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डेली न्यूज़

  • 15 Apr, 2020
  • 58 min read
शासन व्यवस्था

COVID-19 और टीकाकरण अभियान

प्रीलिम्स के लिये

COVID-19, खसरा टीकाकरण अभियान

मेन्स के लिये

विभिन्न टीकाकरण अभियानों पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि महामारी का रूप धारण कर चुके कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण दुनिया भर में 37 देशों के 117 मिलियन से अधिक बच्चे जीवनरक्षक खसरा के टीके से वंचित रह सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि COVID-19 के प्रसार को रोकने में सहायता करने के लिये तकरीबन 24 देशों में या तो टीकाकरण अभियान को पूर्णतः रोक दिया गया है अथवा कुछ समय के लिये स्थगित कर दिया गया है।
  • इसके अतिरिक्त 13 अन्य देश ऐसे हैं जिनमें टीकाकरण अभियानों को लागू न करने की आशंका ज़ाहिर की जा रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने सभी देशों को महामारी के दौरान टीकाकरण गतिविधियों को बनाए रखने में मदद करने के लिये नए दिशा-निर्देशों की सिफारिश की हैं।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, सरकारें अस्थायी रूप से उन निवारक टीकाकरण अभियानों को रोक सकती हैं जिनके टीका-निरोधक रोग का कोई सक्रिय प्रकोप अभी दिखाई नहीं दे रहा है।
  • WHO द्वारा दिये गए निर्देशों में सभी देशों की सरकारों को महामारी के दौरान टीकाकरण अभियान को जारी रखने अथवा स्थगित करने से संबंधित निर्णय लेने के लिये जोखिम-लाभ विश्लेषण (Risk-Benefit Analysis) करने का सुझाव दिया गया है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ COVID-19 के संचरण का खतरा सबसे अधिक है। 
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि सरकारों द्वारा टीकाकरण अभियान को कुछ समय के लिये रोकने का निर्णय लिया जाता है तो नीति निर्माताओं के लिये यह आवश्यक है कि वे उन बच्चों को ट्रैक करने के अभियान में तेज़ी लाएँ जो टीकाकरण से वंचित रह गए हैं, ताकि उन्हें यथासंभव समय में खसरे का टीका दिया जा सके।
  • इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, यह आवश्यक है कि टीकाकरण अभियान को कुछ समय के लिये स्थगित कर समुदाय और स्वास्थ्य कर्मियों को COVID-19 के प्रकोप से बचाया जाए, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि स्थायी रूप से बच्चों का भविष्य बर्बाद किया जाए।
  • उल्लेखनीय है कि आयरलैंड एक खसरा-मुक्त देश है, किंतु वहाँ COVID-19 के रोगियों की बढती संख्या को देखते हुए विश्लेषकों ने यह चेताया है कि जल्द ही आयरलैंड अपनी खसरा-मुक्त स्थिति खो सकता है।

खसरा- एक वैश्विक चुनौती 

  • खसरा वायरस के कारण होने वाली एक अत्यंत संक्रामक और गंभीर बीमारी है। वर्ष 1963 में खसरे के टीके की शुरुआत से पूर्व इसके कारण प्रत्येक वर्ष अनुमानित 2.6 मिलियन लोगों की मृत्यु  हुई थी।
  • ध्यातव्य है कि सुरक्षित और प्रभावी टीके की उपलब्धता के बावजूद भी वर्ष 2018 में खसरे के कारण 140000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थीं, जिसमें अधिकतर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल थे। 
  • खसरा पैरामिक्सोवायरस परिवार (Paramyxovirus Family) के एक वायरस के कारण होता है और यह आमतौर पर प्रत्यक्ष संपर्क और हवा के माध्यम से संचारित होता है।
  • खसरे का वायरस सर्वप्रथम श्वसन प्रणाली को संक्रमित करता है और इसके पश्चात् यह पूरे शरीर में फैल जाता है। खसरा एक मानवीय रोग है और अब तक जानवरों में इसके संचरण का कोई भी मामला सामने नहीं आया है।
  • खसरे से होने वाली मौतों को कम करने में त्वरित टीकाकरण गतिविधियों का बड़ा प्रभाव पड़ा है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के दौरान खसरा टीकाकरण अभियान के कारण अनुमानित 23.2 मिलियन मौतों को रोका गया है।
  • वैश्विक खसरे से होने वाली मौतों में वर्ष 2000 (536000 मौतें) से वर्ष 2018 (142000 मौतें) के दौरान 73 प्रतिशत की कमी हुई है।
  • खसरे और इसकी जटिलताओं का सबसे अधिक प्रभाव छोटे बच्चों पर पड़ता है और इनमें खसरों के कारण मृत्यु का आँकड़ा सबसे अधिक है। इसके अलावा वे सभी गर्भवती महिलाएँ भी इसके प्रति काफी संवेदनशील होती हैं, जो किसी कारणवश आरंभ में टीके से वंचित रह गई थीं।

आगे की राह

  • महामारी से निपटने के लिये समन्वित प्रयासों और संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है ताकि दुनिया भर में स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, क्योंकि वे ही अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर इस नए खतरे का सामना कर रहे हैं।
  • साथ ही हमें आवश्यक टीकाकरण सेवाओं की निरंतरता भी सुनिश्चित करनी होगी, ताकि नई पीढ़ी के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
  • विशेषज्ञों ने देशों से समुदायों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए नियमित टीकाकरण सेवाओं को जारी रखने का आग्रह किया है।

स्रोत:  बिज़नेस स्टैंडर्ड


सामाजिक न्याय

COVID-19 और सफाई कर्मियों की सुरक्षा

प्रीलिम्स के लिये  

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम

मेन्स के लिये 

महामारी से निपटने में सफाई कर्मियों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (National Safai Karamcharis Finance and Development Corporation-NSKFDC) ने स्थानीय निकायों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि सभी सफाई कर्मचारियों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment-PPE) प्रदान किए जाएँ ताकि वे कोरोनोवायरस (COVID-19) महामारी के दौरान सुरक्षित रह सकें।

प्रमुख बिंदु 

  • NSKFDC द्वारा जारी एडवाइज़री के अनुसार, अनौपचारिक श्रमिकों समेत स्वच्छता कार्यकर्त्ता और अपशिष्ट संग्राहक आदि लोगों के उन साइलेंट ग्रुप्स (Silent Groups) में से हैं जो कोरोनोवायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये अथक रूप से कार्य कर रहे हैं।
  • विश्लेषकों के अनुसार, जब दूसरों की सुरक्षा के लिये अपने जीवन को खतरे में डालने का प्रश्न होता है, तो वर्तमान समय में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिसकर्मियों के समान ही देखा जाना चाहिये।
  • सभी स्थानीय निकायों को स्वच्छता कर्मचारियों की सुरक्षा के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया स्थापित करने का निर्देश दिया गया है।
  • सभी स्थानीय निकायों को COVID-19, सोशल डिस्टेंसिंग मापदंड और एहतियाती उपाय जैसे विषयों पर सफाई कर्मचारियों के लिये अनिवार्य दिशा-निर्देश देने को भी कहा गया है।
  • इसके अतिरिक्त स्थानीय निकायों को स्वच्छता बनाए रखने में मदद करने के लिये सफाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने, गमबूट (Gumboot) और जैकेट के साथ-साथ साबुन और हैंड सैनिटाइज़र प्रदान करने का भी आदेश दिया गया है।

स्थानीय स्वशासन की अवधारणा

  • लोकतंत्र का सही अर्थ होता है सार्थक भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही। जीवंत और मज़बूत स्थानीय शासन भागीदारी और जवाबदेही दोनों को सुनिश्चित करता है।
  • स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह देश के आम नागरिकों के सबसे करीब होती है और इसलिये यह लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्षम होती है।
  • स्थानीय सरकार का क्षेत्राधिकार एक विशेष क्षेत्र तक सीमित होता है और यह उन्हीं लोगों के लिये कार्य करती है जो उस क्षेत्र विशेष के निवासी हैं।
  • स्थानीय निकाय राज्य सरकार के अधीन आती है और उसका नियंत्रण तथा पर्यवेक्षण भी राज्य सरकार द्वारा ही किया जाता है।

COVID-19 और सफाई कर्मचारी

  • स्वास्थ्य कर्मियों और सुरक्षा कर्मियों के अलावा सफाई कर्मियों का समूह भी मौजूदा समय में कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी संकट से अग्रिम पंक्ति में लड़ रहा है। 
  • ये लोग प्रत्येक दिन अपनी जान को जोखिम में डालते हैं और हमारी सड़कों, पार्कों, सार्वजनिक स्थानों, सीवरों, सेप्टिक टैंकों, समुदायों तथा सार्वजनिक शौचालयों को साफ तथा स्वच्छ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वायरस के प्रसार को रोकने में मदद करते हैं।
  • सफाई कर्मियों की महत्ता के बावजूद भी सरकार और आम लोगों द्वारा इन्हें अनदेखा किया जा रहा है। देश के सफाई कर्मियों के पास पर्याप्त बुनियादी सुरक्षा उपकरण तक मौजूद नहीं हैं, जिसके कारण ये लोग इस वायरस के प्रति काफी संवेदनशील हो गए हैं।
  • शिक्षा के अभाव में सफाई कर्मियों के मध्य कोरोनावायरस के संक्रमण के प्रति जागरूकता का भी अभाव देखा जा रहा है।
  • इसके अलावा यदि सफाई कर्मचारी कोरोनावायरस से संक्रमित होते हैं तो उनको अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं और बीमा जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं की कमी का सामना करना पड़ेगा।

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम 

(National Safai Karamcharis Finance and Development Corporation-NSKFDC)

  • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC) की स्थापना सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन कंपनी अधिनियम, 1956 (Companies Act, 1956) की धारा 25 के तहत 24 जनवरी, 1997 को एक ‘गैर-लाभकारी कंपनी’ के रूप में की गई थी।
  • यह भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्त्वधीन कंपनी है।
  • NSKFDC संपूर्ण भारत में सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों के सर्वांगीण सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये एक शीर्ष संस्था के रूप में कार्यरत है।
  • लक्षित समूह के उत्थान हेतु ऋण आधारित एवं गैर-ऋण आधारित योजनाओं के क्रियान्वयन के अतिरिक्त NSKFDC मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) के उन्मूलन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के हाथों से मानवीय अपशिष्टों (human excreta) की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) कहते हैं।

स्रोत:  द हिंदू


भारतीय राजनीति

COVID-19 से संक्रमित कैदियों की रिहाई पर रोक

प्रीलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, COVID-19

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार,  COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि जेलों में बंद COVID-19 संक्रमित किसी भी कैदी को अंतरिम जमानत या पेरोल (Parole) पर रिहा नहीं किया जाएगा। 

मुख्य बिंदु:

  • 13 अप्रैल, 2020 को उच्चतम न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ‘एस. ए. बोबड़े’ (S.A. Bobde) ने कहा कि जेलों में बंद कैदियों की रिहाई से पहले उनमें COVID-19 संक्रमण की जाँच हेतु आवश्यक परीक्षण किये जाने चाहिये। 
  • उच्चतम न्यायलय ने यह भी आदेश दिया कि वर्तमान में भारतीय जेलों में बंद ऐसे किसी भी व्यक्ति को रिहा नहीं किया जाना चाहिये, जो जाँच के दौरान COVID-19 से संक्रमित पाया जाता है।
  • ध्यातव्य है कि 23 मार्च, 2020 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों में बंद कैदियों के मामलों की जाँच करने और अंतरिम जमानत या पेरोल पर रिहा किये जा सकने वाले कैदियों की सूची तैयार करने के लिये एक विशेष समिति का गठन करने का आदेश दिया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने COVID-19 की महामारी को देखते हुए असम के विदेशी निरोध केंद्रों/फाॅरेनर्स डिटेंशन सेंटर्स (Foreigners’ Detention Centres) में दो वर्ष से अधिक समय तक बंद कैदियों को रिहा किये जाने पर सहमति ज़ाहिर की है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) ने उच्चतम न्यायालय के इस आदेश का यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसा करने से फाॅरेनर्स डिटेंशन सेंटर्स के बंदी पुनः स्थानीय निवासियों में मिल जाएंगे। 
    • उच्चतम न्यायालय ने मई 2019 के अपने आदेश में परिवर्तन करते हुए बंदियों को रिहाई के लिये 1 लाख रुपए के स्थान पर 5,000 रुपए का बाॅण्ड प्रस्तुत करने की अनुमति दी है। परंतु ऐसे कैदियों को रिहाई के लिये ज़मानतदार (Surety) के रूप में दो भारतीय नागरिकों को भी प्रस्तुत करना होगा।
  • कैदी की रिहाई के बाद भी यदि वह COVID-19 से संक्रमित पाया जाता है तो संबंधित अधिकारियों द्वारा उसे क्वारंटीन (Quarantine) करने की व्यवस्था की जाएगी।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि कैदियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के नियमों और मानदंडों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
  • उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय सुधार गृहों , डिटेंशन सेंटर और संरक्षण गृहों  पर भी लागू होगा। 

कैदियों की सुरक्षा हेतु कानूनी प्रावधान: 

  • भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान किये गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत भारत के राज्यक्षेत्र में सभी को विधि के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है तथा संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत सभी को प्राण और दैहिक (कुछ अपवादों को छोड़कर) स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। 
  • जेल अधिनियम (The Prisons Act), 1894 के तीसरे अध्याय में कैदियों के स्वास्थ्य के संदर्भ में आवश्यक सुविधाओं की विस्तृत व्याख्या की गई है।
    • जेल अधिनियम, 1894 की धारा 37 के अनुसार, यदि कोई भी कैदी मेडिकल ऑफिसर से मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता है या मानसिक अथवा शारीरिक रूप से अस्वस्थ प्रतीत होता है, तो जेल अधीक्षक द्वारा तुरंत मेडिकल ऑफिसर या डॉक्टर को इस संदर्भ में सूचित किया जाएगा।
    • जेल अधिनियम, 1894 की धारा 39 के माध्यम से प्रत्येक जेल में कैदियों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिये एक अस्पताल की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

निष्कर्ष: पिछले कुछ दिनों में देश COVID-19 संक्रमण के मामलों में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है।    भारतीय जेलों में कैदियों के लिये स्वास्थ्य व्यवस्था और अन्य मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता, कर्मचारियों की कमी आदि को देखकर यह समझा जा सकता है कि जेलों में इस बीमारी के पहुँचने से इस महामारी पर नियंत्रण पाना एक बड़ी चुनौती बन सकती है। ऐसे में कानूनी प्रक्रिया के तहत कैदियों की रिहाई करना तथा COVID-19 संक्रमित कैदियों को रिहा न कर उनके उपचार का उचित प्रबंध करना एक सकारात्मक निर्णय होगा।

स्रोत:  द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान देशों का आभासी सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

आसियान, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 से निपटने हेतु आसियान देशों द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु आसियान (Association of Southeast Asian Nations-ASEAN) देशों का आभासी सम्मेलन संपन्न हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि इस आभासी सम्मेलन की अध्यक्षता वियतनाम द्वारा की गई।
    • इस सम्मेलन में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के प्रमुखों ने हिस्सा लिया है। इसके अलावा तीन आसियान सहयोगी देश चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। 
  • वियतनाम ने सम्मेलन में दक्षिण पूर्व एशियाई नेताओं से COVID-19 से निपटने हेतु एक आपातकालीन कोष स्थापित करने का आग्रह किया है। 
    • इस आपातकालीन कोष का उपयोग दवाओं के भंडारण, चिकित्सा उपकरण, परीक्षण इत्यादि क्षेत्रों में किया जाएगा ताकि भविष्य में COVID-19 जैसी महामारी से निपटा जा सके।

COVID-19 से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • वियतनाम के अनुसार, आसियान देशों की कुल जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30% है। 
  • COVID-19 के कारण लोगों का जीवन, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा प्रभावित हुए हैं। 
  • COVID-19 से आसियान देशों का पर्यटन क्षेत्र और निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्था अत्यधिक प्रभावित हुई है। 
  • इस वर्ष थाइलैंड की अर्थव्यवस्था में 5.3% की कमी आ सकती है जोकि पिछले 22 साल में सबसे भयावह होगी। उल्लेखनीय है कि थाइलैंड आसियान देशों में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 

आसियान देशों में COVID-19 का प्रभाव:

  • वियतनाम में पहली बार आयोजित होने वाली फार्मूला-1 रेस (Formula-1 race) COVID-19 के कारण रद्द कर दी गई। 
  • वियतनाम में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या काफी कम है और यहाँ पर अभी तक एक भी मृत्यु नहीं हुई है।
    • थाईलैंड में संक्रमण के 2,500 से अधिक मामले हैं और यहाँ पर अभी तक 40 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

आगे की राह:

  • वियतनाम द्वारा प्रस्तावित आपातकालीन कोष COVID-19 जैसी महामारी से निपटने में सहायक साबित हो सकते है।
  • सभी आसियान देशों को आपसी समन्वय के साथ इस महामारी से निपटने में उचित कदम उठाने होंगे।

स्रोत: द टाइम्स आफ इंडिया


शासन व्यवस्था

COVID-19 के नियंत्रण में ‘ताइवान मॉडल’ की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19

मेन्स के लिये:

वैश्विक स्तर पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में जब विश्व के लगभग सभी देश COVID-19 से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, परंतु इस दौरान ताइवान में COVID-19 संक्रमण के मामले विश्व के अन्य देशों की तुलना में काफी कम हैं। अपनी बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली और तीव्र तथा निवारक कार्रवाई के माध्यम से ताइवान ने इस महामारी से निपटने का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है। 

मुख्य बिंदु: 

Taiwan

  • COVID-19 के मुख्य केंद्र चीन से 150 किमी. से कम की दूरी पर स्थित ताइवान में पिछले महीनों में COVID-19 के मामलों की संख्या कमी आई है और इसके संक्रमण की दर में भी गिरावट देखी गई है। 
  • ताइवान में COVID-19 के मामलों में कमी का एक कारण चीन में शुरूआती मामलों के मिलने के साथ ही ताइवान सरकार द्वारा देश में की गई त्वरित और सुरक्षात्मक कार्रवाई है।  
  • साथ ही इस दौरान COVID-19 के नियंत्रण और मरीज़ों तथा स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये ताइवान के अस्पतालों द्वारा अपनाए गए तरीकों का इस वायरस से निपटने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं: 

1. स्वास्थ्य कर्मियों के छोटे समूह:  

  • इसके तहत शुरुआत से ही आवश्यकता के अनुरूप एक समूह/यूनिट में कम-से-कम स्वास्थ्य कर्मियों को रखा गया।
  • अस्पताल के किसी भी भाग में COVID-19 का एक भी संक्रमण उस हिस्से में कार्यरत सभी स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य मरीज़ों की सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा हो सकता है।
  • स्वस्थ्य कर्मियों के छोटे समूहों के माध्यम से अस्पतालों में भर्ती COVID-19 मरीज़ों से स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण के सामुदायिक प्रसार के खतरे को कम करने में सहायता मिली।
  • इस पहल के परिणामस्वरूप अधिकांश अस्पतालों में एक यूनिट में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में दो-तिहाई (2/3) की कमी की गई, हालाँकि इस दौरान उपचार की गुणवत्ता और मरीज़-डॉक्टर अनुपात में कोई गिरावट नहीं आई।

2. अस्पतालों में आवाजाही पर नियंत्रण:  

  • ताइवान के ‘केंद्रीय महामारी कमान केंद्र’ (Central Epidemic Command Centre) के एक अधिकारी के अनुसार, COVID-19 के संक्रमण को कम करने के लिये अस्पतालों में सभी मरीज़ों (बहिर्रोग विभाग, दुर्घटना, आपातकालीन मामले आदि) को लाने तथा ले जाने के लिये अलग-अलग मार्गों की व्यवस्था की गई।
  • इस प्रक्रिया में अस्पतालों में हवाई-अड्डों जैसी सुरक्षा व्यवस्था स्थापित की गई जिसमें अस्पताल में प्रवेश के लिये पहचान-पत्र दिखाने की अनिवार्यता, शारीरिक तापमान मापने के लिये चेकपॉइंट आदि की व्यवस्था की गई तथा अस्पतालों के आस-पास स्वच्छता और विसंक्रमण के नियमों को अधिक कड़ा कर दिया गया।  

अस्पताल बेड-प्रति व्यक्ति का उच्च अनुपात: 

  • वर्तमान में विश्व के बहुत से देशों ने पाया है कि उनके पास COVID-19 जैसी अत्यधिक संक्रामक  बीमारियों के मरीज़ों की देखभाल के लिये पर्याप्त बेड नहीं हैं।
  • हालाँकि ताइवान में COVID-19 के मामलों की संख्या अन्य देशों की तुलना में कम रही है परंतु फिर भी ताइवान की सरकार किसी भी समय मामलों में तीव्र वृद्धि से निपटने के लिये तैयारी थी।
  • ताइवान के ‘रोग नियंत्रण केंद्र’ (Centre for Disease Control- CDC) के उप-निदेशक के अनुसार, देश में इस चुनौती से निपटने के लिये लगभग एक हज़ार ‘निगेटिव प्रेशर आइसोलेशन रूम’ (Negative Pressure Isolation Room) की उपलब्धता के साथ ही किसी भी स्थिति में ऐसे कुछ और कमरे बढ़ाए जाने की क्षमता उपलब्ध है।
  • ताइवान की आबादी की तुलना में इतनी बड़ी संख्या में ‘आइसोलेशन रूम’ का होना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है और यह देश के उन्नत चिकित्सा तंत्र तथा COVID-19 से निपटने में ताइवान सरकार की तैयारी की पुष्टि करता है।    
  • संक्रमण के मामलों के बढ़ने की स्थिति में स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य मरीज़ों के बीच संक्रमण के सामुदिक प्रसार को रोकने में ‘आइसोलेशन रूम’ की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

उन्नत स्वास्थ्य नीति और समन्वित कार्ययोजना:

  • COVID-19 पर नियंत्रण में ताइवान में केंद्रीय सरकार और देश के अस्पतालों के बीच बेहतर समन्वय की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है।    
  • ताइवान की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली के तहत देश के सभी नागरिकों को एक कंप्यूटर चिप (Computer Chip) युक्त हेल्थ कार्ड प्रदान किया जाता है, जिसमें उस व्यक्ति की पहचान और उसके स्वास्थ्य से जुड़ी पूर्व की सारी जानकारी दर्ज़ होती है।   
  • इसके माध्यम से ताइवान के अस्पताल जल्दी और कुशलतापूर्वक मरीज़ों के दाखिले को नियंत्रित करने, उनके लक्षणों को दर्ज़ करने तथा इन जानकारियों को देश के मुख्य चिकित्सा केंद्रों से साझा करने में सफल रहे हैं। 

भारत के संदर्भ में ‘ताइवान मॉडल’ का महत्त्व: 

  • COVID-19 से निपटने में ‘ताइवान मॉडल’ की सफलता का सबसे बड़ा श्रेय ताइवान और इसके अस्पतालों द्वारा पहले ही दिन से की गई तैयारी को जाता है।    
  • वर्तमान में भले ही भारत में ताइवान की तुलना में देश के दूरस्थ क्षेत्रों तक उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच का अभाव है परंतु तकनीकी के प्रयोग और सरकार तथा अस्पतालों के बीच समन्वय से बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • COVID-19 पर नियंत्रण का सबसे सफल उपाय इसके प्रसार को रोकना है ऐसे में अधिक-से-अधिक संभावित COVID-19 संक्रमित लोगों की जाँच कर और अन्य लोगों में इसके प्रसार को रोकने के प्रयास तेज़ किये जाने चाहिये।

स्रोत:  द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्ड योजना 2020-21

प्रीलिम्स के लिये

सॉवेरेन गोल्ड बॉन्ड, SLR 

मेन्स के लिये

सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्ड की विशेषताएँ, उद्देश्य 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने, भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond-SGB) जारी करने का निर्णय लिया है। ये बॉन्ड छह अवधि शृंखलाओं में अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के मध्य जारी किये जाएंगे। 

सॉवेरेन गोल्ड बॉन्ड की विशेषताएँ 

  • सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्ड 2020 -2021 के नाम से ये बॉन्ड भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाएंगे।
  • इनकी बिक्री विभिन्‍न व्‍यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवार (HUFs), ट्रस्‍ट, विश्‍वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्‍थानों जैसे निकायों तक ही सीमित रहेगी।
  • SGB को 1 ग्राम की बुनियादी इकाई के साथ सोने के ग्राम संबंधी गुणक में अंकित किया जाएगा।
  • इनकी 8 वर्ष की समयावधि होगी और पाँचवें साल के पश्चात इससे बाहर निकलने का विकल्प‍ रहेगा, जिसका इस्‍तेमाल ब्‍याज भुगतान की तिथियों पर किया जा सकता है।
  • SGB की न्‍यूनतम स्‍वीकार्य सीमा 1 ग्राम सोना है।
  • व्यक्तियों और HUFs के लिये 4 किलोग्राम तथा ट्रस्‍ट एवं इसी तरह के निकायों के लिये 20 किलोग्राम प्रति वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च) की अधिकतम सीमा होगी।
  • SGB की बिक्री अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों को छोड़कर), स्‍टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), नामित डाकघरों और मान्‍यता प्राप्‍त स्‍टॉक एक्‍सचेंजों जैसे कि नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड और बॉम्‍बे स्‍टॉक एक्‍सचेंज लिमिटेड के जरिये की जाएगी।
  • संयुक्‍त रूप से धारण किये जाने की स्थिति में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होगी
  • बॉन्ड का मूल्‍य भारतीय रूपए में तय किया जाएगा निर्गम मूल्‍य उन लोगों के लिये प्रति ग्राम 50 रुपए कम होगा जो इसकी खरीदारी ऑनलाइन करेंगे और इसका भुगतान डिजिटल मोड के जरिये करेंगे।
  • बॉन्ड का भुगतान नकद (अधिकतम 20,000 रुपए तक), डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा इलेक्‍ट्रॉनिक बैंकिंग के जरिये की जा सकेगी
  • निवेशकों को प्रति वर्ष 2.50 प्रतिशत की निश्चित दर से ब्याज दिया जाएगा, जो अंकित मूल्‍य पर हर छह महीने में देय होगा।
  • इनका उपयोग ऋणों के लिये जमानत या गारंटी के रूप में किया जा सकता है।
  • आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार, स्‍वर्ण बांड पर प्राप्‍त होने वाले ब्‍याज पर कर अदा करना होगा। किसी भी व्‍यक्ति को SGB के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्‍त कर दिया गया है।
  • किसी भी निर्धारित तिथि पर बॉन्ड जारी होने के एक पखवाड़े के भीतर इनकी ट्रेडिंग स्‍टॉक एक्सचेंज पर हो सकेगी।
  •  बैंकों द्वारा हासिल किये गए बॉन्डों की गिनती वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के संदर्भ में की जाएगी।

वैधानिक तरलता अनुपात

(Statutory Liquidity Ratio-SLR)


  • यह भारत में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित बैंकों ( देशी तथा विदेशी) की सकल जमाओं का वह अनुपात है जिसे बैंकों को अपने पास विद्यमान रखना होता है। 
  • यह नकद तथा गैर नकद-स्वर्ण या सरकारी प्रतिभूति किसी भी रूप में हो सकता है। 
  • वर्ष 2007 में इसकी 25 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा को समाप्त कर दिया गया। अब यह 25 प्रतिशत के नीचे भी रखा जा सकता है।
  • SLR से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है। अगर कोई बैंक मुश्किल परिस्थिति में फँस जाता है तो रिजर्व बैंक SLR की मदद से ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर सकता है।

सॉवेरेन गोल्ड बॉन्ड योजना के उद्देश्य: इस योजना के दो प्रमुख उद्देश्य हैं -

  1. सोने की भौतिक मांग को कम करना, और 
  2. प्रतिवर्ष निवेश के उद्देश्य से आयात होने वाले सोने के एक हिस्से को वित्तीय बचत में परिवर्तित करना। 

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

लॉकडाउन हटाने का उचित समय

प्रीलिम्स के लिये:

श्रृंखला अंतराल, हर्ड इम्युनिटी, मूल प्रजनन अनुपात, R- नॉट 

मेन्स के लिये:

लॉकडाउन की अवधि कब तक

चर्चा में क्यों?

‘नॉवल कोरोनावायरस’ अर्थात SARS- CoV- 2 पहले ही लाखों लोगों को प्रभावित कर चुका है तथा अभी वायरस के संक्रमण के मामलों  में कमी होने की संभावना नजर नहीं आ रही है, ऐसे में वैज्ञानिक समुदाय के बीच लॉकडाउन अवधि को लेकर बहस चल रही है। 

मुख्य बिंदु:

  • लॉकडाउन के चलते नागरिकों, पुलिस तथा ग्रामीणों के समूहों के बीच झड़प देखने को मिल रही है तथा अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है। 
  • दूसरी तरफ ‘समूह प्रतिरक्षा सीमा’ (Herd Immunity Threshold) के बिना लॉकडाउन को हटाना विनाशकारी हो सकता है। 

‘मूल प्रजनन अनुपात’

(Basic Reproductive Ratio- R0): 

  • एक संक्रमित व्यक्ति से वायरस का प्रसार अनेक अन्य असंक्रमित व्यक्तियों को हो सकता है। इस संख्या को ‘मूल प्रजनन अनुपात’ (Basic Reproductive Ratio- BRR) अर्थात R- नॉट (R-nought) कहा जाता है जबकि R0 के रूप में लिखा जाता है। 
  • R0 का मान जितना अधिक होगा महामारी उतनी ही अधिक संक्रामक होती है।
  • R0 को तीन संख्याओं का उत्पाद माना जाता है: 
    • संक्रमित व्यक्ति के उन दिनों की संख्या जिसमें वह दूसरों को संक्रमित कर सकता है।
    •  संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों की संख्या। 
    •  संपर्क में आए व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना।
  • SARS- CoV- 2 वायरस में R- नॉट का मान 2 से 3 के बीच होने का अनुमान है। खसरे (Measles) से पीड़ित एक व्यक्ति 12-18 अन्य व्यक्तियों जबकि इन्फ्लूएंजा (Influenza) से पीड़ित व्यक्ति लगभग 1-4 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
  • इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिये R- नॉट का मान 2 है तथा संक्रमण की अवधि 10 दिन है। ऐसे में पहला संक्रमित व्यक्ति 2 अन्य लोगों को संक्रमित करेगा। जिनमें से प्रत्येक 2 अन्य (कुल 22) को संक्रमित करेंगें। इन 4 व्यक्तियों में से प्रत्येक 2 अन्य (23) को संक्रमित करेगें और इसी तरह 10 दिनों में एक संक्रमित व्यक्ति 2,046 व्यक्तियों को संक्रमित करेगा।

R0 को काम रखने के तरीके:

  • R-नॉट को कम रखने का सबसे आसान तरीका है कि खुद को हर दूसरे व्यक्तियों से दूर रखा जाए। केवल उन लोगों से दूरी बनाना पर्याप्त नहीं है जो संक्रमण के लक्षण दिखाते हैं अपितु हमें हर दूसरे व्यक्ति से दूरी बनाकर रखनी होती है।
  • कई सामान्य दिखाई देने वाले व्यक्ति वास्तव में संक्रमण के लक्षण प्रकट किये बिना संक्रमित हो सकते हैं। इसलिये जिस तरह R- नॉट COVID-19 के प्रसार को प्रभावित करता है, उसी तरह हमारा व्यवहार भी R- नॉट को प्रभावित करता है।

R0 तथा हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity):

  • हर्ड इम्युनिटी से आशय- “किसी समाज या समूह के कुछ प्रतिशत लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के माध्यम से किसी संक्रामक रोग के प्रसार को रोकना है।”
  • जब किसी व्यक्ति में वायरस का संक्रमण होता है तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है। एक बार संक्रमण के बाद हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इन वायरसों की पहचान कर लेता है तथा भविष्य में शरीर की सुरक्षा के लिये इनकी पहचान को याद रखता है। अगली बार जब वायरस शरीर को संक्रमित करने की कोशिश करता है, तो प्रतिरक्षा तंत्र वायरस पहचानने तथा इससे शरीर की सुरक्षा करने में सक्षम होता है।
  • एक व्यक्ति जो वायरस संक्रमित है या इस रोग ठीक हो चुका है उस व्यक्ति में फिर से संक्रमित होने की संभावना कम-से-कम अगले कई महीनों या वर्षों तक नहीं रहती है।
  • इसलिये जैसे-जैसे संक्रमण समुदाय में फैलता है, संक्रामक लोगों की संख्या लगातार कम होती जाती है, क्योंकि समुदाय के लोगों ने संक्रमण की बढ़ती संख्या के कारण पहले ही प्रतिरक्षा प्राप्त कर ली होती है। इसे हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) कहा जाता है।   

हर्ड इम्युनिटी तथा वैक्सीन में संबंध:

  • हर्ड इम्युनिटी को टीकाकरण के द्वारा भी बढ़ाया जा सकता है। भारत ने पोलियो का उन्मूलन करने में हर्ड इम्यूनिटी का उपयोग किया गया था। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यदि SARS- CoV- 2 वायरस के लिये कोई टीका उपलब्ध होता तो इससे बड़ी संख्या में व्यक्तियों को संक्रमित हुए बिना ही हर्ड इम्युनिटी वाले लोगों की संख्या को बढ़ाया जा सकता था। 

हर्ड इम्युनिटी तथा महामारी की समाप्ति:

  • जब समुदाय में हर्ड इम्युनिटी वाले लोगों की संख्या बढ़ती है, तो अनेक संक्रमित व्यक्ति संक्रामक अवधि के दौरान दूसरे व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकेंगे। ऐसी स्थिति में R- नॉट औसतन एक से कम होगा, जिससे संक्रमण के कुछ ही नवीन मामले सामने आएंगे। 
  • मौजूदा संकमण के मामले या तो ठीक हो जाएंगे या उनकी मृत्यु हो जाएगी। इससे रोग का प्रसार धीमा हो जाएगा तथा महामारी कुछ समय बाद समाप्त हो जाएगी।

श्रृंखला अंतराल (Series Interval) एवं COVID- 19:

  • दो संक्रमित व्यक्तियों में वायरस संक्रमण के लक्षणों के प्रकट होने के समय अंतराल की अवधि को श्रृंखला अंतराल कहा जाता है। यह अंतराल हमें वायरस के प्रसार के बारे में सूचित करता है। यह अंतराल जितना कम होता है, वायरस के समुदाय में प्रसार की गति उतनी ही अधिक होती है।

श्रृंखला अंतराल तथा हर्ड इम्युनिटी में संबंध:

  • SARS- CoV- 2 वायरस के लिये श्रृंखला अंतराल अवधि 5 से 7 दिनों के बीच होती है वहीं इन्फ्लूएंजा के लिये यह अवधि 1.3 दिन होती है। इसलिये इन्फ्लूएंजा वायरस,  SARS- CoV- 2 वायरस की तुलना में छह गुना अधिक तेज़ी से प्रसारित होता है।
  • हालाँकि यह COVID- 19 के बारे में अच्छी खबर नहीं है।  क्योंकि शृंखला अंतराल अधिक होने के कारण महामारी का समुदाय में धीरे-धीरे प्रसार होता है तथा लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अर्थात हर्ड इम्यूनिटी धीरे- धीरे विकसित हो पाती है जिससे COVID- 19 महामारी के लंबे समय तक चलने की संभावना है।

लॉकडाउन की अवधि कब तक?

  • हम यह जानते हैं कि वर्तमान लॉकडाउन को हमेशा के लिये नहीं लगाया जा सकता है। हम इस बारे में कभी भी निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि सभी लोगों ने प्रतिरक्षा प्राप्त की है। अत: लॉकडाउन को कुछ नियमों के साथ हटाने पर विचार करना चाहिये। लॉकडाउन को सुरक्षित रूप से हटाया जा सकता है, जब देश में व्यक्तियों का एक निश्चित अनुपात प्रतिरक्षा विकसित कर ले। 
  • गणितीय रूप में इसे एक निश्चित संख्या से निर्धारित किया जाता है, जिसे ‘समूह प्रतिरक्षा सीमा’ (Herd Immunity Threshold) कहा जाता है। यह उन लोगों की संख्या को दर्शाता है जिन पर संक्रमण का प्रभाव और संचार नहीं हो सकता।
  • वर्तमान में उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर COVID-19 के लिये यह सीमा लगभग 60% है। 

आगे की राह:

  • यह सुनिश्चित करना बहुत मुश्किल है कि देश के दो-तिहाई लोगों ने प्रतिरक्षा हासिल कर ली है। हम उन भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं जहाँ COVID- 19 महामारी ने बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया है। इन क्षेत्रों में लॉकडाउन को बढ़ाया जाना चाहिये तथा निगरानी, परीक्षण और संक्रमण को रोकने के लिये अधिक सख्ती दिखानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

खुदरा महँगाई दर में कमी

प्रीलिम्स के लिये

मुद्रास्फीति के कारण, नियंत्रण के उपाय 

मेन्स के लिये

मुद्रास्फीति में कमी के कारण, प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार खुदरा महँगाई दर मार्च महीने में घटकर 5.91% रही, जो पिछले चार महीनों का सर्वाधिक निचला स्तर है। फरवरी माह में यह दर 6.58% रही थी।

प्रमुख बिंदु:

  • मार्च महीने में मुद्रास्फीति दर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति लक्ष्य (2%-6%) के भीतर रही।
  •  देश भर में COVID - 19 के कारण लॉकडाउन की वजह से मार्च माह से कीमत संग्रह के लिये फील्डवर्क को निलंबित कर दिया गया था। लगभग 66% डेटा कीमत उद्धरण से, जबकि शेष डेटा सिमुलेशन विधि से लिये गए। 
  • जारी आँकड़ों के अनुसार, देश के शहरी क्षेत्रों में खुदरा मुद्रास्फीति 5.56% तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 6.09% रही। 

मुद्रास्फीति 

  • मुद्रास्फीति कीमतों के सामान्य स्तर में सतत् वृद्धि है। अगर किसी एक वस्तु या सेवा के दाम बढ़ जाए तो वह मुद्रास्फीति नहीं है। 
  • मुद्रास्फीति दर को मूल्य सूचकांक के आधार पर मापा जाता है, जो दो प्रकार के होते हैं- 
    1. थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI) 
    2. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI)  
  • मुद्रास्फीति के कारण: 
    1. मांग जनित कारण
    2. लागत जनित कारण 
  • नियंत्रण के उपाय:  
    1. अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को कम करना। 
    2. उत्पादन में वृद्धि अथवा उत्पादों का आयात करना।  
    3. उत्पादन तकनीक में सुधार कर उत्पादों की लागत कम करना।  

मुद्रा स्फीति के कम होने के कारण:

  • देशव्यापी लॉकडाउन के कारण मार्च महीने में उत्पादन सामग्री और कच्चे माल तथा उत्पादों की कीमत में वृद्धि कम हुई है। 
  • COVID-19 के तीव्र प्रसार तथा मौजूदा लॉकडाउन के समय उच्च अनिश्चितता की स्थिति वर्तमान प्रत्याशित मांग तथा ‘कोर मुद्रास्फीति’ में कमी ला सकती है। 
  • प्रत्याशित मांग में कमी के प्रमुख कारण बेरोज़गारी तथा वेतन में कटौती, ऋण भार में वृद्धि, सार्वजनिक व्यय में कमी की वजह से बाज़ार में तरलता का अभाव है। 
  • लॉकडाउन के समय ‘समाजिक दूरी’ के परिणामस्वरूप सेवा क्षेत्र में परिवहन, मनोरंजन तथा संचार का प्रभावित होना भी मुद्रास्फीति के कम होने का प्रमुख कारण है। 

संभावित प्रभाव 

  • RBI के लिये अर्थव्‍यवस्था को उबारने के लिये गैर-परंपरागत कदम उठाने या नीतिगत दर में कटौती की संभावना बनेगी।
  • ‘लॉकडाउन के कारण मार्च महीने में उत्पादन सामग्री, कच्चे माल और उत्पादों की कीमत में कम वृद्धि होने से आने वाले समय में खुदरा मुद्रास्फीति में और कमी आ सकती है।

आगे की राह:

  • मार्च में खुदरा महँगाई दर के मोर्चे पर मिली राहत निकट भविष्य में बदल सकती है। 
  • देशव्यापी बंद के दौरान शहरी खुदरा महंगाई दर में वृद्धि की संभावना है। हालाँकि, स्थिति सामान्य होने पर इसमें सुधार आ सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 अप्रैल, 2020

हिमाचल दिवस

प्रत्येक वर्ष 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस आयोजित किया जाता है। ध्यातव्य है कि 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश मुख्य आयुक्त के प्रांत के रूप में अस्तित्त्व में आया था। भारतीय संविधान लागू होने के साथ 26 जनवरी, 1950 को हिमाचल प्रदेश 'ग' श्रेणी का राज्य बन गया। 1 जुलाई, 1954 को बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में शामिल हुआ। इसके पश्चात् 1 जुलाई, 1956 को हिमाचल प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गयाI वर्ष 1966 में कांगड़ा और पंजाब के अन्य पहाड़ी इलाकों को हिमाचल में मिला दिया गया, किंतु इसका स्वरूप केंद्रशासित प्रदेश का ही रहा। संसद द्वारा दिसंबर 1970 में हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम पारित किया गया जिसके फलस्वरूप 25 जनवरी, 1971 को नया राज्य अस्तित्त्व में आया। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश, भारतीय गणराज्य का 18वां राज्य बना। क्षेत्र के प्राचीनतम ज्ञात जनजातीय निवासियों को दास कहा जाता था , बाद में आर्य आए और वे भी यहाँ रहने लगे। राज्य उत्तर में जम्मू-कश्मीर से, दक्षिण-पश्चिम में पंजाब से, दक्षिण में हरियाणा से, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड से तथा पूर्व में तिब्बत (चीन) की सीमाओं से घिरा हुआ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की संख्या तकरीबन 68 लाख है और राज्य का कुल क्षेत्रफल लगभग 55,673 वर्ग कि.मी. है। 

‘देखो अपना देश’ वेबिनार श्रृंखला

पर्यटन मंत्रालय (Ministry of Tourism) ने अतुल्य भारत की संस्कृति और विरासत की गहरी और विस्तृत जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से हाल ही में 'देखो अपना देश’ (DekhoApnaDesh) नामक से एक वेबिनार श्रृंखला की शुरूआत की है। श्रृंखला के पहले वेबिनार में दिल्ली के लंबे इतिहास को दर्शाया गया। इस वेबिनार का शीर्षक ‘सिटी ऑफ सिटीज़- दिल्लीज़ पर्सनल डायरी’ (City of Cities- Delhi's Personal Diary) था। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, COVID-19 के कारण घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन तथा आवागमन काफी अधिक प्रभावित हुआ है, किंतु प्रौद्योगिकी के कारण, स्थानों और गंतव्यों तक आभासी रूप से पहुँचना और बाद के दिनों के लिये अपनी यात्रा की योजना बनाना संभव है, इसी सिद्धांत के आधार पर इस वेबिनार श्रृंखला की शुरुआत की गई है। केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री ने कहा कि यह वेबिनारों की श्रृंखला एक निरंतर विशिष्टता वाली होगी और मंत्रालय अपने स्मारकों, पाक शैलियों, कलाओं, नृत्य के रूपों सहित भारत के विविध और उल्लेखनीय इतिहास तथा संस्कृति को प्रदर्शित करने की दिशा में काम करेगा, जिसमें प्राकृतिक परिदृश्य, त्योहार और समृद्ध भारतीय सभ्यता के कई अन्य पहलू भी शामिल हैं।

पूल परीक्षण

हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने उत्तर प्रदेश को COVID -19 का पूल परीक्षण (Pool Testing) शुरू करने की अनुमति दी है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश पूल परीक्षण शुरू करने वाला पहला राज्य बन गया है। पूल परीक्षण शुरू करने का मुख्य उद्देश्य राज्य में परीक्षण की संख्या को बढ़ाना है। ध्यातव्य है कि यह विधि राज्य की परीक्षण प्रक्रिया में तेज़ी लाएगी। इस विधि में कई नमूनों को एक साथ रखा जाता है और उनका परीक्षण किया जाता है। यदि नमूनों के संग्रह का परिणाम नकारात्मक आता है, तो इसका अर्थ होता है कि उस समूह के सभी नमूने नकारात्मक हैं। हालाँकि यदि संग्रह के सभी नमूनों में से किसी एक नमूने का परिणाम भी सकारात्मक आता है तो उस समूह के सभी नमूनों का परीक्षण व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। भारत, जो कि परीक्षण किटों के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे जैसे विषयों पर संघर्ष कर रहा है, के लिये संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करते हुए परीक्षण करना काफी लाभदायक साबित हो सकता है।

‘सहयोग’ (SAHYOG) एप 

भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India-SoI) ने सरकारी एजेंसियों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को COVID-19 के प्रकोप के दौरान महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करने के लिये अनिवार्य आँकड़ों की आवश्यकता को ध्यान में रहते हुए बुनियादी ढाँचे पर डेटा एकत्र करने हेतु एक नया प्लेटफॉर्म तैयार किया है। इस प्लेटफॉर्म पर बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोज़ल, COVID-19 समर्पित अस्पतालों, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की परीक्षण प्रयोगशालाओं और क्वारंटाइन शिविरों के संबंध में जानकारी एकीकृत की जाएगी। इस प्लेटफॉर्म का समर्थन करने के लिये ‘सहयोग’ (SAHYOG) नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन भी बनाई गई है। यह एप सामुदायिक कार्यकर्त्ताओं की मदद से स्थान विशिष्ट डेटा एकत्र करने में मदद करेगा। सरकार द्वारा आवश्यक सूचना मापदंडों को ‘सहयोग’ (SAHYOG) एप में शामिल किया गया है, जो संपर्क ट्रेसिंग, जन जागरूकता और स्व-मूल्यांकन उद्देश्यों के मामले में सरकार के आरोग्य सेतु एप (Aarogya Setu) में इज़ाफा करेगा।


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