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डेली न्यूज़

  • 21 Jan, 2020
  • 49 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान का परमाणु अप्रसार संधि से बाहर होने के मायने

प्रीलिम्स के लिये:

NPT व IAEA

मेन्स के लिये:

ईरान के परमाणु अप्रसार संधि से बाहर होने से पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान ने यह वक्तव्य दिया है कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष उसके परमाणु कार्यक्रमों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है तो वह परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) से पीछे हटने पर विचार करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रिटेन, फ्राँस और जर्मनी ने ईरान पर वर्ष 2015 में हुए परमाणु समझौते के नियमों का पालन करने में विफल रहने के कारण एक संकल्प प्रस्तावित किया है, जिसे ईरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के आरोपण की आशंका के रूप में देख रहा है।
  • वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से अपना नाम वापस लेने के बाद इस समझौते के प्रावधानों को लेकर ईरान ने यूरोपीय संघ के तीन सदस्य देशों पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है।
  • वर्ष 2015 में ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी (P5+1 ) ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था।
  • इस समझौते में ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों पर नियंत्रण तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के नियमों के आधार पर संचालित करने की सहमति देने की बात की गई।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी

  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण एक स्वायत्त संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व में परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है।
  • इसका गठन 29 जुलाई, 1957 को हुआ था। इसका मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र का अंग नही है परंतु संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
  • वर्तमान में इसके महानिदेशक राफेल मारिआनो ग्रॉसी (Rafael Mariano Grossi) हैं।
  • इसके बदले में P5+1 देशों द्वारा ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिये समझौता किया गया।
  • वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से हटने के बाद ईरान भी समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से क्रमशः पीछे हट रहा है।
  • ईरान द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के कारण तीनों यूरोपीय देशों ने भी इस समझौते के प्रति निष्क्रियता दिखाई है।
  • हालाँकि ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि यदि यूरोपीय देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हैं तो ईरान भी अपनी प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करेगा।

परमाणु अप्रसार संधि

  • परमाणु अप्रसार संधि एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसके तीन प्रमुख लक्ष्य हैं: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना तथा परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना।
  • इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए, जो वर्ष 1970 से प्रभावी है।
  • वर्तमान में इस संधि में 191 देश शामिल हैं।
  • भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। भारत का विचार है कि NPT संधि भेदभावपूर्ण है अतः इसमें शामिल होना उचित नहीं है।
  • भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्राँस) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है।

प्रभाव:

  • ईरान के इस समझौते से बाहर निकलने से मध्य पूर्व में शक्ति का संतुलन समाप्त हो जाएगा और ईरान द्वारा परमाणु कार्यक्रम के प्रसार से सऊदी अरब, इज़रायल तथा ईरान के मध्य युद्ध की स्थिति निर्मित हो सकती है।
  • खाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न तनाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से खतरनाक तो है ही, ऊर्जा सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से भारत के बजट और चालू खाता घाटे पर नकारात्मक असर पडे़गा।
  • इसके साथ ही अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

व्यतिकारी राज्यक्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये

व्यतिकारी राज्यक्षेत्र, वरीय न्यायालय

मेन्स के लिये

व्यतिकारी राज्यक्षेत्र तथा वरीय न्यायालय की अवधारणा का प्रभाव तथा महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विधि और न्याय मंत्रालय ने अधिसूचना ज़ारी कर संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates-UAE ) को भारत का व्यतिकारी राज्यक्षेत्र (Reciprocating Territory) घोषित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 44 ‘क’ द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संयुक्त अरब अमीरात को भारत का व्यतिकारी राज्यक्षेत्र घोषित करते हुए उसके कुछ प्रमुख न्यायालयों को ‘वरीय न्यायालय (Superior Courts)’ का दर्ज़ा दिया है।
  • संयुक्त अरब अमीरात के ‘वरीय न्यायालय’ का दर्ज़ा प्राप्त न्यायालय निम्नलिखित हैं-

1. फेडरल न्यायालय

  • फेडरल सुप्रीम कोर्ट,
  • अबुधाबी अमीरात, शारजाह, अजमान, उम एल कुवैन और फुज़ेरा में फर्स्ट और अपील कोर्ट,

2. स्थानीय न्यायालय

  • अबुधाबी जुडिशियल डिपार्टमेंट,
  • दुबई कोर्ट,
  • रस एल खैमाह जुडिशियल डिपार्टमेंट,
  • अबुधाबी ग्लोबल मार्केट कोर्ट,
  • दुबई इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर कोर्ट

संयुक्त अरब अमीरात के अतिरिक्त यूनाइटेड किंगडम, सिंगापुर, बांग्लादेश, मलेशिया, त्रिनिनाद एवं टोबैगो, न्यूज़ीलैंड, कोक आइलैंड( नियु सहित), पश्चिम सामोआ के प्रादेशिक निक्षेप, हाँगकाँग, पापुआ न्यू गिनी, फिजी, अदन जैसे देशों को व्यतिकारी राज्यक्षेत्र का दर्ज़ा दिया गया है।

व्यतिकारी राज्यक्षेत्र का अर्थ

  • व्यतिकारी राज्यक्षेत्र भारत की सीमा के बाहर स्थित ऐसे देश या क्षेत्र हैं जिनके न्यायालयों के निर्णय भारत में तथा भारत के न्यायालयों के निर्णय उस देश या क्षेत्र में पारस्परिक रूप से लागू होते हैं।
  • इसका अर्थ यह हुआ कि संयुक्त अरब अमीरात के सूचीबद्ध न्यायालयों के निर्णय अब भारत में भी वैसे ही लागू होंगे जैसे भारत के स्थानीय अदालतों के निर्णय लागू होते हैं।
  • हालाँकि ये प्रावधान केवल दीवानी निर्णयों पर ही लागू होंगे।

धारा 44 ‘क’ के प्रावधान

  • धारा 44 ‘क’ का शीर्षक "व्यतिकारी क्षेत्र में न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णयों का निष्पादन" है।
  • विदेशी न्यायालयों के निर्णयों का साक्ष्यात्मक मूल्य भारतीय न्यायालयों में तब तक नहीं है जब तक कि उन्हें ऐसा क्षेत्र नहीं घोषित किया जाता है जो सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 44 ‘क’ के तहत भारतीय न्यायालयों के निर्णयों को लागू करने की घोषणा करते हैं।

महत्त्व

  • ऐसा माना जाता है कि यह व्यवस्था दोनों देशों के बीच निर्णयों को लागू करने में लगने वाले समय को कम करने में सहायक होगी।
  • यह अधिसूचना संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच नागरिक और वाणिज्यिक मामलों में सहयोग से संबंधित वर्ष 1999 के समझौते का एकमात्र शेष भाग था, जो अब प्रवर्तन में आ गया है।
  • भारत के न्यायालयों द्वारा दीवानी मामलों में दोष-सिद्ध व्यक्तियों को अब संयुक्त अरब अमीरात में सुरक्षित आश्रय स्थल प्राप्त नहीं हो पाएगा।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

अमेरिका में सिख समुदाय

प्रीलिम्स के लिये:

अल्पसंख्यक समुदाय

मेन्स के लिये:

अमेरिका में सिख समुदाय को जातीय समूह घोषित करने के लाभ

चर्चा में क्यों?

अमेरिका में वर्ष 2020 की जनगणना में पहली बार सिखों की गणना एक अलग जातीय समूह के तौर पर की जाएगी।

मुख्य बिंदु:

  • एक अलग जातीय समूह के रूप में शामिल किये जाने की मांग का नेतृत्व करने वाले एक संगठन ‘यूनाइटेड सिख्स’ (United Sikhs) ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया है।
  • अमेरिका के अलावा ब्रिटेन में भी सिखों ने एक अलग जातीय समूह के रूप में शामिल किये जाने की मांग की है।
  • नवंबर 2019 में ब्रिटेन में सिख समुदाय सरकार के खिलाफ न्यायालय की शरण में गया क्योंकि उन्हें एक अलग जातीय समूह के रूप में पहचान नहीं दी गई।
  • इसके अतिरिक्त सिख न्यूज़ीलैंड में सबसे तेज़ी से बढ़ते धार्मिक अल्पसंख्यकों में से एक हैं, जहाँ उन्हें एक विशिष्ट जातीय समूह माना जाता है।

अमेरिका में नस्ल और जातीयता निर्धारित करने का तरीका:

  • अमेरिकी जनगणना ब्यूरो (US Census Bureau) नस्ल (Race) और जातीयता (Ethnicity) को दो भिन्न अवधारणाओं के रूप में मानता है।
  • अमेरिकी जनगणना ब्यूरो (US Census Bureau) की वेबसाइट के अनुसार, यह नस्ल और जातीयता के संबंध में वर्ष 1997 के प्रबंधन और बजट कार्यालय (Office of Management and Budget- OMB) के मानकों का पालन करता है।

नस्ल निर्धारित करने का तरीका:

  • अमेरिका में नस्ल (Race) को निम्नलिखित पाँच व्यापक श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया गया है-
    • श्वेत (White)
    • अश्वेत या अफ्रीकन अमेरिकन (Black or African American)
    • हवाई के मूल निवासी (Native Hawaiian)
    • एशियन (Asian)
    • अदर पैसिफिक आइसलैंडर (Other Pacific Islander)
  • अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार, जनगणना प्रश्नावली में शामिल नस्लीय श्रेणी से संबंधित परिभाषाएँ अमेरिका में नस्ल की सामाजिक परिभाषा को दर्शाती हैं, न कि ये नस्ल को जैविक, मानवीय या आनुवंशिक रूप से परिभाषित करने का प्रयास करती हैं।

जातीयता निर्धारित करने का तरीका:

  • दूसरी ओर अमेरिका में जातीयता यह निर्धारित करती है कि कोई व्यक्ति हिस्पैनिक (Hispanic) मूल का है या नहीं।
  • अमेरिकी जनगणना के अंतर्गत जातीयता को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
    • हिस्पैनिक या लैटिनो (Hispanic or Latino)
    • नॉन हिस्पैनिक या लैटिनो (Not Hispanic or Latino)

समुदाय को लाभ:

  • अमेरिकी नीति निर्माताओं द्वारा नस्ल और जातीयता के आँकड़ों का संग्रहण किया जाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इन आँकड़ों का उपयोग बजटीय आवंटन से संबंधित निर्णय लेने के लिये किया जाता है जिससे आबादी की शैक्षिक अवसरों, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • अमेरिकी जनसंख्या में सिखों के शामिल होने से अमेरिका में सिखों की सटीक जनसंख्या सुनिश्चित हो सकेगी।
  • जनगणना के आँकड़ों से सिख समुदाय के खिलाफ घृणित अपराधों पर नज़र रखने और इनकी गणना में सहायता प्राप्त होगी।
  • यह अमेरिकी सरकार में सिखों का समान और सटीक प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित करेगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, National Investigation Agency, अनुच्छेद 131, FBI, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम 2019, उच्चतम न्यायालय

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण का राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान, केंद्र बनाम राज्य का मुद्दा, उच्चतम न्यायालय की शक्तियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 (National Investigation Agency Act, 2008) की वैधानिकता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • छत्तीसगढ़ राज्य ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत इस केंद्रीय कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की मांग की है।
  • ध्यातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास यह मूल क्षेत्राधिकार है कि वह केंद्र और राज्य के बीच, केंद्र एवं राज्य और राज्य/राज्यों के बीच तथा दो या अधिक राज्यों के बीच किसी विवाद की सुनवाई कर सकता है।
  • छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार, यह कानून संविधान का उल्लंघन करता है और राज्य की पुलिस के कार्यों में हस्तक्षेप करता है जो कि असंवैधानिक है।
  • यह दूसरा उदाहरण है जब किसी राज्य ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत एक केंद्रीय कानून को चुनौती देने की मांग की है। गौरतलब है कि इसके पहले केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 131 के तहत चुनौती दी थी।
  • यह कानून भारत की प्रमुख आतंकवाद विरोधी एजेंसी के कामकाज को नियंत्रित करता है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2008 के 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद इस कानून को पारित किया गया था।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम के बारे में

(National Investigation Agency- NIA)

  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी भी कहा जाता है।
  • यह अधिनियम सही मायने में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण को संयुक्त राज्य अमेरिका के एफबीआई (Federal Bureau of Investigation- FBI) की तर्ज़ पर देश की एकमात्र संघीय एजेंसी बनाता है, जो सीबीआई से भी अधिक शक्तिशाली है।
  • यह अधिनियम NIA को भारत के किसी भी हिस्से में आतंकी गतिविधियों पर संज्ञान लेने और राज्य सरकार की अनुमति के बिना किसी भी राज्य में प्रवेश करने तथा लोगों की जाँच एवं गिरफ्तारी के लिए मुकदमा दायर करने की शक्ति देता है।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम के संबंध में छत्तीसगढ़ राज्य की शिकायतें

  • छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार, यह अधिनियम केंद्र सरकार को जाँच के लिये एक एजेंसी के गठन की अनुमति देता है, जो कि राज्य पुलिस का कार्य है।
  • याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम राज्य को पुलिस के माध्यम से जाँच कराने की उसकी शक्ति का अतिक्रमण करता है, जबकि केंद्र की विवेकाधीन और मनमानी शक्तियों का उल्लेख करता है और राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
  • गौरतलब है कि राज्य ने अधिनियम की धारा 6 (4), 6 (6), 7, 8 और 10 के प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई है।

NIA अधिनियम, 2008 की वे धाराएँ जिन्हें उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है-

  • धारा 6 : अनुसूचित अपराधों का अन्वेषण-
    • धारा 6 की उपधारा 4 के अनुसार, यदि केंद्र सरकार की यह राय है कि अपराध अनुसूचित अपराध की श्रेणी में आता है और यह NIA द्वारा जाँच के लिये उपयुक्त मामला है तो केंद्र सरकार NIA को अपराध की जाँच करने का निर्देश देगी।
    • उपधारा 6 के अनुसार, जहाँ कोई निर्देश उपधारा (4) या उपधारा (5) के अधीन दिया गया है वहाँ राज्य सरकार और अपराध की जाँच करने वाला राज्य सरकार का कोई भी पुलिस अधिकारी आगे जाँच नहीं करेगा और तत्काल संबंधित दस्तावेज़ों और अभिलेखों को एजेंसी को प्रेषित करेगा।
  • धारा 7 : अन्वेषण राज्य सरकार को अंतरित करने की शक्ति- इस अधिनियम के अधीन किसी भी अपराध का अन्वेषण करते समय, अभिकरण, अपराध की गंभीरता और अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए-
    • यदि ऐसा करना समीचीन है, तो राज्य सरकार को यह अनुरोध कर सकेगा कि वह स्वयं जाँच से संबद्ध हो; या
    • केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन से मामले को अपराध के अन्वेषण और विचारण के लिये राज्य सरकार को अंतरित कर सकेगा।
  • धारा 8 : संसक्त अपराधों की जाँच करने की शक्ति- किसी भी अनुसूचित अपराध की जांच करते समय एजेंसी किसी अन्य अपराध की भी जांच कर सकती है, यदि वह अपराध अनुसूचित अपराध के साथ जुड़ा हुआ है।
  • धारा 10 : अनुसूचित अपराधों का अन्वेषण करने की राज्य सरकार की शक्ति- इस अधिनियम में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय इस अधिनियम की कोई बात किसी विधि के अधीन अन्य अपराधों का अन्वेषण और अभियोजन करने की राज्य सरकार की शक्तियों पर प्रभाव नहीं डालेगी।

NIA की शक्तियों के संदर्भ में हाल में किये गए संशोधन

  • हाल ही में वर्ष 2008 के मूल अधिनियम में संशोधन करते हुए संसद द्वारा राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया गया।
  • इस विधेयक में NIA को निम्नलिखित अतिरिक्त आपराधिक मामलों की भी जाँच करने की अनुमति देने का प्रावधान है:
    • जाली मुद्रा या बैंक नोटों से संबंधित अपराध
    • प्रतिबंधित हथियारों का निर्माण या बिक्री
    • साइबर आतंकवाद
    • विस्फोटक पदार्थ अधिनियम (Explosive Substances Act), 1908 के तहत अपराध।
  • NIA का क्षेत्राधिकार
    • NIA के अधिकारियों को पूरे देश में ऐसे अपराधों की जाँच करने के संबंध में अन्य पुलिस अधिकारियों के समान ही शक्तियाँ प्राप्त हैं।
    • NIA को भारत के बाहर घटित ऐसे सूचीबद्ध अपराधों की जाँच करने का अधिकार होगा, जो अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अन्य देशों के घरेलू कानूनों के अधीन हैं।
    • केंद्र सरकार NIA को ऐसे मामलों की जाँच के निर्देश दे सकती है जो भारत में ही अंजाम दिये गए हों।
    • ऐसे मामलों पर नई दिल्ली स्थित विशेष न्यायालय का न्यायाधिकार होगा।
  • यह संशोधन केंद्र सरकार को NIA परीक्षणों के लिये सत्र अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करने में सक्षम बनाता है।
  • गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम (UAPA), 2019 किसी राज्य के पुलिस महानिदेशक की पूर्व अनुमति के बिना एक NIA अधिकारी को छापा मारने और उन लोगों की संपत्तियों को ज़ब्त करने की अनुमति देता है जिनके आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े होने की आशंका है। जाँच अधिकारी को केवल NIA के महानिदेशक से मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।

हाल के संशोधनों से जुड़े मुद्दे

  • संविधान की अनुसूची VII के तहत सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस बल का रखरखाव राज्य सूची का विषय है।
    • यद्यपि आपराधिक कानून समवर्ती सूची और राष्ट्रीय सुरक्षा संघ सूची में शामिल विषय हैं।
  • केंद्र सरकार के पास यह अधिकार है कि वह मानव तस्करी, विस्फोटक अधिनियम के अंतर्गत शामिल अपराध और शस्त्र अधिनियम के दायरे में किये गए कुछ अपराधों की जाँच का उत्तरदायित्व NIA को सौंप सकती है।
    • यद्यपि उपरोक्त अधिनियम के दायरे में आने वाले प्रत्येक अपराध राष्ट्रीय सुरक्षा व संप्रभुता के लिये खतरा नहीं होते और राज्यों के पास इनसे निपटने की क्षमता मौजूद है।
  • संशोधन विधेयक सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) की धारा 66F को अपराधों का सूचीकरण करते हुए अनुसूची में शामिल करता है।
    • धारा 66F साइबर आतंकवाद से संबंधित है।
    • लेकिन भारत में कोई डेटा सुरक्षा अधिनियम प्रवर्तित नहीं है और साइबर आतंकवाद की कोई परिभाषा तय नहीं की गई है।
  • NIA अधिनियम में लाया गया संशोधन एजेंसी को व्यक्तियों द्वारा किये गए उन अपराधों की जाँच का भी अधिकार देता है जो भारतीय नागरिकों के विरुद्ध हैं या ‘भारत के हित को प्रभावित करने’ वाले हैं।
    • हालाँकि ‘भारत के हित को प्रभावित करने’ वाले वाक्यांश को परिभाषित नहीं किया गया है और सरकारों द्वारा भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
      • इसके अतिरिक्त जिस विधान के तहत NIA को जाँच करने का अधिकार प्राप्त है, स्वयं वहाँ "भारत के हित को प्रभावित करने" वाले वाक्यांश का अपराध के रूप में उल्लेख नहीं है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की आर्थिक वृद्धि दर के संदर्भ में IMF का अनुमान

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व आर्थिक मंच

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाने का कारण

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 6.1 प्रतिशत से घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) की वार्षिक शिखर बैठक से पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था की अद्यतन जानकारी देते हुए IMF ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 4.8 प्रतिशत तक घटा दिया।

वृद्धि दर अनुमान घटने का कारण:

  • IMF के अनुसार, मुख्य रूप से गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र (Non-Banking Financial Sector-NBFC) की तनावग्रस्तता तथा ग्रामीण क्षेत्र की आय में कमज़ोर वृद्धि के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान कम किया गया है।
  • भारत में घरेलू मांग में भी तेज़ी से कमी आई है। इसका कारण NBFC की तनावग्रस्तता और कर्ज वृद्धि में कमी है।

क्या हैं भारत की आर्थिक वृद्धि दर संबंधी आँकड़े?

  • IMF के अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 4.8 प्रतिशत रहेगी।
  • IMF द्वारा वर्ष 2020 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर के 5.8 प्रतिशत और 2021 में 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना व्यक्त की गई है।
  • जुलाई-सितंबर 2019 की तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 4.5 प्रतिशत रह गई, जो कि लगभग साढ़े छह साल का निचला स्तर है।

वैश्विक परिदृश्य:

  • IMF के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक वृद्धि दर में तेज़ी के संदर्भ में स्थिति अभी काफी अनिश्चित बनी हुई है। इसका कारण अर्जेंटीना, ईरान और तुर्की जैसी तनावग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि तथा ब्राज़ील, भारत एवं मेक्सिको जैसे उभरते और अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन कर रहे विकासशील देश हैं।
  • वहीं दूसरी तरफ चीन की आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2020 में 0.2 प्रतिशत से छह प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। चीन के संबध में यह अनुमान चीन तथा अमेरिका के बीच व्यापार समझौते का परिणाम है।
  • IMF के अनुसार, वर्ष 2019, 2020 तथा 2021 के लिये वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर क्रमशः 2.9, 3.3, 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

आगे की राह:

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ (Global Economic Growth) को बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इसलिये भारत को तेज़ी से कदम उठाने होंगे।
  • स्थिर और टिकाऊ विकास के लिये अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने वाले गहन संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

सरकार ने वित्त वर्ष 2025 तक अपनी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन वर्तमान आर्थिक वृद्धि दर को देखते हुए यह लक्ष्य प्राप्त होना संभव नहीं है। यदि यही स्थिति कुछ समय तक और बनी रहेगी तो इससे उबरने में समय लगेगा, जो भारत की भविष्य की योजनाओं को प्रभावित कर सकता है। ध्यातव्य है कि GDP एक रोटी (Bread) के समान है यदि उसके हिस्सों को बड़ा करना है तो रोटी का आकार भी बड़ा करना पड़ेगा अर्थात् अन्य ज़रूरी क्षेत्रों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रतिरक्षा, अवसंरचना में अधिक खर्च करना है, तो इसके लिये आर्थिक वृद्धि दर का तीव्र होना आवश्यक है।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

पूर्वी घाट तथा स्थानीय प्रजातियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

पूर्वी घाट

मेन्स के लिये:

पूर्वी घाट के शोध से संबंधित विभिन्न तथ्य

चर्चा में क्यों?

पूर्वी घाट में हुए एक शोध के अनुसार, यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक दोहन किये गए और निम्नीकृत पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।

मुख्य बिंदु:

  • पूर्वी घाट की असंबद्ध पहाड़ी श्रृंखलाएँ ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली हुई हैं जो कि अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का उदहारण है।
  • यहाँ 450 से अधिक स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ विद्यमान होने के बावजूद भी यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक दोहन किये गए और निम्नीकृत पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।
  • पूर्वी घाट क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने में मानवीय, खनन, शहरीकरण, बांध निर्माण, जलाऊ लकड़ी संग्रहण और कृषि विस्तार गतिविधियाँ प्रमुख हैं।

शोध से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • शोधकर्त्ताओं ने उपलब्ध पौधों की प्रजातियों के आँकड़ों का अध्ययन किया तथा 250 से अधिक स्थानों पर प्राप्त 22 प्रजातियों की पहचान की और पूर्वी घाट के लगभग 800 स्थानों पर 28 दुर्लभ, लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त (Rare, Endangered and Threatened- RET) प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की।
  • शोधकर्त्ताओं ने इन क्षेत्रों में मृदा, भूमि उपयोग, मानवजनित हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन का भी अध्ययन किया।

जनसंख्या वृद्धि से अत्यधिक दोहन:

  • ‘एन्वायरनमेंटल मॉनीटरिंग एंड असेसमेंट’ (Environmental Monitoring and Assessment) नामक जर्नल में छपे इस शोध के परिणाम के अनुसार, पूर्वी घाट क्षेत्र में वर्ष 2050 तक कुल मानव आबादी 2.6 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है जिससे यहाँ मानवजनित हस्तक्षेपों का पर्यावरण पर दबाव बढ़ेगा।
  • जनसंख्या बढ़ने से यहाँ भोजन, सड़क और अन्य गतिविधियों के लिये भूमि की मांग में वृद्धि होगी जो स्थानीय और RET प्रजातियों के निवास के लिये खतरा उत्पन्न करेगा।

असुरक्षित पर्यटन से समस्याएँ:

  • असुरक्षित पर्यटन भी इन प्रजातियों के वितरण को प्रभावित करता है।
  • विनियामक दिशा-निर्देशों के साथ ‘इको-टूरिज़्म’ (Ecotourism) को लागू करना पर्यावरण संरक्षण को सुधारने और बढ़ावा देने का एक सकारात्मक तरीका है।

क्षेत्रवार विश्लेषण:

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा स्थानिक प्रजातियों को कालाहांडी, महेंद्रगिरि, नल्लामलाई, शेषाचलम, कोल्ली और कलरेयान पहाड़ी के जंगलों के मुख्य क्षेत्रों में वितरित किया गया।
  • वहीं RET प्रजातियों का वितरण जंगलों के मुख्य क्षेत्रों के साथ-साथ परिधि क्षेत्र में भी किया गया। इसलिये ये प्रजातियाँ मानवीय गतिविधियों से सर्वाधिक प्रभावित होती हैं।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, क्षेत्रीय या स्थानीय जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बिना वर्षा वाले दिनों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
  • वहीं अधिकतम और न्यूनतम तापमान वाले दिनों की संख्या में वृद्धि होने से मृदा की नमी में कमी और मृदा निम्नीकरण में वृद्धि हुई है।
  • इन कारकों ने लगातार वनाग्नि की घटनाएँ बढ़ने में योगदान दिया है, जिससे जंगलों में स्थानिक प्रजातियों का पुनरुत्पादन नहीं हो पाता है।
  • दुनिया भर के अध्ययनों से पता चला है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के पौधों की जैव विविधता में तेज़ी से कमी आ रही है, जिससे अध्ययनकर्त्ता इस क्षेत्र में तत्काल संरक्षणकारी रणनीतियों के निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहे हैं।

आगे की राह:

यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) तथा राज्यों के वन विभागों द्वारा पूर्वी घाट के जैव विविधता संरक्षण पर केंद्रित पहलों की शुरुआत की जानी चाहिये जिससे स्थानिक और RET प्रजातियों के घटते मूल निवास स्थानों की रक्षा की जा सके। राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की सीमाओं को स्थानिक और RET प्रजातियों की समृद्धि के आधार पर पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक निवेश रुझान मॉनीटर रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

वैश्विक निवेश रुझान मॉनीटर रिपोर्ट 2019, UNCTAD, FDI, European Union,

मेन्स के लिये:

FDI का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, FDI और भारतीय अर्थव्यवस्था, FDI और निजीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nation Conference On Trade and Development- UNCTAD) द्वारा वैश्विक निवेश रुझान मॉनीटर रिपोर्ट 2019 (Global Investment Trend Monitor Report 2019) जारी की गई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं-

  • भारत, वर्ष 2019 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) के शीर्ष 10 प्राप्तकर्त्ताओं में शामिल रहा है, इसका प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 1.39 ट्रिलियन डॉलर रहा। वर्ष 2018 में संशोधित FDI 1.41 ट्रिलियन डॉलर था, अर्थात् वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में वैश्विक FDI में 1 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
  • विकासशील देश वैश्विक FDI के लगभग आधे से अधिक FDI प्राप्त करते हैं।
    • ध्यातव्य है कि दक्षिण एशिया ने FDI में 10 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की है।
    • गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2018 की तुलना में FDI प्राप्ति में 16% वृद्धि की है, जो दक्षिण एशिया के FDI प्राप्ति में वृद्धि का मुख्य कारण है।
  • भारत ने FDI में वर्ष 2018 में दर्ज किये गए 42 बिलियन अमेरिकी डॉलर में 16 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2019 में FDI का अनुमानित 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त किया है।
  • विकसित देशों में FDI का प्रवाह ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर रहा, जो कि 6 प्रतिशत घटकर अनुमानित 643 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • यूरोपीय संघ (European Union- EU) का FDI 15 प्रतिशत गिरकर 305 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में FDI प्रवाह का शून्य विकास हुआ, जिसे वर्ष 2018 में 254 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2019 में 251 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ।
  • इसके बावजूद संयुक्त राज्य अमेरिका FDI का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा, इसके बाद चीन में 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर और सिंगापुर में 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI प्राप्त हुआ। गौरतलब है कि इस मामले में भारत आठवें स्थान पर रहा।
  • चीन के FDI प्रवाह में भी शून्य वृद्धि देखी गई। ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में इसका FDI अंतर्प्रवाह 139 अमेरिकी डॉलर था और वर्ष 2019 में यह 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। साथ ही ब्रेक्ज़िट (Brexit) के कारण ब्रिटेन के FDI में 6 प्रतिशत की कमी देखी गई।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सीमा पार से विलय और अधिग्रहण (Cross-Border Mergers & Acquisitions- M&As) वर्ष 2019 में 40 प्रतिशत घटकर 490 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है जो वर्ष 2014 के बाद से सबसे निचला स्तर है।
  • यूरोज़ोन की वृद्धि और सुस्त ब्रेक्ज़िट से यूरोपीय M&As की बिक्री में कमी आई है, जो 190 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई है।
    • वैश्विक सीमा पार से M&As की बिक्री में गिरावट सेवा क्षेत्र में सबसे अधिक (207 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 56% की गिरावट) देखी गई, इसके बाद विनिर्माण (249 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 19 प्रतिशत की गिरावट) और प्राथमिक क्षेत्र (34 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 14 प्रतिशत की गिरावट) में गिरावट देखी गई।

FDI-percent

(FDI से संबंधित आँकडे बिलियन अमेरिकी डॉलर में )

रिपोर्ट में प्रदर्शित आँकड़ों के मायने

  • UNCTAD को उम्मीद है कि वर्ष 2020 में FDI प्रवाह में तेज़ी से वृद्धि होगी क्योंकि मौजूदा अनुमानों से पता चलता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से अपने सबसे कमज़ोर प्रदर्शन में कुछ हद तक सुधार करेगी।
  • कॉरपोरेट क्षेत्र के लाभ में बढ़ोतरी की उम्मीद है और व्यापार तनाव के कम होने के संकेत उभर रहे हैं।
  • हालाँकि घोषित ग्रीनफील्ड परियोजनाओं में 22 प्रतिशत की कमी भविष्य के रुझानों के उच्च भू-राजनीतिक जोखिमों का सूचक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि, सकल स्थिर पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation) और वैश्विक स्तर पर व्यापार तथा कई उभरते बाज़ारों में वृद्धि का अनुमान है।
  • मैक्रोइकोनॉमिक स्थितियों में सुधार से बहुराष्ट्रीय उद्यमों (Multinational Enterprises- MNEs) को उत्पादक संपत्तियों में फिर से निवेश शुरू करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।
  • सस्ती मुद्रा (Cheap Money) तक उनकी आसान पहुँच को देखते हुए वर्ष 2020 में कॉर्पोरेट लाभ के बेहतर रहने की उम्मीद है और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं चीन के बीच व्यापार तनाव को कम करने की उम्मीद की जा सकती है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

(Foreign Direct Investment- FDI)

  • यह एक समूह द्वारा किसी देश के व्यवसाय या निगम में स्थायी हितों को स्थापित करने के इरादे से किया गया निवेश होता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक और देश में आर्थिक विकास के लिये गैर-ऋण वित्त का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से घरेलू अर्थव्यवस्था में नई पूंजी, नई प्रौद्योगिकी आती है और रोज़गार के मौके बढ़ते हैं।

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)

  • वर्ष 1964 में स्थापित व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) विकासशील देशों के विकास के अनुकूल उनके एकीकरण को विश्व अर्थव्यवस्था में बढ़ावा देता है।
  • यह एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा (Geneva), स्विट्ज़रलैंड में है।
  • इसके द्वारा प्रकाशित कुछ प्रमुख रिपोर्ट:
    • व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
    • विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
    • न्यूनतम विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countrie Report)
    • सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
    • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
    • वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 जनवरी, 2020

विश्‍व आर्थिक मंच का 50वाँ सम्मेलन

विश्‍व आर्थिक मंच का 50वें सम्‍मेलन की 21 जनवरी, 2020 से स्विट्ज़रलैण्‍ड के दावोस में शुरुआत हो गई है। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल सम्‍मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमण्‍डल का नेतृत्‍व कर रहे हैं। इस वार्षिक आयोजन में विश्‍व के प्रमुख नेता और 100 से अधिक कंपनियों के CEO भाग लेंगे। इस वर्ष सम्‍मेलन का प्रमुख उद्देश्‍य पारिस्थि‍तिकीय तंत्र, अर्थव्‍यवस्‍था, उद्योग, प्रौद्योगिकी, भू-राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में सार्वजनिक निजी भागीदारी और सहयोग को बढ़ाना है।

तीन राजधानियों का प्रस्‍ताव पारित

आंध्र प्रदेश विधानसभा ने राज्‍य की विधायिका, कार्यपालि‍का और न्यायपालिका के लिये तीन राजधानियाँ बनाने का प्रस्‍ताव पारित कर दिया है। विधेयक के अनुसार विशाखापत्‍तनम में कार्यपालिका की राजधानी होगी, अमरावती विधायी राजधानी होगी और कुर्नूल में न्‍यायिक राजधानी स्थापित की जाएगी। विधेयक में राज्‍य को विभिन्‍न क्षेत्रों में विभाजित करने की भी व्‍यवस्‍था है। इसका उद्देश्‍य क्षेत्रीय योजना और विकास बोर्ड की स्थापना करना है।

गणतंत्र दिवस परेड 2020 में स्‍टार्टअप इंडिया की झाँकी

वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्धन विभाग इस वर्ष नई दिल्‍ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में स्‍टार्टअप इंडिया पर एक झाँकी प्रदर्शित करेगा। स्‍टार्टअप्‍स: आसमान तक पहुँच विषय पर बनी झाँकी में स्‍टार्टअप के जीवन चक्र के विभिन्‍न चरणों और इस दौरान सरकार द्वारा उसे मिली सभी तरह की सुविधाओं को दर्शाया जाएगा। इस झाँकी में यह दिखाया जाएगा कि स्‍टार्टअप का आइडिया किस प्रकार अस्तित्‍व में आया और किस तरह सकारात्‍मक रूप से उभरे नवाचारों ने भारत के लोगों के जीवन को प्रभावित किया।

जोगबनी-विराटनगर इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने 21 जनवरी, 2020 को जोगबनी-विराटनगर इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट का उद्घाटन किया है। इस चेक पोस्ट के कारण भारत से नेपाल और नेपाल से भारत आने में लोगों को आसानी होगी और साथ ही दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं रोज़गार का भी इज़ाफा होगा।

IMF ने घटाई भारत की आर्थिक वृद्धि दर

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने चालू वितीय वर्ष (2019-20) में भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान 1.3 प्रतिशत घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है। IMF वह 9वीं एजेंसी है जिसने GDP ग्रोथ का अनुमान कम किया है। SBI के 4.6% के अनुमान के बाद IMF का अनुमान सबसे कम है। IMF के अनुसार, GDP वृद्धि दर का अनुमान कम होने का सबसे मुख्य कारण गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रक का आर्थिक संकट और ग्रामीण आय में सुस्ती है।


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