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डेली न्यूज़

  • 21 Apr, 2020
  • 69 min read
भारतीय समाज

भारत में बढ़ता इस्लामोफोबिया: OIC

प्रीलिम्स के लिये:

इस्लामिक सहयोग संगठन, USCIRF

मेन्स के लिये:

भारत में इस्लामोफोबिया

चर्चा में क्यों?

'इस्लामिक सहयोग संगठन' (Organisation of Islamic Cooperation-OIC) के 'स्वतंत्र स्थायी मानवाधिकार आयोग' (Independent Permanent Human Rights Commission- IPHRC) ने एक ट्वीट के माध्यम से भारत में बढ़ते ‘इस्लामोफोबिया’ (Islamophobia) पर चिंता व्यक्त की है।

मुख्य बिंदु:

  • OIC ने ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून’ (International Human Rights Law) के तहत भारतीय सरकार से मुस्लिम अल्पसंख्यक के अधिकारों की रक्षा के लिये तत्काल कदम उठाने के लिये  आग्रह किया है।
  • IPHRC का ट्वीट भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ‘COVID- 19’ महामारी के दौरान 'एकता और भाईचारे' पर बल देने वाले संदेश के बाद आया है। 

इस्लामोफोबिया (Islamophobia):

  • ‘इस्लामोफोबिया’ से तात्पर्य इस्लाम या मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह या पक्षपात पूर्ण व्यवहार करना है। 

COVID- 19 और इस्लामोफोबिया:

  • मार्च 2020 में दिल्ली में मुस्लिमों (‘तब्लीगी जमात’) की एक धार्मिक सभा आयोजित की गई थी। इस आयोजन को भारत में पाए गए कई COVID- 19 के पॉज़िटिव मामलों से जोड़ा गया। मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर लोगों ने भारत में COVID- 19 महामारी को जानबूझकर फैलाने के लिये तब्लीगी जमात और मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया।
  • इससे पहले ‘संयुक्त राज्य अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग’ (U.S. Commission on International Religious Freedom- USCIRF) ने भारत, पाकिस्तान और कंबोडिया की इन देशों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते खतरे की आलोचना की थी।
  • USCIRF ने अपनी रिपोर्ट में सरकार की आलोचना की है कि अहमदाबाद के एक अस्पताल में COVID- 19 रोगियों को धार्मिक आधार पर अलग रखा गया था।
  • USCIRF की रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2009 से 'विशेष चिंता का देश' के साथ टियर- 2 में बना हुआ है।

USCIRF:

  • USCIRF एक स्वतंत्र, द्विदलीय अमेरिकी संघीय आयोग है, जो दुनिया में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकार का बचाव करने के लिये समर्पित है। 
  • USCIRF धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन संबंधी तथ्यों तथा परिस्थितियों की समीक्षा करता है और राष्ट्रपति, राज्य सचिव एवं कांग्रेस को नीतिगत सिफारिशें करता है। USCIRF के आयुक्तों को अमेरिका के राष्ट्रपति तथा कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के दोनों राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त किया जाता है।

भारत सरकार का पक्ष:

  • भारत सरकार ने USCIRF द्वारा लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया है और USCIRF पर भारत में COVID- 19 के प्रसार से निपटने की दिशा में अपनाए गए पेशेवर चिकित्सा प्रोटोकॉल पर भ्रामक रिपोर्ट फैलाने का आरोप लगाया है।

IOC और भारत:

  • पिछले कुछ वर्षों में भारत ने लगातार इस्लामिक देशों खासकर सऊदी अरब, ओमान, कतर और UAE के साथ अपने संबंधों में सुधार किया है। 
  • मार्च 2019 को IOC के विदेश मंत्रियों की परिषद् का 46वाँ सत्र अबूधाबी में आयोजित किया गया। भारत को IOC की इस बैठक के उद्घाटन सत्र में बतौर ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ आमंत्रित किया गया।
  • हालाँकि बाद में IOC ने जम्मू कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित कर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया। 

आगे की राह:

  • भारत का एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में लंबा इतिहास रहा है, जहां हर धर्म के धार्मिक समुदाय पनपे हैं। संविधान धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, और देश की स्वतंत्र न्यायपालिका ने न्यायशास्त्र के माध्यम से धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की है। अत: COVID- 19 जैसी महामारी में सभी धर्मों के लोगों को एक साथ मिलकर समस्या का सामना करना चाहिये।  

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व पूर्वानुमान का नवीन मॉडल

प्रीलिम्स के लिये:

आयनमंडल के इलेक्ट्रॉन घनत्व में परिवर्तन, आयनमंडल के संस्तर 

मेन्स के लिये:

वायुमंडलीय संस्तर 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (Department of Science & Technology) के स्वायत्त संस्थान 'भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्थान' (Indian Institute of Geomagnetism- IIG), नवी मुंबई, के शोधकर्त्ताओं ने आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व की भविष्यवाणी करने वाले एक नवीन मॉडल विकसित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • IIG के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रॉन घनत्व परिवर्तन के पूर्वानुमान के लिये एक नवीन 'आर्टीफिशियल न्यूरल नेटवर्क आधारित वैश्विक आयनमंडलीय मॉडल' (Artificial Neural Networks based global Ionospheric Model- ANNIM) विकसित किया है।
  • ‘आर्टीफिशियल न्यूरल नेटवर्क’ (ANN) पैटर्न की पहचान, वर्गीकरण, क्लस्टरिंग, सामान्यीकरण, रैखिक और गैर-रैखिक डेटा फिटिंग और टाइम सीरिज़ के अनुमान जैसी समस्याओं के समाधान के लिये मानव मस्तिष्क या जैविक न्यूरॉन्स में होने वाली प्रक्रियाओं का स्थान लेता है।

आयनमंडलीय परिवर्तनशीलता: 

  • संचार और नौवहन के लिये आयनमंडलीय इलेक्ट्रान घनत्व परिवर्तनशीलता की निगरानी काफी अहम है। आयनमंडलीय परिवर्तनशीलता व्यापक स्तर पर सौर जनित कारकों तथा वातावरण की प्रक्रियाओं, दोनों द्वारा प्रभावित होती है।
  • वैज्ञानिकों ने सैद्धांतिक और अनुभवजन्य तकनीकों के उपयोग से आयनमंडलीय मॉडल विकसित करने की कोशिश की है, हालाँकि इलेक्ट्रॉन घनत्व का सटीक अनुमान लगाना अभी तक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।

शोध का महत्त्व:

  • IIG शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित मॉडल को आयनमंडलीय अनुमानों में एक संदर्भ मॉडल के रूप में उपयोग किया जा सकता है और इसमें ‘ग्लोबल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम’ (Global Navigation Satellite System- GNSS) की पोजिशनिंग खामियों की गणना में प्रयोग होने की पूरी क्षमता है।

आयनमंडल: 

  • वायुमंडल संस्तरों में आयनमंडल 80 से 400 किलोमीटर के बीच स्थित है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं। अत: इस वायुमंडलीय परत को आयनमंडल के रूप में जाना जाता है।

महत्त्व:

  • आयनमंडल इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह संचार और नेविगेशन के लिये उपयोग की जाने वाली रेडियो तरंगों को परावर्तित और संशोधित करता है।
  • आयनमंडल एक अत्यधिक गतिशील क्षेत्र है। आयनमंडल के इलेक्ट्रॉन घनत्व में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था का पता आयमंडल के ऊपरी (जैसे- सौर, भू-चुंबकत्व) या नीचे (जैसे- निचले वायुमंडलीय, भूकंपीय आदि) की विभिन्न गतिविधियों के आधार पर लगाया जाता है।

आयनमंडल के संस्तर/क्षेत्र:

  • सौर विकिरण की वर्णक्रमीय परिवर्तनशीलता (Spectral Variability) और वायुमंडल में विभिन्न घटकों (यथा- गैसों के प्रकार) के घनत्व के कारण आयनमंडल में अनेक संस्तर यथा D, E, F आदि का निर्माण हो जाता है। 
  • आयनमंडल 3 परतों में इलेक्ट्रॉन घनत्व सबसे ऊपरी यानि F संस्तर क्षेत्र में सबसे अधिक होता है। F संस्तर दिन और रात दोनों के दौरान मौजूद रहता है। 
  • दिन के दौरान यह सौर विकिरण द्वारा तथा रात्री के समय ब्रह्मांडीय किरणों द्वारा आयनित रहती है। रात्री के समय D संस्तर गायब तथा E संस्तर कमज़ोर हो जाता है।
  • D संस्तर अल्फा तथा हार्ड एक्स-रे विकिरण, E संस्तर सॉफ्ट एक्स-रे तथा कुछ पराबैंगनी तथा F संस्तर पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित कर सकता है।

Ionosphere

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

ब्लड बैंक भंडार में कमी

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC), भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी 

मेन्स के लिये:

भारत में रक्त दान की स्थिति 

चर्चा में क्यों?

हाल में ‘COVID- 19’ महामारी के चलते ‘ब्लड बैंक’ (Blood Banks) रक्त की कमी का सामना कर रहे हैं ऐसे में अस्पतालों ने रक्त की कमी को पूरा करने के लिये ‘व्यक्तिगत रक्त दाताओं’ से संपर्क करना शुरू कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • COVID- 19 के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ितों को रक्त की कमी का सामना करना पड़ रहा है।  
  • 'केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय' (Union Health Ministry) ने अस्पतालों को कहा है कि वे ज़रूरतमंद मरीज़ों को आवश्यक रक्त उपलब्ध कराए। 

सबसे ज़्यादा प्रभावित लोग:

  • रक्त विकार (Blood Disorder) वाले व्यक्ति, गर्भवती महिलाएँ, B-पॉजिटिव ब्लड ग्रुप, सांस या दिल के मरीज़ आदि को मुख्यत: रक्त की कमी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अस्पताल द्वारा सूचीबद्ध दाताओं तथा ‘दुर्लभ रक्त समूहों’ (Rare Blood Groups) वाले लोगों से रक्त दान की अपील की जा रही है।

थैलेसीमिया के मरीज़

(Thalassemia Patients):

  • थैलेसीमिया’ के रोगियों को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे रोगियों को जीवित रहने के लिये बार-बार रक्त बदलने की आवश्यकता होती है। भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी (Indian Red Cross Society) द्वारा ब्लड बैंक कैंपों के माध्यम से एकत्रित किया गया रक्त इन रोगियों को उपलब्ध कराया जाता है।
    • वर्ष 1920 में संसदीय अधिनियम के तहत भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का गठन किया गया, तब से रेडक्रॉस के स्वंय सेवक विभिन्न प्रकार के आपदाओं में निरंतर निस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
    • विश्व का पहला ब्लड बैंक वर्ष 1937 में रेडक्रॉस की पहल पर अमेरिका में खुला था। आज विश्व के अधिकांश ब्लड बैंकों का संचालन रेडक्रॉस एवं उसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा किया जाता है।

ब्लड बैंकों की वर्तमान स्थिति: 

  • इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी (Indian Red Cross Society) के अनुसार अभी तक स्थिति नियंत्रण में है क्योंकि नियमित सर्जरी नहीं हो रही है, जिससे रक्त की मांग में कमी आई है। 
  • 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (World Health Organization- WHO) के अनुसार किसी देश की आबादी के 1% लोगों की रक्त की आवश्यकता को उस देश रक्त की ज़रूरतों के मानक के रूप में उपयोग किया जाना चाहिये। इस मानक से तुलना करें तो वर्ष 2018 में भारत में 1.9 मिलियन यूनिट रक्त की कमी थी।
  • राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (National Blood Transfusion Council) के अनुसार, भारत में 2,023 ब्लड बैंक हैं, जो रक्त की 78% आपूर्ति स्वैच्छिक रक्तदाताओं से प्राप्त करते हैं। 

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी को नियमित रक्त दाताओं के पास गतिशील रक्त संग्रह वैन (Mobile Blood Collection Vans) भेजने के लिये कहा है ताकि रक्तदाता, रक्तदान को आगे आ सके।

आगे की राह:

  • व्यक्तिगत रक्त दाताओं के लिये पिक-ड्रॉप सुविधाओं (Pick-Drop Facilities) प्रदान की जानी चाहिये तथा रक्त दाता संपर्क में रहे लोगों की विस्तृत जानकारी ली जाएगी ताकि सुरक्षित तथा वायरस मुक्त रक्त की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC):

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार, वर्ष 1996 ‘राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद’ का गठन किया गया था। 

उद्देश्य (objectives):

  • स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देना।  
  • सुरक्षित रक्त आधान सुनिश्चित करना।  
  • रक्त केंद्रों को बुनियादी ढाँचा प्रदान करना। 
  • मानव संसाधनों विकास करना। 

NBTC के कार्य:

  • ‘राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद’ (NBTC) रक्त केंद्रों के संचालन से संबंधित सभी मामलों के संबंध में शीर्ष नीति निर्माणकारी निकाय है। 
  • NBTC केंद्रीय निकाय है जो राज्य रक्त आधान परिषदों (State Blood Transfusion Councils- SBTCs) का समन्वय करता है। 
  • ‘रक्त संचार सेवा’ (Blood Transfusion Services- BTS) से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के लिये अन्य मंत्रालयों तथा स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल होना भी सुनिश्चित करता है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन’ (National AIDS Control Organisation- NACO) और ‘राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद’ (NBTC) में समन्वय प्रभाग के रूप में कार्य करना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल लेन-देन में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली, एकीकृत भुगतान प्रणाली

मेन्स के लिये:

डिजिटल वित्तीय लेन-देन में वृद्धि से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों:

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के अनुसार, COVID-19 के कारण देशभर में लॉकडाउन से डिजिटल लेन-देन में वृद्धि दर्ज़ की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • RBI के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 में बैंकों में वास्तविक समय सकल निपटान (Real Time Gross Settlement-RTGS) के तहत लेन-देन में 34% की वृद्धि हुई है। RTGS के तहत मार्च 2020 में 120.47 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ, जबकि फरवरी 2020 में 89.90 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ था।
    • RTGS एक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली है जिसमें बैंकों के बीच भुगतान निर्देश दिन भर में रियल टाइम अर्थात् तात्कालिक रूप से और लगातार संसाधित (Processed) होते हैं।
    • यह सुविधा 2 लाख रुपए या उससे ज़्यादा की राशि के लेन-देन हेतु उपलब्ध है। देश के उच्च मूल्य लेन-देन वाले 95% भुगतान इसी प्रणाली के माध्यम से किये जाते हैं।
  • मार्च 2020 में तीसरे और चौथे सप्ताह के दौरान डिजिटल लेन-देन की संख्या 124.73 करोड़ और  224.16 करोड़ रही।
  • 15-30 मार्च के बीच लोगों द्वारा गैर-लाभकारी संगठनों के माध्यम से राहत कार्य में योगदान के कारण डिजिटल लेन-देन में 64% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • मार्च 2020 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (NPCI) द्वारा संचालित एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) के माध्यम से 125 करोड़ डिजिटल लेन-देन हुए हैं।
    • हालाँकि लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आने से मार्च में डिजिटल लेन-देन की संख्या फरवरी की तुलना में कम हुई है।
  • मोबाइल रिचार्ज, डायरेक्ट-टू-होम, केबल प्रसारण सेवाएँ, खुदरा बैंकिंग लेन-देन और अन्य सेवाओं के बिल भुगतान (फरवरी की तुलना में) मार्च में लगभग 19% बढ़कर 288 करोड़ हो गए।
    • NPCI द्वारा संचालित भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System - BBPS) के माध्यम से मार्च 2020 में डिजिटल लेन-देन की संख्या 1.58 करोड़ हो गई, जो फरवरी 2020 में 1.49 करोड़ थी।
  • RBI के आँकड़ों के अनुसार, नकदी आधारित सेवाओं में कमी आई है।
    • ATM से नकदी निकासी में 10.7% और डेबिट या क्रेडिट कार्ड की उपयोगिता में कमी दर्ज की गई है। 
  • मार्च 2020 में आधार सक्षम भुगतान सेवा (Aadhaar Enabled Payment System-AEPS) में 16.1% की गिरावट आई है।

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली

(National Payment Corporation of India- NPCI):

    • NPCI देश में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन के लिये एक समग्र संगठन है।
    • इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा भारत में भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत एक मज़बूत भुगतान और निपटान अवसंरचना के विकास हेतु स्थापित किया गया है।
    • इसे कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के प्रावधानों के तहत ‘गैर-लाभकारी संगठन’ के रूप में शामिल किया गया है।
    • NPCI की कुछ प्रमुख पहलें निम्नलिखित है:
      • एकीकृत भुगतान प्रणाली (United Payments Interface-UPI), यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके अंतर्गत एक मोबाईल एप्लीकेशन के माध्यम से कई बैंक खातों का संचालन, विभिन्न बैंकों की विशेषताओं को समायोजन, निधियों का निर्बाध आवागमन और व्यापारिक भुगतान किया जा सकता है।
      • भीम एप (BHIM App): इसके ज़रिये लोग डिजिटल तरीके से पैसे भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं। यह UPI आधारित भुगतान प्रणाली पर काम करता है।
      • तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service-IMPS): IMPS का इस्तेमाल 24*7 किया जा सकता है। यह सेवा ग्राहकों को बैंकों और RBI द्वारा अधिकृत प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट जारीकर्त्ताओं (PPI) के माध्यम से तुरंत पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा देती है।
      • भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System-BBPS): BBPS भारतीय रिज़र्व बैंक की एक अवधारणात्मक प्रणाली है, जिसका संचालन NPCI द्वारा किया जाता है। यह प्रणाली सभी प्रकार के बिलों के लिये एक अंतिम भुगतान प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार यह देशभर के ग्राहकों को भुगतान अंतरण, विश्वसनीयता और सुरक्षा के साथ-साथ एक बेहतर एवं सुलभ बिल भुगतान सेवा उपलब्ध कराती है।
      • चेक ट्रंगकेशन सिस्टम (Cheque Truncation System-CTS): CTS या ऑनलाइन इमेज-आधारित चेक क्लियरिंग सिस्टम, चेकों के तेज़ी से क्लियरिंग के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा शुरू किया गया एक चेक क्लियरिंग सिस्टम है। यह चेक के प्रत्यक्ष संचालन से संबद्ध लागत को समाप्त करता है।
      • *99#: NPCI की असंरचनात्मक पूरक सेवा डेटा (Unstructured Supplementary Service Data-USSD) आधारित मोबाइल बैंकिंग सेवा को नवंबर 2012 में शुरू किया गया था। इस सेवा की सीमित पहुँच थी तथा केवल दो TSPs (टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर) यानी MTNL एवं BSNL ही इस सेवा को मुहैया करा रहे थे। वित्तीय समावेशन में मोबाइल बैंकिंग के महत्त्व को समझते हुए *99# सेवा को 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' के भाग के रूप में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 28 अगस्त, 2014 को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
      • NACH: 'नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस’ (NACH) NPCI द्वारा बैंकों को दी जाने वाली एक सेवा है सब्सिडी, लाभांश, ब्याज, वेतन, पेंशन आदि के वितरण के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
      • आधार सक्षम भुगतान सेवा (AEPS): AEPS सेवाओं के कारण आधार से जुड़े बैंक खाते वाला कोई भी आम इंसान नकद निकासी और शेष राशि की जाँच जैसी बुनियादी बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा सकता है, भले ही उसका खाता किसी भी बैंक में हो। इन सेवाओं का फायदा लेने के लिये आधार से जुड़े खाताधारक अपने भुगतान को पूरा करने के लिये केवल फिंगरप्रिंट स्कैन और आधार प्रमाणन के साथ अपनी पहचान को पुष्ट कर सकता है।
      • नेशनल फाइनेंशियल स्विच (National Financial Switch-NFS)- NFS बैंकों के ATMs के इंटर-कनेक्टेड नेटवर्क द्वारा नागरिकों को किसी भी बैंक के ATM के माध्यम से लेन-देन की सुविधा उपलब्ध कराता है।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    निगमित दिवालियापन प्रक्रिया को रोकने हेतु नया अध्यादेश

    प्रीलिम्स के लिये

    दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड

    मेन्स के लिये

    बड़ी कंपनियों और MSMEs पर महामारी का प्रभाव

    चर्चा में क्यों?

    कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs-MCA) ने कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप के कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र कंपनियों के विरुद्ध निगमित दिवालियापन (Corporate Insolvency) की प्रक्रिया को शुरु करने के समय को 6 महीने की अवधि के लिये स्थगित करने का अध्यादेश तैयार किया है।

    प्रमुख बिंदु

    • कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के इस निर्णय से कंपनियों को लॉकडाउन की अवधि में दिवालिया होने से बचाया जा सकेगा।
    • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि सरकार दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) की धारा 7, 9 और 10 को निलंबित करेगी।
      • IBC की धारा 7 किसी कंपनी के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत से संबंधित है अर्थात् जब कोई कर्ज़ देने वाला व्यक्ति, संस्था या कंपनी, कर्ज़ नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिये न्यायालय में अपील दायर करता/करती है।
      • IBC की धारा 9 के अनुसार, यदि प्रचालन लेनदार (Operational Creditors) को कॉर्पोरेट देनदार से एक निश्चित अवधि में भुगतान प्राप्त नहीं होता है, तो प्रचालन लेनदार कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिये न्यायालय में अपील दायर करता है।
      • IBC की धारा 10 एक कंपनी को स्वयं के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने हेतु नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal-NCLT) के समक्ष प्रस्ताव रखने का प्रावधान करती है।
    • कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने मार्च माह में COVID-19 के प्रकोप और लॉकडाउन से प्रभावित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को राहत प्रदान करने के लिये दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की सीमा को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया था।

    IBC और निगमित दिवालियापन 

    • दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड, 2016 मौजूदा समय की मांग है, क्योंकि यह व्यक्तियों और निगमों, दोनों के लिये दिवालिया प्रक्रिया को व्यापक और सरल बनाता है।
    • इसकी सीमा के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के लोग आते हैं, जिसमें किसानों से लेकर अरबपति व्यवसायी और स्टार्टअप से लेकर बड़े कॉर्पोरेट घराने शामिल हैं। 
    • दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड समयबद्ध दिवाला और शोधन समाधान (लगभग 180 दिनों के भीतर, जैसी भी परिस्थिति हो) प्रदान करता है। 
    • यदि कोई कंपनी कर्ज़ वापस नहीं चुकाती तो IBC के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
    • इसके लिये NCLT की विशेष टीम कंपनी से बात करती है और कंपनी के प्रबंधन के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
    • इसके बाद उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उस संपत्ति को किसी अन्य कंपनी को बेचकर अपना कर्ज़ वसूल सकता है।
    • IBC में बाज़ार आधारित और समय-सीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है।
    • IBC की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई बाहरी व्यक्ति (थर्ड पार्टी) ही कंपनी को खरीद सकता है।

    आगे की राह

    • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार को प्रस्तावित अध्यादेश में निलंबन की अवधि को 12 माह तक बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण अदायगी पर लगाई गई 3 माह की रोक 31 मई को समाप्त हो रही है, जिसके पश्चात् कंपनियों पर महामारी और लॉकडाउन का प्रभाव दिख सकता है।
    • आवश्यक है कि अध्यादेश को पूर्ण रूप से लागू करने से पूर्व विशेषज्ञों द्वारा दिये जा रहे सुझावों पर गौर किया जाए, ताकि इस अध्यादेश को यथासंभव सुधारों के साथ लागू किया जा सके।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    पैरासिटामोल फॉर्मूलेशन

    प्रीलिम्स के लिये

    पैरासिटामोल फॉर्मूलेशन

    मेन्स के लिये

    पैरासिटामोल फॉर्मूलेशन से निर्मित औषधीय उत्पादों के निर्यात से संबंधित विषय

    चर्चा में क्यों?

    केंद्र सरकार ने पैरासिटामॉल से बने योगों/फॉर्मूलेशन (औषधीय उत्पादों) के निर्यात की अनुमति दी है। हालाँकि पैरासिटामोल एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (Active Pharmaceutical Ingredients- APIs) के निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा।

    प्रमुख बिंदु

    • API किसी भी दवा का वह भाग होता है जो वांछित चिकित्सीय प्रभाव हेतु उत्तरदायी होता है।
    • पैरासिटामोल एवं इसके फॉर्मूलेशन उन 13 APIs और उनके योगों में से हैं, जिन्हें विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade-DGFT) द्वारा 3 मार्च, 2020 की अधिसूचना में शामिल किया गया था।
    • किसी भी ITCHS (Indian Trade Clarification based on Harmonized System) कोड के तहत FDC (फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन) सहित पैरासिटामोल से बने फॉर्मूलों को तत्काल प्रभाव से निर्यात के लिये उपलब्ध कराया गया है।.
      • FDC: एक ही खुराक में निहित दो या दो से अधिक औषधियाँ, जैसे कैप्सूल या टैबलेट। 
        • FDC HIV ड्रग का एक उदाहरण एट्रिप्ला/Atripla है, इसमें एफैविरेंज़ (Efavirenz), एमट्रिसिटाबिन (Emtricitabine) और टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल फ्यूमरेट (Tenofovir Disoproxil Fumarate) का एक संयोजन है।
      • ITCHS कोड को इंडियन ट्रेड क्लेरिफिकेशन (Indian Trade Clarification-ITC) के रूप में जाना जाता है, ये कोडिंग के हार्मोनाइज़्ड सिस्टम (HS) पर आधारित होते हैं।
        • इन्हें भारत में आयात-निर्यात संबंधी मानकों के रूप में अपनाया गया था। भारतीय  सीमा शुल्क विभाग राष्ट्रीय व्यापार आवश्यकताओं के अनुरूप आठ अंकों के ITC (HS) कोड का उपयोग करता है।
    • पैरासिटामोल के योगों द्वारा निर्मित दवाओं के निर्यात की अनुमति देने का निर्णय संयुक्त राज्य अमेरिका और कई अन्य देशों में एंटीमलेरियल दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine- HCQ) के शिपमेंट की अनुमति के बाद आया है।
    • भारत की फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्ससिल) के अनुसार, केंद्र सरकार को पैरासिटामोल APIs का निर्यात भी फिर से शुरू करना चाहिये।
    • फार्मेक्ससिल को वर्ष 2004 में भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया था, ताकि फार्मा निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।

    पैरासिटामोल

    • पैरासिटामोल विश्व स्तर पर बुखार के लिये इस्तेमाल होने वाली एक सामान्य दवा है।
    • COVID-19 के प्रकोप के बाद से पैरासिटामोल की मांग में व्यापक रूप से वृद्धि हुई है।
    • सूत्रों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर भारत, पैरासिटामोल के अग्रणी निर्माताओं में से एक है। भारत की अनुमानित उत्पादन क्षमता प्रति माह 5,000 टन की है। 

    विदेश व्यापार महानिदेशालय

    (Directorate General of Foreign Trade- DGFT)

    • DGFT केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) का एक संलग्न कार्यालय है।
    • इसकी अध्यक्षता विदेश व्यापार महानिदेशक द्वारा की जाती है।
    • DGFT का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। साथ ही देश के विभिन्न शहरों में इसके 38 क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। इसके अतिरिक्त DGFT का एक एक्सटेंशन काउंटर (Extension Counter) इंदौर में स्थित है।
    • DGFT भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ विदेश व्यापार नीति तैयार करने और उसे लागू करने का कार्य करता है। DGFT निर्यातकों को अनुमति जारी करने तथा अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से इस संबंध में उनके दायित्त्वों की निगरानी का कार्य करता है।

    स्रोत: द हिंदू


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    बैक्टीरिया की पहचान हेतु पोर्टेबल सेंसर का विकास

    प्रीलिम्स के लिये:

    बग स्निफर, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

    मेन्स के लिये:

    नैनो प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य क्षेत्र में तकनीकी का प्रयोग 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में पुणे स्थित ‘अगरकर अनुसंधान संस्थान’ (Agharkar Research Institute- ARI) के शोधकर्त्ताओं ने बैक्टीरिया की पहचान करने हेतु एक संवेदनशील और किफायती सेंसर का विकास करने में सफलता प्राप्त की है।

    मुख्य बिंदु

    • ARI के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित इस पोर्टेबल उपकरण के माध्यम से 1 मिमी. के नमूने में मात्र 10 बैक्टीरिया कोशिकाओं के होने पर भी केवल 30 मिनट में इसकी पहचान की जा सकती है।
    • शोधकर्त्ताओं ने इस उपकरण को ‘बग स्निफर’ (Bug Sniffer) नाम दिया है। 
    • वर्तमान में शोधकर्त्ता ‘एस्चेरिचिया कोलाई’ (Escherichia Coli) और ‘सैल्मोनेला टाइफिम्यूरियम’ (Salmonella Typhimurium) बैक्टीरिया को अलग कर उनकी पहचान करने की विधि पर कार्य कर रहें हैं। इसके लिये शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘लूप-मीडिएटेड आइसोथर्मल एम्प्लिफिकेशन’  (Loop-mediated isothermal amplification- LAMP) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। 
    • इस शोध के लिये ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।  

    ‘एस्चेरिचिया कोलाई’

    (Escherichia Coli or E. Coli): 

    • एस्चेरिचिया कोलाई खाद्य पदार्थों, मनुष्यों तथा जानवरों की आँत में पाया जाने वाला एक जीवाणु है।
    • यद्यपि ये जीवाणु अधिकांशतः हानिकारक नहीं होते हैं, परंतु इनमें से कुछ ‘डायरिया’ जैसे रोग का कारण बन सकते हैं जबकि कुछ अन्य के संक्रमण से श्वसन संबंधी बीमारी और निमोनिया जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।

    ‘सैल्मोनेला टाइफिम्यूरियम’

    (Salmonella Typhimurium):

    • सैल्मोनेला टाइफिम्यूरियम, सैल्मोनेला समूह का एक रोगजनक जीवाणु है।
    • यह मनुष्य और जानवर दोनों को प्रभावित कर सकता है।
    • पक्षियों के मल से यह एक पक्षी से दूसरे पक्षी तक पहुँच जाता है।
    • इसके संक्रमण से व्यक्ति की आँत में सूजन हो जाती है, जो दस्त, उल्टी, बुखार और पेट में ऐंठन आदि का कारण बनती है।  

    कार्य प्रणाली: 

    • इस बायोसेंसर में बैक्टीरिया की पहचान करने के लिये सिंथेटिक पेप्टाइड्स (Synthetic Peptides), चुंबकीय नैनोकणों (Magnetic Nanoparticles) और क्वांटम डॉट्स (Quantum Dots) का प्रयोग किया गया है।
    • शोधकर्त्ताओं ने इस उपकरण के लिये तांबे के तार और पॉली (डाइमेथिलसिलॉक्सेन) से बने माइक्रो चैनल्स (Microchannels) युक्त एक चिप का विकास किया है।
    • परीक्षण के दौरान पहले इस उपकरण के माध्यम से बैक्टीरिया की पहचान करने के लिये पेप्टाइड्स से जुड़े चुंबकीय नैनो कणों को बैक्टीरिया के साथ मैक्रोचैनल्स से होते हुए प्रवाहित होने दिया गया। 
    • इसके पश्चात् इस पर बाहरी मैग्नेटिक फील्ड सक्रिय कर पेप्टाइड्स से जुड़े बैक्टीरिया को अलग और स्थिर कर लिया गया।
    • इसके अंतिम चरण में क्वांटम डॉट्स से जुड़े पेप्टाइड्स को पुनः मैक्रोचैनल्स से गुजारा गया।
    • जीवाणुओं को पकड़ने के बाद ‘क्वांटम डॉट्स से जुड़े पेप्टाइड्स’ (Quantum-Dot-Tagged Peptides) के कारण मैक्रोचैनल्स से तीव्र और स्थिर (लगातार) प्रतिदीप्ति होती है।

    लाभ:        

    • रोगजनक जीवाणुओं की पहचान के लिये वर्तमान में उपलब्ध पारंपरिक तकनीकें उतनी संवेदनशील नहीं हैं और वे कोशिकाओं की कम संख्या होने पर इनकी पहचान नहीं कर सकती।
    • इसके अतिरिक्त पारंपरिक तकनीक के प्रयोग में अधिक समय और श्रम लगता है, जबकि ARI शोधकर्त्ताओं द्वारा निर्मित उपकरण के माध्यम से 1 मिमी. के नमूने पर मात्र 10 कोशिकाओं के होने पर भी इनकी पहचान केवल 30 मिनट में की जा सकती है।   
    • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह उपकरण काफी किफायती है और इसे बनाने के लिये आवश्यक सामग्री आसानी से प्राप्त है।
    • इस उपकरण के उपयोग से सबसे आम रोगजनक जीवाणु ‘एस्चेरिचिया कोलाई’ और ‘सैल्मोनेला टाइफिम्यूरियम’ की आसानी से पहचान की जा सकती है।
    • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, नैनोसेंसर और इसे विकसित करने हेतु किये गए शोध से शीघ्र ‘लैब-ऑन-ए-चिप डायग्नोस्टिक्स’ (Lab-On-A-Chip Diagnostics) से जुड़ी नई संभावनाएँ खुलेगीं।  

    अगरकर अनुसंधान संस्थान’

    (Agharkar Research Institute- ARI)

    • ARI भारत सरकार के ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। 
    • इसकी स्थापना वर्ष 1946 में ‘महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ (Maharashtra Association for the Cultivation of Science) के रूप में की गई थी।
    • वर्ष 1992 में इस संस्थान के संस्थापक ‘प्रो. एस. पी. अगरकर’ के सम्मान में इसका नाम बदलकर ‘अगरकर अनुसंधान संस्थान’ कर दिया गया।
    • वर्तमान में इस संस्थान में ‘जैव-विविधता और जीवाश्म विज्ञान’, बायोएनेर्जी (Bioenergy), बायोप्रोस्पेक्टिंग (Bioprospecting), डेवलपमेंटल बायोलाॅजी (Developmental Biology), जेनेटिक्स और प्लांट ब्रीडिंग (Genetics & Plant Breeding) तथा नैनोबायोसिस  (Nanobiosis) जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास का कार्य किया जाता है। 

    स्रोत: पीआईबी


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    चीनी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की जाँच में सख्ती

    प्रीलिम्स के लिये:

    विदेशी पोर्टफोलियो निवेश 

    मेन्स के लिये:

    विदेशी निवेश का विनियमन, COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

    चर्चा में क्यों?      

    हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने विदेशी निवेश से जुड़े संरक्षक बैंकों को चीन से आने वाले विदेशी निवेश की निगरानी में वृद्धि करने को कहा है। सेबी ने भारतीय कंपनियों में चीनी नागरिकों या संस्थाओं के निवेश को रोकने के लिये ये निर्देश जारी किये हैं।

    मुख्य बिंदु:  

    • सेबी ने संरक्षक बैंकों से चीन और हाॅन्गकाॅन्ग के साथ 11 अन्य एशियाई देशों से भारतीय कंपनियों में किये गए ‘विदेशी पोर्टफोलियो निवेश’ (Foreign Portfolio Investment- FPI) का विवरण मांगा है।
      • निवेश के क्षेत्र में संरक्षक बैंक या कस्टोडियन बैंक (Custodian Bank) से आशय उन वित्तीय संस्थाओं से है, जो चोरी या धोखाधड़ी जैसे नुकसानों को कम करने के लिये ग्राहक की प्रतिभूतियों को सुरक्षित रखने का कार्य करती हैं।
      • कस्टोडियन बैंक प्रतिभूतियों और अन्य संपत्तियों को इलेक्ट्रॉनिक या भौतिक रूप में सुरक्षित रखता है।
      • स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, स्टेट स्ट्रीट बैंक एंड ट्रस्ट और स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, आदि भारतीय कस्टोडियन बैंक के कुछ उदाहरण हैं।    
    • सेबी द्वारा संरक्षक बैंकों से विदेशी निवेश के संदर्भ में मांगी गई जानकारियों में से कुछ निम्नलिखित है:
      1. यदि इन फंड्स का नियंत्रण चीनी निवेशकों द्वारा किया जा रहा है।
      2. यदि फंड का संचालक चिन्हित 13 देशों से सक्रिय है।        
      3. यदि फंड का लाभांश प्राप्त करने वाले निवेशकर्त्ता चिन्हित 13 देशों से संबंधित हैं, आदि।

    विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

    (Foreign Portfolio Investment- FPI)

    • FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है,  जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है।
    • FPI के तहत निवेशक शेयर के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं। 
    • FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।
    • भारत में विदेशी निवेशकों को FPI के तहत किसी कंपनी में 10% तक के निवेश की अनुमति दी गई है।     

    FPI पर सेबी की सख्ती का कारण: 

    • COVID-19 की महामारी तथा इसके प्रसार के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण देश में व्यावसायिक गतिविधियों में कमी आई है जिससे कई कंपनियों के शेयर की कीमतों में काफी गिरावट हुई है। 
    • ध्यातव्य है कि हाल ही में भारत सरकार ने COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से FDI हेतु सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया था।
    • सेबी द्वारा FPI के तहत विदेशी निवेश की जाँच करने का उद्देश्य सरकार द्वारा भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ को रोकने की पहल को मज़बूत करना है।
    • वर्तमान में पोर्टफोलियो निवेश के संदर्भ में किसी विशेष प्रतिबंध के अभाव में चीनी संस्थाएँ भारतीय कंपनियों में 10% तक शेयर खरीद सकती है।
    • पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कंपनियों में चीन से होने वाले निवेश में भारी वृद्धि हुई है, वर्तमान में चीन के 16 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत में पंजीकृत हैं और इनका शीर्ष भारतीय स्टॉक में निवेश लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। 
    • गौरतलब है कि FDI का विनियमन वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) द्वारा और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का विनियमन सेबी द्वारा किया जाता है।

    वैश्विक परिदृश्य:  

    • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर COVID-19 की महामारी के कारण भारत की ही तरह विश्व के कई अन्य देशों में भी उद्योगों और व्यावसायिक संस्थानों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • पिछले दो महीनों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्पेन जैसे देशों ने खराब आर्थिक स्थिति के बीच विदेशी निवेशकों द्वारा स्थानीय कंपनियों के द्वेषपूर्ण या अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये विदेशी निवेश की नीतियों में सख्ती की है।
    • वर्तमान आर्थिक चुनौतियों के बीच स्थानीय कंपनियों के हितों की रक्षा के लिये यूरोपीय संघ ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किये हैं और इटली ने भी कमज़ोर/संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश को सीमित किया है।
    • अमेरिका (USA) में पहले से ही एक ‘इंटर एजेंसी कमिटी’ (Inter-Agency Committee) विद्यमान है जो विदेशी अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा करती है।

    लाभ:    

    • वर्तमान में COVID-19 की चुनौती के दौरान FPI की निगरानी के संदर्भ में सेबी की पहल से भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण की गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।
    • हाल के वर्षों में चीनी निजी क्षेत्र के निवेशकों व संस्थाओं द्वारा भारतीय कंपनियों में बड़ा निवेश कई मामलों में चिंता का कारण बना हुआ था क्योंकि चीन की निजी कंपनियों और चीनी सरकार द्वारा संरक्षित कंपनियों में अंतर करना बहुत ही कठिन है।
    • भारत में चीनी निवेशकों द्वारा किये गए निवेश का एक बड़ा भाग मोबाईल और इंटरनेट जैसे क्षेत्रों से संबंधित है, वर्तमान में इस क्षेत्र में बदलती तकनीकी एवं कठोर कानूनों के अभाव में लोगों की निजी जानकारी और अन्य ज़रूरी डेटा की सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हुआ है, ऐसे में यह आवश्यक है कि विदेशी निवेश की बेहतर जाँच कर इंटरनेट तथा डेटा क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

    चुनौतियाँ:

    • विशेषज्ञों के अनुसार, मात्र निगरानी प्रक्रिया में सख्ती से कंपनियों की निवेश प्रकिया में व्याप्त कमियों को दूर नहीं किया जा सकता है।
    • FDI पर सरकार की सख्ती के बाद FPI के संदर्भ में सेबी द्वारा जारी निर्देशों में अस्पष्टता के कारण निवेशकों में तनाव बढ़ेगा और इससे विदेशी निवेश में गिरावट आने की संभावना है।

    निष्कर्ष:   

    भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से आने वाले FDI के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य बनाए जाने के बाद, FPI की जाँच में वृद्धि के सेबी के निर्देश से, COVID-19 महामारी के दौरान, भारतीय कंपनियों के कम मूल्य पर अधिग्रहण के प्रयासों पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। साथ ही इन प्रावधानों से भारतीय बाज़ार में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप की बेहतर निगरानी भी की जा सकेगी। परंतु निवेश संबंधी नियमों में सख्ती से चीन के साथ अन्य देशों से आने वाले विदेशी निवेश में कमी आ सकती है अतः सेबी को जल्द ही निवेशकों के बीच इन प्रावधानों को स्पष्ट करना चाहिये जिससे आवश्यक कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए विदेशी निवेश को जारी रखा जा सके।

    स्रोत: लाइव मिंट


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    रुपए की विनिमय दर

    प्रीलिम्स के लिये 

    विनिमय दर, NEER, REER, रुपए का मूल्यह्रास और अभिमूल्यन

    मेन्स के लिये

    मुद्रा की मांग और पूर्ति उसके मूल्य पर प्रभाव, मुद्रास्फीति और विनिमय दर में संबंध

    संदर्भ

    बीते कुछ महीनों में कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के प्रसार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ऐसे में इस प्रभाव का सही और तुलनात्मक अनुमान लगाना नीति निर्माताओं के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इस संबंध में रुपए की विनिमय दर को भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का अनुमान लगाने के लिये एक उपयुक्त मापदंड के रूप में देखा जा सकता है।

    क्या होती है मुद्रा विनिमय दर

    (Currency Exchange Rate)?

    • मुद्रा विनिमय दर का अभिप्राय घरेलू मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा की एक इकाई की कीमत से होता है।
      • उदाहरण के लिये, यदि हमें एक डॉलर प्राप्त करने के लिये 50 रुपए देने पड़ते हैं तो विनिमय दर 50 रुपए प्रति डॉलर होगी।
    • ध्यातव्य है कि मुद्रा विनिमय दर ही अक्सर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रय और विक्रय की सामर्थ्यता निर्धारित करती है।
    • किसी भी मुद्रा की विनिमय दर उसकी मांग और आपूर्ति की परस्पर क्रिया द्वारा निर्धारित की जाती है।
      • उदाहरण के लिये, यदि अधिक-से-अधिक भारतीय अमेरिकी सामान खरीदना चाहेंगे, तो रुपए की तुलना में अमेरिकी डॉलर की मांग अधिक होगी, जिसके प्रभावस्वरूप अमेरिकी डॉलर रुपए की अपेक्षा और अधिक मज़बूत हो जाएगा।
      • इसके विपरीत यदि भारतीय रुपए की मांग में वृद्धि होती है तो भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर की अपेक्षा अधिक मज़बूत होगा।
    • उल्लेखनीय है कि कई बार एक देश का केंद्रीय बैंक विनिमय दर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करने के लिये हस्तक्षेप करता है। किंतु आर्थिक जगत में केंद्रीय बैंक अथवा सरकार के अत्यधिक हस्तक्षेप को उचित नहीं माना जाता है।
    • आमतौर पर मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा भी काफी मज़बूत होती है। उदाहरण के लिये, अमेरिकी अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में काफी अधिक मज़बूत है, जिसका प्रभाव भारतीय रुपए पर देखने को मिलता है, नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, एक अमेरिकी डॉलर लगभग 76 रुपए के समान है।
    • बीते कुछ महीनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में कमी आई है अर्थात् रुपए का मूल्यह्रास हुआ है या रुपया कमज़ोर हुआ है।
    • किंतु अमेरिका दुनिया का एकमात्र देश नहीं है, भारत अमेरिका के अतिरिक्त कई अन्य देशों के साथ भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करता है, इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतर समझ के लिये यह आवश्यक है कि हम यह भी देखें कि रुपया भारत के अन्य व्यापारिक साझेदारों के साथ किस प्रकार का व्यवहार कर रहा है।

    किन मापदंडों पर ध्यान देने की आवश्यकता है?

    • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) 36 व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं के संबंध में रुपए की ‘नॉमिनल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट’ (Nominal Effective Exchange Rate-NEER) को सारणीबद्ध करता है।
      • यह एक प्रकार का भारित सूचकांक है अर्थात् इसमें उन देशों को अधिक महत्त्व दिया जाता है, जिनके साथ भारत अधिक व्यापार करता है।
      • इस सूचकांक में कमी रुपए के मूल्य में ह्रास को दर्शाती है, जबकि सूचकांक में बढ़ोतरी रुपए के मूल्य में अभिमूल्यन को दर्शाती है।
    • RBI द्वारा जारी NEER के अनुसार, बीते कुछ समय में रुपया नवंबर 2018 के पश्चात् से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है।
    • NEER के अतिरिक्त ‘रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट’ (Real Effective Exchange Rate-REER) भी भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों को मापने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है।
      • REER के अंतर्गत NEER में शामिल अन्य कारकों के अतिरिक्त विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में घरेलू मुद्रास्फीति को भी ध्यान में रखा जाता है, जिसके कारण इसका महत्त्व अधिक बढ़ जाता है।
    • REER के संदर्भ में बीते कुछ समय में रुपया सितंबर 2019 के पश्चात् से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है।

    विनिमय दर और मुद्रास्फीति

    (Exchange Rate and Inflation)

    • किसी भी देश की विनिमय दर को ब्याज दर तथा राजनीतिक स्थिरता जैसे कई अन्य कारण प्रभावित करते हैं। इन्ही कारकों में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है, मुद्रास्फीति। उदाहरण के लिये, मान लेते हैं कि पहले वर्ष में रुपए की विनिमय दर 1 रुपए प्रति डॉलर है।
      • इस प्रकार हम 100 रुपए में 100 अमेरिकी डॉलर प्राप्त कर सकते हैं। किंतु यदि अगले वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति 20 प्रतिशत रहती है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति शून्य रहती है तो अगले वर्ष में वही 100 अमेरिकी डॉलर प्राप्त करने के लिये हमें 120 रुपए की आवश्यकता होगी।

    NEER बनाम REER 

    • NEER विदेशी मुद्राओं के संदर्भ में घरेलू मुद्रा के द्विपक्षीय विनिमय दरों का भारित औसत होता है। जबकि REER मुद्रास्फीति के प्रभावों के लिये समायोजित अन्य प्रमुख मुद्राओं के सापेक्ष घरेलू मुद्रा का भारित औसत है।
    • NEER विदेशी मुद्रा बाज़ार के संदर्भ में देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा का एक संकेतक है।
    • REER की गणना NEER में मूल्य परिवर्तन को समायोजित करने के पश्चात् की जाती है। इस प्रकार अर्थशास्त्री NEER की अपेक्षा REER को अधिक महत्त्व देते हैं।
    • NEER = विशेष आहरण अधिकार (SDR) के संदर्भ में घरेलू विनिमय दर/विशेष आहरण अधिकार (SDR) के संदर्भ में विदेशी विनिमय दर
    • REER = NEER  × (घरेलू मूल्य सूचकांक/विदेशी मूल्य सूचकांक)

    मुद्रा का मूल्यह्रास (Depreciation) और अभिमूल्यन (Appreciation)

    • विनिमय दर प्रणाली मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं- स्थायी विनिमय दर प्रणाली और अस्थायी विनिमय दर प्रणाली।
    • स्थायी विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सरकार विनिमय दर का एक स्तर विशेष दर पर निर्धारित करती है। इसके विपरीत अस्थायी विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण बाज़ार शक्तियों द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाता है।
    • मुद्रा के मूल्यह्रास और उसके अभिमूल्यन की अवधारणा अस्थायी विनिमय दर प्रणाली वाले देशों से संबंधित है। अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में एक मुद्रा का मूल्यह्रास तब होता है जब बाज़ार में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है जबकि इसकी मांग गिरती रहती है।
    • जबकि मुद्रा के अभिमूल्यन का अर्थ है अन्य विदेशी मुद्राओं के संबंध में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि। एक मुद्रा का अभिमूल्यन तब होता है जब मुद्रा की आपूर्ति विदेशी मुद्रा बाज़ार में उसकी मांग से कम होती है।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    विविध

    Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 अप्रैल, 2020

    मुख्यमंत्री COVID-19 योद्धा कल्याण योजना

    हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री COVID-19 योद्धा कल्याण योजना लॉन्च की है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, प्रदेश के लगभग एक लाख आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और सहायिकाओं को मुख्यमंत्री COVID-19 योद्धा कल्याण योजना का लाभ प्राप्त होगा। मध्य प्रदेश सरकार की इस योजना के तहत लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, चिकित्सा शिक्षा एवं आयुष विभाग के सभी सफाई कर्मचारी, वार्डबॉय, आशा कार्यकर्त्ता, पैरामेडिकल स्टाफ, डॉक्टर, विशेषज्ञ तथा अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, नगरीय प्रशासन के सभी सफाई कर्मचारियों, आदि को भी शामिल किया गया है। योजना के अनुसार, यदि कोरोनावायरस से लड़ते हुए किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिजन को 50 लाख रुपए की सहायता दी जाएगी। हालाँकि संक्रमित व्यक्ति के इलाज के दौरान संक्रमित होने पर, इलाज के खर्च को इस योजना के दायरे में शामिल नहीं किया गया है। यह योजना 30 मार्च से 30 जून तक की अवधि के लिये लागू की गई है। इस योजना के लिये प्रदेश के राजस्व विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है। विदित हो कि भारत सरकार ने भी COVID-19 महामारी की रोकथाम के लिये कार्य कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों हेतु प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के अंतर्गत विशेष बीमा योजना प्रारंभ की है।

    कपिल देव त्रिपाठी

    पूर्व IAS अधिकारी कपिल देव त्रिपाठी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का नया सचिव नियुक्त किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने राष्ट्रपति के कार्यकाल के साथ सह-कार्यकाल के लिये कपिल देव त्रिपाठी की नियुक्ति को मंज़ूरी दी है। कपिल देव त्रिपाठी असम-मेघालय कैडर के 1980 बैच के सेवानिवृत्त IAS अधिकारी हैं और वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में सचिव के तौर पर सेवानिवृत्त हुए थे। वर्तमान में कपिल देव त्रिपाठी लोक उद्यम चयन बोर्ड (PESB) के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं। PESB लोक उद्यमों में शीर्ष स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति करता है। कपिल देव त्रिपाठी राष्ट्रपति के पूर्व सचिव संजय कोठारी का स्थान लेंगे। संजय कोठारी को फरवरी, 2020 में मुख्य सतर्कता आयुक्त (CVC) के रूप में नियुक्त किया गया था। 63 वर्षीय कपिल देव त्रिपाठी इससे पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयोग में सचिव तथा भारी उद्योग व सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय में संयुक्त सचिव के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

    ट्रांसजेंडर के लिये तीसरे लिंग की अलग श्रेणी

    केंद्र सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया गया है कि वे सिविल सेवा और अन्य पदों के लिये आवेदन पत्र में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों के लिये तीसरे लिंग की अलग श्रेणी बनाएँ। कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने यह निर्देश बीते वर्ष दिसंबर में अधिसूचित ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) कानून के आधार पर दिया है। कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने बताया कि इस विषय पर मौजूद कानून और कानूनी राय के आधार पर 5 फरवरी, 2020 को सिविल सेवा परीक्षा नियमावली, 2020 को अधिसूचित किया गया जिसमें ट्रांसजेंडर को उस परीक्षा के लिये लिंग की अलग श्रेणी के तौर पर शामिल किया गया। मंत्रालय के अनुसार, ‘भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों से अनुरोध किया जाता है कि ट्रांसजेंडर को लिंग की अलग श्रेणी में शामिल करने के लिये वे अपनी परीक्षा नियमावली में बदलाव करें। इससे उस नियम को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) कानून के प्रावधानों के अनुरूप बनाया जा सके।

    ऑनलाइन कोच विकास कार्यक्रम

    भारतीय बैडमिंटन संघ (Badminton Association of India-BAI) और भारतीय खेल प्राधिकरण (Sports Authority of India-SAI) ने संयुक्त तौर पर 20 अप्रैल, 2020 को मुख्य राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद के नेतृत्व में ऑनलाइन कोच विकास कार्यक्रम की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम तीन सप्ताह तक हफ्ते में 5 दिन चलेगा और इस दौरान संपूर्ण कोर्स को 39 विषयों में बाँटा गया है। इस ऑनलाइन कोच विकास कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षकों को शीर्ष स्तर के कोचों से विस्तार से सीखने का मौका मिलेगा। पहले सत्र में कोच पुलेला गोपीचंद के अतिरिक्त दो विदेशी कोच भी मौज़ूद थे। खेल विशेषज्ञों के अनुसार, यह बेहतरीन मंच है जिसके ज़रिये विदेशी कोचों का अनुभव प्रत्येक स्तर पर भारतीय प्रशिक्षकों तक पहुँच सकेगा और उनके कौशल में वृद्धि होगी। यह कार्यक्रम 8 मई तक चलेगा।


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