की और इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि वर्ष 2025 से पहले प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आधार स्तर का एक नया सामूहिक लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा।

चुनौतियाँ:

  • जलवायु वित्तपोषण के लिये विकसित देशों द्वारा दिये गए लगभग 75% धन का उपयोग घरेलू स्तर पर किया जाता है, जबकि विकसित देशों में औद्योगीकरण अभियान के परिणामस्वरूप प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों में उत्सर्जन और उनके द्वारा उत्पन्न प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण बोझ वहन करने वाले विकासशील देश हैं।
  • जुलाई 2019 तक GCF के तहत एकत्रित राशि केवल 10.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो कि विकासशील देशों के लिये उनके ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDCs) को लागू करने हेतु अनुमानित 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में अत्यधिक अपर्याप्त है।
  • अधिकांश जलवायु निधियों को अनुकूलन के बजाय शमन के अंतर्गत शामिल किया गया है (शमन नए समाधानों को तैयार करने और नई रणनीतियों को पूर्ण करने के तरीके को स्पष्ट करता है, जबकि अनुकूलन वर्तमान मुद्दों को प्रबंधित करता है)।
  • जलवायु वित्त ने ज़्यादातर नवीकरणीय ऊर्जा, हरित भवनों और शहरी परिवहन पर ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि उनके संबंध में नकदी प्रवाह चक्र का अनुमान लगाना आसान है एवं अन्य क्षेत्र जो हमारे प्राकृतिक और सामाजिक पारिस्थितिक तंत्रों के बराबर परिमाण रखते हैं, जैसे- कृषि, भूमि, जल का क्षरण आदि में कम रुचि देखी गई है।

भारत में जलवायु वित्तपोषण:

  • भारत में जलवायु वित्तपोषण का सबसे बड़ा स्रोत सार्वजनिक धन है, जिसे बजटीय आवंटन और भारत सरकार द्वारा स्थापित जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई निधियों और योजनाओं जैसे- राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि (NCEF) और राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAF) के माध्यम से पारित किया जाता है।
  • भारत सरकार जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत स्थापित आठ मिशनों के माध्यम से भी धन मुहैया कराती है।
  • सरकार ने वित्त मंत्रालय के तहत एक ‘जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई’ (CCFU) की स्थापना की है, जो सभी जलवायु परिवर्तन वित्तपोषण मामलों के लिये एक नोडल एजेंसी है।
    • हालाँकि भारत में सार्वजनिक धन अपर्याप्त होने के साथ-साथ इसका दुरुपयोग भी किया जाता है। उदाहरण के लिये NCEF फंड का उपयोग नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MoNRE) में बजटीय कमी को पूरा करने के लिये किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त भारत में सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित परियोजनाओं की जलवायु संबंधी प्रासंगिकता का कोई आकलन नहीं किया जाता है, जिससे जलवायु कार्रवाई के लिये वित्तीय आवंटन का मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता है।

    आगे की राह:

    • भारत में जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये विभिन्न नीतिगत और उद्योग संबंधी कार्यवाहियों को परिवर्तित करना होगा। यह जलवायु संबंधी मुद्दों पर वैकल्पिक समाधान की मांग को आगे बढ़ाएगा, जिससे जलवायु वित्त प्रयासों को और गति मिलेगी।
    • जलवायु वित्तपोषण को इस तरह से संबोधित करने की आवश्यकता है जो बेहतर रूप से विकासशील देशों के लिये इसके वास्तविक मूल्य और विकसित देशों द्वारा किये गए वास्तविक प्रयास को दर्शाता है।

    स्रोत- द हिंदू


    भारतीय इतिहास

    शहीदी दिवस

    चर्चा में क्यों?

    शहीदी दिवस (23 मार्च) के अवसर पर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलि दी गई। 

    • 23 मार्च को ‘शहीदी दिवस’ या ‘सर्वोदय दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • इस दिन (23 मार्च) और 30 जनवरी को मनाए जाने वाले शहीद दिवस (महात्मा गांधी की हत्या) के संबंध में भ्रमित नहीं होना चाहिये। 

    प्रमुख बिंदु:

    शहीदी दिवस के बारे में:

    • हर वर्ष 23 मार्च को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1931 में फांँसी दी थी।
      • इन तीनों को वर्ष 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में फांँसी पर लटका दिया गया था। क्योकि उन्होंने जॉन सॉन्डर्स को ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट समझकर उसकी हत्या कर दी थी।
        • यह स्कॉट ही था जिसने लाठीचार्ज का आदेश दिया, जिसके कारण अंततः लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
      • लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की सार्वजनिक घोषणा करने वाले भगत सिंह इस गोलीबारी के बाद कई महीनों तक छिपते रहे और उन्होंने एक सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अप्रैल 1929 में दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में दो विस्फोट किये।
        • उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे के साथ अपनी गिरफ्तारी दी। 
    • उनके जीवन ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया और उनकी मृत्यु ने इन्हें एक मिसाल के रूप में कायम किया। उन्होंने आज़ादी के लिये अपना रास्ता खुद बनाया और वीरता के साथ राष्ट्र हेतु कुछ करने की अपनी इच्छा को पूरा किया। उसके बाद कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा भी उनके मार्ग का अनुसरण किया गया ।

    भगत सिंह:

    Bhagat-singh

    • भगत सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1907 में  भागनवाला (Bhaganwala) के रूप में हुआ तथा इनका पालन पोषण पंजाब के दोआब क्षेत्र में स्थित जालंधर ज़िले में संधू जाट किसान परिवार में हुआ।
      • ये एक ऐसी पीढ़ी से ताल्लुक रखते थे जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दो निर्णायक चरणों में हस्तक्षेप करती थी- पहला लाल-बाल-पाल के 'अतिवाद' का चरण और दूसरा अहिंसक सामूहिक कार्रवाई का गांधीवादी चरण।
    • वर्ष 1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया , जिसकी स्थापना और प्रबंधन लाला लाजपत राय एवं भाई परमानंद ने किया था।
      • शिक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी का विचार लाने के उद्देश्य से इस कॉलेज को सरकार द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के विकल्प के रूप में स्थापित किया गया था।
    • वर्ष 1924 में वह कानपुर में सचिंद्रनाथ सान्याल द्वारा एक साल पहले शुरू किए गए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Republican Association) के सदस्य बने। एसोसिएशन के मुख्य आयोजक चंद्रशेखर आज़ाद थे और भगत सिंह उनके बहुत करीब हो गए।
      • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य के रूप में भगत सिंह ने ‘बम का  दर्शन’ (Philosophy of the Bomb) को गंभीरता से लेना शुरू किया।
      • उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशस्त्र क्रांति को एकमात्र हथियार माना।
    • वर्ष 1925 में भगत सिंह लाहौर लौट आए और अगले एक वर्ष के भीतर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ नामक एक उग्रवादी युवा संगठन का गठन किया।
    • अप्रैल 1926 में भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ संपर्क स्थापित किया तथा उनके साथ मिलकर ‘श्रमिक और किसान पार्टी’ की स्थापना की, जिसने पंजाबी में एक मासिक पत्रिका कीर्ति का प्रकाशन किया। 
      • भगत सिंह द्वारा पूरे जोश के साथ कार्य किया गया और अगले वर्ष वे कीर्ति के संपादकीय बोर्ड में शामिल हो गए।
    • उन्हें वर्ष 1927 में काकोरी कांड (Kakori Case) में संलिप्त होने के आरोप में पहली बार गिरफ्तार किया गया था तथा अपने विद्रोही (Vidrohi) नाम से लिखे गए लेख हेतु आरोपी माना गया। उन पर दशहरा मेले के दौरान लाहौर में एक बम विस्फोट के लिये ज़िम्मेदार होने का भी आरोप लगाया गया था।
    • वर्ष 1928 में भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) कर दिया। वर्ष 1930 में जब आज़ाद को गोली मारी गई, तो उनके साथ ही HSRA भी समाप्त हो गया।
      • नौजवान भारत सभा ने पंजाब में HSRA का स्थान ले लिया।
    • जेल में उनका समय कैदियों के लिये रहने की बेहतर स्थिति की मांग हेतु विरोध प्रदर्शन करते हुए बीता। उन्होंने जनता की सहानुभूति प्राप्त की, खासकर तब जब वे साथी अभियुक्त जतिन दास के साथ भूख हड़ताल में शामिल हुए।
      • सितंबर 1929 में जतिन दास की भूख से मृत्यु होने के कारण हड़ताल समाप्त हो गई। इसके दो साल बाद भगत सिंह को दोषी ठहराकर 23 साल की उम्र में फांँसी दे दी गई।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    नए बैंक लाइसेंसों की स्क्रीनिंग के लिये नई समिति

    चर्चा में क्यों 

    भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सार्वभौमिक बैंकों और लघु वित्त बैंकों (SFBs) के आवेदनों के मूल्यांकन के लिये RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यीय स्थायी बाह्य सलाहकार समिति (SEAC) का गठन किया है

    • स्थायी बाह्य सलाहकार समिति (SEAC) में बैंकिंग, वित्तीय क्षेत्र और अन्य प्रासंगिक क्षेत्रों के अनुभवी प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे

    प्रमुख बिंदु 

    समिति के बारे में :

    • कार्यकाल: समिति का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा।
    • समिति का सचिवालय : RBI के विनियमन विभाग द्वारा समिति को सचिवालयी स्तर की सहायता प्रदान की जाएगी। 
    • कार्य: सार्वभौमिक बैंक और SFBs के आवेदकों की प्राथमिक योग्यता सुनिश्चित करने के लिये आवेदनों का सर्वप्रथम मूल्यांकन RBI द्वारा किया जाएगा , जिसके बाद SEAC आवेदनों का मूल्यांकन करेगा

    लघु वित्त बैंक (SFBs):

    • लघु वित्त बैंक वे वित्तीय संस्थान हैं जो देश के उन क्षेत्रों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं जहाँ बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध नहीं है
    • लघु वित्त बैंक, कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत हैं

    गतिविधियों का दायरा:

    • लघु वित्त बैंक मुख्य रूप से लघु व्यावसायिक इकाइयों, लघु और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्योगों तथा असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं को वित्तीय समावेशन जैसे- जमा करने और ऋण देने की बुनियादी बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करेगा
    • यह अन्य गैर-जोखिम साझाकरण सरल वित्तीय सेवाओं से संबंधित गतिविधियों को भी अपने अंतर्गत ले सकता है, जिसमें स्वयं की निधियों जैसे - म्यूचुअल फंड इकाइयों, बीमा उत्पादों, पेंशन उत्पादों के वितरण की प्रतिबद्धता की आवश्यकता नहीं होती है
    • लघु वित्त बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार में अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं के लिये एक अधिकृत डीलर भी बन सकता है
    • लघु वित्त बैंक के संचालन के क्षेत्र में कोई प्रतिबंध नहीं होगा ; हालाँकि, उन आवेदकों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिन्होंने प्रारंभिक चरण में बैंकों को ऐसे राज्यों/ज़िलों में खोला है, जहाँ बैंकिंग सेवाएँ या तो उपलब्ध नहीं हैं या बहुत कम उपलब्ध हैं, जैसे- देश के उत्तर-पूर्व, पूर्व और मध्य क्षेत्र में

    सार्वभौमिक बैंक:

    • सार्वभौमिक बैंक न केवल ग्राहकों के लिये व्यक्तिगत खातों का प्रबंधन कर सकते हैं, बल्कि कॉर्पोरेट सौदों को रेखांकित करने के साथ-साथ निवेश सेवाएँ और स्टॉक ब्रोकर के रूप में भी कार्य कर सकती हैं जिन्हें वित्तीय सुपरमार्केट के रूप में जाना जाता है।
    • ये संस्थाएँ एक एकल ब्रांड/बैंक के नाम के अंतर्गत अपने वृहद् शाखा नेटवर्क का लाभ उठाकर कई प्रकार की सेवाएँ प्रदान करती हैं
    • अगस्त 2016 में जारी सार्वभौमिक बैंकों हेतु ऑन-टैप लाइसेंसिंग पर दिशा-निर्देशों के अनुसार, निवासी व्यक्ति और बैंकिंग एवं वित्त क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर पर 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले पेशेवर भी सार्वभौमिक बैंकों को बढ़ावा देने के पात्र हैं
      • हालाँकि बड़े औद्योगिक समूहों को पात्र संस्थाओं के रूप में बाहर रखा गया है लेकिन उन्हें बैंकों में 10% तक निवेश करने की अनुमति है

    संबंधित विकास:

    • इससे पहले वर्ष 2020 में RBI के एक आंतरिक कार्य समूह ने निजी बैंकों के लिये लाइसेंसिंग नीति की ‘ओवरहॉलिंग’ का प्रस्ताव रखा और यह सुझाव दिया कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में उचित संशोधनों के बाद बड़े कॉर्पोरेट और औद्योगिक समूहों को भारत में बैंकों के प्रवर्तक के रूप में अनुमति दी जाए
      • हालाँकि RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि यह ‘कनेक्टेड लेंडिंग’ (एक ऐसी स्थिति जिसमें बैंक पर  नियंत्रण रखने वाला मालिक स्वयं या स्वयं से जुड़े पक्षों के लिये कम ब्याज दरों पर गुणवत्ताहीन ऋण को बढ़ावा देता है ) की स्थिति की तरफ ले जाता है

    नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (NOFHC):

    • नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (NOFHC) का अर्थ NBFC से गैर-जमा (Non-deposit) से है।
    • बैंकिंग दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह को एक नया बैंक स्थापित करने की अनुमति पूर्ण स्वामित्व वाली नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी के माध्यम से दी जाएगी
    • इस तरह के NOHFC बैंक के साथ-साथ RBI या अन्य वित्तीय क्षेत्र के नियामकों द्वारा उचित विनियामक निर्देशों के आधार पर विनियमित अन्य सभी प्रकार की वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं।

    यूनिवर्सल बैंक का ऑन-टैप लाइसेंसिंग:

    • 'ऑन-टैप' सुविधा का अर्थ RBI द्वारा वर्ष भर बैंकों के लिये आवेदन स्वीकारना और लाइसेंस जारी करना है
    • यह नीति निर्धारित शर्तों की पूर्ति के अधीन किसी भी समय उम्मीदवारों को सार्वभौमिक बैंक लाइसेंस के लिये आवेदन करने की अनुमति देती है

    स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


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