कृषि
उत्तर-पूर्व में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की विफलता
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना, ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) उत्तर-पूर्व के राज्यों में विफल साबित हो रही है। गौरतलब है कि इस योजना के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये सालाना 1,400 करोड़ रुपए रखे गए थे, जबकि पिछले साल केवल 8 करोड़ रुपए ही खर्च किये गए।
प्रमुख बिंदु
- सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि चार उत्तर-पूर्वी राज्य- अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम इस योजना के तहत शामिल ही नहीं हैं।
- बीमा की कमी की वज़ह से मक्का बोने वाले हज़ारों किसान तबाही की कगार पर हैं क्योंकि फॉल आर्मीवर्म ने फसलों को काफी नुकसान पहुँचाया है।
कारण क्या है?
- बीमा के संबंध में पूर्वोत्तर राज्य कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
- बीमा कंपनियों की कम दिलचस्पी।
- राज्य बजट की कमी के कारण प्रीमियम के अपने हिस्से का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।
- प्रशासनिक लागत अधिक होने के कारण बीमा कंपनियाँ इन राज्यों में रुचि नहीं ले रही हैं। बीमा कंपनियों को इसमें दिलचस्पी इसलिये भी नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में कवरेज बहुत सीमित है।
- इन राज्यों के लिये विशेष रूप से ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर पर उचित भूमि रिकॉर्ड के साथ ही पिछली उपजों के आँकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं।
- कई फसलों के लिये आवश्यक क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट (Crop Cutting Experiments- CCEs) करना भी मुश्किल है।
क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट
- क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट की सहायता से फसलों की उपज का उचित और सटीक अनुमान प्राप्त किया जाता है।
- पूर्वानुमान संबंधी बुनियादी ढाँचे की कमी ने भी इन राज्यों में मौसम आधारित बीमा योजना की राह में बाधा उत्पन्न की है।
- ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ अधिसूचित फसलों के लिये फसल ऋण/केसीसी खाते का लाभ उठाने वाले कर्ज़दार किसानों हेतु अनिवार्य है, जबकि अन्य दूसरों के लिये स्वैच्छिक।
- यहाँ इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि असम को छोड़कर पूर्वोत्तर में कर्ज़ लेने वाले किसानों की संख्या भी बहुत कम है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ 18 फरवरी, 2016 को शुरू की गई थी। इस योजना का संचालन कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। यह फसल खराब हो जाने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है जिससे किसानों की आय स्थिर करने में मदद मिलती है।
मुख्य विशेषताएँ
- इस योजना के तहत खरीफ, रबी तथा वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों को शामिल किया गया है।
- इसमें खरीफ की फसल के लिये कुल बीमित राशि का 2% तक का बीमा प्रभार, रबी हेतु 1.5% तक तथा वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिये बीमित राशि का 5% तक का बीमा प्रभार निश्चित किया गया है।
- किसानों की प्रीमियम राशि का एक बड़ा हिस्सा केंद्र तथा संबंधित राज्य वहन करता है। बीमित किसान यदि प्राकृतिक आपदा के कारण बोहनी नहीं कर पाता है तो भी उसे दावा राशि मिल सकेगी।
- इस योजना में स्थानीय स्तर पर हानि की स्थिति में केवल प्रभावित किसानों का सर्वे कर उन्हें दावा राशि प्रदान की जाएगी। योजना में पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान को भी शामिल किया गया है।
- योजना में टेक्नोलॉजी (जैसे रिमोट सेंसिंग) इस्तेमाल कर फसल कटाई/नुकसान का आकलन शीघ्र व सही तरीके से किया जाता है, ताकि किसानों को दावा राशि त्वरित रूप से मिल सके।
प्रक्रिया क्या है?
- PMFBY के परिचालन दिशा-निर्देशों के तहत राज्य सरकारों को फरवरी के शुरू में बीमा कंपनियों के चयन के लिये बिड शुरू करनी होती है, यह प्रक्रिया नए फसल वर्ष शुरू होने से थोड़े पहले शुरू करने की व्यवस्था की जाती है।
- इसके बाद सभी प्रासंगिक विवरणों को शामिल करने वाली एक अधिसूचना जारी की जाती, जिसके अंतर्गत फसलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में परिचालन करने वाली कंपनियों, क्षतिपूर्ति का स्तर और औसत उपज (जिसके मुआवज़े की गणना की जाती है), बीमा राशि, वास्तविक प्रीमियम दर एवं इस पर सब्सिडी आदि के ब्योरे को मार्च (खरीफ के सीज़न) तथा सितंबर (रबी के सीज़न) के संदर्भ में तैयार किया जाता है।
- किसानों से प्रीमियम प्राप्त करने के लिये कट ऑफ तिथियाँ (उन्हें बीमा के लिये पात्र बनाना) 31 जुलाई (खरीफ के लिये) और 31 दिसंबर (रबी) हैं।
- इसके अतिरिक्त किसानों द्वारा चुकाए जाने वाले प्रीमियम की अंतिम तिथि जुलाई 31 (खरीफ के लिये) तथा दिसंबर 31 (रबी के लिये) निर्धारित की गई है।
- राज्यों द्वारा अगस्त-सितंबर (खरीफ का सीज़न) में प्रीमियम सब्सिडी योगदान का पहला इंस्टालमेंट जारी किया जाता है तथा शेष राशि का 50 फीसदी भुगतान नवंबर-दिसंबर तक किया जाता है। इसी प्रकार क्रमशः जनवरी-फरवरी और अप्रैल-मई में संबंधित रबी सीज़न की पहली किश्त जारी किये जाने की उम्मीद होती है।
- इसके अलावा, उन्हें उपज के आकलन के लिये हर गाँव/ग्राम पंचायत में न्यूनतम चार, प्रत्येक तालुका/तहसील/ब्लॉक में 16 और प्रत्येक ज़िले में 24 CCEs पूर्ण करने होते हैं।
- CCEs आधारित उपज डेटा कटाई के एक महीने के भीतर बीमा कंपनियों को जमा किया जाता है, जो खरीफ फसल के लिये अक्तूबर-दिसंबर और रबी फसल के लिये अप्रैल-जून के दौरान तैयार किया जाता है।
- बदले में कंपनियाँ उपज डेटा प्राप्त होने के तीन हफ्तों में अंतिम दावों का अनुमोदन और भुगतान करने जैसे कार्य संपन्न करती हैं।
- यदि राज्य खरीफ और रबी की फसल के लिये क्रमशः जनवरी और जुलाई तक प्रीमियम सब्सिडी के अपने पूरे हिस्से के साथ उपज डेटा उपलब्ध करा देते हैं तो किसान उचित समय के भीतर अपने फसल संबंधी दावों का भुगतान प्राप्त कर सकते हैं।
- केंद्रीय कृषि मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, बीमा कंपनियाँ तब तक इन दावों के विषय में कोई कार्यवाही नहीं करती हैं जब तक उन्हें पूरा प्रीमियम भुगतान तथा फसल नुकसान के संबंध में उपज डेटा नहीं मिल जाता है।
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कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गए सुधार एवं संभावित प्रभाव
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कृषि को व्यावहारिक और लाभकारी बनाने हेतु 12 पहलें
प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में सुधार की आवश्यकता
स्रोत- द हिंदू
विविध
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्लास्टिक कचरा एक अभिशाप
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने ज़िनेवा में आयोजित बासेल अभिसमय (Basel Convention) में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें यह कहा गया कि विकसित देशों को अपने इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरे (Electronic and Plastic Wastes) को विकासशील देशों में निर्यात करने से रोका जाना चाहिये, लेकिन यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका।
प्रमुख बिंदु
- बासेल की 14वीं बैठक में 187 देशों के सदस्यों ने भाग लिया दो सप्ताह के विचार-विमर्श के बाद यह 10 मई, 2019 को ज़िनेवा में संपन्न हुई। इसका उद्देश्य खतरनाक कचरे के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करना था।
- बैठक का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम बासेल अभिसमय (Basel Convention) का संशोधन था जिसमें प्लास्टिक कचरे को कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचे में शामिल किये जाने का प्रावधान किया गया। यह प्लास्टिक कचरे के वैश्विक व्यापार को अधिक पारदर्शी बनाने के साथ ही बेहतर ढंग से विनियमित करेगा। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि इसका प्रबंधन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये अधिक सुरक्षित हो।
- हालाँकि यह देशों द्वारा प्लास्टिक कचरे की विभिन्न श्रेणियों के निर्यात पर रोक नहीं लगा सकता है।
- प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है, विश्व भर के समुद्रों में लगभग 100 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा एकत्रित है जिसका 80-90% भाग भूमि-आधारित स्रोतों का परिणाम है।
नोट- वर्तमान में भारत ने इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरे के आयात को प्रतिबंधित कर रखा है।
बासेल अभिसमय (Basel Convention)
- 22 मार्च, 1989 का प्लेनिपोटेंटियरीज का सम्मेलन (Conference of Plenipotentiaries) जो बासेल (स्विट्ज़रलैंड) में आयोजित हुआ था, के अंतर्गत देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना और इसके निराकरण के प्रयास करना था। इसे बासेल अभिसमय (Basel Convention) के रूप में जाना जाता है और यह 1992 में लागू हुई।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य विभिन्न देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना है और इसका मुख्य फोकस (केंद्र-बिंदु) विकसित देशों और विकासशील देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आयात-निर्यात को बाधित करना है।
- यह संधि देशों के मध्य आपसी सहयोग एवं बासेल अभिसमय (Basel Convention) के निर्देशों के क्रियान्वयन संबंधी जानकारियों को साझा करने का भी आदेश देती है।
इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरा क्या है ?
- जैसे-जैसे देश में डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
- कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण और टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) तथा कैमरे, मोबाइल फोन एवं उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
- ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम रोज़मर्रा के इस्तेमाल में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
स्रोत- ‘द हिंदू’
विविध
परिष्कृत मोबाइल फोन का आयात
चर्चा में क्यों?
भारत ने परिष्कृत मोबाइल फोन के आयात की अनुमति दी है, हालाँकि इस संदर्भ में यह शर्त भी रखी है कि इन्हें भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) द्वारा प्रमाणित कराया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- एक परिष्कृत/नवीनीकृत मोबाइल फोन ऐसे फोन या हैंडसेट (Handset) को कहते हैं जिसके परिचालन में समस्या उत्पन्न होने के कारण उसे मोबाइल निर्माता कंपनी को वापस लौटा दिया जाता है ताकि फोन में आने वाली समस्या का पता लगाया जा सके। साथ ही कारखाने/कंपनी के मानकों के अधीन रहते हुए इस मोबाइल फोन को ठीक करके पुन: प्रयोग में लाया जा सके।
- यह निर्णय एप्पल जैसी मोबाइल संचालक कंपनियों की मांगों को पूरा करता है, जो भारत में उभरते स्मार्टफोन व्यवसाय से लाभ प्राप्त करना चाहती हैं।
- वाणिज्य मंत्रालय की एक अधिसूचना के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का आयात (इसमें नए के साथ-साथ पुरानी वस्तुएँ, परिष्कृत या अपरिष्कृत, मरम्मत की गई अथवा बिना मरम्मत वाली वस्तुएँ शामिल हैं) जिसके लिये पंजीकरण की अनिवार्यता होती है, तब तक प्रतिबंधित होता हैं जब तक कि उन्हें बी.आई.एस. के साथ पंजीकृत और वर्गीकरण की आवश्यकताओं का पालन नहीं किया जाता है।
- यदि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय किसी विशेष खेप के लिये विशिष्ट छूट देता है तो आयात की अनुमति दी जा सकती है।
चिंता/मुद्दा
- मुख्य चिंता का विषय यह है कि बी.आई.एस. परिष्कृत फोनों को प्रमाणित करने में किस प्रकार सक्षम होगा, इसका कारण है कि परिष्कृत होने वाले सभी फोनों में एकरूपता की कमी है। ऐसे में सभी के लिये एक ही मानक तय करना और उसके अनुरूप प्रमाणीकरण की प्रक्रिया का अनुपालन करना कठिन होगा।
- उदाहरण के लिये, नए फोन में एकसमान मानक (uniform standard) होते हैं और प्रमाणीकरण उद्देश्यों की पूर्ति हेतु फोन के किसी एक नमूने की जाँच की जा सकती है। हालाँकि इस तरह की एकसमान नमूने की जाँच वाली युक्ति परिष्कृत/नवीनीकृत मोबाइल फोन के मामले में संभव नहीं है।
- ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि संभवतः कंपनियाँ खतरनाक इलेक्ट्रॉनिक कचरे/अपशिष्ट (Hazardous Electronic Waste) के निपटान के लिये एक विकल्प के रूप में भारत का उपयोग कर सकती हैं।
- साथ ही परिष्कृत मोबाइल फोन के आयात से ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) जैसी पहल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- इसके अतिरिक्त यह इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (National Policy on Electronics), 2019 के मानकों की भी अपेक्षा करेगा।
भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS)
- बी.आई.एस. वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन जैसी गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिये बी.आई.एस. अधिनियम 2016 के तहत स्थापित भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय (National Standard Body of India) है।
- इसके अतिरिक्त यह संस्था उक्त विषयों से जुड़े आकस्मिक या अतिरिक्त मामलों को नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिये भी उत्तरदायी है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
विविध
छोटे शहरों में प्रवासन
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसका शीर्षक ‘प्रवास एवं शहरों पर उसके प्रभाव' (Migration and its impacts on cities) था।
इसमें कहा गया कि अंतर्राज्यीय प्रवास में तेज़ी से वृद्धि का कारण यह है कि लोग अब बड़े शहरों के स्थान पर छोटे शहरों में बसने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- आकर्षक वेतन, रोज़गार के बढ़ते अवसरों एवं जीविका चलाने हेतु कम खर्च जैसे मुद्दों ने प्रवासियों का ध्यान छोटे शहरों की ओर आकर्षित किया है एवं यह छोटे शहर महानगरों में परिवर्तित हो रहे हैं।
- विश्व आर्थिक मंच की इस रिपोर्ट के अनुसार छोटे शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही बढ़ती बुनियादी ढाँचे की मांग से निपटने के लिये इन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि राजस्व प्राप्ति के संसाधन घट रहे हैं।
- मनरेगा प्रभाव (MNREGA Effect) - फरवरी 2019 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office -NSSO) ने 2014-15, 2015-16 और 2017-18 के दौरान प्रवास को लेकर सर्वेक्षण नहीं किया था। इसलिये मंत्रालय के पास ताज़ा आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन इसके साथ ही यह दावा भी किया कि सरकार ने ग्रामीण लोगों के पलायन को रोकने के लिये बहुत सी योजनाएँ चला रखी हैं जिनके अंतर्गत गाँवों में बुनियादी ढाँचे के निर्माण से लेकर ग्रामीणों के जीवन स्तर को सुधारने के प्रयास किये जा रहे हैं।
- सरकार ने कहा कि भारत जैसी बाज़ारवादी अर्थव्यवस्था में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में शामिल लोगों की आवाज़ाही बहुत अधिक है, इसलिये सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme-MNREGA) जैसे कार्यक्रमों से इस तरह के प्रवास को कम करने में सफल रही है।
- निरंतर प्रवास (Unabated Migration)- हमारे देश में लोग आजीविका की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं उदहारण के लिये अगर हम पुणे एवं मुंबई में तुलना करते हैं तो ऐसा लगता है कि आज लोगों का ध्यान मुंबई से हटकर पुणे पर जाता है क्योंकि मुंबई में पहले से ही बहुत अधिक जनसंख्या है एवं रहने-खाने का खर्चा भी बहुत ज़्यादा है।
- पुणे में मुंबई की तुलना में शिक्षा, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में सुविधाएँ उपलब्ध होने के साथ ही रोज़गार के भी बेहतर अवसर हैं।अतः यह दृष्टिकोण उन सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होता है जो नौकरी एवं शिक्षा की तलाश में प्रवास करते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में पाया गया कि ऐसा केवल पुणे के मामले में ही नहीं है बल्कि यह प्रतिस्पर्द्धा गुजरात और महाराष्ट्र के मध्य भी देखने को मिलती है जहाँ सूरत व मुंबई के प्रतिस्पर्द्धी शहर के रूप में सामने आया है एवं उसने मुंबई के साथ ही उसके आसपास के ज़िलों के प्रवासियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यही स्थिति जयपुर और चंडीगढ़ (दिल्ली में) में भी देखने को मिल रही है।
शहरों में प्रवासियों की बढ़ती संख्या (Urban Agglomeration)
- सूरत, फरीदाबाद, और लुधियाना में लगभग 55% प्रवासी लोग हैं, जबकि जयपुर उपनगर के रूप में विस्तार के साथ ही शहरी समूह के रूप में बढ़ रहा है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मेट्रो सिटीज़ (जिनकी जनसंख्या 1 लाख से ऊपर है) में प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है। वर्ष 2001 में मेट्रो सिटीज़ की संख्या 441 थी। जिनकी कुल आबादी में 62.29% शहरी आबादी थी।
- जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मेट्रो सिटीज़ की संख्या बढ़कर 468 हो गई, इसकी कुल जनसंख्या में शहरी आबादी बढ़कर 70.24% हो गई। ये आँकड़े चकित करने वाले नहीं हैं, ऐसा इसलिये हुआ है क्योंकि जो कार्य-बल कृषि के क्षेत्र में लगा था उसमें गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2001 में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 58.2% थी जो 2011 आते-आते घटकर 54.6% रह गई।
संसाधनों की कमी (Resource Crunch)
- छोटे शहरों के नगर निकायों को संसाधनों की कमी के कारण आबादी को समायोजित करने के लिये बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
- नगरपालिका क्षेत्र का कुल राजस्व देश के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.75 प्रतिशत है, जबकि दक्षिण अफ्रीका का 6 प्रतिशत, ब्राजील का 5 प्रतिशत और पोलैंड का 4.5 प्रतिशत है।
अर्थशास्त्री और नियोजन विशेषज्ञ ईशर जज अहलूवालिया के अनुसार, हमारे देश में अभी भी शहरीकरण की योजना बनाने और योजनाओं के क्रियान्वयन की अपर्याप्त समझ होने के कारण भारत निवासियों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने और एक बेहतर निवेश माहौल विकसित करने एवं उद्यमियों और नवोन्मेषकों को आकर्षित नहीं कर सका हैं।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO)
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) का प्रमुख एक महानिदेशक होता है जो अखिल भारतीय आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण करने के लिये जिम्मेदार होता हैं।
- प्रारंभिक आँकड़े विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों को लेकर राष्ट्रव्यापी स्तर पर घरों का सर्वेक्षण, वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण (एएसआई) आदि करके एकत्र किये जाते हैं। इन सर्वेक्षणों के अलावा, एनएसएसओ ग्रामीण और शहरों से संबंधित डेटा एकत्र करता है।
मनरेगा क्या है?
- ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला ‘मनरेगा’ रोज़गार की कानूनी गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है, जो प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिनो के गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान करता है।
- ध्यातव्य है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
- मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इस कार्यक्रम के दायरे से कुछ ऐसे चंद ज़िले ही बाहर हैं जो पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आते हैं। इसके अंतर्गत मिलने वाली मज़दूरी के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास है। गौरतलब है कि जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिये अधिसूचित मनरेगा मजदूरी दरों को प्रतिवर्ष संशोधित करती है।
- प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
- हाल के मनरेगा आँकड़ो के अनुसार 13 करोड़ परिवारों के लगभग 28 करोड़ कामगारों के पास जॉब कार्ड उपलब्ध हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की रिपोर्ट के मुताबिक, मनरेगा शुरू होने से पहले 42% ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी। मनरेगा की शुरुआत के बाद इसमें ग्रामीण गरीब जनसंख्या के 30% की भागीदारी रही है। रिपोर्ट की मानें तो गरीब व सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों, जैसे-मज़दूर, आदिवासी, दलित एवं छोटे सीमांत कृषकों के बीच गरीबी कम करने में मनरेगा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- मनरेगा के चलते ग्रामीण श्रम बाज़ार में मज़दूरी में वृद्धि हुई है तथा श्रमिकों की मोलभाव करने की क्षमता (Bargaining power) भी बढ़ी है। मनरेगा से जुड़े लोगों द्वारा संगठित क्षेत्र से ऋण लेने की दर में इजाफा हुआ है जिससे साहूकारों पर निर्भरता काफी घटी है।
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)
- विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
- यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
- इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
- इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर प्रदान की जाती है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
- इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (18 May)
- 16 मई को लोकपाल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष ने लोकपाल के सभी सदस्यों की मौजूदगी में लोकपाल की वेबसाइट http://lokpal.gov.in की शुरुआत की। इस वेबसाइट का निर्माण राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIEC) ने किया है और इसमें लोकपाल के संचालन और कार्यपद्धति संबधी पूर्ण विवरण दिया गया है। लोकपाल अपनी तरह का देश का पहला ऐसा संस्थान है, जिसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अंतर्गत की गई है। यह इस अधिनियम के कार्यक्षेत्र और सीमा में आने वाले लोकसेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच और विवेचना करेगा। ज्ञातव्य है कि केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को लोकपाल का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया था और उनके साथ ही चार न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति भी की।
- 14 मई को भारत और ईरान के बीच 11वीं संयुक्त राजनयिक समिति की बैठक नई दिल्ली में आयोजित हुई। इस बैठक में राजनयिक एवं वीज़ा संबंधी मुद्दों पर वर्तमान सहयोग की स्थिति की समीक्षा पर विशेष रूप से विचार किया गया। इसमें दोनों देशों के लोगों के लिये ई-वीज़ा की अवधि बढ़ाना भी शामिल है। बैठक में दोनों पक्षों ने आपसी हितों के मुद्दों पर चर्चा की जिसमें नागरिक और वाणिज्यिक मामलों में न्यायिक सहयोग पर समझौते को अंतिम रूप देने पर ज़ोर दिया गया। इसके अलावा कैदियों के स्थानांतरण, अपराधियों के प्रत्यर्पण और आपराधिक मामलों में न्यायिक सहायता जैसे न्यायिक मामलों पर सहमति में हुई प्रगति पर भी चर्चा की गई। इस बैठक में भाग लेने के लिये ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ के नेतृत्व में एक आर्थिक-राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली आया था।
- 17 मई को विश्व दूरसंचार और सूचना सोसायटी दिवस का आयोजन किया गया। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना और वर्ष 1865 में पहले अंतर्राष्ट्रीय टेलीग्राफ समझौते पर हस्ताक्षर होने की स्मृति में मनाया जाता था। आधुनिक युग में इसकी शुरुआत वर्ष 1969 में हुई। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लाभों के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिये यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सुलभ कराना है। वर्तमान में इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य इंटरनेट, टेलीफोन और टेलीविज़न के द्वारा तकनीकी दूरियों को कम करना और आपसी संचार संपर्क को बढ़ाना भी है। इस वर्ष की विश्व दूरसंचार और सूचना सोसायटी दिवस की थीम Bridging the Standardization Gap रखी गई है।
- भारत में लोकसभा चुनावों के परिणामों और नई सरकार के गठन के मद्देनज़र पाकिस्तान ने भारतीय उड़ानों के लिये अपने हवाई क्षेत्र पर लगे प्रतिबंध को 30 मई तक बरकरार रखने का फैसला किया है। ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान ने 26 फरवरी को बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद अपने हवाई क्षेत्र को पूरी तरह से बंद कर दिया था। बाद में पाकिस्तान ने 27 मार्च को नई दिल्ली, बैंकॉक और कुआलालंपुर को छोड़कर सभी उड़ानों के लिये अपना हवाई क्षेत्र खोल दिया था। वैसे दोनों देशों ने एक-दूसरे के हवाई क्षेत्र में प्रतिबंध लगाया हुआ है। भारत द्वारा अपने हवाई क्षेत्र पर उड़ान प्रतिबंध के कारण पाकिस्तान ने बैंकॉक, कुआलालंपुर के लिये अपनी विमान सेवाएँ बंद कर दी हैं। पाकिस्तान की ओर से लागू इस प्रतिबंध के चलते भारतीय हवाई क्षेत्र का उपयोग करने वाली विदेशी उड़ानों को भी पाकिस्तान से गुज़रने की अनुमति नहीं है।
- पाकिस्तान सरकार पंजाब को विभाजित करके नया दक्षिण पंजाब प्रांत बनाने की अपनी योजना पर आगे बढ़ते हुए नेशनल असेंबली में एक विधेयक लाने की तैयारी में है। गौरतलब है कि बलूचिस्तान के बाद पंजाब पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत है और राजनीतिक रूप से भी प्रभावशाली है। इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने 2018 में हुए आम चुनाव में पंजाब प्रांत को विभाजित करके दक्षिण पंजाब प्रांत बनाने का वादा किया था। दक्षिण पंजाब में मुल्तान, बहावलपुर और डेरा गाज़ी खान ज़िले होंगे। नया प्रांत बन जाने के बाद पंजाब असेंबली में सीटों की मौजूदा संख्या 371 से घटकर 251 हो जाएगी, क्योंकि विधेयक में दक्षिण पंजाब असेंबली के लिये 120 सीटें रखे जाने का प्रस्ताव है। लेकिन नए दक्षिण पंजाब प्रांत के गठन के लिये कुछ संवैधानिक संशोधन पारित करने होंगे। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब, सिंध और गिलगित बाल्टिस्तान के बाद दक्षिण पंजाब प्रांत पाकिस्तान का छठा प्रांत होगा।
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीनेट में ग्रीन कार्ड की जगह नई आव्रजन योजना 'बिल्ड अमेरिका' वीज़ा का प्रस्ताव रखा है। इस योजना के लागू हो जाने पर कुशल पेशेवरों को ही ग्रीन कार्ड मिल सकेगा। यह नई आव्रजन योजना योग्यता और मैरिट पर आधारित होगी। इससे ग्रीन कार्ड या स्थायी वैध निवास की अनुमति का इंतज़ार कर रहे भारतीयों सहित अन्य विदेशी प्रोफेशनल्स और कुशल श्रमिकों को लाभ होगा। इस प्रस्ताव में वीज़ा कोटा 12% से बढ़ाकर 57% करने की बात कही गई है। ज्ञातव्य है कि अमेरिका हर साल करीब 11 लाख विदेशियों को ग्रीन कार्ड देता है। इसके मिल जाने के बाद लोगों को अमेरिका में स्थायी रूप से काम करने और रहने की अनुमति होती है। वर्तमान में ग्रीन कार्ड परिवार से संबंध के आधार पर दिया जाता रहा है। 'बिल्ड अमेरिका' वीज़ा के तहत ग्रीन कार्ड के लिये विदेशियों को अंग्रेज़ी सीखनी होगी तथा साथ ही नागरिक शास्त्र की परीक्षा भी पास करनी होगी।