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डेली न्यूज़

  • 19 Jun, 2019
  • 51 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन एवं भारत की प्रमुख फसलों पर उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक ने यह दावा किया है कि भारत का अनाज उत्पादन जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है तथा चरम मौसमी स्थितियों के चलते चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय रूप से गिरावट आने की संभावना है।

  • उल्लेखनीय है कि यह शोध अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) के शोधकर्त्ताओं द्वारा भारत की पाँच प्रमुख फसलों: रागी (finger millet), मक्का (Maize), बाज़रा (Pearl Maize), चारा (Sorghum ) और चावल (Rice) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया गया। ये प्रमुख पाँच फसलें भारत में खाद्य आपूर्ति को पूर्णता प्रदान करती है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में जून-से-सितंबर के मध्य मानसून के दौरान (जो भारत में अनाज उत्पादन के लिये सबसे अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं) इन फसलों का व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है।
  • जर्नल इनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स (Environmental Research Letters) में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि मक्का (Maize), बाज़रा (Pearl Maize), चारा (Sorghum ) जैसी फसलें चरम मौसमी (Extreme Weather) स्थितियों के प्रति अनुकूलन को प्रदर्शित करती हैं।
  • भारत में अनाज के तौर पर मुख्य फसल चावल के उत्पादन में तेज़ी से गिरावट देखी गई है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत में केवल एक फसल ‘चावल’ पर निर्भरता में वृद्धि होती है तो भारत की खाद्य आपूर्ति पर भी संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ेगा। इसे कम करने के लिये चार वैकल्पिक अनाजों के उत्पादन में वृद्धि करके भारतीय अनाज उत्पादन में विविधता को कम किया जा सकता हैं, विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में जहाँ वैकल्पिक फसलों की पैदावार चावल के बराबर होती है।
  • ऐसा करने से सूखे या चरम मौसमी स्थितियों के दौरान देश की विशाल और बढ़ती आबादी के लिये खाद्य आपूर्ति के संकट को कम किया जा सकता है।
  • भारत में तापमान और वर्षा की मात्रा में भी निरंतर परिवर्तन देखने को मिलता है, जिसके चलते फसलों के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। साथ ही भारतीय क्षेत्र में सूखे और तूफान जैसी आपदाओं (जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के कारण इनकी निरंतरता में भी वृद्धि होती जा रही हैं) के कारण फसल के उत्पादन के बचाव संबंधी उपायों को खोजे जाने की आवश्यकता है।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं ने भारत के 707 ज़िलों में से 593 ज़िलों से फसलों की पैदावार, तापमान और वर्षा संबंधी आँकड़ों को (राष्ट्रीय स्तर पर)एकत्रित किया। इसमें गत 46 वर्षों (1966-2011) के आँकड़ों को शामिल किया गया हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने तापमान और वर्षा संबंधी आँकड़ों का भी इस्तेमाल किया तथा इन्हीं जलवायु चरों (तापमान और वर्षा संबंधी आँकड़ों) के आधार पर फसलों की उपज आदि की भविष्यवाणी भी किया जाती है।
  • इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को संयमित करने हेतु फसलों में विविधता लाए जाने से खाद्य-उत्पादन प्रणाली को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • साथ ही भारत में वैकल्पिक अनाज के उत्पादन को बढ़ाकर फसल की पोषकता में सुधार किया जा सकता है, पानी की बचत और ऊर्जा की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है तथा कृषि से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी लाई जा सकती है।

जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये कृषि को सक्षम बनाने हेतु कुछ सुझाव

  • समाधान संरक्षण कृषि (Conservation Farming) और शुष्क कृषि (Dryland Agriculture) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ प्रत्येक गाँव को विभिन्न मौसमों में फसल कीटों और महामारियों के बारे में मौसम आधारित पूर्व चेतावनी के साथ समय पर वर्षा के पूर्वानुमान की जानकारी दी जानी चाहिये।
  • कृषि अनुसंधान कार्यक्रमों के तहत शुष्क भूमि अनुसंधान पर पुनः ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इसके तहत ऐसे बीजों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये जो सूखे जैसी स्थिति में फसल उत्पादन जोखिम को 50% तक कम कर सकते हैं।
  • गेहूँ की फसल रोपण के समय में कुछ फेरबदल करने पर विचार किया जाना चाहिये। एक अनुमान के अनुसार, ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति को 60-75% तक कम किया जा सकता है।
  • किसानों को मिलने वाले फसल बीमा कवरेज़ और उन्हें दिये जाने वाले कर्ज़ की मात्रा बढ़ाने की आवश्यकता है। सभी फसलों को बीमा कवरेज देने के लिये इस योजना का विस्तार किया जाना चाहिये। फसल बीमा के लिये ग्रामीण बीमा विकास कोष (Rural Insurance Development Fund) का दायरा बढ़ाया जाना चाहिये। कर्ज़ पर लिये जाने वाले ब्याज पर किसानों को मिलने वाली सब्सिडी को सरकार की सहायता से बढ़ाया जाना चाहिये। इस संबंध में सरकार द्वारा हाल ही में लघु और सीमांत किसानों को प्रतिमाह दी जाने वाली सहायता राशि एक स्वागत योग्य कदम है।

शून्य जुताई प्रौद्योगिकी और लेज़र भूमि स्तर

  • परंपरागत खेती की तुलना में शून्य जुताई और लेज़र भूमि स्तर के मामले में तकनीकी दक्षता अधिक पाई जाती है। लेज़र भूमि स्तर और शून्य जुताई प्रौद्योगिकी पारंपरिक जुताई की तुलना में अधिक टिकाऊ है।
  • यह देखने को मिलता है कि यदि किसान जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाता है तो उसके जोखिम स्तर में कमी के साथ अपेक्षित आय में वृद्धि होगी। लेकिन जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों से प्राप्त कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों के बावजूद यह अभी तक भारत में लोकप्रिय नहीं हो पाई है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारतीय अर्थव्यवस्था

औपचारिक क्षेत्र में 70 लाख रोज़गार अवसरों का सृजन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फ्लेक्सी-स्टाफिंग उद्योग (Flexi-Staffing Industry) की संस्था भारतीय कर्मचारी महासंघ (Indian Staffing Federation-ISF) ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार बीते तीन वर्षों में हुए बड़े सुधारों और महत्त्वपूर्ण नीतियों के अनुपालन के कारण वर्ष 2015 से वर्ष 2018 के बीच लगभग 70 लाख रोज़गार अवसरों का सृजन हुआ है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • यह रिपोर्ट “रोज़गार के सृजन और फ्लेक्सी-स्टाफिंग पर प्रमुख सुधारों का प्रभाव” (Impact of key reforms on job formalisation and flexi-staffing) के नाम से जारी की गई है।
  • यहाँ पर फ्लेक्सी-स्टाफिंग का अर्थ अस्थायी भर्तियों से है।
  • रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था ISF के अध्यक्ष के अनुसार, बीते तीन वर्षों में कई नीतियों जैसे- मज़दूरी भुगतान अधिनियम (Payment of Wages Act) और EPF आदि में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और संशोधन हुए हैं तथा औपचारिक क्षेत्र पर भी इसके प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को मिले हैं।
  • ISF का मानना है कि औपचारिक क्षेत्र में सृजित हुए इन 70 लाख रोज़गारों के पीछे का प्रमुख कारण यही प्रभाव है।
  • रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2015 से अभी तक 1.2 मिलियन कर्मचारियों को अस्थायी कर्मचारियों के रूप में रोज़गार से जोड़ा गया है।
  • इसके अलावा अगले तीन वर्षों में 1.53 मिलियन अतिरिक्त कर्मचारी भी अस्थायी कर्मचारी के रूप में रोज़गार से जोड़े जाएंगे।
  • रिपोर्ट के अनुसार, औपचारिकरण (Formalisation), औद्योगीकरण (Industrialisation), शहरीकरण (Urbanisation), वित्तीयकरण (Financialisation) और स्किलिंग (Skilling) के माध्यम से कुल मांग में वृद्धि करके रोज़गार सृजन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
  • रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वर्ष 2021 तक भारत के पास 6.1 मिलियन अस्थायी कर्मचारी मौजूद होंगे।
  • रसद (logistics), बैंकिंग (Banking), वित्तीय और बीमा (Financial and Insurance), आई.टी. (IT) एवं सरकार पाँच ऐसे क्षेत्र हैं जो वर्ष 2021 तक कुल रोज़गार का 55 प्रतिशत हिस्सा सृजित करेंगे।

क्या है ISF?

  • ISF एक सर्वोच्च संस्थान है जिसकी स्थापना का उद्देश्य निजी रोज़गार सेवाओं का प्रतिनिधित्व करना है।
  • इसे कर्मचारी उद्योगों की ओर से सरकार तथा अन्य व्यापार संस्थाओं के साथ तालमेल बैठाने और बातचीत करने के लिये अधिकृत किया गया है।
  • ISF द्वारा सभी सदस्य कंपनियों के लिये आचार-संहिता तैयार की गई है जिसका पालन करना सभी के लिये अनिवार्य है।

स्रोत- द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


शासन व्यवस्था

केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995

चर्चा में क्यों?

सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) ने डांस आधारित रियलिटी शो में बच्‍चों के डांस संबंधी प्रदर्शन पर संज्ञान लेते हुए निजी उपग्रह टीवी चैनलों को परामर्श जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय द्वारा जारी परामर्श में सभी निजी उपग्रह टीवी चैनलों से अपेक्षा की गई है कि वे इस संबंध में केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 [Cable Television Network (Regulation) Act, 1995] के तहत निर्धारित कार्यक्रम और विज्ञापन संहिताओं में निहित प्रावधानों एवं नियमों का पालन करेंगे।

केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के अनुसार

  • टीवी पर कोई भी ऐसा कार्यक्रम नहीं दिखाया जाना चाहिये जो बच्चों की छवि को खराब करता हो।
  • ऐसे कार्यक्रमों में किसी तरह की अभ्रद भाषा और हिसंक दृश्‍यों का प्रयोग भी नहीं होना चाहिये।
  • ऐसे कार्यक्रमों में किसी तरह की अभ्रद भाषा और हिसंक दृश्‍यों का प्रयोग भी नहीं होना चाहिये।
  • निजी उपग्रह चैनलों को जारी परामर्श में कहा गया है कि वे नृत्‍य वाले रियलिटी शो या ऐसे ही अन्‍य कार्यक्रमों में बच्‍चों को ऐसे गलत तरीकों से पेश नहीं करें जिससे उनकी छवि खराब होती हो। मंत्रालय ने चैनलों को इस बारे में अधिकतम संयम, संवेदनशीलता और सतर्कता बरतने की सलाह दी है।

क्यों ज़रूरी था परामर्श जारी करना

  • सूचना और प्रसारण मंत्रालय का मानना है कि कई डांस आधारित रियलिटी टीवी शो ऐसे हैं जिनमें छोटे बच्चों को ऐसे नृत्य करते दिखाया जाता है जो मूल रूप से फिल्मों और मनोरंजन के अन्‍य लोकप्रिय माध्‍यमों में वयस्कों द्वारा किये जाते हैं।
  • इस प्रकार के नृत्य अक्सर उत्‍तेजक होने के साथ ही बच्‍चों की उम्र के अनुकूल भी नहीं होते हैं। इस तरह के कृत्य छोटी-सी उम्र में बच्चों पर चिंताजनक और बेहद तनावपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

अधिनियम के बारे में

  • टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले सभी कार्यक्रमों एवं विज्ञापनों (जिनका प्रसारण/पुन: प्रसारण केबल टीवी नेटवर्क के माध्यम से किया जाता है) के लिये केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और उसके अधीन बनाए गए नियमों में दिये गए प्रावधानों का अनुपालन करना अनिवार्य होता है।
  • केबल नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के प्रावधान क्षेत्रीय भाषा चैनलों सहित सभी निजी सैटेलाइट/केबल टीवी चैनलों पर लागू होते हैं।
  • उक्‍त कार्यक्रम संहिता में उन समस्‍त सिद्धांतों का निर्धारण किया गया है जिनका इन टीवी चैनलों द्वारा अनुपालन किया जाना आवश्‍यक होता है। यदि निजी सैटेलाइट/केबल टीवी चैनलों द्वारा समाचारों सहित अन्य कार्यक्रमों के प्रसारण से संबंधित कोई मामला पाया जाता है, तो उक्‍त अधिनियम के अनुसार उपयुक्‍त कार्रवाई की जाती है।

शिकायतों की जाँच के लिये अंतर-मंत्रालयी समिति

  • कार्यक्रम एवं विज्ञापन संहिताओं के उल्‍लंघन के विरूद्ध प्राप्‍त होने वाली विशिष्‍ट शिकायतों की जाँच करने अथवा उनका स्‍व-प्रेरणा से संज्ञान लेने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी समिति (Inter-Ministerial Committee-IMC) का गठन किया गया है तथा किसी प्रकार का उल्‍लंघन सत्‍यापित हो जाने पर उक्‍त अधिनियम और उसके अं‍तर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाती है।
  • इस अंतर-मंत्रालयी समिति में गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs), रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defense), विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs), विधि मंत्रालय (Ministry of Law), महिला व बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare), उपभोक्ता मामले मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs) एवं भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (Advertising Standards Council of India- ASCI) के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रा योजना के तहत ज़मानत मुक्त ऋण

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises-MSMEs) पर गठित विशेषज्ञों की एक समिति ने यह सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना,स्वंय सहायक समूहों और MSMEs के तहत दिये जाने वाले ज़मानत मुक्त (Collateral-Free) ऋणों की अधिकतम सीमा को 20 लाख रुपए तक बढ़ा दिया जाना चाहिये। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में इन योजनाओं के तहत 10 लाख रुपए तक के जमानत मुक्त (Collateral-Free) ऋण प्रदान किये जा रहें हैं।

मुख्य बिंदु:

  • यदि केंद्रीय बैंक विशेषज्ञों के इस सुझाव को मंज़ूरी प्रदान करता है तो बैंकिंग नियामकों (Banking Regulator) को 1 जुलाई, 2010 के अपने परिपत्र (Circular) में संशोधन करना होगा जो ज़मानत मुक्त ऋणों की सीमा को 10 लाख रुपए तक निर्धारित करता है।
  • उपरोक्त सुझाव उस रिपोर्ट का एक हिस्सा है जिसे RBI द्वारा गठित आठ सदस्यीय समिति (भारत में MSMEs के ढाँचे की समीक्षा करने के लिये गठित समिति) द्वारा तैयार किया गया है।
  • समिति द्वारा यह रिपोर्ट SEBI के पूर्व अध्यक्ष यू. के. सिन्हा के नेतृत्व में तैयार की गई है। समिति ने MSMEs की आर्थिक व वित्तीय स्थिरता के लिये कई सारे दीर्घकालीन सुझाव प्रस्तुत किये हैं।
  • समिति के सुझाव ऐसे समय में आए हैं जब सरकार MSMEs की परिभाषा को बदलने पर विचार कर रही है।
  • MSMEs के संदर्भ में वर्ष 2006 की परिभाषा के अनुसार,
    • विनिर्माण इकाई के लिये
      • 25 लाख रुपए से कम निवेश वाली इकाइयाँ सूक्ष्म उद्योग कहलाती हैं,
      • 25 लाख से 5 करोड़ रुपए तक के निवेश वाली इकाइयाँ लघु उद्योग कहलाती हैं, और
      • 5 करोड़ से 10 करोड़ रुपए के निवेश वाली इकाइयाँ मध्यम उद्योग कहलाती हैं।
    • सेवा इकाई के लिये
      • 10 लाख रुपए से कम निवेश वाली इकाइयाँ सूक्ष्म उद्योग कहलाती हैं,
      • 10 लाख से 2 करोड़ रुपए तक के निवेश वाली इकाइयाँ लघु उद्योग कहलाती हैं, और
      • 2 करोड़ से 5 करोड़ रुपए तक के निवेश वाली इकाइयाँ मध्यम उद्योग कहलाती हैं।
  • परिभाषा में परिवर्तन करने का प्रारूप कैबिनेट द्वारा मंज़ूर कर दिया गया है, परंतु इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।
  • नई परिभाषा के अनुसार,
    • उद्योग निर्धारण के लिये निवेश के स्थान पर कुल सालाना बिक्री को आधार माना जाएगा।
    • विनिर्माण इकाई और सेवा इकाई में कोई अंतर नहीं होगा।
    • 5 करोड़ रुपए की कुल बिक्री वाली इकाइयाँ सूक्ष्म उद्योग होंगी।
    • 75 करोड़ रुपए की कुल बिक्री वाली इकाइयाँ लघु उद्योग होंगी, और
    • 250 करोड़ रुपए की कुल बिक्री वाली इकाइयाँ मध्यम उद्योग होंगी।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना :

  • इस योजना की शुरुआत अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी। इसके तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों के उद्योगों को ज़मानत मुक्त ऋण प्रदान किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों की व्यवस्था है:
    • शिशु - 50,000 रुपए तक के ऋण
    • किशोर - 50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण
    • तरुण - 500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण
  • आँकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत वर्ष 2018-19 में लगभग 60 मिलियन ऋण प्रदान किये गये थे जिनका मौद्रिक मूल्य 3 खरब (Trillion) रुपए से भी अधिक था।
  • यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि इस योजना की 75 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएँ हैं।

स्रोत- बिज़नेस स्‍टैंडर्ड


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बेट नेशनल पार्क में खत्म होगा VIP कल्चर

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Reserve) में अधिकारियों ने यह निर्णय लिया है कि वे किसी भी VIP के पार्क में रूकने व सफारी की सुविधा प्रदान करने के अनुरोध को स्वीकार नहीं करेंगे, चाहे वे स्वयं के लिये अनुरोध करें या अपने किसी रिश्तेदारों के लिये।

  • ज्ञातव्य है कि पार्क प्रबंधन कई वर्षों से चले आ रहे इस VIP कल्चर से काफी परेशान था, सरकारी तंत्र से लेकर राजनीतिज्ञों की ओर से अक्सर कार्बेट पार्क में सफारी के साथ ही वन विश्राम गृहों में ठहरने समेत अन्य व्यवस्थाओं की मांग की जाती थी।

मुख्य बिंदु :

  • पार्क प्रबंधन के अनुसार बीते कुछ दिनों में उन्हें कई सारे ऐसे अनुरोध प्राप्त हुए थे जिनमें अधिकारियों द्वारा उनके रिश्तेदारों और मित्रों को पार्क में विश्राम गृह उपलब्ध कराने और सफारी की सुविधा देने की बात कही गई थी।
  • इसी कारणवश प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि वे न सिर्फ उस अनुरोध को अस्वीकार करेंगे बल्कि उच्च अधिकारियों को भी इस संदर्भ में सूचित किया जाएगा।
  • इस निर्णय के अस्तित्व में आने से कार्बेट नेशनल पार्क में VIP राज खत्म हो जाएगा।
  • प्रबंधन के इस निर्णय में राज्य अतिथियों; जिनमें राष्ट्रपति सहित प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायधीश और तीनों सेनाओं के प्रमुख शामिल हैं, को छूट दी गई है।

कार्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Reserve) :

  • कार्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Reserve) भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क है जिसकी स्थापना वर्ष 1936 में हुई थी।
  • स्थापना के समय इसका नाम हैली नेशनल पार्क (Hailey National Park) था, जिसे वर्ष 1957 में बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया। महान प्रकृतिवादी और संरक्षणवादी स्वर्गीय जिम कॉर्बेट की याद में इसे यह नाम दिया गया।
  • यह पार्क कुल 521 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • पार्क से बहने वाली प्रमुख नदियाँ रामगंगा, सोनानदी, मंडल और पलायन हैं।

स्रोत- बिज़नेस स्‍टैंडर्ड


भारतीय राजनीति

न्यायालयों में सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पठानकोट की एक विशेष न्यायालय ने कठुआ मामले पर अपना फैसला सुनाया। यह निर्णय अपराध के अठारह महीने बाद दिया गया। यह अपेक्षाकृत एक त्वरित निर्णय था क्योंकि भारत में ज़्यादातर मामलों में पुलिस और न्यायपालिका दोनों स्तरों पर देरी के कारण उन्हें निस्तारित करने में अधिक समय लगता है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत की अधीनस्थ अदालतों में ऐसे 31 मिलियन मामलों में से एक तिहाई से अधिक मामले तीन वर्षों से लंबित हैं जिनमें अभी तक फर्स्ट-पोर्ट-ऑफ-कॉल (first port-of-call) भी नहीं हुआ है। जबकि उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के संदर्भ में यह आँकड़ा और भी अधिक है, देश भर के सभी उच्च न्यायालयों में 8 मिलियन मामलों में से आधे मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं।
  • वित्त मंत्रालय के वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, आर्थिक और वाणिज्यिक मामलों का धीमी गति से निस्तारण देश में निवेश चक्र को पुनर्जीवित करने वाले सबसे बड़े अवरोधों में से एक है। हालाँकि सरकार द्वारा व्यापार और वाणिज्य को आसान बनाने के लिये व्यापक रूप से प्रयास किये जा रहे हैं तथापि लंबित मामलों के चलते निवेश पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जब न्यायालयों में दर्ज मामले वर्षों तक लंबित रहते हैं, तो इसका समाज और अर्थव्यवस्था दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • वर्तमान सरकार का अगला कदम व्यापार करने में आसानी से संबधित है जिसके अंतर्गत अपीलीय और न्यायिक क्षेत्र में लंबित मामलों का शीघ्र निपटान, सुनवाई में होने वाली देरी आदि को निस्तारित करने पर बल देना है।
  • इससे विवादों के समाधान और अनुबंध प्रवर्तन (Contract Enforcement) में बाधा उत्पन्न हो रही है, निवेश के हतोत्साहित (Discouraging Investment) होने से परियोजनाओं का कार्य बाधित होता है, साथ ही कर संग्रह में भी बाधा उत्पन्न होती है, करदाताओं पर तनाव बढ़ता है और कानूनी लागत में इज़ाफा होता है।
  • इसके लिये सरकार एवं न्यायपालिका में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है जिससे कानूनी विलंब (law Delay’s) के कारणों की पहचान करते हुए आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सकें।
  • समाचार पत्र द मिंट (Mint) के सर्वेक्षण के अनुसार, यह एक देशव्यापी समस्या है, लेकिन देश के कुछ राज्य की स्थिति तुलनात्मक रूप से अधिक खराब हैं, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और बिहार जैसे राज्यों के अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 50% से अधिक मामले बीते 3 वर्षों से लंबित पड़े हुए हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि निचली अदालतों में लंबित मामले का सीधा प्रभाव ऊपरी अदालतों पर पड़ता है एवं वहाँ भी मामले लंबित होने लगते हैं।
  • कोलकाता तथा उड़ीसा उच्च न्यायालय दोनों में संयुक्त रूप से 70% मामले तीन वर्षों से लंबित हैं। इसके विपरीत कुछ उच्च न्यायालय ऐसे भी हैं, जहाँ मामलों का निस्तारण अधिक तेज़ी से होता हैं। उदाहरण के लिये, पंजाब और हरियाणा में 6% से भी कम लंबित मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं।
  • कुल मिलाकर, देश के पूर्वी राज्यों में पश्चिमी राज्यों की तुलना में बहुत अधिक मुकदमें लंबित पड़े हुए हैं।
  • भारतीय न्यायिक प्रणाली के अंतर्गत लंबित मामलों के निपटारे की क्षमता, उसके पास उपलब्ध संसाधनों एवं लंबित मामलों की मात्रा और प्रक्रिया पर निर्भर करती है। वर्ष 2006 में भारत की निचली अदालतों में 15 मिलियन मामले लंबित थे और वर्ष 2017 में यह आँकड़ा बढ़कर 20 मिलियन हो गया।
  • विधिक शोधकर्त्ताओं के अनुसार, न्यायालयों में दाखिल होने वाले मामलों में वृद्धि देश के विकास का द्योतक होती है: यह न केवल एक समृद्ध समाज में अधिकारों के प्रति अधिक जागरूकता को प्रकट करती है बल्कि लोगों को अपने अधिकारों की सुरक्षा हेतु न्यायालयों की ओर रुख करने के लिये भी प्रोत्साहित करती है।
  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के उच्च न्यायालय भी रिट याचिकाओं (यह तब दायर की जाती है जब ऐसा प्रतीत हो कि मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है) को स्वीकार करने में अत्यधिक उदार रवैया अपनाने लगे है इस व्यवहार के चलते 26% रिट याचिकाएँ ऐसी हैं जो पिछले पाँच सालों से अधिक समय से लंबित पड़ी हैं।
  • इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ तो लगातार बढ़ा है, लेकिन उसके अनुरूप न्यायालय के संसाधनों में कोई वृद्धि नहीं हुई हैं। जिसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते 18 वर्षों में पहली बार भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सभी पदों पर नियुक्ति (31 न्यायाधीशों के साथ) पूर्ण हुई है। अन्य न्यायालयों में कालानुक्रमिक रूप से न्यायाधीशों की कमी बनी हुई हैं।
  • भारत के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों की स्वीकृत संख्या 1,049 है लेकिन वर्तमान में कार्यरत न्यायाधीशों की संख्या केवल 680 हैं अर्थात् लगभग 37% पद रिक्त है। इसी तरह निचली अदालतों में भी न्यायाधीशों के 25% पद रिक्त पड़े हैं।

आगे की राह

  • इसका स्पष्ट समाधान यह है कि अदालतों की स्वीकृत पदों की संख्या में वृद्धि करते हुए और अधिक न्यायाधीशों को नियुक्त करना होगा। वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर ने अनुमान व्यक्त किया था कि भारत में न्यायपालिकाओं में लंबित बैकलॉग मामलों को निस्तारित करने के लिये 70,000 अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता है।
  • पिछले कई वर्षों में विभिन्न आयोगों ने इस मुद्दे से व्यापक रूप से निपटने के लिये कई सिफारिशें पेश की हैं। उदाहरण के लिये, वर्ष 2005 में 11वें वित्त आयोग ने न्यायालयों में लंबित मामलों का तीव्रता से निस्तारण करने के लिये फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन की सिफारिश की थी।
  • हाल ही में वर्ष 2014 में 245वें विधि आयोग ने और अधिक छोटे मामलों (जैसे- यातायात अपराधों आदि) की सुनवाई के संदर्भ में हाल के कानून विशेषज्ञों द्वारा विशेष अदालतों की स्थापना किये जाने तथा निचली अदालतों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की सिफारिश की।
  • वर्ष 2018 में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने केंद्रीय न्यायिक सेवा आयोग की तर्ज पर निचली अदालतों के लिये एक केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया था। इनमें से कुछ सिफारिशों, जैसे- फास्ट-ट्रैक कोर्ट (कठुआ मामले में प्रयुक्त) को लागू भी किया गया, लेकिन अधिकतर सिफारिशों के संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की गई।

यह देखते हुए कि न्यायालयों में लंबित मामले भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, इस संदर्भ में जल्द-से-जल्द आवश्यक सुधार एवं प्रभावी उपाय किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: लाइव मिंट


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की स्वच्छता पर बड़ी छलांग

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में के अनुसार, भारत ने सहस्राब्दी (वर्ष 2000 से) की शुरुआत से अब तक बुनियादी आधारभूत सुविधाएँ प्रदान करने में बड़ी सफलता प्राप्त की है।

मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2000 से 2017 के मध्य विश्व में 65 करोड़ लोगों ने खुले में शौच से मुक्ति प्राप्त की है इनमें से दो तिहाई लोग भारत से हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 2030 (Sustainable Development Goals 2030) का लक्ष्य क्रमांक 6 स्वच्छता से संबंधित है। भारत में स्वच्छता की प्रगति ने विश्व स्तर पर इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • वर्ष 2000 से 2017 के मध्य भारत समेत दक्षिण एशिया के तीन चौथाई लोगों ने खुले में शौच जाना बंद कर दिया है।
  • 200 करोड़ से भी अधिक लोगों को विश्व में आधारभूत स्वच्छता सेवाएँ प्राप्त हुईं है इनमें से 48 करोड़ लोग भारत से हैं।
  • भारत की इस सफलता में स्वच्छ भारत मिशन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। राजनीतिक नेतृत्व, सार्वजनिक वित्तपोषण, साझेदारी तथा लोगों की भागीदारी इस मिशन की सफलता के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं।
  • UNICEF और WHO के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम से यह प्रदर्शित होता है कि सुरक्षित पेयजल (जहाँ पहुँचने में 30 मिनट से अधिक समय ना लगता हो) तक भारतीय लोगों की पहुँच जो पहले वर्ष 2000 में 79 प्रतिशत थी अब बढ़कर 2017 में 93 प्रतिशत हो गई है।

चिंताएँ

  • इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2017 के मध्य भारत में नल द्वारा पीने के पानी की पहुँच में बिल्कुल भी प्रगति नहीं हुई है भारत में शहरी-ग्रामीण क्षेत्र के बीच बढ़ती असमानता को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है।
  • भारत में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत लाखो शौचालयों का निर्माण किया गया है। इन शौचालयों से बड़ी मात्रा में तरल एवं ठोस अपशिष्ट का निकास होता है। इस अपशिष्ट का सुरक्षित रूप से निस्तारण करने की क्षमता भारत के पास नहीं है। वर्तमान में भारत केवल 30 प्रतिशत अपशिष्ट का ही उपचार करने में सक्षम है वहीं इसका वैश्विक औसत 80 प्रतिशत है।
  • स्वच्छता का अधिकार सिर्फ स्वच्छ शौचालय उपयोग करने तक ही सीमित नहीं है। यह अधिकार यह भी सुनिश्चित करने के लिये है कि किसी के द्वारा फैलाए गए अपशिष्ट से कोई अन्य व्यक्ति प्रभावित न हो। भारत जैसे राष्ट्र में इसका अधिक नकारात्मक प्रभाव गरीबों और हासिये पर स्थित लोगों पर पड़ता है, इसको लेकर भी इस रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गई है।

स्वच्छ भारत मिशन क्या है?

घर, समाज और देश में स्वच्छता को जीवनशैली का अंग बनाने के लिये, सार्वभौमिक साफ-सफाई का यह अभियान 2014 में शुरू किया गया। जिसे 2 अक्तूबर, 2019 (महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती) तक पूरा कर लेना है। यह 1986 के केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, 1999 के टोटल सेनिटेशन कैंपेन एवं 2012 के निर्मल भारत अभियान से परिवर्द्धित एवं सुस्पष्ट कार्यक्रम है।

मिशन का उद्देश्य

  • भारत में खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना अर्थात् संपूर्ण देश को खुले में शौच करने से मुक्त (Open Defecation Free-ODF) घोषित करना, हर घर में शौचालय का निर्माण, जल की आपूर्ति और ठोस व तरल कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन करना है।
  • इस अभियान में सड़कों और फुटपाथों की सफाई, अनाधिकृत क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाना, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना तथा स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं के बारे में लोगों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाना शामिल हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization- WHO)

विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित है। इसकी स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गई और इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है। WHO संयुक्त राष्ट्र विकास समूह का सदस्य है।

यूनिसेफ

(United Nations Children's Fund/United Nations International Children's Emergency Fund- UNICEF)

  • इसे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष- यूनिसेफ (United Nations Children’s Fund) या संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष कहा जाता है।
  • यूनिसेफ का गठन वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र के एक अंग के रूप में किया गया था।
  • इसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध से प्रभावित हुए बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने तथा उन तक खाना और दवाएँ पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया था।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
  • ध्यातव्य है कि वर्तमान में 190 देश इसके सदस्य हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्त वर्ष 2020में पवन ऊर्जा में सुधार की संभावना

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) ने वित्त वर्ष 2020 में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में सुधार की संभावना व्यक्त की है। एजेंसी के अनुसार इस वित्त वर्ष में भारत की पवन ऊर्जा क्षमता में 3.5-4.0 गीगावाट (GW) की वृद्धि हो सकती है।

ICRA 1991 में अग्रणी वित्तीय/निवेश संस्थानों, वाणिज्यिक बैंकों द्वारा स्थापित भारतीय स्वतंत्र और पेशेवर निवेश सूचना और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है।

मुख्य बिंदु

  • वित्त वर्ष 2020 में 3.5-4.0 गीगावाट (GW) पवन ऊर्जा क्षमता में वृद्धि हो सकती है। सरकार द्वारा कुछ बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत होने तथा सरकार द्वारा किये गए कुछ उपाय भी इसमें सहायक हो सकते हैं।
  • भूमि अधिग्रहण और पारेषण कनेक्टिविटी जैसी समस्याएँ पवन ऊर्जा क्षेत्र के समक्ष महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिये सरकार भूमि अधिग्रहण के लिये राज्यों के साथ मिलकर कार्य कर रही है तथा अंतर-राज्यीय पारेषण के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये सुविधा प्रभार (Facilitation Charge) के रूप में प्रोत्साहन की पेशकश की जा रही है।
  • निष्पादन और वित्तपोषण भी इस क्षेत्र की प्रमुख समस्या है। वित्त की कमी एवं परियोजनाओं में देरी के कारण भी पवन ऊर्जा की वृद्धि दर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है।
  • पवन ऊर्जा की दरें (tariffs) लगातार नीचे बनीं हुई हैं। दरों का निम्न स्तर दीर्घकाल में पवन ऊर्जा की व्यावहारिकता (viability) पर प्रश्न चिह्न खड़े करता है। लेकिन यदि ऐसे स्थानों जहाँ पर पवन ऊर्जा की अधिक क्षमता है, परियोजनाएँ स्थापित कर दीर्घकालीन परियोजना के तहत इनको व्यवहारिक बनाया जा सकता है।
  • पवन ऊर्जा की क्षमता उन राज्यों में स्थापित की जा रही है, जिनमें अधिक पवन ऊर्जा क्षमता हैं जैसे गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक आदि।
  • इक्रा (ICRA) के अनुसार, वर्ष 2019-20 मके दौरान सौर ऊर्जा में 7 से 7.5 GW वृद्धि हो सकती है तेलंगाना में भी अगले कुछ महीनों में 1000 मेगावाट (MW) की सौर क्षमता में वृद्धि होगी।

स्रोत : बिज़नेस स्टैंडर्ड

और पढ़ें-

2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा का लक्ष्य

वैश्विक पवन ऊर्जा सम्मलेन, 2018


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 June)

  • रोज़गार पर सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से जारी आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017-18 के मुताबिक देश में आज़ादी के सात दशकों के बाद पहली बार नौकरियों में शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से अधिक हो गई है। शहरों में कुल 52.1% महिलाएँ और 45.7% पुरुष कामकाजी हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ नौकरियों में अभी भी पुरुषों से पीछे हैं, हालाँकि पिछले छह वर्षों में उनकी हिस्सेदारी दोगुनी हुई है और यह 5.5% से 10.5% तक पहुँच गई है। शहरी कामकाजी महिलाओं में से 52.1% नौकरीपेशा, 34.7% स्वरोज़गार तथा 13.1% अस्थायी श्रमिक हैं। इससे पहले 2011-12 में हुए NSSO सर्वे में नौकरीपेशा महिलाओं का प्रतिशत 42.8 था और इतनी ही महिलाएँ स्वरोजगार में थीं तथा 14.3% अस्थायी श्रमिक थीं। लेकिन पिछले छह वर्षों में स्थिति बदली है और स्वरोज़गार एवं अस्थायी मजदूरों में महिलाओं की हिस्सेदारी घटी है, जबकि नौकरी में उनकी हिस्सेदारी करीब 10% बढ़ी है। महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की भागीदारी बेहद धीमी गति से बढ़ी है। शहरी कामकाजी पुरुषों में 45.7% नौकरी, 39.2% स्वरोज़गार तथा 15.1% अस्थायी श्रमिक हैं। पिछले छह वर्षों में पुरुषों की हिस्सेदारी में केवल 2% की बढ़ोतरी हुई।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में दुनिया का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर DGX-2 भारत में भी आ गया है। इसे IIT जोधपुर में एक विशेष प्रयोगशाला में लगाया गया है। इससे देश में AI प्रशिक्षण गतिविधियों को बल मिलेगा। IIT जोधपुर व अमेरिकी सुपर कंप्यूटर कंपनी NVIDIA के बीच AI क्षेत्र में अनुसंधान के लिये दो साल का समझौता हुआ है और यह कंप्यूटर उसी के तहत लाया गया है। लगभग 2.50 करोड़ रुपए की लागत वाले इस कंप्यूटर में 16 विशेष GPU कार्ड लगे हैं और प्रत्येक की क्षमता 32 GB है तथा इसकी रैम 512 GB है। आम कंप्यूटर की क्षमता केवल 150 से 200 वाट होती है, जबकि इस सुपर कंप्यूटर की क्षमता 10 किलोवॉट की है। हर कंप्यूटर प्रोग्राम डेटा विश्लेषण पर आधारित होता है और यह विश्लेषण इस सुपर कंप्यूटर में बहुत तेज़ी से होगा। कंप्यूटर में लगे 32 GB क्षमता (प्रत्येक) के 16 GPU कार्ड इसे क्षमता के लिहाज से विशिष्ट बना देते हैं। उल्लेखनीय है कि देश में इस समय IISC बेंगलुरु सहित कुछ संस्थानों में DGX-1 सुपर कंप्यूटर है, लेकिन DGX-2 सुपर कंप्यूटर पहली बार देश में आया है और इसकी क्षमता पहले वाले वर्जन से लगभग दोगुनी है। DGX-1 से जिस काम को करने में 15 दिन लगते हैं, उस काम को DGX-2 सिर्फ डेढ़ दिन में कर देगा। लगभग डेढ़ क्विंटल वज़नी इस कंप्यूटर की इंटर्नल स्टोरेज कैपेसिटी 30 TB है।
  • उद्योग संगठन एसोचैम और PWC की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार देश में फिनटेक कंपनियों के तेज़ी से हो रहे विस्तार के बल पर वर्ष 2023 तक डिजिटल भुगतान दोगुना से अधिक बढ़कर 135.2 अरब डॉलर पर पहुँचने की संभावना है और भारत डिजिटल लेनदेन में बढोतरी के मामले में चीन तथा अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। अभी भारत में 64.8 अरब डॉलर का डिजिटल लेनदेन होता है, जबकि चीन इस मामले में 1.56 लाख करोड़ डॉलर के साथ सबसे आगे है। भारत में वार्षिक 20% से अधिक की दर से बढ़ोतरी हो रही है, जबकि वर्ष 2019-23 की अवधि में चीन में डिजिटल लेनदेन में 18.5% और अमेरिका में 8.6% की वृद्धि होने का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर डिजिटल लेनदेन मूल्य के मामले में अगले चार वर्षों में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान के 1.56% से बढ़कर 2.02% हो जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल कॉमर्स में बढ़ोतरी, भुगतान प्रौद्यागिकी के क्षेत्र AI, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, रियल टाइम भुगतान और मोबाइल पॉइंट ऑफ सेल मशीनों के आने से डिजिटल लेनदेन की लागत में कमी आई है और इससे डिजिटल भुगतान को बढ़ाने में मदद मिली है। इसके अलावा नियामक पहल और गैर- बैंकिंग क्षेत्र के वॉलेट की सफलता से भी पिछले तीन वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक भुगतान में तेज़ी आई है। टेलीकॉम कंपनियों, बैंकों, वॉलेट कंपनियों और ई-कॉमर्स रिटेलरों की वज़ह से देश में प्रतिस्पर्द्धी डिजिटल भुगतान में व्यापक बदलाव आया है। अभी देश में 50 ऐसी कंपनियाँ हैं जो डिजिटल भुगतान सेवा प्रदान कर रही हैं।
  • दूरसंचार विभाग की निर्णय लेने वाली सर्वोच्‍च संस्‍था डिजिटल कम्‍युनिकेशन कमीशन (DCC) ने भारत में 5G परीक्षण के लिये नियमों को मंज़ूरी प्रदान कर दी है। दूरसंचार विभाग जल्द ही दूरसंचार कंपनियों को परीक्षण के लिये स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन की शुरुआत करेगा तथा संभावना है कि टेलीकॉम कंपनियों को एक साल के लिये 5G परीक्षण का लाइसेंस दिया जाएगा। इसके अलावा DCC ने स्पेक्ट्रम नीलामी को लेकर की गई सिफारिशों पर फिर से विचार करने के लिये उसे ट्राई के पास भेजने का फैसला किया है। स्पेक्ट्रम की प्रस्तावित कीमतों पर दूरसंचार उद्योग की चिंता के मद्देनज़र ऐसा किया गया है। सरकार के डिजिटल इंडिया तथा सभी के लिये ब्रॉडबैंड के लक्ष्य को ध्यान में रखकर ट्राई को अपनी सिफारिशों पर फिर से गौर करना चाहिये। दूरसंचार क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे विलय को देखते हुए ट्राई को पर्याप्त प्रतिस्पर्द्धा भी सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
  • फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भारत के नागरिक शेख मोहम्मद मुनीर अंसारी को स्टार ऑफ यरुशलम से सम्मानित किया है। यरुशलम के पुराने शहर में उनके परिवार की मौजूदगी भारतीय और फिलिस्तीनी लोगों के बीच मज़बूत पारंपरिक संबंधों को दर्शाती है। शेख अंसारी यहाँ इंडियन हॉस्पिस (भारतीय आश्रम) के निदेशक हैं, जो पिछले 800 वर्षों से भारत की विरासत और यरुशलम के पुराने शहर में उनकी मौजूदगी का प्रतीक है। आपको बता दें कि इंडियन हास्पिस में गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की देखरेख की जाती है। गौरतलब है कि शेख अंसारी को वर्ष 2011में भारत में भी प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया गया था, जो विदेश में रहने वाले भारतीयों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। ‘स्टार ऑफ यरुशलम’ फिलिस्तीन सरकार द्वारा विदेशी नागरिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।

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