भारतीय अर्थव्यवस्था
मुद्रास्फीति
चर्चा में क्यों?
अप्रैल में जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में खुदरा मुद्रास्फीति छह महीने के अपने उच्च स्तर 2.92% पर पहुँच गई।
प्रमुख बिंदु
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मार्च में 2.86% था जो अप्रैल में बढ़कर 2.92 हो गया।
- सूचकांक में खाद्य और पेय पदार्थों के क्षेत्र में मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 1.38% हो गई, जबकि मार्च में यह 0.66% थी।
- इसी प्रकार ईंधन और बिजली खंड में मुद्रास्फीति मार्च में 2.34% थी जो अप्रैल में 2.56% हो गई।
- हेडलाइन इन्फ्लेशन किसी विशिष्ट अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति होती है, जिसमें कई वस्तुएँ शामिल होती हैं।
- कोर मुद्रास्फीति में अस्थिर वस्तुएँ शामिल नहीं होती हैं। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थ (सब्जियाँ सहित) तथा ईंधन एवं बिजली शामिल होती है।
- कोर मुद्रास्फीति= हेडलाइन मुद्रास्फीति- खाद्य तथा ईंधन मुद्रास्फीति
- CPI की हेडलाइन मुद्रास्फीति उम्मीद से थोड़ी कम रही जो अर्थव्यवस्था में बढ़ती मंदी की तरफ इशारा करती है।
- इसके अलावा, फलों और सब्जियों में भी खाद्य मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है।
- मार्च में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों की मुद्रास्फीति 4.61% थी जो अप्रैल में घटकर 4.27% पर पहुँच गई।
- इसी प्रकार कपड़े और फुटवियर क्षेत्र में मुद्रास्फीति जो मार्च में 2.52% थी अप्रैल में घटकर 2.01% रही।
- हाउसिंग क्षेत्र में भी मार्च में मुद्रास्फीति 4.93% थी एवं अप्रैल में घटकर 4.76% रह गई।
मुद्रास्फीति
- जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। भारत अपनी मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर करता है- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI)।
- अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2- 3% की मुद्रास्फीति दर अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होती है।
- मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांगजनित कारक एवं लागतजनित कारक।
- अगर मांग के बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) कहलाती है।
- अगर उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) कहलाती है।
मुद्रास्फीति के प्रभाव (Effects of Inflation)
- निवेशकर्त्ताओं पर
निवेशकर्त्ता दो प्रकार के होते है। पहले प्रकार के निवेशकर्त्ता वे होते है जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते है। सरकारी प्रतिभूतियों से निश्चित आय प्राप्त होती है तथा दूसरे निवेशकर्त्ता वे होते है जो संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्से खरीदते है। मुद्रास्फीति से निवेशकर्त्ता के पहले वर्ग को नुकसान तथा दूसरे वर्ग को फायदा होगा।
- निश्चित आय वर्ग पर
निश्चित आय वर्ग में वे सब लोग आते हैं जिनकी आय निश्चित होती है जैसे- श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी आदि। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ती है जिसका निश्चित आय वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- ऋणी एवं ऋणदाता पर
जब ऋणदाता रुपए किसी को उधार देता है तो मुद्रास्फीति के कारण उसके रुपए का मूल्य कम हो जाएगा। इस प्रकार ऋणदाता को मुद्रास्फीति से हानि तथा ऋणी को लाभ होता है।
- कृषकों पर
मुद्रास्फीति का कृषक वर्ग पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि कृषक वर्ग उत्पादन करता है तथा मुद्रास्फीति के दौरान उत्पाद की कीमतें बढ़ती हैं। इस प्रकार मुद्रास्फीति के दौरान कृषक वर्ग को लाभ मिलता है।
- बचत पर
मुद्रास्फीति का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय में वृद्धि होती है। इससे बचत की संभावना कम हो जाएगी। दूसरी ओर मुद्रास्फीति से मुद्रा के मूल्य में कमी होगी और लोग बचत करना नहीं चाहेंगे।
- भुगतान संतुलन
मुद्रास्फीति के समय वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। इसके कारण हमारे निर्यात महँगे हो जाएंगे तथा आयात सस्ते हो जाएंगे। नियार्त में कमी होगी तथा आयत में वृद्धि होगी जिसके कारण भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाएगा।
- करों पर
मुद्रास्फीति के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में बहुत अधिक वृद्धि होती है। सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिये नए-नए कर लगाती है तथा पुराने करों में वृद्धि करती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण करों के भार में वृद्धि होती है।
- उत्पादकों पर
मुद्रास्फीति के कारण उत्पादक तथा उद्यमी वर्ग को लाभ होता है क्योंकि उत्पादक जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं उनकी कीमतें बढ़ रही होती हैं तथा मज़दूरी में भी वृद्धि कीमतों की तुलना में कम होती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति से उद्यमी तथा उत्पादकों का फायदा होता है।
मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय
- सरकार ने मुद्रास्फीति के नियंत्रण हेतु कई उपाय किये हैं-
- अनिवार्य वस्तुओं, खासकर दालों के मूल्य में अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु बजट में मूल्य स्थिरता कोष में बढ़ा हुआ आवंटन।
- बाज़ार में समुचित दखल हेतु 20 लाख टन दालों का ऑफर स्टॉक रखने का अनुमोदन।
- अनिवार्य वस्तु अधिनियम के अंतर्गत दालों, प्याज, खाद्य तेलों और खाद्य तेल के बीजों हेतु स्टॉक सीमा लागू करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अधिकृत करना।
- उत्पादन को प्रोत्साहित कर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु ताकि मूल्यों में सुधार हो।
- उच्चतर मूल्य की घोषणा।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
तटीय विनियमन क्षेत्र
चर्चा में क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone-CRZ) के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में केरल के एर्नाकुलम में मरादु नगरपालिका में पाँच अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स को एक महीने के भीतर गिराने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने यह आदेश केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (Kerala Coastal Zone Management Authority-KCZMA) द्वारा दायर एक विशेष याचिका पर पारित किया है।
- यद्यपि CRZ नियम केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बनाए गए हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन उनके तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों के माध्यम से राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
- राज्यों को केंद्रीय नियमों के अनुसार अपने स्वयं के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं को तैयार करना होता है।
तटीय नियमन ज़ोन (CRZ)
- CRZ को ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय (जिसका नाम अब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर दिया गया है) द्वारा फरवरी-1991 में अधिसूचित किया गया था।
- इसका मुख्य उद्देश्य देश के संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में गतिविधियों को नियमित करना है।
- तटीय क्षेत्र का हाई टाइड लाइन (HTL) से 500 मीटर तक का क्षेत्र तथा साथ ही खाड़ी, एस्चूरिज, बैकवॉटर और नदियों के किनारों को CRZ क्षेत्र माना गया है, लेकिन इसमें महासागर को शामिल नहीं किया गया है।
- इसके अंतर्गत तटीय क्षेत्रों को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा गया है-
1. CRZ - 1
यह कम और उच्च ज्वार लाइन के बीच का पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं, जो तट के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है।
2. CRZ - 2
यह क्षेत्र तट के किनारे तक फैला हुआ होता है।
3. CRZ – 3
इसके अंतर्गत CRZ 1 और 2 के बाहरी ग्रामीण और शहरी क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र में कृषि से संबंधित कुछ खास गतिविधियों को करने की अनुमति दी गई है।
4. CRZ – 4
यह जलीय क्षेत्र में क्षेत्रीय सीमा (territorial limits) तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मत्स्य पालन जैसी गतिविधियों की अनुमति है।
विरोध का कारण
- राज्य का कहना था कि इन नियमों को यदि सख्ती से लागू किया जाता है, तो तट के करीब रहने वाले लोगों के लिये बेहतर घर बनाने और बुनियादी विकासात्मक कार्यों को पूरा करने जैसे सामान्य कार्य की भी अनुमति नहीं होगी।
- 1991 के इन नियमों ने ओडिशा में POSCO स्टील प्लांट और प्रस्तावित नवी मुंबई हवाई अड्डे के औद्योगिक और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये भी बाधाएँ पैदा की थीं।
नियमों का उद्भव
- केंद्र ने 2011 में नए सिरे से CRZ नियमों को अधिसूचित किया जिसने कुछ चिंताओं को दूर किया। इसके तहत नवी मुंबई हवाई अड्डे के निर्माण के लिये छूट दी गई (POSCO परियोजना अन्य कारणों से विफल रही थी।)।
- परमाणु ऊर्जा विभाग की परियोजना जिसके तहत तट के पास परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना थी, को छूट दी गई थी।
- इसके बाद भी इन नियमों को अपर्याप्त पाया गया, हालाँकि 2014 में पर्यावरण मंत्रालय ने CRZ नियमों के संबंध में सुझाव देने के लिये पृथ्वी विज्ञान सचिव शैलेष नायक की अध्यक्षता में एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने 2015 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- इसके साथ ही चेन्नई स्थित नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट ने अस्पष्टता को दूर करने के लिये भारत की संपूर्ण तटरेखा के साथ एक नई उच्च-ज्वार रेखा (High-tide Line) को परिभाषित किया।
- भारतीय सर्वेक्षण (Survey of India) ने अलग से मुख्य रूप से आपदा प्रबंधन योजना के लिये उपयोग किये जाने वाले तटों के साथ खतरनाक रेखा (Hazard Line) को परिभाषित किया।
- कुछ अन्य इनपुट के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2018 में नए CRZ नियम जारी किये जिसने निर्माण को लेकर लगे कुछ प्रतिबंधों को हटा दिया, क्लीयरेंस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया तथा तटीय क्षेत्रों में पर्यटन को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा।
हालिया स्थिति
- इस साल जनवरी में सरकार ने सतत् विकास को बढ़ावा देने तथा तटीय वातावरण के संरक्षण के घोषित उद्देश्यों के साथ नए CRZ नियमों को अधिसूचित किया।
- CRZ-III (ग्रामीण) क्षेत्रों के लिये दो अलग-अलग श्रेणियों को निर्धारित किया गया है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, 2,161 प्रति वर्ग किमी. जनसंख्या घनत्व के साथ घनी आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों (CRZ-IIIA) में नो-डेवलपमेंट ज़ोन, अब उच्च-ज्वार स्तर (High Tide Level) से 50 मीटर है, जो पहले 200 मीटर निर्धारित था।
- CRZ-IIIB श्रेणी (2,161 प्रति वर्ग किमी. के नीचे जनसंख्या घनत्व वाले ग्रामीण क्षेत्रों) में उच्च-ज्वार रेखा से 200 मीटर तक फैले नो-डेवलपमेंट ज़ोन जारी रहेगा।
- नए नियमों में मुख्य भूमि के तट के पास के सभी द्वीपों और मुख्य भूमि के सभी बैकवाटर द्वीपों के लिये 20 मीटर का नो-डेवलपमेंट ज़ोन है।
केरल के मामले
- केरल में पहले भी CRZ मानदंडों का उल्लंघन करने के आरोप में रिसॉर्ट्स या अपार्टमेंट के गिराए जाने के आदेश दिये गए हैं। लेकिन हितधारकों ने या तो स्थगन आदेश (Stay Order) प्राप्त कर लिया या उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलती रही।
- 2014 में केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कोच्चि में DLF के एक तटवर्ती आवासीय परिसर को गिराने का आदेश दिया। बाद में एक डिवीज़न बेंच ने गिराए जाने के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन बिल्डर पर 1 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया।
- KCZMA की अपील के बाद जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने डिवीज़न बेंच के फैसले को बरकरार रखा।
- 2013 में उच्च न्यायालय ने अलाप्पुझा में 350 करोड़ रुपए की लागत से बनाए गए रिसॉर्ट को गिराने का आदेश दिया था। इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
- तिरुवनंतपुरम के कोवलम समुद्र तट पर 26 रिसॉर्ट्स और होटलों को CRZ नियमों के उल्लंघन के आरोप में नोटिस दिये गए हैं। कोच्चि नगर निगम क्षेत्र में नियमों के उल्लंघन के 35 मामले दर्ज किये गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- संयुक्त राष्ट्र का प्रथम मानव पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, 1972 को स्टाकहोम में संपन्न हुआ। इसी से प्रभावित होकर भारत ने पर्यावरण के संरक्षण के लिये पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वातावरण में घातक रसायनों की अधिकता को नियंत्रित करना व पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषण मुक्त रखने के उपाय करना है।
- इस अधिनियम के अन्य प्रमुख उद्देश्य हैं-
- स्टाकहोम सम्मेलन के नियमों को लागू करना।
- मानव, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों को संकट से बचाना।
- पर्यावरण का संरक्षण एवं सुधार।
- वर्तमान कानूनों के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरणों का गठन करना तथा उनके क्रियाकलापों के बीच समन्वय स्थापित करना।
- पर्यावरण संरक्षण हेतु सामान्य एवं व्यापक विधि निर्मित करना।
स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हुआवेई मुद्दा और भारत की चिंताएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक ब्रिटिश कैबिनेट मंत्री को चीनी कंपनी, 'हुआवेई' (Huawei) से जुड़े मामले की वज़ह से अपना पद खोना पड़ा।
प्रमुख बिंदु
- हुआवेई पर संदेह
- 'हुआवेई' उन देशों में खतरा उत्पन्न कर सकती है जहाँ यह संचालित है। उदाहरण के लिये ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वोडाफोन ने कंपनी के सॉफ्टवेयर में छिपे एक चोर दरवाज़े की पहचान की थी जो इटली में हुआवेई को फिक्स्ड लाइन नेटवर्क तक अनधिकृत पहुँच प्रदान कर सकता था।
- अमेरिकी सरकार ने हुआवेई को अपने नेटवर्क से प्रतिबंधित कर दिया है और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा कनाडा को भी ऐसा करने की सलाह दी है।
- अमेरिका का दावा है कि चीनी सरकार और सेना के साथ हुआवेई के करीबी संबंध उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा कर सकते हैं।
- न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने 5जी नेटवर्क की लॉन्चिंग में हुआवेई के उपकरणों के उपयोग को रोक दिया है।
- भारत का रुख
- भारत में नेटवर्क ऑपरेटरों के बीच 5जी नेटवर्क की लॉन्चिंग के विकल्पों (हुआवेई के संबंध में) को लेकर अब भी संशय की स्थिति बनी हुई है।
- आवश्यक सुरक्षा उपायों के मद्देनज़र भारत सरकार ने हुआवेई को 5G कनेक्टिविटी के लिये परीक्षण करने की अनुमति दी है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन डाइऑक्साइड अपने उच्चतम स्तर पर
चर्चा में क्यों?
मौना लोआ वेधशाला, हवाई (अमेरिका) के अनुसार, अब तक के दर्ज़ आँकड़ों की मानें तो पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड अपने उच्चतम स्तर है।
प्रमुख बिंदु
- वेधशाला द्वारा दर्ज़ आँकड़ों के अनुसार, CO2 का स्तर पार्ट्स पर मिलियन (Parts Per Million- PPM) 415 से भी अधिक था।
- पृथ्वी के वायुमंडल में CO2 का यह स्तर लगभग तीन मिलियन साल पहले था जब समुद्र का स्तर आज की तुलना में कई मीटर ऊपर था और अंटार्कटिका के कुछ हिस्से जंगल थे।
- इंसानों द्वारा किये जा रहे उत्सर्जन के कारण पूर्व-औद्योगिक समय से पृथ्वी की औसत सतह का तापमान पहले ही 1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ चुका है और पेरिस समझौते तथा इस समस्या के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ने के बावजूद हम कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सफल नहीं हुए हैं।
- 2018 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के मुताबिक, उत्सर्जन की वर्तमान दर यदि बरकरार रही तो ग्लोबल वार्मिंग 2030 से 2052 के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर को भी पार कर जाएगा। पूर्व-औद्योगिक युग के मुकाबले वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग 1.2 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) क्या है?
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है जिसमें 195 सदस्य देश हैं।
- इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
- IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
- IPCC आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) क्या है?
- यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
- इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है। इस संगठन का उद्देश्य मानव द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
- UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
- UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
विविध
होर्मुज जलडमरूमध्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही की फुजैराह, संयुक्त अरब अमीरात का एक अमीरात (Fujairah) के समीप चार वाणिज्यिक वाहनों में तोड़फोड़ की घटना सामने आई, यह अमीरात होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) के ठीक सामने स्थित दुनिया का सबसे बड़ा बंकरिंग हब (Bunkering Hubs) है।
- फुजैराह बंदरगाह यू.ए.ई. का एकमात्र ऐसा टर्मिनल है जो अरब सागर के तट पर स्थित है और इसी मार्ग से अधिकतर कच्चे तेल का निर्यात भी किया जाता है।
- यह घटना एक ऐसे समय में घटित हुई है जब गल्फ क्षेत्र में तनाव की स्थिति बनी हुई है। निश्चित रूप से इसके परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने की आशंका है।
- अमेरिका ने पहले ही इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है। इतना ही नहीं ईरान की ओर से उत्पन्न तथाकथित खतरे का सामना करने के लिये फारस की खाड़ी में अमेरिकी B-52 बमवर्षक विमानों की भी तैनाती की जा रही है।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2015 में ईरान ने P5 +1 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी) के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम पर संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) के रूप में संदर्भित एक दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की थी।
- इस समझौते के तहत ईरान ने अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने और इसके बदले आर्थिक प्रतिबंधों को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की।
- वर्ष 2018 में अमेरिका इस समझौते से पीछे हट गया और हाल ही में उसने ईरान के कच्चे तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों को भी समाप्त कर दिया। इन प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को संकट की ओर धकेल दिया है। हाल ही में ईरान ने वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के तहत अपने दायित्वों को वापस लेने और होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है।
होर्मुज जलडमरूमध्य
- इसे ओरमुज जलडमरूमध्य के नाम से भी जाना जाता है। यह फ़ारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है।
- यह जलडमरूमध्य 55 से 95 किमी. तक चौड़ा है और ईरान को अरब प्रायद्वीप से अलग करता है।
- इसमें प्रमुख रूप से कीश्म, होर्मुज और हेंजम (हेंग्म) द्वीप स्थित हैं।
- सऊदी अरब, ईरान, यू.ए.ई., कुवैत और इराक से निर्यात किये जाने वाले अधिकांश कच्चे तेल को इसी जलमार्ग के माध्यम से भेजा जाता है।
जलडमरूमध्य क्या है?
- यह एक ऐसा संकरा जलमार्ग होता है जो दो समुद्रों अथवा झीलों को आपस में जोड़ता है। इसका भौगोलिक आकार डमरू के समान होता है और चूँकि दो बड़े जलीय भागों के मध्य में जलसंधि होने के बाद ही यह मार्ग संचालित होता है, अत: इसे जलडमरूमध्य कहा जाता है।
जैव विविधता और पर्यावरण
उत्तराखंड वनाग्नि
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के अल्मोड़ा एवं नैनीताल ज़िलों में बड़े पैमाने पर वनाग्नि ने एक बार फिर से आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय सुरक्षा, बहुमूल्य वनस्पति एवं वन्यजीवों के संरक्षण जैसे बहुत से प्रश्नों पर विचार करने को विवश कर दिया है। प्रत्येक वर्ष गर्मी का मौसम आते ही देश के पहाड़ी राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड के वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। वार्षिक आयोजन जैसी बन चुकी उत्तराखंड के वनों की यह आग प्रत्येक वर्ष विकराल होती जा रही है, जो न केवल जंगल, वन्यजीवन और वनस्पति के लिये नए खतरे उत्पन्न कर रही है, बल्कि समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर अब इसका प्रभाव नज़र आने लगा है।
क्या है कारण?
वनाग्नि के कारण केवल वनों को ही नुकसान नहीं पहुँचता है बल्कि उपजाऊ मिट्टी के कटाव में भी तेज़ी आती है, इतना ही नहीं जल संभरण के कार्य में भी बाधा उत्पन्न होती है। वनाग्नि का बढ़ता संकट वन्यजीवों के अस्तित्व के लिये समस्या उत्पन्न करता है। यूँ तो वनों में आग लगने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे वास्तविक कारण हैं, जिनकी वज़ह से विशेषकर गर्मियों के मौसम में आग लगने का खतरा हमेशा बना रहता है। उदाहरण के तौर पर-
- मज़दूरों द्वारा शहद, साल के बीज जैसे कुछ उत्पादों को इकट्ठा करने के लिये जान-बूझकर आग लगाना।
- कुछ मामलों में जंगल में काम कर रहे मज़दूरों, वहाँ से गुज़रने वाले लोगों या चरवाहों द्वारा गलती से जलती हुई किसी वस्तु/सामग्री आदि को वहाँ छोड़ देना।
- आस-पास के गाँव के लोगों द्वारा दुर्भावना से आग लगाना।
- मवेशियों के लिये चारा उपलब्ध कराने हेतु आग लगाना।
- बिजली के तारों का वनों से होकर गुज़रना।
- प्राकृतिक कारण यथा- बिजली का गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण उत्पन्न होना, तापमान में वृद्धि होना आदि की वज़ह से वनों में आग लगने की घटनाएँ सामने आती हैं।
- परंतु, यदि हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण/हस्तक्षेप के कारण इस प्रकार की घटनाओं में बारंबरता देखने को मिली है।
नकारात्मक प्रभाव
- जैव-विविधता को हानि।
- प्रदूषण की समस्या में वृद्धि।
- मृदा की उर्वरता में कमी।
- वैश्विक तापन में सहायक गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि।
- खाद्य श्रृंखला में असुंतलन।
- आर्थिक क्षति।
सकारात्मक प्रभाव
- वनाग्नि में कुछ पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, जबकि कुछ ऐसे भी वृक्ष होते हैं जो जलकर पूरी तरह नष्ट नहीं होते है, साथ ही कुछ सुप्त बीज आग में जलकर पुनर्जीवित हो जाते हैं। वास्तव में कई स्थानिक पेड़-पौधे आग के साथ विकसित होते हैं, इस प्रकार आग कई प्रजातियों के निष्क्रिय बीजों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है।
- कुछ वैज्ञानिक वनाग्नि को पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिये पूरी तरह से हानिकारक मानते हैं जबकि इस संबंध में हुए बहुत से अध्ययनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वनाग्नि से अधिकांशतः आक्रामक प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं, कुछ समय पहले कर्नाटक के बिलीगिरी रंगास्वामी मंदिर टाइगर रिज़र्व में आदिवासी समुदायों में प्रचलित ‘कूड़े में लगाई जाने वाली आग’ की परंपरा का बहिष्कार करने पर लैंटाना प्रजाति की वनस्पति इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि उसने वहाँ के स्थानिक पौधों का अतिक्रमण कर लिया।
- एक अन्य अध्ययन के अनुसार, एक परजीवी झाड़ी/हेयरी मिस्टलेट (Hairy Mistletoe) परिपक्व वृक्षों को प्रभावित करती है। इसके फलस्वरूप जंगली आँवले के वृक्षों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। हालाँकि यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि ये सभी आँकड़े छोटे स्तर पर वनों में लगने वाली आग से संबंधित है; न कि वृहद स्तर पर।
समाधान
- हालाँकि इस संबंध में प्रभावी कार्यवाही करने के लिये वन अधिकारियों और स्थानीय जनजातियों द्वारा आपसी बातचीत से इस मुद्दे को सुलझाया जाना चाहिये ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी दुर्घटना को होने से रोका जा सके।
- वनों में रहने वाले अधिकतर जनजातीय समुदायों को वन्यजीवों की भाँति वनों में रहने तथा वन उत्पादों का इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। इन्हें कृषि कार्यों के लिये वनों की भूमि को जोतने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
- जंगली हाथियों द्वारा इन अधिवासी लोगों की फसलों को नुकसान पहुँचाने तथा जंगली जानवरों द्वारा बाड़े में बँधे मवेशियों को हानि पहुँचाए जाने के कारण अक्सर आदिवासी लोग जंगलों को आग लगा देते हैं ताकि इससे वन्यजीवों को हानि पहुँचाई जा सके।
- वनाग्नि को फैलने से रोक पाना संभव नहीं है। अत: इसके लिये अग्नि रेखाएँ (Fire lines) निर्धारित किये जाने की आवश्यकता हैं। वस्तुतः अग्नि ज़मीन पर खिंची वैसी रेखाएँ होती हैं जो कि वनस्पतियों तथा घास के मध्य विभाजन करते हुए वनाग्नि को फैलने से रोकती हैं। चूँकि ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में वनों में सूखी पत्तियों की भरमार होती हैं अत: इस समय वनों की किसी भी भावी दुर्घटना से सुरक्षा किये जाने की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
एन.जी.टी. का आरोप
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal - NGT) द्वारा भी पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर देश के सभी राज्यों में वनाग्नि के प्रबंधन के विषय में कोई ठोस योजना बनाने में कोताही बरतने का आरोप लगाया जाता रहा है।
एकीकृत वन संरक्षण योजना
- एकीकृत वन संरक्षण योजना (Integrated Forest Protection Scheme-IFPS) के अंतर्गत प्रत्येक राज्य को वनाग्नि प्रबंधन योजना का प्रारूप तैयार करना होता है। इस प्रारूप के अंतर्गत वनाग्नि को नियंत्रित एवं प्रबंधित करने संबंधी सभी घटकों को शामिल करना अनिवार्य है।
- इन घटकों के अंतर्गत फायर लाइन्स का निर्माण किया जाने का भी प्रावधान है। इन फायर लाइन्स में वैसी वनस्पतियों (सूखी पत्तियों एवं घास युक्त वनस्पति) को उगाया जाएगा जो आग को फैलने से रोकने में कारगर साबित हों।
- इसके अतिरिक्त, कुछ अन्य उपायों जैसे - वॉच टावर का निर्माण करने तथा ठेका श्रमिकों द्वारा रोपिंग (roping) की स्थापना करने पर अधिक बल दिया जाता है ताकि ज़मीनी स्तर पर आग के संबंध में सटीक निगरानी एवं प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
CTBTO में भारत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty Organization- CTBTO) ने भारत को CTBTO में पर्यवेक्षक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (CTBTO) के कार्यकारी सचिव ने कहा कि CTBTO भारत से व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty- CTBT) को अनुमोदित करने की उम्मीद नहीं कर रहा लेकिन भारत को पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होने का अवसर देना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है।
- एक पर्यवेक्षक होने के नाते भारत को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली (International Monitoring System) के डेटा तक पहुँच प्राप्त होगी।
- एक पर्यवेक्षक होने के नाते CTBT के संबंध में भारत की स्थिति नहीं बदलेगी बल्कि अलग-अलग प्रकार के आँकड़ें एवं सूचनाएँ प्राप्त होंगी।
अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली
- अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली एक नेटवर्क है जो फ़िलहाल अपूर्ण है किंतु पूर्ण हो जाने पर 89 देशों में स्थित 337 सुविधाओं (321 निगरानी स्टेशन और 16 रेडियोन्यूक्लाइड लैब) से युक्त होगा।
- यह प्रणाली भूकंपीय विज्ञान, हाइड्रोएकॉस्टिक्स, इन्फ्रासाउंड और रेडियोन्यूक्लाइड तकनीक का उपयोग करके छोटे परमाणु विस्फोटों का भी पता लगा सकती है।
- ज़ाहिर है कि भूकंप की निगरानी हेतु और रेडियो आइसोटोप के फैलाव के बाद डेटा के इस स्तर की उपलब्धता आवश्यक है।
- ज्ञातव्य है कि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली को डेटा भेजना शुरू कर दिया है।
CTBTO
यह CTBT को संचालित करने वाली संस्था है।
CTBT क्या है?
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) किसी के भी द्वारा किसी भी जगह (पृथ्वी की सतह पर, वायुमंड में, पानी के नीचे और भूमिगत) पर परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाती है।
- परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT)
- परमाणु अप्रसार संधि परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु टेक्नोलॉजी के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इस संधि की घोषणा 1970 में की गई थी।
- अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 191 सदस्य देश इसके पक्ष में हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते।
- हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।
परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रति भारत का दृष्टिकोण प्रारंभ से ही स्पष्ट रहा है और इसे संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विभिन्न मंचों पर समय-समय पर स्पष्ट किया जाता रहा है।
NPT: परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है, लेकिन भारत इस अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।
- इसके लिये भारत के निम्नलिखित दो तर्क हैं:
- इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
- इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ यह है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता।
- यह संधि 18 मई, 1974 को तब सामने आई, जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
- भारत मानता है कि 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, यह असमानता पर आधारित, एकपक्षीय और अपूर्ण है।
- भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये।
- परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्तियों के हितों का पोषण करता है। यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है।
- भारत के अनुसार वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वज़ह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
CTBT: नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty-CTBT) पर भी हस्ताक्षर करने से भारत ने स्पष्ट इनकार कर दिया है। भारत के अनुसार यह संधि अपने वर्तमान स्वरूप में भेदभावपूर्ण, खामियों से भरी व नितांत अपूर्ण है।
- जुलाई 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु हथियारों के निषेध से संबंधित इस नई संधि को अपनाया था, जो परमाणु हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहण व तैनाती को अवैध करार देती है।
- भारत अपने स्पष्टीकरण में कह चुका था कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि यह नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि परमाणु निरस्त्रीकरण पर समग्र व्यवस्था कायम करने में सफल हो पाएगी।
- भारत ने इस संधि की सार्वभौमिक नाभिकीय निरस्त्रीकरण की एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में कल्पना की थी, जिससे एक समयबद्ध रूपरेखा के भीतर सभी नाभिकीय हथियारों के पूर्णत: नष्ट होने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
- भारत का यह भी मानना है कि इस व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि का उद्देश्य मात्र परमाणु विस्फोटों के परीक्षण को बंद करना नहीं था, अपितु परमाणु हथियारों के गुणात्मक विकास और उनके परिष्करण को विस्फोट अथवा अन्य माध्यमों से रोकना था।
- इससे भारत के व्यापक राष्ट्रीय व सुरक्षा हितों की पुष्टि नहीं होती और उसके रुख से स्पष्ट है कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों में अपने एटमी विकल्प को खुला रखेगा।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (14 May)
- भारत सरकार द्वारा नेपाल के लिये बनाई गई जयनगर-कुर्था ब्रॉडगेज पर रेल सेवा शुरू करने के लिये भारत का कोंकण रेलवे नेपाल को दो DEMU ट्रेन एवं आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति करेगा। पाँच कोचों वाले दोनों DEMU ट्रेन सेटों की लागत करीब 50 करोड़ रुपए है और इनका निर्माण तमिलनाडु के चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया जाएगा। 1600 हॉर्स पावर वाले प्रत्येक ट्रेन सेट में एक ड्राइविंग पावर कार, एक वातानुकूलित के साथ तीन ट्रेलर कार, मानक सामान के साथ एक ड्राइविंग ट्रेलर कार शामिल होगी। भारत-नेपाल विकास साझेदारी कार्यक्रम के तहत भारतीय वित्तीय अनुदान के साथ IRCON (भारत सरकार का उपक्रम) द्वारा 34 किलोमीटर जयनगर-कुर्था रेलवे लिंक बनाया गया है।
- भारत और चीन ने अधिक संतुलित व्यापार को बढ़ावा देकर बाज़ार पहुँच के मुद्दों को तेज़ी से हल करने पर सहमति जताई है। इन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच हुई बैठक के अंत में भारत से चीन तक मिर्च खली (Chilli Meal) के निर्यात के लिये एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गए। दोनों पक्षों ने कृषि उत्पादों को मंज़ूरी के भारतीय अनुरोधों सहित व्यापार से जुड़े मामलों पर विचार -विमर्श किया। ज्ञातव्य है कि भारत देश में विनिर्मित और कृषि उत्पादों के लिये चीन में अधिक बाजार पहुँच की मांग कर रहा है ताकि व्यापार घाटे को कम किया जा सके। हाल ही में भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन के साथ साझा की थी। इनमें बागवानी, वस्त्र, रसायन और फार्मा उत्पाद शामिल हैं। इन उत्पादों के निर्यात की काफी संभावनाएँ हैं। इन उत्पादों का निर्यात बढ़ाने से भारत को चीन के साथ अपने व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलेगी।
- पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) की टीम ने पिट वाइपर साँप की लाल-भूरे रंग की एक नई प्रजाति खोजी है जिसमें गर्मी को महसूस करने की अनूठी क्षमता है। यह पिछले 70 साल में मिली पहली ऐसी प्रजाति है। इस प्रजाति का नाम इसकी खोज की जगह अरुणाचल प्रदेश के नाम पर Trimeresurus Arunachalensis रखा गया है। अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट क्षेत्र में जैवविविधता सर्वेक्षण के दौरान साँप की इस प्रजाति का पता चला। साँप के DNA अनुक्रमों के तुलनात्मक विश्लेषण और रूपात्मक विशेषताओं की जाँच से पता चला कि साँप की ऐसी प्रजाति वर्णन पहले नहीं मिलता।
- IPL सीज़न-12 का फाइनल मुकाबला 12 मई को मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपरकिंग के बीच खेला गया, जिसमें मुंबई इंडियंस ने बेहद रोमांचक मुकाबले में 1 रन से मैच जीतकर खिताब पर चौथी बार कब्जा जमा लिया। CSK को जीत के लिये आखिरी ओवर में 9 रन ही चाहिये थे, लेकिन CSK 1 रन से मुकाबला गँवा बैठा। मुंबई इंडियंस के जसप्रीत बुमराह को मैन ऑफ द मैच चुना गया। सनराइज़र्स हैदराबाद के डेविड वार्नर को सबसे अधिक कुल 692 रन बनाने के लिये ऑरेंज कैप अवार्ड तथा CSK के इमरान ताहिर को सबसे अधिक कुल 26 विकेट लेने के लिये पर्पल कैप अवार्ड दिया गया। मुंबई इंडियंस ने 2013, 2015 और 2017 में खिताबी जीत हासिल की थी। खिताब जीतने पर मुंबई इंडियंस को 20 करोड़ रुपए तथा रनर्स अप CSK को साढ़े 12 करोड़ रुपए की इनामी राशि मिली।
- वर्ष 2012 में दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया मामले को रिकॉर्ड समय में सुलझाने वाली IPS अधिकारी छाया शर्मा को एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी ने मैक्केन इंस्टीटयूट फॉर इंटरनेश्नल लीडरशिप-2019 से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान साहसिक लीडरशिप से जुड़े उल्लेखनीय कामों के लिये दिया जाता है। वर्ष 2012 में सामने आए निर्भया मामले के समय छाया शर्मा दक्षिणी दिल्ली की DCP थीं। गौरतलब है कि वर्ष 2015 में शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली मलाला युसुफजई को भी यह सम्मान मिल चुका है।
- ITC ग्रुप के चेयरमैन वाई.सी. देवेश्वर का 11 मई को 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले कॉर्पोरेट प्रमुखों में से एक थे, जिसमें से उन्होंने दो दशक से ज़्यादा समय ITC में बिताया. उन्होंने एक सिगरेट निर्माता कंपनी को एक बड़े FMCG में बदल दिया। 1996 में वह कंपनी के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाए गए। वाई.सी. देवेश्वर 1991 से 1994 के बीच सरकार के स्वामित्व वाली विमानन कंपनी एयर इंडिया के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर रहे। इसके अलावा वह RBI के डायरेक्टर भी रहे। वर्ष 2011 में उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाज़ा गया था। इसके अलावा उन्हें यूएस-इंडिया बिज़नेस काउंसिल की तरफ से ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड भी मिला। वर्ष 2012 में वाई.सी. देवेश्वर बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर बने तथा 2006 में उन्हें बिजनेस पर्सन ऑफ द ईयर के सम्मान से भी नवाज़ा गया था। इसके बाद संजीव पुरी को ITC ग्रुप का नया चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त किया गया।
- लोकप्रिय बिरहा गायक हीरालाल यादव का 93 वर्ष की आयु में 12 मई को बनारस में निधन हो गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी वर्ष 16 मार्च को उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। यह 70 वर्ष में पहली बार था जब बिरहा को सम्मान मिला। उन्होंने वर्ष 1962 से आकाशवाणी व दूरदर्शन पर बिरहा गाकर प्रसिद्धि पाई। करीब सात दशक तक हीरा-बुल्लू की जोड़ी गाँवों और शहरों में बिरहा की धूम मचाती रही। दोनों ही गायक राष्ट्रभक्ति के गीतों से स्वतंत्रता आंदोलन की अलख भी जगाते रहे। अपनी सशक्त गायकी से हीरालाल यादव ने बिरहा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और बिरहा सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हुए।