मौद्रिक नीति समीक्षा अगस्त 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने रेपो दर (Repo Rate) में 35 आधार अंकों अर्थात् 0.35% की कटौती की है। यह लगातार चौथी बार है जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो दर को कम किया है।
प्रमुख निर्णय:
रेपो दर में कमी
- रेपो दर को 5.75% से कम कर 5.40 % कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि यह पिछले नौ वर्षों के दौरान सबसे कम रेपो दर है।
- RBI ने वर्ष 2019-20 के लिये अर्थव्यवस्था की विकास दर यानी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर का अनुमान 7% से घटाकर 6.9% कर दिया है।
24 घंटे NEFT की सुविधा
- मौद्रिक नीति समिति की बैठक में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर सिस्टम (National Electronic Fund Transfer System- NEFT) बारे में यह घोषणा की गई है कि दिसंबर 2019 से NEFT की सुविधा सप्ताह के सभी दिन 24 घंटे उपलब्ध रहेगी।
- नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) धन प्रेषण या हस्तांतरण का एक लोकप्रिय माध्यम है। इसकी विशेषता यह है कि, इसमें न्यूनतम और अधिकतम राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
- इस प्रणाली का दोष यह है कि इसके द्वारा धन राशि का हस्तांतरण सभी कार्यदिवसों (माह के दूसरे तथा चौथे शनिवार को छोड़कर) के दौरान एक निर्धारित समय (8 A.M. से 7 P.M. तक) पर ही होता है।
NBFCs के लिये ऋण की उपलब्धता
- RBI ने बैंकों को यह अनुमति दी है कि बैंक कृषि, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) जैसे प्राथमिक क्षेत्रों को कर्ज़ उपलब्ध कराने हेतु गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) को ऋण दें।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने NBFCs में बैंकों के निवेश की सीमा को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर शेयर पूंजी (टियर-1) का 20 प्रतिशत करने की अनुमति दी है।
- इसके तहत बैंक NBFC को 10 लाख रुपए तक कृषि (निवेश ऋण), सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को 20 लाख रुपए तथा आवास के लिये प्रति कर्ज़दार 20 लाख रुपए तक (फिलहाल 10 लाख रुपए) के कर्ज़ दे सकेंगे। इस श्रेणी के कर्ज़ को प्राथमिक क्षेत्र के कर्ज़ के अंतर्गत माना जाएगा।
सभी पुनरावृत्तीय बिलों BBPS के तहत कवर करने का निर्णय
- RBI ने सभी पुनरावृत्तीय बिल भुगतानों को भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System- BBPS) के तहत कवर करने का निर्णय लिया है तथा इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जाएंगे।
- वर्तमान में BBPS के तहत केवल पाँच क्षेत्रों- डायरेक्ट-टू-होम, बिजली, गैस, टेलिकॉम और पानी के पुनरावृत्तीय बिल भुगतान को कवर किया जाता है।
- भारत बिल भुगतान प्रणाली की संकल्पना भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा की गई थी और यह राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित है। यह लेन-देन की निश्चितता, विश्वसनीयता और सुरक्षा के साथ पूरे भारत में सभी ग्राहकों को एक अंतर-सुलभ और अंतर-प्रचालनीय (interoperable) "किसी भी समय किसी भी स्थान से" बिल भुगतान की सेवा प्रदान करने वाली वन-स्टॉप प्रणाली है।
- इसके द्वारा भुगतान के कई तरीके हैं और SMS या रसीद के माध्यम से भुगतान की तत्काल पुष्टि होती है।
मौद्रिक नीति समिति
मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन करते हुए भारत में नीति निर्माण को नवगठित मौद्रिक नीति समिति (MPC) को सौंप दिया गया है।
- वित्त अधिनियम 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है।
- रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं।
रेपो दर क्या है?
रेपो दर वह दर है, जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण को सस्ता करना चाहिये।
प्रभाव
- भारतीय के इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि अब बैंकों के पास आसान शर्तों पर कर्ज़ देने के लिये अधिक पैसा होगा। गौरतलब है कि कर्ज़ दरें सस्ती होने से अर्थव्यवस्था कुछ इस तरह से लाभान्वित होती है:
- मकान, कार या अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिये कम ब्याज दर पर कर्ज़ उपलब्ध होता है।
- जब ब्याज की दर कम होती है तो लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं।
- जब लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं तो बाज़ार में मांग बढ़ती है।
- जब बाज़ार में माँग बढ़ती है तो अधिक उत्पादन की स्थितियाँ बनती हैं।
- जब अधिक उत्पादन की परिस्थितियाँ बनती हैं, तब निवेशक नए निवेश के लिये प्रेरित होते हैं।
- जब निवेश बढ़ता है तो आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं।
- जब आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं तो रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं।
निष्कर्ष
एक ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था की धीमी हो रही रफ्तार के चलते व्यापार युद्ध की संभावनाएँ बढ़ रही हों; घरेलू स्तर पर भी महंगाई की दर काफी नीचे हो; शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही बाज़ारों में मांग में कमी हो रही हो; निर्यात तथा आयात दोनों में कमी हो रही हो, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने में सहायक हो सकते है बशर्ते बैंकों द्वारा रेपो दर में इस कटौती का लाभ ग्राहकों और उद्योगों को उपलब्ध कराया जाए।