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डेली न्यूज़

  • 17 Feb, 2020
  • 66 min read
भूगोल

अंटार्कटिका में भारतीय वैज्ञानिक अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये:

अंटार्कटिका में भारतीय मिशन

मेन्स के लिये:

भारत के लिये अंटार्कटिका का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक भारतीय वैज्ञानिक दल अंटार्कटिका के अध्ययन के लिये दक्षिण महासागर में पहुँचा।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय वैज्ञानिक दक्षिण अफ्रीकी समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत (Vessel) एसए अगुलहास (SA Agulhas) से इस मिशन पर गए हैं।
  • भारतीय वैज्ञानिकों का यह दल दक्षिण महासागर के 2 महीने के अभियान के लिये मॉरीशस के पोर्ट लुईस बंदरगाह से 11 जनवरी 2020 को रवाना हुआ जिसमें 34 भारतीय वैज्ञानिक शामिल हैं।
  • वर्तमान में यह पोत अंटार्कटिका में भारत के तीसरे स्टेशन ‘भारती’ के तटीय जल क्षेत्र प्राइड्ज़ खाड़ी (Prydz Bay) में पहुँचा है।
  • यह दक्षिण महासागर या अंटार्कटिक महासागर के लिये भारत का 11वाँ अभियान है, जबकि पहला अभियान दल वर्ष 2004 में भेजा गया।

अभियान का उद्देश्य:

  • नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च केंद्र (NCOPR) गोवा के नेतृत्व में 18 संस्थानों से मिलकर बनी एक टीम क्रूज ट्रैक (Cruise Track) के लगभग समानांतर 60 स्टेशनों से हवा और जल के नमूने एकत्र कर रही है। इन नमूनों के अध्ययन से इस दूरस्थ वातावरण के समुद्र और वायुमंडल की स्थिति की बहुमूल्य जानकारी मिलेगी जो जलवायु पर दक्षिण महासागर के प्रभावों को समझने में मदद करेगा।
  • इस अभियान में भारतीय मानसून जैसी वृहद् पैमाने पर होने वाली मौसमी घटनाओं में परिवर्तन तथा इन परिवर्तनों के प्रभावों की पहचान करना शामिल है।
  • इस अध्ययन का उद्देश्य मुख्यतया दक्षिण महासागर की पारिस्थितिकी तथा वायुमंडलीय परिवर्तन और उष्णकटिबंधीय जलवायु व मौसम पर इसके प्रभावों का अध्ययन करना है।
  • यह अभियान इन क्षेत्रों में CO2 आगत-निर्गत अनुपात चक्र को बेहतर तरीके से समझने में सहायता करेगा।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) चक्र:

  • उत्सर्जित CO2 वायुमंडल में प्रवेश करती है, जहाँ से वायुमंडलीय परिसंचरण के माध्यम से यह अंटार्कटिक और कम ध्रुवीय तापमान वाले क्षेत्रों में पहुँचती है।
  • चूँकि इन क्षेत्रों का तापमान बहुत कम होता है, अतः ये गैसें यहाँ अवशोषित होकर घुलनशील अकार्बनिक कार्बन या कार्बनिक कार्बन में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • यहाँ से CO2 जलराशि (Water Masses) जल परिसंचरण द्वारा पुनः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पहुँचती है जहाँ यह गर्म होकर पुनः वायुमंडल में प्रवेश करती है।
  • सभी महासागर आपस में दक्षिण महासागर में मिलते हैं, ये महासागर ऊष्मा जैसे कारकों के परिवहनकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं। ये महासागर ऊष्मा को संतुलित करने वाली कन्वेयर बेल्ट (Conveyor Belt) के माध्यम से दक्षिण महासागर से जुड़ी हैं जो यह समझने में मदद करेगा कि मानवजनित कारणों से जलवायु कैसे प्रभावित होती है।
  • इस अभियान की 4-5 मुख्य प्राथमिकताएँ हैं जिनमें इस समझ को व्यापक करने का प्रयास करना है कि जलवायु प्रणाली महासागरों से कैसे प्रभावित होती है। यहाँ ध्यान देने योग्य यह तथ्य है कि वर्तमान में इस बात के पर्याप्त आँकड़े मौजूद हैं कि दक्षिणी महासागर एक अलग वातावरण नहीं है और वह विश्व के अन्य भागों को भी प्रभावित कर रहा है।

अभियान में शामिल परियोजनाएँ: इस अभियान में मुख्यतः निम्नलिखित 6 परियोजनाओं का अध्ययन किया जाएगा।

1. जलगतिकी और जैवभूरसायन (Hydrodynamics and Biogeochemistry):

  • हिंद महासागर क्षेत्र में जलगतिकी और जैवभूरसायन का अध्ययन किया जाएगा, जहाँ अलग-अलग गहराई से सागरीय पानी के नमूने लिये जाएंगे। यह अंटार्कटिक के अगाध सागरीय जल की संरचना को समझने में मदद करेगा।

2. ट्रेस गैसों का अवलोकन (Observations of Trace Gases):

  • महासागर से वायुमंडल में प्रवेश करने वाली हैलोजन और डाइमिथाइल सल्फर जैसी ट्रेस गैसों का अवलोकन किया जाएगा जो वैश्विक मॉडलों में उपयोगी मापदंडों को बेहतर बनाने में मदद करेगा।

3. कोकोलिथोपर्स जीवों का अध्ययन (Study of Organisms called Coccolithophores):

  • कोकोलिथोपर्स कई मिलियन वर्षों से महासागरों में मौजूद हैं जहाँ तलछट में उनकी सांद्रता पुरा- जलवायु को समझने में मदद करेगी।

4. एरोसोल और उनके प्रकाशकी व विकिरण गुण (Aerosols and their Optical and Radiative Properties):

  • इनका निरंतर मापन पृथ्वी की जलवायु पर इनके प्रभाव को समझने में मदद करेगा।

5. भारतीय मानसून पर प्रभाव (Impact on Indian Monsoons):

अभियान में भारतीय मानसून पर दक्षिणी महासागर के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा जो मुख्यतः सागरीय तल से ली गई तलछट कोर (Sediment Core) पर आधारित होगा।

तलछट कोर:

यह एक प्रकार का चट्टानीय नमूना होता है जो अलग-अलग कालक्रम की तलछटों को विभिन्न स्तरीय परतों के रूप में संरक्षित रखता है (युवा तलछट शीर्ष पर और पुराने तलछट नीचे )।

6. खाद्य जाल की गतिकी (Dynamics of the Food Web):

  • दक्षिणी महासागर में खाद्य जाल की गतिशीलता का अध्ययन करना ताकि सतत् मत्स्यपालन को बढ़ावा मिल सकेगा।

अभियान की अब तक की प्रगति:

मिशन ने दक्षिणी महासागर के बड़े तलछट कोरों में से एक, 3.4 मीटर लंबाई का तलछट कोर की खोज की है जो कि 30,000 से एक मिलियन वर्ष पुराना हो सकता है। तलछट कोर न केवल पुरा-जलवायु को अपितु भविष्य के जलवायु परिवर्तनों को भी समझने में मदद करता है।

पुरा-जलवायविक अध्ययन (Paleoclimate Studies):

दक्षिणी महासागर के तलछट कोर, अंटार्कटिका की झीलें, फियोर्ड तट जैसे प्राकृतिक अभिलेखागार का उपयोग अलग-अलग कालानुक्रम की जलवायु परिवर्तनशीलता का अध्ययन करने के लिये किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

जलवायु परिवर्तन पर भारत व नार्वे का संयुक्त वक्तव्य

प्रीलिम्स के लिये

COP-13, समुद्री प्लास्टिक कचरा, माइक्रोप्लास्टिक

मेन्स के लिये

समुद्री प्लास्टिक कचरा व माइक्रोप्लास्टिक के दुष्प्रभाव

चर्चा में क्यों?

17-22 फरवरी 2020 के मध्य गुजरात के गांधीनगर में आयोजित COP-13 सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारत ने नार्वे के साथ समुद्री प्लास्टिक कचरे (Marine Plastic Litter) और माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) को कम करने की दिशा में सहयोग हेतु एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया हैं।

प्रमुख बिंदु

  • जैव विविधता पर ‘सुपर ईयर 2020’ के प्रारंभ होने पर दोनों देशों ने 2020 को जलवायु परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण कार्रवाइयों के दशक के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
  • दोनों देशों ने महासागरीय जलवायु परिवर्तन संबंधी मामलों समेत पर्यावरण और जलवायु पर पारस्परिक लाभकारी सहयोग जारी रखने तथा इसे और मज़बूत करने की इच्छा व्यक्त की है।
  • जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण को लक्षित करने वाले कार्य विजयी स्थिति निर्मित करते हैं। दोनों पक्षों ने माना कि इस तरह के कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, और इस एजेंडे को बढ़ाने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
  • दोनों देशों का मानना है कि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) के उपयोग को बढ़ाने के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किये गए किगाली संशोधन सदी के अंत तक 0.40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को बढ़ने से रोक सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन की दिशा में नार्वे द्वारा समर्थित परियोजनाओं के कुशलतम परिणामों को देखते हुए इन परियोजनाओं को जारी रखने पर सहमति हुई।
  • यदि महासागरीय संसाधनों को ठीक से प्रबंधित किया जाता है, तो महासागर सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखते हैं। एकीकृत महासागर प्रबंधन एक स्थायी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नीली अर्थव्यवस्था

  • विश्व बैंक के अनुसार, महासागरों के संसाधनों का उपयोग जब आर्थिक विकास, आजीविका तथा रोज़गार एवं महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है तो वह नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के अंतर्गत आता है।
  • नीली अर्थव्यवस्था को प्रायः मरीन अर्थव्यवस्था, तटीय अर्थव्यवस्था एवं महासागरीय अर्थव्यवस्था के नाम से भी पुकारा जाता है।
  • नीली अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि, रोज़गार के अवसर में तेजी लाने की क्षमता है। यह नई औषधियों, कीमती रसायनों और प्रोटीन फूड का पता लगाने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जानकारी देती है।
  • भारत के लिये नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व काफी अधिक है। भारत समुद्री अधोसंरचना, अंतर्देशीय जलमार्गों तथा तटीय शिपिंग इत्यादि का विकास कर रहा है। इसके लिये भारत ने ‘सागरमाला कार्यक्रम’ लॉन्चकिया है। जिसका उद्देश्य समुद्री लाॅजिस्टिक्स तथा बंदरगाहों का विकास करना है।
  • वर्ष 2019 में दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने भारत-नार्वे महासागर वार्ता में सतत विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर संयुक्त कार्य बल की स्थापना को लेकर सहमति व्यक्त की थी।
  • दोनों देशों ने रसायनों और कचरे के स्थायी प्रबंधन के महत्व को स्वीकार किया तथा भारत और नॉर्वे के बीच स्टॉकहोम कन्वेंशन द्वारा जैविक प्रदूषकों पर कार्यान्वयन और समुद्री कचरे के न्यूनीकरण पर संतुष्टि व्यक्त की।
  • दोनों देशों ने समुद्री प्लास्टिक कचरे और माइक्रोप्लास्टिक की वैश्विक और तात्कालिक प्रकृति की एक साझा समझ विकसित करने पर जोर देते हुए रेखांकित किया कि इस मुद्दे को अकेले किसी एक देश द्वारा हल नहीं किया जा सकता है।
  • वे प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिये वैश्विक कार्रवाई का समर्थन करने और प्लास्टिक प्रदूषण पर एक नया वैश्विक समझौता स्थापित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • दोनों देशों ने प्रवासी प्रजातियों तथा जंगली जानवरों के संरक्षण पर चर्चा की।

काॅप-13 (COP-13)

  • गुजरात के गांधीनगर में 17-22 फरवरी, 2020 तक 13वें संयुक्त राष्ट्र प्रवासी पक्षी प्रजाति संरक्षण सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का संक्षिप्त नाम CMS-COP-13 (13th Conference of Parties (COP) of the Convention on Conservation of Migratory Species of Wild Animals) है।
  • भारत को अगले तीन वर्ष के लिये इस कांफ्रेंस का अध्यक्ष चुना गया है। इस सम्मेलन में 130 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। इस सम्मेलन के लिये ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोदावण) को शुभंकर बनाया गया है।
  • COP-13 माइग्रेटरी स्पीसीज़ कनेक्ट द प्लैनेट एंड वी वेलकम देम होम (Migratory species Connect the Planet and we welcome them home) की थीम के साथ आयोजित किया गया है।

प्रवासी वन्यजीवों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये सम्मेलन (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS)

  • CMS संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे बाॅन कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है।
  • CMS का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव जंतुओं का संरक्षण करना है। इस कन्वेंशन द्वारा अप्रवासी वन्यजीवों तथा उनके प्राकृतिक आवास पर विचार विमर्श के लिये एक वैश्विक प्लेटफार्म तैयार होता है।
  • इस संधि पर वर्ष 1979 में जर्मनी के बाॅन में हस्ताक्षर किये गए थे। यह संधि वर्ष 1983 में लागू हुई थी।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

माधव राष्ट्रीय उद्यान में विस्थापन संबंधी मुद्दा

प्रीलिम्स के लिये:

माधव राष्ट्रीय उद्यान

मेन्स के लिये:

माधव राष्ट्रीय उद्यान में विस्थापन संबंधी मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के माधव राष्ट्रीय उद्यान (Madhav National Park) में भूमि अतिक्रमण के मामले सामने आए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • माधव राष्ट्रीय उद्यान की तरफ से दावा किया गया है कि बाघ गलियारे के निर्माण हेतु ज़मीन अधिग्रहण किये जाने के कारण 20 वर्ष पहले विस्थापित हुए 39 आदिवासी परिवारों को आवंटित करने के लिये भूमि उपलब्ध नहीं है।
  • हालाँकि सैकड़ों अन्य लोग जिन्हें ज़मीन खाली करने पर मुआवज़ा दिया गया, वे अभी भी वहाँ कृषि कार्यों में संलग्न हैं तथा संबंधित बाघ गलियारे की भूमि का अतिक्रमण कर रहे हैं।
  • अक्तूबर, 2019 में माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी के मुख्य वन संरक्षक ने अपने एक पत्र में बताया कि कई लोगों ने मुआवज़ा प्राप्त करने के बाद भी गलियारे की ज़मीन खाली नहीं की और कई अतिक्रमण जारी रखा है जबकि कई विस्थापितों ने इस ज़मीन पर फिर से खेती करना प्रारंभ कर दिया है।
  • 77 परिवारों ने मुआवज़ा लेने से इनकार कर दिया तथा इस ज़मीन पर पुनः कृषि कार्य प्रारंभ कर दिया।

पृष्ठभूमि:

  • इस राष्ट्रीय उद्यान के बाघ गलियारे के अंतर्गत 15 गाँव आते हैं जहाँ बाघों को आखिरी बार 1970 के दशक में देखा गया था।
  • इन गाँवों में से 10 गाँवों को वर्ष 2000 में दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया था।
  • जबकि बचे हुए 468 परिवारों में से 391 ने मुआवज़ा स्वीकार कर लिया और कई व्यक्तियों ने अपनी भूमि को छोड़ने से इनकार कर दिया।

पुनर्वास पैकेज और उससे संबंधित समस्या?

  • पुनर्वास पैकेज के रूप में प्रत्येक परिवार के लिये दो हेक्टेयर भूमि और पुनर्वास का वायदा किया गया था।
  • जब बालापुर नामक गाँव के ग्रामीणों को स्थानांतरित किया जा रहा था, तब अधिकारियों ने 61 परिवारों को गलती से राजस्व भूमि के बदले वन भूमि आवंटित कर दी थी।
  • अतः सरकार ने 39 स्थानांतरित परिवारों के लिये भूमि आवंटन की प्रक्रिया रोक दी, जो अभी भी दो हेक्टेयर भूमि के आवंटन की प्रतीक्षा में हैं।
  • राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से लंबित जमीन की अधिसूचना वापस लेने की मांग की है।

जनजातीय संवेदनशीलता:

  • विस्थापित 39 सहरिया जनजाति के परिवारों के पुरुष, विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह जो कि पारंपरिक रूप से वन उपज और खेती पर निर्भर हैं, ने अवैध रूप से संचालित पत्थर की खदानों में काम करना प्रारंभ कर दिया, जिसके कारण वे तपेदिक रोग से पीड़ित हो गए तथा कई की मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरुप लगभग 15 महिलाएँ विधवा हो गईं।
  • इस स्थिति को देखकर मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने सभी ज़िला प्राधिकरणों को उनके परिवारों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।

विधवाओं का गाँव:

  • इस क्षेत्र में उपस्थित बुरी बड़ोद गाँव जिसे विधवाओं के गाँव की संज्ञा दी जाती है, के निवासियों ने लंबित कृषि भूमि के आवंटन की मांग करते हुए यह भी कहा है कि आवंटित भूमि पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होने के कारण कृषि योग्य नहीं है।
  • इन विस्थापितों ने उपजाऊ और खेती योग्य भूमि की मांग करते हुए तर्क दिया है कि ये लोग जंगल में तेंदू पत्ते, महुआ और गोंद से अपनी आजीविका चला लेते थे परंतु अब ये लोग कृषि मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये पलायन को बाध्य हैं।

माधव राष्ट्रीय उद्यान:

  • माधव राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश में शिवपुरी शहर के पास ऊपरी विंध्यन पहाड़ियों के एक हिस्से के रूप में स्थित है।
  • यह राष्ट्रीय उद्यान मुगल सम्राटों और ग्वालियर के महाराजा का शिकार-स्थल था।
  • इसे वर्ष 1958 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया गया।
  • इस उद्यान में पारिस्थितिकी तंत्र के विविध आयाम जैसे-झीलें, जंगल और घास के मैदान शामिल हैं।
  • इस उद्यान में नीलगाय, चिंकारा और चौसिंगा जैसे एंटीलोप (Antelope) तथा चीतल, सांभर और बार्किंग डीयर (Barking Deer) जैसे मृग पाए जाते हैं।
  • इस राष्ट्रीय उद्यान में तेंदुआ, भेड़िया, सियार, लोमड़ी, जंगली कुत्ता, जंगली सुअर, साही, अजगर आदि जानवर भी देखे जा सकते हैं।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

साक्षी के रूप में बच्चों की उपस्थिति संबंधी दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये

CAA, किशोर न्याय अधिनियम, पाॅक्सो एक्ट

मेन्स के लिये

बच्चों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक के बीदर शहर में स्थित एक स्कूल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act-CAA) से संबंधित नाटक के मंचन के कारण देशद्रोह के आरोपों की जाँच के संदर्भ में उपस्थित बच्चों से पूछताछ की गई।

प्रमुख बिंदु

  • कर्नाटक बाल अधिकार संरक्षण आयोग (Karnataka State Commission for Protection of Child Rights) ने बच्चों से बार-बार पूछताछ करने तथा उनका मानसिक उत्पीड़न करने के कारण ज़िला पुलिस की आलोचना की है।
  • इसके अतिरिक्त कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर उन पुलिसकर्मियों पर विभागीय कार्रवाई की मांग की गई है जिन्होंने स्कूल के बच्चों से उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों की अनुमति लिये बिना साक्षी के रूप में कई बार पूछताछ की।
  • याचिका में यह भी बताया गया कि हथियारों से लैस पुलिसकर्मियों द्वारा बच्चों से की गई पूछताछ भयभीत व भयपूर्ण वातावरण निर्मित करने वाला कार्य था।
  • जनहित याचिका में किशोर न्याय अधिनियम और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार आपराधिक कार्रवाई में नाबालिगों से पूछताछ करने के लिये पुलिस को दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय कानून 

  • भारत, वर्ष 1992 से बाल अधिकारों पर निर्मित अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है, जिसे वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अपनाया गया था।
  • अभिसमय में कहा गया है कि सार्वजनिक, निजी या सामाजिक कल्याणकारी संस्थानों, विधि न्यायालयों, प्रशासनिक अधिकारियों या विधायी निकायों द्वारा बच्चों के संरक्षण के लिये किये जाने वाले सभी कार्यों में बच्चे के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • वर्ष 2009 में निर्मित ‘बच्चों को साक्षी और बाल पीड़ितों के रूप में न्याय’ उपलब्ध कराने संबंधी संयुक्त राष्ट्र के अभिसमय ने दिशा-निर्देशों के नए मानक प्रदान किये।
  • इसके अनुसार बच्चों से साक्षी के रूप में पूछताछ करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित एक अन्वेषक को बच्चे के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए साक्षात्कार निर्देशित करने के लिये नियुक्त किया जाए।

भारतीय कानून

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-118 के अंतर्गत साक्षी के रूप में प्रस्तुत होने के लिये कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं है।
  • न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णय में तीन वर्ष के बच्चे को यौन शोषण के मामलों में साक्षी के रूप में विचारण न्यायालय (Trial Court) के समक्ष पेश किया गया था ।
  • सामान्यतः विचारण के दौरान साक्षी के रूप में बच्चे के बयान दर्ज करने से पहले न्यायालय तर्कसंगत जवाब देने की उसकी क्षमता का निर्धारण करती है।
  • एक बच्चे की योग्यता निर्धारित करने के लिये आमतौर पर उसका नाम, स्कूल का नाम और उसके माता-पिता के नाम पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • साक्षी के रूप में बच्चों को शामिल करने वाले परीक्षण मुख्य रूप से बाल यौन शोषण के मामलों में हुए हैं। घरेलू हिंसा से संबंधित अन्य अपराधों में भी बच्चों को शामिल किया जा सकता है।

न्यायालयों के निर्णय

  • बच्चों को साक्षी के रूप में प्रस्तुत करते समय दिल्ली उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश आपराधिक न्याय प्रणाली के महत्त्व को रेखांकित करते हैं, जिसमे कहा गया है कि बच्चों के साथ व्यवहार करते समय संवेदनशीलता अतिआवश्यक है।
  • न्यायालय ने बच्चों को सुभेद्य साक्षी (18 वर्ष से कम आयु के बच्चे) माना है, इसलिये इनसे प्रभावी संचार हेतु एक दक्ष अन्वेषक की नियुक्ति को अनिवार्य बताया है।
  • वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि जब बच्चे सामान्य अवस्था में आ जाएँ तो सावधानीपूर्वक जाँच के बाद उनके बयान पर विचार किया जा सकता है।

बच्चों के संरक्षण संबंधी अधिनियम

  • किशोर न्याय अधिनियम:
    • यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों को साक्षी के रूप में पूछताछ या साक्षात्कार से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान नहीं करता है।
    • हालाँकि अधिनियम की प्रस्तावना के अनुसार बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए मामले के निपटान में ‘बाल-सुलभ दृष्टिकोण’ का पालन किया जाना चाहिये ।
    • इसका मतलब है कि किशोर न्याय प्रणाली से संबंधित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिये, बच्चों के साथ संवाद करते समय पुलिसकर्मी को पुलिस वेश-भूषा में नहीं होना चाहिये ।
    • साथ में यह भी आवश्यक है कि बच्चों के साथ संवाद पुलिस की विशेष इकाइयों द्वारा किया जाना चाहिये, जो उनके साथ संवेदनशील व्यवहार करने के लिये प्रशिक्षित हैं।
    • अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन किया जाना चाहिये।
    • अधिनियम में प्रत्येक ज़िले में एक बाल कल्याण समिति बनाए जाने का भी प्रावधान है। जिसका कार्य बच्चों के संरक्षण से संबंधित किसी नियम के उल्लंघन का तुरंत संज्ञान लेना है।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम का संक्षिप्त नाम पाॅक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) है।
    • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हितों और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
    • अधिनियम में बच्चों से साक्षी के रूप में संवाद करने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण निर्देश दिये गए हैं।
    • अधिनियम में कहा गया है कि संवाद सुरक्षित, तटस्थ, बच्चों के अनुकूल वातावरण में आयोजित किये जाने चाहिये तथा बच्चों से एक ही प्रश्न को कई बार पूछकर उनका मानसिक शोषण नहीं करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण

प्रीलिम्स के लिये:

CAT का सम्मेलन

मेन्स के लिये:

CAT से संबंधित मुद्दे:

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण’ (Central Administrative Tribunal-CAT) का अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • इस एक दिवसीय सम्मेलन में CAT की सभी 17 न्यायपीठों के न्यायिक तथा प्रशासनिक सदस्यों ने भाग लिया।
  • CAT बार एसोसिएशन के सदस्यों और प्रख्यात न्यायविदों ने अधिकरण से विभिन्न मुद्दों के साथ ही 2020 में अधिकरण की प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श किया।

चर्चा के प्रमुख मुद्दे:

  • इस सम्मेलन में CAT की संरचनात्मक व संस्थागत समस्याएँ, अन्य कानूनी प्रणालियों पर CAT के कामकाज का प्रभाव, अधिकरण की कार्यप्रणाली जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिये दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया।
  • उपर्युक्त मुद्दों के अलावा अधिनिर्णयन गुणवत्ता व निपटान-दर में सुधार के उपायों की पहचान करना, सदस्यों की सेवा शर्तों पर विचार, अधिकरण की न्यायपीठ की अवसंरचना आदि पर चर्चा की गयी

अधिकरण की उपलब्धियाँ:

  • सदस्यों की कमी के बावजूद मामलों के निपटान में CAT की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • CAT के अनेक निर्णय, देश में सेवा क्षेत्र के विकास की दिशा में मील के पत्थर साबित हुए हैं।

नवीन पहलों की आवश्यकता: सम्मेलन में निम्नलिखित पहलों की आवश्यकता पर बल दिया गया है जहाँ अविलंब सुधार करना है:

  • CAT को आंतरिक न्यायिक अधिप्रभाव मूल्यांकन (In-house Judicial Impact Assessment) की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में अधिकांश कानून अस्पष्टता के दायरे में हैं जहाँ शासन में अधिक पारदर्शिता व सरकार के प्रति प्रतिबद्धता के लिये न्याय-शास्त्र की शिक्षा व प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यक है।
  • अधिकरण के कामकाज में तेज़ी लाने के लिये कृत्रिम-बुद्धिमता के उपयोग की आवश्यकता है।
  • 'अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार' (Maximum Governance, Minimum Government) के प्रति प्रतिबद्धता की ज़रूरत है।
  • ‘प्रदर्शन, सुधार और कायाकल्प’ (Perform, Reform, and Transform) सिद्धांत की प्राप्ति की दिशा में सेवा शर्तों के विभिन्न पहलुओं में सुधार लाने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • CAT पिछले कुछ वर्षों में शिकायत-मुक्त सेवा वितरण प्रणाली की प्राप्ति की दिशा में सरकार का एक आवश्यक अंग रहा है और इसी दिशा में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम तथा अन्य सेवाओं के मामलें में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए हैं।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण के सदस्यों की सेवा शर्तों के बारे में बताते हुए इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सदस्यों का कार्यकाल पर्याप्त अवधि का होना का होना चाहिये।
  • सेवा संबंधी मामलों में मुकदमेबाजी वर्तमान में काफी बढ़ गई है। CAT में लगभग 50,000 मामले लंबित हैं, अतः मामलों में कमी लाने के लिये निर्णय स्पष्ट, तर्कपूर्ण और संक्षिप्त होने चाहिये तथा न्यायिक आदेशों को सभी तथ्यों, संबंधित कानूनों और पूर्ववर्ती फैसलों को ध्यान में रखकर जारी करना चाहिये।

सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training-DoPT) के समन्वय से इन सुझावों को आगे बढ़ाया जाएगा।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

COVID-19 से बचाव के लिये प्लाज़्मा थेरेपी

प्रीलिम्स के लिये:

कोरोनावायरस, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 से बचाव के लिये प्लाज़्मा थेरेपी से संबंधित विभिन्न तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के शोधकर्त्ताओं द्वारा COVID-19 से प्रभावित रोगियों के उपचार के लिये एक विशेष प्लाज़्मा तैयार किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • COVID-19 से पीड़ित रोगियों के उपचार के लिये किसी भी निवारक वैक्सीन या विशिष्ट एंटीवायरल की अनुपस्थिति में नोबल कोरोनावायरस SARS-CoV-2 से संक्रमित रोगियों के उपचार के लिये यह प्लाज़्मा उन लोगों से लिया गया है जो कोरोना वायरस से ग्रस्त थे और अब स्वस्थ हो चुके हैं।

COVID-19 से बचाव के लिये प्लाज़्मा:

  • चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग द्वारा इस प्लाज़्मा को एक चिकित्सीय विधि (Therapeutic Method) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर में कोरोनावायरस के लिये बहुत से एंटीबॉडी उत्पन्न हो जाते हैं।
  • इस पद्धति में स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर से इस प्लाज़्मा को प्राप्त किया जाता है तथा रोगी के शरीर में इन्हें प्रविष्ट कराकर उसका उपचार किया जाता है।
  • गंभीर रूप से बीमार रोगियों के उपचार के लिये इन एंटीबॉडी का उपयोग करने से उनके बचने की उम्मीद जगी है।

उपचार:

  • चीन की एक दवा कंपनी ने चिकित्सीय उत्पादों जैसे-प्लाज़्मा और प्रतिरक्षा ग्लोब्युलिन (Globulin) को तैयार करने के लिये कुछ स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर से प्लाज़्मा एकत्र किया।
  • 20 जनवरी 2020 से वुहान में COVID-19 के रोगियों के शरीर से लिये गए प्लाज़्मा से एक दर्जन से अधिक रोगियों का उपचार किया जा रहा है।
  • जिन रोगियों का उपचार प्लाज़्मा थेरेपी द्वारा किया गया, उनमें थेरेपी दिये जाने के 12-24 घंटे बाद नैदानिक लक्षणों में सुधार दिखाई दिया।
  • उपचार के बाद ही रक्त में ऑक्सीजन के संचार में सुधार हुआ और बीमारी बढ़ाने वाले वायरस की संख्या में कमी पाई गई।

पहले भी हो चुके हैं ऐसे प्रयोग:

  • यह पहली बार नहीं है जब स्वस्थ हो चुके रोगियों के प्लाज़्मा का उपयोग वायरस से संक्रमित उन लोगों के उपचार के लिये किया गया है, जिनके लिये दवाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
  • वर्ष 2014 में जब इबोला वायरस से गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया प्रभावित हुए थे तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने इस वायरस से उबरने वाले रोगियों से प्राप्त होने वाले प्लाज़्मा से उपचार किये जाने प्राथमिकता दी थी।

प्रारंभिक परीक्षण:

  • वर्ष 2015 में फरवरी के मध्य और अगस्त की शुरुआत में गिनी में इबोला के रोगियों में किये गए एक परीक्षण में वायरस से उबरने वाले रोगियों से प्राप्त प्लाज़्मा से उपचारित 84 रोगियों में बहुत कम लाभ देखने को मिला।
  • इस प्लाज़्मा से रोगी का उपचार किया जाना एक पुरानी विधि है, इसका उपयोग खसरा, चेचक और रेबीज़ के खिलाफ किया जा चुका है।
  • रेबीज़ के मामले में इस पद्धति को कुत्ते के काटने के बाद और रोग विकसित होने से पहले निष्क्रिय टीकाकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है।

अन्य तथ्य:

  • एंटीबॉडी युक्त प्लाज़्मा द्वारा उपचार करने का सबसे अच्छा समय बीमारी विकसित होने से पहले का होता है। यही कारण है कि स्वस्थ हो चुके रोगियों के प्लाज़्मा का उपयोग करने वाली यह पद्धति अन्य वायरल रोगों के लिये लोकप्रिय नहीं है
  • COVID-19 के मामले में जब तक निमोनिया का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

अवर फ्यूचर ऑन अर्थ 2020: रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

‘अवर फ्यूचर ऑन अर्थ’ रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से निपटने वैश्विक प्रयास

चर्चा में क्यों:

हाल ही में ‘फ्यूचर अर्थ’ (Future Earth) नेटवर्क के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISC) के ‘दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज’ द्वारा ‘अवर फ्यूचर ऑन अर्थ-2020 (Our Future On Earth) रिपोर्ट जारी की गई है।

मुख्य बिंदु

  • यह रिपोर्ट 52 देशों के 222 प्रमुख वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण पर आधारित है।
  • यह रिपोर्ट वर्ष 2050 तक ‘कार्बन फुटप्रिंट’ में कमी लाने और वैश्विक तापमान वृद्धि में पूर्व-औद्योगिक स्तर के 2 डिग्री सेल्सियस कम रखने के उद्देश्य से जारी की गई।
  • रिपोर्ट निम्नलिखित पाँच वैश्विक जोखिमों की पहचान करती है:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति शमन और अनुकूलन (Mitigation and Adaptation) की विफलता।
    • चरम मौसमी घटनाएँ।
    • जैव विविधता हानि और पारिस्थितिकी तंत्र का पतन।
    • खाद्यान संकट।
    • जल संकट।
  • रिपोर्ट में इन जोखिम कारकों के परस्पर अंतर्संबंधों के परिणामस्वरूप संभाव्य वैश्विक जलवायु संकट की बात कही गई है और इसके उदाहरण प्रस्तुत किये है। उदाहरणतः अत्यधिक ऊष्म तरंगें (Heat Wave) पारिस्थितिकी तंत्र में संग्रहित कार्बन की बड़ी मात्रा का निष्कासन करके न केवल ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ाती है बल्कि जल व खाद्यान संकट भी उत्पन्न करती है।
  • इसी प्रकार जैव विविधता में हानि से कृषि प्रणालियों की चरम जलवायु घटनाओं से निपटने की क्षमता कमजोर होती तथा इससे खाद्य संकट की सुभेद्यता बढ़ जाती है।

फ्यूचर अर्थ (Future Earth):

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क है जिसका उद्देश्य वैश्विक जलवायु परिवर्तन में मानव की भूमिका की दिशा में समझ में वृद्धि तथा सतत् विकास की दिशा में अनुसंधान को आगे बढ़ाना है।
  • ‘फ्यूचर अर्थ’ की शासन परिषद में बेलमोंट फोरम (Belmont Forum), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU), अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद (ISC), विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और एसटीएस (STS) मंच शामिल है।

रिपोर्ट से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी

1. ऊष्मा में कमी के प्रयास (Dialing Down the Heat):

  • सभी वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु किये जाने वाले प्रयासों का समय लगातार घटता जा रहा है, क्योंकि वर्तमान प्रयास इस दिशा में पर्याप्त नहीं है।
  • यथा हाल ही में 700 से अधिक शहरों, राज्यों और सरकारों के नेताओं को जलवायु संकट या जलवायु आपातकाल की घोषणा करने के लिये प्रेरित किया है।
  • फिर भी वर्ष 2019 के दौरान वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 415 PPM (Parts Per Million) से अधिक पाई गई साथ ही वर्ष 1880 के बाद वर्ष 2014-2018 के बीच पाँच वर्षों की अवधि में स्थल और सागर दोनों ही सबसे अधिक गर्म रहे हैं।

2. लोकलुभावन नीतियाँ बनाम ज़मीनी आंदोलन (Populism Versus Grassroots Movements):

  • जलवायु परिवर्तन के खिलाफ चलने वाले आंदोलन, दक्षिणपंथी लोकलुभावनवादी राजनीति, आर्थिक क्षेत्र में गिरावट और बढ़ती असमानता के चलते पर्यावरण संरक्षण के आकांक्षी लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाते।
  • लोकलुभावन राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों के चलते देश की सीमाओं को बाहरी लोगों के लिये बंद करने तथा आप्रवासियों (Immigrants) को अस्वीकार करने पर केंद्रित हैं।
  • ये आन्दोलन जलवायु परिवर्तन संबंधी तथ्यों तथा प्रभावों का खंडन करते हैं।

3. प्राकृतिक क्षेत्रों के संरक्षण की आवश्यकता (Need for conservation of natural areas):

  • हमारे ग्रह के भूमि क्षेत्र का 75% हिस्सा मनुष्य ने अब ‘काफी बदल’ दिया है।
  • पौधे और पशु समूहों की लगभग एक-चौथाई प्रजातियाँ खतरे में हैं।
  • वर्ष 2018 में दुनिया के अंतिम मेल (Male) उत्तरी सफेद गैंडे (Northern White Rhino) की केन्या में मृत्यु हो गई, जबकि ब्राज़ीलियाई नीले तोते स्पिक्स मैकॉ (Spix’s Macaw) को जंगल से विलुप्त घोषित किया गया।
  • इस ग्रह पर जीवन की क्षति को रोकने के लिये संरक्षण के नवीन तरीकों की आवश्यकता होगी।

4. वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर पुनर्विचार (Rethinking Global Food Security):

  • जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, बढ़ती वैश्विक आबादी जैसे विभिन्न कारकों के कारण खाद्य उत्पादन पर दबाव बढ़ने की आशंका है।

5. दुष्प्रचार को रोकना (Industrializing Disinformation):

  • दुनिया में सूचना का प्रवाह प्रारूप बदल रहा है, क्योंकि आज ग्रह के 7.6 बिलियन लोगों में से लगभग आधे लोगों के पास ऑनलाइन सुविधा हैं, वे सोशल मीडिया, सर्च इंजन और ई-कॉमर्स एल्गोरिदम (Algorithms) आदि से गहराई से प्रभावित हैं।
  • ये ‘डिजिटल प्लेटफॉर्म’, भावनाओं को तर्क (Reason) के साथ जोड़ने के अनुरूप तैयार की गई जानकारी को महत्त्व देते हैं जो ‘फ़ेक समाचार’ (Fake News) के प्रचार का कारण बन सकते हैं, चूँकि ‘फ़ेक समाचार’ छह गुना तेज़ी और 100 गुना से अधिक लोगों तक पहुँच सकती है।
  • यह विश्वास-क्षरण (Erosion of Trust) करके सामाजिक-हानि कर सकता हैं। अतः मिडिया यहाँ प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

6. पर्यावरणीय स्वास्थ्य और शिक्षा (Environmental Health and Education):

  • माध्यमिक शिक्षा के अंतिम चार वर्ष, बच्चों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये एक उचित आधार प्रदान कर सकते हैं।
  • ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में स्कूल स्तर पर पर्यावरणीय स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रश्न को संबोधित किया जाए, इसके बिना कोई भी सरकारी नियम और नीतियाँ मददगार नहीं हो सकती हैं।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

GISAT-1 के प्रक्षेपण की तैयारी

प्रीलिम्स के लिये:

GISAT-1 उपग्रह, चंद्रयान- 3, गगनयान, आदित्य एल-1, युवा विज्ञानी कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भू प्रेक्षण उपग्रह का महत्त्व, अंतरिक्ष कूटनीति में इसरो का योगदान, अंतरिक्ष मिशन एवं खोजों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (indian Space Research Organisation- ISRO) एक नए भू प्रेक्षण (Earth Observation- EO) उपग्रह GISAT-1 को मार्च के पहले सप्ताह में लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 2019-20 के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 के दौरान इसरो द्वारा 10 भू प्रेक्षण (Earth Observation) उपग्रहों को भेजे जाने की योजना है।
  • इसरो की वार्षिक योजना के अंतर्गत 36 मिशनों का उल्लेख किया गया है जिसमें एक वर्ष के दौरान उपग्रह और उनके लॉन्चर दोनों के विकास एवं प्रक्षेपण को शामिल किया गया है।
  • चालू वित्त वर्ष 2019-20 में 17 मिशनों को शुरू करने की योजना बनाई गई है और इनमें से 6 मिशनों को 31 मार्च 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • ध्यातव्य है कि इसरो को हाल ही में अगले वित्त वर्ष के लिये लगभग 13,480 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है।

GISAT के बारे में

  • GISAT-1 एक जियो इमेजिंग सैटेलाइट है।
  • यह 36,000 किमी. दूर स्थित भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किये जाने वाले दो योजनाबद्ध भारतीय EO अंतरिक्षयानों में से पहला होगा।
  • इसे एक निश्चित स्थान पर स्थापित किया जाएगा जिससे यह हर समय भारतीय महाद्वीप पर नज़र रख सकेगा। ध्यातव्य है कि अभी तक सभी भारतीय पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को केवल 600 किमी. की दूरी की कक्षा में स्थापित किया जाता था, ये उपग्रह ध्रुव-से-ध्रुव के बीच चक्कर लगाते थे।
  • GISAT-1 को श्रीहरिकोटा उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से लॉन्च किया जा सकता है।
  • इसे GSLV MK II के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाएगा।

GISAT- 1 का महत्त्व

  • GISAT- 1 में पाँच प्रकार के मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरे होंगे जिनकी सहायता से देश के विभिन्न क्षेत्रों की रियल टाइम इमेज प्राप्त की जा सकती है।
  • साथ ही इस उपग्रह की सहायता से देश की भौगोलिक स्थिति में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की निगरानी भी की जा सकती है।
  • भू प्रेक्षण उपग्रह का उपयोग मुख्य रूप से भूमि एवं कृषि संबंधी निगरानी के लिये किया जाता है किंतु सेना के लिये सीमा की निगरानी करने हेतु इसके द्वारा ली गई इमेजेस का भी बहुत महत्त्वपूर्ण उपयोग है। ध्यातव्य है कि RISAT जैसे उपग्रह, जो सिंथेटिक एपर्चर रडार से लैस होते हैं, सुरक्षा एजेंसियों को 24-घंटे सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करते हैं।

ISRO-GSLV

अंतरिक्ष में भारत की वर्तमान स्थिति

  • इसरो के अनुसार, वर्तमान समय में 19 राष्ट्रीय भू प्रेक्षण उपग्रह, 18 संचार उपग्रह और 8 नौपरिवहन उपग्रहों (Navigation Satellites) की सेवा ली जा रही है।
  • ये उपग्रह प्रसारण, टेलीफोनी, इंटरनेट सेवाएँ, मौसम और कृषि से संबंधित पूर्वानुमान, सुरक्षा, आपदा के समय बचाव एवं राहत और स्थान आधारित सेवाएँ प्रदान करते हैं। ध्यातव्य है कि संचार उपग्रहों में से तीन उपग्रह सैन्य संचार और नेटवर्किंग के लिये समर्पित हैं।

इसरो के भविष्य के मिशन

  • 10 भू प्रेक्षण उपग्रहों में से चालू वित्त वर्ष के लिये इसरो ने 6 EO उपग्रह लॉन्च करने का प्रस्ताव दिया था जिनमें से दो उपग्रहों का प्रक्षेपण आगामी कुछ दिनों में किया जाएगा, जबकि आठ EO उपग्रहों को वित्त वर्ष 2021-22 में प्रक्षेपित किये जाने की योजना है।
  • GISAT- 1 के अलावा अंतरिक्ष एजेंसी एकल PSLV लॉन्चर पर एक त्रिगुट के रूप में उच्च रिज़ॉल्यूशन HRSAT की एक नई शृंखला लॉन्च करने की योजना बना रही है।
  • आगामी EO उपग्रहों में रडार इमेजिंग उपग्रह RISAT-2BR2, RISAT- 1A और 2A, ओशनसैट -3 एवं रिसोर्ससैट -3 / 3 एस शामिल हैं।
  • RISAT-2BR2 अपने पूर्ववर्तियों RISAT-2B और RISAT-2B1 के साथ एक ट्रायड बेड़ा बनाएगा जो लगभग 120 डिग्री के आसपास घूमेंगे तथा वे अंतरिक्ष से मौसम, दिन/रात इमेजिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अवलोकन की आवृत्ति में वृद्धि करेंगे।
  • इसरो का एक दशक के भीतर अमेरिका एवं चीन की भाँति स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन विकसित करने का लक्ष्य भी है।
  • इसके अतिरिक्त इसरो के आगामी वर्षों में चंद्रयान- 3, गगनयान, आदित्य L-1 जैसे बड़े एवं महत्त्वाकांक्षी मिशन प्रस्तावित हैं।

इसरो द्वारा प्रस्तावित एवं सक्रिय मिशन का महत्त्व

  • इसके माध्यम से भारत को अंतरिक्ष कूटनीति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया जा सकता है।
  • इसके ज़रिये अंतरिक्ष एवं पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को सुलझाया जा सकता है जिसके उपयोग से भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये उपाय खोजे जा सकते हैं।
  • साथ ही संचार सेवा, सुरक्षा एवं नौवहन तकनीक के उपयोग से राष्ट्र की सीमाओं, मौसम एवं कृषि संबंधी पूर्वानुमान जैसे अनेक क्षेत्रों की निगरानी एवं सुरक्षा संभव है।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित क्रियाकलापों को भारतीय शिक्षा प्रणाली में उचित स्थान दिये जाने की आवश्यकता है तथा युवा विज्ञानी कार्यक्रम (YUVIKA) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान एवं अंतरिक्ष खोजों के प्रति रुचि पैदा करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन के माध्यम से शिक्षा पद्धति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सैद्धांतिक शिक्षा के साथ प्रायोगिक शिक्षा को भी महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों हेतु इसरो को आवंटित धन में वृद्धि की जानी चाहिये ताकि इसरो अपने कार्यक्रमों को बेहतर तरीके से संचालित कर पाए।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

खुदरा भुगतान प्रणाली के लिये नई अम्ब्रेला इकाई

प्रीलिम्स के लिये:

खुदरा भुगतान प्रणाली के लिये नई अम्ब्रेला इकाई, RBI

मेन्स के लिये:

खुदरा भुगतान प्रणाली की समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 500 करोड़ रुपए की न्यूनतम भुगतान पूंजी के साथ खुदरा भुगतान प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने वाली अखिल भारतीय नई अम्ब्रेला इकाई (New Umbrella Entity- NUE) स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • प्रस्तावित इकाई विशेष रूप से खुदरा क्षेत्र में नई भुगतान प्रणालियों की स्थापना, प्रबंधन और संचालन करेगी।
  • ऐसी इकाई कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत भारत में निगमित कंपनी होगी।
  • यह एटीएम, व्हाइट लेबल PoS, आधार-आधारित भुगतान और प्रेषण सेवाएँ, भुगतान विधियों, मानकों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने, संबंधित मुद्दों पर निगरानी रखने तक सीमित नहीं है बल्कि इसके अलावा अन्य समस्याओं को भी ध्यान में रखेगी।
  • RBI ने निदेशकों की नियुक्ति को मंज़ूरी देने के अधिकार के साथ ही NUE के बोर्ड में एक सदस्य को नामित करने का अधिकार बरकरार रखा है।
  • NUE को अपने बोर्ड में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों के लिये उपयुक्त और उचित मानदंडों के साथ-साथ कॉर्पोरेट प्रशासन के मानदंडों के अनुरूप होना चाहिये।

इकाई के कार्य:

  • समाशोधन (Clearing) और निपटान प्रणाली संचालित करना।
  • निपटान, ऋण, तरलता और परिचालन जैसे प्रासंगिक जोखिमों की पहचान एवं प्रबंधन और सिस्टम की अखंडता को बनाए रखना तथा खुदरा भुगतान प्रणाली के विकास की निगरानी करना।
  • इसके अतिरिक्त इसका कार्य आर्थिक धोखाधड़ी (Fraud) से बचने के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुदरा भुगतान प्रणाली के विकास और संबंधित मुद्दों की निगरानी करना है जो कि सामान्य रूप से प्रणाली और अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

इस संदर्भ में RBI की शर्तें

  • NUE की स्थापना के लिये आवेदन में एक विस्तृत व्यवसाय योजना होनी चाहिये जिसमें भुगतान प्रणाली को शामिल करने का प्रस्ताव हो या भुगतान दस्तावेज़ पारिस्थितिकी तंत्र में अपने अनुभव को विधिवत स्थापित करने के लिये अन्य दस्तावेज़ों के साथ संचालित हो।
  • एक अम्ब्रेला इकाई के रूप में अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के संदर्भ में एक प्रस्तावित संगठनात्मक रणनीति भी व्यवसाय योजना में दी जानी चाहिये।
  • RBI के अनुसार, किसी भी प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह को इकाई की पूंजी में 40 प्रतिशत से अधिक निवेश की अनुमति नहीं है।
  • प्रवर्तकों को संस्था की स्थापना के लिये आवेदन करते समय कम-से-कम 10 प्रतिशत (या कम-से-कम 50 करोड़ रुपए) का पूंजी योगदान करना चाहिये।
  • व्यवसाय शुरू होने के 5 साल बाद प्रमोटर या प्रमोटर समूह की हिस्सेदारी कम से कम 25 प्रतिशत तक कम होनी चाहिये।
  • RBI के अनुसार, 300 करोड़ रुपए का न्यूनतम नेटवर्थ हमेशा बना रहना चाहिये।
  • भुगतान प्रणाली ऑपरेटर (Payment System Operator- PSO) या भुगतान सेवा प्रदाता (Payment Service Provider- PSP) या प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता (Technology Service Provider- TSP) के रूप में भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में 3 वर्ष के अनुभव के साथ NUE के लिये प्रमोटर या प्रमोटर समूह के रूप में आवेदन हेतु योग्य इकाई 'निवासियों द्वारा स्वामित्व और नियंत्रित' होनी चाहिये।
  • शेयरधारिता पैटर्न में विविधता होनी चाहिये तथा NUE में भुगतान की गई पूंजी का 25 प्रतिशत से अधिक रखने वाली किसी भी इकाई को प्रवर्तक माना जाएगा।

आगे की राह

  • खुदरा भुगतान प्रणाली से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिये बेहतर एवं परिणामोन्मुख रणनीतियों की आवश्यकता है।
  • नई नीतियों एवं वर्तमान नीतियों का सफल क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है अन्यथा नई नीतियों के निर्माण का कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 फरवरी, 2020

न्यूज़ीलैंड की पहली AI-आधारित पुलिस अधिकारी

हाल ही में न्यूज़ीलैंड पुलिस ने एला (Ella) नाम की अपनी पहली AI-आधारित पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसे वेलिंगटन स्थित पुलिस मुख्यालय में तैनात किया गया है। एला कमोबेश इंसानों की तरह ही दिखती है और इसे विश्व के 26 लोगों की विशेषताओं को मिलाकर तैयार किया गया है। वेलिंगटन स्थित पुलिस मुख्यालय में एला आने वाले लोगों का स्वागत करेगी और आए हुए पुलिसकर्मियों की सूचना भी देगी। एला की कार्यावधि 3 महीनों की है और इस अवधि की समाप्ति के पश्चात् इसकी सेवाओं को जारी रखने या न रखने का निर्णय लिया जाएगा। सरल शब्दों में कहें तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) वह गतिविधि है जिसके माध्यम से मशीनों को बुद्धिमान बनाने का कार्य किया जाता है। वर्ष 1955 में सबसे पहले जॉन मैकार्थी ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस शब्द का इस्तेमाल किया था, इसीलिये इन्हें ‘फादर ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ भी कहा जाता है।

हाफिज़ सईद को सज़ा

पाकिस्तान की एक आतंकवाद रोधी अदालत ने आतंक के वित्तपोषण के मामले में लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक और जमात उद दावा चीफ हाफिज़ सईद को दोषी करार देते हुए 11 वर्ष की जेल की सज़ा सुनाई है। हाफिज़ सईद पर लाहौर और गुजराँवाला में दर्ज दो टेरर फंडिंग मामलों में सज़ा सुनाई गई है। अदालत ने हाफिज़ सईद को दोनों मामलों में साढ़े पाँच- साढ़े पाँच साल की सज़ा सुनाई है जो साथ-साथ चलेंगी। इसके अलावा हाफिज़ सईद पर प्रत्येक मामले में 15,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। विश्लेषकों का मानना है कि हाफिज़ सईद पर यह कार्यवाही FATF के दबाव के कारण की गई है। FATF यानि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। इसका उद्देश्य मनी लॉंड्रिंग, आतंवादियों को वित्तपोषण और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को बचाए रखने से जुड़े खतरों से निपटना है। इन खतरों से निपटने के लिये यह नीतियाँ बनाता है साथ ही यह संस्था इन खतरों से निपटने के लिये कानूनी विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देती है।

भारत का सबसे बड़ा वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र

बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने मुंबई के 90 स्थानों पर वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र (Air Quality Monitoring Network) की स्थापना के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। 90 स्थानों पर वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र की स्थापना के पश्चात् BMC, दिल्ली को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र बन जाएगा, ज्ञात हो कि दिल्ली में मौजूदा समय में 38 मॉनिटर लगे हुए हैं। यह परियोजना BMC और निजी भागीदारों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित की जाएगी और अगले पाँच वर्षों में इसके समाप्त होने की संभावना है। वर्तमान में मुंबई में 30 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन मौजूद हैं, जिनमें से 5 स्टेशन बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के अंतर्गत, 10 स्टेशन सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के अंतर्गत और 15 स्टेशन महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) के अंतर्गत आते हैं।

INS शिवाजी को प्रेसीडेंट्स कलर

हाल ही में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने लोनावाला में INS शिवाजी को प्रेसीडेंट्स कलर (President’s Colour) प्रदान किया। INS शिवाजी को वर्ष 1945 में कमीशन किया गया था। यह भारतीय नौसेना के प्रमुख प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों में से एक है। 75 वर्षों की अपनी सेवा के दौरान INS शिवाजी ने भारतीय नौसेना, तटरक्षक, मित्र देशों के नेवल ऑफिसर को इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण प्रदान प्रदान किया है। INS शिवाजी अब तक भारतीयों और विदेशियों सहित 2 लाख से अधिक सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षण दे चुका है। प्रेसीडेंट्स कलर एक सर्वोच्च सम्मान है जिसे किसी भी सैन्य इकाई को उत्कृष्ट कार्य के लिये राष्ट्रपति की ओर से प्रदान किया जाता है।


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