भारतीय अर्थव्यवस्था
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक,2020
प्रिलिम्स के लियेआवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020, आवश्यकता वस्तु अधिनियम 1955 मेन्स के लियेकृषि क्षेत्र के विकास हेतु सरकार द्वारा लिये गए महत्त्वपूर्ण निर्णय और उनके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने के लिये आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- लोकसभा द्वारा पारित यह विधेयक 5 जून 2020 को जारी किये गए अध्यादेशों का स्थान लेगा और लोकसभा द्वारा इसे 15 सितंबर, 2020 को पारित किया गया था।
उद्देश्य
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 का उद्देश्य निजी निवेशकों के व्यावसायिक कार्यों में अत्यधिक विनियामक हस्तक्षेप की आशंकाओं को समाप्त करना है।
आवश्यकता
- यद्यपि भारत में अधिकतर कृषि वस्तुओं के उत्पादनव्यापक पैमाने पर इस प्रकार की बर्बादी को रोका जा सकता है।
लाभ
- इस विधेयक के माध्यम से सरकार ने विनियामक वातावरण को उदार बनाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जाए। संशोधन विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- इस संशोधन के माध्यम से न केवल किसानों के लिये बल्कि उपभोक्ताओं और निवेशकों के लिये भी सकारात्मक माहौल का निर्माण होगा और यह निश्चित रूप से हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाएगा।
- इस संशोधन से कृषि क्षेत्र की समग्र आपूर्ति श्रृंखला तंत्र को मज़बूती मिलेगी। इस संशोधन के माध्यम से इस कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देकर किसान की आय दोगुनी करने और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
- आवश्यक वस्तुओं या उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तथा उन्हें जमाखोरी और कालाबाज़ारी से बचाने के लिये सरकार ने वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया था।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। अधिनियम की धारा 2 (A) में कहा गया है कि ‘आवश्यक वस्तु का अर्थ इसी अधिनियम की अनुसूची (Schedule) में निर्दिष्ट वस्तुओं से है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को अधिनियम की अनुसूची में आवश्यक वस्तु के रूप में किसी एक विशिष्ट वस्तु को जोड़ने अथवा उसे हटाने का अधिकार देता है।
- यदि केंद्र सरकार सहमत है कि सार्वजनिक हित में किसी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित करना आवश्यक है तो वह राज्य सरकारों की सहमति से इस संबंध में अधिसूचना जारी कर सकती है।
- किसी वस्तु को ‘आवश्यक वस्तु’ घोषित करने से सरकार उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित कर सकती है, साथ ही सरकार उस वस्तु के संबंध में एक स्टॉक सीमा भी लागू कर सकती है।
अधिनियम की आलोचना
- ध्यातव्य है कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 को ऐसे समय में बनाया था जब पूरा देश खाद्यान्न उत्पादन के असामान्य स्तर के कारण खाद्य पदार्थों की कमी का सामना कर रहा था। उस समय भारत अधिकांशतः अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आयात और अन्य देशों से मिलने वाली सहायता पर निर्भर था।
- ऐसे में खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाज़ारी को रोकने के लिये वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम लाया गया, किंतु अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं, अब भारत खाद्यान्न उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चुका है, इसलिये इन बदली हुई परिस्थितियों में अधिनियम को बदलना भी आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स
प्रिलिम्स के लियेइन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT), भारतमाला परियोजना मेन्स के लियेभारत में बुनियादी ढाँचा एवं निवेश प्रारूप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) ने इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (Infrastructure Investment Trusts- InvIT) को सड़क बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु धन जुटाने के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु:
इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT):
- InvITs ऐसे उपकरण हैं जो म्यूचुअल फंड की तरह कार्य करते हैं। ये संपत्ति में निवेश करने हेतु कई निवेशकों से धनराशि की छोटी रकम को हासिल करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं जो एक समयावधि में नकदी प्रवाह देते हैं। इस नकदी प्रवाह के हिस्से को निवेशकों में लाभांश के रूप में वितरित किया जाता है।
- एक ‘InvIT इनिशियल पब्लिक ऑफर’ (Initial Public Offer- IPO) में न्यूनतम निवेश राशि 10 लाख रुपए है इसलिये उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों, संस्थागत एवं गैर-संस्थागत निवेशकों के लिये InvITs उपयुक्त हैं।
- IPO के माध्यम से स्टॉक की तरह ही एक्सचेंजों में भी InvITs सूचीबद्ध हैं।
- हालाँकि भारतीय InvIT बाज़ार अभी परिपक्व नहीं हुआ है और उसने अब तक 10 InvIT के गठन का समर्थन किया है जिनमें से केवल दो सूचीबद्ध हैं।
- स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध InvIT, आईआरबी InvIT फंड (IRB InvIT Fund) एवं इंडिया ग्रिड ट्रस्ट (India Grid Trust) हैं।
- InvIT को सेबी (इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्टस) विनियमन, 2014 द्वारा विनियमित किया जाता है।
InvIT की संरचना:
- म्यूचुअल फंड की तरह, इसके पास ट्रस्टी, प्रायोजक, निवेश प्रबंधक एवं परियोजना प्रबंधक होते हैं।
- ट्रस्टी के पास InvIT के प्रदर्शन का निरीक्षण करने की ज़िम्मेदारी है।
- प्रायोजक (Sponsor) कंपनी के प्रमोटर हैं जिन्होंने InvIT स्थापित किया है।
- निवेश प्रबंधक को InvIT की परिसंपत्तियों एवं निवेशों की देखरेख का कार्य सौंपा जाता है।
- प्रोजेक्ट के निष्पादन के लिये परियोजना प्रबंधक ज़िम्मेदार होता है।
आवश्यकता क्यों?
- अक्तूबर, 2017 में भारत सरकार ने 5,35,000 करोड़ रुपए के निवेश के साथ 34,800 किलोमीटर की सड़कों के विकास के लिये भारतमाला परियोजना की शुरूआत की थी।
- इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिये NHAI को पर्याप्त धनराशि की आवश्यकता है, परियोजनाओं को पूरा करने हेतु धनराशि जुटाने हेतु राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में निवेश करने के लिये ‘पूर्ण एवं परिचालित राष्ट्रीय राजमार्ग परिसंपत्तियों’ का मुद्रीकरण करना तथा निजी हितधारकों को आकर्षक योजनाएँ प्रदान करना है।
लाभ:
- ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश में गिरावट आई है, NHAI द्वारा फंड जुटाने एवं बुनियादी ढाँचे पर खर्च करने से न केवल अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी बल्कि निजी क्षेत्र के निवेश में भी बढ़ोतरी होगी।
- NHAI का InvIT ऑफर जो जल्द ही आने की उम्मीद है, भारत सरकार द्वारा सड़कों एवं बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च को बढ़ावा देने के लिये वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों को खोलने का एक तरीका है।
- एक InvIT भी कंपनी को अपने ऋण दायित्त्वों को जल्द पूरा करने के लिये मार्ग प्रदान करता है।
- यदि InvIT इकाइयों को 3 वर्ष से अधिक समय तक रखा जाता है तो InvIT धारकों को भी अनुकूल कर मानदंडों से लाभ होता है जिसमें लाभांश आय पर छूट एवं कोई पूंजीगत लाभ कर शामिल नहीं होता है।
निवेशकों के लिये सुरक्षा उपाय:
- प्रायोजक को तीन वर्षों की लॉक-इन अवधि के साथ न्यूनतम 15% InvIT इकाइयों को बनाए रखना होता है।
- InvIT को अपने शुद्ध नकदी प्रवाह का 90% निवेशकों को वितरित करना होता है।
- InvIT राजस्व उत्पन्न करने वाली बुनियादी ढाँचा संपत्ति में न्यूनतम 80% निवेश करना आवश्यक है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारतीय अनुसंधानकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिये योजनाएँ
प्रिलिम्स के लियेवज्र फैकल्टी योजना, रामानुजन अध्येतावृत्ति, बायो-मेडिकल रिसर्च करियर प्रोग्राम, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) मेन्स के लियेरक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research&Development Organisation- DRDO) द्वारा ओडिशा के बालासोर रेंज से अभ्यास (ABHYAS) ‘हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट’ (High Speed Expandable Aerial Target-HEAT) का सफल उड़ान परीक्षण किया गया, प्रमुख योजनाओं का विवरण |
चर्चा में क्यों?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री, डॉ. हर्षवर्धन ने राज्य सभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से यह जानकारी दी है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने विदेशों में रह रहे भारतीय अनुसंधानकर्त्ताओं को भारतीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों में काम करने हेतु आकर्षक विकल्प और अवसर प्रदान करने के लिये कई योजनाओं का निर्माण किया है।
प्रमुख योजनाओं का विवरण
- वज्र (Visiting Advanced Joint Research-VAJRA) फ़ैकल्टी योजना
- यह योजना अनिवासी भारतीयों (NRIs) और विदेशी भारतीय नागरिकों (OCIs) सहित विदेशी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को भारत के सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों और विश्वविद्यालयों में एक विशिष्ट अवधि तक काम करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु प्रारंभ की गई है।
- यह योजना भारतीय शोधकर्त्ताओं सहित विदेशी वैज्ञानिकों को एक या एक से अधिक भारतीय सहयोगियों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले सहयोगशील अनुसंधान करने के लिये एडजंक्ट/विज़िटिंग फैकल्टी असाइनमेंट (Adjunct/Visiting Faculty Assignment) प्रदान करती है ।
- रामानुजन अध्येतावृत्ति (Ramanujan Fellowship)
- यह अध्येतावृत्ति विदेशों में रह रहे क्षमतावान भारतीय शोधकर्त्ताओं को भारतीय संस्थानों/विश्वविद्यालयों में काम करने के लिये विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में आकर्षक विकल्प और अवसर प्रदान करती है।
- यह विदेशों से भारत लौटने के इच्छुक 40 वर्ष से कम उम्र के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को लक्षित कर प्रारंभ की गई है।
- रामालिंगस्वामी पुनः प्रवेश अध्येतावृत्ति (Ramalingaswami Re entry Fellowship)
- यह योजना देश के बाहर काम कर रहे भारतीय मूल के उन वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिये निर्मित की गई है, जो जीवन विज्ञान (Life Sciences), आधुनिक जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और अन्य संबंधित क्षेत्रों में अपने अनुसंधान को जारी रखने के लिये भारत लौटने के इच्छुक हैं।
- बायो-मेडिकल रिसर्च करियर प्रोग्राम (Bio-medicall Research Carrier Prograame-BRCP):
- यह कार्यक्रम प्रारंभिक, मध्यवर्ती और वरिष्ठ स्तर के शोधकर्त्ताओं को भारत में आधारभूत जैव-चिकित्सा या नैदानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य में अपने अनुसंधान और शैक्षणिक कैरियर को जारी रखने के लिये अवसर प्रदान करता है।
- ये अध्येतावृत्तियाँ उन सभी पात्र शोधकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध हैं जो भारत में शोधकार्य जारी रखने/प्रारंभ करने के इच्छुक हैं।
- भारतीय अनुसंधान प्रयोगशाला में भारतीय मूल के वैज्ञानिक/प्रौद्योगिकीविद् (Scientists/Technologists of Indian Origin-STIO):
- भारतीय मूल के वैज्ञानिकों/प्रौद्योगिकीविदों को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Counsil for Scientific & Industrial Research-CSIR) की प्रयोगशालाओं में अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने का उपबंध किया गया है।
- वरिष्ठ अनुसंधान एसोसिएटशिप (Senior Research Associateship-SRA) (वैज्ञानिक पूल योजना):
- यह योजना मुख्य रूप से विदेशों से भारत लौट रहे उच्च योग्यता वाले उन भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों और चिकित्सा कार्मिकों को अस्थायी प्लेसमेंट प्रदान करने के उद्देश्य से निर्मित की गई है, जिनका भारत में कोई स्थायी रोज़गार नहीं है।
- वरिष्ठ अनुसंधान एसोसिएटशिप नियमित नियुक्ति नहीं है, बल्कि एक अस्थायी सुविधा है। जिससे एसोसिएट नियमित पद की तलाश करते हुए भारत में अनुसंधान/अध्यापन करने में समर्थ हो सकेंगे।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की स्थिति
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना प्रणाली (National Science and Technology Management Information System-NSTMIS) द्वारा किये गए राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण-2018 पर आधारित अनुसंधान और विकास सांख्यिकी तथा संकेतक 2019-20 के अनुसार, अनुसंधान और विकास में भारत का सकल व्यय वर्ष 2008 से वर्ष 2018 के मध्य बढ़कर तीन गुना हो गया है।
- वर्ष 2000 से प्रति मिलियन आबादी में शोधकर्त्ताओं की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है। भारत में प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्त्ताओं की संख्या बढ़कर वर्ष 2017 में 255 हो गई जो वर्ष 2015 और वर्ष 2010 में क्रमशः 218 और 110 थी।
- रेजिडेंट पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में भारत विश्व में 9वें स्थान पर है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में कुल 47,854 पेटेंट दर्ज किये गए थे, जिसमें से 15,550 (32%) पेटेंट भारतीयों द्वारा दायर किये गए थे।
- भारत में दायर किये गए पेटेंट आवेदनों में मैकेनिकल (यांत्रिकी), केमिकल (रासायनिक), कंप्यूटर/इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन (संचार) जैसे विषयों की संख्या अधिक थी।
- WIPO के अनुसार, भारत का पेटेंट कार्यालय विश्व के शीर्ष 10 पेटेंट दाखिल करने वाले कार्यालयों में 7वें स्थान पर है।
आगे की राह
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत से प्रतिभा पलायन को रोकने के लिये विभिन्न प्रतिस्पर्द्धात्मक योजनाओं/कार्यक्रमों, जैसे- कोर रिसर्च ग्रांट, रिसर्च फैलोशिप, (जे.सी. बोस और स्वर्ण जयंती फैलोशिप) आदि के कार्यान्वयन के माध्यम से वैश्विक स्तर के अनुसंधान को बढ़ावा दे रहा है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्राप्त करने की दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय लगभग 80 देशों और विभिन्न बहुपक्षीय संगठनों/एजेंसियों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय S & T सहयोग के माध्यम से भारतीय अनुसंधान को वैश्विक अनुसंधान से भी जोड़ रहा है।
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)
- WIPO बौद्धिक संपदा (IP) सेवाओं, नीति, सूचना और सहयोग के लिये स्थापित वैश्विक मंच है। यह 193 सदस्य राष्ट्रों के साथ संयुक्त राष्ट्र का एक स्व-वित्तपोषित अभिकरण (Agency) है।
- WIPO का मिशन एक संतुलित और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा (IP) प्रणाली के विकास का नेतृत्त्व करना है, जो नवाचार और रचनात्मकता को सक्षम बनाता है।
- WIPO का मैंडेट, शासी निकाय और प्रक्रियाएँ WIPO कन्वेंशन में तय की गई हैं। इस कन्वेंशन के अंतर्गत ही वर्ष 1967 में WIPO की स्थापना की गई थी।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय राजनीति
नेट न्यूट्रलिटी और संबंधित नियम
प्रिलिम्स के लियेनेट न्यूट्रलिटी, इस संबंध में बनाए गए नियम, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण मेन्स के लियेनेट न्यूट्रलिटी का अर्थ, इसका महत्त्व और आलोचना |
चर्चा में क्यों?
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) ने दूरसंचार विभाग (DoT) को बहु-हितधारक निकाय स्थापित करने की सिफारिश की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश के सभी इंटरनेट सेवा प्रदाता नेट न्यूट्रलिटी (Net Neutrality) के प्रावधानों का पालन करें।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार, इस बहु-हितधारक निकाय में दूरसंचार सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, कंटेंट प्रदाता, शोधकर्त्ता, शैक्षणिक एवं तकनीकी समुदाय, नागरिक समाज संगठन और सरकार के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिये और यह बहु-हितधारक निकाय एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित किया जाना चाहिये।
निकाय का कार्य
- यह बहु-हितधारक निकाय मुख्य तौर पर नेट न्यूट्रलिटी के सिद्धांत की निगरानी और प्रवर्तन में दूरसंचार विभाग (DoT) के लिये सलाहकार की भूमिका अदा करेगा।
- यह निकाय नेट न्यूट्रलिटी (Net Neutrality) के सिद्धांत के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की जाँच भी करेगा।
नेट न्यूट्रलिटी का सिद्धांत
- नेट न्यूट्रलिटी का सिद्धांत मानता है कि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) को सभी इंटरनेट गतिविधियों के साथ एक समान रूप से व्यवहार करना चाहिये और उपयोगकर्त्ता, सामग्री, वेबसाइट, प्लेटफॉर्म, एप्लिकेशन, स्रोत, गंतव्य अथवा संचार विधि आदि के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करना चाहिये।
- इंटरनेट सेवा प्रदाताओं अथवा कंपनियों को किसी विशिष्ट डेटा के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं लेनी चाहिये, चाहे वह डेटा भिन्न वेबसाइटों पर विज़िट करने के लिये हो या फिर अन्य सेवाओं के लिये।
- नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत में यह भी स्वीकार किया गया है कि इंटरनेट सर्विस प्रदाताओं (ISP) द्वारा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न करते हुए उन्हें इंटरनेट पर उपलब्ध सभी सामग्री तक पहुँचने में सक्षम बनाना चाहिये।
नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में तर्क
- नेट न्यूट्रैलिटी का सिद्धांत इंटरनेट की दुनिया को अधिक लोकतांत्रिक बनाता है, क्योंकि टेलीकॉम प्रदाता या इंटरनेट सेवा प्रदाता अलग-अलग वेबसाइटों के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं ले सकते हैं, जिससे सभी को एक समान रूप से इंटरनेट पर भाग लेने की अनुमति मिलती है।
- यह सिद्धांत किसी आधिकारिक आदेश के बिना टेलीकॉम प्रदाताओं या इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को अपनी इच्छा के मुताबिक इंटरनेट पर मौजूद सामग्री अथवा वेबसाइट को रोकने, उसे नियंत्रित करने, फिल्टर करने या ब्लॉक करने से रोकता है।
- इस प्रकार इंटरनेट की स्वतंत्रता बनी रहती है।
- यह सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्र की सभी बड़ी और छोटी कंपनियों को एक समान अवसर प्रदान करता है और कुछ चुनिंदा कंपनियों को इंटरनेट पर नियंत्रण स्थापित करने से रोकता है।
नेट न्यूट्रैलिटी के विपक्ष में तर्क
- फेसबुक जैसी कई सोशल मीडिया कंपनियों ने नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत का विरोध किया है। नेट न्यूट्रैलिटी या इंटरनेट तटस्थता का सिद्धांत इंटरनेट पर नवाचार को प्रभावित करता है।
- इसके अलावा यह सिद्धांत इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ब्रॉडबैंड सेवाओं में निवेश नहीं करने से रोकता है।
- यह सिद्धांत इंटरनेट के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त कर देता है, क्योंकि इसके तहत डेटा पैकेट को एक समान माना जाता है।
संबंधित मामले
- वर्ष 2019 में इंटरनेट की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है।
- अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट पर मुक्त भाषा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2016 से वर्ष 2018 के बीच की अवधि में भारत ने नेट न्यूट्रैलिटी या इंटरनेट तटस्थता की दिशा में दो महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे, जिसमें पहला कदम भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा फरवरी 2016 में उठाया गया और यह तय कर दिया गया कि कोई भी इंटरनेट सेवा प्रदाता अथवा सामग्री प्रदाता, इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण शुल्क की नीति नहीं अपनाएंगे।
- इस दिशा में दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम जुलाई 2018 में लिया गया जब भारत सरकार ने इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के गैर-भेदभावपूर्ण उपयोग पर सिद्धांतों का एक व्यापक सेट अपनाने का निर्णय लिया था। इस निर्णय के माध्यम से इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISP) को इंटरनेट की किसी भी सामग्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार करने से रोक दिया गया।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
DRDO द्वारा अभ्यास का सफल परीक्षण
प्रिलिम्स के लियेरक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), अभ्यास (ABHYAS) मेन्स के लियेअभ्यास के बारे में |
चर्चा में क्यों?
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research&Development Organisation- DRDO) द्वारा ओडिशा के बालासोर रेंज से अभ्यास (ABHYAS) ‘हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट’ (High Speed Expandable Aerial Target-HEAT) का सफल उड़ान परीक्षण किया गया। परीक्षणों के दौरान दो प्रदर्शनात्मक वाहनों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
प्रमुख बिंदु
अभ्यास के बारे में
- यह वाहन एक ड्रोन है जिसे विभिन्न मिसाइल प्रणालियों के मूल्यांकन के लिये एक लक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर इसका उपयोग ‘डिकॉय एयरक्राफ़्ट’ (Decoy Aircraft) के रूप में किया जा सकता है। डिकॉय एयरक्राफ्ट की प्राथमिक भूमिका प्रक्षेपास्रों को विमान से दूर कर युद्धक विमानों की रक्षा करना होती है।
- अभ्यास को वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (Aeronautical Development Establishment- ADE) द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है। एयर वाहन को जुड़वाँ अंडरस्लैंग बूस्टर (Under Slung) का उपयोग करके लॉन्च किया गया है।
- यह एक छोटे गैस टरबाइन इंजन द्वारा संचालित है। इसमें मार्गदर्शन और नियंत्रण के लिये उड़ान नियंत्रण कंप्यूटर के साथ नेविगेशन के लिये MEMS (Microelectromechanical Systems) आधारित इनरट्रियल नेविगेशन सिस्टम (INS) है।
- वाहन को पूरी तरह से स्वायत्त उड़ान के लिये क्रमादेशित किया गया है। एयर व्हीकल का परीक्षण लैपटॉप आधारित ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन (Ground Control System-GCS) का उपयोग करके किया जाता है।
रक्षा विकास एवं अनुसंधान संस्थान (DRDO)
- DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक अनुसंधान एवं विकास (R&D) विंग है, जो अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल कर भारत के सैन्य बलों को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखता है।
- आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की और अग्रसर DRDO ने विभिन्न रणनीतिक प्रणालियों और प्लेटफार्मों के सफल स्वदेशी विकास और उत्पादन, जैसे- मिसाइलों की अग्नि और पृथ्वी शृंखला; हल्के लड़ाकू विमान जैसे- तेजस; मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, जैसे- पिनाका; वायु रक्षा प्रणाली, जैसे- आकाश; रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली की एक विस्तृत श्रृंखला आदि का विकास और उत्पादन करके भारत के सैन्य बलों को सशक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।
- DRDO का गठन वर्ष 1958 में भारतीय सेना के तत्कालीन तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Developmennt Establishments-TDEs) और रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation-DSO) के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (the Directorate of Technical Development & Production-DTDP) को परस्पर मिलाकर किया गया था।
- वर्तमान में DRDO में 50 से अधिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है, जो विभिन्न विषयों को कवर करने वाली रक्षा तकनीकों, जैसे- एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, कॉम्बैट व्हीकल, इंजीनियरिंग सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, एडवांस्ड कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, स्पेशल मटीरियल, नेवल सिस्टम , जीवन विज्ञान, प्रशिक्षण और सूचना प्रणाली को विकसित करने में संलग्न हैं।
वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE)
- ADE एक प्रमुख वैमानिकी प्रणाली डिज़ाइन हाउस है जो भारतीय सैन्य बलों के लिये अत्याधुनिक मानवरहित एरियल व्हीकल्स और वैमानिकी प्रणाली एवं तकनीकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सलग्न है।
आगे की राह
- यह दूसरी बार है जब लक्ष्य वाहन अभ्यास का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। इससे पूर्व मई 2019 में इसका सफल परीक्षण किया गया था। इस दूसरे परीक्षण के दौरान अभ्यास ने मूल्यांकन किये जा रहे सभी मापदंडों को पूरा किया है।
- DRDO के अनुसार, परीक्षण वाहन ने 5 किमी की ऊँची, 0.5 मैक (mach) की वाहन गति (ध्वनि की गति से आधी गति), 30 मिनट की सहनशक्ति (Endurance) और 2G टर्न आदि क्षमताओं के मापदंड को पूर्ण किया। अभ्यास का उपयोग विभिन्न मिसाइल प्रणालियों के लिये लक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।