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डेली न्यूज़

  • 21 Apr, 2022
  • 42 min read
शासन व्यवस्था

फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (FOPL) सिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

एफओपीएल सिस्टम, FSSAI, डब्ल्यूएचओ, FAO, गैर-संचारी रोग।

मेन्स के लिये:

फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (FOPL) सिस्टम और संबंधित चिंताएँ, स्वास्थ्य, उपभोक्ता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 40 वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दावा किया कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा उपभोक्ताओं को अस्वास्थ्यकर खाद्य (Unhealthy foods) पदार्थों के सेवन को कम करने में मदद करने हेतु “स्वास्थ्य स्टार रेटिंग प्रणाली” को अपनाने की योजना साक्ष्य-आधारित नहीं है तथा यह खरीदार के व्यवहार को बदलने में विफल रही है।

  • FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSSAI अधिनियम) के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।

प्रमुख बिंदु 

भूमिका:

  • भारत में फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (FOPL) की सिफारिश पहली बार वर्ष 2014 में FSSAI द्वारा 2013 में गठित एक विशेषज्ञ समिति द्वारा की गई थी।
  • वर्ष 2019 में FSSAI ने  खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम मसौदा पर अधिसूचना जारी किया था ।
    • मसौदा खाद्य पदार्थों पर कलर-कोडेड लेबल (Colour-Coded Labels) को अनिवार्य बनाता है।
  • दिसंबर, 2019 में FSSAI ने FOPL को सामान्य लेबलिंग नियमों से अलग कर दिया।
  • 15 फरवरी, 2022 को FSSAI ने फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (FOPL) के लिये अपने मसौदा नियमों में "हेल्थ-स्टार रेटिंग सिस्टम" को अपनाने का फैसला लिया।

हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR) सिस्टम:

  • हेल्थ-स्टार रेटिंग सिस्टम किसी उत्पाद को 1/2 स्टार से 5 स्टार तक की रेटिंग देता है।
  • HSR प्रारूप नमक, चीनी और वसायुक्त सामग्री के प्रारूप के आधार पर एक पैकेज्ड खाद्य पदार्थ लो रैंकिंग करता है तथा रेटिंग पैकेज पर मुद्रित की जाती है।
  • यह भारत (जो दैनिक जीवन से संबंधित बीमारियों से ग्रसित एक देश है) में इस तरह की पहली रेटिंग होगी, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन चुनने के लिये मार्गदर्शन करना है।

फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबलिंग सिस्टम:

  • FoP लेबलिंग सिस्टम को लंबे समय से उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्पों में शामिल करने के लिये वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • यह ठीक वैसे ही कार्य करता है जैसे सिगरेट के पैकेट पर खपत को हतोत्साहित करने के लिये छवियों के साथ लेबलिंग की जाती है।
  • जैसे-जैसे भारत अधिक प्रसंस्कृत और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों के साथ आहार में बदलाव का अनुभव कर रहा है तथा यह एक बढ़ते बाज़ार में ये कारक भारत के लिये FoP लेबलिंग की आवश्यकता को प्रेरित करता हैं।
    • यह बढ़ते मोटापे और कई गैर-संचारी रोगों से लड़ने में उपयोगी भूमिका निभाएगा।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) FoP लेबल को पोषण लेबलिंग सिस्टम के रूप में परिभाषित करता है जो खाद्य पैकेजों के फ्रंट में प्रस्तुत किये जाते हैं और पोषक तत्व सामग्री या उत्पादों की पोषण गुणवत्ता पर सरल, अक्सर ग्राफिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं।
    • खाद्य पैकेजों के पीछे प्रदान की गई अधिक विस्तृत पोषक घोषणाओं को पूरा करने के लिये इनका प्रयोग किया जाता है।
  • कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन ने उल्लेख किया है कि "FoP लेबलिंग को पोषक तत्वों की घोषणाओं की व्याख्या करने में सहायता करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है"

भोजन के लिये स्वास्थ्य रेटिंग प्रणाली की क्या आवश्यकता है?

  • स्वास्थ्य देखभाल संबंधी लागत को कम करना:
    • FoPL के लागू होने के बाद से अधिकांश देशों ने सकारात्मक उपभोक्ता व्यवहार से लाभ उठाना शुरू कर दिया है।
    • इसने उन सरकारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वास्थ्य देखभाल संबंधी लागत को कम करने में मदद की है।
      • चिली और ब्राज़ील उन देशों में शामिल हैं, जिन्होंने अपने फूड पैक पर 'हाई-इन (high-in)' चेतावनी लेबल को अपनाया है, जो अस्वास्थ्यकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों की खपत को कम करने में सफल रहा है।
  • एक स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये:
    • भारत में फ्रंट-ऑफ-पैकेज चेतावनी लेबलिंग एक स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक रणनीति का एक प्रमुख घटक है क्योंकि वे उपभोक्ताओं को चीनी, सोडियम, संतृप्त वसा, ट्रांस वसा और कुल वसा में उच्च उत्पादों की पहचान करने में सक्षम बनाते हैं जो गैर-संचारी रोग (NCDs) से जुड़े महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व हैं।।

संबंधित चिंताएंँ:

  • सकारात्मक पोषक तत्वों की मास्किंग: अधिकांश उपभोक्ता संगठनों ने 'सकारात्मक पोषक तत्व' के रूप में आपत्ति जताई, जिससे भोजन में उच्च वसा, नमक और चीनी के नकारात्मक प्रभाव का सामना करना पड़ेगा और उद्योग उपभोक्ता को गुमराह करने हेतु इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। 
  • प्रतिबंधित लक्षित समूह: लेबलिंग प्रारूप केवल उन व्यक्तियों को ही लक्षित होता है जो साक्षर और पोषण के प्रति जागरूक हैं।
    • इसके अलावा सीमित सामान्य और पोषण साक्षरता का मतलब है कि पाठ-गहन पोषक तत्वों की जानकारी को समझना मुश्किल है। 
  • उपभोक्ताओं के  भ्रमित होने की संभावना: HSR प्रणाली एक "स्वास्थ्य हेलो" (Health Halo) की ओर ले जा सकती है, जो उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकती है।

आगे की राह: 

  • सचित्र प्रकाशन पर अधिक ज़ोर: 
    • लगभग एक चौथाई भारतीय आबादी निरक्षर है इसलिये सचित्र प्रकाशन बेहतर जुड़ाव और समझ को विकसित करेगा।
    • खाद्य छवियों का लोगो और स्वास्थ्य लाभों के साथ भारत में फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग के लिये  प्रतीक आधारित होना फायदेमंद हो सकता है। 
  • अधिक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता:  
    • पैक लेबलिंग के अनिवार्य करने से पहले मज़बूत शोध एक ऐसे प्रारूप में होना चाहिये  जो सभी के लिये समझने योग्य और स्वीकार्य हो। 
  • विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य रुचि पर आधारित:
    • किसी भी प्रकार के हितों के टकराव से बचने हेतु लेबल चुनने के निर्णय को व्यावसायिक हितों से मुक्त रखा जाना चाहिये।  
    • लेबल का चुनाव वैज्ञानिकता पर आधारित होना चाहिये और सार्वजनिक स्वास्थ्य हित चर्चा के केंद्र भी स्थापित में होना चाहिये।

Health-Indicators

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)  

  1. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 का स्थान लिया है।
  2. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के अधीन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a)  केवल 1  
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2  

उत्तर: (a)  

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त निकाय है। इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित किया गया है जो विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में खाद्य संबंधी मुद्दों को संभालने वाले विभिन्न अधिनियमों और आदेशों को समेकित करता है।
  • खाद्य मानक और सुरक्षा अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 जैसे कई अधिनियमों और  फल उत्पाद आदेश, 1955 आदि आदेशों को प्रतिस्थापित किया। अत: कथन 1 सही है।
  • FSSAI का नेतृत्व केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक गैर-कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा किया जाता है जो या तो भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे का पद धारण करता है या रखता है। यह स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के प्रभार के अधीन नहीं है। अतः कथन 2 सही नहीं है।

स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड


कृषि

सीवीड की खेती

प्रिलिम्स के लिये:

सीवीड, विशेष आर्थिक क्षेत्र। 

मेन्स के लिये:

सीवीड की खेती का महत्त्व और लाभ।

चर्चा में क्यों? 

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय मछुआरों की आजीविका में सुधार करने हेतु तमिलनाडु में एक सीवीड/समुद्री शैवाल पार्क को स्थापित करेगा। 

  • तमिलनाडु से सीवीड की खेती के लिये एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) हेतु स्थान चुनने के लिये  कहा गया है।
  • वर्ष 2021 में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (TIFAC) ने एक सीवीड मिशन शुरू किया था।

सीवीड

  • सीवीड के बारे में : 
    • ये  शैवाल जड़, तना और पत्तियों रहित बिना फूल वाले होते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
    • सीवीड पानी के नीचे जंगलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें केल्प फारेस्ट (Kelp Forest) कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे आदि के लिये नर्सरी का कार्य करते हैं।
    • सीवीड की अनेक प्रजातियाँ हैं जैसे- ग्रेसिलिरिया एडुलिस, ग्रेसिलिरिया क्रैसा, ग्रेसिलिरिया वेरुकोसा, सरगस्सुम एसपीपी और टर्बिनारिया एसपीपी आदि।
  • लाभ: 
    • पोषण के लिये:
      • सीवीड विटामिन, खनिज और फाइबर का स्रोत होते हैं तथा कई सीवीड स्वादिष्ट भी होते हैं ।
    • औषधीय उद्देश्य के लिये:
      • कई सीवीड में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल एजेंट विद्यमान होते हैं। उनके ज्ञात औषधीय प्रभाव हज़ारों वर्षों से विरासत में प्राप्त हुए हैं। 
      • कुछ सीवीड में कैंसर से लड़ने वाले शक्तिशाली एजेंट भी पाए जाते हैं अत: शोधकर्त्ताओं को उम्मीद है कि ये अंततः लोगों में घातक ट्यूमर और ल्यूकेमिया के उपचार में प्रभावी साबित होंगे। 
    • आर्थिक विकास के लिये:
      • सीवीड आर्थिक विकास में भी सहायक होते हैं। विनिर्माण में उनके कई उपयोगों में, टूथपेस्ट और फलों की जेली जैसे वाणिज्यिक सामानों में प्रभावी बाध्यकारी एजेंट (पायसीकारक) और कार्बनिक सौंदर्य प्रसाधन तथा त्वचा देखभाल उत्पादों में लोकप्रिय सॉफ्नर (इमोलियेंट्स) के रूप में उपयोग किया जाता हैं।
    • जैव संकेतक:
      •  जब कृषि, जलीय कृषि (Aquaculture), उद्योगों और घरों से निकलने वाला कचरा समुद्र में प्रवेश करता है, तो यह पोषक तत्वों के असंतुलन का कारण बनता है, जिससे शैवाल प्रस्फुटन (Algal Bloom) होता है। सीवीड अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं। 
    • आयरन सीक्वेस्टर: 
      • सीवीड प्रकाश संश्लेषण के लिये लौह खनिज पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं। जब इस खनिज की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ जाती है तो सीवीड इसका अवशोषण करके समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान से बचा लेते हैं। सीवीडों द्वारा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले अधिकांश भारी धातुओं को अवशोषित कर लिया जाता है।
    • ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों का पूर्तिकर्त्ता:  
      • सीवीड प्रकाश संश्लेषण और समुद्री जल में मौजूद पोषक तत्त्वों के माध्यम से भोजन प्राप्त करते हैं। ये अपने शरीर के हर हिस्से से ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ये अन्य समुद्री जीवों को भी जैविक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करते हैं।

सीवीड की खेती क्या है और इसका महत्त्व क्या है?

  • सीवीड की खेती:
    • यह सीवीड की खेती और कटाई का अभ्यास है।
    • यह अपने प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले प्रारूपो के सरलतम रूप का प्रबंधन करता है।
    • अपने सबसे उन्नत रूप में इसमें शैवाल के जीवन चक्र को पूरी तरह से नियंत्रित करना शामिल है।
    • तमिलनाडु और गुजरात तटों तथा लक्षद्वीप तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के आसपास सीवीड प्रचुर मात्रा पाया जाता हैं।
  • महत्त्व: 
    • एक अनुमान के अनुसार यदि सीवीड की खेती भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) क्षेत्र के 10 मिलियन हेक्टेयर या 5% क्षेत्र में की जाती है, तो यह
      • पाँच करोड़ लोगों को रोज़गार मिल सकता है।
      • एक नया सीवीड उद्योग स्थापित हो सकता है।
      • यह राष्ट्रीय जीडीपी में बड़ा योगदान कर सकता है।
      • समुद्री उत्पादों में वृद्धि कर सकता है।
      • शैवालों की जल क्षेत्रों में अनावश्यक भरमार को कम कर सकता है।
      • लाखों टन कार्बन डाइआक्साइड (CO2) को अवशो​षित कर सकता है।
      • जैव ईंधन का 6.6 अरब टन उत्पादन कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

ज्वालामुखियों पर पूर्व-विस्फोट चेतावनी संकेत

प्रिलिम्स के लिये:

ज्वालामुखी, व्हाकारी ज्वालामुखी, रुआपेहू ज्वालामुखी, विस्थापन भूकंपीय आयाम अनुपात, भूकंपीय तरंगें।

मेन्स के लिये:

ज्वालामुखी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नए शोध में न्यूजीलैंड के व्हाकारी व्हाइट आइलैंड ज्वालामुखी और अन्य सक्रिय ज्वालामुखियों में पूर्व-विस्फोट चेतावनी संकेतों का पता लगाया गया।

नया शोध किस बारे में है?

  • प्रत्येक ज्वालामुखी की प्रकृति आलग होती है: कुछ में क्रेटर झीलें होती हैं तो कुछ में क्रेटर "शुष्क" होते हैंज्वालामुखी के मैग्मा में विभिन्नता के कारण उनकी ऊँचाई में भी भिन्नता होती है
  • इन अंतरों के बावजूद न्यूजीलैंड में व्हाकारी (Whakaari), रुआपेहू (Ruapehu) और टोंगारियो (Tongariro) जैसे ज्वालामुखियों में उनके क्रेटर के नीचे स्थित उथली उपसतह में सामान्य प्रक्रियाओं द्वारा विस्फोट हो सकता है।
  • नए शोध में, न्यूजीलैंड के ज्वालामुखियों और दुनिया भर के तीन अन्य ज्वालामुखियों से 40 वर्षों के भूकंपीय डेटा का अध्ययन करने के लिये मशीन लर्निंग का उपयोग किया गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने पिछले एक दशक में सभी ज्ञात व्हाकारी आइलैंड ज्वालामुखी, रूपेहु और टोंगारियो विस्फोटों में विशेषतः एक पैटर्न देखा।
  • यह पैटर्न एक धीमी मात्रा का सुदृढ़ीकरण (slow strengthening) है जिसे विस्थापन भूकंपीय आयाम अनुपात {Displacement Seismic Amplitude Ratio (DSAR)} कहते  है, जो प्रत्येक घटना से कुछ दिन पहले चरम पर होता है।
    • DSAR एक अनुपात है जो ज्वालामुखी की सतह पर उन कई सौ मीटर गहराईयों तक तरल पदार्थ (गैस, गर्म पानी, भाप) की "गतिविधियों" की तुलना करता है। जब DSAR बढ़ता है, सतही तरल पदार्थ शांत होते हैं, लेकिन यह अभी भी सक्रिय रूप से आगे बढ़ रहे हैं और जमीन के नीचे सख्ती से घूम रहे हैं।
    • भूकंपीय तरंगें भूकंप या विस्फोट के कारण उत्पन्न होने वाली वे ऊर्जा तरंगें हैं जो पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करती हैं और सीस्मोग्राफ पर प्रदर्शित होती हैं।
  • इस प्रकार का विश्लेषण इतना नया है कि शोधकर्त्ताओं के पास यह परीक्षण करने के लिये कोई अवसर नहीं मिला है जिससे कि DSAR और अन्य स्वचालित उपाय पूर्वानुमान के लिये कितने विश्वसनीय हैं।

 व्हाकारी और रुआपेहू

Mazor-Volcanoes

  •  व्हाकारी (Whakaari)
    • व्हाकारी/व्हाइट आइलैंड, केप रनवे से 43 मील दूरी पर पश्चिम में बे ऑफ प्लेंटी के समीप न्यूजीलैंड का एक सक्रिय ज्वालामुखी है। 
    • यह ताउपो-रोटोरुआ ज्वालामुखी क्षेत्र के उत्तरी छोर पर एक सबमरीन वेंट (Submarine Vent) का शीर्ष है। यह लगभग 1,000 एकड़ के कुल भूमि क्षेत्र में विस्तृत  माउंट गिस्बोर्न में 1,053 फीट तक बढ़ जाता है। अधिकांश द्वीप पर स्क्रब वनस्पति मिलना सामान्य है।
    • इस द्वीप को वर्ष 1769 में कैप्टन जेम्स कुक ने खोजा एवं इसका नामकरण किया था। इसमें कई हॉट स्प्रिंग्स, गीजर और फ्यूमरोल हैं; इसमें अंतिम विस्फोट दिसंबर, 2019 में हुआ था।
  • रुआपेहू (Ruapehu): 
    • न्यूजीलैंड के मध्य उत्तरी द्वीप में माउंट रुआपेहू, 2800 मीटर ऊँची स्ट्रैटो ज्वालामुखी है।
    • यह एक हाइड्रोथर्मल सिस्टम और एक गर्म क्रेटर झील द्वारा प्रच्छादित है।
    • ज्वालामुखी स्थायी हिम रेखा के नीचे वनाच्छादित है। रेखा के ऊपर, हिमनद शिखर से बहते हैं। क्रेटर के समीप झील है से वांगाहु नदी निकलती है।
    • इसकी झील का तापमान और स्तर चक्रों में भिन्न होने के लिये तथा इसके आधार में जारी गैस में परिवर्तन, स्थानीय मौसम या गैस के सामयिक गठन का गठन, के लिये जाना जाता है।
    • झील इतनी बड़ी है कि यह सतह की गतिविधियों को नियंत्रित करती है जो व्हाकारी जैसे ज्वालामुखियों के निदान के लिये उपयोगी है।

ज्वालामुखी:

  • ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह में एक उद्घाटन या टूटन है जो मैग्मा के रूप में गर्म तरल और अर्द्ध-तरल चट्टानों, ज्वालामुखीय राख तथा गैसों के रूप में बाहर निकलता है।
  • शेष सामग्री ज्वालामुखी विस्फोट का कारण बनती है। इनसे तीव्र विस्फोट हो सकता है जिससे  अत्यधिक मात्रा में पदार्थों का निष्कासन होता  है।

Parts-of-a-Volcano

  • पृथ्वी पर विस्फोटित सामग्री तरल चट्टान ("लावा" जब यह सतह पर हो, "मैग्मा" जब यह भूमिगत हो), राख और/या गैस हो सकती है।
  • मैग्मा की अधिक मात्रा में बाहर आने और पृथ्वी की सतह पर विस्फोट होने के तीन कारण हो सकते हैं
    • मैग्मा तब बाहर आ सकता  है जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट अभिसारी गति करते हैं। मैग्मा खाली स्थान को भरने के लिये ऊपर उठता है। जब ऐसा होता है तो जल के भीतर भी ज्वालामुखी निर्माण की प्रक्रिया हो सकती है।
    • जब ये टेक्टोनिक प्लेट एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं तो मैग्मा भी ऊपर उठता है। जब ऐसा होता है, तो प्लेट के हिस्से को इसके आंतरिक भाग में गहराई में चली जाती हैं। उच्च ताप और दबाव के कारण पर्पटी पिघल जाती है और मैग्मा के रूप में ऊपर उठ जाती है।
    • मैग्मा  अंतिम अंत में हॉट स्पॉट से बाहर निकलता  है। हॉट स्पॉट पृथ्वी के अंदर के गर्म क्षेत्र होते हैं। ये क्षेत्र मैग्मा को गर्म करते हैं। मैग्मा का घनत्व कम हो जाता है जिससे यह ऊपर की ओर गति करता है। मैग्मा के बाहर आने के कारण ज्वालामुखी निर्माण की प्रक्रिया संपन्न हो सकती है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. बैरेन द्वीप ज्वालामुखी भारतीय क्षेत्र में स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी है।
  2. बैरेन द्वीप ग्रेट निकोबार से लगभग 140 किमी पूर्व में स्थित है।
  3. पिछली बार वर्ष 1991 में बैरेन द्वीप ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ था और तब से यह निष्क्रिय है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3  
(d) केवल 1 और 3 

उत्तर: (a) 

  • बैरेन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। अत: कथन 1 सही है।
  • यह अंडमान सागर में अंडमान द्वीप के दक्षिणी भाग पोर्ट ब्लेयर से लगभग 140 किमी. की दूरी पर स्थित है। बैरेन द्वीप से ग्रेट निकोबार के बीच की दूरी दी गई दूरी से अधिक है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्डेड विस्फोट वर्ष 1787 में हुआ था। पिछले 100 वर्षों मेंइसमें  कम से कम पांच बार विस्फोट हो चुका है। फिर अगले 100 वर्षों तक यह शांत रहा। वर्ष 1991 में बड़े पैमाने पर फिर से इसमें विस्फोट हुआ  तथा तब से हर दो-तीन वर्षों में इसमें विस्फोट दर्ज किया गया है इस शृंखला में नवीनतम फरवरी 2016 में हुआ था। अत: कथन 3 सही है।

जैव विविधता और पर्यावरण

ब्लू ब्लॉब

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लू ब्लॉब, आर्कटिक परिषद, आर्कटिक क्षेत्र, भारत की आर्कटिक नीति।

मेन्स के लिये:

भारत की आर्कटिक नीति, भारत के लिये आर्कटिक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?  

हाल के एक शोध के अनुसार आइसलैंड के पास उत्तरी अटलांटिक महासागर में ठंढे ठंडे जल के क्षेत्र, जिसे "ब्लू ब्लॉब" (Blue Blob) कहा जाता है, के द्वारा आर्कटिक समुद्री बर्फ के पिघलने को अस्थायी रूप से रोकने में सहायक हो सकता है।

  • हालांँकि शोध में यह भी कहा गया है कि अगर तापमान को नियंत्रित नहीं रखा गया तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बर्फ के बड़े भागों तक पहुंँच जाएगा।

प्रमुख बिंदु   

ब्लू ब्लॉब क्या के बारे में तथा ग्लेशियर के पिघलने की गति को धीमा करने में इसकी भूमिका: 

  • यह आइसलैंड और ग्रीनलैंड के दक्षिण में स्थित एक ठंडा क्षेत्र है और इसके बारे में बहुत कम जानकारी है।
  • वर्ष 2014-2015 की सर्दियों के दौरान जब समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस था तो इस क्षेत्र में कोल्ड पैच (Cold Patch) सबसे अधिक थे।
  • आर्कटिक क्षेत्र कथित तौर पर वैश्विक औसत से चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है और आइसलैंड के ग्लेशियर वर्ष 1995 से वर्ष 2010 तक लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं, जिससे प्रति वर्ष औसतन 11 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है।
  • वर्ष 2011 में इसके पिघलने की प्रक्रिया शुरू हुई हालाँकि, आइसलैंड के ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हो गई, जिसके परिणामस्वरूप वार्षिक लगभग आधा ग्लेशियर की मात्रा के बराबर ही बर्फ पिघली और ब्लू ब्लॉब को आइसलैंड के ग्लेशियरों और ठंडे जल पर कूलर हवा के तापमान से जोड़ा गया है। 
    • यह प्रवृत्ति ग्रीनलैंड और स्वालबार्ड के आस-पास के बड़े ग्लेशियरों में नहीं देखी गई थी।
  • ब्लू ब्लॉब से पहले उसी क्षेत्र में एक दीर्घकालिक शीतलन प्रवृत्ति, जिसे अटलांटिक वार्मिंग होल कहा जाता है, ने पिछली शताब्दी के दौरान समुद्र की सतह के तापमान को लगभग 0.4 से 0.8 डिग्री सेल्सियस कम कर दिया और भविष्य में इस क्षेत्र के ठंडे होने की प्रक्रिया जारी रह सकती है।
    • वार्मिंग होल (Warming Hole) का एक संभावित कारण अटलांटिक मेरिडियल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (Atlantic Meridional Overturning Circulation- AMOC) का धीमा होना है। 
      • AMOC एक महासागरीय धारा है जो उष्ण कटिबंध से आर्कटिक तक गर्म जल का प्रसार करती है इस प्रकार इस क्षेत्र में वितरित गर्मी की मात्रा को कम करती है।

आर्कटिक के बारे में:  

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित ध्रुवीय क्षेत्र है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के तहत भूमि पर मौसमी रूप से अलग-अलग हिम के आवरण की प्रकृति होती है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को  शामिल किया जाता है।
  • वर्ष 2013 से भारत को आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है, जो आर्कटिक के पर्यावरण और विकास पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।
    • आर्कटिक परिषद एक उच्च-स्तरीय अंतर-सरकारी निकाय है, जिसकी स्थापना आर्कटिक राज्यों, स्थानिक समुदायों और अन्य आर्कटिक निवासियों के बीच सहयोग, समन्वय और बातचीत को बढ़ावा देने के लिये (विशेष रूप से आर्कटिक में सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर) की गई थी।
    • आर्कटिक परिषद के सदस्य: ओटावा घोषणा ने कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका को आर्कटिक परिषद के सदस्य के रूप में घोषित किया है।

Arctic-Ocean

भारत के लिये आर्कटिक की प्रासंगिकता:

  • आर्कटिक क्षेत्र शिपिंग मार्गों के कारण महत्त्वपूर्ण है।
  • मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, आर्कटिक के प्रतिकूल प्रभाव न केवल खनिज और हाइड्रोकार्बन संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि वैश्विक शिपिंग मार्गों को भी बदल रहे हैं।
  • विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत एक स्थिर आर्कटिक को सुरक्षित करने में रचनात्मक भूमिका निभा सकता है।
  • यह क्षेत्र अत्यधिक भू-राजनीतिक महत्त्व रखता है क्योंकि आर्कटिक के वर्ष 2050 तक बर्फ मुक्त होने का अनुमान है साथ ही वैश्विक शक्तियाँ प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र का दोहन करने के लिये आगे बढ़ रही हैं।
  • मार्च, 2022 में भारत की आर्कटिक नीति का 'भारत और आर्कटिक: सतत् विकास के लिये एक साझेदारी का निर्माण' शीर्षक से अनावरण किया गया था।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)  

  1. डेनमार्क
  2. जापान
  3. रूसी संघ
  4. यूनाइटेड किंगडम
  5. संयुक्त राज्य अमेरिका 

उपर्युक्त में से कौन-से 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं?

(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 4 और 5
(d) 1, 3 और 5

उत्तर: (d)  

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

नगा युद्धविराम समझौते का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

नगा युद्धविराम समझौता, नगा शांति प्रक्रिया, कार्बी आंगलोंग समझौता, 2021, ब्रू समझौता, 2020, बोडो शांति समझौता, 2020, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर

मेन्स के लिये:

उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व के दृष्टिकोण का महत्त्व, पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष की स्थिति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र ने केंद्र सरकार और तीन नगा समूहों के बीच संघर्ष विराम समझौते को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है जिस पर 19 अप्रैल, 2022 को हस्ताक्षर किये गए थे।

नगा युद्धविराम समझौता:

  • नगा समूहों में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-एनके ((NSCN-NK), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-रिफॉर्मेशन (NSCN-R) तथा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के-खांगो (NSCN-K-Khango) शामिल हैं।
    • ये सभी समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-IM) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (NSCN-K) के अलग-अलग गुट हैं।
  • यह समझौता नगा शांति प्रक्रिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण है तथा यह भारत के प्रधानमंत्री के 'उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • सितंबर 2021 में केंद्र ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (K) निकी ग्रुप के साथ एक वर्ष के लिये संघर्ष विराम समझौता किया था।
  • केंद्र ने इससे पहले अगस्त, 2015 में NSCN (IM) के साथ एक "फ्रेमवर्क एग्रीमेंट" पर हस्ताक्षर किये थे।

The-Naga-Struggle

नगा शांति प्रक्रिया 

  • वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद ‘नगा’ क्षेत्र प्रारंभ में असम का हिस्सा बना रहा। हालाँकि एक मज़बूत राष्ट्रवादी आंदोलन ने नगा जनजातियों के राजनीतिक संघ की मांग करना शुरू कर दिया और कुछ चरमपंथियों ने भारतीय संघ से पूरी तरह से अलग होने की मांग की।
  • वर्ष 1957 में असम के ‘नगा पहाड़ी क्षेत्र’ और उत्तर-पूर्व में ‘त्वेनसांग फ्रंटियर’ डिवीज़न को भारत सरकार द्वारा सीधे प्रशासित एक इकाई के तहत एक साथ लाया गया था।
  • वर्ष 1960 में यह तय किया गया कि नगालैंड को भारतीय संघ का एक घटक राज्य बनना चाहिये। नगालैंड ने वर्ष 1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया और वर्ष 1964 में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार ने सत्तासीन हुई।

उग्रवाद मुक्त समृद्ध पूर्वोत्तर  का दृष्टिकोण (विज़न) 

  • यह माना जाता हैं कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर राज्य देश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
  • इसलिये इसका उद्देश्य 2022 तक पूर्वोत्तर में सभी प्रकार के विवादों को समाप्त करना तथा वर्ष 2023 में पूर्वोत्तर में शांति और विकास के एक नए युग की शुरुआत करना है।
  • इसके तहत सरकार पूर्वोत्तर की गरिमा, संस्कृति, भाषा, साहित्य और संगीत को समृद्ध कर रही है।
  • हालिया वर्षों में सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में सैन्य संगठनों के साथ कई शांति समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये हैं। उदाहरण 
    • कार्बी एंगलोंग समझौता, 2021: इसमें असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और असम की राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति व्यक्त की गई है।
    • बोडो शांति समझौता, 2020: वर्ष 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसमें असम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई।
    • यह शांति समझौता एनएससीएन (एनके), एनएससीएन (आर), एनएससीएन (के)- खांगो, एनएससीएन (आईएम) जैसे नगा विद्रोह में शामिल विभिन्न सैन्य संगठनों के साथ किया 

पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष की स्थिति:

  • राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष: इसमें एक अलग राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट 'मातृभूमि' की अवधारणा को शामिल है।
    • नगालैंड: नगा विद्रोह, स्वतंत्रता की मांग के साथ शुरू हुआ।
      • हालांँकि आजादी की मांग काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन 'ग्रेटर नगालैंड' या 'नगालिम' की मांग सहित अंतिम राजनीतिक समझौते का लंबित मुद्दा बना हुआ है।
  • जातीय संघर्ष: प्रमुख जनजातीय समूह की राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभावशाली समूहों के  खिलाफ संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली जनजातीय समूहों के दावे को शामिल करना।
    • त्रिपुरा: वर्ष 1947 के बाद से राज्य की जनसांख्यिकीय प्रोफाइल परिवर्तित हुई है, जब नए उभरे पूर्वी पाकिस्तान/बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर पलायन ने बड़ी तादात में  आदिवासी क्षेत्र से बंगाली भाषी लोगों के बहुमत वाले क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया।
      • आदिवासियों को सीमितमूल्यों पर उनकी कृषि भूमि से वंचित कर दिया गया और उन्हें जंगलों में रहने के लिये मज़बूर कर दिया गया।
      • परिणामी तनाव बड़ी हिंसा और व्यापक आतंक का कारण बना।
  • उप-क्षेत्रीय संघर्ष:  उप-क्षेत्रीय संघर्ष में ऐसे आंदोलनों को शामिल किया जाता है जो उप-क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने को प्रेरित करते हैं और प्रायः राज्य सरकारों या यहाँ तक ​​कि स्वायत्त परिषदों के साथ सीधे संघर्ष में व्याप्त हो जाते हैं।
    • मिज़ोरम: हिंसक विद्रोह के अपने इतिहास और उसके बाद शांति की ओर लौटने वाला यह राज्य अन्य सभी हिंसा प्रभावित राज्यों के लिये एक उदाहरण है।
      • वर्ष 1986 में केंद्र सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच 'मिज़ो शांति समझौते' और अगले वर्ष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद मिज़ोरम में पूर्ण शांति और सद्भाव कायम है।
    • इसके अलावा मिज़ोरम के गठन के समय से ही असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद व्याप्त है।
  • अन्य कारण: प्रायोजित आतंकवाद, सीमापार से प्रवासियों की निरंतर आवाजाही के परिणामस्वरूप उत्पन्न संघर्ष, महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को और मज़बूत करने के उद्देश्य के परिणामतः आपराधिक स्थितियाँ बन गई हैं।
    • असम: राज्य में प्रमुख जातीय संघर्ष 'विदेशियों' की आवाजाही के कारण है यहाँ विदेशियों से तात्पर्य सीमा पार ( बांग्लादेश) से असमिया से काफी अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से है।
      • असम में हालिया तनाव नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की बहस से उत्पन्न हुआ है।
  • संघर्ष समाधान के तरीके:
    • सुरक्षा बलों/पुलिस कार्रवाई' को मज़बूत करना।
    • राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची, संविधान के भाग XXI के तहत विशेष प्रावधान जैसे तंत्र के माध्यम से अधिक स्थानीय स्वायत्तता।
    • उग्रवादी संगठनों से बातचीत।
    • विशेष आर्थिक पैकेज सहित विकास गतिविधियाँ।

Assam

 स्रोत :द हिंदू


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