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डेली न्यूज़

  • 15 May, 2021
  • 46 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना 2021-22

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने, भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के परामर्श से, मई 2021 से सितंबर 2021 तक छह किश्तों में सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (Sovereign Gold Bond) जारी करने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख बिंदु

  • शुरुआत: सरकार ने सोने की मांग को कम करने और घरेलू बचत के एक हिस्से (जिसका उपयोग स्वर्ण की खरीद के लिये किया जाता है) को वित्तीय बचत में बदलने के उद्देश्य से नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (Sovereign Gold Bond) योजना की शुरुआत की थी
  • निर्गमन: गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड सरकारी प्रतिभूति (GS) अधिनियम, 2006 के तहत भारत सरकार के स्टॉक के रूप में जारी किये जाते हैं। 
    • ये भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।
    • बॉण्ड की बिक्री वाणिज्यिक बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), नामित डाकघरों (जिन्हें अधिसूचित किया जा सकता है) और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों जैसे कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के ज़रिये या तो सीधे अथवा एजेंटों के माध्यम से की जाती है।
  • पात्रता: इन बॉण्डों की बिक्री निवासी व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs), न्यासों/ट्रस्ट, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों तक ही सीमित है।

विशेषताएँ:

  • विमोचन मूल्य:  गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड की कीमत इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (India Bullion and Jewellers Association- IBJA) द्वारा 999 शुद्धता वाले सोने (24 कैरट) के लिये प्रकाशित मूल्य पर आधारित होती है।
  • निवेश सीमा: गोल्ड बॉण्ड एक ग्राम यूनिट के गुणकों में खरीदे जा सकते हैं जिसमें विभिन्न निवेशकों के लिये एक निश्चित सीमा निर्धारित होती है।
    • खुदरा (व्यक्तिगत) तथा हिंदू अविभाजित परिवारों (Hindu Undivided Families- HUFs) के लिये खरीद की अधिकतम 4 किलोग्राम है। ट्रस्ट एवं इसी तरह के निकायों के लिये प्रति वित्त वर्ष 20 किलोग्राम की अधिकतम सीमा लागू होती है।
    • संयुक्त धारिता के मामले में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होती है।
    • न्यूनतम स्वीकार्य निवेश सीमा 1 ग्राम सोना है।
  • अवधि: इन बॉण्डों की परिपक्वता अवधि 8 वर्ष होती है तथा 5 वर्ष के बाद इस निवेश से बाहर निकलने का विकल्प उपलब्ध होता है।
  • ब्याज दर: निवेशकों को प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की निश्चित ब्याज दर लागू होती है, जो छह माह पर देय होती है।
    • आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार, गोल्ड बॉण्ड पर प्राप्त होने वाले ब्याज पर कर/टैक्स अदा करना होगा।

लाभ: 

  • ऋण के लिये बॉण्ड का उपयोग संपार्श्विक (जमानत या गारंटी) के रूप में किया जा सकता है।
  • किसी भी व्यक्ति को सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्त कर दिया गया है।
    • विमोचन (Redemption) का तात्पर्य एक जारीकर्त्ता द्वारा परिपक्वता पर या उससे पहले बॉण्ड की पुनर्खरीद के कार्य से है।
    • पूंजीगत लाभ (Capital Gain) स्टॉक, बॉण्ड या अचल संपत्ति जैसी संपत्ति की बिक्री पर अर्जित लाभ है। यह तब प्राप्त होता है जब किसी संपत्ति का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से अधिक हो जाता है।

SGB में निवेश के नुकसान:

  • यह भौतिक स्वर्ण (जिसे तुरंत बेचा जा सकता है) के विपरीत एक दीर्घकालिक निवेश है।
  • सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होते हैं लेकिन इनका ट्रेडिंग वॉल्यूम ज़्यादा नहीं होता, इसलिये परिपक्वता से पहले बाहर निकलना मुश्किल होगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

संविधान का अनुच्छेद 311

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक पुलिस अधिकारी को मुंबई पुलिस आयुक्त ने बिना विभागीय जाँच के संविधान के अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत सेवा से बर्खास्त कर दिया था।

प्रमुख बिंदु:

अनुच्छेद 311:

  • अनुच्छेद 311 (1) कहता है कि अखिल भारतीय सेवा या राज्य सरकार के किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपने अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा बर्खास्त या हटाया नहीं जाएगा, जिसने उसे नियुक्त किया था।
  • अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा अथवा रैंक में अवनत किया जाएगा जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया गया है।
  • अनुच्छेद 311 के तहत संरक्षित व्यक्ति:
    • संघ की सिविल सेवा, 
    • अखिल भारतीय सेवाओं और
    • किसी राज्य की सिविल सेवा 
    • संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाले व्यक्ति।
    • अनुच्छेद 311 के तहत दिये गए सुरक्षात्मक उपाय केवल सिविल सेवकों, यानी लोक सेना अधिकारियों पर लागू होते हैं। वे रक्षाकर्मियों के लिये उपलब्ध नहीं हैं।
  • अनुच्छेद 311 (2) के अपवाद:
    • 2 (a) -  जहाँ एक व्यक्ति की उसके आचरण के आधार पर बर्खास्तगी या हटाना या रैंक में कमी की जाती है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है; या
    • 2 (b) - जहाँ किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने या हटाने या उसके रैंक को कम करने के लिये अधिकृत प्राधिकारी संतुष्ट है कि किसी कारण से उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना है, ऐसी जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है; या
    • 2 (c) - जहाँ राष्ट्रपति या राज्यपाल, जैसा भी मामला हो, संतुष्ट हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जाँच करना उचित नहीं है।

अनुच्छेद 311(2) के उपखंडों के प्रयोग से संबंधित अन्य हालिया मामले:

  • हाल ही में जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने अनुच्छेद 311 (2) (c) के तहत कार्रवाई की आवश्यकता वाली गतिविधियों के संदिग्ध कर्मचारियों के मामलों की जाँच के लिये एक विशेष कार्यबल (STF) का गठन किया।
    • इस अनुच्छेद का उपयोग कर दो शिक्षकों सहित तीन सरकारी कर्मचारियों को निकाल दिया गया।

कर्मचारियों को हटाने का विकल्प:

  • इन प्रावधानों के तहत बर्खास्त किये गए सरकारी कर्मचारी राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण या केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) या न्यायालयों जैसे न्यायाधिकरणों में जा सकते हैं।

अन्य संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारत के संविधान का भाग XIV संघ और राज्य के अधीन सेवाओं से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 309 संसद और राज्य विधायिका को क्रमशः संघ या किसी राज्य के मामलों के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 310 के अनुसार, संविधान द्वारा प्रदान किये गए प्रावधानों को छोड़कर, संघ में एक सिविल सेवक राष्ट्रपति की इच्छा से काम करता है और राज्य के अधीन एक सिविल सेवक उस राज्य के राज्यपाल की इच्छा पर काम करता है।
    • लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
  • अनुच्छेद 311 किसी अधिकारी की पदच्युति, पदच्युति में कमी के लिये राष्ट्रपति या राज्यपाल की पूर्ण शक्ति पर कुछ प्रतिबंध लगाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

एकीकृत बागवानी विकास मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) ने वर्ष 2021-22 के लिये 'एकीकृत बागवानी विकास मिशन' (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH) हेतु 2250 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।

  • बागवानी कृषि (Horticulture) सामान्यतः फलों, सब्जियों और सजावटी पौधों से संबंधित है। एम.एच. मैरीगौड़ा को भारतीय बागवानी का जनक कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु

एकीकृत बागवानी विकास मिशन के विषय में:

  • यह फल, सब्जी, मशरूम, मसालों, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको, बाँस आदि बागवानी क्षेत्र के फसलों के समग्र विकास हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • नोडल मंत्रालय: इस योजना को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय वर्ष 2014-15 से लगातार कार्यान्वित कर रहा है।
    • इसे हरित क्रांति-कृषोन्‍नति योजना (Green Revolution - Krishonnati Yojana) के तहत लागू किया गया है।
  • फंडिंग पैटर्न: इस योजना के तहत भारत सरकार पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है, जिसमें 40% हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
    • भारत सरकार उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों के मामले में 90% योगदान करती है।

Minister-of-Agriculture

एमआईडीएच के अंतर्गत उप-योजनाएँ:

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन:
    • इसे राज्य बागवानी मिशन (State Horticulture Mission) द्वारा 18 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों के चयनित ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
  • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन:
    • इस योजना को पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में बागवानी के समग्र विकास के लिये लागू किया जा रहा है।
  • राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड:
    • यह बोर्ड सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एमआईडीएच के तहत विभिन्न योजनाओं को लागू कर रहा है।
  • नारियल विकास बोर्ड:
    • यह बोर्ड देश के सभी नारियल उत्पादक राज्यों में एमआईडीएच के तहत विभिन्न योजनाओं को लागू कर रहा है।
  • केंद्रीय बागवानी संस्थान:
    • इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2006-07 में मेडी ज़िप हिमा (Medi Zip Hima), नगालैंड में की गई थी ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में किसानों और खेतिहर मज़दूरों के क्षमता निर्माण तथा प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जा सके।

एमआईडीएच की उपलब्धियाँ:

  • भारत में वर्ष 2019-20 के दौरान अब तक का सबसे अधिक 320.77 मिलियन टन बागवानी उत्पादन दर्ज किया गया था।
  • एमआईडीएच ने बागवानी फसलों के क्षेत्र को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 के दौरान क्षेत्र और उत्पादन में क्रमशः 9% और 14% की वृद्धि हुई है।
  • इसने कृषि भूमि की उपज और उत्पादकता की गुणवत्ता में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • एमआईडीएच के लागू होने से भारत न केवल बागवानी क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि इसने भूख, अच्छा स्वास्थ्य और देखभाल, गरीबी में कमी, लैंगिक समानता जैसे सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

चुनौतियाँ:

  • बागवानी क्षेत्र फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान और प्रबंधन एवं सप्लाई चैन के बुनियादी ढाँचे के बीच मौजूद अंतर की वजह से अभी भी काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है।

आगे की राह

  • भारतीय बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने की संभावनाएँ काफी ज़्यादा हैं, जो वर्ष 2050 तक देश के 650 मिलियन मीट्रिक टन फलों और सब्जियों की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिये ज़रूरी है।
  • इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में सामग्री उत्पादन की रोपाई पर ध्यान केंद्रित करना, क्लस्टर विकास कार्यक्रम, कृषि अवसंरचना कोष (Agri Infra Fund) के माध्यम से ऋण मुहैया कराना, किसान उत्पादक संगठन (Farmers Producer Organisation) के गठन और विकास आदि शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

कोविड-19: मेक इट द लास्ट पेंडेमिक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘महामारी के विरुद्ध तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये स्वतंत्र पैनल’ (IPPPR) ने अपनी रिपोर्ट "कोविड -19: मेक इट द लास्ट पेंडेमिक" में निष्कर्ष निकाला है कि कोविड-19 महामारी के भयावह दृश्य को रोका जा सकता था।

प्रमुख बिंदु:

बढ़ी हुई कोविड समस्या के कारण:

  • खराब निर्णय:
    • रिपोर्ट के अनुसार, खराब निर्णयों की एक विस्तृत शृंखला के कारण कोविड -19 से अब तक कम-से-कम 3.3 मिलियन व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और वैश्विक अर्थव्यवस्था भी तबाह होने की कगार पर पहुँच गई।
    • खराब रणनीतिक विकल्प, असमानताओं से निपटने की अनिच्छा और एक असंगठित प्रणाली ने एक विषाक्त स्थिति को जन्म दिया, जिसने महामारी को एक भयावह मानव संकट में बदलने का कार्य किया।
  • विभिन्न संस्थानों का अक्रियाशील होना:
    • विभिन्न स्वास्थ्य संस्थान लोगों की रक्षा करने में विफल रहे।
    • इस महामारी की दूसरी लहर के खतरे को नज़रअंदाज़ कर दिया गया था और देश इससे निपटने के लिये पूरी तरह से तैयार नहीं थे।
  • तात्कालिकता की कमी:
    • दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में पाए गए इस प्रकोप की शुरुआती प्रतिक्रियाओं में तात्कालिकता का अभाव था, फरवरी 2020 एक संवेदनशील माह था क्योंकि इस दौरान देश इस स्थिति पर ध्यान देने में विफल रहे।
  • देरी:
    • कोविड -19 की दूसरी लहर के उद्भव के कारणों में शुरुआती और त्वरित कार्रवाई की कमी थी।
    • WHO द्वारा इस स्थिति को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) घोषित किया जा सकता था।

अनुशंसाएँ:

  • अमीरों को गरीबों की मदद करनी चाहिये:
    • अमीर देशों द्वारा टीकाकरण की आवश्यकता वाले देशों को ‘कोवैक्स योजना’ के अंतर्गत 92 सबसे गरीब क्षेत्रों को सितंबर 2021 तक कम-से-कम एक बिलियन वैक्सीन खुराक और वर्ष 2022 के मध्य तक दो बिलियन से अधिक खुराक प्रदान करनी चाहिये।
    • G-7 औद्योगीकृत राष्ट्रों को वर्ष 2021 में WHO के ‘कोविड टूल्स एक्सेलेरेटर’ कार्यक्रम के माध्यम से टीके, निदान और चिकित्सा विज्ञान के लिये आवश्यक 19 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 60% का भुगतान करना चाहिये।
    • G20 देशों और अन्य को बाकी सहायता प्रदान करनी चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करनी चाहिये:
    • WHO और विश्व व्यापार संगठन (WTO) को भी प्रमुख वैक्सीन उत्पादक देशों और निर्माताओं को कोविड -19 टीकों हेतु स्वैच्छिक लाइसेंस और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये सहमत होना चाहिये।
      • यदि तीन महीने के भीतर कार्रवाई नहीं होती है, तो बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत छूट तुरंत लागू होनी चाहिये।
      • भारत और दक्षिण अफ्रीका पहले से ही विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों को महामारी से समान रूप से लड़ने के लिये इस तरह की छूट प्रदान करने हेतु सहमत होने का प्रयास कर रहे हैं।

भविष्य की महामारी को रोकने हेतु सुझाव:

  •  वैश्विक स्वास्थ्य संकट परिषद:
    • भविष्य के प्रकोपों ​​​​और महामारियों से निपटने के लिये इस पैनल ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट परिषद का आह्वान किया, जो वैश्विक नेताओं से निर्मित परिषद के साथ-साथ एक महामारी सम्मेलन भी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय महामारी वित्तपोषण सुविधा:
    • G-20 को एक अंतर्राष्ट्रीय महामारी वित्तपोषण सुविधा का निर्माण करना चाहिये, जो तैयारियों पर प्रतिवर्ष 5-10 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने में सक्षम हो तथा संकट की स्थिति में 50 से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने के लिये तैयार हो।
  • WHO का पुनरीक्षण:
    • WHO के स्वयं के वित्त पोषण पर अधिक नियंत्रण और नेतृत्व के लिये तथा इसके पुनरीक्षण का प्रस्ताव रखा गया है।
    • इसकी चेतावनी प्रणाली को तीव्र करने की आवश्यकता है और इसके पास देशों की अनुमति की प्रतीक्षा किये बिना विशेषज्ञ मिशनों को तुरंत भेजने का अधिकार होना चाहिये।

‘महामारी के विरुद्ध तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये स्वतंत्र पैनल’ (IPPPR):

  • इसकी स्थापना वर्ष 2020 में WHO के महानिदेशक द्वारा विश्व स्वास्थ्य सभा के प्रस्ताव 73.1 के उत्तर के रूप में की गई थी।
  • संकल्प 73.1 ने स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिये बेहतर तैयारी और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों के अनुपालन की प्रतिबद्धता को नवीनीकृत किया।

सचिवालय:

  • यह स्वतंत्र पैनल जिनेवा में स्थित अपने स्वयं के स्वतंत्र सचिवालय द्वारा समर्थित है।

मिशन:

  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि भविष्य के लिये एक साक्ष्य-आधारित मार्ग प्रदान करने हेतु तथा वर्तमान और अतीत की घटनाओं से प्रभावित देशों एवं वैश्विक संस्थानों की सफलता सुनिश्चित करने के लिये, विशेष रूप से WHO सहित अन्य संस्थाएँ स्वास्थ्य संबंधी खतरों को प्रभावी ढंग से संबोधित करती हैं।

स्रोत- द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

आयरन डोम एयर डिफेंस सिस्टम: इज़रायल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायल ने यरुशलम में हुई हिंसक झड़पों में अपने आयरन डोम एयर डिफेंस सिस्टम (Iron Dome Air Defence System) का इस्तेमाल किया।

प्रमुख बिंदु

आयरन डोम एयर डिफेंस सिस्टम के विषय में:

  • यह छोटी दूरी का ज़मीन से हवा में मार करने वाला एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसमें एक रडार (Radar) और तामिर (Tamir) इंटरसेप्टर मिसाइल शामिल हैं जो इजरायल पर हमला करने वाली मिसाइलों या रॉकेटो को ट्रैक करके उन्हें बेअसर कर देता है।
  • इसका उपयोग रॉकेट, तोप और मोर्टार के साथ-साथ विमान, हेलीकॉप्टर तथा मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) का प्रतिरोध करने के लिये किया जाता है।
    • यह दिन और रात सहित सभी मौसमों में कार्य करने में सक्षम है।
  • इसे राज्य द्वारा संचालित राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम (Rafael Advanced Defense System) और इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (Israel Aerospace Industries) द्वारा विकसित किया गया है तथा इसे वर्ष 2011 में तैनात किया गया था।
  • राफेल इसकी सफलता दर 90% से अधिक का दावा करती है, जिसमें 2,000 से अधिक अवरोधन (Interception) हैं। हालाँकि विशेषज्ञ इसकी सफलता दर 80% से अधिक मानते हैं।
  • यह तैनात और युद्धाभ्यासरत बलों, फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (Forward Operating Base) तथा शहरी क्षेत्र को अप्रत्यक्ष एवं हवाई खतरों से बचा सकता है।

घटक:

  • आयरन डोम में तीन मुख्य प्रणालियाँ होती हैं, जो अपनी तैनाती क्षेत्र को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिये एक साथ कार्य करती हैं।
    • रडार: इसमें किसी भी खतरे का पता लगाने के लिये एक डिटेक्शन और ट्रैकिंग रडार है।
    • हथियार नियंत्रण: इसमें युद्ध प्रबंधन और हथियार नियंत्रण प्रणाली (BMC) है।
    • मिसाइल फायर: इसमें मिसाइल फायरिंग यूनिट भी है। बीएमसी मूल रूप से रडार और इंटरसेप्टर मिसाइल के बीच संपर्क स्थापित करता है।

Defence-System

भारतीय विकल्प:

  • एस-400 ट्रायम्फ:
    • एस-400 ट्रायम्फ के विषय में:
      • भारत के पास एस-400 ट्रायम्फ (S-400 TRIUMF) प्रणाली है, जो तीन खतरों यथा- रॉकेट, मिसाइल और क्रूज़ मिसाइल से निपटने में सक्षम है, लेकिन इनकी रेंज काफी अधिक होती है।
      • इसमें खतरों से निपटने के लिये बहुत बड़ा एयर डिफेंस कवच है।
      • यह रूस द्वारा डिज़ाइन की गई सतह से हवा में मार करने वाली गतिशील मिसाइल प्रणाली है।
    • रेंज और प्रभावशीलता:
      • यह प्रणाली 400 किमी. की सीमा के भीतर 30 किमी. तक की ऊँचाई पर सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है।
      • यह प्रणाली 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ निशाना बना सकती है।
  • पृथ्वी एयर डिफेंस और एडवांस एयर डिफेंस:
    • पृथ्वी एयर डिफेंस और एडवांस एयर डिफेंस के विषय में:
      • यह एक दो-स्तरीय प्रणाली है जिसमें दो भूमि और समुद्र-आधारित इंटरसेप्टर मिसाइल शामिल हैं, अर्थात् उच्च ऊँचाई अवरोधन के लिये पृथ्वी एयर डिफेंस (Prithvi Air Defence) मिसाइल और कम ऊँचाई अवरोधन हेतु एडवांस एयर डिफेंस (Advanced Air Defence) मिसाइल।
    • रेंज:
      • यह 5,000 किमी. दूर से प्रक्षेपित किसी भी आने वाली मिसाइल को रोकने में सक्षम है। इस प्रणाली में प्रारंभिक चेतावनी और ट्रैकिंग रडार का एक अतिव्यापी नेटवर्क तथा साथ ही कमांड एवं नियंत्रण पोस्ट (Control Post) भी शामिल हैं।
  • अश्विन एडवांस एयर डिफेंस इंटरसेप्टर मिसाइल:
    • अश्विन एडवांस एयर डिफेंस इंटरसेप्टर मिसाइल के विषय में:
      • यह रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा विकसित एक स्वदेशी रूप से निर्मित एडवांस एयर डिफेंस (AAD) इंटरसेप्टर मिसाइल है।
      • यह कम ऊँचाई वाली सुपरसोनिक बैलिस्टिक इंटरसेप्टर मिसाइल का उन्नत संस्करण है।
      • इसमें मोबाइल लॉन्चर, इंटरसेप्शन के लिये सुरक्षित डेटा लिंक, स्वतंत्र ट्रैकिंग, परिष्कृत रडार आदि शामिल हैं।
    • रेंज:
      • यह एंडो-स्फेरिक (Endo-Spheric- पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर) इंटरसेप्टर का उपयोग करती है जो 60,000 से 100,000 फीट की अधिकतम ऊँचाई पर और 90 मील तथा 125 मील के बीच की सीमा में बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह में बढ़ोतरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक के कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और संगठनों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समक्ष लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह संबंधी मामलों में हो रही बढ़ोतरी का मुद्दा उठाया है।

  • ‘चाइल्डलाइन इंडिया’ नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दिसंबर 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी और उसके बाद लागू किये गए लॉकडाउन के कारण मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु

बाल विवाह

  • बाल विवाह का आशय 18 वर्ष की आयु से पूर्व किसी लड़की या लड़के के विवाह से है और यह औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के विवाहों को संदर्भित करता है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे (लड़की अथवा लड़का) वैवाहिक रूप से एक साथ रहते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का अनुमान है कि भारत में प्रतिवर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 1.5 मिलियन लड़कियों का विवाह किया जाता है, यही कारण है कि भारत में विश्व की सबसे अधिक (तकरीबन एक तिहाई) बाल वधू हैं।
  • ‘द लैंसेट’ के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी के कारण आगामी 5 वर्षों में दुनिया भर में 2.5 मिलियन से अधिक लड़कियों (18 वर्ष से कम) पर विवाह का खतरा है।

लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह में बढ़ोतरी के कारण:

  • चेतावनी तंत्र का अभाव
    • महामारी और लॉकडाउन के पूर्व मैरिज हॉल और मंदिरों आदि में होने वाले बाल विवाह के बारे में आसपास के जागरूक लोग, संबंधित अधिकारियों या सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को सूचित कर देते थे, जिससे वे बाल विवाह को रोकने के लिये समय पर पहुँच जाते थे। लेकिन अब लॉकडाउन के कारण घरों में ही शादियाँ हो रही हैं, जिसकी वजह से चेतावनी तंत्र कमज़ोर हो गया है। 
  • महामारी प्रेरित दबाव
    • महामारी के कारण आर्थिक दबाव ने गरीब माता-पिता और परिजनों को लड़कियों की जल्द शादी करने के लिये प्रेरित किया है।
    • स्कूल बंद होने के कारण बच्चों, विशेषकर लड़कियों की सुरक्षा बच्चों के खिलाफ हिंसा और बाल विवाह में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है।

बाल विवाह के सामान्य कारक

  • आयु
    • कुछ माता-पिता 15-18 की आयु को अनुत्पादक मानते हैं, विशेष रूप से लड़कियों के लिये, ऐसे में वे इस आयु के दौरान अपने बच्चे हेतु जीवनसाथी खोजना शुरू कर देते हैं।
      • लड़कों की तुलना में कम आयु की लड़कियों में बाल विवाह की संभावना अधिक होती है।
    • इसके अलावा शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है।
  • असुरक्षा
    • कानून-व्यवस्था अभी भी किशोर उम्र में लड़कियों के लिये एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में सक्षम नहीं है, इस वजह से भी कुछ माता-पिता अपनी बालिकाओं का विवाह कम उम्र में ही कर देते हैं।
  • अन्य कारण
    • निर्धनता/गरीबी
    • राजनीतिक और वित्तीय कारण
    • शिक्षा का अभाव
    • पितृसत्ता और लैंगिक असमानता आदि।

प्रभाव

  • विलंबित जनसांख्यिकीय लाभांश
    • बाल विवाह संयुक्त और बड़े परिवारों के निर्माण में योगदान देता है, नतीजतन जनसंख्या में बढ़ोतरी होती है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश में देरी/विलंब करता है, जो कम प्रजनन दर और शिक्षा में निवेश से प्राप्त किया जा सकता है।
  • परिवार के लिये हानिकारक
    • कम आयु में विवाह करने वाले बच्चे विवाह की ज़िम्मेदारियों को नहीं समझते हैं। इससे परिवार के सदस्यों के बीच तालमेल और समन्वय में कमी होती है, जो कि एक संस्था के रूप में परिवार के लिये हानिकारक है।
  • बाल वधू पर
    • यह बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी अधिकारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
    • बाल विवाह के कारण लड़कियों के स्कूल न जाने और इस तरह सामाजिक एवं सामुदायिक विकास में योगदान न देने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
    • बाल विवाह के कारण लड़कियाँ घरेलू हिंसा और एचआईवी/एड्स आदि से संक्रमित होने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
    • गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताओं के कारण मातृत्व मृत्यु की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

बाल विवाह रोकने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास

  • वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम, देश में बाल विवाह की प्रथा को प्रतिबंधित करता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिये लागू किया गया था।
  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया है। यह समिति जया जेटली की अध्यक्षता में गठित की गई है।
    • इस समिति को केंद्रीय बजट 2020-21 में प्रस्तावित किया गया था।
  • बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है, जो कि लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने से संबंधित है।

आगे की राह

  • महामारी के दौरान बाल विवाह पर रोक लगाने हेतु यह सुनिश्चित किया जाना महत्त्वपूर्ण है कि आवश्यक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ बाल संरक्षण कार्यकर्त्ताओं का भी एक मज़बूत समूह स्थापित किया जाए।
  • भारत में ज़मीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं की एक मज़बूत प्रणाली है, जिन्होंने यह सुनिश्चित करने में सराहनीय काम किया है कि इस कठिन समय में भी स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक सुरक्षा संबंधी सेवाएँ आम जनमानस तक सही तरीके से पहुँच सकें। 
  • यदि ऐसे कार्यकर्त्ताओं को इस प्रणाली में शामिल किया जाता है, तो वे बाल विवाह को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठा सकते हैं और इसे नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये प्रयास जागरूकता परामर्श और संबंधित परिवार तक कुछ लाभ पहुँचाने आदि के रूप में हो सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अल-अक्सा मस्जिद और शेख जर्राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायली सशस्त्र बलों ने यरुशलम में ज़ायोनी राष्ट्रवादियों द्वारा वर्ष 1967 में शहर के पूर्वी हिस्से पर इजरायल के कब्जे को स्मरण करते हुए निकाले जाने वाले मार्च से पहले येरुशलम के हरम अस-शरीफ में अल-अक्सा मस्जिद पर हमला कर दिया।

  • शेख जर्राह के निकट पूर्वी यरुशलम से दर्जनों फिलिस्तीनी परिवारों को निष्कासित किये जाने की धमकी ने संकट को और बढ़ा दिया।
  • ज़ियोनिज़्म (Zionism) एक विश्वव्यापी यहूदी आंदोलन है जिसके परिणामस्वरूप इज़रायल राज्य की स्थापना और इसका विकास हुआ तथा वर्तमान में यह एक यहूदी मातृभूमि के रूप में इज़रायल का समर्थन करता है।

Jerusalem

प्रमुख बिंदु

अल-अक्सा मस्जिद:

  • यह इस्लाम में आस्था रखने वालों के लिये सबसे पवित्र संरचनाओं/भवनों में से एक है। यह 35 एकड़ के स्थल- जिसे मुस्लिमों द्वारा हरम अल शरीफ या पवित्र पूजा स्थल (Noble Sanctuary) तथा यहूदियों द्वारा टेम्पल माउंट (Temple Mount) के रूप में जाना जाता है, में स्थित है।
    • यह स्थल पुराने शहर यरुशलम का हिस्सा है, जिसे ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों के लिये पवित्र माना जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्ण हो चुका था और इसके सामने ‘डोम ऑफ द रॉक’ नामक स्वर्ण-गुंबद वाला इस्लामी स्थल स्थित है जो यरुशलम की मान्यता का  प्रतीक है।
  • ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO ने यरुशलम के पुराने शहर और इसकी दीवारों को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में वर्गीकृत किया है।

यरुशलम को लेकर संघर्ष:

  • यरुशलम इज़रायल-फिलिस्तन के मध्य संघर्ष का मुख्य केंद्र रहा है। वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) की मूल विभाजन योजना के अनुसार, यरुशलम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर (International City) के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
  • परंतु वर्ष 1948 के प्रथम अरब इज़रायल युद्ध में इज़रायलियों ने शहर के पश्चिमी आधे हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और जॉर्डन ने पुराने शहर सहित पूर्वी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जिसमें हरम अस-शरीफ का निवास भी शामिल था।
  • वर्ष  1967 में अरब-इज़रायल युद्ध के छह दिनों की समयावधि में इजरायली सेना ने सीरिया से गोलन हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक तथा पूर्वी यरुशलम को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
    • इसके बाद इज़रायल ने पूर्वी यरुशलम में बस्तियों का विस्तार किया।
  • इज़रायल पूरे  यरुशलम शहर को अपनी "एकीकृत, शाश्वत राजधानी" (Unified, Eternal Capital) के रूप में देखता है, जबकि राजनीतिक परिदृश्य में फिलिस्तीनियों के नेतृत्व ने इस बात को सुनिश्चित कर दिया  है कि वे भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य हेतु किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है।

शेख जर्राह का मुद्दा:

  • वर्ष 1948 में जब ऐतिहासिक फिलिस्तीन में इज़रायल राज्य का निर्माण हुआ, तो हज़ारों फिलिस्तीनयों को उनके घरों से ज़बरन बेदखल कर दिया गया था।
    • बेदखल किये गए इन फिलिस्तीनियों  के 28 परिवार बसने के लिये पूर्वी यरुशलम में स्थित शेख जर्राह चले गए।
  • वर्ष 1956 में जब पूर्वी येरुशलम पर जॉर्डन का शासन था, जॉर्डन के निर्माण और विकास मंत्रालय तथा  संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी द्वारा शेख जर्राह में इन परिवारों को घरों के निर्माण करने हेतु सहायता उपलब्ध कराई गई लेकिन वर्ष 1967 में इज़रायल द्वारा जॉर्डन के पूर्वी यरुशलम पर कब्ज़ा कर लिया गया।
    • 1970 के दशक के शुरुआती दौर में यहूदी एजेंसियों (Jewish Agencies) द्वारा इन परिवारों से ज़मीन छोड़ने की मांग करना शुरू कर दी गई।
  • वर्ष 2021 की शुरुआत में पूर्वी यरुशलम के  केंद्रीय न्यायालय ने यहूदी एजेंसियों  के पक्ष में अपने निर्णय को बरकरार रखा,  जिसमें न्यायालय ने चार फिलिस्तीनी परिवारों को शेख जर्राह से बेदखल होने के पक्ष में निर्णय दिया था।
  • यह समस्या अभी भी अनसुलझी है जो गंभीर बनी हुई है।

इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख:

  • भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी लेकिन भारत फिलिस्तीन को   फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ( Palestine Liberation Organisation- PLO) में एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी है।
    • भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
  • वर्ष 2014 में भारत ने गाजा क्षेत्र में इज़रायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांँच हेतु  संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (The United Nations Human Rights Council- UNHRC) के प्रस्ताव का समर्थन किया। जांँच का समर्थन करने के बावजूद, वर्ष 2015 में  UNHRC में भारत ने इजरायल के खिलाफ मतदान नहीं किया।
  • वर्ष  2018 में लिंक वेस्ट पॉलिसी के रूप में भारत ने दोनों देशों (इज़रायल और फिलिस्तीन) के साथ परस्पर स्वतंत्र और अनन्य व्यवहार करने हेतु  अपने संबंधों को डी- हाइफनेटेड (De-Hyphenated) किया गया है।
  • जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद में इज़रायल द्वारा प्रस्तुत किये गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जिसमें एक फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन (Palestinian Non-Governmental Organization) को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
  • अभी तक भारत द्वारा  फिलिस्तीन की स्वतंत्रता में अपने ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की गई है साथ-ही-साथ इज़रायल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न होने का प्रयास किया गया है।

संबंधित गतिविधियाँ:

आगे की राह: 

  • विश्व को एक बड़े पैमाने पर  शांतिपूर्ण समाधान हेतु एक साथ आने की ज़रूरत है लेकिन इज़रायल सरकार तथा अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के सहित इज़राइल के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में मददगार साबित होगा।
  • इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान तथा मोरक्को के मध्य  हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के रूप में जाना जाता है, इस दिशा में एक सही कदम है। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते की तर्ज़ पर दोनों देशों के मध्य  शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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