डेली न्यूज़ (18 Mar, 2020)



संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये:

संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र, INCOIS, ओशनसैट सैटेलाइट, सागरीय बायोम

मेन्स के लिये:

भारत में मत्स्यन

चर्चा में क्यों?

‘भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र’ (The Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS), हैदराबाद ने सूचना दी है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization- ISRO) के ओशनसैट सैटेलाइट (Oceansat Satellite) के आँकड़ों का प्रयोग ‘संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र’ (Potential Fishing Zone- PFZ) संबंधी एडवाज़री (Advisories) तैयार करने में किया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • ISRO ने वर्ष 2002 में ही PFZ एडवाज़री जारी करने संबंधी परिचालन सेवा को विकसित कर ली थी।
  • सेवा प्रदान करने में इसरो के ओशनसैट -2 उपग्रह से प्राप्त क्लोरोफिल सांद्रता एवं ‘नेशनल ओशनिक एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Oceanic Atmospheric Administration-NOAA) द्वारा समुद्र सतह के तापमान (Sea Surface Temperatures- SST) पर एकत्रित किये गए डेटा का उपयोग किया जाता है।

तकनीक की कार्यप्रणाली:

  • सैटेलाइट के माध्यम से ‘ओशन कलर मॉनीटर’ (Ocean Colour Monitor- OCM) द्वारा क्लोरोफिल की सांद्रता एवं एडवांस्ड वेरी हाई रेज़ोल्यूशन रेडियोमीटर (Advanced Very High Resolution Radiometer- AVHRR) से सागरीय सतह के तापमान (SST) का मापन किया जाता है।

PFZ क्षेत्र:

  • PFZ क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में पेलेजिक जीवों (Pelagic) तथा ‘वाटर कॉलम हैबिटैट’ (Water Column habitat) का प्रतिशत अधिक होता है।

सागरीय पर्यावरणीय की दशाओं के आधार पर सागरीय बायोम को 2 भागों में विभाजित किया जाता है-

1. पेलेजिक ज़ोन: पैलेजिक ज़ोन का विस्तार सागरीय बायोम में सर्वाधिक है। इसे दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • प्रकाशिक बायोम: उपरी 200 मीटर तक सागरीय जल
  • अप्रकाशित बायोम: 200 मीटर से नीचे का सागरीय जल

2. बेन्थिक:

  • सागरीय ढालों पर पाया जाने वाला बायोम

पेलेजिक मछली (Pelagic Species):

  • पेलेजिक ज़ोन में रहने वाली मछलियों को उनके आवास स्थान के आधार पर पेलेजिक मछली कहा जाता है। यथा- एंकोवी, सार्डिन।

जल स्तंभ आवास (Water Column Habitat):

  • यह लंबवत सागरीय प्रकोष्ट होता है जिसका निर्धारण इसकी भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के आधार पर किया जाता है।
  • तथा जल के रासायनिक और भौतिक गुणों में अंतर मछली वितरण सहित पानी के स्तंभ के जैविक घटकों को प्रभावित करता है।

तकनीक का लाभ:

  • ‘नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार अंतरिक्ष आधारित इस सेवा से डीज़ल की खपत में कमी होने से कार्बन के उत्सर्जन में भी कमी आई है, जो 36,200 करोड़ रुपए के कार्बन क्रेडिट के समतुल्य (Carbon Credit Equivalent) है।
  • एक अन्य अध्ययन के अनुसार, 32 मछली पकड़ने वाली नौकाओं से लगभग 70,000 लीटर डीज़ल की बचत होती है।

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS):

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
  • INCOIS का मुख्य अधिदेश महासागर का अवलोकन कर इससे संबंधित जानकारियों को जनसामान्य के लिये सुलभ बनाना है।
  • INCOIS का मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA):

  • वैज्ञानिक शुद्धता की संस्कृति को बढ़ावा देकर जीवन और संपत्ति की सुरक्षा करने के लिये अमेरिका के वाणिज्य विभाग के अंतर्गत वर्ष 1970 में नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की स्थापना हुई थी।
  • NOAA का उद्देश्य जलवायु, मौसम, महासागरों और तटीय स्थितियों में परिवर्तन को समझना तथा उनकी भविष्यवाणी करना है।

ओशनसैट- 2 (Oceansat- 2):

  • यह IRS प्रकार का मिशन है जिसे 23 सितंबर, 2009 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C14 द्वारा लॉन्च किया गया।
  • इसमें 3 पेलोड शामिल थे:
    • महासागर कलर मॉनीटर (OCM)
    • Ku-बैंड पेंसिल बीम स्कैटरोमीटर (SCAT)
    • वायुमंडलीय ध्वनि वातावरण प्रच्छादन (Radio Occultation Sounder for Atmosphere- ROSA)।

स्रोत: PIB


नौसेना में महिलाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायालय का निर्णय

मेन्स के लिये:

नौसेना में महिलाओं की भूमिका और संबंधित विषय

चर्चा में क्यों?

लैंगिक समानता पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारतीय नौसेना में महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी अपने पुरुष समकक्षों के समान स्थायी कमीशन की हकदार हैं।

प्रमुख बिंदु

  • भारत सरकार बनाम लेफ्टिनेंट कमांडर एनी नागराज और अन्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘लैंगिक समानता की लड़ाई मानसिकता की लड़ाई है। इस संदर्भ में सरकार द्वारा दिये गए तर्क रुढ़िवादी मानसिकता को दर्शाते हैं।

पृष्ठभूमि

  • बीते दिनों 17 महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की गई थी। इन अधिकारियों का तर्क था कि इन्हें SSC अधिकारी के रूप में 14 वर्ष की सेवा पूरी करने के बावजूद स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया था।
  • सभी महिला SSC अधिकारियों ने सशस्त्र बलों की तीनों शाखाओं में SSC अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने वाली सरकार के नीति पत्र को चुनौती दी थी।

न्यायालय का निर्णय

  • न्यायालय ने अपने निर्देश में 26 सितंबर, 2008 के उक्त नीति पत्र में उल्लिखित शर्तों को रद्द कर दिया, जिससे महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन का मार्ग स्पष्ट हो गया।
  • न्यायालय ने कहा कि स्थायी कमीशन की सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करने वाली महिला SSC अधिकारी सभी प्रकार के लाभों जैसे- पदोन्नति और सेवानिवृत्ति लाभ आदि की हकदार होंगी।
  • इसके अलावा जिन महिला SSC अधिकारियों को 26 सितंबर, 2008 के नीति पत्र के आधार पर स्थायी कमीशन देने से इनकार कर दिया गया था, उन्हें भी सभी प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभ दिये जाएंगे।
  • न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों ने सेवा के प्रत्येक क्षेत्र में अपने पुरुष समकक्षों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर कार्य किया है और इसीलिये इस संदर्भ में दिये गए सभी स्पष्टीकरण बिल्कुल भी तार्किक नहीं हैं।
    • ध्यातव्य है कि इस मामले में दिये गए स्पष्टीकरण में कहा गया था कि भारतीय नौसेना द्वारा तैनात किये गए रूसी मूल के जहाज़ों में महिला अधिकारियों के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। न्यायालय ने इस स्पष्टीकरण को आधारहीन घोषित किया है।

नौसेना में महिलाएँ

  • 9 अक्तूबर, 1991 तक भारतीय नौसेना में महिलाओं को कमीशन नहीं दिया जाता था। इसके पश्चात् 9 अक्तूबर, 1991 को सरकार ने अधिसूचना जारी की और नौसेना अधिनियम की धारा 9(2) का प्रयोग कर यह निश्चित किया कि महिलाएँ भी भारतीय नौसेना में अधिकारी के रूप में नियुक्त हो सकें।
  • हालाँकि उस समय महिलाओं की नियुक्ति नौसेना की मात्र 4 शाखाओं (लॉजिस्टिक्स, कानून, हवाई यातायात नियंत्रण और शिक्षा) तक ही सीमित थी।
  • इसी समय सरकार ने यह भी कहा था कि वर्ष 1997 तक महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन संबंधी नीतिगत दिशा-निर्देश निर्धारित किये जाएंगे किंतु वर्ष 2008 तक इस विषय में कोई प्रगति नहीं हो सकी।
  • 26 सितंबर, 2008 को सरकार ने पहली बार तीनों सेनाओं में SCC महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्णय लिया, हालाँकि यह प्रस्ताव कुछ श्रेणियों तक ही सीमित था।

सशस्त्र बल में महिलाएँ

  • लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सीय पेशे जैसे- डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी। भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति की शुरुआत वर्ष 1992 से हुई।
  • शुरुआत में महिला अधिकारियों को नॉन-मेडिकल जैसे- विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्ज़ीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में पाँच वर्ष की अवधि के लिये कमीशन दिया जाता था, जिसे समाप्ति पर पाँच वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
  • वर्ष 2006 में नीतिगत संशोधन किया गया और महिला अधिकारियों को शाॅर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के तहत 10 वर्ष की सेवा की अनुमति दे दी गई, जिसे 4 वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
  • वर्ष 2006 में हुए नीतिगत संशोधनों के अनुसार, पुरुष SSC अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के अंत में स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे, किंतु यह विकल्प महिला अधिकारियों के लिये उपलब्ध नहीं था।
  • इस प्रकार सभी महिला अधिकारी कमांड नियुक्ति से बाहर हो गईं और वे सैन्य अधिकारियों को दी जानी वाली पेंशन की आवश्यक योग्यता को भी पूरा नहीं करती थीं, जो एक अधिकारी के रूप में 20 वर्षों की सेवा के पश्चात् ही शुरू होती है।

आगे की राह

  • हम यह समझना होगा कि जब नौसेना की महिला अधिकारियों को भी उसी प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है जो उनके पुरुष समकक्षों को दी जाती है तो महिलाएँ किस आधार पर पुरुषों से भिन्न हैं?
  • सेना में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने और इस विषय से संबंधित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने के लिये एक समेकित अध्ययन करने की आवश्यकता है जिसमें नागरिक समाज के अलावा स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय को शामिल किया जाना चाहिये ताकि हम निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अपेक्षित चुनौतियों का सामना करने एवं उनसे निपटने में सक्षम हो सकें।

स्रोत: द हिंदू


विदेशी अधिकरण

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी अधिकरण

मेन्स के लिये:

विदेशी अधिकरण से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

वैश्विक मानवाधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ (Amnesty International) द्वारा ‘डिजायन टू एक्सक्लूड’ (Designed to Exclude) नामक शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार, असम सरकार ने ‘विदेशी अधिकरण’ (Foreigners’ Tribunal- FT) के सदस्यों के कार्यकाल का निर्धारण उनके द्वारा विदेशी घोषित किये गए व्यक्तियों की संख्या के आधार पर किया है।

पृष्ठभूमि:

  • प्रारंभ में 11अवैध प्रवासी निर्धारण अधिकरण (Illegal Migrant Determination Tribunals- IMDT) कार्यरत थे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध प्रवासी (अधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम, 1983 को रद्द कर वर्ष 2005 में इसे FTs में परिवर्तित कर दिया।
  • राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में 21, वर्ष 2009 में 4 तथा वर्ष 2014 में शेष 64 FTs को स्थापित किया।

विदेशी अधिकरण:

  • विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 को केंद्र सरकार द्वारा विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत जारी किया गया था।
  • विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 में प्रमुख संशोधन वर्ष 2013 में किये गए
  • ये सभी आदेश पूरे देश में लागू हैं तथा किसी भी राज्य के लिये विशिष्ट नहीं हैं

नवीनतम आदेश:

  • नवीनतम संशोधन 30 मई 2019 को किया गया, जो NRC (National Register of Citizens- NRC) के खिलाफ दायर दावों एवं आपत्तियों के विरोध में अपील संबंधी मामलों के निपटारे से संबंधित है।
  • 30 मई, 2019 को जारी किया गया आदेश केवल असम राज्य से संबंधित है।
  • असम में वर्तमान में 100 FTs हैं, जबकि 200 से अधिक FTs को स्थापित करने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।
  • ये FTs मुख्यत 31अगस्त, 2019 को प्रकाशित अद्यनत NRC से बाहर किये गए 19.06 लाख लोगों के मामलों से संबंधित मामलों का निपटान करेगी।

सदस्यों की नियुक्ति:

  • FT सदस्यों की नियुक्ति ‘विदेशी अधिकरण अधिनियम’ 1941, (Foreigners Tribunal Act 1941) ‘विदेशी अधिकरण आदेश’ 1984, (Foreigners Tribunal Order 1984) तथा सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के तहत की जाती है।

सदस्यों की योग्यता: 

  • FT सदस्यों की नियुक्ति के लिये निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है-
  • वह असम न्यायिक सेवा का सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी रहा हो।
  • न्यायिक अनुभव रखने वाला सिविल सेवक जो सचिव या अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे सेवानिवृत्त नहीं हुआ हो।
  • प्रैक्टिस करते हुए अधिवक्ता (Practising Advocate) जिसकी उम्र 35 वर्ष से कम न हो तथा कम से कम सात वर्ष के अभ्यास का अनुभव रखता हो।
  • असम (असमिया, बंगाली, बोडो और अंग्रेजी) की आधिकारिक भाषाओं का अच्छी समझ हो।
  • विदेशी मामलों का अनुभव रखता हो।

वेतन भत्ते:

  • यदि सेवानिवृत्त न्यायाधीश या सिविल सेवक की नियुक्ति FTs के सदस्य के रूप में की जाती है तो उसे वही वेतन तथा भत्ता दिया जाता है जो वेतन तथा भत्ता उसकी सेवानिवृत्ति के समय था।
  • यदि एक वकील की नियुक्ति FTs के सदस्य के रूप में की जाती है, तो उसे 85,000 रुपए प्रति माह वेतन तथा भत्ता दिया जाता है।

FTs में अपील का तरीका:

  • वे लोग जो अद्यतन NRC सूची से बाहर रह जाते हैं वे FTs से संपर्क कर सकते हैं
  • यदि कोई सदस्य FT के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो वे इसके खिलाफ आगे अपील कर सकता है।

FTs की विश्वसनीयता:

  • FTs की विश्वसनीयता पर अगस्त 2017 से सवाल उठने लगे हैं, जब असम के मोरीगाँव जिले के एक FT सदस्य ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
  • सदस्य के अनुसार- “विदेशी मामलों को FTs सदस्य एक उद्योग के रूप में ले रहे है तथा उनका उद्देश्य ऐसे मामलों में केवल पैसा बनाना है।”
  • मोरीगाँव FT सदस्य ने यह भी देखा कि अनुचित प्रथाओं तथा नकली दस्तावेज़ों के माध्यम से भारतीय नागरिकों को विदेशी तथा विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी जा रही है।

आगे की राह:

  • व्यक्ति की नागरिकता एक बुनियादी मानवाधिकार है। न्यायिक रूप से अपनी पहचान को सत्यापित किये बिना जल्दबाजी में लोगों को विदेशी घोषित करना बहुत से नागरिकों को राज्यविहीन (Stateless) कर देगा, अत: जो लोग सूची में शामिल नहीं हो पाते हैं उन्हें पर्याप्त कानूनी सहायता दी जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 के उपचार हेतु HIV-रोधी दवाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19

मेन्स के लिये:

कोरोनावायरस महामारी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोनोवायरस से संक्रमित व्यक्ति की स्थिति की गंभीरता के आधार पर HIV-रोधी दवाओं के उपयोग की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु

  • 'COVID-19’ के ‘क्लिनिकल मैनेजमेंट' पर अपने संशोधित दिशा-निर्देशों में मंत्रालय ने 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के उच्च जोखिम वाले रोगियों के लिये इन दवाओं की सिफारिश की है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, विशेषज्ञों की एक समिति जिसमें एम्स के डॉक्टर, नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC) के विशेषज्ञ और WHO के सदस्य शामिल थे, ने उपचार के दिशा-निर्देशों पर दोबारा गौर किया और कोरोनोवायरस संक्रमण से पीड़ित रोगियों के लिये सहायक उपचार की सिफारिश की है।

मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश

  • मंत्रालय ने हाइपोक्सिया, हाइपोटेंशन, अंग की शिथिलता जैसे लक्षण वाले रोगियों के लिये लोपिनवीर/रितोनवीर (Lopinavir-Ritonavir) के संयोजन वाली HIV-रोधी दवाओं की सिफारिश की है।

लोपिनवीर/रितोनवीर (Lopinavir-Ritonavir) के संयोजन का उपयोग व्यापक रूप से HIV संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।

  • संदिग्ध या पुष्टि किये गए COVID-19 के रोगियों के लिये किसी विशिष्ट उपचार की सिफारिश करने हेतु यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trial) से कोई प्रमाण नहीं मिला है।
  • चिकित्सा विज्ञान से पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण श्वसन संबंधी बीमारी से पीड़ित लोगों के उपचार हेतु किसी विशिष्ट एंटी-वायरल की सिफारिश नहीं की गई है।
  • मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि लोपिनवीर/रितोनवीर का उपयोग केवल गंभीर मामलों में पीड़ित की सहमति के आधार पर ही किया जाएगा।
    • विदित है कि दवाओं के इस संयोजन का प्रयोग सर्वप्रथम एक बुजुर्ग इतालवी दंपत्ति पर किया गया था जो वर्तमान में जयपुर में COVID -19 का इलाज करा रहे हैं।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, सामान्य लक्षण वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है जब तक कि उनकी हालत तेज़ी से बिगड़ने की आशंका न हो। इस प्रकार अस्पताल में भर्ती न हुए सभी रोगियों को बीमारी के किसी भी लक्षण की स्थिति में अस्पताल जाने हेतु निर्देश दिया जाना चाहिये।
  • समय पर प्रभावी और सुरक्षित सहायक चिकित्सा सहायता प्राप्त करना ही COVID-19 की महामारी को रोकने का एकमात्र उपाय है।
  • रोगियों और परिवारों के साथ सक्रिय रूप से संवाद करना और उन्हें यथासंभव जानकारी प्रदान करना आवश्यक है।

COVID-19 क्या है?

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना है। संपूर्ण विश्व में इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है।
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करते हैं।
  • कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
  • ध्यातव्य है कि इस खतरनाक वायरस के कारण चीन में अब तक हज़ारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह वायरस धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में फैल रहा है।

स्रोत: द हिंदू


सार्क क्षेत्र में भारत की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये:

सार्क COVID-19 इमरजेंसी फंड,

मेन्स के लिये:

दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत की भूमिका, क्षेत्रीय समूहों से संबंधित प्रश्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये सार्क (SAARC) देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक बैठक का आयोजन किया।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर 15 मार्च, 2020 को आयोजित इस बैठक में सार्क (SAARC) देशों ने COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये भारत की पहल का स्वागत किया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने सामूहिक प्रयास से COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये एक ‘SAARC COVID-19 इमरजेंसी फंड’ स्थापित किये जाने का प्रस्ताव रखा और इस फंड के लिये भारत की तरफ से शुरुआती सहयोग के रूप में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की।
  • इस बैठक में भारत ने सार्क देशों के विदेश सचिवों व अन्य अधिकारियों के बीच विचार-विमर्श से इस फंड के लिये रूपरेखा तैयार करने का सुझाव दिया।

सार्क (SAARC):

  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को ढाका (बांग्लादेश) में हुई थी।
  • विश्व की कुल आबादी के लगभग 21% लोग सार्क देशों में रहते हैं।
  • सार्क की स्थापना के समय इस संगठन में क्षेत्र के 7 देश (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका) शामिल थे।
  • अफगानिस्तान वर्ष 2007 में इस संगठन में शामिल हुआ।

सार्क की असफलता के कारण:

  • दक्षिण एशिया विश्व का सबसे असंगठित क्षेत्र है, सार्क देशों के बीच आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का मात्र 5% ही है।
  • वर्ष 2006 में सार्क देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिये किया गया ‘दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र’ (South Asian Free Trade Area-SAFTA) समझौता वास्तविकता में बहुत सफल नहीं रहा है।
  • सार्क समूह की अंतिम/पिछली बैठक वर्ष 2014 में नेपाल में आयोजित की गई थी।
  • भारत के उरी क्षेत्र में हुए आतंकवादी हमले के बाद वर्ष 2016 में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में प्रस्तावित सार्क के 19वें सम्मेलन को रद्द कर दिया गया था। इसके बाद से सार्क के किसी सम्मेलन का आयोजन नहीं किया गया है।
  • हाल के वर्षों में बिम्सटेक (BIMSTEC) में भारत की बढ़ती गतिविधियों के बाद सार्क के भविष्य पर प्रश्न उठने लगा था।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, भारत-पाकिस्तान संघर्ष इस समूह की असफलता का एक बड़ा कारण है।
  • भारत के लिये ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के साथ सामान्य व्यापार को बढ़ावा देना बहुत कठिन है जब यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान आतंकवाद को संरक्षण देता है, जबकि पाकिस्तान समूह में उन सभी प्रस्तावों का विरोध करता है जिसमें उसे भारत का थोड़ा सा भी लाभ दिखाई देता है।

COVID-19 महामारी और सार्क देश:

  • लगभग सभी सार्क देशों की एक बड़ी आबादी निम्न आय वर्ग से आती है और ज़्यादातर मामलों में इन समूहों तक पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच नहीं है।
  • साथ ही ऐसे क्षेत्रों में COVID-19 जैसी संकरामक बीमारियों के बारे में जन-जागरूकता का अभाव इस चुनौती को और बढ़ा देता है।
  • बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे देशों के साथ भारत खुली सीमा (Open Border) साझा करता है, ऐसे में यह संक्रमण बहुत ही कम समय में अन्य देशों में भी फैल सकता है।
  • सार्क देशों में COVID-19 के प्रसार से स्वास्थ्य के साथ अन्य क्षेत्रों (व्यापार, उद्योग पर्यटन आदि) को भी भारी क्षति होगी, ऐसे में सामूहिक प्रयासों से क्षेत्र में COVID-19 के प्रसार को रोकना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्तमान में विश्व के किसी भी देश में COVID-19 के उपचार की दवा की खोज नहीं की जा सकी है, ऐसे में इस इस बीमारी से निपटने का सबसे सफल उपाय जागरूकता,बचाव और संक्रमित लोगों/क्षेत्रों से बीमारी के प्रसार को रोकना है।
  • क्षेत्र में भारत ही ऐसा देश है जो इस परिस्थिति में बड़ी मात्रा में जाँच, उपचार और चिकित्सीय प्रशिक्षण के लिये कम समय में आवश्यक मदद उपलब्ध करा सकता है।

नेतृत्व का अवसर:

  • भारत सार्क के सभी देशों के साथ सीमाओं के अलावा भाषा,धर्म और संस्कृति के आधार पर जुड़ा हुआ है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क राष्ट्राध्याक्ष्यों को निमंत्रण देने के साथ ही भारत के लिये सार्क के महत्व को स्पष्ट किया था।
  • भारत पर कई बार ये आरोप लगे हैं कि भारत अपनी मज़बूत स्थिति का उपयोग कर क्षेत्र के देशों पर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है।
  • मालदीव, नेपाल, अफगानिस्तान आदि जैसे देश जहाँ पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, भारत इन देशों को आवश्यक मदद प्रदान कर सकता है।
  • वर्तमान के अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में भारत के लिये एक ज़िम्मेदार पड़ोसी के रूप में अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन कर क्षेत्र के देशों के बीच अपनी एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने का यह महत्त्वपूर्ण अवसर है।

स्रोत: द हिंदू


भुगतान एग्रीगेटर्स के विनियमन संबंधी दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

भुगतान एग्रीगेटर्स के विनियमन से संबंधित दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने भुगतान एग्रीगेटर्स और भुगतान गेटवे को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • 17 सितंबर, 2019 को RBI ने पहली बार इन संस्थाओं को विनियमित करने के प्रस्ताव संबंधी चर्चा पत्र जारी किया था।
  • सितंबर में जारी किये गए इस चर्चा पत्र में भुगतान एग्रीगेटर्स के विनियमन हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये गए थे।
    • कोई विनियमन नहीं
    • कम विनियमन
    • पूर्ण विनियमन

भुगतान एग्रीगेटर्स:

(Payment Aggregators):

भुगतान एग्रीगेटर्स उन कंपनियों को कहते हैं, जो विभिन्न ई-कॉमर्स वेबसाइट्स या कंपनियों को ग्राहकों की तरफ से भुगतान स्वीकार करने के अलग-अलग प्लेटफॉर्म मुहैया कराते हैं।

  • अंतिम दिशा-निर्देशों में तीसरे विकल्प का समर्थन किया गया है।

क्या हैं दिशा-निर्देश?

  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक भुगतान एग्रीगेटर (ई-कॉमर्स साइटों और व्यापारियों को विभिन्न भुगतान उपकरणों को स्वीकार करने की सुविधा प्रदान करने वाली संस्थाएँ) कंपनी अधिनियम,1956/2013 के तहत भारत में निगमित कंपनी होनी चाहिये।
  • भुगतान एग्रीगेट सेवाओं की पेशकश करने वाली गैर-बैंकिंग संस्थाओं को एग्रीगेटर संबंधी प्राधिकार प्राप्त करने के लिये 30 जून, 2021 या उससे पहले लिये आवेदन करना होगा।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस संस्थाओं को भुगतान एग्रीगेटर की सेवाएँ प्रदान करने के लिये मार्केटप्लेस व्यवसाय से अलग होना होगा और उन्हें 30 जून, 2021 को या उससे पहले भुगतान एग्रीगेटर संबंधी प्राधिकारों हेतु आवेदन करना होगा।
  • इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं- फोन-पे, फ्लिपकार्ट और पेटीएम इनके भुगतान एग्रीगेटर व्यवसाय पहले से ही बाज़ार के मॉडल से अलग हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों में एग्रीगेटर्स के लिये वित्तीय आवश्यकताओं को भी निर्दिष्ट किया है- भुगतान एग्रीगेटर्स संबंधी प्राधिकार प्राप्त करने के लिये संबंधित संस्था के पास 31 मार्च, 2021 तक ₹15 करोड़ की कुल संपत्ति और तीसरे वित्त वर्ष के अंत (31 मार्च 2023) तक ₹25 करोड़ की कुल संपत्ति होनी चाहिये।
  • इसके बाद इस संस्था को हर समय कम-से-कम ₹ 25 करोड़ का शुद्ध मूल्य बनाए रखना होगा।
  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, भुगतान गेटवे को प्रौद्योगिकी प्रदाता या बैंकों या गैर-बैंकों के आउटसोर्सिंग भागीदारों के रूप में माना जाएगा।

लाभ:

  • भुगतान और निपटान प्रणाली की निगरानी करना केंद्रीय बैंक का कार्य है जिसके द्वारा मौजूदा और नियोजित प्रणालियों की निगरानी के माध्यम से सुरक्षा और दक्षता के उद्देश्यों को बढ़ावा दिया जाता है। साथ ही इन उद्देश्यों के संबंध में इनका आकलन किया जाता है और जहाँ कहीं आवश्यक होता है वहाँ परिवर्तन किया जाता है। भुगतान और निपटान प्रणाली की देखरेख के माध्यम से केंद्रीय बैंक प्रणालीगत स्थिरता बनाए रखने और प्रणालीगत जोखिम को कम करने, भुगतान एवं निपटान प्रणाली में जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद करता है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अध्यादेश -2020

प्रीलिम्स के लिये:

उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अध्यादेश -2020, लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984

मेन्स के लिये:

उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अध्यादेश -2020 से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने जुलूसों, विरोध प्रदर्शनों, बंद इत्यादि के दौरान नष्ट होने वाली संपति के नुकसान की भरपाई के लिये ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अध्यादेश -2020’ ( Uttar Pradesh Recovery of Damage to Public and Private Property Ordinance-2020) पारित किया।

अध्यादेश के प्रावधान:

  • उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक और निजी संपत्ति की नुकसान की वसूली के दावे के लिए एक नया अधिकरण का गठन किया गया जिसका नेतृत्व राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक सेवानिवृत्त ज़िला न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा और इसमें एक अतिरिक्त आयुक्त रैंक के अधिकारी को शामिल किया जा सकता है।
  • यह अध्यादेश एक ही घटना के लिये कई अधिकरणों के गठन की अनुमति देता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कार्यवाही तीन महीने के भीतर संपन्न हो जाए, साथ ही अधिकरण को एक ऐसे मूल्यांकनकर्त्ता की नियुक्ति का अधिकार है जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त पैनल में हानि का आकलन करने हेतु तकनीकी रूप से योग्य हो।
  • अधिकरण के पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होंगी एवं यह उसी तरीके से कार्य करेगा।
  • उसका निर्णय अंतिम होगा और किसी भी अदालत में उसके खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकेगी ।
  • अधिकरण के पास सबूतों और गवाहों की उपस्थिति से संबंधित मुद्दे की जाँच करने की शक्ति है।
  • अध्यादेश की धारा 3 के अनुसार, पुलिस का एक क्षेत्राधिकारी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के आधार पर घटना में हुए नुकसान की भरपाई हेतु दावा याचिका रिपोर्ट तैयार करेगा।
  • इस अध्यादेश में प्रावधान है कि क्षेत्राधिकारी की रिपोर्ट तैयार हो जाने पर ज़िला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त ‘दावा याचिका’ दायर करने हेतु तत्काल कदम उठाएंगे।
  • अध्यादेश की धारा 13 के तहत यदि आरोपी उपस्थित होने में विफल रहता है तो अधिकरण उसकी संपत्ति की कुर्की करने का आदेश जारी करेगा, साथ ही अधिकारियों को निर्देश देगा कि वे सार्वजनिक रूप से नाम, पता आदि के साथ उसकी तस्वीर प्रकाशित करें।

लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984:

(The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984):

  • इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
    • कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण किया जाता है।
    • लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
    • खान या कारखाना।
    • सीवेज संबंधी कार्यस्थल।
    • तेल संबंधी प्रतिष्ठान।

आगे की राह:

सर्वोच्च न्यायालय निश्चित रूप से इस मुद्दे से उत्पन्न वैचारिक संकट को हल करने में सफल होगा लेकिन लोगों को यह भी समझना होगा कि आखिर स्वतंत्रता का अर्थ क्या है एवं राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक संपति को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये। मुआवजे़ के उद्देश्य से यह अध्यादेश उपयुक्त है लेकिन इसे संवैधानिक ढाँचे का पालन करके लागू किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


स्टार्च आधारित हेमोस्टैट का विकास

प्रीलिम्स के लिये:

स्टार्च आधारित हेमोस्टैट

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य क्षेत्र में नैनो प्रौद्योगिकी का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने दुर्घटना की स्थिति में शीघ्र रक्तस्राव रोकने के लिए स्टार्च आधारित एक हेमोस्टैट पदार्थ विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। 

Illustration

मुख्य बिंदु:

  • इस हेमोस्टैट पदार्थ का विकास नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology-INST) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, स्टार्च (Starch) आधारित यह हेमोस्टैट पदार्थ रक्त से अतिरिक्त द्रव (Excess Fluid) को अवशोषित कर रक्त जमाव (Clotting) में सहायता प्रदान करता है।
  • प्राकृतिक स्टार्च में रासायनिक परिवर्तनों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने इस पदार्थ की जैव सुसंगतता (Biocompatibility) और जैवनिम्नीय (Biodegradability) का एक साथ इस्तेमाल करने में सफलता प्राप्त की है।
  • इस परिवर्तन से पदार्थ की द्रव अवशोषक क्षमता में 5-10 गुना की वृद्धि हुई है और इसकी आसंजन क्षमता भी बेहतर हुई है।
  • इस पदार्थ के जैवनिम्नीय सूक्ष्म कण (Biodegradable Microparticles) मिलकर घाव पर एक जेल (Gel) का निर्माण करते हैं, जो घाव के ठीक होने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं।
  • इस हेमोस्टैट पदार्थ के सूक्ष्मकणों (Microparticles) को तैयार करने के लिए स्टार्च में पाए जाने वाले हाइड्रोक्सिल (Hydroxyl) समूह के रसायनों को कार्बोक्सीमेथिल (Carboxymethyl) समूह में बदला गया, साथ ही इस प्रक्रिया में उपयोगी कैल्शियम आयनों (Calcium ions) को भी शामिल किया गया।
  • इस प्रक्रिया से लाल रुधिर कणिकाओं और प्लेटलेट्स के एकत्रीकरण (Aggregation) और फाइबर प्रोटीन जाल बनाने की उनकी सक्रियता में वृद्धि होती है, जिससे स्थाई रक्त के थक्कों का निर्माण होता है।
  • यह परिवर्तन अणुओं की जल से क्रिया करने की क्षमता में वृद्धि करता है, जिससे इस पदार्थ की द्रव अवशोषक क्षमता भी बढ़ जाती है।
  • इस पदार्थ के सूक्ष्मकणों (Microparticles) को ‘कैल्सियम-माॅडीफाइड कार्बोक्सीमेथिल-स्टार्च’ (Calcium-modified carboxymethyl-starch) के नाम से जाना जाता है।

नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान

(Institute of Nano Science and Technology-INST):

  • INST भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • इस संस्थान की स्थापना भारत सरकार के नैनो मिशन के तहत वर्ष 2013 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य भारत में नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा देना है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में स्टार्च आधारित जैवनिम्नीय हेमोस्टैट पदार्थ के कुछ अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं, परंतु उनकी धीमी द्रव अवशोषक क्षमता और घावों के उतकों पर खराब आसंजन क्षमता के कारण उनकी उपयोगिता बहुत ही सीमित है।
  • जानवरों पर प्रयोग के दौरान इस पदार्थ के उपयोग से मध्यम से भारी रक्तस्राव को एक मिनट से कम समय में रोकने में सफलता प्राप्त हुई।
  • साथ ही जानवरों पर किये गए अध्ययनों के दौरान इस पदार्थ के नॉन-टाॅक्सिक (Non-Toxic) होने और जैवनिम्नीयता (biodegradibility) की भी पुष्टि की गई।

स्रोत: पीआईबी


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 मार्च, 2020

COVID-19 का पहला टीका

हाल ही में अमेरिका ने COVID-19 के टीके की जाँच करने वाला पहला मानव परीक्षण शुरू किया है। इस टीके के परीक्षण हेतु अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा 18-55 वर्ष के आयु वर्ग के 45 स्वस्थ वयस्क स्वयंसेवकों का नामांकन किया जाएगा। यह वैक्सीन मॉडर्ना (Moderna) नामक एक निजी फर्म द्वारा विकसित की गई है। COVID-19 के टीकाकरण के तहत, तीन अलग-अलग खुराकों का परीक्षण किया जाएगा। परीक्षण के चरण के दौरान यह अध्ययन किया जाएगा कि क्या टीके सुरक्षित हैं और क्या वे COVID-19 को रोकने के लिये एंटीबॉडी बनाने हेतु मनुष्यों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, यदि यह परीक्षण सफल रहा तो आगामी 12 से 18 महीनों के बाद ही यह वैक्सीन दुनिया भर में इस्तेमाल की जा सकेगी।

भारत-नेपाल के मध्य स्कूल निर्माण हेतु समझौता ज्ञापन

हाल ही में भारत ने नेपाल के साथ नए स्कूलों के निर्माण हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। इस समझौते के तहत भारत नेपाल को 107.01 मिलियन नेपाली रुपए उपलब्ध कराएगा। उल्लेखनीय है कि इस समझाते के प्रारंभिक चरण के रूप में भारत ने 8 लाख भारतीय रुपए का चेक नेपाल को सौंपा है। इस निर्माण कार्य में कपिलवस्तु ज़िला समन्वय समिति भी मदद करेगी। ज़िला समन्वय समिति नेपाल का ज़िला-स्तरीय प्राधिकरण है। यह समिति प्रांतीय विधानसभा और ग्रामीण नगरपालिकाओं के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करती है।

NCLAT की चेन्नई पीठ

राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) की एक पीठ का गठन चेन्नई में किया जा रहा है। यह पीठ दक्षिणी राज्यों से संबंधित मामलों की सुनवाई करेगी। इस संदर्भ में जारी अधिसूचना के अनुसार, NCLAT की चेन्नई पीठ कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, लक्षद्वीप और पुडुचेरी के राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के आदेशों के विरुद्ध दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। अधिसूचना के अनुसार, NCLAT की नई दिल्ली पीठ को प्रधान पीठ के नाम से जाना जाएगा। वह NCLAT की चेन्नई पीठ के अधिकार क्षेत्र वाली अपीलों को छोड़कर अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करती रहेगी। NCLAT का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत NCLT के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिये किया गया था।

अश्विनी लोहानी

आंध्र प्रदेश सरकार ने एयर इंडिया के पूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक (CMD) अश्विनी लोहानी को राज्य के पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन नियुक्त किया है। अश्विनी लोहानी को आंध्र प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का भी दर्जा दिया गया है। यह नियुक्ति एक वर्ष की अवधि के लिये की गयी है। इससे पूर्व अश्विनी लोहानी भारत पर्यटन विकास निगम के CMD तथा रेलवे बोर्ड के चेयरमैन भी रह चुके हैं।