डेली न्यूज़ (14 Sep, 2022)



चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत-अमेरिका सैन्य अभ्यास का विरोध

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-चीन संबंध, भारत-चीन सीमा समझौते, एलएसी, एलओसी, युद्ध अभ्यास।

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंधों से जुड़े मुद्दे और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने विवादित चीन-भारत सीमा के पास भारत और अमेरिका के मध्य होने वाले सैन्य अभ्यास का विरोध करते हुए कहा कि यह द्विपक्षीय सीमा विवाद में बाह्य हस्तक्षेप है।

  • हालाँकि इस अभ्यास की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, अनुमान है कि दोनों देश अक्तूबर 2022 में उत्तराखंड के औली में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control-LAC) से लगभग 100 किलोमीटर दूर "युद्ध अभ्यास" के 18वें संस्करण में भाग लेंगे।

चीन द्वारा विरोध का कारण:

  • चीन का मानना है कि दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि दोनों देशों के मध्य वास्तविक सीमा के पास कोई सैन्य अभ्यास आयोजित नहीं किया जाएगा।
  • चीन ने वर्ष 1993 और वर्ष 1996 में भारत एवं चीन द्वारा हस्ताक्षरित दो समझौतों का हवाला देते हुए कहा कि यह अभ्यास इन दोनों समझौतों का उल्लंघन करता है।
    • वर्ष 1993 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने पर समझौता।
    • वर्ष 1996 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ सैन्य क्षेत्र में विश्वास-निर्माण उपायों पर समझौता।
  • वर्ष 1993 और 1996 दोनों समझौतों का एक प्रमुख तत्त्व यह है कि दोनों पक्ष LAC के साथ-साथ क्षेत्रों में अपनी सेना को न्यूनतम स्तर तक रखेंगे। हालाँकि समझौते यह परिभाषित नहीं करते हैं कि न्यूनतम स्तर में क्या होगा।
    • वर्ष 1993 और 1996 के समझौतों में यह भी अनिवार्य है कि सीमा संबंधी प्रश्न का अंतिम समाधान लंबित होने तक दोनों पक्ष LAC का सख्ती से पालन करेंगे।
  • वर्ष1993, 1996 और 2005 के समझौतों के अनुसार LAC पर आग्नेयास्त्रों के उपयोग को सख्ती से नियंत्रित किया जाता है।

दोनों देशों के मध्य विवाद का मुद्दा:

  • इस संदर्भ में प्रमुख, पश्चिमी क्षेत्र में व्याप्त असहमति हैं।
  • वर्ष 1962 के युद्ध के बाद चीन ने दावा किया कि वे नवंबर 1959 में LAC से 20 किलोमीटर पीछे हट गए थे।
  • पूर्वी क्षेत्र में सीमा मुख्य रूप से तथाकथित मैकमोहन रेखा के साथ मिलती है और पश्चिमी एवं मध्य क्षेत्रों में यह पारंपरिक प्रथागत रेखा के साथ मुख्य रूप से मेल खाती है जिसे लगातार चीन द्वारा इंगित किया गया है।
  • वर्ष 2017 में डोकलाम संकट के दौरान चीन ने भारत से "1959 LAC" का पालन करने का आग्रह किया।
  • भारत ने वर्ष 1959 और 1962 दोनों में LAC की अवधारणा को खारिज कर दिया था।
  • भारत की आपत्ति यह थी कि चीनी रेखा, मानचित्र पर बिंदुओं की शृंखला से जुड़ी हुई थी जिसे कई तरह से जोड़ा जा सकता था, वर्ष 1962 में आक्रमण से किसी को हानि न हो इसलिये यह रेखा चीनी हमले से पूर्व  8 सितंबर, 1962 को वास्तविक स्थिति पर आधारित होनी चाहिये। चीन के नियंत्रण रेखा की परिभाषा की अस्पष्टता के कारण चीन के सैन्य बलों द्वारा तथ्यों को बदलने की आशंका विद्यमान है।

भारत और चीन के बीच हाल के मुद्दे और विकास:

  • मुद्दे:
  • विकास:
    • फरवरी 2021: भारत और चीन ने आखिरकार पैंगोंग झील पर एक समझौते पर पहुँचने का फैसला किया।
    • सितंबर 2022: हाल ही में भारतीय और चीनी सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पेट्रोलिंग पॉइंट-15 से हटना शुरू कर दिया है, जो मई 2020 से चल रहे गतिरोध को समाप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC):

  • परिचय: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एक प्रकार की सीमांकन रेखा है, जो भारत-नियंत्रित क्षेत्र और चीन-नियंत्रित क्षेत्र को एक-दूसरे से अलग करती है।
  • LAC की लंबाई: भारत LAC की लंबाई 3,488 किमी मानता है; जबकि चीन इसे केवल 2,000 किमी के आसपास मानता है।
  • LAC का विभाजन:
    • इसे तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
    • पूर्वी क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश से सिक्किम (1346 किमी),
      • मध्य क्षेत्र उत्तराखंड से हिमाचल प्रदेश (545 किमी),
      • पश्चिमी क्षेत्र लद्दाख (1597 किमी) तक फैला है।
    • पूर्वी सेक्टर में LAC का संरेखण वर्ष 1914 की मैकमोहन रेखा के समरूप है।
    • यह वर्ष 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत अस्तित्व में आई थी।
    • LAC का मध्य क्षेत्र सबसे कम विवादित, जबकि पश्चिमी क्षेत्र दोनों पक्षों के मध्य सबसे अधिक विवादित है।

India-China-Border

  • LAC, पाकिस्तान के साथ लगी नियंत्रण रेखा (LoC) से भिन्न है:
    • कश्मीर युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1948 की संघर्ष विराम रेखा (Ceasefire Line) के संदर्भ में बातचीत के बाद नियंत्रण रेखा का उदय हुआ।
    • दोनों देशों के बीच शिमला समझौते के बाद वर्ष 1972 में LoC को नामित कर इसे मानचित्र पर दर्शाया गया है।
    • यह दोनों सेनाओं के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMOs) द्वारा हस्ताक्षरित मानचित्र पर चित्रित है और इसमें कानूनी समझौते की अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता है।
    • लेकिन LAC पर दोनों देशों (भारत-चीन) द्वारा सहमति नहीं बन पाई है, न ही इसे मानचित्र पर दर्शाया गया है और न ही इसे भौगोलिक रूप से सीमांकित किया गया है।

आगे की राह

  • दो बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में चीन और भारत को एक-दूसरे के साथ-साथ विकास को आगे बढ़ाने, बाधा के बजाय साझेदारी के साथ आगे बढ़ने एवं एक-दूसरे के खिलाफ दीवारें खड़ी करने के बजाय साझा प्रगति के लिये मिलकर काम करने की ज़रूरत है।
  • भारत और चीन को आपसी विश्वास बनाने एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति तथा शांति का एहसास करने के लिये सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारत 2023 में G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा

प्रिलिम्स के लिये:

G20, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, भारत और अंतर्राष्ट्रीय समूह

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति, भारत की विदेश नीति में G20 का महत्त्व, अंतर्राष्ट्रीय समूहों पर वैश्विक घटनाओं की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs- MEA) ने घोषणा की कि भारत वर्ष 2023 में नई दिल्ली में G-20 समूह के नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।

  • 17वाँ G20 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों का शिखर सम्मेलन नवंबर 2022 में इंडोनेशिया में होगा, जिसके बाद भारत दिसंबर 2022 से G20 की अध्यक्षता ग्रहण करेगा।
  • भारत एक वर्ष की अवधि के लिये G20 की अध्यक्षता करेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • अतिथि देश:
    • भारत, G20 अध्यक्ष के तौर पर बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित करेगा।
  • ट्रोइका:
    • अध्यक्षता के दौरान भारत, इंडोनेशिया और ब्राज़ील ट्रोइका का गठन करेंगे। यह पहली बार होगा जब ट्रोइका में तीन विकासशील देश और उभरती अर्थव्यवस्थाएँ शामिल होंगी, जो उन्हें वैश्विक शक्तियों के मध्य बढ़त प्रदान करेंगी।
    • ट्रोइका, G20 के भीतर शीर्ष समूह को संदर्भित करता है जिसमें वर्तमान, पिछले और आगामी अध्यक्ष पद वाले देश (इंडोनेशिया, भारत और ब्राज़ील) शामिल हैं।
  • प्राथमिकताएँ:
    • समावेशी, न्यायसंगत और सतत् विकास,
    • जीवन (पर्यावरण के लिये जीवन शैली),
    • महिला सशक्तीकरण;
    • स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा से लेकर वाणिज्य तक के क्षेत्रों में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना एवं तकनीक-सक्षम विकास,
    • कौशल-मानचित्रण, संस्कृति और पर्यटन; जलवायु वित्तपोषण; चक्रीय अर्थव्यवस्था; वैश्विक खाद्य सुरक्षा; ऊर्जा सुरक्षा; ग्रीन हाइड्रोजन; आपदा जोखिम में कमी तथा अनुकूलन;
    • विकासात्मक सहयोग; आर्थिक अपराध के विरुद्ध लड़ाई; और बहुपक्षीय सुधार।

G-20 समूह:

  • परिचय:
    • G20 का गठन वर्ष 1999 के दशक के अंत के वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में किया गया था, जिसने विशेष रूप से पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया को प्रभावित किया था।
    • इसका उद्देश्य मध्यम आय वाले देशों को शामिल करके वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना है।
    • साथ में G20 देशों में दुनिया की 60% आबादी, वैश्विक जीडीपी का 80% और वैश्विक व्यापार का 75% शामिल है।
  • सदस्य:
    • G20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
      • स्पेन को स्थायी अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।

G20

  • अध्यक्षता:
    • G20 की अध्यक्षता प्रत्येक वर्ष सदस्यों के बीच चक्रीय रूप से प्रदान की जाती है और अध्यक्ष पद धारण करने वाला देश पिछले और अगले अध्यक्षता धारक के साथ मिलकर G20 एजेंडा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये 'ट्रोइका' बनाता है।
      • इटली, इंडोनेशिया और भारत अभी ट्रोइका देश हैं और इंडोनेशिया के पास वर्तमान अध्यक्ष पद है।
  • अधिदेश:
    • G20 का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है। एजेंडा और कार्य का समन्वय G20 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, जिन्हें 'शेरपा' के रूप में जाना जाता है, जो केंद्रीय बैंकों के वित्त मंत्रियों और गवर्नरों के साथ मिलकर काम करते हैं।
    • समूह का प्राथमिक जनादेश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये है, जिसमें दुनिया भर में भविष्य के वित्तीय संकटों को रोकने हेतु विशेष ज़ोर दिया गया है।
    • यह वैश्विक आर्थिक एजेंडा को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • वर्ष 1999-2008 से केंद्रीय बैंक के गवर्नरों और वित्त मंत्रियों के समूह से लेकर राज्यों के प्रमुखों तक के मंच को मज़बूत किया गया।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत-जापान रक्षा संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

2+2 मंत्रिस्तरीय बैठक, अभ्यास मिलन (MILAN), मालाबार अभ्यास।

मेन्स के लिये:

भारत-जापान संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और जापान ने सुरक्षा एवं सहयोग के लिये टोक्यो में 2+2 मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की।

JAPAN

प्रमुख बिंदु

  • रक्षा सहयोग बढ़ाना: दोनों देश काउंटरस्ट्राइक/जवाबी कार्यवाही क्षमताओं सहित राष्ट्रीय रक्षा के लिये आवश्यक सभी विकल्पों की जाँच कर रहे हैं और अपनी क्षमताओं को मज़बूत करने हेतु अपने रक्षा बजट में पर्याप्त वृद्धि करेंगे।
    • चूँकि ज़्यादातर पड़ोसी देशों को चीन से बढ़े हुए सुरक्षा खतरों से निपटने की ज़रूरत है।
  • समुद्री सहयोग बढ़ाना: समुद्री क्षेत्र में जागरूकता सहित समुद्री सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर व्यापक चर्चा हुई जिसमें भारत की क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) का समावेशी दृष्टिकोण शामिल है।
  • वैश्विक सहयोग: दोनों देशों ने स्वीकार किया कि सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये पहले से कहीं अधिक वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।
    • इसके अलावा इस बात पर दोनों पक्षों में सर्वसम्मति है कि राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के आधार पर स्वतंत्र, खुले, नियम-आधारित एवं समावेशी हिंद-प्रशांत के लिये मज़बूत भारत-जापान संबंध बहुत महत्त्वपूर्ण है।

टू-प्लस-टू वार्ता:

  • 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तरीय संस्थागत तंत्र (Highest-Level Institutional Mechanism) है।
  • यह संवाद का एक प्रारूप है जहांँ रक्षा/विदेश मंत्री या सचिव दूसरे देश के अपने समकक्षों से मिलते हैं।
  • भारत का चार प्रमुख रणनीतिक साझेदारों- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और रूस के साथ 2+2 संवाद है।

जापान-भारत संबंध:

  • रक्षा अभ्यास:
  • बहुपक्षीय समूह:
  • स्वास्थ्य सेवा:
    • भारत के ‘आयुष्मान भारत कार्यक्रम’ और जापान के ‘AHWIN’ कार्यक्रम के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के बीच समानता एवं ताल-मेल को देखते हुए दोनों पक्षों ने ‘आयुष्मान भारत’ के लिये AHWIN के आख्यान के निर्माण हेतु परियोजनाओं की पहचान करने के लिये एक-दूसरे के साथ परामर्श किया।
  • निवेश और ODA:
    • पिछले कुछ दशकों से भारत जापान की आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance- ODA) ऋण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है।
      • दिल्ली मेट्रो ODA के उपयोग के माध्यम से जापानी सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
    • भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना को ‘आर्थिक भागीदारी के लिये विशेष शर्त’ (Special Terms for Economic Partnership- STEP) के तहत जापान इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन एजेंसी द्वारा प्रदत्त सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
    • इसके अलावा जापान और भारत ने जापान की शिंकानसेन प्रणाली (Shinkansen System) को भारत में लाते हुए एक हाई-स्पीड रेलवे के निर्माण के लिये प्रतिबद्धता जताई है।
    • भारत जापान परमाणु समझौता 2016 भारत को दक्षिण भारत में छह परमाणु रिएक्टर बनाने में मदद करेगा, जिससे वर्ष 2032 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता दस गुना तक बढ़ जाएगी।
  • आर्थिक संबंध:
    • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत के साथ जापान का द्विपक्षीय व्यापार कुल 20.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा।
      • भारत को जापान का निर्यात भारत के कुल आयात का 2.35% था और जापान को भारत का निर्यात भारत के कुल निर्यात का 1.46% था। यह रेखांकित करता है कि एक बड़ी संभावना बनी हुई है।
    • भारत जापान के लिये 18वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था और जापान वर्ष 2020 में भारत के लिये 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
  • 14वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन, 2022 के दौरान घटनाक्रम:
    • भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये सतत् विकास पहल:
      • इसे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांँचे के विकास पर नज़र रखने हेतु लॉन्च किया गया है, इसके अलावा इसमें चल रही परियोजनाओं और कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में संभावित भविष्य के सहयोग के साथ-साथ बांँस मूल्य शृंखला को मज़बूत करने के लिये भी एक पहल शामिल है।
    • भारत-जापान डिजिटल साझेदारी:
      • दोनों देशों द्वारा साइबर सुरक्षा पर इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के उद्देश्य से "भारत-जापान डिजिटल साझेदारी" पर चर्चा की गई।
      • जापानी ICT क्षेत्र में योगदान करने के लिये जापान अधिक कुशल भारतीय IT पेशेवरों को आकर्षित करने की आशा कर रहा है।
    • स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी:
      • इसे इलेक्ट्रिक वाहन, बैटरी सहित स्टोरेज सिस्टम, इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, सौर ऊर्जा हाइड्रोजन, अमोनिया आदि के विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग के लिये लॉन्च किया गया था।
      • इसका उद्देश्य भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना, इन क्षेत्रों में लचीला और भरोसेमंद आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास में सहयोग को बढ़ावा देना है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रों का एक वर्तमान समूह जिसे G-8 के नाम से जाना जाता है, पहले G-7 के रूप में शुरू हुआ। निम्नलिखित में से कौन-सा देश G-7 में शामिल नहीं था? (2009)

(a) कनाडा
(b) इटली
(c) जापान
(d) रूस

उत्तर: D

व्याख्या:

  • G-8, एक अंतर-सरकारी राजनीतिक मंच है, इसका गठन वर्ष 1997 में रूस के साथ मिलकर किया गया था।
  • इस मंच की शुरुआत वर्ष 1975 में फ्राँस द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन से हुई, जिसमें छह सरकारों - फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधियों को एक साथ लाया गया, इस प्रकार इसे ‘ग्रुप ऑफ सिक्स’ या G -6 का नाम दिया गया। वर्ष 1976 में कनाडा को शामिल करने के साथ शिखर सम्मेलन को ‘ग्रुप ऑफ़ सेवन’ या G-7 के रूप में जाना जाने लगा। रूस को वर्ष 1997 से राजनीतिक मंच में जोड़ा गया, जिसके बाद इसे G-8 के नाम से जाना जाने लगा।
  • वर्ष 2014 से G-8 को फिर से G-7 के रूप में पुन: स्वरूपित किया गया था। वर्ष 2014 में, रूस को G-8 से क्रीमिया के विलय के बाद निलंबित कर दिया गया तथा इसका नाम पुनः G-7 कर दिया गया था। वर्ष 2017 में, रूस ने G-8 से अपनी स्थायी वापसी की घोषणा की। अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सिकल सेल एनीमिया के लिये CRISPR-Cas9

प्रिलिम्स के लिये:

CRISPR-Cas9, सिकल सेल एनीमिया, जीन एडिटिंग, जेनेटिक इंजीनियरिंग

मेन्स के लिये:

CRISPR-Cas9 प्रौद्योगिकी, अनुप्रयोग, महत्त्व और संबंधित नैतिक चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

भारत ने वर्ष 2021 में सिकल सेल एनीमिया के निदान हेतु क्‍लस्‍टर्ड रेग्‍युलरली इंटरस्‍पेस्‍ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats- CRISPR) विकसित करने के लिये 5 वर्ष की परियोजना को मंज़ूरी दी।

  • सिकल सेल एनीमिया पहली बीमारी है जिसे भारत में CRISPR आधारित चिकित्सा के लिये लक्षित किया जा रहा है।
    • प्री-क्लिनिकल फेज़ (पशु विषयों पर ट्रायल) शुरू होने वाला है।

CRISPR तकनीक:

  • परिचय:
    • यह एक जीन एडिटिंग तकनीक है, जो Cas9 नामक एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के हमलों से लड़ने के लिये बैक्टीरिया में प्राकृतिक रक्षा तंत्र की प्रतिकृति का निर्माण करती है।
    • यह आमतौर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग के रूप में वर्णित प्रक्रिया के माध्यम से आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
      • CRISPR तकनीक में बाहर से किसी नए जीन को जोड़ना शामिल नहीं है।
    • CRISPR-Cas9 तकनीक को अक्सर 'जेनेटिक कैंची' के रूप में वर्णित किया जाता है।
      • इस तकनीक की तुलना अक्सर सामान्य कंप्यूटर प्रोग्रामों के 'कट-कॉपी-पेस्ट' या 'ढूंढें-बदलें' कार्यात्मकताओं से की जाती है।
      • डीएनए अनुक्रम में गड़बड़ी, जो बीमारी या विकार का कारण होती है, को काटकर हटा दिया जाता है और फिर एक 'सही' अनुक्रम से बदल दिया जाता है।
        • इसे प्राप्त करने के लिये उपयोग किये जाने वाले उपकरण जैव रासायनिक यानी विशिष्ट प्रोटीन और आरएनए अणु हैं।
    • प्रौद्योगिकी कुछ बैक्टीरिया में एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र की नकल करती है जो स्वयं को वायरस के हमलों से बचाने के लिये एक समान विधि का उपयोग करती है।

CRISPR

  • क्रियाविधि:
    • पहला काम जीन के उस विशेष क्रम की पहचान करना है जो परेशानी का कारण है।
    • एक बार ऐसा करने के बाद एक आरएनए अणु को कंप्यूटर पर 'ढूंढें' या 'खोज' फ़ंक्शन की तरह डीएनए स्ट्रैंड पर इस अनुक्रम का पता लगाने के लिये प्रोग्राम किया जाता है।
    • इसके बाद Cas9 का उपयोग डीएनए स्ट्रैंड को विशिष्ट बिंदुओं पर काटने और खराब अनुक्रम को हटाने के लिये किया जाता है।
      • उल्लेखनीय है कि DNA सिरा के जिस विशिष्ट भाग को काटा या हटाया जाता है उसमें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्माण, मरम्मत की प्रवृति होती है।
      • वैज्ञानिकों द्वारा स्वत: मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ही हस्तक्षेप किया जाता है और आनुवंशिक कोड में वांछित अनुक्रम या परिवर्तन की क्रिया पूरी की जाती है, जो अंततः टूटे हुए DNA सिरा पर स्थापित हो जाता है।
    • इसकी समग्र प्रक्रिया प्रोग्राम करने योग्य है और इसमें उल्लेखनीय दक्षता भी है, हालाँकि त्रुटि की संभावना पूरी तरह से खारिज नहीं की जा सकती है।

CRISPR-आधारित चिकित्सीय समाधान का महत्त्व:

  • विशिष्ट उपचार: CRISPR अंतर्निहित आनुवंशिक समस्या को ठीक करके रोग के उपचार में सहायता करता है। CRISPR आधारित चिकित्सीय समाधान गोली या दवा के रूप में नहीं हैं। इसके बजाय, प्रत्येक रोगी की कुछ कोशिकाओं को निकाला जाता है, जीन को प्रयोगशाला में एडिट (Edit) किया जाता है तथा उपचारित जीन को पुनः रोगियों में इंजेक्ट किया जाता है।
    • अलग-अलग मामलों में जीन एडिटिंग अलग-अलग तरीके से की जाती है। इसलिये प्रत्येक बीमारी या विकार के लिये एक विशिष्ट उपचार की आवश्यकता है।
      • उपचार, विशेष आबादी या नस्लीय समूहों के लिये विशिष्ट हो सकते हैं, क्योंकि ये भी जीन पर निर्भर हैं।
      • आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन का प्रभाव संबंधित व्यक्ति में देखा जाता है और संतान में स्थानांतरित नहीं होता है।
  • आनुवंशिक रोगों/विसंगतियों का स्थायी इलाज: बड़ी संख्या में रोग और विकार प्रकृति में अनुवांशिक होते हैं अर्थात् वे अवांछित परिवर्तन या जीन में उत्परिवर्तन के कारण होते हैं।
    • इनमें सामान्य रक्त विकार जैसे सिकल सेल एनीमिया, आँखों की बीमारियाँ जिनमें कलर ब्लाइंडनेस, कई प्रकार के कैंसर, मधुमेह, एड्स और यकृत एवं हृदय रोग शामिल हैं। इनमें से कई वंशानुगत भी हैं।
    • CRISPR इनमें से कई बीमारियों का स्थायी इलाज खोजने की संभावना व्यक्त करता है।
    • विकृत या धीमी गति से विकास, भाषण विकार या खड़े होने या चलने में असमर्थता जैसी विकृतियाँ जीन अनुक्रमों में असामान्यताओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
      • CRISPR ऐसी असामान्यताओं के इलाज के लिये एक संभावित उपचार भी प्रस्तुत करता है।

संबंधित नैतिक दुविधाएँ:

  • किसी व्यक्ति में भौतिक परिवर्तन को प्रेरित करने के लिये CRISPR का संभावित रूप से दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • वर्ष 2018 में एक चीनी शोधकर्त्ता ने बताया कि अंतर्निहित आनुवंशिक रोग की/समस्याओं के उपचार के लिये उन्होंने CRISPR तकनीक का सहारा लेकर ‘डिज़ाइनर बेबी’ को विकसित किया है।
      • यह 'डिज़ाइनर बेबी' बनाने का पहला प्रलेखित मामला था और इसने वैज्ञानिक समुदाय में व्यापक चिंता पैदा की।
    • विशेष लक्षण प्राप्त करने के लिये निवारक हस्तक्षेप कुछ ऐसा नहीं है जिसके लिये वैज्ञानिक वर्तमान में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहते हैं।
    • इसके अलावा चूँकि भ्रूण में ही परिवर्तन किये गए थे, नए अधिग्रहीत लक्षणों के साथ आने वाली पीढ़ियों में इसके स्थानांतरित होने की संभावना है।
    • हालाँकि तकनीक अत्यंत सफल है फिर भी यह 100% सटीक नहीं है, फलस्वरूप यह कुछ त्रुटियों को भी प्रेरित कर सकती है, जिससे अन्य जीनों में परिवर्तन हो सकता है। जिसका दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर पीढ़ियों पर पड़ने की आशंका है।

सिकल सेल रोग:

  • परिचय:
    • यह एक वंशानुगत रक्त संबंधी रोग है जो अफ्रीकी, अरब और भारतीय मूल के लोगों में सबसे अधिक प्रचलित है।
    • यह विकारों का एक समूह है जो हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का एक अणु है जो पूरे शरीर में कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।
    • इस रोग के पीड़ितों में हीमोग्लोबिन एस नामक असामान्य हीमोग्लोबिन अणु पाए जाते हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं को अर्धचंद्राकार आकार में विकृत कर सकते हैं।
      • ये रक्त के प्रवाह और ऑक्सीजन को शरीर के सभी हिस्सों तक पहुँचने से रोकते हैं।

sickle-cell-disease

  • लक्षण:
    • यह गंभीर दर्द पैदा कर सकता है, जिसे सिकल सेल क्राइसिस (Sickle Cell Crises) कहा जाता है।
    • समय के साथ सिकल सेल रोग वाले लोगों के यकृत, गुर्दे, फेफड़े, हृदय और प्लीहा सहित अन्य अंगों को नुकसान पहुँच सकता है। इस विकार की जटिलताओं के कारण मृत्यु भी हो सकती है।
  • उपचार:
    • औषधि, रक्त आधान और कभी-कभी अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण इसका उपचार है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न: प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक से पहचान करने के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है
(d) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • CRISPR-Cas9 अद्वितीय तकनीक है जो आनुवंशिकीविदों और चिकित्सा शोधकर्त्ताओं को DNA अनुक्रम के अनुभागों को हटाने, जोड़ने या बदलने के माध्यम से जीनोम के कुछ हिस्सों को संपादित करने में सक्षम बनाती है।
  • CRISPR "क्लस्टर्ड रेगुलर इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स" का संक्षिप्त रूप है।
  • Cas9 मूल रूप से एक एंज़ाइम है जिसका उपयोग कैंची की एक जोड़ी की तरह DNA के बिट्स को जोड़ने, हटाने या मरम्मत करने के लिये एक विशिष्ट स्थान पर DNA के दो स्ट्रैंड को काटने हेतु किया जाता है।

अतः विकल्प (a) सही है।


प्रश्न : अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM)

प्रिलिम्स के लिये:

आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA), राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA)।

मेन्स के लिये:

आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आवश्यक दवाओं की नई राष्ट्रीय सूची (National List of Essential Medicines-NLEM) जारी की, जहाँ  34 दवाओं को इस सूची में शामिल किया गया है, जबकि पिछली सूची में शामिल 26 दवाओं इस सूची से हटा दिया गया है, इसी के साथ इसमें सूचित कुल दवाओं की संख्या 384 पहुँच गई है।

Drugs-List

आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM):

  • परिचय:
    • आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक सूची है।
    • भारत में इसे WHO द्वारा जारी आवश्यक दवाओं की सूची (EML) की तर्ज पर तैयार किया गया था।
  • पृष्ठभूमि:
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 1996 में भारत की आवश्यक दवाओं की पहली राष्ट्रीय सूची तैयार की और जारी की जिसमें 279 दवाएँ शामिल थीं। इस सूची को बाद में वर्ष 2003, 2011, 2015 तथा 2022 में संशोधित किया गया।
  • उद्देश्य:
    • जनसंख्या की प्राथमिक रोग स्थितियों के सुरक्षित और प्रभावी उपचार का मार्गदर्शन करना।
    • दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना।
    • किसी देश के उपलब्ध स्वास्थ्य संसाधनों का अनुकूलन करना। यह इसके लिये एक मार्गदर्शक दस्तावेज भी हो सकता है:
      • राज्य सरकारों द्वारा आवश्यक दवाओं की सूची तैयार करना।
      • सार्वजनिक क्षेत्र में दवाओं की खरीद और आपूर्ति

NLEM में शामिल होने वाली दवा हेतु मानदंड:

  • NLEM में किसी दवा को शामिल करने से पहले कई कारकों को देखा जाता है। जो निम्नलिखित हैं:
    • अनिवार्यता (Essentiality): एक दवा बड़े पैमाने पर जनसंख्या को देखते हुए आवश्यक हो सकती है और पहले बताई गई परिभाषा के अनुसार होनी चाहिये।
    • परिवर्तनशील बीमारी का भार: समय के साथ देश में बीमारी का भार बदलता रहता है। एक समय पर टीबी से निपटना अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकता है। अगले ही पल कोविड-19 जैसी एक और बीमारी अहम हो सकती है। इसलिये सूची तैयार करते समय प्रचलित बीमारी पर विचार किया जाता है।
    • प्रभावकारिता और सुरक्षा: सूची में शामिल होने के लिये दवा में प्रभावकारिता और व्यापक स्वीकृति के "स्पष्ट" प्रमाण होने चाहिये।
    • लागत-प्रभावशीलता: NLEM में दवा को शामिल करते समय उपचार की कुल कीमत पर विचार किया जाना चाहिये। केवल इकाई मूल्य ही इसके लिये सर्वोत्तम बेंचमार्क नहीं हो सकता है।
    • निश्चित खुराक संयोजन (Fixed Dose Combinations- FDCs): एकल खुराक वाली दवाओं को NLEM में शामिल करने पर विचार किया जाता है। FDC को केवल तभी शामिल किया जाता है जब उनके पास चिकित्सीय प्रभाव से संबंधित सिद्ध लाभ का प्रमाण होता है।
    • टर्नओवर: केवल उच्च बिक्री टर्नओवर को NLEM में शामिल करने के लिये अच्छा बेंचमार्क नहीं माना जाता है। इसके लिये अन्य कारकों पर भी अनिवार्य रूप से विचार करने की आवश्यकता है।

NLEM से दवा का निष्कासन:

  • यदि कोई दवा भारत में प्रतिबंधित हो जाती है तो उसे सूची से हटा दिया जाता है। साथ ही दवा सुरक्षा को लेकर चिंता की रिपोर्ट सामने आने पर इसे हटा दिया जाता है।
  • यदि बेहतर प्रभावकारिता या अनुकूल सुरक्षा प्रोफाइल और बेहतर लागत-प्रभावशीलता वाली दवा उपलब्ध है, तो इसे NLEM से हटा दिया जाता है।

आवश्यक चिकित्सा सूची (EML):

  • परिचय:
    • सूची रोग की व्यापकता, प्रभावकारिता, सुरक्षा और दवाओं की तुलनात्मक लागत-प्रभावशीलता को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
    • ऐसी दवाएँ इस तरह उपलब्ध होनी चाहिये कि व्यक्ति या समुदाय उनका मूल्य वहन कर सके।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के EML को आवश्यक दवाओं के चयन और उपयोग पर विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रति दो वर्ष में अपडेट किया जाता है।
  • इतिहास:
    • वर्ष 1970 में अपनी EML की रचना करने वाला दुनिया का पहला देश तंजानिया था फिर 1975 में, विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) ने WHO से अनुरोध किया कि वह उचित कीमत पर अच्छी गुणवत्ता का आश्वासन देते हुए आवश्यक दवाओं के चयन और खरीद में सदस्य राज्यों की सहायता करे।
    • इसके बाद आवश्यक दवाओं की पहली WHO मॉडल सूची वर्ष 1977 में प्रकाशित हुई जिसमें 186 दवाएँ शामिल थीं।
    • इसमें कहा गया है कि आवश्यक दवाएँ "आबादी के स्वास्थ्य और ज़रूरतों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण, बुनियादी, अपरिहार्य और आवश्यक" थीं तथा चयन के मानदंड प्रभावकारिता, सुरक्षा, गुणवत्ता एवं कुल लागत पर आधारित थे।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. ‘निश्चित मात्रा औषध संयोगों’ (FDCs) से आप क्या समझते हैं? उनके गुण-दोषों की विवेचना कीजिये (मेन्स -2013)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वन वाटर एप्रोच

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रे इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, बाढ़ संरक्षण, जलभृत पुनर्भरण/एक्वीफर रिचार्ज, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन।

मेन्स के लिये:

वन वाटर एप्रोच और इसकी आवश्यकता क्यों है।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2050 तक चार अरब लोग जल की कमी से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे, जिससे जल के सभी स्रोतों की ओर वन वाटर एप्रोच को बढ़ावा मिलेगा।

वन वाटर एप्रोच:

  • परिचय:
    • वन वाटर एप्रोच जिसे एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के रूप में भी जाना जाता है, यह मानता है कि जल मूल्यवान है, चाहे उसका स्रोत कुछ भी हो।
      • इसमें पारिस्थितिक और आर्थिक लाभ के लिये समुदायों, व्यापारी, उद्योगों, किसानों, संरक्षणवादियों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य को शामिल करके एकीकृत, समावेशी, टिकाऊ तरीके से उस स्रोत का प्रबंधन करना शामिल है।
    • यह समुदाय और पारिस्थितिकी तंत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये दीर्घकालिक लचीलापन और विश्वसनीयता हेतु सीमित जल संसाधनों के प्रबंधन के लिये एकीकृत योजना एवं कार्यान्वयन दृष्टिकोण है।
    • वन वाटर एप्रोच जल उद्योग के भविष्य के लिये आवश्यक है, जब पारंपरिक रूप से अपशिष्ट जल, वर्षा जल, पेयजल, भूजल और इनके पुन: उपयोग को बाधित करने वाली बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं और जल का अनेक लाभों के साथ उपयोग किया जा सकता है।
  • विशेषताएँ:
    • संपूर्ण जल मूल्यवान है: इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है कि हमारे पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद जल संसाधनों से लेकर पीने हेतु जल, अपशिष्ट जल और वर्षा जल आदि संपूर्ण जल मूल्यवान है ।
    • बहुआयामी दृष्टिकोण: जल से संबंधित निवेश आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ प्रदान करना चाहिये।
    • वाटरशेड-स्केल थिंकिंग एंड एक्शन का उपयोग: इसके माध्यम से किसी क्षेत्र के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, भूविज्ञान और जल विज्ञान का प्रबंधन किया जाना चाहिये।
    • भागीदारी और समावेशन: वास्तविक प्रगति और उपलब्धियाँ तभी प्राप्त होंगी जब सभी हितधारक एक साथ आगे आकर इस संबंध में निर्णय लेंगे।
  • उद्देश्य:
    • विश्वसनीय, सुरक्षित, स्वच्छ जल की आपूर्ति
    • जलभृत पुनर्भरण
    • बाढ़ संरक्षण,
    • पर्यावरण प्रदूषण को कम करना
    • प्राकृतिक संसाधनों का कुशल और पुन: उपयोग
    • जलवायु के लिये लचीलापन
    • दीर्घकालिक स्थिरता
    • सुरक्षित पेयजल के लिये समानता, सामर्थ्य और पहुँच
    • आर्थिक वृद्धि और समृद्धि

One-Water-Approach

वाटर एप्रोच की आवश्यकता:

  • क्षेत्रीय जल उपलब्धता, मूल्य निर्धारण और सामर्थ्य में अंतर, आपूर्ति में मौसमी एवं अंतर-वार्षिक भिन्नता, जल की गुणवत्ता तथा मात्रा, संसाधनों की अविश्वसनीयता बड़ी चुनौतियाँ हैं।
  • पुराने बुनियादी ढाँचे, आपूर्ति-केंद्रित प्रबंधन, प्रदूषित जल निकाय, खपत और उत्पादन पैटर्न में बदलाव के बाद कृषि और औद्योगिक विस्तार, बदलती जलवायु एवं जल का असमान वितरण भी नई जल तकनीकों को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक स्तर पर 31 देश पहले से ही जल की कमी का सामना कर रहे हैं और वर्ष 2025 तक 48 देशों द्वारा गंभीर रूप से जल की कमी का सामना किये जाने की आशंका है।
  • जल की कीमत को पहचानना, मापना और व्यक्त करना तथा उसे निर्णय लेने में शामिल करना अभी भी जल की कमी के अलावा एक चुनौती है।

IWRM पारंपरिक जल प्रबंधन से बेहतर:

  • पारंपरिक जल प्रबंधन दृष्टिकोण में पेयजल, अपशिष्ट जल और वर्षा जल को अलग-अलग प्रबंधित किया जाता है, जबकि 'वन वाटर' में सभी जल प्रणालियों को स्रोत की परवाह किये बिना जानबूझकर और जल, ऊर्जा तथा संसाधनों के लिये सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाता हैं।
  • आपूर्ति से उपयोग, उपचार और निपटान के लिये एकतरफा मार्ग के विपरीत IWRM में जल का कई बार पुनर्नवीनीकरण और पुन: उपयोग किया जाता है।
  • जल की कमी को दूर करने, भूजल को रिचार्ज करने और प्राकृतिक वनस्पति का समर्थन करने के लिये वर्षा के जल का उपयोग एक मूल्यवान संसाधन के रूप में किया जाता है।
  • जल प्रणाली में ग्रे और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर का मिश्रण शामिल है जो परंपरागत जल प्रबंधन में ग्रे अवसंरचना   की तुलना में एक संकर प्रणाली बनाते हैं।
    • ग्रे इंफ्रास्ट्रक्चर से तात्पर्य बाँध, समुद्र सेतु, सड़क, पाइप या जल उपचार संयंत्र जैसी संरचनाओं से है।
    • ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर प्राकृतिक प्रणालियों को संदर्भित करता है जिसमें वन, बाढ़ के मैदान, आर्द्रभूमि और मिट्टी शामिल हैं जो मानव कल्याण के लिये अतिरिक्त लाभ प्रदान करते हैं, जैसे बाढ़ सुरक्षा और जलवायु विनियमन।
  • उद्योग, एजेंसियों, नीति निर्माताओं, व्यापारियों और विभिन्न हितधारकों के साथ सक्रिय सहयोग 'वन वाटर' एप्रोच में एक नियमित अभ्यास है, जबकि सहभागिता पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों में आवश्यकता-आधारित है।

आगे की राह

  • संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2021 के अनुसार, जल को उसके सभी रूपों में महत्त्व देने में विफलता को जल के कुप्रबंधन का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
  • जल संसाधनों के एक व्यापक, लचीले और टिकाऊ प्रबंधन के लिये सिंगल-माइंडेड और रैखिक जल प्रबंधन से बहु-आयामी एकीकृत जल प्रबंधन दृष्टिकोण, यानी 'वन वाॅटर’ एप्रोच पर ध्यान केंद्रित करना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

Q. 'एकीकृत जलसंभर विकास कार्यक्रम' को कार्यान्वित करने के क्या लाभ हैं?

  1. मृदा अपवाह की रोकथाम
  2. देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ना
  3. वर्षा-जल संग्रहण तथा भौम-जलस्तर का पुनर्भरण
  4. प्राकृतिक वनस्पतियों का पुनर्जनन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • एकीकृत वाटरशेड/जलसंभर विकास कार्यक्रम (IWDP) ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • IWDP का मुख्य उद्देश्य मृदा, वनस्पति आवरण और जल जैसे अवक्रमित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण और विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को पुनः प्राप्त करना है। अतः कथन 1, 3 और 4 सही है।
  • हालाँकि देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ने का कार्य वाटरशेड विकास कार्यक्रम के तहत नहीं किया जाता है। अत: कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (c) सही है।


मेन्स:

Q. भारत के सूखाग्रस्त और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में सूक्ष्म जलसंभर विकास परियोजनांएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायता करती हैं? (2016)

स्रोत: डाउन टू अर्थ