भारतीय समाज
पूर्वोत्तर भारत एवं एक्सोन
प्रीलिम्स के लिये:एक्सोन मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर जनजातीय संस्कृति में एक्सोन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मेलबोर्न के मानवविज्ञानी (Melbourne Anthropologist), जो वर्तमान में किण्वन पर अपना शोधकार्य कर रहे हैं, के द्वारा पूर्वोत्तर भारत में खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किये जाने वाले एक्सोन (Axone) की प्रासंगिकता के बारे में बताया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- एक्सोन को पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में कई आदिवासी समुदायों द्वारा अलग-अलग नामों से पकाया, खाया और जाना जाता है।
- इसे किण्वित सोयाबीन (Fermented Soyabean) के रूप में भी जाना जाता है।
- नगालैंड के कुछ हिस्सों में इसे एक्सोन के नाम से जाना जाता है।
- इसकी मुख्य विशेषता इसकी विशिष्ट गंध (Distinctive Smell) है, जिसे आदिवासी पहचान एवं संस्कृति के साथ जोड़कर देखा जाता है।
क्या है एक्सोन?
- यह एक किण्वित भोज्य पदार्थ है, जिसे अकुनि (Akhuni) भी कहा जाता है।
- इसका प्रयोग पूर्वी हिमालय क्षेत्र में किया जाता है।
- यह किण्वन की एक विस्तृत/व्यापक अवधारणा है जो खाद्य पदार्थों के संरक्षण के लिये कुछ विशेष पारिस्थितिक संदर्भों में ज़रूरी है।
- किण्वन एक उपापचय प्रक्रिया है यह एंज़ाइमों के माध्यम से कार्बनिक पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करती है।
- एक्सोन का उपयोग अचार और चटनी बनाने के साथ-साथ सूअर का मांस, मछली, चिकन, बीफ इत्यादि की करी को स्वादिष्ट बनाने के लिये किया जाता है।
- इसका प्रयोग माँसाहारी के साथ-साथ शाकाहारी खाद्य पदार्थों में भी एक विशिष्ट स्वाद उत्पन्न करता है।
- इसका प्रयोग मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, मणिपुर के साथ-साथ अन्य दक्षिण, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों में अलग- अलग नामों के साथ किया जाता हैं। जिनमें नेपाल, भूटान, जापान, कोरिया, चीन, म्यांमार, वियतनाम एवं इंडोनेशिया इत्यादि देश शामिल हैं ।
- एक्सोन का स्वाद जापानी मिसो जो कि जापानी रेस्तरां में प्रयोग किये जाना वाला एक खाद्य पदार्थ है, से काफी समानता रखता है।
नगालैंड में यह कितना लोकप्रिय है?
- एक्सोन नगालैंड में सूमी (Sumi) जनजाति जिसे सेमा (Sema) भी कहा जाता है, के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है।
- इस जनजाति द्वारा इसका प्रयोग सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
- नगालैंड की खाद्य संस्कृति चावल पर केंद्रित है है जिसमे नमकीन, मसालेदार, उत्तेजक एवं किण्वित एक्सोन को मुख्य भोजन (चावल) के साथ प्रयोग किया जाता है।
एक्सोन कैसे तैयार किया जाता है?
- इसे बनाने की दो विधियाँ है-
- पहली सुखाकर
- दूसरी पेस्ट बनाकर
- दोनों ही विधियों में समान रूप से तैयारी की जाती हैं।
- रात भर सोयाबीन को पानी में भिगोते हैं इसके बाद इस पानी को तब तक उबालते हैं जब तक कि यह नरम न हो जाए।
- अब सोयाबीन को पानी से निकालकर केले के पत्तों के साथ पंक्तिबंध रूप में बाँस की टोकरी में रखा जाता है।
- इसके बाद इसे किण्वन की प्रक्रिया के लिये रखा जाता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में किण्वन की प्रक्रिया के लिये इसे रसोईघरों की चिमनी में ऊपर तथा शहरी क्षेत्रों में इसे छत पर सीधे धूप में रखा जाता है।
- किण्वित हो जाने के बाद इसे मैश (mashed) करके केक बनाया जाता है तथा केले के पत्तों में लपेटकर फिर से किण्वन के लिये रखा जाता है।
क्या एक्सोन आदिवासी पहचान और संस्कृति में भूमिका निभाते हैं?
- पूर्वोत्तर भारत की आदिवासी लोककथाओं में भी एक्सोन की उत्पत्ति, इसकी विशिष्ट गंध तथा इससे बनने वाले खाद्य पदार्थों का वर्णन मिलता है।
- पिछले दो दशकों में नगालैंड से लोग दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में जा रहे हैं जिसके चलते एक्सोन का विस्तार अन्य महानगरों में भी हो गया है।
- इसके अलावा, देश के अन्य क्षेत्रों में भी पूर्वोत्तर जनजातीय भोजन परोसने वाले रेस्तरां की संख्या देखने को मिलती है अतः एक्सोन की न केवल पूर्वोत्तर भारत में नहीं बल्कि अन्य महानगरों में भी पसंद किया जाने वाला भोज्य पदार्थ है।
- इसकी तीखी गंध के कारण रेस्तरां मेनू आदि में इसे शामिल करने के कारण एक प्रकार की नस्लीय राजनीति को भी बढ़ावा मिला है अर्थात किण्वित भोजन की गंध के आधार पर वर्ग विशेष को बहिष्कार के अनुभवों का सामना करना पड़ सकता है।
- इस प्रकार की कोई भी घटना आदिवासी पहचान और संस्कृति के लिये भविष्य में संकट उत्पन्न कर सकती है।
निष्कर्ष:
भारत विश्वपटल पर सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ-साथ विश्व के सबसे अधिक विविधतापूर्ण सांस्कृतिक देश का प्रतिनिधित्व भी करता है जिसमे विभिन्न वर्गों के साथ जनजातीय समुदाय द्वारा अपनी विशिष्ट भाषा संस्कृति एवं खानपान पद्धति को संजोया गया है। भारतीय संविधान में वर्णित मूल अधिकार जो जीने के लिये मौलिक एवं अनिवार्य है, जनजातीय समुदाय के इन हितों को संरक्षण प्रदान करते हैं, अतः एक भारतीय होने के साथ-साथ नैतिक स्तर पर भी इस बात की आवश्यकता है कि हम सभी को एक दूसरे के सांस्कृतिक एवं अन्य परम्पराओं का सम्मान करना चाहिये ताकि इस विविधतापूर्ण संस्कृति को संरक्षित किया जा सके एवं एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकारित किया जा सके।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक और भारत
प्रीलिम्स के लियेएशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक मेन्स के लियेCOVID-19 से मुकाबले में अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
चीन स्थित एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank-AIIB) ने भारत को गरीब एवं कमज़ोर परिवारों पर COVID-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने में मदद करने के लिये 750 मिलियन डॉलर के ऋण को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- भारत द्वारा इस ऋण राशि का प्रयोग अनौपचारिक क्षेत्र समेत देश भर के सभी व्यवसायों की वित्तीय स्थिति को मज़बूत करने, ज़रूरतमंदों के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार करने और देश की स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की दिशा में किया जाएगा।
- इसके पूर्व हाल ही में एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने भारत को COVID-19 से मुकबला करने के लिये 500 मिलियन डॉलर का ऋण दिया था। नए ऋण के साथ ही भारत को दिया गया AIIB का कुल ऋण 3.06 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
ऋण सहायता का महत्त्व
- एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक के अनुसार, विश्व के कई निम्न और मध्यम आय वाले देश अभी भी स्वास्थ्य संकट के शुरुआती दौर में हैं किंतु उन पर महामारी का काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- COVID-19 महामारी देश भर में उन लाखों लोगों के लिये एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत में 270 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं और लगभग 81 मिलियन लोग घनी आबादी वाली झुगी-बस्तियों में रहते हैं, जिसके कारण ये लोग स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहते हैं।
- देश में आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं, जिसके कारण देश भर के अधिकांश गरीब परिवार इस महामारी के प्रति काफी संवेदनशील हो गए हैं, खासकर महिलाएँ, जिनमें से कई अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं।
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक(Asian Infrastructure Investment Bank-AIIB)
|
भारत और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक
- उल्लेखनीय है कि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि AIIB का वास्तविक लक्ष्य संपूर्ण एशिया में चीन के राजनीतिक कद का विस्तार करना है।
- बीते कुछ दिनों में क्षेत्रीय और सीमा विवादों के कारण भारत-चीन के संबंधों में काफी तनाव आया है और दोनों देशों के संबंध अब एक नए मोड़ पर पहुँच गए हैं।
- कश्मीर में विवादित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर भी दोनों देशों के संबंधों पर काफी प्रभाव पड़ा था।
- भारत, चीन की विदेश और विस्तारवादी नीति को लेकर भी चिंता ज़ाहिर करता आया है।
- भारत और चीन के बीच उपरोक्त मुद्दों के बावजूद AIIB एशिया के विकास में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- AIIB मौजूदा परिदृश्य में COVID-19 से मुकाबला करने के लिये भी भारत की काफी मदद कर रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994
प्रीलिम्स के लियेगर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 मेन्स के लियेप्रसव पूर्व लिंग निर्धारण और लिंग चयन से संबंधी चुनौतियाँ और उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को COVID-19 संबंधी देशव्यापी लॉकडाउन के बीच प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण और लिंग चयन के विरुद्ध मौजूदा संसदीय कानून के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को जून माह के अंत तक निलंबित करने के निर्णय को लेकर व्याख्या प्रस्तुत करने को कहा है।
प्रमुख बिंदु
- जस्टिस यू. यू. ललित के नेतृत्त्व में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस संबंध में दायर याचिका पर कार्यवाई करते हुए केंद्र सरकार को एक औपचारिक नोटिस जारी किया है।
- ध्यातव्य है कि कुछ ही समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 4 अप्रैल को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, उल्लेखनीय है कि इस अधिसूचना में 30 जून, 2020 तक ‘गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
- इस संबंध में दायर याचिका में याचिकाकर्त्ता ने प्रश्न किया कि सरकार किस प्रकार किसी संसदीय कानून के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर एक अधिसूचना के माध्यम से अस्थायी रोक लगा सकती है।
- अधिसूचना के माध्यम से निलंबित प्रावधानों में ‘गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 का नियम 8 आनुवांशिक परामर्श केंद्रों, प्रयोगशालाओं और क्लीनिकों के अनिवार्य पंजीकरण से संबंधित है।
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना
- सरकार ने अधिसूचना के माध्यम से गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के नियम 8, 9(8) और 18A(6) को निलंबित कर दिया था।
- उक्त सभी नियम कुछ प्रशासनिक प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।
- नियम 8 आनुवांशिक परामर्श केंद्रों, प्रयोगशालाओं और क्लीनिकों के अनिवार्य पंजीकरण से संबंधित है। अधिसूचना के अनुसार, अपने लाइसेंस के नवीनीकरण की मांग करने वाली प्रयोगशालाओं को 30 जून तक ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- नियम 18A(6) सभी उपयुक्त अधिकारियों को सरकार को एक त्रैमासिक रिपोर्ट (Quarterly Report) प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है, साथ ही इस नियम के तहत सभी लाइसेंस प्राप्त चिकित्सकों को अपना रिकॉर्ड बनाए रखना आवश्यक है।
- इसके अतिरिक्त गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के नियम 9(8) को भी अधिसूचना के माध्यम से कुछ समय के लिये निलंबित कर दिया गया था। यह नियम सभी अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों के लिये गर्भावस्था से संबंधित विभिन्न प्रक्रियाओं और परीक्षणों की एक विस्तृत रिपोर्ट ज़िला चिकित्सा अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है।
- स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस नियम के निलंबन के बावजूद अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों को संबंधित रिकॉर्ड बनाने होंगे, केवल उनके रिकॉर्ड प्रस्तुत करने की तारीख को परिवर्तित किया गया है।
प्रावधानों के निलंबन की आलोचना
- केंद्र सरकार के इस निर्णय पर विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने एक ऐसे कानून को कमज़ोर करने का प्रयास किया है, जिसका उद्देश्य लिंग-चयन और लिंग-निर्धारण की खतरनाक गतिविधि पर अंकुश लगाना है, इसके नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत में लैंगिक पक्षपातपूर्ण लिंग चयन की प्रथा के कारण जन्म के समय से ही गायब लड़कियों की संख्या वर्ष 2001-12 की अवधि में प्रति वर्ष 0.46 मिलियन थी।
- विशेषज्ञों का मत है कि इसके कारण लिंग निर्धारण की निंदनीय प्रथा को बढ़ावा मिलेगा।
गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994
- वर्ष 1994 में लागू हुआ यह कानून देश भर में प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण की प्रथा को समाप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
- अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान से पूर्व या पश्चात् लिंग चयन की तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग चयनात्मक गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
- इस अधिनियम के तहत अपराधों में अपंजीकृत इकाइयों में प्रसव पूर्व निदान तकनीक का संचालन करना अथवा संचालन में मदद करना शामिल है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मेडागास्कर तथा अबू धाबी में नौसैनिक संपर्क पहल
प्रीलिम्स के लिये:हिंद महासागर आयोग, हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र, क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र, होर्मुज़ जलडमरूमध्य में यूरोपीय समुद्री जागरूकता नौसेना मेन्स के लिये:हिंद महासागर आयोग |
चर्चा में क्यों:
भारत 'हिंद महासागर आयोग' (Indian Ocean Commission- IOC) में पर्यवेक्षक के रूप शामिल होने के बाद मेडागास्कर तथा अबू धाबी में स्थित प्रमुख ‘क्षेत्रीय नौसैनिक निगरानी केंद्रों’ में भारतीय नौसेना के ‘संपर्क अधिकारियों’ ( Liaison Officers- LOs) की तैनाती करना चाहता है।
प्रमुख बिंदु:
- मार्च, 2020 में भारत, ‘हिंद महासागर आयोग’ (Indian Ocean Commision) की सेशल्स में होने वाली मंत्रिपरिषदीय बैठक में ‘पर्यवेक्षक’ के रूप में शामिल हुआ था।
- भारत 'क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र' (Regional Maritime Information Fusion Centre- RMIFC) मेडागास्कर तथा ‘होर्मुज़ जलडमरूमध्य में यूरोपीय समुद्री जागरूकता नौसेना’( European Maritime Awareness in the Strait of Hormuz- EMASOH), अबू धाबी में अपने संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति करना चाहता है।
क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र'
(Regional Maritime Information Fusion Centre- RMIFC):
- भारत सरकार फ्रांँस के साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि मेडागास्कर स्थित RMIFC में एक नौसेना संपर्क अधिकारी की नियुक्ति की जा सके।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि फ्राँस ‘हिंद महासागर आयोग’ का बहुत ही प्रभावी सदस्य है।
‘होर्मुज़ जलडमरूमध्य में यूरोपीय समुद्री जागरूकता नौसेन’
( European Maritime Awareness in the Strait of Hormuz- EMASOH):
- फ्रांँस द्वारा फारस की खाड़ी तथा होर्मुज़ जलडमरूमध्य की निगरानी के उद्देश्य से EMASOH की शुरुआत की गई थी। यह अबू धाबी (UAE) में फ्रांँसीसी नौसैनिक अड्डे पर आधारित है। इसे फरवरी 2020 में फ्रांँसीसी सशस्त्र बलों द्वारा परिचालन शुरू किया गया था।
- इसी प्रकार भारत अबू धाबी में ‘होर्मुज़ जलडमरूमध्य में यूरोपीय समुद्री जागरूकता नौसेना ( European Maritime Awareness in the Strait of Hormuz- EMASOH) में नौ-सेना संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति करना चाहता है।
हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission- IOC):
- IOC एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में बेहतर सागरीय-अभिशासन (Maritime Governance) की दिशा में कार्य करता है तथा यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्रों को सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु मंच प्रदान करता है, जिसकी स्थापना वर्ष 1984 में की गई थी।
- इसमें मेडागास्कर, कोमोरोस, ला रियूनियन (फ्रांसीसी विदेशी क्षेत्र), मॉरीशस और सेशल्स शामिल हैं।
- इससे गुरुग्राम स्थित 'हिंद महासागर क्षेत्र के लिये नौसेना सूचना संलयन केंद्र (IFC-IOR) के क्षेत्र के अन्य IFC से संपर्क सुधारने में मदद मिलेगी।
‘हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र’
(Information Fusion Centre for Indian Ocean Region- IFC-IOR):
- भारतीय नौसेना ने दिसंबर, 2018 में गुरुग्राम में सामुद्रिक नौवहन की निगरानी के लिये 'सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र' (Information Management and Analysis Centre- IMAC) के रूप में ‘हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र’ की स्थापना की है।
- IFC-IOR तटीय निगरानी की दिशा में भारतीय नौसेना का मुख्य केंद्र है। IMAC भारतीय नौसेना, तटरक्षक और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की एक संयुक्त पहल है और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser- NSA) के तहत कार्य करता है।
- IFC-IOR में फ्रांँस ने सर्वप्रथम LO को तैनात किया है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन सहित कई अन्य देशों ने भी यहाँ LO को तैनात करने की घोषणा की है।
- यह वैश्विक ‘नौवहन सूचना केंद्रों’ के साथ समन्वय करने का कार्य करता है, जिसमें निम्नलिखित केंद्र शामिल हैं:
- आभासी क्षेत्रीय समुद्री यातायात केंद्र (Virtual Regional Maritime Traffic Centre- VRMTC);
- हॉर्न ऑफ अफ्रीका का समुद्री सुरक्षा केंद्र- (Maritime Security Centre-Horn of Africa- MSCHOA);
- समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती पर क्षेत्रीय सहयोग समझौता (Regional Cooperation Agreement on Combating Piracy and Armed Robbery- ReCAAP);
- सूचना संलयन केंद्र- सिंगापुर (Information Fusion Centre-Singapore- IFC-SG);
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री ब्यूरो-पाइरेसी रिपोर्टिंग केंद्र (International Maritime Bureau-Piracy Reporting Centre- IMB-PRC)।
निष्कर्ष:
- पश्चिमी हिंद महासागर के साथ भारत के जुड़ाव से वहाँ के द्वीपों के साथ सामूहिक संबंधता को बढ़ावा मिलेगा, जिसका भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व है। इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, हाल ही में उठाए गए कदम भारत को अपनी नौसेना की उपस्थिति बढ़ाने तथा इस क्षेत्र में समुद्री परियोजनाओं को पूरा करने में मदद करेगा।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं विजय दिवस परेड
प्रीलिम्स के लिये:द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं विजय दिवस परेड मेन्स के लिये:भारत-रूस रक्षा संबंध |
चर्चा में क्यों?
द्वितीय विश्व युद्ध में जीत की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर रूस द्वारा मास्को में एक सैन्य परेड का आयोजन किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- रूसी परेड प्रतिवर्ष 9 मई के विजय दिवस पर आयोजित की जाती है, यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि 9 मई, 1945 को नाज़ी जर्मनी सेना का द्वितीय विश्व युद्ध में आत्मसमर्पण किया था।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने 9 मई, 2020 को रूसी राष्ट्रपति को इस विजय दिवस के अवसर पर बधाई संदेश भेजा है साथ ही भारत इस अवसर पर अपनी त्रि-सेवा दल (Tri-Service Contingent) भेजेगा।
- COVID-19 महामारी के चलते इस बार की परेड 24 जून, 2020 को आयोजित की जाएगी।
द्वितीय विश्व युद्ध:
- द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत वर्ष 1939 में यूरोप में हुई थी तथा सितंबर, 1945 में युद्ध समाप्त हो गया था।
- यह युद्ध मित्र राष्ट्रों तथा धुरी राष्ट्रों के बीच लड़ा गया था। मित्र देशों की शक्तियों का प्रतिनिधित्व ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांँस आदि ने किया था जबकि जर्मनी, इटली और जापान द्वारा धुरी शक्तियों का नेतृत्व किया गया था।
युद्ध के कारण:
- वर्ष 1920 की वर्साय की संधि।
- फासीवादी शक्तियों (जर्मनी और इटली) द्वारा विस्तारवाद की आक्रामक नीति।
- कम्युनिस्ट सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने के लिये फासीवादी शक्तियों के प्रति पश्चिमी शक्तियों द्वारा तुष्टिकरण की नीति।
- साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में जापान का उदय।
- रोम-बर्लिन-टोक्यो धुरी।
युद्ध के परिणाम:
- यहूदियों की हत्या।
- वर्ष 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी के जापानी शहरों पर परमाणु हमले।
- द्विध्रुवीय शक्तियों का उदय।
- शीत युद्ध की शुरुआत जो वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक जारी रहा।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना।
भारत-रूस के रक्षा संबंध:
- भारत के 'मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम' को रूस से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के माध्यम से रक्षा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- 'व्लादिवोस्तोक शिखर सम्मेलन'- 2019 के बाद दोनों देशों ने सशस्त्र बलों के लिये रसद सहायता एवं सेवाओं में पारस्परिक सहयोग को संस्थागत रूप देने पर सहमति व्यक्त की है।
- 5वें 'भारत-रूस सैन्य उद्योग सम्मेलन' के दौरान लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में आयोजित डिफेंस-एक्सपो (DefExpo)- 2020 के दौरान दोनों देशों की कंपनियों द्वारा रक्षा उपकरणों की एक श्रृंखला विकसित करने के लिये विभिन्न समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए।
- वर्ष 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद भारत ने 5 बिलियन से अधिक मूल्य की S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के निर्णय प्रक्रिया को बढ़ाया।
- ब्रह्मोस मिसाइल, SU-30 एयरक्राफ्ट, T-90 टैंकों के भारत में सह-निर्माण के लिये भी पूर्व में सहयोग स्थापित किया गया है।
- अभ्यास इंद्र (INDRA):
- ‘अभ्यास इंद्र’ श्रृंखला की शुरुआत वर्ष 2003 में की गई थी। प्रारंभ में इस अभ्यास की शुरुआत 'एकल सेवा अभ्यास' (Single Service Exercise) के रूप में की गई थी। हालाँकि वर्ष 2017 में पहली बार संयुक्त ‘त्रिसेवा अभ्यास' (TriServices Exercise) आयोजित किया गया।
- द्विपक्षीय रूसी-भारतीय नौसैनिक अभ्यास इंद्र नेवी -2018 बंगाल की खाड़ी में आयोजित किया गया था।
- इंद्र- 2019 का आयोजन दिसंबर 2019 में बबीना (झाँसी के पास), पुणे और गोवा में एक साथ आयोजित किया गया।
दोनों देशों के मध्य सहयोग के अन्य बहुपक्षीय क्षेत्र :
- BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका);
- शंघाई सहयोग सम्मेलन;
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह;
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद;
- वन बेल्ट वन रोड;
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा;
- वित्तीय कार्रवाई कार्य बल।
निष्कर्ष:
भारत तथा रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में दीर्घकालिक तथा व्यापक सहयोग रहा है। अमेरिका की चुनौतियों के बावजूद भारत-रूस सैन्य तकनीकी सहयोग एक खरीदार-विक्रेता के ढाँचे से बाहर निकल कर वर्तमान में संयुक्त अनुसंधान, विकास तथा रक्षा प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के माध्यम से रक्षा प्रणालियों के उत्पादन की ओर विकसित हुआ है।
स्रोत: पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
भूमि उपयोग परिवर्तन
प्रीलिम्स के लिये:पशुजन्य रोग, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय, मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस तथा थीम मेन्स के लिये:भू- निम्नीकरण के कारण तथा समाधान, भूमि उपयोग परिवर्तन तथा इसे प्रतिवर्तित करने की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के अनुसार, भूमि उपयोग परिवर्तन, जो COVID-19 जैसे पशुजन्य रोगों (Zoonoses) का कारण बनता है, को प्रतिवर्तित कर देना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- भूमि उपयोग परिवर्तन:
- भूमि उपयोग परिवर्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक परिदृश्य को प्रत्यक्ष रूप से बस्तियों, वाणिज्यिक एवं आर्थिक उपयोग तथा वानिकी गतिविधियों जैसे मानव-प्रेरित भूमि उपयोग के लिये परिवर्तित कर दिया जाता है।
- यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में समग्र वातावरण को प्रभावित करता है।
- डेटा विश्लेषण:
- भूमि उपयोग परिवर्तन वायुमंडल में CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) के संकेंद्रण का एक कारक हो सकता है, इस प्रकार यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
- कुल वैश्विक उत्सर्जन में इसका प्रतिनिधित्त्व लगभग 25% है।
- जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी मंच (Intergovernmental Platform on Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) के अनुसार, विश्व में फिलहाल सभी प्राकृतिक, बर्फ रहित भूमि का 70% से अधिक हिस्सा मानव उपयोग से प्रभावित है।
- वर्ष 2050 तक यह बढ़कर 90% तक पहुँच सकता है।
- भू-निम्नीकरण (Land Degradation) विश्व भर में लगभग 3.2 बिलियन लोगों को प्रभावित करता है।
- भू-निम्नीकरण के कारण वार्षिक रूप से 10.6 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की वन, कृषि तथा घास भूमि, पर्यटन आदि जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ नष्ट हो जाती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) के अनुसार, वर्ष 2050 तक वैश्विक रूप से खाद्य संबंधी मांग को पूरा करने के लिये 500 मिलियन हेक्टेयर से अधिक नई कृषि भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होगी।
- भूमि उपयोग परिवर्तन वायुमंडल में CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) के संकेंद्रण का एक कारक हो सकता है, इस प्रकार यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
- संभावित कारण:
- जनसंख्या वृद्धि: तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और उसके परिणामस्वरूप संसाधनों पर उच्च दबाव भूमि क्षेत्र के मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
- भूमि का अतिक्रमण: भोजन की मांग में लगातार वृद्धि के कारण वन, झाड़ी और आर्द्रभूमि सहित गैर-कृषि क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर फसल क्षेत्र का विस्तार किया गया है।
- वन संसाधनों का उपयोग: विशेष रूप से निर्माण, ईंधन के लिये वानिकी संसाधनों के निरंतर उपयोग के कारण वनों की सघनता में व्यापक कमी तथा कृषि उपकरणों के कारण कृषि योग्य भूमि का क्षरण हुआ है।
- खेतों में चराई: किसान प्रायः मिट्टी की उर्वरता में गिरावट की स्थिति में खेती की भूमि को छोड़ चराई के लिये छोड़ देते हैं।
- आर्द्रभूमियों का नष्ट होना: आर्द्रभूमि/वेटलैंड को खेती और आवास भूमि में बदलने से आर्द्र्भूमियों का विनाश होता है।
- समाधान:
- जलवायु-स्मार्ट भूमि प्रबंधन पद्धति: भूमि उपयोग पर IPCC की एक रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य उत्पादकता में वृद्धि, फसलभूमि प्रबंधन में सुधार, पशुधन प्रबंधन, कृषि-वानिकी, मृदा के कार्बनिक घटक में वृद्धि और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने से पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा भूमि को पुनः बहाल करने में मदद मिलेगी।
- प्रबंधन की ये पद्धतियाँ फसल के उत्पादन में 1.4 ट्रिलियन डॉलर तक का योगदान कर सकती हैं।
- वन प्रबंधन: बेहतर अग्नि प्रबंधन और चराई भूमि में सुधार से भूमि बहाली में मदद मिल सकती है।
- पुनर्स्थापन और पुनर्वास: भू-निम्नीकरण तटस्थता (सतत् विकास लक्ष्य लक्ष्य 15.3) को प्राप्त करने के लिये, भूमि उपयोग क्षेत्र में अतिरिक्त प्रतिबद्धताओं अर्थात् प्रति वर्ष 12 मिलियन हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि के पुनर्स्थापन और पुनर्वास से वर्ष 2030 तक उत्सर्जन अंतराल को 25% तक कम करने में मदद मिल सकती है।
- भविष्य में पशुजन्य संक्रमणों से बचने के लिये बेहतर निर्माण के हिस्से के रूप में इन क्षेत्रों की बहाली से एक अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह होगा कि इन प्रयासों से जलवायु परिवर्तन में विशेष रूप से कमी होगी।
- जलवायु-स्मार्ट भूमि प्रबंधन पद्धति: भूमि उपयोग पर IPCC की एक रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य उत्पादकता में वृद्धि, फसलभूमि प्रबंधन में सुधार, पशुधन प्रबंधन, कृषि-वानिकी, मृदा के कार्बनिक घटक में वृद्धि और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने से पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा भूमि को पुनः बहाल करने में मदद मिलेगी।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय
United Nations Convention to Combat Desertification (UNCCD)
- वर्ष 1994 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) कानूनी रूप से बाध्यकारी एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण तथा विकास को सतत् भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
- यह रियो सम्मेलन (Rio Convention) के एजेंडा-21 की प्रत्यक्ष सिफारिशों पर आधारित एकमात्र अभिसमय है।
- अभिसमय के तहत फोकस वाले क्षेत्र: यह अभिसमय विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों के समाधान से संबंधित है, जहाँ कुछ सर्वाधिक सुभेद्य पारिस्थितिक तंत्र और प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- भारत की तरफ से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) इस अभिसमय हेतु नोडल मंत्रालय है।
मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2020
World Day to Combat Desertification and Drought 2020
- 17 जून को पूरे विश्व में मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- वर्ष 2020 के लिये इस दिवस की थीम “Food, Feed, Fibre” है जो खाद्य उपभोग के प्रभाव को कम करने के लिये व्यक्तियों को शिक्षित करने का आह्वान करता है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2020, उपभोग और भूमि के बीच संबंध पर केंद्रित है।
- इस वर्ष के 'वैश्विक अवलोकन कार्यक्रम' को कोरिया वन सेवा द्वारा वर्चुअल माध्यम में आयोजित किया गया।
पशुजन्य रोग (Zoonoses)
- यह ऐसा रोग या संक्रमण है जो स्वाभाविक रूप से कशेरुकी (Vertebrate) प्राणियों से मनुष्यों तक पहुँचता है।
- इस प्रकार प्रकृति में पशुजन्य/ज़ूनोटिक संक्रमण को बनाए रखने में पशु एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।
- पशुजन्य रोग जीवाणुजनित, विषाणुजनित या परजीवी जनित हो सकता है।
आगे की राह
- भूमि उपयोग परिवर्तन को धीमा और प्रतिवर्तित करने की तत्काल आवश्यकता को अत्युक्तिपूर्ण नहीं माना जा सकता है क्योंकि भूमि जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- ग्लोबल वार्मिंग को 2°C तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भूमि उपयोग क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
- पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, जैव-विविधता संरक्षण, भूमि उपयोग आधारित अनुकूलन और कई छोटे पैमाने के किसानों की आजीविका में सुधार के लिये एक सक्षम वातावरण प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदारीपूर्ण भूमि प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।
- UNCCD के पक्षकारों के लिये यह भू-निम्नीकरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality) के लिये भूमि जोत पर एक महत्त्वाकांक्षी संकल्प को अपनाने का अवसर है। उन्हें इस अवसर का उपयोग समुदायों को सशक्त करने के लिये करना चाहिये ताकि वे जलवायु आपातकाल के प्रभावों के अनुकूल हो सकें।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति
प्रीलिम्स के लिये:शुद्ध वित्तीय संपत्ति, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लिये:शुद्ध वित्तीय संपत्ति का लोगों की बचत पर पड़ने वाला प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारतीय परिवारों/लोगों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति (Net Financial Assets) वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी की 7.7% हो गई।
प्रमुख बिंदु:
- शुद्ध वित्तीय संपत्ति में यह वृद्धि एक सकारात्मक परिवर्तन की तरफ इशारा मात्र है वास्तविक नहीं।
- आँकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो यह स्थिति लोगों द्वारा बैंक से कम कर्ज लेने के कारण उत्पन्न हुई है, जो अर्थव्यवस्था में मंदी एवं कमज़ोरी स्थिति को दर्शाती है न कि अर्थव्यस्था में किसी सकारात्मक बदलाव को।
शुद्ध वित्तीय संपत्ति क्या हैं?
- शुद्ध वित्तीय संपत्ति (Net Financial Asset-NFA), सकल वित्तीय परिसंपत्तियों (जमा और निवेश) कम वित्तीय देनदारियों (उधार) के बीच का अंतर है।
- RBI के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2020 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में शुद्ध वित्तीय संपत्ति 13.73 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 15.62 लाख करोड़ रुपए हो गई है अर्थात जीडीपी के स्तर पर यह वृद्धि 7.2% से बढ़कर 7.7% तक देखी गई है।
- यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओं का बाज़ार मूल्य है।
- वित्त वर्ष 2019-20 में सकल वित्तीय संपत्ति (Gross Financial Assets-GFA) 21.23 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 21.63 लाख करोड़ रुपए पर पहुँच गई थी, जबकि वित्तीय देनदारियों (Financial Liabilities- FL) में 7.5 लाख करोड़ रुपए से 6.01 लाख करोड़ रुपए की तीव्र गिरावट दर्ज की गई, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध वित्तीय परिसंपत्तियों में वृद्धि देखने की मिली है।
- जीडीपी के प्रतिशत के संदर्भ में, GFA 11.1 प्रतिशत से घटकर 10.6 प्रतिशत रहा तथा वर्ष 2020 में वित्तीय देनदारियों सकल घरेलू उत्पाद की 3.9 प्रतिशत से घटकर 2.9 प्रतिशत ही रही
वित्तीय देनदारियों में गिरावट/कमी का मतलब है?
- RBI के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 की कुल देनदारियों में बैंकिंग क्षेत्र द्वारा लोन देने में भारी गिरावट आर्थिक मंदी एवं बैंकों के जोखिम से बचने को भी दर्शाता है।
- विशेषज्ञों का मानना है वर्तमान में आर्थिक मंदी की स्थिति विद्यमान है जिसमे लोगों की आय या तो बढ़ नहीं रही या फिर घट रही है, ऐसे में वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector) लोन देने में अधिक सतर्कता बरतेगा तथा यही कारण है कि आय स्तर या तो नीचे जा रहा है या बढ़ नहीं रहा है।
- इस सब कारणों से वित्तीय क्षेत्र द्वारा ऋण देने में अधिक सावधानी बरती जाएगी यही वज़ह है कि परिवारों की वित्तीय देनदारियों में गिरावट आई है जो अर्थव्यवस्था में मंदी का सूचक है।
क्या भारतीय परिवार अधिक बचत कर रहे हैं?
- GDP के प्रतिशत के संदर्भ में GFA 11.1 प्रतिशत से घटकर 10.6 प्रतिशत हो गया है पर डेटा पर करीबी नज़र डालें तो से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में लोगों के पैसे जमा करने के उपकरणों में भी बदलाव आया है।
- जैसे- वर्ष 2019 में मार्च समाप्ति पर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बैंकों में घरेलू बचत 3.8 प्रतिशत रही, जो मार्च 2020 में घटकर 3.4 प्रतिशत पर आ गई।
- घरेलू बचत में आई इस कमी की बड़ी वजह पिछले 18 महीनों में RBI द्वारा रेपो दर में कटौती के साथ बैंकों द्वारा भी अपनी तरफ से ब्याज दरों में कटौती करना है।
- दूसरी तरफ छोटी बचत योजनाओं में अधिक ब्याज का मिलना जिसके चलते परिवारों की जमा पूंजी जीडीपी के 1.1 फीसदी से बढ़ कर 1.3 फीसदी तक गई है।
- मुद्रा (currency) के रूप में लोगों की संपत्ति इसी अवधि में 1.5 प्रतिशत से घटकर 1.4 प्रतिशत रह गई परंतु लॉकडाउन की घोषणा के बाद से लोगों के पास मुद्रा की मात्रा बढ़ी है।
- 27 मार्च, 2020 के अंतिम सप्ताह में लोगों के पास 23.41 लाख करोड़ रूपए की नकदी थी, जो 22 मई 2020 में बढ़कर 25.12 लाख करोड़ रूपए हो गई।
क्या घरेलू बचत बढ़ने की उम्मीद है?
- RBI की एक रिपोर्ट ‘परिवारों की वित्तीय परिसंपत्तियों और देयताओं का त्रैमासिक अनुमान’ (Quarterly Estimates of Households) के अनुसार लोग मंदी और आय की अनिश्चितता के दौरान अधिक बचत कर रहे हैं।
- RBI द्वारा उम्मीद जताई जा रही है कि मंदी एवं आय की अनिश्चितता के चलते लोगों की बचत में बढ़ोतरी होगी।
- आगे भी लॉकडाउन के कारण खपत में तेज़ी से गिरावट के कारण वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति में बढ़ोतरी की संभावना है।
- रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये घरेलू क्षेत्र सबसे स्थायी और आत्मनिर्भर स्रोत है, इसके लिये नीतिगत प्रयास के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व मगरमच्छ दिवस
प्रीलिम्स के लिये:विश्व मगरमच्छ दिवस, मगरमच्छ की प्रजातियाँ तथा वितरण, मगर या मार्श मगरमच्छ, एश्चुअरी या लवणीय जल के मगरमच्छ, घड़ियाल मेन्स के लिये:मानव-मगरमच्छ संघर्ष |
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 17 जून को 'विश्व मगरमच्छ दिवस’ मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- यह दुनिया भर में लुप्तप्राय मगरमच्छों की स्थिति को उजागर करने के लिये एक वैश्विक जागरूकता अभियान है।
- मगरमच्छ-मानव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ‘मगरमच्छ संरक्षण प्रयासों’ पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ:
- भारत में तीन प्रकार की मगरमच्छ प्रजातियाँ (Crocodilian Species) प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं:
मगरमच्छ की प्रजातियाँ |
वैज्ञानिक नाम |
विवरण |
मगर या मार्श मगरमच्छ |
क्रोकोडायल पेलुस्ट्रिस (Crocodylus palustris) |
|
एश्चुअरी या लवणीय जल के मगरमच्छ |
क्रोकोडायलस पोरस (Crocodylus porosus) |
|
घड़ियाल |
गैवियलिस गैंगेटिकस (Gavialis \gangeticus) |
|
भारत में मानव-मगरमच्छ संघर्ष के प्रमुख हॉटस्पॉट:
- गुजरात में वडोदरा:
- वडोदरा नगर को ‘मानव-बहुल परिदृश्य’ में मगरमच्छों के एक द्वीप के रूप में वर्णित किया जाता है।
- शहर के मध्य से बहने वाली विश्वामित्री नदी में 200 से अधिक मगर पाए जाते हैं।
- मानसून के समय इस क्षेत्र में मगरमच्छों के घरों में घुसने की सूचना प्राय: मीडिया में व्याप्त रहती हैं।
- वडोदरा की नगरपालिका सीमा में मगरों की संख्या जहाँ वर्ष 1950 में 250 थी वह वर्ष 2020 में बढ़कर 289 हो गई है।
- राजस्थान में कोटा:
- मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में चंबल नदी पर अवस्थित है। जहाँ मगर तथा घड़ियाल दोनों की बहुसंख्यक रूप में पाए जाते हैं।
- वर्ष 2012 में जवाहर सागर अभयारण्य, चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य, दर्रा अभयारण्य के कुछ भागों को मिलाकर मुकुंदरा हिल्स को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
- चंबल नदी पर बनाए गए कोटा बैराज के आसपास शहरीकरण एवं अतिक्रमण तथा रेत खनन के कारण मानव-मगरमच्छ संघर्ष में वृद्धि हुई है।
- ओडिशा में भीतरकनिका:
- वर्ष 1975 में भीतरकनिका में केवल 96 मगरमच्छ थे। परंतु प्रजनन और पालन कार्यक्रम (Breeding and Rearing Programme) शुरू करने के बाद वर्ष 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 1,757 से अधिक हो गई हैं।
- भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के परिधीय क्षेत्र में छह पंचायतें स्थित हैं। जब क्षेत्र में उच्च ज्वार की स्थिति होती है तो अनेक समुद्री मत्स्य प्रजातियाँ यहाँ राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश कर जाती हैं। जिन्हें एकत्रित करने के लिये लोग मगरमच्छ के संरक्षित जल निकायों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मानव-मगरमच्छ संघर्ष देखने को मिलता है।
उड़ीसा में घड़ियाल:
- उड़ीसा में भी घड़ियाल पाए जाते हैं परंतु यहाँ पर घड़ियाल चंबल नदी के समान प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं अपितु मुख्यत: प्रजनन केंद्रों में इनका संरक्षण किया जाता है।
- वर्ष 2019 में उड़ीसा अंगुल ज़िले में सतकोसिया घाट पर केवल 14 घड़ियाल तथा भुवनेश्वर के पास नंदनकानन चिड़ियाघर में कम-से-कम 90 घड़ियाल हैं।
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह:
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मानव-मगरमच्छ संघर्ष देखने को मिलता है। वन विभाग द्वारा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में कुछ वर्ष पहले कुलिंग (Culling) की सिफारिश की गई थी।
- कुलिंग वांछित या अवांछित विशेषताओं के अनुसार एक समूह से जीवों को अलग करने की प्रक्रिया है।
निष्कर्ष:
- सामान्यत: मानव-मगरमच्छ संघर्ष तब देखने को मिलता है जन मानव मगरमच्छ के प्राकृतिक आवास क्षेत्र में प्रवेश करते हैं या उनके उनके आवास क्षेत्र को क्षति पहुँचाते हैं, अत: इनकी कुलिंग के स्थान पर प्राकृतिक आवास में ही इसके संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिये।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
नासा का गेटवे लूनर ऑर्बिटिंग आउटपोस्ट
प्रीलिम्स के लियेगेटवे लूनार ऑर्बिटिंग आउटपोस्ट, अर्टेमिस कार्यक्रम मेन्स के लियेपृथ्वी ग्रह से इतर अन्य ग्रहों पर बढ़ती मानव की गतिविधियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नासा ने अपने गेटवे लूनर ऑर्बिटिंग आउटपोस्ट (Gateway Lunar Orbiting Outpost) के शुरुआती क्रू-मॉड्यूल के लिये अनुबंध किया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह अनुबंध जिसकी कीमत 187 मिलियन डॉलर है, को वर्जीनिया के ऑर्बिटल साइंस कॉरपोरेशन ऑफ डल्लास (Orbital Science Corporation of Dulles) द्वारा सराहा गया है, जो नार्थरोप ग्रुम्मन स्पेस (Northrop Grumman Space) की पूर्ण स्वामित्त्व वाली सहायक कंपनी है।
- नासा ने इस गेटवे को चंद्रमा की कक्षा में एवं चंद्रमा की सतह पर अन्वेषण के नए युग की कुंजी के रूप में वर्णित किया है।
- इस गेटवे की सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक यह है कि इसे और अधिक शोध करने के लिये चंद्रमा के आसपास अन्य कक्षाओं में भी ले जाया जा सकता है।
- इस गेटवे को अंतर्राष्ट्रीय एवं वाणिज्यिक दोनों भागीदारों द्वारा बनाया जा रहा है और यह पहले चंद्रमा पर एवं चंद्रमा के पास तथा बाद में मंगल ग्रह पर अन्वेषण कार्य का समर्थन करेगा।
अनुबंध में क्या है?
- नासा ने गेटवे के लिये हैबिटेशन एंड लाॅजिस्टिक्स (Habitation and Logistics- HALO) को समर्थन देने हेतु डिज़ाइन करने के लिये यह अनुबंध जारी किया है, जो नासा के अर्टेमिस कार्यक्रम (Artemis Program) का एक हिस्सा है जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक पहले महिला और फिर आदमी को चंद्रमा पर भेजना है।
- HALO, दबाव की दशा में रहने योग्य कमरों को संदर्भित करता है जहाँ अंतरिक्ष यात्री गेटवे का दौरा करते हुए अपना समय बिताएंगे।
- नासा की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ये क्वार्टर (कमरे) एक छोटे से अपार्टमेंट के आकार के होंगे और यह नासा के ओरियन अंतरिक्ष यान के साथ मिलकर अंतरिक्ष यात्रियों के लिये अनुकूल सुविधाएँ प्रदान करेगा।
नासा का गेटवे लूनार ऑर्बिटिंग आउटपोस्ट:
- अनिवार्य रूप से गेटवे एक छोटा सा अंतरिक्ष यान है जो चंद्रमा की परिक्रमा लगाएगा जिसे पहले चंद्रमा पर भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिये और बाद में मंगल ग्रह के अभियानों के लिये प्रयोग में लाया जाएगा।
- यह एक अस्थायी कार्यालय तथा अंतरिक्ष यात्रियों के लिये रहने योग्य क्वार्टर (कमरे) के रूप में कार्य करेगा जो पृथ्वी से लगभग 250,000 मील की दूरी पर अवस्थित होगा।
- इस अंतरिक्ष यान में विज्ञान एवं अनुसंधान के लिये प्रयोगशालाएँ, रहने योग्य क्वार्टर आदि की सुविधाएँ होंगी।
- इसके अलावा अंतरिक्ष यात्री प्रति वर्ष कम-से-कम एक बार गेटवे का उपयोग करेंगे।
- इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) की तुलना में गेटवे बहुत छोटा है (एक स्टूडियो अपार्टमेंट के आकार का) जबकि ISS छह बेडरूम वाले घर के आकार का होता है।
- एक बार गेटवे से जाने के बाद अंतरिक्ष यात्री एक समय में तीन महीने तक वहाँ रह सकेंगे तथा विज्ञान के प्रयोगों का संचालन कर सकेंगे और चंद्रमा की सतह पर यात्रा कर सकेंगे।
- नासा की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, गेटवे एक हवाई अड्डे के रूप में कार्य करेगा।
- गौरतलब है कि नासा गेटवे का उपयोग एक विज्ञान मंच के रूप में करना चाहती है ताकि वह पृथ्वी का पुनः अन्वेषण कर सके, सूर्य का निरीक्षण कर सके और विशाल ब्रह्मांड की अबाधित जानकारियों को प्राप्त कर सके।
- पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल के भू-विज्ञान का अध्ययन करके नासा इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकती है।
- नासा ने वर्ष 2026 तक गेटवे के पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि अंतरिक्ष यान पर काम पहले से ही चल रहा है।
- वर्ष 2022 तक नासा ने अंतरिक्ष यान के लिये पावर एंड प्रोपल्शन (Power and Propulsion) तैयार करने की योजना बनाई है जिसे एक वाणिज्यिक रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 जून, 2020
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
हाल ही में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) का अस्थायी सदस्य चुना गया है, उल्लेखनीय है कि यह 8वीं बार है जब भारत का UNSC के अस्थायी सदस्य के चयन किया गया है। भारत को इस सर्वोच्च संस्था में अस्थायी सदस्य के रूप में वर्ष 2021-22 तक के लिये चुना गया है। भारत के अतिरिक्त आयरलैंड, मैक्सिको और नॉर्वे को भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थायी सदस्य के रूप में चयनित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के 6 प्रमुख अंगों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्राथमिक दायित्त्व अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने हेतु अनवरत प्रयास करना है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNCS) के निर्णयों को मानने के लिये बाध्य होते हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र (UN) की अन्य संस्थाएँ सदस्य राज्यों के लिये केवल सिफारिशें करती हैं और सदस्य राष्ट्र उन्हें मानने के लिये काफी हद तक बाध्य नहीं होते हैं, ऐसे में केवल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पास ही ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो सदस्य राष्ट्रों पर अनिवार्य रूप से लागू होंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) कुल 15 सदस्यों से मिल कर बनी होती है, जिसमें से 5 स्थायी सदस्य (चीन, फ्रांँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका) और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, अस्थायी सदस्यों का चुनाव 2 वर्षीय कार्यकाल के लिये किया जाता है। ध्यातव्य है कि भारत सदैव ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार का पक्षधर रहा है, भारत का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र (UN) विश्व की लगभग संपूर्ण आबादी का प्रतिनिधित्त्व करता है पर विडंबना यह है कि UNSC जैसे संयुक्त राष्ट्र के अति महत्त्वपूर्ण निकाय में केवल 5 ही स्थायी सदस्य मौजूद हैं।
आई. एम. विजयन
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (All India Football Federation-AIFF) ने देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म श्री के लिये भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान आई. एम. विजयन (I. M. Vijayan) के नाम की सिफारिश की है। 90 के दशक में अपने अंतर्राष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत करने वाले भारतीय स्ट्राइकर आई. एम. विजयन ने अपने संपूर्ण कैरियर के दौरान कुल 79 मैचों में 40 गोल किये थे। आई.एम. विजयन को वर्ष 2003 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त उन्हें वर्ष 1993, वर्ष 1997 और वर्ष 1999 में 'इंडियन प्लेयर ऑफ द ईयर' के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। आई. एम. विजयन ने वर्ष 2000 से वर्ष 2004 के बीच भारतीय फुटबॉल टीम का नेतृत्त्व किया था। पद्म श्री (Padma Shri) पुरस्कार किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिये प्रदान किया जाता है। वर्ष 1954 में स्थापित यह पुरस्कार, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक है। इसकी घोषणा प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है।
गरीब कल्याण रोजगार अभियान
कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण विभिन्न राज्यों से अपने ग्रह राज्य वापस आए प्रवासी श्रमिकों और गाँव के लोगों को सशक्त बनाने और आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिये भारत सरकार ने एक व्यापक ग्रामीण सार्वजनिक कार्य योजना 'गरीब कल्याण रोज़गार अभियान' शुरू करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम में इस अभियान की शुरुआत करेंगे। यह अभियान बिहार के खगड़िया ज़िले के ग्राम-तेलिहार से लॉन्च किया जाएगा। COVID-19 महामारी के मद्देनज़र सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए 6 राज्यों के 116 ज़िलों के सभी गांव सार्वजनिक सेवा केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से इस कार्यक्रम से जुड़ेंगे। उल्लेखनीय है कि भारत समेत विश्व की तमाम सरकारों द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन को एक उपाय के रूप में प्रयोग किया गया था, इस व्यवस्था (लॉकडाउन) के कारण देश में सभी प्रकार की आर्थिक तथा गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं, जिसके कारण दैनिक अथवा साप्ताहिक आधार पर मज़दूरी प्राप्त करने वाले प्रवासियों के समक्ष आजीविका की एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई थी। आजीविका की इस समस्या को देखते हुए देश भर के लाखों प्रवासी मज़दूर अपने ग्रह राज्य लौटने लगे जिसके कारण ग्रह राज्य की सरकारों के समक्ष वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को उपयुक्त रोज़गार उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
विश्व का सबसे बड़ा COVID-19 फैसिलिटी सेंटर
अपनी क्षमता में तेजी से वृद्धि करने और राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना वायरस (COVID-19) के मामलों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने के लिये दिल्ली सरकार ने दक्षिणी दिल्ली में राधा स्वामी स्पिरिचुअल सेंटर (Radha Swami Spiritual Center) को 10,000 बेड वाले विश्व के सबसे बड़े अस्थायी COVID-19 फैसिलिटी सेंटर के रूप में निर्मित करने का निर्णय लिया है। इस COVID-19 फैसिलिटी सेंटर में बेड बनाने के लिये कार्डबोर्ड (Cardboard) का प्रयोग किया जाएगा, ध्यातव्य है कि कार्डबोर्ड पर कोरोना वायरस 24 घंटे से अधिक समय के लिये जीवित नहीं रह सकता है, जबकि किसी धातु, प्लास्टिक या लकड़ी पर यह वायरस पाँच दिनों तक जीवित रह सकता है। इस COVID-19 फैसिलिटी सेंटर में लगभग 400 डॉक्टर दो पालियों (Shifts) में कार्य करेंगे, वहीं इसके अतिरिक्त तकरीबन दोगुने सहायक कर्मी भी होंगे। एक अनुमान के अनुसार, यह क्षेत्र तकरीबन 22 फुटबॉल मैदानों के समान है। ध्यातव्य है कि राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस (COVID-19) का प्रसार काफी तेज़ी से हो रहा है, ऐसे में हॉस्पिटल में एडमिट होने वाले रोगियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है।