तुलू भाषा
प्रिलिम्स के लियेतुलू भाषा, राज्य की राजभाषा या भाषाएँ, राष्ट्रीय शिक्षा नीति मेन्स के लियेमहत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
मुख्य रूप से कर्नाटक और केरल में तुलू भाषी लोगों ने सरकार से इसे आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देने और संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया है।
- वर्ष 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) में तुलू को शामिल करने की मांग उठी थी।
किसी राज्य की राजभाषा या भाषाएँ
- भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 में राजभाषा से संबंधित है।
- संविधान का अनुच्छेद 345 कहता है कि "राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा राज्य में उपयोग की जाने वाली किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये उपयोग की जाने वाली भाषा के रूप में अपना सकता है"
संविधान की आठवीं अनुसूची
- आठवीं अनुसूची से संबंधित संवैधानिक प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 344 (1) और 351 में हैं।
- आठवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध भाषाएँ हैं:
- (1) असमिया (2) बांग्ला (3) गुजराती (4) हिंदी (5) कन्नड़ (6) कश्मीरी (7) कोंकणी (8) मलयालम (9) मणिपुरी (10) मराठी (11) नेपाली (12) उड़िया (13) पंजाबी (14) संस्कृत (15) सिंधी (16) तमिल (17) तेलुगु (18) उर्दू (19) बोडो (20) संथाली ( 21) मैथिली और (22) डोगरी।
- भाषाओं को संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से जोड़ा जाता है।
प्रमुख बिंदु
'तुलू' भाषा के बारे में:
- तुलू (Tulu) एक द्रविड़ भाषा है, जिसे बोलने-समझने वाले लोग मुख्यतया कर्नाटक के दो तटीय ज़िलों और केरल के कासरागोड ज़िले में रहते हैं।
- दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक राज्यों के तुलू बाहुल्य क्षेत्र को तुलूनाडू नाम से भी जाना जाता है। तुलूनाडू को अलग राज्य का दर्ज़ा देने की मांग की जा रही है।
- जनगणना 2011 के अनुसार, तुलू भाषी (तुलू भाषा बोलने वाले) स्थानीय लोगों की संख्या लगभग 18,46,427 थी।
- तुलू में सबसे पुराने उपलब्ध शिलालेख 14वीं से 15वीं शताब्दी ईस्वी के बीच के हैं।
- कुछ वर्ष पहले कर्नाटक सरकार द्वारा तुलू को स्कूल में एक भाषा के रूप में पेश किया गया था।
तुलू भाषा की कला और संस्कृति:
- तुलू में लोकगीत रूपों जैसे- पद्दना (Paddana) और पारंपरिक लोक रंगमंच यक्षगान के साथ एक समृद्ध मौखिक साहित्य परंपरा है।
- तुलू में सिनेमा की एक सक्रिय परंपरा भी है, जिसमें प्रतिवर्ष लगभग 5 से 7 फिल्में तुलु भाषा में बनती हैं।
मान्यता का मामला:
- संविधान का अनुच्छेद 29: यह "अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण" से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को बनाए रखने का अधिकार होगा।
- युलु उद्घोषणा:
- युलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) को यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 2018 में सेंट्रल चीन के हुनान प्रांत के चांग्शा में भाषा संसाधन संरक्षण पर पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपनाया गया था।
- यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, राज्यों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों से विश्व में भाषायी विविधता के संरक्षण और संवर्द्धन पर आम सहमति पर पहुँचने का आह्वान करता है।
- आठवीं अनुसूची के तहत मान्यता के लाभ:
- साहित्य अकादमी से मान्यता।
- साहित्य अकादमी को भारत की राष्ट्रीय पत्र अकादमी भी कहा जाता है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में निहित साहित्य को संरक्षित करती है और उन्हें बढ़ावा देती है।
- तुलू साहित्यिक कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद।
- संसद सदस्य (Members of Parliament- MP) और विधानसभा के सदस्य (Members of the Legislative Assembly- MLA) क्रमशः संसद और राज्य विधानसभाओं में तुलु बोल सकते हैं।
- सिविल सेवा परीक्षा जैसी अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षाओं में तुलू में परीक्षा देने का विकल्प।
- केंद्र सरकार की ओर से विशेष फंड।
- प्राथमिक और हाईस्कूल में तुलू का अध्यापन।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
न्यू शेफर्ड
प्रिलिम्स के लिये:न्यू शेफर्ड, कार्मण रेखा मेन्स के लिये:व्यावसायिक अंतरिक्ष उड़ानों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्लू ओरिजिन नामक एक कंपनी ने ‘न्यू शेफर्ड’ पर पहली सीट हेतु ऑनलाइन नीलामी का समापन किया, जो कि पर्यटकों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिये एक रॉकेट प्रणाली है।
- इसने 20 जुलाई, 2021 को अपनी पहली मानव उड़ान भरी, जो नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन के चंद्रमा पर उतरने की 52वीं वर्षगाँठ है।
प्रमुख बिंदु:
न्यू शेफर्ड:
- न्यू शेफर्ड का नाम अंतरिक्ष यात्री एलन शेफर्ड के नाम पर रखा गया है जो कि अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी थे। न्यू शेफर्ड पृथ्वी से 100 किमी. से अधिक की दूरी पर अंतरिक्ष के लिये उड़ानों और पेलोड हेतु आवास प्रदान करता है।
- यह एक रॉकेट प्रणाली है जिसे अंतरिक्ष यात्रियों और अनुसंधान पेलोड को कार्मण रेखा से आगे ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- यह विचार अकादमिक अनुसंधान, कॉर्पोरेट प्रौद्योगिकी विकास और उद्यमशीलता के उपक्रमों जैसे उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में आसान और अधिक लागत प्रभावी पहुँच प्रदान करेगा।
- यह अंतरिक्ष पर्यटकों को पृथ्वी से 100 किमी. ऊपर ले जाकर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करने की भी अनुमति देगा।
- माइक्रोग्रैविटी वह स्थिति है जिसमें लोग या वस्तु भारहीन प्रतीत होते हैं। जब अंतरिक्ष यात्री और वस्तुएँ अंतरिक्ष में तैरती हैं तो माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव देखा जा सकता है।
कार्मण रेखा:
- कार्मण रेखा अंतरिक्ष की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा है।
- इसका नाम थिओडोर वॉन कार्मन (1881-1963), एक हंगेरियन अमेरिकी इंजीनियर और भौतिक विज्ञानी के नाम पर रखा गया है, जो मुख्य रूप से वैमानिकी और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय थे।
- वह ऊँचाई की गणना करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिस पर वैमानिक उड़ान का समर्थन करने के लिये वातावरण बहुत विरल हो जाता है और वह स्वयं 83.6 किमी. की दूरी तक पहुँचे।
- फेडेरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनेल (FAI) कार्मण रेखा को पृथ्वी के औसत समुद्र तल से 100 किलोमीटर की ऊँचाई के रूप में परिभाषित करता है।
- FAI हवाई खेलों हेतु वैश्विक शासी निकाय है और मानव अंतरिक्ष यान के संबंध में परिभाषाओं का भी निर्धारण करता है।
- हालाँकि अन्य संगठन इस परिभाषा का उपयोग नहीं करते हैं। अंतरिक्ष के किनारे को परिभाषित करने वाला कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं है और इसलिये राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र की सीमा है।
अंतरिक्ष पर्यटन:
- अंतरिक्ष पर्यटन मनोरंजक उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले मनुष्यों से संबंधित है। यह आम लोगों को मनोरंजन, अवकाश या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में जाने की क्षमता प्रदान करना चाहता है।
- यह उन व्यक्तियों के लिये अंतरिक्ष को अधिक सुलभ बना देगा जो अंतरिक्ष यात्री नहीं हैं और गैर-वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में जाना चाहते हैं।
- तीन निजी कंपनियाँ - ब्लू ओरिजिन, वर्जिन गैलेक्टिक और स्पेसएक्स अब अंतरिक्ष में विभिन्न शोधों का पता लगाने के मानव प्रयास का नेतृत्व कर रही हैं।
- उनकी प्रगति यह तय करेगी कि अंतरिक्ष यात्रा एक दिन हवाई यात्रा की तरह सुलभ हो जाएगी या नहीं।
पिछला अंतरिक्ष पर्यटक:
- पहला अंतरिक्ष पर्यटक अमेरिकी करोड़पति डेनिस टीटो था, जिसने वर्ष 2001 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का दौरा करने के लिये रूसी सोयुज अंतरिक्ष यान पर सवारी करने हेतु 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया और वहाँ आठ दिन बिताए।
- टीटो के बाद केवल सात अन्य निजी नागरिकों ने वर्ष 2009 तक अंतरिक्ष की यात्रा की, जब रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने निजी नागरिकों को टिकट बेचने के व्यवसाय को बंद कर दिया।
- ‘स्पेस एडवेंचर्स’ अब तक भुगतान करने वाले ग्राहकों को कक्षीय अंतरिक्ष में भेजने वाली एकमात्र निजी कंपनी है। वर्ष 2004 में परीक्षण पायलट माइक मेलविल कार्मण रेखा से आगे उड़ान भरने वाले पहले निजी अंतरिक्ष यात्री बने।
महत्त्व:
- विशाल बाज़ार:
- ऐसी उड़ानों के लिये लगभग 2.4 मिलियन लोगों का अनुमानित बाजार है।
- परीक्षण के लिये आधार:
- यह पृथ्वी पर विभिन्न गंतव्यों के बीच सुपरसोनिक यात्रा के परीक्षण हेतु आधार प्रदान कर सकता है, यात्रा समय को काफी कम कर सकता है। इसके अलावा यह इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश की शुरुआत करता है।
चिंताएँ:
- जलवायु परिवर्तन: समताप मंडल (पृथ्वी से लगभग 5 से 31 मील ऊपर) में रॉकेट द्वारा उत्सर्जन से उत्पन्न होने वाली कालिख या ब्लैक कार्बन को बारिश या हवाओं से नहीं धोया जा सकता है, क्योंकि यह निचले वातावरण में होता है। नतीजतन, ब्लैक कार्बन कई वर्षों तक समताप मंडल में रह सकता है, जिससे अधिक तेज़ी से जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
- स्वास्थ्य: यह स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का कारण बन सकता है क्योंकि यात्रियों को मोशन सिकनेस और भटकाव का भी सामना करना पड़ सकता है, जो दृष्टि, अनुभूति, संतुलन और मोटर नियंत्रण को प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह:
- पर्यटकों को अंतरिक्ष में जाने से पहले प्रशिक्षण, चिकित्सा जाँच और देयता छूट की जांच करने की आवश्यकता होगी।
- अंतरिक्ष पर्यटन उद्योग का एक छोटा उप-क्षेत्र होगा, लेकिन यह पूरे न्यूस्पेस उद्योग को मज़बूत करेगा।
- एक बार जब अंतरिक्ष पर्यटन मुख्यधारा बन जाएगा, तो यह पृथ्वी पर कई सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, जैसे- रोज़गार पैदा करना, नागरिकों को अंतरिक्ष के बारे में शिक्षित करना और एक नए सौर-आधारित ऊर्जा बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये संशोधित सब्सिडी
प्रिलिम्स के लियेफास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स अथवा फेम योजना मेन्स के लियेभारत की इलेक्ट्रिक वाहन नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने इको-फ्रेंडली वाहनों को अपनाने हेतु उन्हें प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से FAME-II (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) योजना के तहत इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स पर सब्सिडी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
नए संशोधित प्रावधान
- केंद्र ने FAME-II नियमों में आंशिक संशोधन किया है, जिसमें इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिये मांग प्रोत्साहन को बढ़ाकर 15,000 रुपए किलोवाट प्रति घंटा करना शामिल है, जो कि पूर्व में बसों के अतिरिक्त सभी इलेक्ट्रिक वाहनों (प्लग-इन हाइब्रिड और स्ट्रोंग हाइब्रिड समेत) के लिये 10,000 रुपए किलोवाट प्रति घंटा था।
- सरकार ने इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स के लिये इंसेंटिव या प्रोत्साहन को वाहनों की लागत के 40 प्रतिशत तक कर दिया है, जो कि पूर्व में 20 प्रतिशत था।
महत्त्व
- यह इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की कीमतों को पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन वाले वाहनों के करीब लाएगा और इससे इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री में उच्च मूल्य संबंधी सबसे बड़ी बाधा को समाप्त किया जा सकेगा।
- अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों जैसे- कम परिचालन लागत, कम रखरखाव लागत और शून्य उत्सर्जन आदि के कारण इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की मांग में बढ़ोतरी हो सकेगी।
‘फेम-2’ योजना
- पृष्ठभूमि
- ‘फेम इंडिया’ नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMM) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। ‘फेम’ का मुख्य ज़ोर सब्सिडी प्रदान करके इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना है।
- नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन का उद्देश्य हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहित करना है ताकि वे पारंपरिक वाहनों को प्रतिस्थापित कर सकें और इस प्रकार देश में तरल ईंधन की खपत को कम किया जा सके।
- योजना के दो चरण
- चरण I: वर्ष 2015 में शुरू हुआ और 31 मार्च, 2019 को पूरा हो गया।
- चरण II: अप्रैल, 2019 से शुरू हुआ और 31 मार्च, 2022 तक पूरा किया जाएगा।
- इस योजना में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक तकनीक जैसे- माइल्ड हाइब्रिड, स्ट्रांग हाइब्रिड, प्लग इन हाइब्रिड और बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं।
- निगरानी प्राधिकरण: भारी उद्योग विभाग (भारी उद्योग एवं लोक उद्यम मंत्रालय)
- फेम इंडिया योजना के चार मुख्य क्षेत्र हैं:
- प्रौद्योगिकी विकास
- मांग सृजन
- पायलट प्रोजेक्ट
- चार्जिंग अवसंरचना
- इस योजना के तहत खरीद के समय खरीदारों (अंतिम उपयोगकर्त्ताओं/ उपभोक्ताओं) द्वारा मांग प्रोत्साहन का लाभ उठाया जाएगा और इसकी मासिक आधार पर भारी उद्योग विभाग द्वारा निर्माताओं को इसकी प्रतिपूर्ति की जाएगी।
- ‘फेम इंडिया’ नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMM) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। ‘फेम’ का मुख्य ज़ोर सब्सिडी प्रदान करके इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना है।
- ‘फेम-II’ की मुख्य विशेषताएँ:
- सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण पर ज़ोर देना, जिसमें साझा परिवहन भी शामिल है।
- सब्सिडी के माध्यम से लगभग 7000 ई-बसों, 5 लाख ई-थ्री व्हीलर, 55000 ई-फोर व्हीलर पैसेंजर कारों और 10 लाख ई-टू व्हीलर को सहायता प्रदान करने का लक्ष्य।
- 3-व्हील और 4-व्हील सेगमेंट में प्रोत्साहन मुख्य रूप से सार्वजनिक परिवहन के लिये उपयोग किये जाने वाहनों वाले या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए पंजीकृत वाहनों पर ही लागू होंगे।
- वहीं 2-व्हील सेगमेंट में निजी वाहनों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- उन्नत प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने के लिये इस योजना के तहत प्रोत्साहन का लाभ केवल उन वाहनों को मिलेगा जो लिथियम आयन बैटरी और अन्य नवीन प्रौद्योगिकियों आदि से सुसज्जित हैं।
- इसके तहत चार्जिंग अवसंरचना की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है, जिसमें देश भर के महानगरों, एक मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले शहरों, स्मार्ट सिटीज़ और पहाड़ी राज्यों के शहरों में लगभग 2700 चार्जिंग स्टेशन स्थापित किये जाएंगे, जिससे 3 किलोमीटर x 3 किलोमीटर के एक ग्रिड में कम-से-कम एक चार्जिंग स्टेशन की उपलब्धता हो सकेगी।
- प्रमुख शहर को जोड़ने वाले मुख्य राजमार्गों पर भी चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना का प्रस्ताव है।
चिंताएँ
- इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें बेहतर चार्जिंग अवसंरचना, आसान वित्तपोषण और व्यावहारिक जगत में वाहन का पर्याप्त प्रदर्शन आदि शामिल हैं। इसके लिये सरकारी हस्तक्षेप और नियोजन की आवश्यकता है, विशेष रूप से तब जब यह क्षेत्र अपने शुरुआती चरण में है।
- ई-रिक्शा चालक भी अपने वाहनों को चार्ज करने के लिये असुरक्षित और अवैध बिजली के स्रोतों पर निर्भर रहते हैं। प्रायः ई-रिक्शा चालकों द्वारा असुरक्षित परिस्थितियों में चार्जिंग की जाती है, जिससे ड्राइवर और यात्री दोनों को खतरा होता है।
आगे की राह
- सरकार द्वारा जन-जागरूकता अभियान चलाने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा आसान वित्तपोषण प्रदान किये जाने के साथ इस तरह की पहलों के माध्यम से आगामी पाँच वर्षों में दोपहिया बाज़ार को 30% इलेक्ट्रिक वाहन युक्त बनाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने हेतु सरकार का निरंतर समर्थन और स्थानीय रूप से निर्मित इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर विशेष ध्यान देने से भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण का महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाया जा सकेगा।
- इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के तीन स्तंभों यानी शहरी नियोजन, परिवहन और बिजली क्षेत्रों के बीच सही समन्वय स्थापित करने से इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यवस्थित रूप से अपनाने में मदद मिलेगी।
स्रोत: द हिंदू
यूरोपीय संघ की वरीयता सामान्यीकृत योजना
प्रिलिम्स के लियेयूरोपीय संघ, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन, सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली मेन्स के लियेसामान्यीकृत वरीयता प्रणाली का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संसद द्वारा एक प्रस्ताव अपनाया गया था, जिसमें यूरोपीय संघ आयोग से सामान्यीकृत योजना के तहत श्रीलंका को दी गई वरीयता प्लस (जीएसपी+) की अस्थायी वापसी पर विचार करने का आग्रह किया गया।
- श्रीलंका ने वर्ष 2017 में जीएसपी+, या यूरोपीय संघ की सामान्यीकृत वरीयता योजना को पुनः प्राप्त किया था।
- यूरोपीय संघ चीन के बाद श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और इसका दूसरा मुख्य निर्यात गंतव्य है।
प्रमुख बिंदु:
- वरीयता की सामान्यीकृत योजना (GSP) यूरोपीय संघ के नियमों का एक समूह है जो विकासशील देशों के निर्यातकों को यूरोपीय संघ को अपने निर्यात पर कम या कोई शुल्क नहीं देने की अनुमति देता है।
- यह विकासशील देशों को गरीबी कम करने और श्रम तथा मानव अधिकारों सहित अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों एवं सिद्धांतों के आधार पर रोज़गार सृजन करने में मदद करता है।
- यूरोपीय संघ के GSP को व्यापक रूप से कवरेज और लाभों के मामले में सबसे प्रगतिशील माना जाता है।
प्रकार:
- मानक GSP:
- निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये इसका मतलब है कि दो-तिहाई टैरिफ लाइनों पर सीमा शुल्क को आंशिक या पूर्ण रूप से हटाना।
- विकासशील देशों को स्वचालित रूप से GSP प्रदान किया जाता है यदि उन्हें विश्व बैंक द्वारा "ऊपरी मध्यम आय" से नीचे आय स्तर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है या उन्हें यूरोपीय संघ के बाज़ार में तरजीही पहुँच प्रदान करने वाली किसी अन्य व्यवस्था (जैसे मुक्त व्यापार समझौते) से लाभ नहीं होता है।
- लाभार्थी: बांग्लादेश, कंबोडिया और म्याँमार।
- GSP+:
- सतत् विकास और सुशासन के लिये विशेष प्रोत्साहन व्यवस्था।
- यह कमज़ोर निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये समान टैरिफ (मानक जीएसपी के तहत) को घटाकर 0% कर देता है जो मानव अधिकारों, श्रम अधिकारों, पर्यावरण की सुरक्षा और सुशासन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को लागू करते हैं।
- लाभार्थी: आर्मेनिया, बोलीविया, काबो वर्डे, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और श्रीलंका।
- EBA:
- अत्यधिक कम विकसित देशों के लिये विशेष व्यवस्था, उन्हें हथियारों और गोला-बारूद को छोड़कर सभी उत्पादों हेतु शुल्क मुक्त, कोटा मुक्त पहुँच प्रदान करना।
लाभार्थियों की निगरानी
- यूरोपीय संघ लगातार ‘GSP+’ लाभार्थी देशों के मानवाधिकारों, श्रम अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और सुशासन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों के प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा करता है।
- इस निगरानी में सूचनाओं का आदान-प्रदान और वार्ता आदि शामिल हैं, साथ ही इसमें नागरिक समाज सहित विभिन्न हितधारकों को भी शामिल किया जाता है।
सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP)
परिचय
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) एक अम्ब्रेला अवधारणा है, जिसमें औद्योगिक देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली अधिमान्य योजनाओं का बड़ा हिस्सा शामिल है।
- इसमें मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) के रूप में कम टैरिफ या लाभार्थी देशों द्वारा दाता देशों के बाज़ारों में निर्यात योग्य उत्पादों की शुल्क-मुक्त प्रविष्टि आदि शामिल है।
- विकासशील देशों को औद्योगिक देशों के बाज़ारों में वरीयता टैरिफ दरें प्रदान करने का विचार मूलतः वर्ष 1964 में ‘संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन’ (UNCTAD) की कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था।
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) को वर्ष 1968 में नई दिल्ली में अपनाया गया था और वर्ष 1971 में इसे पूर्णतः स्थापित किया गया।
- वर्तमान में अंकटाड सचिवालय को अधिसूचित कुल 13 राष्ट्रीय GSP योजनाएँ हैं।
वे देश जो सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) प्रदान करते हैं
- ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, कनाडा, यूरोपीय संघ, आइसलैंड, जापान, कज़ाखस्तान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, रूस, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका।
- वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपने GSP व्यापार कार्यक्रम के तहत एक लाभार्थी विकासशील राष्ट्र के रूप में भारत के दर्जे को समाप्त कर दिया था। अमेरिका के मुताबिक, भारत ने अमेरिका को यह आश्वासन नहीं दिया कि वह अपने बाज़ारों में अमेरिका को ‘न्यायसंगत और उचित पहुँच’ प्रदान करेगा।
लाभ
- आर्थिक विकास
- इसके परिणामस्वरूप लाभार्थी देशों को विकसित देशों के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने और अपने व्यापार में विविधता लाने में मदद मिलती है, जिससे विकासशील देश के आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होती है।
- रोज़गार के अवसर
- बंदरगाहों से GSP के तहत आयात किये गए सामान को उपभोक्ताओं, किसानों और निर्माताओं तक ले जाने से विकसित राष्ट्र में भी रोज़गार का सृजन होता है।
- प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी
- इस व्यवस्था के माध्यम से कंपनियों द्वारा सामानों के निर्माण के लिये उपयोग किये जाने वाले आयातित इनपुट की लागत में कमी आती है, जिससे कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी होती है।
- वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा
- यह लाभार्थी देशों को अपने नागरिकों को श्रमिक अधिकार प्रदान करने, बौद्धिक संपदा अधिकारों को लागू करने और कानून के शासन का समर्थन करने संबंधी वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करता है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD)
- यह 1964 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
- यह विकासशील देशों को एक वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के लाभों को अधिक निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से प्राप्त करने में सहायता करता है।
- इसके 194 सदस्य देश हैं। भारत भी इसका सदस्य है।
- इसके द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्ट हैं:
- व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
- इन्वेस्टमेंट ट्रेंड मॉनीटर रिपोर्ट (Investment Trends Monitor Report)
- विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
- न्यूनतम विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countries Report)
- सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
- वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)
मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN)
- विश्व व्यापार संगठन के टैरिफ एंड ट्रेड पर जनरल समझौते के ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ सिद्धांत के मुताबिक, विश्व व्यापार संगठन के प्रत्येक सदस्य देश को अन्य सभी सदस्यों के साथ समान रूप से मोस्ट फेवर्ड’ व्यापारिक भागीदारों के रूप में व्यवहार करना चाहिये।
- विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, यद्यपि 'मोस्ट फेवर्ड नेशन’ शब्द किसी ‘विशेष उपचार’ की ओर संकेत करता है, लेकिन वास्तव में इसका अर्थ है गैर-भेदभाव की नीति से।
स्रोत: द हिंदू
मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:बन्नी क्षेत्र, भूमि क्षरण तटस्थता मेन्स के लिये:मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र (UN) "मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय वार्ता" को संबोधित किया।
- वे संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 14वें सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे।
- यह वार्ता सभी सदस्य राज्यों को भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) लक्ष्यों और राष्ट्रीय सूखा योजनाओं को अपनाने तथा लागू करने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
प्रमुख बिंदु:
भारत द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम:
- भारत, LDN (सतत विकास लक्ष्य 15.3) पर अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की राह पर है।
- LDN एक ऐसी स्थिति है जहाँ पारिस्थितिक तंत्र कार्यों और सेवाओं का समर्थन करने तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता स्थिर रहती है या निर्दिष्ट अस्थायी व स्थानिक पैमाने और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर बढ़ जाती है।
- भारत वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि की बहाली के लिये कार्य कर रहा है।
- यह 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर [वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य का एक हिस्सा] अतिरिक्त कार्बन सिंक को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देगा।
- पिछले 10 वर्षों में इसमें लगभग 3 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है।
- उदाहरण के लिये: गुजरात के कच्छ के रण में बन्नी क्षेत्र अत्यधिक निम्नीकृत भूमि से ग्रस्त है और यहाँ बहुत कम वर्षा होती है।
- ऐसे क्षेत्र में घास के मैदानों को विकसित करके भूमि की बहाली की जाती है, जिससे भूमि क्षरण तटस्थता की स्थिति प्राप्त करने में मदद मिलती है।
विकासशील विश्व के सामने आने वाली चुनौतियों के संदर्भ में:
- वर्तमान में भूमि क्षरण विश्व के दो-तिहाई हिस्से को प्रभावित कर रहा है।
- भारत अपने साथी विकासशील देशों को भूमि बहाली हेतु रणनीति विकसित करने में सहायता कर रहा है।
- भूमि क्षरण के मुद्दों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिये भारत में एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया जा रहा है। यह भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद परिसर में अवस्थित है।
- देहरादून में स्थित ICFRE पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है।
भूमि क्षरण
संदर्भ:
- भूमि क्षरण कई कारणों से होता है, जिसमें चरम मौसम की स्थिति, विशेष रूप से सूखा आदि शामिल है।
- यह मानवीय गतिविधियों के कारण भी होता है जो मृदा और भूमि की गुणवत्ता में कमी लाता है तथा उन्हें प्रदूषित करता है।
प्रभाव:
- मरुस्थलीकरण गंभीर भूमि क्षरण का परिणाम है और इसे एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जो शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों का निर्माण करता है।
- यह जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की क्षति को बढ़ाता है तथा सूखे, जंगल की आग, अनैच्छिक प्रवास एवं ज़ूनोटिक संक्रामक रोगों के उद्भव में योगदान देता है।
भूमि क्षरण की जाँच के लिये वैश्विक प्रयास:
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD): इसे वर्ष 1994 में स्थापित किया गया था, यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
- UNCCD के 14वें CoP द्वारा हस्ताक्षरित वर्ष 2019 के दिल्ली घोषणापत्र में भूमि पर बेहतर पहुँच और प्रबंधन का आह्वान किया गया तथा लैंगिक-संवेदनशील परिवर्तनकारी परियोजनाओं पर ज़ोर दिया गया।
- द बॉन चैलेंज: यह एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक विश्व के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
- ग्रेट ग्रीन वॉल: यह ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी (GEF) की पहल है जहाँ साहेल-सहारन अफ्रीका के ग्यारह देशों ने भूमि क्षरण के खिलाफ लड़ने और देशी पौधों के पुनर्जीवन के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया है।
भूमि क्षरण की जाँच के लिये भारत के प्रयास:
- भारत अपने निवासियों को बेहतर मातृभूमि और बेहतर भविष्य प्रदान करने, स्थानीय भूमि को स्वस्थ तथा उत्पादक बनाने हेतु सामुदायिक स्तर पर आजीविका सृजन के लिये स्थायी भूमि एवं संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम वर्ष 2001 में तैयार किया गया था ताकि मरुस्थलीकरण की समस्याओं के समाधान हेतु उचित कार्रवाई की जा सके।
- वर्तमान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने वाले कुछ प्रमुख कार्यक्रम लागू किये जा रहे हैं:
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना)
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)
- हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (GIM)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)
- नदी घाटी परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र में मृदा संरक्षण
- बारानी क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना (NWDPRA)
- चारा और चारा विकास योजना-घास भंडार सहित चरागाह विकास का घटक
- कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन (CADWM) कार्यक्रम
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना