डेली न्यूज़ (18 Jun, 2022)



विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस

चर्चा में क्यों? 

प्रत्येक वर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought) का आयोजन किया जाता है। 

  • इसी परिप्रेक्ष्य में 17 जून, 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारमरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस का आयोजन किया गया। 
    • इस मौके पर केंद्रीय मंत्री ने भारत के लिये वन प्रबंधन परिषद वन प्रबंधन मानक (FCI FSSAI) जारी किये। 
      • FSC विश्व स्तर पर एक मान्यता प्राप्त प्रमाणन प्रणाली है जो लकड़ी से संबंधित उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के ऑडिट के लिये मानदंड निर्धारित करती है। 

इस विश्व दिवस की मुख्य विशेषताएंँ:  

  • परिचय: 
    • यह सभी को इस बात की याद दिलाने का एक अनूठा क्षण है कि भूमि क्षरण तटस्थता समस्या का समाधान मजबूत सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से किया जा सकता है। 
  • वर्ष 2022 की थीम: "एक साथ सूखे से निपटना" 
    • यह मानवता और ग्रहीय पारिस्थितिक तंत्र के विनाशकारी परिणामों से बचने हेतु शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। 

Drought-Together

  • महत्त्व: 
    • वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी सम्मलेन के दौरान जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के नुकसान के साथ मरुस्थलीकरण को सतत् विकास के लिये सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में पहचाना गया था। 
    • दो साल बाद वर्ष1994 में महासभा ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन (UNCCD) की स्थापना की, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है तथा 17 जून को "विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस" घोषित किया गया। . 
    • बाद में वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2010-2020 को मरुस्थलीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र दशक और UNCCD सचिवालय के नेतृत्व में भूमि क्षरण से लड़ने हेतु वैश्विक सहयोग जुटाने को मरुस्थलीकरण के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की। 

मरुस्थलीकरण: 

  • शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण होता है। यह मुख्य रूप से मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है। 
  • यह मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार का उल्लेख नहीं करता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि शुष्क भूमि पारिस्थितिक तंत्र जो दुनिया के एक-तिहाई से अधिक भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, अतिदोहन और अनुचित भूमि उपयोग के कारण बेहद संवेदनशील हैं। 
  • इसके अतिरिक्त गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और खराब सिंचाई प्रथाएंँ आदि सभी भूमि की उत्पादकता को कम कर सकती हैं। 

सूखा: 

  • सूखे को दीर्घ अवधि में वर्षा/वर्षा में कमी के रूप में माना जाता है, आमतौर पर एक मौसम या उससे अधिक, जिसके परिणामस्वरूप जल की कमी होती है, का वनस्पति, जानवरों और/या लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
  • वनाग्नि के कारण भी सूखा पड़ सकता है, जिससे मिट्टी खेती के लिये अनुपयुक्त हो जाती है और मृदा में जल की कमी हो जाती है। 
  • जलवायु परिवर्तन के अलावा भूमि क्षरण के परिणामस्वरूप सूखे में वृद्धि होती है। 

मरुस्थलीकरण और सूखे की स्थिति: 

  • पिछले दो दशकों (विश्व मौसम विज्ञान संगठन 2021) की तुलना में वर्ष 2000 से सूखे की घटनाओं और अवधि में 29% की वृद्धि हुई है। 
  • 55 मिलियन आबादी हर साल सूखे के कारण प्रभावित होती है और वर्ष 2050 तक तीन-चौथाई आबादी के प्रभावित होने की आशंका है। 
  • 2.3 अरब लोग पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे हैं। हम में से अधिक से अधिक लोग जल की अत्यधिक कमी वाले क्षेत्रों में रह रहे होंगे, जिसमें वर्ष 2040 तक अनुमानित चार बच्चों में से एक (संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष) शामिल होगा। इस प्रकार कोई भी देश सूखे से सुरक्षित नहीं है (यूएन-वाटर 2021)। 

उपाय

  • त्वरित वनीकरण और वृक्षारोपण की आवश्यकता। 
  • जल प्रबंधन- उपचारित जल की बचत, पुन: उपयोग, वर्षा जल संचयन, विलवणीकरण या लवणीय पौधों के लिये समुद्री जल का प्रत्यक्ष उपयोग। 
  • रेत की बाड़, हवा के झोंकों आदि से होने वाले मृदा क्षरण को रोकना।  
  • मिट्टी के समृद्ध और अति उर्वरीकरण की आवश्यकता।  
  • फार्मर मैने नेचुरल रीजेनरेशन (FMNR),  टहनियों की चयनात्मक छँटाई के माध्यम से अंकुरित वृक्षों की वृद्धि को सक्षम बनाता है। पेड़ों की छँटाई से उपलब्ध अवशेषों का उपयोग खेतों को मल्चिंग प्रदान करने के लिये किया जा सकता है जिससे मिट्टी में पानी की अवधारण क्षमता बढ़ जाती है और वाष्पीकरण कम हो जाता है। 

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (UNCCD): 

  • वर्ष 1994 में स्थापित यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
  • यह विशेष रूप से उन शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, इन स्थानों पर सबसे कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र पाए जाते हैं।  
  • कन्वेंशन की 197 पार्टियाँ शुष्क भूमि में लोगों के रहने की स्थिति में सुधार, भूमि और मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखने एवं बहाल करने तथा सूखे के प्रभाव को कम करने के लिये मिलकर काम करती हैं। 
  • यह विशेष रूप से अधोस्तरीय दृष्टिकोण के लिये प्रतिबद्ध है, जो मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से निपटने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है। UNCCD सचिवालय विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, विशेष रूप से स्थायी भूमि प्रबंधन के लिये ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु। 
  • एक एकीकृत दृष्टिकोण और प्राकृतिक संसाधनों के सर्वोत्तम संभव उपयोग के साथ इन जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिये भूमि, जलवायु  जैव विविधता की गतिशीलता घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। UNCCD अन्य दो रियो सम्मेलनों के साथ मिलकर सहयोग करता है: 
    • जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) 
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) 
  • यूएनसीसीडी 2018-2030 सामरिक फ्रेमवर्क: 
    • यह भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने के लिये सबसे व्यापक वैश्विक प्रतिबद्धता है, ताकि निम्नीकृत भूमि के विशाल विस्तार की उत्पादकता को बहाल किया जा सके, 1.3 बिलियन से अधिक लोगों की आजीविका में सुधार किया जा सके और कमज़ोर आबादी पर सूखे के प्रभाव को कम किया जा सके। 
  • यूएनसीसीडी और सतत् विकास: 
    • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), 2030 का लक्ष्य 15 घोषित करता है कि "हम ग्रह को क्षरण से बचाने हेतु दृढ़ संकल्पित हैं, जिसमें स्थायी खपत और उत्पादन, इसके प्राकृतिक संसाधनों का सतत् प्रबंधन तथा जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करना शामिल है, ताकि वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके’’। 

अन्य संबंधित पहलें: 

  • राष्ट्रीय पहल: 
    • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम: 
      • इसका उद्देश्य ग्रामीण रोज़गार के सृजन के साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण और विकास कर पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है। अब इसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है जिसे नीति आयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • मरुस्थल विकास कार्यक्रम: 
      • इसे वर्ष 1995 में सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और पहचाने गए रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को फिर से जीवंत करने हेतु शुरू किया गया था। 
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन: 
      • इसे वर्ष 2014 में 10 वर्ष की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और वनों के विस्तार के उद्देश्य से अनुमोदित किया गया था। 
  • वैश्विक पहल: 
    • बॉन चुनौती (Bonn Challenge) 
      • बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया की 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी। 
      • पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बॉन चुनौती पर स्वीकृति दी थी। 
        • वर्तमान में 26 लाख हेक्टेयर खराब पड़ी भूमि को बहाल करने का लक्ष्य संशोधित किया गया है   

स्रोत: पी.आई.बी.  


वेब 5.0

प्रिलिम्स के लिये:

वेब 5.0, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी 

मेन्स के लिये:

वेब 5.0, आईटी और कंप्यूटर। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में पूर्व ट्विटर सीईओ जैक डोर्सी ने एक नए विकेंद्रीकृत वेब प्लेटफॉर्म हेतु अपने विज़न की घोषणा की है जिसे वेब 5.0 कहा जा रहा है, इसे व्यक्तियों को उनकी "डेटा और पहचान का स्वामित्व" (Ownership Of Data And Identity) वापस करने के उद्देश्य से निर्मित किया जा रहा है। 

  • इसे पूर्व ट्विटर सीईओ बिटकॉइन बिनेस यूनिट, द ब्लॉक हेड द्वारा विकसित किया जा रहा है। वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) अरबों लोगों द्वारा अन्य लोगों के साथ बातचीत करने और जानकारी को पढ़ने और लिखने हेतु उपयोग किया जाने वाला प्राथमिक उपकरण है जिसका विकास वेब 1.0 से वेब 5.0 तक हुआ है। 

प्रमुख बिंदु:  

सबसे पहले हमें इंटरनेट के पुराने संस्करणों जैसे- वेब 1.0, वेब, 2.0 और वेब 3.0 को समझने की आवश्यकता है 

  • वेब 1.0, वैश्विक डिजिटल संचार नेटवर्क की पहली पीढ़ी है। इसे अक्सर "केवल पढ़ने के लिये" इंटरनेट के रूप में संदर्भित किया जाता है जो स्थिर वेब पेजों से निर्मित है और केवल निष्क्रिय रूप से जुड़ने की अनुमति देता है। 
  • वेब 2.0, वेब के विकास में अगला चरण है जिसके द्वारा "पढ़ने और लिखने" को इंटरनेट के माध्यम से संदर्भित किया गया। उपयोगकर्त्ता अब सर्वर एवं उन अन्य उपयोगकर्त्ताओं के साथ संचार कर सकते हैं जिससे सोशल वेब का निर्माण हुआ है। यह वर्ल्ड वाइड वेब है जिसका हम वर्तमान में उपयोग करते हैं। 
  • वेब 3.0, एक उभरता हुआ शब्द है जो “पठन, लेखन और निष्पादन वेब’ (read, write, execute Web) के रूप में एक विकेंद्रीकृत इंटरनेट है यह  ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी पर संचालित होगा।  
    • यह एक डिजिटल दुनिया के बारे में बताता है, जिसे ब्लॉकचेन तकनीक का लाभ उठाकर बनाया गया है, जहांँ लोग बिना किसी मध्यस्थ की आवश्यकता के एक-दूसरे के साथ बातचीत करने में सक्षम होते हैं। 
    • यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग द्वारा संचालित होगा जहांँ मशीनें इंसानों की तरह सूचनाओं की व्याख्या कर सकती हैं। 
  • वेब 5.0: 
    • वेब 5.0 (Web 5.0) को जैक डोर्सी की बिटकॉइन बिज़नेस यूनिट, ‘द ब्लॉक हेड’ (The Block Head– TBH) द्वारा विकसित किया जा रहा है। वेब 5.0 का उद्देश्य "एक अतिरिक्त विकेंद्रीकृत वेब का निर्माण करना है जो किसी के डेटा और पहचान को नियंत्रित कर सकता है"। 
    • वेब 5.0, वेब 2.0 और वेब 3.0 का संयुक्त संस्करण है, जो उपयोगकर्त्ताओं को 'इंटरनेट पर अपनी पहचान बनाए रखने और 'अपने डेटा को नियंत्रित करने' की अनुमति देगा। 
    • वेब 3.0 और वेब 5.0 दोनों ही सरकारों या उच्च तकनीक के कारण सेंसरशिप के खतरे के बिना, और महत्त्वपूर्ण आउटेज के डर के बिना एक इंटरनेट की कल्पना है 
    • महत्त्व: यह किसी व्यक्ति की "पहचान और नियंत्रण" को बदलने तथा उपयोगकर्त्ताओं को अपने स्वयं के डेटा पर नियंत्रण रखने के बारे में बात करता है, यह पूरी तरह से उपयोगकर्त्ता पर निर्भर करता है कि उसके डेटा को विकेंद्रीकृत ब्लॉकचेन पर गुमनाम रूप से एन्क्रिप्ट किया जाए या मुद्रीकरण और विज्ञापन के लिये उस डेटा को विक्रेताओं को बेचने के लिये। 

वेब 5.0 से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • निकट भविष्य में इस तकनीक के शायद ही कोई निहितार्थ हो क्योंकि यह एक बहुत ही प्रारंभिक चरण का विचार है और कोई नहीं जानता कि यह विचार कैसे उत्पन्न हुआ होगा। 
  • संप्रभु सरकार इस विकेंद्रीकृत मंच की अनुमति कैसे देगी जो किसी भी सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त है, यह सरकार और वेब 5.0 के प्रमोटरों के बीच विवाद का कारण बन सकता है। 
  • अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि तंत्र कैसे काम करेगा, इसे कौन नियंत्रित करेगा और महिलाओं, बच्चों आदि जैसे कमज़ोर लोगों के लिये सुरक्षा परिदृश्य क्या है। 

आगे की राह 

  • सरकार और प्रमोटर दोनों की ओर से एक उचित खाका व नीति के निर्माण की आवश्यकता है 
  • वास्तविक दुनिया में प्रभावकारिता का परीक्षण करने की आवश्यकता है। 
  • व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा की आवश्यकता और व्यक्तिगत गोपनीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
  • यह उद्यम पूंजीपतियों के लिये अपने स्वयं के लाभ हेतु मंच को नियंत्रित करने का एक और उपकरण नहीं बनना चाहिये 
  • इस प्रकार की नई और उभरती प्रौद्योगिकियों की अनदेखी करने के लिये सरकार द्वारा विनियमन निकाय की स्थापना की जानी चाहिये। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

“ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020) 

  1. यह एक सार्वजनिक बहीखाता है जिसका निरीक्षण हर कोई कर सकता है, लेकिन जिसे कोई एकल उपयोगकर्त्ता नियंत्रित नहीं करता है।  
  2. ब्लॉकचेन का स्ट्रक्चर और डिज़ाइन ऐसा है कि इसमें मौजूद सारा डेटा क्रिप्टोकरेंसी के बारे में ही होता है।  
  3. ब्लॉकचेन की बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर एप्लीकेशन बिना किसी की अनुमति के विकसित किये जा सकते हैं। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2 
(c) केवल 2 
(d) केवल 1 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • ब्लॉकचेन सार्वजनिक बहीखाता का एक रूप है, जो ब्लॉकों की एक शृंखला है, जिस पर निर्दिष्ट नेटवर्क प्रतिभागियों द्वारा उपयुक्त प्रमाणीकरण और सत्यापन के बाद लेन-देन के विवरण दर्ज किये जाते हैं एवं सार्वजनिक डेटाबेस पर संग्रहीत किये जाते हैं। सार्वजनिक बहीखाता को देखा जा सकता है लेकिन किसी एक उपयोगकर्त्ता द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। अत: विकल्प (d) सही है 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारत से गेहूंँ  निर्यात पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

गेहूंँ, विदेश व्यापार महानिदेशक (DGFT), FCI 

मेन्स के लिये:

बढ़ती मुद्रास्फीति और मुद्दे, संवृद्धि एवं विकास, मुद्रास्फीति से निपटने के लिये सरकार के कदम 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने भारत से आयातित गेहूंँ और आटे के निर्यात एवं पुनर्निर्यात को निलंबित कर दिया है। मूलतः यह एक आश्वासन है कि UAE जो कुछ भी आयात करता है उसका उपयोग केवल घरेलू खपत के लिये किया जाएगा। 

  • यह घटनाक्रम भारत द्वारा अपने घरेलू बाज़ार, पड़ोसी और कमज़ोर देशों की मांग को पूरा करने के लिये गेहूंँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद हुआ है। 
  • संयुक्त अरब अमीरात के अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम के मद्देनर आया है जिसने व्यापार प्रवाह को प्रभावित किया है। मंत्रालय ने भारत के साथ ठोस और रणनीतिक संबंधों की सराहना की है जो संयुक्त अरब अमीरात एवं भारत के बीच संबंधों को मज़बूती प्रदान करते हैं, खासकर दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किया जाने के बाद। 

भारत से गेहूंँ निर्यात की स्थिति: 

  • भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूंँ उत्पादक देश है लेकिन वैश्विक गेहूंँ व्यापार में इसका 1% से भी कम हिस्सा है। यह गरीबों के लिये रियायती भोजन उपलब्ध कराने हेतु इसका बहुत बड़ा हिस्सा अपने पास रखता है। 
  • इसके शीर्ष निर्यात बाज़ार बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका तथा साथ ही संयुक्त अरब अमीरात (UAE) हैं। 
  • गेहूंँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के कारण: 
    • भारत ने 13 मई, 2022 से गेहूंँ के निर्यात को निलंबित कर दिया है। सरकारी राजपत्र में प्रकाशित एक अधिसूचना में विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने इस प्रतिबंध को सही ठहराते हुए जानकारी दी है कि गेहूंँ की बढ़ती वैश्विक कीमतों ने न केवल भारत में बल्कि पड़ोसी व कमजोर देशों में भी खाद्य सुरक्षा पर दबाव डाला है। 
      • हालाँकि निर्यात की अनुमति तब दी जाएगी जब भारत सरकार अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने की अनुमति देती है और यदि उनकी सरकारें अनुरोध करती हैं। 
    • गेहूंँ के उत्पादन में कमी के कारण भी प्रतिबंध पर विचार किया गया था, क्योंकि इसके उत्पादन कि अवधि में मार्च-अप्रैल के दौरान देश हीटवेव से प्रभावित हुआ था, साथ ही भारतीय खाद्य निगम (FCI) बफर स्टॉक के लिये पर्याप्त स्टॉक जुटाने में असमर्थ था। 
    • बढ़ती महंँगाई ने भी इस कदम को प्रेरित किया। भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) 2022 की शुरुआत के 2.26 प्रतिशत से बढ़कर अब 14.55 हो गया है। खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण खुदरा मुद्रास्फीति भी अप्रैल में आठ साल के उच्च स्तर (7.79 प्रतिशत) पर पहुंँच गई। 

गेहूंँ निर्यात पर भारत के प्रतिबंध का प्रभाव: 

  • भारत पर प्रभाव: 
    • भारत की घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति पर गेहूंँ के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव कम होने की संभावना है। यह निर्यात प्रतिबंध एक पूर्व-प्रभावी कदम है और स्थानीय गेहूंँ की कीमतों को काफी हद तक बढ़ने से रोक सकता है। 
    • हालांँकि घरेलू गेहूंँ के उत्पादन की संभावना हीटवेव कि वजह से सीमित होने के कारण स्थानीय गेहूंँ की कीमतें भौतिक रूप से कम नहीं हो सकती हैं। 
  • विश्व पर प्रभाव: 
    • यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण दुनिया के ब्रेड बास्केट के रूप में प्रसिद्ध क्षेत्र में गेहूंँ के उत्पादन में गिरावट आई है। रूस और यूक्रेन संयुक्त रूप से दुनिया में गेहूंँ निर्यात में 25% कि हिस्सेदारी रखते हैं। इससे गेहूंँ की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और आपूर्ति  के मामले में खराब स्थिति उत्पन्न हो गई है। 
    • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूंँ उत्पादक और सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। जब सरकार ने बढ़ती कीमतों के कारण गेहूंँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इसका विरोध हुआ। 
    • एशिया में ऑस्ट्रेलिया और भारत को छोड़कर अधिकांश अन्य अर्थव्यवस्थाएंँ घरेलू खपत के लिये आयातित गेहूंँ पर निर्भर हैं तथा वैश्विक स्तर पर गेहूंँ की ऊंँची कीमतों के कारण इन पर जोखिम उत्पन्न हो गया हैं, भले ही वे सीधे भारत से आयात न करें। 
    • यह हालिया निर्यात प्रतिबंध दुनिया भर में कीमतों को बढ़ाएगा और अफ्रीका एवं एशिया में गरीब उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा 

भारत के लिये गेहूँ निर्यात का महत्त्व: 

  • शुद्ध विदेशी मुद्रा अर्जक: यह भारत को एफसीआई के गोदामों में गेहूँ के खराब स्टॉक को कम करने में मदद करेगा और निर्यात बढ़ाकर विदेशी बाज़ारों पर कब्ज़ा करने का अवसर प्रदान करेगा। 
    • निर्यात में वृद्धि से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी और भारत के चालू खाता घाटे में कमी आएगी। 
  • भारत की सद्भावना छवि: भारत ज़रूरतमंद और कमज़ोर देशों को गेहूँ का निर्यात करके उन देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर सकता है, जिनके साथ उसके भावनात्मक संबंध थे एवं अन्य देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने में मदद मिलेगी। 
  • विविध अवसर: अवसरों में गेहूँ जैसे खाद्यान्न का निर्यात और विनिर्मित वस्तुओं के उन गंतव्यों को निर्यात किये जाने की संभावना शामिल थी जिनके लिये आपूर्ति अविश्वसनीय हो गई थी। 
  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: जब वैश्विक कीमतों में वृद्धि हुई है, तब भारत की गेहूँ की दरें अपेक्षाकृत प्रतिस्पर्द्धी हैं। 
  • निर्यात टोकरी में विविधता लाना: यह भारत को उन देशों के साथ व्यापार संबंध बनाने में मदद करेगा जिनके साथ उसका व्यापार नगण्य या कम था। 

आगे की राह 

  • यद्यपि भारत द्वारा कदम खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और घरेलू कीमतों को स्थिर करने के वास्तविक आधार पर यह उठाया गया है, लेकिन इसे दुनिया को उसी तरह से संप्रेषित करने की आवश्यकता है, अन्यथा इससे विश्व राजनीति में भारत की प्रतिष्ठा का नुकसान होगा और इसकी छवि ख़राब होगी। 
  • भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कमज़ोर और पड़ोसी देशों की खाद्य सुरक्षा बाधित न हो, अन्यथा इससे राजनयिक संबंधों में तनाव पैदा होगा। 

गेहूंँ: 

  • गेहूंँ के बारे में:  
    • यह चावल के बाद भारत में दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। 
    • यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भाग की मुख्य खाद्यान्न फसल है। 
    • गेहूँ रबी की एक फसल है जिसे पकने के समय ठंडे मौसम और तेज़ धूप की आवश्यकता होती है। 
    • हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों विशेषकर गेहूँ के विकास में योगदान दिया। 
    • कृषि हेतु मैक्रो मैनेजमेंट मोड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती को समर्थन प्रदान करने के लिये कुछ सरकारी पहलें हैं। 
  • तापमान: तेज़ धूप के साथ 10-15 डिग्री सेल्सियस (बुवाई के समय) और 21-26 डिग्री सेल्सियस (पकने व कटाई के समय) के बीच। 
  • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.। 
  • मृदा का प्रकार: अच्छी तरह से सूखी उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट (गंगा-सतलुज मैदान तथा दक्कन का काली मिट्टी क्षेत्र)। 
  • शीर्ष गेहूँ उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश> पंजाब> हरियाणा> मध्य प्रदेश>> राजस्थान> बिहार> गुजरात 

यूपीएससी सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: 

  1. कपास 
  2. मँंगफली 
  3. चावल 
  4. गेहूँ 

इनमें से कौन सी खरीफ फसलें हैं? 

(a) केवल 1 और 3  
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1, 2 और 3  
(d) केवल 2, 3 और 4  

उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • भारत में फसल के तीन मौसम हैं, रबी, खरीफ और ज़ायद। रबी की फसल अक्तूबर से दिसंबर तक सर्दियों में बोई जाती है और गर्मियों में अप्रैल से जून तक काटी जाती है। 
  • देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून की शुरुआत के साथ खरीफ की फसलें उगाई जाती हैं और इनकी कटाई सितंबर- अक्तूबर में की जाती है। 
  • रबी और खरीफ के मौसम के बीच गर्मियों के महीनों के दौरान एक छोटा मौसम होता है जिसे ज़ायद के मौसम के रूप में जाना जाता है। ज़ायद' के दौरान उत्पादित कुछ फसलें तरबूज, कस्तूरी, ककड़ी, सब्जियांँ और चारा फसलें हैं। 
  • खरीफ फसलें: चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, फिंगर बाजरा या रागी (अनाज), अरहर (दाल), सोयाबीन, मँंगफली (तिलहन), कपास, आदि। अत: 1, 2 और 3 सही हैं। 
  • रबी की फसलें: गेहूंँ, जौ, जई (अनाज), चना (दाल), अलसी, सरसों (तिलहन), आदि। अत: 4 सही नहीं है। 

अत: विकल्प (C) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


बैरेंट्स सागर का तापन

प्रिलिम्स के लिये:

बैरेंट्स सागर, एटलांटिफिकेशन, ग्लोबल वार्मिंग, जेट स्ट्रीम। 

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और संरक्षण। 

चर्चा में क्यों? 

एक अध्ययन के अनुसार, यह कहा गया है कि नॉर्वे के पास आर्कटिक क्षेत्र के हिस्से दुनिया के बाकी हिस्सों में गर्मी की दर से सात गुना अधिक गर्म हो रहे हैं। 

  • उत्तरी बैरेंट्स सागर के आसपास का क्षेत्र आर्कटिक क्षेत्र की औसत वार्मिंग से दो से ढाई गुना और बाकी दुनिया में पाँच से सात गुना गर्म हो रहा है। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में इस तरह की तीव्र गर्मी पहले कभी नहीं देखी गई। यह एटलांटिस की घटना के लिये अग्रणी है। 

Arctic_Ocean

बैरेंट्स सागर 

  • बैरेंट्स सागर पश्चिम में नॉर्वेजियन और ग्रीनलैंड सागर, उत्तर में आर्कटिक सागर तथा पूर्व में कारा सागर की सीमा में है। 
  • सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, बैरेंट्स सागर को रूस और नॉर्वे के बीच विभाजित किया गया है। 

एटलांटिफिकेशन: 

  • वैज्ञानिकों ने 'हॉटस्पॉट्स' की खोज की है, जहाँ बैरेंट्स सागर के कुछ हिस्से अटलांटिक से मिलते-जुलते पाए गए हैं। इस घटना को एटलांटिफिकेशन कहा गया है। 
  • उत्तर की ओर बहने वाली समुद्री धाराएँ अटलांटिक के गर्म पानी को बैरेंट्स सागर के माध्यम से आर्कटिक महासागर में पहुँचाती हैं। 
    • अटलांटिक और प्रशांत के विपरीत यूरेशियन आर्कटिक महासागर का ऊपरी जल गहरा होने पर गर्म हो जाता है। 
    • समुद्र का शीर्ष आमतौर पर समुद्री बर्फ से ढका होता है। इसके नीचे ठंडे मीठे पानी की एक परत होती है, जिसके बाद गर्म खारे पानी की एक गहरी परत अटलांटिक से महासागरीय धाराओं द्वारा आर्कटिक तक पहुँच जाती है। 
  • नासा के आँकड़ों के अनुसार, 1980 के दशक की शुरुआत में उपग्रह रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से इस क्षेत्र में समुद्री बर्फ से ढका कुल क्षेत्रफल लगभग आधा हो गया है। 
  • इसका एक संभावित कारण यह है कि जब समुद्री बर्फ गर्मियों में पिघलती है, तो यह ताज़े पानी की परत को ढक देती है जो गर्म अटलांटिक परत के ऊपर स्थित होती है। चारों ओर कम समुद्री बर्फ के साथ मीठे पानी की मात्रा कम हो जाती है, यह बदले में समुद्र को एक साथ मिलाने का कारण बनता है और अधिक अटलांटिक की गर्मी को सतह की ओर खींचता है तथा बदले में यह "अटलांटिफिकेशन" नीचे से अधिक बर्फ पिघलने का कारण बन सकता है। 
  • मानव जनित वैश्विक जलवायु परिवर्तन ‘’अटलांटिफिकेशन प्रोसेस’’को (Atlantification Process) तेज़ कर रहा है और बदले में मौसम के पैटर्न, समुद्र के संचलन व पूरे आर्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। 

वार्मिंग के संभावित परिणाम: 

  • अधिक चरम मौसम: 
    • आर्कटिक के असाधारण वार्मिंग से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में अधिक चरम मौसम की स्होथिति उत्पन्न हो सकती है। 
    • आर्कटिक दुनिया का सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला क्षेत्र है, जिसका अनुमान बाकी दुनिया में वार्मिंग की दर से दो से चार गुना अधिक है। 
      • इसका कारण समुद्री बर्फ के पिघलने का बंद लूप का और तेजी से गर्म होना है। 
  • अधिक बर्फ का पिघलना: 
    • जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र गर्म होता है, समुद्री बर्फ पिघलने लगती है और नीचे समुद्र की सतह को उजागर करती है। सतह समुद्री बर्फ की तुलना में अधिक ऊर्जा अवशोषित करती है और वार्मिंग को बढ़ाती है, जिससे अधिक समुद्री बर्फ पिघलती है एवं फीडबैक लूप का निर्माण होता है। 
  • समिट स्टेशन ग्रीनलैंड में पहली बार दर्ज की गई वर्षा: 
    • आर्कटिक क्षेत्र के तेज़ी से गर्म होने से पहले ही मौसम में काफी बदलाव हो गया है जैसे कि अगस्त 2021 में ग्रीनलैंड के समिट स्टेशन पर पहली बार दर्ज की गई बारिश और जुलाई में बैक-टू-बैक तूफान का आना। 
  • तड़ितझंझा के मामलों में वृद्धि: 
    • तड़ितझंझा के हमले जो कभी इस क्षेत्र में दुर्लभ थे, पिछले एक दशक में आठ गुना बढ़ गए हैं। 
      • तूफान और तड़ितझंझा के हमले आमतौर पर इस क्षेत्र में नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें संवहन प्रणाली निर्मित करने हेतु अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है। 
      • लेकिन तेज़ गर्मी अब ऊष्मा उपलब्ध करा रही है। 
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: 
    • 1980 के दशक के बाद से इस क्षेत्र के गर्म होने के कारण यह उत्तर की ओर शिफ्ट हो गया है और अटलांटिक मछली प्रजातियों की बहुतायत में वृद्धि हुई है तथा आर्कटिक मछली प्रजातियों की प्रचुरता में कमी आई है। 
  • अत्यधिक हिमपात: 
    • बैरेंट सागर के गर्म होने से भी वर्ष 2018 में यूरोप के अधिकांश हिस्सों में अत्यधिक हिमपात की घटना देखी गई, जिसे अक्सर ' Beast from the East ' कहा जाता है। 
      • लगभग 140 गीगाटन पानी बैरेंट्स सागर से वाष्पित हो गया और उसने इस दौरान पूरे यूरोप में गिरने वाली बर्फ में 88% का योगदान दिया। 
  • चरम मौसमी घटनाएँ: 
    • आर्कटिक के दक्षिण में चरम मौसमी घटनाएंँ आर्कटिक जेट स्ट्रीम के माध्यम से क्षेत्र की गर्मी से संबंधित हैं।  
      • जेट स्ट्रीम आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर बहने वाली हवाओं का एक बैंड है जो आमतौर पर इस क्षेत्र में ठंडी आर्कटिक वायु ले आती है। 
    • लेकिन अत्यधिक और तेज़ी से गर्म होने के कारण यह जेट स्ट्रीम लहरदार हो रही है, जिसके कारण ठंडी हवा निचले अक्षांशों से आने वाली गर्म हवा के साथ कई बार मिल जाती है, जिससे चरम मौसमी घटनाएंँ हो रही हैं। 
    • भारत में आर्कटिक गर्मी को वर्ष 2022 में अधिकांश उत्तर-पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में मार्च, अप्रैल, मई और जून में प्रचंड गर्मी की लहरों से जोड़ा जाता है। 
    • वर्ष 2018 में गर्म उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र को असामान्य और घातक धूल भरी आंधियों के कारक के रूप में भी देखा  गया था, जिसने पूरे उत्तर भारत में लगभग 500 लोगों की जान ले ली थी। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2ºC से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये। यदि विश्व तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3ºC से अधिक बढ़ जाता है, तो विश्व पर उसका संभावित प्रभाव क्या होगा? 

  1. स्थलीय जीवमंडल एक नेट कार्बन स्रोत की ओर प्रवृत्त होगा। 
  2. विस्तृत प्रवाल मर्त्यता घटित होगी। 
  3. सभी भूमंडलीय आर्द्रभूमि स्थायी रूप से लुप्त हो जाएंगी। 
  4. अनाज़ों की खेती विश्व में कहीं भी संभव नहीं होगी। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: B 

व्याख्या: 

  • 3ºC से ऊपर तापमान बढ़ने से समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा और पौधों की प्रजातियों को नुकसान होगा। अमेज़ॅन वर्षावन, जिसके पौधे दुनिया के 10% स्थलीय प्रकाश संश्लेषण का उत्पादन करते हैं, सवाना में बदल सकते हैं क्योंकि सूखा एवं जंगल की आग वर्षावन को नष्ट कर देगी, पौधों को वापस CO2 में बदल देगी क्योंकि वे जल कर नष्ट हो जाएंगे। 
  • वन विनाश के कारण उत्पन्न कार्बन  और भी अधिक कार्बन से जुड़ जाएगा, साथ में वैश्विक तापमान को 1.5ºC और बढ़ा देगा। अत: कथन 1 सही है। 
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन होगा और आगे समुद्र में CO2 के जुड़ने से कैल्सीफिकेशन दर कम होगी तथा प्रवाल मृत्यु दर में वृद्धि होगी। अत: कथन 2 सही है। 
  • जलवायु परिवर्तन के लिये आर्द्रभूमि आवास प्रतिक्रियाओं और बहाली के लिये निहितार्थ को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अलग-अलग महसूस किया जाएगा। इस प्रकार, इसे बहाल किया जा सकता है और स्थायी रूप से लुप्त नहीं होगा। अतः 3 सही नहीं है। 
  • जलवायु परिवर्तन उस पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है जो भोजन प्रदान करता है, और इसलिये भोजन की हमारी सुरक्षा उन पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। 
    • कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में वृद्धि से प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि के कारण चावल, सोयाबीन और गेहूंँ जैसी कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि कर सकती है। 
    • हालांँकि, बदलती जलवायु मौसम की अवधि और गुणवत्ता को प्रभावित करेगी। इस प्रकार, अनाज की खेती विलुप्त होने के बज़ाय उत्पादन में बड़ा अंतर पैदा करेगी। अत: कथन 4 सही नहीं है। 

अतः विकल्प (B) सही  है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


FATF की ग्रे लिस्ट

प्रिलिम्स के लिये:

FATF, G7, OECD, यूरोपीय आयोग, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल। 

मेन्स के लिये:

मनी लॉन्ड्रिंग, भारत और उसके पड़ोस, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान। 

चर्चा में क्यों? 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने जर्मनी के बर्लिन में तीन दिन चले अधिवेशन में पाकिस्तान को बड़ी राहत दी है. उसने पाकिस्तान को 'ग्रे लिस्ट' से हटाने का फैसला किया। FATF अक्तूबर में पूर्ण सत्र के दौरान इसकी आधिकारिक घोषणा कर सकता है 

  • पाकिस्तान जून 2018 से लगातार FATF की ग्रे लिस्ट में है। 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF): 

  • परिचय: 
    • यह एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसे 1989 में पेरिस में 1989 में G7 शिखर सम्मेलन के दौरान स्थापित किया गया था।  
  • अधिदेश: 
    • 9/11 के हमलों के बाद अक्तूबर 2001 में FATF ने आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के प्रयासों को शामिल करने के लिये अपने जनादेश का विस्तार किया। 
    • अप्रैल 2012 में, इसने सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के वित्तपोषण का मुकाबला करने के प्रयासों को जोड़ा। 
    • FATF ने FATF अनुशंसाएँ या मानक विकसित किये हैं, जो संगठित अपराध, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को रोकने के लिये एक समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करते हैं। 
      • दुनिया भर के 200 से अधिक न्यायालय नौ क्षेत्रीय निकायों और FATF सदस्यता के वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से FATF सिफारिशों के लिये प्रतिबद्ध हैं। 
  • FATF का गठन: 
    • FATF में वर्तमान में 37 सदस्य क्षेत्राधिकार और दो क्षेत्रीय संगठन (यूरोपीय आयोग व खाड़ी सहयोग परिषद) शामिल हैं, जो दुनिया के सभी हिस्सों में सबसे प्रमुख वित्तीय केंद्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
      • भारत 2010 से FATF का सदस्य है। 
      • भारत इसके क्षेत्रीय साझेदारों, एशिया पैसिफिक ग्रुप (APG) और यूरेशियन ग्रुप (EAG) का भी सदस्य है। 
  • मुख्यालय: 
  • FATF की सूचियाँ: 
    • ग्रे लिस्ट:  
      • जिन देशों को टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का समर्थन करने के लिये सुरक्षित स्थल माना जाता है, उन्हें FATF की ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया है। 
      • इस सूची में शामिल किया जाना संबंधित देश के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है कि उसे ब्लैक लिस्ट में शामिल किया सकता है। 
    • ब्लैक लिस्ट:  
      • असहयोगी देशों या क्षेत्रों (Non-Cooperative Countries or Territories- NCCTs) के रूप में पहचाने जाने वाले देशों को ब्लैक लिस्ट में शामिल किया जाता है। ये देश आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों का समर्थन करते हैं। 
      • इस सूची में देशों को शामिल करने अथवा हटाने के लिये FATF इसे नियमित रूप से संशोधित करता है। 
      • वर्तमान में ईरान और डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK) उच्च जोखिम वाले क्षेत्राधिकार या ब्लैक लिस्ट में हैं। 
  • सत्र/अधिवेशन: 
    • एफएटीएफ प्लेनरी (FATF Plenary) FATF की निर्णय लेने वाली संस्था है।  
      • प्रतिवर्ष तीन बार इसके सत्र का आयोजन होता है। 

ग्रे लिस्ट क्या है तथा  पाकिस्तान के इसमें शामिल होने के कारण? 

  • ग्रे लिस्ट के बारे में: 
    • ग्रे लिस्टिंग का मतलब है कि FATF ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ उपायों पर अपनी प्रगति की जाँच करने के लिये एक देश को निगरानी में रखा है। 
      • "ग्रे सूची" को "बढ़ी हुई निगरानी सूची" के रूप में भी जाना जाता है। 
  • ग्रे लिस्ट में शामिल देश: 
    • मार्च 2022 तक FATF की बढ़ी हुई निगरानी सूची/लिस्ट में 23 देश हैं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर "रणनीतिक कमियों वाले क्षेत्राधिकार" के रूप में जाना जाता है, जिसमें पाकिस्तान, सीरिया, तुर्की, म्याँमार, फिलीपींस, दक्षिण सूडान, युगांडा और यमन शामिल हैं। 
  • लिस्ट से हटाना: 
    • ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिये किसी देश को FATF द्वारा अनुशंसित कार्यों को पूरा करना होता है, उदाहरण के लिये आतंकवादी समूहों से जुड़े व्यक्तियों की संपत्तियों को जब्त करना। 
    • अगर FATF प्रगति से संतुष्ट है, तो वह देश को लिस्ट से हटा देता है। 
    • FATF ने हाल ही में जिम्बाब्वे और उससे पहले बोत्सवाना तथा मॉरीशस को ग्रे लिस्ट से हटा दिया था 
      • जिम्बाब्वे ने अपने AML/CFT शासन की प्रभावशीलता को मज़बूत किया है और अक्तूबर 2019 में FATF द्वारा पहचानी गई रणनीतिक कमियों के संबंध में अपनी कार्ययोजना में प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये संबंधित तकनीकी कमियों को दूर किया है। 
      • AML/CFT का अर्थ है "धन शोधन रोधी/आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करना"। 
      • पाकिस्तान के मामले में पहले वर्ष 2008 में इसे लिस्ट में शामिल किया गया तथा फिर बाहर कर दिया गया, उसके बाद पुनः वर्ष 2012 से 2015 तक वह सूची में शामिल रहा तथा वर्ष 2018 से लिस्ट में निरंतर बना हुआ है। 
      • FATF ने जून 2018 में पाकिस्तान को 'ग्रे लिस्ट' में रखने के बाद 27-सूत्रीय कार्ययोजना जारी की थी। यह कार्ययोजना मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने से संबंधित है। वर्ष 2019 में FATF के क्षेत्रीय साझेदार- एशिया पैसिफिक ग्रुप (APG) द्वारा एक समानांतर कार्ययोजना सौंपी गई थी। 

ग्रे-लिस्टिंग का किसी देश पर प्रभाव:  

  • यदि कोई देश ग्रे सूची में है, तो यह वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली को उस देश के साथ लेन-देन में बढ़ते जोखिम का संकेत देता है। 
  • इसके अलावा यह देखते हुए कि IMF और WB जैसे प्रमुख वित्तीय संस्थान FATF से पर्यवेक्षकों के रूप में संबद्ध हैं, एक ग्रे-सूचीबद्ध देश अंतर्राष्ट्रीय ऋण साधनों तक पहुंँचने में जटिलताओं का सामना करता है। 
    • एक उदाहरण जुलाई 2019 का है, 6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के IMF ऋण अनुबंध का है जिसने पाकिस्तान को FATF की कार्रवाई का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। 
    • पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खराब स्थिति में है और वह सऊदी अरब तथा चीन से ऋण सहायता के बावजूद गंभीर रूप से कम विदेशी मुद्रा भंडार से जूझ रहा है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस