डेली न्यूज़ (15 Jun, 2019)



किम्‍बर्ले प्रक्रिया की अंतर-सत्रीय बैठक 2019

चर्चा में क्यों?

किम्बर्ले प्रक्रिया (Kimberley Process) की अंतर-सत्रीय बैठक का आयोजन 17 से 21 जून, 2019 के बीच मुंबई में किया जा रहा है।

  • इस बैठक के दौरान में किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना (Kimberley Process Certification Scheme- KPCS) की विभिन्‍न समितियों और कार्य समूहों की बैठकों के अलावा हीरा शब्‍दावली और पारंपरिक खनन (Diamond Terminology and Artisanal Mining) के लिये ‘छोटे कदम-बड़े परिणाम’ (Small Steps to Larger Outcomes) पर विशेष सत्र भी आयोजित किया जाना है।
  • इस पाँच दिवसीय बैठक में भारत तथा सदस्‍य देशों के करीब 300 प्रतिनिधियों के साथ-साथ उद्योग जगत और नागरिक समाज के प्रतिनि‍धि भी हिस्‍सा लेंगे।

भारत और किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना (KPCS)

  • भारत, किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक है।
  • वर्ष 2019 में भारत KPCS की अध्‍यक्षता कर रहा है। रूसी संघ को KPCS का उपाध्‍यक्ष बनाया गया है।
  • इससे पहले भारत ने 2008 में KPCS की अध्‍यक्षता की थी।

किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना (KPCS)

  • वर्तमान में KPCS के 55 सदस्‍य 82 देशों का प्रतिनिधित्‍व कर रहे हैं। इसमें यूरोपीय संघ के 28 सदस्‍य देश भी शामिल हैं ।
  • किम्‍बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना की अध्यक्षता की ज़िम्मेदारी सदस्‍य देशों को बारी-बारी से सौंपी जाती है।
  • इसका उपाध्‍यक्ष आमतौर पर किम्बर्ले प्रक्रिया प्‍लेनेरी (Kimberley Process Plannery) द्वारा प्रत्येक वर्ष चुना जाता है, जिसे अगले वर्ष अध्‍यक्ष बना दिया जाता है।
  • वर्ष 2003 के बाद से भारत सक्रिय रूप से KPCS की प्रक्रियाओं में भाग ले रहा है और वह इसके लगभग सभी कार्यकारी समूहों का सदस्य है।
  • देश के वाणिज्य विभाग को KPCS का नोडल विभाग बनाया गया है तथा रत्‍न और आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद (Gem & Jewellery Export Promotion Council- GJEPC) को भारत में KPCS के आयात और निर्यात प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है।
  • रत्‍न और आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद को किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणपत्र जारी करने का काम दिया गया है, साथ ही यह देश में प्राप्‍त किये जाने वाले किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणपत्रों का संरक्षक भी है।

उद्देश्य

  • किम्‍बर्ले प्रक्रिया (Kimberley Process) हीरे के दुरुपयोग को रोकने के लिये कई देशों, उद्योगों और नागरिक समाजों की संयुक्त पहल है।
  • यह ऐसे हीरों के व्‍यापार पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया है जिनका इस्‍तेमाल विद्रोही गुटों द्वारा चुनी हुई सरकारों के खिलाफ संघर्ष एवं युद्ध के वित्तपोषण के लिये किया जाता है।
  • हालाँकि इस किस्‍म के हीरों की संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अलग से व्‍याख्‍या की गई है।

किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना (KPCS) की कार्य प्रणाली

  • KPCS के मूल नियमों के आधार पर किम्‍बर्ले प्रक्रिया को विभिन्न कार्यसमूहों और सीमितियों द्वारा संचालित किया जाता है जो निम्नलिखित हैं:
    • निगरानी के लिये कार्यसमूह (Working Group on Monitoring- WGM)- इस कार्यसमूह को भागीदार देशों में योजना के क्रियान्‍वयन की निगरानी करने का भार सौंपा गया है। इसकी समीक्षा के उपरांत ही कार्यसमूह अपने सुझाव देता है।
    • आँकड़े इकट्ठा करने वाला कार्यसमूह (Working Group on Statistics- WGS)- यह कार्यसमूह सदस्‍य देशों में कच्‍चे हीरों के उत्‍पादन, आयात और निर्यात के आँकड़े एकत्र करता है।
    • हीरा विशेषज्ञों का कार्यसमूह (Working Group on Diamond Experts- WGDE)- इसका काम कच्‍चे हीरों के संबंध में विश्‍व सीमा शुल्‍क संगठनों को एक सर्वसम्‍मत कूटनीतिक प्रणाली विकसित करने में आने वाली तकनीकी बाधाओं के संबंध में सुझाव देना तथा हीरों के मूल्‍यांकन हेतु एक सरल पद्धति विकसित करने में मदद करना है।
    • हीरों के घरेलू उत्‍पादन पर कार्यसमूह (Working Group on Domestic Production On Diamond- WGDPD)- यह कार्यसमूह घरेलू स्‍तर पर हीरों के उत्‍पादन और व्‍यापार पर प्रभावी नियंत्रण रखता है।
    • भागीदारी और अध्‍यक्षता पर समिति (Committee on Participation and Chairmanship- CPC)- यह समिति किम्‍बर्ले प्रक्रिया के अध्‍यक्ष को नए सदस्‍य देशों को शामिल करने तथा मौजूदा सदस्‍य देशों द्वारा प्रक्रिया की शर्तों का अनुपालन नहीं किये जाने संबंधी मामलों में मदद करता है।
    • नियम और प्रक्रियाओं की समिति (Committee on Rules and Procedure- CRP)- यह समिति किम्‍बर्ले प्रक्रिया के नियम और तौर-तरीके तय करती है, साथ ही इसमें समय-समय पर बदलाव भी करती है।

समीक्षा और सुधारों पर तदर्थ समिति

(Ad Hoc Committee on Review and Reform- AHCRR)

  • इस समिति का गठन ऑस्‍ट्रेलिया के ब्रिस्‍बेन में वर्ष 2017 में KPCS के प्‍लेनेरी सत्र में किया गया था। जिसकी अध्‍यक्षता भारत ने की थी।
  • हालाँकि भारत ने वर्ष 2019 में केपीसीएस की बैठक की अध्‍यक्षता करने के लिये बेल्जियम में वर्ष 2018 में आयोजित KPCS के प्‍लेनेरी सत्र में इस तदर्थ समिति की अध्‍यक्षता छोड़ दी।

KPCS के तहत कच्‍चे हीरों का व्‍यापार

  • KPCS की योजना के तहत अंतर्राष्‍ट्रीय सीमाओं के ज़रिये कच्‍चे हीरों का आयात और निर्यात सीलबंद कंटेनरों में किम्‍बर्ले प्रक्रिया प्रमाणपत्र के साथ किया जाना है।
  • हीरों की कोई भी ऐसी खेप केवल KPCS के भागीदार देशों को ही भेजी जा सकती है। साथ ही बिना प्रमाणपत्र के कच्‍चे हीरों की कोई भी खेप KPCS के सदस्‍य देशों को नहीं भेजी जा सकती।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1998 में अफ्रीका में (सिएरा लियोन, अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्‍य और लीबिया) कुछ विद्रो‍ही गुटों ने अन्‍य वस्‍तुओं के अलावा इस किस्‍म के हीरों का इस्‍तेमाल चुनी हुई सरकारों के खिलाफ अपने संघर्ष के वित्‍तपोषण के लिये किया था।
  • इस तरह के हीरों के व्‍यापार पर रोक लगाने के लिये विश्‍व के हीरा उद्योग, संयुक्‍त राष्‍ट्र, कई देशों की सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर नवंबर, 2002 में स्विट्ज़रलैंड में किम्‍बर्ले प्रक्रिया उपायों का मसौदा तैयार किया।
  • अब तक 50 से ज्‍यादा देश इसको मंज़ूरी दे चुके हैं।
  • KPCS 1 जनवरी, 2003 से प्रभावी है। इसके तहत गलत कार्यों के लिये हीरों के व्‍यापार को रोकने हेतु एक प्रभावी प्रणाली बनाई गई है।

स्रोत- PIB


चावल में शीथ ब्लाइट रोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (National Institute of Plant Genome Research) के वैज्ञानिकों ने चावल की फसल में एक प्रमुख रोगजनक कवक ‘राइज़ोक्टोनिया सोलानी’ (Rhizoctonia Solani) की आक्रामकता से जुड़ी आनुवंशिक विविधता (Genomic Diversity) को उजागर किया है।

प्रमुख बिंदु

  • राइज़ोक्टोनिया सोलानी कवक की वह प्रजाति है जिससे चावल में शीथ ब्लाइट (Sheath Blight) रोग होता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने इन कवक स्ट्रेनों (Fungal Strains) में ऐसे कई जीन और जीन परिवारों की पहचान की है जो शीथ ब्लाइट रोग को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसी जीनोमिक अध्ययन के आधार पर चावल की शीथ ब्लाइट प्रतिरोधी किस्म को तैयार करने में सहायता मिलेगी।
  • शीथ ब्लाइट रोग चावल की फसल की प्रमुख समस्या है जिसके कारण प्रतिवर्ष चावल की फसल में 60 फीसदी तक का नुकसान होता है। इसीलिये स्थायी रूप से इस रोग को नियंत्रित करना एक चुनौती बनी हुई है।
  • पिछले 4-5 वर्षों में जो अनुसंधानकर्त्ता इस रोग के रोगाणुजनक कवक पर कार्य कर रहे थे उनके द्वारा इसके दो हाइपर आक्रामक स्ट्रेनो के जीनोम का अध्ययन करने का फैसला किया।

Sheath Blight Disease

राइज़ोक्टोनिया सोलानी रोगजनित चावल (Rhizoctonia Solani infected rice)

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, राइज़ोक्टोनिया सोलानी के दो भारतीय रूपों- बीआरएस 11 (BRS 11) और बीआरएस 13 (BRS 13) की आनुवंशिक संरचना का अध्ययन किया गया है और इनके जीन्स की तुलना राइज़ोक्टोनिया सोलानी एजी 1-आईए (Rhizoctonia solani AG1-IA group) समूह के कवक के जीनोम से की गई।
  • इसमें कुछ एकल न्यूक्लियोटाइडस बहुरूपों (Single Nucleotide Polymorphisms) की पहचान की गई एवं दोनों प्रकार के कवकों के जीनोम में क्षारकों के जुड़ने तथा विलोपित की भी पहचान की गई है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कवकों के जीन्स (Genes) के लक्षणों की लगातार पहचान कियुए जाने से इस भविष्य में इनके रोग को फ़ैलाने में इनकी भूमिका का भी पता चलेगा।
  • विभिन्न बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से जीन्स को संशोधित कर चावल की शीथ ब्लाइट प्रतिरोधी प्रजाति विकसित करने में मदद मिल सकती है।

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान ( (National Institute of Plant Genome Research)

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (यानी राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केंद्र) भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है| इस संस्थान को भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ और प्रोफ़ेसर (डॉ.) जे.सी. बोस के जन्म दिवस पर स्थापित किया गया था| इसकी औपचारिक घोषणा 30 नवंबर,1997 को की गई थी| इस संस्थान की सहायता से भारत पादप आनुवंशिकी (प्लांट जेनोमिक्स) के क्षेत्र में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में से एक बन गया है|

उद्देश्य

  • आधारभूत तथा कार्यात्मक आणविक जीव विज्ञान को उच्च क्षमता की सहायता, समन्वय, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्रदान करना |
  • उन विभिन्न वैज्ञानिक और अनुसंधान अभिकरणों/प्रयोगशालाओं तथा देश के अन्य संगठनों को जो पौध जीन पर कार्य कर रहे हैं, को लगातार आपस में प्रभावी ढंग से जोड़े रखना तथा उनके कार्यों को बढ़ावा देना|
  • आणविक जीव विज्ञान के साथ-साथ टिशू कल्चर और आनुवंशिक अभियांत्रिकी तकनीक के विभिन्न तरीकों का उपयोग करके महत्त्वपूर्ण जीन की पहचान करना तथा उनमें फेरबदल कर ट्रांसजेनिक पौधों को सृजन के साथ उसको कृषि और रोगजनक-रोधी बना कर उत्पादन में सुधार करना|
  • सभी प्रकार के मौलिक जीन विनियमन और मानचित्रण से संबंधित कार्य करना जिससे उपर दिये गए अधिदेशों को पूरा करने में सहायता मिले|
  • ट्रांसजेनिक वनस्पतियों का उत्पादन और परीक्षण करना|
  • उन जीन्स की पहचान करना जो कि रोगाणुओं के अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि उनके आधार पर रोग का निवारण किया जा सके|
  • वनस्पति आनुवंशिक अभियांत्रिकी और जीनोम विश्लेषण के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर अग्रिम प्रशिक्षण देना|
  • वनस्पति जीनोम अनुसंधान में कार्य कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोगात्मक तथा पारस्परिक संबंधों का विकास करना|

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


SCO शिखर सम्मेलन 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) का 19वाँ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें भारत सहित तमाम सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में भाग लिया और एशियाई क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे आतंकवाद पर अपनी चिंता भी ज़ाहिर की।

मुख्य बिंदु :

  • 19वें शिखर सम्मेलन में आतंकवाद प्रमुख मुद्दा रहा जिस पर सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने गहरी चिंता व्यक्त की और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हेतु एक साथ आने पर भी ज़ोर दिया गया।
  • जुलाई 2015 के बाद यह पहला मौका था जब भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि द्विपक्षीय वार्ता के लिये एक साथ एक ही मंच पर मौजूद थे।
  • सम्मेलन में सदस्य देशों के मध्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया गया जो कि SCO का एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • भारत और चीन के प्रतिनिधियों ने भविष्य में अपने बहुपक्षीय संबंधों को और मज़बूती प्रदान करने के तरीकों पर भी चर्चा की। ज्ञातव्य है कि चीन की आतंकवाद समर्थित नीति, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) तथा चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (China–Pakistan Economic Corridor - CPEC) के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हुआ है।
  • साथ ही चीन ने अमेरिका की व्यापार संरक्षणवाद नीति (Trade Protectionism Policy) तथा प्रशुल्क (Tariff) को एक हथियार के रूप में प्रयोग करने पर चिंता ज़ाहिर की और इसके विरुद्ध एकजुट होने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया।
  • चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध लगातार बढ़ता जा रहा है जिसका प्रमुख उदाहरण हाल ही में अमेरिका द्वारा चीनी कंपनी हुवाई (Huawei) पर कड़े व्यापार प्रतिबंध लगाना है।

शंघाई सहयोग संगठन

  • शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसकी स्थापना चीन, कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान द्वारा 15 जून, 2001 को शंघाई (चीन) में की गई थी।
  • उज़्बेकिस्तान को छोड़कर बाकी देश 26 अप्रैल, 1996 में गठित ‘शंघाई पाँच’ समूह के सदस्य हैं।
  • वर्ष 2005 में भारत और पाकिस्तान इस संगठन में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुए थे।
  • भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में इस संगठन के पूर्ण सदस्य का दर्जा प्रदान किया गया।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)

  • इस परियोजना की परिकल्पना वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी। हालाँकि चीन इस बात से इनकार करता है, लेकिन इसका प्रमुख उद्देश्य चीन द्वारा वैश्विक स्तर पर अपना भू-राजनीतिक प्रभुत्व कायम करना है।
  • यह एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका के बीच भूमि और समुद्री क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये परियोजनाओं का एक सेट है।
  • BRI को 'सिल्क रोड इकॉनमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड के रूप में भी जाना जाता है।
  • विश्व की 70% जनसंख्या तथा 75% ज्ञात ऊर्जा भंडारों को समेटने वाली यह परियोजना चीन के उत्पादन केंद्रों को वैश्विक बाज़ारों एवं प्राकृतिक संसाधन केंद्रों से जोड़ेगी।
  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को सड़क मार्ग के ज़रिये पड़ोसी देशों के साथ-साथ यूरोप से जोड़ना है, ताकि वैश्विक कारोबार को बढ़ाया जा सके।

चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (CPEC)

  • CPEC पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबी एक वाणिज्यिक परियोजना है।
  • इस परियोजना की कुल लागत लगभग 50 अरब डॉलर आँकी जा रही है।
  • चीन का यह निवेश दशकों से खराब हालात में चल रही पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिये वरदान साबित हुआ है।
  • इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस का कम समय में वितरण सुनिश्चित करना है।
  • एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2030 तक करीब 7 लाख लोगों को इस परियोजना से प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा।

स्रोत- द हिंदू


बाल साहित्‍य पुरस्‍कार 2019 तथा युवा पुरस्‍कार 2019

चर्चा में क्यों?

अगरतला में हुई कार्यकारी बोर्ड की बैठक के बाद साहित्‍य अकादमी (Sahitya Akademi) द्वारा बाल साहित्य‍ पुरस्‍कार, 2019 तथा युवा पुरस्‍कार, 2019 की घोषणा की गई। साहित्य अकादमी की यह बैठक प्रसिद्ध कवि डॉ. चंद्रशेखर कंबार (जो कि वर्तमान में अकादमी के अध्यक्ष हैं) की अध्‍यक्षता में की गई थी।

मुख्य बिंदु

  • इस वर्ष बाल साहित्‍य पुरस्‍कार, 2019 के लिये 22 लेखकों तथा युवा पुरस्‍कार, 2019 के लिये 23 लेखकों का चयन किया गया है।
  • मैथिली भाषा के लिये दोनों ही पुरस्‍कारों का ऐलान अभी नहीं किया गया है, अकादमी के अनुसार, इसकी घोषणा भी जल्द ही कर दी जाएगी।
  • बाल साहित्‍य पुरस्‍कार राजस्थानी तथा मैथिली भाषा के अतिरिक्त संविधान में वर्णित अन्य सभी 22 भाषों के लिये प्रदान किये जाते हैं, वहीं युवा पुरस्‍कार 2019 भी मैथिली के अतिरिक्त अन्य सभी 23 भाषों के लिये प्रदान किये जाते हैं।
  • प्रत्येक भाषा में पुरस्‍कार विजेताओं का चयन तीन सदस्‍यीय निर्णायक मंडल की सिफारिशों के आधार पर निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जाता है।
  • कविता की ग्‍यारह पुस्‍तकें, लघु कथा की छह पुस्‍तकें, पाँच उपन्‍यास तथा एक साहित्‍य आलोचना की पुस्‍तक के लिए साहित्‍य अकादमी युवा पुरस्‍कार, 2019 से प्रदान किये गए हैं।

बाल साहित्य‍ पुरस्‍कार:

  • बाल साहित्य पुरस्‍कार के लिए उन पुस्तकों को चुना जाता है जो पिछले पाँच वर्षों के भीतर पहली बार प्रकाशित हुई हों तथा जिनका बाल साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा हो।

युवा पुरस्‍कार :

  • युवा पुरस्‍कार उन पुस्तकों से संबंधित है जिनका प्रकाशन 35 वर्ष से कम आयु के लेखकों द्वारा किया जाता है।

साहित्‍य अकादमी :

  • साहित्‍य अकादमी की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 12 मार्च, 1954 को की गई थी।
  • यह अकादमी एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में कार्य करती है।
  • अकादमी प्रत्येक वर्ष अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त 24 भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के लिये पुरस्कार प्रदान करती है।
  • वर्तमान में कन्नड़ के मशहूर नाटककार, कवि, उपन्यासकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक चंद्रशेखर कंबार साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
  • साहित्य अकादमी द्वारा दिये जाने वाले प्रमुख पुरस्‍कार:
    • श्‍लाका सम्‍मान
    • भारत-भारती
    • व्‍यास सम्मान
    • साहित्य अकादमी पुरस्कार
    • भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
    • बाल साहित्‍य पुरस्‍कार
    • सरस्वती सम्मान
    • युवा पुरस्‍कार

स्रोत- पी.आई.बी.


भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2030 तक भारत अमेरिका, रूस और चीन के सर्वोत्कृष्ट अंतरिक्ष क्लब में शामिल होकर अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन शुरू करने योजना बना रहा है।

Space Station

प्रमुख बिंदु

  • स्पेस स्‍टेशन एक अंतरिक्षयान होता है जिसमें चालक दल के सदस्‍यों के रहने की सुविधा होती है। इसे इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह लंबे समय तक अंतरिक्ष में रह सके इसके अलावा इसमें एक अन्‍य अंतरिक्ष यान भी जुड़ सकता है।
  • अभी तक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) जिसे वर्ष 1998 में अंतरिक्ष में स्‍थापित किया गया था विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है। उल्लेखनीय है कि ISS पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित सबसे बड़ा मानव निर्मित निकाय है।

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन

(Indian Space Station)

  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Indian Space Station), जिसका भार लगभग 20 टन होगा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तुलना में बहुत हल्का होगा। इसका प्रयोग माइक्रो ग्रेविटी (Microgravity) से संबंधित परीक्षणों में किया जाएगा न कि अंतरिक्ष यात्रा के लिये।
  • इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्री इसमें लगभग 20 दिनों तक रह सकेंगे। यह परियोजना गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) का विस्तार के रूप में होगी।
  • यह अंतरिक्ष स्टेशन लगभग 400 किमी की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (Space Docking experiment- Spadex) पर काम कर रहा है।

“स्‍पेस डॉकिंग का तकनीक का तात्पर्य अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की तकनीक से है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होता है। अतः स्‍पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्‍टेशन के संचालन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।”

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का महत्त्व

  • अंतरिक्ष स्टेशन सार्थक वैज्ञानिक डेटा (विशेष रूप से जैविक प्रयोगों के लिये) एकत्र करने के लिये आवश्यक है।
  • इससे भारत की निगरानी क्षमता में वृद्धि होगी।
  • इससे अंतरिक्ष में बार-बार निगरानी उपग्रह को भेजने पर आने वाले खर्च में भी कमी आएगी।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


बिहार में सार्वभौमिक वृद्धावस्था पेंशन लागू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार में एक नई योजना मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना (Mukhyamantri Vridhjan Pension Yojana) की शुरुआत की गई है। यह योजना सभी वृद्धजनों पर सार्वभौमिक रूप से (चाहे वे किसी भी आर्थिक, सामाजिक एवं जातिगत स्तर पर हों) लागू होगी।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि इस योजना के अंतर्गत 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के प्रत्येक पुरुष एवं महिला को प्रतिमाह 400 रुपए तथा 80 वर्ष या इससे अधिक आयु वर्ग के प्रत्येक पुरुष एवं महिला को 500 रुपए प्रतिमाह पेंशन की राशि उनके बैंक खाते में प्रदान की जाएगी।
  • अन्य राज्यों में वृद्धावस्था पेंशन का लाभ सिर्फ BPL परिवार, एससी/एसटी, विधवा और विकलांग व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है।
  • देश में बिहार को छोड़कर किसी अन्य राज्य में ऐसी कोई अनूठी योजना (Unique Scheme) नहीं है जहाँ सभी वृद्धों (चाहे वे किसी भी आर्थिक, सामाजिक एवं जातिगत स्तर पर हों) को पेंशन दी जाती है।
  • इस योजना के तहत करीब 35 से 40 लाख लोगों को कवर किया जाएगा जिन्हें अभी तक किसी अन्य राज्य/ केंद्र सरकार की योजना में शामिल नहीं किया गया है।
  • हालाँकि बिहार में लगभग 63 लाख लोगों (बीपीएल परिवारों, विधवाओं और विकलांगों) को राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत पहले से ही वृद्धावस्था पेंशन प्रदान की जा रही है।
  • इस योजना के तहत राज्य सरकार प्रतिवर्ष 1,800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च किया करेगी।

पेंशन से संबंधित केंद्र सरकार की योजनाएँ

  • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme- NSAP) ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित एक कल्याणकारी कार्यक्रम है। इसके तहत केंद्र सरकार द्वारा बुजुर्गों को पेंशन प्रदान की जाती है।
  • इस कार्यक्रम को ग्रामीण के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है।

संवैधानिक प्रावधान

  • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) संविधान के अनुच्छेद 42 और विशेष रूप से अनुच्छेद 41 में दिये गए नीति-निदेशक सिद्धांतों की पूर्ति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अनुच्छेद 41 के अनुसार, राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने, शिक्षा प्राप्त करने और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं नि:शक्तता तथा अन्य प्रकार के अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
  • अनुच्छेद 42 के अनुसार, राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिये तथा प्रसूति सहायता के लिये उपबंध करेगा।
  • इस कार्यक्रम की शुरुआत पहली बार 15 अगस्त, 1995 को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में की गई थी। वर्ष 2016 में इसे केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) की प्रमुखतम (Core of Core) योजनाओं में शामिल किया गया था।

वर्तमान में वर्ष 2019 में इसके पाँच घटक हैं:

1. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (Indira Gandhi National Old Age Pension Scheme-IGNOAPS) – इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।

2. राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (National Family Benefit Scheme-NFBS)- इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।

3. अन्नपूर्णा योजना (Annapurna Scheme- AS)- यह योजना वर्ष 2000 में शुरू की गई।

4. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (Indira Gandhi National Widow Pension Scheme-IGNWPS)- यह 2009 में शुरू की गई।

5. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (Indira Gandhi National Disability Pension Scheme- IGNDPS)- यह 2009 में शुरू की गई।

  • राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (National Maternity Benefit Scheme-NMBS), NSAP का हिस्सा थी और बाद में इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया।

स्रोत- टाइम्स ऑफ इंडिया


भारत में मानसून में देरी के कारण

चर्चा में क्यों?

यू. एस. नेशनल वेदर सर्विस के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर (Climate Prediction Centre of the US National Weather Service) के अनुसार, मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (Madden Julian Oscillation- MJO) लहर की स्थिति और तीव्रता द्वारा भारतीय मानसून का विकास प्रभावित हुआ है, इसी के कारण भारत में मानसून के आगमन में देरी हो रही है।

मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO)

  • मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है।
  • यह साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव लाने के लिये ज़िम्मेदार मानी जाती है।
  • मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है।

MJO

  • यह निरंतर प्रवाहित होने वाली घटना है एवं हिंद एवं प्रशांत महासागरों में सबसे प्रभावशाली है। इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक चलती हुई प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्य रेखा के चारों ओर घूमती है वर्षा की शुरुआत हो जाती है।
  • इस घटना का नाम दो वैज्ञानिकों रोलैंड मैडेन और पॉल जूलियन के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने वर्ष 1971 में इसकी खोज की थी।

मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन का भारतीय मानसून पर प्रभाव

  • इंडियन ओशन डाईपोल (The Indian Ocean Dipole-IOD), अल-नीनो (El-Nino) और मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-julian Oscillation-MJO) सभी महासागरीय और वायुमंडलीय घटनाएँ हैं, जो बड़े पैमाने पर मौसम को प्रभावित करती हैं।
    • इंडियन ओशन डाईपोल केवल हिंद महासागर से संबंधित है, लेकिन अन्य दो वैश्विक स्तर पर मौसम को मध्य अक्षांश तक प्रभावित करती हैं।
  • IOD और अल नीनो अपने पूर्ववर्ती स्थिति में बने हुए हैं, जबकि MJO एक निरंतर प्रवाहित होने वाली भौगोलिक घटना है।
  • MJO की यात्रा आठ चरणों से होकर गुज़रती है।
    • जब यह मानसून के दौरान हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी बारिश होती है।
    • दूसरी ओर, जब यह एक लंबे चक्र की समयावधि के रूप में होता है और प्रशांत महासागर के ऊपर रहता है तब भारतीय मानसूनी मौसम में कम वर्षा होती है।
    • यह उष्णकटिबंध में अत्यधिक परंतु दमित स्वरूप के साथ वर्षा की गतिविधियों को संपादित करता है जो कि भारतीय मानसूनी वर्षा के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।

खाड़ी की निगरानी

  • चक्रवात ‘वायु’ को पश्चिम हिंद महासागर और दक्षिण अरब सागर से सटी एक MJO लहर से बल प्राप्त हुआ। वर्तमान में यह लहर पूर्वी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी तक पहुँच गई है।
  • अमेरिकी एजेंसी के अनुसार, अरब सागर में असामान्य रूप से गर्म पानी ने हिंद महासागर पर तेज़ हवाओं का एक दुर्लभ कटिबंध (rare band) स्थापित किया है, जिसके कारण ही केरल तट पर मानसून की शुरुआत में देरी हुई है।

भारत में सूखे की स्थिति

  • क्लाइमेट फोरकास्ट सिस्टम मॉडल (Climate Forecast System model) के अनुसार, 12-18 जून तक भारत में सूखा जारी रहेगा अर्थात् मानसून के शुरू होने में देरी होगी। इस प्रकार देश के अन्य भागों पर भी इसका असर पड़ेगा।
  • 19 जून के बाद दक्षिण भारत में मानसून के आगमन का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • हालाँकि भारत मौसम विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने 18 से 20 जून तक पश्चिमी तट के दक्षिणी हिस्सों (Southern parts of West Coast) और उत्तर-पूर्वी भारत (North-East India) में भारी बारिश की संभावना जताई है।
  • इस अवधि के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और दक्षिण प्रायद्वीप के बाकी हिस्सों के साथ-साथ पूर्वी भारत की पहाड़ियों पर कहीं-कहीं वर्षा होने की भी उम्मीद है।

स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन


विंडरश स्कीम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने विंडरश स्कैंडल (Windrish Scandal) के लिये एक बार और व्यक्तिगत रूप से माफी मांगते हुए विंडरश आव्रजन मामले में सैकड़ों भारतीयों की ब्रिटिश नागरिकता की पुष्टि की है।

प्रमुख बिंदु

  • इसमें प्रवासियों को उनकी ब्रिटिश नागरिकता से गलत तरीके से वंचित किया गया था एवं जिससे सैकड़ों भारतीय प्रभावित हुए थे।
  • विंडरश पीढी (Windrush Generaton) के अंतर्गत वे लोग आते हैं जो ब्रिटिश उपनिवेशों के नागरिक थे और वर्ष 1973 के पहले ब्रिटेन उस समय आए थे, जब आव्रजन नियमों को बदला गया था। जबकि, अन्य पारिवारिक सदस्य जो बाद में आए उन्हें भी ‘विंडरश पीढी’ कहा गया।
  • ब्रिटिश सरकार की इस आव्रजन नीति के कारण सर्वाधिक संख्या में जमैका / कैरेबियन मूल के लोग प्रभावित हुए थे जो विंडरश जहाज़ (Windrush) से ब्रिटेन आए थे साथ ही भारतीयों सहित अन्य दक्षिण एशियाई भी इससे अछूते नहीं थे।
  • नई जानकारी के अनुसार,सरकार ने पुष्टि की है कि 30 अप्रैल, 2019 तक , टास्कफोर्स द्वारा 6,470 व्यक्तियों को कुछ दस्तावेज संबंधी फॉर्म दिये गए हैं। साथ ही सरकार ने कैरेबियाई मूल के उन लोगों को 46 पत्र भी लिखे हैं जिन्हें गलत तरीके से अवैध प्रवासी घोषित किया गया था।
  • ब्रिटिश सरकार के गृह कार्यालय (Home Office) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "विंडरश पीढ़ी द्वारा की गई गलतियों से सबक लेते हुए, गृह मंत्रालय ने कॉमनवेल्थ सिटीज़न टास्कफोर्स (Commonwealth Citizen Taskforce) की स्थापना की एवं अप्रैल 2019 में एक हर्ज़ाना स्कीम प्रारंभ की। जो सभी राष्ट्रों के नागरिकों के लिये है।

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'विंडरश स्कीम'

स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन


वैश्विक शांति सूचकांक-2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी किये गए वैश्विक शांति सूचकांक/ग्लोबल पीस इंडेक्स, 2019 (Global Peace Index 2019-GPI) के अनुसार, भारत 163 देशों में से 141वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2018 में भारत की रैंकिंग 136वीं थी।

ग्लोबल पीस इंडेक्स

ग्लोबल पीस इंडेक्स (Global Peace Index-GPI) की शुरुआत एक ऑस्ट्रेलियाई प्रौद्योगिकी उद्यमी और समाज-सेवक स्टीव किल्लेली (Steve Killelea) ने की थी।

  • यह सूचकांक ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (Australian think tank Institute for Economics & Peace) द्वारा जारी किया जाता है।
  • इसमें निम्नलिखित तीन प्रमुख शर्तों के अनुसार देशों की रैंकिंग की जाती है:
    • सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षा का स्तर
    • देशों में होने वाले आंतरिक एवं बाह्य संघर्ष के आधार पर
    • सैन्यीकरण की सीमा के आधार पर
  • संभावित जलवायु परिवर्तन को भी इसके अंतर्गत एक नए मानक के रूप में शामिल किया गया है।

रिपोर्ट के परिणाम

  • सबसे शंतिपूर्ण देशों की सूची में पहला स्थान आइसलैंड को प्राप्त हुआ है, यह देश वर्ष 2008 से लगातार अपने प्रथम स्थान को बरकरार रखने में कामयाब रहा है।
  • इसके अलावा अन्य देश जैसे- न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल, डेनमार्क क्रमशः इस सूची में शीर्ष स्थानों पर काबिज़ है।
  • सबसे ज़्यादा अशांतिपूर्ण देशों की सूची में सीरिया को हटाकर अफगानिस्तान प्रथम स्थान पर आ गया है। सीरिया अशांतिपूर्ण देशों की सूची में अब दूसरे स्थान पर है।
  • जबकि दक्षिणी सूडान, यमन और इराक जैसे देश क्रमशः तीसरे, चौथे और पाँचवें स्थान पर है।

दक्षिण-एशियाई देशों की स्थिति

  • भूटान दक्षिण एशिया का सबसे शान्तिपूर्ण देश है एवं इसका ग्लोबल पीस इंडेक्स में 15वाँ स्थान है।
  • इसके अलावा इस सूचकांक में श्रीलंका 72वें, नेपाल 76वें, बांग्लादेश 101वें और पाकिस्तान 153वें स्थान पर है।

जलवायु परिवर्तन के खतरे के आधार पर वैश्विक स्तर पर देशों की स्थिति

  • भारत के साथ-साथ फिलीपींस, जापान, बांग्लादेश, म्याँमार, चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम और पाकिस्तान ऐसे नौ देशों में शामिल हैं जहाँ कई प्रकार के जलवायु परिवर्तन संबंधी खतरों की आशंका सबसे अधिक है।
  • उच्चतम समग्र प्राकृतिक खतरों की संभावना के अंतर्गत भारत को 7वाँ स्थान दिया गया है।

सैन्य खर्च

  • सबसे अधिक कुल सैन्य खर्च वाले शीर्ष पाँच देशों की श्रेणी में क्रमशः अमेरिका, चीन, सऊदी अरब, रूस और भारत शामिल हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (15 June)

  • 13 और 14 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में हिस्सा लेने के लिये किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक का दौरा किया। इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इतर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ताओं में हिस्सा लिया तथा ईरान, मंगोलिया और कज़ाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों के साथ भी मुलाक़ात की। 14 जून को नरेंद्र मोदी किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति के आमंत्रण पर वहाँ की आधिकारिक द्विपक्षीय यात्रा पर रहे। उन्होंने किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति जीनबेकोव के साथ भारत-किर्गिज़ बिजनेस फोरम को भी संबोधित किया। जहाँ तक सवाल SCO का है तो यह एक राजनीतिक और सुरक्षा समूह है, जिसका मुख्यालय बीजिंग में है। SCO का गठन वर्ष 2001 में हुआ था तथा चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिज़स्तान इसके संस्थापक सदस्य हैं। यह संगठन खासतौर पर सदस्य देशों के बीच सैन्य और आर्थिक सहयोग के लिये बनाया गया है। इसमें खुफिया जानकारियों को साझा करना और मध्य एशिया में आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाना शामिल है। भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में इसके स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
  • 14 जून को दुनियाभर में विश्व रक्तदान दिवस का आयोजन किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वर्ष 2004 में शुरू किये गए इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को सुरक्षित रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूक करना और सुरक्षित रक्तदान करने के लिये स्वैच्छिक रक्तदाताओं को प्रोत्साहित करते हुए उनका आभार व्यक्त करना है। इस दिवस को मनाने का एक अन्य उद्देश्य रक्तदान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना भी है। विश्व रक्तदान दिवस मानव विज्ञान में नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाइन की याद मनाया जाता है, जिन्हें मानव रक्त का वर्गीकरण करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया था। इस वर्ष विश्व रक्तदान दिवस की थीम Safe blood for all रखी गई है तथा रवांडा होस्ट कंट्री है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में हर साल लगभग 1.20 करोड़ यूनिट रक्त की ज़रूरत होती है। लेकिन रक्तदाताओं से केवल 90 लाख यूनिट ही रक्त एकत्रित हो पाता है।
  • केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्गों के उप-वर्गीकरण के मुद्दे की जाँच के लिये गठित आयोग का कार्यकाल 31 जुलाई, 2019 से 2 महीने आगे बढ़ाने की स्वीकृति दे दी है। आयोग के कार्यकाल का यह छठा विस्तार है। इस आयोग का गठन जस्टिस (सेवानिवृत्त) जी. रोहिणी की अध्यक्षता में 2 अक्तूबर, 2017 को किया गया था। समग्र विकास के लिये अन्य पिछड़ा वर्ग जातियों/ समुदायों में लाभ के समान वितरण की ज़रूरत को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत इस आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को केंद्रीय सूची में शामिल अन्य पिछड़ा वर्गों के अंदर उप-वर्गीकरण के मुद्दे की जाँच करनी है। अपने गठन के समय से ही आयोग अन्य पिछड़ा वर्गों का उप-वर्गीकरण करने वाले सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोगों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है।
  • समुद्रीय सूचनाएँ साझा करने के क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपनाने में सहायता प्रदान करने और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्रीय सुरक्षा चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिये भारतीय नौसेना ने गुरुग्राम स्थित सूचना संलयन केंद्र (Information Fusion Centre) में 12-13 जून को समुद्रीय सूचना साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें लगभग 30 देशों के 50 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस कार्यशाला में भागीदार देशों के विषय वस्तुु विशेषज्ञों द्वारा समुद्री डकैती, मानव और मादक पदार्थों की तस्कदरी तथा इन चुनौतियों से निपटने के लिये कानूनी पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। भारतीय नौसेना के उप-प्रमुख वाइस एडमिरल एम.एस. पवार ने इस कार्यशाला का उद्घाटन किया। समुद्र में गतिविधियों का पैमाना, क्षेत्र और बहुराष्ट्रीदय स्ववरूप समुद्रीय सुरक्षा के लिये एक सहयोगी दृष्टिकोण की जरूरत के मद्देनज़र सूचना संलयन केंद्र की शुरुआत पिछले वर्ष दिसंबर में की गई थी।
  • भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम (IRSD) ने फ्रेंच नेशनल रेलवेज (FNCF) और फ्राँस की एजेंसी-AFD के साथ त्रिपक्षीय समझौता किया है। इस समझौते के तहत AFD ने भारत में रेलवे स्टेशनों के विकास में सहायता के लिये IRSD के तकनीकी साझेदार के रूप में FNCF-हब्स और कनेक्शंस के माध्यम से अधिकतम सात लाख यूरो का अनुदान प्रदान करने पर सहमति जताई है। इससे IRSD अथवा भारतीय रेल पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा। आपको बता दें कि FNCF ने दिल्ली-चंडीगढ़ रेलखंड के बीच ट्रेनों की गति बढ़ाने और लुधियाना एवं अम्बाला स्टेशनों के विकास से संबंधित अध्ययनों में भारतीय रेलवे की सहायता की है।
  • यूनिसेफ की गुडविल एंबेसडर भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को न्यूयॉर्क के प्रतिष्ठित समारोह यूनिसेफ स्नो फ्लेक बॉल में डैनी काये ह्यूमैनिटेरियन अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह न्यूयॉर्क का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड समारोह है, जिसमें यूनिसेफ की ओर से मानवता की भलाई के लिये काम करने वाले लोगों को अवॉर्ड्स दिये जाते हैं। इस समारोह का आयोजन 3 दिसंबर को न्यूयॉर्क में किया जाएगा। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की इस विशेष संस्था का गठन 4 नवंबर, 1946 को हुआ था। इसका उद्देश्य शिक्षा एवं संस्कृति के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करना है। यूनेस्को के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसके कुछ सदस्य देश ऐसे भी हैं जो अभी तक स्वतंत्र नहीं हुए हैं। इसका मुख्यालय पेरिस में है तथा इसके अधिकांश क्षेत्रीय कार्यालय क्लस्टर के रूप में हैं, जिसके अंतर्गत तीन-चार देश आते हैं। यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं।