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डेली न्यूज़

  • 14 Apr, 2020
  • 49 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ रिपोर्ट, WHO

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव, विश्व स्वास्थ्य संगठन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO), अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद (International Council of Nurses- ICN) और ‘नर्सिंग नाउ कैंपेन’ (Nursing Now campaign) द्वारा ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ नामक एक रिपोर्ट जारी की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण रही है, स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में नर्सों की हिस्सेदारी 59% से अधिक (27.9 मिलियन) है। यह संख्या स्वास्थ्य क्षेत्र में और विशेषकर वर्तमान वैश्विक संकट में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है।
  • 7 अप्रैल, 2020 को जारी इस रिपोर्ट में सार्वभौमिक स्वास्थ्य और देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य, गैर-संचारी रोगों, आपातकालीन तैयारी तथा प्रतिक्रिया आदि के संदर्भ में राष्ट्रीय एवं वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति में नर्सों के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद

(International Council of Nurses- ICN):

  • ICN की स्थापना वर्ष 1899 में की गई थी।
  • ICN वैश्विक स्तर पर नर्सों के प्रतिनिधित्त्व के साथ, एक पेशे के रूप में नर्सिंग की प्रगति, नर्सों के हितों की रक्षा के लिये कार्य करती है।
  • वर्तमान में विश्व के 130 से अधिक राष्ट्रीय नर्स संघ ICN में सक्रिय सदस्य के रूप में शामिल हैं।
  • ICN के द्वारा प्रतिवर्ष 12 मई को ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ (Florence Nightingale) के जन्मदिवस की वर्षगाँठ के दिन को ‘विश्व नर्सिंग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 

वैश्विक स्तर पर नर्सों की स्थिति: 

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर नर्सों का अनुपात प्रति हज़ार लोगों पर लगभग 36.9 (अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ अंतर के साथ) है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीकी महाद्वीप की तुलना में अमेरिकी महाद्वीप में नर्सों की संख्या 10 गुना अधिक है।
  • जहाँ अमेरिकी देशों में यह अनुपात प्रति 10,000 की जनसंख्या पर लगभग 83.4 है वहीं अफ्रीका के देशों में नर्सों का अनुपात प्रति 10,000 की जनसंख्या पर मात्र 8.7 (लगभग) है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 5.7 मिलियन नर्सों की कमी हो जाएगी।
  • वर्तमान में COVID-19 की आपदा को देखते हुए इंग्लैंड की ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ (National Health Service- NHS) ने नौकरी छोड़कर जा चुकी नर्सों से स्वयं को पुनः पंजीकृत कर इस आपदा से निपटने में उनकी सहायता करने का आग्रह किया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व में नर्सों की संख्या में सबसे बड़ी कमी दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र के देशों में है, वहीं अमेरिका और यूरोप के देशों में नर्स के रूप में कार्य कर रहे कर्मचारियों की बढ़ती उम्र एक बड़ी समस्या है।
  • पूर्वी भूमध्यसागर, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के कुछ उच्च आय वाले देश पूर्ण रूप से प्रवासी नर्सों पर आश्रित हैं। 

भारत में नर्सों की स्थिति: 

  • वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में नर्सों की संख्या 15.6 लाख और सहायक नर्सों की संख्या लगभग 7.72 लाख थी।
  • इनमें से पेशेवर नर्सों (Professional Nurses) की हिस्सेदारी 67% हैं और भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3,22,827 ऐसे छात्र नर्सिंग में स्नातक पूरा करते हैं जिन्होंने कम-से-कम चार वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
  • भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में नर्सों की हिस्सेदारी सबसे अधिक 47% है, इसके अतिरिक्त डॉक्टर (23.3%), दंतचिकित्सक (5.5%) और फार्मासिस्ट (24.1%) हैं।
  • वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों के रूप में कार्यरत कर्मचारियों में महिलाओं की संख्या अधिक (90%) है, भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में महिला नर्सों की हिस्सेदारी 88% है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों का योगदान:

  • WHO के अनुसार, मरीज़ों को गुणवत्तापूर्ण पूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने, संक्रमण को रोकने और नियंत्रित करने तथा रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) का मुकाबला करने में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • ICN के अनुसार, चीन के हुबेई प्रांत में COVID-19 की महामारी से निपटने में सहायता के लिये चीन के अन्य हिस्सों से 28,000 से अधिक नर्सों हुबेई प्रांत में जाकर अपनी सेवाएँ दी थी।
  • ICN के अनुसार, नर्सों के योगदान के परिणामस्वरूप अब तक 44,000 (चीन द्वारा जारी कुल संक्रमितों की संख्या का लगभग आधा) से अधिक लोगों को COVID-19 से ठीक किया जा सका है।
  • वर्तमान में COVID-19 की चुनौती में जहाँ स्वच्छता, शारीरिक दूरी और सतह कीटाणुशोधन संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के लिये अति आवश्यक है ऐसे में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो जाती है। 
  • COVID-19 के नियंत्रण हेतु कार्य कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिये सुरक्षा उपकरणों जैसे-दस्ताने, मास्क आदि की कमी और मानसिक तनाव एक बड़ी चुनौती है। 

चुनौतियाँ: 

  • नर्सों को अपने कार्यस्थलों पर खतरनाक बीमारियों के संक्रमण के साथ ही कम वेतन, लंबी अवधि तक काम, भेदभाव और अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई बार नर्सों ने न्यूनतम वेतन और अधिक समय तक कार्य करने पर भी उपयुक्त भुगतान न मिलने जैसी समस्याओं को उठाया है।
  • वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें राजधानी दिल्ली में कार्यरत नर्सों के लिये न्यूनतम वेतन 20,000 करने को कहा गया था।
  • ऐसे ही मामले में वर्ष 2017 में केरल के निजी अस्पतालों में कार्य करने वाली नर्सों ने सुप्रीम कोर्ट की समिति के सुझाव के अनुरूप न्यूनतम वेतन न दिये जाने को लेकर विरोध किया। 

समाधान: 

  • इन समस्याओं के समाधान के लिये सरकार को देश के विभिन्न भागों में नर्सिंग से जुड़े शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर निवेश में वृद्धि करनी चाहिये। 
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कार्यरत नर्सों के लिये राष्ट्रीय मानकों के आधार पर वेतन प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिये। 
  • सेवाकाल के दौरान नर्सों के प्रशिक्षण और उनकी समस्याओं के समाधान के लिये विशेष तंत्र की व्यवस्था की जानी चाहिये। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

COVID-19 इंडो-यू.एस. आभासी नेटवर्क

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी फोरम, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 इंडो-यू.एस. आभासी नेटवर्क से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-अमेरिका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी फोरम (Indo-U.S. Science and Technology Forum-IUSSTF) ने COVID-19 से निपटने हेतु आभासी नेटवर्क पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस आभासी नेटवर्क का नाम ‘COVID-19 इंडो-यू.एस. आभासी नेटवर्क (COVID-19 Indo-U.S. Virtual Networks)’ है।
    • इसका उद्देश्य विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी की मदद से वैक्सीन, उपकरण इत्यादि को शीघ्रता से विकसित करना है।
  • इस प्रस्ताव के तहत भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक तथा इंजीनियर मौजूदा बुनियादी ढाँचे और धन का लाभ उठाकर एक आभासी तंत्र के माध्यम से COVID-19 से निपटने हेतु संयुक्त रूप से अनुसंधान का कार्य करेंगे।

आभासी नेटवर्क के प्रकार:

  • ज्ञान अनुसंधान और विकास नेटवर्क:
    • यह नेटवर्क भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों को अकादमिक और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में संयुक्त रूप से अनुसंधान करने तथा अनुसंधान एवं शिक्षा के एकीकरण को प्रोत्साहित करने में सक्षम बनाएगा। 
  • सार्वजनिक-निजी आभासी नेटवर्क:
    • भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों को अकादमिक एवं उद्योग के पूर्व-व्यावसायिक अनुसंधान और विकास गतिविधियों पर सहयोग करने में सक्षम बनाता है।

आभासी नेटवर्क हेतु पात्रता:

  • संघीय एजेंसियों/फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित भारतीय और अमेरिकी शैक्षणिक संस्थान, प्रयोगशाला और उद्योग जो सक्रिय रूप से COVID-19 से निपटने हेतु अनुसंधान में लगी हुई हैं।
  • प्रत्येक प्रस्ताव में कम-से-कम एक भारतीय और एक अमेरिकी संस्थान शामिल होना चाहिये।
  • परियोजना के निष्पादन में सभी भागीदारों की बौद्धिक और वित्तीय हिस्सेदारी होनी चाहिये।

अनुसंधान हेतु वित्तीय योगदान:

  • भारत में प्रत्येक अनुसंधान हेतु लगभग 25-50 लाख रुपए तक तथा अमेरिका में 33-66 हज़ार डॉलर तक दिये जाएंगे।
  • वित्तीय योगदान 18 महीने की अवधि के लिये उपलब्ध होगा।

भारत-अमेरिका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी फोरम

(Indo-U.S. Science & Technology Forum- IUSSTF):

  • IUSSTF को मार्च 2000 में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक समझौते के तहत स्थापित किया गया था।
  • यह एक स्वायत्त द्विपक्षीय फोरम है इसका उद्देश्य संयुक्त रूप से सरकार, शिक्षा एवं औद्योगिक क्षेत्रों के बीच आपसी तालमेल के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और नवाचार को बढ़ावा देना है। इस फोरम को दोनों देशों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
  • भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) और संयुक्त राज्य अमेरिका का अमेरिकी राज्य विभाग (The U.S. Department of State) इस कार्यक्राम से संबंधित नोडल विभाग हैं।
  • IUSSTF एक विकसित कार्यक्रम है जो सामयिक विषयों पर दोनों देशों के वैज्ञानिक समुदायों के लिये संगोष्ठी, कार्यशालाओं और सम्मेलनों का आयोजन कराता है।

आगे की राह:

  • विश्व जब COVID-19 जैसी वैश्विक महामारी से लड़ रहा है तो यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समुदाय साथ काम करें और इस वैश्विक चुनौती से निपटने हेतु संसाधन साझा करें।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

सेट-टॉप बॉक्स की इंटरऑपरेबिलिटी

प्रीलिम्स के लिये:

DVB CI+ 2.0 मानक, TRAI, इंटरऑपरेबलिटी

मेन्स के लिये:

सेट टॉप बॉक्स की इंटरऑपरेबलिटी

चर्चा में क्यों?

'भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण' (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने सिफारिश की है कि देश में सभी ‘सेट टॉप बॉक्स’ (Set Top Boxes- STBs) इंटरऑपरेबल (Interoperable) होने चाहिये।

मुख्य बिंदु:

  • सेट टॉप बॉक्स (Set Top Boxes- STBs) के इंटरऑपरेबल होने का अर्थ है- “उपभोक्ता विभिन्न DTH (Direct-To-Home) तथा केबल टीवी प्रदाताओं में एक ही प्रकार के STBs का उपयोग कर सकेंगे।”
  • TRAI ने यह भी सुझाव दिया है कि इंटरऑपरेबलिटी को अनिवार्य बनाने के लिये ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय’ (Ministry of Information and Broadcasting- MoIB) लाइसेंस एवं पंजीकरण शर्तों में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिये।

इंटरऑपरेबलिटी की आवश्यकता:

  • सेट टॉप बॉक्स के इंटरऑपरेबल न होने पर अलग-अलग सेवा प्रदाताओं के लिये अलग-अलग STBs की आश्यकता होती है। ऐसे में यह ग्राहक को सेवा प्रदाता बदलने की स्वतंत्रता से वंचित करती है। 
  • यह तकनीकी नवाचार, सेवा की गुणवत्ता में सुधार और समग्र सूचना एवं प्रसारण क्षेत्र के विकास में भी बाधा उत्पन्न करती है।

DTH (Direct To Home) 

  • DTH ‘डायरेक्ट टू होम’ (Direct To Home) सेवा का संक्षिप्त नाम है। यह एक डिजिटल उपग्रह सेवा है जो देश में कहीं भी उपग्रह द्वारा प्रसारण के माध्यम से प्रत्यक्षतः ग्राहकों को टेलीविज़न पर कार्यक्रमों को देखने की सुविधा प्रदान करती है। 
  • इसके सिग्नल डिजिटल प्रकृति के होते हैं और सीधे उपग्रह से प्राप्त होते हैं।

वर्तमान स्थिति:

  • वर्तमान में केबल टीवी नेटवर्क के STBs नॉन-इंटरऑपरेबल हैं, जबकि DTH सेवाओं में लाइसेंस शर्तों की बाध्यता के कारण सामान्य इंटरफेस मॉड्यूल आधारित इंटरऑपरेबिलिटी की सुविधा होती है। 
  • हालाँकि व्यवहार में DTH में भी STBs आसानी से इंटरऑपरेबल नहीं होते हैं।

समिति का गठन:

  • TRAI ने यह भी सिफारिश की है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा DTH और केबल टीवी सेवाओं में संशोधित STB मानकों के कार्यान्वयन के लिये एक समन्वय समिति का गठन किया जाना चाहिये।
  • समिति ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ (Bureau of indian standards- BIS) के टेलीविजन मानक; डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग कॉमन इंटरफेस प्लस (Digital Video Broadcasting Common Interface Plus 2.0- DVB CI+ 2.0) तथा ‘यूरोपीयन दूरसंचार मानक संस्थान’ (European Telecommunications Standards Institute- ETSI) के TS: 103 605 मानकों की स्थापना करने तथा निरंतर निगरानी रखने का कार्य करेगी।

डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग कॉमन इंटरफेस (DVB CI):

  • डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग (Digital Video Broadcasting- DVB) डिजिटल टेलीविजन के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों के एक सेट है। DVB मानक को DVB परियोजना के तहत लागू किया जाता है तथा यूरोपीय दूरसंचार मानक संस्थान (ETSI) की एक 'संयुक्त तकनीकी समिति' द्वारा इन मानकों को प्रकाशित किया जाता है।

आगे की राह:

  • DTH और MSO (Multi-System Operators) सेवा प्रदाताओं को ETSI मानकों के अनुरूप 'DVB CI + 2.0' मानकों को अपनाने के लिये छह महीने का समय दिया जाना चाहिये।
  • MoIB को BIS के साथ मिलकर STBs के लिये निर्दिष्ट मानकों में उपयुक्त संशोधन करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 के कारण मनरेगा के तहत रोज़गार में गिरावट

प्रीलिम्स के लिये:

मनरेगा, COVID-19

मेन्स के लिये:

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, मनरेगा, COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण देश में ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’ (मनरेगा) के तहत अप्रैल 2020 में रोज़गार पाने वाले लोगों की संख्या पिछले महीनों की तुलना में घटकर मात्र 1% रह गई है।

मुख्य बिंदु:

  • मनरेगा के तहत रोज़गार में गिरावट को देखते हुए कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में यह मांग करते हुए एक अपील दायर की है कि सरकार को भी अन्य नियोक्ताओं/संस्थाओं की तरह ही उच्चतम न्यायलय के आदेश का पालन करते हुए लॉकडाउन के दौरान सभी मनरेगा कार्ड धारकों को पूर्ण मज़दूरी देनी चाहिये।
  • मनरेगा की वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 में अभी तक मनरेगा के तहत देशभर में मात्र 1.9 लाख परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया है।
  • वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन लागू होने से पहले मार्च 2020 में देशभर में मनरेगा के तहत लगभग 1.6 करोड़ परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया जबकि फरवरी 2020 में मनरेगा के तहत रोज़गार प्राप्त करने वाले परिवारों की संख्या लगभग 1.8 करोड़ थी।
  • अप्रैल 2020 में देश में इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज़्यादा (70,000 से अधिक) परिवारों को रोज़गार प्रदान किया गया।
  • इस दौरान मनरेगा के तहत सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा, आंध्र प्रदेश में अप्रैल 2020 में मनरेगा के तहत रोज़गार पाने वालों की संख्या 53,000 से अधिक रही।

ग्रामीण भारत के विकास में मनरेगा की भूमिका:

  • वर्ष 2005 में इस योजना के लागू होने के बाद से ही इस योजना का ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास के साथ मज़दूरों के अधिकारों की जागरूकता, कार्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि आदि के द्वारा ग्रामीण विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • इस योजना के तहत आवेदन के 15 दिनों के भीतर ही आवेदक को रोज़गार उपलब्ध कराया जाता है, 15 दिनों के भीतर रोज़गार न मिलने की स्थिति में आवेदक को भत्ता दिये जाने का प्रावधान है।
  • इस योजना के तहत रोज़गार प्राप्त करने वालों में एक-तिहाई (1/3) महिलाओं का होना अनिवार्य है, अतः इसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के माध्यम से समाज में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में सहायता मिली है।
  • इस योजना के तहत आवेदक को स्थनीय स्तर (5 किमी. की सीमा में) पर रोज़गार उपलब्ध करा कर ऐसे बहुत से लोगों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने में सहायता मिली है जिनके लिये किन्हीं कारणों से रोज़गार हेतु शहरों में पलायन करना संभव नहीं था।
  • ग्रामीण स्तर पर आधारिक संरचना के विकास में भी इस योजना का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 

ग्रामीण रोज़गार पर COVID-19 का प्रभाव: 

  • देश में COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू लॉकडाउन के तहत अन्य उद्योगों/व्यवसायों से अलग मनरेगा के लिये कोई विशेष छूट प्रदान नहीं की गई थी।
  • हालाँकि राज्यों को सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) को बनाए रखते हुए योजना को चालू रखने के निर्देश दिये गए थे।
  • वर्तमान में मनरेगा के तहत देश के विभिन्न राज्यों में प्रतिदिन की मज़दूरी औसतन 209 रुपए और वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी के साथ यह योजना गरीबी में रह रही एक बड़ी आबादी के लिये आजीविका का मुख्य साधन तथा ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ (Backbone) मानी जाती है।
  • वर्तमान में इस योजना के तहत 7.6 करोड़ परिवारों को जॉब कार्ड प्रदान किया गया है और पिछले वर्ष लगभग 5.5 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत रोज़गार उपलब्ध कराया गया था।
  • लॉकडाउन के कारण मंडियों के बंद होने और कृषि उपज की आपूर्ति बाधित होने का प्रभाव इससे जुड़े रोज़गारों पर भी पड़ा है। 
  • COVID-19 के कारण उद्योगों के बंद होने से बड़ी संख्या में भारत के विभिन्न शहरों से गाँवों की तरफ मज़दूरों का पलायन हुआ है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी और कामगारों की अधिकता तथा प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण असंगठित क्षेत्र (दिहाड़ी, कृषि मज़दूर आदि) की मज़दूरी में कमी आई है।
  • शहरों से होने वाले पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरों की वृद्धि के बीच मनरेगा जैसी योजनाओं के अंतर्गत रोज़गार की कमी होना एक बड़ी चिंता का विषय है।
  • मार्च 2020 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ राहत पैकेज जारी करते समय मनरेगा की मज़दूरी में 20 रुपए प्रतिदिन की वृद्धि करने की घोषणा की थी, परंतु COVID-19 के कारण इस योजना के तहत रोज़गार न उपलब्ध होने की स्थिति में मज़दूरों को इस वृद्धि का लाभ नहीं मिल पाएगा।
  • वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में भले ही COVID-19 के मामले अधिक न हों परंतु यदि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अस्थिरता पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में यह एक बड़ी समस्या बन सकती है।

समाधान:

  • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल, 2020 को COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशव्यापी लॉकडाउन को 3 मई, 2020 तक पुनः बढ़ा दिया गया है, ऐसे में आर्थिक सहायता के साथ ही अन्य प्रयासों से सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • जिन क्षेत्रों में COVID-19 के कारण रोज़गार उपलब्ध कराना संभव न हो वहाँ मनरेगा कार्ड धारकों को बेरोज़गारी भत्ता उपलब्ध कराया जाना चाहिये (उदाहरण- हाल ही में ओडिशा सरकार ने मनरेगा कार्ड धारकों को बेरोज़गारी भत्ता देने के लिये केंद्र सरकार की अनुमति मांगी थी।)
  • मनरेगा योजना की एक और बड़ी समस्या समय पर मज़दूरी का भुगतान न होना है, ऐसे में सरकार को सभी बकाया मज़दूरियों का समय पर भुगतान किया जाना चाहिये।
  • मनरेगा के तहत महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि और इसके तहत कौशल विकास के प्रयासों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • अन्य क्षेत्रों और रोज़गार के अवसरों को मनरेगा के तहत शामिल किया जाना चाहिये जिससे अधिक-से-अधिक लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

लॉकडाउन के दौरान किसानों के लिये उपाय

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, PM-KISAN, PM-GKY, FPOs

मेन्स के लिये

किसानों और कृषि गतिविधियों के लिये घोषित विभिन्न उपाय

चर्चा में क्यों?

कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare) ने लॉकडाउन अवधि के दौरान किसानों और कृषि गतिविधियों की सुविधा के लिये कई उपायों की घोषणा की है।

विभाग द्वारा किये गए उपाय

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission-NFSM) के तहत राज्यों को बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये बीजों से संबंधित सब्सिडी 10 वर्ष की अवधि से कम वाले बीज के किस्मों के लिये होगी। 
    • साथ ही NFSM के तहत आने वाली सभी फसलों के लिये पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी क्षेत्रों में सब्सिडी वाले घटक हेतु ट्रुथ लेबल (Truthful Label) की अनुमति देने का भी निर्णय लिया गया है।
    • 24 मार्च, 2020 से शुरू हुई लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना के तहत लगभग 8.31 करोड़ किसान परिवारों को लाभान्वित किया गया है और अब तक 16,621 करोड़ रुपए वितरित किये गए हैं।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PM-GKY) के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वितरण के लिये लगभग 3,985 मीट्रिक टन दाल भेजी गई है।
  • पंजाब में परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana-PKVY) के तहत विशेष रूप से डिज़ाइन की गई इलेक्ट्रिक वैन के माध्यम से घरों में जैविक उत्पादों (Organic Products) की डिलीवरी की जा रही है।
  • महाराष्ट्र में 27,797 FPOs द्वारा 34 ज़िलों में ऑनलाइन तथा प्रत्यक्ष बिक्री माध्यम से 21,11,171 क्विंटल फल और सब्ज़ियाँ बेची गई हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन 

(National Food Security Mission-NFSM)

  • चावल, गेहूं और दालों के उत्पादन में बढ़ोतरी करने के लिये वित्तीय वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) की शुरुआत की गई थी।
  • इस मिशन का उद्देश्य निम्नलिखित माध्यमों से चावल, गेंहूँ और दाल के उत्पादन में वृद्धि करना है:
    • उत्पादन क्षेत्र का विस्तार और उत्पादकता में वृद्धि
    • मिट्टी की उर्वरता को बहाल करना
    • रोज़गार के अवसर पैदा करना
    • कृषि स्तर की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना
  • ध्यातव्य है कि मोटे अनाज को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत वर्ष 2014-15 में शामिल किया गया था।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)

  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 फरवरी, 2019 को लघु एवं सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • इस योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता (Direct Income Support) उपलब्ध कराई जाती है।
  • यह आय सहायता 2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में लाभान्वित किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तांतरित की जाती है, ताकि संपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।

किसान उत्पादक संगठन (FPOs)

  • 'किसान उत्पादक संगठनों’ का अभिप्राय किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के समूह से होता है। इस प्रकार के संगठनों का प्रमुख उद्देश्य कृषि से संबंधित चुनौतियों के प्रभावी समाधान की खोज करना होता है।
  • FPO प्राथमिक उत्पादकों जैसे- किसानों, दूध उत्पादकों, मछुआरों, बुनकरों और कारीगरों आदि द्वारा गठित कानूनी इकाई होती है।
  • FPO को भारत सरकार तथा नाबार्ड जैसे संस्थानों से भी सहायता प्राप्त होती है।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

25 गरीब देशों का ऋण भुगतान रद्द

प्रीलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, कटेस्ट्रोफी कंटेनमेंट एंड रिलीफ ट्रस्ट

मेन्स के लिये

महामारी से लड़ने में अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने दुनिया के 25 सर्वाधिक गरीब देशों के 6 महीने के ऋण भुगतान को रद्द करने के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है, ताकि उन्हें कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने में मदद मिल सके।

प्रमुख बिंदु

  • IMF के कार्यकारी निदेशक द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, IMF के कार्यकारी बोर्ड ने 19 अफ्रीकी देशों सहित अफगानिस्तान, हैती, नेपाल, सोलोमन द्वीप, ताज़िकिस्तान और यमन के लिये तत्काल ऋण राहत को मंज़ूरी दी है।
    • ऋण से राहत पाने वाले 19 अफ्रीकी देशों में शामिल हैं- बेनिन (Benin), बुर्किना फासो (Burkina Faso) सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (Central African Republic) चाड (Chad) कोमोरोस (Comoros) कांगो (Congo) द गांबिया (The Gambia) गिनी (Guinea) गिनी-बिसाऊ (Guinea-Bissau), लाइबेरिया (Liberia), मेडागास्कर (Madagascar), मलावी (Malawi), माली (Mali), मोज़ाम्बिक (Mozambique), नाइजर (Niger), रवांडा (Rwanda), साओ टोम एंड प्रिंसिपे (Sao Tome and Principe) सिएरा लियोन (Sierra Leone) और टोगो (Togo)।
  • IMF के अनुसार, गरीब और कमज़ोर देशों को दी जा रही यह राशि IMF के कटेस्ट्रोफी कंटेनमेंट एंड रिलीफ ट्रस्ट (Catastrophe Containment and Relief Trust-CCRT) से ली जाएगी। 

महत्त्व

  • IMF के इस निर्णय के तहत गरीब और सर्वाधिक कमज़ोर सदस्य देशों को आगामी 6 महीनों के लिये IMF से लिये गए ऋण के दायित्त्व को कवर करने हेतु अनुदान प्रदान किया जाएगा, जिससे उन्हें महत्त्वपूर्ण आपातकालीन चिकित्सा और अन्य राहत प्रयासों के लिये अपने दुर्लभ वित्तीय संसाधनों के प्रयोग का अवसर मिलेगा।
  • विश्लेषकों ने IMF के इस निर्णय को एक सकारात्मक कदम बताया है। ध्यातव्य है कि इनमें से अधिकांश देश वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, जिसके कारण इन देशों के लिये कोरोनावायरस महामारी और अधिक गंभीर हो गई है।
  • इन देशों को अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों में तत्काल प्रभाव से सुधार करने की आवश्यकता है और 6 महीने के लिये ऋण को रद्द करने से इन देशों को काफी मदद मिलेगी।

कटेस्ट्रोफी कंटेनमेंट एंड रिलीफ ट्रस्ट 

(Catastrophe Containment and Relief Trust-CCRT) 

  • कटेस्ट्रोफी कंटेनमेंट एंड रिलीफ ट्रस्ट (CCRT) IMF को किसी विशेष प्राकृतिक आपदा अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा से प्रभावित सबसे गरीब और सर्वाधिक कमज़ोर देशों के लिये ऋण राहत के लिये अनुदान प्रदान करने की अनुमति देता है।
  • CCRT का गठन फरवरी 2015 में इबोला (Ebola) वायरस के प्रकोप के दौरान किया गया था।
    • उल्लेखनीय है कि हाल ही में कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र मार्च 2020 में CCRT को संशोधित किया गया था।
  • CCRT के तहत ऋण से राहत प्रदान करने का उद्देश्य गरीब देशों को वित्तीय संसाधनों को आपदा के दौरान उत्पन्न होने वाली आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना है ताकि आपदा से जल्द-से-जल्द निपटा जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19: आर्थिक संकट

प्रीलिम्स के लिये

आर्थिक मंदी (Recession)

मेन्स के लिये

COVID-19 से उत्पन्न आर्थिक संकट और वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी में समानताएँ तथा असमानताएँ

चर्चा में क्यों?

COVID-19 लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व गिरावट आई है। इसका अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों पर वर्ष 2008 के आर्थिक संकट (लेहमन संकट) से भी बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। 

असमानताएँ: 

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  • वर्ष 2008 का आर्थिक संकट का प्रभाव धीमी गति से लंबी अवधि के पश्चात् प्रकट हुए, जबकि वर्तमान संकट के समय 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के पश्चात् आर्थिक गतिविधियों में अचानक गिरावट आई हैबिजली उत्पादन और यात्री वाहनों की बिक्री पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ा है।
  • नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर के आँकड़ों के अनुसार, 24 मार्च के पश्चात् बिजली उत्पादन में 26 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके विपरीत सितंबर और अक्तूबर 2008 में आर्थिक संकट के चरम पर होने के बावजूद बिजली उत्पादन स्थिर था, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों में कोई रुकावट नहीं थी
  • दिसंबर 2008 की तिमाही में कारों की बिक्री में गिरावट आई, लेकिन बाद में इसमें तीव्र गति से सुधार भी हो गया। मार्च 2020 में यात्री कारों की बिक्री वार्षिक आधार पर 51%और मासिक आधार पर 47% कम रही। यह अब तक की सबसे तीव्र गिरावट है। 
  • COVID-19 संकट उत्पन्न होने के मूल कारणों में स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी कारक हैं। वर्तमान संकट से पहले चीन तथा बाद में अन्य देशों में उत्पादन की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई। इसके विपरीत वर्ष 2008 की मंदी ने पहले अमेरिकी वित्तीय प्रणाली को प्रभावित किया, जिससे अमेरिका में आवास की कीमतों और उत्पादन में गिरावट आई। बाद में इसने अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र और वित्तीय बाज़ारों के साथ वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया
  • वर्तमान लॉकडाउन में एक स्वैच्छिक और अस्थायी प्रावधान के साथ अर्थव्यवस्था पर रोक लगाई गई है ताकि संक्रमण फैलने की दर को कम किया जा सके। 2008-09 में सभी कार्यों का उद्देश्य वित्त को पुनर्जीवित करना था ताकि अर्थव्यवस्था को बढ़ती सुस्ती से बाहर निकाला जा सके। इस समय वित्तीय संस्थानों में धन की कमी प्रमुख समस्या थी।

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समानताएँ 

  • दोनों ही संकटों के उद्भव और प्रसार में अनिश्चितता की विद्यमानता रही है। वर्तमान संकट में कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। वर्ष 2008 के संकट के समय बिना नौकरी और संपत्ति वाले अमेरिकियों को ऋण दिया गया तथा उसके बुरे प्रभावों को छुपाए जाने के कारण अनिश्चितता में वृद्धि हुई। वर्तमान में चीन पर भी COVID-19 के जोखिमों को भी छुपाए जाने का आरोप लगाया जा रहा है। 
  • प्रमुख देशों के स्टॉक एक्सचेंजों में उनके मूल्य के एक-चौथाई भाग तक शुरुआती गिरावट दोनों संकटों के बीच समानता है।
  • वर्ष 2008 के आर्थिक संकट द्वारा ‘ग्लोबल सिस्टमिक’ रूप से महत्त्वपूर्ण बैकों को तथा COVID-19 द्वारा वैश्विक आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करने के कारण दोनों समय सार्वजनिक प्राधिकरणों की भूमिका में वापसी हुई, क्योंकि सरकारों द्वारा मौद्रिक और राजकोषीय सहायता करनी पड़ी।

मंदी (Recession): इसके निम्नलिखित लक्षण हैं -

  • अर्थव्यवस्था में मांग का निम्न स्तर।
  • तुलनात्मक रूप से कम मुद्रास्फीति।
  • बेरोज़गारी दर में वृद्धि।
  • मज़दूरों की जबरन छंटनी। 

आगे की राह:

अपने उद्भव, प्रसार और प्रभावों के मामले में परस्पर कुछ समानताओं के साथ व्यापक असमानताएँ देखने को मिलती है। COVID-19 के प्रसार को देखते हुए इसके प्रभावों के बारे में अभी से मूल्यांकन करना जल्दबाजी होगी। 

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 अप्रैल, 2020

डिजिटल स्टेथोस्कोप

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे (IIT-B) की एक टीम ने ‘डिजिटल स्टेथोस्कोप’ (Digital Stethoscope) विकसित किया है, जो कोरोनावायरस से संक्रमित व्यक्ति के सीने की आवाज को दूर से सुनने और उसे रिकॉर्ड करने में मदद करेगा। डिजिटल स्टेथोस्कोप का मुख्य उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति के उपचार के दौरान डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। डिजिटल स्टेथोस्कोप से पीड़ित के सीने का ऑस्कल्टेटेड (Auscultated) साउंड ब्लूटूथ (Bluetooth) के माध्यम से डॉक्टर तक पहुँचेगा, जिससे उन्हें मरीज़ों के नज़दीक जाने की आवश्यकता नहीं होगी। ध्यातव्य है कि IIT-बॉम्बे की टीम को इस डिवाइस का पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है। इस स्टेथोस्कोप को IIT टेक्नोलॉजी बिज़नेस इनक्यूबेटर द्वारा संचालित स्टार्टअप 'आयुडिवाइस' (AyuDevice) द्वारा तैयार किया गया है। IIT-बॉम्बे की टीम ने 1000 डिजिटल  स्टेथोस्कोप देश भर के विभिन्न अस्पतालों में भेजे हैं। विदित है कि कोरोनोवायरस से संक्रमित रोगियों को अक्सर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में डॉक्टर पारंपरिक स्टेथोस्कोप का प्रयोग करते हैं जिसके कारण वे डॉक्टर भी इस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, देश में कोरोनावायरस से मरने वाले लोगों को संख्या 339 पर पहुँच गई है, और अब तक देश में इस वायरस से लगभग 10000 लोग संक्रमित हो गए हैं।

अशोक देसाई

हाल ही में पूर्व अटॉर्नी जनरल अशोक देसाई का 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अशोक देसाई का जन्म 24 जून, 1942 को हुआ था। मुंबई से लॉ की शिक्षा और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स (LSE) से परास्नातक के पश्चात् उन्होंने वर्ष 1956 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। अशोक देसाई 9 जुलाई, 1996 से 6 मई, 1998 तक देश के अटॉर्नी जनरल (Attorney General) रहे। इससे पूर्व, 18 दिसंबर, 1989 से 2 दिसंबर, 1990 तक वह सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) रहे। अशोक देसाई को वर्ष 2000 में राष्ट्रीय कानून दिवस पुरस्कार और वर्ष 2001 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उल्लेखनीय है कि अशोक देसाई ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने, नर्मदा बांध प्रकरण और गैर-कानूनी प्रवासी (अधिकरण द्वारा निर्धारण) कानून जैसे जनहित के अनेक मामलों में उच्चतम न्यायालय में बहस की। 

सियाचिन दिवस

13 अप्रैल, 2020 को भारतीय सेना ने सियाचिन के वीर शहीदों को याद करते हुए 36वां सियाचिन दिवस मनाया। सियाचिन दिवस पर भारतीय सेना के सैनिकों द्वारा दुनिया में सबसे ऊँचे और सबसे ठंडे युद्धक्षेत्र को सुरक्षित करने के लिये उनके अदम्य साहस को याद किया जाता है। दरअसल 13 अप्रैल, 1984 को भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन मेघदूत’ को लॉन्च किया था। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सैनिकों ने संपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण हासिल कर लिया था। उल्लेखनीय है कि ‘ऑपरेशन मेघदूत’ का नेतृत्त्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून ने किया था।  सियाचिन दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष उन सियाचिन योद्धाओं को सम्मानित किया जाता है, जो दुश्मन की तमाम रणनीतियों को सफलतापूर्वक विफल करते हुए अपनी मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं। सियाचिन उत्तर-पश्चिम भारत में काराकोरम पर्वतमाला (Karakoram Mountain Range) में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76.4 किमी लंबा है और लगभग 10,000 वर्ग किमी. क्षेत्र को कवर करता है।

COVID-19 के परीक्षण हेतु ट्रूनाट

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने दवा प्रतिरोधी तपेदिक (Drug-Resistant Tuberculosis) का परीक्षण करने हेतु उपयोग में लाई जाने वाली डायग्नोस्टिक ​​मशीनों को अब COVID-19 के परीक्षण हेतु अनुमोदित किया है। ICMR ने COVID-19 के स्क्रीनिंग टेस्ट हेतु ICMR द्वारा मान्यता प्राप्त ट्रूलैब (Truelab) पर ‘ट्रूनाट बीटा सीओवी’ (Truenat beta CoV) के परीक्षण की सिफारिश की है। इसके अलावा ICMR ने आपातकालीन परीक्षण के लिये रियल टाइम पॉलिमरेज़ चेन रिएक्शन (Real Time Polymerase Chain Reaction) प्रणाली को भी अनुमोदित किया है। ट्रूनाट की निर्माता कंपनी ‘मोलबायो डायग्नोस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड’ (MolBio Diagnostics Pvt Ltd) के अनुसार, कंपनी ने पहले से ही देश भर में 800 से अधिक ट्रूनाट मशीनें स्थापित की हैं, जो मुख्य रूप से दवा प्रतिरोधी तपेदिक का पता लगाने हेतु उपयोग में लाई जाती है।


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