शासन व्यवस्था
मैनुअल स्कैवेंजर्स की गणना
प्रिलिम्स के लिये:मैला ढोने की समस्या से निपटने के लिये पहल, स्वच्छ भारत मिशन मेन्स के लिये:मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित खतरे, एससी और एसटी से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJ&E) सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई में लगे सभी सफाई कर्मचारियों की गणना के लिये एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करने की तैयारी कर रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- यह गणना मैकेनाइज्ड सेनिटेशन इकोसिस्टम (नमस्ते) योजना हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना का हिस्सा है और इसे 500 अमृत (अटल मिशन फॉर रिज़ुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन) शहरों में आयोजित किया जाएगा
- यह वर्ष 2007 में शुरु की गई मैनुअल स्कैवेंजर्स (एसआरएमएस) के पुनर्वास के लिये स्व-रोजगार योजना में विलय के साथ उसे प्रतिस्थापित करेगा।
- अभ्यास के तहत 500 अमृत शहरों के लिये कार्यक्रम निगरानी इकाइयाँ (PMUs) स्थापित की जाएँगी।
- यह अभ्यास 500 शहरों में पूरा होने के बाद इसे देश भर में विस्तारित किया जाएगा जिससे उन्हें अपस्किलिंग और ऋण तथा पूंजीगत सब्सिडी जैसे सरकारी लाभ आसानी से प्राप्त हो सके।
नमस्ते योजना:
- परिचय:
- इसे जुलाई 2022 में लॉन्च किया गया था।
- नमस्ते योजना आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय तथा MoSJ&E द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है, इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं का उन्मूलन है।
- उद्देश्य:
- भारत में सीवेज सफाई में शून्य मृत्यु।
- सभी सफाई कार्य कुशल श्रमिकों द्वारा किये जाएँ।
- कोई भी सफाई कर्मचारी मानव मल के सीधे संपर्क में नहीं आए।
- सफाई कार्यकर्त्ताओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में एकत्रित किया जाता है और उन्हें सफाई उद्यम चलाने का अधिकार दिया जाता है।
- सुरक्षित सफाई कार्य के प्रवर्तन और निगरानी को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्तरों पर मजबूत पर्यवेक्षण और निगरानी प्रणाली।
- पंजीकृत और कुशल सफाई कार्यकर्ताओं से सेवाएँ लेने के लिये सफाई सेवा चाहने वालों (व्यक्तियों और संस्थानों) के बीच जागरूकता बढ़ाना।
गणना की आवश्यकता:
- वर्ष 2017 के बाद से मैनुअल स्कैवेंजिंग में न्यूनतम 351 मौतें हुई हैं।
- इसका उद्देश्य सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है।
- इससे उनके लिये अपस्किलिंग और ऋण तथा पूंजीगत सब्सिडी जैसे सरकारी लाभ प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
- सूचीबद्ध सफाई कर्मचारियों को स्वच्छ उद्यमी योजना से जोड़ने के लिये, जिसके माध्यम से श्रमिक स्वयं सफाई मशीनों के मालिक होंगे तथा सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि नगर पालिका स्तर पर काम मिलता रहे।
- स्वच्छ उद्यमी योजना के दोहरे उद्देश्य हैं - स्वच्छता और सफाई कर्मचारियों को आजीविका प्रदान करना और "स्वच्छ भारत अभियान" के समग्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुक्त करना।
मैनुअल स्कैवेंजिंग:
- मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) या हाथ से मैला ढोने को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों एवं सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
- यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति के हाथ से सफाई करने, ले जाने, निपटाने या अन्यथा किसी भी तरह से मानव मल के निपटान करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह अधिनियम मैनुअल स्कैवेंजिंग को "अमानवीय प्रथा" के रूप में मान्यता देता है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग का वर्तमान में प्रचलन के प्रमुख कारण:
- उदासीन रवैया:
- कई स्वतंत्र सर्वेक्षणों में राज्य सरकारों की ओर से इस प्रथा में पर रोक लगाने में सक्रियता का अभाव देखा गया है तथा यह प्रथा उनकी निगरानी में ही प्रचलित है।
- आउटसोर्सिंग के कारण उत्पन्न मुद्दे:
- कई बार, स्थानीय निकाय सीवर सफाई कार्यों को निजी ठेकेदारों को सौंप देते हैं। हालाँकि उनमें से कई ठेकेदार, सफाई कर्मचारियों के लिये उचित उपकरणों और स्वच्छता के संसाधन उपलब्ध नहीं कराते हैं।
- श्रमिकों की दम घुटने से मौत के मामले में ये ठेकेदार, मृतक के साथ किसी भी तरह के संबंध से इंकार कर देते हैं।
- सामाजिक मुद्दा:
- यह प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
- यह भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है जहाँ तथाकथित निचली जातियों से यह काम करने की उम्मीद रखी जाती है।
- वर्ष 1993 में, भारत ने हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में लोगों के रोज़गार पर प्रतिबंध लगा दिया (द एम्प्लॉयमेंट ऑफ़ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ़ ड्राई लैट्रिन (निषेध) अधिनियम, 1993), हालाँकि, इससे जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी कायम है।
- इससे मैला ढोने वालों के लिये वैकल्पिक आजीविका सुरक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
- प्रवर्तन और अकुशल श्रमिकों की कमी:
- अधिनियम को लागू करने की कमी और अकुशल मज़दूरों का शोषण भारत में अभी भी प्रचलित है।
हाथ से मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु उठाए गए कदम:
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
- इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके पेश करने और सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैला ढोने वालों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव है।
- यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन करेगा।
- हालाँकि इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी प्राप्त नही हुई है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 :
- 1993 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करते हुए 2013 का अधिनियम सूखे शौचालयों पर प्रतिबंध के अतिरिक्त अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों, या गड्ढों की सभी मैनुअल स्कैवेंजिंग सफाई को गैर-कानूनी घोषित करता है।
- अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम 2013:
- यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रख-रखाव, और किसी को भी अपने हाथ से मैला ढोने के लिये काम पर रखने के साथ-साथ सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैर-कानूनी घोषित करता है।
- यह ऐतिहासिक अन्याय और अपमान के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में हाथ से मैला ढोने वाले समुदायों को वैकल्पिक रोज़गार और अन्य सहायता प्रदान करने के लिये एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी प्रदान करता है।
- अत्याचार निवारण अधिनियम
- वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम, स्वच्छता कार्यकर्त्ताओं के लिये एक एकीकृत उपाय बन गया, क्योंकि मैला ढोने वालों में से 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।
- सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती:
- इसे आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
- सरकार द्वारा अप्रैल 2021 में सभी राज्यों के लिये सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने के लिये चेलेंज फॉर आल की शुरुआत की गई। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित उपकरण/सामग्री और ऑक्सीजन सिलेंडर आदि उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
- 'स्वच्छता अभियान ऐप':
- इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से बदला जा सके और सभी हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने हेतु उनका पुनर्वास किया जा सके।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।
आगे की राह
- 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन की पहचान सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में की गई है और स्मार्ट शहरों और शहरी विकास हेतु उपलब्ध धन से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत अवसर उपलब्ध कराया गया है।
- मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और फिर यह समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था में हाथ से मैला ढोना जारी है।
- राज्य और समाज को इस मुद्दे में सक्रिय रुचि लेने और सही आकलन करने एवं बाद में इस प्रथा को समाप्त करने के लिये सभी संभावित विकल्पों पर गौर करने की आवश्यकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016) (a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना। उत्तर: (c)
प्रश्न: निषेधात्मक श्रम के कौन से क्षेत्र हैं जिन्हें रोबोट द्वारा स्थायी रूप से प्रबंधित किया जा सकता है? उन पहलों पर चर्चा कीजिये जो प्रमुख शोध संस्थानों में शोध को वास्तविक और लाभकारी नवाचार के लिये प्रेरित कर सकती हैं। (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
महाद्वीपों का निर्माण
प्रिलिम्स के लिये:महाद्वीपीय प्रवाह, प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत मेन्स के लिये:महाद्वीपीय निर्माण, महाद्वीपीय प्रवाहऔर प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत |
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी के महाद्वीपों का निर्माण बड़े पैमाने पर उल्कापिंडों के प्रभाव से हुआ था यह परिघटना पृथ्वी के निर्माण के साढ़े चार अरब वर्ष की अवधि के पहले घटित हुई।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:
- परिचय:
- उल्कापिंडों के प्रभाव ने महासागरीय प्लेटों के निर्माण के लिये भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न की फलस्वरूप महाद्वीपों का विकास हुआ।
- विशाल उल्कापिंडों द्वारा महाद्वीपों के निर्माण का यह सिद्धांत, दशकों से मौज़ूद था, लेकिन अब तक, इसके समर्थन में ठोस साक्ष्यों का अभाव था।
- महाद्वीपों के गठन के लिये वर्तमान में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत सबसे सामान्य रूप से स्वीकृत सिद्धांत है।
- उल्कापिंड प्रभाव सिद्धांत की पुष्टि हेतु साक्ष्य:
- पिलबारा क्रेटन में ज़िरकोन क्रिस्टल की उपस्थिति: शोधकर्त्ताओं ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पिलबारा क्रेटन से चट्टानों में एम्बेडेड ज़िरकोन क्रिस्टल में साक्ष्यों की तलाश की। यह क्रेटन एक प्राचीन क्रस्ट का अवशेष है जिसका निर्माण तीन अरब वर्ष पहले शुरू हुआ था।
- ज़िरकोन का निर्माण मैग्मा के क्रिस्टलीकरण से होता है अथवा ये रूपांतरित चट्टानों में पाए जाते हैं।
- ये भू-गर्भीय गतिविधि की अवधि को रिकॉर्ड करते हैं जो छोटे टाइम-कैप्सूल के रूप में कार्य करते हैं। इसी क्रम में समय के साथ नया ज़िरकोन मूल क्रिस्टल से जुड़ जाता है।
- इन क्रिस्टलों यानी ऑक्सीजन-18 और ऑक्सीजन-16 के भीतर ऑक्सीजन के प्रकार या समस्थानिकों के अध्ययन और उनके अनुपात द्वारा ही परिघटना के पूर्व के तापमान का अनुमान लगाए जाने में सहायता प्रदान की।
- ज़िरकोन के पुराने क्रिस्टलों में हल्की ऑक्सीजन-16 की जबकि नवीन क्रिस्टलों में भारी ऑक्सीजन-18 मौज़ूदगी देखी गई है।
- क्रेटन: क्रेटन महाद्वीपीय स्थलमंडल का एक पुराना और स्थिर हिस्सा होता है, जिसमें पृथ्वी की दो सबसे ऊपरी परतें, क्रस्ट और ऊपरी मेंटल की परत मौज़ूद होती है।
- पिलबारा क्रेटन में ज़िरकोन क्रिस्टल की उपस्थिति: शोधकर्त्ताओं ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पिलबारा क्रेटन से चट्टानों में एम्बेडेड ज़िरकोन क्रिस्टल में साक्ष्यों की तलाश की। यह क्रेटन एक प्राचीन क्रस्ट का अवशेष है जिसका निर्माण तीन अरब वर्ष पहले शुरू हुआ था।
- महाद्वीपों के निर्माण को समझने की आवश्यकता:
- महाद्वीपों के निर्माण और विकास को समझना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह लिथियम, टिन और निकल जैसी धातुओं के भंडार का स्रोत है।
- पृथ्वी के अधिकांश जैव भार और अधिकांश मनुष्य इन्हीं भू-भागों पर स्थित हैं, इसलिये यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि महाद्वीप कैसे बनते और विकसित होते हैं।
महाद्वीप निर्माण से संबंधित सिद्धांत:
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत:
- वर्ष 1950 से 1970 के दशक तक विकसित, प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धांत महाद्वीपीय विस्थापन का आधुनिक अद्यतन है, जिसे पहली बार वर्ष 1912 में वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिसमें कहा गया था कि पृथ्वी के महाद्वीप समय के साथ संपूर्ण पृथ्वी ग्रह में "विस्थापित" हो गए थे।
- वेगेनर के पास इस बात की सही व्याख्या के साक्ष्य नहीं थे कि महाद्वीप ग्रह के चारों ओर कैसे घूर्णन कर सकते हैं, लेकिन शोधकर्त्ता अब इसकी व्याख्या कर सकते हैं।
- प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धांत में पृथ्वी के बाहरी आवरण को ठोस चट्टान के बड़े खंड में विभाजित किया गया है, जिसे "प्लेट्स" कहा जाता है, जो पृथ्वी के मेंटल, पृथ्वी के कोर के ऊपर की चट्टानी आंतरिक परत पर तैरता रहता है।
- पृथ्वी की ठोस बाहरी परत, जिसमें क्रस्ट और ऊपरी मेंटल शामिल है, लिथोस्फीयर कहलाती है।
- लिथोस्फीयर के नीचे एस्थेनोस्फीयर स्थित होती है, यह परत आंतरिक ताप के कारण थोडा गलित अवस्था में रहती है ।
- यह पृथ्वी की विवर्तनिकी प्लेटों के नीचे के हिस्से को चिकनाई प्रदान करता है, जिससे लिथोस्फीयर चारों ओर प्रवाहित हो सकता है।
- पृथ्वी के स्थलमंडल को सात प्रमुख और कुछ छोटी प्लेटों में विभाजित किया गया है।
- प्रमुख प्लेटें:
- अंटार्कटिक (और आसपास के महासागरीय) प्लेट
- उत्तरी अमेरिकी प्लेट (पश्चिमी अटलांटिक तल के साथ कैरेबियन द्वीपों के साथ दक्षिण अमेरिकी प्लेट से अलग)
- दक्षिण अमेरिकी प्लेट (पश्चिमी अटलांटिक तल के साथ कैरेबियन द्वीपों के साथ उत्तरी अमेरिकी प्लेट से अलग)
- प्रशांत प्लेट
- भारत-ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड प्लेट
- पूर्वी अटलांटिक और अफ्रीका प्लेट
- यूरेशिया और उससे सटी महासागरीय प्लेट
- कुछ महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों में शामिल हैं:
- कोकोस प्लेट: मध्य अमेरिका और प्रशांत प्लेट के बीच
- नाज़का प्लेट: दक्षिण अमेरिका और प्रशांत प्लेट के बीच
- अरेबियन प्लेट: अधिकतर सऊदी अरब का भूभाग
- फिलीपीन प्लेट: एशियाई और प्रशांत प्लेट के बीच
- कैरोलीन प्लेट: फिलीपीन और भारतीय प्लेट के बीच (न्यू गिनी के उत्तर में)
- फूजी प्लेट: ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व
- जुआन डी फूका प्लेट: उत्तरी अमेरिकी प्लेट के दक्षिण-पूर्व में
- विवर्तनिकी प्लेटों की गति तीन प्रकार की विवर्तनिकी सीमाएँ बनाती है:
- अभिसारी, जहाँ प्लेटें एक दूसरे की ओर गति करती हैं।
- अपसारी, जहाँ प्लेटें अलग हो जाती हैं।
- रूपांतरित, जहाँ प्लेटें एक दूसरे के सामानांतर गति करती हैं।
- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत:
- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत महासागरों और महाद्वीपों के वितरण से संबंधित है। यह पहली बार वर्ष 1912 में जर्मन मौसम विज्ञानी अल्फ्रेड वेगनर द्वारा सुझाया गया था।
- इस सिद्धांत के मुताबिक, मौजूदा सभी महाद्वीप अतीत में एक बड़े भूखंड- ‘पैंजिया’ से जुड़े हुए थे और उनके चारों ओर एक विशाल महासागर- पैंथालसा मौजूद था।
- लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले पैंजिया विभाजित होना शुरू हुआ और क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी घटकों का निर्माण करते हुए लारेशिया तथा गोंडवानालैंड के रूप में दो बड़े महाद्वीपीय भूभागों में टूट गया।
- इसके बाद लारेशिया और गोंडवानालैंड विभिन्न छोटे महाद्वीपों में टूटते रहे जो क्रम आज भी जारी है।
- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के समर्थन में प्रमुख साक्ष्य
- दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ त्रुटिरहित साम्य हैं। विशेष रूप से ब्राजील का पूर्वी उभार गिनी की खाड़ीं से साम्य है।
- ग्रीनलैंड इल्मेर्स और बैफिन द्वीपों के साथ साम्य है।
- भारत का पश्चिमी तट, मेडागास्कर और अफ्रीका साम्य है।
- एक तरफ उत्तर और दक्षिण अमेरिका और दूसरी तरफ अफ्रीका और यूरोप मध्य-अटलांटिक रिज के साथ साम्य हैं।
- अल्फ्रेड वेगनर ने प्राचीन पौधों और जानवरों के जीवाश्मों, महाद्वीप की सीमाओं पर भौगोलिक विशेषताओं और खनिज संसाधनों का अध्ययन किया और अन्य महाद्वीपों की सीमाओं पर समान परिणाम पाए।
विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से किस घटना ने जीवों के विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। प्रश्न: 'महाद्वीपीय विस्थापन ' के सिद्धांत से आप क्या समझते हैं? इसके समर्थन में प्रमुख प्रमाणों की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) |
भारतीय राजनीति
मौलिक कर्तव्य
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक कर्तव्य, स्वर्ण सिंह समिति मेन्स के लिये:मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व, स्वर्ण सिंह समिति, मौलिक कर्तव्यों को लागू करना। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संविधान में मौलिक कर्तव्य केवल "पांडित्य या तकनीकी" उद्देश्य की पूर्ति के लिये नहीं हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया है।
मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान:
- मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है।
- इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
- मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था।
- सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग- IV-ए) में सूचीबद्ध हैं।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
मौलिक कर्त्तव्यों की सूची:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सके।
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व:
- लोकतांत्रिक आचरण का निरंतर अनुस्मारक:
- मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
- असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध चेतावनी:
- मौलिक कर्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
- अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना:
- ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
- ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में मदद करते हैं।
- कानून की संवैधानिकता निर्धारित करने में सहायता करना:
- यह कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की मदद करता है।
- उदाहरण के लिये, विधायिका द्वारा पारित कोई भी कानून, जब संवैधानिकता जाँच के लिये न्यायालय में जाता है और उसमें मौलिक कर्तव्य के घटक निहित हैं, तो ऐसे कानून को उचित माना जाएगा।
मौलिक कर्तव्यों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय के रंगनाथ मिश्रा वाद 2003 में कहा गया कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों से बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
- एम्स छात्र संघ बनाम एम्स 2001 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं।
- हालाँकि मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्हें भाग IV ए में कर्तव्यों के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- मूल कर्तव्यों की उपस्थिति अप्रत्यक्ष रूप से पहले से ही संविधान के भाग III में कुछ निर्बंधनों के रूप थी।
आगे की राह:
- मौलिक कर्तव्य केवल पांडित्य या तकनीकी उद्देश्य नहीं हैं। बल्कि इन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया था।
- समाज में सार्थक योगदान देने के लिये नागरिकों को पहले संविधान और उसके अंगों को समझना होगा जिसके लिये "जन-व्यवस्था और उसकी बारीकियों, शक्तियों और सीमाओं को समझना अनिवार्य है”।
- इसलिये भारत में संवैधानिक संस्कृति का प्रसार बहुत ज़रूरी है।
- प्रत्येक नागरिक को भारतीय लोकतंत्र में सार्थक हितधारक होने और संवैधानिक दर्शन को उसकी वास्तविक भावना में आत्मसात करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
- मौलिक कर्तव्यों के "उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता" के लिये एक समान नीति की आवश्यकता है जो "नागरिकों को ज़िम्मेदार होने में काफी मदद करेगी"।
प्रश्न. "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडत की रक्षा और उसे अक्षुण रखना किसके तहत उल्लिखित प्रावधान है: (2015) (a) संविधान की प्रस्तावना उत्तर: (d) व्याख्या
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भारतीय नागरिक के मौलिक कर्तव्यों के बारे में सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:CAG, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी मेन्स के लिये:भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने संसद में एक रिपोर्ट पेश किया कि क्या भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम सफल रहे हैं।
- इस नवीनतम रिपोर्ट में वर्ष 2015-20 से तटीय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के ऑडिट के अवलोकन शामिल हैं।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा लेखापरीक्षा
- CAG के पास सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित कार्यक्रमों की जाँच और रिपोर्ट करने का संवैधानिक अधिकार है।
- CAG ने "पूर्व-लेखापरीक्षा अध्ययन" किया और पाया कि तटीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) का उल्लंघन हुआ था।
- उच्च ज्वार सीमा (HTL) से 500 मीटर तक की तटीय भूमि और खाड़ियों, लैगून, मुहाना, बैकवाटर और नदियों के किनारे 100 मीटर के क्षेत्र को ज्वारीय उतार-चढ़ाव के अधीन तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) कहा जाता है।
- मीडिया ने अवैध निर्माण गतिविधियों (समुद्र तट की जगह को कम करने) और स्थानीय निकायों, उद्योगों और जलीय कृषि फार्मों द्वारा छोड़े गए अपशिष्ट की घटनाओं की सूचना दी, जिससे विस्तृत जाँच हुई।
समुद्र तट के संरक्षण हेतु केंद्र ज़िम्मेदार:
- परिचय:
- सरकार ने विशेष रूप से निर्माण के संबंध में भारत के तटों पर गतिविधियों को विनियमित करने हेतु पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचना जारी की है।
- मंत्रालय द्वारा लागू तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना (CRZ) 2019, बुनियादी ढाँचा गतिविधियों के प्रबंधन और उन्हें विनियमित करने के लिये तटीय क्षेत्र को विभिन्न क्षेत्रों में वर्गीकृत करता है।
- CRZ के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार तीन संस्थान हैं:
- केंद्र में राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (NCZMA)
- प्रत्येक तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में राज्य / केंद्रशासित प्रदेश तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (SCZMAs / UTCZMAs) और
- प्रत्येक ज़िले में ज़िला स्तरीय समिति (DLCs) जिसमें तटीय क्षेत्र है और जहाँ CRZ अधिसूचना लागू है।
- CRZ के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार तीन संस्थान हैं:
- निकायों की भूमिका:
- ये निकाय जाँच करते हैं कि क्या सरकार द्वारा दी गई CRZ मंज़ूरी प्रक्रिया के अनुसार है, क्या डेवलपर्स परियोजना को आगे बढ़ने के लिये शर्तों का पालन कर रहे हैं, और क्या एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम (ICZMP) के तहत परियोजना विकास के उद्देश्य सफल हैं।
- वे सतत् विकास लक्ष्यों के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए उपायों का भी मूल्यांकन करते हैं।
लेखापरीक्षा परिणाम:
- NCZMA स्थायी निकाय के रूप में :
- पर्यावरण मंत्रालय ने NCZMA को स्थायी निकाय के रूप में अधिसूचित नहीं किया था तथा इसे प्रत्येक कुछ वर्षों में पुनर्गठित किया जाता रहा था।
- परिभाषित सदस्यता के अभाव में यह एक तदर्थ निकाय के रूप में कार्य कर रहा था।
- विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों की भूमिका:
- परियोजना संबंधी विचार-विमर्श के दौरान विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों के मौजूद नहीं थे।
- EAC वैज्ञानिक विशेषज्ञों और वरिष्ठ नौकरशाहों की एक समिति है जो एक बुनियादी ढाँचा परियोजना की व्यवहार्यता और इसके पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करती है।
- विचार-विमर्श के दौरान EAC के सदस्यों की कुल संख्या के आधे से भी कम होने के उदाहरण थे।
- परियोजना संबंधी विचार-विमर्श के दौरान विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों के मौजूद नहीं थे।
- SCZMA का गठन नहीं किया गया:
- राज्य स्तर पर जहाँ राज्य तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (SCZMA) निर्णय लेते हैं, केंद्रीय लेखा परीक्षक ने उन उदाहरणों का अवलोकन किया जहाँ SCZMA ने संबंधित अधिकारियों को परियोजनाओं की सिफारिश किये बिना स्वयं ही मंज़ूरी दे दी थी।
- इसके अलावा SCZMA ने अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत किये बिना कई परियोजनाओं की सिफारिश की थी।
- अपर्याप्तता के बावज़ूद परियोजनाओं की स्वीकृति:
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट में अपर्याप्तता के बावजूद परियोजनाओं को मंजूरी दिये जाने के उदाहरण थे।
- इनमें गैर-मान्यता प्राप्त सलाहकार शामिल थे जो EIA रिपोर्ट तैयार कर रहे थे, पुराने डेटा का उपयोग कर रहे थे, परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन नहीं कर रहे थे, उन आपदाओं का मूल्यांकन नहीं कर रहे थे जिनसे परियोजना क्षेत्र प्रभावित था।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट में अपर्याप्तता के बावजूद परियोजनाओं को मंजूरी दिये जाने के उदाहरण थे।
राज्यों में समस्याएँ:
- मन्नार की खाड़ी द्वीप समूह़ के संरक्षण के लिये तमिलनाडु के पास कोई रणनीति नहीं थी।
- गोवा में प्रवाल भित्तियों की निगरानी के लिये कोई व्यवस्था नहीं थी और कछुओं के नेस्टिंग स्थलों के शिकार से संरक्षण के लिये कोई प्रबंधन योजना नहीं थी।
- गुजरात में कच्छ की खाड़ी के जड़त्वीय क्षेत्र की मिट्टी और पानी के भौतिक रासायनिक मापदंडों का अध्ययन करने के लिये खरीदे गए उपकरणों का उपयोग नहीं किया गया था।
- ओडिशा के केंद्रपाड़ा में गहिरमाथा अभयारण्य में समुद्री गश्त नहीं हुई।
तटीय प्रबंधन के लिये भारतीय पहल:
- सतत् तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र:
- इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीपीय समुदायों के लाभ और कल्याण के लिये भारत में तटीय और समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना:
- यह स्थिरता प्राप्त करने के प्रयास में भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं सहित तटीय क्षेत्र के सभी पहलुओं के संबंध में एक एकीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करके तट के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र:
- CRZ को ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय (जिसका नाम अब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर दिया गया है) द्वारा फरवरी-1991 में अधिसूचित किया गया था।
आगे की राह:
- इन रिपोर्टों को संसद की स्थायी समितियों के समक्ष रखा जाता है, जो उन निष्कर्षों और अनुशंसाओं का चयन करती हैं जिन्हें वे जनहित के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं और उन पर सुनवाई की व्यवस्था करते हैं।
- इस मामले में, पर्यावरण मंत्रालय से अपेक्षा की जाती है कि वह CAG द्वारा बताई गई खामियों की व्याख्या करे और उसमें संशोधन करें।
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
संरक्षकता और दत्तक ग्रहण कानूनों की समीक्षा
प्रिलिम्स के लिये:दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियम, 2021, CARA। मेन्स के लिये:भारत में बाल दत्तक ग्रहण और संबंधित मुद्दे, बच्चों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत और कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने संसद में "संरक्षकता और दत्तक ग्रहण कानूनों की समीक्षा" रिपोर्ट पेश की तथा अनाथ एवं परित्यक्त बच्चों की पहचान करने के लिये ज़िला स्तर के सर्वेक्षण की सिफारिश की।
- भारत में गोद लेने के लिये केवल 2,430 बच्चे उपलब्ध हैं जबकि गोद लेने के इच्छुक माता-पिता की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- दिसंबर 2021 तक केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority) में 27,939 संभावित माता-पिता पंजीकृत थे, जो 2017 में लगभग 18,000 थे।
- CARA, महिला और बाल विकास मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है, जो गोद लेने संबंधी मामलों की नोडल एजेंसी है। यह अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का अपनी संबद्ध या मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से विनियमन करता है।
- गोद लेने योग्य माने जाने वाले बाल देखभाल संस्थानों में रहने वाले कुल 6,996 अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे थे जिनमें केवल 2,430 को ही बाल कल्याण समितियों द्वारा गोद लेने के लिये "कानूनी रूप से मुक्त" घोषित किया गया था।
- भारत में अनुमानित 3.1 करोड़ अनाथ बच्चों के साथ केवल 2,430 बच्चे गोद लेने के लिये कानूनी रूप से योग्य पाए गए हैं, क्योंकि सरकार के सुरक्षा जाल में देखभाल की आवश्यकता वाले अधिक बच्चों को लाने में विफलता है।
- गोद लेने के लिये प्रतीक्षा समय पिछले पाँच वर्षों में एक वर्ष से बढ़कर तीन वर्ष हो गया है।
- वर्ष 2021-2022 में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या केवल 3,175 थी।
सिफारिशें:
- ज़िला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक मासिक बैठक प्रत्येक ज़िले में आयोजित की जानी चाहिये ताकि "यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़कों पर भीख मांगने वाले अनाथ और परित्यक्त बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष ले आया जाए और उन्हें जल्द से जल्द गोद लेने हेतु उपलब्ध कराया जाए।"
- मुद्दा यह नहीं होना चाहिये कि अधिक बच्चों को ट्रैक किया जाए और उन्हें गोद लिया जाए, बल्कि बच्चों को सुरक्षा जाल से बाहर नहीं छोड़ा जाए।
- मुद्दा अधिक बच्चों के आकलन और उन्हें गोद लेने के लिये नहीं होना चाहिये, बल्कि बच्चों को सुरक्षित करने की आवश्यकता है। इस तरह के प्रयास का उद्देश्य बच्चे को दत्तक देने में कमी करना चाहिये तथा दत्तक के लिये उचित दत्तक माता-पिता की पहचान करनी चाहिये क्योंकि इतने सारे दत्तक माता-पिता प्रतीक्षा कर रहे हैं कि गरीब लोग अपने बच्चों को खोने के लिये मज़बूर हो रहे हैं।
- बच्चों को पालन-पोषण करने वाले परिवारों से जोड़ने के लिये ऐसे बदलाव की आवश्यकता है जो "अभिरक्षी" की ज़रूरतों जैसे कि भोजन और आश्रय से परे हो और उनके अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करे।
- कई बच्चे माता-पिता की देखभाल के अधीन हैं, लेकिन इष्टतम देखभाल नहीं करते हैं। माता-पिता अपने ही बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं ऐसे बच्चों के लिये पर्याप्त सुरक्षा का प्रावधान किया गया है ताकि उन्हें आवश्यक सहायता मिल सके। पर्याप्त सुरक्षा उपायों में विफलता भी कदाचार की ओर ले जाती है, यही वज़ह है कि वर्ष 2015 में गोद लेने की प्रक्रिया को केंद्रीकृत किया गया।
भारत में दत्तक ग्रहण और संबंधित नियम:
- परिचय:
- दत्तक ग्रहण एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक बच्चा अपने दत्तक माता-पिता की वैध संतान बनने के लिये अपने जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग हो जाता है।
- गोद लिये गए बच्चे को जैविक बच्चे से जुड़े सभी अधिकार, विशेषाधिकार और जिम्मेदारियाँ प्राप्त होती हैं।
- गोद लेने को नियंत्रित करने वाले मूलभूत सिद्धांत बताते हैं कि बच्चे के हित सबसे महत्त्वपूर्ण हैं और "जहाँ तक संभव हो बच्चे को उसके सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में रखने के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए," भारतीय नागरिकों के साथ बच्चे को गोद लेने के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- विधान:
- हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, (HAMA) 1956 :
- अधिनियम के तहत, एक हिंदू माता-पिता या अभिभावक एक बच्चे को दूसरे हिंदू माता-पिता को गोद दे सकते हैं।
- अधिनियम एक अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लेने की अनुमति नहीं देता है जो किसी विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी (SSA) या बाल देखभाल संस्थान के संरक्षण में है।
- अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015। इसमें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 और गोद लेने के नियम, 2017 शामिल हैं।
- सरकारी नियमों के अनुसार हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख बच्चों को गोद लेने के लिये वैध हैं।
- एक अनाथ, परित्यक्त, या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लिया जा सकता है जिसे बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा गोद लेने के लिये कानूनी रूप से मुक्त घोषित किया गया है। ऐसा केवल किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत होता है।
- जेजे अधिनियम, गैर-हिंदू व्यक्तियों के लिये उनके समुदाय के बच्चों का अभिभावक बनने के लिये अभिभावक और वार्ड अधिनियम (GWA), 1980 एकमात्र साधन था।
- चूँकि GWA व्यक्तियों को कानूनी रूप से अभिभावक के रूप में देखता है, न कि प्राकृतिक माता-पिता के रूप में, वार्ड के 21 वर्ष के हो जाने और वार्ड द्वारा व्यक्तिगत पहचान ग्रहण करने के बाद संरक्षकता समाप्त कर दी जाती है।
- हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, (HAMA) 1956 :
बच्चे को गोद लेने में विद्यमान चुनौतियाँ:
- घटती सांख्यिकी और संस्थागत उदासीनता:
- गोद लेने वाले बच्चों और भावी माता-पिता के मध्य एक व्यापक अंतर है, जो गोद लेने की प्रक्रिया की अवधि को बढ़ा सकता है।
- आँकड़ों से पता चलता है कि जहाँ 29,000 से अधिक भावी माता-पिता गोद लेने के इच्छुक हैं, वहीं केवल 2,317 बच्चे ही गोद लेने के लिये उपलब्ध हैं।
- गोद लेने के बाद बच्चों को वापस करना:
- वर्ष 2017-19 के बीच केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) को दत्तक ग्रहण करने के बाद बच्चों को वापस करने वाले दत्तक माता-पिता में एक असामान्य बढ़ोतरी देखी गई।
- आँकड़ों के अनुसार, लौटे सभी बच्चों में 60% लड़कियाँ थीं, 24% विशेष ज़रूरतों वाले/दिव्यांग बच्चे थे और कई छह से अधिक उम्र के थे।
- इन 'व्यवधानों' का प्राथमिक कारण यह है कि विकलांग बच्चों और बड़े बच्चों को अपने दत्तक परिवारों को समायोजित करने में बहुत अधिक समय लगता है।
- विकलांगता और दत्तक ग्रहण:
- वर्ष 2018 और 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया था, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% है।
- वार्षिक प्रवृत्तियों से पता चलता है कि हर बीते साल के साथ विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के घरेलू दत्तक ग्रहण कम हो रहे हैं।
- बाल तस्करी:
- वर्ष 2018 में राँची की मदर टेरेसा मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी अपने "बेबी-सेलिंग रैकेट" के लिये विवाद में घिर गई, जब आश्रय की एक नन ने चार बच्चों को बेचने की बात कबूल की।
- इसी तरह के उदाहरण तेज़ी से सामान्य होते जा रहे हैं क्योंकि गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों की संख्या कम हो रही है और प्रतीक्षा सूची में शामिल माता-पिता बेचैन हो रहे हैं।
- वर्ष 2018 में राँची की मदर टेरेसा मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी अपने "बेबी-सेलिंग रैकेट" के लिये विवाद में घिर गई, जब आश्रय की एक नन ने चार बच्चों को बेचने की बात कबूल की।
- LGBTQ+ पितृत्व और प्रजनन स्वायत्तता:
- परिवार की परिभाषा के निरंतर विकास के बावजूद, 'आदर्श' भारतीय परिवार के केंद्र में अभी भी पति, पत्नी और बेटी एवं पुत्र (पुत्रों) का गठन होता है।
- LGBTQI+ विवाहों की अमान्यता और कानून की नज़र में संबंध LGBTQI+ व्यक्तियों को माता-पिता बनने से रोकते हैं क्योंकि युगल के लिये बच्चा गोद लेने की न्यूनतम योग्यता उनकी शादी का प्रमाण है।
- इन प्रतिकूल वैधताओं पर मोलभाव करने के लिये समुदायों के बीच अवैध रूप से गोद लेना आम होता जा रहा है।
आगे की राह
- गोद हेतु बच्चे को देने का प्राथमिक उद्देश्य उसका कल्याण और परिवार के उसके अधिकार को बहाल करना है।
- गोद लेने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को माता-पिता-केंद्रित दृष्टिकोण से बाल-केंद्रित दृष्टिकोण में बदलने की आवश्यकता है।
- समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जो स्वीकृति, विकास और कल्याण का वातावरण बनाने के लिये बच्चे की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करता है, इस प्रकार गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चों को समान हितधारकों के रूप में मान्यता देता है।
- गोद लेने की प्रक्रिया को निर्देशित करने वाले विभिन्न विनियमों पर बारीकी से विचार करके गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है।
- मंत्रालय इस क्षेत्र में काम करने वाले संबंधित विशेषज्ञों के साथ काम कर सकता है ताकि संभावित माता-पिता के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके।