भूगोल
परिवहन लागत को कम करने के लिये जलमार्ग का उपयोग
प्रीलिम्स के लिये:भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण मेन्स के लिये:परिवहन लागत को कम करने हेतु जलमार्ग के उपयोग से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नौवहन राज्य मंत्री ने राज्यसभा में परिवहन लागत को कम करने हेतु जलमार्ग के उपयोग से संबंधित जानकारी दी है।
मुख्य बिंदु:
- अंतर्देशीय जल परिवहन का उपयोग कर परिवहन की लागत में महत्त्वपूर्ण बचत की जा सकती है।
- RITES, 2014 रिपोर्ट के अनुसार, स्थल परिवहन के साधनों पर लागत का अन्य परिवहन के माध्यमों के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया गया था जिसका विवरण निम्नलिखित है:
मार्ग | राजमार्ग | रेलवे | अंतर्देशीय जल परिवहन |
लागत (रुपए/टन-किमी.) | 2.50 | 1.36 | 1.06 |
- राष्ट्रीय जलमार्ग -1 (गंगा नदी), राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी) और राष्ट्रीय जलमार्ग-3 (कोट्टापुरम से कोल्लम तक वेस्ट कोस्ट नहर) का परिचालन किया जा रहा है एवं इन जलमार्गों पर जहाज़ों का आवागमन जारी है।
- आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के विजयवाड़ा-मुक्ताला खंड में फेयरवे विकास कार्य (Fairway Development Works) (राष्ट्रीय जलमार्ग-4 का हिस्सा) पूरा हो चुका है।
- इब्राहिमपटनम, हरिश्चंद्रपुरम, मुक्ताला और मादीपाडू में फिक्स्ड टर्मिनल (Fixed Terminals) के लिये भूमि अधिग्रहण एवं चार पीपे के पुल का निर्माण किया गया है।
8 नए राष्ट्रीय जलमार्गों जिन पर निर्माण गतिविधियाँ शुरू की गई हैं, विवरण निम्नलिखित है:
राज्य और जलमार्ग |
कार्य की स्थिति |
1. असम में बराक नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-16) |
सिलचर से भंगा तक राष्ट्रीय जलमार्ग -16 के चरण -1 के लिये 76.01 करोड़ रुपए की लागत से कार्य शुरू किया गया है। इसमें बदरपुर और करीमगंज में टर्मिनलों का उन्नतीकरण एवं ड्रेजिंग (dredging) का रखरखाव शामिल है। |
2. बिहार में गंडक नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-37) |
आवश्यक प्रारंभिक विकास प्रक्रिया पूरी कर ली गई है एवं आगे का विकास कार्य मांग के अनुसार पूरा किया जाएगा। |
गोवा में जलमार्ग |
• गोवा में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास हेतु गोवा सरकार और मोरमुगाओ पोर्ट ट्रस्ट (Mormugao Port Trust) के बीच एक त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए हैं। |
6. केरल में अलप्पुझा-कोट्टायम-अथिरमपुझा नहर (राष्ट्रीय जलमार्ग-9) |
फेरी सेवाओं के लिये जलमार्ग पहले से ही चालू है। मई 2019 में वर्ष 2019-20 के दौरान निष्पादित कार्यों के रख-रखाव के लिये 88 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई है। साथ ही रात्रि के समय नेविगेशन की सुविधाएँ सुनिश्चित की गई हैं। |
7. पश्चिम बंगाल में रूपनारायण नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-86) |
24 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से जलमार्ग का कार्य शुरू किया गया तथा फ्लोटिंग टर्मिनल की स्थापना हेतु भी कार्य शुरू किया गया है। |
8. पश्चिम बंगाल में सुंदरबन जलमार्ग (राष्ट्रीय जलमार्ग-97) |
19.10 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से जलमार्ग का निर्माण शुरू हुआ है। हेमनगर में बुनियादी ढाँचे को उन्नत किया गया। |
जलमार्ग विकास परियोजना की वितीय स्थिति:
- अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India-IWAI), विश्व बैंक की तकनीकी और वित्तीय सहायता से गंगा के हल्दिया-वाराणसी खंड पर नेविगेशन की क्षमता वृद्धि हेतु 5369.18 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से जल मार्ग विकास परियोजना (Jal Marg Vikas Project-JMVP) को कार्यान्वित कर रहा है।
- JMVP को वैधानिक मंजू़री मिलने के बाद तीन साल की समयावधि के दौरान इस परियोजना के तहत लगभग 1800 करोड़ रुपए की लागत से कार्य आरंभ हुआ है इनमें वाराणसी और साहिबगंज में मल्टीमॉडल टर्मिनल और तलकर्षण के लिये तीन अनुबंध शामिल हैं।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण:
- अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) की स्थापना 27 अक्तूबर, 1986 को की गई।
- IWAI जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
- यह जहाज़रानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गो पर अंतर्देशीय जल परिवहन अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण का कार्य करता है।
- प्राधिकरण का मुख्यालय नोएडा (New Okhla Industrial Development Authority-NOIDA) में क्षेत्रीय कार्यालय पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोची में तथा उप-कार्यालय प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद), वाराणसी, भागलपुर, रक्का और कोल्लम में हैं।
- राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के अनुसार, अभी तक 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है।
- वर्ष 2018 में IWAI ने कार्गो मालिकों एवं लॉजिस्टिक्स संचालकों को जोड़ने हेतु समर्पित पोर्टल ‘फोकल’ (Forum of Cargo Owners and Logistics Operators-FOCAL) लॉन्च किया था जो जहाज़ों की उपलब्धता के बारे में रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय राजनीति
विनियोग विधेयक 2020-21
प्रीलिम्स के लिये:विनियोग विधेयक, भारत की संचित निधि मेन्स के लिये:विनियोग विधेयक से संबंधित तथ्य और इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
लोकसभा ने विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों को मंज़ूरी देने के साथ ही वर्ष 2020-21 के लिये भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से सरकार को राशि की निकासी का अधिकार देने वाले विनियोग विधेयक 2020-21 (Appropriation Bill 2020-21) को पारित कर दिया है।
मुख्य बिंदु:
- इस विधेयक में सरकार को उसके कामकाज और कार्यक्रमों तथा योजनाओं को अमल में लाने के लिये भारत की संचित निधि से 110 लाख करोड़ रुपए निकालने हेतु अधिकृत करने का प्रावधान है।
- अब अगले चरण में वित्त विधेयक पर चर्चा करके उसे मंज़ूरी दी जाएगी। वित्त विधेयक में कर प्रस्तावों का ब्योरा होता है।
- COVID-19 के चलते सत्र स्थगन पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा है कि 3 अप्रैल की अपनी निर्धारित तिथि से पहले सत्र में कटौती की कोई योजना नहीं है।
- विनियोग विधेयक के पारित होने के साथ ही वर्ष 2020-21 के बजट को पारित करने की दो-तिहाई प्रक्रिया पूरी हो गई है।
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा एक फरवरी को पेश किये गए बजट पर लोकसभा और राज्यसभा ने बजट के प्रावधानों पर मौजूदा सत्र के पहले चरण में चर्चा की। सत्र के दूसरे हिस्से में लोकसभा ने विनियोग विधेयक को पारित किया है।
- लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विभिन्न मंत्रालयों के लिये अनुदान मांगों को मंजूरी देने हेतु सदन में ‘गिलोटिन’ (Guillotine) का रास्ता अपनाया।
गिलोटिन
- अलग अलग मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर चर्चा के लिये संसद के पास समय नहीं होता है।
- ऐसे में कुछ ही मंत्रालयों के खर्च या अनुदान मांगों को पहले से निर्धारित समय पर चर्चा के लिये रखा जाता है।
- इसके पूरा होने के बाद अन्य मंत्रालयों की अनुदान मांगों को एक साथ रखकर इसे पारित कराया जाता है जिसे गिलोटिन कहते हैं।
- लोकसभा में रेलवे, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की अनुदान मांगों पर विस्तार से चर्चा की गई।
- पर्यटन क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव के बारे में भी चर्चा की गई और केंद्र सरकार से अन्य देशों की तरह राहत पैकेज प्रदान करने का आग्रह किया गया।
विनियोग विधेयक:
- संवैधानिक प्रावधान के अंतर्गत संसद द्वारा कानून अधिनियमित किये बिना भारत की संचित निधि से कोई धन आहरित नहीं किया जा सकता।
- इसका अनुपालन करते हुए लोकसभा द्वारा संचित निधि पर भारित व्यय के साथ-साथ मतदान किये जाने वाले अनुदानों की सभी मांगों को सम्मिलित करने वाले विधेयक को लोकसभा में पुर:स्थापित किया जाता है।
- इस विधेयक को विनियोग विधेयक के रूप में जाना जाता है।
- इसके नाम के अनुसार इस विधेयक का प्रयोजन सरकार को संचित निधि से किये जाने वाले व्यय का विनियोजन करने हेतु विधिक प्राधिकार प्रदान करना है।
भारत की संचित निधि:
- इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 266 में किया गया है।
- भारत सरकार को प्राप्त होने वाला सारा धन (कर से प्राप्त राजस्व तथा ऋण उधार से प्राप्त होने वाला राजस्व) इसी में जमा होता है।
- संसद द्वारा विनियोग विधेयक या अनुपूरक अनुदान संबंधी विधेयक पारित करने पर ही इस निधि से धनराशि निकाली जा सकती है।
- संवैधानिक पदाधिकारी के वेतन-भत्ते इस निधि से दिये जाते हैं। ऐसे व्यय को भारित व्यय कहा जाता है, जिसके संबंध में लोकसभा में मतदान होता है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
कोरोनावायरस का सामुदायिक प्रसारण
प्रीलिम्स के लिये:वायरस के सामुदायिक प्रसारण का अर्थ मेन्स के लिये:वायरस परीक्षण में निजी क्षेत्र की भूमिका, वायरस से लड़ने में विभिन्न देशों के मॉडल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने घोषणा की है कि वह ऐसे लोगों का परीक्षण भी करेगा जिनका किसी भी देश में कोई यात्रा इतिहास नहीं है अथवा जो प्रत्यक्ष रूप से कोरोनवायरस (COVID-19) से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में नहीं आया।
प्रमुख बिंदु
- ICMR के अनुसार, इस घोषणा का प्रमुख उद्देश्य देश में कोरोनावायरस के सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) को रोकना है।
- ध्यातव्य है कि विभिन्न देशों ने सामुदायिक प्रसारण को संबोधित करने अथवा इसे रोकने के लिये विभिन्न मॉडल अपनाए हैं।
- विद्वानों का मत है कि भारत अभी वायरस के प्रसार के दूसरे चरण में है और सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) इसका तीसरा चरण है, इस संदर्भ में ICMR का निर्णय काफी तर्कसंगत लगता है।
सामुदायिक प्रसारण क्या है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार, सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) किसी भी रोग या वायरस के प्रसारण का एक चरण होता है।
- सरल शब्दों में कहें तो सामुदायिक प्रसारण का अर्थ उस स्थिति से होता है जब वायरस समस्त समुदाय के स्तर पर पहुँच जाता है और इसके कारण वे लोग भी प्रभावित होते हैं जिन्होंने न तो इस अवधि में कोई यात्रा की है और न ही किसी ऐसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क में आए हैं जो कोरोनावायरस से संक्रमित हैं।
- इसके अलावा देश में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) पर भी काफी अधिक ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) के खतरे को कम किया जा सके।
- विद्वानों के अनुसार, यदि एक बार सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) की शुरुआत होती है, तो संपर्कों को ट्रेस करना अधिक कठिन हो जाएगा। उदाहरण के लिये पूर्व में दक्षिण कोरिया की एक महिला, जिसने परीक्षण करने से इनकार कर दिया था, के कारण 160 से अधिक लोग संक्रमित हो गए।
देश में सामुदायिक प्रसारण की मौजूदा स्थिति
- अब तक भारत में पाए गए अधिकांश मामलों में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों का कोई-न-कोई यात्रा इतिहास था या फिर वे किसी ऐसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क में थे जो इस वायरस से संक्रमित था।
- उदाहरण के लिये जयपुर में इटली के पर्यटक जिन्होंने भारतीय ड्राइवर सहित समूह के 17 लोगों को संक्रमित किया था।
- वहीं दूसरी ओर आगरा में कुछ मामलों में न तो विदेश यात्रा का कोई इतिहास था और न ही वे किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए थे।
- बीते सप्ताह स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि ‘चूँकि यात्रा से संबंधित मामलों के अलावा कुछ मामले देखे गए हैं, इसलिये इस वायरस से निपटने के लिये इस कार्य में ज़िला कलेक्टरों और राज्यों को शामिल करने का निर्णय लिया गया है।”
निजी क्षेत्र की भूमिका
- हालाँकि सरकार निजी अस्पतालों के साथ मिलकर कार्य कर रही है, ताकि मरीज़ों के इलाज और अलगाव के लिये मानक संचालन प्रक्रिया विकसित की जा सके, किंतु निजी क्षेत्र के लिये परीक्षण प्रक्रिया को खोलने हेतु अभी तक कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया गया है।
- इस संदर्भ में मुनाफाखोरी का विषय एक बड़ी चिंता है। विशेषज्ञों के अनुसार, निजी अस्पतालों के लिये परीक्षण प्रक्रिया को खोलना प्रौद्योगिकी का प्रश्न नहीं है; निजी क्षेत्र को इस विषय में अनुमति देने का अर्थ होगा बड़ी संख्या में मरीज़ों को ऐसे स्थान पर भेजना जहाँ संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिये संक्रमण नियंत्रण मानदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है।
- ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस का परीक्षण करने के लिये सरकार को 5000 रुपए का खर्च उठाना पड़ रहा है और देश में यह परीक्षण सभी मरीज़ों के लिये मुफ्त है।
- इस प्रकार यदि सरकार निजी क्षेत्र को वायरस के परीक्षण का अधिकार देती है तो इसका अर्थ होगा कि देश के सभी नागरिक यह परीक्षण करवाने में समर्थ नहीं होंगे।
वायरस से लड़ने में भारत के मॉडल की क्षमता
- चीन (80,000 से अधिक मामले), इटली (21,000 से अधिक) और दक्षिण कोरिया (8,000) जैसे देशों में सामुदायिक प्रसारण का चरण देखा जा रहा है।
- कुछ समय के लिये भारत ने नि:शुल्क परीक्षण वाले दक्षिण कोरियाई मॉडल के स्थान पर लॉकडाउन के इटली मॉडल को लागू किया है।
- यूरोप में प्रकोप के केंद्र इटली ने देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का मॉडल अपनाया है। इटली में स्टोर और रेस्त्रां बंद कर दिये गए हैं और लोगों के आने-जाने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- विदित है कि स्पेन ने भी देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है, जबकि फ्रांँस ने देश के कई स्थानों को बंद कर दिया है।
- इसके विपरीत दक्षिण कोरिया ने अपने देश में लाखों लोगों के निशुल्क परीक्षण और उपचार का मॉडल अपनाया है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण कोरिया के इस मॉडल के कारण वहाँ दर्ज होने वाले मामलों की संख्या में काफी कमी आई है।
- हालाँकि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में एक साथ सभी लोगों का परीक्षण करने के मार्ग में संसाधनों की कमी बाधा बन सकती है।
- भारत के पास वर्तमान में तकरीबन 1 लाख परीक्षण करने की क्षमता है और लगभग 6000 परीक्षण किये जा चुके हैं। इस प्रकार यदि बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाता है तो हमें काफी अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
निजी क्षेत्र को परीक्षण करने का अधिकार प्रदान करने के स्थान पर भारत ने सरकारी सहायता पर परीक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने का विकल्प चुना है। भारत में व्याप्त गरीबी को देखते हुए भारत सरकार का यह निर्णय काफी तर्कसंगत है, हालाँकि इस संदर्भ में सरकार को अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
ROTTO-SOTTO: संगठन
प्रीलिम्स के लिये:ROTTO-SOTTO, अंग दान में अग्रणी राज्य मेन्स के लिये:अंग प्रत्यारोपण से जुड़े मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र ने अंग दान तथा प्रत्यारोपण में तमिलनाडु और तेलंगाना को पीछे छोड़ दिया है।
मुख्य बिंदु:
- पुणे, नागपुर और औरंगाबाद अंग दान के क्षेत्र में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले नगर हैं।
- महाराष्ट्र को राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organisation-NOTTO) द्वारा मृतक अंग दान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार प्रदान किया गया था (नवंबर 2019)।
महाराष्ट्र कैसे पहुँचा शीर्ष पर?
ROTTO-SOTTO:
सरकार अंग दान को बढ़ावा देने के लिये निम्नलिखित घटकों के साथ मिलकर राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम लागू कर रही है।
स्तर | घटक/संगठन |
राष्ट्रीय स्तर |
राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) |
क्षेत्रीय स्तर | क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (ROTTO) |
राज्य स्तर | राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (SOTTO) |
- क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (Regional Organ and Tissue Transplant Organisation- ROTTO) एवं राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (State Organ and Tissue Transplant Organisation-SOTTO) अर्थात ROTTO-SOTTO की स्थापना केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय द्वारा की गई थी।
राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम के उद्देश्य:
- राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक दान तथा प्रत्यारोपण रजिस्ट्री को बनाए रखना।
- अंग दान पर जागरूकता में सुधार के लिये सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education and Communication- IEC) गतिविधियों को बढ़ावा देना।
- सरकारी अस्पतालों में रियायती लागत पर प्रत्यारोपण की सुविधा प्रदान करना।
- प्रशिक्षण में सहयोग, वित्तीय सहायता जैसे अन्य कार्य करना।
अंग दान और प्रत्यारोपण का अर्थ:
- अंग प्रत्यारोपण का अभिप्राय सर्जरी के माध्यम से एक व्यक्ति के स्वस्थ अंग को निकालने और उसे किसी ऐसे व्यक्ति में प्रत्यारोपित करने से है जिसका अंग किन्हीं कारणों से विफल हो गया है।
अंग दान का महत्त्व:
- एक एकल अंगदाता आठ से अधिक लोगों के जीवन को बचा सकता है या सुधार सकता है।
- अंगदान जागरूकता के बारे में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है लेकिन अभी इस क्षेत्र को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में अंग दान और प्रत्यारोपण:
- ग्लोबल ऑब्ज़र्वेटरी ऑन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांट’ के अनुसार, अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे अधिक अंग प्रत्यारोपण भारत में किये जाते हैं। हालाँकि इसके बावजूद भारत में अंग दान की दर 0.65 प्रति मिलियन बनी हुई है, जो कि इस लिहाज़ से चिंता का विषय है।
भारत में अंग प्रत्यारोपण संबंधी मुद्दे:
- आधारिक संरचना का अभाव।
- मांग और पूर्ति के बीच अंतर।
- प्रत्यारोपण की उच्च लागत।
- जागरूकता की कमी।
सरकार द्वारा किये गए प्रयास:
- ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम’ (Transplat of Human Organ and Tissue Act- THOA), 1994, मानव अंग प्रत्यारोपण (अनुसंधान) अधिनियम, 2011, मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम (THOT), 2014 आदि कानून भारत में अंग प्रत्यारोपण संबंधी कार्यों का नियमन करते हैं।
आगे की राह:
- सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमज़ोर वर्ग तक भी पहुँच सकें। इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
- अंग दान के बारे में गलत धारणाओं और मिथकों को दूर करना देश में अंग दान करने वालों की कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग
प्रीलिम्स के लिये:सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग मेन्स के लिये:नैनो प्रौद्योगिकी |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IIT) धनबाद के ‘इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स’ (Indian School of Mines- ISM) तथा ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University) की टीम ने पॉलीयूरेथेन और सिलिकॉन डाइऑक्साइड नैनो कणों का इस्तेमाल कर कोटिंग में प्रयुक्त होने सुपरहाइड्रोफोबिक पदार्थ का निर्माण किया है।
मुख्य बिंदु:
- कोटिंग में प्रयुक्त रसायन देश में आसानी से उपलब्ध हैं तथा वे पर्यावरण के अनुकूल भी हैं।
- कोटिंग की यह तकनीक सिर्फ स्टील में ही नहीं अपितु अन्य धातुएँ यथा- एल्युमीनियम, तांबा, पीतल एवं ग्लास, कपड़े, कागज़, लकड़ी आदि में भी प्रयोग की जा सकती है
अपनाई गई विधि:
- स्टील कोटिंग से पूर्व टीम ने आसंजन शक्ति में सुधार के लिये विशेष प्रकार के रासायनिक विधि का प्रयोग किया ताकि स्टील की सतह पर खुरदरापन पैदा किया जा सके। इसके बिना, स्टील की चिकनाई के कारण कोटिंग आसानी नहीं हो पाती है।
आसंजन (Adhesion):
- दो भिन्न प्रकार के कणों या सतहों के एक-दूसरे से चिपकने की प्रवृत्ति को आसंजन कहते हैं।
संसंजन (Cohesion):
- दो समान कणों या सतहों के आपस में चिपकने की प्रवृत्ति को संसंजन कहते हैं।
उपयोगिता:
- कोटिंग की इस तकनीक में सुपरहाइड्रोफोबिक (सतह पर न चिपकने की प्रवृति) गुण पाया गया। इस कोटिंग तकनीक को अम्लीय (pH 5) और क्षारीय (pH 8) दोनों स्थितियों में छह सप्ताह से अधिक समय तथा 230°C तापमान तक तक टिकाऊ पाया गया।
- कोटिंग तकनीक की यांत्रिक स्थिरता को जल-जेट, रेत-अभिघर्षण आदि में भी अत्यधिक स्थिर पाया गया था।
- कोटिंग द्वारा प्रदर्शित एक अन्य क्षमता; स्व-सफाई का कार्य है। पानी की बूँदें तथा धूल कोटिंग सतह से चिपकती नहीं हैं तथा स्वत: सतह से लुढ़क जाती हैं।
नैनो कण एवं स्वास्थ्य:
- नैनो तकनीक का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है। ‘नैनो’ एक ग्रीक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सूक्ष्म या छोटा। 100 नैनोमीटर या इससे छोटे कणों को ‘नैनो कण’ माना जाता है।
- अत्यधिक सूक्ष्म आकार के कारण नैनो कणों के रासायनिक एवं भौतिक लक्षण बदल जाते हैं। उदाहरण के लिये जिंक धातु के ‘नैनो कण’ स्तर पर पहुँचने पर पारदर्शी हो जाते हैं।
- नैनो कणों के उपयोग के साथ कुछ चुनौतियाँ भी उभर रही हैं। धात्विक नैनो कणों के उत्पादन और उपयोग में लगातार वृद्धि होने के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता बढ़ रही है।
- नैनो कण वातावरण में, खासतौर पर मृदा में पहुँच जाएँ तो जीवाणुओं और मृदा के जीवों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसके अलावा नैनो कण प्रदूषकों के साथ मिलकर अधिक विषाक्त प्रदूषकों को जन्म दे सकते हैं।
आगे की राह:
- नैनो कणों की विषाक्तता का पता लगाने में एकीकृत पद्धति उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
- किसी भी नैनो-युक्त उत्पाद के व्यावसायीकरण से पहले उससे होने वाली क्षति का आकलन किया जाना चाहिये।
- उत्पादों में प्रयोग होने वाले नैनो कणों का पूर्ण विवरण उल्लिखित होना चाहिये। इस बात को लेकर अधिक शोध करने की ज़रूरत है कि किस समय और किस सांद्रता पर नैनो कणों का कम-से-कम प्रयोग करके अत्यधिक लाभ उठाया जा सकता है।
नैनो मिशन:
- भारत सरकार ने ‘मिशन क्षमता निर्माण कार्यक्रम’ के रूप में वर्ष 2007 में नैनो मिशन की शुरुआत की थी।
- इसका कार्यान्वयन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) द्वारा किया जा रहा है।
- इस मिशन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
- नैनो अनुप्रयोगों एवं प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना।
- मानव संसाधन विकास को बढ़ावा देना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हासिल करना।
- नैनो मिशन के नेतृत्व में किये गए प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्तमान में भारत नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व के शीर्ष पाँच देशों में शामिल है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली
प्रीलिम्स के लिये:सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, केंद्रीय योजना निगरानी प्रणाली, योजनागत व्यय, गैर-योजनागत व्यय, केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, भारतीय सिविल लेखा सेवा मेन्स के लिये:सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
44वें सिविल लेखा दिवस के अवसर पर वित्त मंत्री ने सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System-PFMS) से संबंधित मुद्दे पर चर्चा की।
प्रमुख बिंदु:
- PFMS ने निधि प्रवाह प्रणाली, भुगतान एवं अकाउंटिंग नेटवर्क के प्रति भारत को जवाबदेह, उत्तरदायी और पारदर्शी होने में सक्षम बनाया है।
- भारतीय सिविल लेखा सेवा (Indian Civil Accounts Service-ICAS) के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer-DBT) के ज़रिये 8.46 करोड़ से अधिक पीएम-किसान भुगतान लाभार्थियों को सीधे उनके बैंक खातों में पैसे जमा कर PFMS ने अपनी आईटी (Information Technology-IT) ताकत साबित की है।
सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली:
- PFMS, जिसको पहले केंद्रीय योजना निगरानी प्रणाली (Central Plan Schemes Monitoring System- CPSMS) के नाम से जाना जाता था।
- यह एक वेब आधारित ऑनलाइन सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जिसका विकास तथा कार्यान्वयन भारत के महानियंत्रक लेखा कार्यालय द्वारा किया जा रहा है।
- CPSMS की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई।
- वर्ष 2013 में इसके दायरे को बढ़ाकर इसमें योजनागत और गैर-योजनागत दोनों के तहत लाभार्थियों को सीधे भुगतान को भी शामिल किया गया।
- वर्ष 2017 में सरकार ने योजना और गैर-योजना व्यय के बीच का अंतर समाप्त कर दिया।
- योजनागत व्यय: पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत किये जाने वाले सभी व्ययों को योजनागत व्यय कहते हैं। जैसे- बिजली उत्पादन, सिंचाई एवं ग्रामीण विकास, सड़कों, पुलों, नहरों इत्यादि का निर्माण।
- गैर-योजनागत व्यय: योजनागत व्यय के अलावा अन्य सभी प्रकार के व्यय को गैर-योजना व्यय के रूप में जाना जाता है। जैसे- ब्याज भुगतान, पेंशन, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को संवैधानिक हस्तांतरण इत्यादि।
उद्देश्य:
- भारत सरकार (Government Of India-GOI) के लिये एक मज़बूत सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की सुविधा प्रदान करना ताकि कुशल निधि प्रवाह के साथ ही भुगतान एवं अकाउंटिंग नेटवर्क (Payment cum Accounting Network) की स्थापना की जा सके।
- वर्तमान में इसके अंतर्गत केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत व्यय एवं अन्य व्यय शामिल हैं।
- केंद्रीय क्षेत्र योजनाएँ:
- ये योजनाएँ केंद्र सरकार द्वारा 100% वित्त पोषित हैं।
- इन्हें केंद्र सरकार की मशीनरी द्वारा लागू किया जाता है।
- मुख्य रूप से संघ सूची के विषयों पर गठित हैं।
- जैसे- भारतनेट, नमामि गंगे-राष्ट्रीय गंगा योजना इत्यादि।
- केंद्र प्रायोजित योजनाएँ:
- केंद्र प्रायोजित योजनाएँ वे योजनाएँ हैं जो राज्य सरकार द्वारा कार्यान्वित की जाती हैं लेकिन केंद्र सरकार द्वारा एक निर्धारित हिस्सेदारी के साथ प्रायोजित की जाती हैं।
- केंद्रीय क्षेत्र योजनाएँ:
भारतीय सिविल लेखा सेवा के बारे में:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 1976 में सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में एक बड़ा सुधार किया।
- नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को केंद्र सरकार के खाते तैयार करने की ज़िम्मेदारी देकर लेखा परीक्षा और लेखा कार्यों को अलग कर दिया गया।
- लेखांकन कार्य को सीधे कार्यकारी के नियंत्रण में लाने के बाद भारतीय नागरिक लेखा सेवा की स्थापना हुई।
- ICAS को भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा (Indian Audit & Accounts Service-IA&AS) से शुरू किया गया था
- केंद्रीय लेखा विभाग (Departmentalization of Union Accounts) अधिनियम, 1976 को संसद द्वारा अधिनियमित किया गया और 8 अप्रैल, 1976 को भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा इसे स्वीकृति प्रदान की गई।
- इस अधिनियम को 1 मार्च, 1976 से प्रभावी माना गया था। तदनुसार, ICAS हर साल 1 मार्च को "नागरिक लेखा दिवस" के रूप में मनाता है।
स्रोत: पीआईबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
एक्सोमार्स मिशन
प्रीलिम्स के लिये:एक्सोमार्स मिशन (ExoMars mission) मेन्स के लिये:Covid-19 के दुष्प्रभावों से संबंधित प्रश्न |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोप में Covid-19 के कारण उत्पन्न हुई महामारी जैसी स्थिति की वजह से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency-ESA) ने जुलाई 2020 में मंगल ग्रह पर भेजे जाने वाले एक्सोमार्स मिशन को वर्ष 2022 तक विलंबित/स्थगित करने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु:
- पूर्ववर्ती योजना के अनुसार, एक्सोमार्स (ExoMars) मिशन के दूसरे चरण के तहत एक रोवर (Rover) को जुलाई 2020 में मंगल ग्रह के लिये प्रक्षेपित किया जाना था।
- एक्सोमार्स (ExoMars) मिशन को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency-ESA) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ‘राॅसकाॅसमाॅस स्टेट कॉर्प’ (Roscosmos State Corp) के सहयोग से संचालित किया जा रहा है।
- ESA के अनुसार, यूरोप में COVID-19 से उत्पन्न हुई महामारी जैसी स्थिति के कारण अंतरिक्ष एजेंसी और सहयोगी औद्योगिक निर्माता संस्थानों के बीच यातायात बाधित होने से इस कार्यक्रम को स्थगित करना पड़ा।
- ध्यातव्य है कि यूरोप के कई देशों जैसे- इटली, फ्राँस आदि में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 1000 से अधिक हो गई है।
- वर्तमान में इस मिशन के लिये आवश्यक कई प्रयोगों को पूरा नहीं किया जा सका है, इनमें मुख्य पैराशूट और कुछ अन्य साॅफ्टवेयर से संबंधित हैं।
- ESA की योजना के अनुसार, इस मिशन के अंतर्गत रॉसलिंड फ्रेंक्लिन (Rosalind Franklin) नामक एक रोवर (Rover) को मंगल ग्रह की सतह पर उतारा जाएगा।
- गौरतलब है कि इस मिशन का प्रक्षेपण पहले वर्ष 2018 में किया जाना प्रस्तावित था परंतु बाद में इसे बदलकर जुलाई 2020 कर दिया गया था।
- वर्तमान अनुमान के अनुसार, अब इस मिशन को अगस्त-अक्तूबर 2022 के बीच प्रक्षेपित किया जाएगा जब पृथ्वी और मंगल एक बार पुनः एक सीध में होंगे। यह खगोलीय घटना 26 माह में सिर्फ एक बार होती है।
- इस योजना के तहत रोवर अप्रैल-जुलाई 2023 के बीच मंगल की सतह पर पहुँचेगा।
एक्सोमार्स (ExoMars) मिशन:
- एक्सोमार्स (ExoMars) मिशन को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency-ESA) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी राॅसकाॅसमाॅस स्टेट कॉर्प (Roscosmos State Corp) के सहयोग से तैयार किया गया है।
- इस मिशन के दो भाग हैं, मिशन के पहले हिस्से में वर्ष 2016 में ‘ट्रेस गैस ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट’ (Trace Gas Orbiter spacecraft) को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था।
- ट्रेस गैस ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट का उद्देश्य मंगल ग्रह के वातावरण में मीथेन (CH4), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), एसीटिलीन (C2H2) और जलवाष्प का पता लगाना था।
रॉसलिंड फ्रैंकलिन (Rosalind Franklin) रोवर:
- इस रोवर का नाम ब्रिटिश रसायनशास्त्री ‘रॉसलिंड फ्रैंकलिन ’ के नाम पर रखा गया है। रॉसलिंड फ्रेंक्लिन को डीएनए (DNA) की खोज में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये जाना जाता है।
- रॉसलिंड फ्रेंक्लिन रोवर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मंगल ग्रह की सतह पर 2 मीटर की गहराई तक खुदाई कर जाँच के लिये नमूने एकत्र कर सकेगा।
- ध्यातव्य है कि इससे पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए क्यूरियोसिटी रोवर की खुदाई क्षमता लगभग 2 इंच ही थी।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 मार्च, 2020
रंजन गोगोई
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिये मनोनीत किया है। ध्यातव्य है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई नवंबर 2019 में सेवानिवृत्त हुए थे और उनका स्थान मौजूदा मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने लिया था। ध्यातव्य है कि अनुच्छेद 80 के खंड(3) के तहत राष्ट्रपति के पास विशेष ज्ञान वाले व्यक्तियों को राज्यसभा के लिये मनोनीत करने की शक्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को विज्ञान, कला, साहित्य और समाज सेवा इत्यादि में विशेष ज्ञान होना अनिवार्य है। रंजन गोगोई असम के निवासी हैं और उनका जन्म 18 नवंबर, 1954 को हुआ। वे असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशब चंद्र गोगोई के पुत्र हैं। रंजन गोगोई ने अपने कैरियर की शुरुआत एक वकील के तौर पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय से की। इन्हें संवैधानिक, टैक्सेशन और कंपनी मामलों में विशेषज्ञता हासिल है।
बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान
बांग्लादेश अपने संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की 100वीं जयंती मना रहा है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को श्रद्धांजलि अर्पित की और बांग्लादेश की प्रगति में उनके योगदान की सराहना भी की। शेख मुजीबुर रहमान का जन्म अविभाजित भारत के गोपालगंज ज़िले के तुंगीपारा गाँव में 17 मार्च, 1920 को हुआ था। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी शासकों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ उन्होंने आंदोलन चलाया था और वर्ष 1971 में इसे पाकिस्तान से आज़ाद करा लिया। बंगबंधु नाम से विख्यात शेख मुजीबुर रहमान स्वतंत्र बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने।
कौशल सतरंग कार्यक्रम
प्रदेश के युवाओं को रोज़गार के बेहतर व अधिक अवसर प्रदान कराने और उनमें उद्यमिता विकसित किये जाने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार ने कौशल सतरंग कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के युवाओं के लिये कौशल प्रशिक्षण हेतु उपयुक्त वातावरण सृजित करने के साथ रोज़गार के बेहतर व अतिरिक्त अवसर उपलब्ध हो सकेंगे।
तीन विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा
केंद्रीय केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक, 2019 राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया है। इसी के साथ राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली, श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ दिल्ली और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति की पहचान अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में की जाएगी। इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा, मुझे पूर्ण विश्वास है कि तीनों संस्थानों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने पर ये नए विश्वास, उत्साह ऊर्जा और संकल्प के साथ संस्कृत के संरक्षण, संवर्द्धन और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।