म्याँमार से अवैध अंतर्वाह
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affair) ने नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश को म्याँमार से भारत में अवैध अंतर्वाह की जाँच करने का निर्देश दिया है।
- इस संबंध में सीमा सुरक्षा बल (Border Guarding Force) यानी असम राइफल्स को भी निर्देश दिये गए हैं।
- म्याँमार से पलायन कर आने वाले बहुत सारे रोहिंग्या (Rohingya) पहले से ही भारत में रह रहे हैं।
- भारत देश में प्रवेश करने वाले सभी शरणार्थियों को अवैध प्रवासी मानता है।
- एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत के विभिन्न राज्यों में लगभग 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे थे।
प्रमुख बिंदु
गृह मंत्रालय के निर्देश:
- राज्य सरकारों के पास "किसी भी विदेशी को शरणार्थी का दर्जा" देने की शक्ति नहीं है और भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन तथा उसके प्रोटोकॉल (वर्ष 1967) का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
- इसी तरह के निर्देश अगस्त 2017 और फरवरी 2018 में जारी किये गए थे।
पृष्ठभूमि:
- यह निर्देश म्याँमार में सैन्य तख्तापलट और उसके बाद लोगों पर होने वाली सैन्य कार्रवाई के बाद आया है, जिसके कारण कई लोग भारत में घुस आए।
- म्याँमार की सेना ने फरवरी 2021 में तख्तापलट करके देश पर कब्ज़ा कर लिया।
- उत्तर-पूर्वी राज्य सीमा पार से आने वाले लोगों को आसानी से आश्रय प्रदान करते हैं क्योंकि कुछ राज्यों के म्याँमार के सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ सांस्कृतिक संबंध हैं और कई लोगों के पारिवारिक संबंध भी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ राज्यों ने म्याँमार से भागकर आए लोगों के प्रति सहानुभूति जताते हुए उन्हें आश्रय दिया।
- इन राज्यों में पहले से ही ब्रू जैसी जनजातियों के बीच झड़पें होती रहीं हैं। अतः इस प्रकार के अंतर्वाह से ऐसी घटनाओं में वृद्धि होगी।
हाल का अंतर्वाह:
- म्याँमार से पुलिसकर्मियों और महिलाओं सहित एक दर्जन से अधिक विदेशी नागरिक पड़ोसी राज्य मिज़ोरम में आए हैं।
भारत-म्याँमार सीमा:
- भारत और म्याँमार के बीच 1,643 किलोमीटर (मिज़ोरम 510 किलोमीटर, मणिपुर 398 किलोमीटर, अरुणाचल प्रदेश 520 किलोमीटर और नगालैंड 215 किलोमीटर) की सीमा है तथा दोनों तरफ के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध है।
- म्याँमार के साथ इन चार राज्यों की सीमा बिना बाड़ वाली है।
मुक्त संचरण की व्यवस्था:
- भारत और म्याँमार के बीच एक मुक्त संचरण व्यवस्था (Free Movement Regime) मौजूद है।
- इस व्यवस्था के अंतर्गत पहाड़ी जनजातियों के प्रत्येक सदस्य, जो भारत या म्याँमार का नागरिक है और भारत-म्याँमार सीमा (IMB) के दोनों ओर 16 किमी. के भीतर निवास करते है, एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सीमा पास (एक वर्ष की वैधता) से सीमा पार कर सकता है तथा प्रति यात्रा के दौरान दो सप्ताह तक यहाँ रह सकता है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन, 1951
- यह संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की एक बहुपक्षीय संधि है, जिसमें शरणार्थी की परिभाषा, उनके अधिकार तथा हस्ताक्षरकर्त्ता देश की शरणार्थियों के प्रति ज़िम्मेदारियों का भी प्रावधान किया गया है।
- यह संधि युद्ध अपराधियों, आतंकवाद से जुड़े व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देती है।
- यह संधि जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता या पृथक राजनीतिक विचारों के कारण उत्पीड़न तथा अपना देश छोड़ने को मजबूर लोगों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करती है।
- इसमें कन्वेंशन द्वारा जारी यात्रा दस्तावेज़ धारकों के लिये कुछ वीज़ा मुक्त यात्रा का प्रावधान किया गया है।
- यह संधि वर्ष 1948 की मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 14 से प्रेरित है। UDHR किसी अन्य देश में पीड़ित व्यक्ति को शरण मांगने का अधिकार प्रदान करती है।
- एक शरणार्थी कन्वेंशन में प्रदान किये गए अधिकारों के अलावा संबंधित राज्य में अधिकारों और लाभों को प्राप्त कर सकता है
- वर्ष 1967 का प्रोटोकॉल सभी देशों के शरणार्थियों को शामिल करता है, इससे पूर्व वर्ष 1951 में की गई संधि सिर्फ यूरोप के शरणार्थियों को ही शामिल करती थी।
- भारत इस सम्मेलन का सदस्य नहीं है।
स्रोत: द हिंदू
राज्य निर्वाचन आयोग नियुक्ति विवाद
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक निर्णय में कहा है कि नौकरशाहों को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये, ताकि चुनाव आयुक्त के कार्यालय की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध गोवा सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई की जा रही थी।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) को चुनाव कार्यक्रम जारी करने से पूर्व संविधान में निर्धारित जनादेश का पालन करने हेतु स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने के लिये फटकार लगाई थी।
- इसके अलावा उच्च न्यायालय ने गोवा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की गईं कुछ नगरपालिका चुनाव अधिसूचनाओं पर भी रोक लगा दी थी।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार क्षेत्र महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव तक विस्तृत है।
- कार्यवाही के दौरान न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि गोवा राज्य के विधि सचिव को राज्य निर्वाचन आयोग का 'अतिरिक्त प्रभार' सौंपा गया था।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- केवल स्वतंत्र व्यक्ति को ही चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, न कि राज्य सरकार के किसी कर्मचारी को।
- सरकारी कर्मचारियों को चुनाव आयुक्त के रूप में अतिरिक्त प्रभार देना संविधान का उपहास करने जैसा है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष कार्यप्रणाली की संवैधानिक योजना का पालन करने का निर्देश दिया।
- यदि राज्य सरकार के कर्मचारी ऐसा कोई निष्पक्ष कार्यालय (राज्य सरकार के अधीन) ग्रहण करते हैं, तो उन्हें चुनाव आयुक्त पद का कार्यभार संभालने से पूर्व अपने पद से इस्तीफा देना होगा।
- न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को पूर्णकालिक चुनाव आयुक्त नियुक्त करने का आदेश दिया है, जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से कार्य करेंगे।
राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)
- राज्य निर्वाचन आयोग को राज्य में स्थानीय निकायों के लिये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराने का कार्य सौंपा गया है।
- अनुच्छेद 243 (K) (1): संविधान के इस अनुच्छेद के मुताबिक, पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों के लिये निर्वाचन नामावली तैयार करने और चुनाव आयोजित करने हेतु अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण संबंधी सभी शक्तियाँ राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होंगी, इसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य चुनाव आयुक्त भी सम्मिलित हैं।
- नगरपालिकाओं से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 243(Z)(A) में शामिल हैं।
- अनुच्छेद 243(K)(2): इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य चुनाव आयुक्त की शक्तियाँ और कार्यकाल को राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार निर्देशित किया जाएगा। अनुच्छेद के मुताबिक, राज्य चुनाव आयुक्त को केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के अभियोग की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाया जा सकता है।
सुझाव
दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश
- राज्य निर्वाचन आयोग का गठन: दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के मुताबिक, राज्य निर्वाचन आयुक्त (SEC) को एक कॉलेजियम की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिये, जिसमें राज्य का मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा का अध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष का नेता शामिल होगा।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और राज्य निर्वाचन आयोगों (SECs) को एक मंच पर लाने के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, जिससे दोनों संस्थाओं के मध्य समन्वय स्थापित किया जा सके, दोनों एक दूसरे के अनुभवों से सीख सकें और संसाधन साझा कर सकें।
चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट
- विधि आयोग ने चुनाव सुधारों पर अपनी 255वीं रिपोर्ट में अनुच्छेद 324 में एक नया उपखंड जोड़ने की बात कही थी, ताकि लोकसभा/राज्यसभा सचिवालय (अनुच्छेद 98) की तर्ज पर भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को भी एक नया सचिवालय प्रदान किया जा सके।
- राज्य निर्वाचन आयोगों की स्वायत्तता सुनिश्चित करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष स्थानीय निकाय चुनाव के लिये भी इसी तरह के प्रावधान किये जा सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
सीबकथॉर्न प्लांटेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के ठंडे रेगिस्तानी इलाकों में सीबकथॉर्न (Seabuckthorn) के पौधों को लगाने का फैसला किया है।
प्रमुख बिंदु:
सीबकथॉर्न प्लांटेशन के बारे में:
- यह एक झाड़ी (Shrub) होती है जो नारंगी-पीले रंग की खाने योग्य बेरों का उत्पादन करती है।
- भारत में यह पौधा हिमालय क्षेत्र में ट्री लाइन से ऊपर पाया जाता है। आमतौर पर लद्दाख के सूखे क्षेत्रों और स्पीति के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में।
- हिमाचल प्रदेश में इसे स्थानीय रूप से छरमा (Chharma) कहा जाता है जो लाहौल और स्पीति तथा किन्नौर के कुछ हिस्सों में उगता है।
- हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एक बड़ा हिस्सा इससे आच्छादित है।
- सीबकथॉर्न प्लांटेशन (Seabuckthorn Plantation) के कई पारिस्थितिक, औषधीय और आर्थिक लाभ हैं।
पारिस्थितिक लाभ:
- सीबकथॉर्न का पौधा मिट्टी को बाँधे रखने में मदद करता है जो मिट्टी के क्षरण को रोकता है, नदियों में गाद की जांँच करता है और पुष्प जैव विविधता (Biodiversity) के संरक्षण में मदद करता है।
- लाहौल घाटी में जहांँ बड़ी संख्या में विलो वृक्ष (Willow Trees) कीटों के हमले के कारण नष्ट हो रहे हैं, यह कठोर झाड़ी स्थानीय पारिस्थितिकी की रक्षा हेतु एक अच्छा विकल्प है।
- यह झाड़ी शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है, विशेष रूप से हिमालय के ग्लेशियरों में जहांँ पानी का प्रवाह कम तथा प्रकाश की अधिक मात्रा पहुंँचती है, ऐसे में इसका महत्त्व और अधिकबढ़ जाता है।
औषधीय लाभ:
- स्थानीय चिकित्सा के रूप में सीबकथॉर्न का उपयोग व्यापक रूप से पेट, हृदय और त्वचा रोगों के इलाज में किया जाता है
- इसके फल और पत्तियांँ विटामिन, कैरोटीनोइड (Carotenoids ) तथा ओमेगा फैटी एसिड (Omega Fatty Acids) से भरपूर होती हैं। यह उच्च ऊंँचाई तक पहुंँचने में सैनिकों की मदद कर सकती है।
- पिछले कुछ दशकों में वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा इसके कई पारंपरिक उपयोगों का समर्थन किया गया है।
आर्थिक लाभ:
- सीबकथॉर्न का वाणिज्यिक महत्त्व भी है, क्योंकि इसका उपयोग रस, जेम, पोषण कैप्सूल आदि बनाने में किया जाता है।
- यह ईंधन और चारे का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- हालांँकि उद्योगों को कच्चे माल के रूप में जंगली सीबकथॉर्न की लगातार आपूर्ति करना संभव नहीं है, अत: इसकी लगातार आपूर्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जानी चाहिये, जैसा चीन में किया जाता है।
भारत में शीत मरुस्थल:
- भारत का शीत मरुस्थल हिमालय में स्थित है जो उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में किन्नौर (हिमाचल प्रदेश राज्य) तक फैला है।
- इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है और बहुत अधिक ऊँचाई (समुद्र तल से 3000-5000 मीटर अधिक) जैसी कठोर जलवायु स्थितियाँ विद्यमान हैं, जो इसके वातावरण में ठंड बढ़ाती है।
- इस क्षेत्र में बर्फीले तूफान, हिमपात और हिमस्खलन की घटनाएँ आम हैं।
- यहाँ की मिट्टी बहुत उपजाऊ नहीं है और जलवायु की स्थिति बहुत कम मौसमों में भू- परिदृश्यों का निर्माण करती है।
- इस क्षेत्र में जल संसाधन न्यूनतम हैं ।
ट्री लाइन:
- ट्री लाइन निवास की वह सीमा है जिस पर पेड़ वृद्धि करने में सक्षम होते हैं। यह उच्च ऊंँचाई और उच्च अक्षांश पर पाई जाती है।
- ट्री लाइन से आगे पेड़ पर्यावरणीय परिस्थितियों (आमतौर पर ठंडे तापमान, अत्यधिक स्नोपैक, या नमी की कमी) को सहन नहीं कर सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बैंक ऋण और जमा में वृद्धि: RBI
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा जारी किये गए आँकड़ों से पता चला है कि जनवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2021 में बैंक ऋण (Credit) और जमा (Deposit) में वृद्धि हुई थी।
- फरवरी 2021 का ऋण और जमा आँकड़ा फरवरी 2020 (कोविड महामारी से पूर्व) के आँकड़े से अधिक था।
प्रमुख बिंदु
RBI का बैंक से संबंधित आँकड़ा:
- फरवरी 2021 के अंत में:
- बैंक ऋण 6.63% बढ़कर 107.75 लाख करोड़ रुपए हो गया जो फरवरी 2020 में 101.05 लाख करोड़ रुपए था।
- बैंक जमा 12.06% बढ़कर 149.34 लाख करोड़ रुपए हो गया जो फरवरी 2020 में 133.26 लाख करोड़ रुपए था।
- ऋण वृद्धि का कारण:
- बैंक ऋण में वृद्धि, खुदरा ऋण में वृद्धि से प्रेरित है।
- खुदरा ऋण में विभिन्न ऋणों की एक विशाल शृंखला शामिल है। व्यक्तिगत ऋण जैसे- कार ऋण, बंधक, क्रेडिट कार्ड आदि सभी खुदरा ऋण की श्रेणी में आते हैं, लेकिन व्यावसायिक ऋण भी खुदरा ऋण की श्रेणी में आ सकते हैं।
- समग्र खुदरा ऋण वृद्धि जो वर्तमान में 9% है, में बंधक (खुदरा ऋणों का 51% योगदान), असुरक्षित (कार्ड/व्यक्तिगत ऋण) और वाहन ऋण के कारण तेज़ी आने की उम्मीद है।
बैंक ऋण:
- बैंक और वित्तीय संस्थान अपने ग्राहकों को उधार दिये गए धन से लाभ कमाते हैं।
- इस प्रकार का धन ग्राहक के खाते में जमा धन या कुछ निवेश वाहनों जैसे कि जमा प्रमाणपत्र (Certificate of Deposit) में निवेश से दिया जाता है।
- जमा प्रमाणपत्र एक ऐसा उत्पाद है जो बैंकों और क्रेडिट यूनियनों द्वारा दिया किया जाता है, जो ग्राहक को एक पूर्व निर्धारित अवधि तक जमा राशि छोड़ने पर ब्याज प्रदान करता है।
- इस प्रकार का धन ग्राहक के खाते में जमा धन या कुछ निवेश वाहनों जैसे कि जमा प्रमाणपत्र (Certificate of Deposit) में निवेश से दिया जाता है।
- बैंक ऋण में वित्तीय संस्थानों द्वारा व्यक्तियों या व्यवसायों को दिये गए कुल राशि को शामिल किया जाता है। यह बैंकों और उधारकर्त्ताओं के बीच एक समझौता है जहाँ बैंक उधारकर्त्ताओं को ऋण देते हैं।
भारत में बैंक ऋण:
- भारत में बैंक ऋण का अर्थ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Bank) द्वारा दिये गए ऋण से है।
- बैंक ऋण को खाद्य ऋण (Food Credit) और गैर खाद्य ऋण (Non Food Credit) में वर्गीकृत किया जाता है।
- यह ऋण मुख्य रूप से बैंकों द्वारा भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) को खाद्यान्नों की खरीद के लिये दिये गए ऋण के रूप में दर्शाता है। यह कुल बैंक ऋण का एक छोटा हिस्सा है।
- बैंक ऋण का प्रमुख हिस्सा गैर-खाद्य ऋणों का है, जिसमें अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, उद्योग और सेवा) के ऋण और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं।
- RBI द्वारा मासिक आधार पर बैंक ऋण का आँकड़ा एकत्र किया जाता है।
बैंक जमा:
- बैंक जमा का अर्थ सुरक्षा के लिये बैंकिंग संस्थानों में रखे गए पैसे से है। ये जमा बचत खातों, चालू खातों और मुद्रा बाज़ार जैसे खातों में किये जाते हैं।
- खाता धारक को यह अधिकार है कि वह ज़रूरत पड़ने पर खाता समझौते को संचालित करने वाले नियमों और शर्तों के अनुसार जमा धन को निकल सकता है।
भारत में बैंक जमा : भारत में बैंक जमा के चार प्रमुख प्रकार हैं:
- चालू खाता:
- चालू खाता एक विशेष प्रकार का खाता है, जिसमें निकासी और लेनदेन पर बचत खाते की तुलना में कम प्रतिबंध होता है।
- इसे मांग जमा खाता (Demand Deposit Account) के रूप में भी जाना जाता है जो व्यवसायियों हेतु व्यापार में लेन-देन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये होता है।
- बैंक इन खातों पर ओवरड्राफ्ट (Overdraft- खाताधारकों के खातों में मौजूद धन से अधिक धन निकालने की सुविधा) की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
- बचत खाता:
- यह खाता उच्च तरलता वाला होता है जो आम जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। हालाँकि इसमें डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये नकद निकासी और लेन-देन की सीमा निर्धारित है।
- बैंक एक ब्याज दर प्रदान करते हैं जो मुद्रास्फीति (Inflation) से थोड़ा अधिक होती है, इसलिये बचत खाता निवेश के लिये बहुत इष्टतम नहीं है।
- आवर्ती जमा:
- यह एक विशेष प्रकार का सावधि जमा है जहाँ एकमुश्त बचत करने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि किसी व्यक्ति को हर महीने एक निश्चित राशि जमा करनी होती है।
- इस खाते में समय से पहले निकासी की अनुमति नहीं होती है, लेकिन जुर्माने के साथ जमा की परिपक्वता तिथि से पहले भी खाते को बंद किया जा सकता है।
- सावधि जमा:
- यह बैंकों, वित्तीय संस्थानों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रदत्त जमा योजना है, जिसमें एक नियत अवधि में जमा की गई धनराशि पर ब्याज दिया जाता है।
- इस प्रकार की जमाओं पर बचत खाते की तुलना में अधिक ब्याज मिलता है, जिसमें जमा की अवधि 7 दिन से लेकर 10 वर्ष तक हो सकती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
'राष्ट्रीय गैर-लौह धातु स्क्रैप रिसाइक्लिंग फ्रेमवर्क, 2020'
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा स्क्रैप आयात में कटौती करने के लिये एक 'राष्ट्रीय गैर-लौह धातु स्क्रैप रिसाइक्लिंग फ्रेमवर्क, 2020' जारी किया गया है।
- यह फ्रेमवर्क खनिज मूल्य शृंखला प्रसंस्करण में बेहतर दक्षता के लिये एक जीवन चक्र प्रबंधन दृष्टिकोण का उपयोग करने का प्रयास करता है।
प्रमुख बिंदु:
रीसाइक्लिंग फ्रेमवर्क के उद्देश्य:
- धातु के पुनर्चक्रण/रीसाइक्लिंग के माध्यम से संपत्ति के निर्माण, रोज़गार सृजन और सकल घरेलू उत्पाद में योगदान में वृद्धि करना।
- ऊर्जा कुशल/दक्ष प्रक्रियाओं को अपनाकर एक औपचारिक और सुव्यवस्थित पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।
- पर्यावरण अनुकूल पुनर्चक्रण प्रणाली को बढ़ावा देकर लैंडफिल और पर्यावरण प्रदूषण पर ‘एंड ऑफ लाइफ प्रोडक्ट’ (जब कोई उत्पाद आगे प्रयोग योग्य न रह जाए) के प्रभाव को कम करना।
- सभी हितधारकों को शामिल करके एक उत्तरदायी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।
कार्यान्वयन हेतु दिशा-निर्देश:
- इस फ्रेमवर्क में धातु के पुनर्चक्रण को सुविधाजनक बनाने के लिये एक केंद्रीय धातु पुनर्चक्रण प्राधिकरण की स्थापना करने की परिकल्पना की गई है।
- पुनर्चक्रण के लिये उपयोग किये जाने वाले स्क्रैप की गुणवत्ता निर्धारित करने हेतु सरकार मानक स्थापित करने की दिशा में काम करेगी।
- संगठित क्षेत्र में पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के लिये स्क्रैप अलग करने वाले सेग्रीग्रेटर, स्क्रैप तोड़ने वाले डिसमैंटलर, रिसाइक्लर, संग्रह केंद्रों आदि के पंजीकरण हेतु एक तंत्र विकसित किया जाएगा।
- इसके तहत 'शहरी खानों' या 'अर्बन माइन्स' (Urban Mines) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है, जिन्हें बड़ी मात्रा में स्क्रैप के एकत्रण और भंडारण के लिये स्थान के रूप में निर्धारित किया गया है।
- पुनर्चक्रित/माध्यमिक धातु के लिये एक ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म/एक्सचेंज प्लेटफॉर्म विकसित किया जाएगा।
- पुनर्चक्रण से जुड़ी कंपनियाँ या रिसाइक्लर्स (Recyclers) औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के साथ संग्रह अनुबंधों (स्क्रैप एकत्र करने हेतु) को लागू करने की संभावना तलाश सकते हैं।
हितधारकों की भूमिका/उत्तरदायित्व:
- निर्माता के उत्तरदायित्व: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) के दिशा-निर्देशों/विनियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना।
- उत्पादों का डिज़ाइन इस प्रकार से तैयार करना ताकि एक कुशल और पर्यावरण अनुकूल तरीके से उनका पुनर्चक्रण तथा पुन: उपयोग करना आसान हो।
- जनता की भूमिका: लोगों को अपना उत्तरदायित्व समझते हुए नामित स्क्रैप संग्रह केंद्रों पर स्क्रैप को रखना चाहिये जिससे उनका प्रभावी और पर्यावरणीय अनुकूल प्रसंस्करण किया जा सके।
- सरकार की भूमिका: ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय' (MoEFCC) द्वारा पुनर्चक्रण इकाइयों के लिये कई मंज़ूरियों की अनिवार्यता को हटाते (जहाँ कहीं भी संभव हो) हुए नियामक आवश्यकता को सरल तथा कारगर बनाया जाएगा।
- पुनर्चक्रण प्राधिकरण की भूमिका: MoEFCC, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) आदि के परामर्श से स्क्रैप की हैंडलिंग और प्रसंस्करण के लिये तकनीकी, सुरक्षा एवं पर्यावरण मानदंड तथा SOPs का विकास करना।
गैर-लौह धातु पुनर्चक्रण उद्योगों की चुनौतियाँ:
- गैर-लौह धातु पुनर्चक्रण उद्योगों की एक बड़ी चुनौती धातु स्क्रैप के आयात पर इसकी भारी निर्भरता है।
- एक संगठित/व्यवस्थित स्क्रैप रिकवरी तंत्र की कमी।
- अपशिष्ट संग्रह और पुनर्चक्रण पर मौजूदा नियमों के स्थायी कार्यान्वयन का अभाव।
- पुनर्चक्रीकृत उत्पादों के मानकीकरण का अभाव इसे बाज़ार द्वारा अपनाये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- उत्तरदायी तरीकों और प्रौद्योगिकियों के मामले में विशिष्ट कौशल का अभाव।
पुनर्चक्रीकरण को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहल:
- केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति (एनआरईपी) तैयार करने पर कार्य किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों में संसाधन दक्षता को मुख्यधारा में लाना है, इसमें एल्युमीनियम क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र माना गया है।
- केंद्रीय इस्पात मंत्रालय द्वारा 'स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति' (Steel Scrap Recycling Policy) जारी की गई है, जिसके तहत धातु स्क्रैप पुनर्चक्रण केंद्रों की स्थापना को सुविधाजनक बनाने और इसे बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा की परिकल्पना की गई है।
- नीति आयोग द्वारा देश में औपचारिक एवं संगठित तरीके से सामग्रियों/उपकरणों के पुनर्चक्रण की दिशा में समन्वित राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर के कार्यक्रमों, योजनाओं व कार्यों के संचालन हेतु एक व्यापक "राष्ट्रीय सामग्री पुनर्चक्रण नीति" का प्रस्ताव किया गया है।
गैर-लौह धातु (Non-Ferrous Metal):
- अलौह धातुओं को व्यापक रूप से निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- हीन या अपधातु (Base Metals): उदाहरण- एल्युमीनियम, तांबा, जस्ता, सीसा, निकल, टिन।
- बहुमूल्य धातु (Precious Metals): उदाहरण- चाँदी, सोना, पैलेडियम, अन्य प्लैटिनम समूह धातु।
- माइनर मेटल (उच्च तापसह धातुओं सहित): जैसे- टंगस्टन, मोलिब्डेनम, टैंटलम, नाइओबियम, क्रोमियम।
- स्पेशियलिटी मेटल (Specialty Metals): उदाहरण- कोबाल्ट, जर्मेनियम, इंडियम, टेल्यूरियम, एंटीमनीऔर गैलियम।
- लोहे के बाद एल्युमिनियम विश्व में दूसरी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु है।
- मूल्य के आधार पर तांबा तीसरा सबसे महत्त्वपूर्ण हीन या अपधातु (Base Metals) है।
- जस्ता विश्व भर में चौथी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पावर ट्रांसमिशन केबल्स की निगरानी हेतु नई तकनीक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं द्वारा इस बात को प्रमाणित किया गया है कि फाइबर ऑप्टिक केबल (Fibre Optic Cable) पर रमन थर्मोमेट्री (Raman Thermometry) का उपयोग करके बिजली ट्रांसमिशन केबल की निगरानी की जा सकती है।
- शोधकर्ताओं द्वारा इसके लिये ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग किया गया जो ऑप्टिकल संचार स्थापित करने हेतु पहले से ही बिजली के केबल्स में (Embedded) अंतःस्थापित है।
प्रमुख बिंदु:
रमन थर्मोमेट्री:
- यह एक थर्मल तकनीक है जिसमें माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सिस्टम (Microelectronics Systems) में स्थानीय तापमान को निर्धारित करने हेतु रमन प्रकीर्णन घटना का उपयोग किया जाता है।
- जब प्रकाश किसी वस्तु पर फैलता है, तो उसे एक अणु कहते हैं, मूल प्रकाश में उच्च और निम्न आवृत्ति के साथ क्रमशः दो बैंड- स्टोक्स (Stokes) और एंटी स्टोक्स बैंड (anti-Stokes bands) देखे जाते हैं।
- दो बैंडों की सापेक्ष तीव्रता का अध्ययन करने से प्रकाश को बिखेरने वाली वस्तु के तापमान का अनुमान लगाना संभव है।
- रमन स्कैटरिंग (Raman Scattering) के एंटी-स्टोक्स बैंड का तापमान वस्तु के तापमान पर निर्भर करता है, इस प्रकार एंटी स्टोक्स की बिखरी हुई रोशनी की तीव्रता को मापकर हम तापमान का अनुमान लगा सकते हैं।
- कंडक्टर (Conductor) के माध्यम से बहने वाली कोई भी धारा जूल हीटिंग प्रभाव (Joule Heating Effect) के कारण तापमान वृद्धि का कारण होगी। इसलिये विद्युत केबलों के माध्यम से धारा का प्रवाह होने पर विद्युत केबलों के ताप में परिवर्तन होता है।
- जूल हीटिंग (इसे प्रतिरोधक या ओमिक ताप के रूप में भी जाना जाता है) उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जहांँ एक विद्युत धारा ऊष्मा में परिवर्तित हो जाती है और एक प्रतिरोध के माध्यम से बहती है।
ऑप्टिकल फाइबर तकनीक:
- ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करके तारों के तापमान की माप न केवल एक स्थान पर बल्कि वितरित तरीके से भी की सकती है। इसे प्राप्त करने हेतु प्रकाश की एक पल्स को ऑप्टिकल फाइबर में अंतर्निहित किया जाता है और बैकसकैटर्ड विकिरण (Backscattered Radiation) का निरीक्षण किया जाता है।
- ऑप्टिकल फाइबर उच्च गुणवत्ता वाले मिश्रित काँच/ क्वार्ट्ज़ फाइबर से बने होते हैं।
- प्रत्येक फाइबर में एक कोर और क्लैडिंग मौजूद होता है।
- जब प्रकाश के रूप में एक संकेत को एक उपयुक्त कोण पर फाइबर के एक छोर पर निर्देशित किया जाता है, तो यह फाइबर की लंबाई के कुल आंतरिक प्रतिबिंब के साथ दूसरे छोर पर बाहर निकलता है।
- एक माध्यम के भीतर (जैसे पानी या कांँच की सतहों के चारों तरफ ) कुल आंतरिक परावर्तन प्रकाश की किरण का पूर्ण परावर्तन है।
- चूंँकि प्रकाश प्रत्येक चरण में आंतरिक प्रतिबिंब के माध्यम से गुज़रता है, इसलिये प्रकाश संकेत की तीव्रता में कोई कमी नहीं आती है।
- बैकसकैटर्ड विकिरण (Backscattered Radiation) का समय उस दूरी का अनुमान प्रदान करता है जितनी दूरी पर प्रकाश बैकसकैटर्ड पर होता है।
- बैकसकैटर्ड (Backscatter) तरंगों, कणों, या संकेतों का प्रतिबिंब है, जिस दिशा से वे आते हैं।
- यह वितरित माप प्रदान करता है क्योंकि यह पल्स फाइबर की लंबाई के साथ प्रसार करता है।
- यह 10 किलोमीटर तक जा सकता है।
महत्त्व:
- वास्तविक तापमान माप:
- रमन थर्मामीटर तकनीक के उपयोग से ऑपरेटरों को 10 किलोमीटर से अधिक तक वास्तविक तापमान माप के परिणाम प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
- आर्थिक और वास्तविक समय:
- बिजली के तारों के तापमान को मापने हेतु वैकल्पिक तरीकों में एक अत्यधिक बोझिल थर्मल कैमरा उपयोग किया जाता है। टीम द्वारा तैयार की गई वर्तमान विधि किफायती है जो वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने में सक्षम है।
- थर्मल कैमरे (Thermal Cameras) अवरक्त प्रकाश के विभिन्न स्तरों को पहचानने तथा उन्हें कैप्चर कर तापमान का पता लगाते हैं।
- बिजली के तारों के तापमान को मापने हेतु वैकल्पिक तरीकों में एक अत्यधिक बोझिल थर्मल कैमरा उपयोग किया जाता है। टीम द्वारा तैयार की गई वर्तमान विधि किफायती है जो वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने में सक्षम है।
रमन प्रभाव:
- वर्ष 1928 में रमन प्रभाव या रमन स्कैटरिंग को प्रख्यात भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा एक स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) घटना के रूप में खोजा गया।
- वर्ष 1930 में सर चंद्रशेखर वेंकट रमन को इस उल्लेखनीय खोज हेतु नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु भारत का पहला नोबेल पुरस्कार था।
- रमन प्रभाव प्रकाश की तरंगदैर्ध्य में परिवर्तन है जो प्रकाश की किरणों के अणुओं के विक्षेपित होने पर उत्पन्न होता है। जब प्रकाश की किरण एक रासायनिक यौगिक के धूल रहित, पारदर्शी नमूने से गुज़रती है तो प्रकाश की यह किरण अन्य दिशाओं में विक्षेपित हो जाती है।
- विक्षेपित प्रकाश का अधिकांश हिस्सा अपरिवर्तित तरंगदैर्ध्य (Unchanged Wavelength) होती है। हालांँकि तरंगदैर्ध्य का एक छोटा सा हिस्सा विक्षेपित प्रकाश से अलग होता है, जो रमन प्रभाव की उपस्थिति का परिणाम है।