भारतीय अर्थव्यवस्था
क्रिप्टोकरेंसी का विनियमन
प्रिलिम्स के लिये:क्रिप्टोकरेंसी, अल सल्वाडोर, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड मेन्स के लिये:क्रिप्टोकरेंसी उपयोग के लाभ और इससे संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) क्षेत्र प्रबंधन से संबंधित बैठक की अध्यक्षता की गई। क्रिप्टो बाज़ार की अनियमित प्रकृति का हवाला देते हुए, प्रधानमंत्री द्वारा प्रगतिशील और दूरदर्शी कदम उठाने का आह्वान किया गया।
- फिलहाल भारत में क्रिप्टोकरेंसी हेतु कोई कानूनी विधान नहीं है। भारत में, क्रिप्टोकरेंसी अभी भी अवैध नहीं है। वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में क्रिप्टोकरेंसी के व्यापार पर लगे प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया था, जो भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा लगाया गया था।
- चीन ने अपने यहाँ क्रिप्टोकरेंसी में सभी लेन-देन को अवैध घोषित कर प्रभावी रूप से पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है जबकि अल सल्वाडोर ने बिटकॉइन को कानूनी निविदा प्रदान कर दी है।
प्रमुख बिंदु
- क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े लाभ:
- तीव्र और सस्ते लेन-देन: अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को निष्पादित करने के लिये क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करना सस्ता है क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी में लेन-देन को उनके गंतव्य तक पहुंँचने से पहले बिचौलियों की शृंखला द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है।
- निवेश गंतव्य: क्रिप्टोकरेंसी की आपूर्ति सीमित है- आंशिक रूप से सोने की तरह। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में अन्य वित्तीय साधनों की तुलना में क्रिप्टोकरेंसी की कीमत तेज़ी से बढ़ी है।
- इसके कारण लोगों का झुकाव क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने का अधिक देखा जा सकता है।
- मुद्रास्फीति विरोधी मुद्रा: क्रिप्टोकरेंसी की उच्च मांग के कारण इसकी कीमतें काफी हद तक ‘वृद्धिमान प्रक्षेप वक्र’ (Growing Trajectory) द्वारा निर्धारित होती हैं। इस परिदृश्य में लोग इसे खर्च करने की तुलना में अपने पास रखना अधिक पसंद करते हैं।
- इससे मुद्रा पर अपवस्फीतिकारी प्रभाव (Deflationary Effect) उत्पन्न होगा।
- क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित चिंताएँ:
- विज्ञापन की अत्यधिक संख्या: प्रायः क्रिप्टो बाज़ार को त्वरित लाभ कमाने के तरीके के रूप में देखा जाता है। इसके कारण लोगों को इस बाज़ार में सट्टा लगाने के लिये लुभाने हेतु ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के विज्ञापनों का व्यापक संख्या में प्रयोग किया जा रहा है।
- हालाँकि, चिंता यह है कि इस प्रकार के विज्ञापनों की अत्यधिक संख्या और इनमें मौजूद ‘गैर-पारदर्शीता’ के माध्यम से युवाओं को गुमराह करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
- काउंटरप्रोडक्टिव उत्पाद: इसके परिणामस्वरूप अनियमित क्रिप्टो बाज़ार मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग के मार्ग का निर्माण कर सकते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी बेहद अस्थिर हैं: बिटकॉइन 40,000 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 65,000 अमेरिकी डॉलर (जनवरी से अप्रैल 2021 के बीच) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- फिर मई 2021 में, यह गिर गया और पूरे जून में यह 30,000 अमेरिकी डॉलर से नीचे रहा।
- मैक्रो इकॉनॉमिक और वित्तीय स्थिरता: क्रिप्टो एक्सचेंज के एक समूह के अनुसार, करोड़ों भारतीयों ने क्रिप्टो संपत्ति में 6,00,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
- इस अनियमित परिसंपत्ति वर्ग में भारतीय खुदरा निवेशकों के निवेश जोखिम की सीमा, व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के लिये एक जोखिम है।
- स्टॉक मार्केट के मुद्दे: ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (सेबी) ने इस मुद्दे को हरी झंडी दिखाई है कि क्रिप्टो मुद्राओं के ‘समाशोधन और निपटान’ पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है, और यह प्रतिपक्ष गारंटी की पेशकश नहीं कर सकता जैसा कि शेयरों के लिये किया जा रहा है।
- इसके अलावा, क्या क्रिप्टोकरेंसी एक मुद्रा, वस्तु या प्रतिभूति है, इसे परिभाषित नहीं किया गया है।
- विज्ञापन की अत्यधिक संख्या: प्रायः क्रिप्टो बाज़ार को त्वरित लाभ कमाने के तरीके के रूप में देखा जाता है। इसके कारण लोगों को इस बाज़ार में सट्टा लगाने के लिये लुभाने हेतु ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के विज्ञापनों का व्यापक संख्या में प्रयोग किया जा रहा है।
आगे की राह
- विधायी ढाँचा: भारत ने अभी तक ‘क्रिप्टोकरेंसी और विनियमन आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विधेयक, 2021’ को पेश नहीं किया है, जो ‘आधिकारिक डिजिटल मुद्रा’ के शुभारंभ के लिये नियामक ढाँचा तैयार करेगा।
- इस प्रकार, बिल को पारित करने में तेज़ी लाने और क्रिप्टोकरेंसी से निपटने के लिये एक नियामक ढाँचा तैयार करने की आवश्यकता है।
- वैश्विक सहयोग: क्रिप्टोकरेंसी के ढाँचे के लिये वैश्विक भागीदारी और सामूहिक रणनीतियों की आवश्यकता होगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
आंतरिक विस्थापन
प्रिलिम्स के लिये:UNHCR, शरणार्थी सम्मेलन मेन्स के लिये:आंतरिक रूप से विस्थापन, भारत में आंतरिक विस्थापन के कारक |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR) की एक रिपोर्ट (मिड-ईयर ट्रेंड्स 2021 रिपोर्ट) के अनुसार, वर्ष 2021 के आरंभिक छमाही में संघर्ष और हिंसा के कारण 33 देशों में लगभग 51 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए थे।
- संघर्ष, कोविड -19, गरीबी, खाद्य असुरक्षा और जलवायु आपातकाल के संयोजन ने विस्थापितों की मानवीय दुर्दशा को बढ़ा दिया है, जिनमें से अधिकांश विकासशील क्षेत्रों में रहते हैं।
- अफ्रीका वह क्षेत्र है जो विस्थापित व्यक्तियों की संख्या के मामले में सर्वाधिक संवेदनशील है।
प्रमुख बिंदु
- आंतरिक विस्थापन (अर्थ):
- आंतरिक विस्थापन उन लोगों की स्थिति का वर्णन करता है जिन्हें अपने घर छोड़ने के लिये मज़बूर किया गया है लेकिन उन्होंने अपना देश नहीं छोड़ा है।
- विस्थापन के कारक: प्रत्येक वर्ष लाखों लोग संघर्ष, हिंसा, विकास परियोजनाओं, आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अपने घरों या निवास स्थानों को छोड़कर अपने देशों की सीमाओं के भीतर विस्थापित हो जाते हैं।
- घटक: आंतरिक विस्थापन दो घटकों पर आधारित है:
- यदि लोगों का विस्थापन जबरदस्ती या अनैच्छिक है (उन्हें आर्थिक और अन्य स्वैच्छिक प्रवासियों से अलग करने हेतु);
- यदि व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राज्य की सीमाओं के भीतर रहता है (उन्हें शरणार्थियों से अलग करने हेतु)।
- शरणार्थी से अंतर: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन के अनुसार, "शरणार्थी" एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर अत्याचार किया गया है और अपने मूल देश को छोड़ने के लिये मज़बूर किया गया है।
- शरणार्थी माने जाने की एक पूर्व शर्त यह है कि वह व्यक्ति एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करता हो।
- शरणार्थियों के विपरीत, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का विषय नहीं हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की सुरक्षा और सहायता पर वैश्विक नेतृत्व के रूप में किसी एक एजेंसी या संगठन को नामित नहीं किया गया है।
- हालाँकि आंतरिक विस्थापन पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।
- आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (IDP) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ: IDP को शारीरिक शोषण, यौन या लिंग आधारित हिंसा का खतरा बना रहता है और वे परिवार के सदस्यों से अलग होने का जोखिम उठाते हैं।
- वे प्राय: पर्याप्त आश्रय, भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहते हैं और अक्सर अपनी संपत्ति, भूमि या आजीविका तक अपनी स्थापित पहुँच को खो देते हैं।
- भारत में आंतरिक विस्थापन:
- विस्तार: भारत में IDP की संख्या का अनुमान लगाना लगभग मुश्किल है, क्योंकि इतने बड़े देश में नियमित निगरानी संभव नहीं है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के डेटा के समन्वय के लिये ज़िम्मेदार केंद्रीय प्राधिकरण की कमी है।
- द ग्लोबल रिपोर्ट ऑन इंटरनल डिसप्लेसमेंट, 2020 (GRID-2020) के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में लगभग पाँच मिलियन लोग विस्थापित हुए जो अब तक विश्व भर में सर्वाधिक है।
- नीतिगत ढाँचा: भारत में शरणार्थियों या IDP की समस्या से निपटने के लिये कोई राष्ट्रीय नीति और कानूनी संस्थागत ढाँचा नहीं है।
- भारत ने वर्ष 1951 के कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल की पुष्टि नहीं की है और वह अधिकांश शरणार्थी समूहों को UNHCR तक पहुँच की अनुमति नहीं देता है।
- शरणार्थी मुद्दों की निगरानी के लिये एक स्थायी संस्थागत ढाँचे के अभाव में, शरणार्थी का दर्जा देना राजनीतिक अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है।
- भारत में आंतरिक विस्थापन के कारक:
- अलगाववादी आंदोलन: आज़ादी के बाद से, उत्तर-पूर्वी भारत में दो प्रमुख सशस्त्र संघर्ष हुए हैं - नगा आंदोलन और असम आंदोलन।
- राज्य बलों और आतंकवादियों के बीच जम्मू और कश्मीर के युद्ध के कारण कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था।
- पहचान-आधारित स्वायत्तता आंदोलन: बोडोलैंड, पंजाब, गोरखालैंड और लद्दाख जैसे, पहचान-आधारित स्वायत्तता आंदोलनों ने भी हिंसा और विस्थापन को जन्म दिया है।
- स्थानीय हिंसा: आंतरिक विस्थापन जातिगत विवादों (जैसे-बिहार और उत्तर प्रदेश ), धार्मिक कट्टरवाद और 'भूमि-पुत्र सिद्धांत’ (गैर-स्वदेशी समूहों को निवास और रोज़गार के अधिकारों के प्रति आक्रामक रुख) से भी उत्पन्न हुआ है।
- पर्यावरण और विकास से प्रेरित विस्थापन: तीव्र आर्थिक विकास प्राप्त करने हेतु भारत ने औद्योगिक परियोजनाओं, बाँधों, सड़कों, खानों, बिजली संयंत्रों और नए शहरों में निवेश किया है जो केवल बड़े पैमाने पर भूमि के अधिग्रहण और लोगों के विस्थापन के माध्यम से ही संभव हुआ है।
- अलगाववादी आंदोलन: आज़ादी के बाद से, उत्तर-पूर्वी भारत में दो प्रमुख सशस्त्र संघर्ष हुए हैं - नगा आंदोलन और असम आंदोलन।
- विस्तार: भारत में IDP की संख्या का अनुमान लगाना लगभग मुश्किल है, क्योंकि इतने बड़े देश में नियमित निगरानी संभव नहीं है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के डेटा के समन्वय के लिये ज़िम्मेदार केंद्रीय प्राधिकरण की कमी है।
आगे की राह
- नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता: समावेशी वृद्धि एवं विकास सुनिश्चित करने और संकट प्रेरित प्रवास को कम करने हेतु भारत को प्रवास केंद्रित नीतियों, रणनीतियों और संस्थागत तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है।
- न्याय प्रदान करना: केंद्र सरकार को आंतरिक रूप से विस्थापित आबादी (कम वेतन वाला, असुरक्षित या खतरनाक काम; अवैध व्यापार और महिलाओं और बच्चों की यौन शोषण आदि के प्रति अत्यधिक सुभेद्यता) जो अपर्याप्त आवास के मुद्दों से जूझ रही है, के लिये सुविधाएँ और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सामाजिक न्याय
विश्व मधुमेह दिवस
प्रिलिम्स के लिये:गैर-संचारी रोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन, टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह, ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट मेन्स के लिये:वैश्विक स्तर पर मधुमेह को नियंत्रित करने से संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2045 तक अफ्रीका में मधुमेह के मामलों की संख्या बढ़कर 55 मिलियन होने का अनुमान है जो वर्ष 2021 की तुलना में 134% अधिक है।
- अफ्रीका महाद्वीप में नोवल कोरोनावायरस रोग (Covid-19) के कारण होने वाली मौतों की दर मधुमेह के रोगियों में काफी अधिक है।
- विश्व मधुमेह दिवस प्रति वर्ष 14 नवंबर को मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- मधुमेह:
- मधुमेह एक गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Disease) है जो या तो तब होता है जब अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है या जब शरीर अपने द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है।
- इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा स्रावित एक पेप्टाइड (peptide) हार्मोन है जो सेलुलर ग्लूकोज तेज़ करने, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, प्रोटीन मेटाबॉलिज्म को विनियमित करने तथा कोशिका विभाजन एवं विकास को बढ़ावा देकर सामान्य रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
- मधुमेह एक गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Disease) है जो या तो तब होता है जब अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है या जब शरीर अपने द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है।
- इसे दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
- टाइप-1 मधुमेह: यह तब होता है जब अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है।
- टाइप-2 मधुमेह: यह मधुमेह का सबसे सामान्य प्रकार है। इस स्थिति में शरीर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है। इसे इंसुलिन प्रतिरोध (Insulin resistance) कहा जाता है। टाइप-2 मधुमेह होने का मुख्य कारण मोटापा और व्यायाम की कमी है।
- मधुमेह का भार :
- भारत में:
- भारत में मधुमेह एक बढ़ती हुई चुनौती है, जिसकी अनुमानित 8.7% आबादी 20 और 70 वर्ष के आयु वर्ग की है।
- इंटरनेशनल डायबिटीज़ फेडरेशन ‘डायबिटीज़ एटलस’ ने वर्ष 2019 में, भारत को शीर्ष 10 मधुमेह से पीड़ित देशों में रखा।
- मधुमेह और अन्य गैर-संचारी रोगों की बढ़ती व्यापकता शहरीकरण, गतिहीन जीवन शैली, अस्वास्थ्यकर आहार, तंबाकू का उपयोग जैसे कारकों के संयोजन से प्रेरित है।
- वैश्विक स्तर पर:
- आज विश्व में लगभग 6% आबादी अर्थात् 420 मिलियन से अधिक लोग टाइप-1 या टाइप-2 मधुमेह हैं।
- यह एकमात्र प्रमुख गैर-संचारी रोग है जिसका लोगों में कम होने के बजाय ज्यादा होने का ज़ोखिम बढ़ रहा है।
- यह गंभीर कोविड-19 संक्रमणों के साथ जुड़ी अन्य प्रमुख बीमारियों के साथ उभरा है।
- वर्ष 2021 में अफ्रीका में अनुमानित 24 मिलियन लोग मधुमेह के साथ जी रहे हैं।
- भारत में:
- संबंधित पहल:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने ग्लोबल डायबिटीज़ कॉम्पैक्ट लॉन्च किया, जो मधुमेह के जोखिम को कम करने से संबंधित है तथा यह सुनिश्चित करता है कि मधुमेह के निदान हेतु सभी लोगों को समान, व्यापक, किफायती और गुणवत्तापूर्ण उपचार और देखभाल मिल सके।
- भारत का राष्ट्रीय लक्ष्य गैर-संचारी रोग (National Non-Communicable Disease- NCD) मोटापे और मधुमेह के प्रसार में वृद्धि को रोकना है।
- वर्ष 2010 में शुरू किया गया कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों एवं स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) का उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल के विभिन्न स्तरों पर मधुमेह के निदान और लागत प्रभावी उपचार हेतु सहायता प्रदान करना है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)
प्रिलिम्स के लिये:यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, भीम एप, जन धन योजना मेन्स के लिये:व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के महत्त्वपूर्ण प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI) भुगतान प्रणाली ने आश्चर्यजनक तरीके एवं तीव्रता से भारत को सामाजिक-आर्थिक आधार पर डिजिटल रूप से विभाजित कर दिया है।
- भले ही UPI वास्तव में डिजिटल भुगतान परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण नवाचार है, फिर भी कई संस्थान और व्यवसाय इस भुगतान प्रणाली की विश्वसनीयता और सुरक्षा मानकों को लेकर आशंकित है।
प्रमुख बिंदु
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI):
- यह तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service- IMPS) जो कि कैशलेस भुगतान को तीव्र और आसान बनाने के लिये चौबीस घंटे धन हस्तांतरण सेवा है, का एक उन्नत संस्करण है।
- UPI एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लिकेशन (किसी भी भाग लेने वाले बैंक के) द्वारा, कई बैंकिंग सुविधाओं, निर्बाध फंड रूटिंग और मर्चेंट भुगतान की शक्ति प्रदान करती है।
- वर्तमान में UPI नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH), तत्काल भुगतान सेवा (IMPS), आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS), भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS), RuPay आदि सहित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित प्रणालियों में सबसे बड़ा है।
- आज के शीर्ष UPI ऐप्स में फोन पे, पेटीएम, गूगल पे , अमेज़न पे और भीम एप शामिल हैं।
- वर्ष 2016 में NPCI ने 21 सदस्य बैंकों के साथ UPI को लॉन्च किया था।
- उपलब्धियाँ:
- वर्ष 2020-21 में महामारी के दौरान UPI के माध्यम से डिजिटल लेन-देन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई और कई देशों ने भारतीय अनुभव से सीखने में रुचि दिखाई है ताकि वे भारतीय मॉडल का उपयोग कर सकें।
- NPCI के आंँकड़ों के अनुसार, UPI का उपयोग करके किये गए लेन-देन का मूल्य अक्तूबर, 2021 में पहली बार एक महीने में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जो भारत की सबसे लोकप्रिय डिजिटल भुगतान प्रणाली की स्थिति को और मज़बूत करता है।
- भारत का डिजिटल भुगतान उद्योग वर्ष 2025 तक 27% चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (Compounded Annual Growth Rate- CAGR) से 2,153 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 7,092 ट्रिलियन रुपये होने की उमीद है।
- मर्चेंट भुगतान के मज़बूत उपयोग, जन धन योजना सहित सरकारी नीतियांँ, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के साथ-साथ MSMEs की संख्याओं में वृद्धि और स्मार्टफोन के उच्च उपयोग के कारण यह वृद्धि होने की संभावना है।
- भारत का डिजिटल भुगतान उद्योग वर्ष 2025 तक 27% चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (Compounded Annual Growth Rate- CAGR) से 2,153 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 7,092 ट्रिलियन रुपये होने की उमीद है।
- चुनौतियाँ:
- कोरोनावायरस महामारी के बीच वैश्विक बैंकिंग और वित्तीय सेवा उद्योग में साइबर अपराध का खतरा बढ़ गया है।
- उदाहरण: ‘सर्बरस’ (Cerberus) सॉफ्टवेयर
- धोखाधड़ी संबंधी दावे, शुल्क वापसी, नकली खरीदार खाते, पदोन्नति का दुरुपयोग, खाता अधिग्रहण, पहचान की चोरी और कार्ड विवरण की चोरी आदि भी चुनौतियों के रूप में उभर रहे हैं।
- कोरोनावायरस महामारी के बीच वैश्विक बैंकिंग और वित्तीय सेवा उद्योग में साइबर अपराध का खतरा बढ़ गया है।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम
- भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI), भारत में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन हेतु एक अम्ब्रेला संगठन है, जिसे ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (RBI) और ‘भारतीय बैंक संघ’ (IBA) द्वारा ‘भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007’ के तहत शुरू किया गया है।
- यह कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 (अब कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8) के प्रावधानों के तहत स्थापित एक ‘गैर-लाभकारी’ कंपनी है, जिसका उद्देश्य भारत में संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान हेतु बुनियादी ढाँचा प्रदान करना है।
आगे की राह
- एक उचित रूप से तैयार की गई ‘सार्वजनिक-निजी भागीदारी’ (PPP) नीति भारतीय आबादी की अधिक-से-अधिक डिजिटल बुनियादी अवसंरचना तक पहुँच और साक्षरता में वृद्धि के लिये बाज़ार शक्ति का उपयोग करके 21वीं सदी में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
- एक जीवंत भारतीय लोकतंत्र में भारतीय मतदाताओं का सार्वजनिक नीति-संचालित डिजिटल सशक्तीकरण उपभोक्ताओं के हित और व्यापक जनहित में उत्तरदायी डिजिटल आचरण सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
मौसम की भविष्यवाणी
प्रिलिम्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD),लमखागा दर्रा,हिमालय,राष्ट्रीय मानसून मिशन (NMM) मेन्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD),राष्ट्रीय मानसून मिशन (NMM), मौसम पूर्वानुमान से संबंधित मुद्दे,मौसम पूर्वानुमान के तरीके |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चार पर्वतारोहण और ट्रेकिंग अभियानों में लमखागा दर्रा ट्रेक में 21 ट्रेकर्स की मृत्यु हो गई, जो एक बार फिर सही मौसम पूर्वानुमान के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- लमखागा दर्रा गढ़वाल हिमालय (उत्तराखंड) में एक अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित दर्रा है जो हिमाचल प्रदेश में सांगला से जुड़ता है। इसकी ऊँचाई और दूरदर्शिता के कारण इसे हिमालय (उत्तराखंड) के सबसे कठिन ट्रेक में से एक माना जाता है।
प्रमुख बिंदु
- मौसम की भविष्यवाणी:
- यह विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय और अनुभवजन्य तकनीकों द्वारा पूरक भौतिकी के सिद्धांतों के अनुप्रयोग के माध्यम से मौसम पूर्वानुमान है।
- वायुमंडलीय घटनाओं की भविष्यवाणियों के अलावा, मौसम की भविष्यवाणी में वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों जैसे- बर्फ का आवरण, तूफान, ज्वार और बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है।
- आवश्यकता:
- सेना के लिये: युद्ध के दौरान सेना युद्ध जीतने की संभावना को अधिकतम करने के लिये अपेक्षित मौसम की स्थिति में अपनी लड़ाई की योजना बना सकती है।
- नुकसान को कम करने के लिये: यह लोगों को विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और आँधी के खिलाफ योजना बनाने तथा सावधानी बरतने में सक्षम बनाता है ताकि उनके प्रभाव को कम किया जा सके।
- किसानों के लिये: किसानों को अपेक्षित मौसम की स्थिति के अनुरूप अपनी कृषि गतिविधियों को समायोजित करने में सक्षम बनाता है।
- परिवहन के लिये: मौसम की भविष्यवाणी परिवहन को, खासकर हवा और पानी में बहुत प्रभावित करती है। विमान टेक-ऑफ और लैंडिंग मौसम से प्रभावित हो सकती है जबकि तूफान और तेज हवाएँ यात्रा को बहुत प्रभावित करती हैं।
- पर्यटकों के लिये: यह पर्यटकों को कुछ क्षेत्रों में जाने के लिये मार्गदर्शन और प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
- मौसम पूर्वानुमान के तरीके:
- मौसम पूर्वानुमानकर्ता कंप्यूटर मॉडल और सिमुलेशन डिज़ाइन करने के लिये ‘बिग डेटा’ पर भरोसा करते हैं जो मौसम में आने वाले बदलाव की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) उत्पादों और सूचना प्रसार के वास्तविक समय के विश्लेषण (RAPID) के साथ-साथ भू-समकालिक कक्षा वाले उपग्रहों की INSAT श्रृंखला का उपयोग करता है, जो एक मौसम डेटा एक्सप्लोरर एप्लिकेशन है तथा एक गेटवे के रूप में कार्य करती है और चर्तु-आयामी विश्लेषण क्षमताओं के साथ में त्वरित इंटरैक्टिव विज़ुअलाइज़ेशन प्रदान करती है। ।
- पूर्वानुमानकर्ता उपग्रहों द्वारा ‘क्लाउड मोशन’, क्लाउड टॉप तापमान, जल वाष्प सामग्री के आसपास उत्पन्न डेटा का उपयोग किया जाता है जो वर्षा अनुमान, मौसम पूर्वानुमान में मदद करते हैं और चक्रवातों की उत्पत्ति के संबंध में उनको दिशा प्रदान करते हैं।
- उपग्रह डेटा पर नज़र रखने के अलावा, IMD स्वचालित मौसम स्टेशनों (AWS), वैश्विक दूरसंचार प्रणाली (GTS) से जमीन आधारित अवलोकन के लिये इसरो के साथ सहयोग करता है जो तापमान, धूप, हवा की दिशा, गति और आर्द्रता को मापता है।
- इस बीच, एग्रो-मौसम विज्ञान टॉवर (AGROMET) और डॉप्लर वेदर रडार (DWR) इस तंत्र के अवलोकनों में मदद करते हैं।
- वर्ष 2021 में IMD ने मौजूदा दो-चरण की पूर्वानुमान रणनीति को संशोधित करके दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा हेतु मासिक और मौसमी परिचालन पूर्वानुमान जारी करने के लिये एक नई रणनीति अपनाई।
- नई रणनीति मौजूदा सांख्यिकीय पूर्वानुमान प्रणाली और नव विकसित ‘मल्टी-मॉडल एन्सेम्बल’ (MME) आधारित पूर्वानुमान प्रणाली पर आधारित है।
- MME दृष्टिकोण आईएमडी के ‘मॉनसून मिशन क्लाइमेट फोरकास्टिंग सिस्टम’ (MMCFS) मॉडल सहित विभिन्न वैश्विक जलवायु पूर्वानुमान और अनुसंधान केंद्रों से युग्मित वैश्विक जलवायु मॉडल (CGCM) का उपयोग करता है।
- ये सभी तकनीकी प्रगति तब से संभव हुई है, जब वर्ष 2012 में 551 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन के साथ राष्ट्रीय मानसून मिशन (NMM) शुरू किया गया था और इसका व्यापक उद्देश्य देश में मौसमी पूर्वानुमान के लिये एक गतिशील भविष्यवाणी प्रणाली स्थापित करना और मानसून पूर्वानुमान कौशल में सुधार करना था।
- मौसम पूर्वानुमान से संबंधित मुद्दे:
- वैश्विक मौसम प्रणालियों को प्रभावित करने के लिये ज़िम्मेदार समुद्री धाराओं में परिवर्तन की अप्रत्याशितता के कारण कई बार सही मौसम का पूर्वानुमान नहीं हो पाता है।
- भारत के लिये बंगाल की खाड़ी देश भर में मौसम को प्रभावित करने वाले बफर के रूप में कार्य करती है।
- मौसम पूर्वानुमान के गतिशील मॉडल कुछ मान्यताओं पर आधारित होते हैं और प्रकृति के सभी घटकों को गतिशील मॉडल में सटीक रूप से शामिल करना संभव नहीं है और यही पहला कारण है कि कभी-कभी पूर्वानुमान गलत हो सकते हैं।
- एक गतिशील मौसम पूर्वानुमान मॉडल में कंप्यूटर पर वातावरण का 3डी गणितीय अनुकरण शामिल होता है।
- मॉडलों को दिये गए प्रारंभिक इनपुट में त्रुटियों के कारण मौसम पूर्वानुमान में त्रुटियांँ भी सामने आ सकती हैं।
- वैश्विक मौसम प्रणालियों को प्रभावित करने के लिये ज़िम्मेदार समुद्री धाराओं में परिवर्तन की अप्रत्याशितता के कारण कई बार सही मौसम का पूर्वानुमान नहीं हो पाता है।
आगे की राह
- जबकि भारत उपग्रह डेटा और कंप्यूटर मॉडल पर निर्भर करता है, ब्रिटेन सुपर कंप्यूटर को पूर्वानुमान में एकीकृत करने के साथ आगे बढ़ गया है, जो उपग्रहों से डेटा एकत्र करता है।
- ये सुपरकंप्यूटर कुछ सेकंड में पेटाफ्लॉप डेटा को प्रोसेस कर सकते हैं, प्रभावी रूप से प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं और सटीकता को बढ़ा सकते हैं।
- समय के साथ यह तंत्र और अधिक वृद्धि की ओर अग्रसर है एवं विशेषज्ञों को उम्मीद है कि मौसम पूर्वानुमानों में लगातार सुधार होगा।