विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन
प्रीलिम्स के लिये: राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन, प्रगत संगणन विकास केंद्र, सुपरकंप्यूटर मेन्स के लिये: सुपर कंप्यूटर के अनुप्रयोग |
चर्चा में क्यों?
इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) से RTI द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार, राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (National Supercomputing Mission-NSM) के तहत भारत ने वर्ष 2015 से अब तक मात्र 3 सुपरकंप्यूटर विकसित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि पुणे स्थित प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू को इस मिशन के लिये नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था।
- RTI द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार, बीते 5 वर्षों में दोनों एजेंसियों को 750.97 करोड़ रुपए प्रदान किये जा चुके हैं, जो कि मिशन के कुल बजट (4,500 करोड़ रुपए) का 16.67 प्रतिशत है।
- ज्ञात सूचना के अनुसार, बीते वर्षों में इस मिशन के तहत वितरित होने वाले बजट में काफी असमानता देखी गई है।
प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC)प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक प्रधान अनुसंधान एवं विकास संस्था है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य करती है। |
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन
(National Supercomputing Mission-NSM)
- 25 मार्च, 2015 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी।
- संचार और सूचना प्रौद्योगिकी में अग्रणी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास, वैश्विक प्रौद्योगिकी के रुझानों और बढ़ती हुई आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी।
- इस मिशन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग कार्यान्वित कर रहे हैं तथा इसके लिये प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।
- मिशन के तहत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
उद्देश्य
- भारत को सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में अग्रणी बनाना और राष्ट्रीय तथा वैश्विक प्रासंगिकता की चुनौतियों को हल करने में भारत की क्षमता बढ़ाना।
- भारतीय वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं को अत्याधुनिक सुपरकंप्यूटिंग सुविधाओं से सुसज्जित करना और उन्हें संबंधित ज्ञानक्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान हेतु सक्षम बनाना।
- सुपरकंप्यूटिंग में निवेश को प्रोत्साहन देना।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में शामिल होने के लिये सुपरकंप्यूटिंग तकनीक के रणनीतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना।
- अनुसंधान और विकास संस्थानों को सुपर कंप्यूटिंग ग्रिड से जोड़ना।
मिशन में देरी के कारण
- विशेषज्ञों के अनुसार, शुरुआती वर्षों के दौरान राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (NSM) के लिये असमान वित्तपोषण ने सुपरकंप्यूटर के निर्माण की समग्र गति को धीमा कर दिया था।
- मिशन के शुरुआती चरण में अतिरिक्त समय लगने का एक मुख्य कारण यह भी है कि उस अवधि में वैज्ञानिकों को सुपरकंप्यूटर से संबंधित समग्र तकनीक शुरू से विकसित करनी थी, जो कि अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था।
वैश्विक स्तर पर सुपरकंप्यूटर
- वैश्विक स्तर पर चीन सुपरकंप्यूटर के विकास को लेकर चल रही प्रतियोगिता में सबसे आगे है। चीन ने बीते 6 महीनों में 8 और सुपरकंप्यूटरों को अपनी सूची में शामिल कर लिया है और चीन में सुपरकंप्यूटरों की मौजूदा संख्या 227 तक पहुँच गई है।
- इस सूची में चीन के पश्चात् अमेरिका का स्थान है, जिसके पास कुल 119 सुपरकंप्यूटर हैं। इसी श्रेणी में अन्य देशों जैसे- जापान (29), फ्रांँस (18), जर्मनी (16), नीदरलैंड (15), आयरलैंड (14) और यूनाइटेड किंगडम (11) का भी स्थान है।
सुपरकंप्यूटर की उपयोगिता
- विदित हो कि मानसून से संबंधित सटीक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये वैज्ञानिकों को तेज़ गणना वाली मशीन की ज़रुरत होती है और सुपरकंप्यूटर इस ज़रूरत को पूरा कर सकते हैं।
- अंतरिक्ष विज्ञान में भी सुपरकंप्यूटर्स का अत्यधिक महत्त्व है, खासकर ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़े राज खोलने के लिये वैज्ञानिक ऐसी मशीनों का इस्तेमाल करते हैं।
- गौरतलब है कि सुपरकंप्यूटर्स की मदद से ही DNA रिसर्च और प्रोटीन रिसर्च नए आयाम तक पहुँची हैं। वैज्ञानिक मौसम में बदलाव और भूकंपों की प्रक्रिया को समझने के लिये भी सुपरकंप्यूटर्स का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही परमाणु शोध में भी सुपरकंप्यूटर्स का प्रयोग किया जाता है।
आगे की राह
- आधिकारिक सूचना के अनुसार, वर्ष 2020 तक देश में 11 और नए सुपरकंप्यूटर स्थापित कर दिये जाएंगे और ये सभी स्वदेशी रूप से निर्मित होंगे।
- मिशन का प्रारंभिक चरण समाप्त हो चुका है और इस संबंध में समग्र तकनीक विकसित की जा चुकी है, जिसके कारण अनुमानतः वैज्ञानिकों को आगामी चरणों में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजव्यवस्था
निजी संपत्ति का अधिकार
प्रीलिम्स के लिये: निजी संपत्ति का अधिकार, संपत्ति का अधिकार मेन्स के लिये: निजी संपत्ति के अधिकार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कानून की प्रक्रिया का पालन किये बिना किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से ज़बरन बेदखल करना मानवीय अधिकार का उल्लंघन है।
प्रमुख बिंदु
- जस्टिस एस.के. कौल के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को दोहराते हुए कहा कि निजी संपत्ति का अधिकार मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकार दोनों है।
- न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 1980 में सिक्किम में राज्य के कृषि विभाग द्वारा प्रोगेनी ऑर्चर्ड रीजनल सेंटर के निर्माण के लिये कुछ एकड़ ज़मीन के अधिग्रहण पर दिया गया है।
- सिक्किम द्वारा अधिग्रहीत की गई भूमि दो नामों में दर्ज थी- 1.29 एकड़ सिक्किम के महाराजा के नाम पर और 7.07 एकड़ मान बहादुर बसनेट के नाम पर, जो इस वाद में अपीलकर्त्ता के पिता थे।
- यह देखते हुए कि राज्य वर्तमान में भूमि का उपयोग कर रहा है और इस संदर्भ में मध्यस्थता के सभी प्रयास विफल रहे हैं, न्यायालय ने राज्य को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिये तीन महीने का समय दिया है।
निजी संपत्ति एक मानवाधिकार
- जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने 8 जनवरी, 2020 को अपने एक निर्णय में कल्याणकारी राज्य में संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया था।
- इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विधि द्वारा संचालित किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य विधि की अनुमति के बिना नागरिकों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता है।
- राज्य किसी भी नागरिक की संपत्ति पर ‘एडवर्स पज़ेशन’ (Adverse Possession) के नाम पर अपने स्वामित्त्व का दावा नहीं कर सकता है।
- यह एक विधिक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘प्रतिकूल कब्ज़ा’ है। यदि किसी ज़मीन या मकान पर उसके वैध या वास्तविक मालिक के बजाय किसी अन्य व्यक्ति का 12 वर्ष तक अधिकार रहा है और अगर वास्तविक या वैध मालिक ने अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्ज़े से वापस लेने के लिये 12 वर्ष के भीतर कोई कदम नहीं उठाया है तो उसका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 वर्ष तक कब्ज़ा कर रखा है, उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दिया जा सकता है।
संपत्ति का अधिकार
- संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था।
- 44वें संविधान संशोधन से पूर्व यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के पश्चात् इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, किंतु इसके बावजूद राज्य उचित प्रक्रिया और विधि का पालन कर किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से वंचित कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
महामारी अधिनियम, 1897
प्रीलिम्स के लिये: महामारी अधिनियम, 1897, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये: COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये महामारी अधिनियम, 1897 की धारा 2 के तहत प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश में COVID-19 के प्रभाव को देखते हुए मंत्रियों के समूह (Group of Ministers-GoM) की एक उच्च स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को महामारी अधिनियम, 1897 (Epidemic Disease Act, 1897) की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करना चाहिये ताकि मंत्रालय/राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा समय-समय पर जारी की जाने वाली सभी सलाहों को उचित रूप से लागू की जा सके।
मुख्य बिंदु:
- भारत में COVID-19 की रोकथाम हेतु की गई तैयारियों और इससे निपटने के उपायों की समीक्षा, निगरानी और मूल्यांकन के लिये मंत्रियों के समूह का गठन किया गया था।
कोरोना: एक महामारी
- हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने COVID-19 को एक महामारी के रूप में घोषित कर दिया है।
- WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 114 देशों में 1,18,000 पॉज़िटिव मामले सामने आए हैं और 90% से अधिक मामले सिर्फ चार देशों में पाए गए हैं।
- 81 देशों में COVID-19 का कोई भी मामला सामने नहीं आया है और 57 देशों में 10 या उससे कम मामले सामने आए हैं।
भारत के प्रयास:
- भारत में COVID-19 के 60 मामलों की पुष्टि के बाद केंद्र सरकार द्वारा जारी एक नई यात्रा एडवाइज़री के अनुसार, राजनयिक, आधिकारिक, संयुक्त राष्ट्र/अंतर्राष्ट्रीय संगठन, रोज़गार, परियोजना वीज़ा को छोड़कर सभी मौजूदा वीज़ा को 15 अप्रैल तक निलंबित कर दिया गया है और यह एडवाइज़री 13 मार्च से लागू होगी।
- भारत ने अब तक 948 यात्रियों को कोरोनोवायरस प्रभावित देशों से निकाला है। इनमें से 900 भारतीय नागरिक हैं और 48 विभिन्न राष्ट्रीयताओं से संबंधित हैं।
- केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को महामारी रोग अधिनियम, 1897 के प्रावधानों को लागू करने की सलाह दी है।
महामारी अधिनियम, 1897 की धारा (2):जब राज्य सरकार का किसी समय यह समाधान हो जाए कि पूरे राज्य या उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है, या होने की आशंका है तब राज्य सरकार यदि यह समझती है कि मौजूदा विधि के साधारण उपबंध इसके लिये पर्याप्त नहीं हैं, तो वह ऐसे उपाय कर सकेगी या ऐसे उपाय करने के लिये किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगी या उसके लिये उसे सशक्त कर सकेगी और जनता द्वारा या किसी व्यक्ति द्वारा या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा अनुपालन करने के लिये किसी सूचना द्वारा ऐसे अस्थायी विनियम विहित कर सकेगी जिन्हें वह उस रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम के लिये आवश्यक समझे तथा वह यह भी अवधारित कर सकेगी कि उपगत व्यय (इसके अंतर्गत प्रतिकर, यदि कोई हो तो) किस रीति से और किसके द्वारा चुकाए जाएंगे। |
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का प्रस्ताव:
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association-IMA) के अनुसार, संक्रमित लोगों के डेटा को दैनिक आधार पर जनता के साथ साझा करने से पूरे देश में भय की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- IMA ने सरकार से महामारी संबंधी डेटा को वर्गीकृत करने और नैदानिक परिशुद्धता के साथ उचित कार्रवाई करने की अपील की है।
आगे की राह:
- अभी तक COVID -19 के विरुद्ध कोई निश्चित इलाज या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। इसलिये सरकार की प्रतिक्रिया रणनीति निस्संदेह जोखिम के संचार, स्वास्थ्य शिक्षा, सामाजिक गड़बड़ी और घर के अलगाव जैसे बुनियादी उपायों पर निर्भर करती है।
- प्राकृतिक या मानवजनित बड़ी आपदाओं से निपटने के लिये बनाए गए राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee-NCMC) के माध्यम से सामाजिक संगठनों, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये।
- एक समर्पित वेब पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें प्रमुख संकेतक, रोग की पहचान संबंधी दिशा-निर्देश, जोखिम संचार सामग्री और उपायों की कार्ययोजना शामिल हो।
- सरकार को अधिक-से-अधिक अत्याधुनिक उपकरणों से लैस प्रयोगशालाओं को स्थापित करना चाहिये, ताकि व्यक्ति में संक्रमण की पूरी तरह से पुष्टि हो सके।
- सरकार को आइसोलेशन वार्ड की सुविधा के साथ सेपरेशन किट, मास्क इत्यादि की व्यवस्था करनी चाहिये।
- सरकार द्वारा सभी हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर विदेश से आने वाले सभी व्यक्तियों की गहन जाँच की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- कोरोना वायरस से बचाव न केवल सरकार का उत्तरदायित्व है बल्कि सभी संस्थानों, संगठनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, यहाँ तक कि सभी व्यक्तियों को इससे बचाव हेतु आकस्मिक और अग्रिम तैयारी की योजनाएँ बनानी चाहिये।
- बड़े पैमाने पर व्यवहार परिवर्तन एक सफल प्रतिक्रिया की आधारशिला होगी। इसके लिये उचित जोखिम उपायों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति एक नवीन एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- सही जानकारी ही बचाव का बेहतर विकल्प है, इसलिये सरकार, सामाजिक संगठनों द्वारा लोगों को सही दिशा-निर्देशों का प्रसार करना चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
भूगोल
सौर कलंक सिद्धांत
प्रीलिम्स के लिये:सौर कलंक, माउंडर मिनिमम, सौर प्रज्वला मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन के वाह्य या गैर-पार्थिव कारक |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी (American Astronomical Society) के शोध पत्र के अनुसार, ‘भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान’ (Indian Institute of Science Education and Research- IISER) कोलकाता के शोधकर्त्ताओं ने सौर कलंक के नवीन सौर चक्र (Solar Cycle) की पहचान की है।
मुख्य बिंदु
- पिछले कुछ सौर चक्रों में सौर कलंक की तीव्रता कम रही है, जिससे ऐसा अनुमान था कि एक लंबे सौर ह्रास काल के साथ यह चक्र समाप्त हो जाएगा। हालाँकि IISER की शोध टीम के अनुसार, ऐसे संकेत हैं कि 25वाँ सौर चक्र हाल ही में प्रारंभ हुआ है।
- पिछले तीन सौर चक्रों पर सौर गतिविधियाँ कमज़ोर रही हैं अत: 25वें सौर चक्र के प्रारंभ होने से समय को लेकर अनेक विवाद जुड़ गए हैं।
- IISER ने इस शोध कार्य में नासा के अंतरिक्ष-आधारित ‘सोलर डायनेमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी’ के डेटा का इस्तेमाल किया।
सौर कलंक
- सौर कलंक सूर्य की सतह पर अपेक्षाकृत ठंडे स्थान होते हैं, जिनकी संख्या में लगभग 11 वर्षों के चक्र में वृद्धि तथा कमी होती है जिन्हें क्रमशः सौर कलंक के विकास तथा ह्रास का चरण कहा जाता है, वर्तमान में इस चक्र की न्यूनतम संख्या या ह्रास का चरण चल रहा है।
- पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 148 मिलियन किमी. होने के कारण यह शांत और स्थिर प्रतीत होता है लेकिन वास्तविकता में सूर्य की सतह से विशाल सौर फ्लेयर्स एवं कोरोनल मास इजेक्शन्स (Coronal Mass Ejections- CMEs) का बाहरी अंतरिक्ष में उत्सर्जन होता है।
- इनकी उत्पति सूर्य के आंतरिक भागों से होती है लेकिन ये तभी दिखाई देते हैं जब ये सतह पर उत्पन्न होते हैं। वर्ष 2019 तक खगोलविदों ने 24 सौर चक्रों का दस्तावेज़ीकरण किया है।
सौर प्रज्वला (Solar Flares)
- सौर प्रज्वला सूर्य के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होने वाली ऊर्जा का अचानक विस्फोट है।
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs)
- कोरोनल मास इजेक्शन्स (CME) सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum)
- जब न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता की अवधि दीर्घकाल तक रहती है तो इसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहते हैं।
- वर्ष 1645-1715 के बीच की अवधि में सौर कलंक परिघटना में विराम देखा गया जिसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहा जाता है। यह अवधि तीव्र शीतकाल से युक्त रही, अत: सौर कलंक अवधारणा को जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है।
- माउंडर मिनिमम के समय धरातलीय सतह तथा उसके वायुमंडल का शीतलन, जबकि अधिकतम सौर कलंक सक्रियता काल के समय वायुमंडलीय उष्मन होता है।
- इस तरह के संबंधों का कम महत्त्व है, लेकिन सौर गतिविधि निश्चित रूप से अंतरिक्ष मौसम को प्रभावित करती है तथा इससे अंतरिक्ष-आधारित उपग्रह, जीपीएस, पावर ग्रिड प्रभावित हो सकते हैं।
डाल्टन मिनिमम (Dalton Minimum)
- यह वर्ष 1790-1830 के बीच की अवधि है जिसमे सौर कलंक की तीव्रता कम रही, परंतु इस अवधि में सौर कलंकों की संख्या ‘माउंडर मिनिमम’ से अधिक थी।
सौर गतिकी (Solar dynamo)
- सूर्य में उच्च तापमान के कारण पदार्थ प्लाज़्मा के रूप में उत्सर्जित होते हैं, सूर्य गर्म आयनित प्लाज़्मा से बना होता है, सूर्य की गतिकी के कारण प्लाज़्मा में दोलन के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
- सौर डायनेमो की इस प्रकृति के कारण चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है तथा इस चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के साथ सौर कलंक की संख्या में भी परिवर्तन होता है।
25वाँ सौर चक्र
- सौर कलंक जोडे़ के रूप में पाए जाते हैं, शोधकर्त्ताओं ने चुंबकीय क्षेत्रों के ऐसे 74 जोड़ों के अध्ययन में पाया कि इनमें से 41 का अभिविन्यास 24वें चक्र के अनुरूप एवं 33 का अभिविन्यास 25वें चक्र के अनुरूप है। अत: इस प्रकार वे निष्कर्ष निकालते हैं कि सौर कलंक का 25वाँ चक्र सूर्य के आंतरिक भाग में चल रहा है।
- छोटे चुंबकीय क्षेत्र और चुंबकीय ध्रुवीयता अभिविन्यास के साथ कुछ पूर्ण विकसित सौर कलंक दिखाई देने लगे हैं जो बताते हैं कि सौर कलंक चक्र का 25वाँ चक्र सौर सतह पर दिखाई देना शुरू हो गया है और यह 25वें सौर चक्र के प्रारंभ को बताता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
कोकून उत्पादन
प्रीलिम्स के लिये:कोकून के बारे में मेन्स के लिये:केंद्रीय रेशम बोर्ड तथा इसके कार्य |
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक राज्य में कोकून उत्पादन के मलबरी डिज़ीज़ ( Mulberry Disease) की चपेट में आने के बावजूद यह स्वदेशी रेशम की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त मात्रा में समय पर उपलब्ध हैI
मुख्य बिंदु:
- राज्य में लीफ रोलर कीट (Leaf Roller Insect) ने कोकून उत्पादन को प्रभावित किया है।
- यह कीट शहतूत के पौधों के अंकुरित (Shoots) भाग को खा जाता है जिससे कोकून उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इन सबके बावजूद जलवायु परिवर्तन और रोग नियंत्रक कीटनाशकों के उपयोग के चलते राज्य के कोकून बाज़ार में इसकी पर्याप्त मात्रा देखी गई है।
- रामनगरम जो कि राज्य का सबसे बड़ा कोकून बाज़ार है, में पिछले 3-4 महीनों के दौरान प्रतिदिन 25 से 30 टन कोकून का व्यापार हुआ।
- पिछले एक सप्ताह में कोकून व्यापार में 50 टन प्रतिदिन से भी अधिक की वृद्धि देखने को मिली जिसके परिणामस्वरूप कोकून की कीमत में कमी दर्ज की गई है।
- कोकून की कीमत कम होने तथा कच्चे रेशम की मांग बढ़ने के साथ-साथ COVID-19 के कारण चीन से रेशम आयात प्रभावित होने की वजह से स्वदेशी कच्चे रेशम का उत्पाद बढ़ने के आसार हैं।
- चीन से रेशम आयात न होने की वज़ह से स्वदेशी रेशम की कीमतों में भी वृद्धि हो सकती है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत में उत्पन्न रेशम की गुणवत्ता में भी वृद्धि देखने को मिली है, खासतौर पर बाइवोल्टाइन कोकून ( Bivoltine Cocoon) के उत्पादन में। इसके चलते चीन से आयातित रेशम पर निर्भरता में कमी आई है।
- केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board-CSB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2003-2004 के दौरान रेशम का कुल उत्पादन 15742 टन था जो वर्ष 2010-11 में बढ़कर 20410 टन तथा वर्ष 2018-19 में 35468 टन पर पहुँच गया।
केंद्रीय रेशम बोर्ड
कोकून:
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स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा
प्रीलिम्स के लिये:द इंटरनेशनल मिलिट्री काउंसिल ऑन क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी मेन्स के लिये:विश्व को जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से बचाने हेतु योजनाएँ, समाधान संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में “द इंटरनेशनल मिलिट्री काउंसिल ऑन क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी (The International Military Council on Climate and Security- IMCCS)” द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अगले दशक में वैश्विक सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि IMCCS ने “द वर्ल्ड क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी रिपोर्ट 2020 (The World Climate And Security Report 2020)” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।
- दिसंबर 2019 में IMCCS ने दुनिया भर के 56 सुरक्षा विशेषज्ञों, सैन्य विशेषज्ञों और चिकित्सकों को शामिल करते हुए जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक सुरक्षा के समझ उत्पन्न खतरों का आकलन करने हेतु एक सर्वेक्षण किया।
- सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2040 तक विस्थापन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होने की संभावना है।
- 93 प्रतिशत सैन्य विशेषज्ञों ने माना कि वर्ष 2030 तक जल सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वैश्विक सुरक्षा के लिये उच्च जोखिम प्रस्तुत करेगा, जबकि 91% विशेषज्ञों का मत है कि वर्ष 2040 तक यह जोखिम गंभीर या विनाशकारी हो जाएगा।
- 94% विशेषज्ञों का मत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य सुरक्षा का खतरा बढेगा।
- रिपोर्ट में क्षेत्रीय और अंतर-राज्यों के बीच तनाव में वृद्धि होगी। कम-से-कम 86% विशेषज्ञों ने माना कि वर्ष 2040 तक वैश्विक सुरक्षा के खतरों का कारण राष्ट्रों के बीच संघर्ष होगा।
खराब मौसम का प्रभाव:
- सैन्य विशेषज्ञों का मत है कि चरम मौसमी घटनाओं के कारण सैन्य बुनियादी ढाँचे प्रभावित होंगे।
- जब देश प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा हो तो राजनीतिक अस्थिरता बढ़ जाती है एवं बड़े पैमाने पर विस्थापन वैश्विक सुरक्षा के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन पर अपर्याप्त नीतियों ने भूमि संबंधी संघर्षों को बढ़ा दिया है।
इंटरनेशनल मिलिट्री काउंसिल ऑन क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी
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आगे की राह:
- दुनिया भर के राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थानों को जलवायु परिवर्तन के समाधान हेतु मज़बूत रणनीति, योजनाओं के निर्माण के साथ ही निवेश को बढ़ावा देना चाहिये।
- सुरक्षा तथा सैन्य संस्थानों को जलवायु परिवर्तन के समाधान खोजने हेतु नेतृत्व करना चाहिये एवं व्यापक उत्सर्जन में कटौती तथा अनुकूलन के लिये निवेश को बढ़ावा देने हेतु सरकारों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- दुनिया भर के सैन्य संस्थानों को जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में ज्ञान और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
- उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया सीनेट समिति ने विदेश मामलों, रक्षा और व्यापार पर जलवायु परिवर्तन को एक “थ्रेट मल्टीप्लायर एंड बर्डन मल्टीप्लायर (threat multiplier and burden multiplier)” के रूप में चिहित किया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 मार्च, 2020
एस.एस. देसवाल
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के महानिदेशक एस.एस. देसवाल को सीमा सुरक्षा बल (BSF) का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। वहीं BSF के निदेशक विवेक जौहरी को वापस मध्य प्रदेश कैडर में भेज दिया गया है। इससे पूर्व एस.एस. देसवाल सीमा सुरक्षा बल (BSF) और सशस्त्र सीमा बल (SSB) के महानिदेशक रह चुके हैं। वे 1984 बैच के हरियाणा कैडर के IPS अधिकारी हैं। BSF पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारतीय सीमा की सुरक्षा करती है, इसे भारतीय क्षेत्र की सीमा सुरक्षा की पहली पंक्ति भी कहा जाता है। BSF का गठन 1 दिसंबर, 1965 को किया गया था, इसका उद्देश्य देश की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। इसका गठन कई राज्य सशस्त्र पुलिस बटालियन के विलय से किया गया था। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) का गठन वर्ष 1962 में किया गया था, ITBP को लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश के मध्य तैनात किया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय ITBP देश भर में बचाव और राहत अभियान चलाता है।
COVID एक्शन प्लेटफॉर्म
विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने कोरोनोवायरस के प्रभाव से निपटने हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से ‘COVID एक्शन प्लेटफॉर्म’ लॉन्च किया है। इस प्लेटफॉर्म का उद्देश्य निजी क्षेत्र की सहायता से कोरोनावायरस के प्रकोप को रोकने के लिये कार्य करना है। इस प्लेटफॉर्म का प्रमुख कार्य आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत बनाना है ताकि आवश्यक स्वास्थ्य उपकरण और दवाएँ समय पर उपलब्ध हो सकें। इस प्लेटफॉर्म का निर्माण विश्व भर के 200 कॉर्पोरेट लीडर्स के साथ विचार-विमर्श करके किया गया है। विश्व आर्थिक मंच एक गैर-लाभकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में है। फोरम वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक एजेंडों को आकार देने के लिये राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र के अग्रणी नेतृत्व को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है। यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संगठन है।
विश्व बैंक, भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार के मध्य समझौता
भारत सरकार, हिमाचल प्रदेश सरकार और विश्व बैंक ने हिमाचल प्रदेश में कुछ चयनित ग्राम पंचायतों (ग्राम परिषदों) की जल प्रबंधन प्रक्रियाओं में सुधार लाने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। हिमाचल प्रदेश में जल की स्रोत स्थिरता और जलवायु लचीली वर्षा-आधारित कृषि के लिये एकीकृत परियोजना 10 ज़िलों की 428 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी, इससे 4,00,000 से अधिक छोटे किसानों, महिलाओं और देहाती समुदायों को लाभ होगा। कृषि और इसकी संबद्ध गतिविधियों के लिये जलवायु लचीलेपन को बढ़ाना इस परियोजना का एक प्रमुख घटक है जिसके लिये पानी एक कुशल उपयोग केंद्र बिंदु है। इस परियोजना के तहत जल गुणवत्ता और मात्रा की निगरानी के लिये हाइड्रोलॉजिकल निगरानी स्टेशन भी स्थापित किये जाएंगे।
वसीम जाफर
प्रसिद्ध भारतीय बल्लेबाज़ वसीम जाफर ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने की घोषणा की है। 42 वर्षीय वसीम जाफर ने भारत के लिये अपना अंतिम टेस्ट मैच अप्रैल 2008 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध कानपुर में खेला था। ध्यातव्य है कि रणजी ट्रॉफी में सबसे अधिक रन बनाने के साथ-साथ सबसे ज़्यादा मैच खेलने का रिकॉर्ड वसीम जाफर के नाम ही है। घरेलू क्रिकेट में अद्वितीय प्रदर्शन के कारण वसीम जाफर को घरेलू क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर के रूप में भी जाना जाता है। वर्ष 2008 तक वसीम जाफर ने कुल 31 टेस्ट मैचों और 2 एक दिवसीय मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।