अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत द्वारा मालदीव के लिये आर्थिक सहायता की घोषणा
प्रिलिम्स के लियेमालदीव की भौगोलिक अवस्थिति, COVID-19 मेन्स के लियेभारत सरकार द्वारा की गईं प्रमुख घोषणाएँ और उनका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने मालदीव की आर्थिक सहायता के लिये 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्तीय पैकेज की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- संबंधित उपायों की घोषणा विदेश मंत्री एस. जयशंकर और मालदीव में उनके समकक्ष अब्दुल्ला शाहिद के बीच आयोजित एक आभासी बैठक के दौरान की गई।
- घोषणा: भारत सरकार मालदीव को कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक अनिश्चितता से निपटने और मालदीव की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिये 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।
- महत्त्व: इस संबंध में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि यह आर्थिक सहायता महामारी के प्रभाव का सामना कर रही मालदीव की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद करेगी।
- घोषणा: बैठक के दौरान ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (Greater Malé Connectivity Project) के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान करने की भी घोषणा की गई।
- ध्यातव्य है कि ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) मालदीव में सबसे बड़ी नागरिक बुनियादी ढाँचा परियोजना होगी, जिसके माध्यम से मालदीव की राजधानी माले (Malé) को पड़ोस के तीन द्वीपों विलिंगिली (Villingili), गुल्हीफाहू (Gulhifalhu) और थिलाफूसी (Thilafushi) से जोड़ा जाएगा।
- भारत सरकार के 500 मिलियन डॉलर के वित्तीय पैकेज में 100 मिलियन डॉलर का अनुदान और 400 मिलियन डॉलर की एक नई लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) शामिल है।
- मालदीव की राजधानी माले (Malé) को तीनों पड़ोसी द्वीपों से जोड़ने के लिये लगभग 6.7 किलोमीटर लंबे सेतु का निर्माण किया जाएगा।
- महत्त्व: पूरी होने के पश्चात् यह ऐतिहासिक परियोजना चारों द्वीपों के बीच कनेक्टिविटी को सुव्यवस्थित करेगी, जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार सृजन में सहायता मिलेगी और माले क्षेत्र में समग्र शहरी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- घोषणा: जल्द ही भारत और मालदीव के बीच एयर बबल समझौते (Air Bubble Agreement) के तहत अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की शुरुआत की जाएगी।
- महत्त्व: यह दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थित पहला एयर बबल (Air Bubble) होगा, इस घोषणा के साथ, दोनों देशों के बीच नियमित रूप से निर्धारित उड़ानें शुरू हो जाएंगी, जो दोनों देशों के पारंपरिक रूप से बेहतर संबंधों को और मज़बूत बनाएगा। साथ ही यह एयर बबल मालदीव में पर्यटन के आगमन और राजस्व को बढ़ाने में मदद करेगा।
- घोषणा: भारत और मालदीव के बीच जल्द ही कार्गो फेरी (Cargo Ferry) सेवाएँ शुरू की जाएगी।
- महत्त्व: कार्गो फेरी (Cargo Ferry) सेवा के माध्यम से दोनों देशों के बीच समुद्री संपर्क में बढ़ोतरी होगी और इससे भारत तथा मालदीव के व्यापारियों को भी सहायता मिलेगी।
- घोषणा: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मालदीव को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति हेतु निर्धारित कोटा को नवीनीकृत करने के निर्णय से भी अवगत कराया।
- ध्यातव्य है कि इन आवश्यक वस्तुओं में खाद्य पदार्थों के अलावा निर्माण कार्य के लिये आवश्यक वस्तुएँ भी शामिल हैं।
- महत्त्व: यह कोटा मालदीव में खाद्य सुरक्षा और निर्माण कार्य के लिये आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का आश्वासन देता है और इस प्रकार आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित कर मालदीव में इन वस्तुओं के मूल्य को स्थिरता प्रदान की जा सकेगी।
भारत की सहायता के निहितार्थ
- भारत सरकार की इस घोषणा के माध्यम से मौजूदा कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बीच दोनों देशों के संबंधों को और अधिक मज़बूत करने में सहायता मिलेगी।
- ध्यातव्य है कि मालदीव, भारत द्वारा अपने पड़ोसी देशों को दी गई आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है, जब वैश्विक स्तर पर महामारी ने आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया था तो भारत ने मई माह में 580 टन खाद्य पदार्थ समेत मालदीव को आवश्यक खाद्य और निर्माण सामग्री की आपूर्ति की थी। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में और मज़बूती आई थी।
- ध्यातव्य है की मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान भारत-मालदीव संबंधों में कुछ गिरावट दर्ज की गई थी और मालदीव चीन के काफी करीब जाता दिखाई दे रहा है, हालाँकि मालदीव के नए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह का कार्यकाल शुरू होने के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में सुधार आया है।
- मालदीव रणनीतिक रूप से भारत के नज़दीक और हिंद महासागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर स्थित है। मालदीव में चीन जैसी किसी प्रतिस्पर्द्धी शक्ति की मौजूदगी भारत के सुरक्षा हितों के संदर्भ में उचित नहीं है, इसलिये ऐसे निर्णय काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
- चीन वैश्विक व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान के माध्यम से मालदीव जैसे देशों में तेज़ी से अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। ऐसे में मालदीव के ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) में निवेश करके मालदीव में चीन के वर्चस्व को कम करने में मदद मिल सकती है।
मालदीव
- मालदीव भारतीय उपमहाद्वीप के करीब हिंद महासागर में स्थित 1,192 प्रवाल द्वीपों का एक समूह है। यहाँ तकरीबन 300,000 लोग निवास करते हैं जो 192 द्वीपों पर रहते हैं। शेष द्वीपों पर अब तक मानवीय निवास संभव नहीं हो पाया है।
- उल्लेखनीय है यहाँ के लगभग 90 प्रतिशत रहने योग्य द्वीपों को पर्यटक रिसॉर्ट्स के रूप में विकसित किया गया है और शेष द्वीपों को कृषि अथवा अन्य आजीविका उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है। इसलिये पर्यटन इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- यहाँ का सबसे बड़ा धार्मिक संप्रदाय मुस्लिम धर्म है। मालदीव की राजधानी माले है, जो देश का सबसे अधिक आबादी वाला शहर है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
मतदान में ब्लॉकचेन तकनीक
प्रिलिम्स के लिये:ब्लॉकचेन तकनीक मेन्स के लिये:मतदान में ब्लॉकचेन तकनीक |
चर्चा में क्यों?
‘निर्वाचन आयोग’ (Election Commission- EC) के अधिकारी ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग सुदूरवर्ती क्षेत्रों में वोटिंग में करने की संभावना की तलाश रहे हैं, ताकि मतदान से जुड़ी भौगोलिक बाधाओं को दूर किया जा सके।
प्रमुख बिंदु:
- विभिन्न राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से से मांग की है कि जो प्रवासी मज़दूर मतदान करने से वंचित रह जाते हैं, उनके मतदान को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- प्रवासी मज़दूर, चुनाव के दौरान अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिये घर नहीं जा पाते हैं, इसलिये उन्हें उस शहर; जिसमें वे काम कर रहे हैं, से अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिये मतदान करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
ब्लॉकचेन तकनीक:
- ब्लॉकचेन एक प्रणाली है जिसमें रिकॉर्ड का डेटाबेस एक ही समय में कई कंप्यूटरों पर दिखाई देता है, भले ही वह किसी भी नई डिजिटल जानकारी के साथ अपडेट किया गया हो।
- यह अनधिकृत हस्तक्षेप के बिना रिकॉर्ड रखने, वास्तविक-समय लेन देन को सक्षम बनाने, पारदर्शिता और लेखांकन के योग्य प्रणाली का एक विलक्षण संयोजन प्रदान करता है।
- ब्लॉकचेन तकनीक का प्रारंभिक और प्राथमिक उपयोग क्रिप्टोकरेंसी (जैसे बिटकॉइन) लेन देन की निगरानी के लिये था। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में इसके अन्य उपयोग तथा अनुप्रयोग उभर कर सामने आए हैं।
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकार द्वारा ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग भू-अभिलेखों के रखरखाव में किया जा रहा है।
मतदान में ब्लॉकचेन तकनीक:
- चुनाव सुरक्षा, मतदाता पंजीकरण की सत्यनिष्ठा, मतदाता की पहुँच और मतदाताओं की बढ़ती संख्या जैसी चिंताओं ने सरकारों को ब्लॉकचेन-आधारित मतदान प्रणाली के उपयोग पर विचार करने को प्रेरित किया है, ताकि मतदान प्रणाली में विश्वास बढ़ाया जा सके और आवश्यक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के साधन के रूप में इसका प्रयोग किया जा सके।
- यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का इस्तेमाल 1970 के दशक से अलग-अलग रूपों में किया जाता रहा है, जो पेपर आधारित प्रणालियों की तुलना में मौलिक रूप से लाभदायक होती हैं। वर्तमान में प्रभावी ई-वोटिंग के लिये ब्लॉकचेन की व्यवहार्यता का पता लगाया जा रहा है।
- चुनाव आयोग द्वारा सेवा क्षेत्र में कार्यरत मतदाताओं (सशस्त्र बलों, केंद्रीय अर्द्ध- सैनिक बलों और विदेश में भारतीय मिशनों में तैनात केंद्र सरकार के अधिकारियों से मिलकर) के लिये एकतरफा इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है। यथा वर्ष 2019 के लोक सभा चुनावों में 'इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम' (Electronically Transmitted Postal Ballot System-ETPBS) का प्रयोग किया गया।
- ब्लॉकचेन तकनीक में पाई जाने वाली विशेषताओं यथा विकेंद्रीकृत, पारदर्शी, अपरिवर्तनीय और एन्क्रिप्टेड प्रणाली आदि के कारण यह तकनीक चुनावी छेड़छाड़ को कम करने और मतदान प्रतिशत को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
संभव कार्यप्रणाली (Possible Working):
- दूरस्थ स्थान पर ब्लॉकचेन तकनीक के माध्यम से मतदान प्रक्रिया में मतदान स्थल पर बहु-स्तरित आईटी सक्षम प्रणाली (बायोमैट्रिक्स और वेब कैमरों की मदद से) का उपयोग करके मतदाता की पहचान की जाएगी।
- 'मतदाता पहचान प्रणाली' स्थापित होने के बाद, एक ब्लॉकचेन-तकनीक आधारित व्यक्तिगत ई-बैलेट पेपर उत्पन्न किया जाएगा।
- जब वोट डाला जाएगा तो बैलेट को सुरक्षित रूप से एन्क्रिप्ट किया जाएगा और एक ब्लॉक चेन हैशटैग (#) जेनरेट किया जाएगा। यह हैशटैग अधिसूचना विभिन्न हितधारकों यानी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को भेजी जाएगी।
चुनौतियाँ:
- ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी पर आधारित कोई भी नई प्रौद्योगिकी प्रणाली साइबर हमलों और अन्य सुरक्षा सुभेद्यता के लिये संवेदनशील है।
- ये तकनीक वोटों की हेरफेर, कागजी निशान मिटाने या चुनावी अराजकता का कारण बन सकती है।
- इसके अलावा, मतदाता सत्यापन प्रणाली जिसमें बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। चेहरे की पहचान आधारित सत्यापन प्रणाली मतदाताओं में पहचान को लेकर अनेक प्रकार के अफवाह तथा भ्रम उत्पन्न कर सकती है।
- ब्लॉकचेन-आधारित मतदान प्रणाली गोपनीयता के जोखिम और चिंताओं को भी बढ़ा सकती है।
आगे की राह:
- किसी भी नवीन तकनीक में सुरक्षा चिंताओं और तकनीकी नवाचार के बीच एक सामंजस्य बनाने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ब्लॉकचेन-आधारित मतदान प्रणाली में अत्यंत दक्ष प्रौद्योगिकी प्रदाता और प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिये।
- चुनाव आयोग को ब्लॉकचेन-आधारित मतदान प्रणाली को सर्वप्रथम लघु स्तर पर लागू करने का परीक्षण करता चाहिये तथा बाद में व्यापक पैमाने पर संभावना को तलाश करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन
प्रिलिम्स के लिये:नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन मेन्स के लिये:रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (Naval Innovation and Indigenisation Organisation-NIIO) का शुभारंभ किया है।
प्रमुख बिंदु:
- नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (NIIO) का शुभारंभ करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘युद्धपोतों के स्वदेशी डिज़ाइन में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल करने के बाद अब नौसेना को सैन्य हथियार और उपकरण के डिज़ाइन और विकास पर ध्यान देना चाहिये।’
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नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (NIIO)
- नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (NIIO) आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण को प्रेरित करने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र एवं उद्योग के साथ परस्पर संवाद हेतु सैन्य
- हथियारों और उपकरणों के अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के लिये समर्पित संरचनाओं का निर्माण करता है।
- यह मुख्य तौर पर एक त्रि-स्तरीय संगठन होगा।
- इसमें पहले स्तर पर नौसेना प्रौद्योगिकी त्वरण परिषद (Naval Technology Acceleration Council-N-TAC) है, जो कि नवाचार एवं स्वदेशीकरण दोनों पहलुओं को एक साथ लाएगी और शीर्ष स्तरीय निर्देश उपलब्ध कराएगी।
- दूसरे स्तर पर नौसेना प्रौद्योगिकी त्वरण परिषद (N-TAC) का एक कार्य समूह परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- तीसरे स्तर पर उभरती प्रौद्योगिकी के समावेशन के लिये एक प्रौद्योगिकी विकास त्वरण सेल (Technology Development Acceleration Cell-TDAC) का भी सृजन किया गया है।
महत्त्व
- रक्षा अधिग्रहण नीति 2020 के मसौदे में सेना मुख्यालय द्वारा विद्यमान स्रोतों के भीतर एक नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन की स्थापना किये जाने की परिकल्पना की गई थी।
- ध्यातव्य है कि भारतीय नौसेना के पास पहले से ही एक कार्यशील स्वदेशीकरण निदेशालय (Directorate of Indigenisation-DoI) है और नवसृजित संगठन वर्तमान में जारी स्वदेशीकरण पहलों को और आगे बढ़ाएगा तथा नवाचार पर भी फोकस करेगा।
भारतीय नौसेना में स्वदेशीकरण
- नौसेना के उप-प्रमुख वाइस एडमिरल अशोक कुमार के अनुसार, वर्तमान में भारत में छोटी नौकाओं से लेकर विमानवाहक पोत तक सभी आकारों और प्रकारों के 130 से अधिक जहाज़ डिज़ाइन किये जा रहे हैं।
- वर्तमान में भारत में हर तरह के जहाज़ और पनडुब्बी का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें परमाणु पनडुब्बी भी शामिल हैं।
सैन्य क्षेत्र में स्वदेशीकरण पर ज़ोर
- बीते दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 101 वस्तुओं की सूची की घोषणा की है, जिनके आयात पर रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रतिबंध लगाया जाएगा।
- रक्षा मंत्रालय के हालिया निर्णय का अर्थ है कि सशस्त्र बल, नौसेना और वायु सेना के लिये इन 101 वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू विनिर्माताओं के माध्यम से ही की जाएगी।
- घोषित नियमों के अनुसार, यह घरेलू निर्माता, निजी क्षेत्र से भी हो सकता है और रक्षा क्षेत्र का कोई सार्वजनिक उपक्रम भी हो सकता है।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान संबंधी राहत पैकेज की घोषणा करते हुए मई माह में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा क्षेत्र से संबंधित इस प्रकार की सूची बनाने के संकेत दिये थे।
- इस प्रकार सरकार द्वारा लिये गए बीते कुछ निर्णयों से यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि सरकार रक्षा प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण पर ज़ोर दे रही है।
स्रोत: पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़राइल-यूएई शांति समझौता
प्रिलिम्स के लिये:वेस्ट बैंक मेन्स के लिये:इज़राइल-यूएई शांति समझौता |
चर्चा में क्यों?
इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात ने ऐतिहासिक 'वाशिंगटन-ब्रोकेड समझौते' (Washington-brokered Deal) के तहत पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिये सहमति व्यक्त की है।
प्रमुख बिंदु:
- ऐसी घोषणा करने वाला यूएई खाड़ी क्षेत्र का प्रथम तथा तीसरा अरब देश है जिसके इज़राइल के साथ सक्रिय राजनयिक संबंध हैं।
- इससे पहले मिस्र ने वर्ष 1979 में तथा जॉर्डन ने वर्ष 1994 में इज़राइल के साथ ‘शांति समझौते’ किये थे।
- संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल दोनों पश्चिम एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं।
इज़राइल-यूएई शांति समझौता:
- ‘वाशिंगटन-ब्रोकेड समझौता’ जिसे ‘इज़राइल-यूएई शांति समझौता’ (Israel-UAE Peace Deal) के रूप में भी जाना जाता है, यह इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों को अपने हिस्सों में को जोड़ने की योजना को ‘निलंबित’ कर देगा।
- समझौते के तहत इज़राइल, वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से पर कब्जा करने की अपनी योजना को निलंबित कर देगा।
- वेस्ट बैंक, इज़राइल और जॉर्डन के बीच स्थित है। इसका एक प्रमुख शहर फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी ‘रामल्लाह’ (Ramallah) है।
- इज़राइल ने छह-दिवसीय अरब-इज़राइली युद्ध-1967 में इसे अपने नियंत्रण में ले लिया था और बाद के वर्षों में वहाँ बस्तियाँ स्थापित की हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल द्वारा एक संयुक्त बयान जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि आने वाले हफ्तों में प्रतिनिधिमंडल सीधी उड़ानों, सुरक्षा, दूरसंचार, ऊर्जा, पर्यटन और स्वास्थ्य देखभाल के सौदों पर हस्ताक्षर करेंगे।
समझौते की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1971 से संयुक्त अरब अमीरात फिलिस्तीनियों की भूमि पर इज़राइल के नियंत्रण को मान्यता नहीं देता था।
- हाल के वर्षों में ईरान के साथ साझा दुश्मनी और लेबनान के आतंकवादी समूह हिज़्बुल्लाह के कारण खाड़ी अरब देशों और इज़राइल के बीच निकटता आ गई है।
- आतंकवादी समूह ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ और ‘हमास’ के कारण भी दोनों देशों के बीच निकटता बढ़ी है।
वैश्विक प्रतिक्रिया तथा समझौते का प्रभाव:
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इज़राइल:
- प्रस्तावित समझौता, वेस्ट बैंक के अलावा अन्य क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करते हुए इज़राइल के वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से पर कब्जा करने की अपनी योजना को निलंबित कर देगा।
- यह घोषणा इज़राइल के अरब देशों के साथ संबंधों की निकटता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करती है।
- यह समझौता इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को एक ऐसे समय में राजनीतिक रूप से मदद कर सकता है जब इज़राइल की गठबंधन सरकार को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
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फिलिस्तीन:
- फिलिस्तीनी इस्लामी राजनीतिक संगठन ‘हमास’ ने घोषणा को यह कहते हुए नकार दिया है कि यह सौदा फिलिस्तीनीयों के हित में नहीं है।
- फिलिस्तीन स्वतंत्रता संघर्ष, अरब राष्ट्रों के विश्वास तथा सहयोग पर आधारित था। प्रस्तावित समझौते को फिलिस्तीन के लिये एक जीत और हार दोनों के रूप में चिह्नित किया जा रहा है।
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अमेरिका:
- समझौते को नवंबर में संयुक्त राज्य अमेरिका में होने वाले चुनाव से पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक राजनयिक जीत के रूप में माना जा रहा है।
- हालाँकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप के प्रयास न तो अफगानिस्तान में युद्ध को समाप्त करने में और न ही इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच शांति लाने में अभी तक सफल रहे हैं।
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यूएई:
- वाशिंगटन में यूएई के राजदूत ने कहा कि इज़राइल के साथ ऐतिहासिक शांति समझौता कूटनीतिक जीत है और इसे अरब-इज़राइल संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण अग्रिम के रूप में माना जाना चाहिये।
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मिस्र:
- मिश्र ने समझौते की प्रशंसा की है तथा इसे महान हितों की दिशा में एक पहल बताया है।
निष्कर्ष:
- यह समझौता मध्य पूर्व में शांति के लिये एक ऐतिहासिक दिन और महत्त्वपूर्ण कदम है। मध्य-पूर्व को दो सबसे प्रगतिशील और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रत्यक्ष संबंध शुरू होने से आर्थिक विकास के साथ ही लोगों-से-लोगों के संबंधों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
रूस द्वारा निर्मित COVID-19 वैक्सीन: स्पुतनिक वी
प्रिलिम्स के लिये:COVID-19, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन मेन्स के लिये:रूस द्वारा निर्मित वैक्सीन स्पुतनिक वी का चिकित्सीय विज्ञान एवं महामारी के संदर्भ में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, रूस COVID-19 वैक्सीन को आधिकारिक रूप से पंजीकृत करने और इसे उपयोग के लिये तैयार करने वाला पहला देश बन गया है।
प्रमुख बिंदु
- रूस द्वारा निर्मित वैक्सीन को स्पुतनिक वी (Sputnik V) नाम दिया गया है, जिसे सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किये गए प्रथम कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह (Artificial Earth Satellite) स्पुतनिक-आई (Sputnik-I) के नाम पर रखा गया है।
- यह सफलतापूर्वक अनुमोदन प्राप्त करने वाली पहली COVID-19 वैक्सीन है।
- हालांकि, इससे पूर्व एक चीनी वैक्सीन के ‘सीमित उपयोग' (Limited Use) के लिये मंज़ूरी दी गई थी। जो एक एडिनोवायरस वेक्टर वैक्सीन (Adenovirus Vector Vaccin) है जिसे केवल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People’s Liberation Army) के सैनिकों को देने की मंज़ूरी दी गई है।
- भारत की कोवाक्सिन (Covaxin) को मानव नैदानिक परीक्षणों ( Human Clinical Trials) के लिये अनुमोदित किया गया है। इसके अलावा एक अन्य भारतीय वैक्सीन ZyCoV-D क्लिनिकल परीक्षण के चरण I / II में है।
- इस वैक्सीन को रूस के रक्षा मंत्रालय के सहयोग से मास्को के गामलेया संस्थान (Moscow’s Gamaleya Institute) द्वारा विकसित किया गया है।
- वैक्सीन SARS-CoV-2 प्रकार के एडिनोवायरस के डीएनए पर आधारित है, जो एक सामान्य कोल्ड/ज़ुकाम का वायरस है।
- वैक्सीन में रोगज़नक़ (Pathogen) की एक छोटी मात्रा को वितरित करने के लिये एक कमज़ोर वायरस का प्रयोग किया गया जो एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्पन्न करता है।
- वैक्सीन को दो खुराक में दिया गया है जिसमे दो प्रकार के मानव एडिनोवायरस(Human Adenovirus) विद्यमान हैं, प्रत्येक में नए कोरोनोवायरस का एस-एंटीजन (S-antigen) मौजूद है, जो मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है एवं प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है।
- रूसी अधिकारियों का कहना है कि सितंबर माह में बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन शुरू होगा, तथा बड़े पैमाने पर टीकाकरण का कार्य अक्तूबर माह में शुरू हो सकता है।
एडिनोवायरस वेक्टर वैक्सीन:
- इस वैक्सीन में, एडिनोवायरस को एक उपकरण के रूप में उपयोग किया गया है जो जीन या वैक्सीन एंटीजन को लक्षित ऊतक तक पहुँचाने का कार्य करता है।
- एडिनोवायरस: एडिनोवायरस(Adenoviruses- ADVs) 70-90 नैनोमीटर आकार के डीएनए वायरस होते हैं, जो मनुष्यों में कई बीमारियों जैसे सर्दी, श्वसन संक्रमण आदि को उत्पन्न करते हैं।
- वैक्सीन के लिये एडिनोवायरस को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि एडिनोवायरस का DNA दोहरी कुंडली युक्त (Double Stranded) होता है जो आनुवंशिक रूप से अधिक स्थिर है तथा इंजेक्शन के बाद उनके बदलने की संभावना कम होती है।
- रेबीज़ वैक्सीन एक एडिनोवायरस वैक्सीन है।
- हालांकि, एडिनोवायरस वैक्सीन की कुछ कमियाँ हैं जैसे मानव में पहले से मौजूद प्रतिरक्षा (Pre-existing Immunity), ज्वलनशील प्रतिक्रियाएँ (Inflammatory Responses)आदि।
- जिस प्रकार सामान्यतः मानव शरीर वास्तविक वायरल संक्रमणों के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करता है उसी प्रकार वह एडिनोवायरस वेक्टर के लिये भी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को विकसित कर लेता है। चूँकि एडिनोवायरस वैक्टर एक प्राकृतिक वायरस है, जो कुछ मनुष्यों के शरीर में पहले से ही मौजूद हो सकता है इसलिये यह वैक्सीन सभी के लिये कारगर साबित नहीं हो सकती है।
वैक्सीन से संबंधित चिंताएँ:
- विशेषज्ञों द्वारा वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर चिंता व्यक्त की गई है क्योंकि इसके शीघ्र उत्पादन एवं इससे संबंधित प्रकाशित आंकड़ों/तथ्यों की कमी है।
- रूस द्वारा केवल नैदानिक परीक्षण के चरण -1 के परिणामों को सार्वजनिक किया गया है, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि चरण-1 वांछित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्पन्न करने में सफल रहा है।
- मानव परीक्षण, जिन्हें सामान्य परिस्थितियों में पूरा होने में कई वर्ष लगते हैं, स्पुतनिक वी वैक्सीन के संदर्भ में दो महीने से भी कम समय में पूरे हो गए हैं। मानव परीक्षण के बाद के चरण महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वैक्सीन की प्रभावकारिता विभिन्न जनसंख्या समूहों पर भिन्न-भिन्न हो सकती है।
- हालाँकि, रूस का ऐसा दावा है कि यह इस कारण संभव हुआ है क्योंकि COVID-19 वैक्सीन के उपयोगकर्त्ता मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS) बीमारी (जोकि एक प्रकार के कोरोना वायरस से होती है) के उपयोगकर्त्ताओं से समानता रखते हैं जिसके लिये पहले ही बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जा चुका है।
भारत में उपयोग:
- रूस ने दावा किया है कि भारत सहित लगभग 20 देशों ने स्पुतनिक वी वैक्सीन में रुचि दिखाई है।
- भारत द्वारा COVID-19 वैक्सीन के विकास के लिये अमेरिका के साथ भी साझेदारी की गई है।
- भारत में वैक्सीन के लिये मंज़ूरी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा दी गई है।
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के तहत, भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (National Regulatory Authority-NRA) है।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत, CDSCO ड्रग्स को मंज़ूरी प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार निकाय है इसके अलावा यह विशषज्ञों की सलाह पर क्लिनिकल ट्रायल का संचालन, ड्रग्स के लिये मानकों को पूरा करना, देश में आयातित ड्रग्स की गुणवत्ता पर नियंत्रण तथा राज्य ड्रग कंट्रोल संगठनों की गतिविधियों का समन्वय करता है।
- CDSCO रूस से मानव परीक्षण के बाद के चरण अर्थात चरण-II और चरण-III के परीक्षणों को भारतीय जनसंख्या पर करने के लिये कह सकता है।
- यह भारत के बाहर विकसित सभी वैक्सीन की सामान्य आवश्यकता है।
- CDSCO असाधारण स्थिति को देखते हुए बिना बाद के चरण के परीक्षणों (Late-Phase Trials) के वैक्सीन के प्रयोग के संदर्भ में आपातकालीन प्राधिकरण भी दे सकता है।
- रेमेडिसविर दवा (Remdesivir Drug) को हाल ही में नए कोरोनोवायरस रोगियों पर एक चिकित्सीय के रूप में इस्तेमाल करने के लिये इसी प्रकार की आपातकालीन मंज़ूरी प्रदान की गई है।
- हालाँकि, यह संभावना नहीं है क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन दी जाती है जिसमें बहुत अधिक जोखिम है।
- वैक्सीन के निर्माण में भी समस्याएँ हैं क्योंकि भारत में अभी इसके उत्पादन के लिये किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं हुआ है।
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी, वैक्सीन का बड़े स्तर पर उत्पादन करने के लिये पहले ही निर्माताओं के साथ टाई-अप में प्रवेश कर चुकी है। अन्य भारतीय कंपनियों ने भी इसी तरह के समझौते किये हैं लेकिन रूस के साथ ऐसा कोई समझौता भारत द्वारा अभी नहीं किया गया है।
वैक्सीन का विकास क्रम:
- वैक्सीन के विकास चक्र में सामान्यतः निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं-
- प्रारंभिक/अनुसंधान चरण (Exploratory stage)
- पूर्व नैदानिक चरण (Pre-clinical stage)
- नैदानिक विकास (Clinical development)
- विनियामक समीक्षा और अनुमोदन (Regulatory review and approval)
- विनिर्माण (Manufacturing)
- गुणवत्ता नियंत्रण (Quality control)
- वैक्सीन के निर्माण क्रम में नैदानिक परीक्षण (Clinical trials) तीन चरण की प्रक्रिया है-
- मनुष्यों में नैदानिक परीक्षणों को तीन चरणों में वर्गीकृत किया जाता है: चरण I, चरण II और चरण III कुछ देशों में इनमें से किसी भी चरण के परीक्षण को करने के लिये औपचारिक विनियामक अनुमोदन आवश्यक है।
- नैदानिक परीक्षण के चरण I में स्वस्थ वयस्कों की छोटी संख्या (लगभग 20) पर वैक्सीन का प्रारंभिक परीक्षण किया जाता है इस चरण में वैक्सीन के गुणों एवं इसकी सहनशीलता, नैदानिक प्रयोगशाला और औषधीय पैरामीटर का परीक्षण किया जाता है। प्रथम चरण के अध्ययन मुख्य रूप से सुरक्षा से संबंधित हैं।
- द्वितीय चरण में बड़ी संख्या में विषयों को शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य लक्षित आबादी एवं इसकी सामान्य सुरक्षा (आमतौर पर इम्युनोजेनेसिटी) के संदर्भ में वैक्सीन की उत्पादन क्षमता को विकसित किया जाना है।
- चरण III के परीक्षणों में एक वैक्सीन की सुरक्षात्मक प्रभावकारिता एवं उसकी सुरक्षा का पूरी तरह से आकलन करने की आवश्यकता होती है। चरण III नैदानिक परीक्षण का एक महत्त्वपूर्ण चरण है क्योंकि इस चरण से प्राप्त डेटा जो उत्पाद की सुरक्षा तथा उत्पादकता से संबंधित होते हैं, के आधार पर लाइसेंस प्रदान करने के लिये निर्णय लिये जाते हैं।
- कई वैक्सीन स्वीकृत और लाइसेंस प्राप्त करने के बाद चरण IV की औपचारिक प्रक्रिया से गुजरती है।
आगे की राह:
वर्तमान समय में जब संपूर्ण विश्व महामारी के लिये एक उचित वैक्सीन की खोज में जुटा हुआ है ऐसे समय में रूस द्वारा वैक्सीन का निर्माण एक स्वागत योग्य कदम है, इसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को निर्मातताओं द्वारा प्राथमिकता के आधार पर संबोधित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा विनिर्माण एवं वितरण प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाए ताकि त्वरित एवं कुशल तरीके से वैक्सीन को सभी को वितरित किया जा सके।