भूगोल
जुड़वाँ चक्रवात
प्रिलिम्स के लिये:मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन, रॉज़वी तरंग, चक्रवात। मेन्स के लिये:उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण चक्रवात, जुड़वाँ चक्रवात तथा उनका गठन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपग्रह से प्राप्त छवियों ने हिंद महासागर क्षेत्र में जुड़वाँ चक्रवातों की पुष्टि की है, इनमें से एक उत्तरी गोलार्द्ध में और दूसरा दक्षिणी गोलार्द्ध में है, जिन्हें क्रमशः चक्रवात असानी और चक्रवात करीम नाम दिया गया है।
चक्रवात करीम और असानी:
- चक्रवात करीम को श्रेणी II के तूफान के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी गति 112 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
- असानी चक्रवात बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक गंभीर चक्रवाती तूफान के रूप में बना हुआ है, जिसकी अनुमानित गति 100-110 किमी. प्रति घंटे से लेकर 120 किमी. प्रति घंटे तक है।
- इन दोनों चक्रवातों का निर्माण हिंद महासागर क्षेत्र में हुआ है।
- दोनों चक्रवात एक ही देशांतर में उत्पन्न हुए और अब अलग हो रहे हैं।
- चक्रवात करीम ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम में खुले समुद्र क्षेत्र की ओर आगे बढ़ रहा है।
- चक्रवात करीम का नामकरण दक्षिण अफ्रीकी देश सेशेल्स द्वारा, जबकि चक्रवात असानी का नामकरण श्रीलंका द्वारा किया गया था।
जुड़वाँ चक्रवात:
- हवा और मानसून प्रणाली की परस्पर क्रिया पृथ्वी की प्रणाली के साथ मिलकर इन समकालिक चक्रवातों का निर्माण करती है।
- जुड़वाँ उष्णकटिबंधीय चक्रवात भूमध्यरेखीय रॉज़वी तरंगों के कारण उत्पन्न होते हैं।
- रॉज़वी तरंगें समुद्र में लगभग 4,000-5,000 किलोमीटर की तरंग दैर्ध्य के साथ विशाल समुद्री लहरें हैं।
- रॉज़वी तरंगों का नाम प्रसिद्ध मौसम विज्ञानी कार्ल-गुस्ताफ रॉज़वी (Carl-Gustaf Rossby) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले यह बताया था कि ये तरंगें पृथ्वी के घूमने के कारण उत्पन्न होती हैं।
- इस प्रणाली के अनुसार, यह एक भँवर (Vortex) है जो उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में स्थित है जो लगभग एक ही देशांतर पर घूमते हैं, लेकिन विपरीत दिशाओं में, जैसा कि उपग्रह छवियों में भी देखा गया है।
- उत्तर में चक्रवात की गति वामावर्त होती है और एक सकारात्मक चक्रण होता है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में यह दक्षिणावर्त दिशा में घूमता है, इसलिये एक नकारात्मक चक्रण होता है।
- दोनों में आवर्त का सकारात्मक मान होता है।
- प्रायः इन से जुड़वाँ चक्रवात का निर्माण होता है।
चक्रवात निर्माण की प्रक्रिया:
- जब उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में ‘भ्रमिलता’ (Vorticity) ‘सकारात्मक’ होती है, जैसा कि रॉज़वी तरंगों के मामले में होता है, तो भँवर की बाह्य परत में मौजूद आर्द्र या नम हवा थोड़ी ऊपर उठती है।
- यह आगे की प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिये पर्याप्त होती है।
- जब वायु थोड़ा ऊपर उठती है, तो जलवाष्प संघनित होकर बादल का निर्माण करती है और संघनित होते ही वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा को बाहर निकालती है।
- वातावरण गर्म होता है, हवा का यह भाग ऊपर की ओर उठता है और इस प्रक्रिया से ‘सकारात्मक प्रतिक्रिया’ उत्पन्न होती है। आसपास की वायु से हल्का होने की वजह से वायु का यह गर्म भाग और ऊपर उठता है तथा घने बादलों का निर्माण करता है। इस बीच दोनों तरफ से वायु ‘आर्द्र’ हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ अन्य स्थितियों की उपस्थिति में ‘चक्रवात’ का निर्माण हो जाता है।
- इसके लिये समुद्र की सतह का तापमान कम-से-कम 27 डिग्री गर्म होना चाहिये; वातावरण में वायु अपरूपण बहुत अधिक नहीं होना चाहिये।
- उदाहरण के लिये यदि निचले स्तर पर पछुआ पवनों का प्रभाव है और ऊपरी स्तर पर पूर्वी पवनों का प्रभाव है या पवनों के बीच तापमान का अंतर बहुत अधिक है, तो चक्रवात का निर्माण नहीं होगा।
- लेकिन यदि अंतर कम है तब भी चक्रवात बने रहेंगे।
- सभी प्रकार के बादलों के साथ वृहद् भंँवर होगा। जब वे मज़बूत हो जाएंगे तो तीव्रता से घूमेंगे और वृहद् तूफानों का रूप धारण कर लेते हैं।
क्या जुड़वाँ अलग-अलग गोलार्द्ध में जा सकते हैं?
- यह सही है की जुड़वाँ चक्रवात बनने के बाद पश्चिम की ओर बढ़ते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में उनकी गति का उत्तरावर्त जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त होती है।
- जिसका मतलब है कि उत्तरी गोलार्द्ध में चक्रवात उत्तर और पश्चिम की ओर बढ़ रहा है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण और पश्चिम की ओर बढ़ रहा है।
क्या मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO) जुड़वाँ चक्रवात उतपन्न होता है?
- MJO बादलों और संवहन का बड़ा समूह है जिसका आकार लगभग 5,000-10,000 किलोमीटर है।
- यह रॉज़वी तरंग एवं केल्विन तरंग से बना है जो एक प्रकार की तरंग संरचना है जिसे हम समुद्र में देख सकते हैं। MJO के पूर्वी हिस्से में केल्विन लहर है, जबकि MJOके पश्चिमी अनुगामी किनारे पर रॉस्बी लहर है, इसी तरह भूमध्य रेखा के दोनों ओर दो भंँवर हैं।
- हालांँकि सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवात MJO से उत्पन्न नहीं होते हैं। कभी-कभी यह सिर्फ रॉज़वी तरंग होती है जिसके दोनों ओर दो भंँवर होते हैं।
विगत वर्ष के प्रश्न:निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c)
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स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत का पहला 5G टेस्टबेड
प्रिलिम्स के लिये:5G, स्टार्टअप, संचार प्रौद्योगिकी (4G, 5G) मेन्स के लिये:5G के उपयोग, भारत में 5G रोलआउट हेतु चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश के पहले 5G टेस्टबेड का उद्घाटन किया, यह स्टार्टअप और उद्योग जगत के लोगों को अपने उत्पादों का स्थानीय स्तर पर परीक्षण करने की अनुमति देगा जिससे विदेशी सुविधाओं पर निर्भरता कम होगी।
पहल का महत्त्व:
- यह आधुनिक दूरसंचार प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हेतु महत्त्वपूर्ण कदम है।
- 5जी टेस्टबेड को लगभग 220 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है।
- 5G टेस्टबेड की कमी के कारण स्टार्टअप और अन्य उद्योग जगत के लोगों को 5G नेटवर्क की स्थापना एवं अपने उत्पादों का परीक्षण व सत्यापन हेतु विदेशी निर्भरता पर मज़बूर होना पड़ता था।
- भारत का 5G मानक 5Gi के रूप में बनाया गया है जो देश के गांँवों में 5G तकनीक लाने में बड़ी भूमिका निभाएगा।
- 5Gi मूल रूप से मेड इन इंडिया 5G मानक है जिसे IIT हैदराबाद और मद्रास (चेन्नई) के सहयोग से बनाया गया है।
5जी तकनीक:
- परिचय:
- 5G, 5वीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। यह 1G, 2G, 3G और 4G नेटवर्क के बाद एक नया वैश्विक वायरलेस मानक है।
- यह एक ऐसी प्रणाली को सक्षम बनाता है जिसमें मशीनों, वस्तुओं और उपकरणों को परस्पर नेटवर्क के माध्यम से जोड़कर इनका संचालन व इनके मध्य समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
- 5G के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट की गति का परीक्षण 20 Gbps (गीगाबाइट प्रति सेकंड) दर्ज किया गया है, जबकि ज़्यादातर मामलों में 4G में अधिकतम इंटरनेट डेटा गति अभी तक सिर्फ 1Gbps ही दर्ज की गई है।
- भारत में सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन-इंडिया (SIA) ने 5G स्पेक्ट्रम नीलामी में मिलीमीटर वेव बैंड को शामिल करने की सरकार की योजना पर चिंता व्यक्त की है।
- महत्त्व:
- 5G तकनीक से देश के शासन में सकारात्मक बदलाव, जीवन में सुगमता और व्यापार सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्र में विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे सुविधाएँ भी बढेंगी और रोज़गार के कई अवसर पैदा होंगे।
- 5G तकनीक से देश के शासन में सकारात्मक बदलाव, जीवन में सुगमता और व्यापार सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।
भारत में 5G रोलआउट के लिये चुनौतियाँ:
- कम फाइबराइज़ेशन फुटप्रिंट: पूरे भारत में फाइबर कनेक्टिविटी को अपग्रेड करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान में भारत के केवल 30% दूरसंचार टावरों को जोड़ता है।
- 5G को कुशलता पूर्वक लॉन्च करने के लिये इस संख्या को दोगुना करना होगा।
- 'मेक इन इंडिया' हार्डवेयर चुनौती: कुछ विदेशी दूरसंचार OEMs (मूल उपकरण निर्माता) पर प्रतिबंध, जिस पर अधिकांश 5G प्रौद्योगिकी विकास निर्भर करता है, अपने आप में एक बाधा प्रस्तुत करता है।
- उच्च स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण: भारत का 5G स्पेक्ट्रम मूल्य वैश्विक औसत से कई गुना महँगा है।
- यह भारत के नकदी संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनियों के लिये नुकसानदायक होगा।
- इष्टतम 5G प्रौद्योगिकी मानक का चयन: 5G प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन में तेज़ी लाने हेतु घरेलू 5Gi मानक और वैश्विक 3GPP मानक के बीच संघर्ष को समाप्त करने की आवश्यकता है।
- हालाँकि 5Gi के स्पष्ट लाभ हैं परंतु यह टेलीकॉम के लिये 5G लॉन्च लागत और इंटरऑपरेबिलिटी मुद्दों को भी बढ़ाता है।
आगे की राह
- भारत में 5G के सपने को साकार करने के लिये अपने स्थानीय 5G हार्डवेयर निर्माण को अभूतपूर्व दर से प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इस स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण के युक्तिकरण की आवश्यकता है, ताकि सरकार भारत में 5G के कार्यान्वयन योजनाओं को बाधित किये बिना नीलामी से पर्याप्त राजस्व उत्पन्न कर सके।
- 5G को विभिन्न बैंड स्पेक्ट्रम और निम्न बैंड स्पेक्ट्रम पर तैनात किया जा सकता है, यह सीमा बहुत लंबी है और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये भी सहायक हो सकती है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
नगरीय ऊष्मा द्वीप
प्रिलिम्स के लिये:नगरीय ऊष्मा द्वीप, ग्रीनहाउस गैसें एवं ग्रीनहाउस प्रभाव, जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभाव, नासा का पारितंत्र स्पेसबोर्न थर्मल रेडियोमीटर एक्सपेरिमेंट (ECOSTRESS)। मेन्स के लिये:नगरीय ऊष्मा द्वीप का कारण और प्रभाव, जलवायु परिवर्तन का परस्पर संबंध, हीट वेव एवं नगरीय ऊष्मा द्वीप। |
चर्चा में क्यों?
हाल में भारत के कई हिस्से भीषण गर्मी की लहरों का सामना कर रहे हैं। शहरी क्षेत्र ऐसे स्थान हैं जिनका तापमान ग्रामीण क्षेत्रों के तापमान की तुलना में अधिक है। इसी घटना को "नगरीय ऊष्मा द्वीप" कहा जाता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, ये तापमान विसंगतियाँ अत्यधिक शहरीकृत और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के तापमान में भिन्नता के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में खुले और हरे भरे स्थानों की उपलब्धता के कारण हैं।
नगरीय ऊष्मा द्वीप:
- नगरीय ऊष्मा द्वीप को स्थानीय और अस्थायी घटना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक शहर के भीतर कुछ क्षेत्र अपने आसपास के क्षेत्र की तुलना में अधिक तापमान का अनुभव करते हैं।
- नगरीय ऊष्मा द्वीप का निर्माण मूल रूप से कंक्रीट से बने शहरों की इमारतों और घरों के कारण होता है जिसके कारण उत्सर्जित ऊष्मा आसानी से वायुमंडल में नहीं पहुँच पाती है।
- नगरीय ऊष्मा द्वीप मूल रूप से कंक्रीट से बने प्रतिष्ठानों के बीच ऊष्मा के एकत्र होने से प्रेरित होता है।
- तापमान में यह भिन्नता 3 से 5 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकती है।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों के अधिक गर्म होने का कारण:
- यह देखा गया है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में हरे-भरे क्षेत्रों में कम तापमान का अनुभव होता है।
- नगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में वृक्षारोपण, खेत, जंगलों और पेड़ों के रूप में अपेक्षाकृत अधिक हरा-भरा आवरण होता है। यह हरित आवरण अपने परिवेश में गर्मी को नियंत्रित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- वाष्पोत्सर्जन वह प्रक्रिया है जिसे पौधे तापमान को नियंत्रित करने के लिये करते हैं।
- नगरीय क्षेत्रों में नगरीय ऊष्मा द्वीप का मूल कारण निम्नलिखित हैं:
- गगनचुंबी इमारतों, सड़कों, पार्किंग स्थलों, फुटपाथों और सार्वजनिक परिवहन पारगमन लाइनों के बार-बार निर्माण ने नगरीय ऊष्मा द्वीप की घटनाओं को तेज़ कर दिया है।
- यह काले या किसी गहरे रंग के पदार्थ के कारण होता है।
- नगरों में आमतौर पर कांँच, ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से निर्मित इमारतें होती हैं, ये सभी गहरे रंग की सामग्री हैं, जिसका अर्थ है कि यह सामग्री उच्च ऊष्मा को आकर्षित और अवशोषित करती है।
अर्बन हीट आइलैंड का कारण:
- निर्माण गतिविधियों में कई गुना वृद्धि: साधारण शहरी आवासों के जटिल बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं विस्तार के लिये डामर और कंक्रीट जैसी कार्बन अवशोषित सामग्री की आवश्यकता होती है जो बड़ी मात्रा में तापमान को अवशोषित करते हैं, अत: इस कारण शहरी क्षेत्रों की सतह के औसत तापमान में वृद्धि होती है।
- गहरे रंग की सतह: शहरी क्षेत्रों में निर्मित भवनों की बाहरी सतह को सामान्यतः काले या गहरे रंग से रंग दिया जाता है जिस कारण अल्बेडो अर्थात् पृथ्वी से सूर्य की ऊष्मा का परावर्तन कम हो जाता है और गर्मी का अवशोषण बढ़ जाता है।
- एयर कंडीशनिंग: तापमान को नियंत्रित करने के लिये एयर कंडीशनिंग का प्रयोग किया जाता है जिसके लिये बिजली संयंत्रों हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो अधिक प्रदूषण का कारण बनता है। इसके अलावा एयर कंडीशनर वायुमंडलीय हवा के साथ ऊष्मा का आदान-प्रदान करते हैं जो स्थानीय स्तर पर हीटिंग उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार यह एक कास्केड प्रभाव (Cascade Effect) है जो शहरी ऊष्मा द्वीपों के विस्तार में योगदान देता है।
- शहरी निर्माण शैली: ऊँची इमारतें और संकरी सड़कें हवा के संचलन में बाधा उत्पन्न करती हैं जिससे हवा की गति धीमी हो जाती है जो प्राकृतिक शीतलन प्रभाव को कम करता है। इसे अर्बन कैनियन इफेक्ट (Urban Canyon Effect) कहा जाता है।
- बड़े पैमाने पर परिवहन प्रणाली की आवश्यकता: परिवहन प्रणाली और जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर उपयोग शहरी क्षेत्रों में तापमान को बढ़ाता है।
- वृक्ष और हरित क्षेत्र की कमी: वृक्ष और हरित क्षेत्र वाष्पीकरण एवं कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की क्रिया को कम करते हैं तथा ये सभी प्रक्रियाएँ आसपास की हवा के तापमान को कम करने में मदद करती हैं।
- नगरीय ऊष्मा द्वीप में कमी के उपाय:
- हरित आवरण के तहत क्षेत्र में वृद्धि करना: वृक्षारोपण और हरित आवरण के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास शहरी क्षेत्रों में गर्मी की उच्च स्थिति को कम करने के लिये प्राथमिक आवश्यकता है।
- नगरीय ऊष्मा द्वीप को कम करने के लिये ‘पैसिव कूलिंग’: पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों को बनाने के लिये व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
- आईपीसीसी रिपोर्ट प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइनों का संदर्भ देती है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक सुविधाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- ऊष्मा शमन के अन्य तरीकों में उपयुक्त निर्माण सामग्री का उपयोग करना शामिल है।
- ऊष्मा को प्रतिबिंबित करने और अवशोषण को कम करने के लिये छतों को सफेद या हल्के रंगों में रंगा जाना चाहिये।
- टेरेस प्लांटेशन और किचन गार्डनिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
भारत के नगरीय ऊष्मा द्वीप के संदर्भ में नासा का विश्लेषण:
- नासा के अनुसार, दिल्ली के शहरी भागों में नगरीय ऊष्मा द्वीप की अधिक घटनाएंँ हो रही हैं।
- दिल्ली के आसपास के कृषि क्षेत्रों की तुलना में शहरी भागों का तापमान काफी अधिक है।
- नासा के इकोसिस्टम स्पेसबोर्न थर्मल रेडियोमीटर एक्सपेरिमेंट (इकोस्ट्रेस) द्वारा ली गई तस्वीर ने दिल्ली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लाल धब्बे, साथ ही पड़ोसी शहरों जैसे- सोनीपत, पानीपत, जींद और भिवानी के आसपास छोटे लाल धब्बों का खुलासा किया है।
- इकोस्ट्रेस रेडियोमीटर से युक्त उपकरण है जिसे नासा द्वारा 2018 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजा गया था।
- इकोस्ट्रेस मुख्य रूप से पौधों के तापमान का आकलन करने के साथ-साथ उनकी जल की आवश्यकताओं और उन पर जलवायु के प्रभाव को जानने का कार्य करता है।
- इकोस्ट्रेस के आंँकड़ों में ये लाल धब्बे नगरीय ऊष्मा द्वीप के अधिक तापमान, जबकि शहरों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में कम तापमान की घटनाओं का संकेत देते हैं।