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डेली न्यूज़

  • 19 Aug, 2020
  • 46 min read
शासन व्यवस्था

पीएम-केयर्स फंड और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष

प्रिलिम्स के लिये

पीएम-केयर्स फंड, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, RTI अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण

मेन्स के लिये

पीएम-केयर्स फंड से संबंधित बिंदु और इससे संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) की राशि को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) में हस्तांतरित करने का आदेश देने से इनकार कर दिया कि ‘ये दोनों फंड उद्देश्य तथा अन्य सभी मामलों में एक-दूसरे से पूर्णतः अलग हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) का ऑडिट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है।
  • जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम.आर. शाह की खंडपीठ ने सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) नाम के NGO द्वारा इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया।
  • खंडपीठ ने कहा कि ‘पीएम-केयर्स फंड में देश के सभी व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा किये गए कुल योगदान को ट्रस्ट के उद्देश्य को पूरा करने हेतु सार्वजनिक प्रयोजन के लिये जारी किया जाना है और इस ट्रस्ट को कोई भी बजटीय सहायता या कोई सरकारी धन प्राप्त नहीं होता है, इसलिये याचिकाकर्त्ताओं द्वारा ट्रस्ट के निर्माण के उद्देश्य पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है।
  • विवाद

    • सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि न्यायालय सरकार को कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत एक नई राष्ट्रीय योजना बनाने का दिशा-निर्देश दे।
    • साथ ही याचिकाकर्त्ता ने मांग की थी कि पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) के तहत एकत्र की गई संपूर्ण राशि को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के तहत हस्तांतरित कर दिया जाए।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

    • खंडपीठ ने कहा कि वर्ष 2019 की राष्ट्रीय योजना में महामारी (Epidemic) के सभी पहलुओं, जिसमें महामारी से निपटने संबंधी सभी उपाय और प्रतिक्रिया आदि, को विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है।
      • ध्यातव्य है कि यह राष्ट्रीय योजना वर्ष 2016 में बनाई गई थी और नवंबर 2019 में इसे संशोधित तथा अनुमोदित किया गया था।
    • इस लिहाज़ से याचिकाकर्त्ता का तर्क सही नहीं है कि देश में महामारी से निपटने के लिये कोई विस्तृत योजना मौजूद नहीं है।
    • खंडपीठ ने कहा कि COVID-19 एक जैविक और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी महामारी है और राष्ट्रीय योजना 2019 में इसे विशेष रूप से कवर किया गया है, संबंधित राष्ट्रीय योजना में इस तहत की महामारी से निपटने के लिये विभिन्न प्रकार की
    • योजनाएँ, दिशा-निर्देश और उपाय सुझाए गए हैं, इस प्रकार देश में COVID-19 से निपटने के लिये योजनाओं और प्रक्रियाओं की कोई कमी नहीं है।
  • याचिकाकर्त्ता का तर्क

    • याचिकाकर्त्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि सरकार द्वारा पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) बनाए जाने से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है।
    • याचिकाकर्त्ता ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) का ऑडिट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा किया जाता है, जबकि पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) का ऑडिट CAG द्वारा नहीं बल्कि किसी निजी चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) द्वारा किया जाता है, जो कि इस फंड की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund)

  • इसी वर्ष मार्च माह में केंद्र सरकार ने COVID-19 महामारी द्वारा उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने हेतु ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (Prime Minister’s Citizen
  • Assistance and Relief in Emergency Situations Fund)’ अर्थात् पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) की स्थापना की है।
  • पीएम-केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। अन्य सदस्यों के रूप में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं।
  • कोष में राशि की सीमा निर्धारित नही की गई है जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग योगदान करने में सक्षम होंगे।
  • यह कोष, आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मज़बूत एवं नागरिकों की सुरक्षा हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा।
  • पीएम-केयर्स फंड और सूचना का अधिकार

    • हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यकाल (PMO) ने पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) के संबंध में RTI अधिनियम के तहत दायर आवेदन में मांगी गई सूचना को अधिनियम की ही धारा 7(9) के तहत देने से इनकार कर दिया है।
      • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 7(9) के अनुसार, ‘किसी भी सूचना को साधारणतया उसी प्रारूप में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उसे मांगा गया है, जब तक कि वह लोक प्राधिकारी के स्रोतों को अनानुपति
    • (Disproportionately) रूप से विचलित न करता हो या प्रश्नगत अभिलेख की सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकूल न हो।
    • कई विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के इस कदम को RTI अधिनियम की धारा 7(9) के अनुचित उपयोग के रूप में परिभाषित किया है।
    • ध्यातव्य है कि 2010 में केरल उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, धारा 7 (9) किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण को सूचना का खुलासा करने से छूट नहीं देती है, बल्कि यह किसी अन्य प्रारूप में सूचना प्रदान करने को अनिवार्य करता है।
    • इससे पूर्व भी प्रधानमंत्री कार्यकाल (PMO) ने पीएम-केयर्स फंड को लेकर दायर किये गए तमाम आवेदनों में भी इसके संबंध में सूचना देने से इनकार कर दिया था, इससे पूर्व PMO ने एक आवेदन के जवाब में कहा था कि पीएम-केयर्स फंड सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक 'सार्वजनिक प्राधिकरण' (Public Authority) नहीं है।
  • पीएम-केयर्स फंड संबंधी चिंताएँ

    • यह भी एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि यदि देश में पहले से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (Prime Minister’s National Relief Fund) मौजूद है तो फिर एक अन्य फंड का गठन क्यों किया गया है?
    • पीएम-केयर्स फंड के खर्च की सार्वजनिक जाँच को लेकर मौजूद अस्पष्टता के संबंध में कई विशेषज्ञों ने चिंता ज़ाहिर की है।
    • ऐसे विभिन्न तथ्य हैं जो इसे एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ बनाते हैं, उदाहरण के लिये पीएम-केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) है और प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष हैं। साथ ही रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इसमें पदेन ट्रस्टीयों के रूप में शामिल हैं, जो कि स्पष्ट तौर पर इसके सार्वजनिक प्राधिकरण होने का संकेत देता है।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF)

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत किया गया है।
  • इसे किसी भी आपदा की स्थिति या आपदा के कारण आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास के खर्चों को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
  • यह गंभीर प्राकृतिक आपदा के मामले में राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) की सहायता करता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।
  • ध्यातव्य है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) NDRF के खातों को ऑडिट करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

पर्सियड्स उल्का बौछार

प्रिलिम्स के लिये:

पर्सियड्स उल्का बौछार, उल्का पिंड, धूमकेतु

मेन्स के लिये:

पर्सियड्स उल्का बौछार के कारण

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020 में 17 से 26 अगस्त के मध्य उल्का वर्षा/पर्सियड्स उल्का बौछार (Perseids Meteor Shower) सक्रिय रहेगी। यह एक वार्षिक खगोलीय घटना है जिसे सबसे खूबसूरत उल्का पिंडों की बौछार माना जाता है। इस खगोलीय परिघटना में कई चमकीले उल्का पिंड तथा आग के गोले आकाश में तीव्र आवाज़ एवं रोशनी के साथ चमकते हैं, जिसे लोगों द्वारा पृथ्वी से देखा जा सकता है।


प्रमुख बिंदु:

  • उल्का: यह एक अंतरिक्ष चट्टान या उल्कापिंड है जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है।
    • उल्कापिंड अंतरिक्ष में मौजूद वह वस्तुएँ हैं जिनका आकार धूल के कण से लेकर एक छोटे क्षुद्रग्रहों के बराबर होता है।
    • इनका निर्माण अन्य बड़े निकायों जैसे धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह, ग्रह एवं उपग्रह से टूटने या विस्फोट के कारण होता हैं।
  • जब उल्कापिंड तेज़ गति से पृथ्वी के वायुमंडल (या किसी अन्य ग्रह, जैसे मंगल) में प्रवेश करते हैं तो इनमें तीव्र ज्वाला उत्पन्न होती है इसलिये इन्हें टूटा हुआ तारा (shooting Stars) कहा जाता है।
    • जैसे ही ये अंतरिक्ष चट्टानें या उल्का पिंड पृथ्वी की तरफ आती है तो ये चट्टानें हवा के प्रतिरोध के कारण अत्यधिक गर्म हो जाती हैं।
    • जब पिंड/चट्टानें वायुमंडल से गुजरते हैं तो यह अपने पीछे गैस की एक चमकीली (टूटा हुआ तारा) रेखा या पूंछ का निर्माण करते हैं जो पर्यवेक्षकों को पृथ्वी से दिखाई देती हैं।
    • आग के गोलों (Fireballs) में तीव्र विस्फोट के साथ प्रकाश एवं रंग उत्सर्जित होता है जो उल्का की रेखा/पूंछ की तुलना में देर तक दिखता है, क्योंकि आग के गोले का निर्माण उल्का के बड़े कणों से मिलकर होता है
  • जब कोई उल्कापिंड वायुमंडल को पार करते हुए ज़मीन से टकराता है, तो उसे ‘उल्कापिंड’ (Meteorite) कहा जाता है।

उल्का बौछार:

  • जब पृथ्वी पर एक साथ कई उल्का पिंड पहुँचते हैं या गिरते हैं तो इसे उल्का बौछार (Meteor Shower) कहा जाता है।
    • पृथ्वी और दूसरे ग्रहों की तरह धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों की लगभग गोलाकार कक्षाओं के विपरीत, धूमकेतु की कक्षाएँ सामान्यत: एकांगी (lop-sided) होती हैं।
    • जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के करीब आता है, उसकी बर्फीली सतह गर्म होकर धूल एवं चट्टानों (उल्कापिंड) के बहुत सारे कणों को मुक्त करती है।
    • यह धूमकेतु का मलबा धूमकेतु के मार्ग के साथ बिखर जाता है विशेष रूप से आंतरिक सौर मंडल में (जिसमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह शामिल हैं) क्योंकि सूर्य की अधिक गर्मी के कारण बर्फ और मलबे में एक प्रकार का उबाल उत्पन्न होता है।
  • उल्का पिंडों का नाम उस नक्षत्र के नाम पर रखा गया है जहाँ उल्का पिंड आते हुए प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिये, ओरियोनिड्स उल्का बौछार (Orionids Meteor Shower), जो प्रत्येक वर्ष में होती है, नक्षत्र 'ओरियन द हंटर' (Orion the Hunter) के निकट उत्पन्न होती है।

पर्सियड्स उल्का बौछार:

  • इसे इसके चर्मोत्कर्ष पर हर वर्ष अगस्त माह के मध्य में देखा जाता है इसे सर्वप्रथम 2,000 वर्ष पूर्व देखा गया था।
  • क्लाउड ऑफ डेबरिस (Cloud of Debris) लगभग 27 किमी. चौड़ा है तथा 160 से 200 उल्कापिंड मिलकर इसके चर्मोत्कर्ष बिंदु का निर्माण करते हैं ये पृथ्वी के वायुमंडल में प्रत्येक समय टुकड़ों के रूप में घूमते रहते हैं एवं प्रति घंटे लगभग 2.14 लाख किमी. की यात्रा करते है जब ये पृथ्वी की सतह से 100 किमी. पर स्थित होते हैं तो इनमें कम ज्वाला उत्पन्न होती हैं।
  • इसे यह नाम पर्सस (Perseus Constellation ) नक्षत्र से मिला है।
  • प्रदूषण और मानसून के बादलों के कारण पर्सिड्स को भारत से देख पाना मुश्किल है।
  • धूमकेतु स्विफ्ट-टटल (Comet Swift-Tuttle): इसे वर्ष 1862 में लुईस स्विफ्ट( Lewis Swift) और होरेस टटल (Horace Tuttle) द्वारा खोजा गया था जिसे सूर्य के चारों ओर एक चक्कर को पूरा करने में 133 वर्ष लगते हैं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत और कैंसर

प्रिलिम्स के लिये

कैंसर, विश्व कैंसर दिवस, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद

मेन्स के लिये

एक गंभीर रोग के रूप में कैंसर, इलाज़ और उपचार, संबंधित तथ्य

चर्चा में क्यों?

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) और राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान और अनुसंधान केंद्र (National Centre for Disease Informatics and Research-NCDIR) द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार,, वर्तमान प्रवृत्तियों के लिहाज़ से वर्ष 2025 तक भारत में कैंसर के मामलों की संख्या बढ़कर 15.6 लाख होने की संभावना है, इस प्रकार वर्ष 2025 तक वर्तमान अनुमानित मामलों में तकरीबन 12 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में कैंसर के कुल मामलों में तंबाकू के कारण होने वाले कैंसर का योगदान अनुमानतः 27.1 प्रतिशत हो सकता है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि तंबाकू जनित कैंसर देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सबसे अधिक है।
  • रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2020 के अंत तक देश में कैंसर के कुल मामले 13.9 लाख तक पहुँच जाएंगे, अनुमान के मुताबिक वर्ष में तंबाकू जनित कैंसर से पीड़ित लोगों की संख्या 3.7 लाख से अधिक हो सकती है।
  • पुरुषों में फेफड़े, मुंह, पेट और ग्रासनली (Oesophagus) के कैंसर सबसे आम कैंसर हैं, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर (Breast Cancers) तथा गर्भाशय ग्रीवा (Uterine Cervix) कैंसर काफी आम हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, देश भर की महिलाओं में स्तन कैंसर के कुल 2.0 लाख (14.8 प्रतिशत) और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के कुल 0.75 लाख (5.4 प्रतिशत) मामले होने का अनुमान है।
    • वहीं देश भर के पुरुषों और महिलाओं दोनों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर (Gastrointestinal Cancer) के कुल मामले लगभग 2.7 लाख (19.7 प्रतिशत) हैं।
  • भारत में प्रति एक लाख पुरुषों पर कैंसर की सबसे अधिक दर (269.4) मिज़ोरम के आइज़ोल (Aizawl) में पाई गई, जबकि कैंसर की सबसे कम दर (39.5) महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड ज़िले में दर्ज की गई।
  • इसी तरह भारत में प्रति एक लाख महिलाओं पर कैंसर की सबसे अधिक दर (219.8) अरुणाचल प्रदेश के पपुमपारे ज़िला (Papumpare District) में पाई गई, जबकि कैंसर की सबसे कम दर (49.4) महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड ज़िले में ही दर्ज की गई।
  • तंबाकू के किसी भी प्रकार के उपयोग से संबंधित कैंसर देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में और खासतौर पर पुरुषों में सबसे अधिक पाया गया।

कैंसर का अर्थ?

  • सामान्य शब्दों में कहें तो कैंसर (Cancer) शब्द का प्रयोग कई सारी बीमारियों के एक समूह के लिये किया जाता है। यह शरीर में लगभग कहीं भी विकसित हो सकता है।
  • आमतौर पर, मानव कोशिकाएँ बढ़ती हैं और मानव शरीर की आवश्यकता के अनुरूप नई कोशिकाओं को बनाने के लिये विभाजित होती हैं।
  • जब कोशिकाएँ पुरानी हो जाती हैं अथवा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो वे स्वतः ही मर जाती हैं और नई कोशिकाएँ उनका स्थान ले लेती हैं।
  • हालाँकि कैंसर की स्थिति में यह क्रमबद्ध प्रक्रिया बाधित हो जाती है, ऐसी स्थिति में पुरानी अथवा क्षतिग्रस्त कोशिकाएँ समाप्त नहीं होती हैं, या फिर यह भी हो सकता है कि एक नई कोशिका उस समय विकसित हो जाए जब उसकी आवश्यकता न हो।
  • यही अतिरिक्त कोशिकाएँ बिना रूके विभाजित होती रहती हैं और ‘ट्यूमर’ (Tumors) का निर्माण कर सकती हैं।

कैंसर के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

  • भौतिक कारक, जैसे- पराबैंगनी और आयनकारी विकिरण के संपर्क में आने से कैंसर होने का खतरा रहता है।
  • रासायनिक कारक, जैसे- एस्बेस्टस, तंबाकू के धुएँ के घटक, एफ्लाटॉक्सिन (एक खाद्य संदूषक) और आर्सेनिक युक्त जल का उपयोग कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • जैविक कारक, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया या परजीवी से संक्रमण भी कैंसर का एक प्रमुख कारण है।

वर्तमान परिदृश्य

  • वर्तमान समय में कैंसर की बीमारी विश्व में भयानक रूप ले चुकी है, विशेषत: भारत में यह मौत के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। जो आज भी चिंता का कारण बना हुआ है।
  • विश्व भर में 4 फरवरी को वैश्विक कैंसर दिवस मनाया जाता है। भारत में इसकी आक्रामकता को देखते हुए और लोगों को जागरूक करने हेतु वर्ष 2014 से कैंसर को लेकर जागरूकता अभियान शुरु किया गया है। जिसके तहत हर वर्ष 7 नवंबर को देश-भर में राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
  • भारत में जितनी तेज़ी से यह बीमारी फैल रही है उस हिसाब से देश में इसके उपचार की व्यवस्था नहीं हैं। बीमारी से बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि इसके प्रति जागरूकता लाई जाए।
  • कैंसर के संभावित लक्षणों एवं इससे बचाव के प्रति जागरूकता से कैंसर का प्राथमिक स्तर पर ही इलाज संभव हो सकता है, जिससे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से कम हानि होगी। अगर इसका पता देर से चलता है तो उपचार मुश्किल और महंगा हो जाता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डिजिटल क्वालिटी ऑफ लाइफ इंडेक्स 2020: सर्फशर्क

प्रीलिम्स के लिये:

डिजिटल क्वालिटी ऑफ लाइफ इंडेक्स, 2020

मेन्स के लिये:

इंटरनेट से संबंधित विभिन्न सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑनलाइन प्राइवेसी सॉल्यूशन प्रोवाइडर, सर्फशर्क ने डिजिटल क्वालिटी ऑफ लाइफ (DQL) इंडेक्स, 2020 जारी किया है। इसके अनुसार, भारत इंटरनेट गुणवत्ता के मामले में विश्व के सबसे निचले पायदान वाले देशों में से एक है।

प्रमुख बिंदु

  • कवरेज: यह विश्व के 85 देशों (डिजिटल जनसंख्या का 81%) की डिजिटल सेवाओं की गुणवत्ता पर किया गया वैश्विक शोध है
  • मापदंड: इस अध्ययन में डिजिटल गुणवत्ता को परिभाषित करने वाले निम्न पाँच बुनियादी आधारों को प्रमुखता दी गई है, जिनके आधार पर देशों को अनुक्रमित किया गया है। इनमें शामिल हैं:
    1. इंटरनेट की वहनीयता
    2. इंटरनेट की गुणवत्ता
    3. इलेक्ट्रॉनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर
    4. इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा
    5. इलेक्ट्रॉनिक गवर्नमेंट
      • इन आधारों को 12 संकेतकों के माध्यम से रेखांकित किया गया है जो परस्पर जुड़े हुए हैं और समग्र डिजिटल गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिये एक साथ काम करते हैं।
  • GDP और DQL: हालांकि प्रति व्यक्ति GDP का DQL के साथ एक मज़बूत संबंध है, हालांकि ऐसे कई देश हैं जहाँ प्रति व्यक्ति GDP अपेक्षाकृत कम है जबकि डिजिटल गुणवत्ता काफी बेहतर है।
    • 13 देश (अज़रबैजान, बुल्गारिया, चीन, क्रोएशिया, ग्रीस, आदि) ई-सुरक्षा के उच्च स्तर और अधिक किफायती इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने में अन्य देशों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं जिसके चलते अपेक्षित डिजिटल गुणवत्ता काफी बेहतर हो गई है।
    • बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब में प्रति व्यक्ति GDP अपेक्षाकृत उच्च है, तथापि इंटरनेट की गुणवत्ता और ई-सुरक्षा के निम्न स्तर के कारण इन्हें अपने नागरिकों को बेहतर डिजिटल सेवा प्रदान करने में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली है।
  • वहनीयता: इंटरनेट की वहनीयता इसकी पहुँच को सुनिश्चित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है, हालाँकि अन्य आधारों की तुलना में DQL के साथ इसका परस्पर संबंध काफी कम है।
    • उदाहरण के लिये, कुछ दक्षिणी या पूर्वी यूरोपीय देशों में इंटरनेट कम खर्चीला है, लेकिन वहाँ के लोग अभी भी औसत डिजिटल गुणवत्ता से अधिक इसका आनंद उठाते हैं।
  • इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर: COVID-19 महामारी के दौरान जहाँ बैठकों की जगह वीडियो कॉन्फ्रेंस ने ले ली है ऐसे में इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिरता एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया। नतीजतन, इसने लोगों के डिजिटल जीवन की गुणवत्ता को काफी प्रभावित कर दिया है।
    • लॉकडाउन के पहले महीने के दौरान, 85 देशों में से 49 में मोबाइल इंटरनेट की गति बहुत खराब रही जबकि 44 देशों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन की गति खराब रही।
  • ग्लोबल रैंकिंग:
    • उच्चतम DQL वाले 10 देशों में से 7 यूरोप में हैं, जिसमें डेनमार्क 85 देशों में अग्रणी है।
      • स्कैंडिनेवियाई देशों ने अपने नागरिकों को उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल सेवा प्रदान करने में उत्कृष्टता हासिल की है।
    • अमेरिकी महाद्वीप में कनाडा, एशिया में जापान, अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका और ओशिनिया में न्यूज़ीलैंड शीर्ष पर है।
  • भारतीय रैंकिंग: भारत 85 देशों में से 57 के समग्र रैंक पर है।
    • इंटरनेट अफोर्डेबिलिटी/वहनीयता: 9वां स्थान, UK, USA और चीन जैसे देशों से बेहतर प्रदर्शन।
    • इंटरनेट की गुणवत्ता: 78वां स्थान, इस श्रेणी में लगभग सबसे नीचे।
    • ई-इन्फ्रास्ट्रक्चर: ग्वाटेमाला और श्रीलंका जैसे देशों से नीचे 79वां स्थान।
    • इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा: 57वां स्थान।
    • ई-गवर्नमेंट: भारत का स्थान 15वां, न्यूज़ीलैंड और इटली जैसे देशों से ठीक नीचे।

इंटरनेट से संबंधित सरकारी पहल

  • डिजिटल इंडिया प्रोग्राम: यह भारत को ज्ञान आधारित परिवर्तन के लिये तैयार करने हेतु चलाया गया एक समग्र कार्यक्रम है।
    • ई-क्रांति: राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना 2.0, जो कि डिजिटल इंडिया पहल का एक आवश्यक स्तंभ है।
  • डिजिलॉकर: यह भारतीय नागरिकों को क्लाउड पर कुछ आधिकारिक दस्तावेज़ों को संग्रहीत करने में सक्षम बनाता है।
  • BHIM App: डिजिटल भुगतान में सक्षम बनाना।
  • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल अभियान अभियान: नागरिकों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना।
  • भारत नेट कार्यक्रम: सभी ग्राम पंचायतों में एक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क स्थापित करना।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

धन्वंतरि रथ: आयुर्वेद संबंधी स्वास्थ्य सेवाएँ

प्रिलिम्स के लिये

धन्वंतरि रथ

मेन्स के लिये

आयुर्वेद का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

दिल्ली पुलिस की आवासीय कॉलोनियों में संरक्षणकारी और संवर्द्धनकारी स्वास्थ्य सेवाओं की आयुर्वेदिक पद्धति पहुँचाने के लिये दिल्ली पुलिस और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (All India Institute of Ayurveda-AIIA) ने एक MoU पर हस्ताक्षर किये हैं। ये सेवाएँ ‘धन्वंतरि रथ’ नामक एक चलती-फिरती इकाई तथा पुलिस कल्याण केंद्रों के माध्यम से प्रदान की जाएंगी।

प्रमुख बिंदु

  • धन्वंतरि रथ और पुलिस कल्याण केंद्रों की पहुँच AIIA की OPD (OutPatient Department) सेवाओं तक होंगी और इनका लक्ष्य आयुर्वेदिक निवारक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के माध्यम से दिल्ली पुलिस के परिवारों को लाभान्वित करना है।
  • धन्वंतरि रथ- आयुर्वेद स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की चलती-फिरती इकाई में डॉक्टरों की एक टीम शामिल होगी जो नियमित रूप से दिल्ली पुलिस की कॉलोनियों का दौरा करेगी।
    • इन आयुर्वेदिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से विभिन्न रोगों के प्रसार और अस्पतालों में रेफरल की संख्या को कम करने में सहायता मिलेगी, जिससे रोगियों की संख्या के साथ-साथ स्वास्थ्य प्रणालियों की लागत में भी कमी आएगी।
  • इससे पहले, AIIA और दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त उपक्रम के रूप में आयुरक्षा-AYURAKSHA की शुरुआत की गई थी, इसे आयुर्वेदिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के उपायों के माध्यम से दिल्ली पुलिस के कर्मियों जैसे फ्रंटलाइन कोविड योद्धाओं के स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिये शुरू किया गया था।

आयुर्वेद (Ayurveda)

  • आयुर्वेद ‘आयु’ और ‘वेद’ नामक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है जीवन विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार जीवन के उद्देश्यों यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये स्वास्थ्य पूर्वपेक्षित है।
  • यह मानव के सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक पहलुओं का समाकलन करता है, क्योंकि ये सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
  • आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद में न केवल उपचार होता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है, जिससे जीवन लंबा और खुशहाल हो जाता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परन्तु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। अतः आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्त्वों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने पर भी बल दिया जाता है, ताकि व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो।
    • अथर्ववेद मुख्य रूप से व्यापक आयुर्वेदिक जानकारी से संबंधित है। इसीलिये आयुर्वेद को अथर्ववेद की उप-शाखा कहा जाता है।
  • आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) मंत्रालय का गठन वर्ष 2014 में स्वास्थ्य देखभाल की आयुष प्रणालियों के इष्टतम विकास और प्रसार को सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (All India Institute of Ayurveda)

  • यह आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • इसकी कल्पना आयुर्वेद के लिये एक शीर्ष संस्थान के रूप में की गई है।
  • इसका लक्ष्य आयुर्वेद के पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी के बीच एक तालमेल स्थापित करना है।
  • यह संस्थान आयुर्वेद के विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट पाठ्यक्रम प्रदान करने के साथ-साथ आयुर्वेद, औषधि विकास, मानकीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण, सुरक्षा मूल्यांकन और आयुर्वेदिक चिकित्सा के वैज्ञानिक सत्यापन के मौलिक अनुसंधान पर केंद्रित है।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत-पीआइबी


भारतीय राजनीति

जन्म स्थान के आधार पर आरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद-16, डी. पी. जोशी बनाम मध्य भारत मामला, 1955

मेन्स के लिये:

जन्म स्थान के आधार पर आरक्षण प्रदान करने का आलोचनात्मक परीक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि सरकारी नौकरियाँ राज्य के "बच्चों" के लिये आरक्षित होंगी और इसके लिये कानूनी प्रावधान तैयार किये जाएंगे।

प्रमुख बिंदु

  • जन्म स्थान के आधार पर आरक्षण प्रदान करने के विरुद्ध तर्क:.

    • भारत के संविधान में अनुच्छेद-16 सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता को संदर्भित करता है।
      • अनुच्छेद 16(1) के अनुसार राज्य के अधीन किसी भी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी।
      • अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
    • अधिवास और निवास के आधार पर आरक्षण का अर्थ भेदभाव होगा क्योंकि मात्र न्यूनतम प्रस्थान भी एक मेधावी उम्मीदवार को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करता है।
    • इस तरह की संकीर्णता क्षेत्रीयता को प्रोत्साहित करती है और राष्ट्र की एकता के लिये खतरा है।
  • जन्म स्थान के आधार पर आरक्षण प्रदान करने के पक्ष में तर्क:

    • अनुच्छेद 16(3), निवास (न कि जन्म स्थान) के आधार पर सरकारी नियुक्तियों में प्रावधान करने की अनुमति देता है।
      • प्रायः कुछ राज्य स्थानीय लोगों के लिये सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने के लिये कानून में मौजूद खामियों का उपयोग करते रहते हैं। इसके लिये वे भाषा या एक निश्चित अवधि के लिये राज्य में निवास/अध्ययन का प्रमाण जैसे मानदंडों का इस्तेमाल करते हैं।
      • महाराष्ट्र में केवल मराठी भाषा में निपुण 15 वर्षों से राज्य में रहने वाले लोगों को पात्र माना जाता हैं।
      • जम्मू और कश्मीर में भी सरकारी नौकरियाँ केवल "अधिवासियों" के लिये आरक्षित है।
      • पश्चिम बंगाल में कुछ पदों पर भर्ती के लिये बंगाली में पढ़ना और लिखना आना एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है।
      • वर्ष 2019 में कर्नाटक सरकार ने राज्य में लिपिकों और कारखाने की नौकरियों में निजी नियोक्ताओं को कन्नड़ लोगों को "प्राथमिकता" देने के लिये एक अधिसूचना जारी की।
    • इस संदर्भ में अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि राज्य के निवासियों को अधिमान्य उपचार देने से राज्य के संसाधनों के सही आवंटन में मदद मिलेगी और लोगों को अपने राज्य की सीमाओं के भीतर काम करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
    • इससे पिछड़े राज्यों से महानगरों में लोगों के प्रवास को रोकने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है, जिससे ऐसे शहरों पर बोझ कम हो जाता है।

अधिवास स्थिति और जन्म स्थान के बीच का अंतर

  • डी.पी. जोशी बनाम मध्य भारत मामले (1955) में सर्वोच्च न्यायालय (SC) के निर्णयानुसार, अधिवास या निवास स्थान एक प्रवाही अवधारणा है अर्थात् जन्म स्थान के विपरीत यह समय-समय पर बदल सकती है, परंतु जन्म स्थान निश्चित होता है।
  • अधिवास का अर्थ है किसी व्यक्ति का स्थायी निवास।
  • जन्म स्थान उन आधारों में से एक है जिस पर अधिवास का दर्जा दिया जाता है।

SC का निर्णय:

  • वर्ष 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा जारी एक भर्ती अधिसूचना पर रोक लगा दी थी, जिसमें उन महिलाओं के लिये वरीयता निर्धारित की गई थी जो राज्य की "मूल निवासी" थी।
  • कैलाश चंद शर्मा बनाम राजस्थान राज्य मामले, 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ‘निवास’ चाहे राज्य, ज़िले या किसी अन्य क्षेत्र में हो, अधिमान्य आरक्षण या उपचार का आधार नहीं हो सकता।
  • संविधान विशेष रूप से जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है, सर्वोच्च न्यायालय ने डीपी जोशी बनाम मध्य भारत मामले (1955) में अधिवास आरक्षण को, विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों में, संवैधानिक माना है।

आगे की राह

  • राज्य में जन्म लेने वाले उम्मीदवारों को आरक्षण देने का कदम संवैधानिक समानता और बंधुत्त्व की भावना के विरुद्ध है। जैसाकि हमेशा देखा गया है इस तरह के राजनीतिक रूप से प्रेरित निर्णय को न्यायपालिका द्वारा पलट दिया जाता है, अतीत में भी कई बार ऐसा हुआ है। संभवतः इस बार भी ऐसा ही हो।
  • इसके अलावा सरकार गारंटी के रूप में रोज़गार प्रदान करने वाली कोई एजेंसी नहीं है, बल्कि एक प्राधिकरण है जो अपनी नीतियों के माध्यम से एक ऐसा वातावरण तैयार करती है जो आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करता है। इस प्रकार के निर्णय लेते समय सरकार को संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

रोज़गार संबंधी आंकड़े:CMIE

प्रिलिम्स के लिये:

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी

मेन्स के लिये:

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी द्वारा जारी भारत में रोज़गार से संबंधित आंकड़े

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy-CMIE) ने COVID-19 लॉकडाउन अवधि (अप्रैल-जुलाई 2020) के दौरान प्राप्त अथवा खोई गई नौकरियों से संबंधित डेटा जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • वेतनभोगी नौकरियाँ:

    • अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान इस श्रेणी में कुल 18.9 मिलियन का नुकसान हुआ।
      • अप्रैल में 17.7 मिलियन वेतनभोगी नौकरियों का नुकसान हुआ। जून में 3.9 मिलियन नौकरियाँ प्राप्त करने के बाद, जुलाई में 5 मिलियन नौकरियाँ फिर से खो गईं।
    • रोज़गार की इस श्रेणी के अंतर्गत रोज़गार की बेहतर शर्तों के साथ-साथ बेहतर वेतन प्राप्त होता है, और ग्रामीण भागों की तुलना में देश के शहरी हिस्सों में इनकी हिस्सेदारी भी अधिक होती हैं।
    • ये आर्थिक झटकों के प्रति अधिक लचीलापन लिये होती हैं और ये आसानी से नष्ट नहीं होती हैं, हालाँकि एक बार खो जाने के बाद इन्हें पुनः प्राप्त करना अधिक कठिन होता है।
    • भारत में कुल रोज़गार का केवल 21% वेतनभोगी रोज़गार के रूप में मौजूद है।
    • शहरी वेतनभोगी नौकरियों की हानि से अर्थव्यवस्था पर विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, इसके अलावा मध्यम वर्गीय परिवारों को भी वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
      • चूँकि लॉकडाउन की घोषणा के बाद कई क्षेत्रों की कंपनियों ने वेतन में कटौती और बिना वेतन के अवकाश के साथ-साथ नौकरी में कटौती जैसे कदम उठाए हैं।
  • अनौपचारिक और गैर-वेतनभोगी नौकरियाँ (Informal and Non-Salaried Jobs):

    • इस श्रेणी में अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान सुधार हुआ जो जुलाई 2020 में बढ़कर 325.6 मिलियन हो गया, जबकि 2019 में यह 317.6 मिलियन था अर्थात् इस श्रेणी में कुल 2.5% की वृद्धि हुई।
      • इसका प्रमुख कारण लॉकडाउन का चरणबद्ध तरीके से खुलना है।
  • गैर-वेतनभोगी नौकरियाँ:

    • रोज़गार की इस श्रेणी में कुल रोज़गार का लगभग 32% हिस्सा शामिल होता था लेकिन अप्रैल 2020 में इसमें 75% की कमी देखने को मिली।
      • अप्रैल 2020 में खोई कुल 121.5 मिलियन नौकरियों में से 91.2 मिलियन नौकरियाँ इसी श्रेणी से है।
      • छोटे व्यापारियों, फेरीवालों और दिहाड़ी मज़दूरों को लॉकडाउन से सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।
  • कृषि क्षेत्र से जुड़ी नौकरियाँ:

    • गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरियों की कमी के कारण लोग कृषि रोज़गार की ओर बढ़ रहे हैं। अप्रैल-जुलाई 2020 की अवधि में कृषि क्षेत्र में 14.9 मिलियन रोज़गार प्राप्त हुए।
    • वर्ष 2019 में भारत में 42.39% कार्यबल कृषि क्षेत्र में कार्यरत था।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी

  • CMIE एक प्रमुख व्यावसायिक इन्फोर्मेशन कंपनी है। वर्ष 1976 में इसे मुख्य रूप से स्वतंत्र थिंक टैंक के रूप में स्थापित किया गया था।
  • CMIE आर्थिक और व्यावसायिक डेटाबेस उपलब्ध कराता है और निर्णयन तथा अनुसंधान के लिये विशेष विश्लेषणात्मक उपकरण विकसित करता है। यह अर्थव्यवस्था में नित नए रूझानों को समझने के लिये डेटा का विश्लेषण करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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