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डेली न्यूज़

  • 17 Dec, 2019
  • 39 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग

प्रीलिम्स के लिये:

USCIRF के बारे में

मेन्स के लिये:

भारत में नागरिकता संशोधन विधेयक से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill- CAB) संसद में पारित हुआ। अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (United States Commission on International Religious Freedom-USCIRF) ने इस विधेयक के पारित होने पर चिंता व्यक्त की।

“USCIRF के बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर USCIRF द्वारा दिया गया बयान न तो सही है और न ही आवश्यक है।”

USCIRF के बारे में:

IRF

  • USCIRF एक सलाहकार और परामर्शदात्री निकाय है, जो अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों पर अमेरिकी कॉन्ग्रेस और प्रशासन को सलाह देता है।
  • USCIRF स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (International Religious Freedom Act-IRFA) द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र, द्विदलीय अमेरिकी संघीय आयोग के रूप में वर्णित करता है।
  • हालाँकि USCIRF के कार्यान्वयन में वैचारिक प्रभाव बहुत कम है, लेकिन यह अमेरिकी सरकार की दो शाखाओं विधायिका और कार्यपालिका के लिये विवेक-रक्षक (Conscience-Keeper) के रूप में कार्य करता है।
  • अक्सर यह अधिकतमवादी या अतिवादी (Maximalist or Extreme) का स्थान लेता है और नागरिक समाज समूहों द्वारा इसका उपयोग अमेरिकी कॉन्ग्रेस के सदस्यों तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिये किया जाता है।

IRFA क्या है?

  • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1998, 105वीं अमेरिकी कॉन्ग्रेस (1997-99) द्वारा पारित किया गया था और 27 अक्तूबर, 1998 को तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा हस्ताक्षरित किये जाने के साथ ही कानून के रूप में लागू हुआ। यह विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के संदर्भ में अमेरिका द्वारा व्यक्त चिंताओं का विवरण है।
  • अधिनियम पूर्ण शीर्षक के अनुसार, यह अधिनियम निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये है:
    • “संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति को सम्मान के साथ व्यक्त करने और संयुक्त राज्य अमेरिकी पक्ष का मज़बूती से समर्थन करने के लिये।
    • विदेशों में धर्म के आधार पर सताए गए व्यक्तियों के लिये।
    • विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के जवाब में संयुक्त राज्य की कार्रवाई को अधिकृत करने के लिये।
    • डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिये राजदूत नियुक्त करने के लिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर एक आयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के भीतर अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर विशेष सलाहकार नियुक्त करने तथा अन्य उद्देश्यों के लिये।

USCIRF के कार्य

  • USCIRF वैश्विक स्तर पर (संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर) धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निगरानी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उपयोग करने के लिये आज्ञापित (Mandated) है और अमेरिकी राष्ट्रपति, विदेश मंत्री तथा कॉन्ग्रेस को नीतियाँ बनाने की सिफारिश करता है।
  • USCIRF के आयुक्तों को दोनों राजनीतिक दलों के अध्यक्षों और कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • चूँकि USCIRF डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट से अलग है, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिये विभाग का एम्बेसडर एट लार्ज (Ambassador-at-Large) एक पदेन आयुक्त होता है जिसे मत देने का अधिकार नहीं होता।
  • एक पेशेवर, गैर-पक्षपातपूर्ण कर्मचारी USCIRF के काम का समर्थन करता है।

USCIRF की मुख्य ज़िम्मेदारियाँ:

  • प्रत्येक वर्ष 1 मई तक की एक वार्षिक रिपोर्ट जारी करना, जिसमें अमेरिकी सरकार द्वारा IRFA के कार्यान्वयन का आकलन किया जाता है।
  • विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का प्रमाण प्रस्तुत करना।
  • कॉन्ग्रेस के कार्यालयों के साथ काम करके, धार्मिक मुद्दों से जुड़ी सुनवाई के दौरान गवाही और धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों की ब्रीफिंग में कॉन्ग्रेस को शामिल कर अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना।
  • नीतिगत निर्देश, प्रेस विज्ञप्ति, विचारों-आलेखों और पत्रिकाओं में लेख के साथ रिपोर्ट करना।
  • संयुक्त राष्ट्र, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (Organization for Security and Cooperation in Europe- OSCE), यूरोपीय संघ और दुनिया भर के सांसदों के साथ धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता से संबंधित बैठकों में बहुपक्षीय रूप से संलग्न होना।

USCIRF के अनुसार "धार्मिक स्वतंत्रता"

  • USCIRF के अनुसार, "धार्मिक स्वतंत्रता एक महत्त्वपूर्ण मानव अधिकार है जिसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों द्वारा मान्यता प्राप्त है। धर्म या आस्था की स्वतंत्रता एक व्यापक अधिकार है जिसमें विचार, विवेक की स्वतंत्रता के साथ-साथ अभिव्यक्ति, संघ और समागम की स्वतंत्रता अंतर्निहित है। इस स्वतंत्रता को बढ़ावा देना अमेरिकी विदेश नीति का एक आवश्यक घटक है”।

पूर्व में USCIRF द्वारा उठाए गए भारत से संबंधित मुद्दे

  • अगस्त 2019 में USCIRF ने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ भी एक बयान जारी कर कहा था कि NRC का मुद्दा पूर्वोत्तर भारत में एक विशिष्ट समुदाय के लिये संभवतः नकारात्मक और भय का माहौल बना रहा है।
  • जून 2019 में भारतीय राज्य झारखंड में एक व्यक्ति की मॉब लिंचिंग की भी USCIRF ने आलोचना की थी।
  • जुलाई 2008 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को न्यू जर्सी में एक सम्मेलन में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया गया था तब इसने गुजरात के मुख्यमंत्री को पर्यटक वीज़ा न देने (गुजरात दंगों के कारण) का आग्रह किया था।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2020

प्रीलिम्स के लिये:

WEF जेंडर गैप रिपोर्ट 2020

मेन्स के लिये:

भारत में लैंगिक अंतराल से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों:

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) ने 153 देशों के आँकड़ों के आधार पर वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट- 2020 (Gender Gap Report- 2020) जारी की है। WEF द्वारा जारी इस रिपोर्ट में भारत 91/100 लिंगानुपात के साथ 112वें स्थान पर रहा। उल्लेखनीय है कि वार्षिक रूप से जारी होने वाली इस रिपोर्ट में भारत पिछले दो वर्षों से 108वें स्थान पर बना हुआ था।

क्या है वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट:

  • जेंडर गैप रिपोर्ट, स्विट्ज़रलैंड स्थित विश्व आर्थिक मंच द्वारा हर वर्ष जारी की जाती है।
  • वर्ष 2006 में पहली बार जारी इस रिपोर्ट में चार बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मानकों पर व्यापक सर्वे और अध्ययन के आधार पर आँकड़े जारी किये जाते हैं, जो हैं-
  1. स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
  2. राजनीतिक सशक्तीकरण
  3. शिक्षा का अवसर
  4. आर्थिक भागीदारी और अवसर

प्रमुख बिंदु:

  • महिला स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता तथा आर्थिक भागीदारी के मामले में भारत इस रिपोर्ट में नीचे के पाँच देशों में शामिल रहा।
    • जबकि भारत के मुकाबले हमारे पड़ोसी देशों का प्रदर्शन बेहतर रहा - बांग्लादेश (50वाँ), नेपाल (101),श्रीलंका (102वाँ), इंडोनेशिया (85वाँ) और चीन (106वाँ)।
    • रिपोर्ट में आइसलैंड को सबसे कम लैंगिक भेदभाव (Gender Neutral) वाला देश बताया गया।
    • जबकि यमन (153वाँ), इराक़ (152वाँ) और पाकिस्तान (151वाँ) का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा।
    • WEF के अनुमान के अनुसार, विश्व में फैली व्यापक लैंगिक असमानता को दूर करने में लगभग 99.5 वर्ष लगेंगे, जबकि इसी रिपोर्ट में पिछले वर्ष के आँकड़ों के आधार पर यह अवधि 108 वर्ष अनुमानित थी।
    • संगठन के अनुसार, इस वर्ष सुधार का कारण राजनीति में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी है (न्यूज़ीलैंड, फ़िनलैंड,हॉन्गकॉन्ग आदि देशों में महिला प्रधानमंत्री/ शीर्ष नेता)।

स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता :

  • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता के क्षेत्र में भारत (150वाँ स्थान) का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के चार बड़े देशों भारत, विएतनाम, चीन और पाकिस्तान में अभी भी करोड़ों की संख्या में ऐसी महिलाएँ हैं जिन्हें पुरुषों के सामान स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
  • WEF ने भारत (91/100) और पाकिस्तान (92/100) में असमान शिशु लैंगिक जन्मानुपात को भी चिंताजनक बताया है।

राजनीतिक सशक्तीकरण और भागीदारी :

  • राजनीतिक सशक्तीकरण और भागीदारी में अन्य बिंदुओं की अपेक्षा भारत का प्रदर्शन (18वाँ स्थान) बेहतर रहा है।
  • लेकिन भारतीय राजनीति में आज भी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बहुत ही कम है, आकड़ों के अनुसार, केवल 14% महिलाएं ही संसद तक पहुँच पाती हैं ( विश्व में 122वाँ स्थान)।
  • मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी केवल 23% ही है ( विश्व में 69वाँ स्थान)।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के इस बेहतर प्रदर्शन का कारण यह है कि भारतीय राजनीति में पिछले 50 में से 20 वर्षों में अनेक महिलाएँ राजनीतिक शीर्षस्थ पदों पर रही है। ( इंदिरा गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता आदि)
  • आँकड़ों के मुताबिक, आज विश्व के विभिन्न देशों में 25.2% महिलाएँ संसद के निचले सदन का हिस्सा हैं, जबकि 21.2% मंत्रिपद संभाल रही हैं, जो कि पिछले वर्ष के अनुपात (24.1% और 19%) से बेहतर है।
  • WEF के अनुमान के अनुसार, इस राजनीतिक असमानता को दूर करने में 95 वर्ष लग जाएँगे, जबकि पिछले वर्ष के आँकड़ों के अनुसार इसका अनुमान 107 वर्ष था।

शिक्षा के अवसर :

  • महिलाओं के लिये शैक्षिक अवसरों की उपलब्धता के मामले में भारत का स्थान विश्व में 112वाँ है।
  • जबकि इस आँकड़े में पिछले वर्ष भारत का स्थान 114वाँ और 2017 में 112वाँ स्थान रहा था।
  • महिला साक्षरता के मामले में भारत का प्रदर्शन बहुत ही ख़राब रहा है, पुरुषों के मुकाबले (82% साक्षर) केवल दो-तिहाई महिलाएँ ही साक्षर हो पाती है।

आर्थिक भागीदारी और अवसर :

  • रिपोर्ट के अनुसार, 2006 में पहली बार प्रकाशित आकड़ों की तुलना में आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं के लिये सक्रिय भागीदारी के अवसरों में कमी आई है।
  • 153 देशों में किये गए सर्वे में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत राजनीतिक क्षेत्र से कम है।
  • श्रमिक बाजार में भी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पुरुषों (82%) की तुलना में एक-चौथाई ही है तथा महिलाओं की औसत आय पुरुषों की तुलना में ⅕ है, इस मामले में भारत का विश्व स्थान 144वाँ स्थान है।
  • WEF के आँकड़ों के अनुसार, अवसरों के मामले में विभिन्न देशों में आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति इस प्रकार है- भारत (35.4%), पाकिस्तान (32.7%), यमन (27.3%), सीरिया (24.9%) और इराक़ (22.7%)।
  • साथ ही भारत का नाम विश्व के उन देशों की सूची में भी है जहाँ कंपनियों में नेतृत्व के शीर्ष पदों पर महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 13.8% है, जबकि इन्ही पदों पर चीन में महिलाओं की संख्या सिर्फ 9.7% ही है।
  • केवल 14% भागीदारी उन महिलाओं की है जो शीर्ष नेतृत्व के पदों पर हैं (विश्व में 136वाँ स्थान) और पेशेवर तथा तकनीकी कुशल महिलाएँ केवल 30% है।
  • WEF के अनुसार आर्थिक क्षेत्र में फैली इस विषमता को दूर करने में लगभग 257 वर्ष लग सकते हैं, जो चिंता का विषय है क्योंकि पिछले वर्ष के आंकड़ों के अनुसार यह अनुमान केवल 202 वर्षों का था।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हालाँकि भारत अपने यहाँ लिंगानुपात में व्याप्त असामानता को लगभग दो-तिहाई दूर करने में सफल रहा है लेकिन WEF ने देश के दूर-दराज़ के इलाकों में महिलाओं की स्थिति और भारतीय समाज में गहराई तक फैले लैंगिक अंतराल पर चिंता जाहिर की है।

सुझाव:

  • रिपोर्ट के अनुसार, यद्यपि हम शिक्षा के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन सुधार कर रहे हैं लेकिन महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा, ज़बरन विवाह और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में होने वाला भेदभाव आज भी चिंता का विषय है जिसे दूर करने की सख़्त ज़रूरत है।
  • WEF के अनुसार, इस असामानता को दूर करने के लिये ज़रूरी है कि समय के साथ उभरते नए क्षेत्रों जैसे क्लाउड-कम्प्यूटिंग, इंजीनियरिंग, डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI) में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए तथा नई पीढ़ी को इससे जुड़ने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
  • उदाहरण के लिये, इस बार भी सर्वे में शीर्ष 10 में नोर्डिक देशों ने जगह बनायीं है। 2006 के आंकड़ों से तुलना करने पर पता चलता है कि इन देशों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के साथ कंपनियों में शीर्ष पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ी है और श्रमिक बाज़ार में भी कुशल महिलाओं की हिस्सेदारी में तेजी देखने को मिली है।
  • संभव है कि अगले माह दावोस, स्विट्जरलैंड में होने वाले WEF के शिखर सम्मेलन के महत्त्वपूर्ण मुद्दों में एक मुद्दा लैंगिक अंतराल भी हो।
  • WEF ने कहा कि वह इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि 2030 तक WEF दावोस शिखर सम्मेलन में महिलाओं की भागीदारी को दोगुना किया जाए।

स्रोत- द हिंदू 


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020

प्रीलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 के घटक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 में भारत ने अपने रैंक में सुधार करते हुए 9वाँ स्थान प्राप्त किया है।

मुख्य बिंदु:

  • कोई भी देश सूचकांक में समग्र रूप से सभी सूचकांक श्रेणियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर पाया है। इसलिये एक बार फिर पहले तीन स्थान रिक्त रहे।
  • इस सूचकांक को मैड्रिड में आयोजित COP-25 के आयोजन के दौरान जारी किया गया।
  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 में स्वीडन ने 75.77 अंक प्राप्त कर चौथा स्थान प्राप्त किया है। वहीं इस सूचकांक में अमेरिका 18.60 अंक प्राप्त कर अंतिम स्थान पर है।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020:

(Climate Change Performance Index-2020)

  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक को जर्मनवॉच (Germanwatch), न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट( New Climate Institute) और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (Climate Action Network) द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है।
  • यह रैंकिंग चार श्रेणियों - ‘ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन’ ’नवीकरणीय ऊर्जा’, ‘ऊर्जा उपयोग’ तथा ‘जलवायु नीति’ के अंतर्गत 14 संकेतकों पर देशों के समग्र प्रदर्शन के आधार पर जारी की गई है।

CCPI

  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 मानकीकृत मानदंडों के आधार पर 57 मूल्यांकित देशों और यूरोपीय संघ के भीतर जलवायु संरक्षण और प्रदर्शन के क्षेत्र में मुख्य क्षेत्रीय अंतर को दर्शाता है।
  • पेरिस समझौता वर्ष 2020 में कार्यान्वयन चरण में प्रवेश कर रहा है, जहाँ देश अपने अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को पूरा करेंगे, अतः इस सन्दर्भ में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक का उद्देश्य जलवायु महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाने की प्रक्रिया को सूचित करना है।
  • इस सूचकांक में रैंक निर्धारित करने वाली चार श्रेणियों को मिलने वाली वरीयता का क्रम निम्न प्रकार है-
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (40% वरीयता)
    • नवीकरणीय उर्जा (20% वरीयता)
    • उर्जा उपयोग (20% वरीयता)
    • जलवायु नीति (20% वरीयता)
  • इस सूचकांक में सबसे निम्न रैंकिंग वाले तीन देश इस प्रकार हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका (61), सऊदी अरब (60), ताइवान (59)।
  • पहली बार 2005 में जारी किये जाने के बाद से जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये देशों द्वारा किये गए प्रयासों की निगरानी करता है।
  • इसका उद्देश्य उन देशों पर राजनीतिक और सामाजिक दबाव बढ़ाना है जो अब तक जलवायु संरक्षण पर महत्त्वाकांक्षी कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 में भारत का प्रदर्शन:

  • भारत जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2020 में 66.02 अंक प्राप्त करके इस सूचकांक में 9वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2019 में वह 62.93 अंकों के साथ 11वें स्थान पर था।
  • इस प्रकार सूचकांक को निर्धारित करने वाली चार श्रेणियों में भारत का प्रदर्शन इस प्रकार है-
    • ग्रीनहाउस गैस- 11वाँ रैंक
    • नवीकरणीय उर्जा- 26वाँ रैंक
    • उर्जा उपयोग- 9वाँ रैंक
    • जलवायु नीति- 15वाँ रैंक

स्रोत- द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

सार्वजनिक संपत्तियों का विनाश तथा संबंधित कानून

प्रीलिम्स के लिये:

लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984

मेन्स के लिये:

लोक संपत्तियों के विनाश से संबंधित विभिन्न मुद्दे तथा कानून

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों द्वारा दंगा और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने पर नाराज़गी व्यक्त की।

मुख्य बिंदु:

  • जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर कथित पुलिस ज़्यादती संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई के लिये सहमत होते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने प्रदर्शनकारियों द्वारा दंगा और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने पर नाराज़गी व्यक्त की।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरने के लिये स्वतंत्र हैं परंतु यदि वे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं तो उनकी बात न्यायालय द्वारा नहीं सुनी जाएगी।
  • सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के खिलाफ कानून के बावजूद देश भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान दंगा, बर्बरता और आगज़नी की घटनाएँ आम हैं।

सार्वजनिक संपत्तियों के सरक्षण के लिये कानून:

  • लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984:
    • इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
    • इस अधिनियम के अनुसार लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
      • कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण किया जाता है।
      • तेल संबंधी प्रतिष्ठान
      • खान या कारखाना
      • सीवेज संबंधी कार्यस्थल
      • लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले कई अवसरों पर इस कानून को अपर्याप्त बताया है और दिशा-निर्देशों के माध्यम से अंतराल को भरने का प्रयास किया है।
  • वर्ष 2007 में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों के बढे पैमाने पर विनाश के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूर्व न्यायाधीश के.टी. थॉमस और वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया ताकि कानून में बदलाव के लिये सुझाव प्राप्त किये जा सकें।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देश:

  • वर्ष 2009 में ‘डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज़ Vs स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश एंड अदर्स (Destruction of Public & Private Properties v State of AP and Others) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों समितियों की सिफारिशों के आधार पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये-
    • के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के विनाश से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामान्यतः अभियोजन को यह साबित करना होता है कि किसी संगठन द्वारा की गई प्रत्यक्ष कार्रवाई में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा है और आरोपी ने भी ऐसी प्रत्यक्ष कार्रवाई में भाग लिया। परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक संपत्ति से जुड़े मामलों में कहा कि आरोपी को ही स्वंय को बेगुनाह साबित करने की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
    • सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
    • नरीमन समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के विनाश की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
    • सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने के लिये कहा।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का प्रभाव:

  • सार्वजनिक संपत्ति के विनाश से जुड़े कानून की तरह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का भी सीमित प्रभाव दिखा है क्योंकि प्रदर्शनकारियों की पहचान करना अभी भी मुश्किल है, विशेषतः उन मामलों में जब किसी नेता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से विरोध-प्रदर्शन का आह्वान नहीं किया जाता है।
  • वर्ष 2015 में पाटीदार आंदोलन के बाद हार्दिक पटेल पर हिंसा भड़काने के लिये राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि चूँकि न्यायालय के पास हिंसा भड़काने से संबंधित कोई सबूत नहीं है इसलिये उसे संपत्ति के नुकसान के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
  • वर्ष 2017 में एक याचिकाकर्त्ता ने दावा किया था कि उसे एक निरंतर आंदोलन के कारण सड़क पर 12 घंटे से अधिक समय बिताने के लिये मजबूर किया गया था। कोशी जैकब बनाम भारत संघ नामक इस मामले के फैसले में न्यायालय ने पुनः कहा कि कानून को अद्यतन करने की आवश्यकता है परंतु याचिकाकर्त्ता को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया क्योंकि विरोध-प्रदर्शन करने वाले न्यायालय के सामने उपस्थित नहीं थे।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर

प्रीलिम्स के लिये:

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर

मेन्स के लिये:

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर तथा इसके लाभ

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (National Electronic Fund Transfer-NEFT) को चौबीस घंटे (24 X 7) संचालन के लिये उपलब्ध कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • RBI ने बैंकों को NEFT प्रणाली के माध्यम से ऑनलाइन धन हस्तांतरण के लिये बचत खाता धारकों से कोई शुल्क नहीं लेने का निर्देश दिया है।
  • अगस्त, 2019 में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के दौरान NEFT के बारे में यह घोषणा की गई थी कि दिसंबर 2019 से NEFT की सुविधा सप्ताह के सभी दिन 24 घंटे उपलब्ध रहेगी।

NEFT से लाभ:

  • इस कदम के माध्यम से RBI भुगतान प्रणाली वाले देशों के उस क्लब में शामिल हो गया है जो चौबीसों घंटे किसी भी मूल्य के धन हस्तांतरण और निपटान में सक्षम हैं।
  • ग्राहक अब दिन के किसी भी समय NEFT के माध्यम से बिना शुल्क के धन स्थानांतरित कर सकते हैं, जबकि बैंक चेक और डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से धन स्थानांतरण के लिये शुल्क लिया जाता है।

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर

(National Electronic Fund Transfer):

  • वर्ष 2005 में शुरू की गई NEFT प्रणाली की हाल के वर्षों लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ इसके ग्राहकों की संख्या में भी तेज़ी देखी गई है।
  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर देश के प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक धन हस्तांतरण प्रणालियों में से एक है। इसकी शुरुआत नवंबर 2005 में की गई थी।
  • इस योजना के तहत कोई व्यक्ति, फर्म और कॉरपोरेट दूसरी बैंक शाखा में खाता रखने वाले किसी भी व्यक्ति, फर्म या कॉरपोरेट के बैंक खाते में तथा देश में स्थित किसी अन्य बैंक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक रूप से धन हस्तांतरित कर सकते हैं।

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (17 दिसंबर, 2019)

नवाचार किसान मॉडल के लिये समझौता

सतत् कृषि और जलवायु अनुकूल कृषि प्रणाली के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बोर्ड (NABARD) ने एक्शन रिसर्च एवं विभिन्न तकनीकों को बेहतर बनाने एवं नवाचार किसान मॉडल के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। एक्‍शन रिसर्च का अर्थ है चुनौतियों के लिये समाधान ढूँढने हेतु किसानों की सक्रिय भागीदारी से शोध करना। नवाचार किसान मॉडलों को ICAR ने विकसित किया है, जिसमें जलवायु अनुकूल अभ्‍यास, मॉडल और वॉटरशेड प्‍लेटफॉर्म पर आधारित शोध के तहत सहभागिता के साथ उच्‍च तकनीक वाले कृषि अभ्‍यास आदि शामिल हैं। इस समझौते के तहत सतत कृषि, एकीकृत कृषि प्रणाली, कृषि-वानिकी, पौधरोपण, बागवानी, पशु विज्ञान, कृषि-इंजीनियरिंग, फसल कटाई के बाद की तकनीक आदि क्षेत्रों में स्‍थान विशेष को ध्‍यान में रखते हुए प्रौद्योगिकी के हस्‍तांतरण में मदद मिलेगी।

ICAR देश का एक प्रमुख संगठन है जो कृषि, अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत है। यह 113 संस्थानों के अपने विशाल नेटवर्क के ज़रिये राष्‍ट्रीय कृषि अनुसंधान और विस्‍तार प्रणाली पर कार्य करता है। दूसरी ओर, NABARD एक प्रमुख संगठन है जो ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और अन्य गतिविधियों के लिये ऋण हेतु नीति बनाने, योजना तैयार करने और इसे संचालित करने का कार्य करता है।


नेपाल ने 72 साल पुराने त्रिपक्षीय समझौते की समीक्षा की मांग की

नेपाल के विदेश मंत्री ने 72 साल पुराने त्रिपक्षीय समझौते की समीक्षा की माँग की है। यह समझौता किसी विदेशी सेना में गोरखा युवाओं की भर्ती प्रक्रिया में नेपाल को कोई भूमिका निभाने की अनुमति नहीं देता। इस समझौते के कुछ प्रावधान अब अप्रासंगिक हो गए हैं। इसलिये नेपाल ने ब्रिटेन से इसकी समीक्षा करने और इसे द्विपक्षीय समझौता बनाने की बात कही है। नए समझौते में ब्रिटिश सेना के गोरखा जवानों की पेंशन समेत कई समस्याओं का समाधान भी होना चाहिये। नेपाल ने यह मांग ऐसे समय की है, जब ब्रिटिश सेना गोरखा बिग्रेड में पहली बार नेपाली महिलाओं की भर्ती करने की तैयारी में है। पिछले वर्ष यह बात सामने आई थी कि ब्रिटिश सेना के गोरखा ब्रिगेड में वर्ष 2020 तक महिलाओं को शामिल कर लिया जाएगा। इसके मुताबिक, इस भर्ती की चयन प्रक्रिया पुरुषों की चयन प्रक्रिया जैसी ही होगी। गौरतलब है कि करीब 200 वर्षों से गोरखा ब्रिगेड ब्रिटेन की सेना का हिस्‍सा बनी हुई है।

ब्रिटेन वर्ष 1815 से अपनी सेना में गोरखा जवानों की भर्ती कर रहा है। वर्ष 1947 में भारत में ब्रिटिश शासन खत्म होने के बाद नई दिल्ली, लंदन और काठमांडू के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत भारतीय सेना की चार गोरखा रेजिमेंट को ब्रिटिश सेना में स्थानांतरित कर दिया गया था। वर्तमान में ब्रिटिश सेना में लगभग 3000 से अधिक गोरखा सैनिक हैं। वर्तमान में इन जवानों की तैनाती इराक, अफगानिस्तान और बाल्कन में है। इस रेजिमेंट का युद्ध घोष 'कायरता से बेहतर मर जाना' है। गोरखा सैनिकों की गिनती दुनिया के सबसे तेज़ और फुर्तीले जवानों में होती है। ब्रिटेन की महारानी की रक्षा में लगे इन सैनिकों का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। वर्ष 2007-2008 में अफगानिस्तान में तैनात प्रिंस हैरी रॉयल गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन के साथ काम कर चुके हैं।


मनोज मुकुंद नरवणे

लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे (Lt. Gen. Manoj Mukund Naravane) भारतीय थल सेना के नए चीफ होंगे। लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे वर्तमान में थल सेना के उपप्रमुख के रूप में सेवारत हैं। वर्तमान आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। जनरल नरवणे श्रीलंका में भारतीय शांति सेना का भी हिस्सा रहे हैं। उन्हें जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में आतंकरोधी कार्रवाइयों का लंबा अनुभव है। साथ ही जम्मू-कश्मीर में अपनी बटालियन के प्रभावी रूप से कमान के लिये उन्हें सेना पदक (विशिष्ट) से सम्मानित किया गया है।


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