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डेली न्यूज़

  • 21 Oct, 2020
  • 50 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

कालेश्वरम् लिफ्ट सिंचाई परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

कालेश्वरम् लिफ्ट सिंचाई परियोजना

मेन्स के लिये:

कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना तथा इससे जुड़ी पर्यावरणीय समस्याएँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा दिये गए एक निर्णय के अनुसार, तेलंगाना में कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना को ‘भूतलक्षी प्रभाव’ से पर्यावरणीय मंज़ूरी देने में कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • NGT ने कहा है कि इन कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जवाबदेही तय करने और उपचारात्मक उपायों की आवश्यकता है।
  • NGT ने पर्यावरण और वन मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वर्तमान मामले में जाँच के लिये संबंधित क्षेत्रीय विशेषज्ञता वाले अधिमानतः सात सदस्यों की विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए।
  • सिद्दीपेट (Siddipet) ज़िले के एक प्रभावित किसान द्वारा दायर याचिका के जवाब में मंगलवार को अपनी वेबसाइट पर पोस्ट किये गए एक फैसले में NGT की प्रधान पीठ ने मंत्रालय को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिये कहा जो छह महीने के भीतर अपना कार्य पूरा करेगी। पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित सचिव को इस परियोजना की निगरानी करने का निर्देश देते हुए कहा कि प्रभावित पक्ष को तीन सप्ताह के भीतर इस संबंध में मंत्रालय में अभिवेदन देने की छूट होगी।
  • NGT ने कहा कि वह परियोजना प्रस्तावक के इस विचार को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि प्राथमिक रूप से यह परियोजना जल आपूर्ति और जल प्रबंधन के लिये है और सिंचाई इस परियोजना का सहायक भाग है, इसलिये वर्ष 2008-2017 के दौरान परियोजना के क्रियान्वयन से पहले ज़रूरी पर्यावरण मंज़ूरी नहीं ली गई थी।
  • NGT की प्रधान पीठ ने सुझाव दिया है कि विशेषज्ञ समिति वर्ष 2008-2017 की अवधि के दौरान पर्यावरणीय मंज़ूरी के बिना परियोजना जारी रहने के कारण होने वाले नुकसान का आकलन कर सकती है और आवश्यक बहाली के उपायों की पहचान कर सकती है।
  • इसके अलावा NGT ने कहा है कि राहत और पुनर्वास संबंधी उपायों को अपनाया जा सकता है और इन्हें आगे भी अपनाया जाना आवश्यक है तथा परियोजना प्रस्तावक द्वारा प्रस्तुत पर्यावरण प्रबंधन योजना के प्रभावी कार्यान्वयन की जाँच करने के साथ ही पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिये आवश्यक शर्तों का अनुपालन भी किया जाए।

बहुउद्देशीय परियोजनाओं से संबंधित पर्यावरणीय मंज़ूरी:

  • NGT के अनुसार, यह विशेष रूप से आवश्यक है कि अगर परियोजनाएँ बहुउद्देश्यीय हैं तो उनके लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। 
  • NGT ने कहा कि पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता को इस तर्क से खारिज नहीं किया जा सकता है कि परियोजना को आंशिक रूप से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना द्वारा स्वीकृत किया गया था, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ।
  • NGT के अनुसार, इस तरह की परियोजनाओं के लिये केवल दस्तावेज़ी स्वीकृति के बजाय एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है और इसके बाद जहाँ भी आवश्यक हो, विवरणों का भौतिक सत्यापन किया जा सकता है।

स्रोत- द हिंदू


कृषि

पंजाब सरकार के कृषि विधेयक

प्रिलिम्स के लिये

पंजाब सरकार द्वारा पारित किये गए विधेयक

मेन्स के लिये

कृषि विपणन सुधारों से संबंधित केंद्र सरकार के तीन विधेयक और उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए पंजाब विधानसभा ने चार कृषि विधेयक पारित किये हैं, जिसमें बीते माह केंद्र द्वारा लागू किये गए तीन कृषि कानूनों में बदलाव करने के लिये तीन संशोधन विधेयक भी शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक को पारित करते हुए पंजाब सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानून न केवल भारत के संघवाद पर एक हमला है, बल्कि इससे देश के किसानों की आजीविका को भी छीनने का प्रयास किया जा रहा है।

विधेयकों के प्रमुख प्रावधान

  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) विधेयक 2020 
    • पंजाब सरकार द्वारा पारित विधेयक यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि गेहूँ और धान की बिक्री तथा खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम मूल्य पर न की जाए। 
    • विधेयक के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति या कंपनी या निगम किसानों को अपनी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम मूल्य पर बेचने के लिये मजबूर करता है तो उसे  कम-से-कम तीन वर्ष कैद की सज़ा हो सकती है और साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है।
    • यह विधेयक किसान को उसकी उपज की खरीदारी के संबंध में किसी भी प्रकार के मतभेद की स्थिति में केंद्रीय अधिनियम के तहत प्रदान किये गए विकल्पों के अलावा न्यायालय के समक्ष भी अपना मामला प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।
    • पंजाब द्वारा इस विधेयक में केवल गेहूँ और धन को शामिल करने का एक मुख्य कारण यह है कि पंजाब में इन फसलों को काफी बड़ी मात्रा में उगाया जाता है।
  • किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन विधेयक, 2020
    • इस विधेयक के माध्यम से कृषि उपज विपणन समिति अधिनियम, 2016 के संबंध में राज्य में यथास्थिति की घोषणा की गई है।

    • विधेयक यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि निजी व्यापारियों को भी सरकारी मंडियों की तरह ही विनियमित किया जाए।
    • विधेयक में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय कृषि कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर किसी भी किसान के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
  • आवश्यक वस्तु (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) विधेयक, 2020 
    • पंजाब सरकार के इस विधेयक का उद्देश्य उपभोक्ताओं को जमाखोरी और कालाबाज़ारी की कुप्रथाओं से सुरक्षा प्रदान करना है। 
    • यह विधेयक पंजाब राज्य को असाधारण परिस्थितियों जैसे- अकाल, मूल्य वृद्धि, प्राकृतिक आपदा या कोई अन्य स्थिति में उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और स्टॉक सीमा को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने के लिये आदेश देने की शक्ति देता है।

पंजाब सरकार का तर्क

  • इन विधेयकों को पारित करते हुए पंजाब सरकार ने तर्क दिया है कि इससे राज्य के किसानों और खेतिहर मज़दूरों के साथ-साथ कृषि तथा अन्य संबंधित गतिविधियों में संलग्न लोगों के हितों और आजीविका को सुरक्षित एवं संरक्षित किया जा सकेगा।
  • वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना यह रेखांकित करती है कि राज्य में तकरीबन 86.2 प्रतिशत किसान, छोटे और सीमांत हैं और इनके पास दो एकड़ से कम भूमि है।
  • अतः इन विधेयकों के माध्यम से पंजाब सरकार किसानों को उचित मूल्य की गारंटी के रूप में एक समान अवसर प्रदान करने का प्रयास कर रही है।
  • पंजाब सरकार द्वारा पारित किये गए कृषि विधेयकों में कहा गया है कि चूँकि कृषि, कृषि बाज़ार और भूमि आदि राज्य सूची के विषय हैं, इसलिये राज्य सरकार को इन पर कानून बनाने का पूर्ण अधिकार है।

इन विधेयकों के निहितार्थ

  • पंजाब सरकार द्वारा पारित विधेयकों का प्राथमिक उद्देश्य किसानों की मांग को पूरा करना है और इससे पंजाब में निजी व्यापारियों को किसानों का शोषण करने का कोई अवसर नहीं मिल सकेगा।
  • हालाँकि कई विशेषज्ञ यह प्रश्न उठा रहे हैं कि राज्य सरकार द्वारा इस विधेयक में केवल 2 फसलें ही क्यों शामिल की गई हैं?
  • कई जानकार पंजाब सरकार के इस कदम को केवल एक राजनीतिक कदम के रूप में देख रहे हैं, चूँकि इस विधेयक को राज्यपाल के अलावा राष्ट्रपति की सहमति की भी आवश्यकता होगी, अतः वे केंद्र सरकार द्वारा पारित कानूनों में संशोधन करना चाहते हैं।

आगे की राह

  • राष्ट्रपति द्वारा इन विधेयकों को मंज़ूरी नहीं भी दी जाती है तो इसे पंजाब सरकार द्वारा एक सांकेतिक विरोध के रूप में देखा जा सकता है।
  • हालाँकि पंजाब सरकार द्वारा इस विधेयक में केवल दो ही फसलें शामिल की गई हैं, जिसके कारण यह विधेयक किसानों के हित से अधिक एक सांकेतिक विधेयक लगता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

न्यू स्टार्ट संधि

प्रिलिम्स के लिये: 

न्यू स्टार्ट, मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि

मेन्स के लिये: 

न्यू स्टार्ट को लेकर लिये रूस का प्रस्ताव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूसी राष्ट्रपति ने फरवरी 2021 में समाप्त हो रही संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के मध्य हुई न्यू स्टार्ट संधि (New START- Strategic Arms Reduction Treaty) में एक वर्ष का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया है। 

प्रमुख बिंदु: 

  •  न्यू स्टार्ट संधि:
    • नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (Strategic Arms Reduction Treaty- START) संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच सामरिक हथियारों में कमी लाने तथा उन्हें सीमित करने संबंधी एक संधि है। 
    • यह संधि 5 फरवरी, 2011 को लागू हुई थी।
    • यह नई स्टार्ट संधि शीत युद्ध के अंत में वर्ष 1991 में हुई स्टार्ट संधि की अनुवर्ती है। वर्ष 1991 की संधि दोनों पक्षों के लिये रणनीतिक परमाणु वितरण वाहनों की संख्या को 1,600 और वारहेड्स की संख्या को 6,000 तक सीमित करती है।
      • न्यू स्टार्ट संधि ने वर्ष 1991 की स्टार्ट-1 (Strategic Arms Reduction Treaty-1) को प्रतिस्थापित किया था। इसके अलावा इसने वर्ष 2002 की सामरिक आक्रामक कटौती संधि (Strategic Offensive Reductions Treaty-SORT) को भी समाप्त कर दिया था।
    • यह 700 रणनीतिक लॉन्चर और 1,550 ऑपरेशनल वारहेड्स की मात्रा को दोनों पक्षों के लिये सीमित कर अमेरिकी और रूसी रणनीतिक परमाणु शस्त्रागार को कम करने की द्विपक्षीय प्रक्रिया को जारी रखती है।
    • यदि इस संधि को पाँच वर्ष की अवधि के लिये विस्तारित नहीं किया जाता है तो यह संधि फरवरी 2021 में व्यपगत हो जाएगी। 
  • हालिया प्रस्ताव:
    • रूस ने इस संधि को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के निष्क्रिय व्यवहार संबंधी चिंताओं के मद्देनज़र यह प्रस्ताव रखा है। 
    • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस के साथ ‘मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि’ (Intermediate-Range Nuclear Force Treaty- INF Treaty) को भी निलंबित कर दिया है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका 2 अगस्त, 2019 को इस संधि से बाहर हो गया।

मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि (INF Treaty):

  • वर्ष 1987 में हुई यह संधि अमेरिका और यूरोप तथा सुदूर पूर्व में उसके सहयोगियों की सुरक्षा में मदद करती है।
  • यह संधि अमेरिका तथा रूस की 300 से 3,400 मील दूर तक मार करने वाली ज़मीन से छोड़ी जाने वाले क्रूज़ मिसाइल के निर्माण को प्रतिबंधित करती है। इसमें ज़मीन आधारित सभी मिसाइलें शामिल हैं।
  • वर्ष 1987 में अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और उनके तत्कालीन यूएसएसआर समकक्ष मिखाइल गोर्बाचेव ने मध्यम दूरी और छोटी दूरी की मारक क्षमता वाली मिसाइलों का निर्माण नहीं करने के लिये INF संधि पर हस्ताक्षर किये थे।
  • यह संधि प्रतिबंधित परमाणु हथियारों और गैर-परमाणु मिसाइलों की लॉन्चिंग को रोकती है किंतु अमेरिका की नाराज़गी रूस की एसएस-20 की यूरोप में तैनाती के कारण थी। इसकी रेंज 500 से 5,500 किलोमीटर तक है।
  • इस संधि के तहत वर्ष 1991 तक करीब 2700 मिसाइलों को नष्ट किया जा चुका है। इस संधि के तहत दोनों देश एक-दूसरे की मिसाइलों के परीक्षण और तैनाती पर नज़र रख सकते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका का पक्ष: संयुक्त राज्य अमेरिका चाहता था कि किसी भी प्रतिस्थापन संधि में चीन को शामिल किया जाना चाहिये।
  • साथ ही संधि में रूस के न सिर्फ ‘स्ट्रैटेजिक’ (Strategic) हथियारों (जिन्हें न्यू स्टार्ट के तहत शामिल किया गया) को बल्कि रूस के छोटे ‘टैक्टिकल’ (Tactical) परमाणु हथियारों को भी शामिल किया जाना चाहिये। 
    • रूस ने संयुक्त राज्य अमेरिका की इन मांगों को अस्वीकार कर दिया और चीन ने भी इस वार्ता में भाग लेने से इनकार कर दिया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने न्यू स्टार्ट संधि के विस्तार को लेकर रूस के हालिया प्रस्ताव पर बातचीत के लिये सहमति व्यक्त की है।

आगे की राह:

  • दोनों पक्षों के वार्ताकारों को अभी भी एक सत्यापन प्रणाली पर कार्य करने और एक वारहेड की विस्तृत परिभाषा पर सहमति बनाने की आवश्यकता है। 
  • यदि इस संधि को विस्तारित या प्रतिस्थापित नहीं किया जाता है तो दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु शक्तियाँ उस दौर में वापस लौट आएंगी जहाँ शस्त्रागार पर कोई प्रतिबंध नहीं था।
  • इस संधि के विस्तार से अमेरिका-रूस संबंधों में एक नया मोड़ आएगा जो वैश्विक शांति के लिये अहम साबित होगा।
  • न्यू स्टार्ट के विस्तार को लेकर प्रस्तावित समय का उपयोग भविष्य में परमाणु मिसाइल हथियारों पर नियंत्रण के लिये द्विपक्षीय वार्ता करके एक व्यापक रणनीति बनाने में किया जा सकता है। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

स्वायत्त संस्थानों का सुव्यवस्थीकरण

प्रिलिम्स के लिये: 

वित्त मंत्रालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री

मेन्स के लिये: 

स्वायत्त  संस्थानों के सुव्यवस्थीकरण या विलय का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ( Ministry of Finance)  द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) के अंतर्गत कार्य करने वाले पाँच स्वायत्त संस्थानों को इससे अलग करने तथा दो अन्य संस्थानों का विलय करने की सिफारिश की गई है। इस प्रकार मंत्रालय के अधीन आने वाले 16 स्वायत्त संस्थानों की संख्या को घटाकर 9 किया जाना प्रस्तावित है।  

पृष्ठभूमि:

  • वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की गई यह सिफारिश उस रिपोर्ट का हिस्सा है जिसे सामान्य वित्त नियम, 2017 के नियम 229 (Rule 229 of General Finance Rules, 2017) के तहत निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार किया गया है।
    • नियम 229 'स्वायत्त संगठनों की स्थापना के लिये  सामान्य सिद्धांतों' से संबंधित है।
    • रिपोर्ट का उद्देश्य न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन तथा  सार्वजनिक कोष के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्वायत्त निकायों के सुव्यवस्थीकरण ( Rationalisation) के लिये  विशिष्ट एवं कार्रवाई योग्य सिफारिशें करना है।

MoEFCC के लिये की गई सिफारिशें:

  • भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) देहरादून, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Forest Management- IIFM) भोपाल, भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (Indian Plywood Industries Research & Training Institute) बंगलूरू, CPR पर्यावरण शिक्षा केंद्र, चेन्नई एवं  पर्यावरण शिक्षा केंद्र, अहमदाबाद को MoEFCC से विस्थापित करने की सिफारिश की गई है।
    • विस्थापन में दो मुख्य पहलुओं को शामिल किया जाना है: पहला, संस्था को प्रबंधन से अलग समयबद्ध तरीके से सरकारी सहायता प्रदान करना और दूसरा, संबंधित संस्थान/हितधारकों को उन्हें चलाने की अनुमति देना।
    • सरकार द्वारा तीन वर्ष की समयावधि तथा प्रत्येक वर्ष 25% की क्रमिक बजट कटौती के साथ विघटन की  सिफारिश की जाती है।
    • WII तथा  IIFM दोनों को डीम्ड विश्वविद्यालयों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • रिपोर्ट में सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट ( Society of Integrated Coastal Management), नई दिल्ली के  नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट ( National Centre for Sustainable Coastal Management ), तमिलनाडु में विलय करने की सिफारिश की गई है क्योंकि दोनों ही संस्थान तटीय प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये समान भूमिका का निर्वहन करते हैं। इससे कार्यों के दौहराव से बचा जा सकेगा।
  • सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (Salim Ali Centre for Ornithology and Natural History), तमिलनाडु जिसे MoEFCC मंत्रालय से सालाना 14 करोड़ रूपए प्राप्त होते हैं,  को मंत्रालय के साथ विलय करने की सिफारिश की गई है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( Central Pollution Control Board), केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority-CZA), राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA), राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority ) जैसे सांविधिक निकायों को  MoEFCC से  वित्तीय सहायता एवं सहयोग मिलने की बात कही गई है।
    • इन निकायों को 'स्व-वित्तपोषित'(Self-financed) बनने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

सराहनीय पहल:

  • यह पहली बार है कि इस तरह का ऑडिट उन संस्थानों के लिये किया गया है जिन्हें पूरा होने में लगभग चार वर्ष का समय लगा।
  • WII एवं अन्य संस्थानों को डीम्ड विश्वविद्यालयों के रूप में मान्यता प्राप्त होने से संस्थानों को अधिक पाठ्यक्रम शामिल करने एवं अधिक सुविधा प्राप्त करने की स्वतंत्रता होगी।

आलोचना:

  • संस्थानों में इस प्रकार का विघटन/अलगाव इनके समक्ष अनुसंधान के बजाय वित्तीय मुद्दों को लेकर  चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
    • पर्यावरण एक सार्वजनिक मुद्दा है और इसकी सुरक्षा के लिये अच्छे सार्वजनिक संस्थानों की आवश्यकता है।
  • इन संस्थानों का सरकार से अलगाव को  निजी हाथों में भेजने की दिशा में पहला कदम (The First Step Towards Sending Them into Private Hands) के रूप में देखा सकता है।

यदि सरकार को लगता है कि धन का उपयोग सही प्रकार से नही हो पा रहा है या संस्थान अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, तो इसके लिये अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है क्योंकि इससे उन छात्रों के भविष्य पर प्रभाव पड़ेगा जो इन विशिष्ट विषयों का अध्ययन करने का सपना देखते हैं, वहीं दूसरी ओर  निजी विश्वविद्यालयों द्वारा ली जाने वाली उच्च फीस को वहन करना उनके लिये संभव नहीं है।

इस दिशा में अन्य संबंधित कदम:

  • हाल ही में कपड़ा मंत्रालय द्वारा  ‘अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड’(All India Handloom Board) और ‘अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड’( All India Handicrafts Board) को समाप्त कर दिया गया  है।
  • वर्ष 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा  स्वायत्त निकायों, ‘राष्ट्रीय आरोग्य निधि’ (Rashtriya Arogya Nidhi-RAN) और ‘जनसंख्या  स्थिरता कोष’ (Jansankhya Sthirata Kosh-JSK) को बंद करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई थी तथा इनके कार्यों को ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग’ (Department of Health & Family Welfare-DoHFW) में शामिल करने को कहा गया।

स्वायत्त निकाय:

  • इन निकायों की स्थापना दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सरकारी  हस्तक्षेप के बिना, स्वतंत्रता एवं लचीलेपन के साथ करने की ज़रूरत को ध्यान में रखकर की जाती है।
  • इन्हें मंत्रालय/विभागों द्वारा संबंधित विषय के साथ स्थापित किया जाता है तथा अनुदान के माध्यम से पूर्ण या आंशिक रूप से सहायता प्रदान की जाती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसे संस्थान अपने स्वयं के आंतरिक संसाधनों को किस सीमा तक उत्पन्न करते हैं।
    • ये अनुदान वित्त मंत्रालय द्वारा ज़ारी  निर्देशों के साथ-साथ संबंधित पदों एवं शक्तियों  इत्यादि के निर्देशों के माध्यम से विनियमित किये जाते हैं।
  • स्वायत्त/अनुदान प्राप्त निकायों के लिये  कुल वितरित राशि  799.55 बिलियन रुपए थी , जिसे वर्ष 2019-20  में बढ़ाकर 943.84 बिलियन रुपए कर दिया गया।
  • अधिकांश स्वायत्त संस्थान  सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत सोसाइटी के रूप में पंजीकृत हैं एवं कुछ मामलों में इन्हें विभिन्न अधिनियमों में निहित प्रावधानों के तहत वैधानिक संस्थानों के रूप में स्थापित किया गया है।
  • इन स्वायत्त संस्थानों की  सरकारी कार्यों में  प्रमुख भागीदारी (Stakeholder) होती है  क्योंकि नीतियों के लिये  रूपरेखा तैयार करने से लेकर अनुसंधान करने और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण इत्यादि में ये गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • तकनीकी, चिकित्सा एवं उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान इस श्रेणी में शामिल हैं।

आगे की राह: 

स्वायत्त निकायों के शासन की समीक्षा करने की आवश्यकता है, साथ ही इनके लिये एक समान प्रक्रिया को विकसित करने की ज़रूरत है। कई स्वायत्त निकाय सरकार और जनता के बीच कड़ी/इंटरफेस ( Interfaces) का कार्य करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक मंत्रालय को अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले  स्वायत्त निकायों की व्यापक समीक्षा करनी चाहिये। जिन कारणों एवं उद्देश्य को ध्यान में रखकर इन निकायों की स्थापना की गई है उन्हें एक समान उद्देश्य वाले संगठन के साथ विलय करने या फिर समाप्त करने की आवश्यकता है ताकि फिर से इन निकायों का नवीनीकरण किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ताइवान संबंध और चीन

प्रिलिम्स के लिये

ताइवान की भौगोलिक स्थिति, इंडिया-ताइपे एसोसिएशन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

मेन्स के लिये

भारत-ताइवान संबंध और चीन की भूमिका, चीन-ताइवान विवाद और इसकी पृष्ठभूमि

चर्चा में क्यों?

ऐसी खबरों के बीच कि भारत, ताइवान के साथ एक व्यापारिक समझौते पर विचार-विमर्श शुरू करना चाह रहा है, चीन ने भारत से ताइवान संबंधी मुद्दों पर विवेकपूर्ण ढंग से विचार करने को कहा है, क्योंकि ताइवान चीन का एक अभिन्न अंग है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत और ताइवान व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
    • उल्लेखनीय है कि भारत और ताइवान ने पहले से ही वर्ष 2018 में एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • यद्यपि भारत और ताइवान के बीच औपचारिक संबंध नहीं हैं, किंतु बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों का काफी विस्तार हुआ है और ताइवान की कंपनियाँ भारत के सबसे बड़े निवेशकों में से एक हैं।

भारत-ताइवान संबंध

  • राजनीतिक संबंध
    • 1990 के दशक में जब भारत ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ की शुरुआत की तो भारत और ताइवान के संबंधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली, साथ ही धीरे-धीरे वीज़ा प्रतिबंधों में भी छूट दी जाने लगी।
    • वर्ष 1995 में दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये, जैसे- ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (TECC) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) आदि।
    • उल्लेखनीय है कि हाल ही में ताइवान ने कोरोना वायरस रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिये भारत को 1 मिलियन फेस मास्क प्रदान किये थे।
  • व्यापार
    • बीते दो दशकों में भारत-ताइवान संबंधों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है, जहाँ एक ओर वर्ष 2000 में भारत और ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
    • अपनी कंपनियों के माध्यम से वर्ष 2018 में ताइवान ने भारत में तकरीबन 360 मिलियन डॉलर का निवेश किया था। साथ ही ताइवान ने भारत के साथ अपने निवेश और व्यापार को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी
    • भारत-ताइवान के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 2018 में हुई थी, जब ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (TECC) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
    • साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संयुक्त बैठकें तथा अकादमिक सेमिनार वार्षिक तौर पर आयोजित किये जाते हैं।
  • शिक्षा
    • ताइवान सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि वर्तमान में ताइवान में तकरीबन 100,000 विदेशी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, इसमें तकरीबन 2,398 छात्र भारत से हैं। वर्तमान में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कुल 7 ताइवान शिक्षा केंद्र (TEC) स्थापित किये गए हैं, जिनमें ताइवान के 13 शिक्षक मंदारिन भाषा पढ़ाते हैं।
    • अब तक लगभग 5000 भारतीय छात्रों ने भारतीय विश्वविद्यालयों में स्थापित ताइवान शिक्षा केंद्रों (TECs) में मंदारिन भाषा की शिक्षा प्राप्त की है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान
    • बीते कुछ वर्षों में भारत-ताइवान के सांस्कृतिक संबंधों में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। भारत के प्रमुख फिल्म समारोहों में प्रतिवर्ष ताइवान की फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है और साथ ही ताइवान के प्रसिद्ध कला समूहों को भारत में प्रदर्शन के लिये आमंत्रित किया जाता रहा है।

चीन-ताइवान विवाद

  • चीन और ताइवान के बीच सबसे बड़ा विवाद आधिकारिक पहचान को लेकर है, जहाँ एक ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहती है, वहीं ताइवान के लोग ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (PRC) को तो मान्यता देते हैं लेकिन ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (RC) को मान्यता देने वाले देशों की संख्या काफी कम है।
  • इसके अलावा चीन का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ताइवान को चीन के अभिन्न अंग के रूप में देखता है, इस वर्ग को ‘एक चीन नीति’ (One-China Policy) का समर्थक माना जाता है।
    • इस समूह के अनुसार, ताइवान चीन का अभिन्न अंग है और जो लोग ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
    • इस नीति के समर्थक मानते हैं कि ताइवान चीन का ही हिस्सा है और कुछ समय के लिये चीन से अलग हो गया है तथा जल्द ही इसे कूटनीतिक अथवा सैन्य माध्यम से चीन में शामिल कर लिया जाएगा। 

भारत के लिये ताइवान का महत्त्व

  • ध्यातव्य है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। हालाँकि ताइवान के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत समेत विश्व के तकरीबन 80 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध स्थापित किये हुए हैं।
  • अमेरिका द्वारा चीन को रणनीतिक रूप से पछाड़ने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है और इन्हीं प्रयासों के तहत अमेरिका ताइवान के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने के प्रयास कर रहा है। इस प्रकार संभव है कि भविष्य में ताइवान, पूर्वी एशिया में चीन का मुकाबला करने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। 
    • यदि ऐसा होता है तो यह भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • अमेरिका-चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध, ताइवान को चीन में स्थापित अपनी विनिर्माण इकाइयों को दक्षिण-पूर्व एशिया तथा भारत आदि में स्थानांतरित करने पर विचार के लिये मजबूर कर रहा है। 
    • हालाँकि चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की शुरुआत से पूर्व ही ताइवान ने वर्ष 2016 में ‘न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (New Southbound Policy) की घोषणा की थी। 
    • इस पॉलिसी का उद्देश्य 10 आसियान (ASEAN) देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना है।
  • विश्व भर में ताइवान को एक ‘टेक पावरहाउस’ के रूप में जाना जाता है, हालाँकि घटती जन्म दर और प्रवासन में वृद्धि के कारण ताइवान में कुशल श्रमिकों का अभाव रहा है तथा ताइवान समय-समय पर कुशल श्रमिकों को आकर्षित करने का प्रयास भी करता रहा है।
    • ऐसे में ताइवान में कुशल श्रमिकों की मांग भारत के लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकती है। आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में ताइवान में मात्र 2000 भारतीय कार्य कर रहे हैं, यदि इस संख्या को बढ़ाने का प्रयास किया जाए तो यह भारत के युवाओं खासतौर पर तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के लिये काफी महत्त्वपूर्ण अवसर हो सकता है।

भारत-चीन-ताइवान

  • चीन हमेशा से ही ताइवान के साथ किसी अन्य देश के संबंधों का विरोध करता आया है। उसका मानना है कि चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले सभी देशों को ‘एक चीन नीति’ का सख्ती से पालन करना होगा।
  • हालाँकि इसके बावजूद इंडो-पैसिफिक एवं पूर्वी एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने भारत तथा ताइवान के संबंधों को और मज़बूत करने का कार्य किया है, क्योंकि इसमें दोनों ही देशों के रणनीतिक हित शामिल हैं।
  • इसके माध्यम से जहाँ ताइवान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान को और मज़बूत करने का प्रयास कर सकता है, तो वहीं भारत इसके द्वारा दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने तथा इस क्षेत्र में अपनी तेल एवं गैस की खोज गतिविधियों को और आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकता है।
  • ताइवान स्वयं को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य के तौर पर देखता है और क्षेत्रीय शांति, स्थिरता तथा समृद्धि में योगदान करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को स्वीकार करता है, जो कि इस क्षेत्र के लिये भारत के दृष्टिकोण के साथ मेल खाता है।

ताइवान के बारे में

Taiwan

  • ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसे चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखती है।
  • तकरीबन 36,197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी 23.59 बिलियन के आस-पास है। ताइवान की राजधानी ताइपे है जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है।
  • जहाँ एक ओर चीन में एक-दलीय शासन व्यवस्था है, वहीं ताइवान में बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
  • मंदारिन (Mandarin) ताइवान में राजकार्यों की भाषा है।

आगे की राह 

  • भारत को ताइवान के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में चीन की ‘एक चीन नीति’ को एक बाधा के रूप में देखना बंद करना होगा, क्योंकि चीन भी इसी प्रकार की नीति का अनुसरण करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है।
  • इसलिये भारत को भी एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए ताइवान के साथ अपने संबंधों में यथासंभव बढ़ोतरी के प्रयास करने चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूरेनियम आपूर्ति

प्रिलिम्स के लिये: 

परमाणु ऊर्जा विभाग, परमाणु-हथियार संपन्न देश

मेन्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा लिये गए निर्णय का भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy-DAE) ने  प्रस्तावों की व्यवहार्यता की कमी (Lack of Viability of the Proposals) का हवाला देते हुए भारत को यूरेनियम अयस्क की आपूर्ति शुरू करने वाली  दो ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों को रद्द कर दिया है।  

प्रमुख बिंदु:

  • भारत-ऑस्ट्रेलिया के संबंधों में  वर्ष 2012 से ही उतार-चढ़ाव देखा गया है, जब ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा भारत को परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता देश नहीं होने के बावज़ूद यूरेनियम देने का फैसला लिया गया था ।
    • उपर्युक्त निर्णय को औपचारिक रूप देते हुए दोनों देशों के मध्य वर्ष  2014 में संपन्न हुए द्विपक्षीय  समझौते को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग (Cooperation in the Peaceful Uses of Nuclear Energy) के रूप में जाना गया।
  • ऑस्ट्रेलिया से आयातित यूरेनियम का उपयोग भारतीय परमाणु रिएक्टरों की ईंधन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये  किया गया  जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों के तहत है।
  •  हालाँकि दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद यूरेनियम आपूर्ति के मुद्दे पर प्रगति बहुत कम हुई है। वर्ष 2017 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को अपना पहला यूरेनियम शिपमेंट/जहाज़  भेजा, लेकिन यह यूरेनियम की बहुत छोटी खेप थी एवं इसका उपयोग पूर्ण रूप से परीक्षण प्रयोजनों के लिये किया जाना था।

इंडियन सिविल न्यूक्लियर कैपेसिटी:

  • भारत में 6,780 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ 22 रिएक्टर हैं। इनमें से आठ रिएक्टर स्वदेशी यूरेनियम से संचालित हैं, जबकि शेष 14 रिएक्टर IAEA सुरक्षा उपायों के अंतर्गत आयातित यूरेनियम द्वारा संचालित हैं। 
  • वर्ष 2005 में अमेरिका के साथ संपन्न परमाणु समझौते के बाद भारत को वर्ष 2006 में घोषित चरणबद्ध तरीके से IAEA  सुरक्षा उपायों के तहत 14 अलग-अलग रिएक्टर लगाने की आवश्यकता थी।
  • वर्तमान में भारत द्वारा रूस, कज़ाखस्तान, उज़्बेकिस्तान, फ्राँस और कनाडा से यूरेनियम ईंधन का आयात किया जाता है।
    • कज़ाखस्तान विश्व में यूरेनियम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • कई ईंधन चक्र सुविधाओं (Several Fuel Cycle Facilities) के साथ-साथ यूरेनियम की स्थिर आपूर्ति से भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के प्रदर्शन में और सुधार होने की उम्मीद है।

अप्रसार संधि:

  • अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों तथा हथियारों की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देते हुए निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
  • इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए तथा वर्ष 1970 में यह संधि लागू हुई। वर्तमान में इसमें 190 सदस्य देश शामिल हैं।
  •  परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिये आवश्यक है कि देशों को वर्तमान या भविष्य में परमाणु हथियार बनाने की किसी भी योजना का परित्याग करना होगा।
  • यह परमाणु हथियार संपन्न देशों द्वारा निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को  प्राप्त करने के लिये एक बहुपक्षीय एवं बाध्यकारी संधि है।
    • NPT के तहत  उन देशों को परमाणु-हथियार संपन्न देशों की श्रेणी में शामिल किया  जाता है जिनके द्वारा 1 फरवरी, 1967 से पहले परमाणु हथियारों या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण और परमाणु परीक्षण किये जा चुके है।

NPT पर भारत का रुख: 

  • भारत उन पाँच देशों में शामिल है जिन्होंने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किये  हैं, अन्य देश हैं- पाकिस्तान, इज़रायल, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान हैं।
  • भारत ने हमेशा ही NPT को एक  भेदभावपूर्ण संधि माना और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
  • भारत द्वारा परमाणु अप्रसार वाली अंतर्राष्ट्रीय संधियों का विरोध किया गया है क्योंकि वे गैर-परमाणु संपन्न देशों पर एक निश्चित रूप में लागू होती हैं,  वही दूसरी ओर ये संधियाँ पाँच परमाणु हथियार संपन्न देशों के एकाधिकार को वैधता प्रदान करती हैं ।
  • भारत का मानना है कि परमाणु निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को  एक सार्वभौमिक प्रतिबद्धता के तहत चरण-दर-चरण प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इसके लिये एक-दूसरे के प्रति विश्वास एवं सार्थक संवादों के माध्यम से बहुपक्षीय ढाँचे पर सहमति व्यक्त करने की ज़रूरत है।

आगे की राह: 

  • भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंध काफी हद तक ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’( One Step Forward, Two Steps Back) हटने की रणनीति का हिस्सा रहे हैं ।  हालाँकि ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को यूरेनियम की बिक्री पर प्रतिबंध हटाया जाना दोनों देशों के मध्य चल रहे कूटनीतिक गतिरोध के दूर होने के रूप में देखा गया जो कि संभावित रूप से ऑस्ट्रेलियाई आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये एक नया और बढ़ता हुआ बाज़ार खोल रहा है।
  • जून 2020 में भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों द्वारा अपने संबंधों को एक 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' के तहत आगे बढ़ाने का फैसला किया गया।
  • उपर्युक्त विकास के मद्देनज़र भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही यूरेनियम की आपूर्ति में आने वाली बाधाओं को दूर करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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