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डेली न्यूज़

  • 21 Nov, 2019
  • 44 min read
भूगोल

मेघालय वर्षावन

प्रीलिम्स के लिये:

उष्णकटिबंधीय वर्षावन, मेघालय वर्षावन

मेन्स के लिये:

उष्ण कटिबंधीय वर्षावनों की विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नॉर्थ-इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी’ (North Eastern Hill University) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि मेघालय के वर्षावनों की संरचना और जैव विविधता भूमध्यरेखीय वर्षावनों (Equatorial Rainforests) के समान है।

मुख्य बिंदु:

  • उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय जीवित जड़ों से निर्मित पुलों तथा सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये जाना जाता है।
  • मेघालय में कर्क रेखा के उत्तर में पाए जाने वाले उष्ण कटिबंधीय वर्षावनों (Tropical Rainforests) की अधिकता है।

उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन:

  • उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जंतुओं और वनस्पतियों की सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती हैं। ये वर्षावन सबसे बड़े कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं।
  • पृथ्वी का केवल 6% भाग उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से ढका है परंतु विश्व की कुल प्रजातियों का 4/5वाँ भाग उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में ही पाया जाता है।
  • यहाँ वर्ष भर वर्षा होती है तथा कभी भी मौसम शुष्क नहीं होता है।
  • उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की उत्तरी सीमाओं के अंतर्गत इस प्रकार के वनों का अत्यधिक विस्तार भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र मेघालय तथा अरुणाचल प्रदेश के नामदफा में पाया जाता है, जहाँ गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ वर्ष भर वर्षा होती है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • इस अध्ययन का उद्देश्य वर्षावनों की उत्तरी सीमा को जानना तथा इन वर्षावनों की भूमध्यरेखीय वर्षावनों से भिन्नता को जानना था।
  • इस अध्ययन में पाया गया कि मेघालय में उच्च वर्षा और आर्द्रता, उचित वार्षिक औसत तापमान वर्षावनों के अस्तित्व के लिये अनुकूल हैं।
  • इस अध्ययन में 2500 से अधिक वृक्षों, झाड़ियों आदि पर शोध किया गया तथा 180 विभिन्न कुलों (वर्गिकी) की पहचान की गई।
  • भूमध्यरेखीय वर्षावनों की अपेक्षा उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में फगेसी (Fagaceae) तथा थिएसी (Theaceae) कुल के वनों का अधिक प्रतिनिधित्व पाया गया।

छोटे वृक्षों की अधिकता:

  • इस अध्ययन के अनुसार, मेघालय के वर्षावनों की विविधता अन्य वर्षावनों के समान थी परंतु इन वर्षावनों में पेड़ों की ऊँचाई काफी कम थी। मेघालय के वर्षावनों में पेड़ो की ऊँचाई लगभग 30 मीटर तक ही पहुँच पाती है जब कि भूमध्यरेखीय वर्षावनों में पेड़ों की ऊँचाई 45 से 60 मीटर तक होती है।
  • मेघालय वर्षावनों में 467 पेड़ प्रति हेक्टेयर का उच्च घनत्व है, यह भूमध्य रेखीय वर्षावनों की तुलना में कम है।
  • इन वर्षावनों में कर्क रेखा के पास पाए जाने वाले विश्व के सभी वर्षावनों से अधिक समृद्ध जैव विविधता पाई गई।

मेघालय वर्षावन उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के वैश्विक मानचित्र में शामिल नहीं:

  • इस अध्ययन के अनुसार, मेघालय वर्षावनों को विश्व के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के मानचित्र से नजरंदाज किया गया है।
  • इन वर्षावनों का संरक्षण स्थानीय समुदाय द्वारा किया जाता है।
  • स्थानीय जनजातियों में इन वनों को ‘पवित्र उपवन’ के रूप में संरक्षित करने की समृद्ध संस्कृति है।
  • हाल ही में प्रारंभ हुई विकासात्मक गतिविधियों और बढ़ते हुए पर्यटन ने इन वर्षावनों की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया है।

स्रोत-द हिंदू


सामाजिक न्याय

अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

UNICEF, गो ब्लू कैम्पेन

मेन्स के लिये:

बाल अधिकारों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

विश्व भर में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता और सुरक्षा के लिये प्रत्येक वर्ष 20 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस (International Children’s Day) मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nation Children’s Fund) द्वारा गो ब्लू कैम्पेन (Go Blue Campaign) और ‘भारत में प्रत्येक बच्चे के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन’ (National Summit for Every Child in India) का आयोजन किया गया।
  • गो ब्लू कैम्पेन के तहत विभिन्न राज्यों में महत्त्वपूर्ण इमारतों को नीले रंग से रंगा जायेगा या तो नीली लाइटों से सजाया जायेगा।
  • ‘भारत में प्रत्येक बच्चे के लिये राष्ट्रीय सम्मेलन’ का आयोजन UNICEF द्वारा भारतीय संसद में किया गया, इसमें आने वाली पीढ़ियों के लिये सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और समाज द्वारा सुरक्षित तथा न्यायपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराने की बात की गई।
  • इस सम्मेलन में बाल अधिकारों के अभिसमय के अनुच्छेद 30 के तहत बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये अपनी मातृभाषा के साथ अन्य भाषाओं के सीखने पर ज़ोर दिया गया है।
  • सम्मेलन में बच्चों को ‘गुणवत्तापूर्ण ,सस्ती, प्रासंगिक एवं दक्षता प्रदान करने वाली शिक्षा उपलब्ध कराने की बात की गई।
  • बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य के लिये ‘राष्ट्रीय पोषण अभियान’ (National Nutrition Mission) जैसी योजनाओं को और विस्तार देने की बात की गई।

बाल अधिकारों का अभिसमय

(Conventions of Rights of Child):

  • वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों का अभिसमय अपनाया गया।
  • इस अभिसमय में निहित प्रावधान के अनुसार बच्चे माता पिता के संरक्षण में प्रशिक्षणरत भावी वयस्क मात्र नहीं है, सर्वप्रथम वह मनुष्य हैं और उनके अपने अधिकार हैं।
  • बचपन बच्चों का एक विशेष, संरक्षित समय है, जिसमें प्रत्येक बच्चे को समान रूप से बढ़ने, सीखने, खेलने और सर्वांगीण विकास का वातावरण मिलना चाहिये।
  • अभिसमय के तहत 18 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक व्यक्ति को एक बच्चे के रूप में मान्यता दी जाती है।
  • यह अभिसमय प्रत्येक बच्चे के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों को निर्धारित करता है।
    • इसके अंतर्गत शिक्षा का अधिकार, विश्राम और सुविधा का अधिकार, मानसिक और शारीरिक शोषण के विरुद्ध अधिकार शामिल हैं।
  • भारत ने वर्ष 1992 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये। भारत द्वारा इस दिशा में अपनाए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले-
    • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर वर्ष 1990 में 117/1000 थी जो वर्ष 2016 में घट कर 39/1000 हो गई।
    • बेहतर पेयजल की सुविधा वर्ष 1992 के 62% से वर्ष 2019 में बढ़कर 92% हो गई है।
    • प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति दर वर्ष 1992 के 10% से बढ़कर वर्ष 2019 में 61% हो गई है।

अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस

(World Children's Day):

  • अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस विश्व में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता और कल्याण के लिये 20 नवंबर को मनाया जाता है। यह सबसे पहले वर्ष 1954 में मनाया गया था।
  • इसी तिथि पर वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाल अधिकारों के लिये अभिसमय अपनाया गया था।

स्रोत- द हिंदू बिज़नेसलाइन


शासन व्यवस्था

चिकित्सकीय उत्पादों तक पहुँच पर आधारित वैश्विक सम्मेलन, 2019

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

चिकित्सकीय उत्पादों तक पहुँच पर आधारित वैश्विक सम्मेलन, 2019 के विविध पक्ष

चर्चा में क्यों?

19 नवंबर 2019 को नई दिल्ली में ‘चिकित्सकीय उत्पादों तक पहुँच पर आधारित वैश्विक सम्मेलन, 2019- सतत विकास लक्ष्य, 2030 की प्राप्ति’ (2019 World Conference on Access to Medical Products- Achieving the SDGs 2030) का आयोजन प्रारंभ हुआ है।

मुख्य बिंदु:

  • इस सम्मेलन का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) तथा केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health & Family Welfare- MoHFW) द्वारा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research), जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Support Council- BIRAC) तथा ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Translational Health Science and Technology Institute- THSTI) के सहयोग से किया जा रहा है।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यह सम्मेलन सार्वभौमिक स्‍वास्‍थ्‍य कवरेज (Universal Health Coverage) के तहत विश्‍व भर में चिकित्‍सा उत्‍पादों के अनुभवों को साझा करने तथा पहुँच बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है।
  • WHO ने इस सम्मेलन के माध्यम से विश्‍व के सभी लोगों के लिये चिकित्‍सा उत्‍पादों की किफायती उपलब्‍धता की वचनबद्धता दोहराई है।

सम्मेलन का उद्देश्य

(Objective of Conference):

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और सतत् विकास लक्ष्य, 2030 को प्राप्त करने के लिये चिकित्सा उत्पादों के क्षेत्र में नवाचार करना।
  • गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित चिकित्सा उत्पादों तक बेहतर पहुँच के लिये नियामक तंत्र स्थापित करना।
  • चिकित्सा उत्पादों तक पहुँच बढ़ाने के लिये वर्तमान बौद्धिक संपदा समझौतों और व्यापार समझौतों पर चर्चा करना।

सम्मेलन से संबंधित अन्य तथ्य:

  • MoHFW के अनुसार, इस सम्‍मेलन से किफायती एवं गुणवत्‍तापूर्ण चिकित्‍सा उत्‍पादों के बारे में अभिनव चिंतन का मार्ग प्रशस्‍त होगा।
  • इस सम्मेलन में ‘पोजिशन पेपर- 2019 वर्ल्‍ड कांफ्रेंस ऑन एक्‍सेस टू मेडिकल प्रोडेक्‍ट्स- एचिविंग द एसडीजी 2030’ (Position Paper-2019 World Conference on Access to Medical Products– Achieving the SDGs 2030) ‘व्‍हाइट पेपर ऑन सेफ्टी ऑफ रोटावायरस वेक्‍सीन इन इंडिया: स्‍मार्ट सेफ्टी सर्विलांस अप्रोच’ (White Paper on Safety of Rotavirus Vaccine in India: Smart Safety Surveillance Approach) और ‘नेशनल गाइडलाइन्‍स फॉर जीन थेरेपी प्रोडक्‍ट डेवलपमेंट एंड क्‍लीनिकल ट्रायल्स’ (National Guidelines for Gene Therapy Product Development and Clinical Trials) का विमोचन किया गया।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर क्षेत्रीय फ्लैगशिप कार्यक्रम (Regional Flagships Programme) के तहत आवश्यक दवाओं तक सभी व्यक्तियों की पहुँच स्थापित करना इस कार्यक्रम की प्राथमिकताओं में से एक है।
  • इस सम्मेलन का आयोजन पहली बार वर्ष 2017 में हुआ था।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय कौशल अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कौशल अध्ययन

मेन्स के लिये:

भारतीय श्रम बल में महिलाओं तथा पुरुषों की भागीदारी एवं इस संबंध में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुमान

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skills Development Corporation- NSDC) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2023 तक भारत के श्रमबल में 15-59 वर्ष की कार्यशील-आयु के 7 करोड़ अतिरिक्त व्यक्तियों के प्रवेश करने की उम्मीद है। जिनमें से 84.3% व्यक्ति 15-30 आयु वर्ग के होंगे।

Labour Force

NSDC के अनुमानों का आधार

NSDC ने वर्ष 2019-23 के दौरान देश के श्रम बाजार की क्षमता के आधार पर रुझानों का अनुमान लगाया है जो कि निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है:

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) 2017-18
  • लिंग और क्षेत्र (ग्रामीण/शहरी) स्तर पर अपरिष्कृत मृत्यु दर (Crude Death Rates- CDR)
  • रोज़गार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (Employment-Unemployment Survey- EUS), 2011-12)

NSDC द्वारा व्यक्त अनुमान

लिंग के आधार पर:

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2023 तक श्रम बल में शामिल होने वाले 15-30 वर्ष आयु वर्ग के प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति के महिला होने की उम्मीद है।
  • 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में महिला श्रम बल की भागीदारी दर 23.3% होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं- वियतनाम (73%), चीन (61%), सिंगापुर (60%), बांग्लादेश (36%) की तुलना में बहुत कम है। भारत में यह दर लेबनान (24%), पाकिस्तान (24%), लीबिया (26%), ट्यूनीशिया (24%) और सूडान (24%) जैसे देशों के लगभग बराबर है।

शिक्षा के आधार पर:

  • NSDC के अनुसार, 15-19 वर्ष आयु वर्ग की कई महिला उम्मीदवार श्रम बल में सक्रिय रूप से उपस्थित नहीं हो सकती हैं। इसके स्थान पर वे उच्च शिक्षा के विकल्प का चुनाव करेंगी।

आयु के आधार पर:

  • इन चार वर्षों (2019-23) के दौरान भारत के श्रम बल में 15-30 वर्ष की आयु के कुल 5.90 करोड़ युवाओं के शामिल होने की उम्मीद है तथा इसकी आधी संख्या में 15-20 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं के शामिल होने की उम्मीद है।

राज्यवार आँकड़े:

  • वर्ष 2019-23 के दौरान केवल छह राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और कर्नाटक से 15-30 वर्ष आयु वर्ग के 50% युवाओं के श्रम बल में शामिल होने की उम्मीद है।
  • श्रम बल में 15-30 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं की सर्वाधिक भागीदारी वर्ष 2021 और वर्ष 2023 में जबकि वर्ष पुरुषों की सर्वाधिक भागीदारी वर्ष 2023 में होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम

(National Skills Development Corporation- NSDC)

  • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है। इसकी स्थापना 31 जुलाई, 2008 को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अनुरूप) के तहत की गई थी।
  • NSDC की स्थापना वित्त मंत्रालय ने सरकारी निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) मॉडल के रूप में की थी।
  • यह कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के अधीन काम करता है।
  • NSDC का उद्देश्य बड़े, गुणवत्ता और लाभ के लिये व्यावसायिक संस्थानों के निर्माण को प्रोत्साहित कर कौशल विकास को बढ़ावा देना है। यह कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने वाले उद्यम, कंपनियों और संगठनों को धन प्रदान करके कौशल विकास में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
  • NSDC देश में कौशल प्रशिक्षण के लिये कार्यान्वयन एजेंसी है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में न्यूनतम वेतन की आवश्यकता

प्रीलिम्स के लिये

वेतन संहिता, 2019 क्या है

मेन्स के लिये

भारत में न्यूनतम वेतन के निर्धारण का सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment) ने वेतन संहिता, 2019 के क्रियान्वयन हेतु एक मसौदा (Draft) तैयार किया है तथा सरकार ने 1 दिसंबर 2019 तक सभी हितधारकों से इसपर प्रतिक्रिया मांगी है।

मुख्य बिंदु:

  • 8 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति द्वारा वेतन संहिता विधेयक, 2019 को स्वीकृति देने के बाद इसे क़ानून के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • इस संहिता में पहले से चले आ रहे चार अधिनियमों- वेतन भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को शामिल किया गया है।
  • इस संहिता के तहत सभी प्रकार के उद्योगों, व्यवसायों या विनिर्माण संबंधी कार्यों में संलग्न कर्मचारियों के वेतन, बोनस एवं अन्य भत्तों को विनियमित किया गया है।
  • केंद्र सरकार ने इस संहिता के तहत न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये तैयार मसौदे पर राज्यों तथा अन्य हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी है। इसके द्वारा विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम वेतन निर्धारित किये जाएंगे।
  • विभिन्न हितधारकों से परामर्श के पश्चात् सरकार श्रमिकों की विभिन्न श्रेणियों जैसे- अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल तथा अत्यधिक कुशल के लिये न्यूनतम वेतन निर्धारित करने हेतु नियमों को अधिसूचित करेगी।

न्यूनतम वेतन संहिता 2019 का महत्त्व:

  • किसी देश में गरीबी उन्मूलन तथा अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता के लिये न्यूनतम वेतन एक आवश्यक कारक है।
  • वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद यह महसूस किया गया कि विभिन्न सामाजिक कारकों को ध्यान में रख कर वेतन में निरंतर समायोजन (Adjustment) करना चाहिये। इससे न सिर्फ सामाजिक असमानता में कमी आएगी बल्कि मांग में वृद्धि होगी तथा अर्थव्यवस्था में स्थायित्व बना रहेगा।
  • इस संहिता द्वारा निर्धारित किया गया है कि किसी कर्मचारी का न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिये एक न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाए।
  • वर्ष 1957 के 15वें भारतीय श्रमिक सम्मेलन के सुझावों को ध्यान में रखते हुए इस मसौदे के प्रावधान बनाए गए हैं। इन प्रावधानों के निर्धारण में एक परिवार के लिये आवश्यक भोजन, कपड़े, घर का किराया, बच्चों की शिक्षा तथा अन्य आकस्मिकताओं पर होने वाले कुल खर्च आदि को शामिल किया गया है।
  • इस संहिता के निर्माण में वेतन संबंधी सभी मानकों को जैसे- कार्य करने की समयावधि, महँगाई भत्ते की समय-समय पर पुनरावृत्ति, रात्रि में कार्य करने की शर्तें, ओवरटाइम तथा वेतन में कटौती आदि को ध्यान में रखा गया है।
  • वेतन संहिता, सभी कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक तौर पर सुनिश्चित करेगा।
  • साथ ही इससे प्रत्येक कर्मचारी के भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और वर्तमान के लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम वेतन का वैधानिक संरक्षण प्राप्त होगा।
  • न्यूनतम वेतन के निर्धारण से देश में गुणवत्‍तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे।
  • इस संहिता में राज्‍यों द्वारा कर्मचारियों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान करने की परिकल्पना की गई है।
  • विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएँ हैं, जिन्‍हें लागू करने में कठिनाई होती हैं तथा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। मुकदमेबाजी कम करने और नियोक्‍ता के लिये इसका अनुपालन आसान बनाने के लिये इसमें वेतन की परिभाषा को सरल बनाया गया है।
  • वर्तमान में अधिकांश राज्‍यों में अलग-अलग न्यूनतम वेतन हैं। इस संहिता के माध्यम से न्‍यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोज़गार के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करके न्‍यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये एक ही मानदंड बनाया गया है।

न्यूनतम वेतन संहिता 2019 का प्रभाव:

  • इस संहिता के माध्यम से संगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि होगी। यह असंगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे श्रमिकों के लिये लाइटहाउस इफ़ेक्ट (Lighthouse Effect) का कार्य करेगा। इसका अभिप्राय यह है कि न्यूनतम वेतन में वृद्धि से असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे कर्मचारी भी अपने वेतन में बढ़ोतरी की मांग करेंगे।
  • न्यूनतम आय में वृद्धि होने से आय असमानता में कमी आएगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, वर्ष 1993 से 2011 में औसत वास्तविक वेतन (Average Real Wages) में वृद्धि से असंगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे श्रमिकों की स्थिति में सुधार हुआ है।
  • न्यूनतम आय में वृद्धि से नए रोज़गारों का सृजन होगा तथा महिला एवं पुरुष श्रमिक इससे समान रूप से लाभान्वित होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, न्यूनतम आय में 10 प्रतिशत की वृद्धि से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार में 6.34 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।
  • न्यूनतम वेतन के बढ़ने से लोगों में क्रय शक्ति में वृद्धि होगी जिससे सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) में वृद्धि होगी तथा अर्थव्यवस्था का विकास होगा।

स्रोत: द हिंदू, पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

उड़ान 4.0

प्रीलिम्स के लिये:

उड़ान योजना

मेन्स के लिये:

उड़ान योजना, इसके विभिन्न चरण तथा योजना का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) ने घोषणा की कि जल्द ही उड़ान 4.0 योजना पर कार्य शुरू किया जाएगा।

UDAN

प्रमुख बिंदु

  • उड़ान 4.0 के तहत छत्तीसगढ़ में बिलासपुर और अंबिकापुर हवाई अड्डों को जोड़ने पर विशेष ध्‍यान दिया जाएगा।
  • उड़ान योजना राज्‍य के उन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्‍यान केंद्रित करती है जो हवाई सेवा से नहीं जुड़े हैं।
  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय जिन राज्‍यों पर विशेष ध्‍यान दे रहा है, छत्‍तीसगढ़ उनमें से एक है।

उड़ान (Ude Desh Ka Aam Naagrik- UDAN) योजना

  • उड़ान देश में क्षेत्रीय विमानन बाज़ार को विकसित करने की दिशा में एक नवोन्मेषी कदम है।
  • क्षेत्रीय संयोजकता योजना ‘उड़ान’ 15 जून, 2016 को नागर विमानन मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (National Civil Aviation Policy- NCAP) का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • क्षेत्रीय एयर कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने के मुख्य उद्देश्य के साथ अक्तूबर, 2016 में इस योजना को शुरू किया गया था।
  • यह वैश्विक स्तर पर अपनी तरह की पहली योजना है जो क्षेत्रीय मार्गों पर सस्ती, आर्थिक रूप से व्यवहार्य एवं लाभप्रद उड़ानों को बढ़ावा देती है ताकि आम आदमी वहनीय कीमत पर हवाई यात्रा कर सके।
  • इसके तहत विमान में उपलब्ध कुल सीटों में से आधी यानी 50% सीटों के लिये प्रति घंटा एवं 500 किमी. की यात्रा उड़ान हेतु अधिकतम 2500 रुपए किराया वसूला जाता है एवं इससे एयरलाइनों को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा की जाती है।

उड़ान 1.0

  • इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए।

उड़ान 2.0

  • वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की जहाँ कोई सेवा प्रदान नही की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी।
  • उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे।

उड़ान 3.0

  • पर्यटन मंत्रालय के समन्वय में उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश।
  • जलीय हवाई-अड्डे को जोड़ने के लिए जल विमान का समावेश।
  • उड़ान के दायरे में पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई मार्गों को लाना।

स्रोत- PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

जहाज़ों का पुनर्चक्रण विधेयक, 2019

प्रीलिम्स के लिये

जहाज़ों का पुनर्चक्रण विधेयक, 2019

मेन्स के लिये

जहाज़ों के पुनर्चक्रण का पर्यावरणीय प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने जहाज़ों का पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 (Recycling of Ships Bill, 2019) तथा जहाज़ों के सुरक्षित तथा बेहतर पुनर्चक्रण के लिये हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (Hong Kong International Convention for Safe and Environmentally Sound Recycling of Ships, 2009-HKC) में भारत के शामिल होने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • भारत सरकार ने जहाज़ों के पुनर्चक्रण विधेयक 2019 को पारित करने का प्रस्ताव किया है जिसके द्वारा देश के अंदर जहाज़ों के पुनर्चक्रण को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानक निर्धारित किये जा सकें तथा इन मानकों के क्रियान्वयन हेतु वैधानिक प्रावधान किये जा सकें।
  • इसके द्वारा यह भी निश्चित किया गया है कि भारत जहाज़ों के सुरक्षित तथा बेहतर पुनर्चक्रण के लिये हॉन्गकॉन्ग अभिसमय (Hong Kong Convention) के प्रावधानों का पालन करेगा।
  • जहाज़ों का पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 को पारित किये जाने के पश्चात् HKC में निहित प्रावधान इसमें शामिल किये जाएंगे।
  • भारत जहाज़ों के पुनर्चक्रण उद्योग में एक अग्रणी देश है। वैश्विक स्तर पर जहाज़ों के पुनर्चक्रण उद्योग का 30% बाज़ार भारत में है।
  • समुद्री यातायात समीक्षा पर अंकटाड की रिपोर्ट 2018 (UNCTAD’s Report on Review of Maritime Transport, 2018) के अनुसार, भारत ने वर्ष 2017 में 6,323 टन वजन के जहाज़ों को पुनर्चक्रित किया है।
  • जहाज़ पुनर्चक्रण उद्योग, एक श्रम गहन उद्योग (Labour Intensive Industry) है परंतु इसके द्वारा उत्सर्जित प्रदूषकों से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।

विधेयक के मुख्य प्रावधान:

  • यह विधेयक जहाज़ों के निर्माण में उपयोग होने वाले खतरनाक पदार्थों (Hazardous Materials) के प्रयोग पर पाबंदी लगाता है भले ही वह जहाज़ पुनर्चक्रण के लिहाज से बनाया गया हो या नहीं।
  • नए जहाज़ों के लिये यह नियम तभी से लागू माना जाएगा जब यह विधेयक कानूनी रूप लेगा जबकि पुराने जहाज़ों को पाँच वर्ष का समय दिया जाएगा ताकि वे इन पदार्थों का प्रयोग बंद कर सकें।
  • खतरनाक पदार्थों के प्रयोग संबंधी यह पाबंदी नौसैनिक युद्धपोतों तथा सरकार द्वारा संचालित गैर-वाणिज्यिक जहाज़ों पर नहीं लागू होगी।
  • जहाज़ों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण के लिये उनका सर्वेक्षण तथा प्रमाणन किया जाएगा।
  • इस विधेयक के तहत जहाज़ों के पुनर्चक्रण संबंधित सभी कार्य सरकार द्वारा प्राधिकृत पुनर्चक्रण केंद्रों पर ही होंगे।
  • विधेयक के प्रावधानों में यह भी शामिल किया गया है कि जहाज़ों को एक विशेषीकृत योजना के तहत ही पुनर्चक्रित किया जाए। जिन जहाज़ों का पुनर्चक्रण भारत में होगा उन्हें हॉन्गकॉन्ग अभिसमय के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्चक्रण के लिये तैयार प्रमाण-पत्र (Ready for Recycling Certificate) प्राप्त करना होगा।

हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 2009

(Hong Kong International Convention for Safe and Environmentally Sound Recycling of Ships, 2009-HKC):

  • इस अभिसमय का मुख्य उद्देश्य परिचालन अवधि (Operational Life) समाप्त होने के बाद किसी जहाज़ का पुनर्चक्रण करने से उसका मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव न पड़े यह सुनिश्चित करना है।
  • जहाज़ पुनर्चक्रण उद्योग में अनेकों प्रदूषक पदार्थ निकलते हैं जिसमें एज्बेस्टस, भारी तत्त्व, हाइड्रोकार्बन, ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले कारक शामिल होते हैं। ये पदार्थ पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य दोनों के लिहाज़ से नुकसानदायक हैं।
  • इस अभिसमय में जहाज़ों की संरचना, उनका निर्माण, संचालन तथा उनके पुनर्चक्रण को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। इसमें यह भी सुनिश्चित किया गया है कि पुनर्चक्रण उद्योगों में कार्य कर रहे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर कोई खतरा न उत्पन्न हो।
  • जहाज़ पुनर्चक्रण उद्योग समुद्र के किनारे स्थित होते हैं। जिसकी वजह से यहाँ से निकलने वाले प्रदूषक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिये नुकसानदायक होते हैं।

स्रोत: PIB


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (21 नवंबर)

Tiger Triumph सैन्य अभ्यास

  • भारतीय और अमेरिकी सेना का पहला संयुक्त त्रि-सेना मानवीय सहायता एवं आपदा राहत Humanitarian Assistance and Disaster Relief ( (HADR) अभ्यास टाइगर ट्रायम्फ 13 से 21 नवंबर, 2019 तक बंगाल की खाड़ी के पूर्वी समुद्री तट पर आयोजित किया गया।
  • इस अभ्यास में भारतीय नौसेना के जहाज़ जलअश्व, ऐरावत और संध्यक, 19 मद्रास एवं 7 गार्ड्स की भारतीय सेना की टुकड़ियों और भारतीय वायुसेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर और रैपिड एक्शन मेडिकल टीम ने हिस्सा लिया।
  • टाइगर ट्रायम्फ अभ्यास का उद्देश्य HDAR अभियान में अंत: पारस्परिक्तता का विकास करना था।
  • काकीनाडा में सामुद्रिक चरण के तहत दोनों नौसेनाओं के जवानों ने जहाज पर और सामुद्रिक, एम्फिबियोस और HADR अभियान में हिस्सा लिया।
  • यह दूसरा ऐसा अवसर था जब भारत ने थल सेना, नौसेना तथा वायुसेना सहित किसी दूसरे देश के साथ त्रि-सेना सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया।
  • इससे पहले भारत ने वर्ष 2017 में रूस के व्लादिवोस्तोक में त्रि-सेना युद्ध अभ्यास ‘इंद्र’ में हिस्सा लिया था।

दिल्ली वायु प्रदूषण पर भारत-ब्रिटेन सहयोग

  • ब्रिटेन और भारत के पर्यावरण वैज्ञानिक दिल्ली के वायु प्रदूषण से निपटने के लिये मिलकर काम करने पर सहमत हो गए हैं।
  • मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के वायु गुणवत्ता विशेषज्ञों ने इसके लिये भारतीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास से सहयोग किया है।
  • उनका नया और वर्तमान में चल रहा अध्ययन प्रदूषण के संकट के पीछे के कारणों की पहचान करेगा।
  • बदलते मौसम में फसलों के अवशेषों को जलाया जाना भी प्रदूषण का बहुत महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

यह शोध अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इससे जो कुछ जानकारियाँ मिली हैं उनसे पता चलता है कि शहर भर में पार्टिकुलेट मैटर (PM) के संकेंद्रण में कुछ भिन्नता है, लेकिन इसमें अलग-अलग स्रोतों का योगदान लगभग समान है।


फिनटेक स्टार्टअप्स के लिये VISA का Innovation Program

  • हाल ही में वैश्विक कार्ड भुगतान नेटवर्क वीज़ा ने भारत में वीज़ा एवरीवेयर इनिशिएटिव (VEI) शुरू करने की घोषणा की है।
  • यह बाज़ार में मौजूद डिजिटल भुगतान चुनौतियों को हल करने के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करने वाले फिनटेक स्टार्टअप को खोजने वाला एक नवाचार कार्यक्रम है।
  • इसके तहत इच्छुक फिनटेक स्टार्टअप 13 नवंबर से 25 दिसंबर, 2019 तक वीज़ा एवरीवेयर इनिशिएटिव के लिये आवेदन भेजकर इसमें भाग ले सकते हैं।
  • शॉर्टलिस्ट किये गए फिनटेक स्टार्टअप के पास मार्च 2020 तक विशेषज्ञ पैनल को अपने प्रस्तावित समाधान दिखाने का अवसर होगा, जिसके आधार पर विजेता की घोषणा की जाएगी।
  • फिनटेक स्टार्टअप्स प्रोग्राम के लिये नामांकन करते हुए उन विषयों पर काम करना होगा, जो भारत में डिजिटल भुगतान के उच्च मानकों को अपनाने में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं।
  • वीज़ा एवरीवेयर इनिशिएटिव के माध्यम से भारतीय फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाया जा सकेगा जिसका उद्देश्य भारत में भुगतान के तरीकों में बदलाव लाना है।
  • विदित हो कि वीज़ा एवरीवेयर इनिशिएटिव कार्यक्रम वर्ष 2015 में अमेरिका में लॉन्च किया गया था और बाद में 100 देशों तक इसका विस्तार किया गया।

गांधियन चैलेंज

  • यूनिसेफ और माई गॉव की सहायता से नीति आयोग के अटल नवाचार मिशन ने गांधियन चैलेंज के शीर्ष 30 विजेताओं की घोषणा की, जिसे महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती की स्‍मृति में आयोजित किया गया था।
  • गांधियन चैलेंज में वैश्विक तापन, बढ़ती हिंसा एवं असहिष्‍णुता आदि जैसी नई वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित समाधानों पर प्रश्‍न पूछे गए थे।
  • कक्षा 6 से 12वीं कक्षा के छात्रों से दो श्रेणियों– कला एवं नवाचार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा नवाचार के तहत प्रविष्टियाँ मांगी गई थीं।
  • महात्‍मा गांधी के सिद्धांतों को पढ़ने और समझने तथा नई वैश्विक चुनौतियों के समाधान में उन्‍हें लागू करने के लिये प्रोत्‍साहित करना इस चैलेंज का लक्ष्‍य था।

इस चैलेंज को बाल अधिकार सम्‍मेलन (Children Rights Cinference-CRC) की 30वीं वर्षगांठ के वैश्विक आयोजन के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। 20 नवम्‍बर, 1989 को विश्‍व भर के नेता एकत्रित हुए थे और बचपन पर आधारित एक अंतर्राष्‍ट्रीय समझौते– CRC को लागू किया था। इससे बच्‍चों के जीवन में सुधार लाने में मदद मिली है। प्रत्‍येक वर्ष 20 नवम्‍बर को विश्‍व बाल दिवस मनाया जाता है। भारत में बाल दिवस 14 नवंबर को मनाया जाता है।


विश्व बाल दिवस

  • 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता (UNCRC) को अपनाया गया था।
  • यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता, बच्चों के प्रति जागरूकता और बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये मनाया जाता है
  • इस वर्ष इस दिवस की थीम फॉर चिल्ड्रेन, बाई चिल्ड्रेन (For Children, by Children) रखी गई है।
  • यूनिसेफ 14 से 20 नवंबर, 2019 तक बाल अधिकार सप्ताह मनाकर विश्व में बच्चों के अधिकार को लेकर कई कार्यक्रम किये।
  • इस वर्ष बच्चों के लिये सात अधिकारों को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें स्वास्थ्य और शिक्षा प्रमुख है।
  • इसके अलावा यूनिसेफ दुनियाभर में (Go Blue) गो ब्लू अभियान चला रहा है। गौरतलब है कि इस रंग को बाल अधिकारों का प्रतीक माना गया है।

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