डेली न्यूज़ (16 Jun, 2022)



ओडीओपी: हस्तशिल्प क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

एक ज़िला एक उत्पाद, आत्मनिर्भर भारत, हस्तशिल्प से संबंधित योजनाएंँ। 

मेन्स के लिये:

हस्तशिल्प क्षेत्र का महत्त्व और संबंधित पहल, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वस्त्र मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली में 'लोटा शॉप' का उद्घाटन किया। 

  • यह दुकान सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CCIC) द्वारा खोली गई थी, जिसे सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम के नाम से जाना जाता है। 
    • यह भारत के पारंपरिक शिल्प रूपों पर आधारित बेहतरीन दस्तकारी, स्मृति चिह्न, हस्तशिल्प और वस्त्रों को प्रदर्शित करता है। 
  • सरकार ने यह भी दोहराया कि वह 'एक ज़िला एक उत्पाद' की दिशा में काम कर रही है जो हस्तशिल्प क्षेत्र के साथ-साथ कारीगरों को भी प्रोत्साहन देगा। 

एक ज़िला एक उत्पाद: 

  • परिचय: 
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा 'एक ज़िला एक उत्पाद' (ODOP) शुरू किया गया था, ताकि ज़िलों को उनकी पूरी क्षमता उपभोग, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने तथा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने में मदद मिल सके। 
      • इसे जनवरी, 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था, और बाद में इसकी सफलता के कारण केंद्र सरकार द्वारा अपनाया गया। 
    • यह पहल विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT), वाणिज्य विभाग द्वारा 'निर्यात हब के रूप में ज़िले (Districts as Exports Hub)' पहल के साथ की जाती है। 
      • 'निर्यात हब के रूप में ज़िले’ पहल ज़िला स्तर के उद्योगों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है ताकि लघु उद्योगों की मदद की जा सके और वे स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकें। 
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य एक ज़िले के उत्पाद की पहचान, प्रचार और ब्रांडिंग करना है। 
    • भारत के प्रत्येक ज़िले को उस उत्पाद के प्रचार के माध्यम से निर्यात हब में बदलना जिसमें ज़िला विशेषज्ञता रखता है। 
    • यह विनिर्माण को प्रवर्धन करके, स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करके, संभावित विदेशी ग्राहकों को खोजकर और इसी तरह इसे पूरा करने की कल्पना करता है, अतः 'आत्मनिर्भर भारत' के दृष्टिकोण को प्राप्त करने में मदद करता है। 

भारत में हस्तशिल्प क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • हस्तशिल्प वे वस्तुएँ हैं जिनका निर्माण बड़े पैमाने पर उत्पादन विधियों और उपकरणों के बजाय सरल उपकरणों का उपयोग करके किया जाता है। जबकि बुनियादी कला और शिल्प के समान, हस्तशिल्प के साथ एक महत्त्वपूर्ण अंतर है। 
      • विभिन्न प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्पादित इन वस्तुओं को एक विशिष्ट कार्य या उपयोग के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य को बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है।  
    • हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग दशकों से भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है। 
    • भारत लकड़ी के बर्तन, धातु के सामान, हाथ से मुद्रित वस्त्र, कढ़ाई वाले सामान, जरी के सामान, नकली आभूषण, मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन, काँच के बने पदार्थ, अत्तर, अगरबत्ती आदि का उत्पादन करता है। 
  • व्यापार: 
    • भारत सबसे बड़े हस्तशिल्प निर्यातक देशों में से एक है। 
    • मार्च 2022 में, भारत से हस्तनिर्मित कालीनों को छोड़कर कुल हस्तशिल्प निर्यात 174.26 मिलियन अमेरिकी डॉलर था जिसमें फरवरी 2022 की तुलना में 8% की वृद्धि हुई। वर्ष 2021-22 के दौरान भारतीय हस्तशिल्प का कुल निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 25.7% की वृद्धि के साथ 4.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 
  • इस क्षेत्र का महत्त्व:  
    • सबसे बड़ा रोज़गार जनक: 
      • यह कृषि के बाद सबसे बड़े रोज़गार सृजनकर्त्ताओं में से एक है, जो देश की ग्रामीण और शहरी आबादी को आजीविका का एक प्रमुख साधन प्रदान करता है। 
      • भारतीय अर्थव्यवस्था में हस्तशिल्प सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, जिसमें सात मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं। 
    • पर्यावरण-हितैषी: 
      • यह क्षेत्र एक आत्मनिर्भर व्यवसाय मॉडल पर कार्य करता है, जिसमें शिल्पकार अक्सर अपने स्वयं के कच्चे माल का उत्पादन करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल शून्य-अपशिष्ट प्रथाओं के अग्रणी होने के लिये जाने जाते हैं। 
  • चुनौतियाँ: 
    • कारीगरों को धन की अनुपलब्धता, प्रौद्योगिकी की कम पहुँच, बाज़ार की जानकारी का अभाव और विकास के लिये खराब संस्थागत ढाँचे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • इसके अलावा यह क्षेत्र हस्तनिर्मित उत्पादों के निहित अंतर्विरोध से ग्रस्त है, जो आम तौर पर उत्पादन के पैमाने के विपरीत होते हैं।  

इस क्षेत्र के विकास का समर्थन करने वाले कारक: 

  • सरकारी योजनाएँ:  
    • केंद्र सरकार अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिये उद्योग को विकसित करने की दिशा में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। 
    • कई योजनाओं और पहलों की शुरूआत से शिल्पकारों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों से निज़ात पाने में मदद मिल रही है। 
  • समर्पित व्यापार प्लेटफार्मों का उदय:   
    • क्राफ्टेज़ी (Craftezy) जैसे कुछ मंच उभर कर सामने आए हैं जो घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में भारतीय कारीगरों को बहुत आवश्यक समर्थन प्रदान करते हैं। 
    • ये वैश्विक हस्तशिल्प व्यापार मंच एक मुफ्त आपूर्तिकर्त्ता प्रेरण प्रक्रिया के रूप में कार्य करते हैं और इसका उद्देश्य इसे वैश्विक बाज़ार में भारत को एक संगठित छवि प्रदान करना है।   
  • समावेशन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: 
    • प्रौद्योगिकी जो सीमाओं को पार करने में मदद कर सकती है, हस्तशिल्प उद्योग के लिये वरदान साबित हुई है।  
    • ई-कॉमर्स ने उपभोक्ता वस्तुओं तक निर्बाध पहुँच के दरवाजे खोल दिये हैं और इसने समावेशी विकास को सक्षम किया है क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में सभी निर्माता इन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर सकते हैं। 
    • यहांँ तक कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी वैश्विक स्तर पर भारतीय हस्तशिल्प के विपणन में काफी मदद कर रहे हैं। 
  • निर्यात बनाम आयात: 
    • पिछले पांँच वर्षों में, भारतीय हस्तशिल्प का निर्यात 40% से अधिक बढ़ा है, क्योंकि तीन-चौथाई हस्तशिल्प को निर्यात किया जाता है। 
    • भारतीय हस्तशिल्प प्रमुख रूप से सौ से अधिक देशों को निर्यात किए जाते हैं और अकेले अमेरिका भारत के हस्तशिल्प निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा आयात करता है। 
  • कारीगरों के व्यवहार में परिवर्तन: 
    • आय में वृद्धि कारीगर नए कौशल के अनुकूल होती है जिससे ये ऐसे उत्पाद निर्मित करते हैं जो बाज़ार की नई मांँगों को पूरा करते हैं। 
    • इस प्रकार, प्रौद्योगिकी की शुरूआत और उसके आसान उपयोग के कारण, हस्तशिल्प के विक्रेताओं और खरीदारों के व्यवहार में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। 

संबंधित सरकारी पहलें: 

  • अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना: 
    • कारीगरों को उनके बुनियादी ढांँचे, प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन विकास की ज़रूरतों के साथ समर्थन देना। 
    • योजना का उद्देश्य कच्चे माल की खरीद में थोक उत्पादन और मितव्ययिता को सुविधाजनक बनाने के एजेंडे के साथ कारीगरों को स्वयं सहायता समूहों और समाजों में संगठित करना । 
  • मेगा क्लस्टर योजना: 
    • इस योजना के उद्देश्य में रोजगार सृजन और कारीगरों के जीवन स्तर में सुधार शामिल है। 
    • यह कार्यक्रम विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में हस्तशिल्प केंद्रों में बुनियादी ढांँचे और उत्पादन शृंखलाओं को बढ़ाने में क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण का अनुसरण करता है। 
  • विपणन सहायता और सेवा योजना: 
    • यह योजना कारीगरों को घरेलू विपणन कार्यक्रमों के लिये वित्तीय सहायता के रूप में हस्तक्षेप प्रदान करती है जो उन्हें देश और विदेश में व्यापार मेलों तथा प्रदर्शनियों के आयोजन एवं भाग लेने में सहायता करती है। 
  • अनुसंधान और विकास योजना: 
    • उपरोक्त योजनाओं के कार्यान्वयन का समर्थन करने के उद्देश्य से, इस क्षेत्र में शिल्प और कारीगरों के आर्थिक, सामाजिक, सौंदर्य और प्रचारात्मक पहलुओं पर प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिये यह पहल शुरू की गई थी। 
  • राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम: 
    • इस कार्यक्रम का महत्त्वपूर्ण घटक सर्वेक्षण करना, डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी का उन्नयन, मानव संसाधन विकसित करना, कारीगरों को बीमा और ऋण सुविधाएंँ प्रदान करना, अनुसंधान एवं विकास, आधारभूत संरचना विकास और विपणन सहायता गतिविधियांँ हैं। 
  • व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना: 
    • इस योजना का दृष्टिकोण हस्तशिल्प समूहों में बुनियादी ढांँचे और उत्पादन शृंखला को बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त, इस योजना का उद्देश्य उत्पादन, मूल्यवर्धन और गुणवत्ता आश्वासन के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करना है।  
  • हस्तशिल्प के लिए निर्यात संवर्धन परिषद: 
    • परिषद का मुख्य उद्देश्य हस्तशिल्प के निर्यात को बढ़ावा देना, समर्थन, सुरक्षा, रखरखाव और वृद्धि करना है। 
    • परिषद की अन्य गतिविधियों में ज्ञान का प्रसार, सदस्यों को पेशेवर सलाह और सहायता प्रदान करना, प्रतिनिधिमंडल के दौरे और मेलों का आयोजन, निर्यातकों और सरकार के बीच संपर्क प्रदान करना तथा जागरूकता कार्यशालाएंँ आयोजित करना शामिल है। 

आगे की राह 

  • भारतीय शिल्प क्षेत्र के पास उचित समर्थन और व्यावसायिक वातावरण के साथ एक अरब डॉलर का बाज़ार बनने की संभावना है। 
  • एक व्यवस्थित दृष्टिकोण विकसित करना, जो शिल्प कौशल के आंतरिक मूल्य का पोषण करता है और उत्पाद डिज़ाइन और निर्माण के लिये रास्ते खोलता है, नए बाजारों तक पहुंँच बढ़ाएगा। 
  • साथ ही, ऑनलाइन दृश्यता और परिचालन क्षमता के लिये ई-कॉमर्स पर पूंजीकरण एक महत्त्वपूर्ण सफलता कारक साबित होगा क्योंकि यह क्षेत्र विकसित होता है तो आगे कर्षण प्राप्त करता है। 
  • वैश्वीकरण के वर्तमान समय में, हस्तशिल्प क्षेत्र में घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में व्यापक अवसर हैं। जबकि कारीगरों की अनिश्चित स्थिति को उनके उत्थान के लिये सावधानीपूर्वक हस्तक्षेप की आवश्यकता है, सरकार पहले से ही ऐसे उपायों को अपनाकर काफी प्रगति की है, जो हस्तशिल्प उत्पादों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना कर हमारे शिल्पकारों की स्थिति में सुधार करेंगे। 

स्रोत : पीआईबी 


भारतीय रेलवे नवाचार नीति

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रेलवे नवाचार नीति। 

मेन्स के लिये:

भारतीय रेलवे नवाचार नीति, भारतीय रेलवे। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में रेल मंत्री द्वारा भारतीय रेलवे नवाचार नीति- "रेलवे के लिये स्टार्टअप" (StartUps For Railways) शुरू किया गया है। 

  • नीति की मुख्य विशेषताएंँ: 
    • नवोन्मेषकों को रेलवे में तकनीकी समाधान के लिये 1.5 करोड़ रुपए तक की अनुदान राशि सामान बंटवारे के आधार पर मुहैया कराई जाएगी 
    • यह पॉलिसी बहुत व्यापक और इस्तेमाल नहीं किये गए स्टार्टअप इकोसिस्‍टम की भागीदारी के माध्यम से रेलवे के संचालन, रखरखाव और बुनियादी ढांँचे के निर्माण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दक्षता लाने में मददगार साबित होगी।
    • रेलवे में प्रोटोटाइप का ट्रायल किया जाएगा। 
    • प्रोटोटाइप के सफल प्रदर्शन पर तैनाती को बढ़ाने के लिये बढ़ी हुई धनराशि प्रदान की जाएगी। 
    • नवोन्मेषकों का चयन एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रणाली द्वारा किया जाएगा जिसे ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से पूरा किया जाएगा। 
    • विकसित बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) केवल नवप्रवर्तकों के पास रहेंगे। 
    • विलंब से बचने हेतु संभागीय स्तर पर संपूर्ण उत्पाद विकास प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण किया जाएगा। 
  • पहचाने गए मुद्दे: 
    • भारतीय रेलवे के विभिन्न मंडलों, क्षेत्रीय कार्यालयों या ज़ोनों से प्राप्त 100 से अधिक समस्या विवरणों में से इस कार्यक्रम के चरण 1 के लिये रेल फ्रैक्चर, हेडवे रिडक्शन इत्यादि जैसे ग्यारह समस्या विवरण लिये गए हैं। 
  • अपेक्षित लाभ: 
    • यह नीति एक बहुत बड़े और अप्रयुक्त स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की भागीदारी के माध्यम से संचालन, रखरखाव और आधारभूत संरचना के निर्माण के क्षेत्र में मानक और दक्षता लाएगी। 
    • इसका उद्देश्य भारतीय रेलवे की परिचालन दक्षता और सुरक्षा में सुधार के लिये भारतीय स्टार्टअप/MSME/नवोन्मेषकों/उद्यमियों द्वारा विकसित अभिनव प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना भी है। 
    • यह रेलवे क्षेत्र में सह-निर्माण और सह-नवाचार के लिये देश में "नवाचार संस्कृति" को बढ़ावा देगा। 

भारतीय रेलवे : 

  • परिचय:  
    • भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया में सबसे बड़ा (लंबाई में) नेटवर्क है। 
    • यह माल ढुलाई और यात्रियों दोनों की आवाज़ाही की सुविधा प्रदान करता है और अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है। 
    • भारतीय रेलवे की शुरुआत वर्ष 1853 में हुई थी, जब बॉम्बे से ठाणे तक 34 किमी. की दूरी तय करने के लिये एक लाइन का निर्माण किया गया। 
    • भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा सरकारी उपक्रम है। 
    • भारतीय रेलवे नेटवर्क की लंबाई 67,956 किमी. (रेलवे ईयरबुक 2019-20) थी। 
  • ज़ोन: 
    • भारत में रेल प्रणाली को 16 ज़ोन में बाँटा गया है 

रेलवे ज़ोन  

मुख्यालय 

मध्य 

मुंबई CST 

पूर्वी 

कोलकाता 

मध्य पूर्वी 

हाजीपुर 

पूर्व  

भुवनेश्वर 

उत्तरी 

नई दिल्ली 

उत्तर पूर्वी 

गोरखपुर 

उत्तर पूर्व सीमांत 

मालीगाँव (गुवाहाटी) 

उत्तर पश्चिमी 

जयपुर 

दक्षिणी 

चेन्नई 

दक्षिण मध्य  

सिकंदराबाद 

दक्षिण पूर्वी 

कोलकाता 

दक्षिण पूर्व मध्य  

बिलासपुर 

दक्षिण पश्चिमी  

हुबली 

पश्चिमी 

मुंबई (चर्च गेट) 

 
पश्चिम मध्य 

जबलपुर 

  • भारतीय रेलवे के चार स्थल दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (1999), नीलगिरि माउंटेन रेलवे (2005), कालका शिमला रेलवे (2008) और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई (2004) यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों मे शामिल हैं। 
    • माथेरान लाइट रेलवे और कांगड़ा वैली रेलवे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलो की प्रतीक्षारत या अस्थायी सूची में शामिल हैं। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

भारतीय रेलवे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वालेजैव शौचालयों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015))

  1. जैव-शौचालयमें मानव अपशिष्ट का अपघटन एक कवक इनोकुलम द्वारा शुरू किया जाता है।
  2. इस अपघटन में अमोनिया और जलवाष्प ही एकमात्र अंतिम उत्पाद हैं जो वायुमंडल में छोड़े जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d) 

व्याख्या:  

  • भारतीय रेलवे की जैव-शौचालय परियोजना प्रौद्योगिकी का एक अभिनव और स्वदेशी विकास है। यह अपनी तरह की पहली तकनीक है और मानव अपशिष्ट के त्वरित अपघटन के लिये दुनिया में किसी भी रेलमार्ग द्वारा पहली बार इसका उपयोग किया जा रहा है। 
  • इन जैव-शौचालयों को शौचालयों के नीचे फिट किया जाता है और उनमें छोड़े गए मानव अपशिष्ट पर एनारोबिक बैक्टीरिया की एक कॉलोनी द्वारा अपघटन कराया जाता है जो मानव अपशिष्ट को मुख्य रूप से पानी में परिवर्तित करता है और मीथेन, अमोनिया आदि जैसी जैव-गैसों के रूप में कम मात्रा में परिवर्तित करता है। अतः कथन 1 और 2 सही नहीं हैं। 
  • गैसें वायुमंडल में चली जाती हैं और अपशिष्ट जल को क्लोरीनीकरण के बाद ट्रैक पर छोड़ दिया जाता है। 
  • इस प्रकार मानव अपशिष्ट रेलवे पटरियों पर नहीं गिरता है, जिससे प्लेटफार्मों पर सफाई और स्वच्छता में सुधार होता है, और ट्रैक एवं कोच रखरखाव कर्मचारियों को अपना काम अधिक कुशलता से करने में सुविधा होती है। 

अतः विकल्प (d) सही है। 

स्रोत: पी.आई.बी. 


पृथ्वी-II मिसाइल

प्रिलिम्स के लिये:

पृथ्वी-II, DRDO, IGMDP, अग्नि IV, बैलिस्टिक मिसाइल, विभिन्न प्रकार की मिसाइलें। 

मेन्स के लिये:

भारत की मिसाइल प्रौद्योगिकी, IGMDP। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत ने सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी- II का रात में सफलतापूर्वक परीक्षण किया। 

  • इससे पहले इंटरमीडिएट रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि- IV का परीक्षण किया गया था जो 4,000 किमी. की दूरी तय कर सकती है। 

Prithvi-II-Missile

पृथ्वी-II मिसाइल की मुख्य विशेषताएँ: 

  • परिचय: 
    • पृथ्वी-II एक स्वदेश में विकसित सतह-से-सतह पर मार करने वाली शॉर्ट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (SRBM) है, जिसकी रेंज लगभग 250-350 किमी. है और यह एक टन पेलोड ले जा सकती है   
    • पृथ्वी-II वर्ग एक एकल-चरण तरल-ईंधन वाली मिसाइल है, जिसमें 500-1000 किग्रा. की वारहेड माउंटिंग क्षमता है। 
    • यह मिसाइल प्रणाली बहुत उच्च स्तर की सटीकता के साथ लक्ष्य भेदने में सक्षम है। 
    • अत्याधुनिक मिसाइल अपने लक्ष्य को भेदने के लिये कुशल प्रक्षेपवक्र के साथ एक उन्नत जड़त्वीय मार्गदर्शन प्रणाली का उपयोग करती है। 
    • इसे शुरू में भारतीय वायुसेना के लिये प्राथमिक उपयोगकर्त्ता के रूप में विकसित किया गया था और बाद में इसे भारतीय सेना में भी शामिल किया गया था। 
    • जबकि मिसाइल को 2003 में पहली बार भारत के सामरिक बल कमान में शामिल किया गया था, यह IGMDP के तहत विकसित पहली मिसाइल थी। 
  • निर्माण: 

पृथ्वी मिसाइल: 

  • पृथ्वी मिसाइल प्रणाली में विभिन्न सामरिक सतह से सतह पर कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (SRBM) शामिल हैं। 
  • इसका विकास वर्ष 1983 में शुरू हुआ और यह भारत की पहली स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल थी। 
  • इसका पहला परीक्षण वर्ष1988 में श्रीहरिकोटा, शार (SHAR) सेंटर से किया गया था। 
    • इसकी रेंज 150-300 किमी. है। 
  • पृथ्वी I और पृथ्वी III श्रेणी की मिसाइलों के नौसैनिक संस्करण का कोड-नाम धनुष है। 
  • प्रणोदन तकनीक सोवियत SA-2 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल पर आधारित थी।  
    • सोवियत SA-2 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल: 
      • वर्ष 1950 के दशक के मध्य में विकसित, सोवियत SA-2 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सोवियत संघ की सतह से हवा में मार करने वाली पहली प्रभावी मिसाइल थी। 
      • इसे सारिक परमाणु हथियार के रूप में युद्धक्षेत्र मिसाइल हेतु डिज़ाइन किया गया था जो परमाणु हथियार ले जा सकता था। 
  • पृथ्वी I मिसाइल वर्ष 1994 से भारतीय सेना में सेवारत है। 
  • पृथ्वी II मिसाइलें वर्ष 1996 से सेवा में हैं।  
  • 350 किमी. की अधिक विस्तारितरेंज वाले पृथ्वी III का वर्ष 2004 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। 

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP): 

  • परिचय: 
    • IGMDP मिसाइलों की एक विस्तृत शृंखला के अनुसंधान और विकास के लिये भारतीय रक्षा मंत्रालय का एक कार्यक्रम था।  
    • परियोजना वर्ष 1982-1983 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में शुरू हुई थी 
    • इस कार्यक्रम ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को भारत का मिसाइल मैन बना दिया। 
    • एकीकृत निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम वर्ष 2008 में पूरा हुआ था। 

IGMDP के तहत विकसित पाँच मिसाइलें: 

  • इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें (P-A-T-N-A) हैं: 
    • पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल। 
    • अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल, यानी अग्नि (1,2,3,4,5)। 
    • त्रिशूल: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल। 
    • नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल। 
    • आकाश: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. अग्नि-IV मिसाइल के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (2014) 

  1. यह सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल है।
  2. यह केवल तरल प्रणोदक द्वारा संचालित होती है।
  3. 3. यह लगभग 7500 किमी. दूरी तक एक टन परमाणु आयुध पहुँचाने में सक्षम है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

  • अग्नि- IV भारत की परमाणु-संपन्न लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता 4,000 किमी. है। 
  • स्वदेश निर्मित अग्नि- IV सतह से सतह पर मार करने वाली दो चरणों वाली मिसाइल है। यह 17 टन वज़न के साथ 20 मीटर लंबी है। अत: कथन 1 सही है। 
  • यह दो चरणों वाली ठोस ईंधन प्रणाली है जो एक टन के परमाणु हथियार को 4,000 किलोमीटर की दूरी तक ले जा सकती है। अत: कथन 2 और 3 सही नहीं हैं। 

अत: विकल्प (a) सही उत्तर है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस   


आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020-21

प्रिलिम्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), बेरोजगारी दर, श्रम बल, 

मेन्स के लिये:

रोजगार, संवृद्धि और विकास, मानव संसाधन, भारत में बेरोजगारी के प्रकार, बेरोजगारी से लड़ने के लिये सरकार द्वारा हाल की पहलें 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) द्वारा 2020-21 के लिये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) जारी किया गया। 

PLFS के मुख्य बिंदु : 

  • बेरोजगारी दर:  
    • इससे पता चलता है कि बेरोजगारी दर वर्ष 2020-21 में गिरकर 4.2% हो गई, जबकि वर्ष 2019-20 में यह दर 4.8% थी।  
    • ग्रामीण क्षेत्रों में 3.3%  तथा शहरी क्षेत्रों में 6.7% की बेरोजगारी दर दर्ज की गई। 
  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): 
    • जनसंख्या में श्रम बल (अर्थात् काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध) में व्यक्तियों का प्रतिशत पिछले वर्ष के 40.1% से बढ़कर वर्ष 2020-21 के दौरान 41.6% हो गया।  
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR):  
    • यह पिछले वर्ष के 38.2% से बढ़कर 39.8% हो गया। 
  • प्रवासन दर: 
    • प्रवासन दर 28.9% है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की प्रवास दर क्रमशः 48% और 47.8% थी। 

अन्य प्रमुख बिंदु 

  • बेरोज़गारी दर: बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • श्रम बल: करेंट वीकली स्टेटस (CWS) के अनुसार, श्रम बल का आशय सर्वेक्षण की तारीख से पहले एक सप्ताह में औसत नियोजित या बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या से है। 
  • CWS दृष्टिकोण: शहरी बेरोज़गारी PLFS, CWS के दृष्टिकोण पर आधारित है। 
    • CWS के तहत एक व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है यदि उसने सप्ताह के दौरान किसी भी दिन एक घंटे के लिये भी काम नहीं किया, लेकिन इस अवधि के दौरान किसी भी दिन कम-से-कम एक घंटे के लिये काम की मांग की या काम उपलब्ध था। 
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। 

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS): 

  • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की। 
  • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं: 
    • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना। 
    • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना। 

बेरोज़गारी से निपटने हेतु सरकार की पहल: 

भारत में बेरोजगारी के प्रकार: 

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी: यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है। 
    • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में व्याप्त है। 
  • मौसमी बेरोज़गारी: यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है। 
    • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम कार्य होता है। 
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है। 
    • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है तथा शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।  
  • चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।  
    • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।  
  • तकनीकी बेरोज़गारी: यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है। 
    • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात वर्ष-दर-वर्ष 69% है। 
  • घर्षण बेरोज़गारी: घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है। 
    • दूसरे शब्दों में एक कर्मचारी को नई नौकरी खोजने या नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है। 
    • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं। 
  • सुभेद्य रोज़गार: इसका अर्थ है, अनौपचारिक रूप से काम करने वाले लोग, बिना उचित नौकरी अनुबंध के और बिना किसी कानूनी सुरक्षा के। 
    • इन व्यक्तियों को 'बेरोजगार' माना जाता है क्योंकि उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता है। 
    • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है। 

यूपीएससी सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोजगारी का आम तौर पर अर्थ होता है- 

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं 
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है 
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है 
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है 

उत्तर:(d) 

व्याख्या: 

  • अर्थव्यवस्था प्रच्छन्न बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है जब उत्पादकता कम होती है और बहुत से श्रमिक ज़रूरत से ज़्यादा संख्या में कार्यरत होते है। 
  • सीमांत उत्पादकता उस अतिरिक्त उत्पादन को संदर्भित करती है जो श्रम की एक इकाई को जोड़कर प्राप्त की जाती है। 
  • चूंँकि प्रच्छन्न बेरोज़गारी में आवश्यकता से अधिक श्रमिक पहले से ही कार्य में लगे हुए हैं, इसलिये श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है। 

अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत: द हिंदू 


डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2022 

मेन्स के लिये:

डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2022, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ‘रॉयटर्स इंस्टीट्यूट’ द्वारा डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2022 जारी की गई। 

  • ‘रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म’ परिचर्चा, जुड़ाव और शोध के माध्यम से दुनिया भर में पत्रकारिता के भविष्य की खोज के लिये समर्पित है। 
  • इस साल की रिपोर्ट, कुल मिलाकर ग्यारहवीं, एक ब्रिटिश मार्केट रिसर्च और डेटा एनालिटिक्स फर्म, YouGuv द्वारा जनवरी/फरवरी 2022 में ऑनलाइन प्रश्नावली के माध्यम से किये गए एक सर्वेक्षण पर आधारित है। 
    • इसमें छह महाद्वीपों के 46 बाज़ार शामिल हैं। 

Fraying-Connections

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु 

  • विश्वास संबंधी मुद्दा: 
    • लोग न्यूज़ कंटेंट पर कम ही भरोसा कर रहे हैं। 
  • पारंपरिक समाचार मीडिया में गिरावट: 
    • सर्वेक्षण किये गए लगभग सभी देशों में पारंपरिक समाचार मीडिया के प्रयोग में गिरावट आई है। 
  • समाचारों से परहेज करने वाले उपभोक्ताओं में वृद्धि: 
    • समाचारों से परहेज करने वाले उपभोक्ताओं का अनुपात पूरे देश में तेजी से बढ़ा है, रिपोर्ट ने घटना को "चयनात्मक परिहार" के रूप में वर्णित किया है। 
  • डिजिटल सदस्यता में वृद्धि: 
    • ऑनलाइन समाचार (ज़्यादातर अमीर देशों में) के लिये भुगतान करने के इच्छुक लोगों के अनुपात में अल्प वृद्धि के बावजूद, समाचार सामग्री के लिये डिजिटल सदस्यता में वृद्धि का स्तर कम होता दिख रहा है। 
  • प्रवेश मार्ग: 
    • स्मार्टफोन एक प्रमुख साधन बन गया है जिसमें ज़्यादातर लोग सुबह सबसे पहले समाचार प्राप्त करते हैं। 
    • जबकि फेसबुक समाचारों के लिये सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला सोशल नेटवर्क बना रहा है, टिकटॉक सबसे तेजी से बढ़ता नेटवर्क बन गया है, जो 18-24 वर्षीय लोगों के बीच 40% तक पहुंँच गया है जिसमें 15% समाचार के लिये मंच के रूप में उपयोग कर रहे हैं। 

समाचार का 'चयनात्मक परिहार': 

  • परिचय: 
    • हालाँकि अधिकांश लोगों की दिलचस्पी समाचारों में बनी रहती है, रिपोर्ट में पाया गया है कि एक बढ़ता हुआ अल्पसंख्यक वर्ग अपने जोखिम को सीमित कर रहा है। 
      • रिपोर्ट इस व्यवहार को "चयनात्मक परिहार" कहती है। 
    • वर्ष 2017 के बाद से ब्राज़ील (54%) और यूके (46%) में समाचारों से परहेज दोगुना हो गया है। 
  • परिहार के कारण: 
    • समाचार एजेंडे की पुनरावृत्ति के कारण विशेष रूप से राजनीति और कोविड-19 (43%) के आसपास 
    • बेकार खबर  (29%) 
    • विश्वास के मुद्दे (29%) 
    • मनोदशा पर नकारात्मक प्रभाव (36%) 
    • तार्किकता (17%) 
    • शक्तिहीन भावनाओं का जन्म (6%) 
    • समाचार के लिये समय नहीं (14%) 
    • समझने में मुश्किल (8%) 

समाचार खपत के पसंदीदा तरीके: 

  • जब समाचार खपत की बात आती है तो बाज़ारों और आयु समूहों में, टेक्स्ट अभी भी सर्वश्रेष्ठ है। 
  • हालाँकि, युवा दर्शकों को यह कहने की अधिक संभावना थी कि वे समाचार देखते हैं। 
    • भारत में, 58% से ज़्यादा समाचार पढ़ते हैं जबकि लगभग 17%  इसे देखते हैं। 
    • दूसरी ओर, फिनलैंड के लिये तुलनीय आंँकड़े, जिसमें उच्च समाचार पत्र खपत का ऐतिहासिक पैटर्न है, क्रमशः 85% और 3% था। 

समाचार के लिये मुख्य गेटवे : 

  • स्मार्टफोन एक्सेस का पसंदीदा तरीका होने के कारण, ऐप्स और वेबसाइटों तक सीधी पहुँच समय के साथ कम महत्वपूर्ण होती जा रही थी, जो सोशल मीडिया को आधार दे रही थी, जो अपनी सर्वव्यापकता और सुविधा के कारण समाचारों के प्रवेश द्वार के रूप में अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार समग्र स्तर पर, सोशल मीडिया वरीयता (28%) प्रत्यक्ष पहुंँच (23%) से आगे बढ़ रही है। 

भारत में रुझान: 

  • भारत दृढ़ता से मोबाइल-केंद्रित बाज़ार है। 
  • सर्वेक्षण के 72% उत्तरदाताओं ने स्मार्टफोन के माध्यम से समाचारों तक पहुंँच प्राप्त की और 35% ने कंप्यूटर के माध्यम से। 
  • साथ ही, 84% भारतीय उत्तरदाताओं ने ऑनलाइन समाचार, 63% सोशल मीडिया, 59% टेलीविज़न और 49% प्रिंट से समाचार प्राप्त किये। 
  • यू ट्यूब (53%) और व्हाट्सएप (51%) समाचार प्राप्त करने हेतु शीर्ष सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म थे। 
  • भारत द्वारा वैश्विक  स्तर पर मामूली  वृद्धि दर्ज की है, जिसमें कुल मिलाकर 41% भरोसेमंद समाचार थे। 
  • 36% और 35% अल्पसंख्यक उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि विरासत प्रिंट ब्रांडों और सार्वजनिक प्रसारकों में क्रमशः अनुचित राजनीतिक प्रभाव और व्यावसायिक प्रभाव का अभाव है। 

स्रोत: द हिंदू