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डेली न्यूज़

  • 19 Mar, 2020
  • 47 min read
भारतीय राजनीति

प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ शब्द को हटाने का प्रस्ताव

प्रीलिम्स के लिये:

समाजवाद, 42वाँ संविधान संशोधन

मेन्स के लिये:

संविधान की प्रस्तावना से संबंधित विषय, 42वें संविधान संशोधन के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

सत्तारूढ़ दल के एक राज्यसभा सदस्य ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ शब्द हटाने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसे जल्द ही सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • राज्यसभा सदस्य ने यह तर्क दिया है कि यह शब्द वर्तमान परिदृश्य में ‘निरर्थक’ है और इसे ‘एक विशेष विचार के बिना आर्थिक सोच’ के लिये जगह बनाने हेतु छोड़ दिया जाना चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि बीते कुछ समय से कई संगठनों द्वारा इस प्रकार की मांग की जा रही है। इस संदर्भ में विवाद तब उत्पन्न हुआ जब वर्ष 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक सरकारी विज्ञापन में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और 'समाजवाद' शब्द गायब थे। 
  • राज्यसभा सदस्य द्वारा तैयार किये गए विधेयक में दावा किया गया है कि आपातकाल लागू होने के कारण इस शब्द को संविधान में बिना किसी चर्चा के ही शामिल कर लिया गया है।

समाजवाद का अर्थ

भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है अर्थात् यहाँ उत्पादन और वितरण के साधनों पर निजी और सार्वजानिक दोनों क्षेत्रों का अधिकार है। भारतीय समाजवाद का चरित्र गांधीवादी समाजवाद की ओर अधिक झुका हुआ है, जिसका उद्देश्य अभाव, उपेक्षा और अवसरों की असमानता का अंत करना है। समाजवाद मुख्य रूप से जनकल्याण को महत्त्व देता है, यह सभी लोगों को राजनैतिक व आर्थिक समानता प्रदान करने के साथ ही वर्ग आधारित शोषण को समाप्त करता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

  • सामान्य अवधारणा के अनुसार, संविधान नियमों और उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज़ है, जिसके आधार पर किसी राष्ट्र की सरकार का संचालन किया जाता है। 
  • यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। कहा जा सकता है कि प्रत्येक देश का संविधान उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का संचित प्रतिबिंब होता है।
  • इस संदर्भ में भारतीय संविधान का एक विशेष महत्त्व है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूल रूप से जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किये गए 'उद्देश्य प्रस्ताव' पर आधारित है। 
  • संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों के लिये राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय के साथ स्वतंत्रता के सभी रूप शामिल हैं। प्रस्तावना नागरिकों को आपसी भाईचारा व बंधुत्व के माध्यम से व्यक्ति के सम्मान तथा देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने का संदेश देती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राष्ट्र है।
  • विदित है कि वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया गया और इसमें तीन नए शब्द (समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता) जोड़े गए।

42वाँ संविधान संशोधन

  • 42वें संविधान संशोधन को लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है। इसके तहत प्रस्तावना में नए शब्द जोड़ने के अलावा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए थे जो निम्नलिखित हैं-
    • सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान संशोधन के माध्यम से मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई।
    • इसमें राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह को मानने के लिये बाध्य का किया गया।
    • इसके तहत संवैधानिक संशोधन को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर नीति निर्देशक तत्त्वों को व्यापक बनाया गया।
    • शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन तथा उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों के गठन और संगठन के विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।

प्रस्तावना में संशोधन

  • वर्ष 1973 तक सर्वोच्च न्यायालय का मत था कि संविधान की प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, इसलिये इसमें संशोधन भी नहीं किया जा सकता है।
  • किंतु वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का पूरा अधिकार है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के पश्चात् संसद ने 42वाँ संविधान संशोधन कर संविधान की प्रस्तावना में नए शब्द जोड़े।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 142, 212, दल-बदल विरोधी कानून, 

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए मणिपुर के एक मंत्री को राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया। 

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2017 में उक्त मंत्री चुनाव जीतने के बाद दूसरे दल में शामिल हो गए थे।
  • 8 सितंबर, 2017 को इस मामले की सुनवाई के दौरान मणिपुर उच्च न्यायालय के अनुसार, उच्च न्यायालय किसी मंत्री के अयोग्य ठहराए जाने या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका की स्थिति में निर्णय लेने के लिये विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश नहीं दे सकता। 
  • मणिपुर के मंत्री के खिलाफ अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिकाएँ वर्ष 2017 के बाद से विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित थीं।
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य मंत्रिमंडल से उन्हें अगले आदेश तक विधान सभा में प्रवेश करने से रोक दिया गया है।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग किया है।
  • 21 जनवरी को, न्यायमूर्ति नरीमन की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीश की पीठ ने अध्यक्ष से अयोग्यता वाली याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर फैसला लेने को कहा है।

संविधान का अनुच्छेद 142:

  • जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होगा।
  • अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है। 
  • संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को संपूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं। 

संविधान का अनुच्छेद 212:

  • न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाही की जाँच न किया जाना-
    • राज्य के विधानमंडल की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जायेगा। 
    • राज्य के विधानमंडल का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन उस विधानमंडल में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियाँ निहित है, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिकता के अधीन नही होगा।
  • दल-बदल विरोधी कानून:
    • वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया। साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है, को संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया।
    • इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में ‘दल-बदल’ की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित थी।

दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य प्रावधान:

दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि:

  • एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
  • कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  • किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
  • कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
  • छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

अयोग्य घोषित करने की शक्ति:

  • कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है।
  • यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है।

दल-बदल विरोधी कानून के अपवाद:

  • यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी के रूप में चुना जाता है तो वह अपने राजनीतिक दल से त्यागपत्र दे सकता है और अपने कार्यकाल के बाद फिर से राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। उसे यह उन्मुक्ति पद की मर्यादा और निष्पक्षता के लिये दी गई है।
  • दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।

लाभ:

  • यह कानून सदन के सदस्यों की दल- बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर राजनीतिक संस्था में उच्च स्थिरता प्रदान करता है।
  • यह राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करता है तथा अनियमित निर्वाचनों पर होने वाले अप्रगतिशील खर्च को कम करता है।
  • यह कानून विद्यमान राजनीतिक दलों को एक संवैधानिक पहचान देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

वैश्विक रोज़गार पर COVID-19 का प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ, COVID-19  

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर बेरोज़गारी में भारी वृद्धि होगी और इस दौरान कर्मचारियों की आय में भी कटौती होगी।

मुख्य बिंदु:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (International Labour Organization-ILO) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, श्रमिक बाज़ार पर COVID-19 महामारी के नकारात्मक प्रभाव बहुत ही दूरगामी होंगे, जिससे वैश्विक स्तर पर भारी मात्रा में बेरोज़गारी में वृद्धि होगी।
  • इस अध्ययन में अलग-अलग परिस्थितियों और सरकारों की समन्वित प्रतिक्रिया के स्तरों के आधार पर श्रमिक बाज़ार पर COVID-19 के प्रभावों के संदर्भ में अनुमानित आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं।
  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में दर्ज किये गए बेरोज़गारी के 188 मिलियन श्रमिकों के आँकड़ों के अलावा  5.3 मिलियन अतिरिक्त श्रमिक भी इस बेरोज़गारी की चपेट में होंगे जबकि सबसे बुरी स्थिति में बेरोज़गारी के आँकड़े 24 मिलियन तक पहुँच सकते हैं।
  • ILO के अनुसार, वर्ष 2008-09 के वित्तीय संकट के कारण वैश्विक बेरोज़गारी के मामलों में 22 मिलियन की वृद्धि हुई थी।
  • बेरोज़गारी के मामलों में बड़ी मात्रा में वृद्धि की उम्मीद इस लिये भी की जा सकती है क्योंकि COVID-19 के आर्थिक दुष्प्रभावों के कारण काम करने के समय/घंटों (Hours) और मज़दूरी में भी भारी कमी होगी।

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ

(International Labour Organization-ILO):

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय संधि (Treaty of Versailles) द्वारा राष्ट्र संघ (League of Nations) की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में हुई थी। 
  • इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
  • वर्तमान में विश्व के 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं। 
  • ILO के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
    • श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक तैयार करना।
    • कार्य स्थलों पर श्रमिकों के अधिकारों को प्रोत्साहित करना।
    • श्रम और रोज़गार से जुड़े मुद्दों पर संवाद और सामाजिक संरक्षण को बढ़ावा देना आदि।      
  • अध्ययन के अनुसार, विकासशील देशों में जहाँ अब तक स्व-रोज़गार (Self-Employment) ऐसे आर्थिक परिवर्तनों को कम करने में सहायक होता था, वर्तमान में लोगों और वस्तुओं के आवागमन पर लगे प्रतिबंधों के कारण उतनी मदद नहीं कर पाएगा।
  • ILO अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक श्रमिकों की आय में कमी का यह आँकड़ा 860 बिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक हो सकता है। 

बढ़ती बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव:

  • ILO प्रमुख के अनुसार, COVID-19 की समस्या अब मात्र एक स्वास्थ्य संकट न होकर श्रमिक बाज़ार और आर्थिक क्षेत्र के लिये भी एक बड़ा संकट है, जिसका लोगों के जीवन पर बहुत ही गंभीर प्रभाव होगा।  
  • इतनी बड़ी मात्रा में लोगों की आय में कमी से वस्तुओं और सेवाओं (Services) की मांग में भी कमी आएगी, जिसका सीधा प्रभाव व्यवसायों और अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा। 
  • एक या एक से अधिक नौकरियों में होने के बावज़ूद भी गरीबी में रह रहे लोगों की संख्या में भारी वृद्धि होगी। 
  • अध्ययन के अनुसार, COVID-19 के आर्थिक दुष्प्रभावों के कारण आने वाले दिनों में अनुमानतः 8.8-35 मिलियन अतिरिक्त लोग ‘वर्किंग पूअर’ (Working Poor) की श्रेणी में जुड़ जाएँगे।
  • ILO के अनुसार, समाज के कुछ समूह जैसे- युवा, महिलाएँ, बुजुर्ग और अप्रवासी आदि इस आपदा से असमान रूप से प्रभावित होंगे, जो समाज में पहले से ही व्याप्त असमानता/पक्षपात को और भी बढ़ा देगा।    

समाधान:

  • ILO ने इस आपदा से निपटने के लिये बड़े पैमाने पर चलाई जाने वाली समायोजित योजनाओं की आवश्यकता पर बल दिया।
  • ILO के अनुसार, कर्मचारियों के हितों की रक्षा तथा अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये वैतनिक अवकाश (Paid Leave), सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं, सब्सिडी जैसे समायोजित प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ILO प्रमुख के अनुसार, वर्ष 2008 के आर्थिक संकट की चुनौतियों से निपटने के लिये विश्व के सभी देश एक साथ खड़े हुए थे, जिससे एक बड़ी आपदा को टाला जा सका था। वर्तमान में हमें इस संकट से निपटने के लिये वैसे ही नेतृत्त्व की आवश्यकता है।  

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

हर्ड इम्युनिटी

प्रीलिम्स के लिये:

हर्ड इम्युनिटी,  COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19, संक्रामक रोगों से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटिश सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने ब्रिटेन में तेज़ी से फैल रही COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) के विकल्प को अपनाने के संकेत दिये हैं। 

मुख्य बिंदु:

क्या है हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity): 

  • हर्ड इम्युनिटी से आशय- “किसी समाज या समूह के कुछ प्रतिशत लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के माध्यम से किसी संक्रामक रोग के प्रसार को रोकना है।”  
  • इस प्रक्रिया को अपनाने के पीछे अवधारणा यह है कि यदि पर्याप्त लोग प्रतिरक्षित (Immune) हों तो किसी समाज या समूह में रोग के फैलने की शृंखला को तोड़ा जा सकता है और इस प्रकार रोग को उन लोगों तक पहुँचाने से रोका जा सकता है, जिन्हें इससे सबसे अधिक खतरा हो या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।

हर्ड इम्युनिटी कैसे काम करती है?

  • किसी संक्रामक बीमारी के प्रसार और उसके लिये आवश्यक प्रतिरक्षा सीमा का अनुमान लगाने के लिए महामारी वैज्ञानिक (Epidemiologists) एक मानक का उपयोग करते हैं जिसे ‘मूल प्रजनन क्षमता’ (Basic Reproductive Number-R0) कहा जाता है।
  • यह बताता है कि किसी एक मामले या रोगी के संपर्क में आने पर कितने अन्य लोग उस रोग से संक्रमित हो सकते हैं।
  • 1 से अधिक R0 होने का मतलब है कि एक व्यक्ति कई अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
  • वैज्ञानिक प्रमाण के अनुसार, खसरे (Measles) से पीड़ित एक व्यक्ति 12-18 अन्य व्यक्तियों जबकि इन्फ्लूएंजा (Influenza) से पीड़ित व्यक्ति लगभग 1-4 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
  • वर्तमान में चीन से उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि COVID-19 का R0 2 से 3 के बीच हो सकता है।
  • कोई भी संक्रमण किसी समाज/समूह में तीन प्रकार से फैल सकता है:
    1. पहली स्थिति में जहाँ समूह में किसी भी व्यक्ति का टीकाकरण न हुआ हो ऐसे समूह में यदि 1 गुणांक वाले R0 के दो मामले आते हैं तो ऐसे में वह पूरा समुदाय संक्रमित हो सकता है।
    2. दूसरी स्थिति में यदि किसी समूह के कुछ ही लोगों का टीकाकरण हुआ हो तो उन लोगों को छोड़कर समूह के अन्य लोग संक्रमित हो सकते हैं।
    3. परंतु यदि किसी समूह में पर्याप्त लोग प्रतिरक्षित हों तो ऐसी स्थिति में समूह के वही लोग संक्रमित होंगे जो बहुत ही कमज़ोर होंगे या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत ना हो।   

हर्ड इम्युनिटी कैसे प्राप्त की जा सकती है?

  • विशेषज्ञों के अनुसार हर्ड इम्युनिटी की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे-संक्रमण के बचाव के लिये दिये जाने वाले टीके का प्रभाव, संक्रमण और टीके के प्रभाव की अवधि और समूह का वह भाग जो संक्रमण के प्रसार के लिये उत्तरदाई हो आदि। 
  • गणितीय रूप में इसे एक निश्चित संख्या से निर्धारित किया जाता है, जिसे ‘समूह प्रतिरक्षा सीमा’ (Herd Immunity Threshold) कहा जाता है। यह उन लोगों की संख्या को दर्शाता है जिन पर संक्रमण का प्रभाव और संचार नहीं हो सकता। 
  • पोलियो के लिये यह सीमा 80-85% जबकि खसरे के लिये 95% है। वर्तमान में उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर COVID-19 के लिये यह सीमा लगभग 60%है अर्थात किसी समूह में COVID-19 के प्रति हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने हेतु समूह के 60% लोगों का प्रतिरक्षित होना आवश्यक है।

COVID-19 से निपटने में हर्ड इम्युनिटी की चुनौतियाँ:

  • विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में अधिक जानकारी के अभाव में प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिये समाज के अधिक लोगों को COVID-19 से संक्रमित होने देना जोखिम भरा कदम होगा।
  • इतनी बड़ी मात्रा में लोगों में COVID-19 के प्रति प्रतिरक्षा के विकास में बहुत समय लग सकता है, जिससे कई खतरे हो सकते हैं, विशेषकर जब हमें पता यह है कि हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी सह-रुग्णता (Co-morbidities) वाले लोग इस संक्रमण से सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
  • इस प्रक्रिया में उन्ही लोगों में प्रतिरक्षा का विकास हो सकता है जो एक बार संक्रमित होकर संक्रमण से मुक्त हो सके। परंतु COVID-19 के संदर्भ में इस प्रक्रिया की सफलता के कोई प्रमाण नहीं हैं और न ही यह सुनिश्चित किया जा सका है कि एक बार ठीक होने के बाद कोई व्यक्ति पुनः इस रोग से संक्रमित नहीं होगा।   
  • इस प्रक्रिया में पहले से ही दबाव में कार्य कर रहे स्वास्थ्य केंद्रों पर बोझ और बढ़ जाएगा जो इस आपदा के समय में सही निर्णय नहीं होगा। 

स्रोत:  द इंडियन एक्प्रेस


आंतरिक सुरक्षा

तेजस लड़ाकू विमान

प्रीलिम्स के लिये:

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, तेजस लड़ाकू विमान

मेन्स के लिये:

भारतीय वायुसेना के स्वदेशीकरण और आधुनिकीकरण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (Defence Acquisition Council-DAC) ने बंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited-HAL) द्वारा निर्मित 83 तेजस एमके-1ए लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (Tejas Mk-1A Light Combat Aircraft) की खरीद को मंज़ूरी प्रदान की है। 

प्रमुख बिंदु

  • रक्षा विभाग (DoD) और सैन्‍य मामलों के विभाग (DMA) के कार्यक्षेत्रों  के निर्धारण के पश्चात् रक्षा मंत्री की अध्‍यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) की पहली बैठक हुई। इसी बैठक में यह निर्णय लिया गया। 
  • ध्यातव्य है कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के अंतर्गत विमान विकास एजेंसी (ADA) ने हल्‍के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ (Tejas) का स्‍वदेशी डिज़ाइन तैयार किया है। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने निर्मित किया है। 
    • विशेषज्ञों के अनुसार, यह लड़ाकू विमान भविष्य में भारतीय वायुसेना के लिये काफी मददगार साबित होगा।
  • भारतीय वायुसेना द्वारा 40 ‘तेजस’ विमानों के खरीद आदेश दिये जा चुके हैं। DAC ने 83 विमानों की खरीद की मंज़ूरी दी है जो इस विमान का आधुनिक एमके-1ए वर्जन होगा।
  • लगभग 38000 करोड़ रुपए के इस प्रस्‍ताव को सुरक्षा पर संसदीय समिति (CCS) के समक्ष विचार के लिये रखा जाएगा।

लाभ 

  • इस खरीद से 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा मिलेगा क्‍योंकि विमान का डिज़ाइन और विकास स्‍वदेशी तकनीक से किया गया है। इसका निर्माण HAL के अतिरिक्‍त कई अन्‍य स्‍थानीय निर्माताओं के सहयोग से किया गया है।
  • भारतीय वायु सेना में लड़ाकू स्क्वाड्रन की ताकत बनाए रखने के लिये यह समझौता काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारतीय वायु सेना में कुल 30 लड़ाकू स्क्वाड्रन्स की कमी है और यदि HAL समय पर उक्त विमानों की पूर्ति कर देता है तो भी भारतीय वायु सेना के पास 26 लड़ाकू स्क्वाड्रन्स की कमी होगी।
    • विदित है कि भारतीय वायुसेना के प्रत्येक स्क्वाड्रन में आमतौर पर 18 विमान होते हैं।
  • इन 83 विमानों की पूर्ति के साथ ही भारतीय वायु सेना के पास कुल 123 तेजस लड़ाकू जेट हो जाएंगे।

तेजस

(Tejas)

  • यह एक ‘स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान’ (Indigenous Light Combat Aircraft) है, जिसे ‘विमान विकास एजेंसी’ (Aeronautical Development Agency- ADA) तथा ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (Hindustan Aeronautics Limited- HAL) के द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
  • यह सबसे छोटे-हल्के वज़न का एकल इंजन युक्त ‘बहु-भूमिका निभाने वाला एक सामरिक लड़ाकू विमान’ (Multirole Tactical Fighter Aircraft) है।
  • गौरतलब है कि इसे रूस के MIG-21 लड़ाकू विमानों पर अपनी निर्भरता को कम करने तथा स्वदेशी युद्ध संबंधी के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की ओर बढ़ने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड 

(Hindustan Aeronautics Limited-HAL)

  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। HAL का इतिहास और विकास भारत में विगत 77 वर्षों के वैमानिकी उद्योग के विकास को दर्शाता है।
  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को मैसूर सरकार के सहयोग से वालचंद हीराचंद द्वारा 23 दिसंबर, 1940 को बंगलूरु में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था।
    • दिसंबर 1945 में इसे उद्योग एवं आपूर्ति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया और जनवरी 1951 को रक्षा मंत्रालय ने हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में लिया गया।
    • 1 अक्तूबर, 1964 को भारत सरकार द्वारा जारी विलय आदेश के अंतर्गत हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड का विलय संपन्न हुआ और विलय के बाद कंपनी का नाम हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) रखा गया।
  • कंपनी का मुख्य कार्य विमानों, हेलिकॉप्टरों और इंजनों तथा संबंधित प्रणालियों जैसे- उड्डयानिकी, उपकरणों और उपसाधनों का विकास, निर्माण, मरम्मत और पुनर्कल्पन करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टैंडर्ड एंड पूअर्स का भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अनुमान

प्रीलिम्स के लिये:

स्टैंडर्ड एंड पूअर्स

मेन्स के लिये:

स्टैंडर्ड एंड पूअर्स एजेंसी द्वारा वर्ष 2020 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाने का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (Standard & Poor's - S&P) ने वर्ष 2020 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 5.2% कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • इससे पहले S&P ने वर्ष 2020 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर के 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था।
  • S&P के अनुसार, वर्ष 2020 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का आर्थिक विकास 3 प्रतिशत से भी कम हो जाएगा क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में प्रवेश कर रही है।
  • चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में शटडाउन और COVID-19 वायरस संचरण एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मंदी की स्थितियों को जन्म देता है।
  • S&P के अनुसार, मंदी के कारण कम से कम दो तिमाहियों में आर्थिक वृद्धि दर के गिरने की प्रवृत्ति में वृद्धि से बेरोज़गारी बढ़ सकती है।
  • S&P के अनुसार वैश्विक वायरस के प्रसार से भारत में अमेरिका और यूरोप से आने वाले व्यक्तियों की संख्या कम हो जाएगी जिससे पर्यटन उद्योग पर अधिक दबाव पड़ेगा।
  • इस वायरस के प्रसार से यदि अमेरिकी डॉलर की स्थिति में अनिश्चितता उत्पन्न होती है, तो एशिया के उभरते बाजारों को तथा नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था की चक्रीय नीति के कठोर दौर से सामना करना पड़ सकता है।
  • पूंजी बहिर्वाह के संदर्भ में सबसे कमज़ोर देश भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस हैं।

भारत, चीन और जापान की आर्थिक वृद्धि दर:

  • S&P ने वर्ष 2020 में चीन,भारत और जापान की आर्थिक वृद्धि दर के लिये 2.9 प्रतिशत, 5.2 प्रतिशत और -1.2 प्रतिशत के पूर्वानुमान संबंधी आँकड़े जारी किये हैं, जो कि पहले जारी किये गए (4.8 प्रतिशत से 5.7 प्रतिशत और पूर्व में -0.4 प्रतिशत) आँकड़ों से काफी कम हैं।
  • कमज़ोर क्षेत्रों और श्रमिकों का समर्थन करने के उद्देश्य से स्थानीय उपाय मदद कर सकते हैं लेकिन उनका प्रभाव संकट को लंबे समय तक दूर करने में सहायक सिद्ध नहीं हो सकेगा।
  • यह स्थिति इस वायरस के प्रसार को रोकने की प्रगति पर निर्भर करती है।
  • भले ही दूसरी तिमाही के दौरान प्रमुख प्रगति हुई हो पर वायरस के प्रसार के कारण नकदी प्रवाह की एक निरंतर अवधि के बाद कई फर्म जल्दी से निवेश करने की स्थिति में नहीं होगी।

आगे की राह:

  • स्पष्ट है कि कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है। इस वायरस के कारण हवाई यात्रा, शेयर बाज़ार, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं सहित लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
  • हाल में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, यह वायरस अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है, जबकि इसके कारण चीनी अर्थव्यवस्था पहले से ही मुश्किल स्थिति में है। उक्त दो अर्थव्यस्थाएँ, जिन्हें वैश्विक आर्थिक इंजन के रूप में जाना जाता है, संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती तथा आगे जाकर मंदी का कारण बन सकती हैं।
  • आवश्यक है कि संपूर्ण वैश्विक समाज इस महामारी से निपटने के लिये एकजुट हो और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके न्यून प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सके।
  • हाल ही में मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भी भारत की अर्थव्यवस्था पर कोरोनोवायरस प्रभाव के कारण भारत की वर्ष 2020 के लिये भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटाकर 5.3 प्रतिशत (5.4 प्रतिशत से) कर दिया था।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

घर्षण को कम करने वाले नैनोकॉम्पोज़िट कोटिंग्स

प्रीलिम्स के लिये:

इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स, नैनोकम्पोज़िट कोटिंग्स

मेन्स के लिये:

घर्षण को कम करने हेतु नैनोकम्पोज़िट कोटिंग्स से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (International Advanced Research Centre for Powder Metallurgy and New Materials-ARCI)’ के वैज्ञानिकों ने उपकरणों में घर्षण को कम करने वाला नैनोकम्पोज़िट कोटिंग विकसित किया है।

नैनोकोम्पोज़िट कोटिंग्स: 

  • गौरतलब है कि यह नव विकसित कोटिंग निकल-टंगस्टन आधारित हैं। 
  • सस्ती और सरल स्पंदित इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) या इलेक्ट्रोडिपोज़िशन (Electrodeposition) का उपयोग करते हुए सिलिकॉन कार्बाइड (Silicon Carbide-SiC) के अत्यंत छोटे कणों के साथ निकिल टंगस्टन-आधारित कोटिंग के अंतर्भेदन (Impregnation) से यह प्रक्रिया जंग रोधक का कार्य कर सकती है जिसमें घर्षण गुणांक कम होने के साथ-साथ तेल प्रतिधारण क्षमता भी अच्छी होगी। 

विशेषताएँ: 

  • यह कोटिंग लवणता युक्त स्प्रे होने के कारण एक जंग रोधक का कार्य कर सकती है जो बाज़ार में उपलब्ध अन्य जंग प्रतिरोधी कोटिंग्स की तुलना में अच्छा है। 
  • कणों का आकार घर्षण विशेषताओं को तय करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • नैनोकम्पोज़िट कोटिंग में कणों के आकार की विभिन्नता के कारण स्ट्रेस कंसंट्रेशन (Stress Concentration) से कोटिंग्‍स समय से पहले ही खराब हो जाती है। 
  • निकासिल (NIKASIL) और हार्ड क्रोम (Hard Chrome) की तुलना में नैनोकम्पोज़िट कोटिंग्स बेहतर हैं।
  • ऑटोमोबाइल उद्योग में उपयोग में लाए जाने वाले हार्ड क्रोम की तुलना में नैनोकम्पोज़िट कोटिंग्स का असर धातुओं पर 1000 घंटो तक रहता है।
  • इसके तापमान में वृद्धि कर इसकी क्षमता को दोगुना किया जा सकता है। 

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उपयोग:

  • रक्षा क्षेत्र 
  • ऑटोमोबाइल
  • अंतरिक्ष उपकरण

विद्युत-लेपन प्रक्रिया (Electroplating Process):

  • इलेक्ट्रोडिपोज़िशन को इलेक्ट्रोप्लेटिंग भी कहा जाता है, इसमें धातु के हिस्सों को इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte) के घोल में डुबोया जाता है।
  • आसुत जल तथा अन्य योजकों के मिश्रण में निकल (Nickel-Ni) और टंगस्टन (Tungsten-W) के कणों को घोलकर तैयार किया जाता है।
  • इस घोल में DC करंट पास करने से धातु के टुकड़े पर Ni-W जमा हो जाता है अतः धात्विक आयनों की गति और जमाव के कारण कैथोड सतह पर एक परत जम जाती है। 
  • इस प्रक्रिया में कैथोड सतह पर जमी परत की मोटाई के बराबर या उससे कम आकार वाले कणों को ही नैनोक्रिस्टलाइन कोटिंग में शामिल किया जा सकता है।
  • विद्युत प्रवाह की अवधि को बदलकर परत की मोटाई व आकार को नियंत्रित किया जाता है।
  • यह ईंधन सेल, बैटरियों, कटैलिसिस और इस प्रकार के विभिन्न अनुप्रयोगों के प्रबलन के लिये आवश्यक अनेक कंपोजिट कोटिंग्‍स के लिये भी उपयुक्त है।

इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स

(International Advanced Research Centre for Powder Metallurgy and New Materials- ARCI): 

  • वर्ष 1997 में स्थापित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) का एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास केंद्र है।
  • इसका मुख्यालय हैदराबाद एवं परिचालन संबंधी कार्य चेन्नई और गुरुग्राम में होते हैं।
  • ARCI का  उद्देश्य:
    • उच्च गुणवता वाले पदार्ठों की खोज। 
    • भारतीय उद्योग में प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण करना।

स्रोत: पीआईबी


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 मार्च, 2020

आयुध कारखानों का स्‍थापना दिवस 

18 मार्च, 2020 को आयुध कारखानों ने अपना 219वां स्‍थापना दिवस मनाया। विदित है कि पहला आयुध कारखाना वर्ष 1801 में कोलकाता के कोसीपोर में स्‍थापित किया गया था, जिसे अब ‘गन एंड शेल फैक्टरी’ के रूप में जाना जाता है। दरअसल आयुध कारखाने 41 आयुध कारखानों का एक समूह है, जिनका कॉरपोरेट मुख्‍यालय कोलकाता स्थित आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) है। आयुध कारखाने दो शताब्दियों से भी अधिक समय से हथियारों, गोला बारूद एवं उपकरणों की आपूर्ति कर सशस्‍त्र बलों की ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं।

इन्नोवेट फॉर एक्सेसिबल इंडिया

हाल ही में नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनी (NASSCOM) ने माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के साथ ‘इनोवेट फॉर एक्सेसिबल इंडिया’ (Innovate for Accessible India) अभियान शुरू किया है। इस पहल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग भी शामिल हैं। इस पहल का उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), माइक्रोसॉफ्ट क्लाउड और अन्य तकनीकों की मदद से दिव्यांगों की समस्याओं का समाधान करना है। इसमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों जैसे- ई-गवर्नेंस, आजीविका, स्वास्थ्य और कौशल पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। NASSCOM भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उद्योग का वैश्विक गैर-लाभकारी व्यापार संगठन है।

उत्तराखंड में पदोन्नति में आरक्षण समाप्त

उत्तरखंड में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है। इसके साथ ही 5 सितंबर, 2012 का वह शासनादेश प्रभावी हो गया है, जिसमें पदोन्नति से आरक्षण समाप्त करते हुए विभागीय पदोन्नति करने के आदेश जारी किये गए थे। अनुमानतः इस निर्णय से तकरीबन 30 हजार कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। इन आदेशों के जारी होने के पश्चात् राज्य के कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल समाप्त कर दी है। भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी कुप्रथाएँ देश में आरक्षण व्यवस्था की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। सरल शब्दों में आरक्षण का अभिप्राय सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और विधायिकाओं में किसी एक वर्ग विशेष की पहुँच को आसान बनाने से है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक पदों पर अवसर की समानता से संबंधित प्रावधान किये गए हैं। हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4A) में सार्वजनिक पदों के संबंध में सकारात्मक भेदभाव या सकारात्मक कार्यवाही का आधार प्रदान किया गया है।

COVID-19 महामारी से निपटने के लिये ADB का राहत पैकेज

एशियाई विकास बैंक (ADB) ने कोरोनावायरस महामारी से निपटने हेतु विकासशील सदस्य देशों के लिये 6.5 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की है। ADB के अनुसार, कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए विकासशील सदस्य देशों की तात्कालिक सहायता के लिये शुरूआती पैकेज की घोषणा की गई है। एशियाई विकास बैंक (ADB) का मुख्यालय मनीला में स्थित है। यह बैंक एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सतत् विकास और गरीबी उन्मूलन के लिये कार्य करता है। ADB के अध्यक्ष ने कहा कि यह महामारी एक बड़ी वैश्विक समस्या बन गई है। इससे निपटने के लिये राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तरों पर ठोस कदम की ज़रूरत है।’’


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