नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 17 Feb, 2023
  • 51 min read
शासन व्यवस्था

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम

प्रिलिम्स के लिये:

ITBP, वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम, शिंकू-ला टनल, LAC, केंद्र प्रायोजित योजना।

मेन्स के लिये:

सीमावर्ती गाँवों में बुनियादी ढाँचा को बढ़ावा।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police- ITBP) की सात नई बटालियनों के गठन को मंज़ूरी दी है, साथ ही चीन सीमा पर सामाजिक एवं सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने हेतु वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (Vibrant Villages Programme- VVP) के तहत 4,800 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।

  • कैबिनेट ने मनाली-दारचा-पदुम-निम्मू क्षेत्र में 4.1 किलोमीटर लंबी शिंकू-ला सुरंग को भी मंज़ूरी दे दी है, ताकि सभी मौसमों में लद्दाख के साथ संपर्क बना रहे। 

महत्त्व: 

  • इसका उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर सुरक्षा ग्रिड को मज़बूत करना है। यह ITBP को अपने कर्मियों को आराम करने, स्वस्थ होने और प्रशिक्षित करने हेतु अवसर भी प्रदान करेगा।
  • अतिरिक्त बटालियन के गठन का निर्णय लेते समय कुशल सीमा निगरानी और बटालियन दोनों की आवश्यकता को ध्यान में रखा गया था।
  • सीमावर्ती गाँवों के लिये वित्तीय पैकेज को मंज़ूरी देने और सुरक्षा बढ़ाने का सरकार का फैसला ऐसे समय में आया है जब लद्दाख में LAC पर चीन के साथ मुद्दों को हल किया जाना अभी बाकी है। PLA के सैनिक अभी भी देपसांग के मैदानों और डेमचोक में डटे हुए हैं तथा चीन LAC के पास अपने बुनियादी ढाँचे को भी अपग्रेड कर रहा है।

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम: 

  • परिचय: 
    • यह एक केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम है जिसकी घोषणा केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 (2025-26 तक) में उत्तर में सीमावर्ती गाँवों को विकसित करने और ऐसे सीमावर्ती गाँवों के निवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लक्ष्य के साथ की गई।
    • इसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्र शामिल होंगे।
    • इसके तहत 2,963 गाँवों को कवर किया जाएगा, जिनमें से 663 को पहले चरण में कवर किये जाएंगे।  
    • ग्राम पंचायतों की सहायता से ज़िला प्रशासन द्वारा वाइब्रेंट विलेज़ एक्शन प्लान बनाए जाएंगे।  
    • वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की वजह से ‘सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ के साथ ओवरलैप की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।
  • उद्देश्य:
    • यह योजना उत्तरी सीमा पर सीमावर्ती गाँवों के स्थानीय, प्राकृतिक, मानव तथा अन्य संसाधनों के आधार पर आर्थिक चालकों की पहचान एवं विकास करने में सहायता करेगी।
    • सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने, कौशल विकास तथा उद्यमिता के माध्यम से युवाओं एवं महिलाओं के सशक्तीकरण के माध्यम से 'हब एंड स्पोक मॉडल' (Hub and Spoke Model) पर आधारित विकास केंद्रों का विकास करना। 
    • स्थानीय, सांस्कृतिक, पारंपरिक ज्ञान और विरासत को बढ़ावा देकर पर्यटन क्षमता का लाभ उठाना।  
    • समुदाय आधारित संगठनों, सहकारी समितियों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से 'एक गाँव-एक उत्पाद' की अवधारणा पर स्थायी पर्यावरण-कृषि व्यवसायों का विकास करना।

शिंकू-ला सुरंग के मुख्य बिंदु: 

  • यह लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों को सभी मौसमों में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये निमू-पदम-दारचा रोड लिंक पर 4.1 किलोमीटर लंबी सुरंग है।
  • यह टनल दिसंबर 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगी।
  • यह देश की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • इससे उस क्षेत्र में सुरक्षा बलों की आवाजाही में भी मदद मिलेगी।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

मानव पूंजी पर कोविड-19 का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, कोविड-19, संज्ञानात्मक क्षति।

मेन्स के लिये:

मानव पूंजी पर कोविड-19 का प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक ने “कोलैप्स एंड रिकवरी: हाउ कोविड-19 एरोडेड ह्यूमन कैपिटल एंड व्हाट टू डू” (Collapse and Recovery: How COVID-19 Eroded Human Capital and What to Do) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 के कारण बड़े पैमाने पर मानव पूंजी की क्षति हुई, जिसने मुख्य रूप से बच्चों और युवाओं को प्रभावित किया। 

  • इसने प्रमुख विकासात्मक चरणों में युवा लोगों पर महामारी के प्रभाव को लेकर वैश्विक डेटा का विश्लेषण किया: प्रारंभिक बचपन (0-5 वर्ष), स्कूल की उम्र (6-14 वर्ष), और युवा (15-24 वर्ष)।
  • नोट: मानव पूंजी में ज्ञान, कौशल और स्वास्थ्य शामिल हैं जिसे लोग अपने पूरे जीवन में निवेश और जमा करते हैं जिससे उन्हें समाज के उत्पादक सदस्यों के रूप में अपनी क्षमता का एहसास करने में मदद मिलती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • महामारी का प्रभाव:
    • कोविड-19 ने जीवन चक्र के महत्त्वपूर्ण क्षणों में मानव पूंजी को भारी नुकसान पहुँचाया, मुख्य रूप से अविकसित तथा विकासशील देशों में बच्चों एवं युवाओं को प्रभावित किया।
    • निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। 
  • स्कूली बच्चों पर प्रभाव:
    • कई देशों में प्री-स्कूल उम्र के बच्चों ने प्रारंभिक भाषा और साक्षरता में 34% से अधिक और पूर्व-महामारी की तुलना में गणित में 29% से अधिक ने सीखने के कौशल को खो दिया है।  
    • कई देशों में स्कूलों के फिर से खुलने के बाद भी प्री-स्कूल नामांकन वर्ष 2021 के अंत तक ठीक से नहीं हो पाया था; कई देशों में इसमें 10% से अधिक की गिरावट देखी गई थी।  
    • महामारी के दौरान बच्चों को अधिक खाद्य असुरक्षा का भी सामना करना पड़ा। 
  • स्वास्थ्य देखभाल में कमी: 
    • लाखों बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल में कमी का सामना करना पड़ा, जिसमें प्रमुख रूप से टीके न ले पाना भी शामिल है।
    • उन्होंने अपने देखभाल के वातावरण में अधिक तनाव का अनुभव किया, जैसे- अनाथ, घरेलू हिंसा और खराब पोषण आदि जिसके परिणामस्वरूप विद्यालय जाने में सक्षम नहीं थे जिसके कारण सामाजिक और भावनात्मक विकास कम हुआ।
  • युवा रोज़गार: 
    • महामारी से पूर्व 40 मिलियन लोग जो रोज़गार संपन्न थे, महामारी के पश्चात् वर्ष 2021 के अंत तक रोज़गार विहीन हो गए, जिससे युवा बेरोज़गारी की स्थिति और खराब हो गई। युवाओं की आय में वर्ष 2020 में 15% और वर्ष 2021 में 12% की गिरावट आई।  
    • अल्प शिक्षित नए प्रतियोगियों के पास श्रम बाज़ार में अपने पहले दशक के दौरान 13% कम आय होगी।  
      • ब्राज़ील, इथियोपिया, मेक्सिको, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम में वर्ष 2021 में कुल युवाओं में से 25% के पास न तो शिक्षा, रोज़गार और न ही प्रशिक्षण था।  
  • भविष्य में चुनौतियाँ: 
    • आज के नन्हे बच्चों/टॉडलर में संज्ञानात्मक कमी के कारण जब वे काम करने की उम्र में पहुँच जाएंगे तो कमाई में 25% की गिरावट आ सकती है।
    • कोविड से प्रभावित शिक्षा के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में छात्रों की भविष्य की औसत वार्षिक आय 10% तक कम हो सकती है। छात्रों की इस पीढ़ी को जीवन भर की संभावित कमाई में 21 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
    • इस पैमाने पर जीवन भर की कमाई के नुकसान का मतलब कम उत्पादकता, अधिक असमानता और आने वाले दशकों में संभवतः अधिक सामाजिक अशांति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।  

सिफारिशें:

  • देशों को इन नुकसानों की भरपाई हेतु तत्काल कार्रवाई के साथ मानव पूंजी में निवेश करना चाहिये।
  • मानव पूंजी गरीबी में कमी और समावेशी विकास का एक प्रमुख चालक है। अर्थात् वर्तमान एवं भविष्य के संकटों तथा तनावों का सामना करने हेतु इसमें लचीलापन लाना अत्यावश्यक है।
  • कुछ नीतिगत कार्रवाइयों में शामिल हो सकते हैं:
    • टीकाकरण और पोषण पूरक अभियान, पालन-पोषण कार्यक्रमों की कवरेज बढ़ाना, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना, कमज़ोर परिवारों हेतु नकद हस्तांतरण के कवरेज का विस्तार करना।
    • शिक्षण समय बढ़ाना, छात्रों के सीखने का उनके स्तर के आधार पर मूल्यांकन करना और आधारभूत शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने हेतु पाठ्यक्रम को सुव्यवस्थित करना।
    • युवाओं को अनुकूलित प्रशिक्षण, नौकरी हेतु मध्यस्थता, उद्यमिता कार्यक्रम और नई कार्यबल उन्मुख पहलों के लिये समर्थन प्रदान करना आवश्यक है।  
  • दीर्घावधि में राष्ट्रों को मानव विकास के लिये ऐसी प्रणालियाँ तैयार करनी चाहिये जो वर्तमान तथा भविष्य में संकटों हेतु बेहतर तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये लचीली, तीव्र और अनुकूलनीय हों।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

एक संकल्पना के रूप में मानव पूंजी निर्माण की बेहतर व्याख्या उस प्रक्रिया के रूप में की जाती, जिसके द्वारा:

  1. किसी देश के व्यक्ति अधिक पूंजी का संचय कर पाते हैं।
  2. देश के लोगों के ज्ञान, कौशल स्तरों और क्षमताओं में वृद्धि हो पाती है।
  3. गोचर धन का संचय हो पाता है।
  4. अगोचर धन का संचय हो पाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 4 
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. COVID-19 महामारी ने भारत में वर्ग असमानताओं और गरीबी को गति दे दी है। टिप्पणी कीजिये। (2020) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

लेड विषाक्तता

प्रिलिम्स के लिये:

लेड विषाक्तता, लेड, रक्ताल्पता, उच्च रक्तचाप, गुर्दे की दुर्बलता, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, लेड विषाक्तता और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

लेड के व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप विश्व के कई हिस्सों में व्यापक पर्यावरणीय प्रदूषण, मानव जोखिम और महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।

लेड विषाक्तता:

  • परिचय: 
    • शीशा/लेड विषाक्तता तब होती है जब शरीर में लेड जमा हो जाता है, ऐसा अक्सर महीनों या वर्षों की अवधि में होता है।
    • यह मानव तंत्र में लेड के अवशोषण के कारण होता है और विशेष रूप से थकान, पेट में दर्द, मतली, दस्त, भूख न लगना, एनीमिया, मसूड़ों पर एक गहरी रेखा तथा मांसपेशियों में कमज़ोरी या शरीर के अंगों में पक्षाघात इसके लक्षण हैं।
    • बच्चे विशेष रूप से लेड विषाक्तता के प्रति संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके शरीर विकासशील अवस्था में होते हैं।

लेड विषाक्तता के स्रोत: 

Everyday-risks

लेड विषाक्तता के निहितार्थ:

  • रक्त में उच्च लेड स्तर: 
    • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और प्योर अर्थ (Pure Earth) की वर्ष 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 50% बच्चे रक्त में उच्च लेड स्तर से प्रभावित हैं।
      • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 27.5 करोड़ बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 5 µg/dL की सहनीय सीमा से अधिक है।
    • इनमें से 64.3 मिलियन बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 10 µg/dL से अधिक है।
    • 23 राज्यों की जनसंख्या में रक्त में लेड का औसत स्तर 5 g/dL की सीमा से अधिक है इसके आलावा डेटा एकत्र करने हेतु अनुसंधान और स्क्रीनिंग तंत्र की कमी के कारण शेष 13 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में इसका निर्धारण नहीं किया जा सका।
  • विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years): 
    • इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा वर्ष 2016 के एक विश्लेषण के अनुसार, भारत में लेड विषाक्तता 4.6 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (बीमारी के बोझ के कारण खोए हुए वर्षों की संख्या) और सालाना 165,000 मौतों का कारण है।
      • IHME वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय में एक स्वतंत्र जनसंख्या स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र है। 
  • प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव: 
    • एक बार जब लेड रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है, तो यह सीधे बच्चों के मस्तिष्क  में चला जाता है।
    • गर्भावस्था के दौरान यह भ्रूण में स्थानांतरित हो सकता है, जिससे बच्चे का जन्म के समय कम वज़न और धीमी वृद्धि की स्थिति हो सकती है। लेड विषाक्तता बच्चों एवं वयस्कों में एनीमिया तथा विभिन्न बीमारियों का कारण बन सकती है, जो न्यूरोलॉजिकल, अस्थि-पंजर और न्यूरोमस्क्यूलर सिस्टम को प्रभावित करती है।

लेड विषाक्तता से निपटने में चुनौतियाँ:

  • कम मान्यता/अल्प ध्यान: 
    • भारत में लेड/सीसे पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना कि अन्य संभावित सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर दिया जाता है।
    • भारत में संभावित जोखिम के लिये देश की आबादी की जाँच करने हेतु उपयुक्त प्रणाली का अभाव है। भारत में प्रमुख परियोजनाओं के लिये लगभग 48 राष्ट्रीय रेफरल केंद्र हैं जहाँ रक्त में लेड के स्तर का परीक्षण किया जा सकता है, लेकिन यह जाँच आमतौर पर स्वैच्छिक आधार पर अथवा स्वास्थ्य शिविरों में गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा की जाती है।
  • खराब पुनर्चक्रण कानून: 
    • भारत और अल्प-विकासशील देशों सहित कई विकासशील देशों में अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्रों के संबंध में सख्त कानून की कमी है।
      • परिणामस्वरूप भारी मात्रा में लेड-एसिड बैटरियाँ वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किये बिना अनियमित और अनियंत्रित तरीके से रिकवर की जाती हैं।
        • लेड-एसिड बैटरियों का प्रबंधन बैटरी (प्रबंधन और संचालन) नियम, 2001 के तहत आता है लेकिन सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ पुनर्चक्रण सुनिश्चित करने के लिये प्रवर्तन क्षमता अपर्याप्त है।
    • वर्ष 2022 में सरकार ने बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 अधिसूचित किया, परंतु यह देखना बाकी है कि सरकार इसे कितनी सफलतापूर्वक लागू कर पाती है।
  • सस्ते उत्पादों की उच्च मांग:  
    • भारत में कई सस्ते उत्पादों में लेड पाया जाता है और उपभोक्ता लेड रहित विकल्पों के लिये अधिक खर्च करने में सक्षम अथवा तैयार नहीं हैं। 

आगे की राह

  • लेड स्रोतों का नियमित परीक्षण क्षेत्रवार प्रसार के बारे में सूचित करने में मदद के साथ-साथ उचित हस्तक्षेप करने में मदद करेगा, जैसे "विनियम और प्रवर्तन, उद्योग प्रथाओं में बदलाव, लेड संदूषण का आकलन करने के लिये सरकारी अधिकारियों का प्रशिक्षण और सार्वजनिक शिक्षा तथा उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन।
  • उपयोग की गई लेड-एसिड बैटरियों के पुनर्चक्रण के जोखिम के रूप में अनौपचारिक संचालन को हतोत्साहित करने और क्षेत्र को विनियमित करने में मदद मिलेगी।
  • भारत को वर्तमान में रक्त में लेड स्तर के लिये की जाने वाली परीक्षण क्षमता को बढ़ाना चाहिये तथा सरकार को प्रत्येक ज़िला अस्पताल में रक्त में लेड स्तर की जाँच के लिये सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिये। 
  • लेड विषाक्तता को भारत की स्वास्थ्य स्थिति के परिप्रेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है।
  • ठोस प्रभाव के लिये क्षेत्रीय नौकरशाही, स्थानीय प्रेस और स्थानीय भाषा के माध्यम से राज्य स्तर पर रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. शरीर में श्वास अथवा खाने से पहुँचा लेड (लेड) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। पेट्रोल में सीसे का योग प्रतिबंधित होने के बाद से अब सीसे की विषाक्तता उत्पन्न करने वाले स्रोत कौन-कौन से हैं? (2012)

1- प्रगलन इकाइयाँ
2- पेन (कलम) और पेंसिल
3- पेंट
4- केश तेल एवं प्रसाधन सामग्रियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2 , 3 और 4

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

चालू खाता घाटा

प्रिलिम्स के लिये:

चालू खाता घाटा (CAD), राजकोषीय घाटा, सरकारी बजट, विदेशी मुद्रा भंडार

मेन्स के लिये:

CAD से संबंधित मुद्दे, भारत में CAD की हालिया स्थिति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा जारी आँकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2023 में भारत के निर्यात और आयात में क्रमशः 6.59% तथा 3.63% की कमी आई है, हालाँकि ऐसे संकेत हैं कि बढ़ती मुद्रास्फीति एवं ब्याज दरों से उत्पन्न वैश्विक मंदी के बावजूद देश का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit- CAD) कम होगा।

  • कमोडिटी की कीमतों में गिरावट, कामगारों के प्रेषण और सेवा निर्यात में वृद्धि तथा विदेशी निवेशकों के बिक्री दबाव में कमी से CAD में कमी आने की उम्मीद है।

चालू खाता घाटा (Current Account Deficit- CAD):

  • परिचय:  
    • चालू खाता घाटा की स्थिति तब होती है जब किसी देश के वस्तु और सेवाओं के आयात का मूल्य उसके निर्यात से अधिक होता है।
    • CAD और राजकोषीय घाटा संयुक्त रूप से दोहरा घाटा हैं जो शेयर बाज़ार और निवेशकों को प्रभावित कर सकते हैं।
      • राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर है। यह उस धन के बराबर होता है जिसे सरकार को उस वर्ष के दौरान उधार लेने की आवश्यकता होती है। 
  • निहितार्थ:  
    • चालू खाता घाटा महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि इसका प्रभाव स्टॉक मार्केट, अर्थव्यवस्था और लोगों के निवेश पर पड़ता है।
    • कम चालू खाता घाटा निवेशकों के विश्वास में वृद्धि कर सकता है और साथ ही देश की मुद्रा के प्रति विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकता है।
    • चालू खाता अधिशेष दर्शाता है कि देश में पैसा आ रहा है, जो विदेशी मुद्रा भंडार और स्थानीय मुद्रा के मूल्य को बढ़ा सकता है।
  • भारत के CAD की हालिया स्थिति: 
    • वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में CAD सकल घरेलू उत्पाद का 3.3% था, लेकिन पहली छमाही के बाद वस्तुओं की कीमतों और आयात में कमी के कारण स्थिति में सुधार हुआ। 
  • अर्थव्यवस्था पर CAD का नकारात्मक प्रभाव:  
    • कमज़ोर मुद्रा: जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक हो जाता है, तो यह उसकी मुद्रा की मांग में कमी का कारण बन सकता है, जिससे मुद्रा मूल्य कमज़ोर (मूल्यह्रास) हो सकता है।
      • इससे आयात अधिक महँगा हो सकता है, जिस कारण मुद्रास्फीति उच्च और क्रय शक्ति निम्न हो सकती है।
    • ऋण संचयन: यदि कोई देश विदेशी निवेश के साथ अपने चालू खाता घाटे को वित्तपोषित करने में असमर्थ है, तो उसे इस अंतर को पूरा करने के लिये उधार लेने की आवश्यकता पड़ सकती है।
    • इससे ऋण के स्तर में वृद्धि हो सकती है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिये अधिक हानिकारक है।

भारत चालू खाता घाटे को कैसे कम कर सकता है?

  • निर्यात को बढ़ावा: CAD को कम करने के लिये निर्यात बढ़ाना सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है।
    • सरकार निर्यात उन्मुख उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है, निर्यात प्रक्रियाओं और नियमों को सुव्यवस्थित कर सकती है तथा अन्य देशों के साथ बेहतर व्यापार समझौतों पर बातचीत कर सकती है। 
  • आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देना: वर्तमान में आयात की जा रही वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने से व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • यह घरेलू निर्माताओं को प्रोत्साहन प्रदान करके तथा कुछ वस्तुओं पर टैरिफ या आयात शुल्क लगाकर प्राप्त किया जा सकता है।
  • उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार: घरेलू अर्थव्यवस्था की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार से निर्यात बढ़ाने एवं व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • यह बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और शिक्षा में निवेश जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

आयात में गिरावट के कारण जनवरी 2023 में चालू खाता घाटे में कमी को विशेषज्ञों द्वारा सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन देश के विदेशी खाते के बारे में चिंताओं को कम करने के लिये इसे अभी कई और महीनों तक बनाए रखने की आवश्यकता है। मुद्रा के मूल्य तथा अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य के लिये एक स्वस्थ CAD बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। 

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सरकार द्वारा की जाने वाली निम्नलिखित कार्यवाहियों पर विचार कीजिये: (2011)

  1. घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन।
  2. निर्यात सब्सिडी में कमी।
  3. उपयुक्त नीतियों को अपनाना जो FDI और FII से अधिक धन आकर्षित करती हैं।

उपर्युक्त में से कौन-सी कार्यवाही चालू खाता घाटे को कम करने में मदद कर सकती है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी मदों से चालू खाता बनता/गठित होता है? (2014)

  1. व्यापार का संतुलन
  2. विदेशी संपत्ति
  3. अदृश्य का संतुलन
  4. विशेष रेखा-चित्र अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) केवल 1, 2 और 4 

उत्तर: (c) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देश, राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994

मेन्स के लिये:

अंग दान को बढ़ावा देने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है, अब 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग प्रत्यारोपण के लिये मृत दाताओं से अंग प्राप्त कर सकते हैं।

  • मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मानव अंगों को अलग करने तथा इनके भंडारण के लिये विभिन्न नियम निर्धारित करता है। मानव अंगों के व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने के लिये यह चिकित्सीय उपयोग हेतु मानव अंगों के प्रत्यारोपण को विनियमित करता है।

Tweaks

नए दिशा-निर्देशों की प्रमुख बातें: 

  • उम्र सीमा हटाई गई: 
    • अधिक अवधि तक के जीवन के उद्देश्य से ऊपरी आयु सीमा को हटा दिया गया है।
      • इससे पहले NOTTO (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, 65 वर्ष से अधिक आयु के अंतिम चरण के अंग विफलता रोगी अंग प्राप्त करने के लिये पंजीकरण करने हेतु प्रतिबंधित थे।
  • डोमिसाइल/अधिवास की कोई आवश्यकता नहीं: 
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 'वन नेशन, वन पॉलिसी' के तहत किसी विशेष राज्य में अंग प्राप्तकर्त्ता के रूप में पंजीकरण के लिये डोमिसाइल/अधिवास की अनिवार्यता को हटा दिया है।
    •  अब कोई ज़रूरतमंद मरीज़ अपनी पसंद के किसी भी राज्य में अंग प्राप्त करने के लिये पंजीकरण करा सकता है और वहाँ सर्जरी भी करवा सकेगा। 
  • पंजीकरण हेतु कोई शुल्क नहीं:
    • केंद्र ने ऐसे पंजीकरण हेतु शुल्क लेने वाले राज्यों से कहा है कि वे ऐसा न करें। 
    • पंजीकरण के लिये शुल्क लेने वाले राज्यों में गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल शामिल हैं।
      • कुछ राज्यों में अंग प्राप्तकर्त्ता प्रतीक्षा सूची वाले मरीज़ से पंजीकृत करने के लिये 5,000 रुपए से 10,000 रुपए तक मांग की जाती है।

नोट:  

  • NOTTO की स्थापना नई दिल्ली में स्थित स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत की गई है।
  • NOTTO का राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग देश में अंगों एवं ऊतकों के दान और प्रत्यारोपण के लिये खरीद, वितरण और पंजीकरण हेतु अखिल भारतीय गतिविधियों के शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है।

नए दिशा-निर्देशों का उद्देश्य:

  • केंद्र प्रत्यारोपण के लिये एक राष्ट्रीय नीति बनाने की दिशा में मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011 के नियमों में बदलाव करने की योजना बना रहा है।
  • वर्तमान में विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नियम हैं; केंद्र सरकार नियमों में बदलाव पर विचार कर रही है ताकि देश भर के सभी राज्यों में एक मानक मानदंड का पालन किया जा सके। 
  • हालाँकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है, इस कारण केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियम राज्यों पर बाध्यकारी नहीं होंगे। 
  • इन कदमों का उद्देश्य मानव अंगों की प्राप्ति हेतु सुधार और अधिक न्यायसंगत पहुँच के साथ-साथ शव दान को बढ़ावा देना है, जो वर्तमान में भारत में किये गए सभी अंग प्रत्यारोपणों के नगण्य हिस्से के बराबर है।

भारत में अंग प्रत्यारोपण का परिदृश्य:

  • अंगों के प्रत्यारोपण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
  • वर्ष 2022 में सभी प्रत्यारोपणों में मृतक दाताओं के अंग लगभग 17.8% थे।
  • मृतक अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या वर्ष 2013 में 837 से बढ़कर वर्ष 2022 में 2,765 हो गई।
  • अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या- मृतक और जीवित दाताओं दोनों के अंगों के साथ वर्ष 2013 के 4,990 से बढ़कर वर्ष 2022 में 15,561 हो गई।
  • हर साल अनुमानतः 1.5-2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत होती है। 
    • वर्ष 2022 में लगभग 10,000 पर केवल एक व्यक्ति को मानव अंग की प्राप्ति हुई। जिन 80,000 लोगों को लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी, उनमें से 3,000 से भी कम लोगों को वर्ष 2022 में एक मानव अंग प्राप्त हो सका।
    • वर्ष 2022 में 10,000 लोगों में से केवल 250 का ही हृदय प्रत्यारोपण हो पाया।

आगे की राह

  • अंगदान को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण पहल है क्योंकि यह जीवन को बचा सकता है और पूरे समाज को लाभान्वित कर सकता है।
  • साथ ही जागरूकता बढ़ाकर, जनता को शिक्षित करके और दान प्रक्रिया में सुधार करके, हम अंग एवं ऊतक दान को अधिक सुलभ बना सकते हैं तथा संभावित दाताओं की संख्या बढ़ा सकते हैं।
  • दान किये गए अंगों को गरीबों हेतु अधिक सुलभ बनाने के लिये सार्वजनिक अस्पतालों को प्रत्यारोपण करने हेतु अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार के साथ गरीबों को उचित उपचार प्रदान करना चाहिये।
  • यह सुझाव दिया जाता है कि क्रॉस-सब्सिडी से कमज़ोर वर्ग तक पहुँच बढ़ेगी। प्रत्येक 3 या 4 प्रत्यारोपण के लिये निजी अस्पतालों को आबादी के उस हिस्से का नि:शुल्क प्रत्यारोपण करना चाहिये जो अधिकांश अंग दान करते हैं।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

गहरे समुद्र में मत्स्य संरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

पर्स सीन फिशिंग, विशेष आर्थिक क्षेत्र, यूएनसीएलओएस, कुल स्वीकार्य फिशिंग

मेन्स के लिये:

पर्स सीन फिशिंग तकनीक और संबंधित चिंताएँ, समुद्री पशु संसाधनों हेतु संरक्षण प्रयास

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने तमिलनाडु के मछुआरों को कुछ प्रतिबंधों के साथ प्रादेशिक जल क्षेत्र (12 समुद्री मील) से परे और विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) (200 समुद्री मील) के भीतर मछली पकड़ने के लिये पर्स सीन फिशिंग तकनीक का उपयोग करने की अनुमति दी है। 

  • यह निर्णय फरवरी 2022 में तमिलनाडु सरकार द्वारा पर्स सीन फिशिंग पर प्रतिबंध लगाने की पृष्ठभूमि में आया है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध को रद्द करते हुए दो दिनों- सोमवार और गुरुवार को सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक मछली पकड़ने के लिये पर्स सीनर को प्रतिबंधित किया है। 

चिंताएँ:

  • अपर्याप्त संरक्षण प्रयास:
    • न्यायालय का आदेश सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के तहत संरक्षण उपायों और दायित्त्वों की तुलना में प्रशासनिक तथा पारदर्शिता उपायों के साथ मछली पकड़ने को विनियमित करने के बारे में अधिक चिंतित है।
    • UNCLOS के तहत तटीय राज्यों को यह सुनिश्चित करने का संप्रभु अधिकार है कि EEZ के जीवित और निर्जीव संसाधनों का उपयोग संरक्षित एवं प्रबंधित हो तथा इनका अतिदोहन न हो। 
    • अतिदोहन को रोकने के लिये तटीय राज्यों को EEZ में कुल स्वीकार्य फिशिंग (TAC) का निर्धारण करना चाहिये।
    • मछली पकड़ने के तरीकों को विनियमित किये बिना दो दिनों के लिये मछली पकड़ने हेतु पर्स सीनर को प्रतिबंधित करना पर्याप्त नहीं है। 
  • पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को खतरा:
    • पारंपरिक फिशिंग उपकरणों का उपयोग करने वाले पारंपरिक मछुआरों के विपरीत पर्स सीनर अत्यधिक मछली पकड़ने की प्रवृत्ति रखते हैं, इस प्रकार पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को खतरे में डालते हैं।
    • यह एक गैर-लक्षित मछली पकड़ने का उपकरण है जो किशोर मछली सहित जाल के संपर्क में आने वाली किसी भी मछली को पकड़ सकता है। नतीजतन, ये समुद्री संसाधनों के लिये बेहद हानिकारक हैं।
  • खाद्य सुरक्षा को खतरा: 
    • एक बड़ी चिंता केरल के मछली खाने वाले लोगों के पसंदीदा तेल सार्डिन की घटती उपलब्धता है।
    • वर्ष 2021 में केरल ने केवल 3,297 टन सार्डिन पकड़ी, जो वर्ष 2012 के 3.9 लाख टन से अत्यधिक कम थी।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों को खतरा: 
    • पर्स सीन द्वारा गैर-चयनात्मक मछली पकड़ने के तरीकों के परिणामस्वरूप अन्य समुद्री जीवित प्रजातियों (जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हो सकती हैं) के भी पकड़े जाने की आशंका उत्पन्न हो सकती है, जिससे संभावित व्यापार पर प्रतिबंध का खतरा उत्पन्न हो सकता है। 

UNCLOS: 

  • UNCLOS, वर्ष 1982 का एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो समुद्री गतिविधियों के लिये कानूनी ढाँचा स्थापित करता है।
  • इसे लॉ ऑफ द सी के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है- आंतरिक जल, प्रादेशिक समुद्र, सन्निहित क्षेत्र, विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और उच्च समुद्र।
  • यह एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है जो समुद्री क्षेत्रों में राज्य के अधिकार क्षेत्र को लेकर एक रूपरेखा निर्धारित करता है। यह विभिन्न समुद्री क्षेत्रों को एक अलग कानूनी दर्जा प्रदान करता है।
  • यह तटीय राज्यों और महासागरों को नेविगेट करने वालों द्वारा अपतटीय शासन की नींव के रूप में कार्य करता है।
  • यह न केवल तटीय राज्यों के अपतटीय क्षेत्रों को कवर करता है, बल्कि यह पाँच संकेंद्रित क्षेत्रों के भीतर राज्यों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के लिये विशिष्ट मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।

पर्स सीन फिशिंग:

  • पर्स सीन फ्लोटिंग और लीडलाइन के साथ जाल की एक लंबी दीवार (Long Wall ) से बना होता है और इसमें गियर के निचले किनारे पर पर्स के छल्ले लटके होते हैं, जिसके माध्यम से स्टील के तार या रस्सी से बनी एक पर्स लाइन चलती है जो जाल को स्वच्छ रखने में मदद करती है।
  • इस तकनीक को मत्स्यन का कुशल रूप माना जाता है और भारत के पश्चिमी तटों पर व्यापक रूप से स्थापित किया गया है।
  • इसका उपयोग खुले समुद्र में टूना और मैकेरल जैसी एकल-प्रजाति के पेलाजिक (मिडवाटर) मछली के सघन समूह को लक्षित करने हेतु किया जाता है। 

float-line

समुद्री पशु संसाधनों के संरक्षण के प्रयास: 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1989 और 1991 में संकल्प पारित किये:  
    • यह गहरे समुद्र में सभी बड़े पैमाने के पेलाजिक ड्रिफ्ट नेट फिशिंग जहाज़ों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन 2022: 
    • दुनिया के महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और भरण-पोषण की दिशा में वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करना।
  • वन ओशन समिट: 
    • अवैध मत्स्यन को रोकना, शिपिंग को डीकार्बोनाइज़ करना और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना।
  • सदर्न ब्लूफिन टूना (SBT) के संरक्षण हेतु अभिसमय 1993: 
    • इस सम्मेलन का उद्देश्य उचित प्रबंधन के माध्यम से सदर्न ब्लूफिन टूना का संरक्षण और इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना है।
  • लंबे ड्रिफ्ट नेट के साथ मत्स्यन के निषेध हेतु अभिसमय1989: 
    • यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में एक क्षेत्रीय सम्मेलन है जो ड्रिफ्ट नेट फिशिंग जहाज़ों हेतु पोर्ट एक्सेस को प्रतिबंधित करता है। 
  • तरावा घोषणा 1989: 
    • यह बड़े ड्रिफ्ट नेट के उपयोग को प्रतिबंधित करने या कम-से-कम उनके निषेध को बढ़ावा देने हेतु साउथ पैसिफिक फोरम की घोषणा है।

निष्कर्ष: 

गैरेट हार्डिन की 'ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स' की अवधारणा के अनुसार, "समान स्वतंत्रता सभी को बर्बाद कर देती है," संरक्षण प्रयासों में सहयोग और इसका पालन करने के लिये अधिकारियों एवं मछुआरों, विशेष रूप से पर्स सीनर्स को तार्किक रूप में काम करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. गंगा नदी डॉल्फिन की समष्टि में ह्रास के लिये शिकार-चोरी के अलावा और क्या संभव कारण हैं? (2014)

  1. नदियों पर बाँधों और बैराजों का निर्माण
  2. नदियों में मगरमच्छों की समष्टि में वृद्धि
  3. संयोग से मछली पकड़ने वालों के जाल में फँस जाना
  4. नदियों के आसपास के फसलों-खेतों में संलिष्ट उर्वरकों और अन्य कृषि रसायनों का इस्तेमाल

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

  • गंगा नदी डॉल्फिन मुख्य रूप से नेपाल, भारत और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना तथा कर्णफुली-सांगु नदी प्रणाली में पाई जाती है। वे मूलतः देखने में अक्षम होते हैं। इनकी अल्ट्रासोनिक ध्वनियों से मछली और अन्य शिकार उछल कर बाहर आ जाते हैं और ये उनका शिकार अपने मस्तिष्क में बनी छवि के आधार पर करते हैं।
  • WWF-इंडिया द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, गंगा नदी डॉल्फिन की समष्टि में गिरावट के कारण निम्नलिखित हैं:
  • नदियों पर बाँधों और बैराजों का निर्माण; अतः कथन 1 सही है।
  • मछली पकड़ने वालों के जाल में फँस जाना, अतः कथन 3 सही है।
  • नदियों के आस-पास संलिष्ट उर्वरकों और अन्य औद्योगिक प्रदूषकों का उपयोग। अतः कथन 4 सही है।
  • गंगा नदी डॉल्फिन की समष्टि में गिरावट के कारणों में नदियों में मगरमच्छों की बढ़ती आबादी का उल्लेख नहीं है। अत: कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न: नीली क्रांति को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्य पालन विकास की समस्याओं और रणनीतियों की व्याख्या कीजिये। (2018)

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री स्थानिक योजना ढाँचा

प्रिलिम्स के लिये:

MSP ढाँचा, ब्लू इकॉनमी, विशेष आर्थिक क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

सरकार की नीतियाँ एवं हस्तक्षेप, महासागरों का महत्त्व, भारत-नॉर्वे सहयोग

चर्चा में क्यों?

पुद्दुचेरी ने भारत-नॉर्वे एकीकृत महासागर पहल के तहत एक समझौते के हिस्से के रूप में देश की पहली समुद्री स्थानिक योजना (MSP) का ढाँचा निर्धारित किया है।

  • भारत और नॉर्वे के बीच वर्ष 2019 के समझौता ज्ञापन (MoU) के बाद पुद्दुचेरी और लक्षद्वीप के समुद्र तटों को MSP पहल के लिये चुना गया था।

समुद्री स्थानिक योजना:

  • MSP एक पारिस्थितिकी तंत्र आधारित स्थानिक नियोजन प्रक्रिया है जो वर्तमान और पूर्वानुमानित महासागर एवं तटीय उपयोगों का विश्लेषण करके विभिन्न गतिविधियों के लिये सबसे उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करती है।
  • यह समाज को सार्वजनिक नीति प्रक्रिया प्रदान करती है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि समुद्र एवं तटों को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों हेतु निरंतर उपयोग के लिये संरक्षित किया जाए।

ढाँचे के संदर्भ में: 

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR), राष्ट्रीय सतत् ​​तटीय प्रबंधन केंद्र (National Centre for Sustainable Coastal Management- NCSCM)), पुद्दुचेरी कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी और विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण विभाग, पुद्दुचेरी द्वारा नॉर्वेजियन पर्यावरण एजेंसी के सहयोग से MSP के कार्यान्वयन की देख-रेख की जाती है।
  • तटीय क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दोनों देशों ने समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये निरंतर सहायता प्रदान करने पर सहमति जताई है।
  • लक्षद्वीप और पुद्दुचेरी में प्रायोगिक परियोजना के सफल कार्यान्वयन के बाद इस ढाँचे को देश के अन्य तटीय क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।

MSP ढाँचे का महत्त्व:

  • पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण: इसका उद्देश्य सामाजिक समता और समावेश के सिद्धांतों के अनुरूप एक साथ समुद्र के स्वास्थ्य एवं आर्थिक विकास को बढ़ाना है।
  • महत्त्वपूर्ण सरकारी उपकरण: यह पर्यावरणीय रूप से अस्थिर "ब्राउन इकोनॉमी" के बजाय सतत् और न्यायसंगत महासागर संसाधन प्रबंधन की विशेषता वाली ब्लू इकॉनमी के उद्भव को सुनिश्चित करने हेतु एक उपकरण है।
  • परस्पर विरोधी हितों को संतुलित करने का उपकरण: इसका उपयोग तटीय भूमि और समुद्री जल के उपयोग के संदर्भ में मछुआरा समुदायों की आजीविका संबंधी चिंताओं के साथ पर्यटन विकास की मांगों को संतुलित करने के लिये किया जा सकता है।
  • ब्लू इकॉनमी नीति के अनुरूप: यह नीति समुद्री जैवविविधता को संरक्षित करते हुए सकल घरेलू उत्पाद में तटीय क्षेत्रों के योगदान को बढ़ाने का प्रयास करती है।
    • वर्तमान में ब्लू इकॉनमी भारत की अर्थव्यवस्था का 4.1% है। 
  • विशाल तटरेखा: लगभग 7500 किलोमीटर की तटरेखा के साथ पर्यावरणीय ज़िम्मेदारियों और आर्थिक विकास के अवसरों के संबंध में भारत की एक अनूठी समुद्री स्थिति है।

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow