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भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक पवन ऊर्जा सम्मेलन, 2018

  • 02 Jun 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

वैश्विक पवन ऊर्जा सम्मेलन का आयोजन 25 से 28 सितंबर, 2018 को किया जाएगा। इस सम्मेलन का आयोजन ज़र्मनी के प्रमुख नगर तथा बंदरगाह हैम्बर्ग में किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु

  • पवन उर्जा पर यह पहला वैश्विक आयोजन है।
  • पवन उर्जा पर यह सम्मेलन दुनिया भर में पवन उद्योग की सबसे बड़ी और सबसे महत्त्वपूर्ण बैठक है।
  • इस चार दिवसीय सम्मेलन के आयोजन में भारत, चीन, अमेरिका, स्पेन और डेनमार्क समेत लगभग 100 देश भाग लेंगे।
  • इस कार्यक्रम में दो अन्य सम्मेलनों, विंड एनर्जी हैम्बर्ग और विंड यूरोप को भी शामिल किया गया है। 
  • इन  दोनों सम्मेलनों को एक साथ आयोजित करने से इसमें दुनिया भर से 1,400 प्रतिभागी और 250 वक्ता उपस्थित होंगे।
  • यह कार्यक्रम पवन ऊर्जा उत्पादन के लिये नवीन और हरित प्रौद्योगिकियों पर चर्चा करने हेतु दुनिया भर के विशेषज्ञों को एक मंच प्रदान करेगा।

सम्मेलन के प्रमुख विषय 
यह सम्मेलन मुख्यतः तीन प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा :

  1. गतिशील बाज़ार।
  2. लागत दक्षता।
  3. स्मार्ट ऊर्जा।

इसके अलावा इस सम्मेलन में निम्नलिखित विषयों पर भी चर्चा की जाएगी:

  • नए बाजारों को कैसे विकसित करें?
  • उत्पादों को किस प्रकार प्रतिस्पर्द्धी बनाएँ? 
  • कैसे सभी ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिये पवन ऊर्जा का उपयोग करें?

भारत की भूमिका

  • इस सम्मेलन में भारत की कई कंपनियाँ भाग ले रही हैं।
  • चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद पवन उर्जा का उत्पादन करने वाला भारत चौथा सबसे बड़ा देश है।
  • भारत की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता लगभग 33 GW है।
  • सरकार ने 2022 तक 60 GW ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल के अनुसार भारत इस ऊर्जा के लिये एक बड़ा बाज़ार है। और यही कारण है कि बहुत सी कंपनियाँ इस समय भारत पर नज़र रखे हुए हैं।

क्या है पवन उर्जा?

  • गतिमान वायु से उत्पन्न की गई ऊर्जा को पवन उर्जा कहते हैं।
  • पवन उर्जा के उत्पादन के लिये हवादार स्थानों पर पवन चक्कियों की स्थापना की जाती है। इन चक्कियों द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
  • इस यांत्रिक उर्जा को जनित्र (Dynamo) की मदद से विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • इसका उपयोग पहली बार स्कॉटलैंड में 1887 में किया गया था।
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