भारतीय राजनीति
निजी संपत्ति एक मानवाधिकार
- 13 Jan 2020
- 5 min read
प्रीलिम्स के लिये:संपत्ति का अधिकार मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजी संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार घोषित करने के संबंध में दिया गया निर्णय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए एक निर्णय में नागरिकों के निजी संपत्ति पर अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय संपत्ति के अधिकार की 44वें संशोधन से पूर्व की स्थिति को आधार मानते हुए दिया है।
क्या था मामला?
- वर्ष 1967 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा सड़क निर्माण के लिये अधिग्रहण प्रक्रियाओं का पालन किये बिना एक विधवा महिला की 4 एकड़ ज़मीन अधिगृहीत कर ली गई थी।
- एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली अशिक्षित महिला होने के कारण अपीलकर्त्ता अपने अधिकारों तथा विधिक प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ थी, अतः उसने राज्य द्वारा अनिवार्य रूप से अधिगृहित भूमि के मुआवज़े के लिये कोई विधिक कार्यवाही नहीं की।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विधि द्वारा संचालित किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य विधि की अनुमति के बिना नागरिकों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता है।
- राज्य द्वारा किसी नागरिक की निजी भूमि का अधिग्रहण करके उस भूमि पर अपना दावा करना राज्य को अतिक्रमणकारी बनाता है।
- राज्य किसी भी नागरिक की संपत्ति पर ‘एडवर्स पजेशन’ (Adverse Possession) के नाम पर अपने स्वामित्त्व का दावा नहीं कर सकता है।
एडवर्स पजेशन:
(Adverse Possession)
- यह एक विधिक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘प्रतिकूल कब्ज़ा’ है।
- अगर किसी ज़मीन या मकान पर उसके वैध या वास्तविक मालिक के बजाय किसी अन्य व्यक्ति का 12 वर्ष तक अधिकार रहा है और अगर वास्तविक या वैध मालिक ने अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस लेने के लिये 12 वर्ष के भीतर कोई कदम नहीं उठाया है तो उसका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 वर्ष तक कब्ज़ा कर रखा है, उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दिया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य को अपने स्वयं के नागरिकों की संपत्ति के अधिग्रहण के लिये एडवर्स पजेशन के सिद्धांत को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने उस विधवा महिला के अशिक्षित होने का लाभ उठाते हुए उसे 52 वर्षों तक मुआवज़ा प्रदान नहीं किया।
- इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार को अपीलकर्त्ता को 1 करोड़ रुपए का मुआवज़ा प्रदान करने का आदेश दिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने जब अपीलकर्त्ता की ज़मीन का अधिग्रहण किया था उस समय संविधान के अनुच्छेद-31 के तहत निजी संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था।
संपत्ति का अधिकार:
(Right to Property):
- संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था।
- 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा इसके बावजूद भी राज्य किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन करके ही वंचित कर सकता है।