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डेली न्यूज़

  • 15 Jun, 2020
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

मेघालय का व्यवहार परिवर्तन संबंधी मॉडल

प्रीलिम्स के लिये

स्पर्शोन्मुख वाहक का अर्थ

मेन्स के लिये

रोग के प्रसारण में स्पर्शोन्मुख वाहकों की भूमिका, मेघालय के व्यवहार परिवर्तन संबंधी मॉडल का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मेघालय के स्वास्थ्य विभाग ने एक नया स्वास्थ्य प्रोटोकॉल जारी करते हुए राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को कोरोना वायरस (COVID-19) का एक स्पर्शोन्मुख वाहक (Asymptomatic Carrier) मान लेने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नए स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के अनुसार, इस प्रकार का निर्णय विभिन्न क्षेत्रों से मेघालय में वापस लौटने वाले हजारों प्रवासियों के कारण सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) के खतरे को रोकने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प है।
  • नए स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के मुताबिक, राज्य सरकार को स्वयं को इस दृष्टिकोण के साथ तैयार करना चाहिये कि राज्य में कोरोना वायरस (COVID-19) का सामुदायिक प्रसारण हो चुका है।

स्पर्शोन्मुख वाहक (Asymptomatic Carrier) 

  • स्पर्शोन्मुख वाहक (Asymptomatic Carrier) का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से होता है, जो वायरस से संक्रमित तो हो चुका है, किंतु उसमें रोग से संबंधित कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता है।
  • ध्यातव्य है कि कई स्थानों पर ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जहाँ एक व्यक्ति के SARs-CoV-2 (COVID-19) से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन वायरस से संबंधित कोई भी लक्षण उस व्यक्ति में दिखाई नहीं दे रहा है।

इस प्रकार के दृष्टिकोण के पीछे की अवधारणा

  • उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण आम लोगों में मुख्य रूप से दो प्रकार के भय उत्पन्न हुए हैं- (1) जीवन के नुकसान का भय (2) आजीविका के नुकसान का भय।
  • इस प्रकार मेघालय सरकार एक ऐसी प्रणाली का निर्माण करना चाहती है, जिसके माध्यम से लोग अपनी सुरक्षा कर सकें और साथ ही साथ अपनी आजीविका चला सकें, क्योंकि हमें यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि कोरोना वायरस (COVID-19) अभी लंबे समय तक हमारे साथ रहेगा।
  • राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, जब एक बार लोग यह स्वीकार कर लेंगे कि वे कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित हैं तो उनके संपूर्ण व्यवहार में बदलाव आ जाएगा और वे अधिक सतर्क रहेंगे तथा अपने कार्यों के प्रति ज़िम्मेदार महसूस करेंगे, जिससे सामुदायिक प्रसारण के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।

कैसे लागू होगा मेघालय का यह मॉडल?

  • स्वास्थ्य विभाग के आदेश के अनुसार, राज्य के सभी नागरिकों को तब तक ‘A’ श्रेणी का संक्रमित रोगी माना जाएगा जब तक कि निरंतर आधार पर उनका परीक्षण न किया जाए।
  • ‘A’ श्रेणी के संक्रमित रोगी को अनिवार्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रथाओं का पालन करना होगा: (1) मास्क (Mask) का प्रयोग करना, समय-समय पर हाथों को स्वच्छ करना और सामाजिक दूरी बनाए रखना।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने राज्य की आबादी को मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित कर प्रशिक्षण मॉडल की एक श्रृंखला तैयार की है।
    • पहले वर्ग में 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को शामिल किया गया है।
    • दूसरे वर्ग में उन लोगों को शामिल किया गया है जो एक से अधिक विकार से प्रभावित हैं।
    • तीसरे वर्ग में उन लोगों को शामिल किया गया है जो लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा कर रहे हैं, जैसे- विद्यार्थी और पेशेवर।
  • राज्य सरकार द्वारा उक्त सभी वर्गों को प्रशिक्षित किया जाएगा और प्रशिक्षण के अंत में, उन सभी लोगों को प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा जिन्होंने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा कर लिया है।
  • वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो इस मॉडल के तहत राज्य के अन्य लोगों को प्रशिक्षित करेंगे, इसमें सरकारी विभागों के अधिकार, गाँव के मुखिया, स्कूलों के शिक्षक और बाज़ारों संघों के प्रतिनिधि आदि शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि प्रशिक्षण में प्रत्येक सेक्टर से संबंधित नियम उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के आधार पर अलग-अलग होंगे।
  • प्रशिक्षण के अतिरिक्त सभी वर्ग के लोगों को हाथों की स्वच्छता और सामाजिक दूरी जैसे विषयों से संबंधित मॉडल प्रश्नों का सेट भी प्रदान किया जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि मॉडल प्रश्नों के सेट को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि कोई भी व्यक्ति अपनी दैनिक गतिविधियों के आधार पर स्वयं को जाँच सकता है।

आगे की राह

  • उल्लेखनीय है कि लोगों को डरा कर या भय के माध्यम से उनका व्यवहार परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, संभवतः मेघालय के स्वास्थ्य विभाग द्वारा डिज़ाइन किया गया यह मॉडल भी इसी विचार पर आधारित है।
  • इस मॉडल के अंतर्गत आम लोगों के दैनिक जीवन में कुछ सामान्य परिवर्तन कर उनके व्यवहार परिवर्तन का प्रयास किया जा रहा है।
  • आवश्यक है कि आगामी समय में मेघालय के मॉडल की सफलता का आकलन किया जाए और व्यवहार परिवर्तन से संबंधित इस मॉडल में यथासंभव परिवर्तन कर इसे देश के अन्य क्षेत्रों में लागू करने पर भी विचार किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान, अनुच्छेद- 345, अनुच्छेद- 348 

मेन्स के लिये:

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ (Haryana Official Language (Amendment) Act)- 2020 को चुनौती देने वाले याचिकाकर्त्ताओं को पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील करने को कहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • याचिका में ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह अधिनियम हिंदी को राज्य की निचली अदालतों में प्रयोग की जाने वाली एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करता है।

अधिनियम के मुख्य प्रवधान:

  • ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ में आवश्यक परिवर्तन के लिये अधिनियम में एक नवीन उप-धारा 3(a) जोड़ी गई है। 
  • यह उप-धारा हरियाणा में, पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी सिविल, आपराधिक तथा राजस्व न्यायालयों, किराया न्यायाधिकरणों तथा राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायाधिकरणों में केवल हिंदी भाषा में कार्य करने का प्रावधान करती है।
  • अधिनियम की धारा-3 के अनुसार, हरियाणा राज्य के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी का उपयोग किया जाएगा केवल उन अपवादित कार्यों को छोड़कर, जिन्हें हरियाणा सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट करती है।

अनुच्छेद-345 तथा कार्यालयी भाषा:

  • संविधान का अनुच्छेद-345 किसी राज्य के विधानमंडल को उस राज्य में हिंदी या अन्य एक या अधिक भाषाओं को कार्यालयों में अपनाने का अधिकार देता है। 
  • हरियाणा सरकार द्वारा, ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ को अनुच्छेद- 345 में की गई व्यवस्था के तहत बनाया गया है। 

संशोधन का महत्त्व:

  • निचली अदालतों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण हरियाणा राज्य में वादकारों को कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। लोगों को ‌शिकायतों या अन्य दस्तावेज़ों की समझ के लिये पूरी तरह से वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण गवाहों को भी परेशान होना पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश को अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ नहीं होती है।

संशोधन के विपक्ष में तर्क:

  • वकीलों का मानना है कि हिंदी को एकमात्र भाषा के रूप में लागू करने से वकीलों के दो स्पष्ट वर्ग बन जाएंगे। 
    • प्रथम वे जो हिंदी भाषा में बहुत सहज हैं। 
    • दूसरे वे जो हिंदी में सहज महसूस नहीं करते हैं। 
  • याचिककर्त्ताओं का मानना है कि किसी भी मामले में बहस करने के लिये भाषा प्रवणता का किसी भाषा के सामान्य उपयोग की तुलना में बहुत अधिक महत्त्व है।
  • यह संशोधन कानून समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) तथा किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता, गरिमा तथा आजीविका के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • हाल ही में किये संशोधन के पीछे सरकार का यह तर्क था कि राज्य की निचली अदालतों में कानून की प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश व्यक्ति हिंदी में दक्ष हैं जबकि वास्तविकता इससे काफी अलग है।
  • हरियाणा में अनेक औद्योगिक केंद्र है तथा औद्योगिक विवाद के मामलों में हिंदी में बहस करना अनेक वकीलों के लिये आसान नहीं होगा। इससे वकीलों के व्यवसाय पर संकट मंडरा सकता है।

निष्कर्ष:

  • हरियाणा मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्य है, जिसकी लगभग 100% आबादी हिंदी बोलती या समझती है। यह समझना उचित होगा कि न्यायपालिका का उद्देश्य लोगों क कल्याण है, न कि संस्थाओं के स्वार्थों की पूर्ति करना। 

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान:

  • संविधान में न्यायपालिका की भाषा के संबंध में अनुच्छेद- 348 में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं:
    1. जब तक संसद द्वारा अन्य व्यवस्था को न अपनाया जाए, उच्चतम व प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही, केवल अंग्रेजी भाषा में होंगी। 
    2. हालाँकि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से हिंदी या अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। 
    • परंतु न्यायालय के निर्णय,आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे जब तक संसद अन्यथा व्यवस्था न दे।
  • राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेजी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

यूनाइटेड किंगडम की ‘जेट ज़ीरो ’ योजना

प्रीलिम्स के लिये:

जेट ज़ीरो काउंसिल, उड्डयन क्षेत्र से जुड़े प्रदूषक 

मेन्स के लिये:

उड्डयन क्षेत्र तथा प्रदूषण की समस्या 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘यूनाइटेड किंगडम’ (United Kingdom) ने उड्डयन क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से 'जेट ज़ीरो' (Jet Zero) योजना पर कार्य करने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • यूनाइटेड किंगडम ने वर्ष 2050 तक देश को 'शुद्ध-शून्य अर्थव्यवस्था' (Net-Zero Economy) बनाने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान पहल इसी का एक भाग है।
  • इस पहल का मुख्य उद्देश्य अटलांटिक पारगमनीय उड़ानों को कार्बन-मुक्त बनाना है। 

जेट ज़ीरो पहल का उद्देश्य:

  • जेट ज़ीरो योजना पर कार्य करने के लिये 'जेट ज़ीरो काउंसिल' (Jet Zero Council) का गठन किया गया है। जिसका उद्देश्य निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करना है:
    • विभिन्न हितधारकों यथा उड्डयन क्षेत्र से जुड़े लोगों, पर्यावरण समूहों तथा सरकार के नेताओं को एक साथ लाना; 
    • COVID-19 महामारी के बाद उड्डयन क्षेत्र में हरित पहल को पुन: प्रारंभ करना;
    • उड्डयन क्षेत्र में भविष्य की उड़ानों में 'शुद्ध शून्य उत्सर्जन' (Net Zero Emissions) को संभव बनाना। 

GHGs उत्सर्जन में योगदान:

  • वर्ष 2018 में उड्डयन क्षेत्र का कुल CO2 उत्सर्जन में योगदान 2.4 प्रतिशत था। हालाँकि यह उत्सर्जन मात्रा अन्य औद्योगिक क्रियाओं की तुलना में कम प्रतीत होती है परंतु कुल वैश्विक तापन में वाणिज्यिक उड्डयन क्षेत्र का योगदान 5 प्रतिशत है। 
  • यात्री परिवहन का GHGs उत्सर्जन में 81 प्रतिशत तथा माल परिवहन का शेष 19 प्रतिशत योगदान है।

प्रमुख उत्सर्जक: 

  • वाणिज्यिक उड्डयन के जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव प्रक्रिया बहुत जटिल हैं। इन उत्सर्जकों की मात्रा तथा प्रभवा सतह से उच्च ऊँचाई से साथ-साथ भिन्न-भिन्न देखने को मिलता है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 ):
    • कुल उड्डयन उत्सर्जकों में CO2 का लगभग 70 प्रतिशत योगदान है तथा ‘वैश्विक तापन’ पर धनात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है।
  • जलवाष्प:
    • जलवाष्प दूसरा प्रमुख उत्सर्जक है जो जेट ईंधन की खपत से उत्पन्न होता है। ये जलवाष्प शीघ्र ही  'हिम क्रिस्टल' के नाभिक का निर्माण करते हैं। जिससे सिरस (Cirrus) बादलों का निर्माण होता है।
    • ये सिरस बादल अवरक्त किरणों को अवशोषित करते हैं जिससे CO2 की तुलना में 3 गुना अधिक तापन प्रभाव पड़ता है।
  • नाइट्रस गैस:
    • नाइट्रस गैसें शीतलन तथा तापन दोनों प्रभाव उत्पन्न करती हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड रासायनिक क्रिया द्वारा ओजोन का निर्माण करते हैं, जो वैश्विक तापन प्रभाव उत्पन्न करती है। दूसरी तरफ यह मीथेन से क्रिया करके उसकी मात्रा को कम करती है जिससे शीतलन प्रभाव उत्पन्न होता है। हालाँकि नाइट्रस गैसों का शुद्ध प्रभाव ‘वैश्विक तापन’ है।

कणकीय पदार्थ:

  • कणकीय पदार्थों में हाइड्रोकार्बन, कालिख और सल्फेट्स शामिल हैं। सल्फेट्स सूर्य की किरणों को परावर्तित करके शीतलन प्रभाव दर्शाते हैं। कालिख ऊष्मा को अवशोषित करते हैं तथा नाभिकीय क्रिस्टल के रूप में कार्य करके वातावरण में हिम का निर्माण करते हैं।

atmosfair

उड्डयन उत्सर्जन का विनियमन:

  • इंजनों की प्रमाणीकरण आवश्यकताओं के माध्यम से उड्डयन संचालन से उत्पन्न उत्सर्जन को विनियमित किया जाता है। वर्ष 2016 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने दो स्तरीय योजना के माध्यम से नवीन विमानों के लिये CO2 उत्सर्जन मानकों की स्थापना की है। 
    • प्रथम स्तरीय मानक उन विमानों पर लागू किया गया है, जिनका पहले से निर्माण किया जा चुका है या जिनका निर्माण कार्य जारी है। 
    • दूसरे स्तर के मानक जो अधिक कठोर होंगे उन्हे वर्ष 2020 तक व्यावसायिक जेट तथा वर्ष 2023 तक बिज़नेस जेट के संबंध में लागू किया जाएगा।

जेट ज़ीरो पहल का महत्त्व:

  • यू.के. के पास विमानन क्षेत्र में 'सतत् उड्डयन ईंधन' (Sustainable Aviation Fuels) के उत्पादन तथा विद्युत आधारित उड्डयन सेवा में एक अग्रणी सेवा प्रदाता बनने का अवसर है। 
  • ब्रिटेन में वर्तमान में कुछ कंपनियाँ ‘विमानन जैव ईंधन संयंत्र’ के निर्माण की दिशा में भी कार्य कर रही है। अत: ब्रिटेन के समक्ष ‘विमानन जैव ईंधन’ में प्रमुख प्रौद्योगिकी निर्यातक देश बनने का अवसर है। 

संभावित चुनौतियाँ:

  • विमानन क्षेत्र का कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में लगभग 2% योगदान है, तथा वर्ष 2005 के बाद से इस क्षेत्र में GHGs के उत्सर्जन में 70% तक वृद्धि देखी गई है।
  • 'अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन' (International Civil Aviation Organization) के अनुसार इस विमानन क्षेत्र में उत्सर्जन गतिविधियों को कम करने की दिशा में आवश्यक उपायों को नहीं अपनाया गया तो वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन वर्तमान स्तर से 300% अधिक हो जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन

(International Civil Aviation Organisation-ICAO):

  • यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1944 में राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन अभिसमय (शिकागो कन्वेंशन) के संचालन तथा प्रशासन के प्रबंधन हेतु की गई थी।
  • इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना एवं विकास को बढ़ावा देना है ताकि दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन की सुरक्षित तथा व्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित हो सके।
  •  इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अमीबायसिस की नई दवा

प्रीलिम्स के लिये:

अमीबायसिस के बारे में 

मेन्स के लिये:

चिकित्सीय क्षेत्र में इस खोज का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( Jawaharlal Nehru University -JNU) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा एंटामोइबा हिस्टोलिटिका प्रोटोज़ोआ (Entamoeba Histolytica Protozoa) के कारण होने वाली अमीबायसिस बीमारी (Amoebiasis Disease) से बचाव के लिये एक नई दवा के अणु को विकसित किया गया हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization- WHO) के अनुसार, एंटामोइबा हिस्टोलिटिका प्रोटोज़ोआ ( Entamoeba Histolytica Protozoa) जो कि एक परजीवी (Parasitic) है, मनुष्यों में  रुग्णता (अस्वस्थता) तथा मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।
    • परजीवी वो जीव होते हैं जो भोजन एवं आवास के लिये किसी दूसरे जीव पर निर्भर/आश्रित होते हैं।
  • यह मनुष्यों में अमीबायसिस या अमीबा पेचिश बीमारी का प्रमुख कारण है जोकि  विकासशील देशों में एक सामान्य प्रचलित बीमारी है।
  • इस प्रोटोज़ोआ को प्रकृति में जीवित रहने के लिये कम हवा या ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। 
  • हालांकि, संक्रमण के दौरान इसे मानव शरीर के भीतर ऑक्सीजन की अधिक मात्रा का सामना करता पड़ता है। 
  • ऐसी स्थिति में यह जीव ऑक्सीजन की अधिकता से उत्पन्न तनाव का सामना करने के लिये बड़ी मात्रा में सिस्टीन (Cysteine ) जो कि एक अमीनो एसिड है, का निर्माण करता है।
  • यह प्रोटोजोआ सिस्टीन को ऑक्सीजन के उच्च स्तर के खिलाफ अपने रक्षा तंत्र में आवश्यक अणुओं के रूप में प्रयोग करता है। 
  • एंटामोइबा द्वारा सिस्टीन को संश्लेषित करने के लिये दो महत्वपूर्ण एंजाइमों का प्रयोग किया जाता है।
  • जेएनयू के शोधकर्त्ताओं  ने इन दोनों एंज़ाइमों की आणविक संरचनाओं की विशेषता बताई तथा उन्हें निर्धारित किया है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा दोनों एंजाइमों में से एक ओ-एसिटाइल एल-सेरीन सल्फहाइड्रिलेज़  (O-acetyl L-serine sulfhydrylase- OASS) से संभावित अवरोधक क्षमता की सफलतापूर्वक जाँच की गई।
  •  तथा बताया गया कि  इस एंज़ाइम में विद्यमान  कुछ अवरोधक अपनी पूरी क्षमता के साथ मनुष्यों में इस जीव (एंटामोइबा) के विकास को रोकने में सक्षम हैं।   
  • सिस्टीन, का जैव संश्लेषण (biosynthesis) ई. हिस्टोलिटिका( E. histolytica) के अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण है । 
  • इस प्रकार पहचान किये गए अणुओं द्वारा  अमीबायसिस की नई दवा को विकसित किया जा सकता हैं।
  • इस शोध कार्य को ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री’ (European Journal of Medicinal Chemistry) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

अमीबायसिस (Amoebiasis):

  • यह एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है, जो एक सूक्ष्म परजीवी एंटअमीबा हिस्टोलीटिका द्वारा फैलती है।
  • इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर दो से चार हफ्तों के भीतर दिखाई देते हैं।
  • इसके होने पर पेट में ऐंठन व दर्द होता है तथा रोगी को डायरिया, डिसेंट्री की शिकायत, भूख कम लगना तथा उल्टी इत्यादि होती है। 
  • संक्रमण के गंभीर रूप धारण करने पर शौच के साथ खून आता है।  
  • जब अमीबा का जीवाणु या पैरासाइट यकृत में प्रवेश कर जाता है, तब पेट में दाहिनी तरफ ऊपर की ओर पसलियों के अंदर अत्यधिक दर्द होता है और रोगी को तेज़  बुखार भी हो जाता है। 

स्रोत: पीआइबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

निजी बैंकों की समीक्षा

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक के बारे में 

मेन्स के लिये: 

पी के मोहंती समिति का बैंकिंग क्षेत्र में महत्त्व एवं कार्य 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा निज़ी क्षेत्रों के बैंकों के स्वामित्व, संचालन एवं कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिये एक समिति/आंतरिक कार्य समूह का गठन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस पाँच सदस्यीय आंतरिक कार्य समूह (Internal Working Group -IWG ) का गठन सेंट्रल बोर्ड के निदेशक पी के मोहंती की अध्यक्षता में  किया है।
  • यह कदम वर्ष 2020 की शुरुआत में आरबीआई तथा निजी क्षेत्र के बैंक कोटक महिंद्रा बैंक के बीच मे प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की समीक्षा के संबंध में अदालत से बाहर हुए समाधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। 
  • केंद्रीय बैंक द्वारा कोटक महिंद्रा बैंक की हिस्सेदारी को 26 प्रतिशत पर सीमित रखने की अनुमति दी गई साथ ही वोटिंग के अधिकार की सीमा 15 प्रतिशत तय की गई।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा नियमों के तहत, निजी क्षेत्र के बैंक के प्रवर्तक को तीन वर्ष में अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 40 प्रतिशत, दस वर्ष में 20 प्रतिशत और 15 वर्ष में 15 प्रतिशत पर आवश्यक रूप से लाने का प्रावधान किया गया है। 
  • यह समिति 30 सितंबर, 2020 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

आंतरिक कार्य समूह/समिति के कार्य:

  • इस कार्य समूह द्वारा भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्वामित्त्व तथा कॉर्पोरेट ढाँचे पर मौजूदा दिशा निर्देशों की समीक्षा की जाएगी।
  • कार्य समूह/समिति  भारत के निजी क्षेत्र के बैंकों के लाइसेंसिंग से संबंधित दिशा-निर्देशों तथा स्वामित्व और नियंत्रण से जुड़े नियमनों की समीक्षा करने के साथ-साथ  उपयुक्त सुझाव भी प्रस्तुत करेगी ।
  • अपने सुझाव प्रस्तुत करते समय समिति को स्वामित्त्व  और नियंत्रण पर अत्यधिक ध्यान देने वाले मुद्दे तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार एवं घरेलू ज़रूरतों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। 
  • समिति द्वारा शुरुआती-लाइसेंसिंग स्तर पर प्रवर्तकों की शेयरधारिता से संबंधित नियमों और शेयरधारिता घटाने की समय-सीमा की भी समीक्षा की जाएगी। 
  • गठित समूह बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन करने तथा सभी संबंधित मुद्दों पर सिफारिश करने के लिये व्यक्तियों/संस्थाओं के लिये पात्रता एवं मानदंडों की जाँच एवं समीक्षा करेगा। 
  • यह गैर-सहकारी वित्तीय होल्डिंग कंपनी (एनओएफएचसी) के माध्यम से वित्तीय सहायक कंपनियों के संचालन पर मौजूदा नियमों का अध्ययन करेगी तथा सभी बैंकों को एक समान विनियमन में स्थानांतरित करने हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत करेगी । 

गठित समिति का महत्त्व:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित इस कार्य समूह की समीक्षा द्वारा विभिन्न समयावधि में स्थापित बैंकों के लिये लागू नियमों को तर्कसंगत एवं उचित रूप से लागू किया जा सकेगा। 
  • बैंकिंग  लाइसेंस प्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। 

स्रोत: बिज़नेस टुडे


भारतीय अर्थव्यवस्था

अन्य देशों में भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की विभिन्न डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ

मेन्स के लिये:

विदेशों में भारतीय डिजिटल भुगतान प्रणाली संभावनाएँ, समस्याएँ तथा समाधान

चर्चा में क्यों?

कई देशों द्वारा अनुरोध किये जाने बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) विदेशों में अपनी भुगतान प्रणाली के विस्तार की संभावनाएँ तलाश रहा है।

प्रमुख बिंदु

भुगतान प्रणाली के लिये अनुरोध:

  • RBI को अपनी भुगतान प्रणालियों जैसे- चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS), राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (National Electronic Fund Transfer-NEFT), एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface-UPI) और संदेशों को प्रसारित करने संबंधी समाधानों को लागू करने के लिये विदेशों से अनुरोध प्राप्त हुए हैं।

कारण:

  • भारत में कम लागत वाले नवीन डिजिटल भुगतान विकल्पों की उपलब्धता के कारण कई देशों ने भारतीय भुगतान प्रणाली में अपनी रुचि व्यक्त की है।

भारत के बाहर भुगतान प्रणाली की उपलब्धता:

  • वर्तमान में RBI द्वारा अधिकृत भुगतान प्रणाली का ऐसा कोई भी ऑपरेटर नहीं है जो भारत के बाहर ऐसी किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान करता हो।
  • हालाँकि CTS, नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) और NEFT के सहयोग से भूटान के साथ एक क्रॉस कंट्री को-ऑपरेशन पर कार्य किया जा रहा है। NEFT की सुविधा भारत से नेपाल में होने वाले एकतरफा अंतरण के लिये भी उपलब्ध है

भारत के बाहर भुगतान प्रणाली के विस्तार की संभावना:

  • RBI के अनुसार, भुगतान प्रणाली के मानकों में कुछ बदलाव और अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मंचों पर सक्रिय भागीदारी एवं आवश्यक सहयोग के माध्यम से भारतीय भुगतान प्रणालियों को वैश्विक मंच पर उपलब्ध कराया जा सकता है। इसमें प्रेषण को भी शामिल किया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर RuPay कार्ड योजना और UPI के ब्रांड मूल्य, दायरे, कवरेज़ और उपयोग को बढ़ाने एवं अधिक व्यापक रूप देने के विभिन्न प्रयास भी किये गए हैं।

इसमें निहित अन्य मुद्दे:

  • विदेशी फंड्स (डिजिटल भुगतानों के माध्यम से प्राप्त होने वाले फंड्स) पर अत्यधिक निर्भरता भारत में संभावित तरलता जोखिम जैसे मुद्दों को बढ़ावा दे सकती है।
  • विभिन्न देशों की अलग-अलग समय प्रणाली डिजिटल भुगतान में जोखिम पैदा कर सकती हैं।

डिजिटल भुगतान और भारत

(Digital Payments and India):

  • भारत में खुदरा डिजिटल भुगतान का बढ़ता उपयोग नकदी के इस्तेमाल को प्रभावित करता प्रतीत हो रहा है।
  • RBI के अनुसार, देश में डिजिटल भुगतान में मात्रा और मूल्य के मामले में क्रमशः 61% और 19% की वृद्धि देखी गई है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लिये डिजिटल भुगतान का मूल्य भी वर्ष 2014-15 के 660% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 862% हो गया है।
  • पॉइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल 35% की उच्च गति से बढ़ें हैं जबकि इसके विपरीत नए ATMs लगाने की गति कम (4%) हुई है।

एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)

  • यह तत्काल भुगतान सेवा (IMPS)- कैशलेस भुगतान को तीव्र, आसान और सुगम बनाने के लिये  राउंड-द-क्लॉक (अर्थात् 24 घंटे उपलब्ध) सेवा, का एक उन्नत संस्करण है। 
  • UPI एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लिकेशन (किसी भी भागीदार बैंक) में, कई बैंकिंग सुविधाओं, एक ही फंड में समेकित फंड रूटिंग और मर्चेंट भुगतान को, सन्निहित कर देती है।
  • नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने वर्ष 2016 में 21 सदस्य बैंकों के साथ UPI को लॉन्च किया था।

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर

(National Electronic Funds Transfer)

  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (National Electronic Funds Transfer-NEFT) देश की प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणालियों में से एक है। इसकी शुरुआत नवंबर 2005 में की गई थी।
  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (NEFT) एक राष्ट्रव्यापी भुगतान प्रणाली है। इस योजना के तहत व्यक्ति, फर्म और कॉरपोरेट संस्था/संगठन किसी भी बैंक शाखा से देश के किसी भी कोने में स्थापित अन्य बैंक शाखा (योजना के तहत शामिल बैंक) के खाताधारक किसी भी व्यक्ति, फर्म या कॉर्पोरेट संस्था/संगठन को धनराशि हस्तांतरित कर सकते हैं।
  • NEFT के माध्यम से कितनी भी न्यूनतम अथवा अधिकतम धनराशि हस्तांतरित की जा सकती है, अर्थात् इसकी कोई सीमा नहीं है।
  • हालाँकि भारत के भीतर नकद आधारित प्रेषणों और भारत-नेपाल प्रेषण सुविधा योजना के तहत नेपाल के लिये होने वाले प्रेषण के लिये प्रति लेन-देन अधिकतम 50,000 रुपए की सीमा तय की गई है।

RuPay कार्ड योजना 

  • RuPay भारत में अपनी तरह का पहला घरेलू डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान नेटवर्क है।
  • यह नाम रुपे (Rupee) और, पेमेंट (Payment) दो शब्दों से मिलकर बना है जो इस बात पर ज़ोर देता है कि यह डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतानों के लिये भारत की स्वयं की पहल है।
  • इस कार्ड का उपयोग सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और सऊदी अरब में लेन-देन के लिये भी किया जा सकता है।

चेक ट्रंकेशन सिस्टम 

Cheque Truncation System (CTS)

  • ट्रंकेशन वह प्रक्रिया है जिसमें आहरणकर्त्ता द्वारा जारी किये गए भौतिक (मूल) चेक को चेक के प्रस्तुतीकरण वाले बैंक से अदाकर्त्ता बैंक शाखा तक की यात्रा नहीं करनी पड़ती है। चेक के स्थान पर क्लियरिंग हाउस द्वारा इसकी इलेक्ट्रॉनिक फोटो अदाकर्त्ता शाखा को भेज दी जाती है जिसके साथ इससे संबंधित जानकारी जैसे- प्रस्तुति की तारीख, प्रस्तुत करने वाला बैंक इत्यादि भी भेज दी जाती है। इस तरह से चेक ट्रंकेशन के माध्यम से समाशोधन (Clearing) के प्रयोजनों हेतु कुछ अपवादों को छोड़कर, लिखतों की एक शाखा से दूसरी शाखा में जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह प्रभावी ढंग से चेक के एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में लगने वाली लागत को समाप्त करता है, उनके संग्रहण में लगने वाले समय को कम करता है और चेक प्रोसेसिंग की समस्त प्रक्रिया को बेहतर बनाता है।

राष्ट्रीय स्वचालित समाशोधन गृह

National Automated Clearing House (NACH)

  • राष्ट्रीय स्वचालित समाशोधन गृह/नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India-NPCI) द्वारा उपलब्ध कराई गई एक सेवा है। NACH इलेक्ट्रॉनिक अंतरण/ट्रांसफर, हाई वॉल्यूम ट्रांसफर और आवधिक अंतर-बैंक लेन-देन के लये उपयुक्त है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 जून, 2020

विश्व रक्तदाता दिवस

प्रत्येक वर्ष 14 जून को संपूर्ण दुनिया में विश्व रक्तदाता दिवस (World Blood Donor Day) मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य सुरक्षित रक्त एवं रक्त उत्पादों की आवश्यकता के संदर्भ में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदान के लिये रक्तदाताओं का आभार व्यक्त करते हुए अन्य लोगों को भी इस कार्य हेतु प्रोत्साहित करना है। विश्व रक्तदाता दिवस 2020 की थीम ‘सुरक्षित रक्त जीवन बचाता है’ (Safe Blood, Saves Lives) रखी गई है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा रक्तदाताओं को धन्यवाद देने और सुरक्षित रक्त की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी। यह दिवस महान जीवविज्ञानी कार्ल लैंडस्टीनर (Karl Landsteiner) की याद में प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है, जिनका जन्‍म 14 जून, 1868 को हुआ था। उल्लेखनीय है कि उन्होंने मानव रक्‍त में उपस्थित एग्‍ल्‍युटिनि‍न (Agglutinin) की मौजूदगी के आधार पर रक्‍तकणों का A, B और O समूह में वर्गीकरण किया था। जटिल चिकित्‍सा और सर्जरी की स्थिति में रोगी का जीवन बचाने के लिये रक्‍त की आवश्‍यकता पड़ती है। प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं और सैन्‍य संघर्ष जैसी आपात स्थितियों में घायलों के इलाज में भी रक्‍त की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। जीवन रक्षक के रूप में यह बहुत ही अनिवार्य है। इतना महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद सुरक्षित रक्त प्राप्त करना आज भी काफी चुनौतीपूर्ण है। अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देश संबंधित बुनियादी ढाँचे की कमी जैसे विभिन्न कारणों के परिणामस्वरूप अपने नागरिकों को सुरक्षित रक्त उपलब्ध कराने के लिये संघर्ष करते हैं। 

सोशल डिस्टेंसिंग को ट्रैक करने हेतु AI-आधारित प्रणाली

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- खड़गपुर (IIT-Kharagpur) के अनुसंधानकर्त्ताओं ने सार्वजनिक स्थानों पर सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) की निगरानी करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) आधारित प्रणाली विकसित की है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जो स्वतः ही दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के बीच की दूरी का पता लगा सकता है और सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों के उल्लंघन की स्थिति में ध्वनि के माध्यम से चेतावनी दे सकता है। IIT-खड़गपुर के अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, इस उपकरण को सस्ती और आसानी से उपलब्ध होने वाली हार्डवेयर सामग्री का उपयोग करके डिज़ाइन किया गया है। अनुसंधानकर्त्ताओं के मुताबिक यह उपकरण बाज़ार और मॉल समेत भीड़-भाड़ वाले सभी स्थानों पर सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंड को बनाए रखने में मददगार साबित होगा। सोशल डिस्टेंसिंग से तात्पर्य समाजिक स्तर पर उचित दूरी बनाए जाने से है। सभाओं में शामिल होने से बचना, सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक कार्यक्रमों के आयोजन से बचना ही ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिये। किसी व्यक्ति से बात करते समय हमें किसी भी प्रकार से शारीरिक स्पर्श से बचना चाहिये। WHO द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति COVID-19 से संक्रमित है, तो उससे कम-से-कम 1 मीटर की दूरी बनाए रखना अनिवार्य है।

वसंत रायजी 

भारत के सबसे वृद्ध प्रथम श्रेणी के पूर्व क्रिकेटर वसंत रायजी (Vasant Raiji) का 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। दाएँ हाथ के बल्लेबाज़ वसंत रायजी ने 1940 के दशक में कुल 9 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे, जिसमें उन्होंने कुल 277 रन स्कोर किये थे। बल्लेबाज वसंत रायजी ने वर्ष 1941 में मुंबई के लिये अपना पहला मैच खेला था, जो कि ड्रॉ रहा था। रायजी ने वर्ष 1939 में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (CCI) टीम के लिये प्रथम श्रेणी में अपना पहला मैच खेला था, जो कि नागपुर में खेला गया था। वसंत रायजी का जन्म 26 जनवरी, 1920 को गुजरात के बड़ौदा में हुआ था। वसंत रायजी मुंबई में जॉली क्रिकेट क्लब (Jolly Cricket Club) के संस्थापक सदस्य भी थे। वसंत रायजी ने क्रिकेट से संन्यास लेने के पश्चात् लेखन का कार्य शुरू किया और उन्होंने भारतीय क्रिकेट के शुरुआती इतिहास पर कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। 

इसरो साइबस्पेस प्रतियोगिता

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) ने स्कूली छात्रों के लिये ऑनलाइन प्रतियोगिताएँ शुरू की हैं। इसरो साइबरस्पेस प्रतियोगिता-2020 (ISRO Cyberspace Competitions–2020) नामक इस पहल के अंतर्गत स्कूली छात्रों के लिये चार वर्गों में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। इन प्रतियोगिताओं के पहले वर्ग में पहली से तीसरी कक्षा के छात्रों के लिये चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। दूसरे वर्ग में चौथी से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिये विज्ञान मॉडल के निर्माण संबंधी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इसी प्रकार नौवीं और दसवीं के छात्रों के लिये निबंध प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। जबकि, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों के लिये निबंध लेखन के साथ-साथ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है। इन प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिये आवेदकों को सर्वप्रथम ISRO की वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होगा।


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