नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 20 Dec, 2019
  • 45 min read
भारतीय समाज

जनसंख्या स्थिरता पर नीति आयोग की कार्ययोजना

प्रीलिम्स के लिये :

नीति आयोग

मेन्स के लिये :

नीति आयोग की कार्यविधि और नीतिनिर्धारण में योगदान, बढ़ती जनसंख्या से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग बढ़ती जनसंख्या और इसके उपायों पर चर्चा करने के लिये 20 दिसंबर, 2019 को नई दिल्ली में भारतीय जनसंख्या संस्थान (POPULATION FOUNDATION OF INDIA) के साथ मिलकर एक सलाहकार सम्‍मेलन आयोजित करेगा।

मुख्य बिंदु:

  • इस बैठक का विषय- जनसंख्‍या स्थिरीकरण की सोच को साकार करने: किसी को पीछे नहीं छोड़ने’’ (Realizing the vision of population stabilization: leaving no one behind) होगा।
  • इस सम्मेलन में कई महत्त्वपूर्ण विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, अनुभवी सलाहकार और विषय विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे।
  • इस सम्मेलन का उद्देश्य जनसंख्या समस्या पर चर्चा करना तथा इसके निवारण के सुझाव तलाशना है, ये सुझाव 15 अगस्त, 2019 को भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा देश की जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिये किये गए आह्वान को पूरा करने में मदद करेंगे।
  • सुझावों के आधार पर नीति आयोग द्वारा तैयार की जाने वाली कार्ययोजना, परिवार नियोजन कार्यक्रमों में आने वाली कमियों को दूर करने में मददगार हो सकती है।
  • इस सम्मेलन का उद्देश्य, किशोरों और युवाओं पर विशेष ध्यान के साथ अंतर-विभागीय विषमताओं को दूर करने, मांग निर्माण, गर्भनिरोधक सेवाओं की पहुँच एवं देखभाल की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना तथा परिणामों में क्षेत्रीय विषमताओं को संबोधित करने के लिये रचनात्मक सुझाव देना है।

सम्‍मेलन से अपेक्षित कुछ प्रमुख सुझाव निम्न हैं -

  • गर्भनिरोधकों के विकल्प‍ बढ़ाना, बच्‍चों के जन्‍म के बीच के अंतर को बढ़ाना तथा महिलाओं को इस विषय पर विस्तृत जानकारी देना।
  • युवाओं को विवाह और यौन संबंधों के बारे में स्‍वास्‍थ्‍य और आयु संबंधित सामाजिक निर्धारकों की जानकारी देना।
  • परामर्श के साथ देखभाल सेवाओं को बेहतर बनाने, दवाओं के दुष्प्रभावों के बेहतर प्रबंधन और परिवार नियोजन में सहायता करना।
  • देश की 30% युवा जनसंख्या की ज़रूरतों को ध्‍यान में रखते हुए परिवार नियोजन योजना के लिये बजटीय आवंटन बढ़ाना।
  • गर्भनिरोधक के विकल्पों के प्रति मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक दुष्प्रचारों को संबोधित करना तथा युवाओं से इन समस्याओं को लेकर संवाद बढ़ाने के लिये संचार के नए माध्यमों (जैसे- Social Media आदि) में बड़े पैमाने पर निवेश करना।
  • अंतर-विभागीय संवाद को बढ़ावा देने और बहुपक्षीय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये जनसंख्या स्थिरीकरण तथा परिवार नियोजन को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में रखना।

15 अगस्त, 2019 को लालकिले से अपने अभिभाषण में प्रधानमंत्री ने अनियंत्रित रूप से बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि,“लगातार बढ़ती जनसंख्या हमारे और हमारी अगली पीढ़ी के लिये कई समस्यायें और चुनौतियाँ लाने वाली हैं।” साथ ही उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिये देश के सभी नागरिकों से अपना योगदान देने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियत्रंण के प्रति जागरूक लोगों की प्रशंसा की।

बढ़ती जनसँख्या की चुनौतियाँ :

  • किसी भी देश की स्वस्थ और शिक्षित जनसंख्या उसके लिये मानव पूँजी (Human Capital) के रूप में वरदान का काम करती हैं लेकिन यदि जनसंख्या इतनी बढ़ जाये कि देश के सभी नागरिकों के लिए मूलभूत सुविधाओं (शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि) का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाए तो यही जनसंख्या उसके लिये अभिशाप बन जाती है।
  • एक अनुमान के अनुसार भारत की वर्तमान जनसंख्या 37 करोड़ से अधिक है, जून 2019 में यू.एन. द्वारा जारी द वर्ल्‍ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्‍ट्स 2019: हाइलाइट्स (The World Population Prospects 2019: Highlights) नामक एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2027 तक भारत, चीन को पछाड़ते हुए विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
  • इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के स्वास्थ्य, युवा रोज़गार, वृद्धों की देखभाल से लेकर बढ़ती शहरी आबादी के दबाव आदि को नियंत्रित करना देश के लिये एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष:

भारत में जनसंख्या बढ़ने के कारणों में अशिक्षा, कम आयु में विवाह तथा परिवार नियोजन जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति व्याप्त सामाजिक अंधविश्वास का होना है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इतनी बड़ी जनसंख्या पर सरकारी दबाव के बजाय शिक्षा, जागरूकता और समाज के सभी वर्गों के आपसी सामाजिक सहयोग से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। परिवार नियोजन को विकास के क्षेत्र में सार्वभौमिक रूप से सर्वोत्तम निवेश माना जाता है। भारत को अपने सतत् विकास और आर्थिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिये यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि लोगों तक शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ गर्भनिरोधकों के प्रति जागरूकता और गुणवत्तापूर्ण परिवार नियोजन सेवाओं की पहुँच बढ़ सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका ‘टू प्लस टू वार्ता’

प्रीलिम्स के लिये:

टू प्लस टू वार्ता

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका टू प्लस टू वार्ता में उठाए गए विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

18 दिसंबर, 2019 को भारत और अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच वाशिंगटन में ‘टू प्लस टू वार्ता’ (2+2 Dialogue) हुई।

मुख्य बिंदु:

  • वाशिंगटन में भारत-अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के नेतृत्त्व में ‘टू प्लस टू वार्ता’ संपन्न हुई।
  • इस वार्ता में दोनों पक्षों ने भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में बढती साझेदारी को सकारात्मक रुप से स्वीकार किया और कहा कि सितंबर 2018 में दिल्ली में आयोजित पहली ‘टू प्लस टू वार्ता’ के बाद दोंनों देशों के बीच संबंधों में मज़बूती आई है।

‘टू प्लस टू वार्ता’ में चर्चा में रहे कुछ प्रमुख विषय:

  • इस वार्ता में एक तरफ जहाँ हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में संबंध प्रगाढ़ बनाने को लेकर स्पष्टता देखी गई वहीं अमेरिका की निजी क्षेत्र की रक्षा कंपनियों द्वारा भारत में अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों के निर्माण की राह में एक बड़ी अड़चन समाप्त हो गई है। दोनों देशों ने इसके लिये ‘इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स’ (Industrial Security Annex) नामक समझौते को मंज़ूरी दी है।

इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स

(Industrial Security Annex-ISA):

  • यह समझौता भारत में निवेश करने वाली अमेरिकी रक्षा कंपनियों के हितों की रक्षा करने की गारंटी देता है।
  • यह समझौता अमेरिकी सरकार और अमेरिकी कंपनियों को भारतीय निजी क्षेत्र के साथ गोपनीय जानकारी साझा करने की अनुमति देता है, जो अब तक भारत सरकार और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों तक सीमित है।
  • भारतीय उद्योग रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश किये जाने की आवश्यकता है, इसलिये ISA भारत के लिये विशेष रूप से आवश्यक है।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल कार्यक्रम (Defence Technology and Trade Initiative-DTTI) के तहत रक्षा व्यापार के क्षेत्र में निष्पादित की जाने वाले प्राथमिकता पहलों की पहचान की गई।
  • अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने भारत को अपना लोकतांत्रिक मित्र बताते हुए आतंकवाद से अमेरिका तथा भारत के लोगों की सुरक्षा किये जाने की बात कही और भारत को पाकिस्तान प्रायोजित तथा अन्य प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने में समर्थन देने का आश्वासन दिया।
  • भारत और अमेरिका की तीनों सेनाओं के बीच नवंबर 2019 में ‘टाइगर ट्राइंफ’ (Tiger Triumph) नामक युध्दाभ्यास का आयोजन किया गया जो अब वार्षिक रूप से आयोजित किया जाएगा।

क्या है ‘टू प्लस टू वार्ता’?

  • ‘टू प्लस टू वार्ता’ एक ऐसी मंत्रिस्तरीय वार्ता होती है जो दो देशों के दो मंत्रालयों के मध्य आयोजित की जाती है।
  • भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ दोनों देशों के मध्य एक उच्चतम स्तर का संस्थागत तंत्र है जो भारत और अमेरिका के बीच सुरक्षा, रक्षा और रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा के लिये मंच प्रदान करता है।
  • भारत और अमेरिका के बीच आयोजित यह दूसरी ‘टू प्लस टू वार्ता’ है तथा अमेरिका में आयोजित पहली ‘टू प्लस टू वार्ता’ है।

भारत को लाभ:

भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ के आयोजन से भारत को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे-

  • भारत और अमेरिका के बीच हिंद महासागर क्षेत्र में सामरिक एवं रणनीतिक सहयोग से हिंद महासागर में बढ़ते चीन के सैन्य प्रभुत्त्व को प्रतिसंतुलित करने में भारत सक्षम होगा।
  • भारत और अमेरिका के बीच संपन्न ‘इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स’ के माध्यम से भारत के रक्षा क्षेत्र में अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों के निर्माण में अड़चनें समाप्त होंगी जिससे भारतीय सेनाओं के पास हथियार एवं अन्य सैन्य उपकरणों के भंडार में वृद्धि होगी जो कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों की अस्थिर गतिविधियों से भारत की रक्षा करने के लिये अत्यंत आवश्यक है।
  • इस समझौते के माध्यम से रक्षा एवं उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत-अमेरिका व्यापार तथा तकनीकी सहयोग को और भी सुविधाजनक बनाया जा सकेगा।
  • अमेरिका द्वारा आतंकवाद की समाप्ति के लिये भारत का समर्थन किये जाने से भारत में सीमा पार आतंकवाद में कमी आएगी।

स्रोत- पीआइबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यातना के विरुद्ध यू.एन. कन्वेंशन

प्रीलिम्स के लिये:

यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के विरुद्ध यू.एन. कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

‘यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के विरुद्ध यू.एन. कन्वेंशन’ एवं मालदीव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलेह ने ‘यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार या सजा के विरुद्ध यू.एन. कन्वेंशन’ (Convention against Torture and Other Cruel, Inhuman or Degrading Treatment or Punishment) के अनुच्छेद-22 से संबंधित घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • मालदीव के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित इस घोषणा-पत्र के अनुसार, मालदीव सरकार अत्याचार से प्रभावित व्यक्तियों की शिकायतें प्राप्त करने के लिये गठित समिति की दक्षता की पहचान करेगी परंतु यह केवल उन्हीं मामलों में संभव हो सकेगा जब यातना से पीड़ित का मामला मालदीव के अधिकार क्षेत्र में आता हो।
  • मालदीव के राष्ट्रपति ने इस कन्वेंशन के अनुच्छेद-22 से संबंधित घोषणा-पत्र पर नवंबर 2018 में यातना के विरुद्ध बनी समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट के निष्कर्षों में दी गई सिफारिशों के आधार पर हस्ताक्षर किये हैं।

यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के विरुद्ध यू.एन. कन्वेंशन:

(UN Convention against Torture and Other Cruel, Inhuman or Degrading Treatment or Punishment):

  • यह यू.एन. कन्वेंशन 10 दिसंबर, 1984 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव द्वारा स्वीकार किया गया तथा हस्ताक्षर, अनुसमर्थन एवं स्थापित करने के लिये प्रस्तावित किया गया।
  • यह कन्वेंशन 26 जून, 1987 को प्रभाव में आया था।
  • यह कन्वेंशन 9 फरवरी, 1975 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘यातना और अन्य क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा से सभी व्यक्तियों के संरक्षण’ विषय पर विचार-विमर्श का परिणाम था।
  • यह कन्वेंशन राज्यों को अपने क्षेत्राधिकार के अंदर किसी भी क्षेत्र में यातना को रोकने के लिये प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता पर बल देता है, साथ ही यह ऐसे लोगों को जिनके संबंध में यह विश्वास है कि जहाँ भी जाएंगे ऐसी ही समस्या उत्पन्न करेंगे, को किसी भी देश में आवागमन के लिये प्रतिबंधित भी करता है।
  • विशेषतः इस कन्वेंशन के अनुच्छेद-55 में मानवाधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रता के सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ाने की बात की गई है।

क्या कहता है कन्वेंशन का अनुच्छेद-22?

  • इस अनुच्छेद के अनुसार, इस कन्वेंशन के पक्षकार राज्य यातना से प्रभावित व्यक्तियों की शिकायतें प्राप्त करने के लिये गठित समिति की दक्षता की पहचान करता है परंतु यह केवल उन्हीं मामलों में संभव हो सकेगा जब यातना पीड़ित का मामला उस पक्षकार राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता हो।
  • यदि किसी पक्षकार राज्य द्वारा इस संदर्भ में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है, तो समिति द्वारा इस संबंध में कोई मामला स्वीकार नहीं किया जाएगा।

भारत की स्थिति:

  • भारत ने 14 अक्तूबर, 1997 को इस यू.एन. कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये थे। हालाँकि भारत द्वारा अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की गई है क्योंकि भारत द्वारा अभी यातना विरोधी कानून नहीं बनाया गया है।
  • भारत विश्व के उन नौ देशों में से एक है, जिन्होंने अभी तक यातना विरोधी कानून नहीं बनाए है, जबकि यह इस अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधि की पुष्टि करने के लिये एक अनिवार्य शर्त है।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग

प्रीलिम्स के लिये:

अमेरिका और भारत में महाभियोग की प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

अमेरिका और भारत में महाभियोग की प्रक्रिया और इनका तुलनात्मक अध्ययन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध लाए गए महाभियोग (Impeachment) प्रस्ताव पर अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा (House of Representative) में बुधवार को मतदान हुआ।

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग के लिये निचले सदन में दो प्रस्ताव पेश किये गए थे। पहले में उन पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया जो 197 के मुकाबले 230 मतों से पास हुआ।
  • दूसरे प्रस्ताव में महाभियोग मसले पर संसद के कार्य में बाधा डालने का आरोप था जो कि 198 के मुकाबले 229 मतों से पास हुआ।
  • प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी चार भारतीय अमेरिकी सदस्‍यों ने ट्रंप पर महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया।
  • हालाँकि राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार को कोई खतरा नहीं है क्‍योंकि महाभियोग की प्रक्रिया निचले सदन से पास होने के बावजूद सीनेट में इसका पारित होना मुश्किल है। सीनेट में सत्तारूढ़ रिपब्लिकंस पार्टी का बहुमत है। राष्ट्रपति ट्रंप को केवल एक ही स्थिति में हटाया जा सकता है, जब उनकी पार्टी के सांसद उनके विरुद्ध मतदान करें जिसकी आशंका नहीं है।
  • निचले सदन के बाद अब राष्ट्रपति को सत्ता से हटाने के लिये उच्च सदन यानी सीनेट में महाभियोग की प्रक्रिया चलेगी। अमेरिका के इतिहास में ऐसा तीसरी बार हैं जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है।
  • वर्ष 1868 में एंड्रू जॉनसन और वर्ष 1998 में बिल क्लिंटन के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी। हालाँकि दोनों ही बार राष्ट्रपति को सत्ता से हटाया नहीं जा सका था। वर्ष 1974 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पर अपने एक विरोधी की जासूसी करने का आरोप लगा था। इसे वॉटरगेट स्कैंडल का नाम दिया गया था।

क्या है मुद्दा:

  • अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप पर वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में संभावित प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन समेत अन्‍य नेताओं की छवि खराब करने के लिये यूक्रेन के राष्‍ट्रपति ब्लादीमेर जेलेंसकी से गैरकानूनी रूप से सहायता मांगने का आरोप है। राष्ट्रपति ट्रंप पर सत्ता के दुरुपयोग के साथ-साथ कानून निर्माताओं को जाँच से रोकने का भी आरोप हैं।

अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया:

Donald-Trump

भारत और अमेरिका के संविधान की तुलना:

  • भारत और अमेरिका की सरकारों की कार्यप्रणालियाँ अर्थात् विधायिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में एक विशिष्ट प्रकार का संबंध है।
  • भारत में जहाँ कार्यपालिका विधायिका का अंग होती है और न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र इससे अलग होता है,वहीं अमेरिका की सरकार की कार्यप्रणाली में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का स्पष्ट विभाजन है अर्थात् कोई एक-दूसरे से प्रत्यक्ष संबंध नहीं रखते हैं।
  • इस प्रकार जहाँ भारत में शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत पूर्णतः लागू नहीं होता है, वहीं अमेरिका में यह पूर्णतः लागू होता है।

शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत (Theory of Separation of Power):

शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि निरंकुश शक्तियों के मिल जाने से व्यक्ति भ्रष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • इस सिद्धांत से संबंधित आधारभूत विचार नवीन नहीं है। राजनीतिशास्त्र के जनक अरस्तू ने सरकार को असेंबली, मजिस्ट्रेसी तथा जुडीशियरी नामक तीन विभागों में बाँटा था, जिनसे आधुनिक व्यवस्था का शासन तथा न्याय विभाग का पता चलता है।
  • 16वीं सदी के विचारक जीन बोंदा ने स्पष्ट कहा है कि राजा को कानून निर्माता तथा न्यायाधीश दोनों रूपों में एक साथ कार्य नहीं करना चाहिये। लाॅक द्वारा भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त किया गया है।

माॅण्टेस्क्यू:

  • माॅण्टेस्क्यू के पूर्व अनेक विद्वानों ने इस प्रकार के विचार प्रकट किये थे, किंतु विधिवत् और वैज्ञानिक रूप में इस सिद्धांत के प्रतिपादन का कार्य फ्राँसीसी विचारक माॅण्टेस्क्यू द्वारा ही किया गया। माॅण्टेस्क्यू लुई चौदहवें का समकालीन था इसलिये उसने राजा द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग के प्रभाव को भलीभाँति देखा।
  • माॅण्टेस्क्यू के अनुसार “प्रत्येक सरकार में तीन प्रकार की शक्तियाँ होती हैं – व्यवस्थापन संबंधी, शासन संबंधी तथा न्याय संबंधी। इसी आधार पर उसने वर्ष 1762 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘स्पिरिट ऑफ लॉज़’ (Spirit of Laws) में शासन संबंधी शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

सिद्धांत का प्रभाव:

  • शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत का तत्कालीन राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिकी संविधान निर्माता इस सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे और इसी कारण उन्होंने अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया था।
  • इसी प्रकार मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, ऑस्ट्रिया आदि अनेक देशों के संविधान में भी इसको मान्यता प्रदान की गई है।

सिद्धांत के पक्ष में तर्क

  • निरंकुशता और अत्याचार से रक्षा।
  • विभिन्न योग्यताओं का उपयोग अर्थात् शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत को अपनाना इसलिये भी आवश्यक और उपयोगी है कि सरकार से संबंधित विभिन्न कार्यों को करने के लिये अलग-अलग प्रकार की योग्यताओं की आवश्यकता होती है।
  • कार्य विभाजन से बेहतर निष्पादन।
  • न्याय की निष्पक्षता।

सिद्धांत की आलोचना:

  • ऐतिहासिक दृष्टि से असंगत: मांटेस्क्यू के अनुसार, उसने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन इंग्लैंड की तत्कालीन शासन पद्धति के आधार पर किया है, लेकिन इंग्लैंड की शासन व्यवस्था कभी भी शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत पर आधारित नहीं रही है।
  • शक्तियों का पूर्ण पृथक्करण संभव नहीं: आलोचकों का कथन है कि सरकार एक आंगिक एकता है, उसी प्रकार की स्थिति शासन के अंगों की है। इसलिये शासन के अंगों का पूर्ण व कठोर पृथक्करण व्यवहार में संभव नहीं है।
  • अमेरिकी संघीय व्यवस्थापिका अर्थात् काॅन्ग्रेस कानूनों का निर्माण करने के साथ-साथ राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों और संधियों पर नियंत्रण रखती है तथा महाभियोग लगाने का न्यायिक कार्य भी कर सकती है। इसी प्रकार कार्यपालिका के प्रधान, राष्ट्रपति को कानूनों के संबंध में निषेध का अधिकार और न्याय क्षेत्र में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने एवं क्षमादान का अधिकार प्राप्त है।
  • शक्ति का पृथक्करण अवांछनीय भी है: शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत को अपनाना न केवल असंभव वरन् अवांछनीय भी है। व्यवस्थापिका कानून निर्माण का कार्य तथा कार्यपालिका प्रशासन का कार्य ठीक प्रकार से कर सके, इसके लिये दोनों अंगों के बीच पारस्परिक सहयोग अति आवश्यक है।

निष्कर्ष:

  • शक्ति के पृथक्करण का आशय यह है कि सरकार के तीन अंगों को एक-दूसरे के क्षेत्र में अनुचित हस्तक्षेप से बचते हुए अपनी सीमा में रहना चाहिये, और इस रूप में शक्तियों के विभाजन सिद्धांत को अपनाना न केवल उपयोगी बल्कि आवश्यक भी है।

भारत और अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया की तुलना:

  • भारत में संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के उल्लंघन के आधार पर प्रारंभ की जा सकती है वहीं अमेरिका में देशद्रोह, रिश्वत और दुराचार जैसे मामलों के आधार पर संसद के प्रतिनिधि सदन द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।
  • भारत में महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ करने हेतु प्रस्ताव पर कम-से-कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं, वहीं अमेरिका में प्रतिनिधि सभा के 51% सदस्यों की सहमति पर महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है।
  • भारत में महाभियोग प्रस्ताव को पेश किये गए सदन के कुल सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित किये जाने पर इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है, जबकि अमेरिका में महाभियोग प्रस्ताव सदन में पारित होने के बाद एक ज्यूरी के पास भेजा जाता है जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है। इस ज्यूरी में राष्ट्रपति बचाव पक्ष के रूप में एक अधिवक्ता की नियुक्ति कर सकता है। इस ज्यूरी में प्रस्ताव पास होने के बाद उसे सीनेट में भेजा जाता है।
  • भारत में दूसरे सदन में भी प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है जबकि अमेरिका में प्रस्ताव को 67% सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना होता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग विधेयक मसौदा

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग, संरचना

मेन्स के लिये

देश की आर्थिक संवृद्धि के मूल्यांकन में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा सांख्यिकी आँकड़ों पर देश की सर्वोच्च सलाहकार संस्था की स्वायत्तता बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission-NSC) विधेयक पर मसौदा तैयार किया है तथा इस पर लोगों से प्रतिक्रिया मांगी गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इस विधेयक के मसौदे में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को देश के सभी सांख्यिकी मामलों के लिये सर्वोच्च तथा स्वायत्त बनाने का प्रावधान किया गया है और इसकी संरचना में भी परिवर्तन का प्रावधान किया गया है।
  • इस मसौदे के अंतर्गत NSC की सलाहकार संस्था की भूमिका को बनाए रखते हुए यह प्रावधान किया गया है कि नीतियों से संबंधित प्रश्नों पर अंतिम निर्णय सरकार करेगी।
  • भारत सरकार के सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) द्वारा 19 जनवरी, 2020 तक लोगों से इस मसौदे पर सुझाव एवं प्रतिक्रियाएँ मांगी गई हैं।
  • ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा हाल की कई सांख्यिकी आधारित रिपोर्टें नहीं जारी की गईं जिनमें बेरोज़गारी सर्वेक्षण (Unemployment Survey) तथा उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Consumption Expenditure Survey) आदि शामिल थे।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग:

  • जनवरी, 2000 में सरकार ने डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसका उद्देश्य देश की समस्त सांख्यिकी प्रणाली तथा सरकार के सांख्यिकी आँकड़ों की समीक्षा करना था।
  • अगस्त, 2000 में डॉ. सी. रंगराजन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में सांख्यिकी के लिये एक राष्ट्रीय आयोग के गठन की बात कही गई।
  • इसका कार्य देश की सभी प्रमुख सांख्यिकी गतिविधियों की निगरानी, विकास तथा इनके लिये उत्तरदायी विभिन्न संस्थाओं के मध्य सहयोग स्थापित करना था।
  • रंगराजन समिति का सुझाव था कि शुरुआत में इस आयोग का गठन सरकार के आदेश द्वारा हो।
  • समिति की अनुशंसा पर 1 जून, 2005 को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का गठन किया गया।
  • इसमें एक अध्यक्ष, चार सदस्य, एक पदेन सदस्य तथा भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् को NSC का सचिव बनाया गया।
    • वर्तमान में नीति आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer-CEO) NSC का पदेन सदस्य सदस्य (Ex-Officio Member) होता है।
    • सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव को भारत का मुख्य सांख्यिकीविद् (Chief Statistician of India-CSI) कहा जाता है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग विधेयक मसौदे के प्रमुख बिंदु:

  • NSC की संरचना में बदलाव करते हुए इसके पदेन सदस्य के तौर पर नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के स्थान पर वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor) को नियुक्त किया जाएगा।
  • इसके अलावा वर्तमान में मौजूद NSC के सचिव को पहले की तरह भारत का मुख्य सांख्यिकीविद् ही कहा जाएगा।
  • इसके तहत NSC में एक अध्यक्ष तथा पाँच पूर्णकालिक सदस्य होंगे। इसके अतिरिक्त अन्य सदस्य के तौर पर भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के डिप्टी गवर्नर, भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् तथा पदेन सदस्य के तौर पर वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार इसमें शामिल होंगे।
  • NSC के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति एक सर्च कमिटी की सलाह पर भारत सरकार द्वारा की जाएगी। सर्च कमिटी के किसी सदस्य की गैर मौजूदगी में हुई नियुक्ति को अमान्य नहीं माना जाएगा।
  • भारत सरकार आवश्यकता पड़ने पर भारत की एकता और अखंडता, राज्यों की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, अनुशासन तथा नैतिकता आदि हितों को ध्यान में रखते हुए में NSC को दिशा-निर्देश दे सकती है।
  • विधेयक के अनुसार, NSC अपनी शक्तियों के प्रयोग अथवा कार्यों के कार्यान्वयन के दौरान सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को मानने के लिये बाध्य होगा।
  • सरकारी आँकड़ों से संबंधित किसी मामले पर भारत सरकार NSC से सलाह मांग सकती है।
  • इसके अलावा केंद्र सरकार या राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली किसी सरकारी एजेंसी से NSC की सलाह को स्वीकार न करने के कारणों पर रिपोर्ट मांग सकती है।
  • NSC की सलाह न मानने के कारणों पर बनाई गई रिपोर्ट संसद अथवा संबंधित राज्य की विधायिका में 30 दिनों के लिये प्रस्तुत की जाएगी।
  • NSC को यह अधिकार होगा कि वह देश की किसी सरकारी संस्था की सांख्यिकी प्रणाली में निहित अवधारणा, परिभाषा, मानक, कार्य-पद्धति तथा नीतियों के संबंध में परामर्श दे।
  • मसौदे में कहा गया है कि NSC सरकार से विचार-विमर्श के आधार पर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (National Statistical Organisations- NSO) की कार्य-पद्धति, सांख्यिकी मानकों तथा वर्गीकरण के मामलों में भागीदारी करे।
  • केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों तथा राज्य सरकारों में नियुक्त सभी नोडल अधिकारी सांख्यिकी के मूलभूत मामलों पर भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् के प्रति उत्तरदायी होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पॉल्युशन एंड हेल्थ मीट्रिक्स रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये

पॉल्युशन एंड हेल्थ मीट्रिक्स रिपोर्ट

मेन्स के लिये

मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषण का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पॉल्युशन (Global Alliance on Health and Pollution- GAHP) द्वारा 2019 पॉल्युशन एंड हेल्थ मीट्रिक्स: ग्लोबल, रीजनल एंड कंट्री एनालिसिस रिपोर्ट (2019 Pollution and Health Metrics: Global, Regional and Country Analysis report) जारी की गई।

  • यह रिपोर्ट लांसेट कमीशन ऑन हेल्थ एंड पॉल्युशन (Lancet Commission on Pollution and Health) के निष्कर्षों पर आधारित है।

मुख्य बिंदु:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर हुई कुल मौतों में 15% मौतें प्रदूषण की वजह से हुईं।
  • विश्व में प्रदूषण की वजह से होने वाली असामयिक मौतों (Premature Deaths) के मामले में शीर्ष देशों की सूची में भारत (23 लाख) पहले स्थान पर तथा चीन (18 लाख) दूसरे स्थान पर है। अमेरिका (1 लाख 96 हज़ार) इस सूची में सातवें स्थान पर है।

Pllution-Related-Death

  • प्रदूषण की वजह से प्रति 1 लाख जनसंख्या पर होने वाली कुल असामयिक मौतों के मामले में चाड (287) पहले स्थान पर है जबकि, इस सूची में भारत (174) दसवें स्थान पर है।

Pollution-Death

  • केवल वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली असामयिक मौतों के मामले में चीन (12 लाख 42 हज़ार) पहले, भारत (12 लाख 40 हज़ार) दूसरे तथा पाकिस्तान (1 लाख 28 हज़ार) तीसरे स्थान पर है।

Annual-Pollution-Deasth

  • भारत एकमात्र देश है जो कि इस रिपोर्ट द्वारा जारी तीनों सूचियों में शामिल है।
  • हालाँकि वर्ष 2015 से 2017 के दौरान प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में कमी आई है। वर्ष 2015 में प्रदूषण की वजह से 90 लाख मौतें हुईं जबकि, वर्ष 2017 में ये 83 लाख रह गईं।
  • इन रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ प्रदूषण के परंपरागत स्रोतों जैसे- गंदगी तथा घरेलू धुआँ आदि में कमी आई है वहीं आधुनिक स्रोतों जैसे- शहरीकरण एवं औद्योगीकरण आदि में वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक स्तर पर आधुनिक प्रदूषण की वजह से प्रतिवर्ष 53 लाख लोगों की मौत होती है जो कि अन्य सभी कारणों में सर्वाधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हृदय से संबंधित कुल रोगों के 21%, हृदयाघात के 23%, इस्केमिक (Ischemic) हृदय रोग के 26% तथा फेफड़ों के कैंसर के 43% मामलों में होने वाली कुल मौतों का कारण प्रदूषण था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 दिसंबर, 2019)

सेतुरमण पंचनाथन

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सेतुरमण पंचनाथन को अमेरिका की नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) का निदेशक बनाया गया है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनकी नियुक्ति को मंज़ूरी दी है। अमेरिकी सरकार की संस्था NSF विज्ञान और इंजीनियरिंग सहित सभी गैर-चिकित्सा क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य में मदद करती है। जबकि चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने के लिये एक अलग संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ काम करती है। व्हाइट हाउस के विज्ञान और तकनीकी नीति विभाग के निदेशक केल्विन ड्रोगेमीयर के अनुसार, डॉ. सेतुरमण पंचनाथन ने अनुसंधान, नवाचार, अकादमिक प्रशासन और नीतिगत अनुभव के साथ नई ज़िम्मेदारी संभाली है। विदित है कि 58 वर्षीय पंचनाथन, फ्राँस कोर्डोवा का स्थान लेंगे, जो 2020 में संस्था के निदेशक के तौर पर अपना 6 साल का कार्यकाल पूरा करके रिटायर होंगी।


वसीम ज़ाफर

भारत के पूर्व क्रिकेटर वसीम ज़ाफर को इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के आगामी सत्र के लिये किंग्स इलेवन पंजाब का बल्लेबाजी कोच नियुक्त किया गया है। टीम की वेबसाइट पर सहयोगी स्टाफ में ज़ाफर का नाम से इस बात की पुष्टि हुई। गौरतलब है कि वर्तमान में विदर्भ के लिये रणजी ट्रोफी खेलने वाले ज़ाफर ने वर्ष 2000 से 2008 के बीच भारत के लिये 31 टेस्ट खेलकर 1944 रन बनाए जिसमें पाँच शतक और 11 अर्धशतक शामिल है। वहीं उन्होंने आठ वर्ष के अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर में भारत के लिये दो वनडे मैच भी खेले हैं।


नागरिकता शिक्षा पुरस्कार

पुर्तगाल के प्रधानमंत्री अंतोनियो कोस्टा ने हाल ही में महात्मा गांधी के आदर्शों को शाश्वत बनाए रखने हेतु उनके विचारों और उद्धरणों से प्रेरित ‘गांधी नागरिकता शिक्षा पुरस्कार’ आरंभ करने की घोषणा की है। ‘गांधी नागरिकता शिक्षा पुरस्कार’ सामाजिक कल्याण के लिये समर्पित होगा। अंतोनियो के अनुसार, पहले साल का पुरस्कार पशु कल्याण के लिये समर्पित होगा क्योंकि महात्मा गांधी का कहना था कि किसी भी राष्ट्र की महानता पशुओं के प्रति उसके व्यवहार से आँकी जा सकती है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का प्रेम एवं सहिष्णुता का संदेश आज भी क्रांतिकारी बदलाव लाने में सक्षम है।


फोर्ब्स इंडिया लिस्ट

फोर्ब्स इंडिया मैगज़ीन ने वर्ष 2019 की टॉप 100 सेलिब्रिटी की लिस्ट जारी की है, जिसमें टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को पहला स्थान प्राप्त हुआ है। उल्लेखनीय है कि पिछले तीन साल से इस लिस्ट में सलमान खान शीर्ष स्थान पर थे। यह पहली बार है जब कोई खिलाड़ी फोर्ब्स इंडिया की इस लिस्ट में पहले पायदान पर पहुँचा है। फोर्ब्स इंडिया सेलिब्रिटी 100 लिस्ट के लॉन्च होने के आठ साल बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी बॉलीवुड स्टार को रिप्लेस कर कोई खिलाड़ी टॉप पर पहुँचा है।


अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस

20 दिसंबर को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस का आयोजन किया जाता है। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस का मुख्य उद्देश्य आम लोगों को विविधता में एकता का महत्त्व बताते हुए जागरूकता उत्पन्न करना है। विश्व के विभिन्न देश इस दिन अपने नागरिकों के बीच शांति, भाईचारा, प्यार, सौहार्द और एकता के संदेश का प्रसार करते हैं। विदित है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 दिसंबर 2005 को घोषणा की थी कि अंतर्राष्ट्रीय एकता दिवस प्रत्येक वर्ष 20 दिसंबर को मनाया जाएगा।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow