भारतीय अर्थव्यवस्था
विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति
प्रीलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा भंडार मेन्स के लिये:विदेशी मुद्रा भंडार में उतार-चढाव से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ (Foreign Exchange Reserves) पहली बार 500 बिलियन डॉलर के आँकड़े को पार कर गया है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, जून के प्रथम सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 8.2 बिलियन डॉलर बढ़ गया, जो कि सितंबर 2007 के बाद से सबसे बड़ी साप्ताहिक छलांग है।
- विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति (Foreign Currency Assets- FCAs) जो ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ का प्रमुख घटक है, में 8.42 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी के कारण अब यह 463.63 बिलियन डॉलर हो गया है।
- 5 जून को समाप्त सप्ताह के दौरान स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) में 329 मिलियन डॉलर के कमी के कारण अब यह 32.352 बिलियन डॉलर हो गया है।
- विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights) बढ़कर 1.44 बिलियन डॉलर (10 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी) हो गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) में आरक्षित निधि बढ़कर 4.28 बिलियन डॉलर (120 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी) हो गई है।
- ध्यातव्य है कि 6, मार्च 2020 तक विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 487.23 बिलियन डॉलर पर था।
- ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ में वृद्धि मुख्य रूप से ‘विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति’ (Foreign Currency Assets- FCAs) में वृद्धि के कारण हुई है।
- मुद्रा व्यापारियों के अनुसार, केंद्रीय बैंक द्वारा हस्तक्षेप तथा मुद्रा पुनर्मूल्यांकन के माध्यम से लाभ के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में तेज़ वृद्धि हुई है। वर्तमान में भारत के पास लगभग 14 महीनों के आयात को पूरा करने के लिये पर्याप्त भंडार है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में अब तक विदेशी मुद्रा भंडार 40 बिलियन डॉलर बढ़ गया, जबकि रुपए में इसी अवधि के दौरान 6% की गिरावट आई है। यह दर्शाता है कि भारतीय मुद्रा की गिरावट को रोकने हेतु RBI मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने को लेकर गंभीर नहीं है।
विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves):
- किसी देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है।
- किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित 4 तत्त्व शामिल होते हैं-
- विदेशी परिसंपत्तियाँ (विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बाॅण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा में)
- स्वर्ण भंडार (Gold Reserves)
- IMF के पास रिज़र्व कोष (रिज़र्व ट्रैंच)
- विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDR)
विशेष आहरण अधिकार
(Special Drawing Rights-SDR):
- विशेष आहरण अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) की मुद्रा है। IMF ने इसे वर्ष 1969 में अपनाने का निर्णय लिया और वर्ष 1970 से मुद्रा के रूप में अपनाया।
- व्यवहार में SDR के सिक्के या नोट चलन में नहीं होते, IMF इसे केवल अपने हिसाब-किताब के बही खाते में रखता है। इसलिये इसे लेखा मुद्रा, पेपर मुद्रा या कृत्रिम मुद्रा भी कहते हैं।
- SDR का मूल्य, बास्केट ऑफ करेंसी में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर किया जाता है। वर्तमान में बास्केट ऑफ करेंसी में 5 मुद्राएँ शामिल हैं-
- अमेरिकी डॉलर
- जापानी येन
- यूरो
- ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग
- चीनी रेमिंबी (RMB)
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
प्रीलिम्स के लियेग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मेन्स के लियेAI से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलू, भारत द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ‘ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (Global Partnership on Artificial Intelligence-GPAI) में एक संस्थापक सदस्य के तौर पर शामिल हो गया है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के अतिरिक्त इस पहल से जुड़ने वाले अन्य सदस्यों में विश्व की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ, जैसे- अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (EU), ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांँस, जर्मनी, इटली, जापान, मैक्सिको, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर आदि शामिल हैं।
ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI)
- ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) एक अंतर्राष्ट्रीय और बहु-हितधारक पहल है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के ज़िम्मेदारीपूर्ण विकास और मानवाधिकारों, समावेशन, विविधता, नवाचार और आर्थिक विकास में उपयोग का मार्गदर्शन करने पर आधारित है।
- उपरोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इस पहल के तहत AI से संबंधित प्राथमिकताओं पर अत्याधुनिक अनुसंधान और अनुप्रयुक्त गतिविधियों की सहायता से AI के संबंध में सिद्धांत (Theory) और व्यवहार (Practice) के बीच मौजूद अंतर को समाप्त करने की कोशिश की जाएगी।
- यह पहल प्रतिभागी देशों के अनुभव और विविधता का उपयोग करके AI से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की बेहतर समझ विकसित करने का अपने प्रकार का पहला प्रयास है।
- GPAI पहल के अंतर्गत AI के ज़िम्मेदारीपूर्ण विकास को बढ़ावा देने के लिये साझेदारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से उद्योग, नागरिक समाज, सरकारों और शिक्षाविदों को एक साथ लाया जाएगा और ऐसी कार्यप्रणाली विकसित की जाएगी, जिनसे यह दर्शाया जा सके कि COVID-19 के मौजूदा वैश्विक संकट से बेहतर ढंग से निपटने के लिये किस प्रकार AI का लाभ उठाया जा सकता है।
ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) और भारत
- ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) में संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल होने से भारत समावेशी विकास के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग के अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वैश्विक विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकेगा।
- उल्लेखनीय है कि भारत ने बीते कुछ वर्षों में अपनी विभिन्न पहलों के माध्यम से मानव के समावेशन और सशक्तीकरण के दृष्टिकोण के साथ शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, ई-कॉमर्स, वित्त, दूरसंचार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में AI का लाभ उठाना शुरू कर दिया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का अर्थ
- आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की शुरुआत या उसके अतीत को दार्शनिकों द्वारा मानव विचार को एक प्रतीकात्मक प्रणाली के रूप में वर्णित करने के प्रयास में खोजा जा सकता है।
- हालाँकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की औपचारिक शुरुआत 1950 के दशक से मानी जाती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का तात्पर्य बनावटी अर्थात् कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता होता है।
- इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क कार्य करता है।
- सरल शब्दों में कहें तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का अर्थ एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने से होता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का महत्त्व
- नीति आयोग (NITI Aayog) के अनुमान के अनुसार, यदि भारत में सही ढंग से AI अपनाया गया तो इसके प्रभावस्वरूप वर्ष 2035 तक अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य वर्धन (Gross Value Added- GVA) में 15 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
- AI गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की पहुँच और सामर्थ्यता बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।
- कृषि क्षेत्र में यह तकनीक किसानों की आय बढ़ाने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने और अपव्यय को कम करने में योगदान कर सकती है।
- इसके माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच में भी सुधार किया जा सकता है।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बढ़ती शहरी आबादी के लिये कुशल बुनियादी ढाँचे के निर्माण में मददगार साबित हो सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) संबंधी चुनौतियाँ
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स और वर्चुअल रियलिटी जैसी तकनीकों से तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में आगामी दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे।
- विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने और समझने वाले रोबोट यदि किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगे तो यह मानवता के लिये बड़ा खतरा बन सकता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय और अमेरिका
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय तथा इसकी भूमिका, वैश्विक स्तर पर अमेरिका-ICC संबंधों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court-ICC) के कुछ कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगा दिया। इस आदेश से ICC के कर्मचारियों की वित्तीय संपत्ति अवरुद्ध हो जाएगी, साथ ही इन अधिकारियों और इनके निकट रिश्तेदारों को संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने से रोक दिया जाएगा।
प्रतिबंध का कारण
- ICC के ये अधिकारी इस बात की जाँच कर रहे थे कि क्या अफगानिस्तान तथा अन्य स्थानों पर हुए कथित युद्ध अपराधों में अमेरिकी सेना और इसके सहयोगी शामिल थे।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के अटॉर्नी-जनरल के अनुसार, अमेरिकी न्याय विभाग (US Justice Department) को पर्याप्त विश्वसनीय जानकारी मिली है जो अभियोजन पक्ष के कार्यालय में उच्चतम स्तर पर वित्तीय भ्रष्टाचार और दुर्भावना के लंबे इतिहास के बारे में गंभीर चिंताओं को उजागर करती है।
- उपरोक्त के अलावा अमेरिकी अधिकारियों ने ICC में अपने पक्ष में हेर-फेर करने के लिये रूस को भी ज़िम्मेदार ठहराया है।
- अमेरिका मानना है कि इसका अधिकार क्षेत्र केवल तभी लागू होता है जब कोई सदस्य राज्य अत्याचारों के खिलाफ मुकदमा चलाने में असमर्थ या अनिच्छुक हो।
अमेरिका के फैसले की आलोचना
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने अमेरिका के इस फैसले की निंदा यह कहते हुए की है कि अमेरिका का फैसला “विधि के शासन और न्यायालय की न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का अस्वीकार्य प्रयास है”।
- इज़राइल को छोड़कर, कई अन्य देशों ने हेग स्थित न्यायाधिकरण का समर्थन किया है।
- संयुक्त राष्ट्र ने भी अमेरिका द्वारा दिये गए आदेशों की रिपोर्ट पर ध्यान दिया है।
- अंतर्राष्ट्रीय NGO ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch) के अनुसार, संपत्ति ज़ब्त करने और यात्रा प्रतिबंध लगाने जैसे निर्णय मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के लिये हैं, न कि पीड़ितों के लिये न्याय की मांग करने वाले अभियोजन पक्ष तथा न्यायाधीश के लिये।
अमेरिका तथा ICC संबंधों की पृष्ठभूमि
- क्लिंटन प्रशासन (1993-2001) रोम संविधि (Rome Statute) की वार्ताओं में शामिल था और वर्ष 2000 में उसने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये। लेकिन अगले राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने वर्ष 2002 में अमेरिका को रोम संविधि से अलग कर दिया और ICC की पहुँच से अमेरिकी नागरिकों की रक्षा के लिये अमेरिकन सर्विस-मेंबर्स प्रोटेक्शन एक्ट (American Service-Members’ Protection Act) कानून पर हस्ताक्षर किये।
- ICC के साथ मतभेदों के बावजूद, कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें वाशिंगटन ने इस मंच के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया-
- वर्ष 2005 में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दारफुर संकट (Darfur crisis) के दौरान अपराधों की जाँच करने के लिये ICC को अनुरोध किया उस पर अमेरिका ने वीटो नहीं किया।
- वर्ष 2011 में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लीबिया मामला ICC को स्थानांतरित किया तो अमेरिका ने इसके समर्थन में वोट किया।
- अमेरिका ने मुकदमों के लिये संदिग्धों को अफ्रीका से ICC तक स्थानांतरित करने में भी महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की।
- डोनाल्ड ट्रम्प के राष्टपति बनने के बाद अमेरिका तथा ICC के संबंधों में फिर से मतभेद उत्पन्न हुए।
- ट्रम्प ने वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) में घोषणा करते हुए कहा था कि संयुक्त राज्य अमेरिका ICC को किसी भी प्रकार का समर्थन या मान्यता प्रदान नहीं करेगा। ICC का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, कोई वैधता नहीं है और कोई अधिकार नहीं है।
- वर्ष 2019 में ICC की मुख्य अभियोजक फतौ बेन्सौडा (Fatou Bensouda) ने वर्ष 2003 से 2014 के बीच अफगानिस्तान युद्ध के दौरान हुए कथित अत्याचारों की औपचारिक जाँच के लिये कहा, इस जाँच के तहत संभवतः अमेरिकी सेना और CIA अधिकारियों के युद्ध अपराधों में शामिल होने की जाँच की जानी थी। उस समय ट्रम्प प्रशासन ने फतौ बेन्सौडा के अमेरिकी वीज़ा को रद्द कर प्रतिक्रिया व्यक्त की। मार्च 2020 में, ICC के न्यायाधीशों ने बेन्सौडा के अनुरोध को मंज़ूरी दी थी।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय
(International Criminal Court-ICC)
- ICC, हेग (नीदरलैंड्स) में स्थित एक स्थायी न्यायिक निकाय है, जिसका सृजन वर्ष 1998 के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर रोम संविधि (इसकी स्थापना और संचालन संबंधी दस्तावेज़़) द्वारा किया गया था और 1 जुलाई, 2002 इस संविधि के लागू होने के साथ इसने कार्य करना प्रारंभ किया।
- मंच की स्थापना विभिन्न अपराधों के खिलाफ अभियोजन के लिये अंतिम उपाय के रूप में की गई थी ताकि उन अपराधों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सके जो अन्यथा अदंडित रह जाएंगे। ICC का क्षेत्राधिकार मुख्यतः चार प्रकार के अपराधों पर होगाः
1. नरसंहार (Genocide)
2. मानवता के खिलाफ अपराध (Crimes Against Humanity)
3. युद्ध अपराध (War Crimes)
4. अतिक्रमण का अपराध (Crime of Aggression) - 123 राष्ट्र रोम संविधि के पक्षकार हैं तथा ICC के अधिकार को मान्यता देते हैं लेकिन अमेरिका, चीन, रूस और भारत इसके प्रमुख अपवाद हैं।
- उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice-ICJ) संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा है जबकि ICC संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा नहीं है बल्कि UN-ICC संबंध एक अलग समझौते द्वारा शासित है।
- ICJ जो संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है, यह मुख्य रूप से राष्ट्रों के बीच विवादों पर सुनवाई करता है। जबकि ICC व्यक्तियों पर मुकदमा चलाती है क्योंकि इसका अधिकार क्षेत्र किसी सदस्य राज्य में हुए अपराध या ऐसे राज्य के किसी नागरिक द्वारा किये गए अपराधों तक विस्तारित है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस एवं द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नेपाल के नए मानचित्र को लेकर संविधान संशोधन पारित
प्रीलिम्स के लियेसुगौली संधि, विभिन्न स्थानों की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेअंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में कूटनीतिक संवाद की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेपाल की संसद के निचले सदन (Lower House) ने नेपाल के अद्यतित (Updated) राजनीतिक मानचित्र को संवैधानिक मान्यता देने के लिये द्वितीय संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया है, उल्लेखनीय है कि इस मानचित्र में उत्तराखंड (भारत) के कुछ हिस्सों को नेपाली क्षेत्र के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था, जिसका विरोध करते हुए नेपाल ने 20 मई को अपने नए नक्शे का अनावरण किया था।
- इससे पूर्व भी जब भारत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने के बाद अपना नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया था तो भी नेपाल ने काफी विरोध किया था।
- नेपाल के अनुसार, भारत को 1950 के दशक में इस क्षेत्र में सेना तैनात करने की अनुमति दी गई थी, किंतु बाद में भारत ने इस क्षेत्र से अपनी सेना हटाने से इनकार कर दिया, जिसके कारण नेपाल को यह कदम उठाना पड़ा।
विवाद
- उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया था, जिसमें उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani) लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को नेपाल का हिस्सा बताया गया था।
- भारत ने नेपाल के नवीन मानचित्र को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि नेपाल के नए मानचित्र में देश के क्षेत्र का अनुचित रूप से विस्तार किया गया है, जो कि ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है।
- भारत के अनुसार, नेपाल का कृत पूर्णतः एकपक्षीय है और कूटनीतिक संवाद के माध्यम से शेष सीमा मुद्दों को हल करने के लिये द्विपक्षीय समझौते के विपरीत है।
- नेपाल के अनुसार, सुगौली संधि (वर्ष 1816) के तहत काली नदी के पूर्व में अवस्थित सभी क्षेत्र, जिनमें लिम्पियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) शामिल हैं, नेपाल का अभिन्न अंग हैं, भारत इस क्षेत्र को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का हिस्सा मानता है।
- 1 नवंबर, 1814 को अंग्रेज़ों ने नेपाल के विरोध युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध आगामी दो वर्षों तक चला और वर्ष 1815 तक ब्रिटिश सेना ने गढ़वाल और कुमाऊँ से नेपाली सेना को बाहर निकल दिया।
- एक वर्ष बाद (वर्ष 1816) में सुगौली संधि पर हस्ताक्षर के साथ युद्ध समाप्त हो गया। इस संधि के तहत नेपाल की सीमाओं का निर्धारण किया गया, जो कि आज भी मौजूद है।
कालापानी
- कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के पूर्वी हिस्से में स्थित एक क्षेत्र है। यह क्षेत्र उत्तर में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ अपनी सीमा साझा करता है, वहीं पूर्व और दक्षिण में इसकी सीमा नेपाल से लगती है।
- इस क्षेत्र का प्रशासन भारत द्वारा किया जाता है, किंतु नेपाल ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है।
- यह क्षेत्र नेपाल और भारत के बीच सबसे बड़ा क्षेत्रीय विवाद है, जिसमें कम-से-कम 37,000 हेक्टेयर भूमि शामिल है।
भारत-नेपाल संबंध और मौजूदा संशोधन का प्रभाव
- नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण नेपाल भारत की विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
- भारत और नेपाल के बीच सीमा पार लोगों की मुक्त आवाजाही की एक लंबी परंपरा रही है।
- भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
- दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी साझा सीमा है, जिससे भारत के पाँच राज्य- सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं।
- भारत और नेपाल के संबंध ऐतिहासिक दृष्टि से काफी सुगम रहे हैं, किंतु हाल के दिनों में पैदा हुए विवादों पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि धीरे-धीरे दोनों देशों के संबंधों में तनाव की स्थिति पैदा हो रही है।
- नेपाल की संसद के निचले सदन द्वारा पारित हालिया संशोधन ने दोनों देशों के संबंधों को एक नए मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल के नए मानचित्र का नेपाल और भारत के संबंधों पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
- नेपाल के जानकार मानते हैं कि इस संशोधन के साथ ही भारत-नेपाल सीमा वार्ता अब और अधिक जटिल हो जाएगी, क्योंकि सचिव स्तर के अधिकारियों को संविधान के प्रावधानों पर बातचीत करने का कोई अधिकार नहीं है।
आगे की राह
- नेपाल के साथ भारत के संबंधों के महत्त्व को देखते हुए भारत को इस मामले को निपटाने के लिये पहल करने में देरी नहीं करनी चाहिये।
- सीमा पार लोगों की मुक्त आवाजाही को देखते हुए नेपाल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में नेपाल के साथ स्थिर और मैत्रीपूर्ण संबंध एक अनिवार्य शर्त है जिसे भारत द्वारा नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
- आवश्यक है कि विभिन्न सीमा विवादों को एक साथ एक मंच पर आकर कूटनीतिक माध्यम से सुलझाने का प्रयास किया जाए, क्योंकि एकपक्षीय कार्यवाही किसी भी विवाद को सुलझाने का एक उपाय नहीं हो सकती है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
आँत के सूक्ष्मजीवों में उपापचय
प्रीलिम्स के लिये:आँत के सूक्ष्मजीवों के बारे में मेन्स के लिये:शोध का चिकित्सीय क्षेत्र में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आईआईटी मद्रास के शोधकर्त्ताओं के द्वारा आमतौर पर आँत में पाये जाने वाले बैक्टीरिया के 36 उपभेदों (Strains) के उपापचय (Metabolism) का अध्ययन किया गया जो प्रोबायोटिक्स के विकास को और अधिक मज़बूती प्रदान कर सकते है।
प्रमुख बिंदु:
- प्रोबायोटिक्स, आँत में मौज़ूद बैक्टीरिया के सहायक बैक्टीरिया/कॉकटेल (Cocktails) होते हैं।
- ये जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जो अन्य उपयोगों के साथ, पाचन तंत्र में मौज़ूद बैक्टीरिया के कार्य को संपूरित करते हैं।
- मानव आँत के माइक्रोबायोम में भारी संख्या में लाभकारी बैक्टीरिया विद्यमान होते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से सहभोजी (Commensals) कहा जाता है।
- इनमें बिफीडोबैक्टीरियम जीनस के जीवाणु प्रमुख हैं जो वयस्क मानव एवं शिशुओं की आँत में पाए जाते हैं ।
- बिफीडोबैक्टीरियम अडोलेसेंटिस (Bifidobacterium adolescentis) वयस्क मानव आँत में तथा बिफीडोबैक्टीरियम लोंगम (Bifidobacterium longum) शिशु आँत में पाए जाते हैं।
- बिफीडोबैक्टीरियम आँत में मौज़ूद बैक्टीरिया एवं इसकी प्रजातियों के सबसे बड़े संघ (Genera) में से एक है।
शोधकार्य में शामिल बैक्टीरिया:
- मानव आँत में बिफीडोबैक्टीरियम की लगभग 80 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से उपापचय नेटवर्क मॉडलिंग (Metabolic Network Modelling) के माध्यम से शोधकर्त्ताओं द्वारा 20 प्रजातियों के 36 उपभेदों का अध्ययन किया गया है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा उपभेदों के उपापचय में भाग लेने वाले कुछ महत्वपूर्ण एंजाइमों की पहचान की गई। जिसके लिये अवरोध-आधारित मॉडलिंग तकनीक (Constraint-Based Modelling System) का प्रयोग किया गया है।
- यह तकनीकी अणुओं के कोशिकीय आदान- प्रदान (Cellular Trafficking of Molecules) पर आधारित है अर्थात् इसके माध्यम से इस बात का पता लगाया जाता है कि कौन सी प्रतिक्रियाएँ हैं जो विभिन्न अणुओं का उत्पादन करती हैं तथा विभिन्न परिस्थितियों में क्या करती हैं।
- ये स्थितियाँ विभिन्न आहारों से माध्यम से उत्पन्न हो सकती हैं जो अंत में आँत में मौज़ूद सूक्ष्मजीवों को प्रभावित कर सकती हैं।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा इस कार्य के लिये जीवाणुओं के अध्ययन में प्रयोग किये गए उपभेदों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया।
- विशेष रूप से, शोधकर्त्ताओं ने बैक्टीरिया की शॉर्ट-चेन फैटी एसिड (short-chain fatty acids) उत्पादन क्षमता का अनुमान लगाया है जो आँत में अम्लता के स्तर (pH) को बनाए रखने में सहायक है।
- बैक्टीरिया के उपभेदों के अध्ययन में शोधकर्ताओं द्वारा देखा गया कि लैक्टेट के उत्पादन के विपरीत एसीटेट का उत्पादन उपभेद-विशिष्ट (Strain-Specific) होता है।
अध्ययन का महत्त्व:
- यह अध्ययन मानव आँत में मौज़ूद सूक्ष्मजीवों के गुणों को परिभाषित करने के लिये उपापचय क्षमताओं का विश्लेषण करने की क्षमता को बेहतर तरीके से रेखांकित करता है।
- शोध का प्रयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये प्रोबायोटिक्स का उत्पादन करने के लिये भी किया जा सकता है।
- पिछले कुछ वर्षों में, प्रोबायोटिक्स की संरचना में उल्लेखनीय सुधार होने के बावज़ूद फिर भी इनके विकास के लिये किये गए परीक्षणों में त्रुटियाँ होती है,यह शोध इस दिशा में अधिक व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का पहला गैस एक्सचेंज
प्रीलिम्स के लिये:इंडियन गैस एक्सचेंज के बारे में, तरलीकृत प्राकृतिक गैस मेन्स के लिये:‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ की कार्य प्रणाली एवं ऊर्जा क्षेत्र में इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय’ (Ministry of Petroleum & Natural Gas) द्वारा एक ई-समारोह के माध्यम से भारत के प्रथम राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन वितरण-आधारित गैस ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ (Indian Gas Exchange- IGX) का शुभारंभ किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ प्राकृतिक गैस के लिये एक वितरण-आधारित (Delivery Based) ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म होगा।
- यह प्लेटफ़ॉर्म ग्राहकों को निर्बाध ट्रेडिंग सुविधा प्रदान करने के लिये पूरी तरह से वेब-आधारित इंटरफ़ेस पर आधारित है।
- इंडियन गैस एक्सचेंज, ऑनलाइन गैस ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म ‘इंडियन एनर्जी एक्सचेंज’ (Indian Energy Exchange- IEX) की सहायक/अनुषंगी कंपनी के रूप में कार्य करेगा।
- इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्राकृतिक गैस का व्यापार रुपये में किया जायेगा जिसमे न्यूनतम आवंटन का आकार 100 मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (MBTU) जो कि ऊष्मा की इकाई है, के द्वारा निर्धारित किया गया है।
- ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ बाजार सहभागियों को मानकीकृत गैस अनुबंधों में व्यापार करने में समर्थ बनाएगा।
‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ की कार्यप्रणाली?
- यह एक डिजिटल ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म है, जिसके माध्यम से बड़ी संख्या में क्रेता-विक्रेता प्राधिकृत केंद्रों के माध्यम से स्पॉट मार्केट (Spot Market) और वायदा अनुबंध (Forward Market) में आयातित प्राकृतिक गैस का कारोबार कर सकेंगे।
- इसके लिये तीन केंद्रों (गुजरात के दाहेज, हजीरा और आंध्र प्रदेश का ओडुरु-काकीनाड़ा) का चयन किया गया है।
- बिना किसी खरीददार की खोज के इस डिजिटल ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से आयातित ‘तरलीकृत प्राकृतिक गैस’ (LNG) को बेचा जायेगा अर्थात् खरीदारों को उचित मूल्य पाने के लिये अब कई डीलरों से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ में अगले दिन और एक महीने तक की डिलीवरी के लिये अनुबंध की अनुमति है जबकि आमतौर पर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिये अनुबंध छह महीने से एक वर्ष तक होता है।
- ध्यातव्य है कि देश में उत्पादित प्राकृतिक गैस की कीमत सरकार द्वारा तय की जाती है जिसे ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ पर नहीं बेचा जाएगा।
- इसके माध्यम से सिर्फ बाहर से आयातित अर्थात अन्य देशों से आयातित प्राकृतिक गैस की ही खरीदी एवं बिक्री की जाएगी।
स्पॉट मार्केट:
- स्पॉट मार्केट/कैश मार्केट एक सार्वजनिक वित्तीय बाजार है जिसमें वित्तीय साधनों /वस्तुओं के तत्काल वितरण के लिये कारोबार किया जाता है।
वायदा बाज़ार:
- वायदा बाज़ार का अभिप्राय उस स्थान से होता है जहाँ वायदा/भविष्य के अनुबंधों को ख़रीदा और बेचा जाता है।
- वायदा/भविष्य के अनुबंध वे वित्तीय अनुबंध होते हैं जिनमें खरीदार किसी व्यक्ति को भविष्य में पूर्व निश्चित मूल्य पर परिसंपत्ति खरीदने का वचन देता है।
भारत के आयात पर प्रभाव:
- देश में प्राकृतिक गैस के वर्तमान स्रोत कम होने के कारण गैस का घरेलू उत्पादन पिछले दो वित्तीय वर्षों में कम हुआ है।
- घरेलू रूप से उत्पादित प्राकृतिक गैस वर्तमान में देश की प्राकृतिक गैस की खपत के आधे से भी कम उत्पादित की जाती है।
- सरकार द्वारा LNG आयात द्वारा घरेलू गैस की खपत की पूर्ति हेतु योजना बनाई जा रही हैं।
- क्योंकि भारत सरकार द्वारा अपने समग्र ऊर्जा खपत में प्राकृतिक गैस के अनुपात को वर्ष 2018 के 6.2% से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 15% करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
क्या नियामक परिवर्तन की आवश्यकता है?
- वर्तमान में, प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिये आवश्यक पाइपलाइन बुनियादी ढाँचे को उन कंपनियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो स्वय नेटवर्क की मालिक हैं।
- राज्य के स्वामित्व वाली ‘गेल’ भारत की सबसे बड़ी गैस पाइपलाइन नेटवर्क का स्वामित्व और संचालन करने वाली कंपनी है, जो 12,000 किमी से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है।
- ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ द्वारा प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों के उपयोग के लिये एक स्वतंत्र,पारदर्शी ऑपरेटर पाइपलाइन सिस्टम की आवंटन प्रणाली को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- इसके माध्यम से पाइपलाइन के आवंटन में तटस्थता को लेकर खरीदारों एवं विक्रेताओं के मन में विश्वास पैदा किया जा सकता है।
‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ का महत्त्व:
- ‘इंडियन गैस एक्सचेंज’ के माध्यम से LPG टर्मिनलों, गैस पाइपलाइनों, शहर गैस वितरण (City Gas Distribution- CGD) अवसंरचना पर विशाल निवेश तथा बाजार संचालित मूल्य व्यवस्था के लिये अनुमति प्रदान करने के विचार को भारत द्वारा मूर्त रूप दिया जा सकेगा।
- यह देश को प्राकृतिक गैस के मुक्त बाजार मूल्य निर्धारण की दिशा में बढ़ाने में मदद करेगा।
- बाजार संचालित मूल्य निर्धारण प्रणाली होने से इंडिया गैस एक्सचेंज, गैस के लिये मुक्त बाजार सुनिश्चित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- इसके माध्यम से पर्यावरण अनुकूल, स्वच्छ, किफायती, टिकाऊ ऊर्जा तक जनता की सार्वभौमिक पहुँच संभव होगी।
- इस उपलब्धि के साथ, भारत प्रगतिशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के क्लब में शामिल हो सकेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
पर्माफ्रॉस्ट व जलवायु परिवर्तन
प्रीलिम्स के लियेपर्माफ्रॉस्ट से तात्पर्य मेन्स के लियेजलवायु पर पड़ने वाला प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस के आर्कटिक क्षेत्र में स्थित विद्युत संयंत्र से हुए लगभग 20,000 टन तेल रिसाव (Oil Spil) का मुख्य कारण पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को माना जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- मॉस्को से 3,000 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित नॉरिल्स्क (Norilsk) शहर में भू-तापीय विद्युत संयंत्र पूरी तरह से पर्माफ्रॉस्ट पर निर्मित किया गया था।
- कई वर्षों में जलवायु परिवर्तन और अन्य मौसमी घटनाओं के कारण पर्माफ्रॉस्ट कमज़ोर हो गया था, परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट पर बने भू-तापीय विद्युत संयंत्र के स्तंभ गिर गए, जिससे संयंत्र से तेल का रिसाव प्रारंभ हो गया।
- इस तेल के रिसाव के कारण आर्कटिक क्षेत्र से बहने वाली अंबरनाया नदी व्यापक रूप से प्रदूषित हो गई जिससे सूक्ष्म जीवों को व्यापक हानि पहुँचने की आशंका व्यक्त की गई है।
- यह दुर्घटना रूस के इतिहास की दूसरी बड़ी तेल रिसाव की घटना है। इससे पूर्व ऐसी दुर्घटना वर्ष 1994 में कच्चे तेल के रिसाव के कारण हुई थी।
क्या है पर्माफ्रॉस्ट?
- पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार-भूमि वह मिट्टी है जो 2 वर्षों से अधिक अवधि से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
- पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी में पत्तियाँ, टूटे हुए वृक्ष आदि के बिना क्षय हुए पड़े रहते है। इस कारण यह जैविक कार्बन से समृद्ध होती है।
- जब मिट्टी जमी हुई होती है, तो कार्बन काफी हद तक निष्क्रिय होता है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट का ताप बढ़ता है तो सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के कारण कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तेज़ी से बढ़ने लगता है। फलस्वरूप वातावरण में कार्बन की सांद्रता बढ़ने लगती है।
- ऐसा ध्रुवीय क्षेत्रों, अलास्का, कनाडा और साइबेरिया जैसे उच्च अक्षांशीय अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में होता है जहाँ ऊष्मा पूर्णतया मिट्टी की सतह को गर्म नहीं कर पाती है।
पर्माफ्रॉस्ट पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- आर्कटिक में वायु के बढ़ते तापमान से पर्माफ्रॉस्ट का गलन प्रारंभ होने से कार्बनिक पदार्थ विघटित होकर कार्बन को ग्रीनहाउस गैसों कार्बन-डाइऑक्साइड और मीथेन के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जित कर देते है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों में वैश्विक तापमान की दर 20वीं सदी के तापमान से 3.5 प्रतिशत अधिक है, जिससे बर्फ पिघलने की गति में वृद्धि हो रही है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित कई स्थान पर्माफ्रॉस्ट पर बसे हुए हैं। पर्माफ्रॉस्ट जमी अवस्था में एक मज़बूत आधार के रूप में कार्य करता है परंतु वैश्विक तापन से इसके पिघलने के कारण घरों, सड़कों तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।
- जब पर्माफ्रॉस्ट जमी अवस्था में होता है तो मृदा में मौजूद जैविक कार्बन का विघटन नहीं हो पाता है परंतु जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है तो सूक्ष्म जीवाणु इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मुक्त होती हैं।
अवसंरचना के लिये हानिकारक
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से न केवल प्राकृतिक बल्कि मानव-निर्मित अवसंरचना के भी अस्थिर होने का खतरा बना रहता है।
- सतह के अस्थिर होने से भूस्खलन, भूकंप तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आ सकती हैं जिससे सड़कें, रेलवे लाइनों, भवनों, विद्युत संयंत्रों और गैस पाइपलाइन जैसे प्रमुख बुनियादी ढाँचों को नुकसान होता है।
- इससे स्थानीय लोगों के घरों के साथ-साथ आर्कटिक जानवरों के निवास स्थल और उनके अस्तित्त्व पर भी खतरा मंडराने लगता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जून, 2020
जर्मीक्लीन (GermiKlean)
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने सुरक्षा बलों की वर्दी को कीटाणुमुक्त और स्वच्छ करने के लिये जर्मीक्लीन (GermiKlean) नाम से एक सैनिटाइज़िंंग कक्ष (Sanitizing Chamber) विकसित किया है। DRDO के अनुसार, ‘जर्मीक्लीन’ सैनिटाइज़िंंग कक्ष मात्र 15 मिनट के भीतर वर्दी के 25 जोड़ों को सैनिटाइज़ कर सकता है। DRDO द्वारा विकसित यह सैनिटाइज़िंंग कक्ष पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में स्थापित किया गया है। उल्लेखनीय है कि सर्वप्रथम दिल्ली पुलिस ने पहले अपनी वर्दी और हेलमेट समेत कई अन्य उपकरणों को स्वच्छ और कीटाणुमुक्त करने के लिये अपनी आवश्यकता प्रस्तुत की थी। ध्यातव्य है कि DRDO ने सुरक्षा बलों के पैर की सफाई के लिये एक सैनिटाइज़ेशन टनल (Sanitisation Tunnel) और एक सैनिटाइज़ेशन मैट (Sanitisation Mat) भी तैयार किये हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का R&D विंग है, जो अत्याधुनिक और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये भारत को सशक्त बनाने की दृष्टि से कार्य कर रहा है। DRDO का गठन वर्ष 1958 में भारतीय सेना के तत्कालीन प्रतिष्ठानों के समामेलन से किया गया था। DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है।
‘घर -घर निगरानी’ एप
हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी को समाप्त करने के उद्देश्य से घर-घर निगरानी करने के लिये ‘घर घर निगरानी’ मोबाइल एप लॉन्च किया है। इस एप का प्रयोग पंजाब में कोरोना वायरस (COVID-19) के सामुदायिक प्रसारण को रोकने हेतु शुरुआती जाँच एवं परीक्षण के लिये एक उपकरण के रूप में किया जाएगा। इस पहल के तहत पंजाब सरकार राज्य के उन सभी लोगों का सर्वेक्षण करेगी, जिनकी आयु 30 वर्ष से अधिक है, साथ ही इसमें उन लोगों को भी शामिल किया जाएगा जिनकी आयु तो 30 वर्ष से कम है, किंतु एक से अधिक बीमारियाँ अथवा रोग हैं। इससे राज्य को अपनी COVID-19 रोकथाम रणनीति बनाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण डेटाबेस विकसित करने में सहायता मिलेगी। साथ ही यह सर्वेक्षण राज्य के सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बेहतर दिशा देने में मददगार साबित होगा। उल्लेखनीय है कि यह एप राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वयं तैयार किया गया है। वर्तमान में पंजाब के 518 गाँवों और 48 शहरी वार्डों में सर्वेक्षण किया गया है। इस सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि लगभग 4.9 प्रतिशत लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, वहीं 0.14 प्रतिशत गुर्दे संबंधी रोग से, 0.64 प्रतिशत हृदय संबंधी रोग से और 0.13 प्रतिशत कैंसर से पीड़ित हैं। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, पंजाब में कोरोना वायरस (COVID-19) के कुल 3,140 मामले सामने आए हैं, हालाँकि इसमें से 2,356 लोग ठीक हो चुके हैं, वहीं 67 लोगों की मृत्यु हो गई है।
‘ई-ऑफिस’ एप्लीकेशन
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes & Customs- CBIC) ने हाल ही में देश भर 500 से भी अधिक CGST और सीमा शुल्क कार्यालयों के लिये ‘ई-ऑफिस’ एप्लीकेशन का शुभारंभ किया है। उल्लेखनीय है कि CBIC के 50,000 से भी अधिक अधिकारी और कर्मचारी इस एप्लिकेशन का उपयोग करेंगे, जिसके साथ ही CBIC आंतरिक कार्यालय प्रक्रियाओं को स्वचालित या स्वत: (ऑटोमैटिक) करने वाले सबसे बड़े सरकारी विभागों में से एक बन गया है। ‘ई-ऑफिस’ का शुभारंभ दरअसल आंतरिक कार्यालय प्रक्रियाओं में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जहाँ अब तक फाइलों और कागज़ों को कर्मचारियों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता था। ‘ई-ऑफिस’ एप्लिकेशन राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित किया गया है। ई-ऑफिस का उद्देश्य फाइलों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने और सरकार के भीतर फैसले लेने की आंतरिक प्रक्रियाओं को स्वचालित या स्वत: करके शासन (गवर्नेंस) में बेहतरी सुनिश्चित करना है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग का एक अंग है। यह बोर्ड सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर और IGST (Integrated Goods and Service Tax) का उद्ग्रहण तथा संग्रह का कार्य करता है।
पीपल्स को-ऑपरेटिव बैंक
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने हाल ही में कानपुर स्थित पीपुल्स को-ऑपरेटिव बैंक (People's Co-operative Bank) को उसकी कमज़ोर वित्तीय स्थिति के कारण आगामी छह माह के लिये नए ऋण देने और जमा स्वीकार करने पर रोक लगा दी। RBI द्वारा जारी आदेश के अनुसार, इस सहकारी बैंक से किसी जमाकर्त्ता की राशि की निकासी भी नहीं की जाएगी। RBI ने पीपुल्स को-ऑपरेटिव बैंक पर अपनी किसी भी संपत्ति को बेचने, स्थानांतरित करने या उसका निपटान करने संबंधित प्रतिबंध भी लगा दिया हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में अब तक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश भर में कम-से-कम 44 सहकारी बैंकों को उनकी वित्तीय स्थिति में गिरावट का हवाला देते हुए उन्हें किसी भी प्रकार की गतिविधि करने से रोक दिया है। ध्यातव्य है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा की गई इस प्रकार की कार्रवाई भारत में सहकारी बैंकिंग क्षेत्र (Co-Operative Banking Sector) की स्थिति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।